Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रथमोऽध्यायः
शुभ ( पाण्डुगिरि: ) पाण्डुगिरि (नाम्ना: ) नाम का (सुविख्यातो :) सुविख्यात् (शैले) पर्वत (अस्ति) है।
भावार्थ — उस राजगृह नगर में नाना गुणों से परिपूर्ण सेनजिद् नाम का राजा रहता है उसी नगरी के निकटतम पाँच पर्वतों में मुख्य शोभायमान पाण्डुगिरि नाम का पर्वत है ॥ ३ ॥
नानावृक्ष
समाकीर्णो सरोभिश्च
नानाविहगसेवितः । साधुभिश्चोपसेवितः ॥ ४ ॥
चतुष्पदैः
(नाना ) नाना प्रकार के ( विहग ) पक्षियों से (सेवितः ) सेवित है (नाना) नाना प्रकार के (वृक्षः) वृक्षों (समाकीर्णो ) से सहित ( चतुष्पदैः ) पशुओं से युक्त (सरोभिश्च ) सरोवरों से युक्त (साधुभिश्च ) साधुओं के द्वारा (उपसेवितः) उपसेवित
है।
भावार्थ - यह पर्वत पशुओं से युक्त नाना प्रकार के वृक्षों से सहित, जिस पर अनेक प्रकार के पक्षी क्रीड़ा कर रहे है, जिसकी शोभा सरोवरों से युक्त है और साधुओं के विहार तपस्या से पवित्र है ॥ ४ ॥
विज्ञानसागरम् ।
तत्रासीनं महात्मानं ज्ञान तपोयुक्तं च श्रेयांसं भद्रबाहुं द्वादशाङ्गस्य वेत्तारं निर्ग्रन्थं वृत्तं शिष्यैः प्रशिष्यैश्च निपुणं तत्त्ववेदिनाम् ॥ ६ ॥
निराश्रयम् ॥ ५ ॥ महाद्युतिम् ।
च
(भद्रबाहु ) भद्रबाहु ( महात्मानं ) महात्मा का जो ( ज्ञानविज्ञान सागरम् ) ज्ञान विज्ञान के सागर (तपोयुक्तं ) तप से युक्त (श्रेयांसं ) कल्याण करने वाले ( निराश्रयम् ) निराश्रय ( द्वादशांङ्गस्य वेत्तारं ) द्वादशांग श्रुत के जानने वाले (निर्ग्रन्थं) निर्ग्रन्थ (च) और (महाद्युतिम् ) कान्तीमान ( वृत्तं शिष्यैः प्रशिष्यैश्च) शिष्य और प्रशिष्यों से गिरे हुए (निपुणं तत्त्व वेदिनाम् ) तत्त्वज्ञान प्ररूपण करने में निष्णात् (तत्रासीनं ) उस पर्वत पर आसीन थे।
भावार्थ - भद्रबाहु नाम के आचार्य, महात्मा, ज्ञान विज्ञान के सागर तप से युक्त, सब जीवों का कल्याण करने वाले, निराश्रय, द्वादशांत श्रुत को जानने