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पञ्चमः सर्गः
तनुवातान्तपर्यन्तस्तिर्यग्लोको व्यवस्थितः । लक्षितावधिरूभंधो मेरुयोजनलक्षया ॥१॥ तत्रैवास्मिन्नसंख्येयसागरद्वीपवेष्टितः । जम्बूद्वीपः स्थितो वृत्तो जम्बूपादपलक्षितः ॥२॥ विस्तारेणार्णवस्पर्शी वज्रवेदिकयाऽऽवृतः । महामेरुमहानामिर्लक्ष्ययोजनलक्षया ॥३॥ 'तिस्रो लक्षाः परिक्षेपः स्यात्सहस्राणि षोडश । योजनानि त्रिगव्यतिर्दिशती सप्तविंशतिः ॥४॥ अष्टविंशतिसन्मिश्रं तथैवान्यं धनुःशतम् । त्रयोदशाङगुलानि स्युः साधिकार्धाङ्गलानि तु ॥५॥ कोटीशतानि सप्त स्युः कोटयो नवतिः स्फुटाः। पटपञ्चाशत्तथा लक्षा नवतिश्चतुरुत्तरा ॥६॥ सहस्रगुणिता द्वीपे शतं पञ्चाशताधिकम् । योजनानि विभक्तेऽस्मिन् गणितस्य पदं विदुः ॥७॥ क्षेत्राणि सन्ति सप्ताऽत्र मेरुरेकः कुरुद्वयम् । जम्बूश्च शाल्मलीवृक्षौ षडेव कुलपर्वताः ॥८॥ महासरांसि षट् तेषु महानद्यश्चतुर्दश । द्विषड् विभङ्गनद्यश्च वक्षारागाश्च विंशतिः ॥९॥ राजधान्यश्चतुस्त्रिंशद्रौप्यादिवृषमादयः । अष्टाषष्टिगुहा वृत्तविजयार्द्धचतुष्टयम् ॥१०॥ तथा त्रीणि सहस्राणि पुनः सप्तशतान्यपि । चत्वारिंशत्पुराणि स्युर्विद्याधरमहीभृताम् ॥११॥ एतैः सर्वैग्यं द्वीपो दीप्यते द्विगुणैरिमैः । यथाऽसौ धातकीखण्डः पुष्करार्धश्च सर्वतः ॥१२॥ भारतं दक्षिणं तत्र क्षेत्रं हैमवतं परम् । हरिक्षेत्र विदेहं च रम्यकं च तथा परम् ॥१३॥
तनुवातवलयके अन्त भाग तक तियंग्लोक अर्थात् मध्यलोक स्थित है। मेरु पर्वत एक लाख योजन विस्तारवाला है। उसी मेरु पर्वत द्वारा ऊपर तथा नीचे इस तिर्यग्लोककी अवधि निश्चित है। भावार्थ-मेरु पर्वत कुल एक लाख योजन विस्तारवाला है। उसमें एक हजार योजन तो पृथिवीतलसे नीचे है और निन्यानबे हजार योजन पृथिवीतलसे ऊपर है। तिर्यग्लोककी सीमा इसी मेरु पर्वतसे निश्चित है अर्थात् तियंग्लोक पृथिवीतलके एक हजार योजन नीचेसे लेकर निन्यानबे. हजार योजन ऊंचाई तक है ।।१।। इसी मध्यम लोकमें असंख्यात द्वीप-समुद्रोंसे वेष्टित गोल तथा जम्बू वृक्षसे युक्त जम्बू द्वीप स्थित है ॥२॥ यह जम्बू द्वीप लवण समुद्रका स्पर्श करनेवाला है, वज्रमयी वेदिकासे घिरा हुआ है, महामेरु रूपी नाभिसे युक्त है अर्थात् महामेरु इसके मध्यभागमें अवस्थित है तथा एक लाख योजन विस्तारवाला है ॥३॥ जम्बू द्वीपको परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तोन कोश एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल है ॥४-५॥ विभाग करनेपर गणितज्ञ मनुष्य इस जम्बू-द्वीपका घनाकार क्षेत्र सात सौ नब्बे करोड़ छप्पन लाख, चौरानबे हजार एक सौ पचास योजन बतलाते हैं ॥६-७॥ इस जम्बू द्वीपमें सात क्षेत्र, एक मेरु, दो कुरु, जम्बू और शाल्मली नामक दो वृक्ष, छह कुलाचल, कुलाचलोंपर स्थित छह महासरोवर, चौदह महानदियां, बारह विभंगा नदियां, बीस वक्षार गिरि, चौंतीस राजधानी, चौंतीस रूप्याचल, चौंतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएँ, चार गोलाकार नाभि गिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधर राजाओंके नगर हैं। ऊपर कही हुई इन सभी चीजोंसे यह जम्बू द्वीप अत्यधिक सुशोभित है। जम्बू द्वीपसे दूने क्षेत्र तथा मेरु आदिसे दूसरा धातकीखण्ड द्वीप देदीप्यमान है और पुष्कराधं भी धातकीखण्डके समान समस्त क्षेत्रों तथा पर्वतों आदिसे युक्त
१. स्पधि म.। २. -नाभिलक्षयोजन -म.। ३. जम्बूद्वीपस्य सूक्ष्मपरिधिः ३१६२२७ योजनानां कोशाः १२८ धनूंषि १३३ अङ्गुलानि च वर्तते । ४. वक्षागाराश्च म. ।
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