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पञ्चमः सर्गः
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स्यादष्टौ हि सहस्राणि चतुःशत्येकविंशतिः । हरिवर्षस्य विस्तारो भागश्चैकोनविंशतः ॥७॥ शतानि नव सैकानि सहस्राणि त्रिसप्ततिः । ज्यापि चास्य विशेषेण भागाः सप्तदशाधिकाः ॥७५॥ अस्याश्चतुरशीतिश्च सहस्राणि पुनर्भवेत् । षोडशापि धनुायाश्चतस्रः साधिकाः कलाः ॥७६।। षोडशास्य सहस्राणि योजनानां शतत्रयम् । इषः पञ्चदश ज्ञेया सह पञ्चदशांशकैः ॥७७॥ सहस्राणि नवान्यानि शतानि नव चलिका । पञ्चाशीतिश्च पञ्चांशाः सहादूर्धकलया तु सा ॥८॥ त्रयोदशसहस्राणि त्रिशतो षष्टिरेककम् । साधिकार्धाधिकार्धाः षड़ भागास्तत्र भजप्रमा॥७९॥ द्वाचत्वारिंशदष्टौ च शतान्यन्यानि षोडश । सहस्राणि च भागौ द्वौ विष्कम्भो निषधस्य च ॥८॥ उच्छायः पुनरस्य स्याद् योजनानां चतुःशती । अवगाहस्त्वधो भूमेः शतयोजनमात्रकः ॥८१॥ चतुर्नवतिसंख्यानि सहस्राणि शतं तथा । षट्पञ्चाशदविभागौ च साधिको ज्यास्य भूभृतः ॥८२॥ लौकात्र सहस्राणि चतुर्विशतिरंशकाः । साधिका नव चापं षट्चत्वारिंशच्छतत्रयम् ॥८३॥ धनुषोऽस्य त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि शतं तथा । सप्तपञ्चाशदेव स्यादिषुः सप्तदशांशकाः ॥४४॥ तथा दशसहस्राणि शतं स्यात्सप्तविंशतिः । साधिको च परौ भागी चूलिका निषधस्य सा ॥८५।। विंशतिश्च सहस्राणि पञ्चषष्टियुतं शतम् । साधिकार्धाधिको भागौ प्रमाणं मुजयोरिह ॥८६।। तपनीयमयस्यास्य निषधस्यापि मूर्धनि । मासन्ते नवकूटानि सर्वरत्नमरीचिभिः॥ ८७॥ सिद्धायतनकूटं च कूटं तनिषधादिकम् । हरिवर्षादिकं पूर्वविदेहादिकमेव तत् ॥८॥ होकूटं तिकूटं च शीतोदाकूटमेव च । विदेहकूटमित्येकं रुचकं नवमं मतम् ॥८९।। उच्छायो योजनशतं विष्कम्भश्चापि मूलजः । पञ्चाशन्मस्तकेऽमोषां मध्येऽसौ पञ्चसप्ततिः ॥१०॥
इसके आगे हरिवर्ष क्षेत्र है इसका विस्तार आठ हजार चार सौ इक्कीस योजन तथा एक योजनके उन्नीस भागोंमें से एक भाग प्रमाण है ॥७४॥ इसकी प्रत्यंचाका विस्तार तिहत्तर हजार नौ सौ एक योजन और सत्रह कला है ।।७५।। इस प्रत्यंचाका धनुःपृष्ठ आठ हजार चार सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक चार कला है ॥७६।। इसके बाणका विस्तार सोलह . हजार तीन सौ पन्द्रह योजन तथा पन्द्रह कला है ।।७७। इसकी चूलिका नौ हजार नौ सौ पचासी योजन तथा साढ़े पांच कला है ।।७८|| और इसकी भजाओंका प्रमाण तेरह हजार तीन सौ इकसठ योजन साढ़े छह कला है ॥७९॥
इसके आगे निषध पर्वत है इसका विस्तार सोलह हजार आठ सौ बयालीस योजन तथा एक योजनके उन्नीस भागों में दो भाग प्रमाण है ॥८०॥ इसकी ऊंचाई चार सो योजन है और पृथिवीके नीचे गहराई सौ योजन प्रमाण है ॥८१॥ इस पर्वतकी प्रत्यंचा चौरानबे हजार एक सौ छप्पन योजन तथा अधिक दो कला है ॥८२।। इसका धनःपष्ठ एक लाख चौबीस हजार तीन सौ छियालीस योजन तथा कछ अधिक नौ कला है ॥८३।। इस धनःपष्ठके बाणका विस्तार तैंतीस हजार एक सौ सन्तावन योजन तथा सत्रह कला है ।।८४॥ इस निषध कूलाचलकी चूलिका दश हजार एक सौ सत्ताईस योजन तथा कुछ अधिक दो कला है ।।८५।। इसकी भुजाओंका प्रमाण बीस हजार एक सौ पैंसठ योजन तथा कुछ अधिक अढ़ाई कला है ॥८६॥ इस स्वर्णमय निषधाचलके मस्तकपर नौ कूट हैं जो कि सब प्रकारके रत्नोंकी किरणोंसे सुशोभित हो रहे हैं ।।८७।। उन कूटोंके नाम इस प्रकार हैं-१ सिद्धायतन कूट, २ निषध कूट, ३ हरिवर्ष कूट, ४ पूर्व विदेह कूट, ५ ह्री कूट, ६ धृति कूट, ७ सीतोदा कूट, ८ विदेह कूट और ९ रुचक कूट ।।८८-८९॥ इन सबकी ऊँचाई और मूलकी चौड़ाई सौ योजन है । बोचकी चौड़ाई पचहत्तर योजन और मस्तक-ऊर्ध्व भागको चौड़ाई पचास योजन है ॥९०॥ १. मात्रकाः म.।
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