Book Title: Mantra Maharnav
Author(s): 
Publisher: 
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020472/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . / / कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः / / / / अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः / / / / गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः / / / / योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / / / चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक :1 जी जैन आराधना महावीर कोबा. 2 अमृतं तु विद्या तु श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websit: www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - 380007 (079)26582355 For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir 60 27535 WWWXWWVINNANNY SUNIA // * // अथ मन्त्रमहार्णवप्रारंभः // * // CALCERNATARIYAVIRARITATERATARNATARRIEND Serving Jin Shasan 052186 gyanmandingkobatirth org SANSARAIYAARIWARIKAAMAAIAAAAAAAAAAAAAA Awwwwwww उस सणे प्रधका और पथक् पृथक ताका सवराजिस्टरा हवा. "मीरवार मात्रात्यायन स्वाधीन रहा। For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SINESजाडसानाsampus ITTTTTTTTT शंकर // सर्वमंत्रप्रणेत्रे श्रीपार्वतीपतये नमः॥ For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kabarth.org अथ मंत्रमहार्णवग्रंथस्थविषयानुक्रमणिका प्रारभ्यते। पत्रांकाः शंका: विश्या: , होमस्थानम् / धपत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 1 मंगलाचरणम् / तन्त्रसंशा / 2 साध्यजन्मनक्षत्रवृश्चाः / ३युगभेदेन देवताभेदः। , पुरश्चरणकरणार्थमादायावश्यकशातव्य ___ पदार्थाः / 1 गुरुशिष्यपरीक्षणम् / गुरुमाहात्म्यम् / " त्याज्यगुरुः। 2 त्याम्पशिष्यः / , दीक्षामुहूर्तनिर्णयः / 1 अनुष्ठानारम्भ मुहूतीनिर्णयः / 2 भक्ष्याभक्ष्यनिर्णयः / 1 जपस्थाननिर्णयः / पत्रांका: पृषांकाः विषया: , स्थानभेदेन जपमाहात्म्यम् / .. स्थानलक्षणम् / 2 अधिकारिणः / 1, दिशानिर्णयः। 1 लाननिर्णयः / ,, तिलकानर्णयः / , आसननिर्णयः / 2 मालानिर्णयः। 1 रुद्राक्षमाहात्म्यं पद्मपुराणे / , अस्य धारणविधानम् / , गोमुखीनिर्णयः। , अंगुलीनिर्णयः / 2 जपनिर्णयः / १होमानिर्णयः। 17 वर्णभेदेन कुण्डपकारः / " कुण्डप्रमाणम् / 1 द्रव्यभेदेनाहुतिप्रमाणम् / 2 पूर्णाहुतिविचारः। 1 यन्त्रलेखनाथ पात्रनिर्णयः / ., गम्बनिर्णयः। ., गन्धापणे अंगुलीविचारः / , फलपुष्पनिर्णयः / 2 दीपनिर्णयः / पायनिर्णयः / विद्यनिर्णयः / 1 बम्बनिर्णयः। For Private And Personal use only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मे० म अन. 11 मं०म०पत्रांकाः पृष्ठांका: विषया: 1 प्रदक्षिणानिर्णयः / // 3 // कम्मनिर्णयः / 12 २सिद्धादिमन्त्रविचारः। 1 अरिमन्त्रचक्रम् / 2 ऋणधनशोधनम् / 1 कलिसिद्धमंत्राः / , कलौ चतुर्वणोपयोगिमंत्राः / , मंत्राणालीपन्न सकविचारः / 2 कामनापरत्वेन मंत्रादी बीजनिर्णयः / 1 कामनापरत्वेन मंत्रांते पल्लयनिर्णयः / मंत्राणां छिनादिकदोपनिर्णयः / 2 छिन्नत्वादिकदोषनिवारणायदशसंस्काराः 1 उत्कीलनविधिः / पुरश्चरणनिर्णयः / 1 पुरश्चणादी गायत्रीजगवश्यता / 2 पुरधरणविधिः। 1 मत्रसिद्धिचिहानि / पूर्वखंडे मुद्राप्रकरणे द्वितीयस्तरंगः। 231 मुद्राप्रकारः। 2 आवाहनादि नब महालक्षणम् / पत्रकाः पृष्ठांका: विषयाः ,, पडंगन्यासोपयोगिषण्मुद्रालक्षणम् / एकोनविंशतिविष्णुमुद्रालक्षणम् / 25 1 शिवस्य दशमुद्रालक्षणम् / गणेशसप्तमुद्रालक्षणम् / 2 शक्तिदशमुद्राः / लक्ष्मी मुद्रका। , सरस्वत्याः पंचमद्राः। पहिमुद्रा चैका। 26 1 अनेकमुद्रालक्षणम् / पूर्वखंडे भद्रमंडलप्रकरणे तृतीयस्तरंगः। 26 . 2 एकोनविंशतिरेखात्मकं सर्वतोभद्रम इलम्। 311 चाशनेखात्मक द्वादशलिंगतोभद्र पत्रांकाः पृष्ठाका: विषयाः पूर्वखंडे सर्वदेवोपयोगिपद्धतौ चतुर्थस्तरंगः 361 पंचांगपूजनम् / ., पंचांगपूजने मंत्रोद्धारणक्रमः / है, संक्षेपत: स्वसिां देवतानां नित्यपूजा विधिः / 37 पूजादिमाहात्म्यम् / पूजायां पंचांगशुद्धिः / 2 पोडशोपचाराः। पंचोपचाराः। 1 सर्वदेवतापूजनोपयोगि तिथ्यादिकम् / .. सर्वभत्रानुष्ठानोपयोगि प्रारंमारपूर्वकृत्वम् / 1 प्रातःकृत्यम्। 2 तीर्थस्नानप्रयोगः। 1 गहलानप्रयोगः / तिलकधारणप्रयोगः / वे भस्मत्रिपुंडूलकारः / २णवानामूच्चपुडविधानम् / , तांत्रिकसंध्याप्रयोगः। १द्वारपूजाप्रयोगः / 1 प्रयोदशरेखात्मक लघुगोरी तिल कास्य मेकालगतोभद्रमंडलम् / सूयमंडलम् / गणपतिमद्रमंडलम् / 341 " For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org - -- पांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 2 क्षेत्रकीलनम्। 1 प्रयोगविधानम् / 2 भतशुदिप्रकारः। 2 स्वपापप्रतिष्ठाप्रकारः। 2 अंतर्मातृकान्यासः। 1 दिमतिकान्यासः। 1 सापक्रमः। 2 स्थितिक्रमः। 1 सहारक्रमः। 2 पीठपूजाप्रकारः। 1 यात्रासाधनप्रकारः। कलशस्थापनप्रकारः। 2 शंखस्थापनम् / 2 घण्टास्थापनम् / 11 अखण्डदीपस्थापनम् / 1 पूजाप्रकारः। " अभ्युत्चारणप्रयोगः। 2 प्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः / 1 पायादिपूजनम् / पत्रांकाः पृष्टांकाः विषयाः 54 1 मालासंस्काराः / 2 क्षमापनम् / 2 मलोत्सवप्रारंभः। शान्तिकलवस्थापनम् / 1 पोडशस्तंभप्रतिष्ठाप्रयोगः / 2 तोरणचजपताकाप्रतिष्ठा / 1 आनिस्थापनप्रयोगः। "कुण्डे अष्टसंस्काराः / 2 अभिस्थापनम् / 1 कुशकंडिकाप्रकारः। , 2 घृतसंस्काराः। १हामप्रकारः। 69 2 तर्पणादिविधानम् / 7. 1 कुमारीपूजाप्रयोगः / पूर्वखण्डे गणेशतंत्रे पञ्चमस्तरंगः / 72 2 पडक्षरवक्रतुण्डमन्त्रप्रयोगः / 74 2 एकत्रिंशदक्षरबक्रतुण्डमन्यप्रयोगः / 75 1 उच्छिष्ट गणपतिनवाणमंत्रप्रयोगः / २द्वादशाक्षरोच्छिष्ट गणेशमंत्रप्रयोगः | पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 78 1 एकोनविंशत्यक्षच्छिष्ठगणेशमन्त्र प्रयोगः। 2 सप्तत्रिंशदक्षरोच्छिर गणेशमन्त्रप्रयोगः / 2 शक्तिविनायकचतुरक्षरमन्त्रप्रयोगः / 1 लक्ष्मीविनायकमन्वप्रयोगः / 2 देलोक्यमोहनकरगणेशमन्यप्रयोगः / 1 हारद्रागणेशमन्त्रप्रयोगः / 1 ऋणहर्तृगणेशमन्त्रविधानम् / 2 सिद्धिविनायकमंत्रप्रयोगः / 2 गणेशपद्धतिः / , वादी पूर्वकृत्यम् / 1 गणेशप्रातःस्मरणम् / 2 गृहस्नानप्रयोगः। , पूजाविधिः। 2 वक्रतुण्डगणेशकवचम् / वक्रतुंडगणेशस्तवराजः / 2 बकतुंडगणेशसहस्रनामस्तोत्रम् / / 2 वक्रतुशतनामस्तात्रम्। 1 बक्रतुंडस्तोत्रम् / - For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० अनु. पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः उच्छिष्ट गणेशकवचम् / 2 उछिटगणेशसहलनामस्तोत्रम् / 11. 2 उच्छिगणेशस्तवराजः / 1 दरिद्र गणेशकवचम् / पूर्वखंडे शिवतंत्रे षष्ठस्तरंगः / 2 शिवपंचाक्षरीमन्त्रप्रयोगः / 1 अशाक्षरीशिवमन्त्रपयोगः। 1 व्यतरमृयुजपमन्यप्रयोगः। 2 व्यंबकमन्त्रमयोगः / 2 महामृत्युजयमन्त्रमयोगः / 2 दशाक्षररुद्र मन्त्रावधानम् / 2 त्वरितरुद्रमन्त्रपुरश्चरणप्रयोगः / 1 दक्षिणामूर्तिमन्त्रमयोगः / 2 द्वाविंशत्यक्षरदक्षिणामूर्तिमंत्रश्योगोन्यः। 2 पार्थिवलिंगपूजाविधानम् ! 2 शिवपूजापद्धतिः। 1 सदाशिवकवचम् / 1 सदाशिवस्तोत्रम्। शिवशतनामस्तोत्रम् / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः , 2 शिवसहननामस्तोत्रम् / 150 . 2 मृत्युंजयकवचम् / पूर्वखण्डे विष्णुतंत्रे सप्तमस्तरङ्गः / 159 1 अटाक्षरविष्णुमन्त्रप्रयोगः / 2 द्वादशाक्षरविष्णुमन्त्रप्रयोगो द्वितीयः। 1 राममन्त्रप्रयोगः। 2 पडावधमन्त्रस्वरूपचक्रम् / 158 1 दशाशरराममन्त्रमयोगः। 2 रामनामलेखनविधिः / , कृष्णमन्त्रप्रयोगः। 160 १नवविवकृष्णमन्त्रचक्रम् / २लपमीनारायणमंत्रप्रयोगः / 1 दधिवामनाख्यचमत्कारिमंत्रप्रयोगः / १यग्रीववि गुमन्त्रमयोगः / 2 बाराहरूपविष्णुमन्त्रप्रयोगः / 2 नृसिंहमन्यप्रयोगः। 1 विष्णुपूजापद्धतिः / 1 विष्णुकवचम् / २नारायगड्दयम् ! e.kurarmorry": 09.30" पत्रांका: पृधांका: विषयाः 179 2 विष्णुस्तोत्रम् / 1 विष्णोरष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् / 2 विष्णुमहलनामस्तोत्रम् / 2 महापुरुषविद्या। "नृसिंहकवचम् / पूर्वखंडे सूर्यतंत्रे अष्टमस्तरंगः / 2 ममंत्र प्रयोगः। 2 सूर्यपद्धतिः / 2 मूर्यकवचम् / १सबस्तवराजः। 2 सूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् / 1 आदित्यहृदयस्तोत्रम् / .1 मर्यसहस्रनामस्तोत्रम् / पूर्वखंडे हनुमत्तंत्र नवमस्तरंगः / 202 2 हनुमद्वादशाक्षरमंथप्रयोगः। 2051 हनुमदष्टादशाक्षरमंत्रप्रयोगः / २द्वादशाक्षरहनुमत्कल्पः / 208 2 हनुमदशाक्षरमंत्रवीरसाधनप्रयोगः / - - 4Gm // 4 // 170 178 For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir الهي لمی و वापत्रकाः विषयाः 1 हनुमदष्टादशाक्षरमंत्रप्रयोगः / 2 चतुर्दशाक्षरहनुमन्मंत्रप्रयोगः / , हनुमत्पूजापद्धतिः / 216 १पंचमुखीहनुमत्कवचम् / 2 एकादशमुखहनुमत्कवचम् / 219 1 श्रीरामप्रोकहनुमत्कवचम् / |2201 हनुमत्सहसनामस्तोत्रप्रारंभः। 2251 हनुमत्स्तोत्रप्रारंभः।। 1 लांगूलास्त्रश जयस्तोत्रम् / __ पूर्वखंडे बटुकभैरवतंत्रे दशमम्तरंगः / 2 आपदुद्धारकबटुकमंत्रप्रयोगः / 1 स्वर्णाकर्षणभैरवमन्त्रप्रयोगः। 1 बटुकभैरववीरसाधन प्रयोगः / 1 बटुकभैरवदीपदानप्रयोगः। 1 बटुकभैरवपूजापद्धतिः। 1 श्रीबटुकभैरवबझकवचम् / 1 श्रीबटुकभैरवसहस्रनामस्तोत्रम् / 1 श्रीबटुकभैरवस्तवराजप्रारंभः / 1 बटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः पूर्वखंडे मिश्रतंत्रे एकादशस्तरंगः। 284 2 क्षेत्रपालमंत्रप्रयोगः / 285 2 वरुणमंत्रमयोगः / 287 2 कामदेवबीजमंत्रप्रयोगः / 291 1 कुबेरमंत्रमयोगः। 292 1 चन्द्रमोमन्त्रप्रयोगः। 294 1 चन्द्रमस्तोत्रम्। 1 धनपुत्रपदमंगलमंत्रविधानम् / 297 1 मंगलस्तोत्रम् / / 2 बुधस्तोत्रम् / 298 1 बृहसतिमन्त्रमयोगः / 299 1 बृहत्पतिस्तोत्रम् / २शुक्रमन्त्रप्रयोगः / 300 2 शुक्रस्तोत्रम् / 1 व्यासमंत्रप्रयोगः। 302 1 धर्मराजमंत्रप्रयोगः। 2 चित्रगुप्तमंत्रम / , घंटाकर्णमन्त्रप्रयोगः। mmmmmm पत्राकाः पृष्ठांकाः विषयाः 303 1 कार्तीयार्जुनमंत्रप्रयोगः / 2 श्रीमद्भागवतानुष्ठानचक्रम् 1 हनुमत्कवचम् / 1 शत्रुघ्नकवचम् / 1 भरतकवचम्। 1 लक्ष्मणकषचम् / 1 सीताकवचम् / 1 श्रीरामकवचम् / 1 हरिवाहनगरुडमन्त्रप्रयोगः / 1 चरणायुध मंत्रप्रयोगः / 2 पक्षिराजधूपतंत्रम् / 1 संतानोपायः। , हरिवंशश्रवणावधिः / 2 संतानगोपालमंत्रप्रयोगः / 324 1 पुत्रदाभिलाषाष्टकम् / 1 पुत्रोत्पत्तिकरयंत्रम् / " औषधाद्यपायाः संतानविषये / " For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० अनु० 338 अथ मध्यखंडस्थविषयानुक्रमणिका- / पत्राकाः पृष्ठांकाः विषयाः मध्यखंडे गायत्रीतंत्रे प्रथमस्तरंगः / 1 हयग्रीवगायत्रीमन्त्रः / पत्रांकाः पृष्ठाकाः शिवगायत्रीमन्त्रः। विषयाः |3271 ब्रह्मगायत्रीपुरश्वरणविधानम् / रुद्रगायत्रीमन्त्रः। 1 सगायत्रीमन्त्रः। दक्षिणामूर्तिगायत्रीमन्त्रः / 2 गौरीगायत्रीमन्त्रः / 2 ब्रह्मगायत्रीमंत्रः। , गणेशगायत्रीमन्त्रः। में सरस्वतीगायत्रीमंत्रः। , विष्णुगायत्रीमंत्रः / // षण्मुखगायत्रीमन्त्रः / नंदीगायत्रीमन्त्रः / 1 लक्ष्मीगायत्रीमंत्रः। ..नारायणगायत्रीमंत्रः / 1 सूर्यगायत्री मंत्रः / रामगायत्रीमंत्रः / चन्द्रगायत्रीमंत्रः। भीमगायत्रीमंत्रः। 2 जानकीगायत्रीमंत्रः। 2 पृथ्वीगायत्रीमन्त्रः / ., लक्ष्मणगायत्रीमंत्रः। ..अग्रिगायत्रीमंत्रः। 1 हनुमदायत्रीमंत्रः। , जलगायत्रीमन्त्रः। 1 गरुडगायत्रीमन्त्रः। आकाशगायत्रीमन्मः। कृष्णगायत्रीमन्त्रः। 1 बायुगायत्रीमन्त्रः / , गोपालगायत्रीमन्त्रः। इन्द्रगायत्रीमन्त्रः। 2 राधिकागायत्री मंत्रः / कामगायत्रीमन्त्रः। परशुरामगायत्रीमंत्रः। 2 गुरुगायत्रीमन्त्रः। नृसिंहगायत्रीमन्त्रः। तुलसीगायात्रीमंत्रः। पत्रांकः पृष्ठांकाः विषयाः ,, देवीगायत्रीमन्त्रः। , शक्तिगायत्रीमन्त्रः। 1 दुर्गागायत्रीमन्त्रः। , जयदुर्गागायत्रीमन्त्रः। 7 अन्नपूर्णागायत्रीमंत्र:। 2 कालीगायत्रीमन्त्रः। तारागायत्रीमन्त्रः / षोडशीगायत्रीमन्त्रः / भुवनेश्वरीगायत्रीमन्त्रः / 1 भैरवीगायत्रीमन्त्रः। " छिन्नमस्तागायत्रीमन्त्रः। धूमावतीगायत्रीमन्त्रः। " बगलामुखोगायमन्त्रः / 2 मातङ्गीगायत्रीमन्त्रः / महिषमर्दिनीगायत्रीमन्त्रः / त्वरितागायत्रीमन्त्रः। 1 गायत्रीकवचम् / 2 गायत्रीपंजरस्तोत्रम्। For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकाः पृष्ठांकाः . विषयाः 2 गायत्रीस्तवराजः। 348 2 गायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् / 2 गायत्रीतत्त्वम् / 354 1 गायत्र्युपनिषद् / 356 1 गायत्रीचक्रम्। ना मध्यखण्डे दुगातंत्रे द्वितीयस्तरंग। 357 1 दुर्गातंत्रे दुर्गानामप्राप्तिः। दुगापिटलम् / 2 दुर्गाभुवनवर्णनम् / 2 दुर्गाष्टाक्षरमन्त्रप्रयोगः। 2 चण्डिकामालामन्त्रमयोगः / 2 नवार्णमन्त्रप्रयोगः। 1 कार्यपरत्वेन नवार्णे दुर्गापाठे वा पल्लव निर्णयः / 1 नवार्णमन्त्रस्यमारणादिषट्प्रयोगास्तत्र मारणप 2 मोहनप्रयोगः / 2 उच्चाटनप्रयोगः। 2 वशीकरणप्रयोगः। 358 पत्रांकाः पृष्ठांकाः काः विषयाः पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 375 1 स्तंभनप्रयोगः / 386 1 नवदुर्गाविधानम् / 3761 विद्वेषणप्रयोगः / २नित्यचंडीविधानम् / 377 2 नवार्णमहामंत्रस्वरूपम् / १शीनकार्यसिद्धयेप्रत्यहं नवचंडी१ दुर्गेस्मृतामंत्रप्रयोगः / विधानम्। 2 शूलिनीदुर्गामंत्रप्रयोगः / "नवरात्रे वार्षिकनवचंडीविधानम् / 2 दुर्गासप्तशतीप्रयोगः। २शतचंदासहस्रचंड्यादिविधानम् / चरित्रत्रयरहस्यत्रयनिर्णयः / 2 दुर्गापूजामाहात्म्यम् / दुर्गापाठक्रमः। 2 दुर्गापूजापद्धतिः। 1 सप्तशतीपाठेगषट्कस्यमुख्यता 1 सप्तशतीपाठः। तदपठने दोषः / 1 दुर्गाष्टाक्षरीकवचानि / , सप्तशतीपाठे कवचार्गलाकालकाना 1 दुर्गाष्टाक्षरीसहलनामस्तोत्रम् / ___मावश्यकता। 1 दुर्गाष्टाक्षरीस्तोत्रम् / 2 कामनापरत्वेन चंडीपाठसंख्या / 2 दुर्गास्तवः। 382 1 सप्तशत्या: शापोद्धारोस्कीलने / 2 दुर्गास्तोत्रम्। सप्तशतीस्तोत्रांतर्गतमंत्राणां कामना-. 2 परशुरामकृतदुर्गास्तोत्रम् / परत्वेन संपुटनिर्णयः / 451 1 दुर्गाशतनामात्मकस्तोत्रम् / 2 कार्यपरत्वेनसप्तशतीस्तोत्रांतर्गत 2 चंडिकास्तोत्रं मार्कण्डेयपुराणोक्तम् / प्रतिश्लोकप्रयोगः / 452 2 मार्कण्डेयप्रोक्तलधुदुर्गासप्तशतीस्तोत्रम् / 385 2 दुर्गापाठस्य नवनामानि तलक्षणानि च / 453 1 रुद्रचंडीपाठः। HI 369 .. For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० 56 . . पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः मध्यखंडे दशमहाविद्यापद्धती तृतीयस्तरंगः। 455 1 दशमहाविद्यानामानि / " पुरश्चरणात्पूर्वकृत्यम् / 2 प्रातःकृत्यम्। 1 शौचक्रियाः / 2 गृहस्नानप्रयोगः / 1 भत्मनिपुंडूप्रकारः। "द्वारपूजाप्रकारः। 2 क्षेत्रकीलनम् / 1 पुरश्चरणविधानम् / 1 पीठपजनम् / 2 पात्रासादनम् / २शखस्थापनम् / ..कलशस्थापनप्रयोगः / 1 घंटास्थापनम् / 2 अखण्डदीपस्थापनम् / ,, प्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः / 465 1 मानसोपचार पूजा। 1 पद्यादि पूजनम् / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 469 2 मालायाः संस्काराः। 1 नित्यबलिदानप्रयोगः / 2 छागादिवलिदानप्रयोगः / 2 कुमारीसुवासिनीपूजाप्रयोगः / 1 नित्यहोमप्रकार: कुलाचारः। १शिवाबलिप्रयोगः / 477 २कुलनाइकाः / 48. १लिंगपूजनम् / 481 1 कुलस्तोत्रम् / ___ मध्यखंडे कालीतो चतुर्थस्तरंगः / 482 १द्वाविंशत्यक्षरदक्षिणकालीमंत्र। 1 भद्रकालीमंत्रप्रयोगः। , स्मशानकालीमंत्रप्रयोगः / 487 1 श्यामाकवचमारंभः। 488 2 श्यामाकर्पूरस्तोत्रम् / 489 2 कालीस्तवप्रारंभः। 2 कास्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रमारभः। 2 कालीहृदयमारंभः / पत्रांका: पृष्टांकाः विषयाः 492 2 कालीसहस्रनामस्तोत्रप्रारंभः / 506 1 कालीसहस्रनामावलिः। मध्यखंडे तारातंत्रे पञ्चमस्तरंगः। 514 १पंचाक्षरतारामंत्रप्रयोगः / १द्वात्रिंशदक्षरस्तारामंत्रभेद: .. अष्टौ तारामंत्राः / 1 ताराभेदैकजटामन्त्रप्रयोगः / नीलसरस्वती मंत्रप्रयोगः / महाविद्या (विद्याराशी) मंत्रप्रयोगः।। 2 वागीश्वरी (सरस्वती) महाकल्पः / 2 सरस्वतीदशाक्षरमंत्रप्रयोगः / 1 एकादशाक्षरसरस्वतीमन्त्रप्रयोगः / 2 विद्याप्रसंगात्कृष्णादेवी (तारणी) महाकल्प:। 535 1 कात्यायनीमहाकल्पः / 536 2 ताराकवचप्रारंभः। 538 2 तारास्तोत्रप्रारम्भः। 1 ताराशतनामस्तोत्रपारंभः / 2 तारातकारादिसइसनामप्रारंभः / . M . For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकाः काः विषयाः पत्रांकाः पृशंकाः विषयाः धे 547 1 श्रीताराहृदयप्रारंभः / 579 1 भुवनेश्वरीसहलनामस्तोत्रपारंमः / " 2 सरस्वतीस्तोत्रमारंभः / 584 2 भुवनेश्वरीहृदयप्रारम्भः / मध्यखंडे षोडशीश्रीविद्यातंत्रे षष्ठस्तरंगः / मध्यखंडे त्रिपुरभैरवीतन्त्रेष्टमस्तरंगः। 1 त्रिपुरभैरवीमन्त्रप्रयोगः / 549 586 1 षोडशाक्षरीपोडशीमंत्रप्रयोगः / 587 2 त्रिपूरमरवाकवचप्रारम्भः / 557 1 बालात्रिपुरामन्त्रप्रयोगः / 589 भैरवीकवचप्रारंभः / 562 1 त्रिपुरसुन्दरीकवचमारंभः / 5901 त्रिपुरभैरवीसहस्रनामस्तोत्रप्रा० / 2 त्रिपुरलक्ष्मीकवचप्रारंभः / 594 2 भैरवीस्तवराजमारंभः। 1 श्रीविद्याकवचमारम्भः / 525 1 भैरव्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रप्रारंभः। 2 घोडशीस्तोत्रप्रारम्भः / मध्यखंडे छिन्नमस्तातंत्रे नवमस्तरंगः। 564 2 षोडश्योचरशतनामस्तोत्रपाका 1 षोडशीसहस्रनामस्तोत्रप्रारम्भः / 1 सप्तदशाक्षरच्छिन्नमस्तामंत्रमयोगः / 600 2 छिन्नमस्ताकवचम् / 1 षोडशीहदयप्रारम्मः / 601 २छिन्नमस्तास्तोत्रम्। मध्यखंडे भुवनेश्वरीतन्त्रे सप्तमस्तरंगः। 602 1 प्रचंडचंडिकास्तोत्रम् / 571 2 एकाक्षरीभुवनेश्वरमिन्त्रप्रयोगः / 603 1 छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् / 575 2 व्यक्षरमन्त्रमयोगः। 2 छिन्नमस्तासहस्रनामस्तोत्रम् / 576 1 त्रैलोक्यमङ्गलभुवनेश्वरीकवचम् / 1 छिन्नमस्ताहृदयस्तोत्रम् / 577 1 भुवनेश्वरीस्तोत्रम् / / मध्यखंडधूमावतीतंत्रे दशमस्तरंगः। 578 1 भुबनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रप्रारम्भः।। 61. 2 अटाक्षरधुमावतीमंत्रप्रयोगः / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 612 2 धूमावतीकवचम् / 1 धूमावतीस्तोत्रम् / 2 धूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् / 614 1 धूमावतीसहस्रनामस्तोत्रम् / 1 धूमावतीहृदयम् / / मध्यखंडे बगलामुखीतंत्रे एकादशस्तरंगः। 2 बगलामुखीषट्त्रिंशदक्षरमंत्रमयोगः / 6242 बगलामुखीकवचम् / 626 2 बगलामुखीसहस्रनामस्तोत्रम् / 632 1 बगलामुखीस्तोत्रम् / 633 1 बगलामुखीशतनामस्तोत्रम् / मध्यखंडे श्रीमातंगीतंत्रे द्वादशस्तरंगः। 634 1 द्वात्रिंशदक्षरमातंगीमंत्रप्रयोगः / 637 ? लघुश्यामामंत्रप्रयोगः। 642 2 मातंगीदशाक्षरमंत्रप्रयोगः / 644 2 सुमुखीमंत्रप्रयोगः / 646 2 मातंगीसुमुखीकवचम् / 647 1 मातंगीकवचं द्वितीयम् / For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० अनु. पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 647 2 मातंगीस्तोत्रम् / 648 1 मातंगशितनामस्तोत्रम् / 1 मातंगीसहस्रनामस्तोत्रम् / 653 2 मातंगीहृदयम् / मध्यखंडे कमलात्मिकातंत्रे त्रयोदशस्तरंगः / 1 एकाक्षरतक्ष्मीबीजमन्त्रप्रयागः / 1 चतुरक्षरलक्ष्मीबीजमंत्रप्रयोगः / दशाक्षरलक्ष्मीवाजमन्त्रप्रयोग:। 1 सप्तविंशत्यक्षरमहालक्ष्मीमन्त्रप्रयोगः / 1 द्वादशाक्षरमहालक्ष्मी मंत्रप्रयोगः / 1 त्रयोविशत्यक्षरलक्ष्मीमंत्रप्रयोगः / सिद्धलक्ष्म्येकादशाक्षरमंत्रप्रयोगः / 2 सिद्धलक्ष्मीस्तोत्रम् / 2 ज्येष्ठालक्ष्मीमन्त्रप्रयोगः। 1 वसुधालक्ष्मीमन्त्रप्रयोगः / 2 लक्ष्मीकवचम् / 2 लक्ष्मीस्तोत्रम् / " कमलाया अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् / 2 लक्ष्मीसहलनामस्तोत्रम् / APPई. पत्राकाः पृष्ठांकाः विषयाः 675 2 लक्ष्मीदयस्तोत्रम् / 679 2 लक्ष्मीसूक्तम् / मध्यखंडे कुमारीतंत्रे चतुर्दशस्तरंगः / 6802 वर्षभेदन कुमारीभेदनिरूपणम् / कुमारीगां वर्णभेदनिरूपणम् / 381 1 कुमारीदानफलम् / 2 कुमारीपूजाप्रयोगः। 684 2 कुमारीकवचम् / 686 2 कुमारीस्तोत्रम् / 1 कुमारीसहस्रनामस्तोत्रम् / 692 2 कुमारीतर्पणात्मकस्तोत्रम् / मध्यखंडे कालिन्दीतन्त्रे पञ्चदशस्तरंगः। 6932 एकादशाक्षरयमुनामन्त्रपटलम् / 695 2 यमुनाकवचम् / 6961 यमुनास्तवः / 6971 यमुनासहस्रनामस्तोत्रम् / मध्यखंडे मिश्रतन्त्रे षोडशस्तरंगः। 7.1 1 आसुरीमहाकल्पः / 7.2 1 कालरात्रिमहामन्त्रप्रयोगः / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 1 वशीकरणप्रयोगः। 707 1 सम्भनप्रयोगः। 2 मोहनप्रयोगः। 708 1 भाकर्षणप्रयोगः / 2 उच्चाटनप्रयोगः। , विद्वेषणप्रयोगः / 1 मारणप्रयोगः। बालिीमन्त्रप्रयोगः / 1 महिषमानीमन्त्रप्रयोगः / 2 महिषमर्दिनीकवचम् / 2 रेणुकाशयरीमन्त्रप्रयोगः / 2 अन्नपूर्णामन्यप्रयोगः। 2 अन्नपूर्णाकवचम् / 1 अन्न पूणस्तिोत्रम् / २पृथ्वी मन्त्रप्रयोगः। २गंगामन्त्रप्रयोगः / 2 मणिकर्णिकामंत्रप्रयोगः / 2 शीतलामन्त्रप्रयोगः / 1 ज्यालामुखीमन्त्रप्रयोगः / 40.00 For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir विषयाः 746 पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 2 रुद्रमंत्रप्रयोगः / 745 1 मुसल्मानामंत्रः। , द्वितीयः सप्तविंशत्यक्षरोमंत्रः। तृतीयश्चतुरक्षरोमंत्रः / 2 नोलामकेवारते पीरका कलमा / वागीश्वरीमत्रः। 1, चित्रेश्वरीमंत्रः। पत्रांकाः पृठकाः 726 २इन्द्राक्षीस्तोत्रम् / 727 1 जनमते पद्मावतस्तिोत्रम् / 2 कार्यपरत्वेन पद्मावतीस्तोत्रत्वप्रति लोकपुरश्चरणं भाषया / अथोत्तरखंडस्थितविषयानुक्रमणिका उत्तरखंडे स्वमसिद्धितंत्रे प्रथमस्तंरगः। २खमवाराहीमत्रप्रयोगः। १खमेश्वरीमंत्रप्रयोगः / 2 हनुमन्मंत्रपयोगः। 2 योजनगन्धायोगिनीमन्त्रप्रयोगः / चण्डयोगिनीमन्त्रपयोगः / 1 मणिभद्रमन्त्रप्रयागः। स्वममातगामन्त्रप्रयोगः / यक्षिणीमन्त्रप्रयोग:। घण्टाकर्णीमन्त्रप्रयोगः / 2 कर्णपिशाचिनीमन्त्रप्रयागः / 1 चिंचिनापिशाचिनीमन्त्रप्रयोगः / चामुण्डामन्त्रप्रयोगः / कुलजामंत्रः। कीतीश्वरीमंत्रः। | पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 1 हंसीसाधनम् / मिाचणीसाधनम् / जनरजिनौसाधनम्। र विशालासाधनम्। 2 मदनासाधनम् / , घयावक्षिणीसाधनम् / "कालकांसाधनम् / महाभयासाधनम् / 1 माईद्रीसाधनम् / शंखिनीसाधनम् / चांद्री (चंद्रिका) यक्षिणीसावनम् / श्मशानीसाधनम् / 2 वटपक्षिणीसाधनम् / 2 मेखलासाधनम् / विकलासाधनम् / लक्ष्मीसाधनम् / मानिनीसाधनम्। 1 शतपत्रिकासाधनम् / सुलोचनासाधनम्। अंतरिक्षसरस्वतीमंत्रः। नीलामंत्रः। किविणामंत्रः , घटसरस्वतीमंत्रः। उत्तरखंडे यक्षिण्यादितंत्रे द्वितीयस्तरंगः। 1 पत्रिशद्यक्षिणीनामानि / ,, षट्त्रिंशद्यक्षिणीसाधने सूचना 2 षट्त्रिंशद्यक्षिणीसाधने मुद्रादयः / विचित्रायक्षिणीसाधनम् / विभ्रमासाधनम् / : : For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं०म०पत्रांकाः पृष्ठांकाः 1 मुशोभनासाधनम्। ,, कपालिनीसाधनम् / 2 विलासिनासाधनन् / 1, नटीसाधनम् / 1 कामेश्वरीसाधनम् / 2 स्वर्णरेखासाधनम् / मुरमुंदरीसाधनम् / 2 मनोहरीसाधनम् / 1 प्रमदासाधनम्। 2 अनुरागिणीसाधनम् / 1 नखकोशिकासाधनन् / नेमिनी (भामिनी) प्रियासाधनम् / 2 पद्मिनीसाधनम् / 1 स्वर्णावती (कनकावती) साधनम् / 2 रतिप्रिया साधनम् / 1 धनदारातीप्रियायक्षिणीपंचांगम् / 2 रातप्रियाधनदायक्षिणीपटलम् / 1 धनदारतिप्रियायक्षिणीपद्धतिः / 2 धनदारचिप्रियावक्षिणीकवचम् / HELHI पत्रांकाः पशंकाः विषयाः 2 धनादावशिणीस्तोत्रम् / 764 १बिल्ययानिमित्रप्रयोगः / 1 चंद्रबापटवक्षिणीमंत्रप्रयोगः / 1, धनदापिप्पलयक्षिणीमंत्रप्रयोगः / 2 पुत्रदाभा यक्षिणीमंत्रमयोगः / , अशुभशवकरीधात्रीयक्षिणी। मैन प्रयोगः। प, विद्यादाञ्युदुंबरीक्षणामंत्रप्रयागः / विद्यादात्रीनिर्गुडीयक्षिणीमंत्रप्रयोगः।। अयार्कयक्षिणीमन्त्रमयोगः / सन्तोषाश्वेतगुञ्जायक्षिणीमन्त्रप्रयोगः / रापदानुलसीयक्षिणीमन्त्रमयोगः / 1 राज्यदाअंकोल्यक्षिणीमन्यप्रयोगः / , कुशयक्षिणीमन्त्रप्रयोगः / , अपामार्गयक्षिणीमन्त्रप्रयोगः / तीराणवायक्षिणीसाधनम् / , उछिट्यक्षिणीसाधनम् / , चन्द्रामृतयक्षिणीसाधनम् / 2 स्वामीश्वरीसाधनम् / | पत्रांकाः पृषक: वेश्याः 766 2 महामायाभोगपक्षिणीसाधनम् / त्यागासाधनम् / 7, सङ्गिनुलोचनासाधनम् / 1 भूतलोचनासाचनम् / गजलमाणिसाधनम् / मातंगेश्वरीसाधनम् / .. विद्यायक्षिणीसाधनम् / टेलेकुमारीसाधनम्। २बंदीसाधनम् / 2 अष्टाप्सरोदेवकन्यासाधनम् / शशिदेव्यप्सरोमन्नप्रयोगः / १तिलोत्तमा मरोमन्त्रप्रयोगः / १कांचनमालाप्सरःसाधनम् / कुंडलाहारियप्सरोमन्त्रनयोगः / . रत्नमालावरोमंत्रप्रयोगः / 2 रंभाप्सरोमन्त्रप्रयोगः। ., उर्वश्यप्सरोमंत्रप्रयोगः। श्रीभूपण्यप्सरःसाधनम् / 770 1 अष्टकिन्नरीसाधनम् / // 8 // For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir - पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः | पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 1 मंजुघोषामंत्रमयोगः। , क्षोभिणीमंत्रप्रयोगः / ,, मनोहारीमंत्रप्रयोगः। , बेतालसाधनम्। सुभगामंत्रप्रयोगः। ,, श्मशानोत्थापनप्रयोगः / , विशालनेत्राकिन्नमित्रमयोगः / 1 प्रेतसाधनम् / 2 मुरतिप्रियाकिन्नरीमंत्रप्रयोगः / 2 भूतयक्षिणीप्रसन्नताकारकंयंत्रम् / " अश्वमुखीकिन्नरीमत्रप्रयोगः / , स्वप्ने भूतदर्शकयंत्रम् / "दिवाकीरमुखीकिन्नरीमंत्रप्रयोगः / , देवप्रिसन्नताकरयंत्रम् / , आष्ठभूतकात्यायनीसाधनम् / ,, पीरविरहनामंत्रमयोगः / सुभगाकात्यायनीमंत्रप्रयोगः / 1 महम्मदापीरसाधनम् / 1 कुंडलकात्यायनीमंत्रप्रयोगः / , डाकिनीसाधनम् / , चंडकात्यायनीमंत्रप्रयोगः / 1 प्रेतदर्शकतंत्रम् / 2 रुद्रकात्यायनीमंत्रप्रयोगः / , पितृदर्शकतंत्रम् / महाकात्यायनीमंत्रप्रयोगः। , देवीदेवतादर्शकतंत्रम् / की भैरवदर्शकतंत्रम्। " , सुरकात्यायनीमंत्रप्रयोगः / 777 उत्तरखंडे कर्णपिशाचिन्यादितंत्रेत.स्तरंगः।। 1 पूर्वजन्मदर्शकतंत्रम् / उत्तरखंडे चेटकतंत्रे चतुर्थस्तरंगः 7721 कर्णपिशाचिनीमंत्रसाधनम्। 777 7742 विप्रचांडालिनीमंत्रप्रयोगः / 2 वटयक्षिणीचेटकः / ___" , कर्णवतस्मशानयक्षिणीचटकः / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः , करालिनीचेटकः / , कालिकाचेटकः / , भैरवचेटकः / "लिंगचेटकः। 1 विरूचेटकः। , नानासिद्धिचेटकः। नसिंहचेटकः। , सागरचेटकः / 2 ईसबद्धचेटकः / , मणिभद्रचेटकः / , भूतेश्वरचेटकः। 1 किंकरोयमस्यचेटकः / ,कालीचेटकः। मन्त्रवादेकालीचेटकः। 2 रक्तकंचलाचेटकः। , आकाशगामीचेटकः। देवांगनाप्राप्तिचेटकः। ज्वालामालिनीचेटकः। - For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकाः अनु. पृष्ठांकाः विषयाः 2 फेवारिणीचेटकः। 1 यक्षचेटकः / ,, उच्छिष्टचांडालिनीचेटकः / , रतिराजचेटकः। " सूर्यदर्शनचेटकः। ,, ग्रहणदर्शनचेटकः / 7, दिनेनक्षत्रदर्शनचेटकः / 2 रात्रिसमये दिनवत्दृश्यचेटकः / , शतंयोजनदृष्टिचेटकः / , अनाहारचेटकः / 1 आहारकरणचेटकः / , हाजरातचेटकः / ,, तत्रादौ ख्वाजामंत्रप्रयोगः / 2 महमदपीरमंत्रः। . 1 हनुमन्मंत्रप्रयोगः / २कामाख्यामंत्रप्रयोगः / 1 तैलमातंगीमंत्रः / 2 मंटूकयुग्मचेटकः / / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः ,, वस्त्वाकर्षणचेटकः / 786 1 यंत्रभंजनचेटकः / ,निगद्ध जनचेटकः / गद्वारभंजनचेटकः / " राश्युत्थापनचेटकः। 2 तस्करग्रहणचेटकः। 787 1 मार्गचेटकः। 2 योजनवार्ताश्रवणचेटकः / , गुप्तवार्ताश्रवणचेटकः। ,, जलालोपकरणचेटकः / ,, स्त्रीवीर्यपातनचेटकः / जलविचारचेटकः / " रसायनचेटकः। 79. 1 समयशानचेटकः / , 2 वस्तुकी तेजीमंदी देखनेकी सारिणी / उत्तरखण्डे निधिग्रहणाञ्जनतन्त्रे पंचम स्तरंगः। 791 1 निधिस्थानलक्षणम् / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 2 निधिग्रहणांजनम् / कजलपापम् / 1 कजलार्थे अभिग्रहणमंत्र: दीपमंत्रः। 2 शिखाबंधनमंत्रः। , सजिनविधिः। 2 कुमारांजनम् / पादजाताजनम् / 1 पादुकायोगः। , निथिखननमुहूर्तः / , शाननिधानस्य ग्रहणोपायः / 1 भूमिखननोपायः / 2 धूपः। निधिग्रहणमंत्रः। 796 1 द्रव्य शुद्धिकरणम् / समयदर्शनम्। उत्तरखंडे अदृश्यविद्यातंत्रे षष्ठस्तरंगः / / 796 2 आसुरीकल्पे अदृश्ययोगः / 6666 For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir - m eena पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः पत्रांक पृष्ठांकाः विषयाः उत्तरखंडे षट्कर्मतंत्रे सप्तमस्तरंगः। / 8101 मथरवरनिवारणतंत्रम् 1 1 षट्कर्मलक्षणानि / "संततवरतंत्रम् / 2 षट्कर्मोपयोगिनिर्णयचक्रम्। 2 शीतज्वरतंत्रम्। 803. 3 प्रत्यगिरामंत्रप्रयोगः / 1 अन्येाष्कज्वरनिवारणम् / 2 प्रत्यंगिरामालामंत्रप्रयोगः / 1 तृतीयज्वरनिवारणम् / 1 नारायणास्त्रम् / , चातुर्थिकज्वरनिवारणम् / रात्रिज्वरनिवारणम् / 2 चोरनिवारणम्। .. अर्शनिवारणतन्त्रम् / 1 भूतोपद्रवनाशकाउड्डीशमंत्राः / 2 जाढके निवारणका मंत्र। , डाकिनीसेतो बालकको छुडानेका मन्त्र। घरण ठिकाने आवै। 2 प्रेतादिरोगादिवाझाडनेका मन्त्र / १हूकाका मन्त्र। , नजरझाडनेका मन्त्र। , प्लीहानिवारणमन्त्रः। coc 1 डाकिनीके चोटमारवाको मन्त्र / कखलाई निवारणमन्त्रः / , डाकिनीभक्षितका झाडा। , रांधनवायको मन्त्र / 2 डाकिनी दूरकरनेवाला मंत्र / 2 सुखप्रसवः। डाकिनीके वकरायाको मंत्र / , नेत्रपीडानिवारणमंत्रः। 1 प्रेतादिझाडनेका मंत्र। 1 कंठवेलका मंत्र। सर्वज्वरे बलिदानम् / " अदीठमंत्रः / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषया: ,, बिच्छू झाडने का मंत्र / 2 सर्प झाडनेका मंत्र। 1 सर्प कीलयाको मंत्र / , सर्प कीलनेका मंत्र। , साँप खोलने का मंत्र / 2 सपा को भगानका मंत्र। , बावले कुत्तेका मंत्र / , आधाशीशीका मंत्र। 1 कमल झाडनेका मंत्र / दर्द और थनपलका झाडा / जमोगाका मंत्र / , डबा पसली झाडवाको मंत्र / २चूतविजयकरणम् / 1 विक्रीवर्धनम्। गोमहिषीणां दुग्धवर्धनोपायः / 2 फलवृद्धियंत्रम्। लडकी सासरमें रहे रूठकर न आवै।। " कलहनाशनम् / " अनावृष्टिकाले वृष्टिकरणम् / For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir " मतपत्रौंकाः पृष्ठांकाः विषयाः उत्तरखंडे वशीकरणतन्त्रष्टमस्तरंगः। 817 1 स्वयंवलकलामंत्रप्रयोगः / 819 2 मधुमतीमन्त्रप्रयोगः / 821 1 बाणेशीमंत्रप्रयोगः। 2 कामेशीमंत्रप्रयोगः / 1 नित्यामंत्रप्रयोगः / 2 वापस्तारिणीमंत्रप्रयोगः / 1 त्रैलोक्यमोहनगौरीमंत्रप्रयोगः / 1 कामदेवमंत्रप्रयोगः। 2 काममेखलामंत्रप्रयोगः / सूर्यमन्त्रप्रयोगः। घोररूपिणीमंत्रप्रयोगः। 1 दुर्गामंत्रप्रयोगः। मातंगीमंत्रप्रयोगः। , माहेश्वरीमंत्रप्रयोगः। , वश्यमुखीमप्रयोगः। , क्षोभिणीमंत्रप्रयोगः। VVVaa पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः "चामुंडामंत्रप्रयोगः / 2 भगमालिनीमंत्रप्रयोगः। स्त्रीवशीकरणे शैतानीमंत्रः। 1 कामापिशाचिनीमंत्रप्रयोगः / चामुंडामंत्रमयोगः / 2 अतरमोहिनी / लूणमोदिनी। " सुपारीमोहिनी। " इलायचौमोहिनी / 1 लौंगमोहिनी। " वेश्यावशीकरणम् / , राजवशीकरणम् / 2 मंत्रिवशीकरणम्। , सभामोदिनी। नममोहिनी। 1 शत्रुमोहिनी। , विश्वावसुनामकगधैवेमंत्रप्रयोगः / "मलीमंत्रप्रयोगः। पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 2 बीजमंत्रप्रयोगः। " आदिरूपमंत्रः। " रुद्रमंत्रप्रयोगः। 1 मोइनतंत्रम् / 2 वशीकरणतंत्रम् / 1 राजवशीकरणतंत्रम् / 2 पतिवशीकरणम् / "खीवशीकरणम्। 837 2 आकर्षणतंत्रम् / 839 1 कालानलयंत्रम् / उत्तरखण्डे षट्कर्मतन्त्रे नवमस्तरंगः।। 839 2 उच्चाटनम् / 840 1 शत्रुपीडाकारकमंत्रः। प्रेतावेशकरणम् / 2 दुर्गविशकरणम् ! " भूतवादः " भूतकरणम्। // 10 // For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पत्रांकाः पृष्ठांका: 8411 विक्षिप्तकरणन् / | " , श्यरकरणम् / 2 पगच्छेदनम् / 2 शत्रूणां मूत्रावरोधनम् / 1 शत्रुचिरसि पादुकाहननम् / 1 शत्रुपीडनम् / 2 संततिनाशनम् / " कुलनाशनम्। , शत्रुगृहे कलहकरणम् / 1 शत्रोः सर्पदर्शनम् / " शत्रुग्वेऽश्मवर्षणम् / " शत्रुकृषिनाशनम् / "शत्रुगृहजालनम् / 2 शत्रुतैलनाशनम् / दुग्धनाशनम् / , पलनाशनम् / .", अश्वनाशनम् / 1 पत्रांकाः पृष्ठवंकाः विषयाः 847 1 शत्रूणांबधिरीकरणम् / , मैदानिकरणम् / " वस्ननाशनम् / विक्रीरोधनम् / " मारणप्रयोगः / 2 शत्रुदमनमन्त्रः। 1 आद्रपटाविद्या। 2 भैरवमन्त्रप्रयोगः / 1 प्रत्यंगिरामंत्रप्रयोगः / 1 मूठचालनमत्रः / उत्तखण्डे षट्कर्मतंत्रे दशमस्तरंगः / 852 1 मुखस्तंभनम् / 2 दृष्टिस्तंभनम् / बुद्धिस्तंभनम् / 1 मेघस्तंभनम् / " शस्त्रस्तंभनम् / 2 शस्त्रेलेपनम् / पत्रांकाः पृष्ठकाः विषयाः " सेनास्तंभनम् / 854 1 सेनापलायनम् / .मनुष्यस्तंभन्म। ,, निद्रास्तम्भनम् / नौकास्तम्भनन् / जलस्तम्भनम् / , अमिस्तम्भनम् / 1 आसनस्तम्भनम्। , गर्भस्तम्भनम् / 2 पदस्तंभनम् / 7 भीतस्तंभनम् / पशुस्वभनम् / 1 पाषाणसंभनम् / 2 नौकास्तंभनम् / , विद्वेषणतंत्रम् / उत्तरखंडे यन्त्रप्रकरणे एकादशस्तरंग: 1 विंशांकयन्त्रविधानम् / 8621 विंशांकयन्त्राणामनेकरूपाणि / For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir i अन Ram- n -a मं. मा पत्रकाः पृयकाः विषयाः // 11 // RS862 2 पञ्चदर्श विधानम् / 864 1 अस्य प्रयोगः / 1 वर्णभेदेन वारभेदः। 2 कार्यपरत्वेन दीपमाह। , वर्णभेदेन पत्रमेदः / , कार्यपरत्वेन लेखनीमाह / , कार्यपरत्वेन गन्धमाद / कार्यपरत्वेनांकमाह / 1 कार्यपरत्वेन संख्यामाद / 2 कार्यपरत्वेन प्रयोगमाह / 1 त्रिकोणयंत्रम्। 1, ग्रहशान्तियंत्रम् / 17 यंत्राणां वर्णभेदः 2 बदत्तरके यंत्रकी विधि। 2 द्वारिशांकयंत्रविधानम् 1 आपदुद्धारवटुकयंत्रविधानम् / 2 हनुमानयंत्रविधानम् / / पर्माकाः पृशंकाः विषयाः , सर्वकार्यसिद्धिकारकयंत्रम् / 871 1 वचनसिदियंत्रम् / , पशिआकर्षणयंत्रम् / , फल वृद्धियत्रम् / , दुष्टत्वप्ननाशकयंत्रम् / बिसपादिनाशकयंत्रम् / 2 इच्छाप्राप्तिकारकयंत्रम् / वृद्धियंत्रम् / ., राजकोपनिवारणयंत्रम् / 1 वैराग्योत्पत्तिकर यंत्रम् / सेनापलायनयंत्रम् / 2 शीतलायंत्रम् / " मूठउद्धारयंत्रम् / 1 मूडोदारयंत्रम् / 1 नपुंसकयत्रम् / गर्भस्तभनयंत्रम् / " सांभाग्यवृद्धियंत्रम् / पाकाः पृथुक विखाः 17 घरणियत्रम् / पुत्रोत्पत्तियत्रम् / 2 रोजीप्राप्तियत्रम् / पुरुषवश्ययंत्रम् / " श्वानविषयंत्रम्। , डाकिनीयंत्रम् / 1 कामलायंत्रम् / , अश्वकष्टानिवारणथैत्रम् / आकर्षणयंत्रम् / चयगोलायंत्रम् / 2 प्रयंत्रम्। in , कपाडायनम् / n , आधाशीशीयंत्रम् / उत्तरखंडे मिश्रतंत्र द्वादशस्तरंगः / 8791 अंकलतंत्रम् / 2 ब्रह्मवश्वेपलाशतंत्रम् / 8761 रक्तगंजातंत्रमारंभः / -Re - en- UPANDI . For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पत्रांकाः पृष्ठाकाः विषया 2 श्वेतगुंजातंत्रप्रारंभः। 878 1 तिलतंत्रमारंभः / , सर्वपक्षाणांमूलतंत्रम् / . श्वेतार्कमूलतंत्रम् / पुनर्नवामूलतंत्रम्। ,, अपामार्गमूलतंत्रम् / .गुंजामूलतंत्रम् / 2 श्वेतकरवीरमूलतंत्रम् / धत्तरमूलतंत्रम् / अमृतामूलतंत्रम् / , विष्णुकांतामूलतंत्रम् / सुदर्शनमूलतंत्रम् / , वृद्दतीमूलतंत्रम् / , सिद्धार्यमूलतंत्रम् / , बटमूलतंत्रम् / , औदुंबरमूलतंत्रम् / , सहदेवामूलतंत्रम् / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 879 2 कौमारीमूलतत्रम् / , कदलीमूलतंत्रम् / तबूलबाडीजातिमूलतंत्रम् / , आम्रमूलतंत्रम् / , पालाशमूलतंत्रम् / 1, एरंडमूलतंत्रम् / भृगराजमूलतंत्रम् / // बंधकचमत्कारतंत्रम् / गबन्धकलक्षणम् / पिप्पलबन्धकतन्त्रम् / " बटबन्धकतन्त्रम् / निंवबन्धकतन्त्रम् / 2 आंब्रबन्धकतन्त्रम् / , जंबुवन्धकतन्त्रम् / ,शिरसबन्धकतन्त्रम् / बिल्वबन्धकतन्त्रम् / पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः , बदरीबन्धकतंत्रम् / शालबंधकतंत्रम् / ., मलातकबंधकतंत्रम् / , महाराष्ट्रभाषोक्तकचौराबादकत कम्।। 2, महाराष्ट्रभा वोक्तधमोडाधव तंम् / ,, थोरबंधकतंत्रम् / , कपित्थबंधकतंत्रम् / " कुप्रबंधकतंत्रम् / , रोइतबंधकतंत्रम् / 1 कापासबंधकतंत्रम् / , माजॉरीनालतंत्रम् / " बालकनालतंत्रम् / " बालकदन्ततंत्रम् / स्यालनामितंत्रम् / २.वराटकीतंत्रम् / For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir अनु. मं०म०पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः // 12 // | उत्तरखंडे इन्द्रजालकौतुकतंत्रे त्रयोदश स्तरंगः। 1 सर्वोपरिमंत्र: , रक्षामंत्र: , इन्द्रजालकोतुककरणोपयोगी मंत्रः। , दृष्टिस्तंभनम् / , नानारूपधारणकौतुकम् / 2 अन्यकौतुम् / 1 जलकौतुकम् / 1 वृक्षोत्पत्तिकौतुकम् / 2 अक्षरोत्पत्तिकातुकम् / 2 नानारंगकौतुकम् / 1 मिष्टकौतुकम् / " काचकुप्पाकौतुकम् / 2 बंदूककौतुकम् 1 युद्धकौतुकम् / , चित्रकौतुकम्। 884 पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः 889 1 जीवोत्यत्तिकोतुकम् / ,, अंडकौतुन् / , नृत्यकौतुकम् / 2 नानाकोतुकानि , बदामके भीतरकी गिरी फोडना / , मट्टीका मैसा बोले। पीरका हुका। , चित्रकी पुतली हसै। , हनुमानके पसेव आवै। 1 हनुमानके मुखसे फूल झरे। नारियलमें बदाम छुहारा निकले। , छुहारेके भीतरसे लौंग इलायची निकालना। 77 चासनी बिगड़े। प्रधान सझेि नही। , मालीकी डालियोंमेंसे फूल फल बाहर निकल पड़े। पत्रांकाः पृष्ठांकाः विषयाः , घरमें संप दीखें। 2 बिना खूटीकी खडाऊँपर चलना / तेलका घृत बने। , पैसको रुपया बनाना। "जीमता हो। , जीमतो वमन करे। , ओष्ठ सफेद करना। , धुवा निकले। 1 पक्षी पकडना। जल बचे खुले। निजरूप कुरूप दखे। सभाके लोग दयाकी सैर करते दीखें / ,, अगमें सुई छेदना / // समाप्तेयं मंत्रमहार्णवग्रंथस्यविषयानुक्रमणिका शिवचरणयोर्पितास्तु // 5 // 12 // For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir भूमिका। इस परब्रह्म परमात्माको अनेक धन्यवाद हैं के जिस्की कृपासे हम सब कोई अपने कार्यको निर्विघ्नपूर्वक समा। तकरने में समर्थ होतेहैं / इसके उपरांत हम अपने सहृदय पाठकोंको भी धन्यवाद दियेविना नहीरहेसक्ते कि जिनकी कृपाका अवलंबनही हमारे उत्साहको द्विगुणित करतारहा / तीसरे सर्वशक्तिमान् शिवजी महाराजको धन्यवाद देनाही योग्यहै क्योंके जिनकी कृपारूपी दृष्टिके कारण ही मंत्रशास्त्र रचागया / जिस मंत्रशास्त्रके प्रभावसेही प्राचीन / मनुष्योंने देवतोंसे भी जय पाई। और देवताको वशीभूत करके उन देवतोंसे अपने किंकरवत् कार्य कराया करतथ।इस मंत्रशास्त्रके द्वारा रावणादिक राक्षस श्रीरामचन्द्रादिकसे युद्धकरनमें समर्थ हुये / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा सपूर्णांकी। दृष्टीके आगसे अलोप होजाते थे। जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा दूसरेके शरीरमें आप प्रवेश होसक्तेथे / जिस मंत्रशास्त्रके। द्वारा नानाप्रकारके रूप धारण करलेतेथे। जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा जलके भीतरही भीतर सहस्रोंयोजनतक जानेकी सामर्थ्य रखतथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा आकाशमार्ग होकर देवलोकको जातेथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा भूत भविप्य वर्तमान तीनों कालकी वार्ताओंके जानने में समर्थ हातेथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा देवतोंकाभी आकर्षण करलेतेथे! जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा अजीत शत्रुसे भी जय पातेथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा मनोवांछित पदार्थ अपने आपही मँगालेतेथे। जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा अष्टसिद्धि नवनिधि सन्मुख हाथ बांधे खडीरहतीथीं। इस मंत्रशास्त्रके प्रभावकरकेही ब्राह्मणोंसे ती रघू इत्यादि राजा भैभित होतेथे। ऐसी अनेक सिद्धियां इच्छानुसार प्राप्तकरना यह For Private And Personal use only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं०म०मंत्रशास्त्रहीका काम था। आज अत्यंत खेदका समय है के ऐसा अमूल्य रत्न मंत्रशास्त्र इच्छाके पूर्णकरनेवाला इस भूमिः लोकसे लुप्त हुवाजाताहै / कारणके प्रथमतो आजकल ऐसे पदार्थोंका मिलनाहीं कठिनहै वह यदि किसीके पास का यत्किंचितहै भी तो गोपनीयवचनोंके कारण किसीको दर्शनभी नहीं कराता यदि थोडा बहोत मिलता भी है तोअशुद्ध / मलताहै किसीका पूजन नहीं किसीकी पीठशक्तिका पता नही किमि आवरणका ठिकाना नही कहीं केवल मंत्रही मिलताहै आप कहोके ऐसे विधानोंसे सिद्धी किसप्रकार होसक्ती है इसीकारण अबके मनुष्योंके अनुष्ठान करनेपर सिद्धी नहीं प्राप्तहोनेके कारण मंत्रशास्त्रको झूठा मानने लगे हैं / ऐसा मानना विद्वजनोंकी भूलहै / कारण के प्रथम तो शिवजी महाराजके वाक्यको मिथ्या माननाही अज्ञानताका कारण होताहै / दूसरे कुछ दिनो पहेलेही मंत्रशास्त्रका चमत्कार आपलागोंके दृष्टिगोचर होताही था / इस्से मंत्रशास्त्रको मिथ्या किसप्रकार बनासक्ते हो। किंतु ठीकठीक। विधानोंका न मिलना और मिलनेपर आप लोगोंके चित्तकी कातरताही सिद्धीके अवरोधका कारण होताहै मंत्रशास्त्रको मिथ्या बताना प्रत्यक्षमें भूलहै / आशा है के आप लोग विश्वास रक्खोगे कि मंत्रशास्त्र झूठा नहीं है / किंतु इस्की क्रिया गुप्त होरहीथी और कुछ साधकको साहस कमहोनके कारण मंत्रशास्त्रको झठा मानना पडाथा / ऐसे ऐसे भ्रमोंको दूर करनेके निमित्तसेही मंत्रशास्त्र में शिरोमाणि इस मंत्रमहार्णवका जन्म हुवा है। किंतु वैष्णव शैव और शाक्तोंके मनको प्रफुल्लितकरनेके निमित्तही अनेक प्राचीनमंत्रशास्त्रोंकी सहायतापूर्वक इसमंत्रमहार्णवको पंडित मंत्रशास्त्री माधौरायवैद्य प्रयागराजनिवासीने संग्राह कियाहै / इस्को अवलोकनकरनसे इष्टदेवताको प्रसन्नकरनेके निमित्त 1 // For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सम्पूर्ण विधान आपलागोंको एकही स्थानमें मिलजायगा। नतो सम्पूर्ण ग्रंथको उलटपुलट करना होगा नतो मूल / श्लोकोंको लगाकर आधीबातें समझना पडेगा न मंत्रशास्त्रियों के पछिपछि भटकना पड़ेगा मंत्रमहार्णवको हाथमें / शालेतेही आपको इष्टदेवताका मंत्रोद्धार, न्यास, ध्यान, पीठपूजा, पीठशक्ति, यंत्रोद्धार, देवासन, प्रतिष्ठा, आवरणपूजा पोडशोपचारपूजा, स्तोत्रादि सम्पूर्ण पञ्चाङ्गही पद्धतीकीरीतिपर एकही स्थानमें मिलजावेंगे सिर्फ पत्रोंको हाथमें लेकर कार्य स्वयं वा यजमानको कराते चले जावो क्रमपूर्वक मिलेगा प्रसंग कहीं खण्डित नहींहोगा जिस्के द्वारा आपके मंत्रकी सिद्धी होकर प्रयोगोंके करनेमें समर्थ होसक्तेहैं / इस मंत्रमहार्णवमें कोईभी मंत्र ऐसा आपको नहीं मिलेगा। जिस्का सम्पूर्ण विधान आपको उसी स्थानमें न मिलजावै किन्तु अवश्यही मिलेगा / और ऐसा कोई देवता, दैत्य, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, योगिनी अप्सरा, देवकन्या, नागकन्या, राक्षस, प्रेतादिक नहीं होगा जिस्का पूर्णविधान आपको मंत्रमहार्णवमें नमिल जावै किंतु सभीमिलेंगे। और अलोपाञ्जन, निधि ग्रहणा अन,रसायनिकक्रिया, कल्पादिक, मशमेरेजम, स्वप्नसिद्धि, कर्णपिशाचिनी, पुत्रोत्पत्ति, मोहनादिषट् प्रयोग नाना चेटकादि अनेकप्रकारके आपको इस मंत्रमहार्णवमें मिलेंगे मंत्रमहार्णवमें एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक देवताओं और प्रत्येक कार्योंके सिद्धीके पृथक्पृथक् अर्थ तरंग कियेगये हैं जिसमें किसी विषयके देखने वालोंको सम्पूर्ण ग्रंथ उलटपुलट न करनापडै. ऐसा कोई भी कार्य नहीं होगा जिसके सिद्धि करनेके निमित्त अनु-५ टान आपको मंत्रमहार्णवमें न मिले नहीं संपूर्णही मिलेगा। जहांतक मेरी दृष्टीमें आया है सभी विषय एकत्रित कर। For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. लाग मन्त्रशास्त्रसे क्यों अश्रद्धा नाक द्वारा अपने कार्योंकी मिन विद्वजनोंके समान न्यूनतम तन्हाम। होकर अंतकाल देवके कारण महत्वको आनंदपूर्वक रीत्यानुसार जावेगा यदि आप लोलखना वृथा है एक बार अंगीकार करते जिस दियेगये हैं मेरी बुद्ध में तो इस समय मंत्रशास्त्र जितने प्रचलित होरहे हैं सब मंत्रमहार्णवके उदरस्थ होगये हैं और जो बिलकुल लुप्त होगये हैं उनके उद्धार करनेमें पुस्तकोंके न मिलनेके कारण में समर्थ नहीं हुवा कृपापूर्वक इतनेहीमें संतोप करें औरभी मंत्रमहार्णवमें ऐसी सुगम रीतियां दीगई हैं कि बड़े 2 विद्वजनोंके समान न्यून विद्यावालेभी तापूर्वक विचारांश करके अनुष्टानोंके द्वारा अपने कार्योंकी सिद्धी करने में समर्थ होवें हैं और कहते हैं कि आप लोग मन्त्रशास्त्रसे क्यों अश्रद्धा होते हैं आनंदपूर्वक रीत्यानुसार अनुष्ठान करें कृतकार्य होवोगे ब्राह्मण तो पूर्वकालमें / मंत्रशास्त्रकीही सिद्धिके कारण महत्वको प्राप्तथे उसको आपलोग क्यों नहीं अंगीकार करते जिसमें नाना क्लेशोंसे मुक्त। होकर अंतकालमें देवलोक प्राप्ति होवै. विशेष लिखना वृथा है एक वार मंत्रमहार्णवको अवलोकन करनसे स्वयंही ग्रंथका गुणदोष प्रगट होजावैगा यदि आप लोग अपनी दयालुताके कारण मंत्रमहार्णवको अपने कोमल हृदयरूपी मानससरमें हंसवत इस ग्रंथको स्थान देंगे तो थोडेही दिनोंमें औरभी कई विपयोंके ग्रंथ संग्रह करके आप लोगोंकी भेट करूंगा इस मेरे संगृहीत मंत्रमहार्णव ग्रंथके मुद्रणादि आधिकार मैंने मुंबईके 'श्रीवेङ्कटेश्वर” स्टीम् प्रेसके मालिक शेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजीको दिये हैं इसमेंसे किसी भागको छापनेका किसीनेभी साहस नहीं करना। इत्यलं बहुनोल्लिखितेन-विदुपां कृपाभिलापिवरः / ग्रंथसंग्रहीता दोप प्रगट होकामानि होते. मातथे उसको For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // श्रीगणेशाय नमः // ॐ सरस्वत्यै नमः॥ // श्रीगुरुचरणकमलेन्यो नमः // // गणपति प्रणमामि सुसिद्धिदं हरसुतं कुचुमध्य / मुखं विभुम् / गिरिसुतां गणराजसुवंदितां शिवमिहेप्सितदं शिवदं नृणाम् // ३॥श्रीसूर्यप्रभृतीन्सुरांश्च सततं ये साक्षिणः कर्मणां राधा कृष्णपदारविन्दयुगलं ध्येयं सदा योगिभिः // सावित्र्य सुविभूषितं सुरवरं ब्रह्माणमीडेऽत्र ते ग्रंथे मंत्रमहार्ण वे प्रतिदिनं कुर्वन्तु सन्मंगलम // 2 // दृष्ट्वा तंत्राण्यनेकानि माधवाख्येन धीमता // वक्ष्यते कलिसिद्धोयं ग्रंथो मंत्रमहार्णवः // 3 // सर्वतंत्रेकमुकुट सर्वसारमय ध्रुवम्।।वक्ष्यामि परमप्रीत्या रहस्यं सर्वमंत्रिणाम् // 4 // नामूलं लिख्यते किंचिदिह विज्ञेयमादरात् // नैवात्र संशयः कार्यों नानाभेद विधानके // 5 // तंत्रांतरेष्वनेकानि विधानानि मुनीश्वरैः / / उक्तान्यनेकदेवानां प्रसिद्धानि च संति वै / / ६॥देशदेशाच्च तेषां वै संग्रहः क्रियते मया। साधकानां हितार्थाय श्रीदुर्गायाः प्रसादतः // त्रीणि खण्डानि ग्रंथेस्मिन्पूर्व मध्यं तथोत्तरम् // पुंदेवानां पूर्वखण्डे / श्रीदेवीनां च मध्यमे॥यक्षिणीप्रभृतीनां तु तथैवोत्तरखण्डके॥८॥ अनुष्ठानं मया प्रोक्तं तरंगैस्तु पृथक्पृथक्॥९॥ संगृहीतमिमं ग्रन्थं मया / / |च लघु बुद्धिनाअंगीकुर्वतु शास्त्रज्ञा दयां कृत्वा ममोपरि।।१०॥यदि दोषोभवेत्कुत्रचिन्मदज्ञानकारणात्।।प्रार्थये सुजनास्तद्वै क्षमध्य मे राधकम् // 11 // यदत्र वाक्यमधिकं न्यूनं यत्र च कुत्रचित // रोषमुत्सृज्य तत्सर्व निर्दोष कुरुत द्विजाः // 12 // (तत्रादौ तंत्रसंज्ञाः) सिद्दीश्वरं महातंत्र कालीतंत्रं कुलार्णवम् // ज्ञानार्णवं नीलतंत्रे फेत्कारीतंत्रमुत्तमम् // 13 // देव्यागमं चोत्तराख्यं श्रीक्रम / सिद्धियामलम् // मत्स्यसूक्तं सिद्धिसारं सिद्धिसारस्वतं तथा // 14 // वाराहीतंत्रं देवेशि योगिनतिंत्रमुत्तमम् / / गणेशमर्षिणीत नित्यतंत्र शिवागमम् // 15 // चामुंडाख्यं महेशानि मुंडमालाख्यतंत्रकम् / / हंसमाहेश्वरं तंत्रं निरुत्तरमनुत्तमम् / / 16 / / कुलप्रकाशक For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म. देवि कल्पं गांधर्वकं शिवे // क्रियासारं निबंधाख्यं स्वतंत्र तंत्रमुत्तमम् / / 17 // सम्मोहनं तंत्रराजं ललिताख्यं तथा शिवे // राधाख्य०१खं०१ मालिनीतंत्र रुद्रयामलमुत्तमम् / / 18 // बृहच्च श्रीक्रमं तंत्रं गवाक्षं कुसुमादिनि / विशुद्धेश्वरतंत्रं च मलिनोविजयं तथा // 19 // तरं० 1 समयाचारतंत्रं च भैरवीतंत्रमुत्तमम् // योगिनीहृदयं तंत्र भैरवं परमेश्वरि // 20 / / सनत्कुमारक तंत्र योनितंत्र प्रकीर्तितम् // तंत्रांतरं च / देवेशि नवरत्नेश्वरं तथा // 21 // कुलचूडामणि तंत्रं भावचूडामणीयकम्।।तंत्रदेवप्रकाशं च कामाख्यानामकं तथा // 22 // कामधेन कुमारी च भूतडामरसंबकम् // नलिनीविजयं तंत्रं यामलं ब्रह्मयामलम् // 23 // विश्वसारं महातंत्रं महाकुलकुलांतनम् // कुलोड्डीशं कुञ्जकाख्यं यंत्रचितामणीयकम् / / 24 / / एतानि तंत्ररत्नानि सफलानि युगेयुगे / कालीविलासकादीनि तंत्राणि परमेश्वरि२५॥ कलिकाले प्रसिद्धानि अश्वाकांतासु भूमिषु / / महानीचानि तंत्राणि अविकल्पे महेश्वरि / / 26 / / अथ साध्यजन्मनक्षत्रवृक्षा यथा। (शारदातिलके ) कारस्करोथ धात्री स्यादुदुंबरतरुः पुनः / / जंबूः खदिरकृष्णाख्यौ वंशपिप्पलसंज्ञकौ // 27 // नागरोहिणीनामानौ पलाशलक्षसंज्ञको / / अंबष्ठबिल्वार्जुनाख्यविकंकतमहीरुहाः // 28 // बकुलः सरलः सों बंजुलः पनसार्ककौ। शमीकदंम्बनिंबाम्रमधूका वृक्षशाखिनः / / 29 / / इत्यश्चिन्यादिक्रमेण योजयेत् // अथ युगभेदेन देवताभेदः / (पूजास्कंधे ) ब्रह्मा कृतयुगे देवस्वतायां भगवान् रविः।। द्वापरे भगवान् विष्णुः कलौ देवो महेश्वरः।।३०।। अथ पुरश्चरणकरणार्थमादाववश्यकज्ञातव्यपदा नाह ( कुलार्णवे ) विधि मंत्रं च करणी योनिमाद्यं च पक्षजम् // दीपाथै कर्मचक्राणि ज्ञात्वा कर्माणि साधयेत् // 3 // ऋपिच्छंदोदेवतांगन्यासध्यानार्चनादिकम् // बीजशक्ती कालवेधौ ज्ञात्वा मंत्राणि साधयेत् // 32 // पंचशुद्धासनं प्राणायामा न्यासाक्षिमा For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matavian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir लिका // दोपसंस्कारशुद्धादीन् ज्ञात्वा कर्माणि साधयेत् / / 33 / / साध्यसाधककर्माणि लेखन्या द्रव्यपंचकम् / / स्थानं यंत्रप्रमाणे च ज्ञात्वा कर्माणि माधयेत् // 34 // अथवासनादिदिग्वर्णनाडीतत्त्वानुसंगतिम् // देवताकालमंद्रां च ज्ञात्वा कर्माणि साधयेत् // 35 // उत्पत्तिरसनावर्णान्मूर्तिसंस्कारसंस्थितिम् // कुंडव्यप्रामाणदीन ज्ञात्वा होम समाचरेत् / / 36 // अग्निप्रभाधूम्रवर्ण ध्यानगंधशिखाकृतीः / / दूतचेष्टादिकं ज्ञात्वा कल्पयेत्तु शुभाशुभम् // 37 // मंत्रतत्त्वानुसंधानं देहावेशादिलक्षणम् / / मंत्रोच्चारणभेदे च ज्ञात्वा कर्माणि साधयेत् // 38 // मंडलं कलशं दिव्यं शुद्धगंधाष्टकादिकम् दीक्षां वामप्रदायीं च ज्ञात्वा दीक्षां समाचरेत् // 39 // नित्यं नैमित्तिकं काम्यं नियमं नाम वासनाम् // पूजाधारणयंत्राणि ज्ञात्वा कर्माणि साधयेत् // 40 // पूजागृहप्रवेशादि / कुलपूजनलक्षणम् // कुलद्रव्यादिशुद्धिं च ज्ञात्वा पूजा समाचरेत् // 41 // अथ गुरुशिष्यपरीक्षणम् // ज्ञानेन क्रियया वापि गुरुः शिष्यं परीक्षयेत् // संवत्सरं तदई वा तदर्द्ध वा प्रयत्नतः॥ 42 // शिष्योपि लक्षणैरेतैः कुर्याद्रुपरीक्षणम् // आनंदाजपैस्तोत्रैानहोमार्चनादिषु // 43 // ज्ञानोपदेशसामर्थ्य मंत्रशुद्धमपीश्वरम् // बोधकत्वं च विज्ञाय शिष्योभूयान्न चान्यथा // 14 // (कुलार्णवतंत्रे ) श्रीगुरुः परमेशानि शुद्धवेषो मनोहरः // सर्वलक्षणसंपन्नः सर्वावयवशोभितः // 45 // अग्रगण्याला गर्भारश्च पात्रापात्रविशेषवित् / / शिवविष्णुसमः साधुन च दर्शनदूषकः // 46 // नित्यनैमित्तिके काम्ये रतः कर्मण्यनिन्दिते // यहच्छालामसंतुष्टो गुणदोषविभेदकः // इत्यादिलक्षणोपेतः श्रीगुरुः कथितः प्रिये // 47 // अथ गुरुमाहात्म्यम् / / अत्रिनेत्रः / / शिवः साक्षादचतुर्बाहुरच्युतः॥ अचतुर्वदनो बह्मा श्रीगुरुः कथितः प्रिये // 48 // अथ त्याज्यगुरुः // निन्दितस्तु पितुर्मत्र For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir म० मं. स्तथा मातामहस्य च // सोदरस्य कनिष्ठस्य वैरिपक्षाश्रितस्य च // 19 // शूद्राणां च तथा स्त्रीणां गुरुत्वं न कदाचन // ०१खं०१ योग्यमाद्यं गुरुं त्यक्त्वा शिष्यः शूद्रं क्रियाविदम् // गुरुं समाश्रयेदन्यं यः प्रयाति स दुर्गतिम् // 50 // अथ त्याज्यशिष्यः // तरं० 1 न देयमर्थलुब्धाय पिशुनायास्थिराय च // भक्तिश्रद्धाविहीनाय शुश्रूषाविमुखाय च // 51 // दीक्षा मुहूर्तनिर्णयः // वैशाखे / श्रावणे वापि आश्विने कार्तिकेथ वा // फाल्गुने मार्गशीर्षे वा कुर्य्यान्मंत्रस्य दीक्षणम् // 52 // (सिद्धांतशेखरे) // शरत्काले च मंत्रस्य दीक्षा श्रेष्ठफलप्रदा // फाल्गुने मार्गशीर्षे च ज्येष्ठे दीक्षा तु मध्यमा // 53 // आषाढे आवणे माघे कनिष्ठा सद्भिराहता // निन्दितश्चाधिमासस्तु पौषो भाद्रपदस्तथा // 54 // मुक्तिकामैः कृष्णपक्षे भूतिकामैः सिते सदा / / पूर्णिमा पंचमी ) चैव द्वितीया सप्तमी तथा // 55 // त्रयोदशी च दशमी प्रशस्ताः सर्वकामदाः // वो गुरौ विधौ दीक्षा कर्तव्या बुधशुक्रयोः // 56 // |अश्विनीरोहिणीस्वातीविशाखाहस्तभेषु च // ज्येष्टोत्तरात्रये चैव कुन्मिंत्राभिषेचनम् // 57 // श्रवणा धनिष्ठा च पुष्यः / / शतभिषा तथा // दीक्षानक्षत्रजातानीत्याहुस्तंत्रार्थकोविदाः // 58 // मेषकर्कटकन्यासु तुलायां वृश्चिके तथा // मकरे कुम्भके चैव दीक्षा सर्वशुभावहा // 59 // षष्ठी भाद्रपदे मास्याश्विने कृष्णा त्रयोदशी / / कार्तिके नवमी शुक्ला श्रावणे कृष्णपंचमी // // 6 // एतानि देवपर्वाणि तीर्थकोटिफलानि च // निन्दितेष्वपि मासेषु दीक्षोक्ता ग्रहणे शुभा // 61 // 2 // न मासतिथिवारादिशोधनं सूर्यपर्वणि // सिद्धिर्भवति मंत्रस्य विनात्यासेन वेगतः // 62 // (रुद्रयामले ) सतीर्थेकविधुयासे महापर्वणि चैव हि // मंत्रदीक्षां प्रकुर्वाणो मासादीन्न शोधयेत् // 63 ॥संहितायाम् ) विषुवेप्ययनद्वंद्वै संक्रांत्यां दमनोत्सवे // For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दीक्षा कार्यान्यकालेपि पवित्रे गुरुपर्वणि // 64 // (शैवागमे च)॥ सतीर्थे कविधुमासे पुण्यारण्ये वनेषु च // पुण्यक्षेत्रे कुरुक्षेत्र || देवीपीठे चतुष्टये // प्रयागे श्रीगिरी काश्यां कालाकालं न शोधयेत् // 65 // (उपदेशसुधातंत्रे) // चंद्रसूर्यग्रहे चैव सिद्धक्षेत्रे शिवालये ॥मंत्रमात्रप्रकथनमुपदेशः स उच्यते // 66 // (सारसंहिता याम)तिथिं विनापि दीक्षायां विशिष्टं वासरं शृणु // दुर्लभे सद्गुरूणां / च सकत्संग उपस्थिते // 67 // तदनुज्ञा यदा लब्धा स दीक्षावसरो महान् // ग्रामे वा यदि वारण्ये क्षेत्रे वा यदि वा निशि // आगच्छति गुरुर्देवो यदा दीक्षा तदा भवेत // 68 // ( तत्त्वसारे) यदेवेच्छा तदा दीक्षा गुरोराज्ञानुरूपतः // नतिथिन व्रतो होमो न स्नानं न जपक्रिया // दीक्षायाः कारणं किं तु स्वेच्छा वाज्ञा गुरोरिह // 69 // (वैशंपायनसंहितायाम् ) // संध्यागजित निर्घोषभूकंपोल्कानिपातनम् // एतानन्यांश्च दिवसान स्मृत्युक्तांश्च परित्यजेत् // 70 // (नारदीये ) आचार्यादनभिप्राप्त मंत्रश्चादत्तदक्षिणः // यस्तोपि सदा मंत्रः श्रेयसे नावकल्पते // 71 // अथानुष्ठानारंभे मुहूर्तनिर्णयः॥ (रुद्रयामले ) कार्तिकाश्विवैशाखमाघेथ मार्गशीर्षक // फाल्गुने श्रावणे मंत्रपुरश्चर्या प्रशस्यते // 72 // (वैशंपायनसंहितायाम् ) // || मंत्रस्यारंभण मेषे धनधान्यप्रदं भवेत् // वृषे मरणमामोति मिथुनेऽपत्यनाशनम् // 73 // कर्कटे सर्वसिद्धिः स्यात् सिंहे मेधाविनाश / नम् // कन्या लक्ष्मीपदा नित्यं तुलायां सर्वसिद्धयः // 74 // वृश्चिके स्वर्णलाभः स्यादनुर्मानविनाशनम् // मकरः पुण्यदः प्रोक्तः कुंभो धनसमृद्धिदः // मोनो दुःखप्रदो नित्यं मे मासविधिक्रमः // 75 // (तंत्रसारे) चन्दतारानुकूले च शुक्लपक्षे शुभे दिने / For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म. आरंभे तु पुरश्चर्या हरौ सुप्ते न चाचरेत् // 76 // (स्मृतितत्त्वे) पूर्णिमा पंचमी चैव द्वितीया सप्तमी तथा // त्रयोदशी च दशमी०१खं०१ प्रशस्ता सर्वकामदा // या तिथिर्यस्य देवस्य तस्यां वा शुभदः स्मृतः // ७७॥(पुरश्चरणदीपिकायाम् )मंत्रारंभी रखौ शुक्रे बुधे जीवे तर० 1 विशेषतः // शनौ मृत्युः क्षयो भौमे सोमे मध्यफलं स्मृतम् // 78 // ( मुहूर्तगणपतौ )पुनर्वसुद्वये हस्तै व्युत्तरे श्रवणत्रये // रेवतीद्वितये हस्तेऽनुराधारोहिणीद्वये // शांतिक पौष्टिकं कर्म पुण्याहे कीर्तितं बुधैः // 79 // (पुरश्चरणदीपिकायाम् ) अश्विनीरोहिणी स्वातीविशाखाहस्तभेषु च // ज्येष्ठोत्तरात्रयेष्वेव कुर्यान्मंत्राभिषेचनम् // 80 // (शब्दकल्पद्रुमे ) आायां कृत्तिकायां च मंत्रारंभः / प्रशस्यते // यदीशस्य कशानोर्वा मंत्रारंभं यथाक्रमम् // 8 // स्थिर लग्नं विष्णुमंत्रे शिवमंत्रे चरं ध्रुवम् / / द्विस्वभावगतं लग शक्तिमंत्रे प्रशस्यते // 82 // अथ भक्ष्याभक्ष्यनिर्णयः॥(शारदातिलके )भक्ष्यं हविष्यं शाकानि विहितानि फलं ययः॥मूलं सर्यवोध लनो भक्ष्याण्येतानि मंत्रिणाम् // 83 // ( पुरश्चरणदीपिकायाम् )चरुमूलफलक्षीरदधिभिक्षान्नसक्तवः // शाकाश्चाष्टविधं चान्नं साधकस्योच्यते बुधैः // 84 // (नारदीये) पयोवतस्य सिद्धिः स्यालक्षेणैव न संशयः // शाकभक्ष्यहविष्याशी कलौ लक्षत्रयं जपेत् // ॥४५॥(देवीभागवते ) भिक्षान्नं शुद्धमानीय रुत्वा भागचतुष्टयम् // एके भागो द्विजे भक्तो गोग्रासे च द्वितीयकः।।८६ // अतिथि। यस्तृतीयस्तु तदूर्ध्व शिशुभार्ययोः // आश्रमस्य यथा यस्य कृत्वा यासविधि क्रमात् ॥८७॥तदृ संख्यया स्यादा वानप्रस्थगृहस्थयोः // 3 // कुछटांडप्रमाणं तु यासमान विधीयते॥८॥अष्टौ ग्रासान्गृहत्यच वानस्यत्तदर्धकम् / / ब्रह्मचारी यथेष्टं च गोमूत्रविधिपूर्वकम् / / 89 // ब्रह्मपात्रे तु मुंजीत मध्यपत्रविवर्जिते / दक्षं ब्रह्मोतरं विष्णुमध्यपत्रं महेश्वरः ।।अन्यथा भोजनादोषात् सिद्धिहानिः प्रजायते // 9 // For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir अथ जपस्थाननिर्णयः // ( पुरश्चरणचंद्रिकायाम् ) पुण्यक्षेत्र नदीतीर गुहा पर्वतमस्तकम् / / तीर्थप्रदेशाः सिंधूनां संगमः पावनं वनम / ॥९॥उद्यानानि विविक्तानि बिल्वमूलं तटं गिरेः॥ देवतायतनं कूलं समुद्रस्य निजं गृहम।।साधनेषु प्रशस्यते स्थानान्येतानि मंत्रिणाम् // 92 // (नारदीये ) शिवस्य सन्निधाने च सूर्यान्योर्वा गुरोरपि / / दीपस्य ज्वलितस्यापि जपकर्म प्रशस्यते // 93 / / अनि वीः पर्वते पुण्ये नदीतीराणि यानि च // (तंत्रांतरेपि) अश्वत्थामल कीमूलं गोशाला जलमध्यतः / / 94 // (मद्रयामले ) म्लेच्छदुष्टमृगव्यालशंकातकादिवर्जिते / कांते च पावने निंदा रहिते भक्तियुते / / ९५॥(समयाचारतंत्र )शृणु देवि विशेषेण उत्तराम्नाय, हेतवे // वेश्यागृहे श्मशाने वा गत्वा मैथुनमाचरेत् // 96 // ततो जपादिकं देवि कृत्वाशु लभते फलम् // अथवा स्वगृहे रात्री भक्तिमान् यः समाचरेत् // स प्रामोति फलं सर्व चिंताभयविवर्जितः // 97 // (ज्ञानार्णवेपि ) यत्र वा कुत्रचिदागे लिंगं यत्पपश्चिमामुखम् // स्वयंभूबाणलिंग वा वृषशूल्यं जलास्थितम् // 98 // (फेत्कारिणीतंत्रे) एकलिंगे श्मशाने वा शून्यागारे चतुष्पथे।। तत्रस्थः साधयेद्योगी विद्यां त्रिभुवनेश्वरीम्॥ 99 / / (महाकपिलपंचरात्रे ) कुटीविरक्तमित्येते देशाः स्युमैत्रसिद्धिदाः॥ एकांत मठिकामध्ये स्थातव्यं हठयोगिना // 10 // (स्थानभेदन जपमाहात्म्य ) गृहे शतगुण विद्यागोष्ठे लक्षगुणं भवेत्॥कोटिदेवालये पुण्यमनं शिवसन्निधौ // 103 // (शिववचनात् ) गृहे जपं समं विद्याद्रोष्टे शतगुणं भवेत् // नद्यां शतसहस्रं स्यादनंतं शिव सन्निधौ // 102 // समुद्रतीरे च हृदे गिरो देवालयेषु च पुण्याश्रमेषु सर्वेषु जपः कोटिगुणो भवेत् // 103 // (स्थानभेदेन कालभेदः) वटेरण्ये श्मशाने च शून्यागारे चतुष्पथे // अर्धरात्रपिमध्याह्ने पुरश्चरणमारभेत् // 104 // (स्थानलक्षणम् ) ग्रामा For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri @yanmandir म० मं० को शमितं स्थानं नद्यादौ स्वेच्छया मितम् // नगरादावथ केशं कोशयुग्ममथापि वा आहारादिविहारार्थं तावती भूमिमाक्रमेत्॥ ३०९ख०१ (एकलिंगलक्षणं फेत्कारिणीतंत्रे) पंचक्रोशांतरे यत्र न लिगान्तरमीक्ष्यते तदेकलिंगमाख्यातं तत्र सिद्धिरनुत्तमा // 105 // तरं० 1 (श्मशानलक्षणं फेत्कारिणोतंत्रे )दह्यते व्यसवो यत्र शवकीलकसंकुले // गृध्रगोमायुकाकाद्यैर्मासलुग्धैर्यदावृतम् // तच्छ्यशानमिति ख्यातपिशाचगणसेवितम् // 106 // (चितालक्षणम् ) असंस्कृता चिता ग्राह्या न तु संस्कारसंयुता / / चांडालादिषु संप्राता केवलं शीघसिद्धिदा // 107 // (अत्राधिकारिणः) महाबलो महाबुद्धिर्महासाहसिकः शुचिः॥ महास्वच्छो दयावांश्च सर्व भूतहिते रतः॥ 108 // (शून्यागारलक्षणं त्रिशक्तिरत्ने ) काकादिनीडसंयुक्त किमिच्छत्रादिसंयुतम् / / नागरैरनिर्मुक्तं साध्व सोद्भवकारणम् ॥सौध संवृद्धघासौचं शून्यागारं तदुच्यते / / 109 // (चतुष्पथलक्षणं फेत्कारिणीतंत्रे) चतुर्णा च पथा यत्र संपा तो युगपद्धवेत / / तच्चतुष्पथमित्युक्तं रजन्यामिष्टदायकम् // 10 // (मठलक्षणं कुलार्णवे) अल्पद्वारमरंध्रगत विवरं नात्युच्चनीचा यतं सम्यग्गोमयसांदलितममलं निःशेषजंतूज्झितम् / बाह्ये मंडपवेदिकूपरुचिरं प्राकारसंवेष्टितं प्रोक्तं योगमठस्य लक्षणमिदं सिद्ध ठायासिभिः।।१११॥(अथ दिग्निर्णयः)उपविश्यासने मंत्री प्राङ्मुखो वा युदङ्मुखः॥रात्राबुदङ्मुखैःकार्य देवकार्य सदेवहि // 32 // (महाभारते उद्योगपर्वणि ) मुपर्ण उवाच // अनुशिष्टोस्मि देवेन गालवायातियोगिना // बूहि कामं तु कां याति इष्टं प्रथमतो दिशम् / helm13 // पूर्वा वा दक्षिणां वाहमथवा पश्चिमां दिशम्।।उत्तरां वा विजश्रेष्ठ कुतो गच्छामि गालव // 114 // गालव उवाच // यस्यामुदयते पूर्व सर्वलोकप्रभावनः। सविता यत्र संध्यांच्या साध्यानां वर्तते तु यः॥बतद्वारं द्विजश्रेष्ठ दिवसस्य तथाध्वनः।।११५॥(शिव H4 // For Private And Personal use only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir पूजनदिग्विभागः शिवरहस्य)उत्तराभिमुखैः कार्य श्रीमहादेवपूजनम्॥प्राङ्मुखेनाथ वा कार्य श्रीमहादेवपूजनम्॥पश्चिमाभिमुखैर्वापि कर्त / / व्य शिवपूजनम्॥दाक्षेणाभिमुखेमत्यैर्न कर्तव्यं शिवार्चनम् // ११६॥(ताराकाल्युपासनायां दिग्विभागः फेत्कारिण्याम)पाङ्मुखोदङ्मुखो / दापि वक्ष्यमाणक्रमेण तु // श्रीकामः शान्तिकामो वा पश्चिमाभिमुखः स्थितः॥११७॥ (कालिकापुराणे) दिग्विभागेषु कौबेरी दिक शिवाप्रीतिदायिनी // तस्मात्तन्मुख आसीनः पूजयच्चांडकां सदा // 118 // (अथ स्नाननिर्णयः ) स्नानं त्रिषवणं प्रोक्त मशक्तौ द्विः सात्तथा // अनातस्य फलं नास्ति न च पितृनतर्पतः // 119 // (अथ तिलकनिर्णयः ) केशवायभिधानस्त स्थानेषु द्वादशस्वपि // ललाटोदरहत्कंटदक्षपाधीसकं ततः // 120 // वामपाश्चसिकणे च पृष्ठदेशे ककुद्यपि // ललाटे तु गदा काद्धदये नंदकं पुनः // 121 // शंख चक्रं भुजवे शाङ्ग बाणं च मूर्द्धनि // इत्थं तु वैष्णवः कुर्याच्छैवः कर्याधिपंडकमत // 122 // अग्निहोत्रोत्थितं भस्मादायानिरिति मंत्रतः !! अभिमंत्र्य व्यंबकेन कुत्पिंच त्रिपुंडकम् // 123 // (अथ आसननिर्णयः // (मंत्रमहोदधौ ) जपन्निधाय दर्भास्त्रीन्कुशचमोदरासने // काष्टपल्लववंशाश्मगोशकतृणमृन्मयम् / / विषयं कठिन मंत्री त्यजेदासनमाधिदम् // 124 // ( तंत्रांतरे ) वंशासने दरिद्रत्वं पाषणे व्याधिसंभवः // धरण्यां दुःखसंभूतिर्भािग्य दारुकासने // 125 // तूलकम्बलवस्त्राणि पट्टव्याघमृगाजिनम् // कल्पयेदासनं धीमान्सौभाग्यं ज्ञानसिद्धिदम् // 126 // तृणासने यशोहानिः पल्लवे चित्तविनमः // कृष्णासने ज्ञानसिद्धिमोक्षश्रीयाघ्रचर्मणि // 127 // स्यात्पौष्टिक च कौशेयं शांतिकं वेत्रविष्टरम् // वंशासने व्याधिनाशो कम्बले दुःखमोचनम् // 128 // स्यादाभिचारिकं नीले रक्त For Private And Personal use only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir म.म // 5 // सं.१ प्र०१ तरं०१ वश्यादिकं भवेत् // धवले शांतिकं मोक्षः सर्वार्थश्चित्रकम्बल // सर्वाभावे त्वासनार्थं कुशविष्टरमिष्यते // 129 // (हंसमाहेश्वरे) लोम्नि चैव यदासीनस्तदा सर्व विनश्यति // लोमस्पर्शनमात्रेण सिचिहानिः प्रजायते // कुशासने मंत्रसिद्धिर्नात्र कार्या विचारणा ST 130 // जानूोरंतरे ठत्वा सम्यक्पादतले उभे // ऋजुकायो विशेद्योगी स्वस्तिकं तत्पचक्षते // ऊवारुपार| विन्यस्य सम्यक्पादतले उभे // अंगुष्ठौ च निबधीयाचस्ताभ्यां व्युत्क्रमात्ततः // 131 // पद्मासनमिति प्रोक्तं योगिनां हृदयंगमम् // एक पादमधः कृत्वा विन्यस्योरौ तथोत्तरम् // ऋजुकायो विशेयोगी वीरासनामितीरितम् // 132 // ( अथ मालानिर्णयः) अरिष्टपुत्रजीवेश्च शंखपनैर्मणिस्तथा // कुशग्रंथिश्च रुद्राक्षा उत्तमं चोत्तरोत्तरम् // 133 // ( मंत्रखंडे ) स्फाटिकी मौक्तिको वापि प्रोतव्या सितसूत्रकैः // सर्वकर्मसमृद्ध्यर्थे जपेरुद्राक्षमालया // 134 :: वैष्णवे तुलसीमाला गजदंतेर्गणेश्वरे // त्रिपुराया जपे थे शस्ता रुद्राक्ष रक्तचन्दनः // 135 // (मंत्रखंडे ) रेखयाष्टगुणं विद्यात पुत्रजीवैर्दश स्मृतम् // शतं चन्दनशंखैश्च प्रवालैस्तु सहस्रकम // 136 // स्फाटिकेर्लक्षसाहस्रं मौक्तिकेर्लक्षमेव च // दशलक्षं राजताक्षैः सौवर्णैः कोटिरच्यते ॥१३७॥कुशयन्ध्या च रुद्राक्षैरनतगुणितं भवेत् // अष्टोत्तरशतैर्माला पञ्चाशचतुराधिकैः॥१३८॥सनविंशतिभिः कार्या एकग्रीवा समेरुका। मुखं मुखेन संयोज्य पुच्छ पुच्छेन योजयेत् // 139 // प्रोतव्या सितसूत्रेण सत्कर्मफलसिद्धये // पट्टसूत्रकता माला देव्याः प्रीतिकरा मता ॥१४०॥कार्या नईष्णवी माला पद्मसूत्रैरथापि वा // ऊर्णाभिर्वल्कलेर्वापि शैवी माला प्रकीर्तिता // 141 // कासिसूत्ररन्येषां विदध्याजपमा लिकाम् // त्रिंशद्भिः स्यादनं पुष्टिः सप्तविंशतिभिर्भवेत् // 142 // पंचविंशतिभिमोक्षःपंच स्यादभिचारणे // पंचाशद्भिः कुलेशानि / For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सर्वसिद्धिरुदीरिता // 143 // जप्वाक्षमालां सकलां भ्रामयेदाशिखामणेः // प्रदक्षिणा पुनर्वकमारत्यैवं समाचरेत् // 144 // स्वयं वामेन हस्तेन जपमालां न संस्पृशेत् // अदीक्षितो द्विजो वापि स्पृशेच्चेच्छुद्धिमाचरेत् // 145 // न धारयेत्करे मूर्ध्नि कंठे च जपमालिकाम् // जपकाले जपं कृत्वा सदा शुद्धस्थले क्षिपेत् // 146 // गुरुं प्रकाशयेद्धीमान्मत्रं नैव प्रकाशयेत् // अक्षमालां च मुद्रां च गुरोरपि न दर्शयेत् // 147 // कम्पनासिद्धिहानिस्स्यादननं बहुदुःखकत् // शब्दे जाते भवेद्रोगी / करनष्टा विनाशकत् // 148 // छिन्ने सूत्रे भवेन्मृत्युस्तस्माद्यस्नपरो भवेत् // जपावे कर्णदेशे वा उच्चस्थानेथवा न्यसेत् // 149 // इति ॥(अथ रुद्राक्षमाहात्म्यं पद्मपुराणे) शिखायां हस्तयोः कंठे कर्णयोश्चापि यो नरः // रुद्राक्षं धारयेद्भक्त्या शैवं लोकमवा मुयात् // 150 // रुद्राक्षे देहसंस्थे तु कुकुरो म्रियते यदि // सोपि रुद्रपदं याति किं पुनर्मानवा गुह // 11 // यो ददाति / द्विजातिभ्यो रुद्राक्षं भुवि षण्मुखम् // तस्य प्रीतो भवेद्रुद्रः प्रयच्छति निजं पदम् // 152 / / नववक्त्रं तु रुद्राक्षं धारयेद्वामबाहुना // चतुर्दशमुखं चैव शिखायां धारयेद्बुधः // 153 // सप्तविंशतिरुद्राक्षमालया देहसंस्थया ।यत्करोति नरः पुण्यं सर्वे कोटिगुणं भवेत् // 154 // (स्कंदपुराणे विशेषः) रुद्राक्षान्कण्ठदेशे दशनपरिमितान्मस्तके विंशती दे षट्पट् कर्णप्रदेशे करयुगलगवा द्वादशी द्वादशैव // बाह्वोरिन्दोः कलाभिः पृथकगिरिशिखासूत्रयोरेकमेकं वक्षस्यष्टाधिकं स्यात्कलयति सततं स स्वयं नीलकंठः // 155 // Ma( मुखभेदेन रुद्राक्षमाहात्म्यं स्कंदपुराणे) कार्तिकेय उवाच // एकद्वित्रिश्चतुःपंचषट्सप्तवसवो नव // दशैकादश द्वादश त्रयोदशी 6 चतुर्दश // 156 // एतेषां तु मुखानां तु देवता कोत्र शंकर // गुणं च कीदृशं तेषां कथयस्व यथार्थतः // 157 // शंकर For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं०म० उवाच // एकवकः शिवः साक्षाद्ब्रह्महत्यां व्यपोहति // दिवको देवदेव्यौ च गोवधं नाशयेद्धवम् // 158 // त्रिवको दहनः सं० 1 प्र०१ साक्षाद्भणहत्यां व्यपोहति // चतुर्वकःस्वयं ब्रह्मा ब्रह्महत्यां व्यपोहति // 159 // पंचवक्रः स्वयं रुद्रः कालानि म नामतः // षडतरं० 1 वक्रः कार्तिकेयस्तु धारयेदक्षिणे भुजे // 160 // ब्रह्माहत्यादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः // सप्तवको महासेनो ह्यनंतो नाम नाग। राट् / / 161 / / गुरुतल्लादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः / / अष्टवको महासेनः साक्षादेवो विनायकः // 162 / / पृष्ठोदरकरे धि गापि संस्पृशेदा गुरुवियत् // एवनादीनि पापानि चातिपापानि सर्वशः // 163 // विनास्तस्य च नश्यति मुक्तो याति परां गतिम् // गुणा ह्येतेषु सर्वेषु अष्टवक्रेपु धारणात् // 164 // नववको भैरवः स्याद्धारयेद्वामके भुजे // कंपिलो मुक्तिदः प्रोक्तो मम Mal तुल्यबलो भवेत् / / 165 / / लक्षकोटिसहस्राणि ब्रह्महत्यां करोति यः॥ तत्सर्व दहते शघि नववक्रस्य धारणात / / 166 / / दशवक्रो| महासेनः साक्षादेवो जनाईनः // ग्रहाश्चैव पिशाचाश्च वैताला ब्रह्मराक्षप्ताः।। 167 // पन्नगाश्च विनश्यंति दशवक्रस्य धारणात् / वकैकादशरुद्राक्षो रुद्र एकादशः स्मृतः / / 168 / / शिखायां धारयेन्नित्यं तस्य पुण्यफलं शृणु। अश्वमेधसहस्रस्य वाज पयशतस्य च / / 169 / / हेमशृंगस्य लक्षस्य सम्यग्दत्तस्य यत्फलम् // तत्फलं समवामोति रुद्रकादशधारणात् // 170 // रुद्रा क्षद्वादशाक्षस्य कंठदेशे च धारणात् // आदित्यस्तुप्यते नित्यं द्वादशार्कव्यवस्थितः // 171 // त्रयोदशमुखः कामः सर्वकामफ // 6 // मतांतरे हरगार्याविति पाठः / 2 पद्मपुराणे-विक्रोनिखिनन्मोत्याराशि प्रगाशयेदिति पाठः / 3 पमपुराणे-पञ्चवकस्तु कालानिरगम्याभक्ष्यपापनुत् / इति पाठः। Paa पद्मपुराणे-गर्भहत्यां व्यपोहतीति पाउः / 5 पमपुराणे-शिवसायुज्यकारकः / इति पाठः / For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir लपदः // चतुर्दशास्यः श्रीकंठो वंशोद्धारकरः परः / / 172 // (अस्य धारणविधानं पद्मपुराणे)पंचामृतं पञ्चगव्यं स्नानकाले प्रयोजयेत् // रुद्राक्षस्य प्रतिष्ठायां मन्त्रः पंचाक्षरो यथा // ॐ त्र्यंबकादिमन्त्रं च यथा तेन प्रयोजयेत् // 173 // ( तत्र मंत्रः) ॐ पंचकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम्॥ उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्॥ॐ हौं अबोरे घोरेहुं घोरतरेहुँ ॐ ह्रीं श्रीं सर्वतः / सर्वांगे नमस्ते रुद्ररूपेहुम् // इति मन्त्रः। अनेनापि च मंत्रण रुद्राक्षस्य द्विजोत्तमः॥प्रतिष्ठां विधिवत्कुर्यात्नतोधिकफलं भवेत्॥ततो यथा / स्वमंत्रेण धारयेद्भक्तिसंयुतः // 174 // (तत्र मेण मंत्रः) ॐ ॐ दृशं नमः / ॐ ॐ नमः 2 ॐ ॐ नमः 3 ॐ ह्रीं नमः। 4 ॐ हूं नमः ५ॐ हूं नमः ६ॐ हुं नमः . ॐ सः हूं नमः 8 ॐ हं नमः 9 ॐ ह्रीं नमः 1. ॐ श्रीं नमः 1 ॐ हूं ह्रीं नमः 12 ॐ क्षां चौं नमः 13 ॐ नमोनमः 14 इति रुद्राक्षधारणम् / / ( अथ गोमुखीनिर्णयः) So वस्त्रेणाच्छादितकरं दक्षिणं यः सदा जपेत् // तस्य स्यात्सफलं जाप्यं तद्धीनमफलं स्मृतम् // 175 // भूतराक्षसवेता लाः सिद्धगंधर्वचारणाः // हरति प्रकटं यस्मात्तस्मादप्तं जपेत्सुधीः // 176 // अथांगुलीनिर्णयः॥ (शिवाज्ञाविद्याग्रंथे) अंगुष्ठं मोक्षदं विद्यात्तर्जनी शत्रुनाशिनी // मध्यमा धनदा शांतिकरत्वे वा ह्यनामिका // 177 // कनिष्ठा कपणे शस्ता जपकर्मणि शोभने / अंगुष्ठेन विना कर्म कृतं तदफलं यतः // 78 // (ग्रंथांतरे )मध्यमानामिकांगुष्टैरक्षमालामणीशतैः॥ एवं जपस्य 1 पमपुराणे-दादशाख्यो भवेदः इति पाठः / 2 स्कंदपुराणे धारणमंत्रभेदः-* ऐं नमः१ ॐ श्रीं नमः 2 *धं नमः ३*ह हूं:नमः 4 ॐ श्री लानमः 5 ॐ हीं नमः 6 *ही नमः 7 * कंचनमः ८ॐ नमः ९ॐ हीं नमः 1. ॐ श्रीं नमः 11 *हां नमः 12 *क्ष्य स्तों ननः 13 * डं मां नमः १४-इति भेदः / For Private And Personal use only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं• म // 7 // चैकस्य क्रमोयं चालयेजपेत् // 179 // अंगुष्ठेन तु मोक्षाय मध्यमाघविवृद्धये // जपेदनामिकांगुष्ठर्नेतराभ्यां कदाचन // 01 प्र.१ अंगुष्टमध्यमायोगात्सर्वसिद्धिप्रदासने // (मतान्तरे ) अंगुष्ठमध्यमाभ्यां च चालयेन्मध्यमध्यतः // तर्जन्या न स्पृशेदेनां मुक्तिदो गणन| तर० 1 क्रमः॥१८०॥अथ जपनिर्णयः( गोभिलमते ) नैरन्तर्यविधिः प्रोक्तो न दिनं व्यतिलङ्घयेत्॥दिवसातिक्रमे तेषां सिद्धिरोधः प्रजायते। // 18 // शनैः शनैरतिस्पष्टं न द्रुतं न विलम्बितम् // न न्यूनं नातिरिक्तं वा जपं कुर्यादिनेदिने // 182 // (तंत्रसारे ) मनः संहृत्य विषयान्मंत्रार्थगतमानसः // न द्रुतं न विलंबं च जपेन्मौक्तिकपक्तिवत् // 183 // उच्चरेदर्थमुद्दिश्य मानसः स जपः स्मृतः // जिह्वोष्टौ चालयत्किचिद्देवतागतमानसः // 184 // किंचिच्छ्रवणयोग्यः स्यादुपांशुः स जपः स्मृतः // जिह्वाजपः शवगुणः सहस्रं मानसः स्मृतः / जिह्वाजपः स विज्ञेयः केवल जिह्वया बुधैः // 185 // वर्णलक्षं जपेन्मत्रं तदध वा महेश्वरि // एकलक्षावधिं कुर्यान्नातो न्यूनं कदाचन // 186 // कल्पान्ते तु कते संख्या त्रेतायां द्विगुणा स्मृता // द्वापरे त्रिगुणा पोक्ता कलो संख्या चतुर्गुणा // 187 // (मंत्रमहोदधौ)पुरश्चरण एकस्मिन्कृते जन्मांतरौषतः // मंत्रो यदि न सिद्धः स्यात्तदा / तत्पुनराचरेत् // 188 // ( ग्रंथांतरे ) सम्यगनुष्ठितो मंत्रो यदि सिद्धिर्न जायते // पुनस्तेनैव कर्तव्यं ततः सिद्धो भवेद्धम् // 189 // पुनरनुष्ठितो मंत्रो यदि सिद्धो न जायते // पुनस्तेनेव कर्तव्यं ततः सिद्धो भवेद्धवम् // 19 // पुनः सोऽनष्ठितो मंत्रो यदि सिद्धो न जायते // उपायास्तत्र कर्तव्याः सप्त शंकरभाषिताः // 191 // धामणं रोधनं वश्यं पीडनं शोषपोषण // दहनांवं कमात्कुर्यात्ततः सिद्धोभवेत्पुनः॥ 192 // (मंत्रमहोदधौ ) यद्वा समुद्रगामिन्यां नद्यार्मिदुरविग्रहे। सन्मिोक्षांतमाजप्य। जुहुयाचदशांशतः // 193 // विप्रान्सभोज्य नानानमंत्राणां सिद्धिमाप्नुयात॥ सम्यग्जपपरस्यापि सिद्धयंति मनवोचिरात्॥१९४॥ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir ( अगस्त्यसंहितायाम् ) // ग्रहणेऽर्कस्य चंदोर्वा शुचिः पूर्वामुखोषितः // नद्यां समुद्रगाभिन्यां नाभिमात्रोदके स्थितः // स्पर्शाद्विमुक्ति पर्यंत जपेन्मंत्रमनन्यधीः // 195 // (रुद्रयामले ) अपि शुद्धोदकैः स्नात्वा शुचौ देशे समाहितः / यासाद्विमुक्तिपर्यंत जपेन्मंत्र मनन्यधीः // इति कृत्या न संदेहो जपस्य फलभाग्भवेत् // 196 // श्रद्धादेरनुरोधेन यदि जाप्यं त्यजेन्नरः // स भवेद्देवता द्रोही पितृन् सप्त नयेदधः // 197 // अथ होमनिर्णयः // (होमकालः) वसन्तश्चैव पूर्वाहेमध्यढे ग्रीष्म उच्यते // अपराहे भ| ववर्षा शरच्चैवार्द्धरात्रिके // उपो हेमंतकश्चैव संध्यायां शैशिरः स्मृतः // 198 // ( पुरश्चरणचंद्रिकायाम् ) ततो जपदशांशेन / होमं कुर्यादिनेदिने // अथवा लक्षसंख्यायां पूर्णायां होममाचरेत् // 199 // ( अथ होमस्थानं वायवीयसंहितायाम् ) अथानिकार्य वक्ष्यामि कुण्डे वा स्थाण्डिलेपि वा // वेद्यामप्यायसे पात्रे मृन्मये वा नवे शुभे // स्थंडिले वा प्रकुति सुसिद्धैः सिकतैः सितैः // 200 // // (अथ कुंडस्वरूपम् ) चतुरस्रं योनिमर्द्धचन्द्रं व्यत्रं सुवर्तुलम् // षडयं पंकजाकारमष्टास्त्रं तानि नामतः // 201 // सर्वसिद्धिकरं कुंडं चतुरसमुदाहृतम् // पुत्रप्रदं योनिकुंडमर्दैवाभं शुभप्रदम् // 202 // शत्रुक्षयकरण व्यसं वर्तुलं शांतिकर्मणि // छेदमारणयोः कुंडं पडलं पद्मसन्निभम् // पुष्टिदं रोगशमनं कुंडमष्टास्रमीरितम् // 203 // वर्णभेदेन कुंडप्रकारः) विषाणां चतुरस्रं स्याद्राज्ञां वर्तुलमिष्यते // वैश्यानामर्दचन्द्राभं शूद्राणां व्यस्रभीरितम् // चतुरस्रं तु सर्वेषां केचिदिच्छन्ति तांत्रिकाः // 204 // (अथ कुंडप्रमाणं नारदीये) कुंडं तु नारदेनोक्तं हस्तमात्र शुभं मतम् // यावत्कुंडस्य विस्तारः खननं तावदीरितम् // 205 // (हस्तप्रमाणम् ) चतुर्विशत्यंगुलाढ्यं हस्तं तस्य विदो विदुः॥ कर्तुदक्षिणहस्तस्य मध्य 8-4 For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं•म• " मांगुलिपर्वणः // 206 // ( होमप्रमाणेन कुंडप्रमाणम् ) मुष्टिमात्रमितं कुंडं शताई संप्रचक्षते // शतहोमेरनिमात्र हस्तमात्र खं० 1 प्र०१ सहस्रके॥२०७॥ द्विहस्तमयुते लक्षे चतुर्हस्तमुदीरितम् // दशलक्षे तु षड्हस्तं कोट्यामष्टकरं स्मृतम् // मानहीनाधिकं कुंडमने कभय तरं० 1 भवेत् // 208 // (कुंडस्यांगानि ) कुंडरूपं तु जानीयात् परमं प्रकृतेर्वपुः॥प्राच्यां शिरः समाख्यातं बाहू दक्षिणसौम्ययोः // उदरं / / कुंडमित्युक्तं योनिः पादौ तु पश्चिम॥२०९॥(अथ कुंडप्रमाणेन मेखलाप्रमाणम्)कुंडवन्मेखलां कृत्वा योनिं कृत्वा ततः परम् // कुंडानां यादृशं रूपं मेखलानां तु तादृशम्॥ २१०॥कुडानां मेखलास्तिस्रो मुष्टिमात्रे तु ताः कमात् // उत्सेधायामतो ज्ञेया कण्ठाईगलसंमि ताः // 211 // अरनिमात्रे कुंडे स्युस्ताखियकांगुलात्मिकाः // एकहस्तमिते कुंडे वेदोमिनयनांगुलाः // 212 // मेखलानां भवेदंतः परितो नेमिरंगुलात् // एकहस्तस्य कुंडस्य वर्द्धयेत्तकमात्सुधीः॥२॥३॥दशहस्तांतमन्येपाम गुलवशात्पृथक्॥कुंडे द्विहस्ते ता ज्ञेयारसवेर्दैगुणांगुलाः॥२१४॥चतुर्हस्तेषु कुंडेपुर्वसुतक युगांगुलाः॥कुंडे रसकरे ताः स्युर्दशॉटगुलान्विताः॥११॥ सुहस्तमिते कुंडे भानुपंक्यष्टकान्वितः॥दशहस्तमिते कुंडे मैनुभानुदेशाडुलाः॥विस्वाररोत्सेधतो ज्ञेया मेखला सर्वतो बुधैः॥२१६॥(योनिप्रमाणम्) होतुरग्रे योनिरासामुपर्यश्वत्थपत्रवत् // मुष्टयारत्न्येकहस्तानां कुंडानां योनिरीरिता // 217 // षट्चतुचंगुलायामविस्तारोन्नति शालिनी // एकांगुलं तु योन्ययं कुर्यादीपदधोमुखम् // 218 // एकैकांगलितो योनि कुंडेष्वन्येषु वर्द्धयेत् // यवद्दयक्रमेणव योन्य प्रमपि वर्द्धयेत् // 219 // स्थलादारभ्य नालं स्याद्योन्या मध्यं सरंध्रकरम् // / नार्पयेत्कुंडकोणेषु योनि तां तत्र वित्तमः॥२२०॥ 1 स्थलाव भूमिमारभ्य इत्यर्थः / नलं योन्याचारं मृन्मयमूर्दाकारं कल्पयेत् ! सरंधक मेखळाबालध्युपारीस्तरणार्थ रन्ध्र कल्पवेदित्यर्थः / For Private And Personal use only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir Kal(नाभिमानम् ) कुंडानां कल्पयेदंत भिमंबुजसन्निभाम् / तत्तत्कुंडानुरूपं वा मानमस्या निगद्यते॥२२३॥मुष्टयरत्न्येकहस्तानां नाभिरुत्से तारतः। द्वित्रिवेदांगुलोपतां कुंडेप्यन्येषु वर्द्धयेत्॥२२२॥ यवयवक्रमेणैव नाभिं पृथगुदारधीः।।योनिकुंडे योनिमजकुंडे नाभिं विवर्जयेत्॥ 223 / / नाभिक्षेत्र त्रिधा भित्त्वा मध्ये कुर्वीत कर्णिकाम्॥बहिरंशद्वयेनाष्टौ पत्राणि परिकल्पयेत्।।२२४॥(शाकल्यप्रमाणं महार्णवे ) Kalतिलास्तु द्विगुणाः प्रोक्ता यवेश्यश्चैव सर्वदा // अन्ये सौगंधिकाः स्निग्धा गुग्गुल्वादियवैः समाः // 225 // (त्रिकारिकायाम) आयुःक्षयं / यवाधिक्यं यवसाम्यं धनक्षयम् // सर्वकामसमृद्ध्यर्थं तिलाधिक्यं सदैव हि // 226 // (अथ द्रव्यभेदेनाहुतिप्रमाणं शारदातिलके) अथात्र होममानेन प्रमाणमभिधीयते ॥कर्षमात्रं घृतं होमे शुक्तिमात्रं पयः स्मृतम् // 227 // उक्तानि पंच गव्यानि तत्समानि मनीषिभिः॥ तत्सम मधुदुग्धान्नमक्षमात्रमुदाहृतम् // 228 // दधि प्रमृतिमात्र स्याल्लाजाः स्युर्मुष्टिसंमिताः॥ पृथुकास्तत्प्रमाणाः स्युः सक्तबोपि तथा मताः // ॥२२९॥गुडं पलार्द्धमानं स्याच्छर्करपि तथा मता॥यासाई चरुमानं स्यादिक्षुः पर्वावधिर्मतः॥२३०॥एकैकं पत्रपुष्पाणि तथाऽपूपानि कल्पयेत्॥कदलीफलनारंगफलान्येकैकशो विदुः॥२३३॥ मातुलुंगं चतुःखण्डं पनसं दशधा कृतम् // अष्टधा नारिकेलानि खण्डितानि / विदुर्बुधाः॥२३२॥ त्रिधा कृतं फलं बिल्वं कपिलं खण्डितं त्रिधा॥ उर्वारुकफलं होमे चोदितं खण्डितं त्रिधा // 233 // फलान्यन्यानि खण्डानि समिधः स्युर्दशांगुलाः // दूत्रियं समुद्दिष्टं गडूची चतुरंगुला // 234 // ब्रीहयो मुष्टिमात्राः स्युर्मुगमाषा यवा अपि // तण्डुलाः स्युस्तदीशाः कोद्रवा मुष्टिसंमिताः // 235 // गोधूमा रक्तकलभा विहिता मुष्टिमानतः // तिलाश्चुलुकमात्राः स्युस्सर्षपा / स्तप्रमाणकाः // 236 // शुक्तिप्रमाणं लवणं मरीचान्येकविंशतिः // पुरं बदरमानं स्याद्रामठं तत्समं स्मृतम् // 237 // चन्दना For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म. गुरुकर्पूरकस्तूरीकुंकुमानि च / / तितिडीबीजमानानि समुद्दिष्टानि देशिकैः // 238 // (आथाग्यंगानि) बधिरत्वं कर्णहोमे नेत्रे त्वंध खं० 150 1 त्वमाप्नुयात्।।नासिकायां मनःपीडा शिरोहोमो हि मृत्युदः॥२३९॥यतः काष्ठं ततः श्रोत्रं यतो भूम्पथ नासिका // यतोल्पज्वलनं नेत्रं तर०१ यतो भस्म ततः शिरः॥ यतः प्रज्वलितो वह्निस्तन्मुखं जातवेदसः॥२४०॥(अग्निवर्णेन शुभाशुभपरीक्षणम् ) स्वर्णसिंदूरबालार्ककुंकुमक्षोद संनिभः॥ भेरीवारिदहस्तिनां ध्वनिर्वह्नः शुभावहः॥२४१॥नागचम्पकपुन्नागवकुलाः केतकानि च // यूथिकानुनिभा गंधो गंधो वह्नः शुभा वहः // 242 // काकस्वरस्वरो बढेर्यजमानस्य दुःखदः / / कृष्णे कृष्णगतेर्वणे यजमानं विनाशयेत् // 243 // एवं दुष्टेषु चिह्नेषु प्रायश्चि नोपदेशकः // मूलेनाज्येन जुहुयात्पञ्चविंशतिराहुतीः // 244 // ( अथ पूर्णाहुतिविचारः संस्कारभास्करे शौनकः ) अंते / पूर्णाहुति हुत्वा समुद्रादूर्मिसूक्ततः // सततमाज्यधारां तां पूर्णाहुतिमथाचरेत् / / 245 // ( ग्रंथांतरे ) चतुगृहीतमाज्यं तद्गहीत्वा मुचि मध्यतः॥ वस्त्रतांबूलपूगादिफलपुष्पसमन्विताम् // 246 // अधोमुखस्रुवच्छन्नां गंधाक्षतैरलंकृताम् // पूर्व दक्षिणहस्तेन पया दामेन पाणिना // 247 // अग्रमध्यममध्यस्थं मूलमध्यममध्यतः॥ पाणिद्वयेन होतव्यं पाणिरेको निरर्थकः // 248 // (शांति | रत्ने) ऐशान्यामाहरेद्भस्म खुचा वाथ सुवेण वा // अंकनं कारयेत्तेन शिरःकंठांसकेषु च // 249 // ( होमेऽशक्तरुपायो योगिनी हृदये ) होमकर्मण्यशक्तानां विप्राणां द्विगुणो जपः // यद्यदङ्गं भवेद्भग्नं तत्संख्याद्विगुणो जपः // 250 // होमाभावे जपः कार्यो होमसंख्याचतुर्गुणः // विप्राणां क्षत्रियाणां च रससंख्यागुणः स्मृतः // वैश्यानां वसुसंख्याकमेषां स्त्रीणामयं विधिः // 251 // 9 // IN( अगस्त्यसंहितायान्तु ) यदि होमेऽप्यशक्तः स्यात्पूजायां तर्पणेपि वा / / तावत्संख्याजपैनैव ब्राह्मणाराधनेन च // 252 // For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir (अथ यंत्रलेखनार्थे पात्रनिर्णयः) स्वर्णादिपात्रे संलिख्य मातृकायंत्रमुत्तमम् // काश्मीरचन्दनेनापि भस्मना वाथ सुव्रत // 253 // काश्मीरं शक्तिसंस्कारे चन्दनं वैष्णवे मनौ॥शैवे भस्म समाख्यातं मातृकायंत्रलेखने // 254 ॥(धूपादिसमर्पणाङ्गनिर्णयः रुद्रयामले ) निवेदयेत्पुरोभागे गंधं पुष्पं च भूषणम् // दीपं दक्षिणतो दद्यात्पुरतो वा न वा मतः // 255 // वामतस्तु तथा धूपमये वा न तु दक्षिणे // नैवेद्यं दक्षिणे भागे पुरतो वा न पृष्ठतः॥ धूपदीपौ सुभोज्यं च देवताये निवेदयेत् // 256 // (अथ गंधनिर्णयः) सर्वेषु गंधजा तेषु प्रशस्तो मलयोद्भवः // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन दद्यान्मलयजं सदा // 257 // ( देवभेदेन गंधाः) कृष्णागुरुः सकर्पूरः सहितो मलया वः // वैष्णवप्रीतिदो गंधः कामाख्यायाञ्च भैरवे // 258 // कुंकुमागरुकस्तूरीचन्द्रभागैः समीकतैः // त्रिपुराप्रीतिदो गंधस्तथा चंड्याश्च शंभुना॥२५९॥ (देवभेदेन गंधाष्टकम् ) गंधाष्टकं तत्रिविधं शक्तिविष्णुशिवात्मकम्॥चंदनागुरुकर्पूरचोरकुंकुमरोचनाः॥जटामांसीकपि / युताः शक्तेर्गधाष्टकं विदुः // 260 // चन्दनागुरुह्रीवेरकुष्ठकुंकुमसेव्यकाः॥ जटामांसीमुरमिति विष्णोर्गंधाष्टकं विदुः // 261 // चं दनागुरुकर्पूरतमालजलकुंकुमम् // कुशीतं कुष्टसंयुक्तं शैवं गंधाष्टकं विदुः // 262 // (गंधार्पणे अंगुलीविचारः) अनामिक्या च देवस्य ऋषीणां च तथैव च // गंधानुलेपनं कार्य प्रयत्नेन विशेषतः // 263 // पितॄणामर्पयेद्धं तर्जन्या च सदैव हि // तथैव मध्यमांगुल्या धार्य गंध स्वयं बुधैः॥२६४॥अथ फलपुष्पनिर्णयः॥( मंत्रमहोदधौ) श्वेतं पीतं हरेरिष्टं रक्तं रविगणेशयोः // अक्षतानधत्तूरी विष्णौ नै वार्पयेत्सुधीः॥२६५॥ बंधूक केतकी कुंदं केसरं कुटजं जपाम् // शंकरे नार्पयेद्विद्वान्मालतीं यूथिकामपि // 266 // शक्तो दूर्वार्कमंदा रान्मालूरं तगरं रखौ॥ विनायके तु तुलसीं नार्पयेज्जातुचिबुधः // 267 // (नाने विहिते पुष्पस्पर्शे दोषः लघुहारीतः) स्नानं कृत्वा च ये For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 0 म. III चित्पुष्पं गृहंति वै द्विजाः॥देवतास्तन्न गृहंति भस्मी भवति काष्ठवत्॥२६८॥पुष्यं पत्र फलं देवे न प्रदद्यादधोमुखम्।।पुष्पांजलौ न त खं० 1501 दोषस्तथा पर्युषितस्य च // 269 // ( मंत्रमहोदधौ ) चम्पकं कमलं त्यक्त्वा कलिकामविवर्जयेत्॥कुरंटकं कांचनारं वर्जयेदृहतीयुगम् // तरं० 1 // 270 // अथ सर्वदेवोपयोगिधूपः।। (तंत्रसारे) गुग्गुलु सरलं दारु पत्रं मलयसंभवम्॥हीबेरमगुरुं कुठं गुडं सर्जरसं धनम्॥२७१॥हरी शतकी नखीं लाक्षां जटामांसी च शैलजम् / / षोडशाङ्गं विदुधूपं दैवे पित्र्ये च कर्मणि॥२७२॥अथ दीपनिर्णयः॥ (दीपपात्रं कालिका पुराणे) सुवृत्तवर्तिसस्नेहपात्रेऽभन्ने सुदर्शने॥मृण्मये वृक्षकोटौ तु दीपं दद्यात्प्रयत्नतः॥२७३॥तैजसं दाखं लौहं मार्तिक्यं नारिकेलजम्॥ तृणध्वजोद्भवं चापि दीपपात्रं प्रशस्यते॥२७४॥(दीपविचारः) न मिश्रीकृत्य दद्यात्तु दीपं स्नेहे घृतादिकम्॥धृतेन दीपकं नित्यं तिलतैलेन वा पुनः॥२७५॥दीपं घृतयुतं दक्षे तेलयुक्तं च वामतः॥ दक्षिणे च सितां वर्ति वामतो रक्तवर्तिकाम् ॥२७६॥नैव निर्वापयेद्दीपं देवार्थमु पकलितम्॥दीपहर्ता भवेदंधः काणो निर्वापको भवेत॥२७७॥(अथ वाद्यनिर्णयो योगिनीतंत्रे)शिवागारे भल्लकं च सूर्यागारेतु शंखकम्॥ दुर्गागारे वंशवायं माधुरी च न बादयेत् // 278 // (जयसिंहकल्पद्रुमे) वादित्राणामभावे तु पूजाकाले च सर्वदा / / घंटाशब्दो नरैः / कार्यः सर्ववाद्यमयी यतः // 279 // ( अथ नैवेद्यनिर्णयः ) भक्ष्यं भोज्यं च लेह्यं च पेयं चोष्यं च पंचमम् // सर्वत्र चैतन्नैवेद्यमाराध्यास्य निवेदयेत् // 280 // (नैवेद्यपात्राणि ) तैजसेषु च पात्रेषु सौवर्णे राजते तथा // ताने वा प्रस्तरे वाथ पद्मपात्रेथ वा पुनः॥२८॥ यज्ञदारुमये वापि नैवेद्यं स्थापयेद्धधः / / सर्वाभावे च माहेये स्वहस्तघटिते यदि / / 282 // (नैवेद्यल०) अग्विसर्जनाद्रव्यं नैवेद्यं / // 10 // सर्वमुच्यते // विसर्जिते जगन्नाथे निर्माल्यं भवति क्षणात् // 283 // नैवेद्यत्यागनिषेधः // (आह्निकतत्त्वे) तृषार्ताः पशवो रुद्धाः कन्यका HESA For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.koba .org Acharya Shri Kalasagasun Gyanmandir च रजस्वला // देवता च सनिर्माल्या हंति पुण्यं पुरा कृतम्॥२८४॥(रुद्रयामले)निवेदितं च यद्व्यं भोक्तव्यं तद्विधानतः।।तन्न चढज्यतेजा मोहाद्भोक्तुमायान्ति देवताः // 285 // अग्राह्यं शिवनैवेद्यं पत्रं पुष्पं फलं जलम् // शालिग्रामशिलासगात्सर्वं याति पवित्रताम् // // 286 // (उच्छिष्टाधिकारी मंत्रमहोदधौ) विष्वक्सेनो हरेरुक्तश्चंडेश्वर उमापतेः॥ विकर्तनस्य चंडांशुर्वक्रतुंडो गणेशितुः॥ शक्तरुच्छि / चांडाली स्मृता उच्छिष्टभोजिनः // 287 // अथ वस्वनिर्णयः // (जयसिंहकल्पद्रुमे ) पीतकौशेयवसनं विष्णुप्रीत्यै प्रकीर्तितम् // रक्तं शक्त्यर्कविनानां शिवस्य च सितं प्रियम् // मलहीनं तथाऽछिद्रं क्षौमं कार्पासमेव च // 288 // अथ प्रदक्षिणानिर्णयः // (लिंगार्चनचंद्रिकायाम् ) एका चंडयां रखी सप्त तिस्रो दद्याविनायके / / चतस्रो विष्णवे दद्याच्छिवे तिस्रः प्रदक्षिणाः // 289 // (ग्रंथां तरे ) एका चंड्या रखेः सप्त तिस्रः कार्या विनाके / / हरेश्चतस्रः कर्तव्याः शिवस्या प्रदक्षिणा / / 290 // (शिवप्रदक्षिणामाहात्म्यम् ) पूजां कृत्वा च यः शंभोन करोति प्रदक्षिणाम् // सा पूजा निष्फला तस्य पूजकः स च दांभिकः॥२९॥भक्त्या करोति यः सम्यक् के बलं तु प्रदक्षिणम् // पूजा सर्वा कता तेन स सम्यक्छिवपूजकः // 292 // अथ कूर्मनिर्णयः // (कूर्मचक्रस्यावश्यकता यामले ) क्षेत्रमध्यं समाश्रित्य कूमचक्र विचिंतयेत् // कूर्मचक्रमविज्ञाय यः कुर्याजपयज्ञकम् // तज्जपस्य फलं नास्ति सर्वानाय कल्पते // ॥२९३॥(तंत्रराजे) कूर्मस्थितिं सुविज्ञाय यो जपेदवधिस्थितिः॥ स प्रामोति फलान्युक्तान्यन्यथा नाशमेति च // 294 // (पुरश्चर चंद्रिकोतकूर्मचक्रम् ) वर्तुलं नवकोष्ठं तत्कृत्वा कूर्माकर्ति लिखेत् // स्वरयुग्मं कमेणैव ऐयाद्यष्टसु दिक्षु च // 295 // कादीन / वर्णान्लक्षमीशे मध्ये क्षेत्राधिपं यजेत् // क्षेत्रनामाद्यवर्णस्तु यस्मिन्कोष्ठे स्थितो भवेत् // 296 // मुखं तु तस्य जानीयाद्धस्तावुभयतः For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir IRANI मं० म // 11 // खं०१० तरं.१ स्थितौ // कोष्ठे कुक्षी उभौ पादौ द्वौ शिष्टं पुच्छमीरितम् // 297 // मुखस्थो लभते सिद्धिं करस्थः स्वल्पजीवनः॥ कुक्षिस्थितिरुदासीनः पादस्थो दुःखमाप्नुयात् / / 298 // पुच्छस्थः पीड्यते मंत्री बन्धनोचाटनादिभिः॥ कर्मचक्रमिति प्रोक्तं मंत्राणां सिद्धिसाधनम् // // 299 / / (मंत्रमहोदधौ) नवधा तां धरां कृत्वा पूर्वादिषु समालिखेत् // कोष्ठेषु सप्त वर्गाश्च लक्षौ मध्ये तथा स्वरान् // 300 // पुरश्चरणचन्द्रिकोक्तं कूर्मम् / मंत्रमहोदधिप्रोक्तं कूर्मम् / ईशानभुजा पूर्वमुख अग्निभुजा ईशान पूर्व अग्नि ल. क्ष- क ख ग घ च छ ज झत्रा उत्तर ल-क्ष- | भ-मा- इ. अंभ:- कखगघङ च छ ज झज दक्षिण कुक्षि श ष स ह टठडढण उत्तर अं अः अ आ इ ई श ष स ह भो औ उ ऊ ट ठ ड ढ ण दक्षिण | एऐ ऋऋ याम 11 // यरलव प फ ब भ म त थ द ध ना ए-ऐ- ल-लू ऋऋ. य र ल व | पफ ब भ म त थ द धन वायुपाद पश्चिमपुच्छ नैऋत्यपाद वायुकोण पश्चिम नैर्ऋत्यकोण For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाशंख वामभुजा वृषभ शुलराज कख ग घ ङ च छ ज झज पद्मयोनि श ष सह हृदय अमृत वामकटि अआइईउऊ | ऋ ए ऐ . ओ औ अं अः दक्षि० कक्षपुटिप्रोक्तं कूर्मम् / क्षेत्रनामादिमो वर्णो यत्र कोष्ठे भवेत्ततः॥ उपविश्य जपं कुर्यान्नान्यास्मिन्दुःखदे // ईशान पूर्व अग्नि स्थले // 301 // ( कक्षपुटौ ) देवस्थाने सुनिश्चित्य कूर्मचक्र सुसिद्धिदम् // दक्षभुजा अष्टवर्ग लिखेदीमान्मध्यतो यावदुत्तरम् // 302 // लक्षमीशपदे क्षेत्रे वेद्यास्ते नवकोष्ठके // हृदास्यभुजकट्यंघिपुच्छे वर्गाः क्रमात्स्थिताः॥३०३॥ पादादि यदि // दक्षिणकटि संज्ञानि तेषु क्षेत्राधिपा नव // अमृतो वृषभश्चैव शूलराजश्च वासुकिः।। 304 // | वासुकि | ट ठ ड ढ ण अमरा अजरश्चैव पूज्य शक्तियुतस्तथा // पद्मयोनिमहाशंखो ज्ञेयास्तनदनुक्र दक्षांघ्रि पूज्य | पुच्छ अजर | वामांघ्रि पूज्य मात् // माध्यात्पूर्वादितः पूज्या मंत्रमत्रव चोच्यते // 305 // अथ मंत्रः | अमुकक्षेत्रपाल देवीपुत्रावतारावतर बलिं पिशितं गृह 2 खल 2 सर्वविघ्नान् हन| वायव्य पश्चिम नैऋत्यकोण 2 स्वाहा // वि० // अनेन मंत्रेण अमृतादयः सर्वे क्षेत्रपालाः पूज्याः स्वस्या स्थितभूम्यां यः क्षेत्रपालः तस्योद्देशन तन्नाम्ना बलियः॥ 306 // यत्रयत्र भवेद्वर्गे क्षेत्रनामाद्यमक्षरम् // तन्मुखं शेषवर्गेषु करकुक्ष्य घिकल्पना // 307 // मुखस्थः क्षोभयेन्मंत्री करस्थः स्वल्पभोगभाक् // कुक्षिस्थो हत्युदासीनः पादस्थो दुःखमाप्नुयात् // 308 // पुच्छस्थो वधबंधं च जपादामोति निश्चितम् // दीपस्थानं ततः क्षेत्रे ज्ञात्वा मंत्रान्शुचिर्जपेत् // 309 // ( दीपस्थाने कूर्मविशेषः) यरल व प फ ब भ म अमर त थ द धन For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं• म. // 12 // क्षेत्राधिपस्य नाम्ना हि दीपस्थानं विचारयेत् // मुखं च नवधा कृत्वा स्वरवर्णादिकं लिखेत् // 31 // साध्यनामादिमो वागों यत्र कोठेख० 1.1 काभवेद्यदि // अथ वा कर्मकोष्ठे तु यत्र नामाक्षरं भवेत् // 31 // दीपस्थानं हि तज्ज्ञेयं तत्र स्थित्वा मनुं जपेत् ) क्षेत्रसाधकमंत्राणामेकमे तर.१ वाद्यमक्षरम् // यदि स्यात्स ध्रुवो मंत्रः क्षिप्रमेव सुसिध्यति // 312 // (तंत्रराजे ) कूर्मस्थितिं सुविज्ञाय यो जपेदवधिस्थितिः // स / पामोति फलान्युक्तान्यन्यथा नाशमेति च॥३१३॥ (यामले) कूर्मचक्रमविज्ञाय यः कुर्याज्जपयज्ञकम्॥ तज्जपस्य फलं नास्ति सर्वाना || al य कल्पते // 314 // ( देवीयामले) कुरुक्षेत्रे प्रयागे च गंगासागरसंगमे / महाकाले च काश्यां च कूर्मस्थानं न चिंतयेत् // 315 // गतिमीये) पर्वते सिंधुतीरे वा पुण्यारण्य नदीतटे॥यदि कुर्यात्पुरश्चर्यां तत्र कूर्म न चिंतयेत्॥यामे वा यदि वास्तौ वा गृहे तं च विचिंतयेत् | // 316 // (विश्वामित्रकल्पे) काशी पुरी च केदारो महाकालोथ नासिकम्॥व्यबकं च महाक्षेत्र पंच दीपा इमे भुवि॥३१७॥इति कूर्मः॥ सिद्धादियोगे सैद्धादियोगे मालिनीधिजपे भकटुमचक्रम् / शृद्धाकडमचक्रम्। अथ सिवादमत्रावचारः / / (मालिनाविजय) कणांसद्धादयागए आ-ओ-त-नि -रा ऐ-ग - विशेषतः॥प्रसिद्ध नाम गृह्णीयाजागर्तिमनुजो यतः // 318 // (सिद्धादिचक्र मालिनीविजये) द्वादशारे तथा चक्रे कूटप्रांतविवर्जितान् // आयंतान्विलि खेवर्णान् पूर्वतो यावदीश्वरः॥ 319 // अङ्गानेकादिभान्वंताँल्लिखेत्पूर्वादितः // 12 // क्रमात् // सिद्धः साध्यः सुसिझेरिश्चतुर्धा तु स्फुटो भवेत् // 320 // मंत्र साधकयोरायो वर्णः स्याद्यत्र कोष्ठगः // स एव सततं ग्राह्यः स्ववर्णान्मंत्र - वि - आ- :-ठ.१२... /११२-चा अ-ओ-म. (अ-क-ह-म. "त्री 1. Kii -ब-फ. क्षता ए-उ-व-प- ओ-प प-रा--2 For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जर्णतः // 321 // नबैकपंचमे सिद्धः साध्यः षड्दशयुग्मके // त्रिसप्तैकादशे मित्रं वेदाटद्वादशे रिपुः // 322 // (मंत्रमहोदधी) नाम्नो मंत्रस्य वर्गों चतुभिर्विभजेत् सुधीः // एकादिशेषे सिद्धादि क्रमाज्ज्ञेयं विचक्षणैः // 323 // सिद्धः सिध्यति कालेन साध्यस्तु जपहोमतः // सुमिदः प्राप्तिमात्रेण साधकं भक्षयदरिः॥ 324 // अथारिमंत्रचक्रम् // अथारिमित्रमंत्रविचारः // (समयाचारतंत्रे ) अथारिमंत्रचक्रम्. मंत्राक्षरेण मंत्रं च दीपनाम्नोवेद्यदि // साधकस्य च नाम्नाथ किं न सिध्यंति में। बरि अआ ऋक ल ल उ ऊ उफफाक त्रिगः // 325 // तस्माच्चक्रं विचार्येव मित्रं चेत्सर्वसिद्धिदम् // अरित्वमद्यस्ये वैरिग प र ख त घ र स ह गकारेण परस्परम् ॥३२६॥ऋदयस्य ठकारेण ठकारस्य च ऋद्वयम् // लुद्वयस्य / / पकारेण पकारस्य च लद्वयम् // 327 // उदयस्य पकारेण षकारस्योयुगेन तु // जकारस्य टकारेण लकारस्य खकारतः // 328 // डकारस्य तकारेण फकारस्य धकारतः॥ फकारस्य च रेफेण फकारस्य सकारतः // अरित्वमेषां वर्णानामन्येषां मित्रभावना // 329 // AS(अरिमंत्रदोषोद्धारो मालिनीविजये) अरिमंत्रो गृहीतश्चेदज्ञानवशतस्तदा // तस्य त्यागः प्रकर्तव्यस्तत्यकारोधुनोच्यते // 330 // मुदिने स्थापयेत्कुंभं सर्वतोभद्रमंडले // विलोमञ्च जपेन्मंत्रं पूरयेचन्तु पायसा // 333 // तत्र देवं समावाह्य जपेदावरणार्चितः // तदने स्थंडिलं कृत्वा प्रतिष्ठाप्यानलं ततः // 332 // जुहुयान्मूलमंत्रेण विलोमेन शतं वृतैः // दिक्पतिभ्यो बलिं दद्यात्पायसान्नघु तान्वितैः // 333 // पुनः संपूज्य देवेशं प्रार्थयेन्मनुनामुना // अनुकूटमनालोच्य मया तरलबुद्धिना // 334 // यदुपातं / पूजितं च प्रभो मंत्रस्य रूपकम् // तेन मे मनसः क्षोभमशेषविनिवर्तय // 335 // पूजनं प्रत्यहं वा तु भूयाच्छ्रेयः सनातनम् // For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं० म० तनोतु मम कल्याणं पावनी भक्तिरस्तु मे / / 336 // एवं सम्प्रार्थ्य देवेशं कर्पूरागरुचन्दनैः // विलोमं विलिखेन्मत्रं ताडपत्रे तदर्चयेत् / 01 प्र० 1 // 337 // प्रबध्य तु निजे मूर्ड्सि स्नायात्कुंभस्थितैर्जलैः॥ पुनः सम्पूर्य तत्तोयैर्न पश्येन्मंत्रपत्रकम् // 338 // सम्पूज्य कुंभसहितं तडागे लात०१ वा विनिःक्षिपेत् // विप्रान्सम्भोज्य मुच्येत पीडयासौ च मानवः॥३३९॥ अथ ऋणधनशोधनम् (मालिनीविजये ) नामाद्यक्षरमारण्य यावन्मंत्रादिवर्णकम् // कृत्वा स्वरैर्बुधो भिद्यानदन्यविपरीतकम् ॥३४॥कत्वाधिको मंत्रवर्ण ऋणी चेन्मंत्रमुत्तमम् // स्वयं ऋणी च तन्मंत्र त्यजेत्पूर्वऋणी यतः // 341 // (प्रकारांतरोपि) मंत्रसाधकनामाणः साधकस्य तथव च // अष्टभिस्तु हरेद्भागं शेषैर्ऋणधनम्भवेत // 342 // विना शुदिन जोपयेगिमंत्रः॥ येषां मनूनां सिद्धादिशोधनं नास्ति तान्ब्रुवे / एकवर्ण विवर्णों वा पंचा! रसवर्णकः॥३४३॥ सितारें नववर्गश्च रुद्राों रदनाक्षरः // अष्टा! हंसमंत्रश्च कुटो वेदोदितो ध्रुवम् // 344 // स्वमलब्धः स्त्रिया प्राप्तो माला मंत्रो नृकेसरी प्रसादो रविमंत्रश्च बाराहो मातृकाः परा // 345 // त्रिपुरा काममंत्रश्चाज्ञासिद्धः पक्षिनायकः॥बौद्धमंत्रा जैनमंत्रा नैव सिद्धादिशोधनम्॥ एतद्भिन्नेषु मन्त्रेषु शुद्धिरावश्यकी मता // 346 ॥(सिद्धसारस्वते विशेषः) नपुंसकस्य मंत्रस्य सिद्धादीन्नैव शोधयेत् // 347 // शापरहितमंत्राः // भीष्मपर्वणि या गीता सा प्रशस्ता कलौ युग // विष्णोः सहस्रनामाख्यं स्तोत्रं पापप्रणाशनम् // 348 // गजेन्द्रमोक्षणं चैव तथा कारुण्यकः स्तवः // नारसिंह तथा स्तोत्रं स्तोत्रं श्रीरामसंज्ञकम् // 349 // देव्याः सप्तशतीस्तोत्रं तथा नामसहस्रकम् // श्लोकाष्टकं नीलकंठं शैवं नामसहस्रकम् // 350 // त्रिपुरायाः प्रसादाख्यं सूर्यस्य स्तवराजकम् // पैत्रो रुचिस्तयो / जयश्च इन्द्राक्षीस्तोत्रमेव च // 351 // वैष्णवं च महालक्ष्म्याः स्तोत्रमिंद्रेण भाषितम् // भार्गवाख्येन रामेण शतान्यन्यानि कारणात For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.bath.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // 352 // अथ कलिसिद्धिप्रदा मंत्राः // ( मंत्रमहोदधौ ) सिद्धिप्रदा कलियुगे ये मंत्रास्तान्वदाम्यतः॥