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चतुर्थः सर्ग: भ्रान्ते द्वे धनुषी हस्तावङ्गलं सार्द्धमप्यसौ। उभ्रान्ते तु यो दण्डाः सोऽङ्गलानि दशोदितः ॥२१७॥ धनू षि त्रीणि संभ्रान्ते द्वौ हस्तावङ्गुलान्यपि । अष्टादशैव सा नि नारकोत्सेध ईरितः ॥२९८॥ कार्मुकाणि तु चत्वारि हस्तस्त्रोण्यङ्गुल!नि च । असंभ्रान्तेऽप्यसंभ्रान्तैरुत्सेधः साधु वर्णितः ॥२१॥ चत्वारः खलु कंदण्डास्त्रयो हस्तास्तथोदिताः । विभ्रान्तेऽपि ह्यविभ्रान्तैः साढ़े रेकादशाङ्गुलैः ॥३०॥ चापपञ्चकमुलेधः तथा हस्तश्च विंशतिः । अङ्गुलानि स पुदिष्टस्त्रस्तनामनि चेन्द्रके ॥३०१॥ धनंषि च षडुत्सेधस्वसिते त्रासिताङ्गिनि । सार्धाङ्गुलचतुकं च चतुरैः प्रतिपादितः ॥३०२॥ वक्रान्ते धनुषां षट्कं सहस्तद्वितयं तथा । कथितं कपकैरुद्धैरङ्गुलानि त्रयोदश ॥३८३॥ धनुःसता त्सेधः' सार्थमर्धाङ्गुलेन च । अवक्रान्ते बुधैरुक्तः सोऽङ्गुलान्येकविंशतिः ॥३०४॥ विक्रान्ते सप्त चापानि यो हस्ताः षडङ्गुली । स एष विहितः प्रासलेधः प्रथमावनौ ॥३०५॥ स्तरकेऽष्टौ धनूंषि द्वौ हस्तावॉलयोर्दयोः।। द्वाकादशभागौ च नारकोत्सेध इष्यते ॥३०६।। स्तनके नवदण्डास्तु द्वाविंशत्यङगुलानि च । उत्सेधो वर्णितो युक्तश्चतुरेकादशांशकैः ॥३०॥ मनके नवदण्डाश्च त्रयो हस्ताः सहाङ्गलैः । अष्टादशभिरुत्सेधः षमिरेकादशांश कैः ॥३०८॥ वनके दश दण्डा द्वौ हस्तावुत्सेध इष्यते । साष्टकादशप्रागानि सोङ्गलानि चतुर्दश ॥३०९॥ घाटे स्वेकादशप्रा ईण्डा हस्तो दशाङ्गुलैः । दर्शकादशमागाश्च देहोत्सेधः प्रकीर्तितः ॥३१॥
संघाटे द्वादशोत्सेधो दण्डः सप्ताङ्गुलान्यपि । तथैकादशभागाश्च नारकागामुदाहृतः ॥३११॥ भ्रान्त नामक चौथे प्रस्तारमें दो धनुष दो हाथ और डेढ़ अंगुल है। उद्भ्रान्त नामक पांचवें प्रस्तारमें तीन धनुष और दश अंगुल है ॥२९७|| संभ्रान्त नामक छठवें प्रस्तारमें तीन धनुष दो हाथ और साढ़े अठारह अंगुल है ।।२९८।। असंभ्रान्त नामक सातवें प्रस्तारमें विशद ज्ञानके धारी आवार्योंने नारकियोंके शरीरकी ऊँचाई चार धनुष, एक हाथ और तीन अंगुल बतलायी है ।।२९९।। भ्रान्ति रहित आचार्योंने विभ्रान्त नामक आठवें प्रस्तारमें नारकियोंके शरीरका उत्सेध चार धनुष तीन हाथ और साढ़े ग्यारह अंगुल प्रमाण कहा है ॥३००।। त्रस्त नामक नौवें प्रस्तारमें पांच धनुष एक हाथ और बीस अंगुल ऊंचाई कही गयी है ।।३०१।। जहां प्राणी भयभीत हो रहे हैं ऐसे त्रसित नामक दसवें प्रस्तारमें नारकियोंके शरीरकी ऊंचाई चतुर आचार्योंने छह धनुष और साढ़े चार अंगुल प्रमाण बतलायी है ॥३०२॥ वक्रान्त नामक ग्यारहवें प्रस्तारमें श्रेष्ठ वक्ताओंने नारकियोंका शरीर छ: धनुष दो हाथ और तेरह अंगुल प्रमाण कहा है ।।३०३॥ अवक्रान्त नामक बारहवें प्रस्तारमें विद्वान् आचार्योंने नारकियोंकी ऊंचाई सात धनुष और साढ़े इक्कीस अंगुल कही है ॥३०४।। और विक्रान्त नामक तेरहवें प्रस्तारमें सात धनुष तीन हाथ तथा छः अंगुल प्रमाण ऊँचाई है । इस प्रकार बुद्धिमान् आचार्योंने प्रथम पृथिवीमें ऊँचाईका वर्णन किया है ॥३०५||
दूसरी पथिवीके स्तरक नामक पहले प्रस्तारमें नारकियोंकी ऊँचाई आठ धनुष, दो हाथ, दो अंगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें दो भाग प्रमाग मानी जाती है ॥३.६।। स्तनक नामक दूसरे प्रस्तारमें नारकियोंका उत्सेध नौ धनुष बाईस अंगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें चार भाग प्रमाण कहा गया है ।।३०७।। मनक नामक तीसरे प्रस्तारमें नी धनुष तोन हाथ अठारह अंगल तथा एक अंगलके ग्यारह भागोंमें छह भाग प्रमाण ऊँचाई बतलायी है॥३०८।। वनक नामक चौथे प्रस्तारमें नारकियोंके शरोरकी ऊँचाई दश धनुष दो हाथ चौदह अंगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें आठ भाग मानी जाती है ।।३०९।। घाट नामक पांचवें प्रस्तारमें ग्यारह धनुष, एक हाथ, दश अगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें दश भाग शरीरको ऊँचाई कही गयी है ॥३१० संघाट नामक छठवें प्रस्तारमें नारकियों को ऊँचाई बारह धनुष सात अंगुल और एक अंगुलके १. -मुद्देशः म.।
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