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चतुर्थः सर्गः
निदाघेऽप्यवरेषैव स्थितिः समुपवर्णिता । परा तु नवभागाभ्यां सागराः पञ्च संचिताः ॥२७॥ अजघन्या निदाघे या सैव प्रज्वलितेऽन्यथा । षड्नवांशकसंमिश्रा परा पञ्च पयोधयः ॥२७५॥ परा प्रज्वलिते येयं सेव चोज्ज्वलितेऽपरा । तथा सनवमागास्ते षट्समुद्राः परा स्थितिः ॥२७६॥ उत्कृष्टोज्ज्वलिते येयं सैव संज्वलितेऽवरा । सपञ्चनवमागास्ते परमा षट पयोधयः ॥२७॥ सा संप्रज्वलिते हीना परा सागरसप्तकम् । तृतीयनरके तेऽमी प्रसिद्धाः सप्त सागराः ॥२७॥ या संप्रज्वलिते दीर्घा हस्वाऽऽरे सा प्रकीर्तिता । दीर्घा सप्त समुद्रास्ते सप्तभागास्तथा त्रयः ॥२८९॥ आरे या परमा प्रोक्ता तारे संवापरा स्थितिः । परा सप्त समुद्रास्ते षड्भिः सप्तमभागकैः॥२८॥ तारे या परमा प्रोक्ता मैव मारेऽवरा स्थितिः । सह सप्तममागाभ्यां पराऽप्यष्टौ पयोधयः ॥२८१॥ मारे तु या परा सैव वर्चस्के वर्णिताऽवरा । पञ्चसप्तममागैस्तु पराष्ट जलराशयः ॥२२॥ वर्चस्के परमा याऽसौ तमकेऽप्यवरा स्थितिः । परा सप्तमभागेन संयुक्ता नव सागराः ॥२८३॥ परा तु तमके याऽसौ जघन्या सा षडे मत।। चतुर्भिः सप्तमैर्मागैः पराऽपि नव सागराः ॥२८॥ षडे तु परमा याऽसौ हीना षडषडेऽप्यसौ । चतुथ्या सुप्रसिद्धास्ते परा तु दश सागराः ॥२८५॥
भागोंमें सात भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलायो मयी है ॥२७३॥ निदाघ नामक पांचवें इन्द्रकमें यही जघन्य और पांच सागर पूर्ण तथा एक सागरके नौ भागोंमें दो भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति वर्णन की गयी है ।।२७४।। प्रज्वलित नामक छठे इन्द्रकमें यही जघन्य स्थिति तथा पांच सागर पूर्ण और एक सागरके नौ भागोंमें छह भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है ॥२७५।। प्रज्वलित इन्द्रकको जो उत्कृष्ट स्थिति है वही उज्ज्वलित नामक सातवें इन्द्रकको जघन्य स्थिति है तथा छह सागर पूर्ण और एक सागरके नो भागोंमें एक भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है ॥२७६|| उज्ज्वलित इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति है वही संज्वलित नामक आठवें इन्द्रककी जघन्य स्थिति है तथा छह सागर पूर्ण और एक सागरके नौ भागोंमें पाँच भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है ।।२७७।। संप्रज्वलित नामक नौंवें इन्द्रकमें यही जघन्य स्थिति और सात सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। इस तरह तीसरे नरकमें सामान्य रूपसे सात सागरको स्थिति प्रसिद्ध है ॥२७८||
ऊपर संप्रज्वलित नामक इन्द्रकमें जो सात सागरको उत्कृष्ट स्थिति बतलायी है वह चौथी पृथिवीके आर नामक प्रथम इन्द्रकमें जघन्य स्थिति कही गयी है तथा सात सागर पूर्ण और एक सागरके सात भागोंमें-से तीन भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलायी गयी है ।।२७९|| और इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है वही तार नामक दूसरे इन्द्रकमें जघन्य स्थिति बतलायी गयी है, तथा सात सागर पूर्ण और एक सागरके सात भागोंमें-से छह भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है ।।२८०॥ तार इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति कहो गयी है वही मार नामक तीसरे इन्द्रकमें जघन्य स्थिति बतलायी गयी है और आठ सागर पूर्ण तथा एक सागरके सात भागोंमें दो भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है ।।२८१।। मार इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है वही वर्चस्क नामक चौथे इन्द्रकमें जघन्य स्थिति बतलायी गयी है और आठ सागर पूर्ण तथा एक सागरके सात भागों में पांच भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है ।।२८२॥ वचस्क इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है वही तमक नामक पांचवें इन्द्रकमें जघन्य स्थिति बतलायी गयी है और नौ सागर पूर्ण तथा एक सागरके सात भागोंमें एक सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है ।।२८३।। तमक इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है वही षड नामक छठे इन्द्रकमें जघन्य स्थिति बतलायी गयी है और नौ सागर पूर्ण तथा एक सागरके सात भागोमें चार भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति प्रदर्शित की गयी है ।।२८४।। षड इन्द्रकमें जो उत्कृष्ट स्थिति कही गयी है वही षडषड नामक सातवें इन्द्रकमें जघन्य स्थिति बतलायो गयो है और दश सागर प्रमाण उत्कृष्ट
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