व्यर्ण एकाक्षरोऽनुष्टुप् त्रिवि धो नरकेसरी // 353 // एकाक्षरोर्जुनोनुष्टुब् विविधस्तुरगाननः // चिंतामणिः क्षेत्रपालो भैरवो यक्षनायकः // 354 // गोपालो गजवक्रश्च चेटका यक्षिणी तथा // मातंगी सुंदरी श्यामा तारा कर्णपिशाचिनी // 355 // शब>कजटा वर्मा काली नीलसर स्वती // त्रिपुरा कालरात्रिश्च कलाविष्टप्रदा इमे // 356 // कलौ चतुर्वर्णोपयोगि मंत्राः // अघोरा दक्षिणामूर्तिरुमा माहेश्वरो मनुः हयग्रीवो बराहश्च लक्ष्मीनारायणस्तथा // 357 // प्रणवाद्याश्चतुर्वर्णा वह्नमत्रास्तथा खेः // प्रणवायो गणपतिर्हरिद्रागणनायकः // 358 // सौराष्ट्रक्षरमंत्रश्च तथा रामषडक्षरः // मंत्रराजो ध्रुवादिश्च प्रणवो वैदिको मनुः // 359 // वर्णत्रयाय दातव्या एते शूद्राय नो बुधैः // सुदर्शनं पाशुपतमाग्नेयास्त्रं नृकेसरी // वर्णद्वयाय दातव्या नान्यवर्ण कदाचन // 360 // छिन्नमस्ता च मातंगी त्रिपुरा कालिका शिवः // लघुश्यामा कालरात्रिर्गोपालो जानकीपतिः // 361 // उग्रतारा भैरवश्च देया वर्णचतुष्टये // मृगीदृशी विशेषेण मंत्रा ये ते सुसिद्धिदाः // 362 // ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा नार्याधिकारिणः // श्रद्धावतो देवगुरुद्विजपूजासु सर्व था // 363 // मायां कामं श्रियं वाचं प्रदद्यान्मुखजन्मने // मायामृते बाहुजेोय ऊरुजेन्यः श्रियं गिरम् // 364 // वाणीबीजं तु शुद्रेश्योन्येभ्यो धर्म वषण्नमः // 365 // ( कुलार्णवे ) दासस्य शिवभक्तस्य हितप्रियकरस्य च // शुद्धस्यापि प्रदातव्यं || नमोतं प्रणवं विना // 366 // विना हि प्रणव मन्त्रः स्त्रीशूद्राणां प्रकीर्तितः॥ प्रणवेन समायुक्तास्तन्मंत्राश्च विषोपमाः // 367 // (आग मेपि) स्वाहाप्रणवसंयुक्त मंत्रं शूद्रे ददेद्विजः॥ शूद्रश्चांडालतामेति विप्रः शूद्रत्वमेव हि ॥३६८॥अथ मंत्राणां पुंस्त्रीनपुंसकविचारः॥(शरदा // For Private And Personal use only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं०म० // 15 // तिलके ) घुमंत्रा हुंफडतः स्युठिांतास्तु स्त्रियो मताः॥ नपुंसका नमोंताः स्युरित्युक्ता मनवविधा // 369 // (मंत्रमहोदधौ) पुंस्त्रीनपुंसकाः ख० 1501 पोक्ता मनवविविधा बुधैः // बषडंता फडंताश्च पुमांसो मनवः स्मृताः // 370 // वौषट् स्वाहातगा नार्यो झ्नमांता नपुंसकाः॥ वश्योचाटनरोधेषु पुमांसः सिद्धिदायकाः // 371 // क्षुद्रकर्मरुजां नारो स्त्रीमंत्राः शघिसिद्धिदाः // अभिचारे स्मृता क्लीबा एवं ते मन / वविधा // 372 // ( अग्निचन्द्रसम्बंधिमंत्रा ग्रंथांतरे ) प्रणवाक्षररेफहकारपाया मंत्रा आग्नेयाः // इन्द्रामृताक्षरपाया मंत्राः सौम्याः सूर्ये वहति // आनेयानां प्रबोधकालश्चन्द्रे सौम्यानाम् // स्वप्रबोधकाले मंत्रग्रहणे जपे च कृते तात्कालिकसिद्धिः स्यादेवति // 373 // (बीजमंत्रादिप्रकारो मंत्रमहोदधौ ) बीजमंत्रास्तथा मंत्रा मालामंत्रास्तथापरे / त्रिधा मंत्रगणाः प्रोक्ता बुधैरागमवेदिभिः // // 374 // बीजमंत्रा दशाणांतास्ततो मंत्रा नखावधिः // विंशत्यधिकवर्णा ये मालामंत्रास्तु ते स्मृताः॥ 375 // बाल्ये वयसि | सिद्धयति बीजमंत्रा उपासितुम्॥मंत्राः सिद्धा यौवने तु मालामंत्राश्च वाईके॥३७६॥ उक्तान्यस्यामवस्थायामभीष्टप्राप्तये सुधीः // बीज मंत्रादिमंत्राणां द्विगुणं जपमाचरेत् ॥३७७॥(गुप्तचैतन्यशक्तियुक्तमंत्राः शिवोपि ) गुप्तवीर्याश्च ये मंत्रा न दास्यति फलं प्रिये // मंत्राचे तन्यसहिताः सर्वसिद्धिकराः स्मृताः // 378 // चैतन्यरहिता मंत्रा प्रोक्ता वर्णास्तु केवलाः // फलं नैव प्रयच्छंति लक्षको टिजपादपि // 379 अथ कामनापरत्वेन मंत्रादौ बीजनिर्णयः / (मालिनीविजये) यदि दोषे तु सर्वत्र मायाकाममथापि वा // क्षिप्त्वा ह्यादौ श्रियं दद्यात्सर्वदोषविमुक्तये // 380 // प्रणवो भुवनेशानि रमाबीजमनोभवम् // जीवनं सर्वमंत्राणामित्याहुर्भगवा / ञ्छिवः // 381 // श्रीबीजाद्यं यदा जप्यं तदा लक्ष्मीरचंचला // कामाद्यं जपनादेव सर्वलोकं वशं नयेत॥ For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir H // 382 // वागादिजपनादेव बाक्सिद्धिर्जायतेचिरात् // शक्तिबीजादिको मंत्रो निर्दोषमचिरादिशेत् // 383 / / पुटनात्प्रणवान्यां थे तु मोक्षमामोति निश्चितम् // एवं मंत्रवरं जप्त्वा किं न सिध्यति मंत्रवित् // 384 // अथ कामनापरत्वेन मंत्रांते पल्लव निर्णयः ( हरगौरीतंत्रे ) मंत्राणां पल्लवो वासो मंत्राणां प्रणवः शिरः // शिरःपल्लवसंयुक्तो मंत्रः कामदुधो भवेत् // 385 // वश्याकर्षणहोमेषु स्वाहांतः सिद्धिदायकः // वौषट्पल्लवसंयुक्तो मंत्रः पुष्टयादिसाधकः // 386 // हुंकारपल्लवोपेतो मारणे ब्राह्मणं / / विना // यंत्रभंजनकार्येषु सुघोरभयनाशने // 387 // वपडतः प्रकल्प्यस्तु ग्रहबाधाविनाशकः // उच्चाटने तु संप्राक्तो मंत्रः | फट्पल्लवान्वितः // 388 // (मनुमते ) / वप वश्ये फडुच्चाटे हुँस्तंभे खे च मारणे // स्वाहा तुष्टयै ठः ठः पुष्टयै नमः सर्वार्थसाधने // 389 // मतांतरे // वषक वश्थे फडुच्चाटे हुंद्वषे खे च मारणे // टस्तम वौपडाक नमः संपत्तिहतवे / स्वाहा पुष्टिस्तथा तुष्टिरि थे त्येते मंत्रपल्लवाः / / 390 // अथ मंत्राणां छिन्नादिकदोपनिर्णयः // (शारदातिलके ) छिन्नादिदुष्टा मंत्रास्ते पालयति न साधकम् // छिन्नो रुद्धः शक्तिहीनः पराङ्मुख उदीरितः॥ 391 // बधिरो नेत्रहीनश्च कीलितस्तंभितस्तथा // दग्धस्वस्तश्च भीतश्च मलिनश्च तिरस्कृतः / / 392 // भेदितश्च सुसुप्तश्च मदोन्मत्तश्च मूर्छितः // हृतवीर्यश्च होनश्व प्रध्वस्तो बालकस्ततः // 393 // कुमारश्च युवा व प्रौढो बृद्धो निस्विंशकस्तथा // निर्बीजः सिद्धिहीनश्च मंदः कूटस्तथा पुनः // 394 // निरंशकः सत्त्वहीनः केकरो बीजही नकः // धूमिलालिंगितौ स्यातां मोहितस्तु क्षुधातकः // 395 // अतिहतोंगहीनः स्यादतिक्रुद्धः समीरितः॥ अतिक्रूरश्च सबीडः शांतमानस एव च // 396 // स्थानानटस्तु विकलः सोतिबद्धः प्रकीर्तितः॥ निःस्नेहः पीडितापि वक्ष्याम्येषांच लक्षणम् // For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म०म० 01 15 // तरं ॥३९७॥(अथ लक्षणानि ) मनोर्यस्यादिमध्यांतेष्वानिलं बीजमुच्यते // संयुक्तं वापि युक्तं वा स्वराक्रांतं त्रिधा पुनः // 398 // चतुर्धा पंचधा वाथ समंत्रश्छिन्नसंज्ञकः // आदिमध्यावसानेषु भूबीजबंदलांछितः // 399 // रुद्धमंत्रः स विज्ञेयो भुक्तिमुक्तिविवर्जितः // 400 // मायात्रितत्त्वं श्रीबीजं रावहीनश्च यो मनुः / शक्तिहीनः स कथितो यस्य मध्ये न विद्यते / / 401 / / कामबाज मुखे / माया शिरस्यंकुशमेव च / / असौ पराङ्मुखः प्रोक्तो हकारो बिंदुसंयुतः॥४०२॥ आयंतमध्योऽवंदुर्वा स भवेदधिरः स्मृतः॥ पंचवर्णो / मनुर्यः स्याद्रेफादुविवर्जितः॥ 403 // नेत्रहीनः स विज्ञेयो दुःखशोकामयप्रदः // आदिमध्यावसानेषु हसः प्रासाद वाग्भवौ // रुकारो बिन्दुमाञ् जीवो रावश्चापि चतुष्फलः // 404 // माया नमामि च पदं नास्ति यस्मिन्स कीलितः / / एकं मध्ये द्वयं मूर्चि यस्मिन्नस्त्रपुरंदरौ // 405 // विद्यते स तु मंत्रः स्यात्स्तंभितः सिद्धिरोधकः // वह्निायुसमायुक्तो यस्य मंत्रस्य मूर्द्धनि // 406 // सप्तधा) दृश्यते तं तु दग्धं मन्चीत मंत्रवित् // अस्त्रं दात्यां त्रिभिः षड्भिरष्टभिर्दृश्यतेक्षरैः॥४०७॥त्रस्तः सोभिहितो यस्य मुखे न प्रणवः स्थितः॥ शिवो वा शक्तिरथवा भीताख्यःस प्रकीर्तितः॥४०८॥आदिमध्यावसानेषु भवेत्तार्णचतुष्टयम् // अस्य मंत्रः स मलिनो मंत्रवित्तं विवर्जयेत्॥ // 409 // यस्य मध्ये दकारो वा क्रोधो वा मूर्द्धनि विधा॥अस्त्रं तिष्ठति मंत्रश्च स तिरस्कृत ईरितः // 410 // योदयं हृदयं शीर्षे वषड् वौषट् च मध्यतः॥यस्यासौ भेदितो मंत्रस्त्याज्यः सिद्धिषु सूरिभिः॥४११॥त्रिवर्णो हंसहीनो यः सुषुनः समुदाहृतः // मंत्रो वाप्यथ वा विद्या सप्ताधिकदशाक्षरः॥४१२।। फटकारपंचकादियों मदोन्मन उदीरितः। तद्वदलं स्थितं मध्ये यस्य मंत्रः समूच्छितः // 413 // विरामस्थानगं यस्य हृतवीर्यस्सकथ्यते॥ आदौ मध्ये तथा मू i चतुरस्त्रयुतो मनुः // 414 // ज्ञातव्यो हीन इत्येष यः स्यादष्टादशाक्षरः॥ // 15 // For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 34 एकोनविंशत्यो वा यो मंत्रस्तारसंयुतः॥४१५॥हल्लेखांकुशबीजाब्यस्तं प्रध्वस्तं प्रचक्षते सतवर्णो मनुर्बालः कुमारोष्टाक्षरः स्मृतः॥४१६॥ षोडशार्णो युवा प्रौढश्चत्वारिंशल्लिपिमनुः // त्रिंशदर्णश्चतःषष्टिवर्णो मंत्रःशताक्षरः।।४१७॥चतुः शताक्षरश्चापि वृद्ध इत्यभिधीयते // नवाक्षel करो ध्रुवयुतो मनुर्निस्त्रिंश ईरितः॥४१८॥ अस्यावसाने हृदयं शिरोमंत्रश्च मध्यतः॥ शिखी वर्म च न स्यातां वौषट् फटकार एव वा // ॥४१९॥शिवशल्यहीनो वा स निर्बीज इतीरितः॥ एषुस्थानेषु फटकारः षोढा यस्मिन्प्रदृश्यते॥४२०॥स मंत्रः सिद्धिहीनः स्यान्मंदः पत्यक्षरो मनुः॥कूट एकाक्षरो मंत्रः स एवोक्तो निरंशकः॥४२१॥दिवर्णः सत्त्वहीनः स्याच्चतुर्वर्णश्च केकरः॥षडक्षरो बीजहीनः सार्धसप्ताक्ष कारो मनुः॥४२२ // सार्द्धद्वादशवर्णो वा धृमितः स तु निंदितः // सार्द्धबीजत्रयस्तद्वदेकविंशतिवर्णकः // 423 // विंशत्यर्णस्त्रिंशदों यः स्यादालिंगितस्तु सः॥ द्वात्रिंशदक्षरो मंत्रो मोहितः परकीर्तितः // 424 // चतुर्विंशतिवर्णी यः सप्तविंशतिवर्णकः॥ क्षुधार्तः स तु विज्ञेयो / यश्चतुस्विंशदणकः॥४२५॥ एकादशाक्षरो वापि पंचविंशतिवर्णकः // त्रयोविंशतिवर्णो वा मंत्र दृप्त उदाहृतः॥४२६॥ षड्विंशत्यक्षरो मंत्रः षट्त्रिंशद्वर्णकस्तथा / त्रिंशदेकोनवर्णों वाप्यंगहीनोभिधीयते // 427 / / अष्टाविंशत्यक्षरो य एकत्रिंशदापि वा // अतिकरः स कथितो निंदितः सर्वकर्मसु // 428 // त्रिंशदक्षरको मंत्रस्त्रयस्त्रिंशदथापि वा // अतिक्रूरः स गदितो निंदितः सर्वकर्मसु // 429 // Rऊनचत्वारिंशदर्णः सप्तत्रिंशदथापि वा // कथयंत्यतिरिक्तं तं मंत्र मंत्रविशारदाः // 430 // चत्वारिंशकमारश्य द्विषष्टियां | वदापयेत् // तावत्संख्या निगदिता मंत्राः सबीडसंज्ञकाः // 431 // पंचषष्टयक्षरा ये स्युमंत्रास्ते शांतमानसाः // एको| नशतपर्यंत पंचषष्टयक्षरादितः // 432 // ये मंत्रास्ते निगदिता स्थानभष्टाह्वया बुधैः // त्रयोदशाक्षरा ये स्युमंत्राः For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म. पञ्चदशाक्षराः // 433 // विकलास्तेभिधीयते शतं सार्धशतं तथा // शतद्वयं विनवतिरेकहीनाथ वापि सा // 434 // शतत्रयं खं० 1.1 // 16 // // वा यत्संख्या निःस्नेहास्ते समीरिताः॥ चतुःशतान्यथारस्य यावर्णसहस्रकम् // 435 // अतिवृद्धाः स योगेष पारत्याज्याः सदा बुधैः॥ तर.१ सहस्राधिका मंत्रा दंडका पीडिताह्वयाः॥ 436 / / द्विसहस्राक्षरा मंत्राः खंडशः शतधा कृताः / ज्ञातव्या स्तोत्ररूपास्ते मंत्रा एते यथा स्थिताः // 437 // तथा विद्याश्च बोद्धव्या मंत्रिभिः काम्यकर्मसु // दोषानिमानविज्ञाय यो मंत्रान्भजते जडः॥४३८॥ सिच्छिन / जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।।इत्यादिदोषदुष्टांस्तान्मत्रानात्मनि योजयेत् ॥शोधयेद्रुद्धपवनो बद्धया योनिमुद्रया // 439 // अथ च्छिन्न त्यादिकदोषनिवारणार्थं दश संस्काराः ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रश्चरणसंपन्नो मंत्रो हि फलदायकः॥ किं होमैः किं जपैश्चैव किं मंत्रन्यास विस्तरैः // 440 // छिन्नत्वादिकदोषा ये पंचाशन्मंत्रसंस्थिताः // तैर्दोषैः सकला व्याप्ता मनवः सप्तकोटयः॥ 441 // अतस्तद्दो पांत्यर्थं संस्कारदशकं चरेत् // जननं जीवनं पश्चात्ताडनं बोधकं तथा // 442 / / अथाभिषेको विमलीकरणाप्यायने पुनः // तर्पण दीपनं गुप्तिर्दशैता मंत्रसंस्क्रियाः // 443 / / ( अथ जननसंस्कारः) भूर्जपत्र लिखेत्सम्यक् त्रिकोणं रोचनादिभिः // वारुणं कोणमा त्य सप्तधा विभजेत समम् ॥४४४॥एवमीशानिकोणान्यां जायते तत्र योनयः // नववेदमितास्तत्र विलिखेन्मातृकां कमात् / 445 // अकारादिहकारांतामाशादिवरुणावधिः // देवीं तत्र समावाह्य पूजयेच्चंदनादिभिः॥ततः समुद्धरेन्मत्रं जननं तदुदीरितम् ॥४४६॥(अथ / द्वितीयो दीपनसंस्कारः)पजो हंसपुटस्यास्य सहस्रं दीपनं स्मृतम्॥४४७॥(अथ तृतीयो बोधनसंस्कारः)।नभोवह्नींदुयुक्तादिसंपुटस्य जपो l मनोः॥सहस्रपंचकमितो बोधनं तत् स्मृतं बुधैः॥४४८॥ (चतुर्थ ताडनमाह) सहस्रं प्रजपेदत्र पुटितं ताडनं हि तत्॥(पंचमम् अभिषेकमाह) For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir वाग्धंसतारैर्जन सहस्रं पयसा मनुम् // अभिषिंचते बागायैरभिषेकोयमीरितः // 449 // षष्ठं विमलीकरणमाह // हरिवह्नयन्वितस्ता रो बपडतो ध्रुवादिकः // सहस्रं तत्पुटो जप्यो विमलीकरणे मनुः // 450 // (सप्तमं जीवनमाह ) स्वधावपट्पुटं जप्यात्सहस्र जीवने मनुम् // ( अटमंतपर्णमाह ) क्षीराज्ययुक्तपाथोभिस्तपणे तर्पयेन्मनुम् // 451 // (नवमं गोपनमाह ) जपेन्मायापुटं मंत्रं सहस्रं गोपनं / हितम् // (दशममाप्यायनमाह ) बाला तातीयबीजेन गगनाद्येन संपुटम् // सहस्रं प्रजपेन्मंत्रमेतदाप्यायनं मतम् // 452 // संस्कारदशकं प्रोक्तं मनूनां दोषनाशकम् // 453 // ( अथ शारदातिलकोक्ता दश संस्काराः) कर्मण्यतिजडा मंत्रा मंत्रिणां योजिता अपि // तस्मात्तद्दोपनाशाय कर्तव्याः संस्क्रिया दश // 454 // मंत्राणां दश संस्काराः कथ्यन्ते सिद्धिदायिनः // जननं जीवनं d पश्चात्नाडनं बोधनं तथा // 455 // अथाभिषेको विमलीकरणाप्यायनेपुनः // तर्पणं दीपनं गुप्तिश्चैताः स्युर्मत्रसंस्क्रियाः॥४५६॥ (जननमाह ) मंत्राणां मातृकामध्यादुद्धारो जननं स्मृतम् // 457 // (जीवनमाह ) प्रणवांतरितान्कत्वा मंत्रवर्णाजपेत्सुधीः // all तज्जीवनमित्याहुमैत्रतंत्रविशारदाः // 458 // (ताडनमाह ) मंत्रवर्णान्समालिख्य ताडयेच्चन्दनाम्भसा / / प्रत्येकं वायुना मंत्री ताडनं थे तदुदाहृतम् // 459 // ( बोधनमाह ) विलिख्य मंत्र तं मंत्री प्रसूनैः करवीरजैः // तन्मंत्राक्षरसंख्यातैर्हन्याद्रेफेन बोधनम् // 460 // Jail(अभिषेकमाह ) स्वतन्त्रोक्तविधानेन मंत्री मंत्रार्णसंख्यया // अश्वत्थपल्लवैर्मत्रमभिषिचेद्विशुद्धये // 461 // (विमलीकरणमाह ) सचिंत्य मनसा मंत्र ज्योतिर्मत्रेण निदेहेत् // मंत्रे मलत्रयं मंत्री विमलीकरणं त्विदम् // 462 // (आप्यायनमाह) तारं व्योमाग्नि अनुयुग्दंडी ज्योतिर्मनुर्मतः // कुशोदकेन जप्तेन प्रत्यर्णप्रोक्षणं मनोः // तेन मंत्रण विधिवदेतदाप्यायनं मतम् // 463 // (तर्पणमाह ) For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra warw.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मंत्रेण वारिणा सिंचन्मंत्रेण तर्पणं स्मृतम् // 464 // (दीपनगोपनमाह) परमापरमायोगो गोपनदीपनमुच्यते // जप्यमानस्य मंत्रस्य गोपनं त्वप्रकाशनम् // 465 // संस्कारा दश तेप्रोक्ताः सर्वतंत्रेषु गोपिताः॥ यान् कृत्वा संप्रदायेन मंत्री वांछितमश्नुते // 466 // तरं०१ तांबूले भूर्जपत्रे वा लिखित्वा च कर्तव्याः // ( अथ शंकरोक्ताः सप्त उपायाः) भामणं बोधनं वश्यं पीडनं पोषशोषणे // दहनांतं क्रमात कुर्यात्ततः सिद्धो भवेद्धवम् // 467 // त्रामणं वायुबजिन प्रथम क्रमयोगतः॥ तन्मत्रं यंत्रमालिख्य सिक्तकर्पूरचन्दनैः // 468 // उशीरचन्दनाभ्यां तु यंत्रं संपुटमालिखेत् // पूजनाजपनाद्धोमाद्धामितः सिद्धिदो भवेत् // 469 // नामितो यदि नो सिद्धो बोधनं तस्य कारयेत् // सारस्वतेन बीजेन संपुटीकत्य संजपेत् // 470 // एवं रुद्धो भवेत्सिद्धो न चेदेतद्वशी कुरु // अलक्तं चन्दन कुष्ठं हारिद्रा मादनं शिला // 471 // एतस्तु यंत्रमालिख्य भूर्जपत्रे सुशोभने // धृत्वा कंठे भवेत सिद्धः पीडनं तस्य कारयेत् // 472 // अधरोनरयोगेन पदानि परिजाप्य वै // ध्यायेच देवतां तद्वदधरोत्तररूपिणीम् // 473 // विद्यामांदित्यदुग्धेन लिखित्वाक्रम्य चांघिणा // तथाभूतेन मंत्रेण होमः कार्यों दिनेदिने // 474 // पीडितो लज्जयाविष्टः सिद्धिः स्यादथ पोषयेत् // बालायां त्रितयं बीजमाद्यते तस्य योजयेत् // 475 // गोक्षीरमधुनालिख्य विद्यां पाणौ विधारयेत् // पोषितोयं भवेत् सिद्धो न चेत्कुर्वीत शोषणम् // 476 // दात्यां च वायबीजाभ्यां मंत्रं कुर्याद्विदर्भितम् // एषा विद्या गले धार्या लिखित्वा वरभस्मना // 477 // शोभितो न च / सिद्धयेच्च दहनीयोनिचीजतः // आग्नेयेन तु बीजेन मंत्रस्यैकैकमक्षरम् // 478 // आयंतमध ऊर्द्धं च योजयेद्दाहकर्मणि|ब्रह्मवृक्षस्या 1 सारस्वतबीजम् ऐं / 2 आदित्योऽर्कः / 3 ह्रीं / 4 ऐं क्लीं सौः / 1 // 17 // For Private And Personal use only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org तैलेन मंत्रमालिख्य धारयन् // 479 // कंठदेशे ततो मंत्रसिद्धिः स्याच्छंकरोदिता // इत्येतत्कथितं सम्यक् केवलं तव भक्तितः // एकेनैव कृतार्थः स्यादहुभिः किमु सुव्रते // 480 // अथोत्कीलनविधिः ( मंत्रमहोदधौ) शिवेन कीलिता विद्या तत्कीलनमुच्यते॥ * मायातारपुटां मंत्री जप्यादष्टोत्तरं शतम् // 481 // मंत्रस्यादौ तथैवांते भवेत्सिद्धिप्रदा तु सा // एष नूनं विधिोंप्यः सिद्धिकामेन मंत्रि जा // 482 (तंत्रातरे ) भूर्जपत्रेष्टगंधेन अष्टोत्तरशतं मूलं विलिख्य पंचोपचारैः संपूज्य ब्राह्मणान् भोजयेत् // ततस्ताम्रपात्रे जलमा / पूर्य प्रत्येकं क्षिपेत् / / अथवा नद्यादौ क्षिपेत् उत्कीलनं भवति // 483 // (अन्यत् ) // मृत्तिकया नराकारामिष्टदेवप्रतिमां कृत्वा | 4 प्राणान्संस्थाप्य ततो भूर्जपत्रेष्टगंधेन मंत्रं विलिख्य प्रतिमा हृदये संस्थाप्य मासांतरे पंचोपचारैः संपूजयेत् / अष्टोत्तरशतं मूलं च जपेत् / - मासांत गुरोराज्ञया नद्यादौ प्रवाहयेत् // ब्राह्मणांश्च भोजयेत् तदा उत्कीलनं भवति // 484 // अथ पुरश्चरणनिर्णयः॥ (मंत्रसिद्धभाण्डागारे ) फलिप्यतीति विश्वासः सिद्धेः प्रथमलक्षणम् // द्वितीयं श्रद्धया युक्तं तृतीयं गुरुपूजनम् // 485 // चतुर्थ समताभावं पञ्चमेन्द्रियनिग्रहम् // षष्ठं च प्रतिमाहारं सप्तमं नैव विद्यते // 486 // (मंत्रमहोदधौ ) निश्चयोत्साहधैर्याच्च तत्त्वज्ञानस्य दर्श नात् / / अल्पाशी त्यक्तसङ्गश्च षड्भिर्मत्रः प्रसिध्यति // 487 // (कुलप्रकाशतंत्रे ) उपदेशस्य सामर्थ्याच्छ्रीगुरोश्च प्रसादतः // मंत्रप्रभावाद्भक्त्या च मंत्रसिद्धिः प्रजायते // 488 // (शिवेपि ) मनःसंहारणं शौचं मौनं मंत्रार्थचिंतनम् // अव्यग्रत्वमनिवेदो जप सिद्धेस्तु हेतवः॥४८९॥ (ग्रंथांतरे) अभ्यासात्सिद्धिमामोति भोगयुक्तोपि मानवः॥ सकलः साधितार्थोपि सिद्धो भवति भूतले॥४९०॥ 1 गोरोचनम, कर्पूरम, गजमदः, मृगमदः, अगरम्, केसरम, चन्दनद्रयं च इत्यष्टगंधः / For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म. // 18 // खं०१०१ तर, अशचिर्वा शुचिर्वापि गच्छंस्तिष्ठन् स्वपन्नपि ।मत्रैकशरणो विद्वान् मनसैवं समायसेत् / न दोषो मानसे जापे सर्वदेशेपि सर्वदा // 411 // ( मंत्रसिद्धिभांडागारे ) प्रवासी बहुभक्ती च प्रजल्पी नियमारतः॥ नीचसंगाच्च लौल्याच्च पइभिमत्रो न सिध्यति // 492 // (स्त्रीभोग त्यागे महत्फलं देवीभागवते ) मैथुनश्च तदालापं तद्गोष्ठीमपि वर्जयेत् // कर्मणा मनसा बाचा सर्वावस्थासु सर्वदा // 49.3 // सर्वत्र * मैथुनत्यागं ब्रह्मचर्य प्रचक्षते / / राजश्चैव गृहस्थस्य ब्रह्मचर्यमुदाहृतम् // 494 // ऋतुस्नातेषु दारेषु संगतिस्तु विधानतः // संस्कृतायां / सवर्णायामृतुं दृष्ट्वा प्रयत्नतः॥रात्री तु गमनं कार्य ब्रह्मचर्य हरेन्न तत्॥१९५॥(शिवरहस्ये)व्यासाद्यैरपि दुर्घत्तैः कृतः स्त्रीसंग्रहो मुदा॥दुर्लभः | पुरुषाणां तु नित्यमिंद्रियनिग्रहः // 49.6 // विषय यस्तु सर्वेक्यः स्त्रीरूपविषयो महान्॥पुमांस मोहयत्येव विरक्तमपि सत्वरम्॥विषयेत्यो निवृत्तिश्चेजितं तेन न संशयः॥४९.७॥(पुरश्चरणे वणिग्दनधनं वयं शिवरहस्ये)वणिग्दनेन वित्तेन तर्नु यः पोषयिष्यति॥भुक्त्वा स नरक घोरं प्रयात्येव न संशयः // 45.8 // (योगिनीहृदये) // ईश्वर उवाच // सर्वहिंसाविनिर्मुक्तः सर्वप्राणिहिते रतः // सोऽस्मिशास्त्रेधिकारी स्यात्तदन्ये भ्रष्टसाधकाः // 499 // ( कुलार्णवे पंचमखंडे पंचदशोल्लासे )॥देव्युवाच॥ कुलेश श्रोतुमिच्छामि पुरश्चरलक्षणम्॥स्थानाहा रादिभेदेन वद मे परमेश्वर॥५००॥ईश्वर उवाच॥शृणु देवि प्रवक्ष्यामि यन्मा त्वं पारपृच्छसि // तस्य श्रवणमात्रेण मंत्रतत्त्वं प्रकाशते॥ d // 501 // जपयज्ञात्परो यज्ञो नापरोस्तीह कश्चन।तस्माजपेन धर्मार्थकाममोक्षं च साधयेत् // 502 // सर्वपादान् परित्यज्य मंत्रपा दं समाचरेत्॥आब्रह्मजीवे दोषाश्च नियमातिक्रमोद्भवाः // 503 // ज्ञानाज्ञानकताः सर्वे प्रणश्यति यथा प्रिये॥ संसारे दुःखभूयिष्ठे यदी च्छेत्सिद्धिमात्मनः / / 504 // पंचांगोपासनेनैव मंत्रजापी सुखं ब्रजेत्॥मंत्र यंत्र पंजरं च स्तोत्रं नामसहस्रकम् // 505 // पूजा त्रैका ) For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir लिकी नित्यं जपस्तपणमेव च॥होमो ब्राह्मणभुक्तिश्च पुरश्चणमुच्यते // 506 // यद्यदंगं च विहितं तत्संख्याद्विगुणं अपम् // कुर्या द्धि त्रिचतुःपंचसंख्यं वा साधकः प्रिये // 507 // कुर्वीत सांगसिद्ध्यर्थं तदशक्तेन भक्तितः // सर्वदांगविहीनस्य मंत्री नेष्टमवार मुयात् // 508 // सम्यसिद्धैकमंत्रस्य पंचांगसेवनेन च // सर्वमंत्राश्च सिध्यंति तत्प्रभावात्कुलेश्वरि // 509 // उपदेशस्य छ। * सामर्थ्यागच्छ्रीगुरोश्च प्रभावतः ॥मंत्रप्रतापाद्भक्तेश्च मंत्रसिद्धिः प्रजायते // 510 // सिद्धमंत्रं गुरोर्लब्ध्वा मंत्रोयं शीघ्रसिद्धये // / पूर्वजन्मकता यासान्मंत्रोयं शीघ्रसिद्धिदः॥५१३॥दीक्षापूर्व कुलेशानि पारंपर्यक्रमागतम्॥न्यासलब्धं तु यन्मंत्रं तच्च सिद्धं न संशयः॥ // 512 // मासमात्रं जन्मंत्रं भूतलिप्यर्णसंपुटम् // क्रमोत्क्रमात्सहस्रं तु तस्य सिद्धो भवेन्मनुः // 513 // मण्डलं ke पूजयेन्मंत्र मातृकाक्षरसंपुटम्॥अनुलोमविलोमेन मंत्रसिद्धिः प्रजायते॥५१४॥विषद्वाक्षरसंयुक्तं मातृकाक्षरसंपुटम्॥कमोत्क्रमं तु तज्जप्त्वा / मासात्सिद्धो भवेन्मनुः // 515 // मातृकाजपमात्रेण मंत्राणां कोटिकोटयः / / जागृताः स्युन संदेहो यत्तत्सर्व तदुद्भवम् // 516 // अनेन / कोटिमंत्रेण चित्तव्याकुलकारकम्॥मंत्रगुरुकृपाव्यानमेकं स्यात्सर्वसिद्धिदम्॥५१७॥यदीच्छया श्रुतं मंत्रच्छद्मनापिच्छलेन वा॥यत्र स्थि तं च वाग्ध्वस्तं तज्जपेन ह्यनर्थकत् / / 518 // पुस्तके लिखितान्मंत्रानालोक्य प्रजपन्ति ये॥ब्रह्महत्यासमं तेषां पातकं परिकीर्तितम् // H॥५१९॥स्नानासनप्राणायामन्यासमालाजपक्षणम्॥मनसा यः स्मरेत्स्तोत्रं वचसा वा मनुं पठेत् // 520 // उभयोनिष्फलं देवि भिन्नभां डोदकं यथा॥शाणोल्लीढानि शस्त्राणि यथा स्युनिशितानि वै // 521 // मंत्राश्च मूर्तिमायांति संस्कारैर्दशभिस्तथा।।तेषां हविष्यं शाका दि हविष्याणि फलं पयः // 522 // मूलं सक्तुर्यवान्नं च ह्यष्टान्येतानि मंत्रिणाम् // यथान्नपानपूगस्य कुरुते धर्मसंचयम् // 523 // For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir भै० म० अन्नदातुः फलस्याई कर्तुश्चाई न संशयः // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन परान्नं वर्जयेत्सुधीः // 524 // पुरश्चरणकर्तुश्च करो दग्धः प्रतिग्रहैः // 01 051 // 19 // मनो दग्धं परस्त्रीभिः कार्यसिद्धिः कथं भवेत् ॥५२५॥मनोन्यत्र शिवोन्यत्र शक्तिरन्यत्र मारुतः॥ न सिध्यति वरारोहे लक्षकोटिजपाद तरं. 1 पि // 526 // वादार्थ पठ्यते विद्या परार्थः क्रियते जपः // ख्यत्यर्थ दीयते दानं कथं सिद्धिर्वरानने // 527 // धनार्थ गम्यते तीर्थे / पदभार्थ क्रियते तमः // काम्यार्थ देवतायात्रा कथं सिद्धिर्वरानने // 528 // अनित्येन तु देहेन न्यासं देवार्चनं जपम् // होमं कुर्व / / ति ये मुढा सर्व भवति निष्फलम् // 529 // तपोर्चनादिकं सर्वमपवित्रं भवेत् प्रिये॥मलिनांगपरा केशा मुखं दुर्गधसंयुतम् // यो जपेत् / तदा हन्याद्देवता सुजुगुप्सितम् // 530 // (मंत्रमहोदधौ ) भूशय्यां ब्रह्मचर्य च त्रिकालं देवतार्चनम्॥नैमित्तिकार्चनं देवस्तुति वि श्वासमाश्रयेत् // 533 // प्रत्यहंप्रत्यहं तावन्नैव न्यूनाधिक कचित॥एवं जां समप्यान्ते दशांशं होममाचरेत् // 532 // तत्नत्कल्पोदि थे। तैव्यैस्तदाधान दीर्यते॥प्राणायाम षडंगं च कृत्वा मूलेन मंत्रवित् // 533 // हविष्यं निशि भुंजीत त्रिःनाय्यायंगवर्जितः // व्यग्रता लस्यनिष्ठीवक्रोधं पादप्रसारणम् // 534 // अन्यभाषां त्यजेच्चैव जपकाले सदा सुधीः // स्त्रीशूद्रभाषणं निद्रां तांबूलं शयनं दिवा // प्रतिग्रहं नृत्यगीते कौटिल्यं वर्जयेत्सदा // 535 // (तंत्रांतरेपि ) लवणं पललं चैव क्षारं क्षौद्रं रसांतरम् // मापमुद्गमसूरांश्च कोइवांची कानपि // 536 // असद्भाषणमन्याय्यं वर्जयेदन्यपूजनम्॥विना अमोचितं नित्यमथ नैमित्तिकञ्चरेत् // 537 // तांबुलं गंधलेपं च / पुष्पधारणमेव च।मैथुनं तत्कथालापं तगोष्ठी परिवर्जयेत्॥५३८॥असंकल्पितकत्यश्च हानिवेदितभोजनम्॥न छिद्यान्नखरोमाणि न स्पृ। शिद्यदमंगलम् // 539 // नावस्खो जपं कुर्यारोमं दानं प्रतिग्रहम्॥सर्व तद्राक्षसं विधादहिर्जानु च यत्कृतम् // 540 // न पदा पादमा For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir क्रम्य तथैव हि पदा करौ॥न चासमाहितमना न च संश्रावयअपेत् // 541 // न च चंक्रमणैश्चैव न पार्श्व चावलोकयेत्॥न प्रवृत्तो न जल्पंश्च न प्रावृतशिरास्तथा // 542 // अथानुष्ठाने छिक्कादिदोषनिवारणविधिः ( योगिनीहृदये) पतितानामत्यजानां दर्शने भाषणे कृते॥ क्षुतेऽधोवायुगमने जुंभणे जपमुत्सृजेत् // 543 // तथाचम्य च तत्प्रातौ प्राणायामं षडंगकम्॥कत्वाचम्य जपच्छेषं यदा सूर्यादिदर्शनम्॥ थ॥ 544 // (तंत्रांतरेपि ) सकदुच्चरिते शब्दे प्रणवं समुदीरयेत् / / प्रोक्तपामरशब्देपि प्रणवं नकदुच्चरेत् / / 545 / / ( याज्ञवल्क्ये) परिव वाग्यमलोपः स्याजपादिषु कथंचन।।व्याहरेद्वैगवं मंत्र स्मरेता विष्णुमव्ययम्॥५४६॥भुते निष्ठीवने चैव दतोच्छिठे तथानृते।।पतितानां च / / संभाषे कर्णश्च दक्षिणं स्पृशेत् // 547 / / अग्निरापश्च वेदश्च सोमसूर्यानिलास्तथा।।सर्व एव हि विषस्य कर्णे तिष्ठति दक्षिणे // 548 // (मी नत्कुमारसंहितायम् ) जपकाले यदा पश्येदशुचिं मंत्रवित्तमः / / प्राणायामंतदा कुर्यात्ततः शेष समाचरेत् // 549 // यदा चैप पठे। मंत्री स्वयमप्यशुचिःपुनः / / आचम्य प्रयतो भूत्वा न्यासं पूर्ववदाचरेत् // 550 // (पुरश्चरणे सूतकनिर्णयः) विनियोगं समारण्य य थायथमथाचरेत्।।पुरश्चरणमध्ये तु मूतकं नैव विद्यते // 551 / / (सूतकनिवृत्तिः) जातसूतकमादौ स्यादते वैमृतसूतकम्।।सूतकद्वयनि मुक्तः स मंत्रः सर्वसिद्धिदः // 552 // तस्मादेवि प्रयत्नेन ध्रुवेग पुटितं ध्रुवम् // अष्टोत्तरशतं वापि सप्तवारं जपेदतः // जपांते च ततो| जत्वा चतुर्वर्गफलातये // 553 // (तत्रैव ) ब्रह्मबीजं मनौ दत्त्वा चायंते च महेश्वरि॥सतवारं जपेन्मंत्री सूतकद्वयमुक्तये // 554 // पुरश्चरणादौ गायत्रीजपावश्यकता // (मंत्रमहोदधौ ) सर्वे शाक्ता द्विजाःप्रोक्ता न शैवा न च वैष्णवाः॥ आदिदेवीमुपासते गायत्रीं वेद / मातरम्॥तस्मादादौ प्रयत्नेन गायत्री प्रयुतं जपेत् // 555 // (तंत्रांतरे ) यस्य कस्यापि मंत्रस्य पुरश्चरणमारभेत् // व्याहृतित्रयसंयु For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shiv a Aradhana Kendra mame.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म. // 20 // खं० 1.1 तर०१ कां गायत्री चायुतं जपेत्॥विना जत्वा तु गायत्रीं तत्सर्वं निष्फलं भवेत् // 556 // (शाक्तानंदतरंगिण्याम् ) हविष्येणैव भोक्तव्यं कत्वा देहविशोधनम्॥प्रातः स्नात्वाथ सावित्र्या जपेत्संचसहस्रकम् // 557 // त्रिसहस्रं सहस्रस वा जपेदष्टोत्तरं शुचिः॥ ज्ञाताज्ञातस्य पापस्य क्षयार्थं प्रथमं ततः / / 558 // वाचिकसंकल्पापेक्षया मानसिकसंकल्पो मुख्यः / / (बीजाणवतंत्रे षोडशपटले ) संकल्पो मान / सो देवि चतुर्वर्गफलप्रदः।अत एव महेशानि संकल्पो मानसः स्मृतः॥५५९॥ स्थूलो हि परमेशानि संकल्पो व्यर्थ उच्यते॥ संकल्पेन विना देवि यत्किचित्कुरुते सुधीः // व्यर्थमेव हि देवेशि तत्सर्व मानसेन च // 560 // ( देवतापञ्चाङ्गनिर्णयः पुरश्चरणचन्द्रिकायाम् ) पटलं पद्धतिवर्म तथा नामसहस्रकम्॥स्तोत्राणि चेति पंचांग देवताराधने स्मृतम्॥५६॥ कवचं देवतागात्रं पटलं देवताशिरः / / पद्धति लदेवहस्तौ तु मुखं साहस्रकं स्मृतम् // 562 ॥(पंचांगोपासनानिर्णयः देवीरहस्यतंत्रे ) जला मंत्री मंत्रराजं हुत्वा देवे दशांशतः॥ तर्प येत्तदशांशेन मार्जयेत्तदशांशतः // 563 // भोजयेतद्दशांशेन मंत्रासद्धिर्भवेद्धवम् ॥जीवहीनो यथा देहो सर्वकर्मसु न क्षमः // पुरश्चरण / / हीनोयं तथा मंत्रः प्रकीर्तितः / / 564 // ( ग्रहणस्पर्शकालनिश्चयकरणम् ) चक्षुषा दर्शनं राहोर्यत्तद्ब्रहणमुच्यते // तत्र कर्माणि कुर्वीत, गणनामात्रतो न हि // 565 // (अथ पुरश्चरणविधिः श्रीवीजाणवतंत्रे रेडशपटले देवी प्रति शिववाक्यम् ) एकदा परमेशानि / कामाख्यायां महेश्वरि॥ दृष्ट्वोपराग यत्कर्म तच्छृणुष्व वरानने // 566 // कुतः स्नानं कुतः संध्या प्रणायामः कुतः प्रिये॥ भूतशुद्धिः कुतो भद्रे ) कुतः पूजा वरानने // 567 // कालातीतभयादेवि सर्व संत्यज्य कामिनि।।संकल्पं मानसं कृत्वा जपं कृत्वा वरानने // 568 // पंचां गविधिना देवि सिद्धो भवति नान्यथा॥मंत्रविद्या महेशानि कवचं स्तव एव च // 569 // ध्यानं वा परमेशानि न्यासो वा कमलानने॥ // 20 // For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a एकोच्चारेण देवेशि भवंति दश कोटयः // 570 // असंख्यः स जयो देवि ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः॥ तत्कथं परमेशानि क्रियते जपसंख्यक म्॥ 571 // अत एव वरारोहे होमो नास्ति शुचिस्मिते।अभिषेकश्च देवेशि तथा च तर्पणादिकम् // 572 // भोजनं च महशानि नास्ति वै कमलानने॥चन्द्रसूर्यग्रहे देवि पंचांगं नास्ति कामिनि // पंचांगेन बिना देवि सिद्धो भवति नान्यथा // 573 // प्रथमे प्रहरे दे। वि चन्द्रग्रामो यदा भवेत्॥चन्द्रग्रहणकाले तु जपयज्ञादिकं चरेत् // 574 / / दिवसे च यदा भद्रे भास्करग्रहणं भवेत्॥ रात्रौ भत्कार 2 च पीत्वा च जपयज्ञादिकं चरेत् // 575 // सर्वेषु विष्णुमंत्रेषु शिवगाणपयोस्तथा।।शक्तिमंत्रो महशानि प्रशस्तः सततं जपे।। 576 // संकल्पो यस्तु देवेशि मानसे समुपस्थितः // तं संकल्प विजानीयादहणे चन्द्रमूर्ययोः // 577 / / तस्मानु चंचलापांगि संकल्पं नैव o कारयेत् // इति बीजाणवे तंत्रे शिवेनैव प्रकाशितम् // 578 // ( पुरश्चरणचन्द्रिकायाम ) ग्रहणेकस्य चेन्दो शुचिः पूर्वमुखोषितः // नशं समुद्रगामिन्यां नाभिमात्रोदके स्थितः // 579 // ग्रहणान्मोक्षपर्यंतं जपेन्मन्त्रं समाहितः // अनंतरं दशांशेन क्रमादोमादिकं चरेत // 580 // तदंते महती पूजां कुर्याद्वाह्मणतर्पणम् // ततो मंत्रप्रसिद्धयर्थ गुरु संपूज्य तोषयेत् // एवं च मंत्रसिद्धिः स्यादेवता च प्रसीदति // 581 // ( रुद्रयामले ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरण मिष्यते // अपि शुद्धोदकैः स्नात्वा श्चौ देशे समाहितः // 582 // ग्रहणान्मुक्ति पर्यंतं जपेन्मंत्रमनन्यधीः // इति कृत्वा न संदेहो जपस्य फलभाग्भवेत्॥५८३॥( तंत्रांतरेपि ) यस्तु श्रद्धानुरोधेन ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः॥ न करोति पुरश्चर्या नरके स विपच्यते // 584 // अथ सूर्योदयमारण्य द्वितीयसूर्योदयपर्यंत पुरश्चरणं (देवीरहस्ये ) अथ वान्यप्रकोरण पुरश्चरणमिप्यते // सूर्योदयात्ममाराय याव For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matavian Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं० म. // 21 // सूर्योदयांतरम्॥तावज्जप्त्वा निरातको मंत्रः कल्पद्रमो भवेत् // 585 // कृष्णाष्टमीमारण्य कृष्णाष्टमीपर्यंतमेकमासपुरश्चरणं ( मुंडमाला / खं०१ प्र०१ याम् ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिष्यते॥कृष्णाष्टमी समाराय यावत् कृष्णाष्टमी भवेत॥सहस्रसंख्याजते तु पुरश्चरणमिष्यते // 586 // |तरं०१ कृष्णचतुर्दशीमारस्य शुल्कनवमीपर्यंतमेकादशदिनपुरश्चरणम् // ( मुंडमालायाम् ) कृष्णां चतुर्दशी प्राप्य नवम्यन्तं महोत्सवे // अष्टमी नवमीरात्रौ पूजां कुर्याद्विशेषतः // 587 // दशम्यां पारणं कुर्यान्मत्स्यमांसादिभिर्युतम् // षट्सहस्रं जपेन्नित्यं भक्तिभावपरायणः॥ ॥५८८॥अष्टमीमारण्य चतुर्दशीपर्यंत सप्तदिनपुरश्चरणम्॥(कालीतंत्रे) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिष्यते // अष्टम्याञ्च चतुर्दश्यां पक्ष योरुभयोरपि // 589 // सूर्योदयात्समारण्य यावत्सूर्योदयांतरम् ॥तावजप्त्वा निरातकं सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् // 590 // भौमशनिवा रपुरश्चरणं ( कालीतंत्रे ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिष्यते // कुजे वा शनिवारे वा नरमुंडं समाहृतम् // 591 // पंचगव्येन मिलितं चंदनायविशेषतः // निक्षिप्य भूमौ हस्तार्द्धमानतः काननांतरे // 592 // तत्र तदिवसे रात्रौ सहस्रं / यदि साधकः // एकाकी प्रजपेन्मत्रं स भवेत्कल्पपादपः // 593 // कार्तिकफाल्गुनवैशाखेषु शुक्लपक्षे प्रतिपदामारण्यै कादश्यतमेकादशदिने वैष्णवमंत्रपुरश्चरणविधानम् ( चन्द्रपीठे ) ऊर्जे तपसि राधे वा शुक्रपक्षे तु वैष्णवे // एकादश्यन्तमैशे / तु भूतांतः फाल्गुऽनेतुस्मृतम् // 594 // चतुर्दशीमारण्य चतुर्दशीपर्यंतं पंचदशदिनानि माहेश्वरपुरश्चरणविधानम् // अथ वान्य-19 प्रकारेण पुरश्चरणमिष्यते // चतुर्दशी समारत्य यावदन्या चतुर्दशी // 595 // तावज्जपेन्महेशानि पुरश्चरणमिष्यते // केवलं // 21 // जपमात्रेण मंत्राः सिद्धा भवति हि // 596 // बलिहोमादिदानेन विशेषात्पीठपूजने // योगिपीठं महापीठं कामरूपं तथापरम् // For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir तयोरेकतमं पूज्यं रुद्रदेह इवापरः // 597 // // भाद्रमार्गमाधेष नवरात्रे वा गणेशमंत्रपुरश्चरणविधानं ( चन्द्रपीठे ) अथ , वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिप्यते // भाद्रेपि विनराजत्वं माघमार्गों स्ववासरात् // 598 // अन्येष्वपि च मंत्रेषु पूर्वोक्तं नवरात्र कम् // जपो मातृकया प्रातःकालान्मध्यंदिनावधि // 599 // रात्रौ याममितः कार्यः पयोमुलफलाशिना // चतुर्थयामे कर्तन व्या मालामंत्रे दशांशतः // 600 // विशांशादा दशांशावा अन्येष्वपि हुतं मतम् // दक्षिणा च यथोक्ता च वित्तशाम्यं न कारयेत् // एवं मंत्रः प्रयोगाी भवत्येव न संशयः // 601 / आश्विने चैत्रे वा प्रतिपदामाराय महानवमीपर्यंत नवरात्रे शक्ति | पुरश्चरणविधानं (चन्द्रपीठे ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिप्यते // महालक्ष्मी समारण्य आमहानवमीश्वरीम् // कृष्णामा नवमी। चैव मधौ शक्तर्मनी स्मृते // 602 // शरत्काले चतुर्थ्यादिनवम्यंतं षड्दिनपुरश्चरणविधानम् ( तंत्रांतरे ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरण मिष्यते॥शरत्काले चतुर्थ्यादिनवम्यंत विशेषतः // 603 // भक्तितः पूजयित्वा तु रात्रौ तावत्सहस्रकम्॥जपेदेव तु विजने केवलं ति मिरालये // 604 // अष्टम्यादिनवम्यंतमुपवासपरो भवेत् // स भवेत्सर्वसिद्धीशो नात्र कार्या विचारणा // 605 // पुत्रजन्मोत्सव दिने पुरश्चरणविधानं (देवीरहस्ये ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिप्यते // पुत्रजन्मोत्सवदिने सूतिकाकुलमंदिरे // 606 // मांत्रिको मूलमंत्र स्वं जपेद्दशदिनावधि।।दशांशसंस्कृतं मंत्रं कुर्यात्सिद्धो भवेन्मनुः॥६०७॥ मृतसूतकदिने पुरश्चरणविधानम्॥( देवीरहस्ये ) अथ का वान्यप्रकारेण पुरश्चरणमिष्यते। मृतकाशौचदिवसे प्रथमे साधको जपेत् // 608 // मनुं दशदिनं रात्रौ धारो भूत्वा यथार्थतः // एका दशाहानि सुधीः कुर्यान्मंत्रं सुसंस्कृतम्॥कर्मणा मनसा वाचा मंत्रः कल्पद्रुमो भवेत् // 609 // (अथ मंत्रसिद्धिचिह्नानि वक्रतुडकल्पे) For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० व चिनप्रसादो मनसश्च तुष्टिरल्याशिता स्वमपराङ्मुखत्वम॥ स्वने प्रपापक्वफलं भवन्ति सिद्धस्य चिह्नानि भवंति मद्यः // 610 // ( भैरवीत खं० १प्र०१ // 22 // hea ) ज्योतिः पश्यति सर्वत्र शरीरं वा प्रकाशयुक्॥निजं शरीरमथ वा देवतामयमेव हि // 611 // (नारदपंचरात्रे) नानाश्चर्यादिहृदय तरं० 1 मंत्रसिद्धिमयानि वै ॥अन्यानंदप्रदान्याशु प्रत्यक्षेण बहिस्तथा / / 612 // जडधीस्तु क्षणं विपक्षणमस्ति प्रहर्षितः॥क्षणं दुभिनि? शृणोत्यस्यांतरिक्षतः // 613 // अणं च मधुरं वाद्यं नानातिसमन्वितम् // आजिवति क्षणं गंधान कर्पूरमृगनाभिजान् // 614 // उत्पतंतं क्षणं वापि पश्यत्यात्मानमात्मनि॥ चन्द्रार्ककिरणाकीर्ण क्षणमालोकयेन्नभः // 15 // गजगोपनादांश्च शृणुयाच क्षणं द्विज॥ निर्भरांबुदसंक्षोभं अणमाकंपयन्त्यपि॥६१६॥ तारकाणि विचित्राणि योगिनो नभसि स्थितान्॥पश्यंति दाहयंतं च क्षणं मंत्रवती सदा॥ // 617 // क्षणं किलिकिलारावं हंसबहिवं तथा॥क्षणमेघोदयं पश्येत्क्षणं रात्रि दिने सति // 618 // रात्री दिवसवल्लोकं संपूर्य क्षण * मीक्षते॥बलेन परिपूर्णश्च तेजसा भास्करोपमः // 619 // पूर्णदुसदृशः कात्या गमने विहगोपमः॥ समेन युक्तः प्रौढेन गांभीर्यण मुखेन / च॥ 620 // स्वल्पासनेनासंवृत्तो बहुनापि न बध्यते // विण मूत्रयोरनल्पत्वं भवेनंद्राजयस्तथा // 621 // जपध्यानगतो मंत्री न Ko खेदमधिगच्छति // 622 // विना भोजनपानाच्यां पक्षमासादिकं मुने॥इत्येवमादिभिाश्चद्वैर्महाविस्मयकारिभिः // 623 // एवमादीनि / चिह्नानि यदा पश्यति मंत्रवित॥सिद्धि मंत्रस्य जानीयाद्देवतायाः प्रसन्नताम्॥ततो जपेऽधिकं यत्नं प्रकुर्याज्ज्ञानलब्धये // 624 // (तंत्रां तरे ) मंत्राराधनशक्तस्य प्रथमं वत्सरत्रयम् // जायंते बह्यो विघा नियतं तस्य नारद // 625 // नोवेगः साधके यावत् कर्मणा मनसा / / al यदि // तृतीयवत्सरादूर्ध्व स्वयं सिध्यति मंत्रराट् // 626 // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखंडे निर्णयप्रकरणे प्रथमस्तरंगः // 1 // // 22 // For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www. bath.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir ॥श्रीगणेशाय नमः // अथ मुद्राप्रकारः / / अथ मुद्राः प्रवक्ष्यामि सर्वतंत्रेषु गोपिताः॥ याभिविरचिताभिश्च मोदंते मंत्रदेवताः // 3 // / अर्चने जपकाले च ध्याने काम्ये च कर्मणि // नाने चावाहने शंखे प्रतिष्ठायां च रक्षेग // 2 // नैवेद्ये च तथान्यत्र तत्तत्कल्पप्रकाशिते / स्थाने मुद्राः प्रद्रष्टव्याः स्वस्वलक्षणलक्षिताः // 3 // आवाहनादिका मुद्रा नव सा सारणी मता / / तथा षडंगमुद्राश्च सर्वमंत्रेषु योजयेत्।। // 4 // एकोनविंशतिर्मुद्रा विष्णोरुक्ता मनीषिभिः // शंखचक्रगदापद्मवेणुश्रीवत्सकौस्तुभाः // 5 // बनमाला तथा ज्ञान मुद्रा बिल्वाह्वया तथा // गरुडाख्या परा विष्णोर्मुद्रा संतोपवादिनी // 6 // नारसिंही च वाराही हयग्रीवी धनुस्तथा // बागमुद्रा / ततः पर्युर्जगन्मोहिनिका च सा // 7 // काममुद्रा परा ख्याता शिवस्य दश मुद्रिकाः। लिंगयोनित्रिशूलाख्या मालेटाभिगात्मिका॥ // 8 // खटांगा च कपालाख्या डमरुः शिवतोषिका // सूर्यस्यैकैव पद्माख्या सतमुद्रा गगेशितुः // 9 // दंतपाशांकुशाविन्नपशुलड्डु * कसंज्ञकाः॥बीजपूराह्वया मुद्रा विज्ञेयाविनपूजने // 10 // पाशांकुशवराभीतिखड्गचर्मधनुःशराः // मौशलीमुद्रिका दौी मुद्रा / शक्तेः प्रियंकराः // 11 // लक्ष्मीमुद्रार्चने लक्ष्म्या वाग्वादिन्यास्तु पूजने // अक्षमाला तथा बीणा व्याख्या पुस्तकमुद्रिका // 12 // सप्तजिह्वाह्वया मुद्रा विज्ञेया वह्निपूजने // मत्स्यमुद्रा च कुर्माख्या लेलिहा मुंडसानेका // 13 // महायोनिरिति ख्याता सर्वसिद्धि / समृद्धिदा // शक्त्यर्चने महायोनिः श्यामादौ मुंडमुद्रिका // 14 // मत्स्यकूर्मलेलिहाख्या सर्वसाधारणी मता // दश मुद्राश्च विज्ञेया / त्रिपुरायाः प्रपूजने // 15 // संक्षोभद्राविणाकर्षवश्योन्मादमहांकुशाः॥ खेचरी बीजयोन्याख्या त्रिखंडा परिकीर्तिता // 16 // कुंज मुद्राभिषेके स्यात्पन्नमुद्रासने तथा // कालकर्णी प्रयोक्तव्या विनाशमकर्मणि // 17 // गालिनी च प्रयोक्तव्या जलशोधनकर्मणि // For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // तरं०२ श्रीगोपालार्चने वेणुनृहरे रसिंहिका // 18 // वराहस्य च पूजाया वराहाख्यां प्रदर्शयेत् // रामार्चने धनुर्बाणमुद्रे पशुस्तथार्चने // पृ० खं०१ // 19 // परशुरामस्य विज्ञेया तथा परशुमुद्रिका // वासुदेवाह्वया ध्याने कुंतमुद्रा तु रक्षणे // 20 // सर्वत्र प्रार्थने चैव प्रार्थनाख्या नि०प्र०१ नियोजयेत् // उद्देशानुक्रमादामामुच्यते लक्षणन्तथा // 21 // अथावाहनादिनवमुद्रालक्षणम् // हस्तान्यामंजलिं बद्धवानामिका मूलपर्वभिः // अंगुष्ठौ निःक्षिपेत्सेयं मुद्रा त्वावाहिनी मता // इत्यावाहनीमुद्राः // 3 // अधोमुखी त्वियं चेत्स्यात्स्थापनी मुद्रिका स्मृता // इति स्थापनीमुद्राः // 2 // उच्छ्रितांगुष्ठमुष्टयोस्तु संयोगात्सन्निधापनी॥इति संनिधापनी मुद्रा॥३॥अंतःप्रवेशितांगुष्ठा सैव संशोधनी मता // इति संशोधनी मुद्रा // 4 // उत्तानमुष्टियुगला सन्मुखीकरणी मता // इति संमुखीकरणमुद्रा // 5 // देवतांगे षडंगानां न्यासः स्यात् शकलीकतिः // इति शकलीकरणमुद्रा // 6 // सव्यहस्तकता मुष्टिदीर्घाधोमुखसर्जनी // अव / गुंठनमुद्रेयमभितो चामिता मता // इत्यवगुंठनी मुद्रा // 7 // अन्योन्याभिमुखा श्लिष्टा कनिष्ठानामिका पुनः // तथैव तर्जनी मध्या धनुमुद्रा समीरिता // अमृतीकरणं कुर्यात्तया साधक सत्तमः // इत्यमृतीकरणे धेनुमुद्रा // 8 // अन्योन्यग्रथितांगुष्ठा प्रसारितकरांगु ली // महामुद्रेयमुदिता परमीकरणे बुधैः // इति परमीकरणे महामुद्रा // प्रयोजयेदिमा मुद्रा देवताह्वानकर्मणि // 9 // इत्यावाह / नादयो नव मुद्राः॥अथ षडंगन्यासोपयोगिषड्मुद्रालक्षणम् // अंगन्यासस्य या मुद्रास्तासां लक्षणमुच्यते॥ ऋजवो हस्तशाखाश्च हृदये च // 23 // शिरस्यथ // तर्जनीमध्यमांगुष्ठमधोमुष्टिशिखां तथा // करद्वंद्वांगुलीः सर्वाः कवचे स्युः प्रमोदिकाः // नाराचमुद्रिकामध्ये तर्जनीध्वनिरी पारिता // विष्वक्सेने स्मृता मुद्रा नेत्रयोर्मध्यतर्जनी / / नेत्रत्रयं यत्र भवेदनामा मध्यतर्जनी // इति षडंगमुद्रा // अथैकोनविंशति For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir विष्णुमुद्रालक्षणम् // वैष्णवीनां तु मुद्राणां कथ्यते लक्षणान्यथ // वामांगुष्ठं तु संगृह्य दक्षिणेन तु मुष्टिना // कृत्वोत्तानां ततो मुष्टिमंगुष्ठं तु प्रसारयेत् // वामांगुल्यस्तथाश्लिष्टाः संयुक्ताः स्युः प्रसारिताः // दक्षिणांगुष्ठसंस्पृष्टा मुद्रपा शंखमुद्रिका // इति शंखमुद्रा / // // हस्तौ च संमुखौ कृत्वा सुभुग्नौ सुप्रसारितौ // कनिष्ठांगुष्ठको लगौ मुद्रषा चकसंज्ञिका // इति चक्रमुद्रा // 2 // अन्योन्याभिमुखौ हस्तौ कत्वा तु यथितांगुलीः॥ अंगुष्ठमध्यमे भूयः संलग्न संप्रसारिते // गदामुद्रेयमुदिता विष्णोः संतोषवर्धिनी // इति गदामुद्रा // 3 // हस्तौ तु संमुखौ कृत्वा संहतप्रोन्नतांगुलीः // तलांतमिलितांगुष्टौ कृत्वैषा पद्ममुद्रिका // इति पद्ममुद्रा // 4 // ओष्टे वामकरांगुष्ठे लग्नस्तस्य कनिष्ठके / दक्षिणांगुष्ठसंसर्गात्तत्कनिष्ठा प्रसारिता // तर्जनीमध्यमानामाः किंचित्संकोच्य चालिताः // वेणमुद्रा भवेदेषा सुगुप्ता प्रेयसी हरेः // इति वेणुमुद्रा // 5 // अन्योन्यस्पृष्टकरयोर्मध्यमानामिकांगुलीः // अंगुष्ठेन तु बनीयात्कनिष्ठामूलसं स्थिते // तर्जन्यौ कारयेदेषा मुद्दा श्रीवत्ससंज्ञिका // इति श्रीवत्समुद्रा // 6 // अनामां पृष्ठसंलमां दक्षिणस्य कनिष्ठिकाम् // कनिष्ठ यान्ययाबध्य तर्जन्या दक्षया त-पा॥वामानामां च बनीयाद्दक्षिणांगुष्ठमूलकै // अंगुष्ठमध्यमे बामे संयोज्य सरलाः पराः॥ चतस्रोप्य संलना मुद्रा कौस्तुभसंज्ञिका // इति कौस्तुभमुद्रा॥७॥ स्पृशेत्कंठादिपादांतं तर्जन्यांगुष्ठया तथा॥करद्वयेन मालावन्मुद्रेयं वनमालिका॥ इति बनमाला मुद्रा // 8 // तर्जन्यंगुष्टको सक्तावग्रतो हृदि विन्यसेत् // वामहस्तांबुजं वामे जानुमूर्द्धनि विन्यसेत् // ज्ञानमुद्रा भवेदेषा रामचंद्रस्य प्रेयसी // इति ज्ञानमुद्रा // 9 // अंगुष्ठं वाममुद्घाटितमितरकरांगुष्ठकेनाथ बद्धा तस्यायं पीडयित्वांगुलिभिरपि च ता वामहस्तां गुलीभिः // बद्धा गाढं हृदि स्थापयतु विमलधीाहरन्मारबीजं बिल्वाख्या मुद्रिकैषा स्फुटमिह कथिता गोपनीया विधिज्ञैः // इति For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म० से बिल्याख्यमुद्रा // 10 // हस्तौ तु विमुखौ कृत्वा ग्रंथयित्वा कनिष्ठिक।मिथस्तजनके श्लिष्टे श्लिष्टावंगष्ठको तथा // मध्यमानामिका द्वेशपू०खं. 1 // 24 // तु द्वौ पक्षाविव चालयेत् // एषा गरुडमुद्राख्या विष्णोः संतोषवर्धिनी // इति गरुडमुद्रा // 11 // जानुमध्ये करौ दत्त्वा चिबुकोष्ठी समावृतौ // हस्तौ च भूमिसंलगी कंपमानः पुनःपुनः॥मुखं च विवृतं कुाल्लेलिहानां च जिबिकाम् // नारसिंही भवेदेषा मुद्रा तत्पीतिव छ। Nर्दिनी // इति नारसिंही मुद्रा ॥१२॥अंगुष्ठाभ्यां तु करयोरथाक्रम्य कनिष्ठिके // अधोमुखीभिः सर्वाभिः मुद्रेयं नृहरेर्मता॥इति द्वितीया नहरिमुद्रा // 13 // दक्षोपरि करं वामं कृत्वोत्तानमधः सुधीः // नामयेदिति संप्रोक्ता मुद्रा वाराहसंज्ञिका // इति वाराहमुद्रा॥ 13 // दक्षहस्तं चोर्द्धमुखं वामहस्तमधोमुखम् // अंगुल्ययं तु संयुक्तं मुद्रा वाराहसंज्ञिका / / इति वाराहमुद्रा द्वितीया // 13 // वामहस्ततले / / ना दक्षा अंगुलीस्ता अधोमुखीः // संरोप्य मध्यमा तासामुन्नाम्योधो विकुंचयेत् // हयग्रीवप्रिया मुद्रा तन्मूर्तेरनुकारिणी॥ इति हयग्रीवमुद्रा // 34 // वामस्य मध्यमायं तु तर्जन्यग्रेण योजयेत् // अनामिकां कनिष्ठां च तस्यांगुष्ठेन पीडयेत् // दर्शयेद्वामके स्कंधे धनुर्मुद्रेयमी रिता // इति धनुर्मुद्रा // 15 // दक्षमुष्टस्तु तर्जन्या दीर्घया बाणमुद्रिका // इति बाणमुद्रा / // 16 // तते तलं तु करयोस्तिर्यक् सं / योज्य चांगुलीम् // संहतां प्रसृतां कुन्मुिद्रेयं पशुसंज्ञिका // इति परशुमुद्रा // 17 // उर्द्धस्थांगुष्ठमुष्टी दे भुद्रा त्रैलोक्यमोहिनी // इति जगन्मोहिनी मुद्रा॥ 18 // हस्तौ तु संपुटौ कृत्वा प्रसृतांगुलिको तथा॥ तर्जन्यौ मध्यमा पृष्ठे चंगुष्ठौ मध्यमाश्रितौ॥काममुद्रेयमुदि। 1 ज्ञानार्णवे यथाहस्तगतं चापं तथाहस्तं कुरु पिये।चापमुद्रयमाख्याता वामहस्ते व्यवस्थिता // २-यथा हस्तगता बाणास्तथा हस्तं कुरु मिये / वाणमुद्रेयमाख्याता a रिपुवर्गनिकृतनी // // 24 // S For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ता सर्वदेवप्रियंकरी // इति काममुद्रा // 19 // इति विष्णमुद्राः // अथ शिवस्य दशमुद्रालक्षणम् // महादेवप्रियाणां च कथ्यते लक्ष है। णान्यथ / उच्छ्रितं दक्षिगांगुष्ठं वामांगुष्ठेन बंधयेत् // वामांगुलीदक्षिणाभिरंनुलीभिश्व बंधयेत् / लिंगभु यमाख्याता शिवसान्निध्यका रिणी // इति लिंगमद्रा // 1 // मिथः कनिष्ठिके बद्धा तर्जनीयामनामिके // अनामिकोर्द्धसंश्लिष्टे दीर्घमध्यमयोरथ // अंगुष्ठायद्वयं जन्यस्येद्योनिमुद्रेयमारिता // इति योनिमुद्रा॥२॥ अंगुष्ठेन कनिष्ठां तु बद्धा शिष्टांगुलित्रयम् // प्रसारयेत्रिशूलाख्या मुरैषा परिकीर्तिता। IPL इति त्रिशूलमद्रा॥३॥ अंगुष्टतर्जन्यग्रे तु ग्रंथयित्वांगुलित्रयम् // प्रसारयदक्षमाला मुद्रेयं परिकीर्तिता।।इत्यक्षमाला मुद्रा // 4 // अधः! स्थितो दक्षहस्तः प्रमृतो वरमुद्रिका // इति वरमुद्रा // 5 // ऊद्धींकतो वामहस्तः प्रसूतोभयमुद्रिका // इत्यभयमुद्रा // 6 // G मिलितानामिकांगष्ठं मध्यमाग्रे नियोजयेत् // शिष्टांगुल्युच्छ्रिते कुर्यान्मृगमुद्रेयमारिता // इति मृगमुद्रा // 7 // पंचांगुल्यो दक्षिणास्तु मिलिता यर्द्धमूर्द्धता // खट्वांगमुद्रा विख्याता शिवस्यातिप्रिया मता // इति खट्वांगमुद्रा // 8 // पात्रवद्वान IN महस्तं च कत्यांके वामके तथा // निधायोच्छ्रितयत्कुन्मुिद्रा कापालिकी मता // इति कपालाख्यमुद्रा // 9 // मुष्टिं च शिथिलां / बद्धा हीपत्कुंचितमध्यमाम्॥ दक्षिणान्तूर्द्धमुन्नम्य कर्णदेशे प्रचालयेत् // एषा मुद्रा डमरुका सर्वविघ्नविनाशिनी // इति डमरुमद्रा॥१०॥ * इति शिवस्य दश मुद्राः॥ अथ गणेशसप्तमुद्रालक्षणम्॥ ततो गणेशमुद्राणामुच्यते लक्षणानि तु // उत्तानोर्ध्वमुखी मध्या सरला बद्ध मुष्टिका // दंतमुद्रा समाख्याता सर्वागमविशारदैः॥ इति दंतमुद्रा // 1 // वाममुष्टेस्तु तर्जन्या दक्षमुष्टेस्तु तर्जनीम् // संयोज्यांगष्ठ कामाभ्यां तर्जन्यये समुत्क्षिपेत् // एषा पाशाह्वया मुद्रा विद्वद्भिः पारकीर्तिता॥ इति पाशमुद्रा // 2 // ऋज्वी च मध्यमां कृत्वा तर्जनी For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir तरं०२ मं० म०मध्यपर्वाणि // संयोज्याकुंचयेत्किचिन्मुद्रषांकुशसंज्ञिका // इत्यंकुशमुद्रा // 3 // तर्जनी मध्यमानामा कनिष्ठांगुष्ठमुच्छ्रिता // // 25 // अधोमुखी दीर्घरूपा मध्यमा विन्ननामिका // इति विनमुद्रा // 4 // पशुमुद्रा निगदिता प्रसिद्धा लड्डुमुद्रिका // बीजपूराह्वया मुद्रा में म०प्र० प्रसिद्धत्वादुपेक्षिता // इति पशुलड्डुकबीजपूरादिमुद्राः॥ 5 // 6 // 7 // इति गणेशसप्तमुद्राः॥ अथ शक्तिदशमुद्राः // शाक्तेयीनां च मुद्राणां कथ्यते लक्षणानि तु॥ पाशांकुशवराभीतिधनुर्बाणाः समीरिताः॥ (इति षड् मुद्राः पूर्ववत ज्ञेयाः ) कनिष्ठानामिकां बद्धा खां / | गुप्ठेनैव दक्षतः॥ मितांगुली च प्रमृते संस्पृष्टे खड्गमुद्रिका // 7 // वामहस्तं तथा तिर्यक् कृत्वा चैव प्रसार्य च // आकुंचितांगुलिं / कुर्याच्चममुद्रेयमारिता // इति चर्ममुद्रा // 8 // मुष्टिं कृत्वा तु हस्ताभ्यां वामस्योपरि दक्षिणम्॥ कुर्यान्मुसलमुद्रेयं सर्वविघ्नविनाशिनी॥ || इति मुसलमुद्रा॥९॥मुष्टिं कृत्वा कराभ्यां च वामस्योपरि दक्षिणम् // कृत्वा शिरसि संयोगाद्दुर्गामुद्रेयमीरिता॥इति दौर्गी मुद्रा // 10 // अथ लक्ष्मीमुद्रा-एका // चक्रमुद्रां तथा बद्धवा मध्यमे हे प्रसार्य च।। कनिष्ठिके तथानीय तदने मुष्टिके क्षिपेत् / लक्ष्मीमुद्रा परा ह्येषा सर्वसम्पत्यदायिनी // इति लक्ष्मीमुद्रा // 1 // अथ सरस्वत्याः पंचमुद्रालक्षणम् // वीणावादनबद्धस्तौ कृत्वा संचालयेच्छिरः॥ वीणामुद्रेयमाख्याता सरस्वत्याः प्रियंकरी // इति बीणामुद्रा ॥३॥वामुमष्टिं स्वाभिमुखी कृत्वा पुस्तकमुद्रिका // इति पुस्तकमुद्रा // 2 // है। दक्षिणांगुष्ठतर्जन्यावग्रलग्ने पराङ्मुखे // प्रसार्य संहितोनाना ह्येषा व्याख्यानमुद्रिका॥श्रीरामस्य सरस्वत्या अत्यंतप्रेयसी मता // 3 // (अक्षमालादिमुद्रिका पूर्वोक्ता ज्ञेया ) इति सरस्वतीपंचमुद्राः // अथ वह्निमुद्रा-एका // मणिबंधस्थितौ कृत्वा प्रसृतांगुलिको करौ // कनिष्ठांगुष्ठयुगले मिलितां तां प्रसारयेत् // सप्तजिह्वाख्यमुद्रेयं वैश्वानरप्रियंकरी // इति सप्तजिह्वाख्याग्निमुद्रा // 1 // अथानेकमुद्रा For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir लक्षणम् // कनिष्ठांगुष्ठको सक्ती करयोरितरेतरम् // तर्जनी मध्यमानामा संहता भुग्नवर्जिताः // मुद्रपा गालिनी प्रोक्ता शंखकस्यो / पचालिता // इति गालिनी मुद्रा // 1 // दशांगुष्ठे परांगुष्ठे क्षिप्त्वा हस्तव्येन तु // सावकाशामेकमुष्टिं कुर्यात्सा कुंभमुद्रिका // इति कुंभमुद्रा // 2 // मुष्टयोरूर्द्धकतांगुष्ठौ तर्जन्यग्रे तु विन्यसेत् // सर्वरक्षाकरी ह्येषा कुंभमुद्रेयमीरिता // इति कुंभमुद्रा द्वितीया // kam2 // प्रमृतांगुलिको हस्तौ मिथः श्लिष्टौ च संमुखौ // कुर्य्यात्स्वहृदये सेयं मुद्रा प्रार्थनसंज्ञिका // इति प्रार्थनामुद्रा // 3 // अंजल्यंजलिमुद्रा स्याद्वासुदेवाभिधा न सा // इत्यंजलिमुद्रा // 4 // अंगुष्ठावुन्नतौ कृत्वा मुष्टयोः संलमयोर्द्वयोः॥ तावेवाभिमुखौ कुन्मिदैषा कालकर्णिका // इति कालकर्णी मुद्रा // 5 // दक्षिणा निबिडा मुष्टिरनामाप्तितर्जनी // मुद्रा विस्मयसंज्ञा स्थाविस्मयावेशकारिणी // इति विस्मयमुद्रा // 6 // मुष्टिरूईकांगुष्ठा दक्षिणा नादमुद्रिका // तर्जन्यंगुष्ठसंयोगादयतो बिंदुमुद्रिका इति बिंदुमुद्रा // 7 // अधोमुखे वामहस्ते ऊर्द्ध स्याद्दक्षहस्तकम् / क्षिप्त्वांगुलीरंगुलीभिः संयथ्य परिवर्तयेत् // एषा संहारमुद्रा स्यादिसर्जनविधौ स्मृता // इति संहारमुद्रा // 8 // दक्षपाणिपृष्ठदेशे वामपाणितलं न्यसेत् // अंगुष्ठौ चालयेत्सम्यङ्मुद्रेयं / मत्स्यरूपिणी इति मत्स्यमुद्रा // 9 // वामहस्तस्य तर्जन्यां दक्षिणस्य करस्य च / वामस्य पितृतीर्थेन / , मध्यमानामिके तथा // अधोमुखैश्च तैः कुर्याइक्षिणस्य करस्य च / कूर्मपृष्ठसमं कुर्यादक्षं पाणिं च सर्वतः // कर्ममुद्रे नयमाख्याता देवताध्यानकर्मणि // इति कूर्ममुद्रा // 10 // पृष्ठे क्रोडांतरेंगुष्ठमुष्टिं कृत्वा करस्य च // मध्यमायं तु || दक्षस्य तथालंब्य प्रयत्नतः॥ मध्यमेनाथ तर्जन्यामंगुष्ठाये तु योजयेत् // दक्षिणं योजयेत्पाणिं बाममुष्टौ तु साधकः // दर्शये MIM For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं०म० // 26 // पू० खं० 1 तरं० 2 दणिक्षे भागे मुंडमुद्रेयमुच्यते // इति मुंडमुद्रा // 11 // तर्जनीमध्यमानामाः समाः कुर्यादधोमुखीः। अनामायां क्षिपेद्दामूद्ध कृत्वा कनिष्ठिकाम् / लेलिहा नाम मुद्रेयं जीवन्यासे प्रकीर्तिता // इति लेलिहा मुद्रा // 12 // तर्जन्यनामिकामध्ये कनिष्ठाक्रम योगतः / करयोर्योजयत्येव कनिष्ठामूलदेशतः // अंगुष्ठाये तु निःक्षिप्य महायोनिः प्रकीर्तिता // इति महायोनिमद्रा // 13 // परिवृत्तकरौ स्पृष्टावंगुष्ठौ कारयेत्समौ / अनामांतर्गते कृत्वा तर्जन्यौ कुटिलाकृती॥ कनिष्ठिके नियुजीत निजस्थाने महेश्वरि / त्रिखंडेयं / समाख्याता त्रिपुराध्यानकर्मणि // इति त्रिखंडमुद्रा // 14 // मध्यमा मध्यगे कृत्वा कनिष्ठंगुष्ठरोधिते / तर्जन्यौ दंडवत्कुऱ्या मध्यमोपर्यनामिके // एषा च प्रथमा मुद्रा सर्वसंक्षोभकारिणी // इति प्रथमा मुद्रा // 15 // एतस्या एव मुद्राया मध्यमे सरले तथा // क्रियेते परमेशानि सर्वविद्रावणी परा // इति सर्वविद्रावणी मुद्रा // 15 // मध्यमातर्जनीभ्यां च कनिष्ठानामिके समे / अंकुशाकार रूपान्यां मध्यमे परमेश्वार // अंगुष्ठं तु नियुंजीत कनिष्ठानामिकोपरि // इयमाकर्षणी मुद्रा त्रैलोक्याकर्षिणी मता // इत्याकर्षिणी मद्रा // 16 // पुटाकारौ करौ कत्वा तर्जन्यावंशुकारुती / परिवर्तक्रमणैव मध्यमे तदधोगते // क्रमेण देवि तेनैव कनिष्ठानामिकादयः / / संयोज्या निबिडाः सर्वा अंगुष्ठावग्रदेशतः॥ मुद्रेयं परमेशानि सर्ववश्यकरी मता // इति सर्ववश्यकरी मुद्रा // 17 // संमुखौ तु करौ कत्वा मध्यमामध्यगेंत्यजे / अनामिके तु सरले तदहिस्तर्जनीयम् // दंडाकारौ ततोंगुष्ठौ मध्यमानखदेशिकौ / मुद्रवोन्मादिनी नाना क्लेदिनी सर्वयोषिताम् // इत्युन्मादिनी मुद्रा // 18 // अस्यां त्वनामिकायुग्ममधः कृत्वांकुशारुति / तर्जन्यावपि तेनैव क्रमेण / For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir विनियोजयेत् // इत्यं महांकुशा मुद्रा सर्वकामार्थसाधनी // इति महांकुशमुद्रा // 19 // सव्यं दक्षिणदेशेषु सव्यदेशे तु दक्षिणम् / / बाहुं क वा महादेवि हस्ती सपरिवर्तयेत् // कनिष्ठानामिके देवि मुक्ते तेन क्रमेण च / तर्जनीभ्यां समाक्रांते सर्वोद्भुमपि मध्यमे // अंगुष्ठौ च महादेवि सरलावपि कारयेत् / इयं सा खेचरी मुद्रा पार्थिवस्थानयोजिता // इति खेचरी मुद्रा // 20 // परिवृत्य करौ स्पृष्टावईचन्द्रावती प्रिये / तर्जन्यंगुष्ठयुगलं युगपत्कारयेत्ततः // अधः कनिष्ठावष्टब्धे मध्यमे विनियोजयेत् / अथैव / / कुटिले योज्ये सर्वाधस्तदनामिके // बीजमुद्रेयमचिरात्सर्वसिद्धिप्रदायिनी // इति बीजमुद्रा // 21 // मध्यमे कुटिले कृत्वा / तर्जन्युपरि संस्थिते / अनामिकामध्यगते तथैव हि कनिष्ठिके // सर्वा एकत्र संयोज्य अंगुष्टपरिपीडिताः / एषा तु प्रथमा मद्रा / योनिमुद्रेति संज्ञिता // इति प्रथमा योनिमुद्रा // 22 // वामहस्तेन मुष्टिं तु बद्धा कर्णप्रदेशके / तर्जनी सरलां कृत्वा धामयेन्मनु / वित्तमः // सौभाग्यदंडिनी मुद्रा न्यासकालेपि मूचिता // इति सौभाग्यदंडिनी मुद्रा॥२३॥ अंतरंगुष्टमुष्टया तु निरुध्य तर्जनीमिमाम् // रिपुजिह्वाग्रहा मुद्दा न्यासकाले तु सूचिता // इति रिपुजिह्वाग्रहा मुद्रा // 24 // बद्धा तु योनिमुद्रां वै मध्यमे कुटिले कुरु // / अंगुष्ठेन तदने तु मुद्रयं भूतिनी मता // इति भूतिनी मुद्रा // 25 // वाममुष्टिं विधायाथ तर्जनीमध्यमे ततः // प्रसार्य तर्जनीमुद्रा निर्दिष्टा वज्रपाणिना // इति तर्जनी मुद्रा // 26 // मुष्टिं कृत्वा कनिष्ठाइयं वेष्ठयेत् तर्जनी प्रसार्याकंचयेत // इति क्रोधमुद्रा॥२७॥ व इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे मुद्राप्रकरणे द्वितीयस्तरंगः // 2 // For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म पू० खं०१ भ० म०प्र० तरं०३ ममममम्मा पम्पनजाबसम्प.. मनमनमनमान मममममत श्रीगणेशाय नमः // अथ भद्रमंडलप्रकरणम् // तत्रादी एकोनविंशतिरेखात्मकं सर्वतो- एकानविशतिरेखात्मकंसर्वतोभद्रमंडलं।। भद्रमण्डलम् // (व्रतराजे हेमादौ स्कांदे ) प्रागुदीच्यां गतारेखाः कुर्यादेकोनविंशतीः / / खंडेन्दुस्विपदः कोणे शृंखला पंचभिः पदैः // 1 // एकादशपदा वल्ली भद्रं तु नवभिः पदैः॥ चतुर्विशत्पदा वापी विंशत्या परिधिः पदैः // 2 // मध्ये पोडशभिः कोठैः पद्म MS मष्टदलं स्मृतम् // श्वेतंदुःशृंखला कृष्णा वल्लीं नीलेन पूरयेत् // 3 // भद्रारुणा सिता वापी परिधिः पीतवर्णिका // बाह्यांतरदले श्वेता कर्णिका पीतवर्णिका // 4 // परिध्या वेष्टितं पद्म बाह्ये सत्त्वं रजस्तमः // तन्मध्ये स्थापयेदेवान ब्रह्माद्यांश्च सुरेश्वरान् // 5 // ( तत्र देवताः व्रतराजे ) तत्रादौ संकल्पः // देशकालो संकीर्त्य अद्य पुण्यतिथौ ममेह जन्मनि जन्मांतरे वा कृतकायिकवाचिकमानसिकसांसर्गिकदोषपरिहारार्थमिहामुत्र सुख सौभाग्यसुखसंपत्त्यादिकफलप्राप्त्यर्थं श्रीअमुकदेवताप्रीतये अमुककालमारण्यामुकदिनपर्यंत / मया आचरितस्य व्रतस्य फलप्राप्तिद्वारा एतत्सर्वतोभद्रमण्डले वेदपुराणोक्तमंत्रैर्ब्रह्मादिषट् - पंचाशदेवतावाहनप्रतिष्ठापूजनं च करिष्ये॥ इति संकल्पः / / अक्षतान्गृहीत्वा // ततो मध्ये॥ब्रह्मजज्ञानं, गौतमो वामदेवो ब्रह्मा त्रिष्टुप् मध्ये ब्रह्मावाहने विनियोगः॥ ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथम पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचोवेन आवः ॥सबुध्न्या उपमा अस्यविष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः // HIDDELHI LEEEEEEEEETICE H LEHEILLLLLIN COLLLLLLLLLLL. ELLLLELEEL .. - al L LLELLU.... ALBE ... B -LLLL ---- Mali-LLLLLLLLRE ENUALLLLLLLLLL (CELLULLLEGE G // 27 // For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir एोहि धातस्तु समस्तसृष्टेः पद्मोद्भवः पद्मसुखप्रदातः। सुरासुरैर्वदितपादपद्म यज्ञे ममास्मिन्कुरु सन्निधानम्॥ भो ब्रह्मन इहागच्छ इह तिष्ट पूजां गृहाण मम संमुखः सुप्रसन्नो वरदो भव // 1 // इत्येवंप्रकारेण सर्वत्र देवतानामावाहनादिकं ज्ञेयम् // ततः उदीचीमारण्य वायवी नपर्यतं सोमादयोऽष्टौ लोकपालाः स्थापनीयाः। तत्र क्रमः-आप्यायस्व, राहूगणो गौतमः सोमो गायत्री उत्तरे सोमावाहने विनियोगः // ॐ आप्यायस्वसमेतुतेविश्वतःसोमवृष्णियंभवावाजस्यसंगथे / कुबेरं गुह्यकाध्यक्ष मुरासुरनमस्कृतम् // धनदं शिविकारूढं चिंतयामि सदाप्रियम्।।उत्तरे सोमम् // 2 // अभित्या, आजीगतिः शुनःशेप ईशानो गायत्री ईशान्यामांशानावाहने विनियोगः // ॐ अभित्वा देवस वितरीशानवार्याणांसदावनभागमीमहे // आवाहयाम्यहं देवमाशानं च वरप्रदम् // सर्वलोकप्रपूज्यं त्वामीशानं पूजयाम्यहम् // ईशान्या मीशानम् // 3 // इन्द्रंबो,मधुच्छंदा इंद्री गायत्री पूर्व इंद्रावाहने विनियोगः // इंद्रवोविश्वतस्परिहवामहेजनन्यः अस्माकमस्तुकेवलः।। आवाहयाम्यहं देवं महेंद्रं च महाप्रभुम् // पीतवर्ण गजारूढं वज्रपाणिं सुरेश्वरम् // पूर्व इंद्रम् // 4 // अनिं दूतं, काण्वो मेधातिथिरग्नि गायत्री आग्नेय्यामग्न्यावाहने विनियोगः // ॐ अमिंदृतंवृणीमहेहोतारंविश्ववेदमअस्ययज्ञस्यसुक्रतुम् / / अथामिमूर्ति ध्यायामि सर्वाभीष्ट फलप्रदाम् // एकजिह्वां द्विशीर्षा च जटामुकुटमण्डिताम् // आमेश्यामनिम् // 5 // यमाय सोम, वैवस्वतो यमोऽनुष्टुप् दक्षिणे यमा वाहने विनियोगः॥ ॐ यमायसोम सुनुयमायजुहृताहविःयम हयज्ञोगच्छत्यग्निदूतोअरंकतः // अवाहयाम्यहं देवं यमं महिषवाहनम् / / ऊर्ध्वकेशं विरूपाक्षं भैरवं रक्तलोचनम् // दक्षिणे यमम॥६॥मोषुणो, घोरः कण्वो निर्कतिर्गायत्री नैर्ऋत्यां निर्ऋत्यावाहने विनियोगः॥ ॐ मोषुणः परापरानिक्रति र्हणावधीत् // पदीष्टतृष्णयासह // आवाहयाम्यहं देवं नितिं श्वेतरूपिणम् // लंबकेशं विरूपाक्षं खड्गपाणिं namaATANERISPIRMANNADE For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म. दुरासदम् // नैर्ऋत्यां निर्ऋतिम् // 7 // तत्त्वायामि, शुनःशेपो वरुणस्त्रिष्टुप् पश्चिमे वरुणावाहने विनियोगः // ॐ भ० म०प्र० // 28 // // तत्त्वायामिब्रह्मणावन्दमानस्तदाशास्तेयजमानोहविभिः // अहेडयानोवरुणहवाध्युरुशर्कसमानआयुःप्रमोषीः // आवाहयाम्यह तरं०३ / देवं वरुणं कमलेक्षणम् // रक्तांबरधरं देवं रक्तमालाविभूषितम् // पश्चिमे वरुणम् // 8 // वायोशतं, वामदेवो वायुरनुष्टुप् वायव्यां / वाग्याबाहने विनियोगः // ॐ वायो शत हराणायुवस्वपोष्याणाम् // उतबातेसहस्रिणोरथ आयातुपाजसा // अहमावाहयिष्यामि / वायुं सर्वत्र व्यापिनम् // ऊर्ध्वकेशं विरूपाक्ष सर्वचैतन्यरूपिणम् // वायव्यां वायुम् // 1 // ज्मयाअत्र, मैत्रावरुणौ बसवस्त्रिष्टुप् वायु / सोमयोर्मध्ये वस्यावाहने विनियोगः // ॐ ज्मयाअत्रवसवोरेतदेवाउरावंतरिक्षेमर्जयंतशुधाः // अपिथउरुज्रयः कृणुध्वं श्रोतादूतस्य जग्मुपोनोअस्य // धरो ध्रुवश्च रोमच आपश्चैव नलोनलः // प्रत्यूषश्च प्रभातश्च वसवोष्टौ प्रकीर्तिताः॥वायुसोममध्ये अष्टौ वसून् // 10 // * आरुद्रासः, श्यावाश्च एकादश रुद्रा जगती सोमेशयोर्मध्ये एकादशरुद्राबाहने विनियोगः॥ ॐ आरुद्रासइंद्रवंतः सजोषसोहिरण्यरथाः सुवितायगंतनइयंवोअस्मत्पतिहर्यतेमतिस्तृप्याजेनदिवउत्साउदन्यवे // अजैकपादहिर्बुध्न्यो विरूपाक्षोथ रैवतः॥ हरश्च बहुरूपश्च व्यंबकश्च सुरेश्वरः // सविता च जयंतश्च पिनाकी रुद्र एव च // सोमेशानयोर्मध्ये एकादश रुद्रान् // 11 // त्यांनु, मत्स्यः / / सामदो द्वादशादित्या गायत्री ईशानेंद्रयोर्मध्ये द्वादशादित्यावाहने विनियोगः॥ ॐ त्यांनुक्षत्रियाम् अवआदित्यान्याचिषामहेसुमृलीकां अभीष्टये // धाता मित्रो यमश्वेन्द्रो वरुणः सूर्य एव च // भनो विवश्वान् पुरुषः सविता विष्णुरेव च // त्वष्टेति द्वादशादित्यान् // 28 // पूजयामि यथाविधि // ईशानेन्द्रयोर्मध्ये द्वादशादित्यान् // 12 // अश्विनावर्ति, राहुगणो गौतमोऽश्विनावृष्णिक् इन्द्राग्योर्मध्ये HALतनइयंबोअस्मत्यातहलमा जगती सोमेशयोमध्य मत्यूपश्च प्रभातश्च वसा For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir अख्यावाहने विनियोगः // ॐ अश्विनावतिरस्मादागोमदनाहिरण्यवत् // अग्रिथंसमनसानियच्छतम् // रूपेणाप्रतिमौ देवौ सूर्यस्य तनयावभी / / बडवागर्भसंभता मंडले विशतामभौ // इंद्राग्योमध्ये अश्विनी // 13 // मोमामः, मधुच्छंदा विश्वेदेवा गायत्री अग्नि यमयोर्मध्ये विश्वेदेवावाहने विनियोगः // ॐ सोमासश्चर्षणीधृतोविश्वेदेवासआगतदावामोदाशुषः सुत // कनर्दक्षो वसुः सत्यः कामली / धूम्रलोचनौ / पुरुरवायचब विश्वेदेवा इभे दश // सोमपा अग्निप्वानाश्च बर्हिषदस्तु कालकाः।एकभंगो बसुचव द्वितीयः सोमपास्तथा। अग्नियममध्ये विश्वेदेवान नपैतृकान् // 14 // अभित्यं, देवो गौतमो बामदेवः सप्त यक्षा अष्टी यमनिर्भन्योर्मध्ये सप्तयक्षावाहने / विनियोगः॥ ॐ अभियं देवं मवितारगण्योः कविक्रतुम मिलत्यसवसंरत्नधामभिप्रियमति।। मृर्घायस्यामतिर्भाअदियतत्सवीमनिहिरण्य | पाणिरमिमीतसुक्रतुः कपासुवः // अहमावाहयिष्यामि सप्तयक्षान्महाबलान् // पुण्यरूपान पुण्यजनान पुण्यकर्मरतान्मदा // यमनैर्ऋत मध्ये सप्त यक्षान् // 35 // आयंगौः, मार्पराज्ञी सर्या गायत्री नितिवरुणमध्येसावाहने विनियोगः // ॐ आयंगौःपृश्निरक्रमीदमद मातरंपुरः पितरंचप्रान्स्वः / / आवाहयाम्यहं देवान्भूतनागान् महाबलान // सर्पराजान्महाकायान्मणिमंडलभूषितान् // निति व वरुणमध्ये भृतनागान् // 16 // अप्सरमाम, ऐतश ऋष्यशृंगो गंधर्वाप्सरमोनुष्टुप् वरुणवाय्वोर्मध्ये गंधर्वामरसआवाहने विनियोगः / / || ॐ अप्सरसांगंधर्वाणांमृगाणाचरणेचरन // केशीकेतस्यविद्वानसस्वास्वादमर्दितमः // आबयामि गंधर्वान सासरोगीततत्परान् // हाहाहूहूश्चैवमाद्यान् गंधर्वाप्सरसस्तथा / / वरुणवायुमध्ये गंधर्वाप्सरोयो नमः गंधर्वाप्सरसः // 17 // यदकंद, औचाथ्यो दीर्घतमास्कंद बिष्टुप् ब्रह्मसोममध्ये स्कंदावाहने विनियोगः // ॐ यदकंदःप्रथमंजायमानउद्यन्त्समुद्रातवापुरीपान // श्येनस्यपक्षाहारणस्यबाहूउपस्तु For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म. त्यमहिजातेअर्बन // एढेहि षण्मुख सुरेश्वर तारकारे श्रीनीलकंठवरवाहन शक्तिपाणे // ओंकारकोटरसुरेश्वरपूज्यमान सांनिध्यमत्र कुरु पू० ख०१ ब्रह्मकुबेरमध्ये // इति स्कंदम्॥१८॥ तत्रैव // ऋषभम्, ऋषभो वैराजो नंदीश्वरोनुष्टुप् ब्रह्मसोमयोमध्ये नंदीश्वरावाहने विनियोगः॥ॐ भ०म०प्र० ऋष मासमानानां सपत्नानां वृषासहिम् // हंतारं शत्रुणां कधि विराजं गोपतिं गवाम्॥आवाहयाम्यहं देवं वृषभं सर्वपूजितम॥ महादेवा शतरं० 3 सने मुख्यं सर्वसिद्धिप्रदायकम्॥ स्कंदादुत्तरे नंदिनम् // 19 // कबुद्राय, घोरः कण्वः शूलो गायत्री तदुत्तरे शृलावाहने विनियोगः // ॐ कद्रुद्रायप्रचेतसेमीढुष्टमायतव्यसेवोचेमशंतमंहदे ॥आवाहयामि तं शूलं शस्त्रराज महोज्ज्वलम्॥दुष्टारिघातने दक्ष शिवबाहुविराजितम्॥ तत्रैव शूलम्॥२०॥कुमार, कुमारो महाकालविष्टुप् तदुत्तरे महाकालाबाहने विनियोगः॥ ॐ कुमारंमातायुवतिःममुग्धंगुहाविभर्तिनददाति / ) पत्र॥अनिकमस्यनमिनजानासः पुरःपश्यंतिनिहितमरातौ॥ नित्यं च शाश्वतं शुद्धं ध्रुवमक्षरमव्ययम् // सर्वव्यापिनमीशानं रुद्रं वै विश्वरूपि जाणम्॥ शूलादुत्तरे महाकालम् // 23 // अदितिः, लौक्यो बृहस्पतिर्दक्षोनुष्टुप् ब्रह्मेशानयोर्मध्ये दक्षाबाहने विनियोगः / / ॐ आंदेतिजिनि / टदक्षयादुहितातवतान्देवाअन्वजायंतभद्राअमृतबंधवः॥ आवाहयामि तान् देवान कैलासाधिपपार्षदान् // दक्षादिप्रमुखान् मतगणाञ्जीव मुखावहान् // ब्रह्मेशानयोर्मध्ये दक्षादिसप्तगणान् // 22 // तामग्निवर्णा, सौभरिर्दुर्गास्त्रिष्टुप् ब्रह्मेद्रयोर्मध्ये दुर्गावाहने विनियोगः // ॐa तामग्निवर्णातपसाज्वलंतीवैरोचनीं कर्मफलेषुजुष्टाम् / / दुर्गादेवीशरणमहंप्रपद्येमुतरामतरतेनमः॥ आगच्छ कोकिले दुर्गे सिंहारूढे महाभुजे॥ विंध्याचलकतावासे मंडले त्वं समाविश // ब्रांद्रमध्ये दुर्गाम् // 23 // इदंविष्णुः, काण्वो मेधातिथिविष्णुर्गायत्री ब्रह्मेश्योर्मध्ये // 29 // विष्ण्यावाहने विनियोगः // ॐ इदंविष्णुविचक्रमेत्रेधानिदधेपदम् // समृढमस्यपासुरे // आवाहयाम्यहं देवं श्रीविष्णुं कमलापतिम् // For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir जगच्चक्षुर्विश्वजन्मस्थितिसंहारकारकम्॥ दुर्गापूर्व विष्णम् // 24 // उदीरतामवर, शंखः स्वधा पितरविष्टुप् ब्रह्माग्न्योर्मध्ये स्वधावाहने विनियोगः॥ ॐ उदीरतामवरउत्परासउन्मध्यमाःपितरःसौम्यासः // असुंयईयुवकाऋतज्ञास्तेनोवंतुपितरोहवेषु॥कव्यमादाय सततं पितृ यो या प्रयच्छति॥तिष्ठत्युदीच्या दिश्यर्कच्छविमावाहये स्वधाम्॥ब्रह्माग्न्योर्मध्ये स्वधाम् // 25 // परंमृत्यो, संकुशिको मृत्युरोगान्त्रि टुप् ब्रह्मयमयोर्मध्ये मृत्युरोगावाहने विनियोगः // ॐ परंमृत्योअनुपरेहिपंथांयस्तेस्वइतरोदेवयानात् // चक्षुष्मंतेशृण्वतेतेबवीमानः जारीरिषोमोतवीरान्॥इहोपहूतो भगवान मृत्युः शामित्रकर्मणि॥ न कश्चिम्रियते तावद्यावदास्त इहांतकः॥ ब्रह्मयममध्ये मृत्युरोगान्॥ // 26 // गणानांत्वा, शौनको गृत्समदो गणपतिर्जगती ब्रह्मनिर्ऋत्योर्मध्ये गणपत्यावाहने विनियोगः।। ॐ गणानांत्वागणपतिहवामहे॥ कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्॥ज्येष्ठाराजंब्रह्मणाब्रह्मणस्पतिआनःशृण्वन्नूतिभिःसीदसानम्॥ एकदंतं महाकायं पद्मकांचनसन्निभम्॥लंबोदर विशालाक्षं बंदेहं गणनायकम्॥ ब्रह्मनितिमध्ये गणपतिम् // 27 // शन्नोदेवीः, आंबरीषः सिंधुढीप आपो यागत्री ब्रह्मवरुणयोर्मध्ये अबावाहने विनियोगः // ॐ शन्नोदेवीरभीष्टयआपोभवन्तुपीतये // शंयोरभिनवंतुनः // स्वच्छाः पवित्रा जनशुद्धिबीजा यादोभिरत्यंतभयंकाराश्च // कुर्वतु सान्निध्यमांबुवेगास्सर्वस्य विश्वस्य च जीवरूपाः॥ब्रह्मवरुणमध्ये अपः // 28 // मरुतो यस्य, राहूगणो गौतमो मरुतो गायत्री ब्रह्मवाय्योमध्ये मरुदावाहने विनियोगः // ॐ मरुतोयस्यहिक्षयेपाथादिवोविमहसः ससुगोपात मोजनः // आगच्छ त्वं महादेव मृगारूढ प्रभंजन // यज्ञसंरक्षणार्थाय मंडले त्वं स्थिरो भव // ब्रह्मवायुमध्ये मरुद्भयो / नमः मरुतः // 29 // स्योनापृथिवि, काण्वो मेधातिथि मिर्गायत्री ब्रह्मणः पादमूले कर्णिकाधः पृथिव्यावाहने विनियोगः // ॐ For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org #०म० // 30 // स्योनापृथिविनो भवानुक्षरानिवेशनी॥यच्छानः शर्ममप्रथाः॥ एढेहि वसुधे देवि शैलजीवनकानने // ब्रह्मणः पादमूले तु सान्निध्यं कुरु पू० ख० 1 मे सदा॥ ब्रह्मपादमूले पृथिवीम॥३०॥इममेगंगे, सिंशुभित्यय्यामेधो गंगादिनद्यो जगती (तत्रैव) गंगादिनबाबाहने विनियोगः॥ॐइसमेगंगे भ०म०प्र० यमुनेसरस्वतिशुतुद्रिस्तोम मचतापरुष्णिया। असिनियामरुद्धेवितस्तयाज कीयेशृणुह्यासुषोमया / / गंगे च यमुने चैव गोदावरि सर तरं. 3 स्वति॥नर्मदे सिंधुकावरि मांनिध्यं कुर्वतामिह // तत्रैव गंगादिसप्तमरितः // 31 // धाम्रो, गौतमो वामदेवः सागरोऽनुष्टुप् ( तत्रैव ) सन छ / सागरावाहने विनियोगः॥धानोधानोराजन्नितोवरुणनोमुंच॥ यदापोधियावरुणोतिशपामहेततोवरुणनोमंचमयिवापोमोषधीहिंसीरतोविध - व्यचाभूस्त्येतोवरुणनोमंच॥भारेञ्जरसमद्योदान घृतोदक्षीरकोदकौ॥दधिमंडोदशुद्धोदौ मनैतान स्थापयाम्यहम्॥ तत्रैव सत्रमागरान॥३०॥ तदुपरि मेरुं नाममंत्रेण पूजयेत्।।मेरवे नमः, मेरुमावाहयामि // 33 // ततो मंडलावहिः मोमादिमन्निधौ क्रमेण आयुधान्यावाहयेत् // तत्र क्रमः // सोमसमीपे गदायै नमः, गदामावाहयामि // 34 // ईशानसमीपे-त्रिशूलाय नमः, त्रिशूलमावाहयामि // 35 // इन्द्रम / मीपे-बजाय नमः, व जमावाहयामि // 36 // अग्निसमीपे-शक्तये नमः, शक्तिमावाहयामि / / 37 // यमसमीपे-दंडाय नमः दंडमावाह यामि // 38 // निर्ऋतिसमीपे-खड्गाय नमः खड्गमावाहयामि // 39 // वरुणसमीपे-पाशाय नमः पाशमावाहयामि // 10 // वायु समीपे-अंकुशाय नमः अंकुशमावाहयामि // 41 // तद्वाह्ये उत्तरे-गौतमाय नमः गौतममाबाहयामि // इति सर्वत्र // 42 // ईशान्यां भारद्वाजाय नमः भारद्वाजम् ॥४३॥पूर्वे-विश्वामित्राय नमः विश्वामित्रम् ॥४४॥अग्नेय्यां-कश्यपाय नमः कश्यपम०॥४५॥ दक्षिणे जमदग्नये नमः जमदग्निम् // 46 // नैर्ऋत्यां-वसिष्ठाय नमः वासिष्ठम् // 47 // पश्चिमे-अत्रये नमः अत्रिम् // 48 // वायव्याम्-अरुंध 81 // 30 // For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavn Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir त्यै नमः अरुंधतिम् ॥४९॥तहाटे-पूर्वादिक्रमेण ऐयै नमः ऐंद्रीम्॥५०॥कौमार्य नमः कामारीम् // 53 // बाह्मयै नमः ब्राह्मीम् // 52 // बारायै नमः वाराहीम् // 53 // चामुंडायै नमः चामुंडाम् // 54 // वैष्णव्यै नमः वैष्णवीम् // 55 // उत्तरस्या-माहेश्वय नमः माहेश्वरीम् // 56 // वैनायक्यै नमः वैनायकीम् // 57 // इत्यष्टी शनीः प्रतिष्ठाप्य प्रत्येकं सहवाबाहयेत् पूजयेदिति // अत्र एकदेवतायाः पटपंचाशद्रगनायामाधिक्यम् // तत्र शूलमहाकालयोः एकवद्भावत्वात् अमेखिशलस्य ग्रहणात् पृथक्त्वं न, गणिते He सत्यपि एक एव देवता तेन न विरोधः॥ देवतास्तु पटपंचाशदेवेत्यलमिति / / इत्येकोनविंशतिरेखात्मकं सर्वतोभद्रमंडलं समाप्तम् // / अथ चतुस्त्रिंशदेखात्मकं द्वादशलिंगतोभद्रमंडलं सदैवतमाह॥( उक्तं च रुद्रयामले ) रुद्र उवाच // उद्धारं कथयिष्येहं मदर्चार्थ तव प्रिये॥ / चतुस्त्रिंशत समारेखाः कुर्यात्पूर्वोत्तराः शुभाः।। १।।मध्ये वृत्तं समालेब्यं तन्मध्ये तु दशारकम् ।।बहिरटदलं पद्म ततः पोडशपत्रकम्॥२॥चतु। विंशतिपत्राव्यं द्वात्रिंशत्पत्रकं तथा॥चत्वारिंशत्पत्रकं तु वृत्नं सूर्यसमप्रभम्॥३॥खंडेंदुस्विपदैःकोणे शृंखला दशकोटिका॥एकविंशत्पदा वल्ली भद्रं तु पट्पदैस्तथा // 4 // अष्टादशपदं लिंगं भद्रं चाष्टपदं तथा // त्रयोदशपदी वापी कुर्याल्लिंगम्य सन्निधौ // 5 // पूज्योपर्यपि भद्राणि भवंति नवभिः पदैः // एवं द्वादशलिंगाढ्यं वापोषोडशकान्वितम् // 6 // षट्पदाष्टकभद्राढ्यं पृज्यं द्वादशकात्मकम् // मध्ये विंशति भद्रं तु कथितं पूर्वमारिभिः // 7 // वर्णक्रमः // वर्णक्रममथो वक्ष्ये मंडलस्य च सिद्धये / / धृष्टतंडुलपिष्टन कृष्णवर्णन निर्मितम् // 8 // लिंगजातं सितेंदुः स्यादल्ली बिल्वदलप्रभा // शृंखला कृष्णवर्णा च पीतं भद्रव्यं भवेत् // 1 // मिता वाप्यस्तथा पूज्या मध्यभद्रे त्वयं क्रमः // पृज्योपर्यरुणे भद्रे सिते द्वे मध्यमं सितम् // 30 // मत्वं रजस्तमश्चैव बाह्यतः परिधित्रयम // एवं सुशोभित कार्य मंडलं For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शिवपूजने // अथ देवतास्थापनम् // देशकालौ संकीर्त्य अद्य पुण्यतिथौ मम इह जन्मनि जन्मांतरे च सुखसौभाग्यसंतानादिफल पू० ख० 1 प्राप्त्यर्थम् उमामहे वरदेवताप्रीतये मया आचरितस्य अमुकव्रतस्य फलप्राप्तिद्वारा लिंगतोभद्रमंडलदेवतावाहनप्रतिष्ठापूजनं च करिष्ये // भ०म०प्र० इति संकल्पः // मंडलबाह्ये ईशानकोणे // गुरुवे नमः गुरुमावाहयामि स्थापयामि / एवं सर्वत्र 3 // अग्नेय्यां-गणपतये नमः२ // नैर्ऋते दुर्गायै नमः 3 // वायव्ये-क्षेत्रपालाय नमः 4 // ततः भद्रमध्ये श्रीसदाशिवाय नमः 5 // इति स्थापयेत् // ततः अष्टदले-पूर्वस्यां दिशि 5 कालाग्निरुद्राय नमः // कूर्माय नमः॥ मण्डूकाय नमः१॥ आग्नेय्यां-बाराहाय नमः // अनन्ताय नमः 2 // दक्षिणे-पृथिव्यै नमः // स्कंदाय नमः 3 // नैर्ऋत्यां-दिशि नलाय नमः।। यमाय नमः 4 // पश्चिमे-पत्रोयो नमः // केसरेत्यो नमः // कर्णिकायै नमः 5 // वायव्यां-सिंहासनाय नमः॥ पद्मासनाय नमः 6 // उत्तरे-धर्माय नमः॥ ज्ञानाय नमः / / वैराज्ञाय नमः 7 // ईशान्याम-ऐश्वर्याय नमः॥ चिदाकाशाय नमः 8 // पीठमध्ये-योगपीठात्मने नमः // इत्येकविंशतिदेवताः संस्थापयेत् // ततः कर्णिकोपरि / / पूर्व-पृथिव्यै नमः // दक्षिणे-कपालाय नमः२।। पश्चिमे-सरिट्यो नमः३।। उत्तरे-सागरेश्यो नमः४।। कणिकासमीपे-चत्वारि श्वेतभद्राणि तद्देवतास्थापनम् // पूर्व-तत्पुरुषाय नमः॥ दक्षिणे-अघोराय नमः२।। पश्चिमे-सद्योजाताय नमः३॥उत्तरे-बामदेवाय नमः४॥तत्समीपे-कृष्णानि अष्टौभद्राणि तदेवतास्थापनम्॥ऐशान्ये-भगवत्यैनमः ॥पूर्व-उमायनमः२॥ आग्नेय्यां-शंकरप्रियायैनमः३॥दक्षिणे-पार्वत्यैनमःनिर्ऋत्ये-गौर्यनमः॥ // 31 // पश्चिमे-काल्यै नमः६।। वायव्यां-कौम्यं नमः७॥ उत्तरे-विश्वभय नमः८॥ ततः कृष्णभद्राणाम् अधःअष्टौ रक्तभद्राणि तद्देवतास्थापनम् / / ऐशान्ये-नंदिन्यै नमः 1 / / पूर्व-महाकालाय नमः 2 // आग्नेय्यां-वृषभाय नमः 3 // दक्षिणे-मुंगकिरीटिने नमः 4 // नैर्भ यां-स्कंदाय . For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.koba .org Acharya Shri Kalasagasun Gyanmandir नमः 5 // पश्चिमे-उमापतये नमः 6 // वायव्या-चण्डेश्वराय नमः 7 // उत्तरे-सोमभूत्राय नमः 8 // अथ लिंगोपरि चत्वारि श्वेत भद्राणि तद्देवतास्थापनम् / पूर्व-धात्रे नमः / // दक्षिणे-मित्राय नमः 2 / / पश्चिमे-यमाय नमः 3 // उत्तर-रुद्राय नमः 4 // ततः तत्समीपलिंगोपरि अष्टौ पीतभद्राणि तद्देवतास्थापनम् / / ऐशान्ये-वरुणाय नमः / // पूर्व-सूर्याय नमः 2 // अग्नेय्यां-भगाय नमः 3 // दक्षिणे-विवस्वते नमः 4 // नैर्ऋत्यां-पुरुषोनमाय नमः 5 / / पश्चिमे-सवित्रे नमः 6 // वायव्ये-चष्ट्रे नमः 7 // उत्तरे-विष्णवे नमः 8 // चततः द्वादशलिंगदेवतास्थापनं पूर्वादिचतुर्दिक्षु // पूर्व-शिवाय नमः // एकनेत्राय नमः 2 // एकरुद्राय नमः 3 // दक्षिणे-त्रिमूर्तये / नमः // श्रीकंठाय नमः 2 // वामदेवाय नमः 3 // पश्चिमे-ज्येष्ठाय नमः / // श्रेष्टाय नमः 2 // रुद्राय नमः 3 // उत्तरेकालाय नमः 1 // कलकर्णिकाय नमः 2 // बलविकर्णाय नमः 3 // अथ श्वेतषोडशवापीदेवतास्थापनमीशानादि क्रमेण // अणिमायै नमः 1 // महिमायै नमः 2 // लघिमायै नमः 3 // गरिमायै नमः 4 // प्राप्त्यै नमः 5 // प्राकाम्यायै नमः 6 // ईशितायै नमः 7 // वशितायै नमः 8 // बालयै नमः 9 // महेश्वर्यै नमः 10 // कौमार्य नमः 11 // वैष्णव्यै नमः 12 // वारायै नमः 13 // इन्द्राण्यै नमः१४ // चामुण्डायै नमः 15 // चण्डिकायै नमः 16 // ततः वापीसमीपे अटी रक्तभद्राणि तद्देवतास्थापनमैशान्यादिक्रमण // असितांगभैरवाय नमः 3 // रुरुभैरवाय नमः 2 // चंडभैरवाय नमः 3 // कोधभै| खाय नमः 4 // उन्मत्तभैरवाय नमः 5 // कालभैरवाय नमः 6 // भीषणभैरवाय नमः 7 // संहारभैरवाय नमः 8 // अथाष्ट वल्लीदेवतास्थापनमैशान्यादिक्रमेण // घृताच्यै नमः 1 // मेनकायै नमः 2 // रंभायै नमः 3 // उर्वश्यै नमः 4 // तिलोत्तमायै For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir पूखं०१ भष्म प्र० तर०३ D SLEELINEDEOAMILLEGE XX म. म. नमः 5 // सुकेश्यै नमः 6 // मंजुघोपायै नमः 7 / / अमरेन्यो नमः 8 // ततः अथचतुस्त्रिंशदेखात्मकंदादशलिंगतोभद्रम // 32 // मण्डलमध्ये परिधिसमीपे शृंखलादेवतास्थापनमाग्नेय्यादिक्रमेण-अग्नेथ्यां-भवाय नमः Inel शिवाय नमः 2 // रुद्राय नमः 3 // पशुपतये नमः 4 // उग्राय नमः 5 महादेवाय नमः 6 // भीमाय नमः 7 // ईशानाय नमः 8 // अनन्ताय नमः। // 9 // वासुकये नमः / // ततः नैक-परिधिसमीपे शृंखलादेवतास्थापनम् // तक्षकाय नमः 1 // कुलीरकाय नमः 2 // काटकाय नमः 3 // शंखपालाय नमः 4 / / कंबलाय नमः 5 // अश्वतराय नमः 6 // बैन्याय नमः 7 // // | अंगाय नमः 8 // हैहयाय नमः 9 // अर्जुनाय नमः 10 // वायव्ये-दशशृंखलादे / लावतास्थापनम् // शकुंतलाय नमः / // भरताय नमः२ // नलाय नमः 3 // क रामाय नमः ४॥सार्वभौमाय नमः 5 // निषधाय नमः 6 // विंध्याचलाय | नमः 7 // माल्यवते नमः 8 // पारियात्राय नमः 9 // सह्याय नमः 10 // ततः ऐशान्ये-परिधिसमीपे दशशृंखलादेवतास्थापनम् // हेमकटाय नमः 3 // RE LIQUI MORRO LEARSASRAEBLSELLERS - THAT THE 4. HAND CADDAGHEE L JALA54444444-------- - --- HTTRAKHLHAH DEEDED BARSH REE HAMARH BHEETA EMERasECAREIL. KAXX HECEREME जरल्या BRARELCEEER ESHRESTLIN E MAHALCHA // 32 // CHELLEEDDRE मामला For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir गन्धमादनाय नमः 2 // कुलाचलाय नमः 3 // हिमवते नमः 4 // रैवताचलाय नमः 5 // देवगिरये नमः६॥ मलयाचलया नमः 7 // कनकाचलाय नमः 8 // पृथिव्यै नमः 9 // अनन्ताय नमः 10 // अथ चतुर्दिनु खंडन्दुदेवतास्थापनमैशान्यादिक्रमेण ऐशान्ये-अश्विनीकुमाराभ्यां नमः 1 // आमेश्या-विश्वज्यो देवेन्यो नमः 2 // नैर्ऋते पितृत्यो नमः 3 // वायव्या-नागेन्यो नमः // | ततः मंडलाइहिः प्रथमं सत्त्वपरिधौ पूर्वादिक्रमेण देवतास्थापनम् // इन्द्राय नमः 1 // अग्नये नमः 2 // यमाय नमः 3 // नि / तये नमः 4 // वरुणाय नमः 5 // वायवे नमः 6 // कुबेराय नमः 7 // ईश्वराय नमः 8 // इन्द्रेशानयोर्मध्ये-ब्रह्मणे नमः 9 // वरुणनैर्ऋतयोमध्ये-अनन्ताय नमः 10 // तद्वहिः रजःपरिधौ पूर्वादिक्रमेण देवतास्थापनम् // बजाय नमः 1 // शक्तये नमः 2 // // दण्डाय नमः 3 खड्गाय नमः 4 // पाशाय नमः 5 // अंकुशाय नमः 6 // गदायै नमः 7 // त्रिशूलाय नमः 8 ॥पनाया नमः 9 // चक्राय नमः 10 // तद्वहिः तमोमयकृष्णपरिधौ पूर्वादिक्रमेण देवतास्थापनम् // कश्यपाय नमः // अत्रये नमः // भरद्वाजाय नमः३॥ विश्वामित्राय नमः४॥ गौतमाय नमः 5 // जमदग्नये नमः६ // वसिष्ठाय नमः 7 // अरुंधत्यै नमः Odel / ततः पूर्वे-ऋग्वेदाय नमः 1 // दक्षिणे-यजुर्वेदाय नमः 2 // पश्चिमे-सामवेदाय नमः 3 // उत्तरे-अथर्ववेदाय नमः 4 // एवमटोचर शत१०८देवताः संस्थाप्य षोडशोपचारैः संपूज्य ततः प्रधानदेवतां मण्डलमध्ये संस्थाप्य पूजयेत् // इति द्वादशालिंगतोभद्रमण्डल विधानम् // अथ त्रयोदशरेखात्मकं लघुगौरीतिलकाख्यमेकलिंगतोभद्रमण्डलम्॥तिर्यगूर्ध्वगता रेखाः कार्याः स्निग्धास्त्रयोदश॥ कोणेंदुखि पदः कार्यः शृंखलात्रिपदाः सिताः // 1 // वल्ली च षट्पदा नीला भद्रं रक्तं प्रकल्पयेत् // पादशभिः स्पष्टमुत्तरे पूर्वदक्षिणे // 2 // For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म. पृ० ख०१ भ म०प्र० तरं० 3 मामाहत्या पश्चिमायां महारुद्रमष्टाविंशतिकोष्टकैः // लिंगपार्श्व तथा मूर्धन्यष्टौ कोष्ठाः सुपीतकाः॥३॥-लिंगमेकं तथा गौर्यस्तिस्रंश्चात्र तु मंडले॥ पूजयेन्मण्डलं चैव तस्य गौरी प्रसीदति // देवता पूर्वोक्ता एवं // इति // ल०॥ अथ लघुगौरीतिलकाख्यमेकलिंगतोभद्रमण्डलम् // अथ सूर्य्यभद्रम् // रेखाविंशतिसंयुक्त भीमरथ्यास्तु मंडलम॥ सूर्यव्रतेषुः सर्वेषु शस्यते मंडलं त्विदम् // जाणार - // 1 // खडेन्दुखिपदः कार्यः शृंखला षट्पदा मता // त्रयोदशपदैवल्ली भद्रं तु त्रिपदं मतम्॥२॥सू म यंत्रयं प्रकुर्वीत सप्तविंशतिभिः पदैः // सूर्यत्रयं चतुष्कोणे पदमसितं भवेत॥३॥ पदैस्तु नबभिः कन्या भवेत्सूर्यत्रयं ततः। सूर्योपरि भवेद्भद्रं पदं द्वादशसंमितम॥४॥ ऊर्ध्वमिदं प्रकुर्वीत चतुर्भिस्तु सितैः पदैः। परिधिः षोडशपदा पनं नवपदं ततः॥५॥ मत्त्वं रजस्तम इति रेखाः स्युमंडलाहिः // कृष्णा च श्रृंखः / KI ला जेया बल्ली नीला प्रकीर्तिता // 6 // भद्रान् पीतान प्रकुर्वीत रवीन रक्तान प्रकारयेत् // पीतश्च परिधि - प्रोक्तः पद्म रक्तं तथैव च // 7 // इति भद्रमार्तण्डे सूर्यभद्रम्॥ अथ गणपतिभद्रम् // अथातःसंप्रववक्ष्यामि मंडलं सर्वसिद्धिदम् // नाम्ना च विन्नमर्दाख्यं विनायकवते हितम् // 1 // तिर्यगय सप्तदश रेखाः कार्याः सुशाभनाः // खडेंदुविपदः कोणे शृंखला च चतुष्पदैः॥२॥कार्या नवपदा वल्ली भद्रं रक्तं चतुष्पदम्॥ततो वितिकोठेषु कार्यो गणपतिः शुभः // 3 // कोष्ठद्वयेन मुकुटं गणेशस्य च कारयेत् // पतिश्च परिधिः कायः पविशतिभिस्तथा // 4 // मध्ये षोडशकोप्टेन पनं कार्य सुशोभनम् // सर्वतोभद्रदेवान्दै विशेषेणात्र योजयेत् // इति गणपतिभद्रम् // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे अद्रमंडलप्रकरणे तृतीयस्तरंगः // 3 // ममममममम HORTHARAM For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private And Personal Use Only POSLOGO LLLLLLLLLLLLLLLLL 0-0-0 SVETA ALLLLLLLLL KANELLALAA.. LLLLLLLLL LLULL.. LLLL LLLLLLLLL LOLLLLLL OPLULLLLLLLLLL LLLLLLLLLLL CALLLLLLLL LAMANDOS LLLLLLLLL LLLLLLLLLLLLLL BARBORA BABKTOOBER 000 . M गणपतिभद्रमण्डलम् / / सूर्यमण्डलम् // Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir www.kobairt.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. bath.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं० मा अथ मंडलानां मध्ये उक्तखंडेन्दुशृंखलादिस्वरूपज्ञानाय तनच्चिह्नानि / इदं खंडेंदुखिपदस्तस्य चिह्नम् / अत्र श्वेतवर्णः : पू. खं०१ भ०मं प्र० तरं. 3 इदं श्रृंखलाचिह्नम् / अत्र कृष्णवर्णः / इयमेकादशादिपदात्मिका बल्ली तस्याश्चिह्नम् // अत्र हरितवर्णः पीतश्च क्वचित् / इमानि भद्रचिह्नानि / / अत्र वर्णस्तु पीतः। For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun yanmandir इमानि वापीचिह्नानि अत्र श्वेतवर्णः पंचमी खण्डबापी। इदंराममुद्राचिह्नम् / Huaw _ _ _ __ इमानि शिवलिंगचिहानि अत्र कृष्णवर्णः / इदं तोरणचिह्नमुभयभद्रसंलग्नमत्र रक्तादिवर्णः / For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं०म० पू० ख०१ भ०म०प्र० तरं०३ इदं परिधिचिह्नमत्र पीतश्वेतरक्तकृष्णवर्णाः / अथ स्पष्टलिखितमंडलानां कोष्टकमध्ये पंचरंगानां पूरणार्थ बिंदुचिह्नानि संति तेषां सूचना / 7 एतादृशेषु श्वेतकोष्ठकेषु श्वेतवर्ण श्वेतधान्यं वा पूरयेत् / एकबिन्दुयुक्तेषु कोष्ठकेषु पीतवर्ण पीतधान्यं वा पूरयेत् / यत्र बिंदुद्वयं तत्र रक्तवर्ण रक्तधान्यं वा पूरयेत् / 7 यत्र बिंदुत्रयं तत्काष्ठकेषु हरितवर्ण हरितधान्यं वा पूरयेत् / - कृष्णवर्णयुक्तकोष्ठकेषु कृष्णवर्ण कृष्णधान्यं वा पूरयेत् / For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir श्रीगणेशाय नमः॥अथ सर्वदेवोपयोगिपद्धतिप्रारंभः। तत्रादौ पंचांगपूजनं (देवीरहस्ये) जत्वा मंत्री मंत्रराज हुत्वा देवे दशांशतः। तर्पयेत्नद्द शांशेन मार्जयेत्तद्दशांशतः॥ भोजयेत्तदशांशेन मंत्रसिद्धिर्भवेद्धवम् // अथ पञ्चांगपूजने मंत्रोद्धारणक्रमः (आगमचिंतामणौ) होमतर्पणयोः / स्वाहा न्यासपूजनयोर्नमः // मंत्रांते योजयेन्मंत्री जपकाले यथा तथा // अथ संक्षेपतः सर्वासां देवतानां नित्यपूजाविधिः (रुद्रयामले ) आदी ऋष्यादिविन्यासः करशुद्धिस्ततः परम् // अंगुलीव्यापकौ रुत्वा हृदयादिन्यास एव च // 1 // तालत्रयं च दिग्बंधः प्राणायाम स्ततः परम् // ध्यानं पूजा जपश्चैव सर्वतंत्रेष्वयं विधिः // 2 // अथ पूजादिमाहात्म्यम् // पूजया विपुलं राज्यमग्निकार्येण सम्पदः // जपेन पापसंशुद्धिर्ज्ञानध्यानेन मुच्यते // 3 // त्रिकालं गन्धपुष्पाद्यैरचिते दैवते निशि // पुरश्चरणकतेन विनवासौ प्रसीदति // 4 // (तत्रांतरोप ) एकदा वा भवेत्पूजा न जपेत्पूजनं विना / / जपति च भवेत्पूजा पूजांते वा जपेन्मनुम् // 5 // मासाईमथ वा मासमथ वा। द्विगुणं तथा // यावत्फलाप्तिमान्योगी तावदेवं समाचरेत् // 6 // ( मंत्रमहोदधौ ) पूजनेन फलाई स्यादन्यदत्तैस्तु साधनैः // (तंत्रांतरेपि ) यदि पूजाद्यशक्तः स्याद्रव्याभावेन सुंदरि // केवलं जपमात्रेण पुरश्चर्या विधीयते // 7 // नियमः पुरुपे ज्ञेयो न योपिथ त्सु कदाचन // न न्यासो योषितां चात्र न ध्यानं न च पूजनम् // 8 // केवलं जपमात्रेण मंत्राः सिध्यंति योपिताम् // 9 // अथ पूजायां पंचांगशुद्धिः / / (ज्ञानार्णवे ) आत्मा स्थानं मंत्रहव्ये देवशुद्धिस्तु पंचमी // यावन्न कुरुते देवि तस्य देवार्चनं कुतः // पंच। शुद्धिं बिना पूजा ह्यभिचाराय कल्पते // 10 // (अथात्मशुद्धिप्रकारः) सुनातेभूतशुद्धैश्च प्राणायामादिभिः प्रिये // षडंगाद्यखिल न्यासैरात्मशुद्धिरितीरिता // 11 // (अथ मंत्रशुद्धिप्रकारः) ग्रंथिता मातृकावणैर्मूलमंत्राक्षराणि च // क्रमोक्रमाद्विरावृत्त्या मंत्रशु 09 For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir प. खं०१ मै० म० / द्धिरितीरिता // 12 // ( अथ द्रव्यशुद्धिप्रकारः) पूजाव्याणि मूलास्त्रैः प्रोक्षणीयविशेषतः॥ दर्शयेद्धेनुमुद्रादि द्रव्य शुद्धिरितीरिता॥ // 13 // (अथ देवशुद्धिप्रकारः) पीठे देवं प्रतिष्ठाप्य सकलीकृत्य मंत्रवित् // मूलमंत्रण दीपादीन्माल्यादीनुदकेन च // 14 // सन्दप्र. त्रिवारं प्रोक्षयविद्वान् देवशुद्धिरितीरिता // पंचशुद्धिं विधायेत्यं पश्चाद्यजनमाचरेत् // 15 // (स्थानमंत्रण स्थानं शोधयेत् ) अर्थ तर पोडशोपचाराः // पाद्यार्थ्याचमनीयं च स्नानं वसनभूषणे // गंधपुष्पधूपदीपनैवेद्याचमनं तथा // 16 // तांबू लमर्चनस्तोत्रं तर्पणं चल नमस्क्रियाम्॥प्रयोजयेत्प्रपूजायामुपचारांस्तु पोडश // 17 // अथ पंचोपचाराः॥ गंधं पुष्पं तथा धूपं दीपं नैवेद्यमेव च।। अखंडफल मासाद्य कैवल्यं लभते ध्रुवम् // 18 // (आसनाद्युपचारफलं शैवरत्नाकरे)आवाहनं तु यो दद्यात्स च ऋतुफलं लभेत्॥ आसनं रुचिरं / व दत्त्वा शकतत्त्वमवामुयात् // 19 // पायेन पातकं हन्यादयेणामोत्यनयंताम् / ततश्याचमनं दत्वा सुचित्तः सुखितां ब्रजेत् // 20 // स्नानं व्याधिभयं हन्याइनेणायुष्यवर्द्धनम् // उपवीतं तु यो दद्याद्ब्रह्मवेतृत्वमेव च // 21 // भूषणानि च यो दद्यादनापद्यमवाप्नुयात्।। गंधेन लभते काममक्षतैरक्षतं भवेत् // 22 // नानापुष्यप्रदानेन स्वर्गे राज्यमवाप्नुयात् // धूपो दहति पापानि दीपो मृत्युविना थी शनः // 23 // सर्वमानस्तु नैवेद्य दत्त्वा तृतिरतो भवेत् // मुखवासनदानेन कीर्तिमान् भवति ध्रुवम् // 24 // नीराजनेन शुद्धात्मा 1 बृहत्पाराशरसहितायाम्-आद्ययावाहयद्देवमृचा तु पुरुषोत्तमम् / दितीययासनं दद्यात्याद्यं चैव तृतीयया // अध्ये चतुर्था दातव्यं पंचम्याचमनं तथा। षष्ट्या स्नान NS मकुर्वति सप्तम्या वस्त्रधीतकम् // यज्ञोपवीतं चाष्टम्या नाम्या गंधमेव च / पुष्पं देयं दशम्या तु एकादश्या च धूपकम् // हादश्या दीपकं दद्यात्रयोदश्या निवेदयेत् / चर्तुदश्या नमस्कारं पंचदश्या प्रदक्षिणाः / / षोडश्योदासनं कुर्याच्छेपकर्माणि पूर्ववत् / तच्च सर्व जपेद्भूयः पौरुष सूकनेव च // इति // For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दर्पणेन प्रकाशयेत् // फलदः पुत्रवान्मर्त्यस्तांबूलात्स्वर्गमाप्नुयात॥ 25 // प्रदक्षिणं तु यः कुर्यात्पापं हंति पदेपदे // दण्डप्रणामं यः क-देवमद्दिश्य सन्निधौ // 26 // वर्षाणि वसते स्वर्गे देहांत रेणुभंख्यया // स्तोत्रेण दिव्यदेहोपि बाग्मी भवति तत्क्षणात्॥२७॥ al पुराणपठनेनैव सर्वपापक्षयो भवेत् // 28 // अथ सर्वदेवतापूजनोपयोगितिथ्यादिकम् // चत्रे शुक्लचतुर्दश्यां दमनैः पूजयेद्धरम् // नारायणं तु द्वादश्यामष्टम्यां गिरिनंदिनीम् ॥सप्तम्यां भास्करं देवं चतुर्थां गणनायकम् / एवं तत्तत्तिथौ तंतं पवित्रैः श्रावणर्चयेत् // माघ / कृष्णचतुर्दश्यां विशेषाच्छिवपूजनम्।आश्विनाद्यनवाहेषु दुर्गापूजा यथाविधि // गोपालं पूजयेद्विद्वान्नभःकृष्णाष्टमीदिने / रामं चैत्रसिते पक्ष नवम्यामर्चयेत्सुधीः॥वैशाखाद्यचतुर्दश्यां नरसिंहं प्रपूजयेतायजेच्छुक्चतुझं तु गणेशं चाद्रमाययोः॥महालक्ष्मी यजेद्विद्वान् भाद्रकृष्णाष्टमी दिने। माघस्य शुक्लसप्तम्यां विशेषादिननायकम् // या काचित्सप्तमी शुक्ला रविवारयुता यदि / तस्यां दिनेशं संपूज्य दद्यादयं पुरोदितम // // अथ सर्वमंत्रानुष्ठानोपयोगिप्रारम्भात्पूर्वकत्यम् // तत्रादौ चन्द्रतारादिबलान्विते सुदिने सुमुहूर्ते तीर्थपुण्यक्षेत्रनिर्जनस्थाना al दावनुष्ठानयोग्यभूमिपरिग्रहणं कृत्वा तत्र मार्जनदहनखननसंप्लावनादिभिः स्मृत्युक्तैः शोधनोपायैः शुद्धिं संपाद्य जपस्थानस्य चतु दिक्षु कोशं कोशद्वयं वा क्षेत्रं चतुरस्रमाहारादिविहारार्थ परिकल्प्य जपस्थानभूमौ कूर्मशोधनं कुर्य्यात् // ततः पुरश्चरणात प्राक् तृतीय। दिवसे क्षौरादिकं विधाय प्रायश्चित्तांगविष्णुपूजाविष्णुतर्पणविष्णुश्राद्धं होमं चांद्रायणादिवतं च कुर्यात् // व्रताशक्तौ गोदानं द्रव्य ॐ दानं च कुर्यात् // सर्वकर्मणामशक्ती प्रायश्चित्तांगपंचगव्यप्राशनं कुर्यात् // तत्र मंत्रः // ॐ यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके // प्राशनं पंचगव्यस्य दहत्वनिरिवेंधनम् // 1 // मूलं पठित्वा प्रणबेन पंचगव्यं पिबेत !! तहिने उपवासं कुर्यात् // अशक्तश्चेत 10 For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shiv a Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म०पयःपानहविष्यान्नेनैकभुक्तिवतम् / पुरश्चरणात् पूर्वदिने स्वदेहशुद्ध्यर्थ पुरश्चरणाधिकारप्राप्त्यत्यर्थ चायुतगायत्रीजपं कुर्य्यात् // पू० खं० 1 तथा च देशकालौ संकीर्त्य ज्ञाताज्ञातपापक्षयार्थ करिष्यमाणामुकदेवतापुरश्चरणाधिकारार्थममुकमंत्रेग सिध्यर्थं च गायत्र्ययुतज ॥३७॥यापार सन्दे०प० छपमहं करिष्ये // इति संकल्प्य गायत्र्ययुतं जपेत् / ततो गायत्र्याचार्य्यऋषि विश्वामित्रं तर्पयामि / गायत्रीछंदस्तप / तरं०४ यामि / सवितारं देवं तर्पयामि // इति तर्पणं कुर्यात् / ततस्तस्यां रात्री देवतोपास्ती शुभाशुभस्वमं विचारयेत् / तथा च स्नानादिकं कृत्वा हरिपादांबुजं स्मृत्वा कुशासनादिशय्यायां यथासुखं स्थित्वा वृषभध्वजं प्रार्थयेत / तत्र मंत्र:-ॐ भगबन्दे| नवदेवेश शूलभूटषवाहन // इष्टानिष्टं समाचक्ष्व मम सुतस्य शाश्वत // ॥ॐ नमोऽजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने // वामाय विश्वरूपाय स्वमाधिपतये नमः // 2 // स्वप्ने कथय मे तथ्यं सर्वकार्यवशेषतः // क्रियासिद्धिं विधास्यामि त्वत्प्रसादान्महेश्वर // 3 // इति मंत्रणाष्टोत्तरशतवारं शिवं प्रार्थ्य निद्रां कुर्य्यात्।ततः निशि दृष्टं स्वप्नं प्रातर्गुरवे विनिवेदयेत्॥अथ वा स्वयं य॑मं विचारयेत् ॥इति | 1 देवीभागाते-यस्य कस्यापि मत्रस्य पुरश्चरणमारभेत / व्याहृतित्रयसंयुक्तां गायत्रीं चायुतं जपेत् / / नृसिंहावराहणां तांत्रिक वैदिकं तथा / विना नया तु] |गायत्रीं तत्सर्व निष्फलं भवेत् // २लिंग चन्द्रायोरिच भारती नाहीं गुरुम् / रक्ताधितरणं युद्धे जयोनल समचनम् // शिखिहंसरांगावे रथे स्थानं च मोहनम् / आरोहणं सत्य धरा लाभच निम्नगा // प्रासादः स्पन्दनः पद्म छत्रं कन्या द्रुमः फली / नागो दापो हयः पुष्पं वृषभोश्वश्च पर्वतः।। सुरावटो ग्रहास्तारा नारी सूर्योदयोप्सराः / दर्ग्यशैल / / विमानानामा रोहो गगने गमः // मयमांसादनं विटालेपो मधिरसेचनम् / ध्योदनादनं राज्याभिषेको गोवृषध्वनाः // सिंहः सिंहासनं शंखो वादि रोवना देभिः / // 37 // चन्दन तर्पणे चैषां स्वप्ने संदर्शन शुभम् / / तैलाभ्यक्तः कृष्णवर्णों नमोनागर्तवायसौ / शुष्ककंटकिवृक्षश्च चांडालो दीकंधरः // प्रासादस्तलहीन नते स्वप्ने / शुभावहाः // इति विचारयेत् // For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पूर्वकत्यम्॥ अथ प्रातःकत्यम्॥पुश्चरणदिवसे श्रीमत्साधकेन्द्रः प्रातःकालात्पूर्व दंडव्यात्मके ब्राह्म मुहूर्ते चोत्थाय निद्रास्थानादहिनिर्गत्य | हस्तौ पादौ प्रक्षाल्याचम्य रात्रिवस्त्रं परित्यज्यान्यवस्वं परिधाय शुद्धासन उपविश्य स्वशिरसि सहस्रदलपंकजे कोटींदुप्रकाशपीठे श्रीगुरुं ध्यायेत // तथा च-आनंदमानंदकरं प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपम् // योगीन्द्रमीड्यं भवरोगवैद्यं श्रीमद्गुरुं नित्यमहं भजामि // 3 // इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य। प्रातःप्रभृतिसायांतं सायादिप्रातरंततः // यत्करोमि जगन्नाथ तदस्तु तब पूजनम् // 1 // इत्यनेन ॐ मंत्रेण सर्व गुरुवे निवेद्य तदाज्ञां गृहीत्वा मूलमंत्रदेवतायाः प्रातः स्मरणं कुर्यात् // प्रातः स्मरणं कृत्वा गुरुमंत्रदेवतात्मनामैश्यं विभाव्य अजपाजपं गुरखे समर्पयेत् // ( अथाजपाजपसंकल्पः संक्षेपतः ) आधारे लिंगनाभौ हृदयसरमिजे तालुमूले ललाटे हे पद्मे षोडशारे द्विदशदशदले द्वादशा चतुष्के / वासांते बालमध्ये डफकठसहिते आदियुक्ते स्वराणां हंसंतत्त्वार्थयुक्तं सकलदलगतं वर्णरूपं नमामि // // 3 // षट्शतं तु गणेशस्य षट्सहस्र प्रजापतेः // षट्सहस्रं गदापाणेः षट्सहस्रं पिनाकिनः // 2 // आत्मनस्तत्सहस्रं च सहस्रं पर मात्मनः // सहस्रं श्रीगुरुभ्यश्च ह्येवं तानि नियोजयेत् // 3 // हंसो गणेशो विधिरेव हंसो हंसो हरिर्हममयश्च शंभुः // हंसोपि जीवः परमात्महंसो हंसो गुरुहेसमयश्च शंभुः // 4 // इति पठित्वा अहोरात्रोच्चारितं षट्शताधिकमेकविंशतिसहस्रमुच्छासनिश्वासात्मकमजपा गायत्रीमंत्रजपं श्रीगणेशब्रह्मविष्णुरुद्रजीवात्मपरमात्मश्रीगुरुग्यो यथासंख्यं समर्पयामि // इत्युक्त्वाष्टोत्तरशतावृत्तिं सगायत्री जपेत् // अथ हंसगायत्रीमंत्रः॥ हरिः ॐ हंसो हंसस्य विद्महे हंसो हंसस्य धीमहि // हंसो हंसः प्रचोदयात् // इति जपित्वा त्रैलोक्यचै तन्यमयि त्रिशक्ते श्रीविश्वमातर्भवदाज्ञयैव // प्रातः समुत्थाय तव प्रियार्थ संसारयात्रामनुवर्तयामि // 1 // इति संप्रार्थ्य भूमिं प्रार्थ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं०म० येत् // तत्र मंत्रः-समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमण्डले // विष्णुपनि नमस्तुत्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे॥१॥ इति भूमि संधार्य श्वासानुसारण पू० खं. 1 9 भमौ पादं दया बहिबजेत् // इति प्रातःकत्यम् / ततो पानादहिः नैर्ऋत्यकाणे जनवजिते उत्तराभिमुखः अनुपानत्कः वस्त्रेण शिरःसन्दे०प० प्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा मृत्तिकया जलेन यथासंख्यं शौचं कृत्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूषं च कृत्वा दंतधावनं कुर्यात् / तथा च-है तो आम्रचम्पकापामार्गाद्यन्यतमं द्वादशांगुलं दन्तकाष्ठं गृहीत्वा प्रार्थयेत् / आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च // श्रियं प्रज्ञां च मेधां च की त्वन्नो देहि वनस्पते // 1 // इति संप्रार्थ्य / 'ॐ ह्रीं तडित् स्वाहा' इति मंत्रण काष्ठं छित्त्वा ॐ क्रीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः। में इत्यनेन दंतान संशोध्य है' मंत्रण जिह्वामुल्लिख्य दन्तकाठं झालयित्वा नैर्ऋत्यां शुद्धदेशे निक्षिपेत् / मृलेन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नान कुर्य्यात् // तत्रादौ तीर्थस्नानप्रयोगः / गंगायमुनादिनद्यभावेतडागादिकं गत्वा ततः पाणिपादं प्रक्षाल्य नाभिमात्रे जले गत्वा शिखां वद्धा आचम्य देशकालौ संकीर्त्य मम ज्ञाताज्ञातसमस्तपापक्षयार्थं करिष्यमाणामुकदेवतामंत्रपुरश्चरणाधिकारार्थ शरीरशुद्धयर्थ चा है। मुकमायश्चित्तांगभूतमादौ तीर्थस्नानमहं करिष्ये / इति संकल्प्य वात्वा पुनः आचम्य देवर्षिपितृतर्पणं कृत्वा ततो यक्ष्मणे तिलजलं दद्यात् तथा च-ॐ यन्मया दृषितं तोयं मलैः शारीरसम्भवैः॥तस्य पापस्य शुद्ध्यर्थ यक्ष्मनने तिलोदकम् // 1 // इति यक्ष्मणे तिलो दकं दत्त्वा ततस्तीरमागत्य-ॐ अग्निदग्धाश्च ये जीवा येप्यदग्धाः कुले मम॥ भमौ दत्तेन तृप्यतु तभा यांतु परां गतिम् ॥१॥इति जलांजलि तटे निक्षिप्य पुनराचम्य सायाय॑ दद्यात् / तथा च-ॐ एहि मूर्म्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते // अनकंपय मां देव गृहाणाय नमोस्तु ते // 1 // इति सूर्यायाय॑ दत्त्वा जलाइहिनिष्क्रम्य शुष्कं शुभं कार्पासोत्पत्तिवस्त्रं स्वेतवर्ग प्रयोगोक्तं // 38 // वा परिधाय स्नायी वस्त्रं परिपीड्य गृहं गच्छेत् // इति तीर्थस्नानप्रयोगः॥ // // // // // For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir / अथ गृहस्नानप्रयोगः // तात्कालिकोद्धृतोदकेन उष्णोदकेन वा स्नानं कृत्वा न तु पर्युषितशीतोदकेन, ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् // तत्र मंत्रः-ॐ ब्रह्मांडोदरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते खे // तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर // 3 // ॐ गंगे। च यमुने चैव गोदावार सरस्वति // नर्मदे सिंधुकावेरि जलेस्मिन्सन्निधिं कुरु // 2 // आवाहयामि त्वां देवि स्नानार्थमिह / सुंदरि // एहि गंगे नमस्तुत्यं सर्वतीर्थसमन्विते // 3 // ॐ पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा / / आगच्छंत पवित्राणि स्नानकाले सदा मम // 4 // इति तीर्थान्यावाह्य / ॐ ऋतं च सत्यमित्यघमर्षणमंत्रेणाभिमंत्र्य वरुणमंत्रण स्नात्वा वक्ष्यमाणैश्चतुर्भि मैत्रः कुशत्रयेण शिरसि जलं प्रक्षिपेत् // तत्र मंत्रः-ॐ सिमक्षोनिखिलं विश्वं मुद्रशुक्र प्रजापते // मातरः सर्वभूतानामापो देव्यः | 1 पुनंतु माम् // 1 // अलक्ष्ममिलरूपा या सर्वभूतेषु संस्थिता // झालयंती निजस्पर्शादापो देव्यः पुनंतु माम् // 2 // यन्मे केशेषु। दौर्भाग्यं सीमंते यच्च मूर्द्धनि / ललाटे कर्णयोरक्ष्णोरापस्तद्नंतु वो नमः // 3 // आयुरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षयः सुखम॥ संतोषः शांतिरास्तिक्यं विद्या भवतु वो नमः // 4 // इति शिरः प्रोक्ष्य हस्तेन जलमादाय नासिकायां संयोज्य ॐ ऋतं च सत्यमित्यधर्मषणमंत्र / पठित्वा जलं वामभागे निक्षिपेत् // एवं स्नात्वा शुष्कं शु कसोत्पनिवस्त्रं परिधाय सूर्यमंत्रेण सूर्यायायं दत्त्वा स्नानीयवस्वं परिपा / ड्याचम्य शैवः पंचत्रिपुडूं वैष्णवों द्वादशोर्द्धपण्डं तिलकं कुर्यात् // अथ तिलकधारणप्रकारः // तत्रादौ शैवे भस्मत्रियंड्रप्रकारः // वामहस्ते दक्षिणहस्तेनानिहोत्रोत्थितं भस्मादाय उदकमिश्रणानन्तरम् ॐअभिरिति भस्म, ॐ वायुरिति भस्म,ॐ जलमिति भस्म, ॐ स्थल / मिति भस्म, ॐ व्योमेति भस्म, सर्वठ हवा इदंभस्म मन एतानि चक्षुषि भस्मानीति भम्माभिमंत्र्य ॐव्यंबकं पठित्वा ॐ तत्पुरुषाय नमः / For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म 39 // इति मंत्रण भाले त्रिपुंडू कुर्य्यात् // 1 // पुनः ॐ त्र्यंबकं पठित्वा ॐ अधोराय नमः इति दाक्षिणांसे तिलकं कुर्य्यात् // 2 // पुनः ॐ त्र्यंबकं पठित्वा ॐ सद्योजाताय नमः इति मंत्रेण वामांसे तिलकं कुर्य्यात् // 3 // पुनः ॐ त्र्यंबकं पठित्वा ॐ वामदेवाय नमः इति मंत्रण जठरे तिलकं कुर्यात् // 4 // पुनः ॐ त्र्यंबकं पठित्वा ॐ ईशानाय नमः इति मंत्रेण वक्षसि च त्रिपुंडं कुर्यात् // 5 // इति पंचत्रिपुंडू कृत्वा रुद्राक्षालांच धारयन् सन्ध्यावन्दनादि कर्म कुर्यात् // इति भस्मत्रिपुंडप्रकारः॥अथ वैष्णवानामूर्ध्वपुंडविधानम्॥गोपीचं / दनतुलसीमूलसिंधुजाह्नवीतीरोद्भवमृदा केशवादिद्वादशनामभिर्ललाटादिषु द्वादशस्थानेषुउर्द्धपुंडतिलकं कुर्यात् // तत्र क्रमः॥ॐकेशवाय नमः इति ललाटे कार्यम्॥१॥ ॐ नारायणाय नमः इति उदरे कार्यम्॥२॥ ॐ माधवाय नमः इति हृदये कार्यम् // 3 // ॐ गोविं दाय नमः इति कण्ठे कार्यम्॥४॥ ॐ विष्णवे नम इति दक्षिणपाचे कार्यम्॥५॥ ॐमधुसूदनाय नमः इति दक्षबाही कार्यम्॥६॥ॐ त्रिविक्रमाय नमः इति दक्षिणकर्ण कार्यम्॥७॥ॐ वामनाय नमः इति वामपार्थ कार्यम॥ॐ श्रीधराय नमः इति वामवाही कार्यम। d॥९॥ॐ हृषीकेशाय नमः इति वामकर्ण कार्यम् // 10 // ॐ पद्मनाभाय नमः इति पृष्ठे कार्यम् // 1 // ॐ दामोदराय नमः इति / ककुदि कार्यम् // 12 // एवं द्वादशस्थानेषु तिलकं कुर्यात् // इति वैष्णवोर्ध्वपुंडविधानम् // इति तिलकं कृत्वा वैदिकी संध्या विधाय शिवमंत्रेण तांत्रिकी कुर्यात् // अथ तांत्रिकसंध्याप्रयोगः // देशकालौ संकीर्त्य श्रीअमुकदेवताराधनयोग्यताजननार्थ मंत्रसंध्यामहं कारष्ये / इति संकल्प्य ॐ ह्रां आत्मतत्त्वाय स्वाहा॥१॥ॐ ह्रीं विद्या तत्त्वाय स्वाहा // 2 // ॐ हूं शिवतत्त्वाय धि 1 ललाटे तु गदां कुर्याबृदये नंदकं पुनः / शंख चक्र भुन देदे शाङ्ग चाणं च मूर्द्धनि // एतानि चिह्नानि धारयेत् // For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir स्वाहा // 3 // इति त्रिराचम्य मूलेन प्राणानायम्य ऋप्यादिकरांगन्यासौ कृत्वा मूलेन जलं संवीक्ष्य अस्त्राय फट् इति संप्रोक्ष्य अनेनैव दर्भेण भंताड्य कवचाय हुम् इत्यायुक्ष्य तज्जलेन कुंभमुद्रया मुर्दिन सिंचेत् // ततो वामपाणी दक्षेण तीर्थजल मादाय हृदयादिपडंगमंत्रेणाभिमध्य नद्रालितोदकबिंदुभिर्दशहस्तेन हृदयादिषडंगन्यासमंत्रद्वारा पद्भिः शिरमि मार्जयेत् // 6 // पुनः ॐ आं हां व्योमव्यापिने नमः इति मार्जयेत् // 7 // ॐ सद्योजातंप्रपद्यामिसद्योजातायवैनमः भवभवेनातिभवेभवस्यमांभवोद्भवाय नमः॥ 8 // ॐ वामदेवाय नमः / ज्येष्टाय नमः / श्रेष्ठाय नमः / रुद्राय नमः / कालाय नमः / कलविकरणाय नमः / बलाय नमः। बलविकरणाय नमः / बलप्रमथनाय नमः / सर्वभूतदमनाय नमः / मनोन्मनाय नमः // 5 // ॐ अधोरेयोथघोरेन्योघोरघोरतत्यः शयःशर्वशवायोनमस्तेअस्तुरुद्ररूपेभ्यः॥१०॥ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् // 11 // ॐ ईशानः / सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मेस्तु मदाशिवोम् // ओ३म हाँह्रींहमूलमंत्रैश्च एतमर्जियेत् / वामहस्तस्थजलं वामनासासमीपमानीय इडया देहांतरादाकृष्यपापौधं प्रक्षाल्य कृष्णवर्ण तदुदकं दक्षिणया विरेच्य वामह स्तस्थं दक्षिणेनादाय पुरःकल्पितबज्रशिलायामस्वमंत्रेण क्रोधादास्फालयेत् // ततः पूर्ववदाचम्य करांगन्यासौ कृत्वा | अर्घपात्रे जलं कृत्वा तदादाय मूलमुच्चार्य शिवरूपाय सूर्याय इममर्य स्वाहा इति विरयं दत्वा मूलेनोपस्थाय गायत्रीमूलमंत्र / जपेत् // गायत्रीमंत्रो यथा-ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् // इति गायत्रीमष्टाविंशतिमष्टोत्तरशतं वा मूलं च संजप्य जपं निवेद्य नमस्कुर्यात् // इति तांत्रिकसंध्याप्रयोगः // अथ द्वारपूजाप्रयोगः॥ पूजागृहद्वारमागत्यास्त्राय फडिति द्वार For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं० म० // 40 // पू०ख०१ सन्दे०प० तरं०४ संप्रोक्ष्य दक्षिणशाखायाम्-ॐ गं गणपतये नमः॥1॥ ॐ दुर्गायै नमः // 2 // वामशाखायाम्-ॐ वं बटुकाय नमः // 1 // ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः // 2 // द्वारोपरि-ॐ सं सरस्वत्यै नमः // 1 // देहल्याम्-ॐ अस्त्राय फट् इति पूजयेत् // इति द्वार पूजाप्रयोगः // अथ क्षेत्रकीलनम् // जास्थाने गत्या पृथ्वीग्रहणं कुर्यात् // तद्यथा-गृहीतस्यास्य मंत्रस्य पुरश्चरणसिद्धये // मयेयं गृह्यते भूमिर्मत्रोयं सिद्धिमाप्नुयात्॥३॥इति भूमि संगृह्य अश्वत्थोदुंबरपक्षाणामन्यतमवितस्तिमात्रान् दशकीलान् / ॐ नमः सुदर्शनायास्वाय फट् इति मंत्रण अष्टोत्तरशतरुत्वोऽभिमंत्रितान्-ॐ ये चात्र विन्नकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः॥विनभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्यमिद्धिषु॥३॥ मतत्कीलितं क्षेत्रं परित्यज्य विदूरतः // अपसर्वतु ते सर्वे निविना सिद्धिरस्तु मे॥ 2 // इति मंत्रद्वयन दशदिक्षु दशकीलान निखनेत॥ ततस्तेषु ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट् इति मंत्रण प्रत्येककीलान संपूज्य तत्रैव पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिलोकपालानाबाह्य पंचोपचारैः संपूज्य जस्थानमध्ये गणेशं कृानंतवसुधाक्षेत्रपालांश्च संपूज्य दिक्पालेयःक्षेत्रपालगणपतित्यश्च मापभक्तबलिं दत्त्वा तद्बाह्ये भूतबलिं दद्यात्॥ तत्र मंत्रः-ये रौद्रा रौद्रकर्माणो रौद्रस्थाननिवामिनः // मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च मे // 1 // भूचराः खेचराश्चैव तथा चैवांतरिक्षगाः॥ ते सर्वे प्रीतमनसः प्रतिगृह्णविमं बलिम् // 2 // इति मंत्रव्येन दशदिक्षु बाहो माषभक्तवलिं दद्यात् / ततो वामकरांगुलिभिरय॑जलेनोत्सृज्य पुष्पांजलिं गृहीत्वा / ॐ भूतानि यानीह वसंति भूतले बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम् // संतोपमासाद्य वजंतु सर्वे क्षमंतु तान्यत्र नमोस्तु तेभ्यः // 1 // इति पुष्पांजलिं दत्त्वा प्रणम्य हस्ती पादो प्रक्षाल्याचामेत् // इति क्षेत्रकीलनम् // 1 विवभूताच ये चान्ये दिग्विदिक्षु समाश्रिताः // इति पाठान्तरम् // USB // 10 // For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir अथ प्रयोगविधानम् // ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा // यः स्मरेसुंडरीकाक्षं सबाह्या यंतरः शुचिः // 1 // इति| मंत्रण मंडपांतरं प्रोश्य तत्र तावत् आसनभूमौ कूर्मशोधनं कार्यम् // यत्र जपकर्ता एक एव तंत्र कुर्ममुखे उपविश्य जपं तत्रैव दीपस्थापन च कुर्यात् // यत्र बह्यो जापकास्तत्र कुर्ममुखोपार दीपमेव स्थापयेत् / एवं कर्मशोधनं विधाय तत्रासनाधो जलादिना त्रिकोण कत्वा तत्र ॐ काय नमः // 1 // ॐ ह्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः // 2 // ॐ पृथिव्यै नमः // 3 // इति गंधाक्षत पुष्पैः संपूज्य तदुपरि कुशासनं तदुपरि मृगाजिनं तदुपरि कंबलाद्यासनमास्तीर्य्य स्थापितानां त्रयाणामासनानामुपरि क्रमेण ॐ अनंता सनाय नमः ॥१॥ॐ विमलासनाय नमः // 2 // ॐ पद्मासनाय नमः // 3 // इति मंत्रत्रयेण त्रीन दर्भान प्रत्येकं निदध्यात् एवमासनं संस्थाप्य तत्र प्राइमख उदङ्मुखो वा उपविश्य आसनं शोधयेत् / तत्र मंत्रः-ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठऋषिः, कर्मों देवता, | सुतलं छंदः आसने विनियोगः॥ ॐ पृश्चि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता // त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥१॥lke इति मंत्रणासनं प्रोक्षयेत् / ततः मूलमंत्रेण शिखां बद्धा-ॐ केशवाय नमः // 1 // नारायणाय नमः // 2 // माधवाय नमः // 3 // इति विराचम्य प्राणायामं कुर्यात् / तद्यथा-दक्षिणहस्तांगुष्टेन दक्षनासापुटं निरुध्य वामनासापुटेन मूलं पोडशवारं जपन शनैःशनैः प्राणाख्य वायुमाकृष्य शिरसि सहस्रारे धारयेदिति पूरकम् // 1 // पुनः दक्षहस्तानामिकातर्जन्यंगुष्ठैर्नासापुटद्वयं निरुध्य मूलं चतुःपष्टिवारं जपन कुंभयेत // 2 // पुनर्दक्षनासापुटांगुष्ठनिरोधनं त्यक्त्वा मूलं द्वात्रिंशद्वारं जपन् शनैःशनैस्तद्वायुं रेचयेत् // 3 // इति प्राणायाम त्रयं कृत्वा देशकालौ संकीर्त्य अमुक गोत्रः श्रीअमुकदेवशाहममुकदेवताया अमकमंत्रसिद्धिप्रतिबंधकाशेषदुरितक्षयपूर्वकामुकमंत्र For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म. // 41 // सिद्धिकामोऽद्यारश्य यावता कालेन सेत्स्यति तावत्कालममुकमंत्रस्येयत्संख्याकजपतद्दशांशहोमतदशांशतर्पणतद्दशांशाभिषेकतह-शांशबापू०ख०१ मणभोजनरूपपुरश्चरणं जपरूपपुरश्चरणं वा करिष्ये इति संकल्प्य ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट् इति मंत्रण तालत्रयेण दिग्बंधनं सदेप० कत्या भूतशुद्धिं कुर्य्यात् // अथ भूतशृद्धिप्रकारः // ॐ सूर्यः मोमो यमः कालः संध्या भूतानि पंच च // एते शुभाशुभस्येह कर्मणो / मम साक्षिणः // 1 // भो देव प्राकृतं चित्तं पापाक्रांतमभून्मम // तन्निस्सारय चिनान्मे पापं तेस्तु नमोनमः // 2 // इति प्रार्थ्य दक्षिणभागे-श्रीगुरुग्यो नमः॥ 1 // वामभागे-ॐ गणेशाय नमः // 2 // इति नत्वा भृतशुद्धिं कुर्यात / तथा च कुंभकपाणायामे मूलाधारात् कण्डलनी परदेवतां विसतंतुनिभां समुत्थाप्य ब्रह्मरंध्रगतां स्मृत्वा हृदयस्थं जीवं प्रदीपं कलिकाकारं गृहीत्वा सुषुम्नामार्गेण ब्रह्म र, गत्वा ॐ हंसः सोहं इति मंत्रेण जीवं ब्रह्मणि संयोजयेत / ततः पादादिजानुपर्यंतं चतुष्कोणं बजलांछितं स्वर्णवर्ण पृथ्वीमंडलं ! (ॐ लं) इति भूवीजाट्यं स्मरेत् // 1 // जान्बादिनाभिपर्यंतमर्द्धचन्द्राकारं पद्मयांकितं श्वेतवर्णमपां स्थानं मोममंडलम् ( ॐ . ) इति / वरुणबीजाम्यं स्मरेत् // 2 // नात्यादिहृदयपर्यंत त्रिकोणं स्वस्तिकांकितं रक्तवर्णमानमंडलम्( ॐ Rs ) इति वह्निबीजाध्यं स्मरेत् // 3 // हृदयादिचूमध्यपर्यंत वृत्नं षडिंदलांछितं धूम्राभं वायुमंडलम (ॐ यं) बीजाट्यं स्मरेत् // 4 // भ्रूमध्यादारभ्य ब्रह्मरंध्रांतं वृत्तं स्वच्छं / मनोहरमाकाशमण्डलम् (ॐ हँ ) बीजाढ्यं स्मरेत् // 5 // एवं भृतगणं स्मृत्वा ततः पूर्वोक्नभूमंडले-पादेन्द्रियं / गगनं 2 घाणं 3 गंधः 4 बमा 5 निवृत्तिः६ समानः 7 गंतव्यदेश 8 श्च एवमष्टौ पदार्थाश्चित्याः // 1 // जलमंडले-हस्तेन्द्रिय 1 ग्रहण 2 गाह्य 3 // 41 // 1 यामळे-भूतशुद्धिलिपिन्यासी विना यस्तु प्रगूजयेत् / विपरीतं फलं दद्यादभक्रया पूजने यथा // For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नारसना 4 रस 5 विष्णु.६ प्रतिष्ठो 7 दानाः ध्येयाः // 2 // तेजोमंडले-वायु 1 विसर्ग 2 विसर्जनीय 3 चक्षू 4 रूप 5 शिव 6 विद्या 7 व्यानाः 8 ध्येयाः॥३॥ वायुमंडले-उपस्था 1 नन्द 2 वी 3 स्पर्शन 4 स्पर्श 5 ईशान 6 शांत्य 7 पानाः 8 ध्येयाः // 4 // आकाशमंडले-वाग 1 वक्तव्य 2 वदन 3 श्रोत्र 4 शब्द 5 सदाशिव 6 शांत्यतीताः 7 प्राणा 8 इत्यष्टौ चिंत्याः // 5 // एवं भूतानि संचिंत्य पूर्वपूर्वकार्यस्योत्तरोत्तरं कारणे विलापनं ब्रह्मपर्यंतं कार्य्यम् तथा च-ॐ लं फट् इत्यनेन पंचगुणां पृथ्वीमप्मु उप के संहरामीति जले भुवं विलापयेत् // 1 // ॐ व हुं फट् इति चतुर्गुणा अपोनौ उपसंहरामीति वह्नौ जलं विलापयेत् // 2 // ॐ हँ हुँ / फट् इति त्रिगुणं तेजो वायावुपसंहरामीति वह्नि वायौ विलापयेत् // 3 // ॐ य हु फट् इति द्विगुणं वायुमाकाश उपसंहरामीति वायुमाकाशे विलापयेत् // 4 // ॐ हँ हुँ फट् इत्येकगुणमाकाशमहंकार उपसंहरामीत्याकाशमहंकारे विलापयेत् // 5 // ॐ अहं कारं महत्तत्त्व उपसंहरामीत्यहंकारं महत्तत्वे विलापयेत् // 6 // ॐ महत्तत्त्वं प्रकृतावुपसंहरामीति महत्तत्त्वं प्रकृतौ विलापयेत् // 7 // ॐ प्रकृतिमात्मन्युपसंहारामीत्यनेन मायामात्मनि विलापयेत्॥८॥ एवं शुद्धसच्चिन्मयो भूत्वा पापपुरुषं चिंतयेत् / तथा च बासनामयं वाम कुक्षिस्थितं कृष्णमंगुष्टपरिमाणकं ब्रह्महत्याशिरोयुक्तं कनकस्तेयबाहुकं मदिरापानहृदयं गुरुतल्पकटियुतं तत्संसर्गिपदवंद्वमुपपातकमस्तकं खड्गचर्मधरं दुष्टमधोवकं मुदुःसहमेवं पापपुरुषं चिन्तयित्वा पूरकप्राणायाम (ॐ यँ ) इति वायुवीजन द्वात्रिंशद्वारं षोडशवारं वा आव तितेन पापपुरुषं शोषयेत् // 1 // ततः स्वशरीरयुतं पापं कुंभके (ॐ रं) इति वह्निबीजेन चतुःषष्टि 64 वारमावर्तितेन तदुत्थाना मिना दहेत् // 2 // ततो रेचकप्राणायाम (ॐ यँ ) इति वायुबीजं षोडशवारं द्वात्रिंशद्वारं वा जपित्वा दक्षिणनाड्या तद्भस्म स्वशरीरा For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० दहिः रेचयेत // 3 // ततो देहोत्थं भस्म (ॐ) इत्यच्चारितेन मधाबीजेन तदुत्थाऽमृतेन संप्लाव्य पश्चात् (ॐ लँ) इति भूबीजेन पू० खं० 1 तद्भस्म घनीभूतं पिंडं कृत्वा कनकांडवद्भावयेत् // 4 // ततः (ॐ है ) इति आकाशबीजं जपन तलिण्डं मुकुराकारं भावयित्वा तस्य स०दे०प० की मृादिनखांता अवयवा मनसा रचनीयाः // 5 // ततः पुनरपि मृष्टिमार्गण ब्रह्मणः सकाशादाकाशादीनि भूतान्युत्सादयेत् / तथा च | तरं०४ ब्रह्मणः प्रकृतिः / प्रकृतेर्महत् 2 महतोऽहंकारः 3 अहंकारादाकाशः 4 आकाशाद्वायुः 5 वायोरग्निः 6 अग्नेरापः 7 अद्यः | पृथिवी 8 पृथिव्या ओषध्यः 9 ओषधीयोऽन्नम् 10 अन्नाद्रेतः 11 रेतसः पुरुषः 12 इत्युत्पाद्य ॐ हंसः सोहम् इति मंत्रेण ब्रह्म Nणे कभृतं जीवं स्वहृदयांबुजे संस्थाप्य कुंडली मूलाधारगतां स्मरेत / अथ ध्यानम् // रक्ताम्भोधिस्थपोतोल्लसदरुणसरोजाधिरूढा करा जैः पाशं कोदंडमिशूद्भवगुणमथ चाप्यंकुशं पंचबाणान् // विधाणामृकपालं त्रिनयनलसिता पीनवक्षोरुहाढ्या देवी बालार्कवर्णा भवतु मुखकरी प्राणशक्तिः परा नः // 1 // इति भूतशुद्धिप्रकारः // एवं भूतशुद्धिं कृत्वा स्वशरीरे स्वेष्टदेवतायाः प्राणान प्रतिष्ठापयेत् // अथ स्वप्राणप्रतिष्ठाप्रकारः॥अस्य स्वप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः, ऋग्यजुःसामानि च्छन्दांसि, प्राणशक्तिर्देवता, आँ बीजम्॥हीं शक्तिः, कौं कीलकम्, स्वशरीरेऽमुकदेवताप्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः॥ॐ ब्रह्मविष्णुमहेश्वरऋषिल्यो नमः शिरसि ॥३॥ॐ ऋग्यजुःसाम च्छंदोत्यो नमो मुखे॥२॥ ॐ प्राणशक्त्यै नमः॥३॥ॐ बीजाय नमः गुह्ये॥४॥ह्रीं शक्तये नमः पादयोः॥५॥ौं कीलकाय नमः सर्वांगे। ॥६॥इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ डकखंघगं नाभौ वाय्वग्निवाभ्यात्मने हृदयाय नमः // 1 // ॐ अंचंछंझंजं शब्दस्पर्शरूपरसगंधात्मने शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ णटंटंटंडं श्रोत्रत्वङ्नयनजिह्वाप्राणात्मने शिखायै वषट् // 3 // ॐ नंतथंधंदं वाक्पाणिपायपस्थात्मने / For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कवचाय हुँ॥४॥ ॐ भपंफंभवं वक्तव्यादानगमनविसर्गानंदात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ शयरंखलंहषंक्षसंलं बुद्धिमनोहंकार चित्तात्मने अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासं कृत्वा नाभेराश्य पादांतम् ( आँ) इति पाशवीजं विन्यसेत् // 1 // हृदयादारभ्य नायतम् (हीं) इति शक्तिबीजं न्यसेत् // 2 // मस्तकादारभ्य हृदयांतं (को) इति मणिबीजं न्यसेत् // 3 // ॐ यं त्वगात्मने नमः // ॐ रं अमृगात्मने नमः // ॐ लं मांसात्मने नमः // ॐ वं मेदात्मने नमः // ॐ शं अस्थ्यात्मने नमः // Nॐ पं मज्जात्मने नमः // ॐ सं शुक्रात्मने नमः // ॐ ह्रों ओजात्मने नमः // ॐ हैं प्राणात्मने नमः // ॐ स जीवात्मने नमः इति शि हृदि विन्यसेत् // 4 // ॐ यरलवशंघसंहलंसं इति मर्दादिचरणावधि व्यापकं कुर्य्यात् // 5 // ततः मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठ देवताभ्यो नमः // 1 // ॐ जयादिपीठशक्तिभ्यो नमः / / 2 // इति नत्वा ॐ आँहींकों पीठाय नमः // इति पीठे प्राणशक्तिं देवीं ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // पाशं चापासृक्कपाले मृणीषशूलं हस्तबिंधती रक्तवर्णम् // रक्तोदन्वत्पातरक्तांबुजस्थां देवीं ध्यायेत्याण शनि त्रिनेत्राम् // 1 // इति ध्यात्वा हृदि करं निधाय ॐ आँहींकायरलँवैशषसहक्षहँसाह्रीं ॐ मम शरीरेऽमुकदेवतायाः प्राण इह पाणः // 3 // पुनः ॐआँहीक्रॉयरलँबशपसँहाहसः ह्रीं ॐ मम शरीरेऽमुकदेवतायाः जीव इह स्थितः // 2 // पुनः ॐ आँह्रींक्रॉयरलँव लशसाहसःह्रीं ॐ मम शरीरेऽमुकदेवतायाः सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःश्रोत्रजिह्वाघाणपादपायूपस्थानि इहैवागत्य मुखं / चिरं तिष्ठतु स्वाहा // 3 // इति वारत्रयेण स्वशरीरे स्वेष्टदेवतायाः प्राण प्रतिष्ठाप्य ततः (ॐ) इति प्रणवेन 15 पंच kelदशावृनिं कृत्वा अनेन मम देहस्य गर्भाधानादिपंचदशसंस्कारान् संपादयामि इति वदेत् इति स्वप्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः // एवं For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 43 // प्रतिष्ठाप्य देवतारूपमात्मानं भावयन् प्राणायामं कृत्वा देवं यजेत् // अथांतर्मातृकान्यासः // ॐ अस्यान्तर्मातृकान्या / * खं०१ समंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, मातृकासरस्वती देवता, हलो बीजानि, स्वराः शक्तयः, शं कीलकम् अखिलाप्तये न्यासे सन्दे०प० विनियोगः // इति जलं भूमौ निक्षिप्य प्राणायाम कुर्यात् / तथा च इडया अइउलएऐओऔ एभिः स्वरैः पूरयेत् / पुनः कुचुटुतुपु इति वर्गपंचकेन कुंभयेत् // पुनः यरलवशपमह एभिरष्टभिर्वणे रेचयेत् / इति प्राणायामं कृत्वा ऋष्यादिन्यासादिकं कुर्यात् / तथा च ॐ अं ब्रह्मणे ऋषये नमः आं शिरसि 3, ॐ इं गायत्रीछंदसे नमः ई मुखे 2, ॐ उं सरस्वतीदेवतायै नमः ॐ हृदये 3, ॐ ऐं हल्क्यो बीजायो नमः ऐ गुह्ये 4, ॐ ओं स्वयः शक्तियो नमः औं पादयोः 5, ॐ अंशं कीलकाय नमः अः सर्वाङ्ग 6, इति क-यादिन्यासः // ॐ अंकखगघङऔं अंगुष्ठायां नमः 1, ॐचंइंछंजंझंत्रई तर्जनीच्यां नमः 2, ॐ उंटठंडंटुणंॐ मध्य मात्यां नमः 3, ॐ एतथंदधन, अनामिकायां नमः४,ॐ ऑपफवभमंऑकनिष्ठिकाभ्यां नमः५,ॐ अयरलवंशषसहलंमंजः करतलकर पृष्ठास्यां नमः 6 इति करन्यासः // ॐ अंकखगंबंआँ हृदयाय नमः 1, ॐ इंचंछंजझंबंई शिरसे स्वाहा 2, ॐ उंटेठंडंढणंऊँ शिखायै वषट् 3, ॐ एतथंदधनंऐंकवचायहं 4, ॐ ॐबभमंऔं नेत्रत्रयायवौषट् 5. ॐ अंयरलंवंशंषसंहलंशंःअस्त्राय फट 6 इति हृदयादिषडंगन्यासः॥ततः कण्ठस्थपोडशदलपने-ॐ अंआईई उऊलुलंएण्ऑऔंअंः इति षोडशस्वरान न्यसेत॥३॥पुनः हृदयस्थे दादशदले-ॐ के नमः। ॐ खं नमः। ॐ गं नमः। ॐ यं नमः। ॐ ऊँ नमः। ॐ चं नमः / ॐ छ नमः। ॐ जं नमः। ॐ झं नमः ॐ त्रं 1 देवो भूत्वा देवं यजेत् / इति वचनात् / 2 यथा पर्वतधातूनां दोषान् दहति पावकः / एवमतर्गतं पापं प्राणायामेन दह्यते / ३त्रीलिंगपूजने स्त्रीलिंग न्यसेत् / / For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नमः। ॐ टं नमः। ॐ ठं नमः / इति द्वादशवर्णान् विन्यसेत्॥२॥ ततः नाभौ दशदले-ॐ डं नमः / ॐ ढं नमः / ॐ णं नमः। ॐ तं नमः। ॐ यं नमः / ॐ दं नमः / ॐ धं नमः / ॐ नं नमः / ॐ नमः / ॐ नमः। इति दशवर्णान विन्यसेत् // 3 // तदधोलिंगे। षड्दले-ॐ बं नमः / ॐ ॐ नमः / ॐ मं नमः / ॐ यं नमः / ॐ रं नमः। ॐ लं नमः / इति बादिलांतान्पड्वर्णान् विन्यसेत् / // 4 // आधारे गुदे चतुर्दले-ॐ वं नमः / ॐ शं नमः / ॐ पं नमः। ॐ से नमः। इति वादिसांतांश्चतुर्वर्णान् विन्यसेत् // 5 // ललाटे द्विदले-ॐ हं नमः / ॐ शं नमः इति द्वौ वर्णो विन्यसेत् // 6 // इति न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // आधारे लिंगनाभौ प्रकटित हृदये तालुमले ललाटे वे पत्रे षोडशारे द्विदशदशदले द्वादशा) चतुष्के // वासान्ते वालमध्ये इफकटसहिते कण्ठदेशे स्वराणां हंसं तत्त्वार्थयुक्तं सकलदलगतं वर्गरूपं नमामि // 3 // इत्यंतर्मातृकान्यासः // इत्यंतर्मातृकान्यासं कृत्वा बहिर्मातृकान्यासं कुर्यात् // // अथै बहिर्मातृकान्यासप्रयोगः // ॐ अस्य श्रीवहिर्मातृकान्यासमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, मातृका सरस्वती देवता / हलो | / बीजानि, स्वराः शक्तयः, क्षं कीलकम्, अखिलातये न्यासे विनियोगः // इति जलं भूमौ निःक्षिप्य प्राणायाम कुर्यात् / तथा च इडया अइउकलएऐओऔ एभिः स्वरैः पूरयेत् / पुनः कुचुटुतुपु इति वर्गपंचकेन कुंजयेत् / पुनः यरलवशषसह एभिरष्टभिर्वर्णे रेचयेत् / | इति प्राणायामं कृत्वा ऋष्यादिन्यासादिकं कुर्यात् / तथा च / ॐ अं ब्रह्मणे ऋषये नमः आंशिरसि 1, ॐ इं गायत्रीछन्दसे नमः ई मुखे२, ॐ उं सरस्वतीदेवतायै नमः ॐ हृदये३, ॐ एं हलयो बीजेन्यो नमः ऐ गुह्ये४, ॐ ओं स्वरेण्यः शक्तियो नमः औं पादयोः५, 1 जपार्थं सर्वदेवानां विन्यासे च लिपेविना / कृते तद्धिफलं विद्यात्तस्मादादौ लिॉप न्यसेत् // 2 स्त्रीलिंगपूजने स्त्रीलिंग न्यसेत् // For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir म.म.INॐ अक्षंकीलकाय नमः अः सर्वांगे 6 इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ अंकखगघङ-आं अंगुष्ठाभ्यां नमः 1, ॐ इंचंछंजंझंबंई तर्जनीभ्यां पू० सं०१ नमः 2, ॐ उंटठंडंढणंऊ मध्यमाभ्यां नमः 3, ॐ एतथंदधनऐं अनामिकाभ्यां नमः 4, ॐ ओपब मंओं कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5. सन्दे०५. ॐ अंयरलवंशंसंहलक्षअः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः / इति करन्यासः // ॐ अंकखंगधंडंआ हृदयाय नमः 1, ॐ इंचछजझंबंई। शिरसे स्वाहा 2, ॐ उंटठंडढणंऊं शिखायै वषट् 3, ॐ एतथंदधनऐं कवचायहूं 4: ॐ ओपबंभमंऔं नेत्रत्रयाय वौषट् 5, ॐ अयं / रेलवंशयसंहलंक्षंअः अस्त्राय फट 6 इति हृदयादिषडंगन्यासः // इति विन्यस्य मातृकान्यासं कुर्यात् / तथा च / ॐ अं नमः शिरसि 1, ॐ आं नमः मुखे 2, ॐ ईनमः दक्षिणनेत्रे 3, ॐ ई नमः वामनेत्रे४, ॐ उ नमः दक्षिणकर्ण 5, ॐ ऊं नमः वामकर्णे६, ICIॐ नमः दक्षिणनासापुटे 7, ॐ ॐ नमः वामनासापुटे 8, ॐ लं नमः दक्षिणकपोले 5, ॐ लं नमः वामकपोले 10, ॐ एं नमः उर्बोष्ठे 11, ॐ ऐं नमः अधरोष्ठे 12, ॐ ओं नमः ऊर्ध्वदंतपंक्तौ 13, ॐ औं नमः अधोदंतपंक्तौ 14, ॐ अं नमः मूर्ध्नि 15, ॐ अः नमः मुखंवृने 16, ॐ के नमः दक्षिणबाहुमूले 17, ॐ खं नमः दक्षिणकपरे 18, ॐ गं नमः दक्षिणमणिबंधे 19, ॐ यं नमः दक्षिणहस्तांगुलिमले 20, ॐ ॐ नमः दक्षिणहस्तांगुल्यये 21, ॐचं नमः वामबाहृमूले 22, ॐ छं नमः वामकूपरे 23, ॐ जं नमः वाप्रमणिबंधे 24, ॐ झं नमः वामहस्तांगुलिमूले 25, ॐ अं नमः वामहस्तांगुल्यो 26, ॐ टं नमः दक्षिणपादमूले 27, ॐ ठं नमः दक्षिगजानुनि 28, ॐ डं नमः दक्षिणगुल्फे२९, ॐ ढं नमः दक्षिणपादांगुलिमले 30, ॐ गं नमः दक्षिणपादांगुल्यग्रे३१, ॐ तं नमः 1 तंवसारे तु ललाटे ॥२दक्षिणगण्डे // 3 बामगण्डे॥ कण्ठे इति वा पाठः // ५जिहाने / // 44 // For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir वामपादमूले 32 ॐ थं नमः बामजानुनि 33 ॐ दं नमः वामगुल्फे 34 ॐ धं नमः वामपादांगुलिमले ३५ॐ नं नमः वामपादांगुल्यये 36 * ॐ नमः दक्षिणपार्थे 37 ॐ फनमः वामपा 38 ॐ नमः पृष्ठे 39 ॐ भंनमः नाभी 40 ॐ मं नमः उदरे 41 ॐ यं त्वगा K, त्मने नमः हृदि 42 ॐ रं असृगात्मने नमः दक्षांसे 43 ॐ लं मांसात्मने नमः कुकुदि 44 ॐ व मेदआत्मने नमः वामांसे ४५ॐ श अस्थ्यात्मने नमः हृदयादिदक्षहस्तांतम् 46 ॐ पं मज्जात्मने नमः हृदयादवामहस्तांतम 47 ॐ में शुक्रात्मने नमः हृदयादिदक्षपादन चितम् १८ॐ हं आत्मने नमः हृदयादिवामपादांतम् 49 ॐ लं परमात्मने नमः जठेरे 50 ॐ शं प्राणात्मने नमः मुखे 51 इति विन्य स्य ध्यायेत् / पंचाशल्लिपिभिर्विभक्तमुखदोपत्संधिवक्षस्थलां भास्वन्मोलिनिबद्धचन्द्रशकलामापीनतुंगम्तनीम् // : मुद्रामक्षगुणं सुदाढी / कलशं विद्या च हस्तांबविचाणां विशदप्रभां त्रिनयनां वाग्देवतामाश्रये // 1 // इति बहिर्मातृकान्यामप्रयोगः // अथ सृष्टिक्रमः // तत्र तु विसग्गान्धितः प्रणवष्टितो वा मायालक्ष्मीबीजपूर्वो वा बाग्भवाद्यो वा न्यस्तव्यः / तत्र वाग्भवायो यथा ऐं अं नमः जिह्याय एं अः नमः कंठे 22 कं नमः दक्षिणबाहुमुले 3 ऐं खं नमः दक्षिणकपरे 4 गं नमः दक्षिणमणि ५ऐंघं नमः दक्षिणहस्तांगलि मूले 6 ऐं ङ नमः दक्षिणहस्तांगुल्यो 7 ऐं चं नमः वामबाहृमूले 8 में छं नमः वामकूपरे 98 जं नमः वाममणिबंधे 10 ऐ झं नमः / वामहस्तांगलिमले 11 नमः वामहस्तांगुल्यो 12 ऍटं नमः दक्षिणपादमूले 13 ऐंठं नमः दक्षिणजानुनि 14 ऐंडं नमः दक्षि णगुल्फे १५ऐं हुं नमः दक्षिणपादांगुलिमले 16 ऐं णं नमः दक्षिणपादांगुल्यये 17 ऐं तं नमः वामपादमूले 18 ऐं थं नमः वामजा १-मतांतरे-हृदयान्मस्तकांतम् // Sese For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं० म. नुनि 19 ऐं दं नमः वामगुल्फे 20 ऐंधं नमः वामपादांगुलिमले 21 ऐं नं नमः वामपादांगुल्यो 22 ऐपं नमः दक्षिणपा२३ डापू० खं० 1 में फं नमः वामपार्श्वे 24 ऐं बं नमः पृष्ठे 25 ऐभं नमः नाभौ 26 ऐ मं नमः उदरे 27 ऐं यं त्वगात्मने नमः हृदि 28 ऐं रं अाला सन्देप. मृगात्मने नमः दक्षांसे 29 ऐं लं मांसात्मने नमः ककुदि 30 ऐं व मेदआत्मने नमः वामांसे 31 ऐं शं अस्थ्यात्मने नमः हृदयादिदक्ष तरं०४ भुजांतम् 32 ऐं पं मज्जात्मने नमः हृदयादिवामभुजांतम् 33 ऐं सं शुक्रात्मने नमः हृदयादिदक्षपादांतम् 34 ऐं हं आत्मने नमः ॐ हृदयादिवामपादांतम् 35 ऐं लं परमात्मने नमः हृदयादिमस्तकांतम् 36 इति विन्यसेत् / इति सृष्टिक्रमः // अथ स्थितिक्रमः॥ तत्रादौ ध्यानम् // सिन्दूरकांतिमसिताभरणां त्रिनेत्रां विद्याक्षसूत्रमृगपोतवरं दधानाम् // पावस्थितां भगवतीमपि काञ्चनाङ्गी ध्यायेत्कराजधृतपुस्तकवर्णमालाम् // 1 // एवं ध्यात्वा न्यसेत् / टंडं नमः ललाटे 1 टंठंडं नमः मुखवृत्ते 2 टंठंडं नमः दक्षनेत्रे ३रंटेंडं नमः वामनेत्रे 4 टंठंडं नमः दक्षकर्ण 5 टठंखें नमः वामकर्णे६ टंठंडं नमः दक्षनामायाम् 7 टंठंडं नमः वामनामायाम् 8 ठंडं नमः दक्षगंडे 9 टंठंडं नमः वामगंडे 10 टंठंडं नमः ऊर्बोष्टे 11 टंठंडं नमः अधरोष्ठे 12 टंठंडं नमः ऊर्द्धदंतपंक्ती 13 // ठंडं नमः अधोदंतपंक्तौ 14 टंठंडं नमः शिरसि 15 टंठंडं नमः मुखे 16 टंठंडं नमः जिह्वाये 17 टंठंड नमः कंठदेशे 18 टंठंडं | नमः दक्षिणबाहमले 19 टंटेडं नमः दक्षिणकपरे 20 टंठंडं नमः दक्षिणमणिबंधे 21 टंठंडं नमः दक्षिणहस्तांगुलिमूले 22 टंठंडं नमः दक्षिणहस्तांगुल्यो 23 टंठंडं नमः वामबाहुमूले 24 टंठंडं नमः वामकृपरे 25 टंठंडं नमः वाममणिबंधे 26 टंठंडं नमः वामह स्तांगुलिमूले 27 टंठंडं नमः वामहस्तांगुल्यये 28 टंठंडं नमः दक्षिणपादमूले 29. टंठडं नमः दक्षिणजानुनि 30 टंठंडं नमः For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दक्षिणगुल्फे 31 टंठंडं नमः दक्षिणपादांगुलिमूले 32 टंठंडं नमः दक्षिणपादांगुल्यग्रे 33 टंठंडं नमः वामपादमूले 34 टंठंडं नमः वामजानृनि ३५टठंडं नमः वामगुल्फे 36 टंठंडं नमः वामपादांगुलिमले 37 टंठंडं नमः वामपादांगुल्यो 38 टंठंडं नमः दक्षपाचे 39 टंठंडं नमः यामपार्श्वे 40 टंठंडं नमः पृष्ठे 41 टंठंडं नमः उदरे 40 टंठंडं नमः हृदये 43 टंठंडं नमः दक्षांसे 44 टंडं नमः | ककुदि 45 टंठंडं नमः वामांसे 46 टंठंडं नमः हृदयादिदक्षहस्तांतम 47 टंठंडं नमः हृदयादिवामहस्तांतम् 48 टंठंडं नमः हृद लियादिदक्षपादांतम् 49 टंठंडं नमः हृदयादिवामपादांतम् 50 टंठंडं नमः हृदयादिमस्तकांतम् 51 इति विन्यसेत् // इति स्थितिक्रमः॥ अथ संहारक्रमः // तत्रादौ ध्यानम॥ अक्षनजं हरिणपोतमुदग्रटंक विद्यां करैरविरतं दधतीं त्रिनेत्राम्॥ अर्द्धन्दुमौलिभरणामरविंदवासां वर्णेश्वरीं च प्रणुमस्स्तनभारखिन्नाम् // 1 // इति ध्यात्वा न्यसेत् / ॐ शं नमः ललाटे 3 ॐ हं नमः मुखवृने 2 ॐ सं नमः दक्षनेत्रे 3 ॐ पं नमः वामनेत्रे 4 ॐ शं नमः दक्षकणे ५ॐ बं नमः वामकणे 6 ॐ लं नमः दक्षनासायाम् 7 ॐ रं नमः वामनासायाम् 8 ॐ यं नमः दक्षगंडे 9 ॐ मं नमः वामगंडे 10 ॐ ॐ नमः ऊोष्ठे 11 ॐ बं नमः अधरोष्टे 12 ॐ फं नमः ऊर्ध्वदंतपंक्तौ 13 ॐ पं नमः अधोदंतपंक्ती 14 ॐ नं नमः शिरसि १५ॐ धं नमः मुखे 16 ॐ दं नमः दक्षिणबाहुमूले 17 ॐ थं नमः दक्षिणक थे। परे 10 ॐ तं नमः दक्षिणमणिबंधे 19 ॐ णं नमः दक्षहस्तांगुलिमले 20 ॐ टुं नमः दक्षिणहस्तांगुल्यो 21 ॐ डं नमः वामबा हुमूले 22 ॐ हुं नमः वामकूपरे 23 ॐ नमः वाममाणबंधे 24 ॐ नमः वामहस्तांगुलिमूले 25 ॐ झं नमः वामहस्तांगुल्यो 26 ॐ जं नमः दक्षिणपादमूले 27 ॐ छं नमः दक्षिणजानुनि 28 ॐ चं नमः दक्षिणगुल्फे 29 ॐ हुं नमः दक्षिणपादांगुलि For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir म.म. व मुले 30 ॐ धं नमः दक्षिणपादांगुल्यो 31 ॐ गं नमः वामपादमूले 32 ॐ खं नमः वामजानुनि 33 ॐ कं नमः वामगुल्फे 10 ख० 1 ॐ अः नमः वामपादांगुलिमले 35 ॐ अं नमः वामपादांगुल्यये 36 ॐ औं नमः दक्षपाचे 37 ॐ ओं नमः वामपाद्ये 38 सदेपर - ॐ ऐं नमः पृष्ठे 39 ॐ नमः नाभी 40 ॐ लं नमः उदरे 41 ॐ जूं नमः हृदये 42 ॐ नमः दक्षसि 43 ॐ नमः ॐ तरं०४ ककुदि 44 ॐ ऊं नमः वामांमे ४५ॐ उ अस्थ्यात्मने नमः हृदयादिदक्षहस्तांतम् 46 ॐ ई मज्जात्मने नमः हृदयादिवाभहस्तां तम् 47 ॐ इं शुक्रात्मने नमः हृदयादिदक्षपादांतम 48 ॐ अं आत्मने नमः हृदयादिवामपादांतम 49 ॐ अं परमात्मने नमः हृदयादिमस्तकांतम 50 इति विन्यसेत् इति संहारक्रमः // इति न्यासं कृत्वा विष्णुमंत्रे विष्णुकलामातृकान्यासः 1 शैवमंत्र श्रीकण्ठा दिकलामातृकान्यासः 2 गणेशमंत्रे गणेशकलामातृकान्यासः 3 देवीमंत्र देवीकलामातृकान्यासः 4 सूर्यमंत्रे सूर्यकलामातृकान्यासः 5 एवं तत्तत्प्रयोगेणावलोक्य न्यासं कुर्य्यात्। ततः ऋष्यादिन्यासं करन्यास हृदयादिपगन्यासं च प्रयोगोक्तं कृत्वा मूलदेवतां ध्यात्वा ॐ में मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः इति सर्वाङ्गे व्यापकं कृत्वा पीठपूजां कुर्यात॥ अथ पीठपूजाप्रयोगः॥ पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले प्रयोगोक्तमंडले वा तन्मध्ये मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थापयेत् / तत्र क्रमः-पुष्पाक्षतानादाय स्ववामभागे श्रीगुरुग्यो नमः / दक्षिणे गणपतये नमः / मध्ये स्वेष्टदेवतायै नमः / इति नत्वा पीठमध्ये ॐ में मंडूकाय नमः१ ॐ के कालाग्निरुद्राय नमः२ॐ अंआधारशक्तये / आगमोक्तेन विधिना नित्यं न्यासं करोति यः / देवताभावमाप्नोति मंत्रसिद्धिः प्रजायते // न्यासांगुलीनियमस्तु यामळे-हदयं मध्यमानामतर्जनीभिः स्मृतं च // 16 // शिस / मध्यमातर्जनीभ्यां स्थादंगुष्ठेन शिखा स्मृता // दशभिः कवचं प्रोक्तं तिसृभिनवमीरितम् / अत्रादिकद्वयं प्रोक्तं तदा तर्जनीमध्यमे // इति // For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॐनमः 3 ॐ कू कूर्माय नमः 4 ॐ अं अनंताय नमः५ ॐ पृ पृथिव्यै नमः६ ॐक्षा क्षीरसागराय नमः७ ॐरं रत्नदीपाय नमः ॐ रं रत्नमंडपाय नमः९ ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः 10 ॐ रं रत्नवेदिकायै नमः ११ॐ रं रत्नसिंहासनाय नमः 12 आमेन्याम्-ॐ धर्माय नमः 13 नैर्ऋत्याम्-ॐ ज्ञां ज्ञानाय नमः 14 वायव्याम्-ॐ बैं वैराज्ञाय नमः १५ऐशान्याम्-ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः 16 // el पूर्वे-ॐ अं अधर्माय नमः 17 दक्षिणे-ॐ अं अज्ञानाय नमः 18 पश्चिमे-ॐ अं अबैराज्ञाय नमः 19. उत्तरे-ॐ अं अनैश्चर्याय ना नमः 20 पनः पीठमध्ये-ॐ आँ आनंदकंदाय नमः 21 ॐ से सविनालाय नमः 22 ॐ सं सर्वतत्त्वकमलासनाय नमः 23 ॐ प्रकृतिमयपत्रेभ्यो नमः 24 ॐ विं विकारमयकेसरेत्यो नमः 25 ॐ पं पञ्चाशद्वर्णाढ्यकर्णिकात्यो नमः 26 ॐ अं अर्क मंडलाय द्वादशकलात्मने नमः 27 ॐ सों सोममंडलाय षोडशकलात्मने नमः 28 ॐ वं वह्निमंडलाय दशकलान्मने नमः 29/ ॐ सत्त्वाय नमः 30 ॐ 2 रजसे नमः 31 ॐ तं तमसे नमः 32 ॐ आँ आत्मने नमः 33 ॐ पं परमात्मने नमः 34 ॐ अं अंतरात्मने नमः 35 ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः 36 ॐ मं मायातत्त्वाय नमः 37 ॐ के कलातत्त्वाय नमः 38 ॐ विं विद्यातत्त्वाय नमः 39 ॐ परतत्त्वाय नमः 40 इति पीठदेवताः संस्थाप्य प्रयोगोक्तनवपीठशक्तीः पूजयेत् // अथ यात्रा साधनप्रयोगः // (तत्रादौ कलशस्थापनप्रयोगः) देवदक्षिणतः त्रिकोणं मंडलं त्या जलेन प्रोक्ष्य त्रिकोणांतर्मायां (ह्रीं) विलिख्य / ॐ ह्रीं आधारशक्त्यै नमः इति मंत्रे संपूज्य मूलेन फट् इति मंत्रेण त्रिपदाधारं प्रक्षाल्य त्रिकोणमध्ये संस्थाप्य मूलेन नमः इति संपूजयेत् / ततः सुदर्शनायाखाये फट् इति मंत्रेण ताम्रादिकलशं प्रक्षाल्य आधारोपारि हस्तव्येन संस्थाप्य रक्तवस्त्रमाल्या For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 15 मं० म० दिना भूषयित्वा मूलेन. नमः इति मंत्रेणापूर्य ॐ भुभूवः स्वः वरुण इहागच्छ इह तिष्ठ इति वरुणमावाह्य तन्मध्ये स्वेष्टदेवतां पू० ख०१ // 47 // ध्यात्वा गंधाक्षतपुष्पैः संपूजयेत् // इति कलशस्थापनप्रयोगः 1 ( अथ त्रिरयस्थापनं तत्रादौ शंखस्थापनम् ) देवया / सदे०प० मतः त्रिकोणमंडलं कृत्वा जलेन प्रोक्ष्य त्रिकोणांतर्मायां विलिख्य ॐ ह्रीं आधारशक्त्यै नमः इति मंत्रेण संपूजयेत् ततःतरं मूलेन फट् इति त्रिपदमाचार प्रक्षाल्य त्रिकोणमध्ये संस्थाप्य ॐ मं वह्निमण्डलाय दशकलात्मने अमुकपात्रासनाय नमः इत्याधारं संपूज्य आधारे पूर्वादिषु दशानिकलाः पूजयेत / तथा च / ॐ यं धूम्रार्चिषे नमः। ॐरं ऊष्मायै नमः २ॐ लं ज्वलिन्यै नमः 3 ॐ वं ज्वालिन्यै नमः 4 ॐ शं विष्फुलिङ्गिन्यै नमः 5 ॐ षं सुश्रिय नमः 6 ॐ सं सुरूपायै नमः 7 ॐ हं कपिलायै नमः 8 Nॐ लं हव्यवाहायै नमः 9 ॐ शं कव्यवाहायै नमः१० इति पूजयेत् / ततः / ॐ क्लीं महाजलचराय हुं फट् स्वाहा पांचजन्याय नमः। इति मंत्रेण क्षालितं शंखमाधारोपरि संस्थाप्य ॐ अं सूर्यमंडलाय द्वादशकलात्मने अमुकपात्राय नमः इति संखं संपूज्य पात्रे स्वायादि / प्रादक्षिण्येन द्वादश सूर्य्यकलाः पूजयेत् / तथा च-ॐ कभं तपिन्यै नमः 1 ॐ खंब तापिन्यै नमः 2 ॐ गं धूम्रायै नमः 3 ॐ पंप मरीच्यै नमः 4 ॐ हुंनं ज्यालिन्यै नमः ५ॐ चंध रुच्यै नमः 6 ॐ छंद मुषुम्नायै नमः 7 ॐ जखं भोगदायै नमः 8 ॐ झंतं / विश्वायै नमः 9 ॐ अंणं बोधिन्यै नमः 10 ॐ टंडं धारिण्यै नमः 11 ॐ ठंड क्षमायै नमः 12 इति पूजयेत् ततः ॐ अॅलॅहॅशमैं SIL 1 वामे शंखं प्रतिष्ठाप्य मध्ये चायं प्रकल्पयेत् / दक्षिणे प्रोक्षणीपात्रमयंत्रयं विकल्पयेत् // दृष्ट्वार्धपात्रं देवेशि ब्रह्माद्या देवताः सदा / नृत्याते सर्वयोगिन्यः Kal प्रीताः सिद्धिं ददत्यपि / 2 माया-ही। For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir बिलँरयमभवपनदथतणटेंडटर्जेंछंचधैंगसकोंआँऑपाललँकऊँउँईइँआँों इत्येकाधिकपंचाशदिलोममातृकामुच्चार्य मूले न नमः इति मंत्रेण शंखे जलमापूर्य ॐ मोममंडलाय पोडशकलात्मने अमुकपात्रामृताय नमः इति गंधादिभिः संपूज्य जले पोडश चन्द्र कलाः पूजयेत् तथा च ॐ अं अमृतायै नमः / ॐ औं मानदायै नमः 2 ॐ ई पूपायै नमः 3 ॐ ई तुष्टयै नमः 4 ॐ उँ पुष्टचै नमः ५ॐ ॐ वृत्त्यै नमः 6 ॐ धृत्यै नमः 7 0 शशिन्यै नमः 8 ॐ D चन्द्रिकाय नमः 1. ॐ लं, कात्यै नमः 10 ॐ वर ज्योत्स्नायै नमः 11 ॐ ऐं श्रियै नमः 12 ॐ ओं प्रीत्यै नमः 13 ॐ औं अंगदायै नमः 14 ॐ अं पूर्णायै नमः 15 ॐ तः पूर्णामृतायै नमः 16 इति संपूज्याभिमंत्रयेत् / तथा च-ॐ शंखादौ चन्द्रदेवत्यं कुक्षी वरुणंदवता / / पृष्ठे प्रजापतिश्चैवमये गङ्गा सर स्वती // 1 // त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया॥शंखे तिष्ठति विप्रेन्द्र तस्माच्छखं प्रपूजयेत्॥२॥ इत्यभिमंत्र्य प्रार्थयेत् / तथा चNIॐ त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे // निर्मितः सर्वदेवैश्च पांचजन्य नमोस्तु ते // 1 // इति संपार्थ्य ॐ पांचजन्याय विम हे पावमानाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात् // इति शंखगायत्रीमष्टधा जपित्वा शंखमुद्राः प्रदर्शयेत् इति शंखस्थापनम् / ततो देव स्याये आर्थ्य देवदक्षिणतः प्रोक्षणीपात्रं च एवमेव विधिना संस्थापयेत् / (शिवसूव्र्चने शंखस्थाने ताम्रादिपात्रं स्थापयेत) इति त्रिरश यस्थापनम् // ततो विशेषा_वामतः श्रीपात्रम् 1 गुरुपात्रम् 2 देवपात्रम् 3 शक्तिपात्रम् 4 योगिनीपात्रम् 5 भोगपात्रम् 6 वीर पात्रम् 7 आत्मपात्रम् 8 बलिपात्रम् 9 एतानि नवपात्राणि पूर्ववत् संस्थाप्य दक्षिणे पाद्यााचमनीयमधुपर्का इति चत्वारि पात्राणि १-आदी कुंभ तथा शंख श्रीपात्रं शक्तिपात्रकम् / गुरुपात्रं वीरपाबं बलिपात्रं तवैव च / For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairt.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं. म. // 48 // पू०ख० 1 सन्दे०प० तरं०१ पूववत् संस्थापयेत् / अशक्तश्चेरुवारत्मबलिभोगा इति पंच पात्राणि पाद्याद्युपचारार्थमेकं वा पात्रं स्थापयेत् / तत्राप्यशक्तश्चेत्तदैकमे- व शंख संस्थापयेत् // अथ धंटास्थापनम् // देवदक्षिणतः घंटा संस्थाप्य नांद कत्या पूजयेत् तद्यथा-ॐ भूर्भुवः स्वः गरुडाय नमः आवाहयामि सर्वोपचारार्थ गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि इत्याबाह्य “जगद्धूनिमंत्रमातः स्वाहा” इति मंत्रण घंटास्थितगरु कई घंटां च मपृज्य गरुडमुद्रां प्रदर्शयेत् / इति घंटास्थापनम् / / ततः गंधाक्षतपुष्पादीश्च पूजोपकरणार्थ स्वदक्षिणपार्थ संस्थाप्य मूलेन नमः इति जलेन प्रोक्ष्य जलार्थ बृहत्पात्रं व्यजनं छत्रादर्शचामराणि च स्वबामे स्थापयेत् // अथाखंडदीपस्थापनम् // देवस्य दक्षिणभागे धृतदीपं वामे तैलदीपं च स्थापयेत् / तत्र क्रमः। दीपपात्रं गोघृतेन तैलेन वाऽऽपुर्य मंत्रवर्णतंतुभिर्वति निक्षिप्य प्रणवेन प्रज्वाल्य सुदर्शन मंत्रेण धृतदीपं पूजयेत् / तत्र मंत्रः "ॐ राँरी 6₹रः ॐ सहस्रार हूं फट् स्वाहा” इति मंत्रेण गंधपुष्पान्यां संपूजयेत्। तैलदीपं पाशुपताख मित्रेण पूजयेत्। तत्र मंत्रः-"ॐ श्ला पशु हुँ फट् स्वाहा” इति मंत्रेण गंधपुष्पान्यां संपूजयेत् / इति संपूज्य हस्तव्येन दीपशिखां स्पृष्ट्वा मंत्र पठेत् / / तथा च "ॐ घोराय घोरतमाय महारौद्राय वीरभद्राय ज्वालामालिने सर्वदृष्टोपसंह हूँ फट् स्वाहा” इति भत्रं पठित्या पश्चान निज आत्मने समय ततो वाकायचित्तशोधनं कुर्यात् / ॐ हूँ फट् स्वाहेति मुखे / ॐ रक्षरक्ष हूं फट् स्वाहेति हृदि हस्त दत्त्वात्मरक्षां विधाय (आम्) इति मंत्रेण चंदनपुष्पाणि कराभ्यां मर्दयित्वा पप्पाक्षतानादाय॥ते सर्वे विलयं यांतु ये मां हिंसंति हिंसकाः 1 आगमार्थ तु देवानां गमनार्थ तु रक्षसाम् घंटानादं प्रफुति पश्चाद् घंटां प्रपूजयेत् // 2 दीपं वृतपुतं दक्षे तैलयुक्तं च वामतः / दकिंग च सितां वति वामतो रक्तवर्तिकाम् // // // For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मृत्युरोगभयक्तशाः पतंतु रिपुमस्तके // 1 // इति मंत्रणैशान्यां दिशि दूरतः पुरुष क्षिप्त्या हस्तौ प्रक्षाल्याचमेत् / ततः / कर्ममुखे स्वनामाक्षरस्थितकोष्ठे वा दीपं संस्थाप्य पूजनं कुर्यात् // अथ पूजाप्रकारः // तत्रादावग्न्युत्तारण नयोगः // आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ संकीर्त्य अमुकदेवतानृतनयंत्रमूर्तीनां टंकघनादिदोषपरिहारार्थमग्न्युत्तारणं करिष्ये / इति संकल्प्य वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनास्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां चाधोलिखितमंत्रः कर्यात् / तत्र मंत्राः / ॐ समुद्रस्यत्वावकयाऽनेपरिव्ययामप्ति // पावकोऽअस्म्मायठशिवो भव॥३॥हिमस्य त्या जरायणागेपरिव्ययाम सि // पावकोऽअस्म्माय: शिवो भव // 2 // उपजम्मन्नुपरेतसेवततरनदीष्वा // अग्ने पिनमपामसि मण् किताभिरागहि सेमन्ना // यज्ञ पावकवर्गठशिवं कैधि // 3 // अपामिदन्ययनठसमुद्रस्य निवेर्शनम् // अन्यॉस्तिऽअस्म्मत्त पन्तु हेतयः पावकोऽअस्म्मन्यठशिवो भवा // 4 // अग्भ पावक रोचिपानन्द्रयाँदेवजिड्डयाँ // आ देवान्यक्षियति च // 5 // मन:पावक दीदियोऽग्नेदेवा 3 इहावह // उप यज्ञ ठहविश्चन // 6 // पावकयायश्चितर्यन्त्यालगनाम बुरुचउपसोनभानुन! // तृर्वन्नयामन्नेतशस्य नूरणऽआयो घृणेन तृषाणोऽअज लिगस्यां पूजयदेवी पुस्तकस्थां तथव च / मंडलस्यां महामाया यंत्रस्थां प्रतिमा तु च // सौवर्ग राजते ताने पट्टे अजय वा भुवि // विना यंत्रण चेत्पूजा ॐ देवता न प्रसीदात // अन्यत्रापि-यंत्रमित्याहुरेतस्मिन्दवः प्रीणातेि पूजितः / विना योण पूजायां देवता न प्रसीदति // यंत्र मंत्रमये प्रोक्त मंत्रामा देवतेति च। देहात्मनोर्यथा भेदो मंत्रदेवतयोस्तथा। For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir तरं०४ भै० म० // 7 // नमस्ते हरसे शोचिये नमस्तेऽअस्त्वर्चिपे // अन्याँस्तेऽअस्म्मत्तपन्तुहेतय पावकोऽअस्म्मायठशिवोभव // 8 // नृपदेव्वेडप खं० 1 // 49 // मुपदेष्वेडहिंप देव्वेड्डुन स देव्वेड हुधिंदेव्धेट् // 9 // येदेवा देवानांव्यज्ञियायज्ञयानासंवत्सरीणमुप भागमाते // अहुतादों हविषा / स दे०प० म यज्ञेऽअस्म्मिन्स्ययम्पिबन्तु मधुनी घृतस्य // 10 // येदेयादेवप्प्यधिदेवत्वमायन्येब्रह्मणः पुरऽपताऽअस्य // येयोनऽक्तेपर्यंते धामाका चन न ते दियो न पृथिव्याऽअधिस्वप // 11 // प्राणदाऽअपानदाव्यानदाव्यञ्चोंदावरियोदाई // अन्याँस्तै अस्म्मनपन्त हेतय / / पायको ऽअस्म्माध्यशियोर्भव॥१२॥इत्यग्न्गुनारणं कृत्वा स्वच्छवश्वेण संशोप्य मूलमन्त्रोक्तासनमन्त्रेण पुष्पावासनं दत्या पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्टां च कुर्यात् ॥अथ प्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः॥ देशकालौ संकीर्त्य ममामुकदेवतानृतनयंत्रे मतों या प्राणप्रतिष्टां करिष्ये इतिला संकल्प्य प्रतिष्ठां कुर्य्यात् / अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः / ऋग्यजुःसामानि छंदांशि। क्रियामयवः प्रागाख्या देवता / औं बीजम् // ही शक्तिः। काँ कीलकम्।अस्मिन्नतनयंत्रे मूर्ती वा प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः।इति जलं क्षिपेत्। ततः करेणाच्छ'ध छ। ॐ आँहायरलब पसंहसः सोहं अस्याऽमुकदेवतालपरिवारयंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः। पुनः ॐ औं हाकौयरलबषसहंसः सोहा अस्यामुकदेवतासपरिवारयंत्रस्य जीव इह स्थितः। पुनः ॐ आँहाँकायरलॅवशषसहसः सोहं अस्यामकदेवतासपरिवारयंत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि // 49 // इह स्थितानि / पुनः ॐ आँहीकायरैलबपिसहसः सोहं अमुकदेवता सपरिवारयंत्रस्य वाहमनस्त्वचक्षुःश्रोत्रजिह्वाघ्राणपाणिपादपायू For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir व पस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्टंतु स्वाहा / इति प्राणान् प्रतिष्ठाप्य / यःप्राणतोनिमिषतो महित्वे विधेम इति सन्निति त्रिवारं पठेत्॥ पनोज़तिर्जुपता सुप्रतिष्ठा प्रतिष्ठा इत्युक्त्वा संस्कारसिद्धये पंचदशप्रणवावृत्तीः कृत्या अनेन अमुकदेवतासपरिवारयंत्रस्य गर्भाधाना / / दिपंचदशसंस्कारान्संपादयामि इति वदेत् / ततः ॐ यंत्रराजाय विद्महे महायंत्राय धीमहि तन्नो यंत्रः प्रचोदयात् // इत्यष्टोत्तरशताभिभव्य / मूलदेवतां ध्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहयेत् // अथ पाद्यादिपूजन // अक्षतानादाय-देवेश भक्तिमुलभ परिवारसमन्वित // यावत्यां पूजयिष्यामि ताबद्देव इहावह // 1 // आगच्छ जवन देव स्थाने चात्र स्थितो भव // यावां करिष्यामि तावत्त्वं सन्निधौथ भव // 2 // मूलं पठित्वा-ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेव इहागच्छ इह तिष्ठ। इत्यक्षतान्निःक्षिप्य आवाहनी मुद्रां प्रदर्शयेत् / इत्यावाहनम्॥ V // तवेयं महिमा निस्तस्यां त्वं सर्वग प्रभो // भक्तिनेहममारुष्टदीपवत्स्थापयाम्यहम् // 1 मलं पठित्या। अभूर्भवः स्वः अमुक देव इहतिष्ठ इत्यक्षतान्निःक्षिप्य स्थापनी मुद्रां प्रदर्शयेत् / इति स्थापनम् // 2 // अनन्या तब देवेश मुनिशक्तिरियं प्रभो // सान्निध्यं / कुरु तस्यां त्वं भक्त्यानुग्रहतत्परः // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीअमुकदेवते इह सन्निधेहि / इत्यक्षतान्निःक्षिप्य सान्निधापनी मद्रां प्रदर्शयेत् इति सन्निधापनम् // 3 // आज्ञया तब देवेश रुपांभोये गुणांबधे // आत्मानंदैकतृप्तं त्वां निरुणध्मि पितर्गुरो // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेव इह सन्निरुध्य इत्यक्षतान्निःक्षिप्य सन्निरोधनी मुद्रां प्रदर्शयेत् / इति सन्निरोधनम् // 4 // अज्ञानादुर्भनस्त्वाद्वा वैकल्यासाधनस्य च // यदपूर्ण भवेत्कृत्यं तदप्यभिमुखो भव // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवता 1 अब स्वेष्टदेवतानामोच्चारणं कुर्यात् / आवाहा देवताभकामर्चपेञ्चान्यदेवताम् / उभाभ्यां लभत शाप मंत्री चञ्चलमानसः // For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 50 // मं० म० इह सम्मुखो भव / इत्यक्षतान्निःक्षिप्य सम्मुखीकरणमुद्रां प्रदर्शयेत् / इति मम्मुखीकरणम् // 5 // अभक्तवाङ्मनश्चक्षुःश्रोत्रराति पू० ख० 1 गयुते // स्वतेजःपअरेणाशु वेष्टितो भव सर्वतः // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेव अवगुंठितो भव / इत्यक्षतान्निःक्षिप्य स० दे०प० अवगुंठिनीमुद्रां प्रदर्शयेत् / इत्यवगुंठनम् // 6 // यस्य दर्शनमिच्छंति देवाः स्वातीष्टसिद्धये // तस्मै ते परमेशाय स्वागतं स्वागतं च मे तर // मूलं पठित्या ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवते मुस्वागतं सर्पयामि / इति मुस्वागतम् // 7 // देवदेव महाराज प्रियेश्वर प्रजापते॥ थ आसनं दिव्यमीशानादास्येहं परमेश्वर // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेशय नमः आसनं समर्पयामि // 8 // इत्यासन दत्वा करी बद्धा प्रार्थयेत् / स्वागतं देवदेवेश माग्यात्त्वमिहागतः // प्राकृतं त्वमदृष्ट्वा मां बालवत्परिपालय // 1 // मूलं पठित्वा ) ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः प्रार्थनां समर्पयामि नमस्करोमि // 8 // इति प्रार्थ्य पाद्याद्युपचारैः पूजयेत् / तद्यथा--यद्भक्ति लेशसंपकात्परमानंदविग्रह / तस्मै ते चरणाजाय पायं शुद्धाय कल्पये // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः पाद्यं / समर्पयामि / इति सामान्या@दकेन शंखोदकेन वा पायं दद्यात् // इति पाद्यम् // 9 // तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् // तापत्रय विनिर्मुक्तस्तवायं कल्पयाम्यहम्॥१॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवःस्वःअमुकदेवाय नमःइदमयं समर्पयामि / अर्योदकेनायं दद्यात्॥इत्यय॑म् / 0 // सर्वकालुप्यहीनाय परिपूर्णमुखात्मने // मधुपर्कमिदं देव कल्पयामि प्रसीद मे // 1 // मूलं पठित्वा अमुकदेवाय नमः मधुपर्क १-रुद्रयामले निवेदयेत्पुरोभागे मंधं पुण्यं च भूषणम् / दी दक्षिणतो दद्यात्पुरतो वा न वामतः // वामतस्तु तथा धूपमग्रे वा न तु दक्षिणे / नये दक्षिणे भागे पुरतो वा न पृष्ठतः // धूपदीपी सुभोज्यं च देवता निवेदयत: २शक्तिपूजायां स्वमंत्राणांबीलिंगेनोच्चारण कुय्यीत् / / या For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir समर्पयामि इति मधुपर्कम् // 11 // वेदानामपि वेदाय देवानां देवतात्मने / आचामं कल्पयामीशशुद्धानां शुद्धिहेतवे॥१॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवःस्वः अमुकदेवाय नमः आचमनं समर्पयामि // इत्याचमनम् // 12 // ॐ स्नेहं गृहाग स्नेहेन लोकनाथ महाशय / / * सर्वलोकेषु शुद्धात्मन्ददामि स्नेहमुनमम् // मलं पठित्वा अमुकदेवाय नमः इति मुगंधतैलं समर्पयामि / इति मगंधतैलम् // 13 // 2 ॐ गंगासरस्वतीरेवापयोगीनर्मदा नलैः।नापितोऽमि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे।। 3 ॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः जलस्नानं ममर्पयामि // इति जलस्नानम् // 14 // कामधेनसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम् // पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमपितम् // 3 // मूलं पठित्वा अमुकदेवाय नमः पयःनानं समर्पयामि // इति पयःस्नानम् // 15 // पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् // दध्यानीतं मया देव स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् // 3 // मूलं पठित्वा अमुकदेवाय नमः दधि स्नानं समर्पयामि // इति दधिनानम्॥१६॥नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोपकारकम्॥धृतं तुत्यं प्रदास्यामि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्॥ 1 ॥मूलं पठित्वा अमुकदेवाय नमः घृतस्नानं समर्पयामि।।इति घृतस्नानम् 17 तरुपुष्पसमुद्धतं मुस्वादु मधुरं मधु ॥तेजःपुष्टिकरं दिव्यं नानार्थ प्रतिगृह्यताम् // १॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवःस्वः अमुकदेवाय नमः मधुम्नान / / समर्पयामि // इति मधुस्नानम् // 18 // इक्षुसारसमद्धृता शर्करा पुष्टिकारिका // मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् // 3 // मूलं / पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः शर्करोदकस्नानं समर्पयामि // इति शर्करोदकस्नानम् // 19 // पयो दधि घृतं चैव मधु च। शर्करायुतम् // पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः पंचामृतस्नानं समर्पयामि / / इति पञ्चामृतस्नानम् // 20 // मलयाचलसंभूतं चन्दनागरुसंभवम् / / चन्दनं देवदेवेश सानार्थ प्रतिगृह्यताम्॥१॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir स्वः अमुकदेवाय नमः गन्धोदकरलानं समर्पयामि / इति गंधोदकनानम् // 21 // इति लापयित्वा पूर्वोक्तशुद्धोदकस्नानं कारयेत् / पू० ख०१ एवं स्नानं समय शिवसूर्यातिरिक्तदेवेषु शंखन तत्तन्मूलमंत्रण यथाशक्त्याभिषेक कृत्वा ॐ अनेन अभिषेककर्मणाऽमुकदेवता प्रीयतामस दे०प. इति समर्प्य आचमनं दद्यात् // ततः-सर्वभूषादिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे // मयैवापादिते तुत्य वाससी प्रतिगृह्यताम् // मूलं पठित्वा तरं४ | ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः वस्वं समर्पयामि // इति वैषम् // 22 // नबभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीतं चोत्तरी चयं गृहाण परमेश्वर / / मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि इति यज्ञोपवीतम् // 23 // ॐ स्वभावभुदरांगाय नानाशक्तचाश्रित शिव // भूषणानि विचित्राणि कल्पयाम्यमरार्चित // मूलं पठित्वा अमुकदेवाय नमः आभूषणं समर्पयामि इत्युक्त्वा दक्षहस्तांगुष्ठस्पृष्टानामिकात्विकया मुद्रया भूषणानि दद्यात् / / रत्याभूषणम् // 24 // श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गंधाढयं सुमनोहरम् // विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् // मूलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः गं, समर्प यामि // अंगुष्कनिष्ठामूललना गंधमुद्राः / इति गन्धम् // 25 // अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुभाक्ताः मृशोभिताः // मया निवेदिता भक्तया गृहाण परमेश्वर // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः अक्षतान्समर्पयामि इत्यक्षता नासर्व गुलीभिर्दद्यात् // // 26 // माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो // मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर // मृलं| मठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः पुष्पं समर्मायामि तर्जन्यावंगृष्ठमूललग्ने पुष्पमुद्रा // 27 / / इति पुष्पम् // एवं पुष्पांतं पूजा च 1 पातं विष्णौ सितं शंभी रक्तं विनाशक्तिषु // सच्छिद्रमालन जीर्ण त्यजतलादिदूषितम् // २खीपूजन तु दद्यात् // 3 शक्तिश्चत रक्तचन्दनं दद्यात् // oll4 पत्र पुष्पं फलं देवेन च दद्यादधोमुखम् / पुष्पांजलीन तहोषस्तथा पर्युषितस्प च॥ For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra mame.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir यित्वा देवाच्या प्रयोगोक्तामावरणपूजां कुर्यात / तत्र क्रमः / पुजांजलिमादाय संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः। अनुज्ञां देहि मे देव परिवाराचनाय च // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं देवोपरि दत्त्वा पूजितास्तपिताः भतु इति वदेत् // इत्याज्ञा गृहीत्वा पृज्यपूजकयोरत सारालं प्राची तदनुमारण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमण प्रयोगोतावर गपूजां कुर्यात तत्र क्रमः। श्रीपदं पूर्वमुच्चार्य पादुकापदमुद्धरेत॥ | पूजयामि नमः पश्चात पूजयेदंगेदवताः। इत्युच्चरन आश्रणदेवताः पूजयेत् // तत्सर्व तनत्प्रयोगे ज्ञेयम् // अथ धृपादिपूजनम्॥फडिति धूप पात्रं संपोक्ष्य नमः इति गंधपुष्पान्यां संपूज्य पुरतो निधाय (1) इति वह्निवोजेन परि अग्निं संस्थाप्य तदपार मूलेन दशांग दत्वा घंटा / बादयन् / बनस्पतिरसोद्भुतो गंधात्यो गंध उनमः // आश्रेयः सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्या ॐ भूर्भवः स्वः सांगाय या सपरिवाराय अमुकदेवाय नमः धूपं समर्पयामि / इति पठित्वा देवस्य वामभागे धूपपात्रं संस्थाप्य तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगो धृपमुद्रा तां प्रद पर्शियत् / इति धूपम् // 28 // ततो दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य मंत्रोक्षरततानीनिःक्षिप्य प्रगवेन प्रज्वाल्य घटा वादयन नेत्रादिपादपर्यंत दीप प्रदर्शयन् // ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः।। सबाह्यानंतरज्योतिदीतोयं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः / सांगाय सपरिवाराय अमुकदेवाय नमः दीपं समर्पयामि। इति पठित्वा देवस्य दक्षिणभाग निधाय ततः शंखजलमुत्सृज्य मध्यमांगुष्ठलमा / दीपमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति दीपम् // 29 // ततो देवस्याये देवदहिगतो वा जलेन चतरत्र मण्डलं कृत्वा स्वादिनिर्मितं भोजनपात्र 30-4091060 1 धूपयेद्दक्षहस्तेन देवता नाभिदेशतः / जलपुष्पांजाल दद्यादीपदानमतीदृशम् // 2 // मवाक्षगणां संख्यांकस्तताभेनं मसूत्रजः / वर्ती कृत्वा घृतनैव दीपं तत्र प्रदापयत् / / ॐकारेण गौतमीये दक्षिणं तु परियाप वाम चेपानधारंपत् / अभोम्यं तद्भवलं पानीयं च सुरोपमम् // For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 52 // तरं०१ संस्थाप्य तन्मध्ये पसोपेतं विविधप्रकारं वा नैवेद्यं निक्षय ॐ ह्रीं नमः इसी मंत्रेग अय॑जलेन संप्रोक्ष्य मूलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिण होपरि तादृशं वामं निधाय नैवेद्यनाच्छाय (ॐ यं) शीवायुवजिन षोडशधा संजप्य वायना तद्गतदोषान् संशोप्य दक्षिणकरत सन्दे०प० ले तत्पृष्ठलग्ने वामकरतलं कृत्वा नैवेयं प्रदय-( ॐ Rs ) इति वह्निबीजेन पोडशवारं संजप्य तदुत्पन्नामिना तद्दोषं दग्ध्वा / वामकरतले (ॐ वे ) इत्यमृतबीजं विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं दक्षिणकातलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदी-(ॐ ब) इति मुधाबीजं पोडशवारं संजप्य तदुत्थामृतधारया प्लावितं विभाव्य मूलेन प्रोश्य धेनुमुद्रां प्रदर्य मूलेनाष्टधाभिमंत्र्य गंधपुष्पान्यां मंपूज्य देवस्योद्गतं तेजः स्मृत्वा वामां गुष्ठेन नैवेद्यपानं स्पृष्ट्वा दक्षिणकरेण जलं गृहीत्वा / / ॐ सत्तात्रसिद्धं मुहविविधानेनैकभक्षणम् // निवेदयामि देवेश सानुगाय गृहाण तत्॥ // // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः सांगाय सपरिवाराय अमुकदेवाय नमः नैवेद्यं समर्पयामि / इति भूतले देवदक्षिणे जलं क्षिप्त्वा / वामहस्तेन अनामामूलयोरंगुष्ठयोगे यासमुद्रां तां प्रदर्य देवं भुक्तवतं विभाव्य जलं दद्यात् // इति नैवेद्यम् // 30 // नमस्ते देवदेवेश सर्वतृतिकरं वरम् // परमानन्दपूर्ण त्वं गृहाग जलमुनमम् // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः सांगाय सपरिवाराय अमुकदेवाय नमः जलं समर्पयामि। इति मंत्रण स्वर्णादिपात्रस्थं कर्पूगदिमुवासि जलं निवेद्य देवेन तज्जलं पाशितमिति भावयन् अंतःपटं दद्यात् // 31 // अथ अंतःपटम् // ब्रह्मेशाद्यैः परित उरुभिः मृपविटैः समेतैर्लम्या शिंजलयकरया सादरं वीज्यमानः // नर्मक्रीडाप्रहसनपरान्पंक्ति / // 52 // भोक्तृन हमन्स भुंक्ते पात्रे कनकघटिते षड्मान देवदेवः // 3 // शालीभक्तं सुपक्कं शिशिरकरसितं पायसापृपयूपं लेा पेयं च चोष्यंत सितममृतफलं परिकायं मुखाद्यम् // आज्यं प्राज्यं सभोज्यं नयनरुचिकर राजिकैलामरीचस्वादीयः शाकराजीपारकरममृताहारजोप MON For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir निजषस्व // 2 // इति अंतःपटं दत्त्वाचमनं दद्यात् // तत्र मंत्रः // 31 // उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः // शुद्धिमामोति पतिस्मै ते पुनराचमनीयकम् // 3 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः आचमनं समर्पयामि // 32 // इत्याचमनं दत्त्वा मूलेन गंडूषार्थ जलं दद्यात् / पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् // एलाचूर्णादिसंयुक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्वा / ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः तांबूलं समर्पयामि / इति तांबूलम् / / 33 // इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव // तेन मे सफलावा निर्भवेजन्मनिजन्मनि // 3 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः फलं समर्पयामि // इति फलम् // 34 // बुद्धिः सवासना कुता दर्पणं मंगलानि च // मनोवृनिविचित्रा ते नृत्यरूपेण कल्पिता // 1 // ध्यानं संगीतरूपेण शब्दा वाद्यप्रभेदतः॥ छत्राणि नवपनानि कल्पितानि मया प्रभो // 2 // मुषुम्नाध्वजरूपेण प्राणाद्याश्चामरा मताः // अहंकारो गजत्वेन वेगः कुतो रथात्मना // 3 // इन्द्रि याणि च रूपाणि शब्दादिरथवर्मना // मनः प्रयहरूपेण बुद्धिः सारथिरूपतः // 4 // सर्वमन्यत्नथा कृतं तवोपकरणात्मना // एवं साईचतुः श्लोकान् पठित्वा छत्रादि समर्पयेत् / इति छत्रायर्पणम् // 35 // हिरण्यगर्भगर्भस्थहेमबीजं विभावसोः // अनंत पुण्यफलदमतः शांतिं प्रयच्छ मे // मूलं पठित्वा ॐ भभुवः स्वः अमुकदेवाय नमः दक्षिणां समर्पयामि / इति हिरण्यादिदक्षिणां थे। दद्यात् // 36 // शालिगोधूमपिष्टेन त्रिकोणाकारं प्रयोगोक्तं वा अमुकसंख्यापरिमितदीपं निर्माय सुवर्णादिस्थालीमध्ये संस्थाप्य घृतेनापूर्य कर्पूरादिवर्ती निक्षिप्य ( ह्रीं) इति मायाबीजेन प्रज्वाल्य मूलेनार्तिक्यं संपूज्य मलं पठित्वा देवोपरि नेत्रादिपादपर्यंत नववारं For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 53 // त्रिवारंवा मामयेद्वंटांच नादयेत् / तत्र मंत्रः। अंतस्तेजो बहिस्तेज एकीकत्य निरंतरम् // त्रिधा देवोपरि चाम्य कुलदीपं निवेदयेत् // 1 0 खं. 1 चन्द्रादित्यौ च धरणी विदुदग्निस्तथैव च ॥त्वमेव सर्वज्योतिस्त्वमार्तिस्यं प्रतिगृह्यताम् // 2 // मलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवायला तरं०४ नमः नीराजनं समर्पयामि / इत्युच्चरन् देवदक्षिणतः निधाय शंखजलमुत्सृजेत् / इति नीराजनम् // 37 // कदलीगर्भसंभूतं कपुरं च प्रदीपितम् // आरातिश्यमह कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥ 3 // मूलं पठित्वा ॐ भर्भवः स्वः अमुकदेवाय नमः कर्परार्तिक्यं प्रदर्शयामि / इति | कर्परार्तिक्यम् // 38 // यानि कानि च पापानि जन्मांतरकतानि वै // तानि सर्वाणि नश्यतु प्रदक्षिणपदेपदे // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि / इत्युच्चरन विष्णौ चतस्त्रः शिवे तिस्रः 3 दुर्गाया एका 1 गणेशे तिस्रः३ खौ सप्त प्रदक्षिणा कार्याः। इति प्रदक्षिणा॥३९॥प्रपन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहार्णवात॥इति बदन साष्टांगं प्रणमेत॥इति साष्टांगप्रणामः॥४०॥ नानासुगंधपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च // पुष्पांजलिं मया दनं गृहाण परमेश्वर // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भवः स्वः अमुकदेवाय नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि / इति पुष्पांजलिः॥४१॥इति पुष्पांजलिं दत्त्वा ततःस्तुतिपाठेन देवं स्तुत्वा बद्धांजलिपूर्वकं प्रार्थयेत्॥तद्यथा-ज्ञानतोऽ। ज्ञानतो वाथ यन्मया क्रियते शिव // मम कत्यमिदं सर्वमिति देव क्षमस्व मे॥१॥अपराधसहस्राणि क्रियतेऽहर्निशं मया॥ दासोयमिति मां मत्या समस्ख परमे पर॥२॥ अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोऽपरः महतां लोके केवलं स्वामिनं विना॥३॥भूमौ स्खलितपादानां भूमिरेवावलंबनम् // त्वयि जातापराधानां त्वमेव शरणं शिव // 4 // इति बद्धांजलिपूर्वकं संप्रार्थ्य ततः-यदुक्तं यद्य भावन पत्रं पुष्पं फलं था जलम् // निवेदितं च नैवेद्यं गृहाण मानुकंपय // इति पठित्वा देवस्य दक्षिणकरे पूजार्पणजलं दत्त्वा मालायाः संस्कारान् कुर्यात॥ अथ For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालायाः संस्काराः॥ तत्रादौ कुशोदकसहितैः पंचगव्यैर्मालां प्रक्षाल्य अश्वत्थपत्रनवकरचिते कमले स्थापयित्वा ॐ ह्रीं अँऑइईउँऊँ 2 लँलाओंऑअः कखगघुइँच/जॅझेटटॉणतेदनफबममयरलवशषसहलँा इत्येतानि मातृकाक्षराणि मूलमंत्रं च मालायां विन्यस्य पुनः पंचगव्येन प्रोक्ष्य ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः॥ भवेभवे नातिभवेभवस्व मां भवोद्भवाय नमः॥३॥ इति मंत्रेण शीतजलेन प्रक्षालयेत् / पुनः ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमःश्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमःकालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः इति मंत्रण चन्दनागुरुकर्पूरादिसुगंधद्रव्यैर्धर्षयेत् // 2 // अघोरेग्योथ घोरेश्यो घोरघोरतरायः // सर्वायः सर्वसायो नमस्ते अस्तु / रुद्ररूपेन्यः // इति मंत्रेण तां श्पयेत् ॥३॥ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् // इति मंत्रेण मालायाश्चंदनं / / लेपयेत् // 4 ॥ॐ ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानाम् // ब्रह्माधिपतिब्रह्मणोधिपतिब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् // इति मंत्रण मेरुसहितं प्रत्येकमणिं सकत्सकदाभिमंत्रयेत् // 5 // ततः अस्या मालायाः इति शब्दं संयोज्य पूर्ववत् प्राणप्रतिष्ठामंत्रप्रयोगेण मालायाः प्राणप्रतिष्ठां कृत्वा ध्यायेत् // ॐ ह्रीं मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि // चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव // 1 // इति मालाः संप्रार्य ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा // इति मंत्रेण दक्षिणहस्ते मालामादाय हृदये धारयन् स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा | मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि संस्थाप्य ज्येष्ठाग्रेग चामयित्वा एकाग्रचित्तो मंत्रार्थ स्मरन् प्रातःकालमारण्य मध्यंदिनं यावत् यथाशक्ति १भप्रातष्ठितमालाभिम्म जपति यो नरः / सर्व तद्विफलं विद्यात कुद्धा भवति देवता // For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मलमंत्र जपेत् / नित्यमेव समानो जपः काव्यों न तु न्यूनाधिकः / ततो जपांते ॐ त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा मम॥शुभं कुरुष्व पू. खं.? मे भद्रे यशो वीर्य च सर्वदा // तेन सत्येन सिद्धिं मे देहि मातर्नमोस्तु ते ॐ ह्रीं सिद्ध्यै नमः। इति मालां शिरशि निधाय गोमुखीरहस्ये सन्दे०प० स्थापयेत् नाशुचिः स्पर्शयेत् नान्यं दद्यात् अशुचिस्थाने न निधापयेत् स्वयोनिवत् गुनं कुर्य्यात्। ततः कवचस्तोत्रसहस्रनामादिकं पठित्वा तरं. 4 लपुनःमूलमंत्रोक्तऋष्यादिन्यासं हृदयादिपडंगन्यासं च कृत्वा पंचोपचारैः संपूज्य पुष्पांजलिं च दत्त्वा जपदेवापणं कुर्यात् / तथा च अघोंद केन चुलुकमादाय ॐ गुह्यातिगुह्यगोता त्वं गृहाणास्मृत्कृतं जपम् // सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादात्त्वयि स्थितिः॥१॥ ॐ इतः पूर्व प्राण बुद्धिदेहधम्माधिकारतो जायत्स्वमसुषमितुर्यावस्थामु मनसा वाचा कर्मणा हस्तान्यां पयामुदरेण शिश्ना यत्स्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्व ब्रह्मा कापणं भवतु स्वाहा। मां मदीयं च सकलममुकदेवाय समर्पयामि नमः॥ ॐ तत्सदिति ब्रह्मार्पणं भवतु / इति देवदक्षिणकरे जलसमर्पणं कृत्वा कृतां जलिपूर्वकं क्षमापनं पठेत् / अथ समापनम् / आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्॥पूजाभाग न जानामि त्वं गतिःपरमेश्वर।। १॥मंत्रहीनं / / क्रियाहीनं भनिहीनं सुरेश्वर // यत्पृजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे // 2 // यदक्षरपदावष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् // तत्सर्व क्षम्यता देव प्रसीद परमेश्वर // 3 // कर्मणा मनसा वाचा त्वत्तो नान्या गतिर्मम // अंतश्वरसि भूतानामि इष्टस्त्वं परमेश्वर ॥४॥अन्यथा / शरणं नास्ति त्वमेव शरण मम // तस्मात्कारुण्यभावेन क्षमस्व परमेश्वर // 5 // मातृयोनिसहस्रेषु सहस्रेषु व्रजाम्यहम् // तेषु चेष्वचला / 1 जपस्थानाचनस्थानं मालापुस्तकदर्शनम् / स्वभक्तेषु महेशानेि दर्शन नैव कारयेत् // 2 यथाशक्ति जपित्वा तं भवेण विनिवेदयेत् / क्षिपन्नस्य पानीयं व देवतादक्षिणे करे // For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir भक्तिरच्युतेस्तु सदा त्वयि // 6 // गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रयमेव च // आगता मुखसंपत्तिः पुण्याच्च तब दर्शनात // 7 // देवो दाता च भोक्ता च देवरूपमिदं जगत् // देवं जपति सर्वत्र यो देवः सोहमेव हि॥८॥ अमस्व देव देवेश अम्यते भुवनेश्वर॥तव पादांबजे / नित्यं निश्चला भक्तिरस्तु मे // 9 // इति कृतांजलिः प्रार्थयित्वा शंखमुद्धृत्य देवोपरि त्रामयित्वा--साधु वासाधु वा कर्म यद्यदाचरितं / मया // तत्सर्व काया देव गृहागाराधनं मम // 1 इत्युच्चरन् देवस्य दक्षिणहस्ते किंचिजलं दत्त्वा. प्राग्वध्य देवशिरसि दत्त्वा शंख यथास्थाने निवेश्य ततो गतसारनैवेद्यं देवस्योच्छिष्टं किंचिदुद्धृत्य तनहुच्छिष्टभोजिने विनिवेदयेत् / तद्यथा विष्णोरुच्छिष्टं विष्वक्सेनाय च शिवस्योच्छिष्टं चंडेश्वराय 2 सूर्यस्योच्छिष्टं चंडांशवे 3 गणेशोच्छिष्टं वक्रतुंडाय 4 शक्तरुच्छिष्टमुच्छिष्टचांडाल्यै इत्युच्छिष्टाधि . कारिणे ऐशान्यां दिशि दद्यात् / तच्छेषनवेद्य शिरसि धृत्वा नैवेयादिकं देवभक्तेषु विभज्य स्वयं भुक्त्वा विसर्जनं कुर्य्यात् / तथा च गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च // इत्यक्षतानिक्षिप्य विसर्जनं कृत्वा देवं स्वहृदये ध] स्थापयेत् / तथा च तिष्ठतिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यत्र ब्रह्मादयो देवा सर्वे तिष्ठति मे हृदि // 1 // इति हृदयकमले हस्तं दत्वाला या देवं संस्थाप्य मानसोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन् यथासुख विहरेत् / एवमेव विधिना जयं ममाप्य जपान्ते तत्तद्दशांशतो 1 नैवेद्यलक्षणम् / अर्वाग्विसर्जनाहव्यं नैवेद्यं सर्वमुच्यते / विसर्जिते जगत्राये निर्माल्यंभवति क्षणात // 2 नैवेद्यत्याज्यनिषेधः (आहिकतत्ये) तृषार्ताः / पशवो रुद्धाः कन्यका च रजस्वला / देवता च सनिर्माल्या हंति पुण्यं पुराकृतम् // (रुद्रयामले विशेषः) निवेदितं च यहव्यं भोक्तव्यं तद्विधानतः / तवचेगुज्यते / मोहाद्भोक्तुमायांति देवताः॥ For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म. पू० ख०१ स दे०प० तरं०४ नित्यहोमं वा कुर्यात् / / अथ मखोत्सवप्राः // यागभूमि संशोध्य पोडेशस्तंभसहितं मंडपं सवितानं चतुरे तोरणवेष्टितं कृत्वा दिव्यवस्वपट्टदुकूलादिभिर्दवतागारं श्रीगिरि कृत्या कदलीस्तंभविराजितं सुमनोहरं पुष्पमालोपशोभितं मंडपं विधाय तन्मध्ये होमानुसारतः कुंडं चतुरस्र प्रयोगोतं वा मेखलात्रययुतं योनिमहितं यथोन कुर्यात् / अथवा स्थंडिलं कुर्यात् / कुंडं ऐशान्यां चंडिकापीठं पूर्वे ग्रहपीठं आमेथ्यां मातृकापीठं नैर्ऋत्ये-वास्तुपीठं कुंडात्पश्चिमे-स्वस्तिवाचनवेदिकां च हस्तोच्चमानं सर्व कुर्यात् / ततो यजमानः सुनातः कलत्र पुत्रादियुतः शुचिः स्त्रियः वस्त्राभरणगंधपुष्परलं कृत्य गलितस्वादुजलेन कलशं संपूर्य तन्मुखे महाफलं प्रतिष्ठाप्य पाणियां गृहीत्वा - मंत्रवाद्यघोषणकर्ताऽभीष्टदेवतां ध्यात्वा यागभूमिमागत्य पश्चिमद्वारमंडपं प्रविशेत् / (अथ शान्तिकलशस्थापनम् ) कलशं कुंडात्पश्चिम तंदुलाष्टदलोपरि संस्थाप्य गंधादिभिः शांतिकलशं भपृज्य तत्र देवता विन्यसेत् / ॐ गं गणपतये नमः 1 ॐ दुं दुर्गायै नमः 2 ॐ सं सरस्वत्यै नमः 3 ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः 4 ॐ वास्तुपुरुषाय नमः 5 एवं पंचदेवताः संपूज्य स्थिरासनं संभाव्य गणपतिपूजना) ऐशान्यादिचतुर्दिक्ष चतुरस्तद्वहिः पुनरैशान्पादिचतुर्दिनु चतुरः ऐशान प्राच्यांतराले एकः पूर्वाग्नयांतराले एकः आग्नेययाम्यांतराले एकः याम्यनैऋत्यं / च तराले एक: नैऋत्यवरुणांतराले एकः पश्चिमवायव्यांतराले एकः वाययोदीच्यांतराले एकः उत्तरेशान्यांतराले एकः एवं षोडशकदलीस्तभांस्थापयेत / ततः पूर्व न्यग्रोधपत्रतोरणं दक्षिणे औदुम्बरं पश्चिमे अश्वत्थपरतोरणम् उत्तरे प्लक्षपत्र तोरणं बनीयात् पूर्वद्धारदक्षिणवामशाखयोः धनुषाकारपताका रक्त Aध्वजं च अग्निकोणे तादृशं दक्षिणद्वारे धूम्रवर्णपताकाः कृष्णवर्णध्वजं च नैऋत्ये पताकां कृष्णां नीलध्वजं च पश्चिमद्वारे पताका श्वेतां पतिध्वजं च वायव्ये // 55 // मातादृशम् उत्तरे श्वेतवर्णपताका पाद्यभवध्वजं च ऐशान्ये पताका श्वेतां ध्वजं च ईशानपूर्वमध्ये पताका ध्वजं च सर्ववणिकां पश्चिमनैऋत्ययोर्मध्ये पताकां पंचवर्ण | MAN Kallध्वजं च मंडपमध्ये चिचरत्नाकारध्वज पताकां च स्थापयेत् ॥२ऐशान्ये चण्डिकापी ग्रहपीठं तु पूर्वतः // आग्नेयां मातृकापीठं हस्तमुच्चं समंततः। नैऋत्ये चिा वास्तुपीठं तु सधंयवयं विधिः // कुंडात्पश्चिमतः कार्या स्वस्तिवाचनदिका / यथोक्तोच्छ्रायविस्तारवेदिकानामयं क्रमः // For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir देकं कुर्यात् / तद्यथा पूर्वोक्तासने कर्मभूमावुपविश्य पूर्यास्त्रकारेण गणेशादीन नमस्कृत्य एं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः ह्रीं विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा 2 क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि स्वाहा 3 इति तत्वत्रयेगाचम्य मुलेन प्राणानायम्य देशकालौ संकीर्त्य अस्मिन पुण्याहे अमुकदेवतापीतये मया अमुककामनया बालगद्वारा लतजादशांशेन नियमाणामुकदेवतायागसिद्धये होममहं करिये ll इत्यक्षतोदकेन संकल्प्य तदंगभूतमादी गणेशपूजनं भूमिपूजनं पुण्याहवाचनं मातृकापूजनं बाह्मणप्रार्थनापूर्वकं करिष्ये / इति मंकन्य। ब्राह्मणं प्रार्थयेत् / तत्र मंत्रः / बामगाः संतु मे शस्ताः पापात्यांतु समाहिताः // देवानां चैत्र दातारखातारः सर्वदेहिनाम् // 3 // इति संप्रार्य ततः गणेशपूजनादि कमेग कुर्यात् / ततो देशकाली संकीय पारीसितकर्मगोंगभूतं मंडपशुदि कुंडशुद्धिं च करिये / इति संकल्प्य / ततः स्थापितकलशोदकमन्यपात्रे गृहीत्वा औदुम्बरशमी सहितजलेन भूमि त्रिधारं प्रोक्ष्य तेनोदकेन नडा बोध्या अपसर्पतु ते भूता ये भूता भुवि संस्थिताः॥ ये भूता विनकतारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया॥ इति मंत्रग गौरसर्मपानःसर्वतो मंडपांतः विकिरत // ॐ मूलेनाखाय फट्' इत्यत्रमंत्रेण तालत्रयं दिवंधनं कृत्वा पंचगव्येन मंडपं प्रोक्ष्य कुंडं पार्थयत् / तत्र मंत्रः। हे कुंड तय निर्माण यथामति मया कृतम् // रुपया भव संपूर्ण कुरु सिद्धिं नमोस्तुते // 1 // इति श्रद्धांजलिपूर्वक संपार्थ ततः कृतांजलिः स्वस्तिन इति मंत्र पठेत् / ततः कुंडं गंधादिना संपूज्य कंडमेखलास्पिष्ट देवतांतचिंत्य संभाव्य कुंकुनाक्षतसिंदूरैः संज्य मंडपदेवताः पूजयेत् / मंडी ॐ रत्नमंडपाय नमः // 3 // दक्षिणशाखायाम् ॐ द्वारश्रियै नमः // 2 // वामशाखायाम् / ॐ गं गणपतये नमः // 3 // मंडपोपरि ॐ तत्त्वमंडपाय नमः // 4 // देहल्याम् ॐ वा तुपुरुषाय नमः // 5 // मंडपान्तः ॐ ब्रह्मणे नमः // 6 // इति संपूज्य दध्योदनमाषभक्तम For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. मं // 56 // हितदीपपात्राण्यादाय गंधादिपात्रं जलपात्रं च गृहीत्वा मंडपादहिबलिदानं कुर्यात् / तत्र मंत्रः / हेरौद्रा रौद्रकर्माणो रौद्रस्थाननिवापू०खर सिनः // मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च ये // 3 // भूचराः खेचराश्चैव तथा चैवांतरिक्षगाः // विनभूताश्च ये चान्ये दिग्विदिक्षु सन्दे०प० ममाश्रिताः। ते सर्वे प्रीतमनसः प्रतिग्रहंत्विमं बलिम् // 2 // इति मंत्रद्वयेन पूर्वादिचतुर्दिनु तत्र भूमौ कुशानास्तीर्य भूलबालि दद्यात् // ततः प्राग्द्वारे दक्षिणशाखायां ॐ देवेन्यो नमः गंधागुपचारसहितदीपदध्योदन एप मापभक्तबलिनमः इति सर्वत्र // 1 / / पाद्वारे वामशा खायाम् ॐ आदित्येन्यो नमः गंधाधु० // 2 // ततः याम्यद्वारे दक्षिणशाखायाम् ॐ वसुन्यो नमः गंधाधु० // 3 // याम्यद्वारे वामशा खायाम् ॐ मरुद्भयो नमः गंधाधु०॥४॥ततः पश्चिमद्वारे दक्षिणशाखायाम् ॐ अश्वियां देवान्यां नमः गंधाधु०॥५॥पश्चिमद्वारे वामशा खायाम् ॐ सुपगेन्यो नमः गंधाधुपचा० // 6 // तत उत्तरद्वारे दक्षिणशाखायाम् ॐ पन्नगेन्यो नमः गंधाधु०॥ 7 // उत्तरद्वारे वामशा। खायाम् ॐ ग्रहयो नमः गंधाधु०॥८॥इति क्षेत्रबलिं दत्त्वा पूर्ववदिग्देवीनां बलिदानं ग्रहाणां लोकपालानां दिक्पालानां च यथाक्रमेण एवमेव विधिना बलिं दद्यात् ।तत आचम्य प्राणानायम्य वास्तुपीठसमीपे गत्वा वास्तुमंडले वास्तु मूर्ति प्रतिष्ठाप्य संपूज्य तत्र यथोक्तबलिदान / कृत्वानंतरं साचार्यब्रह्मऋत्विक सपवित्रकरो यजमानःमपत्नीकः ब्रह्मादीनां प्रार्थनां कुर्यात् / तत्र मंत्रः। ॐ उत्तिष्ठंतु महाभागा अर्चिताः 5 प्रार्थिता मया॥द्ध्यर्थं कर्मणस्त्वस्य कुरुध्वं मंडपं शुभम् / / इति संप्रार्य कुशाक्षतजलमादाय देशकालौ संकीर्त्य श्रीअमुकदेवताप्रीत्यर्थम ___ 1 मंडपस्य चतुर्दिक्षु दद्याइतबलिं बदिः / बलिं गृहत्विमे देवा आदित्या वसवस्तथा।। मारुतश्चाश्विनौ देवाः सुपर्णाः पन्नगा ग्रहाः / बौद्धौ प्रागादि संपूज्य मम यज्ञसुखावहाः // याम्योत्तरविभागेषु चतुदोरैः पुथक्रपथक // For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मकदेवतामहोत्सवसिद्धयर्थ षोडशस्तंभप्रतियां तोरणप्रतिष्ठां ध्वजपताकाप्रतिष्ठां च कत्या चतुर्दिक्षु दासालसहितकलशसुप्रतिष्ठा कत्या प्रति / 5 ठितदेवतानां पूजनं बलिदानं च करिष्ये / इति संकल्प्य मंडपप्रतिष्ठा समारभेत् // तत्रादौ षोडशस्तंभप्रतिष्ठापयोगः॥ऐशान्यस्तंभसमीपे गत्वा तत्र ॐ भूर्भुवःस्वःप्रथमस्तंभे ब्रमन्निहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इति ब्रह्माणभावाह्य तत्राधिदेवताःपूजयेत् तद्यथा।ॐ सावित्र्यै नमः। ॐ वास्तुपुरु पाय नमः। ॐ ब्राह्मचैनमः। इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः। इति पूजयेत् ततो ब्रह्मणस्पते त्वमस्येति गृत्समद ऋषिः त्रिष्टुपच्छंदः।। ब्रह्मा देवता पूजने विनियोगः।इति जलं क्षिप्त्वा ॐ ब्रह्मणे नमः। इति संपूज्य ॐ ब्रह्मणे वेदाधिपतये पद्महस्ताय हमासनममारूढाय मांगाय साभ रणाय सशक्तिकाय एप चंदनाक्षतपुष्पधृपदीपदध्योदनमाषभक्तवलिनमः। ब्रह्मा प्रीयतां ब्रह्मा सुप्रीतो बरदो भवतु इति कुशानास्तीय बलिं दद्यात्॥१॥आग्नेयस्तंजसमीपे गत्वा तत्र ॐ भूर्भुवः स्वः द्वितीयस्तंभे विष्णो इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इ याबाह्य तत्राधिदेवताः संपू | जयेत् / तद्यथा / ॐ लक्ष्म्यै नमः। ॐ आदित्यनंदायै नमः। ॐ वैष्णव्यै नमः। इति अंपूज्य स्तंभशिरशि ॐ नागभात्रे नमः। इति पूजयेत् / तत इदं विष्णुरिति मेशतिथिर्कषिः।गायत्री छंदः विष्णुदेवता / पूजने विनियोगः / इति जलं क्षिप्त्या ॐ विष्णवे नमः इति विष्णु संपूज्य ॐ विष्णवे यज्ञाधिपतये चकहस्ताय गरुडासनसमारूढाय सांगाय साभरणाय मशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदथ्योदनमापभक्त थे। बलिनमः / विष्णुःप्रीयताम् विष्णुः सुप्रीतो बरो भवतु / इति बलिं दद्यात् // 2 // तत नैर्ऋत्यस्तंभसमीपे गत्वा तत्र ॐ भूर्भुवः स्वः / / तृतीयस्तंभे रुद्र इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव / इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः संपूजयेत् / तद्यथा। ॐ गौर्यै नमः। ॐ शोभनायै नमः। ॐ माहेश्वयं For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मै० म० नमः। इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐनागमात्रे नमः इति पूजयेत्। ततः परिणो रुद्रस्येति गृत्समद ऋषिः। त्रिष्टुप्छंदः। रुद्रो देवता पूजने विनिव० ख०१ // 57 " योगः। इति जलं क्षिप्त्या / ॐ रुद्राय नमः। इति संपूज्य ॐ रुद्राय विद्याधिपतये त्रिशूलहस्ताय वृषस्कंधममधिरूढाय सांगाय साभरणाय सशस०° शक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदथ्योदनमाषभक्तबलिनमः रुद्रः प्रीयतां रुद्रः सुप्रीतो वरदो भवतु। इति बलिं दद्यात॥३॥ततो बायव्यस्त समीपे गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः चतुर्थस्तंभे इन्द्र इहागच्छ प्रतिष्टितो भव / इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत। तद्यथा। ॐ इन्द्राण्यै नमः। Nॐ आनंदायै नमः / ॐ विभूत्यै नमः।इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः / इति पूजयेत। तत इन्द्रआमांनेति अप्रतिरथ ऋषिः। त्रिष्टुप्छंदः / इन्द्रो देवता / पूजने विनियोगः / इति जलं क्षिप्त्वा / ॐ इन्द्राय नमः / इति संपूज्य / ॐ इंद्राय सुराधिपतये वजह / स्ताय ऐरावतसभधिरूढाय सांगाय मातरणाय सशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदध्योदनमाषभक्तबलिनमः इन्द्रः प्रीयतामिंद्रः प्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् // 4 // पुनस्तद्वहिरीशानकोणस्तंभसमीपे गत्वा ॐ भर्भुवः स्वः पंचमस्तंने सूर्य इहागच्छ प्रति / ष्ठितो भव / इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत / ॐ मौर्य नमः / ॐ भूत्यै नमः / ॐ सावित्र्यै नमः ॐ मंगलाय नमः / इति संपूज्य छ / स्तंजशिरमि ॐ नागमात्रे नमः इति पूजयेत् / ततः चित्रं देवानामिति कुत्सांगिरस ऋषिः। त्रिष्टुप् छंदः। सूर्यो देवता। पूजने विनियोगः d इति जलं क्षिप्त्वा ॐ भास्कराय नमः / इति संपूज्य / ॐ सूर्याय ग्रहाधिपतये पद्महस्ताय अश्वगृष्टिसमाधिरूढाय सांगाय माजर•णाय सशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदध्योदनमाषभक्तबलिनमः / सूर्यः प्रीयतां सूर्यः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् // 5 // ततः ऐशान्यप्राच्यांतरालस्तंभसमीपे गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः षष्ठस्तो गणपते इहागच्छ प्रतिष्टितो अब इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra mabatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ॐ सिद्धयै नमः / ॐ बुद्धयै नमः / ॐ विघ्नहारिण्यै नमः / ॐ जयायै नमः / इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः / इति पूजयेत् / गणानां वेति गृत्समद ऋषिः। गायत्री छंदः / गणपतिर्देवता / पूजने विनियोगः / इति जलं क्षिप्त्या ॐ गणपतये नमः। इति संपूज्य ॐ गणपतये अंकुशहस्ताय चतुर्दशविद्याप्रदायकाय विघ्नहराय मृषकसमधिरूढाय सांगाय साभरणाय सशक्तिकाय एप चंदनाक्षत पुष्पधूपदीपदध्योदनमाषाक्तबलिनमः / गणपतिः प्रीयतां गणपतिः मुप्रीतो वरदो भवतु // 6 // ततः पूर्वाग्नेयांतरा / लस्तंभसमीपे गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः सनमस्तंभे धर्मराज इहागच्छप्रतिष्ठितो भव इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः संपूजयेत् / ॐ धर्मराइये नमः / ॐ प्राध्यायै नमः / ॐ अंजनाय नमः ॐ कृरायै नमः / इति संपूज्य / स्तंभाशिरसि ॐ नागमात्रे नमः / इति पूजयेत / ततः यमाय त्येति प्रजापतिक्रषिः / गायत्री छंदः / यमो देवता पूजने विनियोगः / इति जलं शिवा ॐ यमाय नमः / इति / संपूज्य ॐ धर्मराजाय प्रेताधिपतये दंडहस्ताय महिपस्कंधसमधिरूढाय सांगाय साभरणाय सशक्तिकाय एष चन्दनाक्षतपुष्पधूपदीपदध्यो दनमाषभक्तबलिनमः धर्मराजः श्रीयतां धर्मराजः सुपीतो बरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् // 7 // ततः आमेयकोणस्तंभसमीपे गत्वा ॐ भर्भवः स्वः अष्टभस्तंभे नागराज इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत / ॐ मध्यमसंध्यायै नमः / ॐ पग्निन्यै नमः / ॐ महापमिन्यै नमः / ॐ अंगनायै नमः / इति संपज्यास्तंभशिरमि ॐ नागमात्रे नमः इति पूजयेत् / ततः नमोस्तु सत्य इति / प्रजापतिऋषिः / अनुष्टुप्छन्दः। नागराजो देवता / पूजने विनियोगः। इति जलं शिवा ॐ नागराजेन्यो नमः / इति संपूज्य ॐ नागाथि पतये नागकन्यासमन्विताय धरापृष्टिसमधिरूढाय मागाय साभरणाय सशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पभूपदीपदध्योदनमाषभन्बलिनमः For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir M मं० म० नागराजः प्रीयतां नागराजः सुभीतो वरदो भवतु // 8 // ततः आभययाम्यातरालस्तंभममीप गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः नवमस्तंभे स्कंद पू. खं० 1 // 58 // इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव / इत्यावाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ स्कंदपियायै नमः / ॐ पश्चिमसन्ध्याय नमः / इति संपूज्य स्तंभास दे०प. इहागच्छ भार शिरसि ॐ नागमात्रे नमः / इति पूजयेत् / ततः यदकंदेति भार्गव ऋषिः त्रिष्टुप्छन्दः / स्कदो देवता पूजने विनियोगः। इति जलं शिवा तरं. 4 ॐ स्कंदाय नमः / इति पूज्य ॐ स्कंदाय सेनाधिपतये शक्तिहस्ताय मयूरसेनासमधिरूढाय सांगाय साभरणाय सशक्तिकाय एप चंदना धक्षतपुष्पदध्यादनमापभक्तबलिनमः। स्कन्दः प्रीयतां स्कंदः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात्॥९॥ततो याम्यनन्यांतरालस्तम्भसमीपे विगत्वा ॐ भर्भुवः स्वः दशमस्तंभे बायो इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव / इत्यावाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ वायुप्रियायै वायव्यै नमः / ॐ कौमार्थ्यं नमः / इति संपृज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः / इति पूजयेत् / ततः बायोयेत इति गृत्समद ऋषिः / गायत्रीछन्दः / वायु देवता / पूजने विनियोगः / इति जलं क्षिप्त्वा ॐ वायवे नमः / इति संपूज्य ॐ वायवे प्राणाधिपतये ध्वजहस्ताय मृगपृष्टिममधिरूढाय चासांगाय साभरणाय सशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदध्योदनमाषभक्तबलिनमः / वायुः प्रीयतां वायुः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् // 10 // ततो नैर्ऋत्यकोणस्तंभसमीपे गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः एकादशस्तंभे सोम इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ सोमप्रियायै सौम्यै नमः ॐ अमृतकलायै नमः। ॐ विजयायै नमः। इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे / नमः / इति पूजयेत् / ततः वयःसोमेति बंधुक्रषिः / गायत्री छन्दः / सोमो देवता पूजने विनियोगः / इति जलं क्षिप्त्वा ॐ सोमाय नमः। इति संपूज्य ॐ सोमाय नक्षत्राधिपतये गदाहस्ताय मृगवाहनाय सांगाय माभरणाय सशक्तिकाय एष चन्दनाक्षतपुष्पचपदीपटभ्योदन // 58 // For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir 15 मापभक्तबलिनमः / मोमः प्रीयतां मोमः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति वलिं दद्यात् // 15 // ततो निऋतिवरुणांतरालस्तंभसमीपे गत्वा / ॐ भूर्भुवः स्वः द्वादशस्तंभ करुण इहागच्छ प्रतिष्ठितो भब इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत / ॐ वरुणप्रियाय वारुण्यै नमः। ॐ धबृहस्पत्यै नमः / इति मंपूज्य स्तंभशिरमि / ॐ नागमात्रे नमः / इति पूजयेत् / ततः तत्वायामीति शुनःशेप ऋषिः / त्रिष्टुप्छन्दः / वरुणो देवता / पूजने विनियोगः। इति जलं शिवा ॐ वरुणाय नमः / इति संपूज्य ॐ वरुणाय जलाधिपतये पाशहस्ताय / मकरवाहनसमधिरूढाय सांगाय माभरणाय मशक्तिकाय एष चन्दनाक्षतपुष्पधूपदीपदथ्योदनमापभक्तबलिनमः / वरुणः प्रीयतां वरुणः छ सुप्रीतो वरदो भवतु / इति वलिं दद्यात // 2 // ततः पश्चिमवायांतरालस्तंभसमीपे गत्या ॐ भर्भुवः स्वः त्रयोदशस्तंभे वसीम इहागच्छत प्रतिष्ठिता भवत इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ भिध्यमृतायै नमः। विततायै नमः / विभूत्यै नमः / इति संपृज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः। इति पूजयेत् / ततो निवेशन इत्यग्निषिः / त्रिष्टुप्छंदः वसवो देवताः पूजने विनियोगः / / इति जलं क्षित्वा ॐ बन्यो नमः / इति संपूज्य ॐ वमुत्यः उत्कृष्टपराक्रमेन्यः अष्टमिड्यधिपतिभ्यः शरहस्तेन्यः सांगायः ही साभरणेत्यः सशक्तिीयः एप चंदनाक्षतपुष्पपदीपदथ्योदनयुक्तमापन बलिननः / वसवः प्रीयंतां बनवः सुप्रीता वरदा भवंत / प्राइति बलिं दद्यात् // 13 // ततो वायुकोणस्तंभसमीपे गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः चतुर्दशस्तंभे बलदेव इहागच्छ प्रतिष्ठितो अब इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ तत्प्रियायै नमः / ॐ अदित्यै नमः / ॐ लधिन्यै नमः / ॐ सिनीवाल्यै नमः / इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः। इति धूजयेत् / ततः वण्महानिति जमदनिषिः / वृहती छंदः / बलदेवो देवता / पूजने विनियोगः / / For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० इति जलं क्षिप्त्या ॐ बलदेवाय नमः / इति संपृज्य ॐ बलदेवाय रेवत्यविपतये लांगलहस्ताय रत्नांकितरथयुक्ताश्वसमधिरूढाय सांगाय पू० खं० 1 व साजरणाय सशक्तिकाय एप चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदध्योदनसहितमापातलिनमः। बलदेवः प्रीयतां बलदेवः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति सदे०प० बलिं दद्यात // 14 // ततः वायव्योदीच्यांतरालस्तंभसमी गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः पंचदशस्तंभे बृहस्पते इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव। तरं०४ इत्यावाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ पौर्णमास्यै नमः। ॐ साविश्यै नमः / इति संपूज्य स्तंभशिरसि ॐ नागमात्रे नमः इति पूज येत् / ततः बृहस्पत इति गृत्समद ऋषिः / त्रिदुम् छंदः। बृहस्पतिदेवता पूजन विनियोगः / इति जलं शिवा ॐ बृहस्पतये नमः इति / संपज्य ॐ बृहस्पतये सर्वदेवेंद्राधिपतये पुस्तकनुक्वहस्ताय हंसपृष्ठिसमधिरूढाय सांगाय साभरणाय सशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूप दीपदध्योदनसहितमापभक्त बलिनमः बृहस्पतिः प्रीयतां बृहसतिः सुप्रीतो बरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् // 15 // अथोदीच्यै शान्यांतरालस्तंभनमीपे गत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः पोडशन्तंभ विश्वकर्मन्निहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इत्याबाह्य तत्राधिदेवताः पूजयेत् / ॐ गाय चायन्यै नमः ॐ वास्तव्यै नमः / इति ॐ संपृज्य स्तंभशिरसि ॐ नागात्रे नमः। इति पूजयेत् / ततः विश्वकर्मन्हविषेति विश्वकर्मा भौवन ऋषिः / त्रिदुप् छंदः / विश्वकर्मा देवता पूजने विनियोगः / इति जलं शिवा ॐ विश्वकर्मणे नमः / इति संपूज्य Lalॐ विश्वकर्मणे विश्वाधिपतये दंडहस्ताय सांगाय साभरणाय मशक्तिकाय एष चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपदथ्योदनसहितमाषभक्तवलिनमः / विश्वकर्मा श्रीयतां विश्वकर्मा सुप्रीतो वरदो भवतु इति बलिं दद्यात् // 16 // इति पोडशस्तंभप्रतिष्ठाप्रयोगः // अथ तोरण वजापताकाप्रतिष्ठापूजनम् // पूर्वद्वारे गया “सुदृढं तोरणं पूर्व न्ययो कांचनप्रभम् // रक्षार्थ चैव बनीयादेवजाव्यकर्मणि॥"इति / For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalasagasun Gyanmandir न्यग्रोधपत्रतोरणं बद्धवा ॐ भूर्भुवः स्वः पूर्वद्वारे नुदृढप्रीतये इमं न्ययोचतोरगं चंदनाक्षतपुष्पधूपदीपघृतालक्षीरानयुक्तमापभक्तावलि नमः सुदृढः प्रीयतां सुदृढः सुप्रीतो घरदो भवतु / इदि बलिं दत्वा तत्रैव दक्षिगवामशाखयोर्ध्वजापताका उच्छ्यामि स्थ पयामि नमः। इति ध्वजापताका संस्थाप्य तत्र देश “धनुःप्रभापताकां च सिंदूरारुणभं भजन स्थापयामि महंद्राय शक्तियुक्ताय वत्रिगे" ॐ अर्भुवः / स्वः ध्वजपताकयोमहेंद्र इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इति महेंद्रमावा ॐ भूर्भुवः स्वः महेंद्राय ऐरावतसहिताय इमं गंधायुपचारसहितक्षीय रान्नयुक्तमापभक्तबलिनमः। महेंद्रः प्रीयतां महेंद्रः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दत्वा तत्राधिदेवताः पूजयेत् / तयथा / पुर्वद्वार पार्थ ॐ कादंवरि गजार वजहस्ते एवेद्यागच्छागच्छ गंधाक्षतपुष्मरूपदीपसहितमिमं शीरानवलिं गृह मन्जितं कुरुकुरु स्वाहा।। इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारदक्षिणांत "दंड कमंडलुं पवादासमयाभयाम् // वित्री कनकच्छायां बाहाबालां च कृष्णभाम॥"तिम बाली ध्यात्वा ह्रीं ऐं बामि ए ह्यागच्छागच्छ इमं क्षीरान मलिंगृहगृह मनेप्तितं कुरु कुरु स्वाहा / इति बलि दद्यात्। तत्र द्वारपाना ही महेश्वरि एह्यह्यागच्छागच्छ गंधाक्षतपुष्पधूपदीपसहितमिमंशीराममलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारे दक्षिणवामशाखयोः कलशद्वयं संस्थाप्य रत्नप्रक्षेपं कृत्वा दारस्थितकलशदये ॐ गंगायै नमः। ॐ यमुनायै नमः / इति संज्यपूर्वबारे शांतिसूक्तजपार्थ सर्वविन्ननिवारणार्थ च त्वामहं वृणे / इति यज्ञसूत्र बद्धा भो कलश एढेहि गंवायुपचारसहितमि श्रीराजवलिंगृह्य गृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत्रैव पुनानेगांसे "आवाहयाम्यहं धात्र निधीनां पतये प्रभो / इहागत्य बाल गृह / यज्ञविनं निवारय॥” इत्याबाह्य ॐ भूर्भवः स्वः धात्रे एलेह्यागच्छागच्छ इमं गंवायुपचारसहितं क्षीरानबलिं गृह्णगृह मनेप्सितं कुरुकुरु For Private And Personal use only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kabalrm.org म. म. स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / ततोत्तरांसे "विकृतिः प्रकृतिर्यस्य विधाता विश्वकृत्प्रभो // स मे भवतु मुप्रीतो यज्ञविनं निवारय // " इति पू०खं१ ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः विधात्रे एह्यह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं श्रीरान्नबलिं गृह्णगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिंसदे०प० // 6 // दद्यात् / तत्र पुनद्वारस्य दक्षिणनागे “वेदीमध्ये ललितकमले कर्णिकायांतरस्थः सताश्वोर्कोऽरुणरुचिरवपुः सप्तरज्जुबिबाहुः॥गोत्रमऽस्मि तरं०४ न्बहुविधगुणः काश्यपाख्ये प्रसूतः कालिंगाख्याविषयजनितः प्राङ्मुखः पद्महस्तः॥” इति सूर्य ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्य अधिदेवताक प्रत्यधिदेवतासहित ए ह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं श्रीरान्नबलिं गृह्णगृह्ण ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारस्य वामभागे "प्राच्यां भृगुभोजकटे प्रजातः स भार्गवः पूर्वमुखः सिताभः ॥स पंचकोणे स रथाविरूटो दंडाक्षमालावरदांकपत्रः।। इति शुक्र ध्यात्या ॐ भूर्भुवः स्वः शुक्र अधिप्रत्यधिदेवतासहित एलेह्यागच्छागच्छ इमंगंधायपचारमहितं श्रीरानबलिं गृह्णगृह ममेप्सितं, कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारतः दक्षिणभागे / पानपात्रं च खङ्गं च अक्षमालां कमंडलुम्॥त्रिनेत्रं वरदं शांत कुमारं च दिगं बरंम्॥"इति दिगंबरं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः दिगंबर एह ह्यागच्छागच्छ इमं गंधाद्यपचारमहितं श्रीरान्नवालि ग्रहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु जास्वाहा इति बलिं दद्यात् / दृरतः उत्तरभागे ॐ "ब्रह्माणीशक्तिसंयुनं हंसवाहनभूपितम् / श्वेतवर्णमहं वंदे असितांगं च भैरवम्॥"इत्यथि सितांगभैरवं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः असितागभैरव ए ह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारसहितं श्रीरान्नबलिं गृहगृह भमेप्सितं कुरुकुरु / अस्वाहा इति बलिं दत्वा चिच्छत्यादिदेवताः पूजयेत् / तद्यथा। भैरवसमीपे ॐ चिच्छत्यै नमः / ॐ मायाशक्त्यै नमः / द्वारपाचे ॐ शंखनिधये नमः / द्वारपतः ॐ पद्मनिधये नमः / ऊध ॐ श्रियै नमः / अधो देहल्याम् ॐ वास्तुपुरुषाय नमः / इति संपूज्य For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 'प्रणमेत् / इति पूर्वद्वारे तोरणध्वजपताकादिप्रतिष्ठापूजनम् // 1 // आग्नेयकोणे गत्या प्राणानायम्य ॐ उल्के अजारुढे शक्तिहस्ते प्रलेह्यागच्छागच्छ इमं गंशापचारसहितं क्षीरानवलिं गहगह मोप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दत्त्वा “पताकामनये रक्तां ध्वज का चैवाग्निसन्निभम्॥स्वाहायुक्ताय देवाय स्थापयामि हविर्भुजे॥"अग्निप्रीत्यर्थ रक्तध्वजपताकां च स्थापयामि / इति पताकां रक्तं ध्वजं च पंचहस्तदंडे उच्छ्येत तत्रैव ॐ अमये नमः इत्यभि संपूज्य ॐ भूभवः स्वः अग्नये पुंडरीकदिग्गजसहिताय अयं गंधाद्यपचारसहितः। क्षीरान्नयतमापभक्तबलिनमः। अभिः पीर तां अमिः सुप्रीतो वरदो भवतु इति बलिं दत्त्वा तत्राधिदेवताः पूजयेत् / तद्यथा / प्राङ्मुखच तुरस्रपीठे "अनादिपुरुषो रक्तः सर्वदेवमयो हि यः / भूमकेतृ रणाध्यक्षस्तस्मै नित्यं नमोनमः // " इति सोमं ध्यात्वा ॐ भर्भवः स्वः प्राइमखचतुरस्रपीठे यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र सोम अधिदेवताप्रत्यधिदेवतामहित एहोह्यागच्छागच्छ गंधाद्यपचारसहितं श्रीरान्नबलिं . ग्रहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति कलिं दद्यात् / तत्रैव "ॐ परश्चायधधर्तारं खड्गपात्रधरं तथा // त्रिनेत्रं वरदं शांत कुमारं च / दिगंबरम् // " इति दिगंबरं ध्यात्वा कुमार दिगंबर पोह्यागच्छागच्छ गंधाधुपचारसहित एप बलिनमः कुमारदिगंबरः प्रीयताम् / / कुमार दिगंबरः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् / ततः " माहेशी शक्तिसंयुक्तं वृपवाहनभूषितम् शुद्धस्फटिकसंकाशं / वंदेहं रुरुभैरवम॥” इति रुझभैरवं ध्यात्वा ॐ रुरुभैरवाय अयं गंधाद्यपचारसहितक्षीरान्नयुक्तमापभक्तवलिनमः। भैरवः प्रीयतां भैरवः / सुप्रीतो वरदो भवतु / इत्यग्निकोणप्रतिष्ठापूजनम् // 2 // ततः दक्षिणद्वारे गत्वा " औदुंबरं च विकटं याम्ये तोरणमुत्तमम् / रक्षार्थ चैव बनामि देवाजाख्यकर्मणि॥"इति सौदंबरपत्रतोरणं बद्धा ॐ भूर्भुवः स्वः दक्षिणद्वारे विकटप्रीतये अयमौदुंबरतोरणचंदनाक्षतपुष्पधूपदी। For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir भै० म० पघृताक्तक्षीरानयक्तमाषाक्तबलिनमः। विकटः प्रीयतां सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दत्त्वा तत्रैव दक्षिणवामशाखयोः ध्वजपताके उच्छ्र पू० ख०१ यामि स्थापयामि नमः। इति ध्वजपताकाः संस्थाप्य तत्र देशे धम्रवर्णपताकां च कृष्णवर्णध्वजं तथा॥यमाय स्थापयामीति निहत्रे कर्मसा सन्दे०प० क्षिणे॥"ध्वजपताकयोर्यम इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इति यममावाह्य ॐ भूर्भुवःस्वः यमाय वामनदिग्गजसहिताय अयं गंधाधुपचारसहितक्षी रान्नयुक्तमापभक्तबलिनमः।यमः प्रीयतांयमः सुप्रीतो वरदो भवतु इति वालि दत्त्वा तत्राधिदेवताः पूजयेतातद्यथा दक्षिणद्वारसाचे ॐ कंकरालि महिषारूढे दंडहस्ते एहोहि इमं गंधाक्षतपुष्पधूपदीपसहितं क्षीरानबालि गृहग्रह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / तत्र | द्वारदक्षिणांमे ॐ अंकुश दंडखट्वांगौ पाशं च दधतीं करैः॥ध्येयां बंधकनकाशां कौमारी कामदायिनीम्॥