Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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__गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४२
मोहनीयका नोकर्म मद्य है जो मोहनीय के उदय के लिए जीव के सम्यग्दर्शनादि गुणों को घातता है। का नोकर्म चार प्रकार का आहार है, जो शरीर के बल का कारण होने से शरीर में स्थिति का कार है। नामकर्म का नोकर्म औदारिकादि शरीर है। गोत्रकर्म का नोकर्मद्रव्य ऊँच-नीचशरीर है जो गोत्रक के उदय के लिए ऊँच-नीचकुल को प्रकट करता है। अन्तरायकर्म का नोकर्मद्रव्य भण्डारी है जो अन्तयः | कर्मोदय के लिए भोग-उपभोगरूप वस्तु में विघ्न करता है। आगे उत्तर प्रकृतियों में सर्वप्रथम ज्ञानावरण के उत्तरभेदों के नोकर्म कहते हैं -
पडविसयपहुदि दव्वं मदिसुदवाघादकरणसंजुत्तं ।
मदिसुदवोहाणं पुण णोकम्मं दवियकमं तु॥७० ।। अर्थ - वस्तुस्वरूप को ढंकनेवाले वरूादि पदार्थ मतिज्ञानावरण के नोकर्म हैं। इन्द्रियविषयाई श्रुतज्ञानावरण के नोकर्म हैं जो श्रुतज्ञान को नहीं होने देते।
ओहिमणपज्जवाणं पडिघादणिमित्तसंकिलेसयरं।
जं बज्झटं तं खलु णोकम्मं केवले णत्थि ॥७१॥ अर्थ - अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञानका घात करनेवाले संक्लेशपरिणामों को उत्पन्न करनेवाल बाह्यवस्तु अवधि-मनःपर्ययज्ञानावरण का नोकर्मद्रव्य है। केवलज्ञानावरण का नोकर्मद्रव्य नहीं है।
विशेषार्थ - केवलज्ञान क्षायिक है उसको रोकनेवाली संक्लेशकारक कोई वस्तु नहीं है। अवधि और मनःपर्ययज्ञानावरण क्षायोपशमिकज्ञान हैं अत: इनके नोकर्म हैं। दर्शनावरण की उत्तरप्रकृतियों के नोकर्म बताते हैं -
पंचण्हं णिहाणं माहिसदहिपहुदि होदि णोकम्म।
वाघादकरपड़ादी चक्खुअचक्खूण णोकम्मं ॥७२॥ अर्थ - पाँच निद्रारूप दर्शनावरण के नोकर्मद्रव्य भैसका दही आदि वस्तुएँ हैं। चक्षुअबक्षुदर्शनावरण के नोकर्मद्रव्य व्याघातकारक पट आदि वस्तुएँ हैं। अवधि-फेवलदर्शनावरण एवं वेदनीय के उत्तरभेदों का नोकर्मद्रव्य कहते हैं - !
ओहीकेवलदसणणोकम्मं ताण णाण भंगो य । सादेदरणोकम्मं इट्टाणि?ण्णपाणादि ॥७३ ।।