Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४३
मार्गद
अर्थ - अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण का नोकर्मद्रव्य अवधिज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण के समान जानना तथा सातावेदनीय का नोकर्मद्रव्य इष्टअन्नपानादि तथा असातावेदनीय का नोकर्मद्रव्यकर्म अनिष्टअन्नपानादि हैं। अब मोहनीयकर्म की उत्तरप्रकृतियों के नोकर्म कहते हैं -
आयदणाणायदणं सम्मे मिच्छे य होदि णोकम्मं ।
उभयं सम्मामिच्छे णोकम्मं होदि णियमेण ॥७४॥ अर्थ - सम्यक्त्वप्रकृति के नोकर्मद्रव्य जिनआयतन हैं। तथा मिथ्यात्व के नोकर्मद्रव्य छह अनायतन हैं। आयतन व अनायतन, ये दोनों मिश्रितरूप से सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति के नोकर्मद्रव्य हैं। ये नियम से इनके नोकर्म हैं।
विशेषार्थ - जिनप्रतिमा, जिनमंदिर, जिनागम, शास्त्रज्ञ, सुतप और सुतपस्वी ये छह आयतन तथा कुदेव, कुदेवमंदिर, कुशास्त्र, कुशास्त्रज्ञ, कुतप और कुतपस्वी ये छह अनायतन हैं।
अणणोकम्मं मिच्छत्तायदणादी हु होदि सेसाणं।
सगसगजोगं सत्थं सहायपहुदी हवे णियमा ॥७५ ।। अर्थ - अनन्तानुबन्धी के नोकर्म छह अनायतन आदि हैं। शेषकषायों के नियम से नोकर्मद्रव्य, देशचारित्र-सकलचारित्र तथा यथाख्यातचारित्र के घातक काव्य-नाटक-कोकशास्त्रादि अथवा पापी लोगों की सङ्गति है।
थीपुंसंढसरीरं ताणं णोकम्म दव्वकम्मं तु।
वेलंबको सुपुत्तो हस्सरदीणं च णोकम्मं ॥७६ ॥ अर्थ - स्त्रीवेद का नोकर्म स्त्रीका शरीर, पुरुषवेद का नोकर्म पुरुष का शरीर और नपुंसकवेद का नोकर्म नपुंसकका शरीर है। हास्य का नोकर्म विदूषकादि (हँसी मजाक करनेवाले जोकर), रति का नोकर्म गुणवान पुत्र है, क्योंकि गुणीपुत्र पर अधिक प्रीति होती है।
इट्ठाणिविजोग-जोगं अरदिस्समुदसुपुत्तादी।
सोगस्स य सिंहादी णिदिद दव्यं च भयजुगले॥७७॥ अर्थ - अरति का नोकर्म इष्टवियोग-अनिष्टसंयोग है। शोक का नोकर्म सुपुत्रादि का मरण, भय का नोकर्म सिंहादि भयंकर वस्तुएँ तथा जुगुप्सा का नोकर्म निंदित वस्तु है।