इति कौमारी ध्यात्वा ॐ ह्रीं क्लीं कौल मारि एह्यागच्छागच्छ गंधायुपचारसहितमिनं श्रीरानबालि गृहगृह ममेप्सितं कुमकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारवामांसे ॐ ह्रीं श्री वैष्णवि एह्येह्यागच्छागच्छ गंधायुपचाग्महितमिमं श्रीरान्नबलिं गृहगृह ममेष्मितं कुमकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् तत्र द्वारे दक्षि णवामशाखयोः कलशद्वयं संस्थाप्य रत्नप्रक्षेप कृत्या द्वारस्थितकलशये ॐ गोदायै नमः। ॐ कृष्णायै नमः। इति संपूज्य / दक्षिणद्वारे / शांतिसूक्तजपार्थ सर्वविघ्ननिवारणार्थ त्वामह वृणे / इति यज्ञसूत्रं बद्धा भोकलश एढेहि गंधायुपचारसहितमिमं श्रीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात्। तत्रैव पुनर्दक्षिणांसे आवाहयाम्यहं धात्रे निधीनां पतये प्रभो॥इहागत्य ग्रह बलिं यज्ञविघ्नं Ansan व निवारय॥” इत्याबाह्य ॐ भूर्भुवः स्वः धात्रे एह्यह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं श्रीरान्नवलिं गृहगृह ममप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / तत उत्तरांसे “विकतिः प्रकृतिर्यस्य विधाता विश्वकत्रभो॥स मे भवनु मुप्रीतो यज्ञविघ्नं निवारय॥"इति ध्यात्वा ॐ 163 For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूर्भुवः स्वः विधात्रे एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं क्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् तत्र द्वारस्य पुनर्दक्षिणभागे वेदीमध्ये त्रिकोणे व्यंगुलमंडले “याम्ये गदाशक्तिगदांश्च शृरो वरप्रदो याम्यमुखोतिरक्तः // कुजोऽस्त्यवंतीविषये। त्रिकोणे तस्मिन्भरद्वाजकुले प्रसूतः॥” इति दक्षिणामुखं कुजं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अवतीसमुद्भव भारद्वाजगोत्र दक्षिणमुख भौम अधि। तदेवताप्रत्यधिदेवतासहित एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं श्रीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्मितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / ततः द्वारतो दक्षिणभागे " धनुर्बाणधरं देवं खडगपात्रधरं तथा // त्रिनेत्रं वरदं शांत कुमारं च दिगंबरम् ॥"इति दिगंबरम ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं शीरान्नबलिं गृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / द्वारत उत्त रभागे"ॐ कौमारीशक्तिसंयुक्त शिखिवाहनभूषितम्॥गौरवर्णधरं देवं वंदे श्रीचंडभैरवम्॥"इति चण्डभैरवं ध्यात्या ॐ भूर्भुवःस्वः चंडभैरव / / एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं श्रीरान्नबालं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दत्त्वा तत्रैव चिच्छक्त्यादि देवताः / / पूजयेत् तद्यथा। भैरवसमीपे ॐ चिच्छत्यै नमः।ॐ मायाशक्त्येनमः। द्वारपा ॐ शंखनिधये नमः। द्वारपुरतः ॐ मननिधये नमः।ऊर्चे ॐ श्रियै नमः। अधः देहल्याम् ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। इति संपूज्य प्रणमेत् / इति दक्षिणद्वारप्रतिष्ठापूजनम्॥३॥ततनैर्ऋती दिशमागत्य / प्राणानायम्य ॐ रक्ताक्षि प्रेतारूढे खड्गहस्ते एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं क्षीरानबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा। // इति बलिं दत्त्वा "पताका निर्वतशिाय कृष्णनीलमयं ध्वजम्॥ स्थापयामि सदा रोगणाधीशाय चेव हि // " निर्कतिप्रीत्यर्थ कृष्णनी / लध्वजपताकाः स्थापयामि। इति कृष्णं ध्वजं नीलपताकां च पंचहस्तदंडे उच्छ्येत् तत्रैव ॐ नितये नमः / इति नितिं संपूज्य ॐ For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir भभुवःस्यः निर्ऋतये कुभुददिग्गजसहिताय अयं गंधागुपचारसहितः श्रीरान्नयुक्तमाषभक्तबलिनमः।निर्वतिः प्रीयतां नितिः सुप्रीतो प० खं० 1 वरदो भवत् / इति बलिं दत्त्वा तत्राधिदेवताः पूजयेत् / तद्यथा / द्वारदक्षिणतो वेदीमध्ये शूर्पाकारमंडले "पैठीनसो बर्बरदेशजातः शूर्पासनः स दे०प० सिंहगमः सुधूम्रः॥ याम्याननो रक्षगणस्तु मह्यं वरप्रदः शूलसचर्मखड्गः॥” इति राहुं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः याम्यमुख राठिनापुरोद्भव र तरं० 14 पठीनसगोत्र राहो अधिदेवनाप्रत्यधिदेवतासहित सूर्पाकारपीठे एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं करुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात / तत्रैव "शंखचक्रधरं देवं पानपात्रं गदाधरम् ॥त्रिनेत्रं वरदं शांत कुमारं च दिगंबरम्॥"इति दिगंबर ध्यात्वा कुमार दिगंबर पोह्यागच्छागच्छ गंवायुपचारसहित एष बलिनमः। कुमारदिगंबरः प्रीयतां कुमारदिगंबरः सुप्रीतो वरदो भवतु।। इति बलिं दद्यात् / तत्रैव "वैष्णवीशक्तिसंयुक्तं गाडासनभषितम् // नीलवर्णधरं देवं वंदे श्रीक्रोधभैरवम् // " इति क्रोधभैरवं / / ध्यात्वा ॐ क्रोधभैरव अगं गंधाद्यपचारसहितक्षीरान्नयुक्तमाषभक्तालिनमः / भैरवः श्रीयतां भैरवः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलि दद्यात् / इति निर्ऋतिकोणप्रतिष्ठापूजनम // 4 // ततः पश्चिमद्वारे गत्या " अनत्थं पश्चिमे भीमे तोरणं रत्नसन्निभम // रक्षार्थ चैव बध्नामि देवपूजाख्यकर्मणि॥” इत्यश्वत्थतोरणं बद्धा ॐ भूर्भुवः स्वः पश्चिमद्वारे भीमप्रीतये अयमश्वत्थतोरणचन्दनाक्षतपुष्प धूपदीपघृताक्तक्षीरान्नयुक्तमापभक्तबलिनमः / भीमः प्रीयतां भीमः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् / तत्रैव दक्षिणवाम शाखयोः ध्वजपताका उच्छयामि स्थापयामि नमः। इति ध्वजपताकाः संस्थाप्य तत्र देशे "श्वेतवर्णपताकां च ध्वज पीतमयं तथा॥वरुणा थिय जलेशाय स्थापयामि शुभाय मे॥"ॐ भूर्भवः स्वः ध्वजपताकयोर्वरुण इहागच्छ प्रतिष्ठितो भव इति वरुणमाबाह्य ॐ भूर्भुवः स्वः अय // 62 // For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir लगंधायुपचारक्षीरान्नमहितमाषभक्तबलिनमः। वरुणः पीरतां वरुणः मुभीतो वरदो भवतु।इति बलिं दत्वा तत्राधिदेवताः पूजयेत् पश्चिमद्वारे वामांने ॐ कौवेरि श्वेताश्वरूटे पाशहस्ते पोह्यागन्टागच्छ गंधाक्षतपुष्पभूपदीपसहितक्षीरान्नबलिं गृह्णगृह नोणितं कुरुकुरु स्वाहा इति व बलिं दद्यात।तत्रद्वारदक्षिणांसे"ॐ मुसलं करवालं च खेटकं दधती हलम्॥ कर श्चतुर्भिर्वाराही ध्येया कालघनच्छविः॥” इति वाराही ध्यात्वाधा ही हूँ बाराहि एहो धागच्छागच्छ इमं क्षीरानमलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारदेशे दक्षिणवामपार्श्वयोः कल शइयं संस्थाप्य रत्नप्रक्षेपं कृत्वा द्वारस्थितकलशये ॐ रेवाय नमः। ॐ ताप्यै नमः।इति संपूज्य पश्चिमद्वारे शांतिमृक्तजपार्थ सर्वविन्नानि वार था गार्थत्वामहं वृणे।इति यज्ञसूत्रं बवा भोकलश एयहि गंधाधुपचारसहित इमं क्षीरान्नबलिं गृहगृह्ण ममेष्मितं कुरुकुम्बाहा।इति बलिं दद्यात्। तत्रैव पुनर्दक्षिगांसे “सामवेदस्तु पिंगाक्षो जाग्रतः शक्रदेवतः।भारद्वाजस्तु विकेंद्र ऋत्विक्त्वं मे मखे भव॥” इति ध्यात्वा ॐ अर्भवःस्वः शक एह्येश्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा।इति बलिं दद्यात तत उनसे वरुणो धवलो विष्णुः / पुरुषो निर्मलाननःपाशहस्तो महाभीमस्तस्मै नित्यं नमोनमः॥” इति वरुण ध्यात्वा भूर्भुवः स्वःवरुणए हागच्छागच्छइमं गंधाधुपचारस हित श्रीरानबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत्रद्वारस्य पुनर्दक्षिणभागे वेदीमध्ये चापाकारमंडले “चापासनो गृध मयः सुनीलःप्रत्यङ्मुखःकाश्यपजःप्रतीच्याम्॥समूलचापेषुवरप्रदश्च सौराष्ट्रदेशप्रभवश्च सौरिः॥"इति शनिश्चरं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः मौरा छ। देशोद्भव काश्यपगोत्रशेनश्वर अधिदेवताप्रत्यधिदेवतासहित एखैह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारसहितं शीरान्नबलिं गृहगृहममेप्सितं कुरु कुरु स्वाहा।इति बलिं दद्यातातत्र द्वारतः दक्षिणभागे खट्वांग मशलं चैव करवालं च पारकम्॥त्रिनेत्रं वरदं भीमं कुमारं च दिगंबरम्॥ For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsu Gyanmandir मं०म० // 63 // इति दिगंबरं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः कुमार दिगंबरं एोह्यागच्छागच्छ इमं गंधाधुपचारसहितं श्रीरानबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरु कुरु पू० ख० 1 स्वाहा इति बलिं दद्यात् / उत्तरभागे " हेमवर्णधरं देवं तथा महिषवाहनम्॥वाराहीशक्तिसंयुक्तं वंदे उन्मनभैरवम् // " इति उन्मत्त भैरवं / ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः उन्मनभैरव ए ह्यागच्छागच्छ इमं शीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दत्वा चिच्छ तरं०४ त्यादिदे बताः पूजयेत् / तद्यथा / भैरवसमीपे ॐ चिच्छक्त्यै नमः। ॐ मायाशत्त्यै नमः। द्वारपा ॐ शंखनिधये नमः। द्वारपुरतः ॐ जापानिधये नमः। ऊः ॐ श्रियै नमः। अधो देहल्याम ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। इति संपूज्य प्रणमेत् / इति पश्चिमद्वारप्रतिष्ठापूजनम्॥ // 5 // ततः वायव्यकोणे गत्वा प्राणानायभ्य ॐ हं हरितमृगवाहिनि अंकुशहस्ते एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दत्त्वा “पताकां वायवे श्वेतां ध्वज पीतं भयं तथा // स्थापयाम्पन च क्षुद्रप्राणादायं सदैव। हि॥" वायुप्रीत्यर्थ श्वेतपताकां पीतध्वजं च स्थापयामि।इति पताका श्वेतं पीतं ध्वजं च पंचहस्तदंडे उच्टयेतातत्रयः "वायुमाकाशगं चैव 5 पवनं वेगसदतिम॥आवाहयामि यज्ञेस्मिन्पूजेयं प्रतिगृह्यताम् // " इति वायुमावाह्य ॐ वायवे नमः / इति वायु संपूज्य / ॐ भूर्भवः स्वः वायवे अयं गंधाधुपचारमघृतक्षीरान्नसहितमापभक्तबलिनमः / वायुः प्रीयतां वायुः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दत्त्वा तत्राधि देवताः पूजयेत् / तद्यथा / वायुमुखध्वजाकारमंडले “ध्वजासनो जैमिनिगोत्रजातोतर्वेयधीशोऽथ विचित्रवर्णः॥ याम्यैर्वृतो वायदिगी। शखड्गचर्मा मुराचामशताह्यनेकः // " इति केतुं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अंतर्वेदिसमुद्भव जैमिनिसगोत्र केतो अधिदेवताप्रत्यधि देवतासहित ए ह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारसहितघृतीरान्नमाषाक्तबलिनमः। केतुः प्रीयतां केतुः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलि For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दद्यात् / तत्रैव ॐ कुमार दिगंबर एह्येह्यागच्छागच्छ गंधाधुपचारसहित एषमाषाक्तत्बलिनमः कुमारदिगंवरः प्रीयतां कुमारदिगंबर सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दद्यात् / ततो कपालभैरव एह्येह्यागच्छागच्छ गंधायुपचारसहित एप मापात बलिनमः ISM कपालभैरवः प्रीयतां कपालभैरवः सुप्रीतो वरदो जवतु / इति बलिं दद्यात् / इति वायुकाणे प्रतिष्टापूजनम् // 6 // ततः उत्तरद्वारसमीप गत्वा आचम्य प्रागानायम्य “सुप्रभं तोरणं पक्षमुत्तरे च शशिप्रभम् // रक्षार्थ चैत्र अनामि देवजाग्थ्यकर्मणि॥” इति / लक्षपत्रतोरणं बद्धा भागवः स्वः उनरद्वारे सुप्रभतोरणाय सुप्रभप्रीतये अयं वृक्षतोरणचंदनासतपुष्पधूपदपिघृताक्तशीरान्नयुक्तभाषी भक्तबलिनमः। सुप्रभः प्रीयता मुप्रभः मुत्रीतो वरदो भवतु। इति बलिं दत्त्वा दक्षिणवामशाखयोः ध्वजपताकानुच्यामि स्थापयामि नमः इति धजाताका संस्थाप्य तत्र देशे श्वेतवर्णपताकां च पद्याभवध्वजं तथा / / सोमाय स्थापयाम्येव धनवान्यवृद्धये॥" एवं कुबेरपी त्यर्थ हरितध्वजं हरितपताकां च संस्थाप्य कुबेर इहागच्छ इह तिष्ठ इति कुबेरमावाह्य ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेराय सार्वभौमदिग्गजसहिताय / अयं गंधाद्यपचारसहितक्षीरान्नमापभक्तबलिनमः। कुबेरः प्रीयतां कुबेरः सुप्रीतो वरदो भवतु / इति बलिं दत्त्वा तत्राधिदेवताः पूजयेत् / तयथा।उत्तरद्वारपाय ॐ यं यक्षिणि सिंहवाहिनि गदाहस्ते एलेह्यागच्छागच्छ गंधायुपचारसहितमिमं क्षीरामबलि गृहगृह ममेप्मित कुरुकुरु स्वाहा / इति बलि दद्यात् / तत्र द्वारदक्षिणांसे " अक्षत्रजं बीजपरं कपालं पंकज करः / / वहीं हेमसंकाशां महालक्ष्मी समी समाम् // " इति नारसिंही ध्यात्वा ॐ ह्रीं श्मों नारसिंहि एलेह्यागच्छागच्छ गंधाक्षतपुष्पवूपदीपसहितक्षीरान्नबलिं गृह्णगृह ममेप्सितं दाकुरुकुरु स्वाहा / इति बलि दद्यात् / तत्र वामांसे ॐ ह्रींख्ये चामुंडे ए ह्यागच्छागच्छ गंधाधुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सि % 3Aळकरा For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म तं कुरुकरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात्। तत्र द्वारदक्षिणवामशाखयोः कलशद्वयं संस्थाप्य रत्नप्रक्षेपं कृत्वा द्वारस्थितकलशये ॐ वाण्यास नमः / ॐ वेण्यै नमः / इति संपूज्य कर्मनिष्ठौ तपोयुक्तौ ब्राह्मणी वेदपारगौ॥सरस्वतीसूक्तपाठार्थ द्वारे भवत ऋविजौ॥"अथर्ववेदऋत्वि सदे०प० तरं०४ जो उत्तरद्वारे शांतिसूक्तजपार्थत्वेनाऽहं वृणे। इति यज्ञसूत्रं बद्धा भो कलश एढेहि गंधाधुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कर | कुरु स्वाहा इति बलिं दद्याता तत्रैव पुनर्दक्षिणांसे “बृहन्नेत्रोथर्ववेदोनुष्टुनो रुद्रदेवतः // वैशंपायन विप्रेन्द्र ऋत्विक वं मे मखे जव" PAIॐ भूर्भुवः स्वः वैशंपायन एह्येह्यागच्छागच्छ इमं गंधायपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममप्मितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् / तत उत्तरांसे "विकृतिः प्रकृतिर्यस्य विधाता विश्वकपको // स मे भवतु मुप्रीतो यज्ञविन्नं निवारय॥"इति ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः विक धात्रे एह ह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारसहितज्ञीरानबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरु कुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारस्य पुनर्द। क्षिणांसे वेदीमध्ये चतुरबपीठे " सौम्येतिदीर्घ चतुरस्त्रपीठे रथेगिराः सौम्यमुखः सुपीतः // दंडाक्षमालांबुजपात्रहस्तः सिंध्याख्यदेशोथ वरदः मुजीवः॥"इति बृहस्पति ध्यात्या ॐ भुवः स्वः सिंधुदेशोद्भब अंगिरसगोत्र बृहस्पत आधदेवताप्रत्यधिदेवतासहित रोह्यागच्छाग च्छ गंधाद्यपचार सहितमिमं श्रीरानबलिं गृहग्रह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / तत्र द्वारतः दक्षिणनागे “शूलायुधं / चंडमत्तं शक्तिं चैव च पात्रकमात्रिनेत्रं वरदं शांत कुमारं च दिगंबरम्॥ इति शांतकुमारदिगंबरं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वःशांतकुमारदिगं // 6 // घबर एह्येह्यागच्छागच्छ गंधाक्षतपुष्पधूपदीपसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / हारत उत्तरजागे / चामुंडाशक्तिसंयुक्त प्रेतवाहनभूषितम् / / रक्तवर्णधरं देवं वंदे नीषणभैरवम् // इति भैरवं ध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः भीषणभैरव रोह्याग / For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org छागच्छ गंधायुपचारसहितमाषभक्तबलिं गृह्णगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलि दत्त्वा चिच्छन्त्यादिदेवताः पूजयेत् / तद्यथा। भैरवसमीपे ॐ चिच्छत्यै नमः / ॐ मायाशक्त्यै नमः। द्वारपार्थ - शंखनिधये नमः / द्वारपरतः ॐ पद्मनिधये नमः / ऊर्चे ॐ द्वारश्रियै नमः। अधो देहल्याम् // ॐ वास्तुपुरुषाय नमः / इति संपृज्य प्रणमेत् / इत्यत्तरदारप्रतिष्ठापजनम् // 7 // अर्थशान्यकोणे / गत्वा प्राणानायम्य कंकालि बृपत्तारूडे शूलमस्ते एढेह्यागच्छागच्छ इमं गंधायुपचारमहितक्षीरान्नबलिं गृहग्रह ममेष्मितं कुरुकुरु स्वाहा। इति बलिं दद्यात् “ईशानाय ध्वजं श्वेतं पताकां चैव वै तथा ॥स्थापयामि महेशाय वृषारूढाय शूलिने॥"ईशानप्रीत्यर्थं श्वेतपताकां च स्थापयामि इति श्वेतपताकां ध्वजं च पंचहस्तदंडे उच्छ्येत् तत्र ईशानाय नमः इति संपृज्य ॐ भूर्भवःस्व ईशानाय वृषारूढाय अयं गधाद्य पचारसहितक्षीरान्नमापनक्त बलिनमः। ईशानः प्रीयता ईशानः मुत्रीतो वरदो भवत्। इति बलिं दत्वा तत्राधिदेवताः पूजयेतातद्यथा उदङ्मख शरमंडले"उदङ्मखो मागधजो हरिस्थश्चात्रेयगोत्रःशरमंडलस्थः सखड्गचर्मापिगदाधरो ज्ञः स्वीशानभागे वरदः मुपीतः॥"इति बुधंध्यात्वा ॐ भूर्भुवः स्वः मागधदेशोद्भव आत्रेयसगोत्र बुध इहागच्छागच्छ इमं गंवायुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकरु स्वाहा व इति बलिं दद्यात् तत्रैव "शूल डमरूकं चैत्र शंखचक्रे गदाधरम् // खड्गपात्रं च खट्वांगपाशांकुशधरं तथा // " इति ईशानं ध्यात्वा ईशान पोह्यागच्छागच्छ गंधाद्याचारसहितमिमं श्रीरामवलिं गृह्णयह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा इति बलिं दद्यात् तत्रैव दिगंबरं कुमारं च सिंहवा थे। हनभूषितम् ॥दंष्ट्राकरालवदनमष्टैश्वर्यमुखपदम्॥” इति दिगंबरकुमारं ध्यात्वा दिगंबरकुमार एलेह्यागच्छागच्छ गंधायुपचारनहितभिम क्षीरान्नबलिं गृहगह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा।इति बालं दद्यात्।ततः "धारयंत मदोन्मनं वडवानलभैरवम् ॥चंडिकाशक्तिसंयुक्तं बंदे संहार 17 For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मै० म० भैरवम॥” इति संहारभैरवं ध्यात्वा ॐ भूभुत्वः स्वः महारभैरव एह्येह्यागच्छागच्छ गंधाधुपचारसहित एष माषभक्तबलिनमः / भैरवः प. खं•१ प्रीयताम् भैरवः मुप्रीतो वरदो भवतु।इति ईशानकोणप्रतिष्ठापूजनम्॥८॥ततः ईशानपूर्वयोर्मध्यदेशे गत्वा ईशानपूर्वमध्ये संसर्पराज चक्रहस्त सद०प० एह्येह्यागच्छागच्छ गंधाद्यपचारसहितमिमं क्षीरान्नबाल गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा / इति बलिं दद्यात् / स्थापयाम्यंतरिक्षाय तरं० 4 पताकां सार्ववर्णिकाम् // कनकाकाररूपाय निराकाराय च ध्वजम् // " ब्रह्मणे सार्ववार्णिकां पताकां कनकरूपं ध्वजं च स्थापयामि / इति सार्ववर्णिकां पताकां कनकरूपं ध्वजं च पंचहस्तदंडे स्थापयेत् / तत्र देशे ॐ ब्रह्मन्निहागच्छागच्छ एप गंधायुपचारसहितक्षीरान्न / बलिनमः।ब्रह्मा प्रीयतां ब्रह्मा सुप्रीतो वरदो भवतु।इति बलिं दद्यात्। इतीशानपूर्वमध्यदेशप्रतिष्ठापूजनम्॥९॥ततः पश्चिमनैर्ऋत्ययोर्मध्ये ग वा "भमे त्वं सर्वलोकानामाधारः षड्सप्रदे॥ पंचवर्णपताकां च स्थापयामि ध्वज तथा॥"भूमिप्रीत्यर्थ पंचवर्णपताकां ध्वजं च स्थापयामि / / इति पंचवर्णपताकां ध्वजं च पंचवर्ण पंचहस्तदंडे उच्छ्येत / तत्रैव विष्णुप्रिये गजहंसवाहने अक्षसूत्रकमंडलुहस्ते ए पागच्छागच्छा गंधायुपचारसहितक्षीरान्नबलिं गृहगृह ममेप्सितं कुरुकुरु स्वाहा। इति बलिं दद्यात् / इति पश्चिमनैर्ऋत्यमध्यदेशप्रतिष्ठापूजनम्॥१०॥ ततो मंडपमध्यदेश गत्वा "आदित्या वसवो रुद्रा वषटकारः प्रजापतिः // ध्वजं चित्रपताकां च स्थापयामि हि भो मुराः॥" आदित्यादि देवताप्रीत्यर्थ ध्वज पताकां स्थापयामि / इति ध्वज चित्रपताकां च सर्वोच्चदंडे स्थापयेत / आदित्यादिदेवताः इहागच्छत अयं / गंधायुपचारसहितक्षीरान्नबलिनमः। आदित्यादिदेवताः प्रीयंताम् आदित्याया देवताः सुप्रीता वरदा भवंतु / इति बलि दत्त्वा प्रार्थयेत् / / "यज्ञभागभुजो देवाः सर्वकर्मफलप्रदाः // यज्ञं पातुमिहागत्य नमस्तेत्यो ममाद्य वै // " इति प्रार्थयेत् / इति डामरतंत्रादितंत्रे देवता For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महोत्सवे पोडशस्तंभप्रतिष्ठातोरणध्वजपताकाप्रतिष्ठापूजनम् // 11 // अथाग्निस्थापनप्रयोगः // तत्रादौ कंडेऽष्टसंस्काराः॥ कुंडं सव्यं प्रदक्षिणीकृत्य कुंडस्य प्रश्चिमभागे उपविश्य आचम्य मूलेन प्राणानायम्य मूलेन षडंगं कृत्वा कुंडे स्थंडिले वा अष्टौ संस्कारान् कुर्यात् / तद्यथा / देशकालौ संकीर्त्य मया सह ब्रह्माणैः कृतानां कारितानां चामुकदेवताजपानां संपूर्णतासिद्ध्यर्थ जपदशांशेनोक्तहविर्द्रव्योममहं करिष्ये। तदंगभूतमादावास्मिन्कृतस्य विध्युक्तमार्गेण परिसमूहनादिसंस्कारान्करिष्ये / इति संकल्प्य / तत आचार्यों मूलमंत्रण कुंडं नवीक्ष्य 1 तेनैव कुशत्रयेण संताड्य 2 ॐ मूलेन अस्वायफडित्यत्रमंत्रेण गोमयोदकं संप्रोश्य तेनैव संलिप्य 3 मूलेन इति वर्मणा मुष्टिनासिंच्य४ ॐ मूलेन हृदयाय नमः इति हृदयमंत्रेण स्रवेण कुशमूलेन वा प्रागया उत्तरोत्तरक्रमेण तिस्रो रेखाः कुंडे स्थंडिलपरिमाणाः / प्रादेशमात्रा वा कृत्वा तदुपरिंगा उदगमाः प्राप्राक्क्रमेण तिस्रो रेखाः कुर्यात् / ततस्तासु प्रागमासु क्रमेण ॐ मुकुंदाय नमः। 2 ॐ ईशानाय नमः / ॐ पुरंदराय नमः / इति गंधादिभिः संपूज्य उदगमासु ॐ ब्रह्मणे नमः / ॐ वैवस्वताय नमः / ॐ इंदवे नमः / इति पूजयेत् / एवं पंच भूसंस्काराः 5 ततः माया (ह्रीं) इति बीजेन कुंडं गंधादिना संपूज्य इति षष्ठः 6 तत व आवाहनादिसप्त मुद्राः प्रदर्शयदिति सप्तमः 7 अस्त्रेणावगुंठय इति कुंऽष्ट संस्काराः ततः। कुंडे स्थंडिले वा तन्मध्ये त्रिकोणषट्कोणवृत्त ll साष्टपत्रचतुरस्त्रयंत्रं लिखित्वा तत्र त्रिकोणे ॐ ह्रीं ॐ इति मंत्रं लिखेत / तत्र देशे ॐ मंडूकादिपरतत्त्वान्तपीठदेवताभ्यो नमः / ॐ Kातत्तन्नाम्नं नवपीठशक्तियो नमः। इति संपूज्य तदुपरि सुवर्णस्य कलशं निधाय ॐ ह्रीं वागीशीवागीश्वरयोगपीठात्मने नमः। इत्यासन दत्त्वा मूलेन हुँ इति वर्मणा आयुक्ष्य ॐ आग्नेययोगपीठाय नमः / इति पीठं संपूज्य "शय्यागताम् ऋतुस्नातां नीलेन्दीवरधारणीम् // For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 0 खं. 1 सन्दे०प. तरं. 4 देवेन भुज्यमानां तु स्मरेतयोनिमण्डले॥” इति वागीश्वरी ध्यात्वा ॐ कुंडाय नमः / इति कुंडं गंधादिभिः संपूजयेत् / इति कुंडं संस्क त्याग्निं प्रतिष्ठापयेत् // अथानिस्थापनम् // मूर्यकांतमणेः सकाशात वा अरणितः श्रोत्रियागारतो वा कांस्यपात्रेण पिहितमग्निं मूलेन फट इत्यस्वमंत्रेणादाय कुंडबाह्ये आनेय्यां निधाय मूलेन हुँ इति वर्मणा उद्घाट्य ज्वलितकुशेन मूलेन फट इत्यस्वमंत्रेण नैऋत्ये कयादांश परित्यजेत् / ततो मूलमंत्रेणाग्निं पुरतो धृत्वा तेनैव वीक्ष्य अस्वेणाल्पं प्रोक्ष्य तेनैव कुशत्रयेण संताड्य ॐ हुं इति वर्मणा संसिंच्य ॐ पर इति वह्निबीजेन चैतन्यं संयोज्य ॐ इति तारेणाभिमंत्र्य धेनुमद्रया ॐ वं इति सुधाबीजेन अमृतीकृत्य ॐ फट् इत्यत्रेण संरक्ष्य अवगुंठन्या मुद्रया ॐ हुँ इति कवचेनावगुंठय ततो बाहुल्यां वह्निपात्रं समुद्धृत्य ॐ इति प्रणबेन कुंडोपरि त्रि मयित्वा "शय्यागतामृत नातां नीलेन्दीवरधारिणीम // देवेन भुज्यमानां तां स्मरेतयोनिमण्डले // " इति ध्यात्वा जानुस्पृष्टधरातलो मूलमंत्रेण योनौ शिवरेतोधि या आत्मसमखं वह्नि धृत्वा ॐ हूँ वह्निचैतन्याय नमः / इति मंत्रेण कुण्डमध्ये स्थापयेत् / ततः ॐ वागीशीवागीश्वराभ्यां नमः / इत्याच मनं दत्त्वा ॐ चितपिंगल हन२ दह 2 पच 2 सर्वज्ञाज्ञापय स्वाहा / इति मंत्रेणाग्निं प्रज्वालयत् / ततो ज्वालिनीभुद्रां प्रदर्य उत्थाय ॐ अग्निं प्रज्वलितं वंदे जातवेदं हुताशनम्॥ सुवर्णवर्णममलं सामद्धं विश्वतोमुखम्॥"इति प्रार्थयेत। ततोऽमेऽमुकनामासि इति नाम कृत्वा वैश्वानरेति मंत्रस्य भृगुऋषिः। गायत्री छन्दः। अग्निदेवता। Rs बीजम् / स्वाहा शक्तिः हवने प्रार्थनायां च विनियोगः। ॐ वैश्वानर जात वेद इहावह लोहिताक्ष सर्वकर्माणि साधय स्वाहा” इति मंत्रणाग्निं पायादिभिः संपूज्य न्यासं कुर्यात्। तद्यथा। ॐ स्पं हिरण्यायै नमः लिंगे 1 ॐ गगनायै नमः गुदे 2 ॐ श्यं रक्तायै नमो मर्पि३ ॐ न्यूँ कृष्णायै नमः बक्के 4 ॐ ल्यँ सुप्रभायै नमो नासिकायाम 5 ॐ For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir न्यू बहुरूपायै नमः नत्रे 6 ॐ अतिरिक्तायै नमः सर्वागे 7 इत्यग्निजिह्वान्यामः // ॐ देवताभ्यो नमो लिंगे 1 ॐ पितृत्यो नमो | पदे 2 ॐ गंधयो नमो मृद्धि 3 ॐ यक्षायो नमो बक्के 4 ॐ नागेन्यो नमो नासिकायाम् 5 ॐ पिशाचायो नमः नेत्रे 6 ॐ राक्ष सत्यो नमः सर्वांगे 7 इत्यमिजिह्वदेवतान्यासः // ॐ सहस्रार्चिषे हृदयाय नमः स्वाहा: ॐ स्वतिपूर्णाय शिरसे स्वाहार ॐ उत्तिष्ठपुरुष पाय शिखायै वषट् स्वाहा 3 ॐ धूमव्यापिने कवचाय है स्वाहा 4 ॐ ममजिह्वाय नेत्रत्रयाय वौषट् स्वाहा 5 धनुर्धराय अस्त्राय फट / स्वाहा 6 इति विन्यसेत् // ॐ अनये जातवेदसे नमो मईि। ॐ अनये साजिह्वाय नमो वामांसे २ॐ अग्नये हव्यवाहनाय नमो वाम पाचे 3 ॐ अग्नये अश्वोदरजाय नमो वामकट्याम् 4 ॐ अग्नये वैश्वानराय नमो लिंगे 5 ॐ अनये कौमारतेजसे नमो दक्षिण कट्याम् 6 ॐ अनये विश्वमुखाय नमो दक्षिणपार्श्व 7 ॐ अग्नये देवमुखाय नमो दक्षांसे 8 एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् / अथ ध्यानम् // " इष्टं शक्तिं स्वस्तिकाभीतिमुच्चैदीवदाभिर्धारयंतं जपाभम् // हेमाकल्पं पद्मसंस्थं त्रिनेत्र ध्यायेद्वह्नि बद्धमौलिं जटाभिः | Kena // " इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य शुद्धोदकेन कुंडं स्थंडिलं वा परिषिंच्य प्राचीवर्जदक्षिणे प्रागौः पश्चिमे उदगौः उत्तरे प्राग प्रैश्च दभैरगर्भमध्यस्थमेखलायां परिस्तीर्य्य त्रीन परिधीन क्रमान्निक्षिपेत् / ततस्तेषपरि मेखलाक्रमेण ॐ ब्रह्मणे नमः / ॐ विष्णवे नमः 2 ॐ शिवाय नमः 3 इति गंधादिभिः संपूज्य योन्यां ॐ गौर्य नमः / इति गौरी संपूजयेत् / ततः ॐ वैश्वानर जातवेद इहावह लोहिताक्ष सर्वकर्माणि साधय स्वाहा” इति वह्नि मध्ये गंधादिभिः संपूज्य कुंडयोनि वस्त्रेणाच्छाय कुंडं नवसूत्रेण संवेष्टय कुशकंडिकां कुर्यात् / इत्यग्निस्थापनम् // अथ कुशकंडिकाप्रकारः // स्ववामे कुशानातीयं तत्र For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० क्रमेण प्रणीतां 1 प्रोक्षणी 2 आज्यस्थाली 3 व 4 च 5 अन्यदप्युपयोगि यत् तन्निधाय पवित्रे कृत्वा मूल पू० ख० 1 मंत्रण शुद्धांनसा तानि प्रोक्ष्य उत्तानानि विधाय प्रणीतां जलेन पूरयेत् / तत्र " ॐ गंगे च यमुने.” इति मंत्रण कुश सदे०५० मुद्रया तीर्थान्यावाह्य पवित्रे अक्षतांश्च तत्र निःक्षिप्य उत्पवनं चरेत् / तत उदीच्यां प्रणीतां निधाय प्रोक्षण्यां तज्जलं तरं०४ क्षिप्त्वा पवित्राभ्यां जलमानीय हवनीयं द्रव्यजातं प्रोक्षयेत् / ततो मूलमंत्रेण मलगायत्र्या वा दक्षिणे पीठमासाद्य / तत्र ॐ अणिमादिपीठदेवताभ्यो नमः / इति पीठशक्तीः संपूज्य ॐ ब्रह्मणे नमः 3 इति ब्रह्माणं षोडशोपचारैः पूजयेत् / ततो हस्तायां / मुक्नुवौ धृत्वाधोमुखौ वह्नौ त्रिवारं तापयित्वा वामहस्तेन तौ धृत्वा दक्षिणहस्तेन दर्भेर्यथाक्रम तदनमूलमध्यानि शोधयित्वा | प्रोक्षणीजलेन संप्रोक्ष्य पूर्ववत पुनः प्रताप्य दर्भानग्नौ निक्षिप्य शक्तित्रयं न्यसेत् / मले ॐ ह्रां इच्छाशक्त्यै नमः 1 मध्ये ॐ ही ज्ञानशक्त्यै नमः 2 अंते ॐ हूँ क्रियाशक्त्यै नमः 3 ततः ॐ सुवे नमः / शक्त्यै नमः 2 शंभवे नमः 3 इति विन्यस्य तौ सूत्र। त्रयेण संवेष्टय कुंकुमपुष्पादिभिः संपृज्य आत्मदक्षिणभागे कुशोपरि स्थापयेत् / इति कुशकंडिका // अथ घृतसंस्काराः / आज्यस्थाली मानीय ॐ फट् इति वारिणा प्रोक्ष्य तस्यामाज्यं निनिध्य मूलमंत्रेण गोमुद्रयाऽमृतीकृत्य षट्संस्कारांश्चरेत् / तद्यथा / कुंडोद्धृते वायु कोणे स्थितेंगारे ॐ नमः / इति मंत्रणाज्यस्थाली निधाय तापनं कृत्वा दर्भयुगलं संदीप्य ॐ नमः / इत्याज्ये विनिक्षिपेत् / पुनर्दर्भ युग्मं प्रदीप्य ॐ हूँ इति वर्मणा आज्योपरि धामयित्वा दर्भयुग्ममग्नौ विसर्जयेत् / ततः ॐ फडिति मंत्रेण घृते प्रज्वलितं दर्भत्रयं प्रदय ताननी न्यस्य घृतस्थाली गृहीत्वा तदंगारान् वह्नौ संयोज्य जलं संस्पृशेत् / ततः अंगुष्ठानामिकास्यां प्रादेशसंमिती दी गृहीत्वा ॐ ISSILE7 // For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir फट् / इत्यस्त्रेण घृतमुत्तृय ॐ नमः / इति मंत्रणात्मसंमुखं कृत्वा घृतसंप्लवनं कुर्यात् / इति धृतस्य पट् संस्काराः // ततः प्रादेशमान Falमात्रं संग्रंथिदर्भयुग्मं धृतमध्ये निक्षिप्य आज्यस्य द्वौ भागौ कृत्वा कृष्णशुक्की पक्षी स्मरेत् / ततो वामे इडां नाडी दक्षिणे पिंगलां मध्ये || मुषुम्णां ध्यात्वा होमं कुर्यात् / अथ होमप्रकारः / ॐ नमः / इति मंत्रेण सुवेण दक्षिणभागादाज्यं गृहीत्वा ( अग्नेर्दक्षिणे लोचने ) ॐd ला अनये स्वाहा इदमग्नये 1 पुनः तद्वद्वामभागादाज्यमादाय ( अग्नेर्वामलोचने ) ॐ सोमाय स्वाहा इदं सोमाय 2 पुनः तन्मध्याज्यं गी हीत्वा ( अनेर्भाललोचने) ॐ अग्नीषोमायां स्वाहा 3 इति जुहुयात् / ततः ॐ नमः इति सुवेणाज्यं दक्षिणभागादादाय वह्निमुखे ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा इति हुत्वा व्याहृतिहोमं कुर्य्यात् / तद्यथा / ॐ भूः स्वाहा / ॐ भुवः स्वाहा 2 ॐ स्वः स्वाहा 3 इति व्या हृतिहोमं कृत्वा ततो वैश्वानर जातवेद इहावह लोहिताक्ष सर्वकर्माणि साधय स्वाहा इति / मंत्रण त्रिवार हुनेत् / ततः प्रणवेन धृताहुति धाभिरेकैकवारमग्नेगर्भाधानादिषोडशसंस्कारान् कुर्यात् / शुभे कर्मणि गर्भाधानादिविवाहांत क्रूरकर्मणि गर्भाधानादिपरणांतं संस्कारान कुर्यात् / तत्र क्रमः।ॐ अस्यामेर्गर्भाधानसंस्कार करोमि स्वाहा॥१॥ॐ अग्ने[सवनं संस्कार करोमि स्वाहा॥२॥ॐ अग्नेः सीमंतोन्नय नं संस्कारं करोमि स्वाहा // 3 // ॐ अमेतिकर्मसंस्कारं करोमि स्वाहा॥४॥ॐ अग्नेरमुकनामकर्मसंस्कार करोमि स्वाहा॥५॥ॐ अ निष्कामणं संस्कारं करोमि स्वाहा // 6 // ॐ अग्नः कर्णबंध संस्कारं करोमि स्वाहा // 7 // ॐ अग्नेरन्नप्राशनं संस्कारं करोमि | स्वाहा // 8 // ॐ अग्नेश्चौलसंस्कारं करोमि स्वाहा // 9 // ॐ अग्नेरुपनयन संस्कार करोमि स्वाहा // 10 // ॐ अग्नेदारंभ संस्का परं करोमि स्वाहा // 11 // ॐ अग्नेर्महानाम्नि महापूत संस्कार करोमि स्वाहा // 12 // ॐ अनेरुपनिषद्रतं संस्कारं करोमि For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir म. मास्वाहा // 13 // ॐ अग्रेव्रतविमर्ग संस्कार करोमि स्वाहा // 12 // ॐ अमेः केशानगोदानं संस्कारं करोमि स्वाहा // 15 // ॐ अग्रेविवाहसंस्कारं करोमि स्वाहा // 16 // (करकर्मणि ॐ अनेमृतिसंस्कारं करोमि स्वाहा // 16 // ) एवं संस्कारान संपाद्य बढ़ेः सन्दे०प० तरं०४ पितरौ ॐ पार्वतीपरमेश्वराच्यां नमः। इति मंत्रेणसंपूज्य आत्मनि योजयित्वा मृलायवृतसंयुताः पंच समिधो मनसा ध्यात्वा जुहुयात् / ततः / अग्नेः सप्तजिह्वादिभूतित्यस्तनमंत्रणैकैकामाज्याहुतिं जुहुयात् / तत्र कमः ॐ स्यूं हिरण्यायै अनिजिह्वायै नमः स्वाहा इदं हिरण्याय अग्निजिह्वाय न मम 3 ॐ प्णू गगनायै अनिजिबाय नमः / स्वाहा / इदं गगनाये अग्निजिताय न मम 2 ॐ श्यूं रक्ताय अनिजिह्वायै / चनमः / स्वाहा इदं रक्ताय अभिजिह्वाय न मम 3 ॐ कृष्णायै अभिजिह्वाय नमः स्वाहा / इदं कृष्णायै अमिजिह्वायै न मम 4 ॐ ल्यू सुप्रभायै अनिजिह्वायै नमः स्वाहा / इदं सुप्रभायै अनिजिह्वायै न मम . ॐ यूं बहुरूपाय अग्निजिह्वायै नमः स्वाहा / इदं बहुत रूपायै अग्निजितायै न मम 6 ॐ ये अतिरिकायै अमिजिह्वायै नमः / स्वाहा / इदं अतिरिक्तायै अग्निजिह्वायै न मम 7 इत्यग्निजिह्वा / होमः / / ॐ अमाय नमः। स्वाहा इदममाय न मम 1 ॐ पितृत्यो नमः स्वाहा इदं पितृयो न नम 2 ॐ गंधयो नमः स्वाहा इदं गंधर्वेन्यो न मम 3 ॐ यक्षेप्यो नमः स्वाहा इदं यक्षेप्यो न मम 4 ॐ नागेन्यो नमः स्वाहा इदं नागेन्यो न मम 5 ॐ पिशाचात्यो नमः स्वाहा / इदं पिशाचत्यो न मम 6 ॐ राक्षसेन्यो नमः स्वाहा इदं राक्षसायो न मम७॥ इत्यग्निजिहादिदेवताहोमः॥ अथाग्यंगदेवताहोमः / ततः केसरेषु अग्यादिकोणमध्ये दिक्षु च / ॐ सहस्राषेि हृदयाय नमः स्वाहा 1 ॐ स्वस्तिपर्णाय शिरसे स्वाहा 2 ॐ उत्तिष्ठपुरुषाय शिखायै वषट् स्वाहा 3 ॐ धूम्रव्यापिने कवचाय हुँ स्वाहा 4 सप्तजिह्वाय नेत्रत्रयाय वौषट् स्वाहा 5 // For Private And Personal use only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Kalॐ धनुर्धरायाखाय फट् स्वाहा 6 इत्यग्यंगदेवताहोमः / ततः पूर्वादिदलेषु / ॐ अग्नये जातवेदसे नमः स्वाहा 1 ॐ अग्नये साजिह्वाय / नमः स्वाहा 2 ॐ अग्नये हव्यवाहनाय नमः स्वाहा 3 ॐ अग्नये अश्वोदरजाय नमः स्वाहा 4 ॐ अग्नये वैश्वानराय नमः ) स्वाहा 5 ॐ अग्नये कौमारतेजसे नम स्वाहा 6 ॐ अग्नये विश्वमुखाय नमः स्वाहा 7 ॐ अग्नये देवमुखाय नमः स्वाहा 01 इत्यग्न्यष्टमूर्तिहोमः / ॐ लं इन्द्राय मुराधिपतये वजहस्ताय नमः स्वाहा / ॐ रं बह्नये तेजोधिपतये छागवाहनाय शक्तिहस्ताय नमः स्वाहा २ॐ मं यमाय प्रेताधिपतये दंडहस्ताय नमः स्वाहा 3 ॐ शं नैर्ऋतये रक्षोधिपतये खड्गहस्ताय नमः स्वाहा 4 ॐ | वरुणाय जलाधिपतये पाशहस्ताय नमः स्वाहा ५ॐ यं शयये प्राणाधिपतये वजहस्ताय नमः स्वाहा 6 ॐ सों सोमाय क्षेत्राधि पतये गदाहस्ताय नमः स्वाहा ॐ ईशानाय विद्याधिपतये त्रिशूलहस्ताय नमः स्वाहा 8 ॐआं ब्रह्मणे त्रैलोक्याधिपतये पद्महस्ताब थानमः स्वाहा . ॐ ह्रीं अनंताय नागाधिपतये चक्रहस्ताय नमः साहा 10 इति सायुधदिकपालहोमः // एवं सायुधदिक्पालहोम कृत्वा ततः सुवेण चतर्वारमाज्यमादाय त्रुचि निशाय बेण तांपिधाय उनिष्टन "ॐ वैश्वानर जातवेद इहावह लोहिताक्ष सर्वकर्माणि Kalमाधय स्वाहा वौषट्" इत्यनेन जुहुयात् / ततो विनेश्वरमंत्रण दशाहुतीर्जहुयात् / तर क्रमः / ॐ स्वाहा / ॐ श्री स्वाहा fel ॐ श्रीं ह्रीं स्वाहा 3 ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा 4 ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं स्वाहा . ॐ श्रीहीटग्लौंग स्वाहा 6 ॐ श्रीह्रींहींग्लौंग का गणपतये स्वाहा 7 ॐ श्रीहींकींग्लौंगं गणपतये वरवरद स्वाहा 8 ॐ श्रींहीक्लींग्लौंगं गणपतये वरवरत सर्वजनं मे स्वाहा 9 ॐ श्रीह्रींलींग्लौंगं गणपतये वरखरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा 10 एवं दशाहुतीर्हत्वा पुनः समस्तमंचतर्वारं जुहुयात / एवं गणपति 18 For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir प्र : होमं कृत्वा देवतायाः पीठं पूजयेत् / ततो हुताशने इष्टदेवतामावाह्य अवाहनादिकां मुद्रां प्रदर्श वह्निरूपां तां देवतां संपूज्य ततो वह्निरूपा खं० 1 देवतां भावयन् देवस्य मुखे मूलमंत्रेण पंचविंशतिसंख्यया घृताहुतीर्तुत्वा वह्निदैवतयोरात्मना सहैक्यं विभाव्य मूलमंत्रेण नाडीसंधानार्थ सदे०प० मेकादशाहुतीराज्येन जुहुयात् / तत इष्टदेवताया आवरणदेवताभ्य एकैका घृताहुतीर्खत्वा पुनर्मूलमंत्रण दशधा घृतं जुहुयात् / इत्याज्यहोम तरं०४ कत्वा कल्पोक्तद्रव्येण जपदशांशं प्रयोगोक्तसंख्यं वा मूलमंत्रेण हुत्वा होमं समाप्य पूर्णाहुतिं दद्यात् / तत्र क्रमः / होमावशिष्टेनाज्येन मुचं पूरयित्वा तदने पुष्पं फलं निधाय तां सुवेणाच्छाद्य उत्थाय तयोमूल नाभौ कृत्वा मूलमंत्र वौषतं पठित्या ॐ इतः पूर्व प्राणबुद्धिदे हधर्माधिकारतो जायत्स्वमसुषुप्त्यवस्थासु मनसा बाचा हस्तान्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना यत्स्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्वं ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा मां मदीयं च सकलं हरये ते समर्पये।" ॐ तत्सदिति मंत्रण पूर्णाहुति दद्यात्॥ एवं पूर्णाहुतिं दत्त्वा संहारमुद्रया देवतां स्वात्मनि उद्यास्य / पुनर्व्याहृतिभिर्हत्वा अग्नेर्जिबादीनां पूर्ववत् एकैकाहुतिं दत्वा मेखलोपरि अद्भिः परिषिच्यात्मनि पावकं योजयित्वा भो भो बढे / महाशक्ते सर्वकर्मप्रसाधक // कातरेपि संप्राने सान्निध्यं कुरु सादरम् // 1 // इत्यग्नि संप्रार्थ्य विसृजेत् / इति होमं कृत्वा दक्षिणां च दत्त्वा बही पवित्रे निक्षिप्य प्रणीतांबु भवि क्षिप्त्वा सकुशान्परिधीनग्नौ क्षिपेत् / इति होमविधानम् // अथ तर्पणादिविधानम् // एवं होम समाप्य होमदशांशतो दुग्धमिश्रितजलेन मूलमंत्रांते ॐ अमुकदेवता तर्पयामि / इति तर्पणं कृत्वा तर्पणदशांशेन मूलमंत्रांत सुवर्णमयुते दद्यालक्षे दशसुवर्णकम् / दक्षिणा तु प्रदातव्या यथा होमे तथा जपे // 2 तंबांतरेपि-तीर्थतोयेन दुग्धेन सर्पिषा मधुनापि वा। गंधोदकेन वा कुर्यात्सर्वत्र साधकोत्तमः // 3 मूलांते नाम चोच्चार्य तर्पयामि ततः परम् / स्वाहांते तर्पयेन्मंत्री यथासंख्यं विधानतः // तर्पणं च प्रकुवात द्वितीयांत मथोचरन् / LANIL69 // For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सिंचामीत्यभिषकं कुर्यात् / ततो नानाविधैरन्नैदिजसत्तमान्भोजयित्वा तेत्यो दक्षिणां दत्त्वा न्यूनसम्पूर्णतां वाचयेत् / इति पंचांग कत्येन मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे तु मंत्र मंत्री प्रयोगोक्तकार्याणि साधयेत् / इति शारदातिलकमंत्रमहोदधिप्रोक्तं तांत्रिकहवनादिविधानम अथ कुमारीपूजाप्रयोगः // (रुद्रयामले ) एकवर्षा भवेत्संध्या द्विवर्षा च सरस्वती // त्रिवर्षा च त्रिधा मूर्तिश्चतुर्वर्षा तु कालिका॥१॥ शुभगा पंचवर्षा तु षड्वर्षा च ह्युमा भवेत् / सप्तनिर्मालिनी प्रोक्ता ह्यष्टवर्षा च कुजिका // 2 // नवनिः कालसंदर्भा दशभिश्चापराजि ता॥ एकादशा तु रुद्राणी द्वादशाब्दा तु भैरवी // 3 त्रयोदशा महालक्ष्मीदिसना पीठनायिका // क्षेत्रज्ञा पंचदशभिः षोडशे चांबिका मलविद्यां समचार्य तदंते देवताभिधाम् / तदंत चाभिषिचामि नमांते चाभिषेचनम् // इत्युच्चार्य मृदाधि देशे चिंतयित्वा स्वमंत्रकम् / अभिषेक विसंख्याभिर्विधाय तदनन्तरम् // तत्र संचिन्तयेद्देवीं सांगावरणदेवताम् / क्षिपेत्तोयं यथासंख्यं गणान् सिंचेत्सकृत्सकृत् // 2 अभिषेकं समायबमभिषे कदशांशतः / ब्राह्मणान्देवताबुद्धया भोजयेत्साधकोत्तमः // तंत्रांतरे-विभवे सति यो मोहान कुर्यादिधिविस्तरम / न तत्फलमवाप्नोति देवद्रोही स उच्यते // बामणी सर्वकार्येषु जयाथै नृपवंशजाम् / लाभार्थे वेश्यवंशोत्यां सुतार्थे शुटवंशजाम् // दारुणे चांस्यजातीनां पूजयेद्विधिना नरः / वर्जयेत्सर्वकार्येषु दासीगभंसमुद्भवाम् / / (रुद्रयामले विशेषः) नटोकन्या हीनकन्यां तथा कापालिकन्यकाम् / रजकस्यापि कन्यां च तथा नापितकम्पकाम् // गोपालकन्यकां चैव ब्राह्मणस्यापि कन्यकाम् / शद्रकन्यां वैद्यकन्यां तथा वैश्यस्य कन्यकाम् // चान्डालकन्यकां वापि यत्र कुवाश्रमे स्थिताम् / मुहद्धगस्य कम्पांच समानीय प्रयत्नतः।। (योगिनीतंत्रे) यदि भाग्यवशाहेवि वैश्पकुलसमुद्भवा / कुमारी लभ्यते कांते सर्वस्वेनापि साधकः // यत्नतः पूजयतां तु स्वर्णरोप्यादिभिर्मुदा / त दा तस्य महासिद्धिजायते नात्र संशयः // तस्मात्तां पूजयेद्वानां सर्वजातिसमुद्भवाम् / जातिभेदो न कर्तव्यः कुमारी पूजनोशेषे / / जातिभेदान्मद्देशानि नरकात्र निवति / विचिकित्सापरी मंत्री ध्रुवं स पातकी भवेत् // एषा प्रशस्ता, कुमारी तु सर्वजातीयव पूज्या // 4 (कुन्जिकार्तबे) पंचवात्समारभ्य यावहा। दशवार्षिकी / कुमारी सा भवेहवि निजरूपप्रकाशिनी // पदांच्च समारभ्य यावच्च नववार्षिकी। ताबञ्चैव महेशानि साधकाभीष्टसिद्धये // अष्टवात्समारभ्य। यावत्रयोदशाब्दिकी। कुलजां तां विजानीयात्तत्र पूजां समाचरेत // दशवात्समारभ्य यावत्षोडशवार्षिकी। युवती तां विजानीयादेवतां तां विचिन्तयेत् // (विश्वसारतंत्र) अष्टयां तु सा कन्या भवेद्रगौरी वरानने / नववर्या रोहिणी सा दशवर्षा तु कन्यका // अत ऊर्य महामाया भवेत्सव रजस्वला // For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० // 70 // भवेत् // 4 // एवं क्रमेण संपूज्य यावत्पुष्पं न विद्यते // प्रतिपदादिपूर्णातं वृद्धिभेदेन पूजयेत् // 5 // महापर्वमु सर्वेषु विशपाच पवित्रके प० ख० महानवम्यां देवेशि कुमारीश्च प्रपूजयेत् // 6 // अथ पूजाश्योगः॥ पूजादिनात्पूर्वदिने गंधपुष्पाक्षतादिभिर्मलेन भगवति कुमारि पूजार्थ / सन्दे०प० त्वं मया निमंत्रितासि मां कतार्थये,ति निमंत्रितां प्रातराहूय प्रदक्षिणीकृत्योइतनायैः नापयित्वा गंधतेलेन शरीरं संस्कार्याकेशं परिष्क / / त्य ललाटे सिंदूरं नयनयोः कजलं सर्वांगे चन्दनं वस्त्रालंकारैराभूप्य पूजागृहे चानीय पादौ प्रक्षाल्य अष्टदलपीठोपरि समावेश्य तांबुलेन मुखं संशोध्य देशकालौ स्मृत्वामुकसिद्ध्यर्थममुककर्माण अमुकदेवताप्रीत्यर्थ कुमारीणां पृजनं करिष्ये / इति संकल्प्य न्यासं कुर्यात् / ॐ क्ला कुमारिके हृदयाय नमः 1 ॐ क्लीं कुमारिके शिरसे स्वाहा 2 ॐ. कुमारिके शिखायै वषट् 3 ॐ के कुमारिके कवचाय है। 2 ॐ कौं कुमारिके नेत्रत्रयाय वौषट् . ॐ क्लः कुमारिके अस्त्राय फट 6 इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवमेव करन्यासं कुर्यात् / एवं / न्यासं कृत्वा ध्यायेत् ! अथ ध्यानम्-बालरूपां च त्रैलोक्यसुंदरीं बरवर्णिनीम् // नानालंकारनम्रांगी भद्रविद्याप्रकाशिनी // 1 // चारुहास्यां महानंदहृदयां शुभदां शुभाम् // शंखकुंदेन्दुश्वलां द्विभुजां वरदाभयाम // 2 // एवं ध्यात्वात्मशिरसि पुष्पं दत्वावाहयेत् // मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मी मातृणां रूपधारिणीम्॥ नवदुर्गात्मिकां साक्षात्कन्यामावाहयाम्यहम् // 1 // इत्याबाह्य ॐ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः। इदं पाद्यमेवमिदमयमिदमाचमनीयमिदमनुलेपनमेतेऽक्षता एतानि पुष्पाणि एष धूप एष दीप इदं नैवेद्यमिदं तांबूलमिति पूजयित्वा षडंगानि / पूजयेत् / ॐ क्लो कुमारिके हृदयाय नमः / ॐ क्रीं कुमारिके शिरसे स्वाहा 2 ॐ क्लू कुमारिके शिखायै वषट् 3 ॐ के कुमारि 1 वाग्भवेन वपुःक्षाभं मायावीजे गुणाष्टकम् / श्रियो बीजे श्रियो लाभो पायाचीजे रिपुक्षयः // भैरवेण तु नि खेचरत्यं सुरादिभिः॥ // 70 // For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir के कवचाय हुं 4 ॐ क्लौं कुमारिके नेत्रत्रयाय वौषट् 5 ॐ क्रुः कुमारिके अस्त्राय फट 6 इति गंधादिभिः संपृज्य ॐ ह्रीं हंसः कुल कुमारिके श्रीपादुकां पूजयामि / इति पुष्पांजलित्रयं दत्त्वा नवनामभिः पूजयेत् / तद्यथा--ॐ ह्रीं कौमार्य नमः / ॐ ह्रीं त्रिपुरायै नमः। २ॐ ह्रीं कल्याण्यै नमः 3 ॐ ह्री रोहिण्यै नमः 4 ॐ ह्री कामिन्यै नमः 5 ॐ ह्रीं चंडिकायै नमः 6 ॐ ह्रीं शांकय नमः / ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः 8 ॐ ह्रीं मुभद्रायै नमः 9 इति संपूज्य मुलेन पुष्पांजलित्रयं दत्त्वा प्रदक्षिणीकृत्य प्रणमेत् / तत्र मंत्रः-ॐ जग सूज्ये जगद्वंद्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणि // पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते॥ 1 // त्रिपुरां त्रिगुणां धात्री ज्ञानमार्गस्वरूपिणीम् / त्रिलोक्यवंदितां देवी त्रिमूर्ति पूजयाम्यहम् // 2 // कालात्भिकां कालभीतां कारुण्यहृदयां शिवाम् / कारुण्यजननीं नित्यां कल्याणी पूजयाम्यहम् // 3 // अणिमादिगुणोपेतामकारादिस्वरामिकाम् // शक्तिभेदात्मिकां लक्ष्मी रोहिणीं पूजयाम्यहम् // 4 // कला धारां कलारूपां कालचण्डस्वरूपिणीम् // कामदां करुणाधारां कामिनी पूजयाम्यहम् // 5 // चण्डधारां चण्डमायां चण्डमुण्ड विनाशिनीम् // प्रणमामि च देवेशी चण्डिकां पूजयाम्यहम् // 6 // सुखानंदकरी शांतां सर्वदेवनमस्कृताम् // सर्वभूतात्मिकां देवी शांकरीं पूजयाम्यहम् // 7 // दुर्गमे दुस्तरे चैव दुःखत्रयविनाशिनीम् // पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गा दुर्ग नमाम्यहम् // 8 // सुंदरी स्वर्गवर्णाभां मुखसौभाग्यदायिनीम् / / सुभद्रजननी देवी सुभद्रां प्रणमाम्यहम् // 9 // इति संप्रार्थ्य साष्टांगं प्रणम्य दक्षिणां च / / दत्त्वा तत्रांने स्वेष्ट देवतां ध्यात्वा तन्नामभिः पूजयेत्॥अस्य फलादेशः-पूजोपकरणानीह कुमार्ये यो ददाति हि॥संतुष्टा देवता तस्य पुत्रत्वे सानुकल्प्येत // 1 // (योगिनी तंत्रे ) कुमारीपूजनफलं वक्तुं नार्हामि सुंदरि // जिह्वाकोटिसहस्रेस्तु वक्रकोटिशतैरपि // 2 // For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म०लकमारी पूज्यते यत्र स देशः क्षितिपावनः॥ महापुण्यतमो भूयात समंतात्कोशपंचकम् // 3 // (रुद्रयामले ) महापूजादिकं कृत्वा वस्त्रालंपू० ख०१ कारभोजनैः॥पूजनान्मन्दभाग्योऽपि लभते जयमंगलम् // 4 // पूजया लाते पुत्रान् पूजया लभते श्रियम् // पूजया धनमामोति पूजया लभते स०दे०प० महीम् // 5 // पूजया लभते लक्ष्मी सरस्वती महौजसम्॥महाविद्याः प्रसीदति सर्व देवा न संशयः॥६॥कालभैरवब्रह्मेन्द्रब्राह्मणा ब्रह्मवेदिनः॥ तरं०४ रुद्रश्च देववर्गाश्च वैष्णवा ब्रह्मरूपिणः // 7 // अवताराश्च द्विभुजा वैष्णवा मनुशोभिताः // अन्ये दिक्पालदेवाश्च चराचरगुरुस्तथा // An८॥नानाविद्याश्रिताः सर्वे दानवाः कूटशालिनः॥उपसर्गस्थिता येये तेते तुष्टा न संशयः॥९॥कुमारी योगिनी साक्षात्कुमारी परदेवता॥ असुरा दुष्टनागाश्च येये दुष्टग्रहा अपि // 10 // भूतवेतालगंधर्वा डाकिनीयक्षराक्षसाः॥ याश्चान्या देवताः सर्वा भूर्भुवः स्वश्च भैरवाः॥ Su१॥पृथिव्यादीनि सर्वाणि ब्रह्माण्डे सचराचरम्॥ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः॥१२॥संतुष्टाः सर्वतष्टाश्च यस्तु कन्यां प्रपूज येत् / / अयाहं शुद्धरूपा हि अन्यलोके च का कथा // कुमारीपूजनं कृत्वा त्रैलोक्यं वशमानयेत् // 13 // महाकांतिभवेक्षिप्रं सर्व। पुण्यफलप्रदम् // 14 // (नीलतंत्र) महाभयातिदुर्भिक्षाद्युत्लातानि कुलेश्वरि // दुःस्वममपमृत्युश्च ये चान्ये च समुद्भवाः // 15 // कुमारीपूजनादेव न ते च प्रभवंति हि // नित्यं क्रमेण देवेशि पूजयेविधिपूर्वकम् // 16 // नंति विनान्पूजिताश्च भयं शत्रुन्महोत्कटान् // यहा रोगाः क्षयं यांति भूतबेतालपन्नगाः // 17 // ताबजप्त्वा पूजयित्वा कन्यां सुंदरमोहिनीम् // दिव्यभावस्थितं साक्षात्तंत्रमंत्रफलं // 7 // लभेत् // 18 // महाविद्या महामंत्र सिद्धिमंत्रं न संशयः॥ विधियुक्तां कुमारी तु भोजयेच्चैव भैरव ॥१९॥पाद्यायं च तथा धूपं कुंकुम चंदनं शुभम् // भक्तिभावेन संपूज्य कुमारीज्यो निवेदयेत् // 20 // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे सर्वदेवोपयोगिपद्धतिचतुर्थस्तरंगः // 4 // For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobal.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA! SARRRRRAAAAAA AAAAAAAAA SES Il Fier Sa ST 74: 11 RATIVEN RUUUUHUYUUUUUUUUUUUUUUSR2 For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मै० म० // 72 // श्रीगणेशाय नमः // अथ गणेशतंत्रप्रारंभः // तत्रादौ पटलप्रारंभः // अथ षडक्षरवक्रतुंडमंत्रश्योगः // (मंगे यथा मंत्रमहोदधौ ) वक्रतुंडाय हुँ' इति पडझरो मंत्रः // अस्य विधानम् / प्रातः कृतक्रियश्चन्द्रतारादिबलान्विते मुमुहूत विविक्ते देशे जपस्थानं प्रकल्प्य गण गतं. पतिपूजनादिनांदीश्राद्धातं विधाय जपस्थानमागत्य कूर्मशोषिते स्वासने प्राङ्मुख उदङ्मुसो वा उपविश्य मुलेनाचम्य प्राणानायम्य | भूतशुद्धिप्राणप्रतिष्ठामंतर्मातृकाबहिर्मातृकान्यासं च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा पूर्ववत् गणेशकलामातृकान्यासं विधाय प्रयोगोक्त थी न्यासादिकं कुर्यात तत्र क्रमः--ॐ अस्य श्रीगणेशमंत्रस्य भार्गवऋषिः, अनुष्टप् छंदः, विनेशो देवता, वं बीजम्, यं शक्तिः, ममाभी है। सिद्धये जपे विनियोगः // ॐ भार्गवर्षये नमः शिरासे॥ 1 // ॐ अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // ॐ विनेशदेवतायै नमः हृदि // 3 // ॐ ब बीजाय नमः गुह्ये // 4 // ॐ यं शक्तये नमः पादयोः // 5 // ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ वंश नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ॐ नमः तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ नमः मध्यमान्यां नमः॥३॥ ॐ डॉ नमः अनामिकात्यां नमः॥ // 4 // ॐ य नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ हुँ नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥ इति करन्यासः॥ ॐ नमः हृदयाय नमः। ॐ नमः शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ नमः शिखायै वषट् // 3 // ॐ डॉ नमः कवचाय हुँ॥४॥ ॐ य नमः नेत्रत्रयाय / वौषट् // 5 // ॐ हुँ नमः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ व नमः भ्रमध्ये // 1 // ॐ क्रं नमः कंठे // 2 // // 72 // ॐ तु नमः हृदये // 3 // ॐ डाँ नमः नाभौ // 4 // ॐ यं नमः लिंगे // 5 // ॐ हुँ नमः पादयो ॥६॥इति वर्णन्यासः।।एवं न्यास छ। कृत्वा ध्यायेत् // ध्यानम्-उयदिनेश्वररुचिं निजहस्तपनैः पाशांकुशाभयवरान्दधतं गजास्यम् ॥रकांवरं सकलदुःखहरं गणेशं ध्यायेत्यसमा For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कन्नमखिलाभरणाभिरामम् // 1 // इति ध्यायेत् ततः पीठाद। रचिते सर्वतोभद्रमण्डले गणेशमंडले वा भडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पद्धति| च मार्गेण संस्थाप्य ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः / इति संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण ॐ तीब्राय नमः ॐ चालिन्यै नमः२ ॐ नन्दायै नमः३ ॐ भोगदायै नमः 4 ॐ कामरूपिण्यै नमः 5 ॐ उग्रायै नमः 6 ॐ तेजोवत्यै नमः / ॐ सत्यायै नमः 8 मध्ये ॐ विघ्ननाशिन्यै नमः 9. इति पूजयेत् / ततः स्वर्गादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्वा स्वच्छवश्वेणाशीप्य ॐ ह्रीं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः / इति मंत्रण पुप्पाघासनं दत्वा पीठमध्ये | संस्थाप्य पद्धतिमार्गेण प्रतिष्ठां च कृत्वा मृलेन माति प्रकल्प्य पायादिपुष्पांतरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कात् // तत्र क्रमः // पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः॥ अनुज्ञां देहि गणप परिवारार्चनाय मे // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं गणेशोपरि दत्त्वा पृजितस्तपितोऽस्तु इति वदेत // इत्यानां गृहीत्वा पदकोणकेसरेषु षडंगानि पूजयेत् / तथा च // आग्ये प्यादिचतुर्दिक्ष मध्ये दिक्षु च // ॐ नमः हृदयाय नमः हृदये श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः इति सर्वत्र // 1 // ॐ नमः शिरसे स्वाहां शिरसि श्रीपा० // 2 // ॐ तँ नमः शिखायै वपटू शिखायां श्रीपा० // 3 // ॐ डाँ नमः कवचार्य हुँ कवचं श्रीपा० // 4 // ॐ य नमः नेत्रत्रयाय वौषट नेत्रत्रये श्रीपा० // 5 // ॐ हुँ नमः अस्त्राय फट अख्खे श्रीपा० // 6 // इति षडंगानि / पूजयेत् / ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्म्य // "ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् man" इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_दिदं निक्षिप्य पृजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // ततोऽष्ट For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प.खं.१ वक्रतुंडगणेशयंत्रम् / म. म.सदले पूज्यपूजकयोरंतरालं प्राची तद्नुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य दक्षहस्ते शतर्जन्यंगुष्ठात्यां गंधाक्षतपुष्पागि गृहीत्वा प्राचीकमेण अष्टम दिक्ष ॐ विद्यायै नमः विद्याश्रीपा० 1 ॥ॐ विधात्र्यै नमः विधात्री श्रीपा० २॥ॐ भो जगदायै नमः भोगदश्रीपा०३॥ॐ विघ्नघातिन्यै नमः विघ्नधातिनि श्रीपा० ॥ॐ निधिप्रदीपायै नमः निधिप्रदीपश्रीपा० ॥ॐ पापदन्यै नमः पाप नीश्रीपा० 6 // ॐ पुण्यायै नमः पुण्यश्रीपा० 7 // ॐ शशिप्रभाय नमः शशिप्रभश्रीपा० 8 // इत्यष्टौ शक्तीः पूजयेत् // ततः पुष्पांजाल गृहीत्वा मूलमुच्चार्य्य "अभीष्टसिद्धिं मे देहिशरणागतवत्सल।भक्त्या समर्पये तायं द्वि तीयावरणार्चनम् 1 ॥"इति पठित्वा पुप्पांजलिं च दत्त्वा विशेषादिदं निक्षि प्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत्॥इति द्वितीयावरणम्॥ततो दलाष ॐ वक्रतुंडाय नमः वक्रतुंड श्रीपा० १॥ॐ एकदंष्ट्राय नमः एकदंष्ट्र श्रीपा०२॥ ॐ महोदराय नमः महोदर श्रीपा० 3 // ॐ हस्तिमुखाय नमः हस्तिमुख श्रीपा०४॥ॐ लम्बोदराय नमः लम्बोदर श्रीपा०५॥ ॐ विकटाय नमः वक्रतुंढायहुं 1173 // For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir विकटश्रीपा०६॥ ॐ विघ्नराजाय नमः विघ्नराज श्रीपा० 7 // ॐ धूम्रवर्णाय नमः धूम्रवर्णश्रीपा० 8 // इत्यष्टौ पूजयेत् // , नतः पुष्पांजलिं गृहीत्वा मुलमुच्चार्य // "अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल / भक्त्या समर्पये तुल्यं तृतीयावरणार्चनम् 1 // " इति / पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विदुं निक्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो भपुरे पूर्वादि क्रमेण-ॐ लं इंद्राय नमः 1 // ॐ रं अग्नये नमः 2 // ॐ में यमाय नमः 3 // ॐ अं निरीतये नमः // ॐ वं वरुणाय नमः५॥ ॐ थं वायवे नमः 6 // ॐ कुं कुबेराय नमः 7 // ॐ हं ईशानाय नमः 8 // पूर्वेशानयोर्मध्ये ॐ आं ब्रह्मणे नमः 5 // वरुणनैर्ऋतयो मध्ये ॐ ह्रीं अनंताय नमः 10 // इति दशदिक्पालान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति चतुर्थावरणम् 4 // ततः इन्द्रादिसमीपे ॐ बञाय नमः // ॐ शं शक्तये नमः 2 // ॐ दं दंडाय नमः // ॐ खं खड्गाय नमः // ॐ पा पाशाय नमः 5 // ॐ / अंकुशाय नमः 6 // ॐ गं गदायै नमः 7 // ॐ त्रि त्रिशूलाय नमः 8 // 30 पं पद्माय नमः 5 // चं चक्राय नमः 10 // इति बज्राद्यवाणि पूजयेत् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं षड्लक्षजपः अष्टद्रव्यदशोशतो होमः। तत्तदशांशन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कारयेत् // एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान् माधयेत् // तथा च / aऋतुलझं जपेन्मंत्रमष्टद्रव्यैर्दशांशतः // जुहुयान्मंत्रसंसिये वाड्वान्भोजयेच्छुचीन् // 3 // ततः सिद्धे मनौ काम्यान्प्रयोगान्साधयेन्निजान॥ ब्रह्मचर्यरतो मंत्री जपेद्रविसहस्रकम् // षण्मासमध्याहारियं नाशयत्येव निश्चितम् // चतुर्थ्यादिचतुर्थ्यतं जपेद्दशसहस्रकम् // 3 // १-इक्षवः स तयो रंभाफलानि चिपिटास्तिकाः // मोदका नारिकेलानि लाजा व्याप्टकं स्मृतम् // For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० सा त्यहं जुयादष्टोत्तरं शतमतंद्रितः // पूर्वोतं फलमामोति पण्मासाद्भक्तितत्परः // 4 // आज्याक्तान्नस्य होमेन भवेद्धनसमृद्धिमान् / / पृथकैर्नारिकेलैर्वा मरिचैर्वा सहस्रकम् // 5 // प्रत्यहं जह्वतो मासाज्जायते धनसंचयः // जीरसिंधुमरीचाक्तरष्टद्रव्यैः सहस्रकम् // 6 // हयात्प्रतिदिनं पक्षात्स्यात्कुबेर इवार्थवान // चतुःशतं 444 चतुश्चत्वारिंशदाढ्यं दिन प्रति // तर्पयेन्मूलमंत्रण मंडलादि टमानुयात् // 7 // इति वक्रतुंडषडक्षरमंत्रप्रयोगः // 1 // अथ मंत्रभेदः ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा // मेघोल्काय स्वाहा // इति षडक्ष ) रो मंत्रः // अस्य विधानं सर्व पूर्ववज्ज्ञेयम्॥तथा च ॥'षडक्षरोयमादिष्टो भजतामिष्टदो मनुः।। पूर्ववत्सर्वमेतस्य समाराधनमीरितम् // इति द्वितीयषडक्षरमंत्रप्रयोगः // अथैकात्रंशदक्षरवक्रतुंडमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा // “रायस्पोषस्य ददिता निधिदो रत्न धातुमान् / / रक्षोहणोबलगहनोवक्रतुंडायहूं // " इत्येकत्रिंशदक्षरमंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य श्रीवक्रतुंडगणेशमंत्रस्य भागवऋपिर | नुष्टुप् छंदः // विनेशो देवता // वं बीजम् // यं शक्तिः ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः / / ॐ भार्गवर्षये नमः शिरसि // 3 // अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे // 2 // विघ्नेशदेवतायै नमः हृदि // 3 // वं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // यं शक्तये नमः पादयोः // 5 // वि नियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ रायस्पोषस्य अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ ददिता तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ निधिदोरत्नधातुमान् मध्यभात्यां नमः // 3 // ॐ रक्षोहणो अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ बलवाहनो कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // वक्रतुंडाय हुं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः। एवमेव हृदयादिपडंगन्यासं कुर्यात् // एवं न्यासं कृत्वा| ध्यायेत् // अथ ध्यानम्--उद्यदिनेश्वररुचिं निजहस्तपद्मः पाशांकुशाभयवरान्दधतं गजास्यम् // रक्तांबरं सकलदुःहरं गणेशं ध्यायेत्प्रस 71 // For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir छन्नमखिलाभरणाभिरामम् // 1 // इति ध्यायेत् / अन्यत् सर्व षडभरवत्॥ इत्येकत्रिंशदक्षरवक्रतुंडमंत्रप्रयोगः // 2 // अथोच्छिष्टगणप तिनवार्णमंत्रप्रयोगः // ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा // हस्तिपिशाचिलिखेस्वाहा // इति नवार्णमंत्रः / अस्य विधानम्-ॐ अस्यश्यु च्छिष्ट गणेशनवार्णमंत्रस्य कंकोल ऋषिः बिराट्छंदः / उच्छिष्ट गणपतिदेवता। अखिलातये जपे विनियोगः॥ॐ कंकोलषये नमः शिरसि / / K // ॐ विराट्छंदसे नमः मुखे 2 // ॐ उच्छिष्ट गणपतिदेवतायै नमः हृदि 3 // विनियोगाय नमः मागे 4 // इति ऋष्यादिन्यासः॥el ॐ हस्ति अंगुष्ठात्यां नमः 1 // ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः 2 // ॐ लिखे मध्यमान्यां नमः 3 ॥ॐ स्वाहा अनामिकायां नमः // ॐ हस्तिपिशाचिलिखे कनिष्ठिकान्यां नमः५।। ॐ हस्तिपिशचि लिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः६ / / इति करन्यासः॥ ॐ हस्ति हृदयाय नमः // ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा 2 // ॐ लिखे शिखायै वषट् 3 // ॐ स्वाहा कवचाय हूं 4 // ॐ हस्ति Kd पिशाचि लिखे स्वाहा अस्वाय फट 5 इति हृदयादिपंचांगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् अथ ध्यानम् / / चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशांकुशौ मोदकपात्रदंती // करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्तमुच्छिष्टगणेशमीडे 1 // इति ध्यायेत् / ततः पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले | गणेशमंडले वा मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पद्धतिमार्गेण संस्थाप्य ॐ में मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः / इति संपूज्य नवपीठ शक्तीः पूजयेत् / तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण ॐ तत्रायै नमः 1 ॐ चालिन्यै नमः 2 ॐ नंदायै नमः 3 ॐ नोगदायै नमः 4 ॐ काम रूपिण्यै नमः 5 ॐ उग्रायै नमः 6 ॐ तेजोवत्यै नमः 7 ॐ सत्यायै नमः 8 मध्ये ॐ विघ्ननाशिन्यै नमः 9 इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्र मनि वा ताम्रपात्रेनिधाय वृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेणाशोप्य ॥ॐ ह्रीं सर्वशक्ति For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० . // 79 // कमलासनाय नमः // इति मंत्रण पुष्पाद्यासनं दत्वा पीठमध्ये संस्थाप्य पद्धतिमागेण प्रतिष्ठां च कृत्वा मूलेन मुनि प्रकल्प्य पाद्यादि पू० गतं. पुष्पांतैपचारैः संपृज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात / तत्र क्रमः // पुष्पांजलिमादाय "ॐ संविन्मयः परोदेवपरामृतरसप्रिय / अनुज्ञां देहि गणप परिवारार्चनाय मे // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं गणेशोपरि दत्वा पृजितस्तपितोऽस्तु इति वदेत् / इत्याज्ञां गृहीत्वा , षट्कोणे पडंगानि पूजयेत् // तथा च // अग्निकाणे * ॐ हस्ति हृदयाय नमः 1 // हृदयश्रीपादुकां पूजयामि / तर्पयामि नमः / / व इति मर्वत्र पठेत् // नर्ऋत्ये // ॐ गी पिशाचि शिरसे स्वाहाँ शिरसि श्रीपा० 2 // वायव्ये // ॐ गं लिखे शिखायै वपट् शिखा / श्रीपा० 3 // ऐशान्य० // ॐ अस्वाहा कवचाय हुं कवचं श्रीपादुकां पूजयामि त०४॥ मध्ये ॐ गौ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा / नेत्रत्रयाय वापट नेत्रत्रये श्रीपा० ५॥दिनु ॐ गः हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा / अस्वाय फट अने श्रीपादुकां पृ० त० नमः 6 // इति / * पूजयेत् // ततो पुष्पांजलिमादाय मूलं पठित्वा / "अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पय तुल्यं प्रथमावरणार्चनम् / / " // इति पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषाद्विदं निक्षिप्य पृजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 3 // ततोष्टदले ज्यपृजकारंतरालं पाची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य दाहस्ते तर्जन्यंगुष्ठाभ्यां गंधाक्षतपुष्पाणि गृहीत्वा प्राच्यादिकमेण / अष्टसु दिक्ष // प्राच्याम् / ॐ ब्राहयै नमः ब्रामीश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / // आग्नेय्याम // ॐ माहेश्वर्य नमः / माहे श्वरीश्रीपा० 2 // दक्षिणे ॐ कौमार्य नमः / कौमारीश्रीपा० 3 // नर्कत्ये ॐ वैष्णव्यै नमः। वैष्णवीश्रीपा० 4 // पश्चिमे ॐ * तन्यांतरे नु हस्तिपिशाचिनि खे स्वाहेति नवार्णमंत्रः / ॐ हाम्लपिशाचिलिखे स्वाहा ग इस्तिपिशाचिलिय स्वाहा नवार्णभेदेन दशाक्षरीमंत्रः // For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir उच्छिष्टगणतिनवाणयंत्रम्। वाराहय नमः / वाराहीश्रीपादुकां पृ०त० 5 // वायव्ये ॐ इन्द्राण्यै नमः। इन्द्रागीश्रीपा०६॥ उनरे ॐ चामुंडाय नमः / चामुंडाश्रीपा० 10 // ऐशान्ये ॐ महालयायै नमः / लक्ष्मीश्रीपा० 8 // इत्य शक्ती पूजयेत् // ततः पुष्पाजलिमादाय मूलं पठिन्वा "अभी सिवि में देहि शरणागतवत्सल // जत्या नमर्पये तुायं द्वितीयावरणार्चनम् // ASHT " इत्युका पुजांजाल च इत्या विशेषादिदं निक्षिप्य जितास्तपिताः मंतु इति वदेत् // इति द्वितीयावरणम ॥२॥ततः अष्टदलाबहिः चतुरस्रात्यंतरे प्राच्याम् ॐ वक्रतुंडाय नमः वक्रतुंडश्री. Mपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमस्करोमि 1 || आग्नेय्याम ॐ एकदंष्ट्राय Haनमः / एकदंष्ट्रश्रीपा० 2 // दक्षिणे ॐ लम्बोदराय नमः / लम्बोदर श्रीपा० 3 // नैर्ऋत्ये ॐ विकटाय नमः / विकट श्रीपा०४॥ पश्चिमे ॐ धूम्रवणाय नमः / धूमवर्णश्रीपा० 5 // वायव्ये ॐ विनराजाय नमः विनराजश्रीपा०६॥ उतरे ॐ गजाननाय नमः गजाननश्रीपा० 7 // हस्तिपि याचिदि खस्वाहा 5 For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म साएशान्ये ॐ विनायकाय नमः / विनायकश्रीपा० ८॥पाच्येशानयोर्मध्ये ॐ गणपतये नमः / गणपतिश्रीपा० 1 // पश्चिमनितयो॥ INIमध्ये ॐ हस्तदंताय नमः हस्तदंतश्रीपा० 10 // इति पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलं पठित्वा "अभीष्टसिद्धिं में देहि शरणागत | वत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं तृतीयावरणार्चनम् // 1 // " इत्युक्त्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_बिंदु निश्क्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति तृतीयावरणम् // 3 // भुपुरादहिः पूर्वादिक्रमेण पूर्व ॐ लं इन्द्राय नमः / इन्द्रश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः Su // आग्नेय्याम् // ॐ रं अग्नये नमः अग्निश्रीपा० // 2 // दक्षिणे // ॐ मं यमाय नमः / यमश्रीपा०॥३॥ नैऋत्ये ॐ शं निर्वतये नमः / नितिश्रीपा० // 4 // पश्चिमे ॐ वं वरुणाय नमः / वरुणश्रीपा० 5 // वायवे ॐ यं वायव्ये नमः / वायुश्री पा०६॥ उत्तरे ॐ कुं कुबेराय नमः / कुबेरश्रीपा० 7 // ऐशान्ये अँह ईशानाय नमः। ईशानश्रीपा०८॥ इंद्रेशानयोर्मध्ये ॐ आँ ब्रह्मणे नमः / ब्रह्मश्रीपा० 5 // वरुणनतयोर्मध्ये ॐ ह्रीं अनंताय नमः अनंतश्रीपा० 10 // इति दशदिक्पालान संपूज्य पुष्पांज लिमादाय मूलमुच्चार्य "ॐ अभीष्टसिधि मे देहि शरणागतवत्सल / / भक्त्या समर्पये तुल्यं चतुर्थावरणार्चनम्॥३॥” इत्युक्का पुष्पांजलि च दत्त्वा विशेषार्धादि, निक्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति चतुर्थावरणम् ततः पूर्वादिक्रमेण तत्तत्समीपे ॐ वं बजाय नमः // 1 // ॐ शं शक्तये नमः // 2 // ॐ दं दंडाय नमः // 3 // ॐ खं खगाय नमः // 4 // ॐ पाँ पाशाय नमः // 5 // ॐ अं अंकुशाय नमः॥६॥ ॐ गं गदायै नमः // 7 // ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः।।८॥ ॐ पं पद्माय नमः // 9 // ॐ चं चक्राय नमः // 10 // इत्यस्त्राणि || पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिं गृहीत्वा मूलमुच्चार्य्य "अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल॥भक्त्या समर्पये तुल्यं पंचमावरणार्चनम।। 1 // ma // 76 // For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir इत्यक्त्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विदं निक्षिप्य पूजितास्तपिर्ताः संत इति वदेत् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांत सं| पूज्य पिशितं वा फलं मोदकं वा गुडपायसं या बलिं दद्यात् // तत्र मंत्रः // ॐ गॅहॅक्लॉग्लाँ उच्छिष्ट गणेशाय महायलाय यं बलिः॥ / इति मंत्रेण निवेदयेत् / ततः देवतानिवेदितमोदकं तांबुलं वा स्वयं भुक्त्वा उच्छिष्टमुखेन जपं कुर्य्यात् // अस्य पुरश्चरणमेकलक्षजपः / / तदशांशतस्तिलहोमः। तदशांशेन तर्पणमार्जनबाह्मणभोजनं च कुर्यात // एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / एतसिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान साध येत् / तथा च ॥"लामेकं जपेन्मत्रं दशांशं जहुयात्तिलैः॥ एवं मिद्धे मनी मंत्री प्रयोगान्कर्तुमर्हति // 1 // स्वांगुष्ठप्रतिमां कृत्वा कैपि ना सितभानुना / / गणेशप्रतिमां रम्यामुक्तलक्षणलक्षिताम् / / 2 / / प्रतिष्ठाप्य विधानेन मधुना स्नापयेच्च ताम् / / आरत्य कृष्णभूतादि यावा च्छुक्लाचतुर्दशी // 3 // सगुडं पायसं तस्मै निवेद्य प्रजपेन्मनुम्॥सहस्र प्रत्यहं तावज्जुहुयात्मवृतैस्तिलैः॥४॥गणेशोहमिति ध्यायन्नुच्छि टेनावृतो रहः // पक्षाद्राज्यमवामोति नृपजोन्योपि वा नरः॥ 5 // कुलालमृत्स्नाप्रतिमा पूजितैवं सुराज्यदा // वल्मीकमृत्कृता लाभ * मेवमिष्टान्प्रयच्छति // 6 // गौडी सौभाग्यदा मैवं लावणी ओभयेदरीन // निंबजा नाशयेच्छव॒न्प्रतिमैवं समर्चिता // 7 // मध्वा किहोमतो लाजैर्वशयेदखिलं जगत् / / सुप्तोधिशय्यमुच्छिष्टो जपञ्छत्रुन वशं नयेत् // 8 // कटुतैलान्वितैराजीपुष्पर्विद्वषयेदरीन | द्यूते विवादे समरे जप्तोयं जयमावहेत् // 9 // कुबेरोस्य मनोर्जापान्निधीनां स्वामितामयात् // लेाते राज्यमनार / वानरेशविभीषणौ // 10 // रक्तवस्त्रांगगाराढ्यतांबुलं निश्यदञ्जपेत् // यद्वा निवेदितं तस्मै मोदकं भक्षयअपेत् // पिशित वा फलं| 1 रक्तचन्दनेन // 2 श्वेतार्केणवा // 3 घृतमधुशकरातः // 20 For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kaliassagarsun Gyanmandir . 6 पू० ख०१ गतं. तरं०५ वापि तेनतेन बाल हरेत् // (रुद्रयामलतंत्र प्रयोगविशेषः) कृष्णां चतुर्थीमारण्य यावच्छुक्का चतुर्थिका // सहस्रं प्रजपेन्नित्यं योषिन्नियमपूर्वकम् // स्नापयेन्मधुना नित्यं नैवेद्यं गुडपायसम् // भुक्तोच्छिष्टो जपेन्नित्यं गणेशोयं सदा प्रियः // 12 // श्वेतार्केनारुतिं कृत्वा रक्तचंदनकेन वा // अंगुष्ठमात्रां प्रतिष्ठाप्य द्विजाग्निगुरुसन्निधौ / / 13 // जप्त्या षोडशसाहस्रं सिद्धमं डात्रो भवेढुवम् // सदोच्छिष्टो गणेशानो यक्षराजेन धीमता // 14 // // आराधितः सोपहारैः सम्यगिष्टफलप्रदः // एवं कृत्वा व्यव स्थातुं तद्धनश्वरतां गतः // 15 // अपामार्गसमिद्धोमैः सौभाग्यं लभते ध्रुवम् // अष्टोत्तरशतमंत्री एतान्मंत्राभिमंत्रितान् // 16 // की शाश्वास्थिसमद्धतं कील मंत्राभिमंत्रितम् / / निखनेन्मंदिरे यस्य भवेदच्चाटनं परम् // 17 // मनुष्यास्थिसमद्भुतं कील मंत्राभिमंत्रितम् // निखनेन्मंदिरे यस्य मरणं तस्य निश्चितम् // 18 // उद्धृते तु भवेत्स्वस्थमिति सर्वस्य निश्चितम् // यद्यन्नाम्ना जपेन्मंत्रं सहस्रं स वशी भवेत् // 19 // पंचसाहस्रहोमेन उद्धरेच्च वरां स्त्रियम् // सहस्रदशहोमेन राजा सद्यो वशी भवेत् // 20 // लक्षजाप्येन राजानी द्विलक्षं राजपंक्तयः // दशलक्षेण तद्दिष्टं वश्यं तस्य च सर्वथा // 21 // अणिमादिमहासिद्धिः कोटिजाप्यान्न संशयः॥ खेचरत्वं भवेन्नित्यं सर्वज्ञत्वं च जायते // 22 // मंत्रं लिखित्वा शिरसि कंठे वा धारयेद्धदि // सौभाग्यं सर्वरक्षा च भवेत्तत्र सुनिश्चितम् // 23 // |सारभूतमिदं मंत्रं न देयं यस्य कस्यचित् // गुह्यं सर्वागमेष्वेवं हितबुद्ध्याप्रकाशितम् // 24 // न तिथिर्न च नक्षत्रं नोपवासो विधीयते॥ यथेष्टं चिंतयेन्मत्रं सर्वकामफलप्रदम् / / 25 / / इत्युच्छिष्टगणपतिनवार्णमंत्रप्रयोगः // 3 // अथ द्वादशाक्षरोच्छिष्टगणेशमंत्रप्रयोगः (मंत्रम महोदधौ ) मंत्रो यथा / / ॐ ह्रीं गं हस्तिपिशाचिलिखेस्वाहा // ॐ अस्य श्रीद्वादशाक्षरोच्छिष्टगणशंमत्रस्य मनुर्कषिः बिराट् छंदः / // 77 // For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir उच्छिष्ट गणपतिर्देवता / गं बीजम् / स्वाहा शक्तिः। हीं कीलकम् / ह्रीं अखिलानये जपे विनियोगः / / ॐ मनुऋषये नमः शिरसि॥३॥ छ विराट्छंदसे नमः मुखे // 2 // उच्छिष्टगणपतिदेवतायै नमः हृदि // 3 // गं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // स्वाहाशक्तये नमः पादयोः // 5 // ह्रीं कीलकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ ॐ गं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ हस्ति मध्यमान्यां नमः // 3 // ॐ पिशाचि अनामिकायां नमः // 4 // SIॐ लिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ स्वाहा करतलकरपृष्ठात्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ ह्रीं हृदयाय नमः // 3 // ॐ गं शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ हास्ति शिखायै वषट् // 3 // ॐ पिशाचि कवचाय है॥४॥ ॐ लिखे नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // /ॐ स्वाहा अस्वाय फट 6 // एवं न्यासं कुर्यात् / / अन्यत् मर्व पूर्ववत् // इति द्वादशाक्षरोच्छिष्टगणेशमंत्रप्रयोगः // 2 // अथैको | नविंशत्यक्षरोच्छिष्टगणेशमंत्रप्रयोगः / ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा ॐ नमः उच्छिष्टगणेशाय हस्तिपिशाचि लिखे स्वाहा // इत्येकोन विंशत्यक्षरो मंत्रः। अस्य विधानम् / ॐ अस्य श्रीउच्छिष्टगणेशमंत्रस्य कंकोल ऋषिः। विराट् छन्दः। उच्छिष्ट गणपतिर्देवता / अखिलाप्तये जपे विनियोगः // ॐ कंकोलऋषये नमः शिरसि // विराट्छन्दसे नमः मुखे 2 // ॐ उच्छिष्ट गणपतिदेवतायै नमः हृदि३ // विनि योगाय नमः सर्वांगे 4 // इति ऋष्यादिन्यामः ॥ॐ नमः ॐ अगुष्ठात्यां नमः // ॐ उच्छिष्टगणेशाय तर्जनीभ्यां नमः२॥ ॐ ह स्ति मध्यमाभ्यां नमः 3 // ॐ पिशाचि अनामिकाभ्यां नमः 4 // ॐ लिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 // ॐ स्वाहा करतलकरपृ।। ठात्यां नमः 6 // इति करन्यासः // ॐ नमः हृदयाय नमः // ॐ उच्छिष्टगणेशाय शिरसे स्वाहा 2 // ॐ हस्ति शिखायै वषट् For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 78 // ॥३॥ॐ पिशाचि कवचाय हूं ४॥ॐ लिखे नेत्रत्रयाय वौषट् // ॐ स्वाहा अखाय फट् // इति हृदयादिषडंगन्यासः // l. खं०१ मं० म० एवं न्यासं कुर्यात् / अन्यत् सर्वे पूर्ववत् / / इत्येकोनविंशत्यक्षरोच्छिष्टगणेशमंत्रप्रयोगः // अथ सप्तत्रिंशदक्षरोच्छिष्टगणेशमंत्रप्रगतं. योगः मंत्रो यथा // ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्टमहात्मने आंक्रोह्रींगंधेघे स्वाहा // इति सप्तत्रिंशदक्षरो तरं. 5 मंत्रः // अस्य विधानम् // ॐ अस्य श्रीउच्छिष्टगणेशमंत्रस्य गणक ऋषिः। गायत्री छन्दः / उच्छिष्टगणपतिर्देवता / गं बीजं / ह्रीं शक्तिः। औं की कीलकं ! ममाभीष्टमिद्धये जपे विनियोगः॥ॐ गणकर्षये नमः शिरसि 1 // गायत्रीछन्दमे नमः मुखे // उच्छि गणपतिदेवतायै नमः हृदि 3 // बीजाय नमो गुह्ये 4 // ह्रीं शक्तये नमः पादयोः 5 // आँ काँ कीलकाय नमो नाभी 6 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 // हस्तिमुखाय तर्जनीभ्यां नमः 2 // लम्बोदराय मध्यमाभ्यां नमः 3 // उच्छिष्टमहात्मने अनामिकाभ्यां नमः 4 // आँकॉहींग कनिष्ठि काभ्यां नमः 5 // घेघे स्याहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 // इति करन्यासः // ॐ नमो भगवते एकदंयाय हृदयाय नमः 3 // हस्तिमुखाय शिरसे स्वाहा 2 // लंबोदराय शिखायै वषट् 3 // उच्छिष्टमहात्मने कवचाय हुं 4 // आँकाँही ग नेत्रत्रयाय वौषट् 5 // घेघेस्वाहा अवाय फट 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः एवं / / न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् / ॐ शरान्धनुः पाशमृणी स्वहस्तैर्दधानमारक्तसरोरुहस्थम् // विवस्त्रपन्यां सुरतप्रवृत्नमुच्छिष्टमम्बामुतमाश्रयेऽहम् // 1 // एवं // 78 // ध्यात्वा पूर्वोक्तपीठपूजां विधाय पूर्वोक्कावरणपूजां च कवा जपं कुर्य्यात् // अस्य पुरश्चरणमेकलक्षजपः / तद्दशांशतो घृतहोमः / / For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir तत्नदशांशन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति सिद्धे मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत / तथा च // लक्षं जपेढ्घृत त्वा तद्दशांशं प्रपूजयेत् // पूर्वोक्तपीठे स्वाभीष्टसिद्धये पूर्ववद्विभुम् // 1 // कृष्णाष्टम्यादि भूतांतं यावत्ताबजपेन्मनुम् // प्रत्यहं माष्टसाहसं जुहुयातदशांशतः // 2 // तर्पयेदपि मंत्रोयं सिद्धिमेवं प्रयच्छति // धनं धान्यं सुतान्पौत्रान्सौभाग्यमतुलं यशः / / 3 / / मूर्ति कर्यादणेशस्य शुभाहे निम्बदारुणा // प्राणप्रतिष्ठा कत्याथ तदने मंत्रमाजपेत् // 4 // यं ध्यात्या दासवत्सोपि वश्यो। भवति निश्चितम् / नदीजलं समादाय सतविंशतिसंख्यया // 5 // मंत्रयित्वा मुखं तेन प्रक्षाल्येशमभां बजेत् // पश्येद्यं दृश्यते येन सत्र वश्यो जायते क्षणात् // 6 // चतुःसहस्रं धतूरघुप्माणि मनुनार्पयेत् // गणेशाय नृपादीनां जनानां वश्यताकते // 7 // सुंदरीवाम पादस्य रेणुमादाय तत्र तु // संस्थाप्य गणनाथस्य प्रतिमां प्रजन्मनुम् // 8 // तां ध्यात्वा रविसाहनं सा ममायाति दूरतः // श्वेता ke कणाथ निम्बेन कृत्वा मूर्ति घृतांशुकाम् // 9 // चतुर्थ्यां पूजयेद्रात्रौ रक्तैः कुमुमचन्दनैः॥ जप्त्वा सहयं तां मूर्ति क्षिपेद्रात्री मरिनटे // 10 // स्वष्टं कार्य समाचष्टे स्वमे तस्य गणाधिपः // महतं निम्बकाष्ठानां होमादुच्चाटयेदरीन॥ 11 // वैजिणासमिधा होमाद्रिपुर्य मपुरं व्रजेत् // वानरस्यास्थि संजने क्षिप्रमुच्चाटयेहे // 12 // जनं नरास्थि कन्याया गृहे शिमं तदातिकत॥ कुलालस्य मृदा स्त्रीणां वामपादस्य रेणुना // कृत्वा पुत्तलिका तस्या हृदि स्वीनाम संलिखेत्॥ निखनन्मंत्रसजननिम्बकाः क्षिताविमाम् // मोन्मना भवति / | क्षिप्रमुद्धृतायां सुखं भवेत् // शत्रोरेवं कता सा तु लशुनेन समाचिता // 15 // शरावान्तर्गता सम्यक पृजिता द्वारि विद्विषः।। निखाता| पक्षमात्रेण शत्रुच्चाटनकृत्स्मृता // 16 // विषमे समनुप्राने सितार्कारिष्टदारुजम् / / गणपं पृजितं सम्यक् कुसुमै रक्तचन्दनैः // 17 // 1 हुर हुर! For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 79 // मधमद्यभाण्डास्थतं हरूमात्र तं निखनेस्थले // तत्रोपविश्य प्रजपेन्मंत्री नक्तं दिवा मनुम् / / 18 // सप्ताहमध्ये नश्यति सर्वे घोरा उपपखं०१ वाः // शत्रयो वश्यतां यांति वर्द्धते धनसंपदः / / 19 // दुष्टस्त्रीवामपादस्य रजसा निजदेहजैः // मलैमूत्रपुरीषायैः कुंभकार all मृदापि च // 20 // एतैः कृत्वा गणेशस्य प्रतिमा मयभाण्डगाम् // संपृज्य निखनमा हस्ताई पूरिते पुनः / / 21 // संस्थाप्य तरं०५ यहिं जुहुयात् कुसुमेहंयमारजैः॥ सहस्रं सा भवेद्दासी तन्वा च मनसा धनैः / / 22 / / एवमादिप्रयोगांस्तु नवार्णनापि साधयेत् / परीक्षि ताय शिष्याय प्रदेया निजसूनवे / / 23 / / इति सप्तत्रिंशदक्षरमंत्रप्रयोगः।। (प्रकारांतरेणकाधिकचत्वारिंशदक्षरमंत्रभेदो रुद्रयामलतंत्रे ) मंत्रो यथा / / ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्टमहात्मने आँ का ह्रींगधे उच्छिष्टाय स्वाहा // इति मंत्रः॥ HIॐ अस्य श्रीअच्छष्टमहागणपतिमंत्रस्य मतंगभगवान ऋषिः। गायत्री छंदः। उच्छिष्टमहागणपतिदेवता / गं बीजम् / स्वाहा शक्तिः। ह्रीं कीलकम् / / ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः // इति विनियोगं कुर्यात् अन्यत्सर्व पूर्ववत् // ( मंत्रमहोदधी) द्वात्रिंशदक्षरमंत्रभेदः // मंत्रो यथा // ॐ हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्टमहात्मने आँकोह्रींनीही हुँघेघे उच्छिष्टाय स्वाहा / / ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः। गायत्री छंदः / उच्छिष्ट गणपतिर्देवता / ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ गणकऋषये नमः शिरसि // 1 // ॐ गायत्रीछंदसे नमः मुखे // 2 // ॐ उच्छिष्टगणपतिदेवतायै नमः हृदि // 3 // ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे // 4 // इति / ऋष्यादिन्यासः ॐ हस्तिमुखाय अंगुष्ठाभ्यां नमः॥ 1 // लंबोदराय तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ उच्छिष्टमहात्मने मध्यमाभ्यां नमः laolin 3 // आँकोहीक्लींहींहूँ अनामिकाभ्यां नमः // 4 ॥घेघे उच्छिष्टाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // स्वाहा करतलकरपृष्ठा 1 करवीरोद्भवैः। For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir न्यां नमः // 6 // इति करन्यासः।। एवमेव हृदयादिषडंगन्यासं च कुर्य्यात् / / अन्यत् सर्व पूर्ववत् तथा च // द्वात्रिंशदक्षरो मंत्रो यजनं पूर्ववत्स्मृतम् // उच्छिष्टगजवक्रस्य मंत्रेवेषु न शोधयेत् // 3 // सिद्धादि चात्रमासादेः प्राधास्तेसिद्धिदा गुरोः // मनवोमी सदा गोप्या न प्रकाश्या यतः कुतः // परीक्षिताय शिष्याय प्रदेया निजसूनवे // 2 // इति / / अथ प्रस्तथैकत्रिंशदक्षरमंत्रभेदः॥ मंत्रो यथा // ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्टमहात्मने काँक्री ह्रीं घेवे उच्छिष्टाय स्वाहा // अस्य विधानम्॥ कटुनिबमूलस्य पर्वमानां गणेशप्रतिमां कृत्वा कृष्णाष्टमीमारण्यामावस्यापर्यंत पंचशतसंख्याकं जां प्रतिदिनं कुर्यात् // स्वयमुच्छिष्टमुखो भूत्वा / गणेशाग्रे स्थाल्यां रक्तचन्दनाक्षतपुष्पाणि धृत्वा समाय» स्वोच्छिष्टमुखेन जपः कर्तव्यः // एवं दिनमतकं कृत्वा ष्टमे दिवसे स्वयम् / च्छिष्टमुखो भूत्यैव पञ्चखायेन पंचशतं जुहुयात् // ततोजिलषितं ददाति महिमा जवति // 1 // अमिलपितबालाचित्रोपरि गणेशं / या संस्थाप्य प्रत्यहमष्टोत्तरशतं जपेत् दिनत्रयादाकर्षयति // 2 // तं गणेशं तत्काले संस्थाप्य सा पुनर्गच्छति पुनरानयनायाष्टोत्तरशतं जपेत यदि सा पुन याति तर्हि तं गणेशमुच्छिष्टमुखाये निधायाष्टोत्तरशतं जपेत् राजा वशी भवति॥३॥ तं गणेशं नद्यां नीत्वा प्रक्षाल्य / स्वमुखाद्वारचतुष्टयं प्रक्षाल्य तस्मात् पतितं किंचिदुदकं भांडे निःक्षिपेत् / तदुदकं ये पिवंति ते सर्वे वश्या भवंति // 4 // तं गणेशं / द्वारे तरुवरशाखायां निक्षिप्य संपूज्याष्टोत्तरशतं जपेत् गृहे ह्यखण्डितमन्नं भवति॥ 5 // तं गणेशं ताने रौप्ये वा निक्षिप्य कटिबंधनात / / स्त्रियो वश्या भवन्ति शत्रुगणः स्तंभी भवति // 6 // तं गणेशं करतले धृत्वा कनकपुष्पैरर्चयेत पश्चात् करेण करवाले धृते सति संग्रामे / राजयो भवति दशशतं जपति // 7 // तं गणेशमन्नोपरि संस्थाप्याष्टोत्तरशतं जपेत् उदरपूर्णार्थमन्नप्रानिर्भवति॥ 8 // तं गणेशं पाणी प्रक्षाल्य For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org म. म. // 8 // तदुदकपानाच्छत्रुनामग्रहणाद्रिपुनाशः स्यात् // 9 // इत्येकाधिकत्रिंशदक्षरोच्छिष्ट गणेशमंत्रप्रयोगः // अथ शक्तिविनायकचतुरक्षरपू० ख 1 मंत्रप्रयोगः। (मंत्रमहोदधौ ) ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं / इति चतुरक्षरो मंत्रः। अस्य विधानम् / / अस्य शक्तिगणाधिपमंत्रस्य भार्गव ऋषिः / विराट् छंदः / शक्तिगणाधिपो देवता / यी बीजम् / ह्रीं शक्तिः। ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ भार्गवर्षये नमः शिरसि // तरं०५ विराट्छेदसे नमः नुखे 2 // शक्तिगणाधिपदेवतायै नमः हृदि 3 // वो बीजाय नमः गुह्ये 4 // हाँ शक्तये नमः पादयोः 5 // विनियोगाय नमः सर्वांगे 6 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ याँ अंगुष्ठाभ्यां नमः॥ ॐ श्री तर्जनीयां नमः२॥ ॐ D मध्यमाभ्यां नमः / d // ॐ मैं अनामिकाभ्यां नमः 4 // ॐग्री कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 // ॐ यः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 // इति करन्यासः॥ ॐ याँ हृदयाय नमः 1 // ॐ मी शिरसे स्वहा 2 // ॐ ग्रं शिखायै वषट् 3 // ॐ ये कवचाय हुँ 4 // ॐ गौ नेत्रत्रयाय वौषट् / 5 // ॐ ग्रः अस्त्राय फट 6 // इति हृदयादिपडंगन्यासः / / इति न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम्-विषाणांकुशावक्षमूत्रं च पाश / दधानं करैर्मोदकं पुष्करेण // स्वपल्या युतं हेमभूषाभराव्यं गणेशं समुद्यदिनेशानमीडे / / 3 / / इति ध्यायेत् / ततः पीठादी रचिते सर्वतो. / भद्रमंडले गणेशमंडले वा पद्धतिमार्गेण मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः / इति संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण ॐ तीवाय नमः ॥ॐ चालिन्यै नमः२॥ॐ नंदायै नमः३॥ॐ भोगदायै नमः 4 // ॐ कामरूपिण्यै नमः५॥ॐ उग्रायै नमः६॥ॐ तेजोवत्यै नमः 7 // ॐ सत्यायै नमः 8 // मध्ये ॐ विन्ननाशिन्यै नमः 1 // इति पूजयेत ) ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मृति वा ताम्रपाने निधाय घनेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेणाशोप्य / / ॐ ह्रीं For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir शक्तिविनायकयंत्रम्। ar m ram सर्वशक्तिकमलामनाय नमः।।इति मंत्रण पुष्पाद्यामा दन्या पीठमध्ये संस्थाप्य पद्धतिमागंण प्रतिष्ठां च कृत्या मूलेन पनि प्रकलाय पाया दिपुष्पांतरुपचारैः संपृज्य देवाज्ञां गृहीत्या आवरणपूजां कात्॥तथा RIच पुष्पांजलिमादाय "ॐ संचिन्मयःपरोदेवपरामृतरमप्रिय // अनुज्ञा प देहि गणप परिवारार्चनाय मे॥१॥ इति पठित्या पृष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विदुं निभिप्य जितस्तपितोऽस्तु इति बंदत // इत्याजा गृहीत्वा पटकोणकेसरपु आग्नेय्यादिचतुर्यु दिक्षु मध्ये दिक्षु च / / ॐ याँ हृदयाय नमः / / 3 // *यी शिरमे त्याहाँ // 2 // शिखायै वषट // 3 // ॐ अं कवचाय // 4 // ॐ यौ नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ग्रः अस्त्राय फट ।।६॥इति षडंगानि जयत् // 6 // ततः पुष्पां |जलिमादाय भूलमुच्चार्य | "अभीष्टसिद्धिं में देहि शरणागतवत्सल॥ भक्त्या समर्पये तुाय प्रथमावरणार्चनम्" / इनि पठित्या पुष्पांजलि च दत्त्वा विशेषाद्विदं निक्षिप्य पृजितास्तपिताः मंतु इति प्रदेव // 1 अन त्रयोविघालायक्तिस्थलेषु पंचशिल्याक्तिशाब्दा उच्छिगणपनियंत्रतो लिलया। For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir इति प्रथमावरणम्॥ततोष्टदले पूज्यपृजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य दक्षहस्ते तर्जन्यगुष्टायां गंधाक्षतपुष्पाणि पू. खं० 1 81 // गृहत्विा प्राचोक्रमेण अष्टसु दिक्षु // ॐ वक्रतुंडाय नमः / बक्रतुंडश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥१॥इति सर्वत्र // एक दंष्ट्राय ग तं० नमः एकदंष्टश्रीपा०॥२॥ ॐ महोदराय नमः / महोदरश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 3 // ॐ हस्तिमुखाय नमः / हस्तिमुखातरं० 5 श्रीपादकां०॥४॥ ॐ लम्बोदराय नमः लम्बोदरश्रीपादुकां // 5 // ॐ विकटाय नमः / विकट श्रीपा० // 6 // ॐ विघ्नराजाय / 5 नमः। विघ्नराजश्रीपा०॥ 7 // ॐ धूम्रवर्णाय नमः / धूम्रवर्णश्रीपा०॥८॥ इत्यष्टौ पूजयेत् / / ततः पुष्पांजलिं दत्त्वाष्टदलायेषु प्राची क्रमेण // ॐ ब्रायै नमः। 1 / / ब्राह्मीश्रीपा० 1 // ॐ माहेश्वये नमः 2 // माहेश्वरीश्रीपा० 2 / / ॐ कौमा य नमः 3 कौमारी श्रीपा० 3 // ॐ वैष्णव्यै नमः 4 // वैष्णवीश्रीपा०४ // ॐ वारायै नमः 5 // वाराहीश्रीपा० 5 // ॐ इन्द्राण्यै नमः 6 // इन्द्राणीश्रीपा० 6 / / ॐ चामुंडायै नमः७ // चामुंडाश्रीपा०७ ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः 8 // महालक्ष्मीश्रीपा० 8 // इत्यष्टौ पजयेत् // ततः पुष्पांजलिं दत्त्वा भुपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान् बजाद्यायुधानि च पूजयेत् / / इत्यावरणपूजां च कृत्वा धृपादिनमा थे स्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / / अस्य पुरश्चरणं चतुर्लक्षजपः। अप्पैर्दशांशतो होमः। मवर्दशांशतस्तर्पणं तद्दशांशेन मार्जनं ब्राह्मण भोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति सिद्धे एतन्मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / तथा च / / "एवं ध्यात्वा जपेल्लक्षचतुष्क तद्दशांशतः // अपूपैर्जुहुयाद्वह्नौ मध्वक्तैस्तर्पयेच्च तम् // 1 // घृताक्तमन्नं जुहुयादावर्षादन्नवानावेत् // परमान्नहृता लक्ष्मीरिक्षुदंडैर्नृप * शिरःस्थांकपदैस्तुल्यांकस्थलेषु यंत्रपूर्तिविधेया॥ ASLIL 81 // For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir श्रियः // 2 // रम्नाफलारिकेलैः पृथुकर्वश्यता भवेत् // घृतेन धननानोति लवणैर्मधुसंयुतैः // 3 // वामनेत्रां वशी कुर्यादपुरैः पृथि वीपतिम् // " इति शक्तिविनायक चतुरक्षरमंत्रप्रयोगः // अथ लक्ष्मीविनायकमंत्रप्रयोगः // ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा / / ॐ श्रींग सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा // इत्यष्टाविंशत्यक्षरमंत्रः॥ अस्य विधानम् // अस्य लक्ष्मीविनायकमंत्रस्य अन्नामी ऋषिः गायत्री छंदः। लक्ष्मीविनायको देवता / श्रीं बीजम् / स्वाहा शक्तिः / ममानीटमिद्धयये जपे विनियोगः।। ॐ अन्त शामिऋषये नमः शिरसि / / गायत्रीछंदमे नमः मुखे // 2 // लक्ष्मीविनायकदेवतायै नमः हृदि / / 3 / / श्री बीजाय नमः। गीं // 4 // स्वाहा शक्तये नमः पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः / ॐ आँ गाँ अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ श्रीं गी तर्जनीन्यां नमः // // ॐ श्रृंगँ मध्यमान्यां नमः // // ॐ श्रमें अनामिकाच्यां नमः॥४॥ ॐ श्री गौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ श्रः गः करतलकरपृष्ठात्यां नमः॥६॥ इति करन्यासः // ॐ श्री गाँ हृदयाय नमः॥१॥ ॐ श्रीं गी शिरसे स्वाहा // // ॐ शृंग शिखायै वषट् // 3 // ॐ 3 गैं कवचाय हूं // 4 // ॐ श्री गौं नेत्रत्रयाय वौषट // 5 // ॐ श्रः गः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यामः।। एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम्-"दन्ताभये चक्रवरी है दधानं करावगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम् // धृताब्जयालिङ्गिन्तमधिपच्या लक्ष्मीगणेशं कनकाअभीडे / / 1 // " इति ध्यायेत्-ततः पीठादौ रचि ते सर्वतोभद्रमंडले गणेशमंडले वा मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पद्धतिमार्गण संस्थाप्य ॐ मं मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः। इति संपृज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत। तद्यथा। ॐ तीवायै नमः॥१॥ॐ चालिन्यै नमः॥२॥ॐ नंदाय नमः॥३॥ ॐ भोगदायै नमः // 4 // For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लक्ष्मीविनायकयंत्रम् / खं.१ गतं. 82 // / मं०म०॥ ॐ कामरूपिण्यै नमः // 5 // ॐ उग्राय नमः // 6 // ॐ तेजोवत्यै नमः / / 7 // ॐ मत्यायै नमः // 8 // मध्ये ॐ विघ्ननाशियै नमः Hellneइति पूजयेत / ततः स्वर्गादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति या ताम्रपात्रे निधाय थि घृतेनात्यज्य तदुपरि दृग्यधारां जलधारां च दया स्वच्छवस्त्रेणा शोप्य ॐ ह्रीं सर्वमक्तिकमलामनाय नमः // इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं * दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य पद्धतिमार्गेण प्रतिष्ठां च कृत्वा मलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिषष्पर्तिरुपचारैः संपृज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजा कुर्यात् / / तथा च पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मयः परेश त्वं परामृतरस प्रिय // अनुज्ञां देहि गणप परिवाराचनाय मे // // इति पठित्या पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विदं निक्षिप्य पृजितस्तपितास्तु इति वदेत् // इत्याज्ञां गृहीत्वा षटकोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च // ॐ आँ गाँ हृदयाय नमः // 1 // ॐ श्रीं गी शि Kaरसे स्वाहा // 2 // ॐ श्र गैं शिखायै वषट् // 3 // ॐ अँ मैं यगणपत्येवावर दसर्यजनमेषश मानयस्वाहा/ // 82 // . For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कवाय हूँ॥४॥ ॐ श्री गो नेत्रत्रयाय वापट् // 5 // ॐ श्रः गः अस्त्राय फट् // 6 // इति षडंगानि पूजयेत॥ ततः पुष्पांजलि मादाय मूलमच्चायं // "अभीष्टमिद्धि मे देहि शरणागतवन्मल // भक्त्या समर्पये तस्य प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांच जलिं च दत्या विशेषाद्विदं निक्षिप्य पृजिताम्तपिताः मंतु इति वदेत // इति प्रथमावरणम् / / 1 // देवदक्षिणपार्थे ॐ शंखाय नमः शंखश्रीपा० 1 // देवतावामे०॥ ॐ पानिधये नमः / पननिधिश्रीपा० 2 // इति पूजयत // नतोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतरालं प्राची नदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य दक्षहरूले तर्जन्यंगुष्ठायां गंधाक्षतपुष्पाणि गृहीत्वा प्राचीक्रमण अष्टसु दिक्षु // ॐ बलाय नमः / बलाः | श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। इति सर्वत्र // 3 // ॐ बिमलाय नमः। विमलाश्रीपा 02 / / ॐ कमलायै नमः / कमलाश्रीपा० 3 // ॐ वनमालिकायै नमः। बनमालिकाश्रीपा०४॥ ॐ विभीपिकायै नमः। विजीपकाश्रीपा० 5 // ॐ मालिकाय नमः। मालिकाश्री पा०६॥ ॐ शांकर्य नमः। शांकरीश्रीपादुकां पृ०७ // ॐ वसुवालिकाय नमः। वसुबालिकाश्रीपा० 8 // इत्यष्टी शनीः पूजयेत। ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य। "अभीष्टसिद्धि में दहि शरणागतवत्सल।भन्या ममर्पय तुल्यं द्वितीयावरणाचनम॥३॥” इति पठित्वा पुष्पां जलिं च दत्त्वा पुजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत्॥ इति द्वितीयावरणमानतो भूरे इन्द्रादिदशदिक्पालान बनायुधानि च पूजयेत्॥ इत्याय रणपूजां कृत्वा धपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कुर्य्यात // अस्य पुरश्चरणं चतुर्लक्षजपः // बिल्यसमिद्भिर्दशांशतो होमः // तनदशांशेन / तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् // एवं कृते मंत्रः मिद्धो भवनि मिद्धे चैतन्मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत // तथा च // "चतुर्लक्ष For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मंमा जपेन्मंत्रं ममिद्धिबिल्वशाखिनः // दशांशं जुहुयापीठ पूक्ति नं प्रपूजयेत् // 3 // एवं मिद्धे मनी मंत्री प्रयोगान्कर्तुमर्हति // उरोमात्रे जले प० ख० 1 स्थित्वा मंत्री ध्यावामंडले // 2 // एवं त्रिलक्षजपतो धनवृद्धिः प्रजायते // विल्वमूलं समास्थाय नावजने फलं हि तत् // 3 // ग तं० "hell अशोककाचलिते वहावाज्याक्ततण्डलः // होमतो वशयविश्वमकाष्ठचा अवम् // 4 // खदिराग्नी नरपति लक्ष्मी पायसहोमतः॥ तरं० 5 इति लक्ष्मीविनायकमंत्रप्रयोगः / / अथ त्रैलोक्यमोहनकरगणेशमंत्रप्रयोगः / / मंत्रमहोदधौ / मंत्रो यथा / / वक्रतुंडैकदंष्ट्राय लीह्रीं श्रींग गणपते वर वरद सर्वजन मे वशमानय स्वाहा / / इति त्रयस्त्रिंशदक्षरो मंत्रः।। अस्य विधानम् // अस्य श्रीत्रैलोक्यमोहनकरगणशमंत्रस्य गणक ऋषिः। गायत्री छंदः। त्रैलोक्यमोहनकरो गणेशा देवताममाभीष्टसिद्धयर्थ जपे विनियोगः।। ॐ गणकऋषये नमः शिरसि 3 // गायत्रीछदमे नमः मुखे 2 // त्रैलोक्यमोहनकरगणशदेवतायै नमः हृदि 3 // विनियोगाय नमः मागे 4 // इति ऋप्यादिन्यासः ॐ वक्रतुकदंष्ट्राय कहीं श्रींग अंगुष्ठायां नमः | ॐ गणपते तजनीयां नमः 2 // ॐ बर वरद मध्यमाभ्यां नमः 3 ॐ / नजनम् अनामिकात्यां नमः / ॐ में वशमानय कनिष्टिकान्यां नमः। ॐ स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 7 // इति करन्यामः ॐ वक्रतुंडैकदंताय कीह्रीं श्रींग हृदयाय नमः 1 // ॐ गणपते शिरमे स्वाहा // ॐ वर वरद शिखायै वषट् // ॐ सर्वजने कवचाय हुँ४ // ॐ मे वशमानय नेत्रत्रयाय वौषट 5 // ॐ स्वाहा अस्त्राय फट 6 // इति हृदयादिपडंगन्यामः।। इति न्यासं कृत्वा / धोयत।। अथ ध्यानमा गदाबीजारे धनुः शृलचके सरोजोलले पाशवान्यायदन्तान / करैः संदधानं स्वशुंडायराजन्मणीकुम्भनगाधिरूढं / स्वपल्या 1 // सरोजन्मना भूषणानां भरेणोज्ज्वलद्धस्ततन्व्या समालिजिन्ताङ्गम् // करीन्द्राननं चन्द्र चई त्रिनेत्रं जगन्मोहनं रक्तकांति For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shet Kailasagasun yanmandir भिजेत्तम्॥२॥इति ध्यायेत्। ततः पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले गणेशमंडले वा मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पद्धतिमार्गेण संस्थाप्य ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वातपीठदेवतात्यो नमः।इति संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् ।तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण ॐ तीबायै नमः। ॐ चालिन्यै नमः 2 / ॐ नंदायै नमः 3 ॐ भोगदायै नमः ४ॐ कामरूपिण्यै नमः ५ॐ उग्रायै नमः६ ॐ तेजोवत्यै नमः७ ॐ सत्यायै नमः८ मध्ये / ॐ विन्ननाशिन्यै नमः 9. इति पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्र मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय धृतेनाभ्यज्य नदुपरि दुग्धधारां जलधारां च / दत्त्वा स्वच्छवस्वेगाशोष्य / ॐ ह्रीं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः // इति मंत्रग पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा / मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिपप्पांतैरुप चारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात् / / तथा च / पुप्यांजलिमादाय // संविन्मयः परेश त्वं परामृतरसप्रिय / अनुज्ञां देहि नगप परिवारार्चनाय मे।। १॥"इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्या पूजितस्तपितोऽस्तु इति / विदेत् / / इत्याज्ञां गृहीत्वा षट्कोणकेसरेषु आग्नेथ्यादिचतुर्पु दिक्षु च / दिक्षु ॐ वक्रतुंडैकदंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रींग हृदयाय नमः // ॐ गणपते, शिरसे स्वाहा २॥ॐ वर वरद शिखायै वपटू ३॥ॐ सर्वजनं कवचाय हूँ ४॥ॐ मेवशमानय नेत्रश्याय वौषट् ५॥ॐ स्वाहा अस्वाय फ६ इति पडंगानि पूजयेत्॥ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य। ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहिशरणागतवत्सलोनल्या समर्पये तायं प्रथमावरणार्चनम् / / 1613॥"इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_दिदं निक्षिप्य पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत्॥इति प्रथमावरणम् // ततोटरले पज्यपूजक छ। योरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य दक्षहस्ते तर्जन्यगुष्ठाभ्यां गंधाक्षतपु-याणि गृहीत्या प्राचीक्रमेण / / अष्टसु दिक्ष ॐ च वामायै नमः / वामाश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति सर्वत्र 1 // ॐ ज्येष्ठाय नमः / ज्येष्ठात्रीपा० 2 // ॐ रौद्रयै नमः। For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir लोक्यनीहनकरगणेशयंत्रम् / तरं०५ म. म. राद्रीश्रीपा 0 3 // ॐ काल्यै नमः। कालीश्रीपा०४॥ ॐ कलपद। // ८दिकायै नमः। कलपदादिकाश्रीपा० 5 // ॐ विकारण्यनभैः / विक शरिणीश्रीपा० 6 // ॐ बलायै नमः। बलाश्रीपा० 7 // ॐ प्रमथिन्य नमः / प्रमथिनीश्रीपा० 8 // देवस्याये // ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः। सर्वभूतदमनीश्रीपा० 1 // ॐ मनोन्मन्यै नमः / मनोन्मनीश्रीपा० 2 // चतुर्ष दिक्षु // ॐ प्रमोदाय नमः / प्रमोदश्रीपा० 1 // ॐ सुमखाय नमः / सुमुखश्रीपा० 2 // ॐ दर्मुखाय नमः / दुर्मुखश्रीपा० 3 // Hॐ विघ्ननाशाय नमः विघ्ननाशश्रीपा० 4 // इति पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य"अभीष्टसिद्धिं में देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुज्यं द्वितीयावरणार्चनम् 2 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_विंदु निक्षिप्य पूजितास्तर्पिताः संत इति वदेत / Bइति द्वितीयावरणम्॥ततोष्टदलायेषु॥ॐ आं बायै नमः / ब्राह्मीश्रीपा० // ॐ ई माहेश्वर्य नमः। माहेश्वरीश्रीपा०२॥ॐ ॐ कामाय नमः। ॐवक्रतु कशावता हीश्रीगणप ग 38 // 84 // > For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavn Aradhana Kendra www.kabalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कुमारीश्रीपा० // ॐ वैष्णव्यै नमः / वैष्णवीश्रीपा०४ // ॐ ह्ल बारायै नमः। वाराहीश्रीपा० 5 // ॐ ऐ इन्द्रा कण्यै नमः। इन्द्राणीश्रीपा०६॥ ॐ औं चामुंडायै नमः / चामुंडाश्रीपा० 7 // ॐ अमहालय नमः। महालक्ष्मीश्रीपा० 8 // 5 इति पूजयेत् / ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमच्चायं // अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल॥भक्त्या समर्पये तुभ्यं तृतीयावरणार्चनम Su // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_दिदं निक्षिप्य पृजितास्तपिताः संतु इति वदेत् इति तृतीयावरणम // 3 // ततः लाभपरे पर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान बजायायुधानि च पूजयेत् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिनमस्कारातं संपज्य जपं कात् / / अस्य पुरश्चरणं चतुर्लक्षजाः।। अष्टद्रव्येर्दशांशतो होमः। एवंकते मंत्रः सिद्धो भवति सिद्धे मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् // तथा च // " वेदलक्षं जपन्मंत्रमष्टद्रव्यैर्दशांशतः // हुत्वा पूर्वोदितं पीठे पूजयेद्गणनायकम् // 1 // एवं सिद्धे मनौ कर्यात्प्रयोगानिष्ठसिद्धये / / वशयेत्कमलैर्भपान्मंत्रिणः कुमुदैर्हतैः // 2 // समिरैश्चलदलसमुद्भुतैर्द्धरासुरान् // उदुम्बरोत्थैर्नृपतीन्प्लाटविशान्तिमान // 3 // सौद्रेण कनकपातिगोप्राप्तिः पयसा गवाम् // ऋद्धिर्दध्नोदनरन्नं घृतैः श्रीवतसर्जलम् // 4 // " इति श्रीत्रलोक्य मोहनकरगणेशमंत्रप्रयोगः / / अथ हरिद्रागणेशमंत्रप्रयोगः। ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा // ॐ हुँगॅग्लौं हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजनहृदयं स्तंभय स्तंभय स्वाहा // इति द्वात्रिंशदक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य हरिद्रागणनायकमंत्रस्य मदन ऋषिः / अनुष्टुप् छंदः / हरिद्रागणनायको देवता ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः। ॐ मदनऋषये नमः शिरसि 1 // अनुष्टुपछंदसे| १चलदलोश्वत्थस्तरूपसमिद्भिर्धरासुरान्विप्रान वशयेत्-प्लक्षसमिद्भि यान्-वटजाभिरतिमान (शदान ) / For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मै० म० नमः मुखे 2 // हरिद्रागणनायकदेवतायै नमः हृदि 3 // विनियोगाय नमः सर्वांगे 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ हुँगैलापू० ख०१ // 5 // अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 // हरिद्रागणपतये तर्जनीभ्यां नमः 2 // वर वरद मध्यमाभ्यां नमः 3 // सर्वजनहृदयम् अनामिकाभ्यां नमः // 4 // स्तंभय स्तंभय कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 // स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 // इति करन्यासः॥ॐ हुँगैग्लौं हृदयाय नमः // हरिद्रागणपतये शिरमे स्वाहा 2 // वर वरद शिखायै वषट् 3 // सर्वजनहृदयं कवचाय हुँ // स्तंभय स्तंभय नेत्र कत्रयाय वौषट् 5 // स्वाहा अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम्-पाशाङ्कुशौ मोदकमकदंत करैर्दधानं कनकासनस्थम् // हारिद्रखण्डप्रतिमं त्रिनेत्रं पीतांशुकं रात्रिगणेशमीडे // 1 // इति ध्यात्वा पीठादौ रचिते |सर्वतोत्तद्रमंडले गणेशमंडले वा मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पद्धतिमार्गेण संस्थाप्य ॐ में मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः इति / मपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत / तद्यथा। पूर्वादिक्रमेण ॐ तीबायै नमः / ॐ चालिन्यै नमः 2 ॐ नंदायै नमः 3 ॐ भोगदायै नमः 4 ॐ कामरूपिण्यै नमः 5 ॐ उग्रायै नमः 6 ॐ तेजोवत्यै नमः 7 ॐ सत्यायै नमः 8 मध्ये ॐ विघ्ननाशिन्यै नमः 9 इति पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मृति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेणाशोष्य॥ ह्रीं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः // इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्टां च कृत्वा पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य वादेवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कात् // तत्र क्रमः // पुष्पांजलिमादाय // ॐ संविन्मय परेश त्वं परामृतरसप्रिय // अनुज्ञां देहि गण पपरिवारार्चनाय मे॥१॥” इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पृजितास्तपिताः संतु इति वदेत॥इत्याज्ञां गृहीत्वा पटुकोणकेसरेषु आने For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भ्यादिषु चतसृषु दिक्षु मध्ये दिक्षु च॥ॐ हुँ गँ ग्लाँ हृदयाय नमः हृदये श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः इति सर्वत्र 1 ॥ॐ हरिद्रागणपतये शिरसे स्याहा शिरमि श्रीपा०२॥ ॐ वर वरद शिखायै वषट् शिखायां श्रीपा०३॥ॐ सर्वजनहृदयं कवचाय हुं 4 // ॐ स्तंभयस्तंभ य नेत्रत्रयाय वौषट् 5 // ॐ स्वाहा अस्त्राय फट् इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य्य // "अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्मल // भक्त्या समर्पये तुज्यं प्रथमावरणार्चनम् // 3 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पृजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम 1 / / ततोऽदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य दक्षहस्ते तर्जन्यंगुष्ठाभ्यां गंधाक्षतपुष्पाणि गृहीत्या प्राचीकमेण अष्टम दिक्ष // ॐ वामायै नमः वामाश्रीपा०ॐ ज्येप्रायै नमः ज्येष्ठाश्रीपा०२।। ॐ रौद्रयै नमः रौद्रीश्रीपा०|| 3 // ॐ काल्यै नमः कालीश्रीपा०४॥ ॐ कलपदादिकायै नमः कलपदादिकाश्रीपा०५॥ ॐ विकरिण्यै नमः विकरिणीश्रीपा० 6 // ॐ बलायै नमः बलाश्रीपा० 7 // ॐ प्रमथिन्यै नमः प्रमथिनीश्रीपा० 8 // इत्यष्टौ पूजयेत् // देवस्याये // ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः सर्वभतदमनीश्रीपा० 1 // ॐ मनोन्मन्यै नमः मनोन्मनीश्रीपा० 2 // इति पूजयेत् / ततः चतसृषु दिक्षु प्राचीक्रमेण // ॐ प्रमोदायी नमः प्रमोदश्रीपा० // ॐ सुमुखाय नमः सुमुखश्रीपा०२॥ ॐ दुर्मुखाय नमः दुर्मुखश्रीपा०३ // ॐ विघ्ननाशाय नमः विघ्ननाश श्रीपा० 4 // इति पूजयेत्। ततः पुष्पांजलिमादाय मलमुच्चार्य॥ "अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्यं द्वितीय यावरणार्चनम्॥३॥” इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत्॥ इति द्वितीयावरणम् ॥२॥ततोष्टदलागेषु // ॐ आँ बायै नमः ब्राह्मीश्रीपा० 1 // ॐ ई माहेश्य नमः महेश्वरीश्रीपा० 2 // ॐ ऊं कौमाय नमः कौमारीश्रीपा० 3 // ॐ For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir हारेद्रागणेशयंत्रम्। प० ख०१ म० भ० // 86 // . 27 तरं. 5 वैष्णव्यै नमः वैष्णवीश्रीपा०४॥ ॐ टू वारायै नमः वाराहीश्री पा०५॥ ॐ ऐं इन्द्राण्यै नमः इंद्राणीश्रीपा०६॥ ॐ औं चामुंडार नमः चामुंडाश्रीपा० 7 // ॐ अः महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मीश्रीपा० 8 // इत्यष्टौ पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य // “अभी सिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं तृतीयावरणर्च नम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विंदु निक्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति तृतीयावरणम् // ततः भूपरे पूर्वा |दिक्रमेण इन्द्रादिदशदिकपालान बजाद्यायुधानि च संपूजयेत् // इत्या कावरणपूजां कृत्वा धृपादिनमस्कारान्तं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं चतुर्लक्षजपः। हरिद्राचूर्णमिश्रिताज्यतंडुलैश्च दशांशतो होमः / तनदशांशेन तर्पणमार्जनबामणभोजनं च कुर्यात् // एवंकते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत्॥तथा च-वेदलक्षं जपित्यान्ते हरिद्राचूर्णमिश्रितः / / दशांशं तण्डुलैर्हत्या ब्राह्मणानपि भोजयेत् // 1 // हरिद्रागणपतये परबरदसर्वजन :28SHA 26 // 86 // For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir एवमाराधितो मंत्रस्सिद्धो यच्छेन्मनोरथान॥ शुक्रपक्षे चतुझं तु कन्यापिटहरिद्रया / / 2 // विलिप्यांग जले स्नात्वा पूजयेद्गणनायकम्॥ तर्पयित्वा पुरस्तस्य महलं माष्टकं जपेत् // 3 // शतं हुत्वात्वाज्यपूपैनोजयेद्ब्रह्मचारिणः // कुमारीरपि संतोष्य गुरुं प्रामोति वांछितम् / // 4 // लाजैः कन्यामवामोति कन्यापि लभंत वरम् / / वंध्या नारी रजःस्नाता पूजयित्वा गणाधिपम् / / 5 / / पलप्रमाणगोमूत्रे पिष्टवा था सिंधुवचानिशाः॥ सहस्रं मंत्रयेत्कन्या बटन्सभोज्य मोदकैः // 6 // पीत्वा तदौषधं पुत्रं लाते गुणमागरम् // वाणीस्तभं रिपुस्तंभाला कुर्यान्मनुरुपासितः / / 7 // जलाग्निचौरसिंहाचप्रमुखानपि रोधयेत् // शाङ्गीमांसस्थितः सेन्दु/जमुक्तं गणेशितः // हरिद्राख्यस्य यजनं पूर्ववत्योदितं मनोः // 8 // प्रोक्ता ये ते गणेशस्य मंत्रा इष्टमभीप्सिताः // गोपनीया न दुष्टेन्यो बदनीयाः कथंचन // 9 // इति श्रीहरिद्रागणेशमंत्रप्रयोगः // अथ ऋणहर्तृगणेशमंत्रविधानम्।। ( कृष्णयामलतंत्रे ) तत्रादी अणहर्तृगणेशस्तोत्रभारंजः // "कैलासे पर्वते रम्ये शंभुं चन्द्रार्द्धशेखरम् // षडाम्नायसमायुक्तं पप्रच्छ नगकन्यका // 1 // पार्वत्युवाच // देवेश परमेशान सर्वशास्त्रार्थपारग // उपायमृणनाशस्य कृपया वद सांप्रतम् // 2 // शिव उवाच // सम्यक्पृष्टे त्वया भद्रे लोकानां हितकाम्यया // तत्सर्व संप्रवक्ष्यामि साबधानावधारय / / 3 // ॐ अस्य श्रीऋणहरणकर्तृगणवतिस्तोत्रमंत्रस्य सदाशिव ऋषिः अनुष्टुप् छंदः। श्रीऋणहर्तृगणपतिर्देवता / ग्लौं बीजम्। गः शक्तिःोगों कीलकम्। मम सकलर्णनाशने जपे विनियोगः॥ॐ सदाशिवर्षये नमः शिरसि ।।अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे। श्रीऋणहर्तृगणेशदेवतायै नमः हृदि 3 / ग्लौं बीजाय नमः गुह्ये 4 / गः शक्तये नमः पादयोः 5 / गों कीलकाय नमः सर्वाङ्ग 6 / इति ऋष्यादिन्यासः॥ॐ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः / पाणं छिथि तर्जनीयां नमः 2 / वरेण्यं मध्यमान्यां नमः३। हुं अनामिकाभ्यां नमः For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः५। फट करतलकरपृष्ठान्यां नमः 6 / इति करन्यासः // ॐ गणेश हृदयाय नमः / मणं छिन्धि शिरसेपू० ख०१ स्वाहा 2 / वरेण्यं शिखायै वषट् 3 / हुं कवचाय हुं 4 नमः नेत्रत्रयाय वौषट् 5 / फट् अस्वाय फट 6 / इति हृदयादिषडंगन्यासः // गतं. अथ ध्यानम् / “ॐ सिंदूरवर्ण द्विभुजं गणेशं लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम्॥ब्रह्मादिदेवैः परिमेव्यमानं मिद्धेर्युतं तं प्रणमामि देवम् // 4 // तरं०५ पृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये // संदेव पार्वतीपुत्रः कंगनाशं करोतु मे // 5 // त्रिपुरस्य वधात्पूर्व शंभुना सम्यगर्चितः / // सदैव० // 6 // हिरण्यकश्यप्वादीनां बधार्थ विष्णुनाचिंतः ।।सदैव० // 7 // महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः॥सदैव०॥८॥ तारकस्य वधात्पूर्व कमारेण प्रपूजितः।। सदैव // 9 / / भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छविमिद्धये / / भदैव 0 // 10 // तश्छनि०॥ शशिना / कांतिवृद्धयर्थ पृजितो गणनायकः // सदैव 0 // 11 // पालनाय च नपमा विश्वामित्रेण पूजितः॥ मदेव // 12 // इदंन्वृणहरस्तोत्रं तीवदारयनाशनम् // एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः // 13 // दारियं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत् // फडतोयं महामंत्र है। सार्द्धपंचदशाक्षरः // 14 // मंत्रो यथा “ॐ गणेश ऋणं छिंधि वरेण्यं हुँ नमः फट " इति साईपंचदशाक्षरो मंत्रः / इमं मंत्रं पठेदन्ते 5 ततश्च शुचिभावनः // एकविंशतिसंख्यानिः पुरश्चरणमीरितम् // 15 // सहस्रावर्तनात्सम्यक् षण्मासं प्रियतां व्रजेत् // बृहस्पतिसमो ज्ञाने धने धनपतिर्भवेत् / / 16 // अस्यैवायुतसंख्याभिः पुरश्चरणमीरितम् // लक्षमावतीत्सम्यग् वांछितं फलमानुयात् // 27 // 7 // भूतप्रेतपिशाचानां नाशनं स्मृतिमात्रतः॥१८॥ इति श्रीकृष्णयामलतंत्रे उमामहेश्वरसंवादे ऋणहरणकर्तृगणेशस्तोत्रं समातम् // अथ ) शसिद्धविनायकमन्त्रप्रयोगः॥ ( प्राकृतग्रंथे ) मंत्रो यथा “ॐ नमो सिद्धविनायकाय सर्वकार्यकत्रे सर्वविन्नप्रशमनाय सर्वराज्यवश्यकरणाय For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir सर्वजनसर्वस्त्रीपुरुषाकर्षणाय श्री ॐ स्वाहा॥अस्य विधानम्॥अष्टोत्तरशतं प्रतिदिनं जपेत् कार्य सिद्धं भवति। यात्रासमये जापित्या मार्गभयं न नाशयति सर्वकार्याणि सिद्ध्यंति॥"अन्यत् / / ॐ ह्रीं क्लीं वीरवरगणपतये वः वः इदं विश्व मम वशमानय ॐ ह्रीं फट"अस्य विधानम्॥ रक्तवस्त्र परिधाय रक्तचंदनेन त्रिपुंडूं कृत्वा गणपतिं ध्यात्वा द्वादशमहस्रं जपेत् / ततः प्रत्यक्षो भूत्वा वरं ददातिापुनः प्रतिदिनं पंचामृतेन धानात्वा अष्टोतरशतं जपेत। तावत होमयेत यावदष्टसिद्धिप्राषिर्भवेत्॥अन्यत् “ॐ गी गं गणपतये नमः स्वाहा"अस्य विधानम्॥भूशय्याब्रह्म चर्येण लक्षं जपेतापंचखायेन दशांशतो होमः ऋद्धिसिद्विमानिर्भवति विघ्नान्नाशयति।। अन्यत्॥ (वीरभद्रोड्डीशतन्त्रे)"ॐ गं गणपतये नमः | अस्यविधानम्।कुंभकारस्य मदमानीय गणेशप्रतिमां कृत्वा पंचोपचारैः संपूज्य तदने प्रतिदिनं सहस्र जपेतातदा समदिनांतरे सिद्धो भवति। पुनः प्रतिदिनं जपित्वा बुद्धिं वर्धयति मासकेन स्त्रीलामो भवति षट्मासांतरे धनं प्रामेति / तथा च "संध्यायां जपमानस्य सहकं स्वश तितः॥ शताधिकसहस्रेण इच्छासिद्धिं ददाति च // 3 // अपराहे च देवेशि शुभां मतिं लोन्नरः॥मासेनकेन देवेशि श्रियं च लभते ध्रुवम्॥ षण्मासेन वरारोहे महाधनपतिर्भवेत्॥"अन्यत्॥(वीरभद्रोड्डीशतंत्रे) मंत्रो यथा॥ ॐ गं गणपतये सर्वविन्नहराय सर्वाय सर्वगुरवे लंबोदराय ह्रीं गं नमः।” अस्य विधानम्।। पुष्यार्के श्वेतार्कमयं लंबोदरं निर्माय चतुर्भुजं कृत्वार्चयेत्। स्वगृहे स्थापयेत् / श्वेतपदार्थैरर्च यत् / अष्टोत्तरशतं जपेत् / क्षीरमध्ये स्थापयेत् / स्वयं पूजयेत् / तद्विधानात्मध्यायामष्टोत्तरशतं जत्वा संग्रामकाले एकांते महती पूजा कार्या सहकं जोत् शिरसा धारयेत् / संग्रामे अस्वं निवारयति रक्षा करोति लंबोदरः। मूलनक्षत्रे सूर्यप्रभेन अंगुलमात्र लंबोदरं निर्माय पूजयेत् / सिंदूरभाजने संस्थाप्य तदिने प्रतिष्ठापयेत् / त्रिसंध्यं सहस्रसहस्रं जां कार्य वस्खं च स्थापयेत् / यत्मार्थयति तं प्रामोति For Private And Personal use only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir ... // प्रत्यह शतमष्टोत्तरं जप्त्वा मासेन मनोभीष्टं ददाति // इति सिद्धिविनायकनानामंत्रप्रयोगः // हीत श्रीगणेशपटल समानम् // खं? // अथ गणेशपद्धतिप्रारम्भः // तत्रादौ पूर्वकत्यम् // पुरश्चरणात् प्राक् तृतीयदिवसे औरादिकं विधाय ततः प्रायाश्चित्तांगभूत गतं. विष्णुपूजां विष्णुतर्पणंविष्णुश्राद्धं होमं चांद्रायणादिवतं च कुर्यात् / व्रताशक्तौ गोदानं द्रव्यदानं च कुर्यात् / यदि सर्वकर्मा तरं०५ शक्तस्ततः प्रायश्चिनांगभूतपंचगव्यप्राशनं कुर्यात् / तत्र मंत्रः / “यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके / प्राशनात्पंचगव्यस्य दहत्यनिरिवेन्धनम् ॥१॥इति पठित्वा प्रणवेन पंचगव्यं पिबेत् / तदिने उपवास कत्वा अशक्तश्चेत पयःपानं हविष्यान्नेनैकभक्तवतं कृत्वा ततः पुरश्चरणात पूर्वदिने स्वदेहशुद्धयर्थ पुरश्चरणाधिकारप्राप्त्यर्थ चायुतगायत्रीजपं कुर्यात। तद्यथा। देशकालो संकीर्त्य जाताजात पापक्षयार्थ करिष्यमाणामुकगणेशपुरश्चरणाधिकारार्थममुकमंत्रण मिद्ध्यर्थ च गायत्र्ययुतजपमहं करिष्ये इति संकल्प्य गायत्ययुतं जताततः गायच्या आचार्यऋषि विश्वामित्रं तर्पयामि 1 गायत्रीछंदस्तर्पयामिर सवितारं देवतां तर्पयामि 3 इति तर्पणं कृत्वा तनोग्यास रात्री देवतोपास्ति शुभाशुभस्वमं विचारयेतातयथा स्नानादिकं कृत्वा हरिपादाबुस्मृत्वा कुशासनादिशग्यायां यथासुखं स्थित्वा वृषभ / वजं प्रार्थयेतातत्र मंत्रः "ॐ भगवन्देव देवेश शूलभृद् वृषवाहन // इटानिष्टं नमाचक्ष्व मम मुनस्य शाश्वत॥३॥ॐ नमोजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने // वामाय विश्वरूपाय स्वमाधिपतये नमः // 2 // स्वमे कथय में तथ्यं सर्वकार्येष्वशेषतः // क्रियासिद्धिं विधा // 8 // स्यामि त्वत्प्रमादान्महेश्वर॥३॥” इति मंत्रेणाष्टोत्तरशतवारं शिवं प्रार्य निद्रां कुर्य्यात। ततः स्वमं दृष्टं निशि प्रातर्गुरवे विनिवेदयेत् / / For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir अथवा स्वयं स्यमं विचारयेत् / इति पूर्वकत्यम् / ततश्चन्द्रतारादिनालायिते समहूर्ते विविक्त देशे जपस्थानं प्रकल्प्य पुरश्चरणदिवसे. बाले मुहूर्त चोत्थाय प्रातःस्मरणं कुर्यात्।अथ गणेशप्रातःस्मरणम्॥"ॐ प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबंधु सिंदुरपूर्णपरिशोभितगंडाग्यम्॥ उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादिमुरनायकवृन्दवंद्यम् // 3 // प्रातर्नमामि चतुराननवंशमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददान म् // तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतरं शिवयोः शिवाय // 2 // प्रातर्भजाम्यायदं खलु भक्तशोकदावानलं गणवि, वरकंजरास्यम् // अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहमुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य // 3 // " श्लोकत्रयमिदं पुण्यं मदा साम्राज्यदायकम् // प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत्प्रयतः पुमान 4 इति स्मरणं कृत्वा भूमिं प्रार्थयेत / तत्र मंत्रः। “समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमंडले॥विष्णुपनि नमस्तुज्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे // 1 // " इति भूमि संप्रार्य श्वासानुसारेण भूमौ पादं दत्त्वा बहिर्बजेत् / इति प्रातःकत्यम् / ततो यामादहिनत्यकोणे जनवर्जिते उत्तराभिमुखः अनुपानकः वस्त्रेण शिरः प्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा मृत्तिकय जलेन च यथासंख्या शौचं कृत्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूषं कृत्वा दंतधावनं च कुर्यात् / तद्यथा--आम्नचंपकापामार्गाद्यन्यतमं द्वादशांगुलं दंतकाष्ठं गृहीत्वा लिंग चंद्रार्कयोविवं भारती जाह्नवी गुरुम्। रक्ताधितरणं युद्धे जयोऽनलसमचनम॥शिखिईसरांगाध्य रथे स्थानं च मोहनम् आरोहणं सारसस्य धग लाभश्च निम्रगाम्॥प्रासादः स्पंदनं पद्मं छवं कन्या द्रुमः फली। नागो दीपो हयः पुष्पं वृषभोश्वश्च पर्वतः।।सुराघटो ग्रहस्तारा नारी स्योदयोप्सराहर्यशैल्टविमाना नामारोहो गगने गमः।मद्यमांसादनं विष्ठालेपो रुधिरसेचनम् / दयोदनादनं राज्याभिषेको गोवृषध्वजाः॥ सिंह सिंहासनं शंखो वादेिवं रोचनादिभिः। चंदन तर्पणं चैषां स्वप्ने वे दर्शन शुभम्।तैलाभ्यतः कृष्णवणों नग्नो नागर्तवायसी। शुष्ककंटकिवृक्षश्च चांडालो दीर्घकन्धरः। प्रासादस्त लहानश्च नैत स्वप्न शुभावहाः॥ इति स्वयं स्वप्नं विचारयेत् / / For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kalassag y armandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं० मा मा प्रार्थयेत् / तत्र मंत्रः। “आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च॥श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वं नो देहि बनस्पते॥१॥"इति संपाय ॐ ह्रींपू० ख०१ // 89 // तडित् स्वाहा इति मंत्रेण काष्ठं छित्त्वा ॐ क्लीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः इत्यनेन दंतान संशोध्य ऐं इति बीजेन जिह्वामुल्लिख्यगतं. चदंतकाष्ठं सालयित्वा नैर्ऋत्ये शुद्धदेशे निक्षिपेत् / मूलन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात्।इति शौचकिया।ततः तीर्थस्नानं मंगलस्नानं च तरं०५ सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा गृहस्नानं कुर्यात अथ गृहस्नानप्रयोगः॥ तात्कालिकोद्धृतोदकेन उष्णोदकेन वा कृत्वा न तु पर्युषितशीतोद धु केन ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् // तत्र मंत्रः॥"गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति॥नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मि / सन्निधिं कुरु // 1 // ॐ पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा // आगच्छन्तु पवित्राणि स्नानकाले सदा मम // 2 // ब्रह्मांडो दरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते खे // तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर // 3 // " इति तीर्थान्याबाह्य // ऋतं च सत्यमिति मंत्रणा भिमंत्र्य स्नानं कुर्य्यात॥ एवं सानं कृत्वा शुष्क शुनं रक्तं वा काम बखं परिधाय सूर्यायायं दद्यात्॥ तत्र मंत्रः॥ "एहि मूर्य्य सहस्रां शो तेजोराशे जगत्पते॥ अनुकंपय मां देव गृहाणायं नमोस्तु ते // " इत्ययं दत्त्वा स्नायी वस्त्रं परिपीड्य आचम्य पंचत्रिपडूं कृत्वा मी द्राक्षमालां धारयेत / ततो जपस्थाने गत्वा / नित्यनैमिनिकं समाप्य अश्वत्थोदुम्बरपक्षानामन्यतमान वितस्तिमात्रान दश कीलान॥ नमः सुदर्शनायाखाय फट् इति मंत्रणाष्टोनरशताभिमंत्रितान ॥"ॐ ये चात्र विघ्नकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः // विनभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धिषु // 1 // मयैतत्कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः / अपसर्पत ते सर्वे निर्विघ्नं सिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति // 89 // मंत्रद्वयेन दशदिनु दशकीलान निखनेत्॥ततस्तेषु॥ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट्।।इति मंत्रेण प्रत्येककीलान संपूज्य तद्बाह्ये भुतबाल दद्यात्।। For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir तत्र मंत्रः॥ “ये रौद्रा रौद्रकर्माणो रौद्रस्थाननिवासिनः।।मातरोप्युमरूपाश्च गणाधिपतयश्च ये // 1 // विन्नभूताश्च ये चान्ये दिग्विदिक्षा समाश्रिताः // ते सर्वे प्रीतमनसः प्रतिगृहंत्विमं बलिम् // 2 // " इति मंत्रव्येन दशदिक्षु बाह्ये माषाक्तबालि दद्यात् // इति भूतेन्यो। बलिं दत्त्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्याचामेत् // ततः "ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा॥यः स्मरेत् पुंडरीकाक्षं स बाह्यान्यतरः शुचिः // 1 // " इति मंत्रेण मंडपांतरं प्रोक्ष्य तत्र तावत् आसनभूमौ कूर्मशोधनं कार्यम् // यत्र जपकर्ता एक एव तदा कर्ममुखे उपवि श्य जपं तत्रैव दीपस्थानं च कुर्यात् // यत्र बहवः जापकास्तत्र कर्ममुखोपरि दीपमेव स्थापयेत् / / एवं कर्मशोधन विधाय तत्रासनाधो जलादिना त्रिकोणं कृत्वा तत्र // ॐ काय नमः // ॐ ह्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः ॥२॥ॐ पृथिव्यै नमः // इति / | गंधाक्षतपुष्पैः संपूज्य तदुपरि कुशासनं तदपरि मृगाजिनं तदुपरि कंबलाद्यासनमास्तीर्य स्थापितानां त्रयाणामासनानामुपरि क्रमेण ॐ अनंतासनाय नमः // 1 // ॐ विमलासनाय नमः // 2 // ॐ पद्मासनाय नमः // 3 // इति मंत्रत्रयेण त्रीन दर्भान प्रत्येकं निद ध्यात् // एवमासनं संस्थाप्य तत्र प्राङ्मुख उदङमुखो वा उपविश्य आसनशोधनं कुर्य्यात् // तत्र मंत्रः / / पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः | कर्मो देवता / सुतलञ्छंदः / आसने विनियोगः / / "ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता // त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चामनम् // " इति मंत्रेण आसनं प्रोभ्य // ततो मूलमंत्रेण शिखा बद्धा आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ संकीर्त्य श्री * अमुकगणपतिदेवताप्रीतये अमुकमंत्रसिद्धये अमुकसंख्याजपं तत्तद्दशांशहोमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनरूपपुरश्चरणमहं करिष्ये // इति संकल्प्य भृतशुद्धि प्राणप्रतिष्ठामन्तर्मातृकाबहिर्मातृकासृष्टिस्थितिसंहारमातृकान्यासं च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा गणेशकलामातृ For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra waw.kobatm.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir i०माकान्यामं च कुर्यात् / तथा च तत्र क्रमः // ॐ अस्य विनेशादिकलामातृकान्यासस्य गगक ऋषिः। निवृयायत्री छंदः प. खं०१ विनायको देवता / हलो बीजानि / स्वराः शक्यः / मवेष्टमिध्ये न्यासे विनियोगः // ॐ गाँ हृदयाय नमः 1 // ॐ गी शिरसे गतं. स्वाहा 2 // ॐ ] शिखायै वषट् 3 // ॐ मैं कवचाय हुँ 4 // ॐ गौं नेत्रत्रयाय वौषट् 5 // ॐ गः अस्वाय फट् // 6 // एवं तर.५ षडंगन्यासं कृत्वा गजाननं ध्यायेत् // अथ ध्यानं // "गुणांकुशवराभातिपाणिरक्ताजस्तया // प्रिययालिंगितं रक्तं त्रिनेत्रं गणपं भजे // 3 // " एवं ध्यात्वा न्यासं कुर्यात् // तथा च तत्र कमः // ॐ अं विशेशही त्यां नमः ललाटे 1 ॐ आँ विनराजश्रीभ्यां नमः है मुखवृत्ने 2 ॐई विनायकाष्न्यिां नमः दक्षिणनेत्रे 3 ॐ ई शिवोनमशान्तिायां नमः वामनेत्रे 4 ॐ विघ्नकत्स्वस्तियां नमः दक्षि) णकर्णे 5 ॐ ॐ विघ्नहर्तृसरस्वतीभ्यां नमः वामकर्ण 6 ॐ गणस्वाहात्यां नमः दक्षिणनासापुटे 7 ॐ एकदंतसुमेधान्यां नमः वामनासापुटे 8 ॐ लं द्विदंतकांतिभ्यां नमः दक्षिणगंडे 9 ॐ लं गजवककामिनीभ्यां नमः वामगंडे 10 ॐ एं निरंजनमोहिनीच्या नमः ऊर्बोष्ठे 11 ॐ ऐं कपर्दिनटीभ्यां नमः अधरोष्ठे 12 ॐ ओं दीर्घजिह्वपार्वतीयां नमः ऊर्ध्वदंतपंक्ती 13 ॐ औं शंकुकर्णज्वा / लिनीभ्यां नमः अधोदंतपंक्ती 14 ॐ अं वृषभध्वजनंदान्यां नमः शिरमि 15 ॐ अः गणेशसुरेशीयां नमः मुखे 16 ॐ कं गजेन्द्र कामरूपिणीयां नमः दक्षिणबाहमले 17 ॐ खं शूर्पकर्णीमात्यां नमः दक्षिणकूपरे १८ॐ गं त्रिलोचनतेजोवतीभ्यां नमः दक्षिणमणिबंधे 19 ॐ चं लंबोदरमत्यात्यां नमः दशांगुलिमूले 20 ॐ ऊँ महानंदविनेशीभ्यां नमः दशांगुल्यये 21 ॐ चं चर्तुमूर्तिस्वरूपिणीच्या | |90 // नमः बामबाहुमूले 22 ॐ छं मदाशिवकामदाभ्यां नमः वामकूपरे 23 ॐ जं आमोदमदजिह्वाभ्यां नमः वाममणिबंधे 24 ॐ झं दुर्मु For Private And Personal use only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir खभूतिभ्यां नमः वामांगुलिमूले 25 ॐ सुमुखभौतिकाभ्यां नमः वामांगुल्यये 26 ॐ प्रमोदसितात्यां नमः दक्षपादमूले 27 ॐ Nठं एकपादरमात्यां नमः दक्षिणजानुनि 28 ॐ डं द्विजिह्वमहिषीच्या नमः दक्षिणगुल्फे 29. ॐ ढं शूरभंजनीभ्यां नमः दक्षिणपादांगु / लिमूले 30 ॐ णं वीरविकरणान्यां नमः दक्षिणापादांगुल्यो 31 ॐ तं षण्मुखभृकुटीयां नमः वामपादमूले 32 ॐ थं वरदलना न्यां नमः वामजानुनि 33 ॐ दं वामदेवदीर्घघोणान्यां नमः वामगुल्फे 34 ॐ धं वक्रतुंडधनुर्धराज्यां नमः वामपादांगुलिमले ३५ॐ नं द्विरदयामिनीत्यां नमः वामपादांगुल्यये 36 ॐ पं सेनानीरात्रिीयां नमः दक्षिणपार्च 37 ॐ 6 कामांधग्रामणीच्यां नमः वामपाचे 38 ॐ वं मनशशिप्रभाश्यां नमः पृष्ठ 39 ॐ भं विमत्तलोललोचनात्यां नमः नाभौ 40 ॐ मं मनवाहनचंचलाभां नमः जठरे 43 ॐ यं त्वगात्मायां जटिदीवियां नमः हृदि 42 ॐ रं असृगात्मान्यां मुंडिसुभगान्यां नमः दक्षांसे 43 ॐ लं मामात्मन्यां खडिदुर्भगा। भ्यां नमः ककुदि४४ ॐ मेदआत्मान्यां वरेणपशिवास्यां नमः वामांसे 45 ॐ शं अस्थ्यात्मन्यां वृषकेतनभगान्यां नमः हृदयादिदनह स्तांतम् 46 ॐ पं मज्जात्मत्यां भक्तिप्रियभगिनीन्यां नमः हृदयादिवामहस्तांतम् 47 ॐ सं शुक्रात्मायां गणेशभोगिनीयां नमः हृद। यादिदक्षपादांतम् 48 ॐ हं प्राणात्मास्यां मेघनादसुभगाभ्यां नमः हृदयादिवामपादांतम् 49 ॐ लं शक्त्यात्मन्यां व्यातिकालरात्रिन्यां। नमः जठरे 50 ॐ शं परमात्मायां गणेश्वरकालिकास्यां नमः मुखे 53 इति सर्वगणेशमंत्रांगभूतविनेशादिकलामातृकान्यासः // एवं कलान्यासं कृत्वा प्रयोगोतन्यासादिकं कुर्यात्॥ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले गणेशमंडले या मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः स्थाप येत् // तथा च // पुष्पाक्षतानादाय स्ववामभागे श्रीगुरुभ्यो नमः // दक्षिणे गणपतये नमः 2 // मध्ये स्वेष्टदेवतायै नमः३ // इति| For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं. म // 91 // तरं०५ नत्वा पीठमध्ये ॐ मं मंडूकाय नमः 4 // ॐ के कालानिरुद्राय नमः 5 // ॐ आँ आधारशक्तये नमः // ॐ कू कूर्माय नमः प० ख०१ ॐ अं अनंताय नमः 8 ॐ पृ पृथिव्यै नमः 9 ॐ श्री क्षीरसागराय नमः 10 ॐ रं रत्नदीपाय नमः 11 ॐ रं रत्नमंडपाय नमः। ग० त० १२ॐ के कल्पवृक्षाय नमः 13 ॐ रं रत्नवेदिकायै नमः१४ ॐ रं रत्नसिंहासनाय नमः१५ इत्युपर्युपरिसंपूज्य॥आग्नेय्याम् ॐ धर्माय नमः 16 नैर्ऋत्यां ॐ ज्ञा ज्ञानाय नमः 17 वायव्ये ॐ व वैराग्याय नमः 18 ऐशान्ये ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः 19 पूर्वे ॐ अंध अधर्माय नमः 20 दक्षिणे ॐ अं अज्ञानाय नमः 21 // पश्चिमे / ॐ अं अवैराग्याय नमः 22 उत्तरे ॐ अं अनैश्वर्याय नमः 23 इति पूजयेत् // ततः पुनः पीठमध्ये // ॐ आं आनंदकंदाय नमः 24 ॐ सं संविन्नालाय नमः 25 ॐ सं सर्वतत्त्वकमलासनाय नमः 26 ॐ अं प्रकृतिमयपत्रेन्यो नमः 27 ॐ वि विकारमय केमरेन्यो नमः 28 ॐ पं पञ्चाशद्वर्णाढ्यकर्णिकान्यो नमः 25 ॐ अं अर्क ) मंडलाय द्वादशकलात्मने नमः३० ॐ मां मोममंडलाय पोडशकलात्मने नमः 31 ॐ वं वह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः 32 ॐ में सत्त्वाय नमः ३३ॐ रं रजसे नमः ३४ॐ तं नमो नमः ३५ॐ आं आत्मने नमः 36 ॐ पं परमात्मने नमः 37 ॐ अं अंतरात्मने नमः 38 ॐ ह्रीं जानात्मने नमः ३९ॐ में मायातत्त्वाय नमः 40 ॐ के कलातत्त्वाय नमः 43 ॐ वि विद्यातत्त्वाय नमः ४२ॐ पं परतत्याय नमः४३ एवं पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत्॥तद्यथा / पूर्व ॐ तीवायै नमः१अग्नये ॐ चालिन्यै नमः२ दक्षिणे ॐ नंदायै नमः३ नैर्ऋत्ये ॐ भोगदायै नमः ४पश्चिम ॐ कामरूपिण्यै नमः 5 वायव्ये ॐ उग्रायै नमः 6 उत्तरे ॐ तेजोवत्यै नमः / ऐशान्ये ॐ सत्यायै नमः 8 पीठमध्ये ॐ विघ्ननाशिन्यै नमः 2. इति पीठशक्तीः संपज्य पात्रासादनं कुर्यात॥अथ पात्रासादनप्रयोगः॥ For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir MAN तत्र पात्रासादनं सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण सविस्तरं कृत्वा अशक्तश्चेत्साधारणं कुर्यात्॥त्र क्रमः॥ तत्रादौ गंधाक्षतादिपूजोपकरणानि स्वदक्षिणपार्थ संस्थाप्य जलार्थ बृहत्पात्रं व्यजनं छत्रादर्शचामराणि वामपार्च स्थापयित्वा कलशस्थापनं कुर्यात्॥अथ कलशस्थापन प्रयोगः।।स्ववामभागे त्रिकोणमंडलं कृत्वा जलेन प्रोक्ष्य त्रिकोणांतर्मायां विलिख्य॥ ॐ ह्रीं आधारशक्त्यै नमः इति संपूज्य ततो मूलेन | नमः इति त्रिपदाधारं प्रक्षाल्य त्रिकोणमध्ये संस्थाप्य तत्र सुदर्शनायास्त्राय फट् इति मंत्रण कलशं प्रक्षाल्य आधारोपरि हस्तव्येन संस्थाप्य रक्तवस्वमाल्यादिना भूपयित्वा मूलेन नमः इति जलेनापूर्य // ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण इहागच्छ इह तिष्ठ // इति वरुगमावाह्य / स्वेष्टदेवं ध्यात्वा गंधपुष्पैः पूजयेत् इति कलशस्थापनम् / अथ शंखस्थापनप्रयोगः / / स्वदक्षिणे कलशोक्तविध्यनुमारेणाधारं संस्थायी ॐ मृदर्शनायास्त्राय फट् // इति शखं प्रक्षाल्य आधारोपरि संस्थाप्य मूलेन नमः इति जलेनापूर्य // प्रणवेन गंधादिभिः संपूज्याभि MOमंत्रयेत् // "ॐ शंखादौ चन्द्रदेवत्यं कुक्षौ वरुणदेवता / / पृष्टे प्रजापतिश्चैवमग्रे गंगा सरस्वती // 1 // त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदे / Meal वस्य चाज्ञया / शंखे तिष्ठति विप्रेन्द्र तस्माच्छंखं प्रपूजयेत् / " इत्यभिमंत्र्य प्रार्थयेत // ॐ त्वं पुरा मागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे॥ निर्मितः सर्वदेवैश्च पांचजन्य नमोस्तुते // 2 // पांचजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात् // " इति प्रार्थयित्वा शंखमुद्रां प्रदर्शयेत् / इति शंखस्थापनम् // अथ बंटास्थापनप्रयोगः // स्ववामभागे घंटा संस्थाप्य "आगमार्थं तु देवानां गमनार्थ तु / रक्षासाम्॥घंटानादं प्रकुर्वीत पश्चाट् घंटां प्रपूजयेत् // 3 // " ॐ भूर्भुवः स्वः गरुडाय नमः। आवाहयामि सर्वोपचारार्थ गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि। इत्यावाह्य / ॐ जगद्धंनिमंत्रमातः स्वाहा // इति मंत्रेण घंटास्थितगरुडं बंटां च मपूज्य // प्रणम्य गरुडमुद्रा For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तरं०५ म० म०प्रदर्शयेत् // इति घंटास्थापनम् / ततः शंखात्सूर्यादिप्रादक्षिण्येन पायााचमनीयमधुपर्कमानार्थ पंचपात्राणि अशक्तश्चेना एकमेव पात्र पू.खं ? संस्थाप्य सामान्यविधिना पूजयेत्॥एवं पूजापात्राणि संपाद्य॥प्रयोगोक्ते यंत्र मूर्ती वा अन्युतारणपूर्वकं प्राणान् प्रतिष्ठापयेत् / अथ प्राणप्र। गतं. तिष्ठाप्रयोगः // आचम्य देशकालौ संकीर्त्यममामुकगणपतिदेवतानूतनयंत्रे (मूर्ती वा) प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये॥इति संकल्प्य अस्य श्रीप्राणप्रल तिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः। ऋग्यजुःसामानि च्छंदांसि क्रियामयवपुःनागाख्या देवता / आँ बीजम्ाह्रीं शक्तिः। क्रौं कीलकमा अस्यां नूतनमंत्र(मूर्ती वा) प्राणप्रतिष्ठापने वितियोगः।इति जलं क्षिपेत्॥करणाछाया आहायरलँबशर्षसहमः सोहं अस्यामुकगणपतेः / / सपरिवारयंत्रस्य (प्रतिमाया वा) पाणा इह प्राणाः पुनः ॐ आँहींकायरलवशेषसहसः सोहँ अस्यामुकगणपतेः मपरिवारयंत्रस्य ( मृर्श) जीव इह स्थितः॥२॥ ॐ आँहींकायरलयशपसहसः सोहं अस्यामुक गणपतेः सपरिवारयंत्रस्य ( मूर्तर्वा ) मवेन्द्रियाणीह स्थितानि / // 3 // ॐ आँहींकोंय (लॅबसपहसः सोहं अस्यामुकगणपतेः सपरिवार यंत्रस्य (मूतर्वा)वाङ्मनस्त्वक्चक्षुः श्रोत्रजिह्वाघ्राणपाणिपादपायूप स्थानि इहैवागत्य मुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा॥४॥ इति प्राणान् प्रतिष्ठाप्य संस्कारसिद्धये पंचदश प्रणवावृत्तीः रुत्वा / अनेनामुकगणपतेः सपरिवारयंत्रस्य ( मूर्तेर्वा ) गर्भाधानादिपंचदशसंस्कारान्संपादयामि इति वदेत् // एवं प्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः // तद्यथा // अथावाहनम् / अक्षतानादाय “देवेश भक्तिसुलभ परिवारसमन्वित // यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावद्देव इहावह // 1 // आगच्छ भगबन्देव स्थाने चात्र स्थितोभव॥यावत्पूजां करिष्यामि तावत्त्वं सन्निधौ भव // 2 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः सः अमुकगणपतिदेवतामावाहयामि // इत्यावा हनम् // 1 // तवेयं महिमामूर्तिस्तस्यां त्वं सर्वगः प्रभो // भक्तिस्नेहसमाकृष्टदीपवत्स्थापयाम्यहम् / / 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir अमुकगगपतिदेव इह तिष्ठ // इति स्थापनम् // 2 // "अनन्या तब देवेश मूर्तिशक्तिरियं प्रभो // सान्निध्यं कुरु तस्यां त्वं भक्तानुग्रहत त्वर // 1 // " मलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतिदेवते इह मन्निहि // इति सन्निधापनम् // 3 // "आज्ञया तब देवेश रुपांभो घि गुगां / / आत्मानंदेकतनं त्वां निरुणभि पितगुरो ॥"मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपदिदेवते इह सन्निरुध्य // इति सन्नि बरोधनम् // 4 // "अज्ञानादुर्मनस्त्वादा वैकल्यात्माधनस्य च // यदपूर्ण भवेत्कृत्यं तदप्यभिमुखो भव // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भर्भवः स्वः अमुकगणपतिदेव इह सम्मुखो भव // इति सम्मुखीकरणम् // 5 // "अभक्तवाङ्मनश्चक्षुःोत्रातिगद्युत // स्वतेजःअपरे णाशु पेष्टितो भव सर्वतः॥1॥” भूलं पठित्वा ॐ भर्भवः स्वः अमुकगणपतिदेव अवगुंठितो भव // इत्यवगुंठनम् // 6 // “यस्य / दर्शनमिच्छंति देवाः स्वाभीष्टसिद्धये // तस्मै ते परमेशाय स्वागतस्वागतं च ते // 1 // " मुलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः। अमुकगणपतये नमः सुस्वागतं समर्पयापि // इति सुस्वागतम् // 7 // " देवदेव महाराज प्रियेश्वर प्रजापते // आसनं दिव्यमीशान दास्येऽहं परमेश्वर // अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोपरः सहतां लोके केवलं स्वामिनं विना // 1 // " मूलं पठिबा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः आसनं समर्पयामि // 8 // इत्यासनं दत्त्वा प्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः // " स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यात्त्वमिहागतः // प्रारुतं त्वं च दृष्ट्वा मां बालवत्परिपालय // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः प्रार्थनां समर्प। यामि नमस्करोमि // इति प्रार्थयेत्॥९॥॥१०॥अथ पाद्यादिपूजाप्रयोगः॥"यक्तिलेशसंपर्कात् परमानंद सम्भवः॥ तस्मै ते चरणाजाय पायं शुद्धाय कल्पयेत् // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः पाद्यं समर्पयामि।। इति पाद्यम् // 11 // “तापत्रय 24 For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir हरं दिव्यं परमानंदलक्षणम् // तापत्रयविनिर्मुक्त तवाय कल्पयाम्यहम् // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः पू० ख०१ इदमयं समर्पयामि // इत्यर्थः // 12 // "वेदानामपि देवाय वेदानां देवतात्मने // आचमं कल्पयामीश शुद्धानां शुद्धिहेतवे॥" मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः आचमनीयं समपर्यामि // इत्याचमनम् // 13 // इत्याचमनं दत्त्वा मधुपर्कपञ्चामृतस्नानादि च| सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कुर्यात् / अशक्तश्चेजलस्नानं मधुस्नानं शुद्धोदकस्नानं च कुर्यात् // तद्यथा // “गंगासरस्वतीरेवापयोष्णी) नर्मदाजलैः / / नापितोऽसि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः जलस्नानं समर्पयामि। इति जलस्नानम् // 14 // "तरुपुष्पसमद्भुतं सुस्वादु मधुरं मधु // तेजःपुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः मधुनानं समर्पयामि // इति मधुस्नानम् 1 // 15 // "गंगासरस्वतीरेवापायोष्णीनर्मदाजलैः // नापितोऽसि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि // इति शुद्धोदकस्नानम् // 16 // एवं स्नानं समपर्म्याचमनं दद्यात् // ततः। “सर्वभूषादिक सौम्ये लोकलज्जानिबारणे // मयैवापादिते तुयं वास सी प्रतिगृह्यताम् // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः रक्तवस्त्रं समर्पयामि // इति रक्तवस्त्रम् ॥१७॥"नवनिस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीतं चोनरीयं गृहाण परमेश्वर // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः यज्ञोपवीतं / समर्पयामि // इति यज्ञोपवीतम् ॥१८॥"श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गंधाढ्यं सुनोमहरम् // विलेपनं सुरश्रेष्ट चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥३॥" मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः गंधं समर्पयामि // अंगुष्ठौ कनिष्ठामूललग्नौ गंधमुद्रा // इति गंधम् / / 19 // “अक्ष For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाताः सुशोभिताः // मया निवेदिता त्या गृहाण परमेश्वर // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुक गणपतये नमः अक्षतान्समर्पयामि // " सर्वांगुलीभिर्दद्यात् इत्यक्षतान् // 20 // “माल्यादीनि मुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो // मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः रक्तपुष्पं समर्पयामि // तर्जन्या। | बंगुष्ठमूललग्ने पुष्पमुद्रा इति पुष्पम् // 21 // एवं पुष्पांतं पूजयित्वा प्रयोगोतावरणपूजां च कृत्वा धपादिपूजनं कुर्यात // // अथ धूपादिपूजाप्रयोगः // फडिति धूपपात्रं संप्रोक्ष्य नम इति गंधपुष्पाभ्यां संपूज्य पुरतो निधाय रं इति वह्निबीजेन उपरि अग्निं| संस्थाप्य तदुपरि दशांगं दत्वा घंटा च नादयन् // "ॐ वनस्पतिरसोद्भतो गंथाढयो गन्ध उत्तमः // आग्रेयः सर्वदेवानां धपोऽयं प्रतिगृह्य ताम् // 1 // " मलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः धूपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य वामभागे धूपपात्रं संस्थाप्य | तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगो धूपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् // इति धपम् // 22 // ततो दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य वर्णाक्षरतंतुभिर्वति निक्षिप्य प्रणबेन | प्रज्याल्य घंटा बादयन् मंत्रं पठेत् // "ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः॥ स बाह्यात्यंतरं ज्योतिर्दापोयं प्रतिगृह्यताम् // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः दीपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य दक्षिणभागे निधाय मध्यमे अंगुष्ठलग्ने दीपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् // इति दीपम् // 23 // अथ नैवेद्यम् // दे बस्याये जलेन चतुरस्र मंडलं कत्या स्वर्गादिनिर्मितं भोजनपात्रं संस्थाप्य तन्म ध्ये मोदकं गुडमिश्रितपायसं वा निधाय ॐ यं इति वायबीजन द्वादशवाराभिमंत्रितार्घजलेन संप्रोक्ष्य मलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिण 1 पुष्पं पचं फलं देवे न च दद्यादधोमुखम् // पुष्पांजली न तद्दोषस्तथा पर्युषितस्य च // For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . . . // 9 // हस्तोपरि तादृशं वाम नैवेद्यनाच्छाद्य ॐ यं इति वायबीजं षोडशधा संजप्य वायुना तद्गतदोषान संशोप्य दक्षिणकरतले ॐ रं इत्यग्नि, प०ख०१ बीजं विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं वामकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्श्य ॐ रं इति वह्निबीजेन षोडशवारं संजप्य तदुत्पन्नाग्निना तद्दोषं दग्ध्वा वामकर तले ॐ वं इति अमृतबीजं विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं दक्षिणकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्खा // पुनः ॐ वं इति सुधाबीजं षोडशवारं जपित्वातरं० 5 तदुत्थामृतधारया प्लावितं विभाव्य मूलमंत्रण प्रोक्ष्य धेनुमुद्रां प्रदर्श्य मूलेनाष्टवाभिमंत्र्य गंधपुष्पान्यां संपूज्य / वामांगुष्ठेन नैवेद्यपात्रं स्पृष्टा दक्षिणकरेण जलं गृहीत्वा " सत्पात्रसिद्धं सुहविविविधानेकभक्षणम् // निवेदयामि देवेश सानुगाय गृहाण तत् // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः सांगाय सपरिवारायामुकगणपतये नमः नैवेयं समर्पयामि इति जलमत्मृज्य अनामामूलयोरंगुष्ठयोगे नैवेद्यमुद्रा तां प्रदर्श येत् // इति नवेद्यम् // 24 // अथांतः पटम् ॥"ब्रह्मेशाद्यैः सरसमभितः सोपविष्टैः समंतासिजद्वालव्यजननिकरैर्वीज्यमानः सखीभिः॥नर्म क्रीडाप्रहसनपरान्पंक्तिभोक्तृनहसन्चै भुक्ते पात्रे कनकघटित षड्रसाश्रीगणेशः // 1 // शालीभक्तं मुपक्वं शिशिरकरसितं पायसापूपसूप / लां पेयं च चोप्यं सितममृतफलं द्वारिकायं सुखायम् // आज्यं प्राज्यं सभोज्यं नयनरुचिकरं राजिकैलामरीचस्वादीयः शाकरा. जीपारकरममृताहारजोपं जुषस्व // 2 // " इत्यंतःपटम् // 25 // "नमस्ते देवदेवेश सर्वतृतिकरं परम् / / अखंडानन्दसंपूर्ण गृहाण जल मुत्तमम् // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः जलं समर्पयामि इति जलम् // 26 // पुनगंडूषार्थ जलं दत्त्वा मूलेन शुद्धाचमनं च दद्यात् // अथ तांबूलम् // "पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् // एलाचूर्णादिभिर्युक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम् // // 1 // " मूलं पठित्वाॐ भूर्भुवःस्वः अमुकगणपतये नमः तांबूलं समर्पयामि // इति तांबूलम् // 27 // अथ फलम् // // 94 // For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir గా నిత్యం "इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव // तेन मे सफलावातिसंवेजन्मनि जन्मनि // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकगणपतयेोधि नमः फलं समर्पयामि // 28 // इति फलं समर्प्य शक्तश्चेत् क्षेत्रादिदक्षिणापर्यंत सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेग दत्त्वा आरात्रि कुर्यात् // अथ करारात्रिकम् // "कदलीगर्भसंभूतं कर्परं च प्रदीपितम् // आरात्रिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव // 1 // इति पठित्वा मूलेन देवोपरि नेत्रादिपादपर्यंत नववार त्रिवारं वा त्रामयेत् घंटा नादयेत // इति कर्पूरारात्रिकम् // 29 // अथ प्रद क्षिणा // “यानि कानि च पापानि जन्मांतरकतानि वै // तानि सर्वाणि नश्यंतु प्रदक्षिणपदेपदे // 1 // " इति मंत्रेण तिनः प्रदक्षिणा दद्यात् // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि // 30 // अथ पुष्पांजलिः // “नानासुगंधाष्पाणि यथाकालोद्भवानि च / / पुष्पांजलिं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर // 3 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः पुष्पांजलिं समपर्यामि // इति पुष्पांजलिः // 31 // अथ साष्टांगप्रणामम् // “प्रमन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहाणवात् // " इति वदन् साष्टांग प्रणामे नाम निवेदयेत् // 32 // तस्तुतिपाठेन देवं स्तुत्वा बद्धाअलिपूर्वकं क्षमापयेत् // "ज्ञानतोऽज्ञानतो वाथ यन्मया क्रियतेऽशिवम्॥ मम कृत्यमिदं सर्वमिति देव क्षमस्व मे // 3 // " अपराधसहस्राणि क्रियतेऽहनिशं मया // दासोहमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर // 2 // अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोऽपरः सहतां लोके केवलं स्वामिनं विना // 3 // भूमौ स्खलितपादानां भूमिरेवावलंबनम् // त्वयि जातापराधानां त्वमेव शरणं शिव // 4 // " इति बद्धांजलिपूर्वकं क्षमाप्य ॥"यदुक्तं यदि भावन पत्रं पुष्पं फलं जलम् // निवेदितं అని అని ఆ పని చేసా For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म च नैवेद्यं गृहाण त्वनकंपया // 1 // " इति प्रार्थ्य देवस्य दक्षिणकरे किंचिज्जलं दत्त्वा पश्चात्सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण मालायाः संस्का प० ख०१ // 95 // रान कुर्यात् // अशक्तश्चेत्साधारणसंस्कारं कुर्यात् // तथा च जपमालामानीय क्वचित्पात्रे वामहस्तेनाच्छाद्य मूलेनायोदकेनायुक्ष्यगत “ॐ मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी / चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मात्त्वं सिद्धिदा भव // 3 // " इत्यनेन गंधपुष्पाभ्यां संपूज्य ततो तरं०५ देवतानिवेदितमोदकं तांबूलं वा स्वयं भुक्त्वा पुनः “अविघ्नं करु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा॥"इति मंत्रण दक्षिणहस्ते मालामादाय हृदये थे। साधारयन् स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि संस्थाप्य ज्येष्ठाण बामयित्वा एकाग्रचित्तो मंत्रार्थ स्मरन् यथाशक्ति मूलमंत्र / वाजपेत॥ “जपांते ॐ त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा मम॥शुभं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्य च देहि मे॥३॥" ॐ ह्रीं सिद्धये नमः॥इति / मालां शिरसि निधाय गोमुखीं रहसि स्थापयेत् नाशुचिः स्पर्शयेत् नान्यं दद्यात् अशुचिस्थाने न निधापयेत् स्वयोनिवप्नां कुर्यात्। ततः कवचस्तोत्रसहस्रनामादिकं पठित्वा पुनः मूलमंत्रस्य ऋष्यादि न्यासं करन्यासं च हृदयादिषडंगन्यासं च कृत्वा पंचोपचारैः। संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् / ततः अघोंदकेन चुलुकमादाय “ॐ गुह्यातिगुह्यगोमा त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्॥सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसा दात्त्वयि स्थितिः // 1 // " ॐ इतः पूर्व प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो जायत्स्वमसुषुप्तितुर्यावस्थासु मनसा याचा कर्मणा हस्तान्यां पद्भया / // 95 // दरेण शिश्ना यत्स्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्वं ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा / मां मदीयं च सकलं श्रीमदमुकगणपतिदेवतायै समर्पयामि नमः // ॐ तत्सदिति ब्रह्मार्पणं भवतु / इति देवदक्षिणकरे जपसमर्पणज दत्त्वा कृताअलिपूर्वकं क्षमापनं कुर्यात् // अथ क्षमापनम् ॥“आवाहन For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir न जानामि न जानामि विसर्जनम् // पूजाभागं न जानामि त्वं गतिः परमेश्वर // 1 // कर्मणा मनसा बाचा त्यत्नो नान्या गतिर्मम // kal अंतश्चरसि भूतानामिष्टस्त्वं परमेश्वर // 2 // अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम // तस्मात्कारुण्यभावेन रक्षस्व परमेश्वर // 3 // शतयोनिसहस्राणां सहस्रेषु व्रजाम्यहम् // तेषु चेष्टाचला भक्तिरच्युतास्तु सदा त्वयि // 4 // गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्यमेव च // आगता सुखसंपत्निः पुण्याच्च तव दर्शनात् // 5 // मंत्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं मुरेश्वर // यत्पृजितं मया देव परिपूर्ण तदस्त गे॥ // 6 // यदक्षरपदावष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ॥तत्सव क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर // 7 // देवो दाता च भोक्ता च देवरूपमिदं जगत्॥ देवं जपति सर्वत्र यो देवः सोहमेव हि // 8 // अमस्व देवदेवेश क्षम्यते भुवनेश्वर // तब पादांबजे नित्यं निश्चला भक्तिरस्तु मे // // 9 // इति कृतांजलिः प्रार्थयित्वा ततः शंखमुद्धत्य देवोपरि चामयित्वा // साधु वासाधु वा कर्भ यद्यदाचरितं मया // तत्सर्व कृपया देव गृहाणाराधनं मम // 1 // इत्युच्चरन देवस्य दक्षिणहस्ते किंचिजलं दत्त्वा प्राग्वदर्थं देवशिरसि दत्त्वा शंखं यथास्थाने निवेश्य मूलेन देवोच्छिष्टनैवेद्यादिकं शिरसि धृत्वा देवभक्तेषु विभज्य स्वयं भक्का बलीत्यादिकं गतसारनैवेद्यं च तदुच्छिष्टभोजिन इति निवेदयेत्॥ अथ विसर्जनम् / गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यं हि ब्रह्मादयो देवा न विदःपरमं पदम् // 1 // इत्यक्षतान्निक्षिप्य | देवं स्वदृदयमध्ये स्थापयेत् // तद्यथा “तिठ तिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यत्र ब्रह्मादयो देवा सर्व तिष्ठति मे हृदि // 1 // इति देवं हृदये संस्थाप्य मानसोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन् यथासुखं विहरेत् // इति गणेशपूजापद्धतिः समाप्ताः // For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir म. म. // 9 // // श्रीगणेशाय नमः // अथ वक्रतुंडगणेशकयचप्रारंभः ॥"मौलिं महेशपुत्रोऽध्याझालं पातु विनायकः॥ त्रिनेत्रः पातु मे नत्रे शूर्पकणा प०ख 1 वतु श्रुती // 3 // हेरंबो रक्षतु घाणं मुखं पातु गजाननः / जिह्वां पातु गणेशो मे कंठं श्रीकण्ठवल्लभः // 2 // स्कंधौ महाबलः पातुगत. विवहा पातु मे भुजौ // करौ परशुभृत्पातु हृदयं स्कंदपूर्वजः / / 3 / / मध्यं लंबोदरः पातु नाभिं सिंदूरभूषितः / / जयनं पार्वतीपुत्रः शतरं०५ सयिनी पातु पाशभृत् / / 4 // जानुनी जगतां नाथो जंये मूषकवाहनः / / पाद पद्मासनः पातु पादायो दैत्यदपहा // 5 // एक दंतोग्रतः पातु पृष्ठे पातु गणाधिपः / / पायोमांदकाहारो दिग्विदिक्ष च सिद्धिदः / / 6 / / बजतस्तिष्ठतो वापि जानतः स्यातोऽन्नतः।। चतुर्थीवल्लभो देवः पातु मे भुक्तिमुक्तिदः // 7 // इदं पवित्र स्तोत्रं च चता नियतः पठेत् // सिंदररक्तः कुसुमधयाइज्यो / लाविनपम् / / 8 / / राजा राजसतो राजपत्नी मंत्री कुलं चलम् / / तस्यावश्यं भवेश्य विनराजप्रसादतः / / 9 / / समंत्रयंत्र यस्ता करे संलिख्य धारयेत् / / धनधान्यसमृद्धिः स्यात्तस्य नास्त्यत्र संशयः॥10॥" अस्य मंत्रः // ऐं क्लीं ह्रीं वक्रतुंडाय हुँ / / "रसलक्षं। मदै काग्न्यः पडंगन्यासपूर्वकम् / / हुत्वा तदंते विधिवदष्टद्रव्यं पयोवृतम् / / 11 // यं काममभिध्यायन कुरुते कर्म किंचन / / तत समय वामोति वक्रतुंडप्रसादतः / / 12 / भृगुप्रणीतं यः स्तोत्रं पठते भूवि मानवः / / भवेदव्याहतैश्वर्यः स गणेशप्रसादतः // 13 // " इति गणेशरक्षाकरं स्तोत्रं समाप्तम् // अथ वक्रतुंडगणेशस्तवराजप्रारंभः // अस्य गायत्रीमंत्रः।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात् // "ॐ कारमाय प्रवदंति संतो वाचः श्रुतीनामपि यं गृणंति // गजाननं देवगणानतांत्रिं भजेहमखदुकतावतंसम् / / // 3 // पादारविदार्चनतत्पराणां संसारदावानलभंगदक्षम् / / निरंतरं निर्गतदानतायतं नौमि विनेश्वरमंबुदाभम् / / 2 / / कृतांगरागं / For Private And Personal use only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवकंकमेन मनालिजालं मदयकमनम् // निवारयंतं निजकर्णतालेः को विस्मरत्पत्रमनंगशत्रोः / / || शंभोर्जटाजूटनिवासि गंगाजलं समानीय करांबुजेन / / लीलाभिरारान्छिवमर्चयंत गजाननं भक्तियुता मजति // // कुमारमुक्ती पुनरात्महेतोः पयोधरी पर्वत राजपुत्र्याः / / प्रक्षालयं करशीकरण मौग्ध्येन तं नागमुखं भजामि // 5 // तया समुद्धृतगजास्यहस्ताये शीकराः पुष्कररंध्रमुक्ताः // व्योमागणे ते विचरंति ताराः कालात्मना मौक्तिकतुल्यभासः // 6 // कीडारते वारिनिधी गजास्ये वेलामतिकामति बारिपूरे // कल्पा बमान परिचिय देवाः कैलासनाथं श्रुतिभिः स्तुति // 7 // नागानने नागकतोनरीये कीडारने देवकुमारः // त्वयि क्षणं काल गति विहाय तो प्रापनः कंटुकतामिनेंदुः // 8 // मदोल्लसत्पंचमुखैरजनमध्यापर्यतं मकलागमार्थम // देवानृषीभक्तजनकमिध हेरंबमा मणमाश्रयामि // 2 // पादांबुजाच्यामतिवामनायां कतार्थयंत कृपया धरित्रीम / / अकारणं कारणमानवाचां तन्नागवत्रं न जहाति। वतः // 10 // येनापितं सत्यवतीसुताय पुराणमालिन्य विषाणकोट्या / तं चंद्रमौलेस्तनयंतपोभिराराध्यमानंदघनं भजामि / / 330 पदं श्रुतीनामपदं स्तुतीनां लीलावतारं परमात्ममृतः / / नागात्मकं वा पुरुषात्मकं वा त्वभेदमाद्यं भज विघ्नराजम् // 12 // पाशांकशोर भनग्दं त्वभीष्टं करैर्दधानं कररंधमुक्तः / / मुक्ताफलाभः पृथुशीकरोघेः सिंचंतमंगं शिवयोर्भजामि // 1 // अनेकमेकं गजमेकदंतं चत न्यरूपं जगदादिबीजम् // ब्रह्मेति यं वेदविदो बदंति तं शंभुसून सततं भजामि // 11 // स्वांकस्थिताया निजवल्लभाया मुखांबुजालोक। नलोलनेत्रम॥स्मेराननाजं मदवेभवेन रुद्धं भजे विश्वविमोहनं तम् // 35 // ये पूर्वमाराध्य गजाननं त्वां सर्वाणि शास्त्राणि पठति पानिपाम् / / त्वत्तो न चान्यत्प्रतिपाद्यमेतैस्तदास्ति चेत्सर्वममत्यकल्पम् // 16 // हिरण्यवर्ण जगदीशितारं कवि पुराणं रविमंडल - For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म० स्थम // गजाननं यं प्रविशति संतस्तत्कालयोगैस्तमहं प्रपद्ये // 17 // वेदांतगीतं पुरुषं भजेहमात्मानमानंदघनं हृदिस्थम् // // 97 // गजाननं यन्महसा जनानां विनांधकारो विलयं प्रयाति // 18 // शंभोः समालोक्य जटाकलापे शशांकखंडं निजपुष्करेण // | स्वभग्नदंतं प्रविचिंत्य मौग्ध्यादाक्रष्टुकामः श्रियमातनोतु / / 19 // विनार्गलानां विनिपातनार्थ यं नारिकेलैः कदलीफलाद्यैः // प्रसादयंते मदवारणास्यं प्रभुं सदाभीष्टमहं अजेयम् // 20 // यज्ञैरनेकर्बहुभिस्तपोभिराराध्यमायं गजराजवक्रम् // स्तुन्यानया ये विधिवत्स्तुति ते सर्वलक्ष्मीनिलया भवति // 21 // इति गणेशस्तवराजः समानः // अथ बक्रतुंडगणेशसहस्रनामस्तो प्रारम्भः // व्यास उवाच // कथं नाम्नां सहस्रं स्वगणेश उपदिष्टवान् / / शिवाय तन्ममाचक्ष्व लोकानुग्रहतत्पर // 1 // ब्रह्मोवाच // देवदेवः पुरारातिः पुरत्रयजयोद्यमे // अनर्चनाद्गणेशस्य जातो विन्नाकुलः किल // 2 // मनमा म विनिर्धार्म्य ततस्तविघ्नकारणम् // महागणपतिं भत्तया समस्यय॑ यथाविधि // 3 // विघ्नप्रशमनोपायमपृच्छदपराजितः // मंतुष्टः पूजया शम्भोर्महागणपतिः स्वयम // 4 // मर्वविब्लैकहरणं सर्वकामफलप्रदम् // ततस्तस्मै स्वकं नाम्नां महमिदमत्रवीत // 5 // Nॐ अस्य श्रीमहागणपतिसहस्रनाममालामंत्रस्य / गणेश ऋषिः। नानाविधानि च्छन्दांसि / महागणपतिर्देवता / गमिति बीजम / तुण्ड मिति शनिः / स्वाहेति कीलकम् / सकलविघ्ननाशनद्वारा महागणपतिप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः // ॐ गणेशऋषये नमः शिरसि // नानाविधच्छन्दम नमः मुखे 2 // महागणपतिदेवतायै नमः हृदि 3 // गं बीजाय नमः गुह्ये 4 // तुण्डशक्तये नमः पादयोः 5 // स्वाहाकीलकाय नमः नासो 6 // विनियोगाय नमः सर्वाग 7 // इति ऋष्यादिन्यामः॥ महागणपतिरुवाच // ॐ गणेश्वगे गणक्रीडो m For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणनाथो गणाधिपः // एकदंष्ट्रो वक्रतुण्डो गजवको महोदरः // 6 // लम्बोदरो धूम्रवर्णो विकटो विघ्ननायकः / / सुमुखो दुर्मुखो बुद्धो विश्नराजो गजाननः // 7 // भीमः प्रमोद आमोदः सुरानन्दो मदोत्कटः॥ हेरम्बः शम्बरः शम्भुर्लम्बकर्णो महाबलः॥८॥ नन्दनो / लम्पटोभीरुमघनादो गणंजयः // विनायको विरूपाक्षो धीरः शूरो वरप्रदः // 5 // महागणपतिर्बुद्धिप्रियः क्षिप्रप्रसादनः // रुद्रप्रियो / गणाध्यक्ष उमापुत्रोऽधनाशनः // 10 // कुमारगुरुरीशानपुत्रो मूषकवाहनः॥ सिद्धिप्रियः सिद्धिपतिः मिद्धः सिद्धिविनायकः॥ 11 // अविनस्तुम्बुरुः सिंहवाहनो मोहिनीप्रियः // कटंकरो राजपुत्रः शालकः मम्मितो मितः // 12 // कृष्माण्डसाममम्भूतिर्दुर्जयो धूर्जयो जयः // भूपतिर्भुवनपतिर्भूतानाम्पतिरव्ययः // 13 // विश्वकर्ता विश्वमुखा विश्वरूपो निधिघृणिः // कविः कवीनामृपभा ब्रह्मण्यो ! ब्रह्मणस्पतिः // 14 // ज्येष्ठराजो निधिपतिनिधिप्रियपतिप्रियः / / हिरण्मयपुरान्तस्थस्मृर्यमण्डलमध्यगः // 15 // कराहतिध्वस्तमिन्धु मलिलः पृषदन्तहुत // उमांककेलिकुतुकी मुक्तिदः कुलपालनः // 16 // किरीटी कुण्डली हारी बनमाली मनोमयः // वैमुख्य हतदैत्यश्रीः पादाहतजितक्षितिः // 17 // सद्योजातः स्वर्णमुञ्जमेखली दुनिमिनहृत् // दुरुस्वमहृत्प्रसहनो गुणिनादप्रतिष्ठितः। 1000 मुरूपः सर्वनेत्राधिवासो वीरासनाश्रयः // पीताम्बरः खण्डरदः खण्डेन्दुकृतशेखरः // 19 // चित्रांकः श्यामदशनो भालचन्द्रश्यतु भुजः // योगाधिपस्तारकस्थः पुरुषो गजकर्णकः // 20 // गणाधिराजो विजयस्थिरो गजपतिर्द्धजी / / देवदेवः स्मरप्राणो दीपको था वायुकीलकः॥२१॥विपश्चिद्वरदो नादी नादभिन्नबलाहकः॥वाराहरदनो मृत्युञ्जयो व्याघाजिनाम्बरः॥२२॥ इच्छाशक्तिधरो देवत्राता दैत्यविमर्दनः॥शम्भुवकोद्भवः शम्भुकोषहा शम्भुहास्यभः ॥२३॥शम्भुतेजाः शिवाशोकहारी गौरीमुखावहः // उमांगमलजो गौरीतेजोभूः For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www. Acharya Shri Kasagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra bath.org अ. म.म. वर्धनीभवः // 21 // यज्ञकायो महानादो गिरिवमा शुभाननः // मर्वात्मा मर्वदेवात्मा ब्रह्ममुझे कक्रपथनिः // 27 // ब्रह्माप० खं० 1 ण्डकुम्भाश्चिद्वयोमभालः मत्यशिरोमहः // जगजन्मलयोन्मेपनिमिषोश्यर्कमोमहक् // 26 // गिरीन्द्रकरदो धम्मा धर्मिष्ठः|| // 98 // मामबंहितः // ग्रह दशनी वाणीजिद्दो बासवनासिकः // 27 // मध्यमंस्थितकरो ब्रह्मविद्यामदोत्कटः // कलाच लांमः सोमार्कयण्टो मदशिरोधरः // 28 // नदीनदर्भुजः सांगुलीकस्तारकानखः // व्योमनाभिः श्रीहृदयो मेरुन पृष्ठोऽर्णवोदरः / 1. // कुश्मिस्थयक्षगंधर्वरक्षःकिन्नरमानुषः // पृथ्वीकटिः सृष्टिलिंगः शेलारुर्दनजानुकः // 30 // पातालजंघो मुनिपात्कालागुष्टस्वयीतनुः।। ज्योतिर्मण्डललागलो हृदयालातनिश्चलः // 33 // हृत्पनकर्णिकाशाली वियत्केलिमरोवरः॥ मद्भक्तध्याननिगडः पूजावारिनिवारितः // 32 // प्रतापी कश्यपसुतो गणपो विष्टपी बली // यशम्बी धार्मिकः स्वोजाः प्रथमः प्रमथे| श्वरः // 33 // चिंतामणिदीपपतिः कल्पद्रुमवनालयः // रत्नमंडपमध्यस्थो रत्नसिंहासनाश्रयः // 34 // तीवाशिरोधृतपदो ज्वालि नीमौलिलालितः // नन्दानन्दितपीठश्री गदो भूषितामनः // 35 // सकामदायिनीपीठःस्फुरदुग्रामनाश्रयः // तेजोवतीशिरोरत्न सत्या नित्यावतंमितः // 36 // सविघ्ननाशिनीपीठः मर्वशक्त्यम्बुजाश्रयः // लिपिपद्मासनाधारो बनियामत्रयाश्रयः // 37 // उन्नतप्रपदागृढगुल्फसंवृतपाजिकः॥पीनजंघः श्लिष्ट जानुः स्थूलोरुः प्रोन्नमत्कटिः॥३८॥निम्ननाभिः स्थूलकुक्षिः पीनवक्षा वृहटुजः // पीनस्कंधः कम्बुकंठो लम्बोष्ठो लम्बनासिकः // 39 // भनयामरदस्तुङ्गमव्यदन्तो महाहनुः॥ ह्रस्वनेत्रत्रयः शूर्पकों निबिडमस्तक॥ IAS 40 // स्तबकाकारकम्भायो रत्नमालिनिरंकुशः / / सर्पहारकटीसूत्रः सर्पयज्ञोपवीतवान // 41 // मापकोटीरकटकः मर्पये // 98 // For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir यकागदः / मर्पकक्ष्योदराबन्धः सप्र्पराजोनरीयकः / / 42 // लो ताम्बरथरो कमाल्यविरूपणः / / र तेहगो ककरो रक्त ताल्बोष्ठपल्लवः।। 43 // श्वेतः श्वेताम्बरधरः श्वेतमाल्यविभवणः // खेतातपत्ररुचिरः श्वेत चामरवीजितः // 14 // मदियवसम्पूर्णः सर्वलक्षणलक्षितः // मर्वाभरणशोभाढयः सर्वशोनाममन्वितः // 45 // सर्वमंगलमांगल्यः नर्वकारणकारणम् ॥गर्दककरशाङ्गी पृजपूरी गदाधरः॥४६॥ इक्षुचापधरशूली चक्रपाणिम्सरोजभृत्॥पाशी धृतोत्पलः शालिमअरीभृत्स्वदन्तभृत् / / 47 // कल्पवल्लीधरो विश्वाभय / वादेककरो वशी // अक्षमालाधरो ज्ञानमुद्रावान्मुद्गगयधः // 48 // पूर्णपात्री कम्बुधरो विवृतालिममृहकः / / मातुलुंगधरश्तकलिकाम कुठारवान् // 49 // पुष्करस्थस्वर्णघटीपूर्णरत्नाभिवर्षकः // भारतीसुंदरीनाथो विनायकगतिप्रियः / / 1.0 // महालक्ष्मीप्रियतम सिद्धलक्ष्मीमनोरमः // रमारमेशपूर्वागो दक्षिणामामहेश्वरः // 11 // महीवराहवामांगो रनिकन्दर्पपश्चिमः // आमोदमोदजननः सप्रमोदप्रमोदनः // 12 // मामविता ममिद्धश्रीधिमिद्धिप्रवर्तकः / / दनौमुख्यसुमखः कांतिकन्दलिताश्रयः // 53 / / मदना Keवत्याश्रितांत्रिः कृतदौर्मुख्यदुर्मुखः // विनमम्पल्लबोपन्नः भवान्निद्रमदद्रवः॥ ५४॥विघ्नकन्निन्नचरणो द्राविणीशक्तिसत्कृतः। तीबाप मन्ननयनो ज्वालिनीपालिने कदक् // 55 // भोहिनीमोहनो भोगदायिनीकांतिमंडितः। कामिनीकान्तवनश्रीरधिष्ठितवमुन्धरः॥५६॥ वसुंधरामदोन्नद्धमहाशंखनिधिः प्रभुः // नमसमतीमीलिमहापानिधिप्रभुः।।१७ / / सर्वसद्गुरुममेव्यः शोचिप्केशहृदाश्रयः // ईशानमुद्धा देवेन्द्रशिखः पवननन्दनः // 18 // अप्रत्ययनयनो दिव्याखाणाम्प्रयोगवित् // ऐरावतादिसर्वाशावारणावरणप्रियः // 59 // बनाया खपरीवारो गणचण्डसमाश्रयः / / जयाजयपरीवागे विजयाविजयावहः // 10 // अजिताजिनपादाजो नित्यानित्यावतंमितः॥ विला For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० ख०१ // 99 // सिनीकतोल्लासः शाण्डिसौन्दर्यमण्डिनः॥६१॥अनंतानन्तसुखदः सुमंगलमुभंगलः॥ इच्छाशक्तिज्ञानशक्तिक्रियाशक्तिनिषेवितः॥६२॥ हामभगासंश्रितपदो ललिताललिताश्रयः // कामिनीकामनः काममालिनीकेलिलालितः॥६३॥सरस्वत्याश्रयो गौरीनन्दनः श्रीनिकेतनः।। गुरुगुप्तपदो वाचा सिद्धो वागीश्वरीपतिः॥६४॥नलिनीकामुको वामारामो ज्येष्ठामनोरमः॥रौद्रीमुद्रितपादाब्जो हूबीजस्तुङ्गशक्तिकः६५॥ तरं०५ विश्वादिजननत्राणः स्वाहाशक्तिः सकीलकः // अमृताब्धिकतावासो मदधूर्णितलोचनः ॥६६॥उच्छिष्टगण उच्छिष्टगणेशो गणनायकः।। सर्वकालिकसंसिद्धिनित्यशैवो दिगम्बरः / / 17 / / अनपायोनन्तदृष्टिरप्रमेयोजरामरः / / अनाविलोप्रतिरथो ह्यच्युतोऽमृतमक्षरम् / / 68 // अप्रतक्योऽक्षयोऽजय्योऽनाधारोऽनामयोऽमलः // अमोधसिद्धिरद्वैतमघोरोऽप्रमिताननः / / 69 // अनाकारोऽधिभूम्यग्निबलग्नोऽव्यक्तल अणः / / आधारपीठ आधार आधाराधेयवर्जितः / / 70 // आखुकेतन आशापूरक आखुमहारथः / / इक्षुसागरमध्यस्थ इक्षुभक्षण लालमः / / 71 / / इक्षुचापातिरेकीरिक्षुचापनिषेवितः // इन्द्रगोपसमानश्रीरिन्द्रनीलसमद्युतिः / / 72 / / इन्दीवरदलश्याम इन्दुमा मण्डलनिर्मलः / / इध्मप्रिय इडाभाग इडाधामेन्दिराप्रियः / / 73 / / इक्ष्वाकुविनविध्वंसी इतिकर्तव्यतेप्सितः / / ईशानमालिरीशान ईशानसुत ईतिहा // 74 / / ईषणात्रयकल्पान्त ईहामात्रविवर्जितः / / उपेन्द्र उडुभृन्मौलिरुण्डरकवलिप्रिय / / 75 // उन्नतानन उत्तुङ्ग उदारत्रिदशायणीः // ऊर्जस्वानृष्मलमद ऊहापोहदुरासदः / / 76 // ऋग्यजुःसामसंभृतिद्धिसिद्धिप्रवर्तकः / / ऋजुचिक सुलभ ऋणत्रयविमोचकः // 77 // लुप्तविघ्नः स्वभक्तानां लुप्तशक्तिः सुरद्विषाम् // लुनश्रीविमुखार्चानां लूताविस्फोटनाशनः॥७८॥ एकारपीठमध्यस्थ एकपादकतासनः // एजिताखिलदैत्यश्रीरोजिताखिलमंश्रयः // 79 // ऐश्वयंनिधिरैश्चर्यमहिकामुष्मिकप्रदः // IS99 // For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दरम्मदसमोन्मेष ऐरावतनिभाननः // 80 // ओंकारवाच्य आंकार ओजस्यानोपधीपतिः // औदयनिधिराद्धत्यधुर्य औन्नत्यनिः स्वनः // 81 // अडशः सुरनागानामशः सुरविद्विषाम् // असमस्तविमर्गा मां पदेषु परिकीर्तितः // 82 // कमण्डलुधरः कल्पः पी कलभाननः // कर्मसाक्षी कर्मकर्ना कर्माकर्मफलप्रदः / / 83 // कदम्बगोलकाकारः कृष्माण्डगणनायकः / कारुण्यदेहः / कपिलः कथकः कटिसूत्रभृत् // 84 // सर्वः खड्गप्रियः खड्गवातान्तस्थः सनिर्मलः / बल्बाटशृङ्गानिलयः खटवांगी न्यदुरा सदः // 85 // गुणाड्योगहनो गस्थो मद्यपद्यसुधार्णवः // गद्यगानप्रियो गजों गीतगीर्वाणपूर्वजः // 86 / / गह्याचाररतो गुह्यो| गुह्यागमनिरूपितः // गुहाशयो गृहाब्धिस्थो गुरुगम्यो गुरोर्गुरुः / / 87 // षण्ापरिकामाली घटकुम्भो बटोदरः // चण्डचण्डे | श्वरसुहृच्चण्डेशश्चण्डविक्रमः // 88 // चराचरपतिश्चितामणिश्चर्वणलालसः / / छन्दश्छन्दोवपुश्छन्दो दलक्ष्य छन्दविग्रहः // 81. // जगद्योनिर्जगत्साक्षी जगदीशो जगन्मयः // जपो जपपरो जप्यो जिहासिंहासनप्रभुः // 10 // अलज्झल्लोल्लसद्दानझङ्कारित्रमराकुलः / / टङ्कारस्फारसंरावष्टकारिमणिनपुरः // 11 // उदयी पल्लवान्तस्थः मर्वमंत्रकमिद्धिदः / / डिण्डिमुण्डो डाकिनीशो डामरो डिण्डिम || प्रियः // 92 / / ढक्कानिनादमुदितो दौको दुण्डिविनायकः / / नन्यानां परमं तत्वं तत्वम्पदनिरूपितः / / 13 / / तारकांतरसंस्थानस्ता रकस्तारकान्तकः / स्थाणुः स्थाणुप्रियः स्थाता न्यावरञ्जङ्गमञ्जगत् / / 1.4 // दक्षयज्ञप्रमथना दातादानवमोहनः / / दयावान / दिव्यविभवो दण्डभृद्दण्डनायकः // 95 / / दन्तप्रभिन्नानमालो दैत्यवारणदारणः / / दंट्रालग्नदिपवटो देवार्थनृगजाकृतिः // 16 // धनधान्यपतिर्धन्यो धनदो धरणीधरः / / ध्यानकप्रकटो ध्येयो ध्यानं ध्यानपरायणः॥१.७॥ नन्धो नन्दिप्रियो नादो नादमध्यप्रतिष्ठितः॥ For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं० म निष्कलो निर्मलो नित्यो नित्यानित्यो निरामयः // 28 // परं व्योम परं धाम परमात्मा परम्पदम् // परात्परः पशुपतिः पशुपाशवि पू०ख 1 ॥१००मोचकः // 99 // पूर्णानंदः परानन्दः पुराणपुरुषोत्तमः // पद्मभमन्ननयनः प्रणताज्ञानमोचनः // 10 // प्रणामप्रत्ययातीतः प्रणतागतं. ऋतिनिवारणः // फलहस्तः फणिपतिः फे कारः फाणितप्रियः / / 30 // बाणार्चितांधियुगलो बालकेलिकुतूहली // ब्रह्म ब्रह्माचिं, तरं०५ तपदा ब्रह्मचारी बृहस्पतिः।। 102 // बृहत्तमो ब्रह्मपरो ब्रह्मण्यो ब्रह्मविलियः // बृहन्नादायचीत्कारो ब्रह्माण्डवालिमेखलः // // 303 / / भृक्षेपदत्तलक्ष्मीको भग्गा भद्रो भयापहः // भगवान भक्तिसुलतो भूतिदो भूतिभूषणः // 104 // भव्यो भूतालयोन भोगदाता मध्यगोचरः / / मंत्री मंत्रपतिमंत्री मदमनो मनोरमः / / 05 / / मेखलावान्मन्दगतिमतिमान्कमलेक्षणः / / महाबलो महावीर्यो महामाणो महामनाः // 106 // यज्ञो यज्ञपतिर्यजगोमा यज्ञफलप्रदः / / यशस्कगे योगगम्यो याज्ञिको याजकप्रियः॥ 107 / / रसो रसप्रियो रस्यो रञ्जको रावणाचितः / / रक्षो रक्षाकरो रत्नगर्भा गज्यसुखप्रदः // 108 // लक्ष्यालक्षप्रदो। लक्ष्यो लयस्थो लड्डुकप्रियः // लानप्रियो लास्यपरो लाभकल्लोकविश्रुतः / / / 09 // वरेण्यो वह्निवदनो बन्यो वेदांतगोचरः / / विकर्ता विश्वतश्चक्षुविधाता विश्वतोमुखः // 10 // वामदेवो विश्वनेता वजी वज्रनिवारणः // विश्ववंधनविष्कम्भाधारो विश्वेश्वरः प्रभुः // 13 // शब्दब्रह्म शमप्राप्यः शम्भुशक्तिगणेश्वरः // शास्ता शिखायनिलयः शरण्यः शिखरीश्वरः॥१२॥ पट्टतुकुसुमत्रग्वी // 10 // षडाधारः षडक्षरः // संसारवैद्यः सर्वज्ञस्सर्वभेषजोषजम् // 13 // मृष्टिस्थितिलयक्रीडः सुरकुंजरभेदनः // सिन्दरितमहाकुंभस्सद / / सद्यक्तिदायकः // 114 // माक्षी समृद्रमथनः स्वसंवेद्यः स्वदक्षिणः / त्वतंत्रः सत्यसंकल्पस्सामगानरतस्मुखी // 15 // मो For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavn Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir हम्तिपिशाचीशा हवनं हव्यकव्यभुक् // हव्यं हुतप्रिया हपों हृल्लेखामंत्रमध्यगः // 16 // क्षेत्राधिपः अमानर्ता क्षमापरपरायणः॥ क्षिप्रक्षेमकरः अमानन्दः क्षोणीसुरद्रमः // 17 // धर्मप्रदोर्थदः कामदाता सौभाग्यवर्द्धनः // विद्यापदी विभवदो भुक्तिमतिपदा यकः // 18 // आनिरूप्यकरो वीरः श्रीप्रदो विजयप्रदः // मईवश्यकरो गर्भदोषहा पुत्रपौत्रदः // 111. // मेधादः कीर्तिदः / शोकहार्ग दौर्भाग्यनाशनः // श्रीशोकहारी दौर्भाग्यनाशनम्मर्वशानिभृत // 120 // प्रतिवादिमुखम्तम्नो हृष्टचिनप्रसादनः // पगभिचारशमनो दुःखभञ्जनकारकः / / 22 // लवश्रुटिः कला काटा निमेषस्तत्परः अणः / / घटी मुहूर्तः प्रहगे दिवा नक्तमहर्निशम 102 // पक्षो मामोऽयनं वर्ष युगङ्कल्पो महालयः।। राशिम्तारा तिथियोंगो बारः करणमशकम // 23 // लग्नं होग कालचक्र ममम्ममर्पयो प्रवः / / राहमन्दः कविजीबो बुधो भौष शशी रविः।।१२कालस्मृष्टिः स्थितिविलं स्थायरं जङ्गमञ्च यत।।भरापानिमा रुयोमाहङ्गतिः प्रकृतिः पुमान ।।१२५ब्रह्मा विष्णुशिवो रुद्र ईश्शक्तिम्मदाशिवः।। त्रिदशाः पितरः सिद्धा यक्षरक्षांमि किन्नगः / // 26 // साध्या विद्याधग भृता मनुष्याः पशवः खगाः॥ ममुद्रास्मरितीला भूतभव्यम्भवोद्भवः॥ 27 // मांग्व्यम्पातअलं योगः गणानि अतिः स्मृतिः / / वेदाङ्गानि सदाचारी मीमामा न्यायविस्तरः।।१२८||आयुर्वेदो धनुदा गान्धर्वकाव्यनाटकम / / बखान भागवतं मात्वतम्पाञ्चरात्रकम् // 12 // शवम्पाशुपतकालमुखं भैरवशासनम् // शाक्तं वैनायक मौरं जनमाईतमंहिता // 130 // सदमद्यक्तमव्यक्तं मचेतनमचेतनम // बन्धा मोक्षः मुखम्भोगोऽयोगस्मत्यमणुमहान // 133 / / स्वास्ति हुं फट् स्वधा स्वाहा श्रीषट वोषड्वषण्नमः / / ज्ञानविज्ञानमानन्दो बोधस्मंविच्छमो यमः // १३२॥एक एकाक्षराधार एकाक्षरपरायणः / / एकामधीरेकबीर एकाने For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं०म० // 10 // कस्वरूपधृक् // 133 // द्विरुपो द्विभुजो यक्षो द्विरदो द्वीपरक्षकः // द्वैमातुरो द्विवदनो द्वन्द्वातीतो द्वयातिगः // 134 // त्रिधामापू० खं० 1 त्रिकरखेता त्रिवर्गफलदायकः // त्रिगुणात्मा त्रिलोकादिस्विशक्तीशविलोचनः // 135 // चतुर्बाहुश्चतुर्दन्तश्चतुरात्मा चतुर्मुखः॥ ग. चतुर्विधोपायमयश्चतुर्वर्णाश्रमाश्रयः // 136 // चतुर्विधवचोवृत्तिपरिवर्तप्रवर्तकः // चतुर्थीपूजनप्रीतश्चतुर्थीतिथिसंभवः // 137 // पञ्चाक्षरात्मा पश्चात्मा पश्चास्यः पञ्चकत्यकृत् // पंचाधारः पञ्चवणः पञ्चाक्षरपरायणः॥१३८॥पञ्चतालः पञ्चकरः पञ्चप्रणवभावितः॥ पञ्चब्रह्ममयस्पृर्तिः पञ्चवारणवारितः॥१३९॥पंचायप्रियः पञ्चबाणः पञ्चशिवात्मकः॥षट्कोणपीठः पट्चक्रधामा पयन्थिोदकः१४० षडध्वश्चान्तविधती पडंगुलमहादः // षण्मुखः षण्मुखचाता षशक्तिपरिवारितः॥ 14 // पवैरिवगविध्वंसी पम्मिायभञ्जनः॥ पटतर्कदुरः षटकर्मनिरतः षड्रसाश्रयः // 142 // समपातालचरणः मतदीपोरुमण्डलः // मनस्वलॊकमुकुटः मतसतिवरप्रदः 143 // मतांगराज्यमुखदः समर्षिगणमण्डितः / / मपच्छन्दोनिधिः सतहोता सतस्वराश्र : 144 // मताब्धिकेलिकामारः। सममातृनिषेवितः // समच्छन्दोमोदमदम्मप्रच्छन्दो मखप्रभुः // 145 // अष्टमूर्तियेयमूर्तिरष्टवकृतिकारणम // अष्टांगयोगफल भरष्टपात्राम्बुजासनः // 146 // अष्टशक्तिसमृद्धश्रीरप्टैश्वर्यप्रदायकः // अष्टपीठोपपीठश्रीरष्टमातृसमावृतः // 147 / / अष्टभैरवमेव्यो / वसुवन्द्योऽयमूर्तिभृत् // अष्टचक्रस्फुरन्मृतिरष्टद्रव्यहविःप्रियः / / 148 // नवनागासनाध्यासी नवनिध्यनुशासिता / / नवद्वारपुराधारो नवद्वारनिकेतनः // 141 // नवनारायणस्तुत्यो नवदुर्गानिषेवितः / / नवनाथमहानाथा नबनागविभूषणः // 15 // नवरत्नविचि // 10 // बांगो नवशक्तिशिरोधृतः // दशात्मको दशभुजो दशदिक्पतिवन्दितः // 151 // दशाध्यायो दशप्राणो दशेन्द्रियनियामकः // For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दशाक्षरमहामंत्रो दशाशाव्याधिविग्रहः // 152 // एकादशादिभी रुद्रः स्तुत एकादशाक्षरः // द्वादशोदण्डदोईण्डो द्वादशान्तनिके तनः // 15.3 त्रयोदशभिदा भिन्नविश्वेदेवाधिदैवतम् // चतुर्दशेन्द्रवरदश्चतुर्दशमनुप्रभुः।। 154 / / चतुर्दशादिविद्याढ्यश्चतुर्दशजगत्प भुः।। सामपञ्चदशः पञ्चदशीशीतांशुनिर्मलः॥१५५।। षोडशाधारनिलयः षोडशस्वरमातृकः॥षोडशान्तपदावासः षोडशेन्दुकलात्मकः / 156 / / कलासनदशीसप्तदशः सनदशाक्षरः // अष्टादशद्वीपपतिरष्टादशपुराणकत / / 157 / / अष्टादशौषधीसृष्टिरष्टादशविधिः स्मृतः // अष्टादशलिपिव्यष्टिसमष्टिज्ञानकोविदः // 158 // एकविंशः पुमानेकविंशत्यंगुलिपल्लवः // चतुर्विंशतितत्त्वात्मा पञ्चविंशा ख्यपूरुषः // 159 / / सप्तविंशतितारेशः सतविंशतियोगलत // द्वात्रिंशद्धैरवाधीशश्चतुस्त्रिंशन्महाह्रदः // 160 // पत्रिंशनत्त्व सम्भूतिरष्टत्रिंशत्कलातनुः // नमदकोनपञ्चाशन्मरुद्वर्गनिरर्गलः // 16 // // पश्चाशदक्षरश्रेणीः पंचाशद्रविग्रहः // पञ्चाशद्विष्ण शक्तीशः पञ्चाशन्मातृकालयः // 162 // द्विपञ्चाशद्वपुश्श्रेणीस्विषष्टयक्षरसंश्रयः॥ चतुष्पष्टयणनिर्णता चतुःषष्टिकलानिधिः / / 163 // चतुःषष्टिमहासिद्धयोगिनीवृन्दवंदितः // अष्टषष्टिमहातीर्थक्षेत्रभैरवनावनः॥१६४॥ चतुर्णबतिमंत्रात्मा षण्णवत्यधिकः प्रभुः॥शतानन्दः शतधृतिः शतपत्रायतेक्षणः // 165 // शतानीकः शतमुखश्शतधारवरायुधः // सहस्रपत्रनिलयस्महस्रफलभूषणः // 166 // महा। शीर्षा पुरुषः सहस्राक्षस्महस्रपात / / सहस्रनामसंस्तुत्यः सहस्राक्षबलापहः // 167 / / दशसाहस्रफणिभृत फणिराजकतासनः // // अष्टाशीतिसहस्रोधमहपिस्तोत्रयंत्रितः // 168 // लक्षाधीशप्रियाधारो लक्षाधीशमनोमयः // चतुलनजपप्रीतश्चतुर्लक्षप्रकाशितः // 169 // चतुराशीतिलक्षाणाञ्जीवानां देहसंस्थितः // कोटिसूर्यप्रतीकाशः कोटिचन्द्राशुनिर्मलः // 170 // शिवाभवाध्युष्टकोटि For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir विनायकधुरन्धरः॥ मनकोटिमहामंत्रमंत्रितावयवद्युतिः // 17 // त्रयस्त्रिंशत्कोटिमुरश्रेणीप्रणतपादुकः // अनंतदेवतामेव्योप० खं० 1 ह्यनन्तमुनिसंस्तुतः // 17 // अनन्तनामानन्तश्रीरनन्तानन्तमोग्यदः // इति वैनायकं नाम्नां महमिदमीरितम् // 17 // इदं ब्राह्म मुहूर्ते वै यः पठेत्प्रत्यहं नरः // करस्थं तम्य मकलमैहिकामुष्मिकं मुखम् // 174 // आयुरारोग्यमश्वर्य धर्मः शौर्य बलं यशः // मेधा प्रना धृतिः कातिस्मौभाग्यमतिरूपता // 175 // मत्यं दया अमा शांतिक्षिण्यं धर्मशीलता // जगसंयमनं विश्व / मंवादा वादपाटवम॥ 176 // मनापाण्डित्यमादाय गाम्भीयं ब्रह्मवर्चसम // औन्नत्यं च कुलं शीलं प्रतापो वीर्यमार्यता॥ 177 // नानं विज्ञानमास्तिस्यं धैर्य विश्वातिशायिता // धनधान्याभिवृद्धिश्च मकदस्य जपावेत / / 178 // वश्यं चतुर्विधं नृणां जपादस्य प्रजायते ॥रानो राजकलत्रम्य राजपुत्रस्य मंत्रिणः // 17 // जप्यते यस्य वश्यार्थे म दामस्तम्य जायते // धर्मा र्थकाममोक्षाणामनायासेन माधनम् // 180 // शाकिनीडाकिनीरक्षोयक्षोरगभयापहम् // साम्राज्यमुखदं चैव समस्तरिपुमई नम् // 181 // ममम्तकलहध्वंमि दग्धबीजप्ररोहणम // दुःस्वमशमनं कृद्धस्वामिचिनप्रमादनम् // 182 // षटकर्माष्टमहामिद्धि त्रिकालज्ञानमाधनम् // परकन्योपशमनं परचक्रविमर्दनम् // 183 // मंग्रामग्ङ्गसर्वेषामिदमेकं जयावहम // एवं बंध्यात्वदोषनं गर्भरक्षेककारणम् // 181 // पकाते प्रत्यहं यत्र स्तोत्रं गणपतेरिदम् // देशे तत्र न दुर्तिक्षमीतयो दुरितानि च // 185 // ना तद्गेहं जहाति श्रीयंत्रायं जप्यते स्तवः // श्रयकुष्ठप्रमेहाशभिगन्दरविषचिकाः // 186 // गुल्म प्लीहानमाध्मानमतिमारं महोदरम् // कामं श्वासमृदावर्त शूल शोकादिसम्भवम् // 187 / / शिरोरोग वमिं हिक्कां गण्डमालामरोचकम् // वातपिनकफद्वात्रिदोषजनि // 102 // For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www. bath.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir तज्वरम् // 188 // आगंतुविषमं शीतमृष्णं चैकाहिकादिकम् // इत्याद्युक्तमनुक्तं वा रोग दोषादिसम्भवम् // 189 // सर्व प्रशमयत्याशु स्तोत्रस्यास्य महजपात // मत पाठेन संसिद्धिः वीद्रपतितैरपि // 19 // महननाममंत्रायं जाव्यस्तु शुभातये // महागणपतेः स्तोत्रं मकामः प्रजपन्निदम् // 11.1 / इच्छया मकलान्भोगानुपभुज्येह पार्थिवान // मनोग्थफलैदिव्यैव्योमयानैर्मनो नारमैः // 192 // चन्द्रेन्द्रनास्करोपेन्द्रब्रह्मरुद्रादिमनन // कामरूपः कामगतिः कामतो विचरनिह // 113 // भुक्त्वा यथेष्मिता / भोगानभीष्टमह बन्धुभिः // गणेशानुचरो भूत्वा महागणपतेः प्रियः // 194 // नन्दीश्वरादिमानन्दी नन्दितः भकलंगणैः / / शिवान्यां कृपया पत्रनिविशेष च लालितः // 195 // शिवभक्तः पर्णकामा गणेश्वरवरात्पुनः // जानिम्म। धर्मपरः सार्वभौमो जिजायते // 196 // निष्कामस्तु जपन्नित्यं नत्या विनेशतत्परः // योगमिद्धिं परां प्राप्य ज्ञानगम्यमंस्थितः / / 157 // निरंतगेदितानन्दे परमानन्दसंविदि // विश्वानीण परे पारे पुनरावृनिवर्जिते // 198 // लीना वैनायके चाम्नि रमते नित्यनिवृतः // यो नामभिनेदेतेश्र्चयेत्पूजयेन्नरः // 199 // गजानो वश्यतां यांति रिपो यांति दासताम् // मंत्रा मिध्यंनि मपि मुलभास्तस्य सिद्धयः // 200 // मूलमंत्रादपि स्तोत्रमिदं प्रियतरं मम // नभम्ये मामि शुकायां चतुथ्य मम जन्मनि // 201 // वाभिनमितिः पूजां तर्पगं विधिवचरेत् // अष्टद्रव्यविशेषेण जुयादनिसंयुतः // 202 // तस्येप्सितानि मणि मिद्धयंत्यत्र न संशयः // इदं प्रजन पठितं पाठितं श्रावितं श्रुतम् / / 203 // व्याकृतं चर्चितं ध्यातं विमृष्टभनिनन्दितम् // इहामुत्र च मवेषां विश्वैश्वयंप्रदायकम HI // 204 // स्वच्छन्दचारिणाप्येप येन मंधार्यते नवः // संरक्ष्यते शिवोतर्गणरध्यष्टकोटिभिः // 205 // पुस्तकें लिखितं स्तोत्र For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 103 // म०म०मंत्रभूतं प्रपूजयेत् // तत्र सर्वानमा लक्ष्मीः मन्निधने निरंतरम् // 206 // दानरशेपरखिलैव्रतैश्च तीर्थरशेषैस्सकलैमखैश्च // न तत्फलं विंदति यद्गणेशमहस्रनाम्नां स्मरणेन सद्यः // 207 // एतन्नाम्नां सहस्रं पठति दिनमणौ प्रत्यहं प्रोज्जिहाने सायम्मध्यन्दिने वा त्रिषवण मथवा मंततं वा जना यः // स स्यादैश्चर्यधुर्म्यः प्रभवति वचमा कीर्तिमुच्चैस्तनोति प्रत्यूहं हंति विश्वं वशयति सुचिरं बर्द्धते पुत्रपौत्रैः // 208 // अकिंचनोप्येकचित्तो नियतो नियताशनः // जपेनु चतुरो मासान्गणेशाचनतत्परः // 209 // दरिद्रतां समुन्मूल्य समज मानुगामपि // लभते महतीं लक्ष्मीमित्याज्ञा पारमेश्वरी // 210 // आयुष्यं वीतरोगं कुलमतिविमलं सम्पदश्चातदानाः कीर्ति नित्यावदाता भणितिरभिनवा कांतिरव्याजभव्या // पुत्रास्मतः कलत्रं गुणवदनिमतं यद्यदेतच्च सत्यं नित्यं यः स्तोत्रमेतत्पठति गणपते स्तस्य हस्ते समस्तम् // 211 // ॐ गगंजयो गणपतिहरंबा धरणीधरः॥ महागणपतिर्लक्षपदः क्षिप्रप्रसादनः // 212 // अमोघ सिद्धिरमितो मंत्रश्चिंतामणिनिधिः / / सुमंगलो बीजमाशापूरको वरदः शिवः // 213 // काश्यपो नंदनो बाचामिद्धो दुढिविनायकः॥ मोदकैरेभिरत्रैकविंशत्या नामभिः पुमान् // 214 // यः स्तौति मद्तमना ममाराधनतत्परः।। स्तुतो नाम्नां सहस्रेण तेनाहं नात्र संशयः // 215 नमोनमस्सरवरपूजितांघये नमोनमो निरुपममंगलात्मने // नमोनमो विपुलकरैकसिद्धये नमोनमः करिकलभाननाय ने S // 216 // किंकिणिगणरणितस्तवचरणः प्रकटितगृरुमतिचरितविशेषः // मदजललहरीकलितकपोलः शमयतु दुरितं गणपति नामा // 217 // इति श्रीवक्रतुंडगणेशसहस्रनामस्तोत्रं समातम् // अथ वक्रतुंडशतनामस्तोत्रप्रारंभः // गणेश्वरो गणक्रीडो महागणपतिस्तथा // विश्वकर्ता विश्वमुखो इजयो धर्जयो जयः // // स्वरूपः सर्वनेत्राधिवासो वीरासनाश्रयः // योगाधिपस्तार // 10 For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कस्थः पुरुषो गजकर्णकः॥२॥ चित्रांकः श्यामदशनो भालचद्रश्चतुर्भुजः // शंभुतेजा यज्ञ कायः सर्वात्मा मामबंहितः // 3 // कुलाचलांसो व्योमनाभिः कल्पद्रुमवनालयः // निम्ननाभिः स्थलकुक्षिः पीनवक्षा बृहद्भुजः // 4 // पीनस्कंधः कंबुकण्ठो लम्बोटो लंबनासिकः / सर्वावयवसम्पूर्णः सर्वलक्षणलक्षितः॥ 5 // इश्चापधरः शूली कांतिकंदलिताश्रयः // अक्षमालाधरो ज्ञानमुद्रावान |विजयावहः // 6 // कामिनीकामनः काममालिनीकेलिलालितः // अमोघसिद्धिराधार आधाराधेयवर्जितः // 7 // इन्दीवरदलश्याम इन्दुमंडलनिर्मलः // कर्मसाक्षी कर्मकर्ना कर्माकर्मफलप्रदः // 8 // कमण्डलुधरः कल्पः कपी कटिमूत्रभृत् / / कारुण्यदेहः कपिलो गुह्यागमनिरूपितः // 9 // गुहाशयो गुहाधिस्थो घटकुंभो घटोदरः।। पूर्णानन्दपरानन्दो धनदो धरणीधरः / / 10 / / बृहत्तमो ब्रह्मपरो ब्रह्मण्यो ब्रह्मवित्प्रियः / / भव्यो भतालयो भोगदाता चैव महामनः / / 11 / / वरेण्यो वामदेवश्च बन्यो बजनिवारणः / / विश्वकर्ता विश्वचक्षुर्हवनं हव्यकव्यभुक् // 12 // स्वतंत्रस्सत्पसंकल्यस्तथा मौभाग्यवर्द्धनः // कीर्तिदः शोकहार्ग च त्रिवर्गफलदा यकः // 13 // चतुर्बाहुश्चतुर्दतश्चतुर्थीतिथिसंभवः॥ सहस्रशीर्पा पुरुषः सहस्रानस्सहस्रपात् // 14 // कामरूपः कामगतिबिरदो दीपरक्षकः // क्षेत्राधिपः क्षमाभा लयस्थो लड्डुकप्रियः // 15 // प्रतिवादिमुखस्तंभो दुष्टचिनप्रसादनः // भगवान भक्तिसुलभो याज्ञिको याजकप्रियः // 16 // इत्येवं देवदेवस्य गणराजस्य धीमतः।। शतमष्टोनरं नाम्नां भारभृतं प्रकीर्तितम् // 17 // सहस्रनाम्ना कृप्य मया प्रोक्तं स्तोत्रं मनोहरम्॥बाह्म मुहूर्ते चोत्थाय स्मृत्वा देवं गणेश्वरम्॥पठेत्स्तोत्रमिदं भक्त्या गणराजः प्रसीदति ॥१८॥इति श्रीरुद्रयामलतंत्र उमामहेश्वरसंवादे श्रीगणेशस्याष्टोनरनामस्तोत्रं समानम् // अथ वक्रतुण्डस्तोत्रप्रारंभः // ॐॐॐकाररूपं हिमकररुचिरं For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म० म०] यत्स्वरूपं तुरीयं त्रैगुण्यातीतलीलं कलयति मनमातेजमोदारवृनिः / / योगीन्द्रा ब्रह्मरन्धे महजाणमयं श्रीहरेन्द्र बसंतं गगगगगणेशं गजप० ख० 1 // 10 // मुखमनिशं व्यापकं चिंतयंति॥१॥वववविन्नराजं भजति निजभुजे दक्षिणे पाणिशुई काकाँकॉक्रोधमुद्रादलितारपुकुलं कल्पवृक्षस्य मृले गत• धाइँदंतमेकं दधतमभिमुखं कामधेन्वादिसेव्यं धारयतं दधतमतिशयं मिद्धिबुद्धीर्ददंतम् // 2 // तुतुतगरूपं गगनमुपगतं व्यामुवन्तं तरं०५ दिगतं की की की कामनाथं गलितमददलं लोलमनालिमालम् // ह्रीं ह्रीं ह्रीं काररूपं मकलमुनिजनध्ययमुदिक्षुदंडं श्रीँ श्राश्री मंश्रयं नं निखिलनिधिकलं नौमि हेरंबलंबम // 3 // ग्लॉग्लॉग्लाँकारमायं प्रणवमयमहामंत्रमुकावलीनां मिद्धं विघ्नेशबीज गशिकरम दशं योगिनां ध्यानगभ्यम् // डाँडाँडाँडामरूपं दलितभवायं मूर्यकोटिप्रकाशं ययययक्षराजं जपनि मुनिजनो गृह्यामार्थनां च // 4 // हुँहुँहुँहेमवर्ण श्रुतिगणितगुणं शूर्पकर्ण कपालुं ध्येयं यः मूर्यबिंबे उरमि च विलममर्पयज्ञोपवीतम् // म्वाहाहै फटममतः उठठठमाहतः पल्लवैः सेव्यमानमत्राणां मनकोटिप्रगणितमहिमध्यानमीशं प्रपद्ये // 1 // पूर्व पीठं त्रिकोणं तद्परिकचिर पटदलं मपपत्रं तस्याद्ध बद्ध खरखावसुदलकमलं बाह्यनोधश्च तम्य // मध्ये हुंकारबीजं नदन भगवतो बीजपटक पुगंष्टिी शुक्लेशमिधी बहुलगणपतविष्टर वाष्टकं च // 6 // धर्मायटौ प्रसिद्धा दिशि विदिशि गणा बाह्यनो लोकपालान मध्ये क्षेत्राधिनाथं मुनिजनतिलकं मंत्रमुद्रापदेशम॥एवं यो भक्ति का युक्तो जपति गणपतिं पुष्पधुपाक्षताद्यनवेद्यैमादकानां स्तुतिनटविलमगीतबादित्रनादैः // 7 // गजानम्तस्य भृत्या इव युवतिकुलं दामवत्सर्वदास्ते लक्ष्मीःसर्वाङ्गयुक्ता त्यजति न मदनं किंकराः मर्वलोकाः // पुत्राः पौत्राः प्रपौत्रा रणभुवि विजयो द्यूतवादे प्रवीणो // 104 // यस्येशो विघ्नराजो नियमति हृदये भक्तिभाजां म देवः // 8 // इति श्रीशंकराचार्यविरचितं वक्रतुंडस्तोत्रं ममातम / For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // अथ उच्छिष्टगणेशकवचपारंजः // देव्युवाच // " देवदेव जगन्नाथ सृष्टिस्थितिलयात्मक // विना ध्यानं विना मंत्रं विना होम विना जपम् // 1 // येन स्मरणमात्रेण लभ्यते चाशु चिंतितम् // तदेव ओतुमिच्छामि कथयस्व जगत्प्रभो // 2 // ईश्वर उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि गुह्याद्गृह्यतरं महत // उच्छिष्टगणनाथस्य कवचं सर्वसिद्धिदम् // 3 // अल्पायामबिना कष्टपमात्रेण सिद्धिदम् // एकांते निर्जनेऽरण्ये गह्वरे च रणांगणे // 4 // सिंधुतीरे च गांगीये कले वृक्षतले जले / / सर्वदेवालये तीर्थ लब्ध्वा मम्यक् जपं चरेत ॥५नानशौचादिकं नास्ति नास्ति निर्बधनं प्रिये // दारियांतकरं शीघ्रं मर्वतत्त्वं जनप्रिये // 6 // महस्रशपथं / कृत्वा यदि स्नेहोस्ति मां प्रति / / निंदकाय कुशिष्याय खलाय कुटिलाय च // 7 // दुष्टाय परशिष्याय यातकाय शठाय च / / बंचकाय वरनाय ब्राह्मणीगमनाय च // 8 // अशक्ताय च ऋराय गुरुद्रोहरताय च // न दातव्यं न दातव्यं न दातन्यं कदाचन मुझनकाय दातव्यं मच्छिप्याय विशेषतः // तेषां मिध्यंति शीघेण ह्यन्यथा न च मिध्यति // 10 // गुरुसंतुष्टिमा त्रण कलो प्रत्यक्षमिद्धिदम् // देहोच्छिष्टः प्रजतव्यं तथोच्छिष्टमहामनुः // 11 // आकाशे च फलं पानं नान्यथा बचना मम / एपा राजवती विद्या विना पुण्यं न लन्यते // 12 // अथ वक्ष्यामि देवेशि कवचं मंत्रपूर्वकम् // येन विज्ञानमात्रेण / राजभोगफलप्रदाय // 13 // ऋषिर्म गणकः पात शिरमि च निरंतरम // त्राहि मां देवि गायत्रीछन्दो ऋषिः सदा मुखे / // 14 // हृदये पातु मां नित्यमुच्छिष्टगणदेवता / / गुह्ये रक्षतु तद्वीजं स्वाहा शक्तिश्च पादयोः // 15 // कामकीलकसोंगे विनियोगश्च मर्वदा / / पाद्वये मदा पातु स्वशक्ति गणनायकः // 16 // शिवायां पातु तद्वीजं भ्रमध्ये तारबीजकम् // For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir - // 105 // हस्तिवक्रश्च शिरमि लंबोदरी ललाटके // 17 // उच्छिष्टो नत्रयोः पातु कौँ पातु महात्मने / पाशांकुशमहाबीजं नासिकायां च पू० ख०१ रक्षतु // 18 // भूतीश्वरः परः पातु आस्यं जिह्वां स्वयंवपुः / / तबीजं पातु मां नित्यं ग्रीवायां कंठदेशके // 19 // गंबीजं च तथागतं. रक्षेनथा त्वग्रे च पृष्ठके // सर्वकामच हृत पातु पातु मां च करद्वये // 20 // उच्छिष्टाय च हृदय वह्निबीजं तथोदरे // मयाबीज तथा कठ्यां द्वौ ऊरु सिद्धिदायकः // 21 // जंघायां गणनाथश्च पादौ पातु विनायकः // शिरमः पादपर्यंतमुच्छिष्टगणना नायकः // 20 // आपादमस्तकांतं च उमापुत्रश्च पातु माम् // दिशोष्टौ च तथाकाशे पाताले विदिशाष्टके // 23 // अहर्निशं च मां पातु मदचंचललोचनः // जलेऽनले च संग्रामे दुष्टकारागृहे वने // 24 // राजद्वारे घोरपथे पानु मां गणनायकः // इदं तु कवचं / गृह्यं मम वश्त्राद्विनिर्गतम् // 25 // त्रैलोक्ये सततं पातु द्विभुजश्च चतुर्भुजः // बाह्यमान्यतरं पान मिद्धिबुद्धिविनायकः // 26 // सर्वमिद्धिप्रदं देवि कवचमृद्धिसिद्धिदम // एकांत प्रपन्मत्रं कवचं युक्तिमंयुतम् // 07 / इदं रहम्य कवचमनिटष्टगणनायकम् // सर्वबर्मसु देवेशि इदं कवचनायकम् // 28 // एतत् कवचमाहात्म्यं वर्णितुं नैव शश्यते / धर्मार्थकाममोक्षं च नानाफलप्रदं / नणाम // 20 // शिवपुत्रः मदा पातु पातु मां च सुरार्चितः / / गजाननः मदा पातु गणराजश्च पातु भाम // 30 // सदा शक्तिरतः पातु। पातु मां कामविह्वलः / / सर्वाभरणभूषाट्यः पातु मां सिंदृरार्चितः // 31 // पंचमोदकरः पातु पातु मां पार्वतीसुतः // पाशांकुशधरःd पातु पातु मां च धनेश्वरः // 32 // गदाधरः मदा पातु पातु मां काममोहितः // नग्ननारीरतः पातु पात मां च गणेश्वरः // 33 // // 1.5 // च अक्षयं वरदः पातु शक्तियुक्तः सदावतु // भालचंद्रः मदा पातु नानारत्नविभूषितः // 34 // उच्छिष्टगणनाथश्च मदार्णितलोचनः // For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir नारीयोनिरसास्वादं पातु मां गजकर्णकः // 35 // प्रसन्नवदनः पातु पातु मां भगवल्लनः // जटाधरः सदा पातु पातु मां च किरी] टिकः // 36 // पद्मासनस्थितः पातु रक्तवर्णश्च पातु माम् // नग्नसामपदोन्मत्तः पात मां गणदेवतः // 37 // वामांगे सुंदरीयुक्तः पातु मां मन्मथप्रभुः // क्षेत्रपः पिशितं पातु पातु मां श्रुतिपाठकः // 38 // भूषणाढ्यस्तु मां पातु नानाभोगसमन्वितः॥ स्मिताननः सदा पातु श्रीगणेशकुलान्वितः / / 35 / / श्रीरक्तचंदनमयः मुलक्षणगणेश्वरः ॥श्वेतार्कगणनाथश्च हरिद्रागणनायकः // 10 // पारभ गणेशश्च पातु मतगणेश्वरः // प्रवालकगणाध्यक्षो गजदंतो गणेश्वरः // 4 // // हरबीजगणेशश्च भद्राक्षगणनायकः // दिव्यौषधि समुद्भूतो गणेशचिंतितप्रदः // 42 // लवणस्य गणाध्यक्षो मृत्तिकागणनायकः // तंडुलाक्षगणाध्यक्षो गोमयश्च गणेश्वरः // 43 // स्फटिकाक्षगणाध्यक्षो रुद्राक्षगणदेवतः / / नवरत्नगणेशश्च आदिदेवा गणेश्वरः / / 44 ॥पंचाननश्चतुर्वक : षडाननगणेश्वरः // मयूरवाहनः पातु पातु मां मृषकामनः // 45 // पात मां देवदेवेशः पातु मामृषिपूजितः / / पातु मां सर्वदा देवो देवदानवपूजितः॥४६॥ विलोक्यपूजितो देवः पातु मां च विभुः प्रभः // रंगस्थं च सदा पातु सागरस्थं सदाऽवतु // 47 // भृमिस्थं च मदा पातु पातालस्थं| च पातु माम् // अंतरिक्षे सदा पातु आकाशस्थं सदावतु // 48 // चतुःप्पथे सदा पातु त्रिपथस्थं च पातु माम् // बिल्वस्थं च वनस्थं च पातु मां सर्वतस्तनम् // 49 / / राजद्वारस्थितं पातु पातु मां शीघ्रसिद्धिदः // भवानीपूजितः पातु ब्रह्मविष्णु शिवार्चितः // 50 // इदं तु कवचं देवि पठनात्सर्वसिद्धिदम् // उच्छिष्टगणनाथस्य समंत्र कवचं परम् // 5 // स्मरणाद्ध भुजत्वं च लभते सांगतां श्रुवम् // वाचःमिद्धिकरं शीघं परसैन्यविदारणम // 52 // प्रातमध्याह्नसायाह्ने दिवा रात्रौ पठेन्नरः // MINS For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 106 // णा " . / म०म०चतुर्थ्या दिवसे रात्री पूजने मानदायकम् // 5 // सर्वमौभाग्यदं शीनं दारिद्यार्णवघातकम // मुदारसुप्रजासौख्यं सर्वमिद्धिकरवं. 1 नृणाम् / / 14 // जलेथवानलेरण्ये सिंधुतीर लरिनटे // श्मशाने दृरदेशे च रणे पर्वतगहरे // 55 // राजद्वारे भये घोरे निर्भयो| जायते ध्रुवम् // मागरे च महाशीते दुर्भिक्षे दुष्टसंकटे // 16 // भूतप्रेतपिशाचादियभराक्षसजे भये // राक्षमीयक्षिणीऋराशाकिनी डाकिनीगणाः॥ 55 // राजमृत्युहरं देवि कवचं कामधेनुवत् // अनंतफलदं देवि मति मोक्षं च पार्वति // 58 // कवचेन विना मंत्र यो जपेड़णनायकम् // इह जन्मनि पापिठो जन्मांते मुषको भवेत् // 59 // इति परमरहस्यं देवदेवार्चनं च कवचपरमदिव्यं पार्वती पत्ररूपम् // पठति परमभोगैश्वर्यमोक्षप्रदं च लभति सकलमौख्यं शक्तिपुत्रप्रसादात // 60 // " इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे उमामहेश्वर संवादे उच्छिष्टगणेशकवचं समानम् // शुभमस्तु // अथोच्छिष्टगणेशसहस्रनामस्तोत्रं लिख्यते // उक्तं च रुद्रयामलतंत्रे // श्रीभैरव उवाच // शृणु देवि रहस्यं मे यत्पुरा सृचितं मया।तब भक्त्या गणेशस्य वक्ष्ये नामसनहकम् ॥१॥देव्युवाच॥ "ॐ भगवन्गणनाथस्य उच्छिष्टस्य महात्मनः // ओतुं नामसहस्र मे हृदयञ्चोत्सुकायते // 2 // भैरव उवाच // प्राङ्मुखे त्रिपुरानाथे जातविनाकुलेशिवे / / मोहने मुच्यते चेतस्ते सर्वे बलदर्पिताः॥ 3 // तदा प्रभुं गणाध्यक्षं स्तुत्वा नामसहस्रम्॥ विघ्ना दुरात्पलायंते कालरुद्रादिव प्रजाः॥४॥ तस्यानुग्रहतो देवि जातोहं त्रिपुरांतकः // तमद्यापि गणेशानं स्तोत्रं नामसहस्रकैः 5 तमेव तब भक्त्याहं साधकानां हिताय च // महान गणपतेर्वक्ष्ये दिव्यं नामसहस्रकम् // 6 // ॐ अस्य श्रीउच्छिष्टगणेशसहस्रनामस्तोत्रमंत्रस्य श्रीभैरव ऋषिः / गायत्री छंदः / श्रीमहा गणपतिर्देवता / गं बीजमाहीं शक्तिः।कुरुकुम कीलकम् / मम धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः॥ॐ ह्रीं श्रीं श्रीगणाध्यक्षो ग्लौं गं चा॥१०६॥ For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणपतिर्गुणी // गुणाढयो निर्गुणो गोता गजवको विभावसुः।। 7 // विश्वेश्वरो विभादीतो दीपनो धीवरो धनी // सदा शांतो जगत्राता) विश्वावर्ती विनाकरः // 8 विश्रंभी विजयो वैद्यो वारांनिधिरनुत्तमः / / अणिमाविभवः श्रेष्ठो ज्येष्ठो गाथाप्रियो गुरुः / / 1 / / मृष्टिकर्ता Kal जगद्धर्ता विश्वना जगन्निधिः // पतिः पीतविभूषांको रक्तास्यो लोहितांबरः // 10 // द्विपाशोच्चविमानस्थो विनयः सदयः सुखी // सुरूपः सात्त्विकः सत्यः शुद्धश्शंकरनंदनः // 13 // नंदीश्वरो जयानंदी बंधस्तुत्यो विचक्षणः // दैत्यमी सदाक्षीबो मदि चारारुणलोचनः // 12 // सारात्मा विश्वसारश्च विश्वसारो विलेपनः / / परं ब्रह्म परं ज्योतिः माझी व्यक्षो विकस्थितः // 3 // विश्वेश्वरो वीरहर्ता सौजाग्यो भाग्यवर्द्धनः।। मुंगीरिटी गमाली गजितनादितः // 14 // विवर्तको विनीतोपि नयनानंदनार्चितः // गंगाजलपानप्रियो गंगातीरविहारिणः // 15 // गंगाप्रियो गंगजश्च वाहनानि पुरः सदा / / गंधमादनसंवासो गंधमादनकेलिकत | 16 // गंधानुलिप्तपूर्वागः सर्वदेवस्मरः सदा / / गणगंधर्वराजेशो गणगंधर्वसेवितः // 17 // गंधर्वपूजितो नित्यं सर्वरोगविनाशकः॥ Kगंधर्वगणसंसेव्यो गंधर्ववरदायकः // 18 // गंधर्वो गंधमातंगो गंधर्वकुलदैवतः / / गंधर्वगर्वसंवेगो गंधर्ववरदायकः // 19 // गंधर्व / प्रबलासत्वं गंधर्वगणसंयुतः // गंधर्वादिगुणानंदो नंदोनंतगुणात्मकः // 20 // विश्वमूर्तिविश्वधाता बिनतास्यो विनर्तकः // करालः कामदः कांतः कमनीयः कलानिधिः / / 23 // कारुण्यरूपः कुटिलः कुलाचारी कुलेश्वरः / / विकरालो रणः श्रेष्ठः महारो हारभू पणः / / 22 / / ऊरूरम्यमुखो रत्तो देवतादयितो रमः // महाकालो महादंष्ट्रो महोरगभयानकः / / 23 / / उन्मनरूपः कालाग्निरनि सूर्येन्दुलोचनः // मितास्यश्वामितात्मा भैरवसौभाग्यवान्भगः / / 24 // भन्मजो भगावासो भगदो भगवर्द्धनः / / शुभंकरः शुचिः For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० // 107 // शांतः श्रेष्ठः श्रव्यः शचीपतिः // 25 // वेदाद्यो वेदकर्ता च वेदवेद्यः सनातनः // विद्यारदो वेदरमो वैदिको वेदपारगः // 26 // पू० ख०१ वेदध्वनिरतो वीरो वेदवेदांगस्वर्थवित् // तत्त्वज्ञः सर्वगः साधुः सदयः सदसन्मयः // 27 // शिवकरः शिवसुतः शिवानंदविवर्द्धनःग तं. सैन्यः श्वेतः शतमुखो मुग्धो मोदकभंजनः // 28 // देवदेवो दिनकरो धृतिमान्युतिमान्धनः // शुद्धात्मा शुद्धमतिमान् शुद्धदीमिः तरं०५ शुचिवतः // 29 // शरण्यः शौनकः शूरः शब्ददीजटोरुकः / / दारकः शिखिवाहेष्टः सितः शंकरबल्लभः॥ 30 // शंकरो निर्भ यो नित्यो लयरुल्लास्यतत्परः / / लूतो लीलारसोल्लासी विलासी विनमो नमः // 31 // चमणः शशिभृत्सूर्यः शनिर्धरणनंदनः।। बुधो विबुधमेव्यश्च बुधराजो बलंधरः॥३२॥जीवो जीवप्रदो जेता स्तुत्यो नित्यो रतिप्रियः॥ बुधो विबुधसेव्यश्च जनरक्षणतत्परः।।३३जनानंद प्रदाता च जनकालादकारकः॥गच्छो गणपतिर्गच्छनायको गच्छगर्वहा / / 34 // गच्छराजोथ गच्छेशो गच्छराजनमस्कृतः॥गच्छप्रियो गच्छगुरुर्गच्छत्रालयमातुरः / / 35 / / गच्छप्रभुर्गच्छचरो गच्छप्रियकृतोद्यमः // गच्छगीतगुणो गता मर्यादाप्रतिपालकः // 36 // गीर्वाणागमसारस्य नभो गीर्वाणदेवता / / संपत्तिसदनाकारः संपत्तिसुखदायकः / / 37 / / संपनिसुखकर्ता च संपनिनुभगाननः // संपत्तिशुभदो नित्यं मंपत्तिश्चतपोधनः / / 38 // रुचको मेचकस्तुष्टः प्रभुस्तोमरघातकः / / दंडी चंडांशुरव्यक्तः कमंडलुधरोऽनघः | // 39 // कामी कर्मरतः कालकोलः कंदितदिक्तटः // नामको जातिपूज्यश्च जाड्यहा जडसूदनः // 40 // जालंधरो जग द्धासी हासकगहनो गुहः // हविष्मान्हव्यवाहाशो हाटको हाटकांगदः // 41 // मुमेरुहिमवान्होता हरपुत्रो हलांकपः // हालाप्रियो हृदा शांतः कांताहृदयपोषणः // 42 // शोषणः केशहा करः कुबेरः कविताकतिः // कुबेरो धीमयो धीता ध्येयो धीमान्दया For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir निधिः // 43 // दविष्ठो दमनो हृष्टो दाना त्राता सिता समः // निर्गतो नैगमो गम्यो निर्जयो जटिलोऽजरः // 14 // जनजीवो जितारातिर्जगद्व्यापी जगन्मयः // चामीकरनिभो नान्यो नलिनायतलोचनः // 45 // रोचनामोचका | मंत्री मंत्रकोटिसमाश्रितः / / पंचभूतात्मकः पंचमायकः पंचवकः॥४६॥ पंचमः पश्चिमः पूर्वः पूर्णः कीर्णालकः कुणिः // कठोरहृदयग्रीवोलंकतो ललिताशयः // 47 // लोलचित्तो बृहन्नामो मासपक्षर्तुरूपवान // ध्रुवो द्रुतगतिबंधो धर्मवान्किंप्रियो नलः // 18 // अगस्त्यग्रस्तभुवनो भुवनैकमलापहः // सासरः स्वर्गतिः स्वक्षः मानंदः साधुपूजितः // 49 // मतीपतिः समरसः सनकः मरलः सरः॥ सुरप्रियो वसुमतिर्वासबो व पूजितः।। 50 / / वित्नदो विननाथश्च धनिनां धनदायकः / / राजीवनयनः स्मार्ता स्मृतिहा कनिकांबरः॥ 50 ॥अश्विनोश्चिमुखः शुनो भरणो भरणीप्रियः। कनिकासनकः कोलो रोहिणी रोहिणोपमः // 50 // कतबो / शोरिमंदी च रोहिणीमोहिनीभृतः // मृगराजो मृगशिरो माधयो मधुरध्वनिः // 53 // आर्टानलो महाबुद्धिमहोरगविभूषणः // Maक्षेपदंतविभवो चूकरालः पुनर्मयः // 14 // पुनर्देवः पुनर्जेता पुनर्जीवः पुनर्वसुः॥ तिमिरस्तिमिकेतुश्च तिमिवासरघातनः॥ 55 // तिष्यस्तुलाधरो भो विश्लेषाश्लेषदानराट् // मानवी माधवो माधो वाचालो मघवोयमः // 16 // मघो मघाप्रिये मेघो महाशंडो महाभुजः // पूर्वाफाल्गुणिकः प्रीतः फल्गुरुत्तरफाल्गुणः // 57 / / फेनिलो ब्रह्मदो ब्रह्मा समतंतुसमाश्रयः // घोणाहस्तश्चतुर्हस्तो हस्तिवको हलायुधः॥५०॥ चित्रांबरोर्चितपदः स्वस्तिदः स्वस्तिविग्रहः // विशाखाशिखिसेव्यश्च शिखिध्वजसहोदरः / / 59 // अणू। रेणूकरस्कारो रूरूरेणू सुतीनरः // अनुराधाप्रियो गधः श्रीमाञ्छुक्लः शुचिस्मितः // 60 // ज्येष्टः श्रेष्ठार्चितपदो मृलं त्रिजगतो गुरुः For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir शुचिः पूर्वोत्तराषाढश्चोत्तराषाढ ईश्वरः॥६॥ श्रव्योभिजिदनंतात्मा श्रयोश्चेपितदानवः // श्रावणः श्रावणः श्रोता धनी धन्यो धनिमकः पू० खं० 1 // 62 // धनेशुकः मदा तीवः शीतकुंभः शरदद्युतिः / / पूर्वाभाद्रपदाभद्रश्चोत्तराजानुपादितः // 63 // रेणुकस्तनयो रामो रेवतीगतं. धरमणो रमी // अश्वयुकार्तिकेयेष्टो मार्गशीर्षों मृगोत्तमः // 64 // पौषश्वर्यः फाल्गुनात्मा बसंतश्चित्रको मधुः॥ राज्यदोभिजिदात्मीय तरं०५ सस्तारेशस्तारकद्युतिः // 65 // प्रतीतः प्रोजितः प्रीतः परमः परमो हितः // परहा पंचभूः पंचवायुपूज्यः परो महः // 66 // पुराणागमविद्योगी महिषो रासभोयगः // ग्रहो मेषो वृषो मंदो मन्मथो मिथुनाकतिः / / 67 // कल्पभृत्कंटकटको दीपो मर्कटशप्रभुः। कर्कटो घृणिकुक्कटो बनजो हंसयोहसः // 68 // सिंहसिंहामनो भूप्यो मुहुर्मूषकवाहनः / कन्याकलावतीपुत्रो कन्याप्रीतः कुलोदहः / // 61. // अतुल्यरूपोबलदस्तुल्यभृत्तुल्यसाक्षिकः॥ अलिश्वापधरो धन्वी कच्छपो मकरो मणिः॥ 70 // कुंभभृत्कलशः कुब्जी मीन। मांससुतर्पितः // राशिताराग्रहमयस्तिथिरूपो जगद्विभुः // 71 // प्रतापी प्रविपत्प्रेयो द्वितीयाद्वैतनिश्चितः // त्रिरूपश्च तृतीयाग्नि स्वयीरूपवयीतनुः // 72 // चतुर्थीवल्लभो देवो परागः पंचमीश्वरः // पडूरसास्वादको जातः पष्ठी पष्टीकवत्सलः / / 73 // मनाणव गतिः सारः सत्यमीश्वररोहितः // अष्टमीनंदनानंतो नवमीभक्तिभावितः // 74 // दशदिक्षतिपूज्यश्च दशमीद्रुहिणो द्रुतः // एका दशात्मगणपो द्वादशीयुगचर्चितः // 75 // त्रयोदशमणिस्तुत्यश्चतुर्दशस्वरप्रियः / / चतुर्दशेंद्रसंस्तुल्यः पूर्णिमानंदविग्रहः // 76 // // 108 // दर्शादर्शों दर्शगश्च वानप्रस्थो महेश्वरः॥ मौवीं मधुरवाग् मूलं मूर्तिमान्मेघवाहनः // 77 // महागजो जितक्रोधो जितशत्रुर्जयाश्रयः / रौद्रा रुद्रप्रियो रुद्रो रुद्रपुत्रोषनाशनः // 78 भवप्रियो भवानीटो भारभृद्भुतभावनः / / गंधर्वकुशलः कुंठो वैकुंठोऽबिष्टसेवितः॥ 