Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४०
अर्थ - कर्मस्वरूपपरिणत द्रव्यसे भिन्न बाह्यकारणरूप जो द्रव्य है वह नोकर्म तदूव्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यकर्म है। भावनिक्षेपकर्म के दो भेद हैं - आगमभावकर्म-नोआगम भावकर्म। आगमभावनिक्षेपकर्म का स्वरूप -
कम्मागमपरिजाणगजीवो कम्मागमम्हि उवजुत्तो।
भावागमकम्मोत्ति य तस्स य सण्णा हवे णियमा ॥६५ ।। अर्थ - जो जीव कर्मस्वरूपके प्रतिपादक आगम (शास्त्र) का जाननेवाला है तथा वर्तमानकाल में उसी शास्त्रके चिन्तनरूप उपयोग से सहित है उस जीवको आगमभावकर्म जानना चाहिए। आगे नोआगमभावनिक्षेप को कहते हैं -
णो आगमभावो पुण कम्मफलं भुंजमाणगो जीवो।
इदि सामण्णं कम्यं चविह हादि जियण ॥६६॥ । अर्थ - कर्मफलको भोगनेवाला जीव नोआगमभावकर्म है। इस प्रकार निक्षेपों की अपेक्षा सामान्यकर्म चार प्रकार का नियम से जानना चाहिए।
निक्षेप की अपेक्षा कर्म के भेद
नाम
स्थापना
द्रव्य
तदाकार
अतदाकार आगमद्रव्य
नोआगमद्रव्य
आगमभाव
नोआगमभाव
ज्ञायकशरीर
भावी
तद्व्यतिरिक्त
भूत
वर्तमान
भावी
कम
नोकर्म
भक्तप्रतिज्ञा
इंगिनी
प्रायोपगमन
न्य
मध्यम
मध्यम
जघन्य काल
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट काल
काल