79 // For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir वृत्रहा विघ्नहा सीरः समस्तदुःखतापहः // मंजुरो मार्जरो मनो दुर्गापुत्रो दुरालमः // 80 // अनंतचित्सुधाधारी वीरवीर्यकसाधकः // भास्वन्मकटमाणिक्यः कुजत्किंकिणिजालकः // 81 // शुंडाधारी तुंडचलः कुंडली मुंडमालकः // पद्माक्षः पद्महस्तश्च पद्मनाभसम चिंतः // 82 // उदितानरदंतास्यो मालाभूषणभूषितः // नारदो वारणो लोलश्रवणः शूर्पकर्णकः // 83 // बृहदुल्लासनासाढ्यो व्याप्त कोक्यमंडलः॥ रत्नमंडलआसीनःकशानुरूपशीलकः // 84 // बृहत्कर्णाश्चलोद्भुतवायुवीजितदिक्पटः।। बृहदास्यरवाकांतोः भीमब्रह्मांड भांडकः // 85 // बृहत्पादसमाकांतः समपातालदीपितः // बृहदंतकतात्युग्ररणानंदरसालमः // 86 // वृहद्धस्तधृताशेषायधनिर्जि तदानवः // स्फुरत्सिंदुरवदनः स्फुरनेजोग्निलोचनः / / 87 // उद्दीपितमणिस्फूर्जन्नपुरध्वनिनादितः // चलतोयप्रवाहाढयो नदीजल कणाकरः // 88 // चमत्कुंजरसंघातवंदितांघिशिरोरुहः // ब्रह्माच्युतमहारुद्रपुरःसरसुरार्चितः // 8 // अशेषशेषप्रभूतिव्यालजा लोपसेवितः // गर्जत्पंचाननारावप्रसादितधरातलः // 10 // हाहाहूहूगतात्युग्रस्वरविनांतमानमः॥ पंचाशद्वर्णवीजादयो मंत्री मंत्रि तविग्रहः // 11 // वेदांतशास्वपीयूषधाराप्लावितभूतलः // शंखध्वनिसमाक्रांतपातालादिनभस्तलः // 92 // चिंतामणिमहामण्लो बल्लहस्तो बलिः कविः।कृतत्रेतायुगोल्लासभासमानजगत्रयः // 93 // द्वापरः परलोकैकः कर्मध्यांतमुधाकरः // सुधासिक्तवासो ब्रह्मांडादिकबाहुकः // 14 // अकारादिक्षकारांतवर्णपंक्सिमुज्ज्वलः // अकाराकारमोद्गीतताननादनिनादितः // 95 // इकारे कारमंत्राढयो मालाचरणलालसः॥ उकारोकारमोहारिघारनागोपवीतकः // 16 // ऋवर्णांकित कंकाइपद्मरयसमुज्ज्वलः // लुका 28 For Private And Personal use only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirlain Aradhana Kendra Acharya Shri Kaliassagarsun Gyanmandir म०म० // 109 // रयुतलकारशंखपूर्णदिगंतरः // 97 / / एकारेकारगिरिजास्तनपानविचक्षणः // ओ कारौकारविश्वादिकृतसृष्टिक्रमालसः // 18 // पू० ख०१ अंओ वर्णावलीब्यानपादादिशीर्षमंडलः // कर्णतालकृतात्युच्चैायुवीजितनिर्जरः // 99 // खगेशध्वजरत्नांकः किरीटारुणपादकः॥ गर्विताशेषगंधळगीततत्परोत्रकः // 100 // धनवाहनवागीशपुरःसरसुरार्चितः // ङवर्णामृतधाराढ्यसोममानैकदंतकः // 101 // चंद्रकुंकुमजंबाललितसिंदूरविग्रहः // छत्रचामररत्नाढ्यमुकुटालंकताननः // 102 // जटाबद्धमहानर्घमणिपंक्तिविराजितः // झंकारि मथुपबातगाननादविनादितः // 103 // जवर्णकृतसंहारदैत्यामुकपर्णमुद्गरः॥ टकारश्च फलास्वादी बेपिताशेषमूर्धजः // 104 // तात्रसिंदूरपूजाढयो ललाटफलकच्छविः // थकारधनपत्यादयः संतोषितद्विजवजः // 105 // दया तहृदंभोजधृतत्रैलोक्यमंडलः॥ धनदादिमहायक्षसंसेवितपदांबुजः / / 106 // नमिताशेषदेवौषकिरीटमणिरंजितः // परवर्गापवर्गादिभोगच्छेदनदक्षकः // 10 // फणिचक्रसमाक्रांतमल्लमंडलमंडितः // बद्धयुगभीमोग्रमंतर्जितसुरासुरः // 108 // भवानीहृदयानंदवर्द्धनैकनिशाकरः // मदिरा || कलशीतः करालैककरांपुजः // 109 // यज्ञांतरायसंघातमजीकृतवरायुधः // रत्नाकरसुताक्रांतक्रांतिकीतिविवर्धनः // 11 // लंबोदरमहाभीमवपुर्दीतकृतासुरः // वरुणादिदिगीशानामर्चितार्चनचर्चितः // 11 // शंकरैकप्रियः प्रेमनयनानंदवर्द्धनः // षोडश स्वरतालापगीतगानविचक्षणः // 112 // समदुर्गसरिनाथस्तारणाकोंडुपोहरः // ब्रह्मवैकुंठब्रह्मज्ञसंरक्षिततनूचरः // 113 // 10 // तारांकमंत्रवर्णकविग्रहोज्ज्वलविग्रहः // अकारादिक्षकारांतविद्याभूषितविग्रहः // 114 // ॐ श्रीविनायको ॐ हीं विनाध्यक्षो गणा| धिपः / / हेरंबो मोदकाहारो वक्रतुंडो विधिः स्मृतः / / 115 // वेदांतगीतो विद्यार्थिसिद्धमंत्रः षडक्षरः // गणेशो वरदो देवो द्वादशाक्षर For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matavian Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मंत्रितः॥ 16 // मतकोटिमहामत्रमंत्रिताशेषविग्रहः // गांगेयो गणसेव्यश्च ॐ श्रीद्वैमातुरः शिवः // 117 / / ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं / ग्लौं गं देवो महागणपतिः प्रभुः // इदं नामसहस्रं ते महागणपतेः स्मृतम् // 118 // गुह्यं गोप्यतमं सिद्धं सर्वतंत्रेषु गोपितम् // सर्वमंत्रमयं दिव्यं सर्वमंत्रविनायकम् // 119 / / ग्रहतारामयं राशिवर्णपंक्तिसमन्वितम् // सर्वविद्यामयं ब्रह्मसाधनं साधकप्रियम् / ॐ॥ 120 // गणेशस्य च सर्वस्वं रहस्यं त्रिदिवौकसाम् // यथेष्टफलदं लोके मनोरथप्रपुरणम् // 121 // अष्टसिद्धिमयं / श्रेष्ठं साधकानां जयप्रदम् // विनार्चनं विना होमं बिना न्यासं विना जपम् // 122 // अणिमाद्यष्टसिद्धीनां साधनं तस्मृतिमात्रतः // चतुर्थ्यामर्धरात्रे तु पठेन्मंत्री चतुष्पथे // 123 // लिखेद भूर्जे महादेवि पुण्यं नामसहस्रकम् // धारयेत्तं चतुर्दश्यां मध्याह्ने मूर्ध्नि वा भुजे // 124 // योषितामकरे चैव पुरुषो दक्षिणे भुजे // स्तंभयेदपि ब्रह्माणं मोहयेदपि शंकरम् / // 125 // वशयेदपि त्रैलोक्यं मारयेदखिलाविपून // उच्चाटयेच्च गीर्वाणं शमयेच्च धनंजयम् // 126 // वंध्या पुत्रं लोच्छीचं निर्धनो धनमाप्नुयात् // त्रिवारं यः पठेद्रात्री गणेशस्य पुरः शिवे // 127 // नक्तं शक्तियुतो देबि भुक्त्वा भोगान्यथेप्सितान् // प्रत्यक्षवरदं पश्येद्गणेशं साधकोनमः // 128 // पराहे पठ्यते नाम्नां सहस्रं भक्तिपूर्वकम् // तस्य वित्तादिविभवो दारायुःसंपदः / सदा // 129 // रणे राजभये द्यते पठेन्नामसहस्रकम् // सर्वत्र जयमामोति गणेशस्य प्रसादतः // 130 // इतीदं पुण्यसर्वस्वं |मंत्रनामसहस्रकम् // महागणपतेः पुण्यं गोपनीयं स्वयोनिवत् // " इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे उच्छिष्टगणेशसहस्रनामस्तोत्रं समाप्तम् // For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org // 110 // i०म० // श्रीगणेशाय नमः // अथोच्छिष्टगणेशस्तवराजप्रारम्भः // उक्तं च रुद्रयामले // देव्युवाच // “पूजाते ह्यनया स्तुत्या स्तु खं०१ यात गणनायकम् / / नमामि देवं मकलार्थदं तं सुवर्णवर्ण भुजगोपवीतम् // गजाननं भास्करमेकदंतं लंबोदरं वारिभवासनं च // 1 // गतं. यरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुज पाशवराभयानि // मृणि च हस्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरखीयुगलेन युक्तम् // 2 // पडक्षरात्मानमन तरं०५ ल्पभूषं मुनीश्वरैर्भार्गवपूर्वकैश्च // मंसेवितं देवमनाथकल्पं रूपं मनोनं शरणं प्रपद्ये // 3 // वेदतिवेद्यं जगतामधीशं देवादिवंद्य मुक्तक गम्यम् // स्तंबेरमास्यं न च चन्द्रचूडं विनायकं तं शरणं प्रपद्ये // 4 // भवाख्यदावानलदह्यमानं भक्तं स्वकीयं परिषिंचते यः।। गंडल तांभोभिरनन्यतुल्यं वंदे गणेशं च तमोरिनेत्रम् // 5 // शिवस्य मौलाववलोक्य चन्दं सुशुंडया मुग्धतया स्वकीयम् // भग्नं विषाणं परिभाव्य चिने आकष्ट चन्द्रो गणपोऽवतां नः // 6 // पितुर्जटाजूटतटे सदैव भागीरथी तत्र कुतृहलेन // विहर्तुकामः स महीधपुन्या / निवाग्निः पातु सदा गजास्यः॥७॥लम्बोदरो देवकमारसंधैः क्रीडन्कुमारं जितवान्निजेन॥करेण चोनोल्य ननर्त रम्यं दन्तावलास्यो भयतः कम पायात् ॥८॥आगत्य योच्चैर्हरिनाभिपनं ददर्श तत्राशु करेण तच्च॥ उद्धर्तुमिच्छन्विधिवादवास्यं मुमोच भूत्वा चतुरो गणेशः॥९॥निरंतरं संस्कृतदानपट्टे लग्नांतुगुंजड्रमरावली वै // तं श्रोत्रतालैरपसारयंतं स्मरेङ्गजास्यं निजहृत्सरोजे // 10 // विश्वेशमौलिस्थितजह्वकन्या जलं गृहीत्वा निजपुष्करेण // हरं सलीलं पितरं स्वकीयं प्रपूजयन्हस्तिमुखः म पायात // 11 // स्तंबेरमास्यं घुसणांगरागं सिंदूर // 11 // पूरारुणकांतकुंभम् // कुचन्दनाश्लिष्ठकरं गणेशं ध्यायेत्स्वचिने सकलेप्टदं तम् // 12 // स भीष्ममातुर्निजपुष्करण जलं समादाय कचौ स्वमातुः // प्रक्षालयामास षडास्यपीतौ स्वार्थ मुदेऽसौ कलमाननोऽस्तु // 13 // सिंचाम नागं शिशुभावमासं केनापि मत्कारणतो धरिला For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir च्याम् // बतारमाद्यं नियमादिकानां लोकैकवंद्यं प्रणमामि विनम् // 4 // आलिंगितं चारुरुचा मृगाक्ष्या संभोगलोलं भदविह लांगम् // विनौषविध्वंसनसक्तमेकं नमामि कांतं द्विरदाननं तम् // 15 // हेरंब उद्यद्रविकोटिकांतः पञ्चाननेनापि विचंताम्यः। मुनी न्सुरान्नक्तजनांश्च मर्वान्स पातु रथ्यासु सदा गजास्यः // 16 // वैपायनोक्तानि म निश्चयेन स्वदंतकोट्या निखिलं लिखित्वा // दंत पुराणं शुभमिडमालिस्तपोभिरुयं मनसा स्मरामि // 17 // क्रीडानटान्ते जलधाविभास्ये बेलांजले लंबपतिः प्रभीतः॥विचिंत्य कस्येति मु रास्तदातं विश्वेश्वरं वाग्भिरभिटुवंति // 18 // वाचां निमित्तं म निमित्नमाद्यं पदं त्रिलोक्यामददत्स्तुतीनाम। मर्वेश्च बंद्यं न च तस्य बंद्यः स्थाणोः परं रूपममा म पायात // 15 // इमां स्तुतिं यः पठतीह माया ममादितप्रीतिरतीब शुद्धः // संमेव्यत दिग्या निका तांतं दारिद्रयसंघ मविदारयेन्नः // 20 इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे हरगौरीसंवादे उच्छिष्टगणेशस्तोत्रं ममानम् // अथ हरिद्रागणेशकवच प्रारंभः // ईश्वर उवाच // शृण वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये // पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते मवसंकटात् // 3 // अज्ञात्वा कब चं देवि गणेशस्य मनं जपेत // सिद्धिर्न जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि // 2 // ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखापरि // से मोदो त्रियुगे पातु नमध्ये च गणाधिपः // 3 // गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः॥ गणक्रीडान्वितः पातु वदने मर्वमिद्धये / // 4 // जिह्वायां मुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः मदा // विवशो हृदये पातु विघ्नानाथश्च वक्षसि // 5 // गणानां नायकः पातु बाहुयु / म मदा मम // विश्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिंगके // 6 // गजवक्त्रः कटीदेशे एकदंतो नितंबकं / / लंबोदरः सदा पातु गुह्य देशे ममारुणः // 7 // ब्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे मदा // जापकः मर्वदा पातु जानुजंघे गणाधिपः // 8 // हरिद्रः / 48 For Private And Personal use only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मै० म० ख०१ // 11 // सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः // य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि // 9 // कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् // सर्व० सिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् // // 30 // सर्वसंपत्पदं साक्षात्सर्वपापविमोक्षणम् // सर्वसंपत्प्रदं साक्षात्सर्वशत्रुक्षयंकरम् // 11 // ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः // पठनाद्धारणादेव नाशमायांति तत्क्षणात् // 12 // धनधान्यकरं देवि कवचं सुर पूजितम् // ममं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च // 13 // हारिद्रस्य महेशानि कवचस्य च भूतले // किमन्यैरसदालापर्यत्रायु य॑यतामियात // 14 // इति विश्वमारतंत्रे हरिद्रागणेशकवचं समानम् // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे गणेशतंत्रे पंचमस्तरंगः // 5 // s 11 // For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairt.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir జ7-635 AAAAAAAA . For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirlan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म // श्रीगणेशाय नमः // अथ शिवतंत्रप्रारम्भः। तत्रादी पटलप्रारम्नः॥ अथ वक्ष्ये महेशस्य मंत्रान्मर्वार्थसिद्धिदान // यः पूर्वर्षिवाक्यैश्व० ख० 1 शिवसायुज्यमंजसा // 3 ॥अथ शिवपंचाक्षरमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा ( शारदातिलके ) "ॐ नमश्शिवाय" अस्य विधानम् // अत्र शितं. रुद्राः स्मृता रक्ता धृतशृलकपालकाः॥ शक्तयो रुद्रपीठस्थाः सिंदूरारुणविग्रहाः॥ रक्तोत्पलकपालाभ्यामलंकतकरांबुजाः // // इतिjel ध्यात्वा मूलेन प्राणायामत्रयं कृत्वा मंत्रन्यामादिकं कुर्यात् / तद्यथा / अस्य श्रीशिवपंचाक्षरीमंत्रस्य वामदेव ऋपिः / पंक्तिश्छंदः / / ईशानो देवता। ॐ बीजाय नमः शक्तिः। शिवायेति कीलकम् / चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धयर्थ न्यामे विनियोगः // ॐ वामदेवर्षये नमः शिरासे 1 पंक्तिच्छंदम नमः मुख 2 ईशानदेवताय नमः हृदये 3 ॐ बीजाय नमः गुह्ये 4 नमः शक्तये नमः पादयोः 5 शिवायेति कीलकाय नमः नानौ 6 विनियोगाय नमः सर्वांगे 7 इति प्यादिन्यामः // ॐ अंगुष्ठान्यां नमः / ॐ नं नर्जनीभ्यां नमः २ॐ में मध्यमाभ्यां नमः 3 ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः 4 ॐ वां कनिष्टिकाम्यां नमः / || ॐ यं करतलकरपृष्ठान्यां नमः 6 इति करन्यासः // ॐ हृदयाय नमः / ॐ ने शिरसे स्वाहा 2 ॐ में शिखायै वषट् | LOॐ शिं कवचायतुं 4 ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट् 5 ॐ यं अस्वाय फट 6 इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ नं सत्पुरुषायनमः नर्जन्यां ॐ में अघोराय नमः मध्यमायाम् २ॐ शिं सद्योजाताय नमः कनिष्ठिकायाम् 3 ॐ वां वामदेवाय नमः अनामिकायाम् 4 ॐ यं (तांतरे) नमस्कारं समुत्य वान्तं नेवसमन्वितम्॥वरुणं मुखवृत्तं च वायु लालाटसंयुतम् // अमुं पंचाक्षरं मंत्र पंचकामफलप्रदम् // प्रणवादियंदा देवि का तदा मंत्रः षडक्षरः // 2 बंधूकसन्निभं देवं त्रिने चन्द्रशेखरम् // विशूलधारिणं देवं चारुहासं सुनिर्मळम् // कपाळधारिणं देवं वरदाभयहस्तकम् // उमया AGसहित शम्भुं ध्यायेत्सोमेन्चरं सदा / (इति तंत्रांतरे ) / For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ईशानाय नमः इत्यंगुष्ठयोः ५ॐ नं तत्पुरुषाय नमः मुखे 6 ॐ मं अघोराय नमः हृदये 7 ॐ शिं सद्योजाताय नमः पादयोः८ॐ वां वामदेवाय नमः गुह्ये 1 ॐ यं ईशानाय नमःमूर्ध्नि 10 इति पंचमृतिन्यासः ॐ नं तत्पुरुषाय नमः पूर्ववके 1 ॐ मं अघोराय नमः दक्षिणवक्त्रे 2 ॐ शिं मयोजाताय नमः पश्चिमवक्त्रे 3 ॐ वाँ वामदेवाय नमः उत्तरवस्त्रे 4 ॐ यं ईशानाय नमः ऊर्द्धवक्त्रे 5 इति वस्त्रन्यामः ॐ नमः हृदये 1 ॐ नं नमः वक्रे 2 ॐ मं नमः दक्षांसे 3 ॐ शिं नमः वामांसे 4 ॐ वा नमः दक्षिणोरौ 5 ॐ यं नमः वामोगै 6 इति गोलकन्यासे प्रथमः / / 1 / / ॐ नमः कंठे 1 ॐ नं नमः नाभौ 2 ॐ मं नमः दक्षिणपाचे 3 ॐ शिं नमः वामपार्चे 14 ॐ वां नमः पृष्टे 5 ॐ यं नमः हृदये 6 इति गोलकन्यासे द्वितीयः / / 2 / / ॐ नमः मूर्टि 1 ॐ नं नमः मुखे 2 ॐ मं नमः |दक्षनेत्रे३ ॐ शिं नमः वामनेत्रे 4 ॐ बां नमः दक्षिणनासापुटे 57 य नमः वामनासापुटे६इति गोलकन्यामे तृतीयः॥३॥ॐ ने नमः हस्तांगल्यग्रेषु 1 ॐ मं नमः हस्तांगुलिमुलेषु 2 ॐ शिं नमः मणिबंधयोः३ ॐ वां नमः कर्परयोः 4 ॐ यं नमः बाहुमूलयोः 5 इति ||गोलकन्यासे चतुर्थः॥४॥ॐ नं नमः पादांगुल्यग्रेषु 1 7 मं नमः पादांगुलीमूलेषु 2 ॐ शिं नमः गुल्फयोः 3 ॐ वां नमः जानुनोः| 4 ॐ यं नमः जंघयोः 5 इति गोलकन्यासे पंचमः // 5 // ॐ नमः शिरसि 1 ॐ नं नमः गुह्ये 2 ॐ मं नमः हृदये 3 ॐ शिं नमः क्षिये 1 ॐ वां नमः ऊरुद्रये 5 ॐ यं नमः पादद्वये 6 इति गोलकन्यामे षष्ठः ॥६॥ॐ नमः हृदये १ॐ नं| नमः वस्त्रांब्जे २ॐ मं नमः टंके 3 ॐ शिं नमः मृगे 4 ॐ वां नमः अभये 5 ॐ यं नमः बरे 6 इति गोलकन्यासे | सप्तमः // 7 // ॐ नमः वके 1 ॐ नं नमः अंसयोः २ॐ मं नमः हृदये 3 ॐ शिं नमः पादये 4 ॐ वां नमः For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org 0 ख०१ शि० 0 मं०म०ऊरुद्वये ५ॐ यं नमः जठरे 6 इति गोलकन्यासेऽष्टमः ॥८॥ॐ नं तत्पुरुषाय नमः मूर्ध्नि ॐ में अघोराय नमः भाले 2 ॐ शिं सद्योजाताय नमः उदरे 3 ॐ वां वामदेवाय नमः अंसयोः 4 ॐ यं ईशानाय नमः हृदये 5 इति गोलकन्यासे नवमः // 113 // समानः // 1 // ॐ नमोस्तु स्थाणुभूताय ज्योतिर्लिंगामृतात्मने // चतुर्मूर्तिवपुःस्थाय भसितांगाय शंभवे // 1 // इति व्यापकं न्य सेत्॥एवं दशन्यासान्कत्वा पार्वतीपतिं ध्यायेत् ॥अथ ध्यानम् // ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवगभीतिहस्तं प्रसन्नम्॥पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणेयांवक िवसानं विश्वायं विश्ववीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेम्॥१॥ इति ध्यात्वा पीठपुजां कुर्यात् / तद्यथा। पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले लिंगतोभद्रमंडले वा मंडकादिपरतत्त्वान्तपीठदेवतात्यो नमः इति पीठदेवताः पूज्य स्वागादिप्रादक्षिण्येन नव पीठशनीः पूजयेत् / तद्यथा / ॐ वामायै नमः / ॐ ज्येष्ठायै नमः 2 ॐ रौयै नमः ॐ काल्यै नमः / ॐ कलविकरिण्यै नमः 5 ॐ बलविकरिण्यै नमः 6 ॐ बलप्रमथिन्यै नमः 7 ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः 8 मध्ये ॐ मनोन्मन्यै नमः 1. इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्र मति वा ताम्रपात्र निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जल धारां च दत्त्या स्वच्छयण मंशोप्य - ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्तायानन्ताय योगपीठात्मने नमः " इति मंत्रग पुष्पा वासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्टां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा मलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपृज्य देवाज्ञया आवरणपूजा कुर्यात् // तद्यथा / मंविन्मयः परो देवः परामृतरमप्रिय // अनुज्ञां शिव मे देहि परिवारार्चनाय मे // इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात् // षट्कोणे ऐशान्याम ॐ ईशानाय नमः ईशानश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति 1 सर्वत्र पूर्वे ॐ तत्पुरुषाय नमः। For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir शिवपंचाक्षरीमत्रप्रयागावरणयंत्रम् / तत्पुरुषश्रीपा० 2 दक्षिणे ॐ अधोराय नमः / अघोरश्रीपा० 3 पश्चिमे ॐ बामदेवाय नमः वामदेवश्रीपा० 4 उनरे ॐ सद्योजाताय नमः मयो जातश्रीपा० 5 इति पंचमूतीः पूजयेत् / ततः पुष्पांजलिं गृहत्विा ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भन्या समर्पये तुभ्यं प्रथमाव Nरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // // ततः पटकोणाग्रेष ऐशान्याम् ॐ निवृत्त्यै नमः / निवृत्तिश्रीपा० 1 पूर्वे ॐ प्रतिष्ठायै नमः। प्रतिष्ठाश्रीपा० 2 दक्षिणे ॐ विद्यायै नमः विद्याश्रीपा०३ पश्चिमे ॐ शांत्यै नमः / शांतिश्रीपा०४ उत्तरे शांत्यतीतायै नमः / शांत्यती ताश्रीपा० 5 इति कलाः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् इति द्विती यावरणम् // 2 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतरालप्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण ॐ अनंताय नमः / अनन्तश्रीपा० 1 ॐ सूक्ष्माय नमः सूक्ष्मश्रीपा० 2 ॐ शिवोनमाय नमः / शिवोनमश्रीपा० 10 *गमःशिवाय For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // 114 // मं० म० 3 ॐ एकनेत्राय नमः / एकनेत्रश्रीपा० 4 ॐ एकरुद्राय नमः एकरुद्रश्रीपा० . ॐ त्रिमूर्तये नमः / त्रिमूर्तिश्रीपा० 6 ॐ श्रीकंठायपू० खं० 1 नमः / श्रीकंठश्रीपा० 7 ॐ शिखांडेने नमः / शिखंडिश्रीपा० 8 इति विनेशान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात / इति तृतीयावरणम् शि. M // 3 // ततोष्टदलायेषनरादिक्रमेण / ॐ उमायै नमः / उमाश्रीपा० 1 ॐ चण्डेश्वराय नमः चण्डेश्वरश्रीपा० 2 ॐ नंदिने नमः / / | तरं०६ नंदिश्रीपा० 3 ॐ महाकालाय नमः / कहाकालश्रीपा० 4 ॐ गणेशाय नमः गणेशश्रीपा० // ॐ वृषभाय नमः / वृषभश्रीपा०६ * ॐ गारिटये नमः / भुंगरिटिश्रीपा० 7 ॐ स्कंदाय नमः / स्कंदश्रीपा० 8 इति गणान्पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति चतुर्था वरणम् // 4 // ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण ॐ लं इन्द्राय नमः / ॐ अग्नये नमः 2 ॐ मं यमाय नमः 3 ॐ शं निव॑तये नमः / Kalॐ वं वरुणाय नमः 5 ॐ यं वायवे नमः 6 ॐ के कुबेराय नमः 7 ॐ हं ईशानाय नमः 8 इन्द्रेशानयोर्मध्ये ॐ आं ब्रह्मणे नमः / वरुणनितिमध्ये ॐ ह्रीं अनन्ताय नमः१०॥ इति इन्द्रादिदशदिक्मा लान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति पंचमावरणम् // 5 // , ततः पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिसमीपे ॐ वं वनाय नमः 1 ॐ शं शक्तये नमः 2 ॐ दं दण्डाय नमः 3 ॐ खं खड्गाय नमः / ॐ पा पाशाय नमः 5 ॐ अं अंकुशाय नमः 6 ॐ गं गदाये नमः 7 ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः 8 ॐ पं पद्माय नमः / ॐ चं चक्राय नमः 10 // इत्यत्राणि पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति षष्ठावरणम् // 6 // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य 114 // जिपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं चतुर्विशतिलक्षात्मकं जपः। जपांते दशांशेन वा चतुर्विशतिसहस्रमंत्रैः पायसं त्रिमधुपलाशन होमयेत् / तत्तदशांशेन तर्पणमार्जने कृत्वा शुद्धान विप्रांश्च पायसादिना भोजयेत् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साध For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassaga suyanmandir येत् / तथा च-तत्वलक्षं जपेन्मंत्र दीक्षितः शेववर्मना // तावत्संख्यामहस्राणि जुहुयात्यायसैः शुभैः // 1 // ततः सिद्धो भवेन्मंत्रः साधकाभीष्टसिद्विदः / इत्थं संपूजयेद्दवं सह नित्यशो जपेत // 2 // सर्वपापविनिर्मुक्तः प्राप्नुयाद्वांछितां श्रियम् // द्विसहस्र जपेद्रोगान्म च्यते नात्र संशयः // 3 // त्रिसहस्रं जपेन्मंत्र दीर्घमायुरवाप्नुयात् // सहस्रवृद्ध्या प्रजपेत्सर्वान्कामानवाप्नुयात् // 4 // आज्यान्विी तस्तिलैः शुद्धजयालक्षमादरात् // उत्पातजनितान्क्लेशान्नाशयेन्नात्र संशयः॥ शतलक्षं जपेत्साक्षाच्छिवो भवति मानवः॥ 5 // इति / शारदातिलकंक्तिशिवपंचाक्षरमंत्रप्रयोगः // अथ अदाक्षरीशिवमंत्रप्रयोगः (शारदातिलके) // मंत्री यथा--ह्रीं ॐ नमश्शिवाय ही इत्यष्टाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम्--ॐ अस्य श्रीशिवाष्टाक्षरमंत्रस्य वामदेव ऋषिः / पंक्तिच्छंदः / उमापतिर्देवता सर्वेष्टसिद्धये / विनियोगः // ॐ वामदेवर्षये नमः शिरसि / पंक्तिश्छंदसे नमः मुख 2 उमापतिदेवतायै नमः हृदि 3 विनियोगाय नमः सर्वांगे 4 इति ऋप्यादिन्यासः // ह्रीं ॐ अंगुष्ठाम्यां नमः / ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः 2 ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः 3 ॐ शि अनामिकाल्यां नमः ॐ वां कनिष्ठिकाभ्यां नमः ५ॐ यं करतलकरपृष्ठात्यां नमः 6 इति करन्यासः // ह्रीं ॐ हृदयाय नमः 1 ॐ नं शिरसे स्वाहा ॐ मंशिखायै वपट् 3 ॐ शिं कवचाय हुँ 4 ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट् 5 ॐ यं अस्त्राय फट 6 इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायत // "बंधूकसन्निभं देवं त्रिनेत्रं चन्द्रशेखरम् / / त्रिशूलधारिणं बंदे चारुहामं सुनिर्मलम् // 1 // कपालधारिणं देवं वरदानयहस्तकम् / / उमया सहितं शंभुं ध्यायेत्सोमेश्वर मदा // 2 // इति ध्यायेत् / ततः पीठादौ गचिते सर्वतोभद्रमंडले लिंगतोभद्र मंडले वा यूवात शिवे पीठे वामादिनवशक्तीः संपूज्य ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनान्यज्य तदुपरि दुग्धधारा For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अष्टाक्षरशिवमंत्रप्रयोगावरणयंत्रम् / Kelly0 ख०१ शितं. // 115 // जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रण संशोष्य ॐ सकलगुणात्मशक्तियुक्तायानतां ययोगपीठात्मने नमः।इति पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्यं प्रतिष्ठां च लकत्वा पुनर्थ्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य दे जावाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् / तद्यथा।संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रिय। अनुज्ञां शिव मे देहि परिवारार्चनाय च // इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजा कुर्य्यात / पदकोणकेसरेषु आग्नेयादिदिचतुर्दिक्षु मध्ये चॐ नं हृदयाय नमः। हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः इति सर्वत्र // 1 // ॐ म शिरसे स्वाहा शिरः श्रीमा० 2 ॐ शिं शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० Kela ॐ वां कवचाय हुं कवचश्रीपा० 4 ॐ यं अस्वाय फट अस्वश्रीपा०५ इति पंचांगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्सल॥जक्त्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरणार्चनम् // 8 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // 1 // तद्बाह्ये ॐ हृल्लेखायै नमः / हृल्लेखाश्रीपा० 1 ॐ 1 . X हाॐनमःशि. all // 1150 For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatin.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir गगनायै नमः / गगनाश्रीपा० 2 ॐ रक्ताय नमः। रक्तश्रीपा० 3 ॐ कालिकायै नमः कालिकाश्रीपा० 4 ॐ महोच्छुप्मायै नमः। महोच्छ्ष्माश्रीपा० 5 इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात्॥इति द्वितीयावरणम्॥२॥ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराला प्राची तदनुसारेण / अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण ॐ वृषभाय नमः। वृषभश्रीपा० 1 ॐ क्षेत्रपालाय नमः / क्षेत्रपालश्रीपा० 2 ॐ दुर्गायै नमः। दुर्गाश्रीपा० 3 ॐ कार्तिकेयाय नमः कार्तिकेयश्रीपा० 4 ॐ नंदिन नमः / नंदिश्रीपा० . ॐ विनेशाय नमः / विघ्नेशश्रीपा० 6 ॐ श्यामाय नमः।श्यामाश्रीपा० 7 ॐ सेनाय नमः। सेनश्रीपा• 8 इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति तृतीयावरणम् // 3 // तबाह्ये प्राच्यादिक्रमेण ॐ बायै नमः / ब्राह्मीश्रीपा० 1 ॐ माहेश्वर्य नमः। माहेश्वरीश्रीपा. 2 ॐ कौमार्य नमः / कौमारीश्रीपा० 3 ॐ वैष्णव्यै नमः / वैष्णवीश्रीपा० 4 ॐ वाराह्य नमः / वाराहीश्रीपा-५ॐ इन्द्राण्यै नमः / इन्द्राणीश्रीपा०६ ॐ चामुंडायै नमः / चामुंडाश्रीपा०७ ॐ महालक्ष्म्यै नमः / महालक्ष्मीश्रीपा० 8 इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात / इति चतुर्थावरणम् // 4 ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान् वज्राद्यायुधानि च पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादि नमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरणं चतुर्दशलक्षं जोत तत्तदशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मभोजनं च कुर्यात् ।एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति सिद्ध च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / तथा च / “मनुलक्षं जपेन्मंत्रं तत्सहस्रं यथाविधि // जुहुयान्मधुरासिक्तैरारम्बधस। मिरैः // 1 // एवं यो भजते मंत्री देवेशंतमुमापतिम् // स भवेत्सर्वलोकानां प्रियः सौभाग्यसंपदाम् // 2 // इत्यष्टाक्षरशिवमंत्रप्रयोगः॥ अथ व्यक्षरमृत्युंजयमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ शारदायां च ) मंत्रो यथा-ॐ हौ जं सः। अस्य विधानम् / अस्य व्यक्षरात्मकमृत्युंजय For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 0 = मंत्रस्य कहोल ऋषिः।गायत्री छंदः।मृत्युंजयो महादेवो देवता / जूं बीजम्। सः शक्तिः।सर्वेष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॐ कहोर्षये नमः | शिरसि 1 गायत्रीछंदसे नमः मुखे 2 मृत्युंजयमहादेवदेवतायै नमः हृदि 3 जूं बीजाय नमः गुह्ये 4 सः शक्तये नमः पादयोः 5 // शित. विनियोगाय नमः माङ्ग 6 इति ऋष्यादिन्यामः॥ ॐ मां अंगुष्ठात्यां नमः 1 ॐ सी तर्जनीन्यां नमः 2 ॐ मूं मध्यमात्यां नमः 3 तरं०६ ॐ मैं अनामिकाभ्यां नमः 4 ॐ मां कनिष्ठिकाभ्यां नमः ५ॐ मः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 इति करन्यासः // ॐ सां हृदयाय नमः / ॐ मी शिरसे स्वाहा २ॐ सू शिखायै वषट् 3 ॐ मैं कवचाय हुँ 4 ॐ मां नेत्रत्रयाय वौषट् ५ॐ सः अस्त्राय फट / इति हृदयादिपडंगन्यासः // एवं न्यासं कन्या ध्यायेत् / चन्द्राकामिविलोचनं स्मितमुखं पनद्वयातःस्थितं मुद्रापाशमृगाक्षसूत्रविलासन्दा प्राणि हिमांशुपनम् / / काटीरन्दगलसुधाप्लततनं हारादिभूपोज्ज्वलं कात्या विश्वविमोहनं पशुपति मृत्युंजयं भावयेत् / / 1 / / इति ध्यात्या सर्वतोभद्रमंडले लिंगतोभद्रमंडले वा पीठपजां विधाय पूक्ति शिवपीठे वामादिनवपीठशक्तीः संपूजयेत् / तद्यथा / पूर्वादिक्रमण / ॐell वामायै नमः 1 ॐ ज्येष्ठाय नमः२ॐ रौयै नमः३ ॐकाल्यै नमः 4 ॐ कलविकरिण्यै नमः५ॐ बलविकारिण्यै नमः६७ बलप्रमथिन्य नमः 7 ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः 8 मध्ये ॐ मनोन्मन्यै नमः 5 इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मृति वा तानपात्र निधाय / धृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रण संशोष्य ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय अनंताय योगपीठा कात्मने नमः // इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पायादिपुष्पांतरुपचारैः||74 संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्य्यात् // पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रिय // अनुज्ञां शिव मे देहि परिवाराच // 116 // For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir न्यारीमृत्युंजययंत्रम्। नाय मे // इत्याज्ञां गृहीत्वा षट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिा मध्य दिक्षु च ॐ सां दयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः 1 ॐ सी शिरसे स्वाहा / शिरःश्रीपा० 2 ॐ सू शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा०३ ॐ मैं कवचाय हूँ।कवचश्रीपा० 4 ॐ सौं नेत्रत्रयाय वीपट् ।नेत्रत्रयश्रीपा० ५ॐ सः अस्त्राय फट्। अस्वश्रीपा०६इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुचार्य्य "अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुत्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विदु निक्षिप्य पूजितास्त पिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // ततो भूपूरे इन्द्रादिदश दिक्पालान् बजायायुधानि च पूजयित्वा पुष्पजलिं दद्यात् / / इत्याव रणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरणं लक्षत्रयं जपः / पुरश्चरणदशांशेन दुग्धाज्यलोलितैरमृताखंडहोमः / तत्तदशांशन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो ॐ हौजूस: For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . म. // 11 // भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / (तथा च शरदायाम् ) "गुणलक्षं जपेन्मत्रं तद्दशांशं विशालधीः // जुहुयादमृताखंडः। पू० ख०१ शुद्धदुग्धाज्यलोलितैः॥१॥ जपपूजादिभिः सिद्धे मंत्रेऽस्मिन्मनुना कमात् // कुर्य्यात्प्रयोगान् कल्पोक्तानभीष्टान्फलसिद्धये // 2 // दुग्ध शुद्धदुग्धा शि• तं. युक्तैः सुधाखंडैमंत्री मासं सहस्रकम॥ आराधितेग्नौ जुहुयाविधिवद्विजितेन्द्रियः // 3 // संतुष्टः शंकरस्तेन सुधाप्लावितविग्रहः // आयु रारोग्यसंपत्तियशःपुत्रान्विवर्द्धयेत् // 4 // सुधावटौ तिला दर्वाः पयः सर्पिः पयोहविः // इत्युक्तैः सप्तभिर्दव्यैर्जुहुयात्सप्तवासरम्॥ 5 // क्रमादशांशतो नित्यमष्टोत्तरमतन्द्रितः // सप्ताधिकान द्विजान्नित्यं भोजयेन्मधुरान्वितम् // 6 // विकारानुगुणं मंत्री वर्द्धयेद्धोमवासरान् // होतृत्यो दक्षिणां दद्यादरुणा गाः पयस्विनीः॥ 7 // गुरु संप्रीणयेत्पश्चाद्धनादेवताधिया / अनेन विधिना साध्यं कृत्वा द्रोहज्वरा दिभिः // 8 // विमुक्तः सुचिरं जीवेच्छरदां शतमंजसा // अभिचारे ज्वरे तीब्रे घोरोन्मादे शिरोगदे // 9 // असाध्यरोगक्ष्वेडादौ / महादाहे महामये // होमोयं शांतिदः प्रोक्तः सर्वसम्पत्प्रदायकः // 10 // द्रव्यरेतेः प्रजहुयात्रिजन्मसु यथाविधि // भोजयेन्मधुरै छ दाभोज्यालणान्वेदपारगान् // 11 दीर्घमायुरवामेति वांछितां विंदति श्रियम् // एकादशाहुतीनित्यं दूर्वाभिर्जुहुयाद्धः // 12 // अप मृत्युजिदेष स्यादायुरारोग्यवर्द्धनः // द्विजन्मसु सुधावल्लीकाश्मरीबकुलोद्भवैः // 13 // समिद्वरैः कृतो होमः सर्वमृत्युगदापहः // ति धान्नविहितो होमो महाज्वरविनाशनः // अपामार्गसमिद्धोमः सर्वामयनिषूदनः // 14 // इति त्र्यक्षरमृत्युंजयमंत्रप्रयोगः // अथ व्यंबकमंत्रप्रयोगः॥ (शारदातिलके) “अथ त्रैय्यबकं मंत्रमभिधास्याम्यनुष्टुभम् // यं भजंतं नरं कालः स्वयं वीक्षितुमक्षमः॥३॥" 117 // मंत्रो यथा-"ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिम्पुष्टिवर्धनम् // उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्" इति मंत्रः / अस्य विधानम् / / For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir నా కు నా తల 5 अस्य व्यंबकमंत्रस्य वसिष्ठ ऋषिः / अनुष्टुप् छन्दः / त्र्यंबकपार्वतीपतिर्देवता / व्यं बीजम् / वं शक्तिः / के कीलकम् / सर्वेष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः / ॐ वसिष्ठर्षये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे // 2 // त्र्यंबकपार्वतीपतिदेवतायै नमः हृदि // 3 // व्यं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // व शक्तये नमः पादयोः // 5 // कं कीलकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ त्र्यंबकम् अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // यजामहे तर्जनीभ्यां नमः // 2 // सुगंधिं पुष्टिवर्धनं मध्यमान्यां नमः // 3 // उर्वारुकमिव बंधनात अनामिकाभ्यां नमः // 5 // मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // मामृतात् करतल करपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ त्र्यंबकं हृदयाय नमः // 1 // यजामहे शिरसे स्वाहा // 2 // सुगंधिम्पुष्टिवर्धन शिखायै वषट् // 3 // उर्वारुकमिव बंधनात् कवचाय हुँ॥ 4 // मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // मामृतात अस्वाय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ त्र्यं नमः पूर्वमुखे ॥१॥ॐ वं नमः पश्चिममुखे // 2 // ॐ के नमः दक्षिणमुखे // 3 // ॐ यं नमः उत्तरमुखे // 4 // ॐ जां नमः उरसि // 5 // ॐ मं नमः कंठे // 6 // ॐ हे नमः मुखे // 7 // ॐ सुं नमः नाभौ // 8 // ॐ गं नमः हृदि // 9 // ॐ धिं नमः पृष्ठे // 10 // ॐ नमः कुक्षौ ॥११॥ॐ ष्टिं नमः लिंगे // 12 // ॐ वं नमः गुदे // 13 // ॐ ध नमः दक्षिणोरुमूले // 14 // ॐ नं नमः बागोरुमूले // 15 // ॐ ऊँ नमः दक्षिणोरुमध्ये // 16 // ॐ वो नमः वामोरुमध्ये // 17 // ॐ 5 नमः दक्षिणजानुनि // 18 // ॐ कं नमः वामजानुनि // 19 ॥ॐ मिं नमः दक्षिणजानुवृत्ते॥२०॥ For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir तरं०६ म०म०ॐ वं नमः वामजानुवृत्ते // 21 // ॐ वं नमः दक्षिणम्तने // 20 // ॐ धं नमः वामस्तने // 23 // ॐ नां नमः दक्षिणपाचे खं० 1 // 24 // ॐ मृ नमः वामपाचे // 25 // ॐ त्यो नमः दक्षिणपादे // 26 // ॐ मुं नमः वामपादे ॥२७॥ॐाँ नमः दक्षिणकरे, // 28 // ॐ यं नमः वामकरे // 29 // ॐ मां नमः दक्षनासायाम् // 30 // ॐ मुं नमः वामनासायाम् // 33 // ॐ ता नमः / मूर्ध्नि // 32 // इति मंत्रवर्णन्यासः // ॐ त्र्यंबकं शिरमि // 1 // यजामहे वौः॥ २॥सुगंधिं पुष्टिनेत्रयोः॥३॥वर्धनं मुखे // 4 // उर्वारुकं गंडयोः // 5 // इव हृदये // 6 // बंधनात् जठरे / / 7 // मृत्योः लिंगे // 8 // मुशीय हृदये // 9 // मा जान्योः१०॥ मृतात् पादयोः // 11 // इति पदन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयंत शिरो द्वायां तौ दधत मृगाक्षवलये द्वाश्यां वहतं परम् // अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकांतं शिवं स्वच्छांनोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे // 1 // इति ध्यायेत् / पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमण्डले लिंगतोभद्रमण्डले वा मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / पूर्वादिक्रमेण / ॐ वामायै नमः // 1 // ॐ ज्येष्ठायै नमः // 2 // ॐ रौद्यै नमः // 3 // ॐ काल्यै नमः // 4 // ॐ कलविक रिण्यै नमः॥ 5 // ॐ बलविकरिण्यै नमः // 6 // ॐ बलप्रमथिन्यै नमः // 7 // ॐ सर्वभतदमन्यै नमः // 8 // मध्ये ॐ मनो न्मन्यै नमः॥ 9 // इति पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मृर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च // 11 // दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय अनन्ताय योगपीठात्मने नमः / इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा | For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य तत्र वृषभध्वजं त्र्यंबकं देवं पायादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया / आवरणपूजां कुर्यात् / तद्यथा / पुष्पांजलिमादाय "ॐ मंबिन्मयः परो देवः परामृतरमप्रिय // अनुज्ञां शिव मे देहि परिवारार्चनाय मे // 3 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा देवाज्ञां विज्ञाव्य आवरणपूजां कुर्य्यात / तद्यथा / षट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतु दिक्षु मध्ये दिक्षु च ॐ त्र्यंबकं हृदयाय नमः / हृदये श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / यजामहे शिरसे स्वाहाँ शिरःश्रीपा० 2 मुगंधिम्पुष्टिवर्धनम् / शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० 3 उर्वारुकमिव बन्धनान कवचाय हुँ / कवचश्रीपा० 4 मृत्योर्मुक्षीय / नेत्रत्रयाय था चौपटं / नेत्रत्रयश्रीपा० 5 मामृतात् अवाय फट / अबश्रीपा०६ इति पडंगानि पूजयेत् // ननः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तत्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोऽष्टदले पूज्यपूजकयोरंतरालं प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीकमेण / ॐ अर्कमूर्तये नमः / अर्कमृतिश्रीपा० 1 ॐ इन्दुमूर्तये नमः। इन्दुमूर्तिश्रीपा. 2 ॐ वसुधामूर्तये नमः / वसुधामूर्तिश्रीपा० 3 ॐ तोयमूर्तये नमः तोयमृतिश्रीपा० 4 ॐ वह्निमूर्तये नमः / वह्निमृतिश्रीपा० 5 ॐ वायुमूर्तये नमः / वायुमूर्तिश्रीपा० 6 ॐ आकाशमूर्तये नमः / आकाशमूर्तिश्रीपा० 7 ॐ यजमानमूर्तये नमः / यजमानमूर्तिश्रीपा० 8 इत्यष्टौ मूर्तीः / पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम् // 2 // तद्वाह्येऽष्टदले प्राचीक्रमेण / ॐ रमायै नमः। रमाश्री०१ ॐ राकायै नमः। For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्र्यंबकपूजनयंत्रम् / पू० ख०१ शि० त० // 119 // 972 KE राकाश्रीपा० 2 ॐ प्रभायै नमः। प्रभाश्रीपा० 3 ॐ ज्योत्स्नायै नमः। ज्योत्स्ना श्रीपा० 4 ॐ पूर्णायै नमः। पूर्णाश्रीपा० ५ॐ ऊपायै नमः ऊपाश्रीपा० ६ॐ Kalपूरण्यै नमः। पूरणीश्रीपा० 7 ॐ सुधायै नमः / सुधाश्रीपादुकां पूजयामि 8 इत्यष्टौ शक्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति तृतीयावरणम् // 3 // तद्वाह्येष्टदले प्राचीक्रमण / ॐ विश्वायै नमः / विश्वाश्रीपा. 1 ॐ विद्यायै नमः / विद्याश्रीपा० २ॐ सितायै नमः / सिताश्रीपा० 3 ॐ प्रहाय नमः। प्रबाश्रीपा० 4 ॐ रारायै नमः राराश्रीपा. 5 ॐ संध्यायै नमः / संध्याश्रीपा० 6 ॐ शिवायै नमः / शिवाश्रीपा. ७ॐ निशायै नमः। लानिशाश्रीपा० 8 इत्यष्टौ शक्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति चतुर्था वरणम् // 4 // तद्बाह्येष्टदले प्राचीक्रमेण / ॐ आर्य्यायै नमः। आर्याश्री० 9 ॐ प्रज्ञायै नमः / प्रज्ञाश्रीपा. 2 ॐ प्रनायै नमः / प्रभाश्रीपा० 3 ॐ मेधायै नमः / मेधाश्रीपा. 4 ॐ शांत्यै नमः / शांतिश्रीपा० ५ॐ कात्यै नमः / कांतिश्रीपा०६ ॐ धृत्यै नमः / धृतिश्रीपा. 7 ॐ मृत्यै ज्यवायजा महे० // 119 // For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org नमः / मृतिश्रीपा० 8 इत्यष्टौ शक्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति पंचमावरणम् // 5 // तबाह्येष्टदले प्राचीक्रमण ॐ धारायै नमः / धाराश्री. 1 ॐ मायायै नमः / मायाश्रीपा० 2 ॐ अवन्यै नमः / अवनिश्रीपा० 3 ॐ पद्मायै नमः। पद्माश्रीपा०४ ॐ शांतायै नमः / शांतश्रीपा० ५ॐ मोपायै नमः मोघाश्रीपा०६ ॐ जयायै नमः जयाश्री०७ ॐ अमलायै नमः। अमलाश्रीपा० 8 इत्यष्टौ शक्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति षष्ठावरणम् // 6 // ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान वज्राद्यायुधानि च पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरण | मकलक्षजपः। दशद्रव्यैर्दशांशतो होमः। तत्तद्दशांशेन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात / एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / तथा च "जपेन्मंत्रमिमं लक्षमेवं ध्यायञ्जितेन्द्रियः // जुहुयाद्दशभिर्द्रव्यैरयुतं घृतसंप्लुतैः॥१॥ बिल्वं पलाश खदिरं परं च तिलसर्षपौ // दुग्धं दधि पुनर्वा होमे तानि विदुर्बुधाः // 2 // एवंकते प्रयोगार्हो जायतेऽयं महामनुः // अयुतं जुहुया / दिल्वसमिद्भिः संपदे सुधीः // 3 // जुहुयाद्ब्रह्मवृक्षस्य समिद्भिर्बलतेजसे / खादिरैरयुतं हुत्वा कांतिं पुष्टिमवानुयात् // 4 // वट वृक्षस्य समिधो जुहुयादयुतावधि // धनधान्यसमृद्धः स्यादचिरेणैव साधकः // 5 // तिलैस्तत्संख्यया हुत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते // सिद्धार्थेरयुतं हुत्वा शत्रून्विजयते नृपः // 6 // अनेनैव विधानेन नश्येन्मृत्युरकालजः // पायसेन कृतो होमो रक्षाश्रीकीर्ति कांतिदः॥ // 7 // गोदुग्धेन च शुद्धानं हुत्वा कृत्यां विनाशयेत् // अयमेव मतो होमः शांतिश्रीसंपदावहः // 8 // दधिहोमेन संवादं कुर्यादि For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir विंशतिशत 206 देषिणोर्मिथः // प्रत्यहं जुहुयान्मंत्री दूर्वाअष्टोत्तरं शतम् // 9 // आमयान्निखिलाञ्जित्वा दीर्घमायुरवामुयात्॥जुहुयाजम्बकाप्टेन पायसा शितं. घृतान्वितैः // 10 // इच्छन्ननिंदितां लक्ष्मीमारोग्यमतुलं यशः // गव्यदुग्धधृताक्ताभिर्वाभिर्जुहुयादशी // 11 // स विंशतिशतं तरं०६ सम्यक् स्वजन्मदिवसे सुधीः // आमयैः सकलैर्मुक्तो जविवर्षशतं मुधीः // 12 // काश्मरीसमिस्तिस्रः पयोन्नं त्रिशतं पृथक् // जुहुयाद्ब्राह्मणानंते भोजयेन्मधुरान्वितम् // 13 // पीणयेद्धनधान्याद्यैरात्मनो गुरुमादरात् // अनामयमवानोति दीर्घमायुः श्रिया सह // 14 // सघृतेन पयोन्नन हुत्वा पर्वणि मंत्रिणे // राजश्रियमवामोति षण्मासान्नात्र संशयः।। १५॥लाजैविशुद्ध हुयात्कन्या सैषा बरामये // क्षीरद्रुमसमिद्धोमाद्राह्मणादीन्वशं नयेत् // 16 // स्नात्वा सहस्रं प्रजपेदादित्याभिमुखो मनुम् // आधिव्याधि / विनिर्मुक्तो दीर्घमायुरवामुयात् // अनेन मनुना सर्व साधयेदिष्टमात्मनः" // इति त्र्यंबकमंत्रप्रयोगः // अथ महामृत्युंजय / मंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ ) महामृत्युंजयं वक्ष्ये दुरितापन्निवारणम् // यं प्राप्य भार्गवः शंभोम॒तान् दैत्यानजीक्यन् // 3 // मंत्री यथा--"ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् // उर्वारुकमिव बंधनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् / भूर्भुवः स्वरों जूं सः हौं ॐ” इति मंत्रः / अस्य विधानम् / देशकालौ संकीर्त्य मम शरीरे ज्वरायमुकरोगनिरासद्वारा / सद्यः आरोग्यार्थममुककामनासिद्ध्यर्थं वा श्रीमहामृत्युजयदेताप्रीत्यर्थममुकसंख्यापरिमितश्रीमहामृत्युंजयजपं करिष्ये इति संकल्प्य // on ॐ गुरुवे नमः // 1 // ॐ गणपतये नमः // 2 // ॐ स्वष्टदेवतायै नमः // 3 // इति नत्वा न्यासादिकं कुर्यात् / तद्यथा / // 12 // For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॐ अस्य श्रीमहामृत्युंजयमंत्रस्य वामदेवकहोलवशिष्ठा ऋषयः। पंक्तिगायत्र्यनुष्टुभश्छंदांसि / सदाशिवमहामृत्यंजयरुद्रा देवताः / श्री बीजम् / ह्रीं शक्तिः / महामृत्युजयप्रीतये जपे विनियोगः। ॐ वामदेवकहोलवशिष्टऋषियो नमः शिरसि // 1 // पंक्तिगायत्र्यनष्टुप्छंदो। यो नमः मुखे // 2 // सदाशिवमहामृत्युजयरुद्रदेवतात्यो नमः हृदि // 3 // श्रीबीजाय नमः गुह्ये // 4 // ह्रीं शक्तये नमः। पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ हौं ॐ जूं सः भर्भुवःस्वः त्र्यंबकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठात्यां नमः॥१॥ ॐ हौंसः भर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते राय अमृतमूर्तये मां जीवय तर्ज नात्यां नमः // 2 // ॐ हाजूं सः भर्भुवः स्वः सुगंधिं पुष्टिवर्धन ॐ नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यमाभ्यां नमः॥ 3 // ॐ हौजूसः भर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बंधनात् ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरांतकाय हाहीअनामिकाया नमः // 4 // ॐ हौजूसः भर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमा भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुःसाममंत्राय कनिष्ठिकान्यां नमः॥५॥ ॐ हौंज सः भूर्भुवः स्वः मामृतात ॐ नमो भगवते रुद्राय ॐ अग्नित्रयाय ज्वलज्वल मां रक्षरक्ष अघोरास्वाय करत लकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ हाजूं सः भूर्भुवःस्वः त्र्यंबकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये हृदयाय नमः // 1 // ॐ हौंजूं सः भभुवःस्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये मां जीवय शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ हौं जूं सः भूर्भुवःस्वः सुगंधिम्पुष्टिवर्धनं ॐ नमो भगवते रुद्राय चन्द्राशरसे जटिने शिखायै वषट् // 3 // ॐ हौं जूं सः भर्भुवःस्वः उर्वारुकमिव बं| धनात् ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरांतकाय हां ही कवचाय हुँ॥४॥ ॐ हौजूं सः भर्भवःस्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगरते रुद्राय For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म शिलोचनाय ऋग्यजुःसाममंत्राय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ हौंजूं सः भूर्भुवःस्वः मामृतात् ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय पू० खं० / ज्वलज्वल मां रक्षरक्ष अघोरास्त्राय फट् // ६॥इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ हौंजूं सः भूर्भुवःस्वः त्र्यं नमः पूर्वमुखे // 1 // शि. ॐ हौं ॐजूं सः भूर्भुवःस्वः बं नमः पश्चिममुखे // 2 // ॐ हौं. जूं सः भूर्भुवःस्वः कं नमः दक्षिणमुखे // 3 // ॐ हौंॐजूं सः भूर्भुवः तरं० स्वः यं नमः उत्तरमुखे // 4 // ॐ हौजूं सः भूर्भुवः स्वः जां नमः उरसि // 5 // ॐ हौजूं सः भूर्भवः स्वः मं नमः कंठे // 6 // BIॐ हैाजूं सः भूर्भुवः स्वः हे नमः मुखे // 7 // ॐ हौजूं सः भूर्भुवः स्वः मुं नमः नाभौ // 8 // ॐ हौजूं सः भूर्भुवःस्वः | नमः हृदि // 1 // ॐ हौंॐजूंसः भर्भवः स्वःधि नमः पृष्ठे // 10 // ॐ हौंजूंसः भूर्भुवः स्वः पुं नमः कुक्षौ // 11 // ॐ हौं जंसः भूर्भुवः स्वः ष्टिं नमः लिंगे // 12 // 7 हजुमः भर्भवः स्वः वं नमः गुदे // 13 // ॐ हौंॐ जूंसः भूर्भुवः स्वः धै। नमः दक्षिणोरुमूले // 14 // ॐ हौंजूंमः भूर्भुवःस्वः नं नमः वामोरुमूले // 15 // ॐ होगः भूर्भुवःस्वः उं नमः दक्षिणोरु मध्ये // 16 // ॐ हौॐ जूंसः भूर्भुवःस्वः वा नमः बामोरुमध्ये // 17 // ॐ हौजूमः भूर्भुवः स्वः सं नमः दक्षिणजा नुनि // 18 // ॐ हौंजूंसः भूर्भुवः स्वः कं नमः वामजानुनि // 19 // ॐ हौजूसः भूर्भुवः स्वः मि नमः दक्षिणजानु / धावृत्ते // 20 // ॐ हींॐजूमः भूर्भुवः स्वः वं नमः वामजानुवृने // 21 // ॐ हौजूसः भूर्भुवः स्वः बं नमः दक्षिणस्तने // 22 // 3 . 121 // ॐ हौंजूंसः भूर्भुवः स्वः धं नमः वामस्तने // 23 // ॐ हौजसः भूभुवः स्वः नान्नमः दक्षिणपार्थे // 24 // ॐ हौंॐजनः भूर्भुवः स्वः मुं नमः वामपार्थे // 25 // ॐ हींॐ जूंसः भूर्भुवः स्वः त्योर्नमः दक्षिणपादे // 26 // ॐ हौंजूंमः भूर्भुवःस्वः // For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir అమలు మన मुं नमः वामपादे / / 27 // ॐ हौँ ॐ जूंसः भर्भुवःस्वः क्षीं नमः दक्षकरे // 28 // ॐ हा ॐ जूंसः भूर्भुवःस्वः यं नमः वामकरे // 29 // ॐ हाँ जुसः भर्भुवःस्वः मां नमः दक्षनासायाम् // 30 // ॐ है| ॐ जॅमः भूर्भुवः स्वः म॒ नमः वामनासायाम // 31 // ॐ हौं ॐ जूंसः भर्भवःस्वः तान्नमः मूर्ति // 32 // इति मंत्रवर्णन्यासः / / ॐ हौं ॐजूमः भूर्भुवःस्वः त्र्यंबकं नमः शिरसि | // 1 // ॐ हौं ॐ जूंसः भूर्भुवःस्वः यजामहे नुनोः // 2 // ॐ हौं ॐ जंसः भूर्भुवःस्वः सुगंधि नेत्रयोः // 3 // ॐ हौं ॐ जुसः भूर्भुवःस्वः पुष्टिवर्धनं मुखे // 4 // ॐ हौं ॐ जूंमः भूर्भवः स्वः उर्वारुकं गंडयोः // 5 // ॐ हौं ॐ जूंगः भूर्भुवःस्वः इव हृदये॥६॥ ॐ हौं ॐ अंमः भूर्भुवःस्वः बंधनात जठरे // 7 // ॐ हौं ॐ जुसः भूर्भुवः स्वः मृत्योः लिंगे // 8 // ॐ हौं ॐ जनः भूर्भुवःस्वः मुक्षी| काय ऊर्वोः // 9 // ॐ हीं ॐ जूंमः भूर्भुवःस्वः मा जान्योः // 10 // ॐ हौं ॐजुसः भूर्भुवःस्वः अमृतात् पादयोः // 11 // इति पद न्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् / “हस्तांभोजयुगस्थकंमयुगलादुद्धृत्य तोयं शिरः सिंचतं करयोगेन दधतं स्वांके सकुंभौ करौ॥al अक्षम्रङ्मृगहस्तमंचुजगतं मूर्द्धस्थचन्द्रस्रवत्पीयूषोन्नतनं भजे सगिरिजं मृत्युंजयं त्र्यंबकम् // " इति / ततः पीठादौ रचिते सर्वतो थे भद्रमण्डले लिंगतोभद्रमण्डले वा ॐ मं मंडुकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताायो नमः इति पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / / तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण / ॐ वामायै नमः // 1 // ॐ ज्येष्ठायै नमः // 2 // ॐ रोयै नमः // 3 // ॐ काल्यै नमः // 4 // ॐ कलविकरिण्यै नमः // 5 // ॐ बलविकरिण्यै नमः // 6 // ॐ बलप्रमथिन्यै नमः // 7 // ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः // 8 // मध्ये ॐ मनोन्मन्यै नमः // 9 // इति पूजयेत / ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्र मृति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारा కన్ను For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir i०म०जलधारां च दच्या स्वच्छयोणाशोष्य "ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुताय अनन्ताय योगपीठा-मने नमः // " इति मंत्रणसं. 1 पुष्पायासनं दत्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च रुत्वा पुनर्व्यात्वा मलेन भर्ति प्रकल्प्य पाचादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरण शितं. पूजां कुर्यात् / तद्यथा। पुष्पांजलिमादाय "संविन्मयः परो देवः परामृतरसपिय॥अनुनां शिव मे देहि परिवारार्चनाय मे॥३॥"इत्यानांतरं०६ गृहीत्वा पुष्पांजलिं च दत्त्या आवरणपूजा कऱ्यांत // पंचकोणे / ईशान्याम् " ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपति ब्रह्मणोधिपतिर्बला शिरोभे अस्त सदाशिवोम // ॐ ईशानाय नमः / ईशानश्रीपादुकां पूजयामि यामि नमः॥इति सर्वत्र // 1 // पूर्वेधी HIॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि॥तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्" ॐ तत्पुरुषाय नमः। तत्पुरुषशीपा०॥२॥दक्षिणे-"ॐ अघोरेन्योऽय घोरेश्यो घोरघोरतरेत्यः॥ मायः सर्वशत्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेयः॥ "ॐ अघोराय नमः / अघोरश्रीपा०॥३॥पश्चिमे-ॐ वामदे बाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्व भूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः॥" ॐ वामदेवाय नमः / बामदेवश्रीपा०॥४॥उत्तरे ॐ सद्योजावं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः // ॐ सद्योजाताय नमः / सद्योजातश्रीपा० // 6 // इति पंचमूर्तीः पूजयेत् // ततः पुष्पांज पालिमादाय मूलमुच्चार्य "अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा / पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_विंदु निःक्षिप्य पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // 1 // ततः पंचकोणाग्रेषु पेशा न्यादिक्रमेण / ॐ निवृत्त्यै नमः / निवृत्तिश्रीपा० // 1 ॥ॐ प्रतिष्ठायै नमः / प्रतिक्षाश्रीपा० // 2 // ॐ विद्यायै नमः। For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir विद्याश्रीपा० // 3 // ॐ शांत्यै नमः / शांतिश्रीपा० // 4 // ॐ शात्यतीतायै नमः / शांत्यतीताश्रीपा० // 5 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽष्टदले पूज्यपूजकयोरंतरालं प्राची तदनुसारेण अन्याश दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण / ॐ सूर्य्यमूर्तये नमः / सूर्य्यमूर्तिश्रीपा० // 1 // ॐ इन्दुमूर्तये नमः। इन्दुमूर्तिश्रीपा० // 2 // ॐ क्षितिमूर्तये नमः / क्षितिमूर्तिश्रीपा० // 3 // ॐ तोयमूर्तये नमः। तोयमूर्तिश्रीपा०॥४॥ ॐ अग्निमूर्तये नमः। अग्रिमूर्तिश्रीपा० // 5 // ॐ पवनमूर्तये नमः ! पवनमूर्तिश्रीपा०॥६॥ॐ आकाशमूर्तये नमः / आकाशमूर्तिश्रीपा० // 7 // ॐ यज्ञमूर्तये नमः / / यज्ञमूर्तिश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ मूर्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति तृतीयावरणम् // 3 // तद्वहिरष्टदले प्राचीन मेण ॐ॥ रमायै नमः / रमाश्रीपा०॥ 1 // ॐ राकायै नमः। राकाश्रीपा० // 2 // ॐ प्रभायै नमः। प्रभाश्रीपा० // 3 // ॐ // ज्योत्स्नायै नमः / ज्योत्स्नाश्रीपा०॥४॥ ॐ पूर्णायै नमः / पूर्णाश्रीपा० // 5 // ॐ पूषायै नमः / पूषाश्रीपा० // 6 // ॐ पूण्य नमः / पूर्णीश्रीपा० // 7 // ॐ सुधाय नमः / सुधाश्रीपा० // 8 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात / इति चतुर्था / वरणम् // 4 // तदहिरष्टदले प्राचीक्रमेण / ॐ विश्वायै नमः / विश्वाश्रीपा० // 1 // ॐ वंद्यायै नैमः। बंद्याश्रीपा० // 2 // ॐ सितायै नमः / सिताश्रीपा० ॥३॥ॐ प्रहाय नमः / प्रह्वाश्रीपा० // 4 // ॐ साराय नमः / साराश्रीपा० // 5 // ॐ संध्यायै नमः / संध्याश्रीपा० // 6 // ॐ शिवायै नमः / शिवाश्रीपा० // 7 // ॐ निशायै नमः। निशाश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति पंचमावरणम् // 5 // तद्वहिरष्टदले प्राचीक्रमेण / ॐ आर्य्यायै नमः। आर्याश्रीपा० For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० महामृत्युंजयपूजनयंत्रम्। // 123 // EPVT PI शितं. तर०६ R / / 123 // For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.abar.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmar Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kenda www.kobatrom.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir yापू०ख०. महामृत्युंजयपूजनयंत्रम् / TOTO तर INE For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavian Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir 0 ख० 1 शित. तरं० 6 मं० म० // 1 // ॐ प्रज्ञायै नमः / प्रज्ञाश्रीपा० // 2 // ॐ प्रभाय नमः / प्रभाश्रीपा० // 3 // ॐ मेधायै नमः / मेधाश्रीपा०॥४॥ ॐ ..... शांत्यै नमः / शांतिश्रीपा० // 5 // ॐ कात्य नमः / कांतिश्रीपा० // 6 // ॐ धृत्ये नमः / इतिश्रीपा० // 7 // ॐ मन्यै नमः नतिश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पप्पांजलिं च दद्यात् / इति षष्ठावरणम् // 6 // हिरदले प्राचीकमेण ! ॐ नमः। धराश्रीपा०॥॥ ॐ उमाय नमः / उमाश्रीपा० // 2 // ॐ पावन्यै नमः / पावनीश्रीपा० // 3 // ॐ पायै नमः। मानीपान // 4 // ॐ शांताय नमः / नानाश्रीपा०॥ 5 // ॐ अमोवाय नमः / अमोबाश्रीपा० // 6 // ॐ जयायै नमः। जमा श्रीपा // 7 // ॐ अनलायै नमः। मलाश्रीपा० // 8 // ii पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दवात / इति मनावरणम् // रहिर दले प्राची हमेण / ॐ अनंतायः / अतश्रीपा०॥2॥ ॐ साक्षाय नमः / मसंज्ञाभीपा० // 2 // ॐ विलोम निमः / शिवोत्तमश्रीपा० // 3 // ॐ एकनेत्राय नमः / एकनेत्रश्रीपा० // 4 // ॐ एकरुनाय नमः / श्रीपा० // INIॐ त्रिमर्तये नमः / त्रिमूर्तिश्रीपा० ॥६॥ॐ श्रीकंठाय नमः श्रीकंठश्रीपा॥ 7 // ॐ शिखडि नमः / सिलवी // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यध्भावरणम् // 8 // नहिरटदले उत्तरामाराय ॐ उमाय नमः। उमानी // ॐ चण्डेश्वराय नमः / चण्डेश्वरश्रीपा० // 2 // ॐ नंदिने नमः / नंदिनीपा० // 3 // ॐ महाकालाय नमः / महाकाली // 4 // ॐ गणेशाय नमः। गणेशश्रीपा०॥५॥ ॐ वृषभाय नमः / वृषभश्रीपा०॥६॥ ॐ भगिरिटये नमः / गिरिटिश्रीपा०॥७॥ ॐ स्कंदाय नमः। स्कंदश्रीपा०॥८॥ इत्यष्ठौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति नवभावरणम् // 9 // तद्वहिरदले माचीक्रमेण / / For Private And Personal use only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir Iॐ ब्रायै नमः।बालीश्रीपा०॥॥ॐ माहेश्वर्य नमः / माहेश्वरीश्रीपा० // 2 // ॐ कौमाय नमः / कौमारीश्रीपा० // 3 // ॐ वैष्णव्यै नमः। वैष्णवीश्रीपा० ॥४॥ॐ वाराह्मै नमः / वाराहीश्रीपा० // 5 // ॐ इन्द्राण्यै नमः / इन्द्राणीश्रीपा० // 6 // ॐ चामुंडाय नमः / चामुंडाश्रीपा० // 7 // ॐ महालक्ष्म्यै नमः / महालक्ष्मीश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं चब दद्यात / / इति दशमावरणम् // तद्वाह्ये भूपरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान वायायुधानि च पूजयित्वा पुष्पांजलिं दद्यात् / / इत्यावरणपूजां कृत्वा धपादिनमस्कारांत संपूज्य कतांजलिः प्रार्थयेत् / ॐ मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्॥जन्ममृत्युजरारोगः पीडितं कर्मबंधनैः / / 1 // तावकस्त्वगतप्राणस्त्वच्चित्तोहं सदा मृड / / इति विज्ञाप्य देवेशं जपेन्मृत्यंजयं परम् // 2 // इति संप्राय जपं / कात / अस्य पुरश्चरणमेकलक्षजपः / जपति दशांशतो दशद्रव्यहाँमः। होमदशांशेन मंत्रांते ॐ मृत्युंजयं तर्पयामीत्युक्त्वा दुग्धमिश्रित जलेन तर्पयेत / ततस्तर्पणदशांशेन मंत्रांत आत्मानमभिषिचामि नमः / इति यजमानमूर्धन्यभिषेकः होमतर्पणाभिषेकाशक्ती तत्स्थाने तनद्विगुणो जाः कार्यः / ततोभिषेकदशांशतोऽष्टोत्तरशतसंख्यातो वा बाह्मणभोजनं कुर्यात् / एवं कृते मंत्र सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् / तथा च / जपेन्मंत्रमिमं लक्षमेवं ध्यायञ्जितेन्द्रियः // दशद्रव्यैः प्रजुहुयानानि विफलं तिलाः॥१॥ पायस सर्पपादुग्धं दधि दुर्वा च सप्तमी // वटात्पलाशात्खदिरात्समिधो मधुरप्लुताः // 2 // एवंकते प्रयोगाही जायतेयं महामनुः // जन्मभ || दशमे तस्मात्पुनश्चैकोनविंशके // 3 // जुहुयायः सुधावल्याः समिधश्चतुरंगुलाः // स रोगान सकलाशत्रन पराभूय श्रिया युतः॥४॥ मोदते पुत्रपौत्रायः शतवर्षाणि साधकः // समिद्भिः श्रीफलोत्थाभिहामः संपत्तिमिद्धये // 5 // पलाशतरुजाभिस्तु ब्रह्मवर्चमसिद्धये // For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassag www.kobatm.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra y armandir म. म. बटोत्थाभिर्धनप्राप्त्यै खादिरीभिस्तु कांतये // 6 // तिलैरधर्मनाशाय सर्पपैः शत्रुनष्टये // पायसेन कृतो होमः कांतिकितिदायकः।। // 7 // कृत्वा मृत्युक्षयरोग्यं दध्ना संवादसिद्धिदः // होमसंख्या तु सर्वत्रायुतमानेन कीर्तिता // 8 // अष्टोत्तरशतं दर्वात्रिकहोमाद्रुजां यः // स्वजन्मदिवसे यस्तु पायसैमधुरान्वितैः // 9 // जुहोति तस्य वर्द्धते कुलमारोग्यकीर्तयः / / गुडूचीबकुलोत्थाभिः समिद्भिर्हवनं तरं०६ नृणाम् // 10 // जन्मतापत्रयं रोगान मृत्युं चापि विनाशयेत् // प्रत्यहं जुहुयाहूर्वा अपमृत्युविनष्टये // 11 // किं बहूक्तेन सर्वेष्टं ध प्रयच्छति शिवो नृणाम् // अपामार्गसमिद्भिश्च सिद्धान्नैवरनष्टये॥दुग्धाक्कैरमृताखंडैमास होमोखिलातये॥ इति महामृत्युंजयमंत्रप्रयोगः॥ ॥श्रीगणेशाय नमः।। अथ दशाक्षररुद्रमंत्रविधानम् // मंत्रो यथा // ॐ नमो भगवते रुद्राय इति दशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम्॥ अस्य श्रीरुद्रमंत्रस्य बौधायन ऋषिः। पंक्ति छंदः / रुद्रो देवता। ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥ॐ बौधायनर्षये नमः शिरसि॥१॥ पंक्तिच्छंदसे नमः मुखे // 0 // सहदेवताय नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः मागे // 4 // इति ऋष्यादिन्यामः / ॐ या ते रुद्र शिवा तनू रघोरापापकाशिनी // तयानम्तन्वाशंतमयागिरिशंताभिचाकशीहि // इति शिखायाम // 1 // ॐ अस्मिन्महत्यर्णवतारक्षे भवा / अधि॥ तेषामहस्रयोजनेवधन्यानितन्ममि // इति शिरमि // 2 // ॐ महस्राणि सहस्रशोबाहोस्तव हेतयः // तासामीशानोभगवः परा चीनामुखाकृधि // इति ललाटे // 3 // ॐ ६७मः शुचिपदसुरंतरिक्षमद्धोतावेदिषदतिथिर्दुरोणमत // नृपवरसहतसव्योमसदब्जा गोजाऋतजाअद्रिजाऋतंबृहत् / / इति भुवोर्मध्ये // 4 // ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् // उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्॥ इति नेत्रयोः॥५॥ॐ नमः खुत्याय च पथ्याय च नमः काट्याय च नीप्याय च नमः कुल्याय च मरस्याय च नमो नादेयाय चवैशं For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ताय च // इति कर्णयोः॥ 6 // ॐ मानस्तोकेतनयेमान आयुषिमानोगोषमानो अश्वेपुरीरिषः // मानोवीरान रुद्रभामिनोवधीहविष्मंतः 5 सदमित्वा हवामहे // इति नासिकयोः॥ 7 // ॐ अवतत्यधनुष्ट्वसहस्राक्षशतेषुधे // निशीर्यशल्यानांमुखांशिवोनः सुमनाभव // इति मुखे // 8 // ॐ नीलग्रीवाः शितिकंठाः शर्वा अधःक्षमाचराः // तेषासहस्रयोजनेवधन्यानितन्ममि // इति कंठे // 9 // ॐ नीलग्रीवाःशितिकंठादिव रुद्रा उपश्रिताः // तेषासहस्रयोजनेवधन्वानितन्ममि // इत्युपकंठे // 1 ॥ॐ नमस्त आयुधा यानाततायधृष्णवे // उभात्यामुततेनमोबाहुल्यांतबधन्वने // इति स्कंधयोः // 11 // यातहेतिमीदुष्टमहस्तेबभूवतेधनुः // तयास्मा विश्वतस्त्वमयश्मयापरिभुज // इति बाह्वोः // 12 // येतीर्थानिप्रचरंतिमृकाहस्तानिषंगिणः॥तेषाम० इति हस्तयोः // 13 // ॐ सद्योजातंप्रपद्यामिसयोजातायवैनमोनमः // भवेभवेनातिभवेनवस्वमभिवोद्भवायनमः // इत्यंगुष्ठयोः // 14 // वामदेवायनमोज्येष्ठा यनमः श्रेष्ठायनमोरुद्रायनमः कालाय नमः कलविकरणायनमोबलविकरणायनमः बलायनमोबलप्रमथनायनमः सर्वभूतदमनायनमोमनो न्मनायनमः॥ इति तर्जन्योः॥३५॥अघोरेश्योथघोरेश्योघोरघोरतरेन्यः सर्वेभ्यः सर्वशयोनमस्तेअस्तुरुद्ररूपेयः॥मध्यमयोः॥१६॥ ॥ॐ तत्पुरुषायविद्महेमहादेवायधीमहि // तन्नोरुद्रः प्रचोदयात् // इत्यनामिकयोः // 17 // ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानाम् // ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोधिपतिर्ब्रह्माशियोअस्तुसदाशिवोम् / / इति कनिष्ठिकयोः॥ 18 // नमो वः किरिकायोदेवाना हृदयेन्यो नमो विचि न्वत्केन्योनमो विक्षिणकेन्यो नमः आनिहतेत्यः // इति हृदये // 19 // नमोगणेश्योगणपतिभ्यश्चवोनमोनमोबातेभ्योव्रातपतिभ्यः |श्चवोनमोनमागृत्सम्योगृत्सपतिष्यश्चवोनमोनमोविरूपायोविश्वरूपेश्यश्चवोनमः // इति पृष्ठे // 20 // नमोहिरण्यबाहवेसेनान्यदिशा For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org .. // 126 // चपतयेनमानमोवृक्षेत्योहरिकेशायः पशूनाम्पतयेनमोनमः सपिंजरायत्विषीमतेपथीनाम्पतयेनमोनमोहरिकेशायोपवीतिनेपृष्टानाम्पतये० खं० 1 नमोनमोबालुशाय // इति पार्थव्ये // 21 ॥ॐ विज्ज्यन्धनुः कपर्दिनोविशल्योबाणवांऽउत // अनेशन्नस्ययाऽइपवऽआभूरस्या निषङ्गधि इति जठरे // 22 // ॐ हिरण्यगर्भः समवर्ततायेभूतस्यजातः पतिरेकआसीत् // सदाचारपृथिवींद्यामुतेमांकस्मैदेवायह तरं०६ विषाविधेम // इति नाभौ // 23 // भीढुष्टमशिवतमशिवोनः सुमनाभवपरमेवृक्षऽआयुधन्निधाय कृतिब्बसान आचरपिनाक म्बिञ्चदागहि // इति कट्याम् // 24 // येभूतानामधिपतयोविशिखामः कपर्दिनः // तेषा सहस्रयोजनेवधन्न्यानितन्मसि इति गुह्ये // 25 // जातवेदसेसुनवामसोममरातीयतेोनिदहातिवेदः // सनःपर्षदतिदुर्गाणिविश्वानायेवसिंधुंदुरितात्यग्निः इति| गुदे // 26 // मानोमहातमुत्तमानोअर्भकमानउक्षतमुतमानउक्षितम् // मानोऽवधीः पितरंमोतमातरंमानःप्रियास्तन्न्योरुद्ररीरिषः // lal इति ऊर्चाः॥ 27 // एषतेरुदभागस्तंजुषस्वतेनावसेनपरोमूजवतोतीहि // अवततधन्वापिनाकहस्तःकनिवासाः // इति जानुनोः॥२८॥ येपथांपक्षिरक्षयऐलबृदाआयुयुधः॥ तेषा:सहस्रयोजनेवधन्न्यानितन्वसि // इति पादयोः॥ 29 // अध्यवोचदधिवक्ताप्रथमोदैव्योभिषक् / अहीश्चमजिभयत्सर्वाश्चयातुधान्योधराचीःपरासुव // इति कवचम् // 30 // नमोबिल्म्मिनेचकवचिनेचनमोचम्मिणेच-बरूथिनेच नमः // श्रुतायच श्रुतसेनायचनमोदुन्दुश्यायचा-हनन्न्यायचनमोधृष्णवे // इत्युपकवचम् // 31 // नमोस्तुनीलग्रीवायसहस्राक्षायमी दुषे // अथोयेअस्यसत्वानोहतेत्योकरन्नमः // इति तृतीयनेत्रे // 32 // प्रमुश्चधन्न्वनस्त्वमुभयोरायोाम् // याश्श्चतेहस्तऽइपवः | १-कवचाद्विपरीतक्रममुपकवचम् / / For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavn Aradhana Kendra www.kabalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir धू पराताभगवोब्धप // इत्यवम् // 33 // इति प्रथमो न्यासः // य एतावन्तश्चभूया सश्चदिशोरुद्राब्बितस्त्थिरे // तेपासहस्रयोजने वधन्वानितन्ममि // इति दिग्बंधः // 1 // ॐ ॐनमः शिरसि // 1 // ॐ ने नमः नासिकायाम् // 2 // ॐ मो नमः ललाटे // 3 // ॐ ॐ नमः मुखे // 4 // ॐ गं नमः कंठे // 5 // ॐ वं नमः हृदि // 6 ॥ॐ ते नमः दक्षस्तने // 7 // ॐ ॐ नमः वामस्तने // 8 // ॐ द्रां नमः नाभौ // 9 // ॐ यं नमः पादयोः // 10 // इति दशांगन्यासो द्वितीयः // 2 // ॐ सद्यो / जाप्रपद्यामिसयोजातायवैनमोनमः // भवेभवेनातिभवेभवस्वमांभवोद्भवायनमः // इति पादयोन्य॑स्य ॐ हंसोहंसेतियात् // 1 // ॐ वाम देवायनमोज्येष्ठाय / इति ऊर्वाय॑स्य हंसोहंसेति ब्रूयात् // 2 // ॐ अघोरेग्योथघोरेन्यो० इति हृदि विन्यस्य हंसोहंमेति बृयात् // 3 // ॐ तत्पुरुषायविद्महे 0 इति मुखे विन्यस्य हंसोहंसेति ब्रूयात् // 4 // ॐ इशानः सर्वविद्याना० इति मटि विन्यस्य मोह है मेति ब्रूयात् // 5 // इति तृतीयन्यासः // 3 // एवं न्यासत्रयं कृत्वा संपुटं कुर्यात् / तत्र क्रमः। कृतांजलिपुटः / ॐ त्रातारमि दमवितारमिन्द्र हवेहवेसुहवः शूरमिन्द्रम् // ह्वयामिराक्रम्पुरहूतमिन्द्रस्वतिनोमघवाधात्विंद्रः // इति मंत्रण प्राच्यामिन्द्रं नम स्कुर्यात् // 1 // ॐ त्वन्नोऽअग्नेव्वरुणस्यन्विद्वान्देवस्यहेडोऽअवयासिष्ठिाः // यजिष्ठोवह्नितमःशोशुचानोविश्वाद्वेषा सिप्रमुमुग्ध्य स्मत् // इत्याग्नेय्यामग्निं प्रणमेत् // 2 // ॐ सुगन्नःपंथाम्प्रदिशन्न एहिज्ज्योतिष्मध्येहजरनआयुः // अपेतुमृत्युरमृतम्मऽआगा। दैवस्वतोनोऽअभयंकृणोतु // इति दक्षिणस्यां यमं प्रणमेत // 3 // ॐ असुन्यन्तमयजमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य // अन्य मस्मदिच्छमातऽइत्यानमोदेविनिर्कतेतुल्यमस्तु // इति नैतिं प्रणमेत् // 4 // ॐ तत्वायामिब्रह्मणाबन्दमानस्तदाशास्तेयजमानोहविभिः॥ For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir में म अहेडमानोवरुणेहबोध्युरुश-समान आयुःप्रमोषीः // इति पश्चिमायां वरुणं प्रणमेत् // 5 // ॐ आनोनियुद्भिःशतिनीभिरध्वर: सहत्रिणीतिरुपयाहियज्ञम् // वायोऽअस्मिन्त्सवनेमादयस्वयंपातस्वस्तिभिःसदानः // इति वायव्यां वायुं प्रणमेत // 6 // ॐ व्यय सोम / पू० ख०१ बतवमनस्तनूषुवित्रतः॥ प्रजावन्तःसचेमहि // इत्यदीच्यां कुबेरं प्रणमेत् // 7 // ॐ नमीशानंजगतस्तस्थुपस्पतिंघियंजिन्वमवसे / शि० 0 तरं०६ हूमहेन्वयम् // पूषानोयथावेदसामसदृरक्षितापायुरदब्धः स्वस्तये / / इत्यैशान्यां ईश्वरं प्रणमेत् // 8 // ॐ अस्मेरुद्रामेहनापर्वतासोवृत्र / हत्येभरहूतौसजोषाः // यः शठन्मतेस्तुवतेधायिपन इन्द्रज्ज्येष्ठाऽअम्मां२ऽअवन्तुदेवाः इत्युचं ब्रह्माणं प्रणमेत् // 9 // ॐ स्योनापृथिविनोभवानृक्षरानिवेशनी // यच्छानःशर्मसप्रथाः इत्यधः पृथवीं प्रणमेत // 10 // एवं संपुटं कृत्वा चतुर्थ रक्षा न्यासं कुर्यात् // ॐ मनोजूतिर्जुषतामाग्यस्यबृहसतिय॑ज्ञमिमन्तनोत्वारष्ट्रय्यज्ञठन्समिमंदधातु // विश्वेदेवास इहमादयन्ता मो 3 प्रतिष्ठ // इति गुह्ये // 1 // ॐ अवोध्यग्निः समिधाजनानाम्प्रतिधेनुमिवायमपासम् // यह्वाऽइवप्लवयामुजिहानाःप्रभानवः / सिस्रतनाकमच्छ // इति जठरानले // 2 // ॐ मुनिंदियोऽअरतिपृथिव्यावैश्वानरमृतआजातमग्निम् // कविठनसम्राजमतिथिंज नानामासन्नापात्रंजनयंतदेवाः // इति हृदये // 3 // ॐ माणितेवर्मणाछादयामिसोमस्त्याराजामृतेनानुवस्ताम् // उरोर्वरीयोब्बर णस्तेकणोतुजयन्तन्त्वानुदेवामदन्तु // इति मुखे // 4 // ॐ जातवेदायदिवापावकोसिविश्वतश्चक्षुरुतविश्वतोमुखोविश्वतोवाहुरुतविश्व / तस्पात् संवाहायधिमतिसंपतत्रावाभूमीजनयन्देव एकः।। इति शिरसि // 5 // इति चतुर्थों न्यासः // ४॥ॐ यजायतोदरमदेतिदेवं १-एवं यं संपुटं कुर्यात्स स्यात्किल्विषवर्जितः // तं दीयमानमीक्षते प्रेतचौराापद्रवाः // न पराभवितुं शक्ताः पलायंते विदूरतः // Bl // 127 // For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org तदुसुनस्यतथैवैति // दूरङ्गमज्ज्योतिपायोतिरेकतन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु // इति हृदयाय नमः // 3 // ॐ येनकाण्यपसोमनी पिणोयनेकण्वन्तिविदथेषुधीराः॥ यदपूर्वयक्षमन्तः प्रजानान्तन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु॥ इति शिरसे स्वाहा // 2 // यत्प्रज्ञानमुतचेतो बृतिश्चयज्योतिरन्तरमृतम्प्रजासु॥यस्मान्न ऋतकिञ्चनकमक्रियतेतन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु / / इति शिखायै वषट् // 3 // येनेदम्भूत व म्भव भविष्यत्परिगृहीतममृतेनसर्वम् // येनयजस्तायतेमनहोतातन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु // इति कवचायतुं // 4 // यस्मिन्नृचः सामयजनपियस्मिन्नप्रतिष्ठितारथनाभाविवाराः यस्मिंश्चिनठ सर्वमोतम्भजानान्तन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु // इति नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // सखारथिरस्थानिययन्मनुष्यान्ननीयतेभीशुभिर्वाजिन इव // हृत्प्रतिष्टंय्यदजिरअविष्टम्तन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु / / इत्यवाय फटू // 6 // इति पंचमो न्यासः // 5 // इति पंचन्यासान्कत्वा पुनः पडंगन्यासं कुर्यात् // ॐ यजायत इत्यादिशिवसंकल्पाते ॐ हृदयाय / नमः // 1 // ॐ सहस्रशीर्षापुरुष इत्यादिपुरुषसूक्तांते शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ अद्भयः संमृत इत्याद्युत्तरनारायणांत शिखाये वषट् // 3 // ॐ आशुः शिशानइत्यप्रतिरथांते कवचाय हुँ // 4 // ॐ वित्राबृहदिन्यादिसूनांते नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ नमस्तेरुद्रायमन्यव इत्यादिशतरुद्रियांते अवाय फट् // 6 // इति पडंगन्यासः // एवं न्यासविधि कृत्वा सायाङ्गं प्रणम्य अष्टभिर्मन मस्कारं कुर्यात् // ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रेभूतस्यजातः पतिरेकआभीत् // सदाचारपृथिवीं चामुतेमांकस्मदेवायहविपाविषेत्र // 1 // यः प्राणतो० // 2 // ॐ ब्रह्मयज्ञानम्प्रथमम्पुरस्ताद्विसीमतः मुरुचोव्येन आवः // सत्रुधन्याऽउपमाऽअस्यबिटाः सतश्चयोनिमसतश्च विवः // 3 // ॐ महीयौः पृथिवीचन इमंयज्ञम्मिमिक्षताम् // पिपतान्नोभरीमभिः // 4 // उपवाय. 5 अग्नेनय० 6 For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagersuri Gyanmandir म . यातेअग्ने० 7 इमंयमः० 8 इत्यष्टावृचः पठित्वा आत्मानं रुद्ररूपं ध्यायेत // अथ ध्यानम् // कैलासाचलसन्निनं त्रिनयनं पंचास्य पू० ख० // मंबायुतं नीलग्रीवमहीशभूषणधरं व्याघत्वचा प्रावृतम् // अक्षम्रग्बरकुंडिकानयकरं चांदी कलां बिनतं गंगांभोविलसन्नटं दशभुजं वैदेशित. महेशं परम् // 1 // इति ध्यान्या लिंगतोभद्रमंडले सर्वतोभद्रमंडले वा स्वस्वे स्थाने मंड्रकादिपरतत्त्वांतपीठदेवता आवाह्य ॐ में मंड़ तर कादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः इति पीठदेवताः संपूज्य पीठशक्तीः पूजयेत् // तत्र क्रमः / पूर्वादिषु ॐ वामायै नमः॥१॥ ॐ ज्येष्ठायै नमः // 2 // ॐ रौद्यै नमः॥ 3 // ॐ काल्यै नमः // 4 // ॐ कलविकारण्यै नमः // 5 // ॐ बलविकरिण्यै नमः // 6 // ॐ बलप्रमथिन्यै नमः॥ 7 // ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः॥ 8 // पीठमध्ये। ॐ मनोन्मन्यै नमः // 9 // इति नव पीठशकीः पूजयेत् / / ततः। स्वर्णादिनिर्मित यंत्रमग्न्युत्तारणपूर्वकं ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्तायाऽनंताय योगपीठात्मने / नमः / इति मंत्रण पुष्पाद्यासनं दत्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्ठां च कृत्वा पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्य पायादिपुष्पांत रुपचारैः / / पद्धतिमार्गेण संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात / पुष्पांजलिमादाय ॐ मंचिन्मयः परो देव परामृतरसप्रिय // अनुज्ञां रुद्र मे देहि परिवारार्चनाय मे // // इति पठित्वा पुष्पांजलि च दत्या आवरणपूजामारभेत / तत्र क्रमः / पश्चिमादिचतुर्दिक्षु क्रमेण / १-प्रणम्य जगतामीशमुमादेहार्द्धधारिणम् // यत्रोद्धारमहं वक्ष्ये रुद्रकल्पानसारतः // मध्ये वृत्तं समाटिख्य तन्मध्ये च दशाक्षरम् // बहिरष्टदलं पद्मं ततः पो डशपत्रकम् // चतुर्विशतिपत्राढय द्वात्रिंशत्पत्रकं तथा // चत्वारिंशत्पत्रकं तु वृत्तं सूर्यसमप्रभम् // पंचपद्मात्मकं वृत्तं चतुरस्त्रं च भूगृहम् / / सत्वरजस्तमश्चति || त्रिगुणैः परितो वृतम्॥ चतुद्वारं द्वारदेशे बहिर्नागसमावतम् // रुद्रपाठमिति ख्यातं देवतास्तत्र विन्यसेत् // चत्वारिंशवछतं चैक देवतानामुदाहतम् // कर्णिकामध्यदेशे तु रुद्रं पंचास्थमालिखेत् // // 12 For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॐ सद्योजाताय नमः सद्योजातश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 3 // इति सर्वत्र॥ ॐ वामदेवाय नमः / वामदेवश्रीपा० // 2 // ॐ अघोराय नमः अघोरश्रीपा० // 3 // ॐ तत्पुरुषाय नमः / तत्पुरुषश्रीपा० // 4 // मध्ये ॐ ईशानाय नमः / इशानश्री० // 5 // इति / पंचमूर्तीः पूजयेत् / ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य ॐ अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुम्यं प्रथमावर Mणार्चनम् // पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_बिंदु निक्षिप्य पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण / ॐ नंदिने नमः। नंदिश्रीपा०॥१॥ ॐ महाकालाय नमः। महाकालश्रीपा० // 2 // ॐ गणेश्वराय नमः। गणेश्वरश्रीपा० // 3 // ॐ वृषभाय नमः / वृषभश्रीपा० // 4 // ॐ भूगिरिटये नमः / भूगिरिटिश्रीपा० // 5 // ॐ स्कंदाय नमः / स्कंदश्रीपा० // 6 // ॐ उमायै नमः / उमाश्रीपा० // 7 // ॐ चंडेश्वराय / नमः / चंडेश्वरश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततः षोडशदले पूर्वादि क्रमेण / ॐ अनंताय नमः। अनंतश्रीपा॥१॥ॐ सक्ष्माय नमः / सूक्ष्मश्रीपा० // 2 // ॐ शिवाय नमः / शिवश्रीपा० // 3 // ॐ एकपादाय नमः / एकपादश्रीपा० // 4 // ॐ एकरुद्राय नमः / एकरुइश्रीपा० // 5 // ॐ त्रिमूर्तये नमः / त्रिमूर्तिश्रीपा० P // 6 // ॐ श्रीकंठाय नमः / श्रीकंठश्रीपा० // 7 // ॐ वामदेवाय नमः / वामदेवश्रीपा० // 8 // ॐ ज्येष्ठाय नमः / ज्येष्ठश्री० ॥९॥ॐ श्रेष्ठाय नमः / श्रेष्ठश्रीपा० // 10 // ॐ रुद्राय नमः / रुद्रश्री० // 11 // ॐ कालाय नमः / कालश्रीपा० // 12 // ॐ कलविकरणाय नमः / कलविकरणश्रीपा० // 13 // ॐ बलाय नमः। बलश्रीपा० // 14 // ॐ बलविकरणाय नमः / बल For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabatin.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दशाक्षरीरुद्रपूजनयन्त्रम्. * मं०म० .. 11m 100 4.4 176 / // (Y0 For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra o ant For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.bath.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir दशाक्षरीरुद्रपूजनयन्त्रम्, म०म० 500 शि०. तरं For Prate And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म.म. // 130 // विकरणश्रीपा० // 15 // ॐ बलप्रमथनाय नमः / बलप्रमथनश्रीपा०॥ 16 // इति षोडश देवताः पूजयित्वा पुष्पांजलिं दद्यात् / 0 ख०१ इति तृतीयावरगम् // 3 // ततश्चतुर्विशतिदले पूर्वादिक्रमेण / ॐ अणिमायै नमः। अणिमाश्रीपा० // 1 // ॐ महिमायै नमःशि . महिमाश्री० // 2 // ॐ लघिमायै नमः / लधिमाश्रीपा० // 3 // ॐ गरिमायै नमः / गारमाश्रीपा० // 4 // ॐ प्राप्त्यै नमः। तरं० 6 प्रातिश्रीपा० // 5 // ॐ प्रकाम्यायै नमः / प्रकाम्याश्रीपा० // 6 // ॐ ईशितायै नमः / ईशिताश्रीपा० // 7 // ॐ वशितायै नमः / वशिताश्री० // 8 // ॐ ब्राहयै नमः / ब्राह्मीश्रीपा० // 9 // ॐ माहेश्वर्य नमः माहेश्वरीश्रीपा० // 30 // ॐ कौमायें नमः। कौमारीश्रीपा० // 11 // ॐ वैष्णव्यै नमः / वैष्णवीश्रीपा० // 12 // ॐ वाराह्मै नमः / वाराहीश्री० ॥१३॥ॐ इन्द्राण्यै नमः। इन्द्राणीश्रीपा० // 14 // ॐ चामुंडायै नमः / चामुंडाश्रीपा० // 15 // ॐ चंडिकाये नमः / चंडिकाश्रीपा० // 16 // ॐ असि तांगभैरवाय नमः / असितांगभैरवश्रीपा० // 17 // ॐ रुरुरवाय नमः / रुरुभैरवश्रीपा० // 18 // ॐ चंडभैरवाय नमः / चंडभैरव श्रीपा० // 19 // ॐ क्रोधभैरवाय नमः / क्रोधभैरवश्रीपा० // 20 // ॐ उन्मत्तभैरवाय नमः / उन्मत्तभैरवश्रीपा० // 21 // ॐ कालभैरवाय नमः / कालभैरवश्रीपा० // 22 // ॐ भीषणभैरवाय नमः / भीषणौरवश्रीपा० // 23 // ॐ संहारभैरवाय नमः / संहारनेरवश्रीपा० // 24 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति चतुर्थावरणम् // 4 // ततो द्वात्रिंशत्पत्रके पूर्वादि| // 13 // क्रमेण / ॐ भवाय नमः / भवश्रीपा० // 1 // ॐ शर्वाय नमः / शर्वश्रीपा० // 2 // ॐ ईशानाय नमः / ईशानश्रीपा० // 3 // dॐ पशुपतये नमः / पशुपतिश्रीपा० // 4 // ॐ रुद्राय नमः / रुद्रश्रीपा० // 5 // ॐ उग्रायः नमः / उग्रश्रीपा० // 6 // For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॐनीमाय नमः / जीमश्रीपा० // 7 // ॐ महादेवाय नमः / महादेवश्रीपा०॥८॥ ॐ अनंताय नमः / अनंतश्रीपा० // 9 // ॐ वासुकय नमः / वासकिश्रीपा० // 10 // तक्षकाय नमः। तक्षकश्रीपा० // ॐ कलीरकाय नमः / कलीकरश्रीपा०1N IGI|| 12 / / 7 ककोटकाय नमः / कर्कोटकश्रीपा० // 13 // ॐ शंखपालाय नमः / शंखपालश्रीपा० // 14 // ॐ कंबलाया नमः / कंबलश्रीपा० // 15 // ॐ अश्वतराय नमः / अश्वतरश्रीपा० // 16 ॐ बैन्याय नमः / बैन्यश्रीपा० // 17 // ॐ पृथवे नमः / पृथुश्रीपा०॥ 18 // ॐ हेहयाय नमः / हेयश्रीपा० // 19 // ॐ अर्जुनाय नमः / अर्जनश्रीपा० // 20 // PIॐ शाकंतलेयाय नमः / शाकंतलेयश्रीपा० // 21 // ॐ भरताय नमः / भरतश्रीपा० // 22 // ॐ नलाय नमः / निलश्रीपा० // 23 // ॐ रामाय नमः / रामश्रीपां. // 24 // ॐ हिमवते नमः / हिमवच्ट्रीश्रीपा० // 25 // ॐ निषधाय नमः / निषधश्रीपा० // 26 // ॐ विध्याय नमः / विंध्यश्रीपा० // 27 // ॐ माल्यवते नमः। माल्यवच्ट्रीपा० // 28 // Kellॐ पारियात्राय नमः / पारियात्रश्रीपा० // 25 // ॐ मलयाय नमः मलयश्रीपा० // 30 // ॐ हेमकूटाय नमः / हेमकूटश्रीपा०थि। ol // 31 // ॐ गंधमादनाय नमः / गंधमादनश्रीपा० // 32 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति पंचमावरणम् // 5 // ततः चत्वारिशद्दल पूवादिकमेण / ॐ इन्द्राय नमः / इन्द्रश्रीपा० ॥१॥ॐ अग्नये नमः / अग्निश्रीपा० ॥२॥ॐ यमाय नमः। यमश्रीपा० // 3 // ॐ नितये नमः / नितिश्रीपा० // 4 // ॐ वरुणाय नमः / वरुणश्रीपा० // 5 // ॐ वायवे नमः / वायुश्रीपा० इति नागाष्टकम् / 2 इति नवाष्टकम् / 3 इति गिर्यष्टकम् / For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir म०म० // 6 // ॐ कुबेराय नमः / कुबेरश्रीपा० // 7 // ॐ ईशानाय नमः। ईशानश्रीपा०॥८॥ ॐ शच्यै नमः। शचीश्रीपा० // 9 // पू० ख०१ ॐ स्वाहायै नमः / स्वाहाश्रीपा० // 10 // ॐ वारायै नमः / वाराहीश्रीपा० // 11 // ॐ खड्गिन्यै नमः / खड्गिनीश्रीपा०शि० तं० // 12 // ॐ वारुण्यै नमः / वारुणीश्रीपा० // 13 // ॐ वायव्यै नमः / वायवीश्रीपा० // 14 // ॐ कौबेर्य नमः / कौबेरी तरं०६ श्रीपा० // 15 // ॐ ईशान्यै नमः / ईशानीश्रीपा०॥ 16 // ॐ वज्राय नमः / बज्रश्रीपा०॥ 17 // ॐ शक्तये नमः। शक्तिश्रीपा०॥ 18 // ॐ दंडाय नमः / दंडश्रीपा० // 19 // ॐ खगाय नमः / खड्गश्रीपा० // 20 // ॐ पाशाय नमः / पाशश्रीपा० // 21 // ॐ अंकुशाय नमः। अंकुशश्रीपा० // 22 // ॐ गदायै नमः / गदाश्रीपा० // 23 // ॐ त्रिशूलाय | नमः / त्रिशूलश्रीपा० // 24 // ॐ ऐरावताय नमः / ऐरावतश्रीपा० // 25 // ॐ मेषाय नमः / मेषश्रीपा० // २६॥ॐ महि / पाय नमः / महिषश्रीपा० // 27 // ॐ प्रेताय नमः / प्रेतश्रीपा० // 28 // ॐ मकराय नमः / मकरश्रीपा० // 29 // ॐ हरि Kणाय नमः / हरिणश्रीपा० // 30 // ॐ नराय नमः / नरश्रीपा // 33 // ॐ वृषभाय नमः / वृषभश्रीपा० // 32 // ॐ ऐरा है। वताय नमः ऐरावतश्रीपा० // 33 // ॐ पुंडरीकाय नमः / पुंडरीकश्रीपा० // 34 // ॐ वामनाय नमः वामनश्रीपा० // 35 // ॐ कुमुदाय नमः / कुमुदश्रीपा० // 36 // ॐ अंजनाय नमः / अंजनश्रीपा० // 37 // ॐ पुष्पदन्ताय नमः / पुष्पदन्तश्रीपा० // 38 // ॐ सार्वभौमाय नमः / सार्वभौमश्रीपा० // 39 // ॐ सुप्रतीकाय नमः। सुप्रतीकश्रीपा० // 40 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति पठावरणम् // 6 // ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण पुनः इन्द्रादिदेशदिक्पालान वायायुधानि च पूजयेत् // For Private And Personal use only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shellssagaur yanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ततो भूपुराज्यतर आग्नेय्याम् ॐ विरूपाक्षाय नमः / विरूपाक्षश्रीपा० // 1 // नैर्ऋते ॐ विरूपाय नमः / विरूपश्रीपा० // 2 // वायव्याम ॐ पशुपतये नमः / पशुपतिश्रीपा० // 3 // ऐशान्याम् ॐ ऊर्ध्वलिंगाय नमः। ऊर्ध्वलिंगश्रीपा० // 4 // इति पूजयेत् / ततो भूपुराइहिः पूर्वादिक्रमेण / ॐ विप्रवर्गाय श्वेतरूपाय सहस्रफणमंडिताय शेषाय नमः / शेषश्रीपा०॥ 1 // ॐ वैश्यवर्णाय नील रूपाय पंचाशत्फणायोमुंगकायाय तक्षकाय नमः / तक्षकश्रीपा० // 2 // ॐ विपदय कुंकुंमरूपाय सहस्रफणमंडिताय अनन्नाय नमः / अनन्तश्रीपाः॥३॥ ॐ क्षत्रियवर्णाय पीतरूपाय सनशतकणमंडितायोगकाय वासुकये नमः / वासुकिश्रीपा० // 4 // ॐ क्षत्रियवर्णाय पीतरूपाय समशतफणमंडिताय शंखपालाय नमः / शंखपालश्रीपा० // 5 // ॐ वैश्यवर्णाय कृष्णरूपाय पंचशतफण, ची मंडितायोतुंगकायाय महापद्माय नमः / महापद्मश्रीपा० // 6 // ॐ शूद्रवर्णाय रूपाय त्रिंशत्फणमंडिताय कंवलाय नमः कंबल श्रीपा० // 7 // ॐ शूद्रवाय श्वेतरूपाय त्रिंशत्फणयुक्ताय कर्कोटकाय नमः / कोटकश्रीपा० // 8 // इति मनमावरण पूजयित्या, पुष्पांजलिं च दद्यात् इति सप्तमावरणम् // 7 // एवमावरणपूजां कृत्वा धूपादिनीराजनांतं संपूज्य बद्धांजलिपूर्वकं प्रार्थयेत् // “ॐ नमो विरंचिविष्ण्वीशभेदन परमात्मने // सर्गसंस्थितिसंहारव्यापृतव्यक्तमूर्तये // 1 // नमश्चतुर्धापोट्टतभूतभीतात्मनो भुवः // भारभाराति संहः भूतनाथाय शूलिने॥२॥ विश्वयासाय विकसत्कालकूटविषाशिने // तन्कालांकांकितग्रीवनीलकंठाय ते नमः // 3 // नमो ललाटनयनपोल्लसत्कृष्णवर्त्मने // ध्वस्तस्मरनिरस्ताधियोगिध्याताय शंभवे // 4 // नमो देहार्द्धकांताय दग्धदक्षाध्वराय च // चतुर्वर्गष्ट सिद्धयर्थदायिने मायिनेऽणेव // 5 // स्थूलाय मूलभूताय शूलबारितविद्विषे // कालहत्रे नमश्चंद्रखंडमण्डितमौलये // 6 // दिग्वाससे For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म कार्दातीताहिशरदिंदवे / / देवदैत्योरगेन्द्रादिमोलिटांधये नमः / / 7 / / भस्मासनाय भक्ताय भुक्तिमुक्तिप्रदायिने / / सरुयक्तस्व पू० ख०६ रूपाय शंकराय नमोनमः // 8 // नमोंधकांतकरिपवेऽसुरद्विषे नमोस्तु ते द्विरदवरावभेदिने / / विपोल्लसत्कणिकुलबद्धमृतये नमः सदाशि० त. वृषवरवाहनाय ते // 9 // वियन्मरुद्भुतवहवायुकुंजिनीमखेशरव्यमृतमयूखमूर्तये / / नमः सदा नरकायावभेदिने भवेह नो भव भयभंग तरं०६ द्विभो।।१०॥” इति रुद्र स्तवन स्तुत्वा साष्टांग प्रणम्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरणं दशलक्षजपः।अयुतहोमः। तत्तदशांशन तर्पणमार्ज नब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति। सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् / प्रयोगान पूर्वमंत्रोक्तान। कुर्वीतात्र दशाक्षरे दशाक्षरं भजन विप्रो रुद्रजापी भवेत्सदा // 3 // एवमर्चन्महादेवं पचांगन्यासपूर्वकम्॥दशाक्षरजपासक्तो न सीदत्स्बेष्टसाधने॥२॥मनोहराणि गेहानि सुंदयों वामलोचनाः॥ धनमिच्छापूरणांतं लभते शिवसेवनात्॥३॥” इति मंत्रमहोदधिशांतिमारादिप्रोक्तं दशाक्षररुद्रमंत्रविधानम्॥ अथ त्वरितरुद्रमंत्रपुरश्चरणप्रयोगः॥( हेमाद्रिशांतिरत्नेषु ) मंत्रो यथा / “ॐ यो रुद्रोग्नीयोऽप्यऔपधीपुयोरुद्रोविश्वाभुवनाविवेश तस्मै| रुद्रायनमोस्तु” इत्येकत्रिंशदक्षगे मंत्रः। अस्य विधानम् / अस्य त्वरितरुद्रमंत्रस्य अथर्वण ऋपिः।अनुष्टुप्छंदः। त्वरितरुद्रसंज्ञको देवता। नमः इति बीजम् / अस्तु इति शक्तिः। त्वरितरुद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।ॐ आथर्वणर्षये नमः शिरसि॥ ॥अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे॥२॥ त्वरितरुद्रसंज्ञक इवतायै नमः हृदि // 3 // नमः इति बीजाय नमः गुह्य॥४॥ अस्तु इति शक्तये नमः पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ योरुद्रः अंगुष्ठात्या नमः॥१॥ ॐ अग्नौ तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ योऽप्सु मध्यमान्यां / नमः // 3 // ॐ य औषधीषु अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ ॐ यो रुद्रोविश्वाभवनाविवेश कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥५॥ ॐ तस्मैरुद्रायनमोस्तु || For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shet Kailasagasun yanmandir करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ यो रुद्रो हृदयाय नमः // 1 // ॐ अनी शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ योऽप्मु| शिखायै वषट् // 3 // ॐ य औषधीषु कवचाय हुँ॥ 4 // ॐ यो रुद्रो विश्वाभुवनाविवेश नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ तम्मै रुद्राय ) नमोस्तु अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ यः पादयोः // 3 // ॐ रुद्रः जंघयोः // 2 // ॐ अग्नौ जानुनोः // 3 // ॐ यः ऊर्वोः // 4 // ॐ अप्प गुल्फयोः // 5 // ॐ यः मेढ़े // 6 // ॐ औषधीषु नाभौ // 7 // ॐ यः उदरे॥८॥ ॐ रुद्रः हृदये // 5 // ॐ विश्वा कंठे // 10 // ॐ भुवना मुखे // 11 // ॐ विवेश नासिकायाम् // 12 // ॐ तस्मै नेत्रयोः / // 13 // ॐ रुद्राय भुवोः // 14 // ॐ नमः ललाटे // 15 // ॐ अस्तु शिरसि // 16 // इति पदन्यासः // ॐ यः शिरसि | 1 // ॐ रुद्रः ललाटे // 2 // ॐ अमौ नेत्रयोः॥३॥ ॐ यः कर्णयोः॥४॥ ॐ अमु नासिकायाम् // 5 // ॐ यः मुखे // 6 // ॐ औषधीप बाह्वोः // 7 // ॐ यः हृदये ॥८॥ॐ रुद्रः नाभौ // 9 // ॐ विश्वा गुह्ये // 10 // ॐ भुवना अपाने॥११॥ ॐ विवेश ऊर्वोः // 12 // ॐ तस्मै जानुनोः / / 13 // ॐ रुद्राय जंघयोः // 14 // ॐ नमः गुल्फयोः // 15 // ॐ अस्तु चरणयोः // 16 // इति वर्णन्यासः॥एवं न्यासं कृत्वा "ॐ एपतेरुद्रभागःसहस्स्वनांबिकयातंजुषस्व स्याहा" इत्यादिमंत्रद्वारा शुभदामुंद्रांच प्रदर्श्य ध्यानं कुर्यात् / अथ ध्यानं यथा / ॐ रुद्रं चतुर्भुजं देवं त्रिनेत्रं वरदाभयम् // दधानमूर्ध्व हस्तान्यां शूलं डमरुमेव च // 3 // अंकसंस्थाममा पद्मे दधानं च करद्वये / / आये करद्वये कुंभं मातुलुंगं च विनतम् // 2 // इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य भेदपले 1 व्यंगुल्पग्राणि मले तु फरवांगन पीडायत / सामुद्री शुभदा प्रोक्ता सैव शांतिपदायिनी // इति शुभता मुद्रा // For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir rur शि० त० शिवे पीठे गंधादिपूजनं कृत्वा अधःशाय्येकाताशी जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरण विंशतिसहस्रजपः / तत्तद्दशांशन होमतर्पणमार्जन पू० ख० / चाबाह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्रे मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / तथा च / अधःशाय्येकाताशी | ब्रह्मचारी हविष्यभुक् // अयुते वे जपेत्सर्व प्रत्यहं पूजयोच्छवम् // 1 // जुहुयात्तदशांशेन तद्दशांशेन तर्पणम् // मार्जनं तदशांशेन तरं०६ तद्दशांशेन भोजयेत् // 2 // एवं कृते तु सिद्धिः स्यात्फलार्थ तु ततो जपेत् // पुरश्चरणमेवं तु कृत्वा संपूज्य शंकरम् // 3 // जपेत्त्वरितरुद्रं तु सर्वकामसमृद्धये // श्रीकामः शांतिकामो वा जपेल्लक्षमतंद्रितः॥४॥ बिल्वसमिद्भिः श्रीकामः शांतिकामः शमीमयैः।। जयादाज्यसंमिश्रेस्तर्पणं मार्जनं ततः॥५॥जप्त्वा लक्षं सुपुत्रार्थी पायसं जहुयानतः। वित्नार्थी श्रीफलैहोममायुष्कामस्तु दूर्वया // 6 // तिलैराज्येन मंमिश्रेस्तेजस्कामो घृतेन वै॥बीहितिः पशुकामस्तु राष्ट्रकामस्तु वै यवैः॥ 7 // पायसं सर्वकामेन होतव्यं शर्करान्वितम् // मध्य तान्या पत्राणि तीव्रज्वरविनाशिना॥८॥हिमभृतज्वरार्थ तु गुडूचीभिर्जुनेद ध्रुवम्॥सर्वरोगविनाशाय सूर्यस्याभिमुखो जपेत्॥९॥अयुते दे जपाहोमः कार्योर्कसमिधा शुभः॥औदुंबरैरन्नकामस्तेजस्कामस्तु बादरैः॥१०॥अपामार्गसमिद्धोमाद्भूतबाधा विनश्यति॥ग्रहबाधाविनाशाय / जपेदश्वत्थसन्निधौ // 11 // लवणान्वितदध्यातास्तीक्ष्णायाश्वत्थसंभवाः // हूयंते समिधः शुष्काः स्वाहांत मंत्रमुच्चरेत // 12 // दशपंचाहतीर्हत्या गच्छगच्छेत्युदीरयेत् // यावद्धोमो बलिदेयः पुरुषाहारसम्मितः॥१३ // एवं कृते प्रमुच्येत पुमान स्त्री वा महाग्रहात॥ |जुहुयाच्छतपत्राणि संहृष्टो जयमामुयात् // 14 // लाजाहोमेन कन्यार्थी कन्यां पामोति रूपिणीम् / / लाजाश्च मधुसंमिश्राः श्वेतपुष्पा णि वा पुनः॥ 15 // हूयंते हरिते देशे तस्य विश्वं वशे भवेत / वामांगमुत्तमं कार्य स्वीवशित्वे विचक्षणैः // 16 // हस्त्यश्वामा 133 // For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir त्यशांत्यर्थ तिलैश्चाज्येन संयुतैः // होमस्थाने तु संस्थाप्य कुंभमेकं जलान्वितम् // 17 // मंत्र जप्त्वा सहस्रं तु कुं स्पृश्य प्रयत्नतः॥ अभिषेकं तु तेषां वै शाला प्रोक्ष्य प्रदक्षिणम् // 18 // ग्रहयामादिशांतिस्तु सर्वैः कार्या तु पूर्ववत // वास्तुपूजा प्रकर्तव्या प्राच्यां दिशि पदे शुभे // 19 // ईशानाय बलिः कार्यः पशूनां पतये तथा // एवं कृते पशूनां तु प्रजानां शांतिमानुयात् // 20 // अद्भुतेषु च सर्वेषु पशूनां ग्रामबाह्यतः॥ उपविश्य जपेद्रुदं त्वरितं बहुभिः मह॥२३॥ होमः पलाशसमिधाः कर्तव्यो घृतसंयुजाः॥ ईशानाय बलिः कायों यस्यां दिशि तदद्भुतम् // 22 // तदाशापतये चैव पशूनां पतये तथा // वृष्टिकामो जपेल्लक्षं तिलहोमो घृतान्वितैः // 23 // बलिपूजा प्रकर्तव्या शिवस्य वरुणस्य च॥ सर्वस्मिन्नपि चैवार्थे त्वरितस्य जपो भवेत्॥२५॥अयुतद्वयजाप्यैस्तु यावल्लक्षं ततोधिकम्॥एवं कृते तु सिद्धिः स्यान्निष्कामः प्रामुयाच्छिवम्॥२५॥ऐहिका मुष्मिकान्भोगान्भुक्त्वा सायुज्यमानयात्॥इत्येकत्रिंशदक्षरत्वरितरुद्रमंत्रपुरश्चरणम् // // अथ दक्षिणामूर्तिमंत्रप्रयोगः // अथ वक्ष्ये मंत्ररत्नं समस्त पुरुषार्थदम् // अवापुर्येन जमेन दिव्यं ज्ञानं मुनीश्वराः // 1 // तत्रादौ / पट्त्रिंशदक्षरमंत्रप्रयोगः (शारदातिलके) मंत्रो यथा। "ॐ ह्रीं दक्षिणामूर्तये तुत्यं बटमलनिवासिने // ध्यानकनिरतांगाय नमो रुद्राय शं भवे ह्रीं ॐ” इति षट्त्रिंशदक्षरमंत्रः॥ अस्य दक्षिणामूर्तिमंत्रस्य शुक ऋषिः / अनुष्टुप् छंदः / दक्षिणामूर्तिशंभुदेवता चतुर्विधपुरुषार्थ / सिद्धये जपे विनियोगः॥ ॐ शुकऋषये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // दक्षिणामृतिशंभुदेवतायै नमः हृदि॥३॥ विनियोगाय नमः सर्वांगे // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ह्रीं दक्षिणामूर्तये ह्रीं ॐ अगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ ह्रीं तुज्यं ह्रीं ॐ। तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ ह्रीं बटमूलनिवासिने ह्रीं ॐ मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ ह्रीं ध्यानकनिरतांगाय ह्रीं ॐ अनामिकाभ्यां न For Private And Personal use only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० // 134 // नमः॥ 4 // ॐ ह्रीं नमो रुद्राय ह्रीं ॐ कनिष्ठिकान्यां नमः // 5 // ॐ ह्रीं शंभवे ह्रीं ॐ करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति खं. 1 करन्यासः // ॐ ह्रीं दक्षिणामूर्तये ह्रीं ॐ हृदयाय नमः // 1 // ॐ ह्रीं तुज्यं ह्रीं ॐ शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ ह्रीं वटमूलनिवाशि तं सिने ह्रीं ॐ शिखायै वषट् // 3 // ॐ ह्रीं ध्यानकनिरतांगाय ह्रीं ॐ कवचाय हुं // 4 // ॐ ह्रीं नमो रुद्राय ह्रीं ॐ नेत्रत्रयाय , वौषट् // 5 // ॐ ह्रीं शंभवे ह्रीं ॐ अखाय फट / इति हृदयादिषडंगन्यासः॥ ॐ ॐ नमः मूर्थि॥३॥ ॐ ह्रीं नमः भाले // 2 // ॐ दं नमः दक्षिणनेत्रे // 3 // ॐ शिं नमः वामनेत्रे // 4 // ॐ णां नमः दक्षिणकर्णे // 5 // ॐ म नमः वामकर्णे // 6 // ॐ नमः दक्षिणगंडे // 7 // ॐ ये नमः वामगंडे // 8 // ॐ तुं नमः नासिकयोः॥९॥ ॐ यं नमः मुखे // 10 // ॐ वं नमः दक्षि णहस्तमूले // 11 // ॐ टं नमः दक्षकपरे // 12 // ॐ नमः दक्षिणमणिबंधे // 13 // ॐ लं नमः दक्षहस्तांगुलिमूले॥१४॥ ॐ नि नमः दक्षहस्तांगुल्यये // 15 // ॐ वां नमः वामहस्तमूले // 16 // ॐ सिं नमः वामकपरे // 17 // ॐ ने नमः वाम मणिबंधे // 18 // ॐ ध्यां नमः वामहस्तांगुलिमले // 19 // ॐ नैं नमः वामहस्तांगुल्यये // 20 // ॐ कं नमः गले // 21 // ॐ निं नमः स्तनयोः // 22 // ॐ रं नमः हृदि // 23 // ॐ तां नमः नाभौ // 24 // ॐ गां नमः कट्याम् // 25 // ॐ काय नमः गुह्ये // 26 // ॐ नं नमः दक्षिणपादमूले // 27 // ॐ मों नमः दक्षिणजानुनि // 28 // ॐ नमः दक्षिणगुल्फे॥२९॥ ॐ द्रां नमः दक्षिणपादमूले // 30 // ॐ यं नमः दक्षिणपादांगुल्यो // 31 // ॐ शं नमः वामपादमूले // 32 // ॐ भं नमः वामजानुनि // 33 // ॐ 3 नमः वामगुल्फे // 34 // ॐ ह्रीं नमः वामपादांगुलिमले // 35 // ॐ ॐ नमः वामपादांगुल्यो॥३६॥ D // 134 For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध इति मंत्रवर्णन्यासः // ॐ ह्रीं दक्षिणामूर्तये तुल्यं बटमलनिवासिने // ध्यानकनिरतांगाय नमो रुद्राय शंभवे ह्रीं ॐ इति मंत्रेण मूर्धादि पादपर्यंतं व्यापकं न्यासं कुर्यात् / इति न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत्॥ॐ हिमाचलतटे रम्ये सिद्धकिन्नरसेविते॥ विविधमशाखाभिः सर्वतो वारितातपे // 1 // सुपुष्पितैलताजालराश्लिष्टकुसुमद्रुमैः // शिलाविवरनिर्गच्छन्निईरानिलसेविते // 2 // गाय गांगनासंघ नृत्यद साहिकदंबके // कूजत्कोकिलसंघेन मुखरीकतदिङ्मुखे॥३॥ परस्परविनिर्मुक्तमात्सर्यमृगसेविते // आद्यैः शुका निभिरजस्रं समधिष्ठित ध। // 4 // पुरंदरमुखदेवैः सेवायातैविलोकितम् // वटवृक्षं महोच्छ्रायं पद्मरागफलोज्ज्वलम् // 5 // गारुत्मतनयः पवैर्निबिरुपशो भितम् // नवरत्नमयाकल्पैर्लबमानरलंकृतम् // 6 // सजलैः स्थलजैः पुष्पैरामोदिमिरलकतम् // शृण्वदिशा आणि शुकबृन्दैनिक वितम् // 7 // संसारतापविच्छेदकुशलच्छायमद्भुतम् // विचिंत्य तस्य मूलस्थे रत्नसिंहासने शुभे // 8 // आतीनममिताकल्पं शर चंद्रनिभाननम् // स्तूयमानं मुनिगणैर्दिव्यज्ञानाभिलाषिभिः // 9 // संस्मरेजगतामायं दक्षिणामूर्तिमव्ययम् // 30 // कैलासादिनिभं की शशांकशकलस्फूर्जज्जटामंडितं नासालोकनतत्परं त्रिनयनं वीरासनाध्यासितम् // मुद्राटककुरंगजानुविलसत्पाणिं प्रसन्नाननं कक्षाबद्धभुज गमं मुनिवृतं वंदे महेशं परम् ॥३१॥इति ध्यात्वा शिवपंचाक्षरोदिते पीठे पीठपूजां विधाय तामेव आवरणपूजां च कृत्वा जपं कुर्यात् / / अस्य पुरश्चरणमयुतद्वयाधिकं त्रिलक्षं जपः। तथा च / अयुतव्यसंयुक्तं गुणलक्षं जपेन्मनुम् // तद्दशांशं तिलेः शुद्धर्जुहुयात्क्षीरसंयुतैः॥१॥ पंचाक्षरोदिते पीठे विधानेन प्रपूजयेत् / उपचारैः समुत्पन्नैः पाद्याद्यैः परमेश्वरम् ॥२॥एवं कृतपुरश्चर्यः सिद्धमन्त्रो भवेत्सुधीः॥भिक्षाहा / रो जपेन्मासं मनुमेनं जितेंद्रियः // 3 // नित्यं सहस्रमष्टाई परं विंदति वाङ्मयम्॥त्रिवारं जप्तमेतेन मनुना सलिलं पिबेत्॥४॥नित्यशो For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. मशीदक्षिणामूर्ति ध्यायन्साधकसत्तमः / / शास्वव्याख्यानसामर्थ्य लभते वत्सरांतरे / / 5 // ब्राह्मीसेंधवसिद्धार्थवचाकोष्ठकणोत्पलैः // सुगंपू० खं. 1 घिसंयुतैः कल्कैः शृतं ब्राह्मीरसे घृतम् // 6 // मनुनानेन संजनमयुतं साधु साधितम् // निपीतं कविताकांतिरक्षायुःश्रीधृतिप्रदम् // 7 // शितं. इति षट्त्रिंशदक्षरदक्षिणामूर्तिमंत्रप्रयोगः // अथ द्वाविंशत्यक्षरदाक्षिणामूर्तिमंत्रप्रयोगः // (शारदातिलके ) // मंत्रो यथा / "ॐ तरं० 6 नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्य मेधां प्रयच्छ स्वाहा // " इति द्वाविंशत्यक्षरो मंत्रः // अस्य दक्षिणामूर्तिमंत्रस्य चतुर्मुख ऋषिः। गायत्री छन्दः / वेदव्याख्यानतत्परदक्षिणामूर्तिर्देवता / सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ चतुर्मुखर्षये नमः शिरसि // 1 // गायत्रीछन्दसे नमः मुखे // 2 // दक्षिणामूर्तये देवतायै नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 4 // इति हृदयादिन्यासः // ॐ आं ॐ अंगु घटायां नमः // ॐ ईॐ तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ ॐ ॐ मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ ॐ अनामिकाभ्यां नमः॥ 4 // Halॐ औं ॐ कनिष्ठिकान्यां नमः // 5 // ॐ अः ॐ करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥इति करन्यासः॥ ॐ आंॐ हृदयाय नमः॥३॥ ॐ ई ॐ शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ ॐ ॐ शिखायै वषट् // 3 // ॐ ऐं ॐ कवचाय हूं // 4 // ॐ औं ॐ नेत्रत्रयाय वौषट् / // 5 // ॐ अः ॐ अवाय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // इति न्यासविधिं कृत्वा पूर्ववत् वमूलस्थं मंत्रदेवतं संचित्य | ध्यायेत् // स्फटिकरजतवर्ण मौक्तिकीमक्षमालाममृतकलशविद्याज्ञानमुद्राः करानैः // दधतमुरगकक्षं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं विधृतविविध धभूषं दक्षिणामूर्तिमीडे॥३॥ इति ध्यात्वा शिवपंचाक्षरोदिते पीठे पीठपूजा विधाय आवरणपूजां कुर्यात् / तत्र क्रमः। षट्कोणकेशरेषु // 135 // अग्निकोणे ॐ आं ॐ हृदयाय नमः॥१॥ नैर्ऋते ॐ ई ॐ शिरसे स्वाहा // 2 // वायव्ये ॐ ॐ शिखायै वषट् // 3 // ॐ 1 यथा-ताररुद्वैस्स्वरदधिःषभिरंगानि कल्पयेत् / अथवा मन्दसंभूतः पदैर्वा काल्पयेत्रमात / For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दक्षिणामूर्तिपूजनयंत्रम् / ऐशान्ये ॐ ऐं ॐ कवचाय हुं॥४॥देवतापूर्वे ॐ औं ॐ नेत्रत्रयाय वौषटं K // 5 // देवपश्चिमे ॐ अः ॐ अस्त्राय फट् // 6 // इति षडंगानि पूज येत् // ततोऽष्टदले पूज्यपूजकयोमध्ये प्राची प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण ॐ सर स्वत्यै नमः // 1 // ॐ ब्रह्मणे नमः // 2 // ॐ सनकाय नमः॥३॥ ॐ सनन्दनाय नमः // 4 // ॐ सनत्कुमाराय नमः // 5 // ॐ शुका शायनमः // 6 // ॐ व्यासाय नमः // 7 // ॐ गणेशाय नमः // 8 // इति पूजयेत् / ततः भूपुराज्यंतरे पूर्वादिचतुर्दिक्षु ॐ सिद्धाय नमः // 3 // ॐ गंधर्वाय नमः॥२॥ॐ योगींद्राय नमः॥३॥ॐ विद्याधराय नमः॥४॥ इति पूजयेत्॥ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिवसालान् / तद्वाह्य बजायायुधानि च पूजयेत् / इत्यावरणपूजां कृत्वा धूदिनीराजनांत संपूज्य जां कुर्यात् अस्य पुरश्चरणं लक्षात्मको जाः / तथा च / लक्षमेकं जोन्मंत्रं ब्रह्मचारि व्रत स्थितः // जुहुयात्मवृतैः पनेर्दशांशं संस्कृतेऽनले // 1 // इत्थं पूजा ilदिभिः सिद्ध मंत्रऽस्मिन्साधकोत्तमः // वल्लभो जायते वाचां वाचस्पतिर .. णाम For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वापरः // 2 // मंत्रणानेन संजरैर्विशुद्धैः सलिलैः सुधीः // अभिषिचेत्स्वशिरसि श्रियमारोग्यमानुयात् // 3 // कंठमात्रे जले स्थिपू० ख० 1 त्वा जपेन्मत्रं सहस्रकम्॥ प्रत्यहं मंडलादर्वाकवीनामग्रणीभवेत्॥४॥गोर्या पार्श्वस्थया सार्द्ध श्रीकामी चिंतयन्विभुम् // अयुतं प्रजपेन्मंत्र शि० भूयसीं श्रियमानुयात् // 5 // भुंजानः प्रयतो मंत्री गोमूत्रे शृतमोदनम् // भिक्षान्नमथ वा मंत्रमयतद्वितयं जपेत् // 6 // अश्रुतान्वे तरं० 6 दशास्त्रादीन् व्याचष्टे नात्र संशयः // सिद्धगंधर्वमुनिभियोगांद्वैरपि सेविते॥७॥ज्ञानवागर्थिनां प्रीत्यै कथितौ मंत्रनायकौ॥इति द्वाविंशत्य अक्षरदक्षिणा पूर्तिमन्त्रप्रयोगः॥अथ पार्थिवलिंगविधानम्॥(मंत्रमहोदधौ) अथ प्रातःकत्यक्रिया / नद्यादौ स्नात्वा स्वासने प्राङ्मुख उदङ्मुखो वोपविश्य आचम्य प्रागानायम्य देशकालौ संकीर्त्य मम श्रीमहादेवप्रसन्नार्थममुककामनार्थ वा अमुकसंख्यापरिमितपार्थिवलिंगपूजन क रिष्ये / इति संकल्प्य न्यासादिकं कुर्यात् / तद्यथा ॐ ह्रां पृथिव्यै नमः हृदयाय नमः॥१॥ॐ ह्रां पृथिव्यै नमः शिरसे स्वाहा।।२॥ॐ हां पृथिव्यै नमः शिखायै वषट् // ३॥ॐ ह्रां पृथिव्यै नमः कवचाय हुँ॥४॥ॐ ह्रां पृथिव्यै नमः नेत्रत्रयाय वौषट् ॥५॥ॐ ह्रां पृथिव्ये नमः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवमेव करन्यासं कुर्यात / ततो मृदमानीय शर्करा बहिष्कृत्य शुद्धपात्रे निधाय / प' इति सुधाबीजेन मृदमासिच्य पिंडं कत्वाग्रे संस्थाप्य तस्मापल्पमृदं गृहीत्वा "ॐ ह्रींग्लौंगंग्लौंगं गणपतये ग्लौंगहीं" इति मंत्रेण बालगणेश्वरं कृत्वा पीठ संस्थाप्य लिंगं कुर्यात् / तद्यथा / “ॐ नमो हराय" इति मंत्रेण बिभीतकफलमात्रमृदं गृहीत्वा “ॐ नमो महेश्वराय" इति मंत्रेण अंगुष्ठमानादधिकं वितस्तिमात्रावधि यथेष्टं लिंग कत्वा "ॐ नमः शूलपाणये' इति मंत्रण पीठे लिंग स्थापयेत् / एवं यथासंख्यं लिंगं कृत्वा अवशिष्टमृदा "ॐ ऐहुँक्षुकी कुमाराय नमः” इति मंत्रेण कुमारं कृत्वा लिंगपंक्त्यंते संस्थाप्य प्रतिष्ठां च / For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कुर्यात् / ततः ॐ नमः पिनाकिने इहागच्छ इह तिष्ठ इति लिंगे शिवमावाह्य ध्यायेत् / अथ ध्यानम् / दक्षाकस्थं गजपतिमुखं प्रामृशन्द। दोष्णा वामोरुस्थं नगपतनयांके गुहं चापरेण // इष्टाभीती परकरयुगे धारयन्निंदुकांतिमव्यादस्मांत्रिभुवननतो नीलकंठस्त्रिनेत्रः॥१॥ इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य पायादिपूजनं कुर्यात् / तद्यथा। ॐ नमः पशुपतये' इति मंत्रेण नापयित्वा शतरुद्रियमंत्रेण अभिषेक 4 कुर्यात् / ततः ॐ नमः शिवाय' इति मंत्रेण गंधपुष्पधूपदीपनैवेद्यान्यर्पयेत् / इति पूजां कृत्वावरणपूजां कुर्यात् / तद्यथा / पूर्वादिवामावर्तेन / पूर्वे ॐ सर्वाय क्षितिमूर्तये नमः // 1 // ऐशान्ये ॐ भवाय जलमूर्तये नमः // 2 // उत्तरे ॐ रुद्राय तेजोमूर्तये नमः॥ 3 // वा यव्ये ॐ उग्राय वायुमूर्तये नमः // 4 // पश्चिमे ॐ भीमायाकाशमूर्तये नमः॥ 5 // नैर्ऋत्ये ॐ पशुपतये यजमानमूर्तये नमः।। 6 // दक्षिणे ॐ महादेवाय चंद्रमूर्तये नमः // 7 // आग्नेये ॐ ईशानाय सूयमूर्तये नमः / / 8 / / इत्यष्टौ मर्तीः संपूज्य पूर्वादिक्रमण इन्द्रादिदशदिक्पालान् वज्रायायुधानि च पूजयेत् / इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य तिस्रः प्रदक्षिणाः कृत्वा स्तुतिपाठेन / स्तुत्वा ॐ "नमश्शिवाय" इति षडक्षरं यथाशक्ति जपित्वा ॐ नमो महादेवेति मंत्रेण विसृजेत् / ततो गणेशगुहौ स्वस्वमंत्राभ्यामेवाखि लोपचारैः संपूज्य विमृजेत् / तथा च / पूजयेत्कार्यवशतो लक्षावधि सहस्रतः // लक्षपार्थिवलिंगानां पूजनाद्भुवि मुक्तिभाक् // 1 // लक्षं तु गुडलिंगानां पूजनात्पार्थिवो भवेत् // या नारी गुडलिंगानि सहस्रं पूजयेत्सती // 2 // भर्तुः सुखमखंडं सा पामोति पार्वती भवेत् // नवनीतस्य लिंगानि संपूज्येष्टमवाप्नुयात् // 3 // भस्मनो गोमयस्यापि वालुकायास्तथा फलम् // क्रीडति पृथुका भूमौ कत्वा लिंग रजोमयम् // 4 // पूजयंति विनोदेन तेपि स्युः क्षितिनायकाः // प्रातर्गोमयलिंगानि नित्यं यस्त्रीणि पूजयेत् // 5 // For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir म. म. हतीबिल्वयोः पत्रैनैवेद्यं गुडमर्पयेत् // एवं मासत्रयं कुर्वन्ननल्पं लभते धनम् // 6 // एकादशैव लिंगानि गोमयोत्थानि यो यजेत् // खं० 1 प्रातमध्याह्नयोः सायं निशीथे प्रतिवासरम् // 7 // स सर्वाः सम्पदो यायात् षण्मासादेवमाचरन् // एकादश यजेन्नित्यं शालिपिष्ट // 13 // मयानि सः॥ 8 // लिंगानि मासमात्रेण स कल्मषचयं दहेत् // स्फाटिक पूजितं लिंगमेनोनिकरनाशनः // 9 // सर्वकामप्रदं पुंसा तरं. 6 KIमुदुंबरसमुद्भवम् // रेवाश्मजं सर्वसिद्धिप्रदं दुःखविनाशनम् // 10 // यथाकथंचिल्लिंगस्य पूजा नित्यकतेष्टदा // यो यजेत्पिचुमंदोत्थैः। पत्रैगोमयजं शिवम्॥११॥क्रुद्धं महेश्वरं ध्यायेत्स पराजयते रिपून॥यो लिंगं पूजयेन्नित्यं शिवभक्तिपरायणः॥१२॥मेरुतुल्योपि तस्याश पापराशिलयं व्रजेत्॥दोग्धीणां तु गवां लक्षं यो दद्याद्वेदपाठिने // 13 // पार्थिवं योर्चयेल्लिंगं तयोज़िगार्चको वरः॥चतुर्दश्यां तथाष्टम्या पौर्णमास्यां विधुक्षये॥१४॥पयसा स्नापयेल्लिंगं घरादानफलं व्रजेत॥ लिंगपूजां विधायाने स्तोत्रं या शतरुद्रियम् // 15 // प्रजपेत्तन्मना) भूत्वा शिवे स्वं विनिवेदयेत् // यन्संख्याकं यजेल्लिंगं तन्मितं होममाचरेत् ॥१६॥आज्यान्वितौस्तिलैरमौ घृतैर्वा पायसेन वा // शिवमंत्रण तस्यांत ब्राह्मणान् भोजयेच्छतम् // १७॥एवं कृते समस्तेष्टसिद्धिर्भवति निश्चितम् // 18 // इति पार्थिवलिंगपूजनविधानम् // इति शिवपटल : 2 Niसमाप्तः // अथ शिवपूजापद्धतिप्रारम्भः // तत्रादौ मंत्रानुष्ठानोपयोगि पूर्वकत्यम् // चन्द्रतारादिबलान्विते सुदिने भुमुहूर्ते तीर्थपुण्य नक्षत्रनिर्जनस्थानादावनुष्ठानयोग्यभूमिपरिग्रहणं हत्वा तत्र मार्जनदहनखननसंप्लावनादिभिः स्मृत्युक्तः शोधनोपायैः शुद्धिं संपाद्य जप स्थानस्य चतुर्दिक्षु कोशं कोशद्वयं वा क्षेत्रं चतुरसमाहारविहारार्थ पारिकल्प्य जपस्थानभमौ कुर्मशोधनं कुर्यात्॥ततः पुरश्चरणात्या तृतीयदिवसे क्षौरादिकं विधाय ततः प्रायश्चित्तांगभूतविष्णुपूजाविष्णुतर्पणविष्णुश्राई होमं चांद्रायणादिवतं च कुर्यात् / व्रताशक्तौ / १-भटकटैया / 2 पापसमूहनाशनः / 3 'ॐ नमः शिवाय' इति मंत्रण होमयेत् / For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www. bath.org Acharya Shri Kalasagasun Gyanmandir गोदानं द्रव्यदानं च कुर्यात् / यदि सर्वकर्मणामशक्ती ततः प्रायश्चितांगभुतपंचगव्यप्राशनं कुयात् / तत्र मंत्रः। ॐ यत्वगस्थिगतं / पापं देहे तिष्ठति मामके // प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्यनिरिवेन्धनम् // 1 // मूलं पठित्वा प्रणवेन पंचगव्यं पिबेत् // तदिने उपवासः कर्नव्यः। अशक्तश्चेत् पयःपानं हविष्यान्नेनैकभक्तवतं वा कर्यात् / पुरश्चरणात्पूर्वदिने स्वदेहगुहयर्थ पुरश्चरणाधिकारप्राप्त्यर्थ चायुत / गायत्रीजपं कर्यात / तद्यथा / देशकालौ संकीर्त्य ज्ञाताजातपापक्षयार्थं करिष्यमाणशिवपुरश्चरणाधिकारार्थममकमंत्रसिद्ध्यर्थं च गायच्यायतजपमहं करिष्ये / इति संकल्प्य गायत्र्यायुतं जपेत् / ततो गायत्र्याचार्यपि विश्वामित्र तर्पयामि // 1 // गायत्रीछंदस्तर्प] यामि // 2 // सवितारं देवं तर्पयामि // 3 // इति तर्पणं कृत्वा ततस्तस्यां रात्री देवतोपास्ति शुभाशुभस्वमं च विचारयेत् / तद्यथा / स्नानादिकं कृत्वा हरिपादांबुजं स्मृत्वा कुशासनादिशय्यायां यथामुखं स्थित्वा वृषभध्वज प्रार्थयेत् / तत्र मंत्रः। ॐ भगवन्देवदेवेश शूलभूद्धपवाहन // इष्टानिष्टं समाचश्व मम मुतस्य शाश्वतः // 1 // ॐ नमोऽजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने // वामाय विश्वरूपाय स्वमाधिपतये नमः॥ 2 // स्वमे कथय मे तथ्यं सर्वकार्येष्वशेषतः // क्रियासिद्धिं विधास्यामि त्वत्प्रसादान्महेश्वर // 3 // इति मंत्रेणाष्टो | नरशतबारं शिवं प्रार्थ्य निद्रां कुर्य्यात् / ततः स्वमं दृष्टं निशि प्रातर्गुरुवे विनिवेदयेत / अथ वा स्वयं स्वनं विचारयेत॥इति पूर्वकत्यम्॥ लिगं चन्द्रार्कयोथिर्व भारती जाहणी गुरु / रक्ताधितरणं युद्धे जयोऽनलसमर्चनम् // 5 // शिखिहंसरांगात ये रथे स्थानं च मोहनम् / आरोहणं सारसस्य धरालाभश्च निम्नगा // 2 // प्रासादः स्पंदनः पद्म छवं कन्या द्रुमः फली // नागो दीपो हयः पुष्पं वृषभावन पर्वतः // 3 // मुराघरो ग्रहास्तारा नारी सूर्शदयोप्सराः // हपशेलविमानानामारोहो गगने गमः // 4 // मद्यमांसादनं विष्टालेपो रुधिरसेचनम् / / दश्वोदनादनं राज्याभिषको गोवृषध्वजी // 5 // सिंहः सिंहासनं शंखो यादिवं रोचनादिभिः // चंदनं दर्पणश्चैषां स्वप्ने संदर्शनं शुभम् // 6 // तैलाभ्यक्तः कृष्णवी नग्नी नागर्तवायसौ // शुष्कः कंटकिवृक्षश्च चांडालोदीपकंधर // 7 // प्रासादस्तहहीनश्च नेते स्वप्रे शुभावहाः // इति विचारयेत // For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirlan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म०म० अथ प्रातःकृत्यम पुरश्चरणदिवसे श्रीमत्साधकेन्द्रः प्रातःकालात्पूर्व दण्डव्यात्मके बाह्म मुहूर्ते चोत्थाय निद्रास्थानादहिर्निर्गत्य हस्तौ पादौ पू० ख०। पक्षाल्याचम्य रात्रिवस्त्रं परित्यज्यान्यवस्वं परिधाय शुद्धासन उपविश्य शिरसि सहस्रदलपंकजे कोटींदुप्रकाशपीठे श्रीगुरुं ध्यायेत् // शितं. // 13 // "आनंदमानंदकरं प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपम्॥योगन्द्रिमीडयं भवरोगवैयं श्रीमद्गुरुं नित्यमहं भजामि ॥१॥"इति ध्यात्वा मानसो तर०६ पचारैः संपूज्य "प्रातःप्रभृति सायांत सायादि प्रातरंततः॥यत्करोमि जगन्नाथ तदस्तु तब पूजनम्॥१॥” इत्यनेन मंत्रेण सर्व गुरवे विनि वेद्य तदाज्ञां गृहीत्वा शिवप्रातःस्मरणं कुर्यात् // शिवप्रातःस्मरणं यथा-"प्रातःस्मरामि भवभीतिहरं मुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिके / शम् // खट्रांगशूलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् // 1 // प्रातर्भजामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं सर्गस्थितिप्रलयकारण N|मादिदेवम् // विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् // 2 // प्रातर्भजामि शिवमेकमनंतमायं वेदांतेवद्यमखिल पुरुषं महांतम् // नामादिभेदरहितं पडभावशून्यं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् // 3 // प्रातः समुत्थाय शिवं विचिंत्य श्लोकत्रयं येऽनुदिनं पठंति // ते दुःखजातं बहुजन्मसंचितं हित्वा पदं यांति तदेव शम्भोः // 4 // " इति प्रातःस्मरणं कृत्वा गुरुमंत्रदेवतात्मनामैक्यं विभाव्य , अजपाजपं गुरुं समर्पयेम् // अथाजपाजपसंकल्पः संक्षेपतः / “आधारे लिंगनाभौ हृदयसरसिजे तालुमूले ललाटे द्वे पत्रे षोडशारे / द्विदशदशदले द्वादशाः चतुष्के // वासांते वालमध्ये डफकठसहिते आदियुक्ते स्वराणां हंक्षं तत्त्वार्थयुक्तं सकलदलगतं वर्णरूपं नमामि // 1 // षट्शतं तु गणेशस्य षट्सहस्रं प्रजापतेः॥ षट्सहस्रं गदापाणेः षट्सहस्रं पिनाकिनः // 2 // आत्मनस्तत्सहस्रं च सहस्र परमात्मनः // सहस्रं श्रीगुरुभ्यश्च ह्येतानि विनियोजयेत् // 3 // हंसो गणेशो विधिरेब हंसो हंसो हरिईसमयश्च शंभुः॥ हंसोपि जीवःy For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir परमात्महंसो हंसो गुरुहसमयश्च शंभुः // 4 // " इति पठित्वा अहोरात्रोच्चरितं षट्शताधिकमेकविंशतिसहस्रमुछ्वासनिःश्वासात्मकमजपा गायत्रीमंत्रजपं श्रीगणेशब्रह्मविष्णुरुद्रजीवात्मपरमात्मश्रीगुरुत्यो यथासंख्यं समर्पयामि // इत्युक्त्वाऽष्टोत्तरशतावृत्ति हंसगायत्री जपेत् // हंसगायत्रीमंत्रो यथा।हरिः ॐ हंसोहंसस्यविद्महेहंसोहंसस्यधीमहि॥हंसोहंसःप्रचोदयात्।" इति जपित्वा ॐ" त्रैलोक्यचैतन्यमयि त्रिशक्ते श्रीविश्वमातर्भवदाज्ञयैव।।प्रातःसमुत्थाय तव प्रियार्थ संसारयात्रामनुवर्तयामि॥"इति संपार्थ्य भूमिं प्रार्थयेत्॥तत्र मंत्रः। “ॐ समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमंडले॥ विष्णुपनि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ॥१॥"इति भूमिं प्रार्थ्य श्वासानुसारेण भूमौ पदं दत्त्वा बहिजेत् / इति प्रातः क कत्यम्॥ततो ग्रामादहिनैर्ऋत्यकोणे जनवर्जिते देशे उत्तराभिमुखः अनुपानत्कः वस्त्रेण शिरःप्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा मृत्तिकया जलेन यथा| संख्यं शौचं कृत्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूषं च कृत्वा दंतधावनं कुर्यात्॥ तयथा / आम्रचंपकापामार्गाद्यन्यतमस्य द्वादशांगुलं दंतकाष्ठं | गृहीत्वा प्रार्थयेत् / “ॐ आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च // श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वन्नो देहि वनस्पते // 1 // इति संप्रार्थ्य ॐ ह्रीं तडिति स्वाहा' इति मंत्रेण काष्ठं छित्त्वा ॐ 'क्लींकामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः' इत्यनेन दंतान संशोध्य 'ऐ' मंत्रेण जिह्वाम ल्लिख्य दंतकाष्ठं झालयित्वा नैर्ऋत्यां शुद्धदेशे निःक्षिपेत् // ततो मूलेन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात् // तद्यथा। गंगायमुनाद्यनावे नदीतडागादिकं गत्वा सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण तीर्थस्नानं मंगलस्नानं च कुर्यात् / अशक्तश्चेदृहस्नानं कुर्यात् / तत्र प्रयोगः / तात्कालि. कोद्धृतोदकेन उष्णोदकेन वा स्नानं कृत्वा न तु पर्युषितशीतोदकेन / तद्यथा। ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् / तत्र मंत्र “ॐ ब्रह्मांडोदरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते रखे // तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर // 1 // ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि / / For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir में RON सरस्वति // नर्मदे सिंधुकावेरि जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु // 2 // आवाहयामि त्वां देवि स्नानार्थमिह सुंदरि // एहि गंगे नमस्तुायंसर्वतीर्थ पू० ख० 1 // 13 // समन्विते॥३॥"ति मंत्रेण तीर्थान्यावाह्य ॐ "ऋतं च सत्यम्" इति मंत्रेणानिमंत्र्य स्नायात / एवं स्नात्वा शुष्कं शुत्रं कर्पासोत्पन्नवस्त्रं परिशि० तं० साधाय सूर्यायायं दद्यात् / तत्र मंत्रः / "ॐ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते // अनुकंपय मां देव गृहाणाय नमोस्तु ते॥३॥" तरं० इति मंत्रेणाऱ्या दत्वा स्नायी वस्त्रं परिपीड्याचम्यशवं पंचत्रिशुपंडू वैष्णवं द्वादशोडूं च तिलकं सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कुर्यात् / इति तिलकं कृत्वा नित्यनैमित्तिकं समाप्य द्वारपूजनं कुर्यात् / अथ द्वारपूजनम् / गृहद्वारमागत्य मूलेन फडिति द्वारं संप्रोक्ष्य दक्षिणशाखा याम् / ॐ गं गणपतये नमः॥ 1 // ॐ दुं दुर्गायै नमः // 2 // वामशाखायाम् ॐ वं वटुकाय नमः॥३॥ ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः॥४॥ द्वारोपार ॐ सं सरस्वत्यै नमः // 5 // देहल्याम् ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट् // 6 // इति पूजयेत् / इति द्वारपूजनं कृत्वा क्षेत्रं कील येत् / तथा च जपस्थाने गत्वा “ॐ गृहीतस्यास्य मंत्रस्य पुरश्चरणसिद्धयो.मयेयं गृह्यते भूमिमंत्रोयं मिद्धिमेति च॥१॥"इति मंत्रणभमिका संग्राह्य अश्वत्थोदंबरप्लक्षाणामन्यतमस्य वितस्तिमात्रान् दश कीलान् “ॐ नमः सुदर्शनायात्राय फट / इति मंत्रेणाष्टोत्तरशताभिमंत्रि तान् ॥"ॐ ये चात्र विन्नकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः॥ विघ्नभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धिषु // 3 // मयैतत्कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः॥ अपसर्पतु ते सर्वे निर्विघ्नं सिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति मंत्रण दशदिक्षु दश कीलान निखनेत् / ततस्तेषु " सुदर्शनायाचा फट "इति मंत्रेण प्रत्येकं कीलान संपूज्य तत्रैव पूर्यादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालानावास्य पंचोपचारैः संपूज्य जपस्थानमध्ये गणेशकर्मानंत वसुधाक्षेत्रपालांश्च संपूज्य दिक्पालेयः क्षेत्रपालगणपतित्यश्च मावभक्तबलिं दत्वा तद्बाह्ये भूतबलिं दद्यात् / तत्र मंत्रः। ये रौद्रा रौद्रकर्मा / / / For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir 181 णो रौद्रस्थाननिवामिनः // मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च मे // 1 // भूचराः खेचराश्चैव तथा चैवांतरिक्षगाः // ते सर्व प्रीतमनमः प्रतिगृहत्विमं बलिम् // 2 // " इति मंत्रद्वयेन दशदिक्षु बाह्ये मावभक्तबलिं दद्यात् / ततो वामकरांगुलिभिरयंजलेनोत्सृज्य पुष्पांजलि / गृहीत्वा “ॐ भूतानि यौनहि वसंति भूतले बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम् ॥संतोषमासाय व्रजंतु सर्व क्षमतु नान्यत्र नमोस्तु तेभ्यः॥३॥ इति पुष्पांजलिं दत्वा हस्तपादौ प्रक्षाल्याचमेत् // इति क्षेत्रकीलनम् / अथ प्रयोगविधानम् / “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां / ॐगतोऽपि वा // यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याध्यंतरः शुचिः॥१॥" इति मंत्रेण मण्डपांतरं प्रोक्ष्य तत्र तावदासनभूमौ कूर्मशोधनं / कार्यम् / यत्र जाकर्ता एक एवं तदा कूर्ममुख उपविश्य तत्रैव जां दीपस्थापनं च कुर्यात् / यत्र बहवः जापकास्तत्र कर्ममुखोपरि दीप भिव स्थापयेत् / एवं कर्मशोधनं विधाय तत्रासनायो जलादिना त्रिकोणं कृत्वा तत्र ॐ कर्माय नमः // 1 // ॐ ही आधारशक्ति। कमलासनाय नमः // 2 // ॐ पृथिव्यै नमः // 3 // इति गंधाक्षतपुरैः संपूज्य तदुपरि कुशासनं तदुपरि मृगाजिनं तदुपरि कंबला द्यासनमास्तीर्य स्थापितानां त्रयाणामासनानामुपरि क्रमेण ॐ अनन्तासनाय नमः // 3 // ॐ विमलासनाय नमः // 2 // ॐ पद्मास नाय नमः // 3 // इति मंत्रत्रयेण त्रीन् दर्भान् प्रत्येकं निदध्यात् / एवमासनं संस्थाप्य तत्र प्राङ्मुख उदङ्मुखो वा उपविश्य आसनं शोधयेत् / तद्यथा / ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः / कुर्मो देवता। सुतलञ्छन्दः। आसने विनियोगः। “ॐ पृथिव त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ॥त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥१॥"इति मंत्रेणासनं प्रोक्षयेत् / ततः मूलेन शिखां बद्धा ॐ केशवाय नमः॥१॥ ॐ नारायणाय नमः ॥२॥ॐ माधवाय नमः // 3 // इति त्रिराचम्य प्राणानायम्य देशकालौ संकीर्त्य अमुकगोत्रः श्रीअमुक . For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं० म० देवशाह स्वमहादेवामुकमंत्रसिद्धिप्रतिबंधकाऽशेषदुरितक्षयपूर्वकामुकमंत्रसिद्धिकामोऽद्यारश्य यावता कालेन सेत्स्यति तावत्कालपर्यन्त पू• खं० / ममुकमंत्रस्य इयत्संख्याजपतद्दशांशहोमतद्दशांशतर्पणतदशांशमार्जनतद्दशांशाभिषेकतद्दशांशब्राह्मणभोजनरुपपुरश्चरण (केवलजपरूपपुर शाशितं. चरणं वा) महं करिष्ये / इति संकल्प्य। “ॐ मुदर्शनायास्त्राय फट" इति मंत्रेण तालत्रयं दिग्बंधनं कुर्यात् / ततो भूतशुद्धिं स्वप्राण तरं०६ प्रतिष्ठामंतर्मातृकाबहिर्मातृकासृष्टिस्थितिसंहारमातृकान्यासं च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा प्रयोगोक्तन्यासान् कुर्यात् / अथ पीठ पूजनम् / पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमण्डले लिंगतोभद्रमण्डले वा स्वबामे श्रीगुरुभ्यो नमः // 1 // दक्षिणे ॐ गणपतये नमः // 2 // मध्ये स्वेष्टदेवतायै नमः // 3 // इति नत्वा पीठमध्ये ॐ मं मंडूकाय नमः // 1 // ॐ के कालाग्निरुद्राय नमः // 2 // ॐ अं आधारशक्तये नमः // 3 // ॐ कू कूर्माय नमः // 4 // ॐ अं अनन्ताय नमः // 5 // ॐ पृ पृथिव्यै नमः // 6 // ॐ क्षी साक्षीरसागराय नमः // ७॥ॐ रत्नदीपाय नमः // ८॥ॐ रं रत्नमंडपाय नमः // 9 // ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः॥१०॥ ॐ रं रत्नवेदिकायै नमः // 11 // ॐ रं रत्नसिंहासनाय नमः // 12 // इति पूजयेत् / आमेच्याम् ॐ धं धाय नमः // 13 // नैर्ऋत्याम् ॐ ज्ञा ज्ञानाय नमः // 14 // वायव्याम् ॐ व वैराग्याय नमः॥ 15 // ऐशान्याम् ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः // 16 // पूर्व ॐ अं अधर्माय नमः // 17 // दक्षिणे ॐ अं अज्ञानाय नमः // 18 // पश्चिमे ॐ अं अवैराग्याय नमःnt // 19 // उत्तरे ॐ अं अनैश्वर्य्याय नमः // 20 // पुनः पीठमध्ये ॐ आं आनन्दकन्दाय नमः // 21 // ॐ सं संविन्नालाय नमः॥ 22 // ॐ सं सर्वतत्त्वकमलासनाय नमः॥ २३॥ॐ अं प्रकृतिमयपत्रेभ्यो नमः // 24 // ॐ विं विकारमयकेसरेत्यो For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir नमः // 25 // ॐ पं पञ्चाशद्वर्णाढ्यकर्णिकाभ्यो नमः // 26 // ॐ अं अर्कमंडलाय द्वादशकलात्मने नमः // 27 // ॐ सों सोममण्डलाय पोडशकलात्मने नमः // 28 // ॐ वं वह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः // 20 // ॐ सं सत्त्वाय नमः // 30 // ॐ रं रजसे नमः // 31 // ॐ तं तमसे नमः // 32 // ॐ आं आत्मने नमः // 33 // ॐ पं परमात्मने नमः // 34 // ॐ अं अंतरात्मने नमः // 35 // ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः / / 36 // ॐ मं मायातत्त्वाय नमः // 37 ॐ के कलातत्त्वाय नमः // 38 // || ॐ वि विद्यातत्त्वाय नमः // 39 // ॐ पं परतत्त्वाय नमः // 40 // इति मण्डूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संपूज्य प्रयोगोतनवपीठश तीः पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय धृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य आसनमंत्रण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्ठां च कर्यात् / तद्यथा / देशकालो संकीर्त्य मम महादेवनूतनयंत्रे मृतॊ वा प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये / इति संकल्प्य प्रतिष्ठां कर्यात् / अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः / ऋग्यजुःसामानि च्छन्दांसि / क्रियामयवपुःप्राणाख्या देवताः। आं बीजम् / ह्रीं शक्तिः। कौं कीलकम् / अस्य नूतनयंत्रे मृतौ वा प्राणप्रतिष्ठापने विनि / योगः / इति जलं क्षिपेत् / ततः करणाच्छाद्य ॐ आं ह्रीं क्रौं पॅरलॅवशसहसः सोहँ अस्य महादेवसपरिवारयंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः। पुनः ॐ आह्रींकायरलॅवषसँहँसः सोहँ अस्य महादेवसपारवारयंत्रस्य जीव इह स्थितः / पुनः ॐ आंह्रींकायरलँबशेषसहसः सोहँ अस्य महादेवसपरिवारयंत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि / पुनः ॐ ह्रींक्रौपॅरलॅवशेषसहसः सोहँ अस्य महादेवसपरिवारयंत्रस्य वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःश्रोत्रजिह्वाघाणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठतु नमः स्वाहा / इति प्राणान् प्रतिष्ठाप्य यः प्राणतो For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 14 // A. निमिषतोमहित्वे विधमइतिमन्निति त्रिवारं पठेत् / मनोजूतिर्जुषता सुप्रतिष्ठा प्रतिष्ठा / इत्युक्त्वा संस्कारसिद्धये पंचदशप्रणवावृत्तीः कृत्वा पू० ख०१ अनेन महादेवसपरिवारयंत्रस्य गर्भाधानादिपंचदशसंस्कारान्संपादयामि इति वदेत् / ततः ॐ यंत्रराजाय विद्महे महायंत्राय धीमहि शि. तन्नो यंत्रः प्रचोदयात् // इत्यष्टोत्तरशतकत्वोऽभिमंत्र्य पाद्यादिपूजनं कुर्यात् / / अथ पाद्यादिपूजनम् // आयाहि भगवशंभो तरं० शर्व त्वं गिरिजापते // प्रसन्नो भव देवेश नमस्तुभ्यं हि शङ्कर // इत्यावाहनम् // 1 // विश्वेश्वर महादेव राजराजेश्वरप्रिय // आसनं दिव्यमीशान दास्येहं तुज्यमीश्वर // इत्यासनम् // 2 // ॐ स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यात्त्वमिहागतः // प्राकृतं त्वमदृष्ट्वा मां बालवत्परि पालय // इति सुस्वागतम् // 3 // ॐ महादेव महेशान महादेव परात्पर // पाद्यं गृहाण महत्तं पार्वतीसहितेश्वर // इति पाद्यम् // 4 // त्र्यंबकेश सदाचार जगदादिविधायक // अयं गृहाण देवेश सांब सर्वार्थदायक // इत्यय॑म् // 5 // ॐ त्रिपुरांतक दीनातिनाशिन्छी कण्ठ शाश्वत // गृहाणाचमनीयं च पवित्रोदककल्पितम् // इत्याचमनीयम् // 6 // ॐ गंगासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलैः॥ नापितोऽसि कमया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे ॥इति जलस्नानम् ॥७॥ॐ मधुरं गोपयः पुण्यं पटपूतं पुरस्कृतम् // नानार्थ देवदेवेश गृहाण परमेश्वर // इति दापयःस्नानम् // 8 // दुर्लभं दिवि सुस्वादु दधि सर्वप्रियं परम् ॥पुष्टिदं पार्वतीनाथ स्नानाय प्रतिगृह्यताम् // इति दधिनानम् ॥९॥ॐ घृतं गव्यं / शुचि स्निग्धं सुसेव्यं पुष्टिमिच्छताम् // गृहाण गिरिजानाथ स्नानाय चंद्रशेखर // इति घृतस्नानम् // 10 // ॐ मधुरं मृदु मोहन्नं स्वरभङ्ग) विनाशनम् // महादेवेदमुत्सृष्टं तब स्नानाय शंकर // इति मधुनानम् // 11 // ॐ तापशांतिकरी शीता मधुरा स्वादुसंयुता // स्मानार्थ देवदेवेश शर्करेयं प्रदीयते // इति शर्करोदकस्नानम् // 12 // ॐ गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा // सरस्वत्यादि For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassag y armandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org तीर्थानि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् // इति शुद्धोदकस्नानम् // 13 // इति नापयित्वा शतरुद्रियद्वारा अभिषेकं कुर्यात् // ॐ वस्त्राणि पट्टकूलानि विचित्राणि नवानि च // मयानीतानि देवेश प्रसन्नो भव शंकर // इति वस्वम् // 14 // ॐ सौवर्ण राजतं तानं कर्पासस्य तथैव च // उपवीतं मया दत्तं प्रीत्यर्थ प्रतिगृह्यताम् // इत्युपवीतम् // 15 // ॐ सर्वेश्वर जगद्वंद्य दिव्यासनसमास्थित // गंध है गृहाण देवेश चंदनं प्रतिगृह्यताम् // अंगुष्ठः कनिष्ठामूललग्नो गंधमुद्रा / इति गंधम् // 16 // ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ शुन्ना धोताश्च नि। मलाः॥मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥ सर्वांगुलीभिर्दद्यात् / इत्यक्षताः॥१७॥ माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो॥ मयाहृतानि पूजार्थ पुष्पाणि प्रतिगृह्यताम् // तर्जन्यावंगुष्ठमूललग्ने पुष्पमुद्रा // इति पुष्पम् // 18 // ॐ बिल्वपत्रं मुवर्णेन त्रिशूला कारमेव च // मयापित महादेव बिल्वपत्रं गृहाण मे // इति बिल्वपत्रम् // 19 // इति पुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य विशेषफलकांक्षी सहस्रनामभिः प्रत्येकनाम्ना पुष्पबिल्वपत्रद्वारा शिवं पूजयेत्॥ ततः प्रयोगोक्तावरणपूजां कृत्वा धृपादिपूजनं कुर्यात् / अथ धूपादिपूजनम्॥ फडिति धूपपात्रं संप्रोक्ष्य नम इति गंधपुष्पान्यां संपूज्य पुरतो निधाय '' इति वह्निबीजेन उपरि अनि संस्थाप्य तदुपरि मूलेन दशांग दत्त्वा घंटां वादयन् ॐ बनस्पतिरसोत्पन्नो गंधाट्यो गंध उत्तमः // आधेयः सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम् // सांगाय सपरिवाराय श्रीमहादेवाय धूपं समर्पयामि / इति पठित्वा देवस्य वामभागे धूपपात्रं निधाय तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगो धृपमुदा तां प्रदर्शयेत् / इति धूपम्॥ // 20 // ततो दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य मंत्राक्षरतंतुभिर्वर्ती निक्षिप्य 'ॐ' इति प्रणवेन प्रज्वाल्य घंटा वादयन् नेत्रादिपादपर्यंत दीपं / / प्रदर्शयेत् / तत्र मंत्रः ॐ आज्याक्तवर्तिसंयुक्तं वह्निना दीपितं तु यत्॥ दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् // सांगाय सपरिवाराय For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० // 142 // महादेवाय दीपं समर्पयामि / इति पठित्वा देवस्य दक्षिणभागे निधाय ततः शंखजलमुत्सृज्य मध्यमांगुष्ठलग्नां दीपमुद्रां प्रदर्शयेत् / पु० ख० ? इति दीपम् // 21 // ततो देवस्याग्रे देवदक्षिणतो वा जलेन चतुरस्रमंडलं कृत्वा स्वर्णादिनिर्मित भोजनपात्रं संस्थाप्य तन्मध्ये शि० तं० पसोपेतं विविधप्रकारं बा नैवेद्यं निधाय 'ॐ ह्रीं नमः' इति मंत्रेणाय॑जलेन प्रोक्ष्य मूलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिणहस्तोपरि तादृशं | तर०६ वाम निधाय नैवेद्यमाच्छाद्य (ॐ यं ) इति वायुबीजेन षोडशधा संजप्य वायुना तद्गतदोषान् संशोप्य दक्षिणकरतले तत्पृष्ठलग्न वामकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्श्य (ॐ रं ) इति वह्निबीजेन पोडशवारं संजप्य तदुत्पन्नाग्निना तद्दोषं दग्ध्वा वामकरतले अमृतबीज || विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं दक्षिणकरतलं कृत्वा नैवद्यं प्रदर्श्य (ॐ बँ ) इति मुधाबीजं षोडशवारं संजप्य तदुत्थामृतधारया प्लावितं विभाव्य मूलेन प्रोक्ष्य धेनुमुद्रां प्रदर्श्य मलेनाष्टवाभिमंत्र्य गंधपुष्पाभ्यां संपृज्य देवस्योगतं तेजः स्मृत्वा वामांगुष्टेन नैवेद्यपात्रं स्पृष्ट्वा दक्षिणकरेणd जलं गृहीत्वा "ॐ अपूपानि च पक्वानि मण्डका वटकानि च // पायसं सूपमन्नं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् // " सांगाय सपरिवाराय श्रीमहा देवाय नमः / नैवेद्यं समर्पयामि / / इति भृतले देवदक्षिणकरे जलं क्षिप्त्वा वामहस्तेन अनामामूलयोरंगुष्ठयोगे ग्रासमुद्रां प्रदर्श्य देवं भुक्त व विभाव्य जलं दद्यात् // 22 // तयथा / ॐ नमस्ते देवदेवेश सर्वतृप्तिकरं वरम् // परमानंदपूर्ण त्वं गृहाण जलमुत्तमम् / / ॐ सांगाय सपरिवाराय श्रीमहादेवाय नमः / जलं समर्पयामि / इति मंत्रेण स्वर्णादिपात्रस्थं कर्पूरादिसुवासितं जलं निवेद्य / देवेन तज्जलं पाशितमिति भावयन् अंतःपटं दत्त्वा देवकीर्तनं कर्यात् // 23 // ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः // शुद्धिमामोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् // इत्याचमनम् // 24 // इत्याचमनं दत्त्वा मूलेन गंडूषार्थ जलं दद्यात् // ॐ कर्पूरा // 142 // For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दीनि द्रव्याणि सुगंधीनि महेश्वर // गृहाण जगतां नाथ करोद्वर्तनहेतवे // इति करोद्वर्तनम् // 25 // ॐ कुष्मांडं मातुलुगं च नारि केलफलानि च // गृहाण पार्वतीकांत सोमशेखर शंकर // इति फलानि // 26 // ॐ पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् // गृहाण देवदेवेश द्राक्षादीनि सुरेश्वर।। इति तांबूलम्।।२७ / / ॐ हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजसमन्वितम्।। पंचरत्नं मया दत्तं गृह्यतां वृषभध्वज // व इति द्रव्यम् / / 28 // ॐ कदलीगर्भसंभूतं कर्पूरं च प्रदीपितम् ।।आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव // " इति कर्पुरार्तिक्यम्॥२९॥ ॐ हर विश्वासिलाधार निराधार निराश्रय // पुष्पांजलिं गृहाणेश सोमेश्वर नमोस्तुते // इति पुष्पांजलिः // ३०॥"ॐ यानि कानि च पापानि जन्मांतरकतानि वै // तानि सर्वाणि नश्यंतु प्रदक्षिणपदेपदे // इति पठित्वा तिस्रः प्रदक्षिणाः दयात।।३॥"ॐ हेतवे जगतामेव संसारार्णवसेतवे / प्रावे सर्वविद्यानां शंभवे गुरवे नमः // 32 // " इति वदन साष्टांग प्रणमेत् // इति साष्टांगं प्रणम्य पुष्पांजलिं च दत्त्वा स्तुतिपाठेन स्तुत्वा बद्धांजलिः प्रार्थयेत् / तद्यथा। "ज्ञानतोऽज्ञानतो वाऽथ न मया क्रियते शिव / / मम कृत्य मिदं सर्वमेतदेव क्षमस्व मे // 1 // अपराधसहस्राणि क्रियतेऽहनिशं मया / / दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर // 2 // अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोऽपरः सहतां लोके केवलं स्वामिनं विना॥३॥ भूमौ स्खलितपादानां भूमिरेवावलंबनम् // त्वयि जाता पराधानां त्वमेव शरणं शिव॥४॥"इति संप्रार्थ्य “यदुक्तं यदि भावेन पत्रं पुष्पं फलं जलम्॥निवेदितं च नैवेद्यं गृहाणाथानुकंपय॥५॥" इति पठित्वा देवस्य दक्षिणकरे पूजार्पणजलं दत्त्वा सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण मालायाः संस्कारान् कुर्यात् / अशक्तश्चेत्साधारणं कुर्यात / तद्यथा / मूलेन मालां संप्रोक्ष्य गंधादिभिस्संपूज्य ध्यायेत् / “ॐ ह्रीं मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि // चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्त For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matavian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं०म० स्मान्मे सिद्धिदा भव // 3 // इति संप्रार्थ्य / ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा // " इति मंत्रेण दक्षिहणस्ते मालामादाय पू० खं. 1 हृदये धारयन् स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि संस्थाप्य ज्येष्ठाग्रेण नामयित्वा एकाग्रचित्तो मंत्रार्थ स्मरन् यथाशक्ति प्रातः शि• तं. // 143 // कालमारस्य मध्यंदिनं यावत् मूलमंत्र जपेत् / नित्यशः समाना जपाःकार्या न तु न्यूनाधिकम्।ततो जपांते “ॐ त्वं माले सर्वदेवानां प्रीति / तर० 6 INदा शुभदा मम // शुभं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्य च सर्वदा॥तेन सत्येन सिद्धि मे देहि मातर्नमोस्तु ते॥ॐ ह्रीं सिद्धयै नमः। इति मालां शिरसि निधाय गोमुखी रहसि स्थापयेत् / नाशुचिः स्पर्शयेत् / नान्यस्मै दद्यात् / अशुचिस्थाने न निधापपयेत् / स्वयोनिवगुप्तां कुर्यात् / इति जपं कृत्वा कवचस्तोत्रसहस्रनामादिकं पठित्वा पुनः मूलमंत्रोक्तऋप्यादिन्यासं हृदयादिपडंगन्यासं च कृत्वा पंचोपचारैः संपूज्य पप्पांजलिं च दत्त्वा जपदेवापणं कुर्यात् / तद्यथा / अव्योंदकेन चुलुकमादय " ॐ गुह्यातिगुह्यगोता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् // सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादात्त्वयि स्थितिः // 3 // " ॐ इतः पूर्व प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो जायत्स्वमसुपुतितुर्यावस्थासु मनसा वाचा कर्मणा हस्तान्यां पयामुदरेण शिश्ना यस्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्वं ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा / मदीयं च सकलं श्रीमहादेवाय / समर्पयामि नमः॥ ॐ तत्सदिति ब्रह्मार्पणं भवतु / इति देवदक्षिणकरे जलसमर्पणं कृत्वा कृतांजलिः क्षमापनं पठेत् / तथा च "ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्॥ पूजाभागं न जानामि त्वं गतिः परमेश्वर // 3 // मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर // यत्यूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे // 2 // यदारपदावष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् // तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर // 3 // कर्म णा मनसा वाचा त्वत्तो नान्या गतिर्मम // अंतश्वरश्च भूतानामिष्टस्त्वं परमेश्वर // 4 // अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम // तस्मा For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कारुण्यभायेन क्षमस्व परमेश्वर // 5 // प्रातयोनिसहस्रेषु सहस्रेषु बजाम्यहम् // तेषु चेष्टाचला भक्तिरच्युतेस्तु सदा त्वयि // 6 // गत पापं गतं दुःखं गतं दारिद्यमेव च // आगता सुखसंपत्तिः पुण्या च तव दर्शनात // 7 // देवो दाता च भोक्ता च देवरूपमिदं जगत् // देवं जपति सर्वत्र यो देवः सोहमेव हि // 8 // अमस्व देवदेवेश सम्यते भुवनेश्वर // तव पादांबुजे नित्यं निश्वला भक्तिरस्तु मे॥९॥ इति पाार्य शंखजलमुद्धृत्य देवोपरि चामयित्वा “साधु वाऽसाधु वा कर्म यद्यदाचरितं मया // तत्सर्व रूपया देव गृहाणाराधनं मम // इत्युच्चरन् देवस्य दक्षिणहस्ते जलं दत्त्वा शंखं यथास्थाने निवेशयेत् / ततो गतसारं नैवेद्यं देवेश्योच्छिष्टं किंचिदुद्धृत्य "ॐ चण्डेश्वराय | नमः' इत्युच्छिष्टाधिकारिणे ऐशान्यां दिशि दद्यात् / तच्छेप नैवेद्यं शिरसि धृत्वा नैवेद्यादिकं देवभक्तेषु विभज्य स्वयं भुक्त्वा विसर्जन कुर्यात्।। तथा च / “ॐ गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर / / पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च // " इत्यक्षतानिक्षिप्य विसर्जन कृत्वा देवी स्वहृदये स्थापयेत् / तद्यथा "ॐ तिष्ठतिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर।यत्र ब्रह्मादयो देवाः सर्वे तिष्ठति मे हृदि॥१॥"इति हृदयकमले हस्तं / दत्त्वा देवं संस्थाप्य मानसोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन् यथासुखं विहरेत् / एवमेव विधिना जपं समाप्य संस्कृते वह्नौ जपदशांशतो। होमः तत्तदशांशेन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एतत्सर्व सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कुर्यात् / इति शिवपूजापद्धतिः समाप्ता // योगणेशाय नमः // अथ सदाशिवकवचप्रारंभः // " श्रीदेव्युवाच // भगवन्देवदेवेश सर्वाम्नायप्रपूजित // सर्व मे कथितं देव कवचं न प्रकाशितम् // 1 // प्रासादाख्यस्य मंत्रस्य कवचं मे प्रकाशय // सर्वरक्षाकरं देव यदि स्नेहोस्ति मां प्रति // श्रीभगवानुवाच // प्रासा दमंत्रकवचस्य वामदेवऋषिः। पंक्तिश्छंदः / सदाशिवो देवता / साधकाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः // शिरो मे सर्वदा पातु पासादाख्यः / For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म.म. 144 सदाशिवः / षडक्षरस्वरूपो मे वदनं तु महेश्वरः // 3 // पंचाक्षरात्मा भगवान्भुजौ मे परिरक्षतु // मृत्युंजयस्विबीजात्मा आस्य पू० खं. 1 रक्षतु मे सदा // 4 // वटमूलं समासीनो दक्षिणामूर्तिरव्ययः // सदा मां सर्वदः पातु षट्त्रिंशाणस्वरूपधृक् // 5 // द्वाविंशात्मको रुद्रो दक्षिणः परिरक्षतु // त्रिवर्णात्मा नीलकंठः कंठं रक्षतु सर्वदा // 6 // चिंतामणिबीजरूपो ह्यर्द्धनारीश्वरो हरः // सदा रक्षतु मे गुह्ये सर्वसम्पत्प्रदायकः // 7 // एकाक्षरस्वरूपात्मा कूटव्यापी महेश्वरः // मार्तडभैरवो नित्यं पादौ मे परिरक्षतु // 8 // तुंबुराख्यो महाबीजस्वरूपत्रिपुरांतकः // सदा मां रणभूमौ च रक्षतु त्रिदशाधिपः // 9 // ऊर्ध्वमूर्द्धनमीशानो मम रक्षतु सर्वदा // दक्षिणास्यं तु तत्पुरुषोऽव्यान्मे गिरिनायकः // 10 // अघोराख्यो महादेवः पूर्वास्य परिरक्षतु // वामदेवः पश्चिमास्यं सदा मे परिरक्षतु // 11 // उत्तरास्यं सदा पातु सद्योजातस्वरूपधृक् // इत्थं रक्षाकरं देवि कवचं देवदुर्लभम् // 12 // प्रातःकाले पठेद्यस्तु सोभीष्टं फलमामुयात् // पूजाकाले पठेद्यस्तु कवचं साधकोत्तमः // 13 // कीर्तिश्रीकांतिमेधायःसहितो भवति ध्रुवम् // कंठे यो धारयेदेतत्कवचं मत्स्वरूपकम् // 14 // युद्धे च जयमामोति द्यूते वादे च साधकः // कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे // 15 // देवा मनुष्यगंधर्वा वश्यास्तस्य न संशयः // कवचं शिरसा यस्तु धारयेद्यतमानसः // 16 // करस्थास्तस्य देवेशि अणिमाद्यष्टसिद्धयः // भूर्जपत्रे त्विमा विद्यां शुक्लपट्टेन वेष्टिताम् // 17 // रजतोदरसंविष्टां कृत्वा वा धारयेत्सुधीः // संप्राप्यो l महतीं लक्ष्मीमो मद्देहरूपभाक् // 18 // यस्मै कस्मै न दातव्यं न प्रकाश्यं कदाचन // शिष्याय भक्तियुक्ताय साधकाय प्रकाश येत् // 19 // अन्यथा सिद्धिहानिः स्यात्सत्यमेतन्मनारमे // तव स्नेहान्महादेवि कथितं कवचं शुभम् // 20 // न दयं कस्यचिना // 14 // For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir द्रे यदीच्छेदात्मनो हितम् // योर्चयेद्धपुष्पायैः कवचं मन्मुखोदितम् // तेनाचिंता महादेवि सर्वे देवा न संशयः // " इति भैरवतन्त्र सदाशिवकवचं समाप्तम् // अथ सदाशिवस्तोत्रप्रारंभः // “धरापोग्निमरुद्वयोममखेशेवर्कमूर्तये // सर्वभूतान्तरस्थाय शंकराय नमो नमः // 1 // श्रुत्यंतकृतवासाय श्रुतये श्रुतिजन्मने // अतीन्द्रियाय महसे शाश्वताय नमोनमः // 2 // स्थूलसूक्ष्मविभागाभ्याम निर्देश्याय शंभवे // भवाय अवसंभूतदुःखहंत्रे नमोस्तु ते // 3 // तर्कमार्गातिदृराय तपसां फलदायिने // चतुर्वर्गवदान्याय सर्वज्ञाय नमोनमः // 4 // आदिमध्यांतशून्याय निरस्ताशेषभीतये // योगिध्येयाय महते निर्गुणाय नमोनमः // 5 // विश्वात्मनेऽविचिंत्याय विलमच्चंद्रमौलये // कंदर्पदपकालाय कालहत्रे नमोनमः // 6 // विषाशनाय विहरद्वपस्कंधमुपेयुषे / / सरिद्वामसमावद्धकपर्दाय नमोनमः // 7 // शुद्धाय शुद्धनावाय शुद्धानामंतरात्मने / पुरांतकाय पूर्णाय पुण्यनाम्ने नमोनमः / / 8 // भक्ताय निजभक्तानां भुक्तिमुक्तिप्रदा। यिने / / विवाससे विवासाय विश्वेषां ते नमोनमः॥९॥ त्रिमूर्तिमूलभूताय त्रिनेत्राय नमोनमः // त्रिधाम्ना धामरूपाय जन्मन्नाय नमो नमः // 10 // देवासुरशिरोरत्नकिरणारुणितांघये।।कांताय निजकांतायै दत्तार्द्धाय नमोनमः // 11 // स्तोत्रेणानेन पूजायां प्रीणयेज्जगतः पतिम् / भक्तिमुक्तिपदं भक्त्या सर्वज्ञ परमेश्वरम् // 12 // " इति सदाशिवस्तोत्रं समाप्तम् // अथ शतनामस्तोत्रप्रारंभः॥ ॐ शिवो || महेश्वरः शंभुः पिनाकी शशिशेखरः॥वामदेवो विरूपाक्षः कपर्दी नीललोहितः॥१॥शंकरः शूलपाणिश्च खटांगी विष्णुवल्लभः॥ शिपिवि टोम्बिकानाथः श्रीकण्ठो भक्तवत्सलः॥२॥भवः सर्वत्रिलोकेशः शितिकंठः शिवाप्रियः॥ उग्रः कपाली कामारिरन्धकासुरसूदनः॥३॥ १नाशायेति पाठान्तरम् / / For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शि• तं तरं०६ मं० म. गंगाधरो ललाटाक्षः कालकालः कृपानिधिः // भीमः परशुहस्तश्च मृगपाणिर्जटाधरः॥ 4 // कैलासवासी कवची कठोरस्त्रिपुरांतकः॥२. खं.. ११४५वृषांको वृषभारुढो भस्मोद्धूलितविग्रहः // 5 // सामप्रियः स्वरमयस्त्रयीमूनिरनीश्वरः // सर्वज्ञः परमात्मा च सोमसूर्याग्निलोचनः // 6 // हविर्यज्ञमयः सोमः पंचवस्वः सदाशिवः।। विश्वेश्वरो वीरभद्रो गणनाथः प्रजापतिः // 7 // हिरण्यरेता दुईपों गिरीशो गिरिशोऽनघः // भजङ्गभूषणो जर्गो गिरिधन्या गिरिप्रियः // 8 // कृत्तिवासाः पुरारातिर्भगवान्प्रमथाधिपः // मृत्युञ्जयः सूक्ष्मतनुर्जगद्व्यापी जगद्गुरुः // 1 // व्योमकेशो महासेनो जनकश्चारुविक्रमः // रुद्रो भतपतिः स्थाणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बरः॥ 10 // अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्त्विकः शुद्धविग्रहः // शाश्वतः खण्डपरशुरजः पाशविमोचकः // 11 // मृडः पशुपतिर्देवो महादेवोऽव्ययः प्रभुः। पूषदंतभिदव्यग्रो दक्षाध्वर हरो हरः॥ 12 // भगनेत्रभिदव्यक्तः सहस्राक्षः सहस्रपात् // अपवर्गप्रदोऽनंतस्तारकः परमेश्वरः // 13 // इमानि दिव्यनामानि जप्यंते सर्वदा मया // नामकल्पलतेयं मे सर्वाभीष्टप्रदायिनी // 14 // नामान्येतानि सुभगे शिवदानि न संशयः // वेदसर्वस्वभूतानि नामान्येतानि वस्तुतः // 15 // एतानि यानि नामानि तानि सर्वार्थदान्यतः // जप्यंते सादरं नित्यं मया नियमपूर्वकम् // 16 // वेदेषु शिवनामानि श्रेष्टान्यबहराणि च // संत्यनंतानि सुभगे वेदेषु विविधेष्वपि // 17 // तेत्यो नामानि संगृह्य कुमाराय महेश्वरः // अष्टोत्तरसहस्रं तु नाम्नामुपदिशत्पुरा // 18 // " इति शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् // अथ शिवसहस्रनामस्तोत्रप्रारम्भः // सूत उवाच // “श्रूयतामृषयः श्रेष्ठाः कथयामि यथाश्रतम् // विष्णुना प्रार्थितो येन संतुष्टः परमेश्वरः // 1 // तदहं कथयाम्यद्य पुण्यं // 15 // नामसहस्रकम् // श्रीविष्णुरुवाच // शिवो हरो मृडो रुद्रः पुष्करः पुष्पलोचनः॥२॥ अथिंगम्यः सदाचारः शर्वः शंभुमहेश्वरः // चन्द्रा For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पीडश्चन्द्रमौलिविश्वादिश्चामरेश्वरः॥ 3 // वेदांतसारसंदोहः कपाली नीललोहितः // ध्यानाधारापरिच्छेद्यो गौरीभर्ता गणेश्वरः // 4 // अष्टमूर्तिविश्वमूर्तिस्विवर्गः स्वर्गसाधनः॥ ज्ञानगम्यो दृढप्रज्ञो देवदेवत्रिलोचनः // 5 // वामदेवो महादेवः पटुः परिबृढो दृढः // विश्वरूपो| विरूपाक्षो वागीशः शुचिमत्तरः॥ 6 // शर्वः प्रमाणसंवादीवृषांको वृषवाहनः॥ ईशः पिनाकी खट्वांगी चित्रवेपश्चिरंतनः॥७॥ तमोहरो महायोगी गोता ब्रह्माण्डहजटी // कालकालः कृत्तिवासाः सुभगः प्रणतात्मकः // 8 // त्रिपुंडधारी चाक्षुप्यो दुर्वासाः पुरशासनः॥ दिव्यायुधः स्कंदगुरुः परमेष्टी परात्परः॥९॥अनादिमध्यनिधनो गिरीशो गिरिबांधवः।। कुबेरबंधुः श्रीकण्ठो लोकवर्णोत्तमो मृदुः॥१०॥ समाधिवेद्यः कोदण्डी नीलकण्ठः परश्वधी॥ विशालाक्षो मृगव्याधः सुरेशः सूर्य्यतापनः // 11 // धर्मधामा आमाक्षेत्रं भगवान भगनेत्र मित् // उग्रः पशुपतिस्तार्थ्यः प्रियभक्तः प्रियंवदः॥ 12 // दाता दयाकरो दक्षः कपी कामशासनः // श्मशाननिलयः सक्ष्मः। श्मशानस्थो महेश्वरः // 13 // लोककर्ता मृगपतिर्महाकर्ता महौषधिः / / उत्तरो गोपतिगोता ज्ञानगम्यः पुरातनः।। 14 // नीतिः। सुनीतिः शुद्धात्मा सोमः सोमतरः सुखी / सोमपोऽमृतपः सौम्यो महाज्योतिर्महाद्युतिः // 15 // तेजोमयोऽमृतमयोन्नमयश्च मुधापतिः॥ अजातशत्रुरालोकसंभाव्यो हव्यवाहनः॥ 16 // लोककरो वेदकरः मूत्रकारः सनातनः।। महर्षिः कपिलाचार्यो विश्वदीप्तिर्विलोचनः // 17 // पिनाकपाणिर्भूदेववशगः स्वस्तिकत्सुधीः // धातृधामा धामकरः सर्वदः सर्वगोचरः / / 18 // ब्रह्ममृग्विश्वसृक्सर्वः कर्णि / कारप्रियः कविः // शाखो विशाखो गोशाखः शिवो भिषगनुत्तमः // 19 // गंगाप्लवोदको भव्यः पुष्कलः स्थपतिः स्थिरः / / विजितात्मा विधेयात्मा भूतवाहनसारथिः // 20 // सगणो गणवर्यश्च मुकीर्तिश्च्छिन्नमंशयः / / कामदेवः कामपालो भस्मोद्ध For Private And Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir म०म० लितविग्रहः / / 21 / / भस्मप्रियो भस्मशायी कामी कांतः कृतागमः // समावों निवृत्तात्मा धर्मपुंजः सदाशिवः // 22 // पू० ख०१ अकल्मषश्चतुर्बाहुर्दुरावासो दुरासदः / / दुर्लभो दुर्गमो दुर्गः सर्वायुधविशारदः // 23 // अध्यात्मयोगनिलयः सुतंतुस्तंतुवर्द्धनः // शुभांगो लोकसारंगो जगदीश जनार्दनः // 24 // भस्मशुद्धिकरो मेरुरोजस्वी शुद्धविग्रहः // असाध्यः साधुसाध्यश्च भृत्यमर्कटरूप तर०६ धक् // 25 // हिरण्यरेताः पौराणो रिपुजीवहरोऽचलः / / महाह्रदो महागतः सिद्धवृन्दारकेडितः // 26 // व्याघ्र चर्माम्बरो व्याली महाभूतो महानिधिः // अमृतानुभवः श्रीमान् पांचजन्यः प्रभञ्जनः // 27 // पंचविंशतितत्त्वस्थः पारिजातः परात्परः // सुलभः मुवतः शूरोवाङ्मयी कनिधिनिधिः // 28 // वर्णाश्रमगुरुवर्णी शत्रुजिच्छत्रुतापनः // आश्रमः क्षपणः क्षामो ज्ञानवानचलेश्वरः॥ 29 // प्रमाणभूतो दुर्जेयः सुपर्णो वायुवाहनः॥ धनुर्धरो धनुर्वेदो गुणः शशिगुणाकरः // 30 // सत्यः सत्यपरो दीनो धर्मागो धर्मसाधनः // अनंतदृष्टिरानन्दो दंडो दमयिता दमः // 31 // अभिचार्यो महामायो विश्वकर्मा विशारदः // वीतरागो विनीतात्मा तपस्वी भूतवाहनः // 32 // उन्मत्तवेषः प्रच्छन्नो जितकामोर्चतप्रियः // कल्पांतः प्रकृतिः कल्पः सर्वलोकप्रजापतिः // 33 // तरस्वी तारको धीमान प्रधानः प्रभुरव्ययः // लोकपालोंतहितात्मा कल्पादिः कमलेक्षणः // 34 // वेदशास्वार्थतत्त्वज्ञो नियमो नियमाश्रयः // चन्द्रः सूर्यः शनिः केतुविरागो विद्रुमच्छविः // 35 // भक्तिवश्यः परब्रह्म मृगबाणार्पणो नयः ॥अद्रिरद्यालयः / / कांतः परमात्मा जगद्गुरुः // 36 // सर्वकामालयस्तुष्टो मांगल्यो मंगलावृतः // महातपा दीर्घतपाः स्थविष्ठः स्थविरो द्रुमः // 37 // अहः संवत्सरो व्याप्तिः प्रमाणं परमं तपः // संवत्सरकरो मंत्रः प्रत्ययः सर्वदर्शनः॥३८॥ अजः सर्वेश्वरः सिद्धो महारेता महाबलः // 14611 For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www. bath.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir योगो योग्यो महातेजाः सिद्धः सर्वादिविग्रहः // 39 // वसुर्वसुमनाः सत्यः सर्वपापहरो हरः // सुकीर्तिः शोभितः आवी ह्यवाङ्॥ मनसगोचरः॥ 40 अमृतः शाश्वतः शांतो द्रोणहस्तः प्रतापवान् // कमंडलुधरो धन्वी वेदांगो वेदविन्मुनिः // 41 // त्राजिष्णुभो / जनं भोक्ता लोकनाथो दुरावरः // अतींद्रियो महामायः सर्वावासश्चतुष्पथः॥४२॥ कालयोगी महानादो महोत्साहो महाबलः // महाबुद्धिर्महावीर्यो भूतचारी पुरन्दरः // 13 // निशाचरः प्रेतचारी महाशक्तिर्महायुतिः // अनिर्देश्यवपुः श्रीमान् सर्वाचार्यमनोगतिः 5 // 44 // बहुश्रुतो महामायो नियतात्मा ध्रुवोऽधुवः // तेजस्तेजोद्युतिधरो नरकः सर्वशासकः // 45 // नृत्यप्रियो नित्यनृत्यः प्रकाशात्मा प्रकाशकः // स्पष्टः कुरो बुधो मंत्रः समानः सारसंप्लवः // 46 // युगादिकागावतों गंभीरो बृपवाहनः // इष्टो विशिष्टः / शिष्टेष्टः शरभः शरजो धनुः // 47 // तीर्थरूपस्तीर्थनामा तीर्थादृश्यः मुतीर्थदः // अपान्निधिरधिष्ठानं विजयो जयकालवित्॥४८॥ प्रतिष्ठितः प्रमाणज्ञो हिरण्यकवचो हरिः // विमोचनः सुरगणो विद्येशो बिंदुसंश्रयः // 42 // बालरूपो बलोन्मत्तो विकर्ता गहनो गुहः॥ करणं कारणं कर्ता सर्वबंधविमोचनः // 50 // व्यवसायो व्यवस्थानः स्थानदो जगदादिजः // गुरुदो ललितो भेदो निवा सात्मनि संस्थितः // 51 // वीरेश्वरो वीरभद्रो विश्वरूपो विधिविराट् // वीरचन्द्रो मणिर्द्धर्ता तीवानन्दो नदीश्वरः // 52 // अग्न्याधारस्त्रिशूली च शिपिविष्टः शिवालयः // बालखिल्यो महावीर्यस्तिग्मांशुबधिरः खगः // 53 // अभिरामः सुशरणः सुब्रह्मण्यः सुधानिधिः॥ मघवा कौशिको गोमान् विरामः सर्वसाधनः॥ 54 // ललाटजो विश्वदेहः सारसंसारचक्रभृत् // अमोघो दण्डिमध्य स्थो हरिणो ब्रह्मवर्चसः // 55 // परमार्थः परमयः शंबरो व्याघ्रकोऽनलः // रुचिर्वररुचिद्यो वाचस्पतिरहपतिः // 56 // रवि | For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म०विरोचनः स्कंदः शास्ता वैवस्वतोऽमरः // युक्तिकन्मत्तकीर्तिश्च सानुगश्च परंजयः // 57 // कैलासाधिपतिः कांतः सविता रविलो। पू० ख०१ चनः // विश्वोत्तमो वीतभयो विश्वार्ता निवारितः // 58 नित्यो नियतकल्याणः पुण्यश्रवणकीर्तनः // दूरश्रवा विश्वसहो ध्येयो दुःख शि० तं. // 147 // प्रणाशनः // 59 // उत्तारणो दुष्कृतिहा विज्ञेयो दुःसहो भवः // अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मीः किरीटी त्रिदशाधिपः // 60 // विश्वगोप्ता तर० 6 || विश्वकर्ताः सुवीरो रुचिरांगदः // जननो जनजन्मादिः प्रीतिमान्नीतिमान्धवः // 61 // वसिष्ठः कश्यपो भानुर्भीमो भमिपराक्रमः // प्रणवः सत्पथाचारो महाकाशो महाधनः // 62 // जन्माधिपो महादेवः सकलागमपारगः // तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा विभुर्विष्णुविभूषणः // 63 // ऋषिाह्मण ऐश्वर्यो जन्ममृत्युजरातिगः // पंचयज्ञसमुत्पतिविश्वेशो विमलोदयः॥ // 64 // अनायंत आत्मयोनिर्वत्सलो भक्तलोकधृक् // गायत्रीवल्लाः प्रांशुर्विश्ववासः प्रक्षाकरः // 65 // शिशुगिरिरतः सम्राट् सुषेणः सुरशत्रुहा // अनेमिरिष्टनेमिश्च मुक्तिदो विगतज्वरः // 16 // स्वयंज्योतिस्तपज्योतिरतिज्योतिरचंचलः // पिंगलः कपिलः श्मश्रुर्भालनेत्रत्रयीतनुः // 67 // ज्ञानस्कंदो महानीतिर्विश्वोत्पत्तिरुपलवः // भोगी विवस्वतस्तत्त्वो योगदारो दिवस्पतिः // 68 // कल्याणगुणनामा च पापहा पुण्यदर्शनः // उदारकीर्तिरुयोगी भहन्मान्यश्च सत्त्वपः // 69 // रूसो कामलिनकेशश्च स्वाधिष्ठानपदाश्रयः // पवित्रः पापनाशश्च मणिपूरो नभोगतिः // 70 // हृत्पुंडकिमासीनः शक्रः शांतो वृषाकपिः // कृष्णो ग्रहपतिः कृष्णः समर्थोऽनर्थनाशनः // 71 // अधर्मशत्रुरज्ञेयः पुरुहूतः पुरुश्रुतः // ब्रह्मगर्भी बृहद्गों धर्मधेनुर्धनागमः // 72 // जगद्धितैपी सुगतः कुमारः कुशलागमः // हिरण्यवर्णो ज्योतिष्मान्नानाभूतरतो ध्वनिः // 73 // आरोग्यो नयनाध्यक्षो / For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ध्दपतिर्वङ्गी पवनारः शमनो लोहित गुरुरायो वि विश्वामित्रो धनेश्वरः // ब्रह्मज्योतिर्वसुर्धामा महाज्योतिरनुत्तमः // 74 // मातामहो मातरिश्वा नास्वान्नागहारधृक् / पुलस्त्यः / पलहोगस्त्यो जातकर्ण्यः पराशरः // 75 // निरावरणनिर्वारो वैरंच्यो विष्टारश्रवाः // आत्मभूरनिरुद्धोत्रिर्ज्ञानमूर्तिमहायशाः 76 // लोकवीरायणीवीरश्चन्द्रः सत्यपराक्रमः // व्याल कल्पो महाकल्पः कल्पवृक्षः कलाधरः // 77 // अलंकरिष्णुरचलो रोचिष्णर्विक्रमोम्बरः॥ आशुः शब्दपतिर्वशी पवनः शिखिसारथिः // 78 // असंमृतिपतिः शक्रप्रमादः पादपासनः॥ वसुश्रवाः कव्यवाहः प्रततो विश्वभोजनः॥ 79 // जप्यो जरारिः शमनो लोहिताश्वस्तनूनपात् // नभोयोनिः सुनिष्पन्नः सुरभिः शिशिरात्मकः // 80 // वसंतो माधवो ग्रीष्मो नभःस्थो बीजवाहनः // अंगिरा गुरुरायो विमलो विश्ववाहनः // 81 // पावनः पुरुजिच्छकविद्यो नरवारणः // मनोबुद्धिरहंकारः क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालकः // 82 // जमदनिर्जलनिधिविगोलो विश्वगोलकः // अघोरानुत्तरो यज्ञः श्रेष्ठो निःश्रेयसालयः // 83 // शैलो गगनकुंदाभो दानवारिररिंदमः // चामुण्डाजीवकश्चारुनिःशल्यो लोक कल्पधक्॥८४॥चतुर्वेदश्चतुर्भावश्चतुरश्चतुरप्रियः॥आम्नायोथ समाम्नायस्तीर्थवेदशिवालयः॥८५॥ बहुरूपो महारूपः सर्वरूपश्चराचरः॥ नयनिर्मापको न्यायो न्यायगम्यो निरंजनः // 86 // सहस्रमूर्द्धा देवेन्द्रः सर्वशाखप्रभंजनः।। मुण्डो विरूपो विक्रांतो दण्डतिाण्डगुणोत्तमः / / // 87 // पिंगलामो हयग्रीवो नीलग्रीवो निरामयः॥सहस्रबाहुः सर्वेशः शरण्यः सर्वलोकधृक्॥८८॥ पद्मासनः परंज्योतिः परं सारं परं / फलम् // पद्मगर्भो महागर्भो विश्वगर्भो विचक्षणः // 89 // चराचरज्ञो वरदो वरेशस्तु महास्वनः // देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृतः। // 90 // देवासुरमहामित्रो देवासुरमहाश्रमः // देवादिदेवो देवागिर्दैवासुरवरप्रदः // 91 // देवामुरेश्वरो दिव्यो देवासुरमहेश्वरः // For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.koba .org Acharya Shet Kalassagasun Gyanmandir शि० तं. तरं०६ मं० म. I देवदेवो महाचित्यो देवतात्मात्मसंभवः // 92 // सयोनष्टासुरव्याघो देवसिंहो दिवाकरः॥ विबुधाग्रचरः श्रेष्ठः सर्वदेवोत्तमोत्तमः॥९३॥ // 14 // शिवज्ञानप्रदः श्रीमान् शिखी श्रीपर्वतप्रियः॥ वज्रहस्तः सिद्धखङ्गी नरसिंहनिपातनः॥५४॥ ब्रह्मचारी लोकचारी धर्मचारी धनाधिपः॥ नंदी नंदीश्वरो नंदो लग्नवृत्तिधरः शुचिः॥ 95 // लिङ्गाध्यक्षः सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावहः॥ स्व‘मा स्वर्गतः स्वामी स्वरः स्वरतमस्वनः॥ 96 // बोधाध्यक्षो बीजकर्ता धर्मकद्धर्मसम्भवः // दभो लोभोथ वैशंभुस्सर्वभूतमहेश्वरः॥९७॥ श्मशाननिलयस्यक्षः / सेतुरप्रतिमारुतिः // लोकोत्तरः स्फुटालोकस्यंबको नागभूषणः // 98 // अंधकारिमयदेवी विष्णोः स्कंधरतात्मकः // हितदश्च भयगुणो दक्षारिः पूषदंतभित् // 99 // पूर्जनिः खंडपरशुः सकलो निष्कलो मुनिः // अकालः सकलाधारः पांडुरोगो मृगोनगः // 100 // पूर्णः पूरयिता पुण्यः सुकुमारःसुलोचनः // संगो गोपप्रियाक्रूरः पुण्यकीर्तिरनामयः // 10 // मनोजवस्तीर्थकरो जटिलोजीवितेश्वरः // जीवितांतकरो नित्यो वसुरेता वसुप्रदः // 102 // सुजातिः सत्कृतिः सिद्धिः सजातिः कालकंटकः // कलाधरो महाकालभूतः सत्यपरायणः॥ 103 // लोकलावण्यकर्ता च लोकोत्तरसुखालयः // तेजोमयो थुविधरोलोक मानायणीरणुः // 104 // शुचिस्मितः प्रसन्नात्मा अजेयो दुरतिक्रमः // ज्योतिर्मयोनीरुजाङ्गोगङ्गाप्रेष्ठोजलेश्वरः // 105 // तुंबवी गोमहाकायोविशोकः शोकनाशनः // त्रिलोकपात्रिलोकेशः सर्वशुद्धिरधोक्षजः // 106 // अव्यक्तलक्षणो देवो व्यक्तोऽव्यक्तीविशां पतिः॥ परः शिवोवसु सासारोमानंदनोमयः // 107 // ब्रह्माविष्णुः प्रजापालोहंसोहंसगतिर्वयः // वेधाविधातास्रष्टाचसंहर्ताचचतु |र्मुखः॥ 108 // कैलासशिखरावासीसर्वावासीसदागतिः // हिरण्यगर्भोद्रुहिणाभूतनाथोऽथभूपतिः॥ 109 // सद्योगीयोगविद्योगी // 148 // - For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir का वरदो बामणप्रियः // देवप्रियो देवनाथो देवको देवचिंतकः॥११०॥ विषमाक्षो विरूपाक्षो वृषभो वृषवर्धनः॥ निर्ममो निरहंकारो नि Nोहो निरुपद्रवः // 111 // दर्पहा दर्पदो दृप्तः सर्वार्थपरिवर्तकः // सहस्रजित्सहस्रार्चिः स्निग्धप्रकतिदक्षिणः // 112 // भूतभव्यभवो / नाथः प्रभवोऽभूतिनाशनः // अर्थोऽनर्थो महाकोशः परकायकपण्डितः॥ 113 // निष्कंटकः कृतानंदो निर्व्याजो व्याजमर्दनः / / सत्त्ववान सात्यकिः सत्यः कीर्तिनेहः कृतागतः॥११४ // अकंपितो गुणग्राही नैकात्मा नैककर्मकृत् // सुप्रीतः सुमुखः सूक्ष्मः मुकरो दक्षिणानिलः // 115 // नंदिस्कंधधरो धुर्यः प्रकटः प्रीतिवर्धनः // अपराजितः सर्वसत्त्वो गोविंदः सत्त्ववाहनः // 116 // अधृतः स्वधृतः सिद्धः पूतमूर्तिर्यशोधनः // वाराहशृङ्गधृक् शूरो बलवानेकनाथकः // 117 // श्रुतिप्रकाशः श्रुतिमानेकबंधुरनेककृत् // श्रीवत्सलः शिवारंभः शांताभद्रः समो यशः॥११८॥ भूशयो भूषणो भूतिर्भूतकद्भूतिभावनः // अकम्पो भक्तिकायस्तु कालहा निष्कले श्वरः // 119 // सत्यव्रतो महात्यागी नित्यशांतिः परायणः॥परार्थवृत्तिर्वरदो विक्षुस्तुव विशारदः॥१२०॥ शुभदः शुभकर्ता च शुभ नामा शुभः स्वयम् // अनर्थितो गुणग्राही ह्यकर्ता कनकप्रभः॥१२१॥ स्वभावाद्रो मध्यस्थः शत्रुघ्नो विघ्ननाशनः॥ शिखण्डी कवची शूली जटी मुंडी च कुंडली॥१२२॥ अमृत्युः सर्वहक् सिंहस्तेजोराशिमहामणिः॥ असंख्ययोप्रमेयात्मा वीर्यवान् वीर्यकोविदः।।१२३॥ वैद्यश्चैव वियोगी च सतवीरो मुनीश्वरः॥अनुक्रमो दुराधर्षो मधुरः प्रियदर्शनः॥१२४॥सुरेशस्तारणः शर्वश्शब्दः प्रतपताङ्गतिः॥कालक्षयः कालकारी सुकृतिः कृतवासुकिः // 125 // महेष्वासो महीभर्ता निष्कलंको विशृंखलः // घुमणिस्तरणिर्द्धन्यः सिद्धिदः सिद्धिसाध नः॥ 126 // विवृतः संवृतस्तुत्यो व्यूढोरस्को महाभुजः // सर्वयोनिर्निरातंको नरनारायणप्रियः // 127 // निर्लेपो निःप्रसङ्गात्मा For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं.माजप . // 15 // अथ मृत्युञ्जयकवचप्रारंभः॥ भैरव उवाच // शृणुष्वपरमेशानि कवचं मन्मुखोदितम् / / महामृत्युंजयस्यास्य न देयं परमा तम् // // 1 // यं धृत्वा यं पठित्वा च यं श्रुत्वा कवचोत्तमम् // त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि // 2 // तदेव वर्णयिष्यामि तब प्रीत्यावरानने। तथापि परमं तत्त्वं न दातव्यं दुरात्मने॥३॥ॐ अस्य श्रीमहामृत्युंजयकवचस्य श्रीभैरवऋषि। गायत्रीछंदः। श्रीमृत्युंजय / रुद्रो देवता / ॐ बीजम् / जुं शक्तिः / सः कीलकम् / हौं इति तत्त्वम् / चतुर्वर्गफलसाधने पाठे विनियोगः // ॐ चन्द्रमंडल मध्यस्थे रुद्रमाले विचित्रिते // तत्रस्थं चिंतयेत्साध्यं मृत्युं प्रातोपि जीवति // 4 // ॐ जूं सः हौं शिरः पातु देवो मृत्युंजयो मम // नाश्रीशिवो वै ललाटं च ॐ हौं भुवी सदाशिवः // 5 // नीलकंठोऽवतान्नेत्रे कपी मेऽवताच्छ्रती // त्रिलोचनोऽवतां गण्डौ नासां मे। त्रिपुरांतकः // 6 // मुखं पीयूषघटभृदोष्ठौ मे कृत्तिकाम्बरः // हनुं मे हाटकेशानो मुखं वटुकभैरवः // 7 // कंधरां कालमथनो गलं गणप्रियोऽवतु // स्कंधौ स्कंदपिता पातु हस्तौ मे गिरिशोऽवतु // 8 // नखान्मे गिरिजानाथः पायादंगुलिसंयुतान् // स्तनौ तारापतिः / पातु वक्षः पशुपतिर्मम // 9 // कुक्षिं कुबेरवदनः पार्थों मे मारशासनः // शर्वः पातु तथा नाभिं शूली पृष्ठं ममाऽवतु // 10 // शिश्नं मे शंकरः पातु गुह्यं गुह्यकवल्लभः // कटिं कालांतकः पायादूरु मेंधकघातकः // 13 // जागरूकोऽवताजानू जंधे मे काल भैरवः // गुल्फो पायाजटाधारी पादौ मृत्युंजयोऽवतु // 12 // पादादिमूर्द्धपर्यंत सद्योजातो ममावतु // रक्षाहीनं नामहीनं वपुः पात्वमृते 5 श्वरः // 13 // पूर्व बलविकरणो दक्षिणे कालशासनः // पश्चिमे पार्वतीनाथ उत्तरे मां मनोन्मनः // 14 // ऐशान्यामीश्वरः पाया / दाग्नेय्यामग्निलोचनः // नैर्ऋत्यां शंभुरव्यान्मां वायव्यां वायुवाहनः // 15 // ऊर्च बलप्रमथनः पाताले परमेश्वरः // दशदिक्षु दास // 15 // For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पातु महामृत्युंजयश्च माम्॥ 16 // रणे राजकुले यूते विषमे प्राणसंशये // पायादोंजू महारुद्रो देवदेवो दशाक्षरः // 17 // प्रभाते पातु मां ब्रह्मा मध्याहे भैरवोऽवतु // सायं सर्वेश्वरः पातु निशायां नित्यचेतनः // 18 // अर्थरात्रे महादेवो निशांते मां महोदयः॥ सर्वदा सर्वतः पातु ॐ जूं सः हौं मृत्युंजयः॥१९॥ इतीदं कवचं पुण्यं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ॥सर्वमंत्रमयं गुह्यं सर्वतंत्रेषु गोपितम्॥२०॥ पुण्यं पुण्यप्रदं दिव्यं देवदेवादिदैवतम् / / य इदं च पठेन्मंत्रं कवचं वाचयतेत्ततः // 23 // तस्य हस्ते महादेवि त्र्यंबकस्याष्टसिद्धयः ॥रणे धृत्वा चरेयुद्धं हत्वा शत्रुअयं लभेत्॥२२॥जपं कृत्वा गहे देवि संप्राप्स्यति मुखं पुनः // महाभये महारोगे महामारीभये तथा॥ दुर्भिक्षे |शत्रुसंहारे पठेत्कवचमादरात् // 123 // इति श्रीमहामृत्युंजयकवचं समानम् // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे शिवतंत्रे पष्ठस्तरंगः // 6 // For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairt.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir SAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA L 11509 For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra // श्रीगणेशाय नमः // अथ विष्णुतंत्रप्रारंभः // तत्रादौ पटलपारंभः॥ अथ वक्ष्ये महामंत्रान्विष्णोः सर्वार्थसाधकान् // येषां संस्मान रणात्संतो भवाब्धेः पारमाश्रिताः // 1 // अथाष्टाक्षरविष्णुमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा // "ॐ नमो नारायणाय" इत्यष्टाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् / अस्य मंत्रस्य साध्यनारायण ऋषिः / देवीगायत्री छन्दः। विष्णुर्देवता। सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः।। साध्यनारायण ये नमः शिरसि 1 देवीगायत्रीछन्दसे नमः मुखे 2 विष्णुदेवतायै नमः हृदि३ विनियोगाय नमः सर्वांगे 4 इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ क्रुद्धोल्काय अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 ॐ महोल्काय तर्जनीभ्यां नमः 2 ॐ वीरोल्काय मध्यमान्यां नमः३ ॐ व्युल्काय अनामिकात्यां / नमः 4 ॐ सहस्रोल्काय कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 इति करन्यासः // ॐ क्रुद्धोल्काय हृदयाय नमः / ॐ महोल्काय शिरसे स्वाहा 2 ॐ वीरोल्काय शिखायै वषट् 3 ॐ युल्काय कवचा हुं 4 ॐ सहस्रोल्कायाखाय फट 5 इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ ॐ नमः हृदयाय नमः 1 ॐ नं नमः शिरसे स्वाहा 2 ॐ मो नमः शिखायै वषट् 3 ॐ नां नमः कवचाय हुँ 4 ॐ रां नमः नेत्रत्रयाय वौपट ५ॐ यं नमः अवाय फट 6 ॐ णा नमः कुक्ष्योः 7 ॐ यं नमः पृष्ठे 8 इति मंत्रवर्णः षडंगन्यासः // अथ मंत्रवर्णपरष्टांगन्यासः // 2 ॐ ॐ नमः आधारे 3 ॐ ने नमः हृदि 2 ॐ मो नमः वक्वे 3 ॐ नां नमः दक्षिणभुजे 4 ॐ रां नमः वामभुजे 5 ॐ यं नमः दक्षिणपादे 6 ॐ णां नमः वामपादे 7 ॐ यं नमः नाभौ 8 इति प्रथमन्यासः // 1 // ॐ ॐ नमः कंठे 1 ॐ नं नमः नाभौ 2 ॐ मों नमः हृदि 3 ॐ नां नमः दक्षिणस्तने 4 ॐ रां नमः वामस्तने ५ॐ यं नमः दक्षिणपाचँ 6 ॐ णां नमः वामपार्थ 7 1 मंत्रन्यासं ततः कुर्यात्सर्वकामफलप्रदम् // यं विना नैव तत्सिद्धिः सम्यगासुरनिष्कलम् // For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir म० | तरं०७ ॐ यं नमः पृष्ठे 8 इति द्वितीयन्यासः // 2 // ॐ ॐ नमः मूर्ध्नि / ॐ नं नमः मुखे 2 ॐ मो नमः दक्षिणनेत्रे 3 ॐ नां नमः पूखं. वामनेत्रे 4 ॐ रां नमः दक्षिणकणे 5 ॐ यं नमः वामकर्णे 6 ॐ णां नमः दक्षिणनासापुटे 7 ॐ यं नमः वामनासापुटे 8 इति तृती वि. 01 यन्यासः॥ 3 ॐ ॐ नमः दक्षबाहुमूले 1 ॐ नं नमः दक्षकूपरे 2 ॐ मों नमः दक्षमणिबंधे 3 ॐ नां नमः दक्षहस्तांगुलिमूले 4 ॐ रां नमः दक्षहस्तांगुल्यग्रे 5 ॐ यं नमः वामबाहुमूले 6 ॐ णां नमः वामकूपरे 7 ॐ यं नमः वाममणिबंधे 8 इति चतुर्थन्यासः // 4 // ॐ ॐ नमः वामहस्तांगुलिमूले 1 ॐ नं नमः वामहस्तांगुल्यग्रे 2 ॐ मों नमः दक्षिणपादमूले 3 ॐ नां नमः दक्षिणजा नुनि 4 ॐ रां नमः दक्षिणांगुलौ 5 ॐ यं नमः दक्षपादांगुलिमूले 6 ॐ णां नमः दक्षपादांगुल्यग्रे 7 ॐ यं नमः वामपादमूले 8 इति पंचमन्यासः॥ 5 // ॐ ॐ नमः वामजानुनि 1 ॐ नं नमः वामगुल्फे 2 ॐ मों नमः वामपादगुलिमूले 3 ॐ नां नमः वाम पादांगुल्यो 4 हृदये करं दत्त्वा ॐ रां नमः त्वचि 5 ॐ यं नमः रक्ते 6 ॐ णां नमः मांसे 7 ॐ यं नमः मेदसि 8 इति षष्ठन्यासः // 6 // ॐ ॐ नमः अस्थ्नि 1 ॐ नं नमः मज्जायाम् 2 ॐ मो नमः शुक्र 3 ॐ नां नमः प्राणे 4 ॐ रां नमः हृदि 5 ॐ यं नमः दक्षिणगले ६ॐ णां नमः वामगले 7 ॐ यं नमः हृदि 8 इति सप्तमन्यासः॥७॥ॐ ॐनमः मूर्हि 1 ॐ नं नमः नेत्रयोः 2 ॐ मों नमः / मुखे ३ॐ नां नमः हृदि 4 ॐ रां नमः कुक्षौ ५ॐ यं नमः ऊर्वोः६ ॐ णां नमःजंघयोः 7 ॐ यं नमः पादयोः 8 इत्यष्टमो न्यासः॥८॥ // 152 // इति मंत्रवर्णाष्टन्यासाः॥ ॐ चक्राय नमः दक्षिणगंडे 1 ॐ शंखाय नमःवामगंडे 2 ॐ गदायै नमः दक्षिणांसे ३ॐ पद्माय नमः वामांसे ४इति विन्यस्य मूर्तिपंजरन्यासं कुर्यात्॥तत्र क्रमः॥ ॐ ॐ अंकेशवायधात्रे नमः ललाटे 1 ॐ नं आं नारायाणायाय॑म्णे नमः कुक्षौॐ मोई For Private And Personal use only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir माधवाय मित्राय नमः हृदि 3 ॐ भई गोविंदाय वरुणाय नमः कंठे 4 ॐ गं उं विष्णवेंऽशवे नमः दक्षपाच ५ॐ वं ऊं मधसूदनाया भगाय नमः दक्षिणांशे 6 ॐ तें एं त्रिविक्रमाय विवस्वते नमः गलदक्षिणभागे 7 ॐ बां ऐं वामनायेन्द्राय नमः वामपाय 8 ॐ संओं श्रीधराय पृष्णे नमः वामांसे 9 ॐ दें औं हृषीकेशाय पर्जन्याय नमः गलवामभागे 10 ॐ वां अं पद्मनाभायन त्वष्ट्रे नमः पृष्टे 11 ॐ यं अः दामोदराय विष्णवे नमः ककुदि 12 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मृघ्निं 13 इति द्वादशमृतिपंजर न्यासः // ॐ किरीटकेयूरहारमकरकुंडलधरशंखचक्रगदांभोजपीतांबरधरश्रीवत्सांकितवक्षःस्थलश्रीभूमिसहितात्मज्योति यदीपकराय सहस्रादित्यतेजसे नमः इति मंत्रण शिर आदिपादांतं व्यापकं विन्यसेत् // इति किरीटमंत्रन्यासः॥ एवं न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत् // उयकोटिदिवाकराभमनिशं शंखं गदा पंकजं चकं विनतमिन्दिरावसुमतीसंशोभिपार्थद्वयम्॥ कोटीरांगदहारकंडलधरं पीतांबरं कौस्तभोग दीनं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छ्रीवत्सचिह्न भजे // 1 // इति ध्यात्वा सर्वतोभद्रमंडले मं मंडूकादिपरतत्वांतपीठदेवताभ्यो नमः इति। पीठदेवतां संपूज्य पीठशक्तिं पूजयेत् // तत्र क्रमः // पूर्वादिक्रमेण ॐ विमलायै नमः 1 ॐ उत्कपिण्यै नमः 2 ॐ ज्ञानायै नमः 3| ॐ क्रियायै नमः 4 ॐ योगायै नमः ५ॐ प्रहयै नमः 6 ॐ सत्यायै नमः 7 ॐ ईशानायै नमः 8 मध्ये ॐ अनुग्रहाय नमः इति नवपीठशक्तीः पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं अग्युत्नारणपूर्वकं ॐ नमो भगवते विष्णवे सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोग द्वादशाक्षरं मंबवरं विन्यसेडह्मरंधके // वासुदेवो भवेत्साक्षायापितस्तस्य तेजसा॥ 2 तन्मूर्तिपंजरन्यासोऽभीष्टितः परमेष्ठिना / सकुन्न्यासाद्भवेन्मंत्री ध विष्णुमतिरनुत्तमा For Private And Personal use only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . // 153 // . / चदयात् // इत्याज्ञां 5 पद्मपीठात्मने नमः / / इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्व्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य आवाहना दिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात् // तत्र क्रमः।। __अष्टाक्ष विष्णुपूजनयत्रम् / पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मय परो देवः परामृतरसप्रिय // अनुज्ञां विष्णो मे देहि परिवारार्चनाय मे // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत् तद्यथा। षट्कोणकेसरेषु अग्निकोणे ॐ क्रुधो ल्काय हृदयाय नमः 1 नैर्ऋत्ये ॐ महोल्कायशिरसे स्वाहा 2 वायव्ये ॐ दाबीरोल्काय शिखायै वषट् 3 ऐशान्ये ॐ द्युल्काय कवचाय हुं 4 देवपश्चिमे सहस्रोल्कायास्त्राय फट 5 इति पंचागानि पूजयेत् // ततः पुप्पांजलि 10 नाराय० मादाय मूलमुच्चार्य ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भत्त्या समर्प ये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजि तास्तर्पिताः संतु इति वदेत // इति प्रथमावरणम् 1 ततोष्टदलमूले पूज्यपूजक योर्मध्ये प्राची प्रकल्प्य पूर्वादिक्रमेण ॐ ॐ नमः 1 ॐ नं नमः 2 ॐ मों नमः 3 ॐ नां नमः 4 ॐ रां नमः 5 ॐ यं नमः 6 ॐ णां नमः 7 ॐ ॐ नमो // 153 // For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org यं नमः 8 इति मंत्रवर्णान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोष्टदलमध्येषु पूर्वे ॐ वासुदेवाय नमः / / वामदेवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः 1 इति सर्वत्र / दक्षिणे ॐ संकर्षणाय नमः सकपर्णश्रीपा०२ पश्चिमे ॐ प्रद्युम्नाय नमः प्रद्युन्मश्रीपा० 3 उत्तरे ॐ अनिरुद्धाय नमः अनिरुद्धश्रीपा० 4 अग्निकोणे ॐ शांत्यै नमः शांतिश्रीपा० 5 नै+ते ॐ श्रियै नमः। श्रीश्रीपा०६ वायव्ये ॐ सरस्वत्यै नमः मरस्वतीश्रीपा० 7 ऐशान्ये ॐ रत्यै नमः रतिःश्रीपा० 8 इत्यष्टी पूजयित्वा पप्पांजलिं च दद्यात् / इति तृतीयावरणम् / / 3 // ततोष्टदलायेषु // पूर्वे ॐ चक्राय नमः 1 दक्षिणे ॐ शंखाय नमः 2 पश्चिमे ॐ गदायै नमः 3 उनरे dॐ पद्माय नमः 4 अग्निकोणे ॐ कौस्तुभाय नमः 5 नैर्ऋते ॐ मुसलाय नमः 6 वायवे ॐ खनाय नमः 7 ऐशान्ये ॐ वनमालायै नमः 8 इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलि च दद्यात् / इति चतुर्थावरणम् // 4 // भूपुरात्यंतरे पूर्वे ॐ गरुडाय नमः 1 दक्षिणे ॐ शंख निधये नमः 2 पश्चिमे ॐ ध्वजाय नमः 3 उत्तरे ॐ पमनिधये नमः 4 अग्निकोणे ॐ विघ्नाय नमः 5 नैर्ऋते ॐ आर्यायै नमः 6 वायव्ये ॐ दुर्गायै नमः 7 ऐशान्ये ॐ सेनान्यै नमः इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात / इति पंचमावरणम् // 5 // ततो भूपरे के पूर्वादिक्रमेण / ॐ लं इन्द्राय नमः इन्द्रश्रीपा० 1 ॐ रं अग्नये नमः अग्निश्रीपा० 2 ॐ में यमाय नमः यमश्रीपा०४ ॐ शं निर्ऋतये नमः निर्ऋतश्रीपा० 4 ॐ वं वरुणाय नमः वरुणश्रीपा० 5 ॐ यं वायवे नमः वायुश्रीपां. 6 ॐ कुं कुबेराय नमः कुबेरश्रीपा. 7 ॐ हं ईशानाय नमः ईशानश्रीपा० 8 इन्द्रेशानयोर्मध्ये ॐ आं ब्रह्मणे नमः ब्रह्मश्रीपा० 9 वरुणनितयोर्मध्ये ॐ ह्रीं अनंताय नमः अनंतश्रीपा० 10 इति दशदिक्पालान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / तद्वाह्ये पूर्वादिक्रमेण / ॐ वं वज्राय नमः 1 ॐ शं शक्तये For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म०लानमः 2 ॐ दं दंडाय नमः 3 ॐ खं खगाय नमः 4 ॐ पं पाशाय नमः ५ॐ अं अंकशाय नमः ६ॐ गं गदायै नमः 7 ॐ त्रिपू० ख०१ त्रिशूलाय नमः 87 पं पद्माय नमः ९ॐ चं चक्राय नमः इत्यखाणि पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति सप्तमावरणम् / / 7 // इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिनीराजनांतं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं षोडशलक्षजपः // तथा च / विकारलक्षं प्रजपेन्मनुमेनं समाहितः / / तद्दाशं सरमिजैर्जुहुयान्मधुराष्टतैः // 1 // धर्मार्थकामाँल्लब्ध्वा वै विष्णोः सायज्यमामुयात् // इत्यष्टाक्षरविष्णुमंत्रप्रयोगः // अथ द्वादशाक्षरीविष्णुमंत्रप्रयोगः ( शारदायाम ) मंत्रो यथा। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय // इति द्वादशाक्षरी मंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य मंत्रस्य प्रजापतिक्रषिः / गायत्री छंदः। वासुदेवपरमात्मा देवता / सर्वेट Kal सिद्धये जपे विनियोगः // ॐ प्रजापतिऋषये नमः शिरसि 1 गायत्रीछंदसे नमः मुखे 2 वासुदेवपरमात्मदेवतायै नमः हृदि 3 विनियोगाय नमः सर्वांगे 4 इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 नमो तर्जनीभ्यां नमः 2 भगवते मध्यमाभ्यां नमः | वासुदेवाय अनामिकाम्यां नमः 4 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 इति करन्यासः / / ॐ हृदयाय नमः 1 नमो शिरसे स्वाहा 2 भगवते शिखायै वषट् 3 वासुदेवाय कवचाय हुँ 4 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट 5 इति पंचांगन्यासः // 9ॐ ॐ नमः मूर्ध्नि 1 ॐ नं नमः भाले 2 ॐ मो नमः नेत्रयोः 3 ॐ नमः मुखे 4 ॐ गं नमः गले ५ॐ वं नमः बाह्वोः 6 ॐ ते नमः हृदये 7 ॐ वां नमः कुक्षौ 8 ॐ से नमः नाभौ 9 ॐ दें नमः लिंगे 10 ॐ वां नमः जान्योः 11 ॐ यं नमः पादयोः। 12 इति मंत्रवर्णन्यासः // इति न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत् // विष्णु शारदचन्द्रकोटिसदृशं शंखं रथांगं गदामभोज दधतं सिताब्जनि // 15 // For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir निलयं कात्या जगन्मोहनम् // आबद्धांगदहारकुंडलमहामौलिं स्फुरत्कंकणं श्रीवत्साकमुदारकौस्तुभधरं वंदे मुनींद्रः स्तुतम् // इति ध्यात्वा सर्वतोभद्रमंडले में मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः। इति पीठदेवताः संपूज्य पीठशक्तीः पूजयेत // नद्यथा / पूर्वादिक्रमेण ॐ विमलायै नमः / ॐ उत्कर्षिण्यै नमः 2 ॐ ज्ञानायै नमः 3 ॐ क्रियायै नमः 4 ॐ योगायै नमः ५ॐ प्रवयै नमः 6 ॐ सत्यायै नमः 7 ॐ ईशानायै नमः 8 मध्ये अनुग्रहायै नमः 5 इति नवपीठशक्तीः संपूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रमन्युत्तारणपूर्वकम् ॐ नमो जगवते विष्णवे सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोगपद्मपीठान्मने नमः // इति मंत्रण पुष्पा द्यामनं दत्वा पीठमध्ये संस्थाप्य पुनर्थ्यात्वा मूलेन मृति प्रकल्प्य पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारः मपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवर णपूजां कुर्यात् / / तत्र कमः // पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मयः पग देव परामृत रमप्रिय // अनुन्नां विष्णो मे देहि परिवारार्चनाय मे // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा आवरणपूजामारभेत् / पटकोणकेमरेषु अग्निकोणे ॐ हृदयाय नमः / नैर्ऋते ॐ नमो शिरसे स्वाहा 2 वायव्ये भगवते शिखायै वषट् 3 इशान्ये वासुदेवाय कवचाय हुँ 4 देवतापाश्चिमे ॐ नमो भगवते वासुदेवाय अस्वाय / फट 5 इति पंचांगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागनबन्सल // भन्या समर्पये तुज्यं / प्रथमावरणार्चनम् // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // // ततः पूज्यपूजकयो मध्ये प्राची प्रकल्प्य ततोष्टदले पूर्व ॐ वासुदेवाय नमः वासुदेवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति सर्वत्र / दक्षिणे ॐ संकर्ष गाय नमः संकर्षणश्रीपा० 2 पाश्चिमे ॐ प्रद्युम्नाय नमः प्रद्युम्नश्रीपा० 3 उत्तरे ॐ अनिरुद्धाय नमः अनिरुद्धश्रीपा० 4 अमित For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir द्वादशाक्षरीविष्णुमंत्रयंत्रम. पू० खं.१ वि० त० - 10 तरं०७ DAT मं०म० कोणे ॐ शांत्यै नमः शांतिश्रीपा० 5 नैर्ऋते ॐ श्रियै नमः श्रीश्रीपा० 6 वायव्ये ॐ सरस्वत्यै नमः सरस्वतीश्रीपा०७ऐशान्ये ॐ रत्यै नमः रतिश्रीपा० Kाद इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम्॥२॥ ततो द्वाद शदले पूर्वादिक्रमेण ॐ ॐ केशवाय नमः केशवश्रीपा. 1 ॐ ने नारायणाय नमः नारायणश्रीपा. 1 ॐ मों माधवाय नमः माधवश्रीपा० 3 ॐ गोविं दाय नमः गोविंदश्रीपा०४ ॐ गं विष्णवे नमः विष्णुश्रीपा० 5 ॐ वं मधुसूद नाय नमः मधुसूदनश्रीपा०६ ॐ ने त्रिविक्रमाय नमः त्रिविक्रम श्रीपा. 1 ॐ वां वामनाय नमः वामनश्रीपा० 8 ॐ में श्रीधराय नमः श्रीधर श्रीपा० ९ॐ दें एपीकेशाय नमः हृषीकेशश्रीपा. 1. ॐ वां पद्मनाभाय निमः पद्मनाभश्रीपा. 11 ॐ यं दामोदराय नमः दामोदरश्रीपा० 12 इति द्वादशमूर्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात / इति तृतीयावरणम्॥ // 3 // ततो भूपुरे / इन्द्रादीन् दशदिक्पालान् तद्वाह्ये बजायस्वाणि च पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इत्यावरणपूजां कृत्या धूपादि नमस्कारांत भगवत वास // 155 // For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir संपूज्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरगं द्वादशलक्षजपः / द्वादशसहस्रहोमः / तनदशांशन नर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् / तथा च / वर्णलक्षं जपेन्मत्र दीक्षितो विजितेन्द्रियः॥ तत्सहस्रं प्रजहयानिलराज्यपरिप्लतैः // 1 // एवं संपूजितो विष्णुः प्रदद्यादिष्टमान्मनः // पायसेन वृताक्तेन मंत्रवर्णमहस्रकम् // 2 // जुहुयान्मा| नवः सिद्धयै समिद्भिः क्षीरभूरुहाम् // तत्संख्ययां पयोक्ताभिः सर्वपापविमुक्तये // 3 // इति द्वादशाक्षरीविष्णुमंत्रप्रयोगः // ॥श्रीगणेशाय नमः // अथ राममंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा / “रां रामाय नमः // " इति षडक्षरमंत्रः // अस्य विधानम् / अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः / गायत्री छन्दः / श्रीरामो देवता। गं बीजम् / नमः शक्तिः / चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धये जपे विनियोगः॥ ॐ ब्रह्मणे ऋषये नमः शिरसि 1 गायत्रीछन्दसे नमः मुखे 2 श्रीरामदेवतायै नमः हृदि 3 रां बीजाय नमः गुह्ये 4 नमः शक्तये नमः पादयोः 5 विनि योगाय नमः सर्वांगे 6 इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ गं अंगुष्ठान्यां नमः / ॐ रौं तर्जनीभ्यां नमः 2 ॐ हं मध्यमाभ्यां नमः 3 ॐ र अनामिकाभ्यां नमः 4 ॐ रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ५ॐ र करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 इति करन्यासः // ॐ रां हृदयाय नमः / ॐ शिरसे स्वाही 2 ॐ रूं शिखायै वषट् 3 ॐ Rs कवचाय हुँ 4 ॐ रौं नेत्रत्रयाय वौषट् 5 ॐ रः अस्त्राय फट 6 इति हृदयादि षडंगन्यासः // ॐ रां नमः ब्रह्मरंधे 1 ॐ रां नमः धुवोर्मध्ये 2 ॐ मां नमः हृदि 3 ॐ यं नमः नानौ 4 ॐ नं नमः लिंगे ५ॐ में नमः पादयोः 6 इति मंत्रवर्णन्यासः // इति न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत् / कालांभोधरकांतिकांतमनिशं वीरासनाध्यासिन मुद्रां ज्ञानमयीं | For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir दधानमपरं हस्तांबुजं जानुनि ॥सीतां पार्श्वगतां सरोरुहकरां विद्युनिभा राघवं पश्यंती मुकुटांगदादिविविधाकल्पोज्ज्वलांगं भजे // // पू०ख० 1 इति ध्यायेत् / ततः सर्वतोभद्रमण्डले ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः इति पीठदेवताः संपूज्य नवपीठशक्तीः पूजयेत् तद्यथावि• तं० पूर्वादिक्रमेण / ॐ विमलायै नमः / ॐ उत्कपिण्यै नमः 2 ॐ ज्ञानायै नमः 3 ॐ क्रियायै नमः 4 ॐ योगायै नमः 5 ॐ प्रह्वथै तरं०७ नमः 6 ॐ सत्यायै नमः 7 ॐ ईशानायै नमः 8 मध्ये ॐ अनुग्रहायै नमः 5 // इति पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्र मति वा / अग्युत्तारणपूर्वकम् ॐ नमो भगवते रामाय सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः॥इति मंत्रण पुष्पाद्यामनं दया पीठ मध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा वाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात् / तत्र क्रमः / / पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मयः परा देव परामृतरसप्रिय // अनुज्ञां देहि मे गम परिवारार्चनाय मे॥ इति पठित्वा पथ्यांजलिं दद्यात् / / इत्याज्ञां गृहीत्या आवरणपूजामारभेत् / देववामपाचे श्रीसीतायै नमः / सीताश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति मर्वत्र / अनि कोणे / ॐ शायि नमः शाश्रिीपा० 2 दक्षिणपाचे ॐ शराय नमः 3 वामपाचे ॐ चापाय नमः 4 इति पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तत्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठि। त्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत / इति प्रथमावरणम् // 1 // ततः षट्कोणकेसरेषु अग्निकोणे ॐ रां हृद। याय नमः 1 निर्कते ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा 2 वायव्ये ॐ ॐ शिखायै वषट् 3 ऐशान्ये ॐ र कवचाय हूं 4 पृज्यपृजकयोमध्ये // शा // 56 // For Private And Personal use only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir षडक्षरीराम प्रयोगावरणयंत्रम् ॐ रौं नेत्रत्रयाय वौषट् 5 देवपश्चिमे ॐ रः अस्त्राय फट 6 इति पर्ड गानि पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम्॥ 2 // तद्ध जाहिरष्टदले पूज्यपूजकयोमध्ये प्राची प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण ॐ हनुमते नमः। हनुमच्छीपा० १ॐ मुग्रीवाय नमः / मुग्रीवश्रीपा. 2 ॐ भरताय नमः। भरतश्रीपा० 3 ॐ विनीपणाय नमः / विभीषणश्रीपा०४ ॐ लक्ष्म राणाय नमः / लक्ष्मणश्रीपा० ५.ॐ अंगदाय नमः। अंगदश्रीपा० // 6 // ॐ शनाय नमः। शत्रुन्नश्रीपा० 7 ॐ जाम्बवते नमः। जाम्पबच्छीपा० Kale इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति तृतीयावरणम् 3 ततोष्टदलाये। ॐ सृष्टाय नौः / सृष्टश्रीपा. 1 ॐ जयन्ताय नमः / जयंतश्रीपा० 2 ॐ विजयाय नमः / विजयश्रीपा० 3 ॐ सुराष्ट्राय नमः / सुराष्ट्रीपा० 4 ॐ राष्ट्रवर्द्धनाय नमः / राष्ट्रवर्द्धनश्रीपा० ५ॐ अकोपाय नमः / अकोपश्रीपा० 6 ॐ धर्मपालनाय नमः / धर्मपालश्रीपा० ७ॐ समन्ताय नमः / सुमंतश्रीपा० 8 इत्यष्टौ रामाय 40 For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir # म०पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति चतुर्थावरणम् // 4 // ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान ताहिर्वज्राद्यास्त्राणि च पूजयित्वा पू० ख० / // 15 // पुष्पांजलिं च दद्यात् / इत्यावरणपूजां च कृत्वा धूपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कुर्यात् अस्य पुरश्चरणं षड्लक्षजपः / / वित. तत्तद्दशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति सिद्धे मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / तथा च . तरं. 7 (शारदातिलके ) वर्णलक्षं जपेन्मंत्रं तद्दशांशं मरोरुहैः // जुहुयादर्चिते वह्नौ ब्राह्मणान्मोजयेत्ततः // 3 // एवं पूजादिभिः सिखे मना कर्माणि साधयेत // जातीप्रसूनैर्जुहुयाच्चंदनांभःसमक्षितैः // 2 // राजवश्याय कमलर्धनधान्यादिसंपदे // नीलोत्पलानां होमेन वशये दखिलं जगत // 3 // बिल्वप्रमाणैर्जुहुयादिंदिरावाप्तये नरः // दुर्वाहोमेन अथ पइविधमंत्रस्वरूपचक्रम् / दीर्घायुविन्मंत्री निरामयः // 4 // रक्कोत्पलहुतान्मंत्री धनमामोति पहिधमंत्रस्वरूपम् ! ऋषिः / छदः / देवता / / वांछितम // मेधाकामेन होतव्यं पालाशकुसुमैनवैः // 5 // तज्जतमभः रां रामाय नमः | ब्रह्मा गायत्रा श्रीगमः प्रपिवेत्कविर्भवनि वत्मरात् // तन्मंत्रितान्नं भूजीत महदारोग्यमामयात् // 6 // 2 क्ली रामाय नमः | संमोहन-विश्वामित्रः गायत्री | श्रीराम | अयं मंत्रः पटियः। तथा च-स्वकामशक्तिबागलक्ष्मीतारायः पंचवर्णकः॥ 3 ही रामाय नमः / शक्तिः गायत्री षडक्षरः पड्डियः स्याच्चतुर्वर्गफलप्रदः // 1 // ब्रह्मा संमोहनः शक्तिर्दशि ऐ रामाय नमः | मक्षिणामूर्ति गायत्रो श्रीरामः णामूर्तिरव्ययः // अगस्तिः श्रीशिवः प्रोक्तो मुनयोत्र क्रमादिमे // 2 // अथ श्री रामाय नमः | अगस्तिः all15 // या कामबीजादेविवामित्रो मुनिर्मनोः // छंदो गायत्रसंजं च श्रीरामश्चैव ॐ रामाय नमः शिवः / / गायत्री For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kabalrm.org देवता॥३॥ध्यानपूजादिकं सर्व पूर्ववत्कार्यम् // इति पडिधमंत्रस्वरूपम् ॥अथ दशाक्षरराममंत्रप्रयोगः।। (शारदायाम् ) मंत्रो यथा “हुँ जानकीवल्लभाय स्वाहा” इति दशाक्षरो मंत्रः। अस्य मंत्रस्य वशिष्ट ऋषिः ! विराट् छंदः। सीतापाणिपरिग्रहे श्रीरामो देवता / हूं बीजम है स्वाहा शक्तिः / चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धये विनियोगः / ॐ वशिष्टऋषये नमः शिरसि 1 विराट्छंदमे नमः मुखे 2 मीतापाणिपरिग्रहे है श्रीरामदेवतायै नमः हृदि 39 बीजाय नमः गुह्ये 4 स्वाहा शक्तये नमः पादयोः 5 विनियोगाय नमः सीगे॥इति ऋष्यादिन्यासः॥ VIॐ क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 ॐ क्लीं तर्जनीभ्यां नमः 2 ॐ की मध्यमान्यां नमः 3 ॐ की अनामिकाभ्यां नमः 4 ॐ क्लीं कनिष्ठिकाश्यां नमः 5 ॐ की करतलकरपृष्ठास्यां नमः 6 इति करन्यासः // एवं हृदयादिषडंगन्यासं कुर्यात // ॐ हुं नमः शिरसि 1 ॐ जां नमः ललाटे 2 ॐ ने नमः मध्ये 3 ॐ की नमः तालुनि 4 ॐ वं नमः कंठे ५ॐ लं नमः हृदि 6 ॐ भां नमः बाह्वोः 7 ॐ यं नमः नाभी 8 ॐ स्वां नगः जान्योः 9 ॐ हां नमः पादयोः 10 इति मंत्रवर्णन्यासः // एवं नालिनि कला Kध्यायेत् / "अयोध्यानगरे रम्ये रत्नसौन्दर्यमंडपे / मंदारपुष्पैरवद्धवितानतोरणांकिते // 1 // सिंहासनसमारूढं पुप्पकोपरि राघवम् // रक्षोभिर्हरिभिर्देवैर्दिव्ययानगतैःशुभैः // 2 // संस्तूयमानं मुनिभिः सर्वतः परिसेवितम् / सीतालंकृतवामांग लक्ष्मणेनोपशोभितम् // 3 // श्याम प्रसन्नवदनं सर्वाभरणभूषितम् / एवं ध्यात्वा मंत्र जपेत् / अस्य पुरश्चरणं दशलक्षजपः / अन्यत्सर्व पूर्ववत् // इति दशाक्षरराम / मंत्रप्रयोगः // राममंत्रषट्स्वरूपम् // वह्निनारायणाढ्यो यो जठरः केवलस्तथा // यक्षरो मंत्रराजोयं सर्वाभीष्टफलप्रदः // 1 // श्री मायामन्मथैकैकबीजाद्यंतगतो मनुः // चतुर्वर्णः स एव स्यात् पड्डों वांछित प्रदः // 2 // स्वाहांतो हुंफडंतो वा नमोऽन्तो वा भवेन्मनुः॥ For Private And Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir मं०म० // 158 // तारो मायारमानगवाकवबीजैस्तु पडिधः // 3 // त्र्यक्षरो मंत्रराजः स्यात्सर्वाभीष्टफलप्रदः // यक्षरश्चन्द्रादांतो मंत्रोयं चतुरक्षरःपू० ख०१ // 4 // रामाय हृन्मनुः प्रोक्तो मंत्रः पंचाक्षरोड परः // पंचाशन्मातृकावर्णप्रत्येकपूर्वको मनुः // 5 // लक्ष्मीबाग्मन्मथादिश्च तारा वि० सं० दि स्यादनेकधा / / वह्निस्थं शयनं विष्णोरु चन्द्रविभूषितम् // 6 // एकाक्षरो मनुः प्रोक्तो मंत्रराजः मुरद्रुमः॥ ब्रह्मा मुनिः स्यागायत्री थे। छंदो रामस्तु देवता // 7 // एकाक्षरेतु द्वादशलक्षजपः // अन्येषां षड्लक्षजपः // इति राममंत्रप्रयोगः // अथ रामनामलेखनविधिः (श्रीमदानंदरामायणे मनोहरकांडे) शृणुष्व विष्णुदास त्वं यत्नेहं प्रवदामि च॥तुष्टयर्थं रामचन्द्रस्य नित्यं पत्रे तु मानवैः॥लेखनीयं रामनाम शतानि नव प्रत्यहम् // अथवाष्टोत्तरशतं पूजनीयं सविस्तरम् // 2 // एवं कोटिमितं लेख्यं लक्षं वास्तु ततः परम् // हवनं हि दशांशेन / कर्तव्यं विधिपूर्वकम्॥३॥इदं विष्णुरिति ऋचा तिलाज्यैः पायसेन वा॥नवान्नेनाऽथ वा कार्य राघवं परिपूज्य च // 4 // युधिष्ठिरस्तु तच्छ्रुत्वा करिष्यति यथाविधि॥मासत्रयेण तस्यैव राजप्राप्तिर्भविष्यति॥५॥अंते च परमं स्थानं गमिष्यति मनोबलम्॥ इति रामनामलेखन विधिः // अथ कृष्णमंत्रप्रयोगः॥मंत्रो यथा (शारदातिलके) "क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा” इत्यष्टादशाक्षरो मंत्रः॥ अस्य विधानम्॥अस्य मंत्रस्य नारद ऋषिः। गायत्री छंदः। श्रीकृष्णो देवता / क्लीं बीजम् / स्वाहा शक्तिः / चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धयर्थे / जपे विनियोगः ॐ नारदऋषये नमः शिरमि॥१॥ॐ गायत्री छंदसे नमः मुखे॥२॥ श्रीकृष्णदेवतायै नमः हृदि॥३॥क्लीं बीजाय नमः 5 गुह्ये // 4 // स्वाहाशक्तये नमः पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ की कृष्णाय अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 |गोविंदायतर्जनीयां नमः२ गोपीजन मध्यमाभ्यां नमः३ वल्लनाय अनामिकाभ्यां नमः४ स्वाहाकनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 इति करन्यासः H // 158 // For Private And Personal use only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रिष्णाय हृदयाय नमः१ गोविंदायशिरसे स्वाहा 2 गोपीजन शिखायै वषट् 3 वल्लनाय कवचाय हुँ 4 स्वाहा अस्वायफट् इति हृदया| दिपंचांगन्यासः / एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् / अथ ध्यानम् / स्मरेद्वक्षवने रम्ये मोहयंतमनारतम् / गोविंदं पुंडरीकाक्षं गोपकन्याःसहस्र शः॥१॥आत्मनो वदनांभोजप्रेषिताक्षिमधुव्रताः।।पीडिताः कामबाणेन विरमाश्लेपणोत्सुकाः॥२॥ मुक्ताहारलसत्पीनतुंगस्तनभरानताः॥ सस्तवम्मिल्लवसना मदस्खलितभाषणाः // 3 // दंतपंक्तिप्रभोद्भासिस्पंदमानाधरांचिताः॥ विलोभयंती विविधविश्वमैर्भावगर्भितैः॥ 4 // फुल्लेन्दीवरकांतमिन्दुवदनं बावतंसं प्रियं श्रीवत्सांकमुदारकौस्तुभधरं पीतांबरं सुंदरम् // गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनुं गोगोपसंघावृतं गोविंद कलवणुवादनपरं दिव्यांगभूषं भजे // 5 // इति ध्यायेत् / ततः पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले ॐ में मंडकादिपरतत्वांतपीठ देवताभ्यो नमः / इति पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण / ॐ विमलायै नमः // 1 // ॐ उत्कर्षि पाण्यै नमः // 2 // ॐ ज्ञानायै नमः // 3 // ॐ क्रियायै नमः // 4 // ॐ योगायै नमः // 5 // ॐ प्रहयै नमः // 6 // ॐ सत्यायै नमः॥७॥ ॐ ईशानायै नमः // 8 // मध्ये-ॐ अनुग्रहाय नम : // 9 // इति पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्र निधाय घृतेनास्यज्यतदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य / ॐ नमो भगवते श्रीकृष्णाय सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोगप्रपीठात्मने नमः / इति मंत्रण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य आवाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् / तद्यथा। पुष्पांजलिमादाय / ॐ संविन्मयः परादेवः परामृतरस | प्रिय // अनुज्ञां कृष्ण मे देहि परिवारार्चनाय मे // 1 // इति पठित्वा पूष्पांजलिं च दत्त्वा आवरणपूजामारभेत् // तद्यथा / पंचकोणे For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir / मं०म० अयाझरीकृष्णपूजनयंत्रम्, पू० ख०१ वि० त. तरं०७ // 159 // आग्नेय्यादिक्रमेण // क्ली कृष्णाय हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूज यामि तर्पयामि नमः / इति सर्वत्र // 3 // गोविंदाय शिरसे स्वाहा शिरःश्रीपा० // 2 // गोपीजनशिखायै वौषट् / शिखाश्री० // 3 // वल्लभाय कवचाय हुँ / कवचश्रीपा० // 4 // स्वाहा अस्वाय फट / अस्वश्रीपा० // 5 // इति पंचांगानि पूजयेत् / ततः पुष्पाजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरणार्चनम्॥१॥"इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्त पिताः संतु इति वदेत / इति प्रथमावरणम्॥१॥ततोऽदले पूज्यपूजकयोरें तराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीकमेग / ॐ कालि यै नमः / कालिंदीश्रीपा० // 1 // ॐ नाग्नजिन्यै नमः / नाग्नजिती श्रीपा० // 2 // ॐ मित्रबिंदायै नमः / मित्रविंदाश्रीपा० // 3 // ॐ चारुहासिन्यै नमः। चारुहासिनीश्रीपा०॥४॥ॐ रोहिण्यै नमः। रोहिणी श्रीपा० // 5 // ॐ जांबवत्यै नमः। जांबवतीश्रीपा०॥६॥ॐ रुक्मिण्यै ॐकृति प्णायगी. // 15 // For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नमः / रुक्मिणीश्रीपा० 7 ॐ सत्यभामायै नमः / सत्यभामाश्रीपा० 8 इत्यष्टौ पट्टरालीः पूजयित्वा पांजलिं च दद्यात / इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽदलापु प्राचीक्रमेण ॐ ऐरावताय नमः // 3 // ॐ पुंडरीकाय नमः // 2 // ॐ वामनाय नमः // 3 // ॐ कुमुदाय नः // 4 // ॐ अंजनाय नमः // 5 // ॐ पुष्पदन्ताय नमः // 6 // ॐ भावीमाय नमः // 7 // ॐ मुप्रतीकाय नमः // 8 // इत्यष्टी गजान पूजयित्वा पुष्पां नवविधकृष्णमंत्रस्वरूपचक्रम। जलिं च दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // | की कृष्णाय स्वाहा / / इति रडवरो मंत्रः। ततो भुपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदि / गोपीजनबल्लभाय स्वाहा / दिशाक्षरी मंत्रः। मालान बजायायुधानि च संपूज्य पुष्पांजलि | हाकेशाय नमः / इस्पाक्षरी मंत्रः। श्री हाँक्री कृष्णाय स्वाहा। च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धपादि इत्याक्षरी मंत्रः। ओ हो की कृष्णाय गोविंदाय स्वाहा। इति द्वादशाक्षरो मंत्रः। नमस्कारांत संपूज्य जां कुर्यात् // अस्य नमो भगवते रुक्मिणीवल्लभाय स्वाहा। अति घोडशाक्षरो मंत्रः। पुरश्चरणमयुतद्वयात्मको जपः // तनदशांशेन की कृष्णाय हीं गोविंदाय आ गोपीजनवल्लभाय स्वाहा सौं | इति द्वाविंशत्यक्षरो मंत्रः। होम तर्पणमार्जनं ब्राह्मणनोजनं च कुर्यात् / | नमा भगवते नंदपुत्राय बाळादिव पुष श्यामलाय गोपीजन बलभाय स्वाहा। इति त्रयविंशदलरो मंत्रः / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / एवं सिद्ध मंत्र मंत्री की है। श्री गोपीजनवल्लभाय स्वाहा। इति चतुर्दशाक्षरो मंत्रः। . प्रयोगान् साधयेत् / तथा चामंत्रमेनं यथान्याथ पूजनादिकं सर्व पूर्ववत्. For Private And Personal use only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 'म . - मं० म०मयतद्वितयं जपेत् // जुहुयादारुणाम्भोजैर्दशांशं सुसमाहितः॥३॥ इति संपूजयेदेव गोविन्दं जगतां पतिम् // कुर्वीत कल्पनिर्दिष्टान्प्रयोगापू ०ख० 1 निजवांछितान् // 2 // लक्ष्मी प्रमूनैर्जुयाच्छ्यिमिच्छन्ननिंदिताम् / / साज्येनान्नेन जुहु यादाज्यान्नस्य समृद्धये // 3 // अरुणः कम वि.. मविप्राजातीभिः पृथिवीपतीन् / प्रसूनैरसितैश्याञ्छद्रान्नीलोत्पलैनवैः॥४॥वशयेल्लवणैः सर्वान पंकजैर्वनिताजनम् // गोशालासुकतो होमः पायसेन ससपिणी // 5 // गवां शांतिकरोत्याशु गोविंदो गोकुलप्रियः // शिशुवेषधरं देवं किंकिणीदामशोभितम् || // 6 // स्मृत्वा प्रतर्पयेन्मंत्री दुग्धबुद्ध्या शुभैर्जुलैः // धनधान्यांशुकादीनि प्रीतस्तस्मै ददाति सः // 7 // इति कृष्णमन्त्रप्रयोगः // // अथ लक्ष्मीनारायणमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा (शारदातिलके) ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मीवासुदेवाय नमः / इति चतुर्दशाक्षरो मंत्र अस्य विधानम् / अस्य मंत्रस्य प्रजापतिऋषिः / गायत्री छन्दः / वासुदेवो देवता / धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः / ॐ प्रजा पतिऋषये नमः / शिरसि // 1 // गायत्रीछन्दसे नमः मुखे // 2 // वासुदेवदेवतायै नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्ग // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ह्रीं ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ श्री श्री तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ लक्ष्मी मध्यमाभ्यां नमः // 3 ॥ॐ वासुदेवाय अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ नमः कनिष्ठिकान्यां नमः // 5 // इति करन्यासः॥ ॐ ह्रीं ह्रीं हृदयाय नमः॥1॥ ॐ श्रीं श्रीं शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ लक्ष्मी शिखायै वषट् // 3 // ॐ वासुदेवाय कवचायतुं // 160 / // 4 // ॐ नमः अस्त्राय फट् // 5 // इति हृदयादिपंचांगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ॐ विद्युच्चंद्र निभं वपुः कमलजा वैकुंठयोरेकतां प्राप्नं स्नेहवशेन रत्नविलसद्भूषाभरालंकृतम् // विद्यापंकजदर्पणान्मणिमयं कुभं मरोजं गदां शंख चक्र For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ममनि बिनदमितां दिश्याच्छ्यिं वः सदा // 1 // इति ध्यायेत् // ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमण्ले ॐ मं मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठ! देवताभ्यो नमः / इति पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण / ॐ बिमलायै नमः // 1 // ॐ उत्क। पिण्यै नमः // 2 // ॐ ज्ञानायै नमः // 3 // ॐ क्रियायै नमः // 4 // ॐ योगायै नमः // 5 // ॐ प्रयै नमः // 6 // ॐ सत्यायै नमः॥ 7 // ॐ ईशानायै नमः // 8 // मध्ये ॐ अनुग्रहाय नमः // 9 // इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्र मर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोप्य ॐ नमो भगवते लक्ष्मीनारायणाय ला सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः // इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञयाऽऽवरणपूजां च कुर्यात् // तद्यथा // पुष्पांजलिमादाय / ॐ संविन्मयः | परो देवः परामृतरसप्रियः // अनुज्ञां देहि मे देव परिवारार्चनाय मे॥१॥ इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा आवरपूजामारभेत् // पंचको कणकेसरेषु आग्नेयादिक्रमेण // ॐ ह्रीं ह्रीं हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ श्रीं श्री शिरसे स्वाहाँ / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ लक्ष्मी शिखायै वषटू / शिखाश्रीपा० // 3 // ॐ वासुदेवाय कवचाय हुँ / कवचश्रीपा० // 4 // ॐ नमः अस्त्राय फट् / अस्वश्रीपा०॥ 5 // इति पंचांगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरणार्चनम् // 3 // इति पाठेला पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजि तास्तर्पिताः संतु इति वदेत / इति प्रथमावरणम् ॥१॥ततोष्टदले पूज्यपूजकयोर्मध्ये प्राची तदनुसारेण अन्या दिशाः प्रकल्प्य प्राच्यादिचतु For Private And Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir लक्ष्मीनारायणपूजनयन्त्रम्. पू० ख०१ वि.. तरं०७ लादिक्षु ॐ वासुदेवाय नमः ।वासुदेवश्रीपा० १॥ॐ संकर्षणाय नमः / संकर्षण // 16 // श्रीपा० // 2 // ॐ प्रद्युम्नाय नमः / प्रद्यन्नश्रीपा० // 3 // ॐ अनि रुद्धाय नमः / अनिरुद्धश्रीपा० // 4 // आग्नेयादिचतुष्कोणेषु ॐ शांत्यै नमः / शांतिश्रीपा० // 5 // ॐ श्रियै नमः / श्रीश्रीपा० // 6 // ॐ सरस्वत्यै नमः / सरस्वतीश्रीपा० // 7 // ॐ रत्यै नमः रतिश्रीपा०॥८॥ इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततो द्वादशदले प्राच्यादिक्रमेण ॐ केशवाय नमः / केशवश्रीपा० // 1 // ॐ नारा || यणाय नमः / नारायणश्रीपा० ॥२॥ॐ माधवाय नमः / माधवश्रीपा० IN||॥३॥ॐ गोविंदाय नमः। गोविन्दश्रीपा०॥४॥ॐ विष्णवे नमः। विष्णुश्रीपा० // 5 // ॐ मधुसूदनाय नमः / मधुसूदनश्रीपा० // 6 // ॐ त्रिविक्रमाय नमः त्रिविक्रमश्रीपा०॥ 7 // ॐ वामनाय नमः / वामनश्रीपा० // 8 // ॐ श्रीधराय नमः / श्रीधरश्रीपा० // 9 // ॐ हृषीकेशाय नमः / हृषीके शश्रीपा० // 10 // ॐ पद्मनाभाय नमः / पद्मनाभश्रीपा० // 11 // ॐ श्री रहन्मा 4 For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir दामोदराय नमः / दामोदरश्रीपा० // 12 // इति द्वादश मूर्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो भपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्दादिदशदिक्पालान वज्राद्यायुधानि च पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कत्वा धृपादि नमस्का रांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरणं चतुर्दशलक्षजपः / तत्सहस्रण होमः तत्तदशांशेन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कर्यात् / एवं| कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् / तथा च / वर्णलक्षं जपेदेनं तत्सहस्र सरोरुहैः॥होमं कुर्याद्विकसितैर्मधुर त्रयसंयुतैः // 1 // पायसेन कतो होमो लक्ष्मीवश्यप्रदायकः / / मधुराक्तैस्तिलैर्तुत्वा सर्वकार्याणि साधयेत् // 2 // इति चतुर्दशाक्षर लक्ष्मीनारायणमंत्रप्रयोगः // अथ दधिवामनाख्यचमत्कारिमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा (शारदातिलके) “ॐ नमो विष्णवे सुरपतये महा बलाय स्वाहा" इत्यष्टादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य मंत्रस्य इन्दुक्रषिविराट्छंदो दधिवामनो देवता सर्वेष्टसिद्धये जपे विनि योगः॥ ॐ इन्दु ऋषये नमः शिरसि // 1 // विराट्छंदसे नमः मुखे // 2 // दधिवामनदेवतायै नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वांगे॥४॥ इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ अंगुष्ठात्यां नमः // 1 // नमो तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ विष्णवे मध्यमाभ्यां नमः // 3 // सुरपतये / अनामिकाभ्यां नमः // 4 // महाबलाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ हृदयाय नमः॥ 1 // नमः शिरसे स्वाहा // 2 // विष्णवे शिखायै वषट् // 3 // सुरपतये कवचाय हुँ // 4 // महाबलाय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // स्वाहा अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ नमः मूर्द्धि // 3 // ॐ नं नमः भाले॥२॥ ॐ मो नमः नेत्रयोः // 3 // ॐ विं नमः कर्णयोः // 4 // ॐ ष्णं नमः नासिकयोः॥ 5 // ॐ 3 नमः ओष्ठयोः // 6 // ॐ For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir प्र 162 // सं नमः तालके // 7 // ॐ रं नमः कंठे॥८॥ ॐ पं नमः बाहुद्दये॥९॥ॐ तं नमः पृष्ठे॥१०॥ॐ ये नमः हृदये // 11 // ॐ मं नमःबापू० खं. 1 उदरे // 12 // ॐ हाँ नमः नाभौ // 13 // ॐ बं नमः गुह्ये / / 34 // ॐ लाँ नमः ऊरुद्ये // 15 // ॐ यं नमः जानुद्वये वित // 16 // ॐ स्वां नमः जंघयोः // 17 // ॐ हाँ नमः पादयोः // 18 // इति मंत्रवर्णन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ तरं०७ ध्यानम्॥ॐ मुक्तागौरं नवमणिलसद्भूषणं चंद्रसंस्थं भुंगाकारैरलकनिकरैः शोभिवक्रारबिंदम्॥ हस्ताब्जाश्यां कनककलशं शुद्धतोयाभिपूर्णत दध्यन्नाढ्यं कनकचषकं धारयंतं भजामः // 1 // इति ध्यायेत् // ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमण्डले ॐ में मंडूकादिचन्द्रमण्डलांत पीठदेवताभ्यो नमः / इति पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत्। तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण / ॐ विमलायै नमः॥१॥ ॐ उत्कपिण्यै | नमः // 2 // ॐ ज्ञानायै नमः // 3 // ॐ क्रियायै नमः॥४॥ ॐ योगायै नमः॥५॥ ॐ प्रहयै नमः॥६॥ॐ सत्यायै नमः॥७॥ ॐ ईशानायै नमः // 8 // मध्ये ॐ अनुग्रहायै नमः // 9 // इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मति वा ताम्रपात्र निधाय ! घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य " ॐ नमो भगवते दधिवामनाय सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वा त्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः // " इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कत्या पुनर्व्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य आवाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा / पुष्पांजलिमादाय ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरस प्रिय // अनुज्ञां देहि मे देव पारीवारार्चनाय मे // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा आवरणपूजामारभेत् // षट्कोणकेसरेषु आने प्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च ॐ हृदयाय नमः हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति सर्वत्र // 1 // नमः शिरसे स्वाहाँ / // 162 For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir 2 नमो शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ विष्णवे शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० // 3 // दविवामनपूजनयन्त्रमा ॐ सुरपतये कवचाय हूं / कवचश्रीपा० // 4 // ॐ महाबलाय नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रश्रीपा० // 5 // स्वाहा अस्वाय फट् / अस्वश्रीपा० // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल || जत्या समर्पये तुत्यं प्रथमावरणार्चनम् // 3 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तार्पिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमा वरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या / विगवे. दिशः प्रकल्प्य प्राच्यादिचतुर्दिक्षु ॐ वासुदेवाय नमः / वासुदेवश्रीपा० // 1 // ॐ संकर्षणाय नमः / संकर्षणश्रीपा० // 2 // ॐ प्रद्युम्नाय नमः / प्रद्यम्नश्रीपा० // 3 // ॐ अनिरुद्धाय नमः / अनिरुद्धश्रीपा० // 4 // अग्न्यादिचतुष्कोणेषु ॐ शांत्यै नमः / शांतिश्रीपा० // 5 // ॐ श्रियै नमः। श्रीश्रीपा०॥६॥ ॐ सरस्वत्यै नमः / सरस्वतीश्रीपा० // 7 // ॐ रत्यै नमः। रतिश्रीपा०॥ 8 // इत्यष्टी पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोष्टदलायेषु प्राच्यादिषु चतु For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir दिक्ष ॐ ध्वजाय नमः // 1 // ॐ वैनतेयाय नमः // 2 // ॐ कौस्तुनाय नमः // 3 // ॐ वनमालिकायै नमः॥४॥ आग्ने पू० ख०१ यादिषु चतुष्कोणेषु ॐ शंखाय नमः // 5 // ॐ चक्राय नमः // 6 // ॐ गदायै नमः // 7 // ॐ शाङ्गाय नमः // 8 // वि• तं. इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो द्वादशदले प्राचीक्रमेण ॐ केशवाय नमः / केशवश्रीपा- | तरं०७ // 1 // ॐ नारायणाय नमः / नारायणश्रीपा० // 2 // ॐ माधवाय नमः / माधवश्रीपा० // 3 // ॐ गोविन्दाय नमः / गोविंद श्रीपा० // 4 // ॐ विष्णवे नमः / विष्णुश्रीपा० // 5 // ॐ मधुसूदनाय नमः / मधुसूदनश्रीपा०॥६॥ ॐ त्रिविक्रमाय नमः। त्रिविक्रमश्रीपा०॥७॥ ॐ वामनाय नमः / वामनश्रीपा०॥८॥ॐ श्रीधराय नमः / श्रीधरश्रीपा० // 9 // ॐ हृषीकेशाय नमः। हृषीकेशश्रीपा० // 10 // ॐ पद्मनाभाय नमः / पद्मनाभश्रीपा० // 3 // ॐ दामोदराय नमः / दामोदरश्रीपा० // 12 // इति / द्वादशमूर्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति चतुर्थावरणम् // 4 // ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान् बजायायुधानि च पूज यित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं त्रिलक्षजपः / तत्तद्दशां शन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् // एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्रे मंत्री प्रयोगान् साधयेत्॥ तथा च / गुणलक्षं जपेन्मत्रं तद्दशांशं घृतप्लुतैः // पायसान्नः प्रजुहुयाद्दध्यन्नैर्वा यथाविधि // 1 // विधानमेतद्देवस्य कीर्तित सुरपूजितम् // पायसाज्येन / जुहुयात्सहस्रं श्रियमानुयात् ॥२॥धान्यहोमेन धान्याप्तिः शतपुष्पासमुद्भवैः // बीजैः सहस्रसंख्याते:मो भयविनाशनः॥३॥ दथ्योदनेन / शुद्धन हुत्वा मुच्येत दुर्गतेः // स्मृत्वा त्रैविक्रम रूप जपेन्मंत्रमनन्यधीः // 4 // मुक्तो बन्धाद्भवेत्सद्यो नात्र कार्या विचारणा // परे संपाय For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देवेशं भित्तौ वा पूजयेत्सुधीः // सुगंधिकुमुमैनित्यं महतीं श्रियमश्नुते // 5 // इत्यष्टादशाक्षरदधिवामनाख्यमंत्रप्रयोगः // अथ हयग्रीवविष्णुमंत्रप्रयोगः // (तंत्रसारे ) मंत्रो यथा // "हंसः सोहं विश्वातीर्णस्वरूपाय चिन्मयानंदरूपिणे // तुत्यं नमो हयग्रीव विद्याराजाय विष्णवे स्वाहा हंसः सोहम्॥” इति द्विचत्वारिंशदक्षरो हयग्रीवमंत्रः // अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः / अनुष्टुप् छंदः / हय | ग्रीवो देवता सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ब्रह्मणे ऋयये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // हयग्रीवाय देवतायै नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 4 // इति ऋष्यादिन्यातः॥ हंसः सोहम् अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // विश्वा| तीर्णस्वरूपाय तर्जनीभ्यां नमः // 2 // चिन्मयानंदरूपिणे मध्यमाभ्यां नमः // 3 // तुल्यं नमो हयग्रीव अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ विद्याराजाय विष्णवे कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // स्वाहा हंसः सोहं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ हंसः सोही हृदयाय नमः॥ 1 // विश्वातीर्णश्वरूपाय शिरसे स्वाहा // 2 // चिन्मयानंदरूपिणे शिखायै वषट् // 3 // तुल्यं नमो हयग्री व कवचाय हुं // 4 // विद्याराजाय विष्णवे नेत्रत्रयाय वौषट्॥५॥ स्वाहा हंसः सोहम् अस्त्राय फट्॥६॥इति हृदयादिषडंगन्यासः॥ एवं न्यासविधि कत्वा ध्यायेत् // शरच्छशांकप्रभमश्ववकं मुक्तामयैराभरणैरुपेतम् // रथांगशंखांचित्तबाहुयुग्मं जानुद्दयन्यस्तकर भजामः // 1 // इति ध्यायेत् ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवतात्यो नमः। इति पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् / तद्यथा / ॐ विमलायै नमः // 1 // ॐ उत्कर्षिण्यै नमः // 2 // ॐ ज्ञानायै नमः॥ 3 // ॐ क्रियायै नमः॥४॥ ॐ योगायै नमः॥ 5 // ॐ प्रयै नमः॥६॥ॐ सत्यायै नमः // 7 // ॐ ईशानायै नमः॥८॥ For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हयग्रीवपूजनयन्त्रम् पू.खं०१ वि० सं० तरं०७ मं.मनामध्ये ॐ अनुग्रहाय नमः // // इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय वृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य ॐ नमो भगवते हयग्रीवाय सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः॥ इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा ( हूं ) इति बीजमंत्रण मूर्ति प्रकल्प्य पायादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजा कुर्यात्॥तद्यथा पुष्पांजलिमादाय ॐ सविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः॥ Wiअनुज्ञां देहि मे देव परिवारार्चनाय मे // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा आरवणपूजामारभेत्॥षट्कोणकेसरेषु आनेयादिक्रमेण मध्ये दिक्षु च नषडंगानि पुजयेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयो रन्तराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य पूर्वे ॐ ऋग्वेदाय नमः // 1 // दक्षिणे ॐ यजुर्वेदाय नमः // 2 // पाश्चमे ॐ सामवेदाय For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra mm.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नमः॥३॥उत्तरे ॐ अथर्ववेदाय नमः॥४॥ आग्रकोणे ॐ सर्वस्मृत्यै नमः॥पानि+ते ॐ सर्वन्यायशास्वत्यो नमः॥६॥ वायव्ये ॐ सर्वधर्मशाखेन्यो नमः // 7 // ऐशान्ये ॐ सर्वपुराणशास्वत्यो नमः // 8 // इति पूजयेत् / ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य ॐ है अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल / / अत्त्या समर्पये तुत्यं द्वितीयावरणार्चनम् / / 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पृजिता स्तपिताः संतु इति वदेत इति द्वितीयावरणम् // 2 // अन्यावरणं सर्व पूर्ववत् संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं द्वाचत्वारिंश लझं जपः // तथा च // वर्णलक्षं जपेन्मत्रं कुंदपुष्पैर्मधुप्लुतैः // दशांशं वैष्णवे वह्नौ जुहुयान्मंत्रसिद्धये // 1 // एवं यो भजते देवं / साक्षाद्वागीश्वरो भवेत् // बिल्वैः फलैः कतो होमः श्रीकरः परिगीयते // 2 // कुन्दपुष्पाणि जयादिच्छन्याश्रियमव्ययाम् // मनु नानेन संजनं घतं ब्राह्मीरसे शृतम् // 3 // कवितामाहरेत्पुसामनर्गलविज़ुभिताम् // वचामनेन संजनां भक्षयेत्प्रातरन्यहम् // 4 // सर्ववेदागमादीनां व्याख्याता जायते चिरात् // मनोरस्य ममो नास्ति ज्ञानेश्वर्यप्रदोऽपरः॥५॥ इति चत्वारिंशदक्षर हयग्रीवमंत्रप्रयोगः॥ अथ हयग्रीवस्यैकादशाक्षरमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा // "ॐ हयग्रीवाय नमः स्वाहा ॐ" इत्येकादशाक्षरो हयग्रीवमंत्रः // अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप् छंदः। हयग्रीवरुपी विष्णुदेवता / सर्वेटसिद्धये विनियोगः // ऋष्यादिन्यास रुत्वा कराङ्गन्यासं कुर्यात् / / हसां अंगुष्ठायां नमः॥ 3 // हसीं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // हसू मध्यमाभ्यां नमः // 3 // हसें अनामिकाभ्यां नमः // 4 // हसौं का निष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // हसः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः एवमेव हृदयादिपडंगन्यासं कुर्यात् // अथ ध्यानम् // धवलनलिननिष्ठं शारगौरं कराय॒जपवलयसरोजे पुस्तकाभीष्टदानैः // दधतममलवस्वाकल्पदानाभिरामं तुरगवदनविष्णु For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir म० // 165 // नौमि विद्यारविष्णुम् // 1 // एवं ध्यात्वा विष्णुपीठे संपूज्य आवरणपूजां कुर्य्यात् // प्रथमावरणम् // प्रज्ञाय 1 मेधाहय 2 स्मृ 0 ख०१ तिहय 3 विद्याहय 4 लक्ष्मीय 5 वागीशीहय 6 विद्याविशालय 7 नादविमर्दनहयै 8 रित्यष्टभिः / / द्वितीयम्।।लक्ष्मीसरस्वतीरति वि० 0 प्रीतिकीर्तिकांतितुष्टिपुष्टिभिः तृतीयम् // कुमुदादिभिर्गजैः चतुर्थम् // इन्द्रादिभिः पंचमावरणं अन्यत सर्व पूर्ववत // अस्य पुरश्चरणं तरं० 7 लक्षचतुष्टयं जपः॥ तथा च-वेदलक्षं जपेन्मंत्री दशांशं जुहुयात्नतः // साज्येन दशांशहोमः // इति हयग्रीवस्यैकादशाक्षरमंत्रप्रयोगः // // अथ वाराहरूपविष्णुमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा ( शारदातिलके ) "ॐ नमो भगवते वाराहरूपाय भूर्भुवः स्वः स्यात्पतेभूपतित्वं देह्यते ददापय स्वाहा” इति त्रयस्त्रिंशदारोबाराहमंत्रः।। अस्य मंत्रस्य भार्गव ऋषिः / अनुष्टुप् छंदः / आदिवाराहो देवता / मर्वेष्टसिद्धये जपे / विनियोगः // भार्गवऋषये नमः शिरमि // 3 // अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे // 2 // आदिवाराहदेवतायै नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः मांगे // 4 // इति कप्यादिन्यामः॥ॐ एकदंष्ट्राय अंगुष्ठाभ्यां नमः // 3 // ॐ व्योमोल्काय तर्जनीन्यां नमः॥२॥ॐ तेजोधिपतये मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ विश्वरूपाय अनामिकात्यां नमः // 4 // ॐ महादंष्ट्राय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 / / इति करन्यासः // ॐ एकदंष्ट्राय हृदयाय नमः / / 1 / / ॐ व्योमोल्काय शिरमे स्वाहा // 2 // ॐ तेजोधिपतये शिखायै वषट् // 3 // ॐ विश्वरूपाय कवचाय हुँ // 4 // ॐ महादंष्ट्राय अम्बाय फट / / इति हृदयादिपंचांगन्यासः / एवं न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // आपादं जानुदेशाद्वरकनकनिभं नानिदेशादधस्तान्मुक्ताभं कंठदेशानरुणरविनित मस्तकान्नीलभासम् // ईडे हस्तैर्दधानं रथचरणदरौ खनखेटौ गदाख्यां शक्ति दानाभये च क्षितिधरणलमदंष्ट्रमाद्यं बारहम्॥१॥एवं ध्यात्वा वैष्णवे पीठे यंत्रं संस्थाप्य मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य ) For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य आवरणपूजां कुर्यात् / ततः षट्कोणकेसरेषु अग्निकोणे ॐ एकदंष्ट्राय हृदयाय नमः // 1 // नैर्ऋते ॐ व्योमोल्काय शिरसे स्वाहा // 2 // वायव्ये ॐ तेजोधिपतये शिखायै वषट् // 3 // ऐशान्ये ॐ विश्वरूपाय कवचाय हूं // 4 // देवपश्चिमे ॐ महादंष्ट्रायास्त्राय फट् // 5 // इति पंचांगानि पूजयेत // इति प्रथमावरणम् // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोर्मध्ये प्राची प्रकल्प्य पूर्वादि 5 कमेण ॐ चक्राय नमः // 1 // ॐ शंखाय नमः // 2 // ॐ खगाय नमः // 3 // ॐ खेटकाय नमः॥४॥ ॐ गदायै नमः॥५॥ ॐ शक्तये नमः // 6 // ॐ बराय नमः // 7 // ॐ अभयाय नमः // 8 // इति पूजयेत् // इति द्वितीयावरणम् // ततो भपरे इन्द्रादि| दशदिक्पालान तद्बाह्ये वाद्यस्वाणि च पूजयेत // इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कर्यात // अस्य परश्चरणं लक्षं जपः / ततद्दशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् // एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साध येत् / तथा च " लक्षमेकं जपेन्मंत्रं मधुराक्तैः सरोरुहैः / / जुहुयात्नदशांशेन पीठे विष्णोः प्रपूजयेत् // 1 // ध्यानाद्देवो धनं दद्याज पाद्दद्याद्वसंधराम् // प्रयच्छेज्जपपूजाद्यैर्धनधान्यमहाश्रियः // 2 // रखौ सिंहगतेऽटम्यां शुक्लपक्षे सितां शिलाम् // पंचगव्येषु निःक्षिप्य स्पृष्ट्वा तामयुतं जपेत् // 3 // उत्तराभिमुखो भूत्वा तां शिलां निखनेझुवि // शत्रुचौरमहाभूतैः कृतां बाधां प्रणाशयेत् // 4 // भानूदये| भौमवारे साध्यक्षेत्रात्समाहरेत् // मृनिकां संजपन्मत्रं तां पुनर्विभजेत्रिधा // 5 // चुल्ल्यामेकांशमालिप्य पाकपात्रे तथापरम् // ॐ गोदुग्धे परमालोड्य शोधितांस्तंडुलान क्षिपेत् // 6 // संस्कृतेनौ पचेत्सम्यक् चरुं मंत्री जपन्मनुम् // अवतार्य चळं पश्चादग्नी देवं , यथाविधि // 7 // धूपदीपादिकरिष्टा पुनराज्यप्लुतं चरुम् // जयादेधिते वह्नौ याबदष्टोत्तरं शतम् // 8 // एवं सप्तारवारेषु जुहुया For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir वि० सं० म.म० क्षेत्रसिद्धये // प्रातःकाले भृगोर्वारे मृदं साध्यमहीतलात् // 9 // आदाय हविरापाद्य पूर्ववज्जुहुयात्मुधीः // विरोधो नश्यति क्षेत्रे सह पू० ख०६ चौरायुपद्रवैः // 10 // राजवृक्षसमुत्थाभिः समिद्भिर्मनुनामुना // त्रिसहस्र प्रजुहुयानस्य स्युः सर्वसंपदः // 1 // शालिभिर्जुहुया KIमंत्री नित्यमष्टोत्तरं शतम् // समृद्धैर्धान्यसंघातैः शोभते तस्य मंदिरम् // 12 // तावदाज्येन जुहयान्मंडलात्स्वर्णमानुयात् // लाजैः। कन्यामवामोति मध्यक्तैर्निजवांछितम् // 13 // मधुरत्रयसंयुक्तैर्जुहुयादुत्पलैः शुभैः।। महतीं श्रियमानोति मंडलात्पूर्वसंख्यया // 14 // इति वाराहमंत्रप्रयोगः॥अथ नृसिंहमंत्रप्रयोगः॥ (शारदातिलके) ॥मंत्रो यथा॥"ॐ उग्रवीरं महाविष्णुं ज्वलंतं सर्वतोमुखम् // नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् // 1 // " इति श्लोकरूपमंत्रः॥ अस्य नृसिंहमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः / सुरासुरनमस्कृतनृसिंहो देव ता। सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ ब्रह्मर्षये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे // 2 // श्रीनृसिंहदेवतायै नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ उग्रवीरम् अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // महाविष्णु तर्जनीन्यां नमः // 2 // ज्वलंतं सर्वतोमुखं मध्यमाभ्यां नमः // 3 // नृसिंहभीषणम अनामिकाच्या नमः // 4 // भद्रं मृत्यु मृत्युं कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥ 5 // नमाम्यहं करतलकरपृष्ठात्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ उग्रवीरं हृदयाय नमः॥१॥ महाविष्णुं शिरसे स्वाहा // 2 // ज्वलंतं सर्वतोमुखं शिखायै वषट् // 3 // नृसिंहभीषणं कवचाय हुं // 4 // भद्रं मृत्युमृत्यु नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // नमाम्यहम् अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ उं नमः शिरसि // 1 // ॐ यं नमः ललाटे // 2 ॐ वीं नमः नेत्रयोः॥३॥ ॐ रं नमः मुखे // 4 // ॐ में नमः दक्षिणबाहुमूले // 5 // ॐ हां नमः दक्षिणकूपरे // 6 // ॐ For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir विं नमः दक्षिणमणिबंधे // 7 // ॐ ष्णुं नमः दक्षहस्तांगुलिमूले // 8 // ॐ ज्यं नमः दक्षहस्तांगुल्यो // 9 // ॐ लं नमः वामबा हुमूले // 10 // ॐ तं नमः वामकूपरे / / 11 // ॐ सं नमः वाममणिबंधे // 12 // ॐ नमः वामहस्तांगुलिमले // 13 // ॐ तो नमः वामहस्तांगुल्यये // 14 // ॐ मुं नमः दक्षपादमूले // 35 // ॐ खं नमः दक्षजानुनि // 16 // ॐ नं नमः दक्षगु Vल्फे // 17 // ॐ सिं नमः दक्षपदांगुलिमूले // 18 // ॐ हं नमः दक्षपादांगुल्यये // 19 // ॐ भी नमः वामपादमूले // 20 // ॐ नमः बामजानुनि // 21 // ॐ गं नमः वामगुल्फे // 22 // ॐ नमः वामपादांगुलिमूले // 23 // ॐ द्रं नमः वामपा दांगुल्यये // 24 // ॐ मृ नमः कट्याम् // 25 // ॐ त्युं नमः कुक्षौ // 26 // ॐ म नमः हृदये // 27 // ॐ त्यु नमः गले // 28 // ॐ नं नमः दक्षिणपार्थे // 29 // ॐ मां नमः वामपार्श्व // 30 // ॐ म्यं नमः लिंगे // 31 // ॐ हं नमःy ककुदि // 32 // इति मंत्रवर्णन्यासः // एवं न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // माणिक्यादिसमप्रभं निजरुचा मंत्रस्तरक्षो गणं जानन्यस्तकरांबुजं त्रिनयनं रत्नोल्लसद्भूषणम् // बाहुत्यां धृतशंखचक्रमनिशं दंष्ट्रायवक्रोल्लमज्ज्वालाजिह्वमुदग्रकेशनिचयं बंदे, नृसिंहं विभुम् / / 3 // इति ध्यात्वा सर्वतोभद्रमंडले में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवतात्यो नमः // इति पीठदेवताः संपूज्य पीठशक्तीः पूजयेत् // तत्र क्रमः // पूर्वादिक्रमेण ॐ विमलायै नमः // 3 // ॐ उत्कर्षिण्यै नमः // 2 // ॐ ज्ञानायै नमः // 3 // ॐ क्रियायै नमः // 4 // ॐ योगायै नमः // 5 // ॐ प्रहयै नमः // 6 // ॐ सत्यायै नमः // 7 // ॐ ईशानायै नमः॥ 8 // For Private And Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नृसिह पूजनयन्त्रम् मं०म० मध्ये ॐ अनुग्रहायै नमः॥ 9 // इति नव पीठशक्तीः संपूज्य स्वर्णादिनि // 167 // मित यंत्रमन्युत्तारणपूर्वकं “ॐ नमो भगवते नृसिंहाय दैत्यशत्रुसर्वात्मसंयोग पद्मपीठाय नमः” इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्र तिष्ठां च कृत्वा पुनर्व्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य आवाहनादिपुष्पांतरुपचा MR: संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्य्यात् // तत्र क्रमः // षट्को कणकेसरेषु अभिकोणे ॐ उग्रवीरं हृदयाय नमः // 3 // निर्वते ॐ महाविष्णुं शिरसे स्वाहा // 2 // वायव्ये ॐ उज्वलंत सर्वतोमुखं शिखायै वषट् // 3 // ऐशान्ये ॐ नृसिंह भीषण कवचाय हूं // 4 // पज्यपूजकयो मध्ये / भई मृत्युमृत्यु नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // देवतापश्चिमे। ॐ नमाम्यहं अस्वाय फट् // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोमध्ये प्राची प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण प्राच्यां ॐ गरुडपक्षिराजाय नमः गरुडश्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥ ३॥इति सर्वत्र // दक्षिणे ॐ शंकराय नमः शंकरश्रीपा० // 2 // पश्चिमे ॐ शेषाय नमः शेषश्रीपा० // 3 // ॐउग्रवीरंमहावि // 167 // For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir उत्तरे ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्मश्रीपा०॥ 4 // अग्निकोणे ॐ श्रियै नमः श्रीश्रीपा० // 5 // नैर्ऋते ॐ ह्रियै नमः ह्रीश्रीपा० // 6 // वायव्ये ॐ कृत्यै नमः धृतिश्रीपा० // 7 // ऐशान्ये ॐ पुष्टयै नमः पुष्टिश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयेत् // इति प्रथमावरणम् ॥ततो भपुरे पूर्वादिक्रमेण / / ॐ लं इन्द्राय नमः इन्द्रश्रीपा० // 3 // ॐ रं अग्नये नमः अग्निपा० ॥२॥ॐ मं यमाय नमःयमश्रीपा० | // 3 // ॐ शं निर्वतये नमः नितिश्रीपा० // 4 // ॐ वं वरुणाय नमः वरुणश्रीपा० // 5 // ॐ यं वायवे नमः वायुश्रीपा० || 6 // ॐ कुं कुबेराय नमः कुबेरश्रीपा० // 7 // ॐ हं ईशानाय नमः ईशानश्रीपा० // 8 // इन्द्रेशानयोर्मध्ये ॐ आं ब्रह्मणे नमः ब्रह्मश्रीपा० // 1 // वरुणनिर्ऋत्योर्मध्ये ॐ ह्रीं अनंताय नमः अनंतश्रीपादुकां पृ०॥10॥ इति दश दिक्पालान् पूजयेत् // तद्वारा पूर्वादिक्रमेण // ॐ वं बजाय नमः / / 1 // ॐ शं शक्तये नमः // 2 // ॐ दं दंडाय नमः // 3 // ॐ खं खगाय नमः // ॐ पं पाशाय नमः / / 5 // ॐ अं अंकुशाय नमः // 6 // ॐ गं गदायै नमः // ७॥ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः // 8 // ॐ पं पद्माय नमः॥ 9 // ॐ चं चक्राय नमः // 10 // इत्यवाणि पूजयेत् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनीराजनांत मंपूज्य जपंध कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं द्वात्रिंशल्लक्षजपः / नत्सहस्रहोमः / तत्नदशांशन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् // तथा च / वर्णलक्षं जपेन्मंत्रं तत्सहस्रं बतप्लतैः // पायसान्नैः प्रजुहुयाविधिवत्पूजिते | नले // 1 // एवंकते भवेन्मंत्री सिद्धमंत्रः प्रतापवान / / इत्थं जपादिभिः सिद्ध मनी काम्यानि साधयेत् // 2 // उद्यत्कोटिरविप्रभं नरहरि कोटीरहारोज्ज्वलं दंष्ट्राभीममुखे लसन्नखमुखैर्दीघेरनेकैर्भुजैः // निर्भिन्नासुरनाथमनिशशभत्सूर्य्यात्मनेत्रत्रयं विद्युत्ज जटाकलाप For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shet Kalassagasun yanmandir मं०म० // 16 // वि० सं० H यदं वह्नि वमंतं भजे // 3 // सौभ्ये सौम्यं स्मरेत्कायें क्रूरे क्रूमिमं भजेत् // श्रीपुष्टयै जुहयान्मंत्री बिल्वकाष्टधितनले // 4 // सहस्रं श्रियगामोति पत्रैर्वा बिल्वसंभवैः // प्रसून; फलैस्तद्दद्दाहोमादरोगताम् // 5 // मंत्रजमां बचा श्वेतां भक्षयेत्यातरन्बहम् // वाक् सिद्धिं लभते मंत्री वाचस्पतिरिवापरः॥६॥ व्याघचौरमृगादियो महारण्ये भयाकुललान् ॥रक्षेन्मनुरयं जप्तो भयेष्वन्येषु मंत्रिणः // 7 // अनेन मंत्रितं भस्म विषग्रहमहाभयान // नाशयेदचिरादेवं मंत्रस्यास्य प्रभावतः // 8 // घोराभिचारे सोन्मादे महोत्पाते महाभये // जपेन्मंत्रं स्मरन्देवं दुःखान्मुक्तो भवेन्नरः // 9 सिंहरूपं महाभीमं महादंष्ट्रादिभीषणम् // स्मृत्वात्मानं रिपुं पश्चाद्ध्यायेन्मृगशिशु रिपुम् 0 // गृहीत्वा गलदेशे तं पुनर्दिक्षु क्षिपेद्रुतम् // पुत्रमित्रकलत्राद्यैरुच्चाटो जायते रिपोः // 11 // पूर्वमृत्युपदे साध्यनाम कृत्वा स्वयं हरिः // निशितैर्नखदंष्ट्रायः खंड्यमानं रिपुं स्मरन् / / 12 // नित्यमष्टोत्तरशतं जपेन्मंत्रमतंद्रितः // जायते मंडलादर्वाक् शत्रु वैवस्वतप्रियः॥१३॥ यंत्रं करोति विधिवच्छत्रुसेनानिवारणे॥ विभीतकाष्टैचलिते पावके रिपुमर्दनम्॥१४॥विचिंत्य देवं नृहरिं संपूज्य || कुसुमादिभिः // समूलचूलजुहुयाच्छरैर्दशशतं पृथक् / / 15 // रिपुं खादन्निव जपेन्निभिंदन्निव तान्क्षिपेत // हुत्वा समदिनं सेना मिष्टां मंत्री महीपतेः // 16 // प्रस्थापयेच्छुभे लग्ने परराष्ट्रजयेच्छया // तस्याः पुरास्ताबृहरि निघ्नंतं रिपुमण्डलम् // 17 // ध्यात्वा प्रयोगं कुर्वीत यावदायाति सा पुनः // विजित्य निखिलाशत्रून् सह वीर श्रिया सुखम् // 18 // आगत्य विजयी राजा ग्रामक्षेत्रधनादिभिः॥ प्रीणयेन्मंत्रिणं सम्यग् विभवैः प्रीतमानसः // 19 // मंत्री यदि न संतृष्येदनर्थः स्यान्महीपतेः // राजा विजयमामोति युद्धेषु विधिनामुना // इति नृसिंहस्य द्वात्रिंशदक्षरात्मकमंत्रप्रयोगः // 1 // श्रीः // इति विष्णुपटलः समाप्तः // For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *अथ विष्णुपद्धतिप्रारंभः॥ तत्रादौ प्रारम्भात्पूर्व मंत्रानुष्ठानोपयोगि कत्यम् // चन्द्रतारादिबलान्विते सुदिने समूहर्ते पुण्यतीर्थक्षेत्रनिर्जना स्थानादावनुष्ठानयोग्यभूमिपरिग्रहणं कृत्वा तत्र मार्जनदहनखननसंप्लावनादिभिः स्मृत्युक्तैः शोधनोपायैः शुद्धिं संपाद्य जपस्थानस्य / चतुर्दिक्षु कोशं कोशद्वयं वा क्षेत्रमाहाराविहाराद्यर्थ परिकल्प्य जपस्थानभूमौ कूर्मशोधनं कुर्यात // ततः पुरश्चरणात् प्राक् तृतीयदि बसे ौरादिकं विधाय प्रायश्चित्तांगं विष्णुपूजाविष्णुतर्पणविष्णुश्राद्धं होमं चांद्रायणादिव्रतं च कुर्यात / व्रताशक्तौ गोदानं द्रव्यदान च कुर्यात् // यदि सर्वकर्माशक्तस्तर्हिप्रायश्चित्तांगं पंचगव्यप्राशनं कुर्यात् / तत्र मंत्रः // ॐ यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके // प्राशनात्पंचगव्यस्य दहत्यनिरिवेंधनम् // 1 // मूलं पठित्वा प्रणदेन पंचगव्यं पिबेत् / तद्दिने चोपवासं कृत्वा अशक्तश्चेत् पयःपानं हविष्यान्नभोजनमेकभक्तवतं वा कुर्यात् // पुरश्चरणात्पूर्वदिने स्वदेहशुद्धयर्थं पुरश्चरणाधिकारप्राप्त्यर्थ चायुतगायत्रीजपं कुर्यात् // तद्यथा / देशकालौ संकीर्त्य मम ज्ञाताज्ञातपापक्षयार्थं करिष्यमाणश्रीविष्णुपुरश्चरणाधिकारार्थममुकमंत्रसिद्धयर्थं च गायव्ययत लाजपममुकगोत्रोऽमकशर्माहं करिष्ये // इति संकल्प्य गायत्र्ययुतं जपेत् // ततो गायत्र्याचार्य्यमृषि विश्वामित्रं तर्पयामि॥१॥ गायत्री छंदस्तर्पयमि / / 2 / / सवितारं देवं तर्पयामि / / 3 / / इति तर्पणं कृत्वा तस्मित्रात्रौ देवतोपास्तिं शुभाशुभस्वमं च विचारयेत् // तद्यथा नानादिकं कृत्वा हरिपादांबुजं स्मृत्वा कुशासनादिशय्यायां यथासुखं स्थित्वा वृषभध्वजं प्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः ॐ "भगवन्देवदेवेश शूलभृदृषवाहन // इष्टानिष्टं समाचक्ष्व मम सुप्तस्य शाश्वतम् // 1 // ॐ नमोजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने / वामाय विश्वरूपाय स्वमाधिपतये नमः // 2 // स्वने कथय मे तथ्यं सर्वकार्येष्वशेषतः॥ क्रियासिद्धिं विधास्यामि त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥३॥इति मंत्रणाष्टोत्तर For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsu Gyanmandir यं० म. शतवारं शिवं प्रार्थ्य निद्रां कुर्यात् / / ततः स्वमं दृष्टं निशि प्रातंर्गुरवे विनिवेदयेत् // अथवा स्वयं स्वमं विचारयेत् इति पूर्वकृत्यम् // अथ पू० खं० / प्रातः कृत्यम् / पुरश्चरणदिवसे श्रीमत्साधकेन्द्रः प्रातःकालात्पूर्व दंडव्यात्मके ब्राह्म मुहूर्ते चोत्थाय प्रातःस्मरणं कुर्यात्॥अथ प्रातःस्मरणे च वि० तं. नारायणस्तुतिराचारमयूखे (व्यासः)॥ ॐ प्रातः स्मरामि भवभीतिमहार्तिशांत्य नारायणं गरुडवाहनमजनासम्॥याहाभिभूतवरवारणमुक्ति तरं०७ हेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम् // 1 // प्रातर्नमामि मनसा वचसा च मूर्धा पादारविंदयुगलं परमस्य पुंसः / / नारायणस्य नरकार्ण लिंग चन्द्रायोविच भारती जाहवी गुरुम् // रकाधितरणं युद्धे जपोऽनलसमचनम // शिखिहंसरांगातय रथे स्थान च मोहनम् / आरोहण सार सस्य धरालाभश्च निम्रगा। प्रासादः स्यंदनः पद्मं छवं कन्या हुमः फली / नागो दीपो हयः पुप्पं वृषभोऽश्वश्व पर्वतः // सराघटो ग्रहास्तारा नारी सूर्यादयोः / प्सराः / हर्यशैलविमानानामारोहो गगने गमः / मद्यमांसादनं विष्ठालेपो रुधिरसेचनम / दध्योदनादनं राज्याभिषको गोवृषध्वजाः / / सिंहः सिंहासनं शंखो वादि रोचनादिभिः। चंदन तर्पण यैषां स्वप्ने वै दर्शनं शुभम् // तैलाभ्यक्तः कृष्णवर्णी नग्नो नागवायसौ // शुष्क केटकिवृक्षश्च चांडालो दीर्घकंधरः प्रासादस्तलहीनश्च नैते स्वप्ने शुभावहाः // इति विचारयेत् // राममंत्रानुष्ठाने रामस्मरणं कुर्यात / तथा च // प्रातःस्मरामि रघुनाथमुखारविंदं मन्दस्मितं मधुरभाषि विशालभालम् // कर्णावलम्बिचल कुंडल शोभिगंड कांतदीर्यनयनं नयनाभिरामम् // 1 // प्रातर्भजामि रघुनाथकरारविदं रक्षोगणाय भयदं वरदं निजेभ्यः // यदाजसंसदि विभज्य महेशचापं सीताकर ग्रहणमंगळमाप सद्यः // 2 // प्रातर्नमामि रघुनाथपदारविदं वज्रांकुशादिशुभरेखि सुखावह मे // योगीन्द्रमानसमधुव्रतसेव्यमानं शापापहं सपदि गौतमधर्म पत्न्याः // 3 // प्रातर्वदामि वचसा रघुनाथनाम वाग्दोषहारि सकलं शमलं निहति // यत्पार्वती स्वपतिना सह भोक्तुकामा प्रीत्या सहलहरिनामसमं जज्ञाप // 4 // प्रातः श्रये श्रुतिनुतां रघुनाथमृत्ति नीलाम्बुदोत्पलसितेतररत्ननीलाम् // आमुक्तमौक्तिकविशेषविभूषणायां ध्येयां समस्तमुनिभिर्निजमृत्युहल्यै // 5 // // 169 / यः श्लोकपंचकमिदं प्रयतः पठेत नित्यं प्रभातसमये पुरुषः प्रबुद्धः / श्रीरामकिंकरजनेषु स एव मुख्यो भूत्वा प्रयाति हरिलोकमनन्यलभ्यम् // इति रामप्रातःस्मरणम्।। For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir वतारणस्य पारायणप्रणवविप्रपरायणस्य // 2 // प्रातर्भजामि भजतामभयङ्करं तं प्राक् सर्वजन्मकतपापभयापहत्यै // यो ग्राहवक्त्रपतितां [धिगजेन्द्रधोरशोकप्रणाशमकरोद्धृतशंखचक्रः // 3 // श्लोकत्रयमिदं पुण्यं प्रातः प्रातः पठेन्नरः॥ लोकत्रयगुरुस्तस्मै दद्यादात्मपदं हरिः R // 4 // इति प्रातःस्मरणं कृत्वा भूमिं प्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः॥ ॐ समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमंडले // विष्णपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श | क्षमस्व मे // 1 // इति भूमि संप्रार्य श्वासानुसारेण भूमौ पादं दत्वा बहिर्बजेत // इति प्रातःकत्यम्॥ ततो ग्रामादहिनैर्ऋत्यकोणे जनव जितेदेशे उत्तराभिमुखः अनुपानत्कः वस्त्रेण शिरः प्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा मृत्तिकया जलेन च यथासंख्यं शौचं कृत्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूषं च कृत्वा दंतधावनं कुर्यात् // तद्यथा / आम्रचंपकापामार्गाद्यन्यतमं द्वादशांगुलं दंतकाष्ठं गृहीत्वा प्रार्थयेत् // ॐ आयु बलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च // श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वन्नो देहि वनस्पते // 1 // इति संप्रार्थ्य // “ॐ ह्रीं तडित् स्वाहा" | इति मंत्रेण काष्ठं छित्त्वा ॐ क्रीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः' इत्यनेन दंतान संशोध्य 'ऐं' मंत्रेण जिह्वामुल्लिख्य दंतकाष्ठ क्षालयित्वा नैर्ऋत्यां शुद्धदेशे निःक्षिपेत् // ततो मूलेन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात् // तद्यथा / तत्कालिकोद्धृतोदकेन उष्णोदकेन वा स्नान कुर्यात् / न तु पर्युषितशीतोदकेन / तद्यथा। ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् // तत्र मंत्रः॥ ॐ गंगे च यमुने चैव व गोदावरि सरस्वति॥ नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन्सन्निधिं कुरु // 1 // आवाहयामि त्वां देवि नानार्थमिह सुंदरि॥ एहि गंगे नमस्तु / सर्वतीर्थसमन्विते // 2 // इति तीर्थान्यावाह्य " ॐ ऋतं च सत्यं० " इति मंत्रणाभिमंत्र्य वरुणमंत्रेण स्नात्वा शुष्कं शुलं कार्पासोत्पत्ति वश्वं परिधाय मूर्यायायं दद्यात् // तत्र मंत्रः // ॐ "एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते॥ अनुकंपय मां देव गृहाणायं नमोस्तु ते For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 17 // मं. मा Lalu // " इत्ययं दत्त्वा स्नानवस्त्रं परिपीड्य आचम्य नित्यनैमित्तिकं समाप्य द्वादशोर्ध्वपुंडू तिलकं कुर्यात् // अथ द्वारपूजा पू० ख० 1 प्रयोगः // पूजागृहद्वारमागत्य अस्त्राय फडिति द्वारं संप्रोक्ष्य दक्षिणशाखायाम् ॐ गं गणपतये नमः // 1 // ॐ दुं दुर्गायै नमः॥२॥ वि.तं. वामशाखायाम् ॐ वं बटुकाय नमः // 3 // ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः // 4 // द्वारोपार ॐ में सरस्वत्यै नमः // 5 // देहल्यामतरं०७ ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट् // इति पूजयेत्॥ जपस्थाने गत्वा “ॐ गृहीतस्यास्य मंत्रस्य पुरश्चरणसिद्धये // मयेयं गृह्यते भमिर्मत्रोयं सिद्धिमे त्विति // 1 // " इति मंत्रण भूमि संगृह्य अश्वत्थोदुबरप्लक्षाणामन्यतमस्य वितस्तिमात्रान दश कीलान् “ॐ नमः मुदर्शनायाखाय फट्" इति मंत्रणाष्टोत्तरशतवारानभिमंत्रितान् “ॐ ये चात्र विनकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः // विन्नभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धिषु // 1 // मयैतल्कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः // अपसर्पतु ते सर्वे निर्विघ्नं सिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति मंत्रद्वयेन दशदिक्षु दश कीलान निखनेत्॥ ततस्तेषु “ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट्" इति मंत्रेण प्रत्येकं कीलं संपूज्य तत्रैव पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिलोकपालानाबाह्य ) पंचोपचारैः संपज्य जपस्थानमध्ये गणेशकूर्मानंतवमुधाक्षेत्रपालांश्च संपूज्य दिक्पालेन्यः क्षेत्रपालगणपत्यादिश्यश्च बलिं दत्त्वा तदाह्ये भूतबलिं दद्यात्॥ तत्र मंत्रौ॥ "ये रौद्रा रौद्रकर्माणो रौद्रस्थाननिवासिनः।। मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च ये // 3 // भचराः खेचरा चैव तथा चैवांतरिक्षगाः। ते सर्वे प्रीतमनसः प्रतिगृहंत्विमं बलिम् // 2 // " इति मंत्रद्वयेन दशदिक्ष बाह्ये माषभक्तबलिं दत्त्वा वामकरां। गुलिभिरय॑जलेनोत्सृज्य पुष्पांजलिं गृहीत्वा " ॐ भतानि यानीह वसंति भूतले बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम् / / संतोषमासाद्य व्रजंतु // सर्वे क्षमंतु नान्यत्र नमोस्तु तेत्यः॥ 1 // " इति पुष्पांजलिं दत्त्वा प्रणम्य हस्तौ पादौ प्रक्षाल्याचामेत् // इति क्षेत्रकीलनम् // अथ| For Private And Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir प्रयोगविधानम् // “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा / / यः स्मरेत्युंडरीकाक्षं स बाह्यान्यतरः शुचिः।। 3 // " इति मंत्रण मंडपातरं संप्रोक्ष्य तत्र तावत् आसनभूमौ कूर्मशोधनं कार्यम्। यत्र जपकर्ता एक एव तदा कूर्ममुखे उपविश्य जपं दीपस्थापनं च कुर्यात्॥ यत्र बहवो जापकास्तत्र कूर्ममुखे दीपमेव स्थापयेत्।। इति कूर्मशोधनं विधाय तत्रासनाधो जलादिना त्रिकोणं कृत्वा तत्र ॐ कूर्माय नमः // 3 // ॐ ह्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः // 2 // ॐ पृथिव्यै नमः।।३।। इति गंधाक्षतपुष्पैः संपूज्य तदुपरि कुशासनं 1 तदुपरि ) मृगाजिनं 2 तदुपरि कंबलाद्यासनम् 3 आस्तीर्य स्थापितानां त्रयाणामासनानामुपार क्रमेण ॐ अनंतासनाय नमः / / 1 / / ॐ विमला ? सनाय नमः // 2 // ॐ पद्मासनाय नमः // 3 // इति मंत्रत्रयेण त्रींस्त्रीन् दर्भान् प्रत्येकमुपरि निदध्यात् / / एवमासनं संस्थाप्य तत्र प्राङ्मुख उदङ्मुखो वा उपविश्य आसनं शोधयेत् // तत्र मंत्रः॥ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः। कूमो देवता / सुतलंच्छंदः। आसने विनियोगः / / ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता / / त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्।। 1 / / इति मंत्रणासनं / पोक्षयेत् // ततः मूलेन शिखां बद्धा ॐ केशवाय नमः॥॥ॐ नारायणाय नमः // 2 // ॐ माधवाय नमः // 3 // इति त्रिराचम्य ) प्राणायाम कुर्यात् / / तद्यथा। दक्षिणहस्तांगुष्ठेन दक्षनासापुटं निरुध्य वामनासापुटेन मूलं षोडशवारं जपञ् शनैः शनैः प्राणाख्यवायुमाकृष्य शिरसि सहस्रारे धारयेदिति पूरकः // 1 // पुनः दक्षहस्तानामिकातर्जन्यंगुष्ठैः नासापुटद्वयं निरुध्य मूलं चतुःषष्टिवाराञ्जपन् कुंभयेत् / // 2 // पुनर्दक्षनासापुटांगुष्ठनिरोधं त्यक्त्वा मूलं द्वात्रिंशद्वारं जपञ्छनैःशनैस्तद्वायुं रेचयेत् // 3 // इति प्राणायामत्रयं कृत्वा देशकालो संकीर्त्य अमुकगोत्रचामुकदेवशर्माहं श्रीविष्णुदेवताया अमुकमंत्रसिद्धिप्रतिबंधकाशेषदुरितक्षयपूर्वकामुकमंत्रसिद्धिकामोऽयात्य यावता For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० पू० खं.१ वि कालेन सेप्स्यति तावत्कालममुकमंत्रस्य इयत्संख्यजपं तदशांशहोमतदशांशतर्पणतद्दशांशाभिषेकतद्दशांशबाह्मणभोजनरूपपुरश्चरणं (केवलजपरूपपुरश्चरणं वा ) करिष्ये // इति संकल्प्य "ॐ सुदर्शनायात्राय फट्” इति तालत्रयेण दिग्बंधनं कृत्वा भूतशुद्धिप्राणप्रति तिर्मातृकाबहिर्मातृकासृष्टिास्थितिसंहारमातृकान्यासांश्च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा केशवादिकलामातृकान्यासं च कुर्यात् // अथ केशवादिकलामातृकान्यासप्रयोगः॥अस्य केशवादिकलामातृकान्यासस्य प्रजापतिक्रषिः / गायत्री छन्दः / अर्धलक्ष्मीहरिदेवता। नारायणप्रसन्नातार्थे न्यासे विनियोगः॥ ॐ प्रजापतिक्रपये नमः शिरसि // 3 // गायत्रीछन्दसे नमः मुखे // 2 // अर्द्धलक्ष्मीहरये देवतायै / नमः हृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ श्री अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ श्री तर्जनीभ्यां नमः 2 // ॐ श्रीं मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ श्रीं अनामिकात्यां नमः // 4 // ॐ श्रीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ॥५॥ॐ श्री करतलकरपृष्ठान्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ श्री हृदयाय नमः // 1 // ॐ श्रीं शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ श्रीं शिखायै वषट् // 3 // ॐ श्री कवचाय हुँ // 4 // ॐ श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ श्री अस्त्राय फट / / 6 / / इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् / / अथ ध्यानम्।। ॐ उद्यत्प्रद्योतनशतरुचिं तनहेमावदातं पार्श्वइंदं जलधिसुतया विश्वधाच्या च पुष्टम् ॥नाना रत्नोल्लसितविविधाकल्पमापीतवस्त्रं विष्णु बंदे दरकमलकौमोदकीचक्रपाणिम् // 3 // एवं ध्यात्वा मातृकां न्यसेत् // ॐ अँ केशवकीय नमः ललाटे।।३॥ ॐ आँ नारायणाय कात्यै नमः मुखे // 2 // ॐ नाधवाय पुष्टय नमः दक्षनेत्रे // 3 // ॐ इ गोविन्दाय तुष्टयै नमः वामनेत्रे // 4 // ॐ ॐ विष्णवे धृत्यै नमः दक्षकणे // 5 // ॐ ॐ मधुसूदनाय शाँत्यै नमः वामकर्णे // 6 // ॐ * // 171 // For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir त्रिविक्रमाय क्रियायै नमः दक्षनासापुटे / / 7 / / ॐ वामनाय दयायै नमः वामनासापुटे // 8 // ॐ लँ श्रीधराय मेधायै नमः दक्षगंडे / / 9 / / ॐ लं, हृषीकेशाय दुर्गायै नमः वामगंडे / / 10 // ॐ एँ पद्मनाभाय श्रद्धायै नमः ऊोंष्टे / / 11 / / ॐ में दामोदराय लज्जायै नमः अवरोष्ठे / / 12 / / ॐ ओं वासुदेवाय लक्ष्म्यै ननः ऊर्ध्वदंतपंक्तौ / / 13 / / ॐ औं संकर्षणाय सरस्वत्यै नमः। अधोदंतपंक्ती // 14 / / ॐ अं प्रद्युम्नाय धृत्यै नमः मस्तके // 35 // ॐ अनिरुद्धाय रत्यै नमः मुखे / / 16 // ॐ कै चक्रिणे जयायै नमः दक्षबाहुमूले / / 17 // ॐ ख गदिने दुर्गायै नमः दक्षिणकूपरे / / 18 // ॐ गं शाङ्गिणे प्रभायै नमः दक्षिणमणिबंधे | // 19 // ॐ खङ्गिने सत्यायै नमः दक्षहस्तांगुलिमूले // 20 // ॐ हुँ शंखिने चन्द्रायै नमः दक्षहस्तांगल्यये // 21 // ॐ चं हलिने वाण्यै नमः वामबाहुमूले // 22 // ॐ ॐ मुसलिने विलासिन्यै नमः वामकपरे // 23 / / ॐ जशूलिने विजयायै नमः। वाममणिबंधे // 24 // ॐ झै पाशिने विरजायै नमः वामहस्तांगुलिमूले // 25 // ॐ 8 अंकुशिने विधायै नमः वामहस्तांगुल्यो | Hee|| 26 / / ॐ Rs मुकुंदाय विनदायै नमः दक्षपादमूले // 27 // ॐ , नंदजाय सुनंदायै नमः दक्षजानुनि / / 28 // ॐ 3 नंदिने / स्मृत्यै नमः दक्षगुल्के // 29 // ॐ हूँ नराय ऋयै नमः दक्षपादांगुलिमूले // 30 // ॐ ग नरकजिते समृद्धयै नमः दक्षपादांगुल्यो Med // 33 // ॐ हरये शुद्धयै नमः वामपादमूले // 32 // ॐ थे कृष्णाय वृद्ध्यै नमः वामजानुनि // 33 // ॐ = सत्याय भूत्यै नमः वामुगुल्के // 34 // ॐ सत्त्वताय मत्यै नमः वामपादांगुलिमूले // 35 // ॐ न सौराष्ट्राय क्षमायै नमः वामपादांगुल्यो NE|| 36 // ॐ पं शूराय रमायै नमः दक्षपार्थे // 37 // ॐ जनार्दनाय उमायै नमः वामपाधं // 38 // ॐ बँभधराय क्लेदिन्यै नमःपृष्ठे For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 6 मं०म० // 39 // ॐ मैं विश्वमूर्तये क्लिन्नायै नमः नाभौ // 40 // ॐ मैं वैकुंठाय वसुदायै नमः उदरे // 43 // ॐ य त्वगात्मने पू० ख०१ पुरुषोत्तमाय वसुधायै नमः हृदि // 12 // ॐ रं अमृगात्मने बलिने परायै नमः दक्षांसे // 43 // ॐ लँ मांसात्मने बालानुजाय // 172 // परायणायै नमः ककुदि // 44 // ॐ व मेदात्मने बलाय सूक्ष्मायै नमः वामांसे // 45 // ॐ अस्थ्यात्मने वृषन्नाय संधायै नमः हृदयादिदक्षकरांतम् // 46 // ॐ मज्जात्मने वृषाय प्रज्ञायै नमः हृदयादिवामकरांतम् // 47 // ॐ सं शुक्रात्मने 10 है हंसाय प्रभायै नमः हृदयादिदक्षपादांतम् // 48 // ॐ हँ प्राणात्मने वराहाय निशायै नमः हृदयादिवामपादांतम् // 49 // ॐ लं जीवात्मने विमलाय अमोघायै नमः हृदयादि उदरांतम् // 50 // ॐछ क्रोधात्मने नृसिंहाय विद्युतायै नमः हृदयादिमुखांतम् जा॥५१ ॥इति विष्णकलामातृकान्यासं कृत्वा प्रयोगोक्तन्यासादिकं च कुर्यात्॥ अथ पीठपूजाप्रयोगः॥ पीठादी रचित सर्वतोभद्रमंडले. मंडुकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः स्थापयेत् // तद्यथा // स्ववामभागे श्रीगुरवे नमः // 1 // दक्षिणे गणपतये नमः // 2 // मध्ये . स्वेष्टदेवतायै नमः॥३॥ इति नत्वा पुष्पाक्षतानादाय पीठमध्ये ॐ मं मंडूकाय नमः॥ 3 // ॐ के कालाग्निरुद्राय नमः // 2 // ॐ अं आधारशक्तये नमः // 3 // ॐ कूर्माय नमः // 4 // ॐ अं अनंताय नमः // 5 // ॐ पृथिव्यै नमः // 6 // ॐ वाक्षी क्षीरसागराय नमः // 7 // ॐ रं रत्नदीपाय नमः ॥८॥ॐ रं रत्नमंडपाय नमः // 9 // ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः // 10 // 1 // 172 / ॐ रं रत्नवेदिकायै नमः // 11 // ॐ रं रत्नसिंहासनाय नमः // 12 // आग्नेय्याम् ॐ धं धर्माय नमः // 13 // नैर्ऋत्याम् | 1 केशवादिस्य न्यासो न्यासमात्रेण देहिनाम् // अच्युतत्वं ददात्येव सत्यंसत्यं न संशयः // एवं न्यासविधि कृत्वा रुक्षान्नारायणो भवेत्॥ For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ॐ ज्ञा ज्ञानाय नमः // 14 // वायव्ये ॐ वै वैराग्याय नमः // 15 // ऐशान्ये ॐ ऐश्वर्याय नमः // 16 // पूर्वे ॐ अं अधर्माय नमः॥ 17 // दक्षिणे ॐ अं अज्ञानाय नमः॥१८॥ पश्चिमे ॐ अं अवैराग्याय नमः॥ 19 // उनरे ॐ अं अनैश्वर्याय नमः // 20 // पुनः पीठमध्ये / ॐ आं आनंदकंदाय नमः॥ 21 // ॐ सं संविन्नालाय नमः // 22 // ॐ सं सर्व तत्त्वकमलासनाय नमः॥ 23 // ॐ अं प्रकृतिमयपत्रेन्यो नमः // 24 // ॐ वि विकारमयकेसरायो नमः॥ 25 // ॐ पं पंचा शवर्णाढयकर्णिकान्यो नमः // 26 // ॐ अं अर्कमंडलाय द्वादशकालात्मने नमः // 27 // ॐ सों सोममंडलाय षोडशकलात्मने नमः // 28 // ॐ वं वह्निमंडलाय दशकलात्मने नमः // 29 // ॐ सं सत्त्वाय नमः // 30 // ॐ रं रजसे नमः // 31 // ॐ तं तमसे नमः // 32 // ॐ आं आत्मने नमः // 33 // ॐ पं परमात्मने नमः // 34 // ॐ अं अंतरात्मने नमः // 35 // ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः // 36 // ॐ मं मायातत्त्वाय नमः // 37 / / ॐ के कलातत्त्वाय नमः // 38 // ॐ वि विद्यातत्त्वाय पानमः // 39 // ॐ पं परतत्त्वाय नमः // 40 // इति पीठदेवताः संस्थाप्य प्रयोगोक्तनवपीठशक्तीः पूजयेत् // अथ शंखस्थापनप्र| बायोगः // देववामतः त्रिकोणमंडलं कृत्वा जलेन प्रोक्ष्य त्रिकोणांतर्मायां (ह्रीं) विलिख्य ॐ ह्रीं आधारशत्तयै नमः इति संपूज्य मूलेना त्रिपदाधारं प्रक्षाल्य त्रिकोणमध्ये संस्थाप्य ॐ मं वह्निमंडलाय दशकलात्मने शंखपात्राशनाय नमः // इत्याधारं संपूजयेत् // ततः ॐ क्ली महाजलचराय हुं फट् स्वाहा पांचजन्याय नमः इति मंत्रेण भालितं शंखमाधारोपरि संस्थाप्य ॐ अं सूर्यमंडलाय द्वादशकलात्मने / शंखपात्राय नमः इति शंख पूजयेत्॥ततो मूलेन नमः इति शंखे जलमापूर्य ॐ सों सोममंडलाय पोडशकलात्मने शंखपात्रामृताय नमः For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shei Katassagasul Gyanmandir मं म // 173 इति गंधादिभिः संपूज्याभिमंत्रयेत् // तथा च / ॐ शंखादौ चन्द्रदैवत्यं कुक्षौ वरुणदेवता // पृष्ठे प्रजातिश्चैवमये गंगा सरस्वती // 1 // ll0 ख०१ त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया // शंखे तिष्ठति विप्रेन्द्र तस्माच्छंखं प्रपूजयेत् // 2 // इत्यभिमंत्र्य प्रार्थयेत् // तथा वितं. च ॐ त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे // निर्मितः सर्वदेवैश्च पांचजन्य नमोस्तुते // 1 // इति संप्रार्थ्य " ॐ पांचजन्याय तरं०७ विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात्" इति शंखगायत्रीमष्टधा जपित्वा शंखमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति शंखस्थापनम् // अथ घंटास्थापनप्रयोगः॥ देवदक्षिणतः घंटा संस्थाप्य नादं कृत्वा पूजयेत् // तद्यथा ॐ भभुवः स्वः गरुडाय नमः आवाहयामि |सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि // इत्याबाह्य // “ॐ जगद्धनिमंत्रमातः स्वाहा” इति मंत्रेण घंटास्थितगरुडं |घंटां च संपूज्य गरुडमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति घंटा संस्थाप्य गंधाक्षतपुष्पादीश्च पूजोपकरणार्थ स्वदक्षिणपार्श्वे संस्थाप्य मूलेन नमः / इति जलेन प्रोक्ष्य जलार्थे बृहत्पात्रं व्यजनं छत्रादर्शचामराणि च स्ववामे संस्थापयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेणा शोष्य आसनमंत्रण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य देशकालौ संकीर्त्य मम विष्णुदेवतानूतनयंत्रे मूर्ती वा प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये // इति संकल्प्य प्रतिष्ठां कुर्यात् // तद्यथा / अस्य श्रीप्राणप्र तिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः। ऋग्यजुः सामानि छंदांसि क्रियामयवपुःप्राणाख्या देवता ॐ बीजम् / ह्रीं शक्तिः। क्रौं कीलकम् अस्य नूतनयंत्रे मूर्ती वा प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः // इति जलं क्षिपेत् // करेणाच्छाय ॐआँहींकाँपॅरलॅबशपहँसः सोहं अस्य विष्णुदे बतासपरिवारयंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः / पुनः। ॐ आँ ह्रींक्रायरलँचषसहसः सोहं अस्य विष्णदेवतासपरिवारयंत्रस्य जीव इह स्थितः।।।। // 173 / For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पुनः। ॐ आँ ह्रींकॉयरलँवषसहंसः सोहं अस्य विष्णुदेवतासपरिवारयंत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि। पुनः। ॐ आँ ह्रींकायरलँश |सँहंसः सोहं अस्य विष्णुदेवतासपरिवारयंत्रस्य वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःश्रोत्रजिह्वाघाणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठतु स्वाहा इति प्राणान प्रतिष्ठाप्य यः प्राणतो निमिषतो महित्वे विधेम // इतिमन्निति त्रिवारं पठेत् // ॐ मनोजूतिर्जुषतासुप्रतिष्ठा प्रतिष्ठा / इत्युक्त्वा संस्कारसिद्धये पंचदश प्रणवावृत्तीः कृत्वा अनेन विष्णुदेवतासपरिवारयंत्रस्य गर्भाधानादिपंचदशसंस्कारान्संपादयामि इति वदेत् / ततः ॐ यंत्रराजाय विद्महे महायंत्राय धीमहि // तन्नो यंत्रः प्रचोदयात् // इत्यष्टोत्तरशतमभिमंत्र्य मूलदेवतां ध्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावा हयेत्॥अक्षतानादाय ॐ देवेश भक्तिसुलभ परिवारसमन्वित॥यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावदेव इहावह // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः 0 श्रीविष्णवे नमः इहागच्छ इह तिष्ठ इत्यावाहनम् ॥१॥ॐ अज्ञानादुर्मनस्त्वादा वैकल्यात्साधनस्य च ।।यदि पूर्ण भवेत्कृत्यं तदाप्यभिमुखो नाभव // 1 // ॐ भू० श्रीविष्णवे नमः इह सम्मुखो भव इति सम्मुखीकरणम् // 2 // ॐ यस्य दर्शनमिच्छंति देवाः स्वाभीष्टसिद्धये॥ तस्मै ते परमेशाय स्वागतं स्वागतं च ते // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भू. श्रीविष्णवे नमः सुस्वागतं समर्पयामि इति सुस्वागतम् // 3 // ॐ देवदेव महाराज प्रियेश्वर प्रजापते // आसनं दिव्यमीशान दास्येहं परमेश्वर // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीविष्णवे नमः | आसनं समर्पयामि इत्यासनम् // 4 // इत्यासनं दत्त्वा करं बद्धा प्रार्थयेत् // ॐ स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यात्त्वमिहागतः॥ प्राकृतं त्वमदृष्ट्वा / मां बालवत्परिपालय // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भू० श्रीविष्णवे नमः प्रार्थनां समर्पयामि नमष्करोमि // 5 // इति प्रार्थयित्वा पाद्यादिपूजनं ) कुर्यात् // अथ पाद्यादिपूजनम् ॐ यद्भक्तिलेशसंपर्कात्परमानंदसंभवः॥ तस्मै ते चरणाजाय पाद्यं शुद्धाय कल्पयेत् // 1 // मूलं पठित्वा / वागतं देवदेवेश मनाया इति प्रार्थयित्वा पालं पठित्वा / For Private And Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म.म. पू० खं० 1 // 17 // तरं०७ ॐ भू० श्रीविष्णवे नमः पाद्यं समर्पयामि इति सर्वत्र॥इत्यर्बोदकेन पायं दद्यात्॥इति पाद्यम् // 1 // ॐ देवानामपि देवाय देवानां देवता त्मने॥ आचामं कल्पयामीश शुद्धानां शुद्धिहेतवे॥१॥ इत्याचमनम् // 2 // ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानंदलक्षणम् // तापत्रयविमोक्षाय / तवाऱ्या कल्पयाम्यहम् // 1 // अयोदकेनायं दद्यात् // इत्यय॑म् // 3 // ॐ सर्वकालुष्यहीनाय परिपूर्णसुखात्मने // मधुपर्कमिदं देव कल्पयामि प्रसीद मे // 1 // इति मधुपर्कम् // 4 // ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिर्वामि यस्य स्मरणमात्रतः // शुद्धिमानोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् // 1 // इति पुनराचमनीयम् // 5 // ॐ स्नेहं गृहाण स्नेहेन लोकनाथ महाशय // सर्वलोकेषु शुद्धात्मन्ददामि स्नेहमुत्तमम् // 1 // इति सुगंधतैलम् // 6 // ॐ गंगा सरस्वती रेवापयोष्णीनर्मदाजलैः // नापितोऽसि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे // 1 // इति जलस्नानम् // 7 // ॐ पयो दधि घतं चैव मधु च शर्करायुतम् // पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् // 1 // इति पंचामृतेन स्नापयित्वा पुनर्जलस्नानं च कारयेत् // 8 // ॐ सर्वभूषादिकैः सौम्ये लोकलज्जानिवारणे // मयैवापादिते तुम्त्य वाससी प्रतिगृह्यताम् / / 1 / / इति वस्त्रम् // 9 // ॐ नवनिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीतं चोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर // 1 // इति यज्ञोपवीतम् // 10 // ॐ स्वभावसुंदरांगाय सत्यासत्याश्रयाय ते // भषणानि विचित्राणि कल्पयामि मुरार्चित // 1 // दक्षहस्तांगुष्ठस्पृष्टानामिकात्मिकया मुद्रया भूषणानि दद्यात् / / इत्याभषणम् // 11 // ॐ श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं मुमनोहरम् // विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम् // 1 // अंगुष्ठौ कनिष्ठामूललग्नौ गंधमुद्रा इति गंधम् // 12 // ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुंमाक्ताः सुशोभिताः॥ मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर // 1 // सर्वांगुलीभिर्दद्यात् // इत्यक्षतान् // 13 // माल्यादीनि सुगंधीनि // 1740 For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairn.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मालत्यादीनि वै प्रभो // मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर // 1 // तर्जन्यावंगुष्ठमूललग्ने पुष्पमुद्रा इति पुष्पम् // 14 // एवं पुष्पांतं पूजयित्वा देवाज्ञया प्रयोगोक्तावरणपूजां कृत्वा धूपादिपूजनं कुर्यात् // अथ धूपादिपूजनम् // फडिति धूपपात्रं संप्रोक्ष्य मूलेन / नमः इति गंधपुष्पान्यां संपूज्य पुरतो निधाय (Rs ) इति वह्निबीजेन अनि संस्थाप्य तदुपरि मूलेन दशांगं दत्त्वा बंटां वादयन् ॐ वनस्पतिरसोद्भूतो गंधाढ्यो गंध उत्तमः // आप्रेयः सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भू० सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सवाहनाय श्रीविष्णवे नमः धूपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य वामनागे धूपपात्रं निधाय तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगो धूपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् // इति धूपम् // 3 // ततो दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य मंत्राक्षरतंतुभिर्वर्ती निःक्षिप्प प्रणवेन (ॐ) प्रज्वाल्य घंटां वादयन् नित्रादिपादपर्यंतं दीपं प्रदर्शयेत् // ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः // सबाह्यान्यंतरं ज्योतिर्दीपोयं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भू० सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सवाहनाय श्रीविष्णवे नमः दीपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य दक्षिणनागे निधाय , ततः शंखजलमुत्सृज्य मध्यमे अंगुष्ठलग्ने दीपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् // इति दीपम् ॥२॥ततः देवस्याये देवदक्षिणतो वा जलेन चतुरस्र मंडलं 5 कत्वा स्वर्णादिनिर्मित भोजनपात्रं संस्थाप्य तन्मध्ये षड्रसोपेतं विविधप्रकारं वा नैवेद्यं निधाय ॐ ह्रीं नमः इत्यय॑जलेन प्रोक्ष्य मूलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिणहस्तोपरि तादृशं वामं निधाय नैवेद्यमाच्छाद्य (ॐ य ) इति वायुबीजेन षोडशधा संजप्य वायना तद्भूतदोषान् संशोष्य ततो दक्षिणकरतले तत्पृष्ठलग्नवामकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्श्य ( ॐ Rs ) इति वह्निबीजेन पोडशवारान् संजप्य तदुत्पन्नाग्निना तदोषं दग्ध्वा ततो वामकरतले (ॐ व ) इति अमृतबीजं विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं दक्षिणकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्य (ॐ बँ) इति मुधाबीज For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ཡཾ༠ ག༠ षोडशवारं संजप्य तदुत्थामृतधारया प्लावितं विभाव्य मूलेन प्रोक्ष्य धेनुमुद्रां प्रदर्श्य मूलेनाष्टधाभिमंत्र्य गंधपुष्पान्यां संपूज्य देवस्योद्गतं तेजः , पू० ख०१ स्मृत्वा वामांगुष्ठेन नैवेद्यपात्रं स्पृष्ट्वा दक्षिणकरेण जलं गृहीत्वा "ॐ सत्पात्रसिद्धं सुहविविविधानेकभक्षणम् // निवेदयामि देवेश सानुगाय गृहाण तत् // " मूलं पठित्वा ॐ भू०सांगाय सपरिवाराय सवाहनाय सायुधाय श्रीविष्णवे नमः // नैवेद्यं समर्पयामि // 1 // इति भूतले देवदक्षिणे जलं क्षित्वा वामहस्तेन अनामामूलयोरंगुष्ठयोगे ग्रासमुद्रा तां प्रदर्श्य देवं भुक्तवन्तं विभाव्य जलं दद्यात् // इति नैवेद्यम् // 3 // ॐ नमस्ते देवदेवेश सर्वतृतिकरो वरः॥ परमानंदपूर्णस्त्वं गृहाण जलमुत्तमम् // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भू० सांगाय सप रिवाराय सवाहनाय सायुधाय श्रीविष्णवे नमः // जलं समर्पयामि // इति मंत्रण स्वर्णादिपात्रस्थं कर्पूरादिमुवासितं जलं निवेद्य देवेन तज्जलं पाशितमिति भावयन अंतःपटं दद्यात् // इति जलम् // 4 // ॐ ब्रह्मेशाधैः सरसमजितः सूपविष्टैः समन्तासिंजबालव्यजननिकर ज्यमानः सखीभिः // नर्मक्रीडाप्रहसनपरान्पंक्तिभोक्तन् हसन्वै भुक्ते पात्र कनकघटिते षड्रसान्देवदेवः॥३॥ शालीभक्तं सुपक्वं शिशिर d करसितं पायसापूपसूपं लेां पेयं च चोष्यं सितममृतफलं द्वारिकाद्यं सुखाद्यम्।।आज्यं प्राज्यं सभोज्यं नयनरुचिकरं राजिकैलामरीचस्वा | दीयः शाकराजीपरिकरममृताहारजोषं जुषस्व // 2 // इति अंतःपटं दत्त्वा आचमनं दद्यात् // 5 // ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य / स्मरणमात्रतः // शुद्धिमामेति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् // 1 // ॐ भ० श्रीविष्णवे नमः आचमनं समर्पयामि // इत्याचमनं // 175 // दत्त्वा मूलेन गंडूषार्थ जलं च दद्यात् // 6 // ॐ पूगीफलं महदिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् // एलाचर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् // 3 // इति ताम्बूलम् // 7 // ॐ इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव // तेन मे सफलावानिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि // 1 // इति फलम् For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // 8 // ॐ बुद्धिः सवासना कुता दर्पणं मंगलानि च // मनोवृत्तिविचित्रा ते नृत्यरूपेण कल्पिता // 1 // ध्यानं च गीतरूपेण / शब्दा वाद्यप्रभेदतः // छत्राणि नवपनानि कल्पितानि मया प्रनो // 2 // सुषुम्णा ध्वजरूपेण प्राणाद्याश्चामरा मताः॥ अहंकारो गज त्वेन वेगः कुतो रथात्मना // 3 // इन्द्रियाण्यश्वरूपाणि शब्दादीरथवर्मना // मनः प्रयहरूपेण बुद्धिः सारथिरूपतः॥ 4 // सर्व मन्मत्तथा कृतं तबोपकरणात्मना // एमान् सार्चचतुष्टयश्लोकान् पठित्वा छत्रादि समर्पयेत् // इति छत्राद्यर्पणम् // 9 // ॐ कदली गर्भसंभूतं कपरं च प्रदीपितम् // आरार्तिक्यमहं कर्वे पश्य मे वरदो भव // इति कर्पूरार्तिक्यम् // 30 // ॐ यानि कानि च पापानि जन्मांतरकतानि वै // तानि सर्वाणि नश्यंत प्रदक्षिणपदेपदे // 1 // इति चतुरः प्रदक्षिणाः कुर्यात् // ११॥ॐ प्रसन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहार्णवात् // इति वदन साष्टांग प्रणमेत् // 12 // ॐ नानासुगंधपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च // पुष्पांजलिं मया दत्त गृहाण परमेश्वर॥३॥इति पुष्पांजलिः॥१३॥इति पुष्पांजलिं दत्त्वा ततस्तुतिपाठेन स्तुत्वा बद्धांजलिपूर्वकं प्रार्थयेत् // ॐ ज्ञानतोज्ञानतो वाथ यन्मया क्रियते हरे // मम कत्यमिदं सर्वमिति देव क्षमस्व मे // 1 // अपराधसहस्राणि क्रियतेऽहर्निशं मया // दासोयमिति मां मत्वा , क्षमस्व परमेश्वर // 2 // अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोऽपरः सहतां लोके केवलं स्वामिन विना // 3 // भूमौ स्खलित पादानां भूमिरेवावलंबनम् // त्वयि जातापराधानां त्वमेव शरणं हरे // 4 // इति बद्धांजलिपूर्वकं संपार्थ्य " ॐ यदुक्तं येन भावेन पत्रं पुष्पं फलं जलम् / / निवेदितं च नैवेद्यं गृहाण त्वनुकंपय / / 3 // " इति पठित्वा देवस्य दक्षिणकरे पूजार्पणजलं दद्यात् // ततो मालामा भदाय सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण मालायाः संस्कारान् कृत्वा अशक्तश्चेत् “ॐ ह्रीं मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी // चतुर्वर्गस्त्व For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तरं०७ पखं०१ मं० म०यि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव // 1 // इति मालां संप्रार्थ्य ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा // " इति मंत्रेण दक्षिणहस्ते मालामादाय हृदये धारयन् स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि संस्थाप्य ज्येष्ठाग्रेण चामयित्वा एकाग्रचित्तो मंत्रार्थ स्मरन् यथा / // 176 // शक्ति प्रातःकालमारण्य मध्यदिनं यावत् मूलमंत्र जपेत् / / नित्यमेव समानं जपं कुर्यान्न तु न्यूनाधिकम् // ततो जपांते “ॐ त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुनदा मम // शुभं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्य च सर्वदा // तेन सत्येन सिद्धिं मे देहि मातर्नमोऽस्तु ते // 1 // " ॐ ह्रीं सिद्धयै नमः // इति मालां शिरसि निधाय गोमुखीरहस्ये स्थापयेत् नाशुचिः स्पर्शयेत् // नान्यं दद्यात् // अशुचिस्थाने न निधाायेत् / स्वयोनिवत् गुप्तां कुर्यात् // ततः कवचस्तोत्रसहस्रनामादिकं पठित्वा पुनः मूलमन्त्रोक्तं ऋष्यादिन्यासं हृदयादि / षडंग यासं च कृत्वा पंचोपचारैः संपूज्य पुष्पांजलिं च दत्त्वा जपार्पणं कुर्यात् / तथा च अर्योदकेन चुलुकमादाय ॐ गुह्या / तिगुबगोता वं ग्रहाणास्मत्कृतं जपम् // सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादात्त्वयि स्थितिः // 1 // ॐ इतः पूर्व प्राणबुद्धिदेहधर्मा धिकारतो जायत्स्वमसुषुप्तितुर्यावस्थासु मनसा वाचा कर्मणा हस्तान्यां पद्यामदरेण शिश्ना यस्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्व ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा // मदीयं च सकलं श्रीविष्णुदेवतायै समर्पयामि नमः // ॐ तत्सदिति ब्रह्मार्पणं भवतु इति देवदक्षिणकरे जलसमर्पणं रुत्वां जलिपूर्वकं क्षमापनं पठेत् // तथा च ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् // पूजाभागं न जानामि त्वं गतिः परमेश्वर // 3 // मंत्रहीन क्रियाहीनं मक्तिहीनं सुरेश्वर // यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे // 2 // यदक्षरपदावष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् // तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर // 3 // कर्मणा मनसा वाचा त्वत्तो नान्या गतिर्मम // अंतश्चरमि भूतानमि इष्टस्त्वं For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir परमेश्वर // 4 // अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम // तस्मात्कारुण्यभावेन क्षमस्व परमेश्वर // 5 // प्रातयोनिसहस्रेष सहस्रेषु बजाम्यहम् // तेषु तेष्वचला भक्तिरच्युतेस्तु सदा त्वयि // 6 // गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्यमेव च ॥आगता सुखसंपत्तिः पुण्या च तव दर्शनात् // 7 // देवो दाता च भोक्ता च देवरूपमिदं जगत् // देवं जपति सर्वत्र यो देवः सोहमेव हि // 8 // क्षमस्व देवदेवेश क्षम्यतां भुवनेश्वर // तव पादांबुजे नित्यं निश्चला भक्तिरस्तु मे // 2 // इति कृतांजलिः प्रार्थयित्वा शंखजलमुद्धृत्य देवोपरि चामयित्वा "साधु वासाधु वा कर्म यद्यदाचरितं मया // तत्सर्व रुपया देव गृहाणाराधनं मम // 1 // " इत्युच्चचरन देवस्य दक्षिण हस्ते किंचिजलं दत्त्वा प्राग्वदर्घ्य देवशिरसि दत्त्वा शंखं यथास्थाने निवेशयेत् // ततो गतसारनैवेद्यं देवस्योच्छिष्टं किंचिदुद्धृत्य ॐ| विष्वक्सेनाय नमः // इति विष्वक्सेनं संपूज्योच्छिष्टांधिकारिणे ऐशान्यां दिशि दद्यात् // तच्छेषनैवेद्यं शिरसि धृत्वा नैवेद्यादिकं देवभक्तेषु विक्षज्य स्वयं भुक्त्वा विसर्जनं कुर्यात् // तथा च // “ॐ गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // पूजाराधनकाले च पुनरा गमनाय च // 3 // " इत्यक्षतान्निक्षिप्य विसर्जनं कृत्वा "ॐ तिष्ठतिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यत्र ब्रह्मादयो देवाः सर्वे तिष्ठति मे हृदि॥ 1 // " इति हृदयकमले हस्तं दत्त्वा देवं स्वहृदये संस्थाप्य मानसोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन् यथासुखं विहरेत् // एवमेवविधिना जपं सामान्य सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण तत्तदशांशहोमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् // इति विष्णुपूजापद्धतिः समाता / / अथ विष्णुकवचप्रारंभः // श्रीनारद उवाच // "भगवन्सर्वधर्मज्ञ कवचं यत्प्रकाशितम् // त्रैलोक्यमंगलं नाम रुपया कथय| तो // 1 // सनत्कुमार उवाच // शृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परमाद्भुतम् // नारायणेन कथितं कृपया ब्रह्मणे पुरा॥२॥ब्रह्मणा कथितं For Private And Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsunl Gyanmandir मं० म. पू० खं. 1 मह्यं परं स्नेहाद्वदामि ते // अति गुह्यतरं तत्त्वं ब्रह्ममंत्रौघविग्रहम् // 3 // यद्धृत्वा पठनाद्ब्रह्मा सृष्टिं बितनुते ध्रुवम् // यद्धृत्वा पठना पाति महालक्ष्मीर्जगत्रयम् // 4 // पठनाद्धारणाच्छम्भुः संहर्ता सर्वमंत्रवित् // त्रैलोक्यजननी दुर्गा महिषादिमहासुरान् // 5 // वरहप्ता अघानैव पठनाद्धारणाद्यतः // एवमिन्द्रादयस्सर्वे सर्वैश्वर्य्यमवामुयुः // 6 // इदं कवचमत्यंत गुनं कुत्रापि नो वदेत् // शिष्याय भक्ति युक्ताय माधकाय प्रकाशयेत् // 7 // शठाय परशिष्याय दत्त्वा मृत्युमवानुयात् // त्रैलोक्यमंगलस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः॥८॥ ऋषि श्छन्दश्च गायत्री देवो नारायणः स्वयम्॥धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः॥९॥ॐ प्रणवो मे शिरः पातु नमो नारायणाय च॥ भालं मे नेत्रयुगलमष्टार्णो भक्तिमुक्तिदः // 10 // क्लीं पायाच्छ्रोत्रयुग्मं चैकाक्षरस्सर्वमोहनः।। क्लीं कृष्णाय सदा घाणं गोविंदायेति जिति काम् // 11 // गोपीजनपदं वल्लभाय स्वाहाननं मम // अष्टादशाक्षरो मंत्रः कंठं पातु दशाक्षरः // 12 // गोपीजनपदं वल्लभाय स्वाहा भुजद्वयम् // क्लीं ग्लौं की श्यामलांगाय नमः स्कंधौ दशाक्षरः॥ 13 // क्लीं कृष्णः क्लीं करौ पायात क्लीं कृष्णायांगतो वतु // हृदयं भुवनेशानी की कृष्णाय की स्तनौ मम // 14 // गोपालायामिजायांतं कुक्षियुग्मं सदावतु // क्लीं कृष्णाय सदा पातु पार्श्वयुग्ममनुत्तमः // 15 कृष्णगेबिंदकी कटयां स्मरायौ डेन्युतो मनुः // अष्टाक्षरः पातु नाभिं कृष्णेति द्वयक्षरोऽवतु॥ 16 // पृष्ठं की कृष्णकंकालं क्लीं कृष्णाय विठांतकः // सक्थिनी सततं पातु श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णठद्वयम् // 17 // ऊरू सप्ताक्षरः पायात्रयोद शाक्षरोऽवतु // श्रीं ह्रीं क्लीं पदतो गोपीजनवल्लभदं ततः // 18 // भाय स्वाहेति पायुं वै क्लीं ह्रीं श्रीं सदशार्णकः // जानुनी च सदा र पातु ह्रीं श्रीं क्लीं च दशाक्षरः // 19 // त्रयोदशाक्षरः पातु जंघे चक्रायुदायुधः // अष्टादशाक्षरो ह्रीं श्रीं पूर्वको विशदर्णकः // 20 // For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सर्वांगं मे सदा पातु द्वारकानायको बली // नमो भगवते पश्चाद्वासुदेवाय तत्परम् // 21 ताराद्यो द्वादशाोयं प्राच्यां मां सर्वदावतु ) // श्रीं ह्रीं क्लीं च दशार्णस्तु क्लीं ह्रीं श्रीं पोडशार्णकः / / 22 / / गदायुदायुधो विष्णुर्मामर्दिशि रक्षतु // ह्रीं श्रीं दशाक्षरो मंत्रो दक्षिणे मां सदावतु / / 23 / / तारो नमो भगवते रुक्मिणीवल्लभाय च / / स्वाहेति षोडशाोयं नैर्ऋत्यां दिशि रक्षतु // 24 // कीं हृषीकेपदेशाय नमो मां वारुणेऽवतु / / अष्टादशार्णः कामांतो वायव्ये मां सदावतु // 25 // श्री मायाकामकृष्णाय ह्रीं गोविन्दाय विठो मनुः / / द्वादशात्मको विष्णुरुत्तरे मां सदावतु // 26 // वाग्भवं कामकृष्णाय ह्रीं गोविन्दाय तत्परम् / / श्री गोपीजनवल्लभाते भाय स्वाहा हसौ स्वतः // 27 // द्वाविंशत्यक्षरो मंत्रो मामैशान्ये सदावतु / कालियस्य फणामध्ये दिव्यनत्यं करोति तम् // 28 // नमामि देवकीपुत्रं नृत्यराजानमच्युतम्।। द्वात्रिंशदक्षरो मंत्रोऽप्यधो मां सर्वदावतु // 29 // कामदेवाय विद्महे पुष्पवाणाय धीमहि // तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयादेषा मां पातु चोर्ध्वतः / / 30 / / इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममंत्रौषविग्रहम् / त्रैलोक्यमंगलं नाम कवचं ब्रह्मरूपकम् | K // 31 // ब्रह्मणा कथितं पूर्व नारायणमुखाच्छ्रुतम् / / तव स्नेहान्मयाख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् // 32 // गुरुं प्रणम्य विधिवत्कवचं प्रपठेत्ततः // सकहिस्त्रियथाज्ञानं सोऽपि सर्वतपोमयः / / 33 // मंत्रष्वसकलेष्वेव देशिको नात्र संशयः // शतमष्टोत्तरं चास्य पुरश्चर्याविधिः स्मृतः // 34 // हवनादीन्दशांशेन कृत्वा तत्साधयेद्धवम् // यदि स्यात्सिद्धकवचो विष्णुरेव भवेत्स्वयम् // 35 // | मंत्रसिद्धिर्भवेत्तस्य पुरश्चर्याविधानतः // स्पर्धामुद्भूय सततं लक्ष्मीर्वाणी वसेनतः॥ 36 // पुष्पांजल्यष्टकं दत्त्वा मूलेनैव पठेत्सकत॥ दशवर्षसहस्राणां पूजायाः फलमामुयात् // 37 // भूर्जे विलिख्य गुटिकां स्वर्णस्थां धारयेद्यदि // कण्ठे वा दक्षिणे बाही For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra mm.kabalrm.org म.म पू० ख० 1 // 178 // तरं०७ सोपि विष्णुर्न संशयः // 38 // अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च // महादानानि यान्येव प्रादक्षिण्यं भुवस्तथा // 39 // कलां नार्हति तान्येव सकदुच्चारणात्ततः // कवचस्य प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः // 40 // त्रैलोक्यं क्षोभयत्येव त्रैलोक्यविजयी भवेत् // इदं कवचमज्ञात्वा यजेद्यः पुरुषोत्तमम् // शतलक्षप्रजातोपि न मंत्रस्तस्य सिद्धयति // 41 // " इति विष्णुकवचं समाप्तम् // अथ नारायणहृदयम् // आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ स्मृत्वा ममाभीष्टसिद्ध्यर्थ संकलीकरणरीत्या संपुटीकरणरीत्या वा नारायणहृदयस्य सकदावर्तनं करिष्ये // इति संकल्पयेत॥ॐ अस्य श्रीनारायणहृदयस्तोत्रमंत्रस्य भार्गव ऋषिः। अनुष्टुप्छंदः / श्रीलक्ष्मीनारायणो देवता / ॐ बीजम् / नमः शक्तिः। नारायणायेति कीलकम् / श्रीलक्ष्मीनारायणप्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः॥ ॐ भार्गवऋषये नमः शिरसि // 1 // ॐ अनुष्टुपछंदसे नमः मुखे // 2 // ॐ श्रीलक्ष्मीनारायणदेवतायै नमो हृदि // 3 // ॐ बीजाय नमो गुह्ये ॥४॥ॐ नमः शक्तये नमः पादयोः॥ 5 // ॐ नारायणेति कीलकाय नमः नाभौ // 6 // ॐ विनियोगाय नमः साङ्गे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ नारा यणः परं ज्योतिरित्यंगुष्ठाभ्यां नमः॥ 1 // ॐ नारायणः परंब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ ॐ नारायणः परो देव इति मध्यमान्यां नमः au // ॐ नारायणः परो ध्यातेति अनामिकात्यां नमः॥४॥ ॐ नारायणः परं धामेति कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥५॥ॐ नारायणः परो धर्म इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ ॐ नारायणः परं ज्योतिरिति हृदयाय नमः॥ 1 // ॐ नारायणः परब्रह्मेति शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ नारायणः परो देव इति शिखायै वषट् // 3 // ॐ नारायणः परो ध्यातेति कवचाय हूं // 4 // ॐ नारायणः परं धामेति नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ नारायणः परो धर्म इत्यस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // का॥ 178 // For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir इति न्यास कृत्वा " ॐ नमः सुदर्शनाय सहस्राय हुं फट् बध्नामि नमश्चकाय स्वाहा” // इति मंत्रेण तालत्रयेण दशदिक्षु दिग्बंधनं कुर्यात् // इति दिग्बंधनं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् ॥"उद्यदादित्यसंकाशं पीतवाससमच्युतम् // शंखचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्मी पति हरिम् // 3 // इति ध्यात्वा " ॐ नमो नारायणाय" इति अष्टोत्तरशतं जपित्वा पाठं कुर्यात् // अथ मूलाष्टकम् // “ॐ नारायणः परं ज्योतिरात्मा नारायणः परः // नारायणः परं ब्रह्म नारायण नमोस्तुते // 1 // नारायणः परो देवो दाता नारायणः परः // नारा यणः परो ध्याता नारायण नमोस्तु ते॥२॥ नारायणः परं धाम ध्यानं नारायणः परः॥नारायणः परो धमा नारायण नमोस्तु ते॥३॥ नारायणः परो वेद्यो विद्या नारायणः परः॥ विश्वं नारायणस्साक्षान्नारायण नमोस्तु ते // 4 // नारायणादिधिर्जातो जातो नारायणा च्छिवः // जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोस्तु ते // 5 // रविर्नारायणं तेजश्चान्द्र नारायणं महः॥ वह्निर्नारायणः साक्षान्नारायण नमोस्तु ते // 6 // नारायण उपास्यः स्याद्गुरुर्नारायणः परः॥ नारायणः परो बोधो नारायण नमोस्तु ते // 7 // नारायणः फलं मुख्यं | सिद्धिर्नारायणः सुखम्॥सेव्यो नारायणः शुद्धो नारायण नमोस्तु ते॥८॥"इति मूलाष्टकम्॥अथ प्रार्थनादशकम्॥ॐ नारायणस्त्वमेवासि | दहराख्ये हृदि स्थितः // प्रेरकः प्रेर्यमाणानां त्वया प्रेरितमानसः // 1 // त्वदाज्ञां शिरसा धृत्वा जपामि जनपावनम् // नानोपासन मार्गाणां भावहृद्भावबोधकः // 2 // भावार्थकद्भावभूतो भावसौख्यप्रदो भव // त्वन्मायामोहितं विश्वं त्वयैव परिकल्पितम् // 3 // त्वदधिष्ठानमात्रेण सैषा सर्वार्थकारिणी // त्वमेव तां पुरस्कृत्य मम कामान्समर्पय // 4 // न मे त्वदन्यस्त्रातास्ति त्वदन्यन्न हि दैवतम् // त्वदन्यं न हि जानामि पालकं पुण्यरूपकम् // 5 // यावत्सांसारिको भावो मनःस्थो भावनात्मकः // तावसिद्धिर्भवेत्साध्या सर्वथा For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 179 // मं० म०सर्वदा विभो // 6 // पापिनामहमेवाग्र्यो दयालूनां त्वमग्रणीः // दयनीयो मदन्योऽस्ति तब कोऽत्र जगत्रये // 7 // त्वयाप्यहं न पू० ख०१ सृष्टश्चेन्न स्यानव दयालुता // आमयो नैव मृष्टश्चेदोषधस्य वृथोदयः // 8 // पापसंघपरिक्रांतः पापात्मा पापरूपधृक् // त्वदन्यः वि० सं० कोऽत्र पापेत्यखाता मे जगतीतले // 9 // त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव // त्वमेव विद्या च गुरुस्त्वमेव त्वमेव ) तरं०७ सर्व मम देवदेव // 10 // " इति प्रार्थनादशकम् // “प्रार्थनादशकं चैव मूलाष्टकमुदाहृतम् // यः पठेच्छृणुयान्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा अवेत् // 1 // नारायणस्य हृदयं सर्वाभीष्टफलप्रदम् // लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं यदि चेत्तद्विना कृतम् // 2 // तत्सर्वे निष्फलं प्रोक्तं लक्ष्मीः क्रुद्धयति सर्वदा // एतत्संकलितं स्तोत्रं सर्वकर्मफलप्रदम् // 3 // लक्ष्मीहृदयकं चैव तथा नारायणात्मकम् // जपेद्यः संक कालीकत्य सर्वाभीष्टमवाप्नुयात् // 4 // नारायणस्य हृदयमादौ जप्त्वा ततः परम् // लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं जपेन्नारायणं पुनः // 5 // पुनर्नारायणं जप्त्वा पुनर्लक्ष्मीकृतं जपेत् // पुनारायणं जाप्यं संकलीकरणं भवेत् // 6 // एवं मध्ये द्विवारेण जपत्संकलित हि तत् // लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं सर्वकामप्रकाशितम् // 7 // तजपादिकं कुर्यादेतत्संकलितं शुभम् // सर्वान्कामानवामोति आधिव्याधिभयं / हरेत् // 8 // गोप्यमेतत्सदा कुर्यान्न सर्वत्र प्रकाशयेत् // अति गुह्यतमं शास्त्रं प्राप्नं ब्रह्मादिकैः पुरा // 5 // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गोपाल येत्साधयेत्सुधीः // यत्रतत्पुस्तकं तिष्ठेल्टलक्ष्मीनारायणात्मकम् // 10 // भूतपैशाचवेताला न स्थिरास्तत्र सर्वदा // लक्ष्मीहृदयकं प्रोक्त विधिना साधयेत्सुधीः // 11 // भगुवारे च रात्रौ च पूजयेत्पुस्तकद्वयम् // सर्वस्वं सर्वदा सत्यं गोपयेत्साधयेत्सुधीः // 12 // गोप नात्साधनाल्लोके धन्यो भवति तत्त्वतः // 13 // इत्यथर्वणरहस्ये उत्तरभागे श्रीनारायणहृदयं सम्पूर्णम् // अथ विष्णुस्तोत्रम् // ॐ // 18 For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदाय वेदान्सकलान्समुद्रान्निहत्य शंखासुरमत्युदयम् // दत्ताः पुरा येन पितामहाय विष्णुं तमायं भज मत्स्यरूपम्॥ 1 // दिव्यामृ / तार्थ मथिते महाब्धौ देवासुरैर्वामुकिमन्दराभ्याम् // भूमर्महावेगविवर्णितायास्तं कूर्ममाधारगतं स्मरामि // 2 // समुद्रकांची सरिदुत्तरी या वसुंधरा मेरुकिरीटभारा // दंष्ट्राग्रतो येन समुद्धृता भूस्तमादिकोलं शरणं प्रपद्ये // 3 // भक्तातिभंगक्षमयाधिपायस्तंभां। तरालादुदितो नृसिंहः // रिपुं सुराणां निशितैनखायैर्विदारयंतं न च विस्मरामि // 4 // चतुस्समुद्राभरणा धरित्री न्यासाय नालं चरणस्य यस्य // एकस्य नान्यस्य पदं सुराणां त्रिविक्रम सर्वगतं नमामि // 5 // त्रिःसप्तकत्यो नृपतीन्निहत्य यस्त, पणं रक्तमयं पितृत्यः // चकार दोर्दण्डबलेन सम्यक् तमादिशूरं प्रणमामि रामम् // 6 // कुले रघूणां समवाप्य जन्म| विधाय सेतुं जलधेर्जलांतः // लंकेश्वरं यः शमयांचकार सीतापतिं तं प्रणमामि भक्त्या // 7 // हलेन मर्यानमुरान्निकृष्य चकार चूर्ण मुसलपहारैः // यः कृष्णमासाद्य बलं बलीयान् भक्त्या जे तं बलभद्ररामम् // 8 // पुरा सुराणामसु राविजेतुं संभावयञ्छीवरचिह्नवेषम् // चकार यः शास्त्रममोपकल्पं तं मूलभूतं प्रणतोस्मि बुद्धम् // 9 // कल्पावसाने निखिलैः मुरैः / स्वैः संघट्टयामास निमेषमात्रात् // यस्तेजसा स्वेन ददाह भीमो विष्ण्वात्मकं तं तुरगं भजामः // 10 // शंख सुचक्र मुगदां सरोज दोभिर्दधानं गरुडाधिरुढम् // श्रीवत्सचिह्न जगदादिमूलं तमालनीलं हृदि विष्णुमीडे // 17 // श्रीराम्बुधौ शेषविशेषतल्पे Kaशयानमंतःस्मितशोभि वक्रम् // उत्फुल्लनेत्राम्बुजमंबुदाभमायं श्रुतीनामसकत्स्मरामि // 12 // प्रीणयेदनया स्तुत्या जगन्नाथं जगन्म यम् // धर्मार्थकाममोक्षाणामाप्तये पुरुषोत्तमम् // 13 // " इति श्रीविष्णुस्तोत्रं समाप्तम् / / अथ विष्णोरष्टोत्तरशतनामस्तोत्रप्रारंभः / For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० ॐ अष्टोत्तरं शतं नाम्नां विष्णोरतुलतेजसः॥ यस्य श्रवणमात्रेण नरो नारायणो भवेत् // 1 // विष्णुर्जिष्णुर्वषट्कारो देवदेवो वृष पू० खं० 1 कपिः // दामोदरो दीनबंधुरादिदेवो दितेः सुतः // 2 // पुण्डरीकः परानंदः परमात्मा परात्परः // परशुधारी विश्वात्मा कृष्णः कलि वि० 0 कामलापहः // 3 // कौस्तुनोद्भासितोरस्को नरो नारायणो हरिः॥ हरो हरप्रियः स्वामी वैकुण्ठो विश्वतोमुखः // 4 // हृषीकेशो तरं०७ प्रमेयात्मा वराहो धरणीधरः॥ वामनो वेदवक्ता च वासुदेवः सनातनः॥ 5 // रामो विरामो विरजो रावणारी रमापतिः // वैकुण्ठवासी। वसुमान् धनदो धरणीधरः // 6 // धर्मेशो धरणीनाथो ध्येयो धर्मभृतां वरः // सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षस्सहस्रपात् // 7 // सर्वगः सर्ववित्सर्वः शरण्यः साधुवल्लभः // कौसल्यानंदनश्श्रीमान रक्षःकुलविनाशकः // 8 // जगत्कर्ता जगद्धता जगज्जेता जना कार्तिहा // जानकीवल्लभो देवो जयरूपो जलेश्वरः // 9 // क्षीराब्धिवासी क्षीराब्धितनयावल्लभस्तथा // शेषशायी पन्नगारिवाहनो विष्टर / श्रवाः॥ 10 // माधवो मथुरानाथो मोहदो मोहनाशनः // दैत्यारिः पुण्डरीकाक्षो ह्यच्युतो मधुसूदनः // 11 // सोमसूर्याग्नि नयनो। सिंहो भक्तवत्सलः / / नित्यो निरामयश्शुद्धो नरदेवो जगत्प्रभुः // 12 // हयग्रीवो जितरिपुरुपेन्द्रो रुक्मिणीपतिः ॥सर्वदेवमयः श्रीशः सर्वाधारः सनातनः // 13 // सौम्यः सौम्यप्रदः स्रष्टा विष्वक्सेनो जनाईनः॥ यशोदातनयो योगी योगशास्त्रपरायणः // 14 // रुद्रात्मको रुद्रमूर्ती राघवो मधुसूदनः // इति ते कथितं दिव्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् // 15 // सर्वपापहरं पुण्यं विष्णोरमिततेजसः।। दुःखदारियदौर्भाग्यनाशनं सुखवर्द्धनम् // 16 // सर्वसंपत्करं सौम्यं महापातकनाशनम् // प्रातरुत्थाय विभेन्द्रः पठेदेकायमानसः // तस्य नश्यति विपदां राशयः सिद्धिमानुयात् // 17 // इत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं संपूर्णम् // अथ विष्णुसहस्रनामस्तोत्रप्रारंशः // // 180 / For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहादेव उवाच / / "ब्रह्महत्यासहस्राणां पापं शाम्येत्कथंचन // न पुनस्त्वय्यविज्ञाते कल्पकोटिशतैरपि॥१॥ यस्मान्मया कृता स्पर्धा पवित्रं स्यां कथं हरे / / नश्यति सर्वपापानि तन्मां बद सुरेश्वर // 2 // तदाह देवो गोविंदो मम प्रीत्या यथायथम् // 3 // श्रीभगवान वाच // सदा नामसहस्रं मे पावनं मत्पदावहम् // तत्परोऽनुदिनं शंभोः सर्वेश्वर्य यदीच्छसि // 4 // श्रीमहादेव उवाच // तमेव | तपसा नित्यं अजामि स्तोमि चिंतये / / तेनाद्वितीयमहिमो जगत्पूज्योऽस्मि पार्वति // 5 // श्रीपार्वत्युवाच / / तन्मे कथय देवेश यथाहमपि शंकर / / सर्वेश्वरी निरुपमा तव स्यां सहशी प्रभो // 6 / / श्रीमहादेव उवाच // साधुसाधु त्वया पृष्टो विष्णोर्भगवतश्शिवे // नाम्नां सहस्रं वक्ष्यामि मुख्यं त्रैलोक्यमंगलम् // 7 // नारायणाय पुरुषोत्तमाय च नमो महात्मने / विशुद्धसमाधिष्ठाय महाहंसाय धीमहि // 8 // ॐ अस्य श्रीविष्णोःसहस्रनाममंत्रस्य महादेव ऋषिः / अनुष्टुप्छंदः / परमात्मा देवता / सूर्यकोटिप्रतीकाश इति बीजम् / गंगातीर्थोत्तमा शक्तिः। प्रपन्नाशनिपंजर इति कीलकम् // धर्मार्थकाममोक्षार्थे पाठे विनियोगः // ॐ महादेवऋषये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // परमात्मदेवतायै नमः हृदि // 3 // सूर्यकोटिप्रतीकाशबीजाय नमः गुह्ये // 4 // गंगातीर्थोत्तमशक्तये नमः पादयोः॥॥प्रपन्नाशनिपंजरकीलकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 7 // इति ऋष्या दिन्यासः॥ ॐ वासुदेवं परं ब्रह्म इत्यंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ मूलप्रकृतिरिति तर्जनीच्यां नमः // 2 // भूमहावराह इति मध्यमाभ्यां नमः॥३॥ ॐ सूर्यवंशध्वजो राम अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ॐ ब्रह्मादिकमलादिगदासूर्यकेशवमिति कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥५॥शेष इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ ॐ वासुदेवं परं ब्रह्म इति हृदयाय नमः // 3 // ॐ मूलप्रकृतिशिरसे स्वाहा // 2 // For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म. // 18 // ॐ भूमहावराह इति शिखायै वषट् // ३॥ॐ सूर्यवंशध्वजो रामः कवचाय हुं // 4 // ॐ ब्रह्मादिकमलादिगदासूर्यकेशवः पू. खं० 1 नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ दिव्यास्त्र इत्यस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः॥ एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानमावि तं० ॐ विष्णुभास्वत्कीरियांगदवलयगणाकल्पहारोदरांघिश्रोणीभूषं सुवक्षो मणिमकरमहाकुंडलं मंडितांसम् // हस्तोद्यच्चक्रशंखांबुजगदममलं पीतकौशेयवासोविद्युद्भासं समुद्यदिनकरसदृशं पद्महस्तं नमामि // 9 // ॐ वासुदेवः परब्रह्म परमात्मापरात्परम॥ परं धाम परज्योतिः पर तत्त्वं परं पदम् // 10 // परंशिवं परोध्येयः परंज्ञानंपरागतिः। परमार्थः परंश्रेयः परानंदः परोदयः // 11 // परोव्यक्तः परंव्योमपराईः परमेश्वरः // निरामयो निर्विकारो निर्विकल्पो निराश्रयः॥१२॥ निरंजनो निरालंबो निर्लेपो निरवग्रहः // निर्गुणो निष्कलोऽनंतोचिंत्यो सावचलोऽच्युतः // 13 // अतीन्द्रियोऽमितोऽ रोध्योऽनीहोऽनीशोव्ययोऽक्षयः // सर्वज्ञः सर्वगः सर्वः सर्वदः सर्वभावनः // 14 // सर्वशंभुस्सर्वमाक्षीपूज्यस्सर्वस्यसर्वक // सर्वशक्तिः सर्वसारः सर्वात्मा सर्वतोमुखः॥ 15 // सर्वावासः सर्वरूपः सर्वादिस्सर्वदुःखहा // सर्वार्थः सवतोभद्रः सर्वकारणकारणम्॥१६॥सर्वातिशायकः सर्वाध्यक्षः सर्वेश्वरेश्वरः॥ षड्विंशको महाविष्णुर्महागुह्यो महाहरिः॥१७॥ नित्योदितो नित्ययुक्तोनित्यानंदः सनातनः॥ मायापतियोगपतिः कैवल्यपतिरात्मभुः॥१८॥ जन्ममृत्युजरातीतः कलातीतोजवातिगः।। NIपूर्णः सत्यशुद्धयुद्धस्वरूपोनित्यचिन्मयः // 19 // योगिप्रियोयोगमयोभवबंधैकमोचकः॥पुराणः पुरुषः प्रत्यक्चैतन्यपुरुषोत्तमः॥२०॥ है वेदांतवेद्योदु यस्तापत्रयविवर्जितः // ब्रह्मविद्याश्रयोऽलंध्यः स्वप्रकाशः स्वयंप्रतः // 21 // सर्वोपेयउदासीनः प्रणवस्सर्वतस्समः॥ सर्वानवद्योदुष्प्रापस्तुरीयस्तमसमः परः // 22 // कूटस्थः सर्वसंश्लिष्टोवाङ्मनोगोचरातिगः॥ संकर्षणः सर्वहरः कालः सर्वभयंकरः For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kailasagasun Gyanmandir // 23 // अनुलंध्यः सर्वगतिर्महारुद्रोदुरासदः // मूल प्रकृतिरानन्दः प्रज्ञाताविश्वमोहनः // 24 // महामायोविश्वबीजपरशक्तिसुखै ) कभक् // सर्वकाम्योनंतशीलस्सर्वभूतवशंकरः // 25 // अनिरुद्धः सर्वजोबोहृषीकेशो मनःपतिः // निरुपाधिः प्रियो हंसोक्षरः सर्वनियो जकः // 26 // ब्रह्मा प्राणेश्वरः सर्वभूतभृदेहनायकः // क्षेत्रज्ञः प्रकृतिस्वामीपुरुषोविश्वमूत्रधृक् // 27 // अंतर्यामी विधामांतः साक्षीत्रिगुणईश्वरः // योगिमृग्यः पद्मनाभः शेषशायी श्रियःपतिः॥२८॥ श्रीसत्योपास्यपादाजोऽनंतः श्रीः श्रीनिकेतनः // नित्यवक्षः स्थलस्थश्रीः श्रीनिधिः श्रीधरो हरिः // 29 // रम्यश्रीनिश्चयश्रीदोविष्णुः क्षीराब्धिमंदिरः // कौस्तुभोद्भासितोरस्को माधवोजगदातिहा H // 30 // श्रीवत्सवक्षानिःमीमः कल्याणगुणभाजनम् // पीतांबरोजगन्नाथोजगद्धाताजगत्पिता // 31 // जगद्वन्धुर्जगत्स्रष्टाजगत्कर्ता जगन्निधिः // जगदेकस्फुरद्वीयोंनाहवादीजगन्मयः // 32 // सर्वाश्चर्यमयस्सर्वसिद्धार्थः सर्वबीरजित् // मीमोघोद्यमोब्रह्मरुद्राद्युत्कृष्टचे तनः // 33 // शंभोः पितामहोब्रह्मपिताशकाद्यधीश्वरः // सर्वदेवप्रियः सर्वदेववृत्तिरनुत्तमः // 34 // सर्वदेवैकशरणं सर्वदेवैकदै वतम् // यज्ञभुग्यज्ञफलदोयज्ञेशोयज्ञभावनः // 35 // यज्ञत्रातायज्ञपुमान् वनमालीद्विजप्रियः // द्विजैकमानदोहिंस्रः कुलदेवोऽसुरांतकः // 36 // सर्वदुष्टांतकत्सर्वसजनानन्दपालकः // सर्वलोकैकजठरः सर्वलोकैकमण्डलः // 37 // मृष्टिस्थित्यंतकच्चक्री शाङ्ग धन्वागदाधरः॥ शंखभृन्नन्दकीपद्मपाणिर्गरुडवाहनः // 38 // अनिर्देश्यवपुः सर्वः सर्वलोकैकपावनः // अनंतकीर्तिनिःश्रीशः पौरुषः सर्वमंगलः // 39 // सूर्यकोटिप्रतीकाशोयमकोटिविनाशनः // ब्रह्मकोटिजगत्स्रष्टावायुकोटिमहाबलः // 40 // कोटी न्दजगदानन्दीशंभुकोटिमहेश्वरः॥ कवेरकोटिलक्ष्मीबानशत्रुकोटिविनाशनः // 41 // कंदर्पकोटिलावण्योदुर्गकोटिबिमईनः // समुद्र For Private And Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir नित्यःकपालुः सजना मं०म० कोटिगम्भीरस्तीर्थकोटिसमाह्वयः // 42 // हिमवत्कोटिनिष्कम्यःकोटिब्रह्माण्डविग्रहः॥ कोट्यश्वमेधपापन्नोयज्ञकोटिसमार्चनः॥४३॥ पू० ख०। // 18 // सुधाकोटिस्वास्थ्यहेतुःकामधुक्कोटिकामदः // ब्रह्मविद्याकोटिरूपःशिपिविष्टःशुचिःश्रवाः ॥४४॥विश्वंभरस्तीर्थपादःपुण्यश्रवणकीर्तनः | वि• तं० आदिदेवोजगज्जेत्रोमुकुन्दःकालनेमिहा // 45 // वैकंठोऽनंतमाहात्म्यो महायोगीश्वरेश्वरः॥ नित्यतृप्तोनृसद्भावोनिःशंकोनरकांतकः / तरं०७ // 46 // दीनानाथेकशरणविश्वकव्यसनापहा / जगत्क्षमाकतोनित्यःकपालुः सजनाश्रयः // 47 // योगेश्वरःसदोदीणोंवृद्धिक्षय विवर्जितः // अधोक्षजोविश्वरेताः प्रजापतिसमाधिपः॥४८॥ शकब्रह्मार्चितपदःशंभुर्ब्रह्माईधामगः // सूर्यसोमेक्षणोविश्वभोक्तासर्व ) |स्यपारगः।। 49 / / जगत्सेतुर्द्धर्मसेतुरोरिष्ठधरन्धरः // निर्मलोखिललोकेशोनिःशङ्कोऽद्भुतभोगवान् // 50 // रम्यमायोविश्व विश्वोविष्वक्सेनोनगोत्तमः // सर्वःश्रियःपतिर्देव्याःसर्वभूषणभषितः // 51 // सर्वलक्षणलक्षण्यःसर्वदैत्येन्द्रदर्पहा // समस्तदेवसर्वज्ञः IN सर्वदैवतनायकः॥ 52 // समस्तदेवतादुर्गः प्रपन्नाशनिपंजरः // समस्तदेवकवचंसर्वदेवशिरोमणिः // 53 // समस्तभयनिर्भिन्नोभगवान विष्टरश्रवाः // विभुस्सर्वहितोप्यर्कोहतारिःसुरलिप्रदः // 54 // सर्वदैवतजीवेशोब्राह्मणादिनियोजकः // ब्रह्माशंभुपराढियोब्रह्मजेष्ठः शिशुःस्वराट् // 55 // विराभक्तपराधीनःस्तुत्यःसर्वार्थसाधकः // सर्वार्थकर्ताकत्यज्ञःस्वार्थकत्यसदोञ्झितः // 56 // सदानवःसदाभद्रः सदाशांतःसदाशिवः // सदाप्रियः सदातुष्टःसदा पुष्टःसदार्चितः // 57 // सदापूतःपावनायोवेदगुह्योवृषाकपिः // सहस्रनामा त्रियुगश्च | तुमूर्तिश्चतुर्भुजः // 58 // भूतभव्यभवन्नाथोमाहापुरुषपूर्वजः // नारायणोमुंजकेशःसर्वयोगविनिःसृतः // 59 // वेदसारोयज्ञसारःसाम सारस्तपोनिधिः // साध्यश्रेष्ठःपुराणपिनिष्ठाशान्तिपरायणः // 60 // शिवस्त्रिशूलविध्वंसीश्रीकंठकवरप्रदः // नरकृष्णोहरिर्धर्मनन्दनोधर्म | गत्सेतुमसेतासमाधिपः // For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matavian Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir जीवनः // 63 // आदिकर्तासर्वसत्यःसर्वस्वीरत्नदर्पहा // विकलोर्जितकंदर्पउर्वशीढङ्मुनीश्वरः // 62 // आद्यःकविहयग्रीवःसर्ववागी श्वरेश्वरः // सर्वदेवमयोब्रह्मगुरुर्वाग्मीश्वरःपतिः // 63 // अनंतविद्याप्रभवोमूलविद्याविनाशकः // सर्वार्हणो जगजाड्यनाशको मधु सूदनः // 64 // अनन्तमंत्रकोटीशः शब्दब्रह्मैकपावकः // आदि वेदान्वेदकावेदात्माश्रुतिसागरः॥ 65 // ब्रह्मार्थवेदाभरणसर्व विज्ञानजन्मभूः // विद्याराजाज्ञानराजोज्ञानसिंधुरखण्डधीः // 66 // मत्स्यदेवोमहाभुंगोजगदीजवहित्रधृक् // लीलाव्यातानिलांभोधि चतुर्वेदप्रवर्तकः॥६७ // आदिकूमोंखिलाधारस्तृणीकृतजगद्भवः // अमरीकतदेवौधःपीयूषोत्पत्तिकारणम् // 68 // आत्माधारोधरा धारोयज्ञाङ्गोधरणीधरः // हिरण्याक्षहरः पृथ्वीपतिःश्राद्धादिकल्पकः // 69 // समस्तपित्रभीतिघ्नःसमस्तपितृजीवनम् // हव्यकव्यकभुग्भ व्योगुणभव्यैकदायकः // 70 // लोमांतलीनजलधिःक्षोभिताशेषसागरः // महावराहोयज्ञन्नध्वंसनोयाज्ञिकाश्रयः // 71 // नरसिंहो| दिव्यसिंहःसर्वारिष्टार्तिदुःखहा // एकवीरोद्भुतबलोयन्त्रमन्त्रैकभंजनम् // 72 // ब्रह्मादिदुःसहज्योतिर्युगांताग्यतिभीषणः // कोटिवजा धिकनखोगजदुष्पेक्षमूर्तिधृक् // 73 // मातृचक्रप्रथमनोमहामातृगणेश्वरः // अचिंत्योमोघवीव्व्यःसमस्तासुरघस्मरः॥७४॥ हिरण्यक शिपुच्छेदीकालःसंकर्षणःपतिः॥ कृतांतवाहनःसद्यःसमस्तभयनाशनः // 75 // सर्वविघ्नांतकःसर्वसिद्धिदःसर्वपूरकः // समस्तपातक ध्वंसीसिद्धमंत्राधिकाढयः॥ 76 // भैरवेशोहरार्तिघ्नःकाठकल्पोदुरासदः // दैत्यगर्भस्राविनामास्फुटब्रह्माण्डवर्जितः // 77 // स्मृतिमात्रासिलवाताभूतरूपोमहाहरिः // ब्रह्मचर्मशिरःपट्टदिक्पालोऽह्यङ्गभूषणः // 78 // द्वादशार्कशिरोधामारुद्रशीर्षेकनुपूरः // योगिनीयस्तगिरिजारतो भैरवतर्जकः // 79 // वीरचक्रेश्वरोऽत्युग्रो यमारिः कालसंवरः // क्रोधेश्वरोरुद्रचण्डीपारवादीसुदृष्टभाक् // For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं०म० // 183 // d // 80 // सर्वाक्षः सर्वमृत्युश्चमृत्युम॒त्युनिर्वर्तकः // असाध्यस्सर्वरोगनः सवदुर्घहसौम्यकत् // 81 // गणेशकोटिदर्पनोदुः। पू० खं.. सहोऽशेषगोत्रहा // देवदानवदुईषोजगद्भक्ष्यप्रदः पिता // 82 // समस्तदुर्गतित्राताजगद्भक्षकभक्षकः / / उग्रेशोऽसुरमार्जारःवि० सं० कालमूपकाक्षकः // 83 // अनंतायुधदोर्दण्डोनृसिंहावीरभद्रजित् / / योगिनीचक्रगुह्येशः शकारिः पशुमांसभुक् / / 84 // रुद्रोनारायणोभेषरूपशंकरवाहनः।। मेषरूपीशिवत्रातादुष्टशक्तिसहस्रभुक् // 85 // तुलसीवल्लभोवीरोऽचिंत्यमायोऽखिलेष्टदः / / महाशिवः शिवोरुद्रोभैरबैककपालभृत् / / 86 // भिल्लश्चक्रेश्वरश्चक्रोदियमोहनरूपधृक् // गौरीसौभाग्यदोमायानिधिर्मायाभयापहः // 87 // ब्रह्मतेजोभयोब्रह्मश्रीमयश्चत्रयीमयः / / सुब्रमण्योबलिध्वंसीवामनो दितिदुःखहा / / 88 / / उपेन्द्रोनृपतिर्विष्णुः कश्यपान्वयमण्डनः / / बलिस्वाराज्यदः सर्वदेवविप्रात्मदोऽच्युतः / / 89 / / उरुक्रमस्तीर्थपादखिदशश्चत्रिविक्रमः ।व्योमपादः स्वपादांभापवित्रितजग धयः / / 90 // ब्रह्मेशाभिवद्याधितकर्माद्रिधारणः // चित्याद्भुतविस्तारोविश्ववृक्षोमहाबलः / / 91 // बहुमू पराङ्गच्छि गुपत्नीशिरोहरः॥ पापस्तेयः सदापुण्योदैत्येशोनित्यखण्डकः // 12 // पूरिताखिलदेवेशोविश्वार्थकावतारकत् // अमरोनित्यगुप्तात्मा भक्तचिंतामणिः सदा // 93 // वरदः कार्तवीर्यादिराजराज्यप्रदोऽनघः // विश्वश्लाघ्योऽमिताचारोदत्तात्रेयोमुनीश्वरः // 94 // परशक्तिसमायुक्तोयोगानंदमदोन्मदः // समस्तेन्द्रारितेजोहृत्परमानंदपादपः // 95 / / अनसूयागर्भरत्नोभोगमोक्षसुखप्रदः // जमदनि // 183 // कुलादित्योरेणुकाद्भुतशक्तिहृत् // 96 // मातृहत्यादनिल्लेपः स्कंदजिद्विप्रराज्यदः // सर्वक्षत्रांतकबीरदर्पहाकार्तवीर्यजित्॥ 97 // योगीयोगावतारश्चयोगीशोयोगतत्परः // परमानंददाताचशिवाचार्ययशःप्रदः // 98 // भीमः परशुरामश्चशिवाचार्यैकविश्वभूः // For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir शिवाखिलज्ञानकोशीभीष्माचार्योऽग्निदेवतः // 99 // द्रोणाचार्यगुरुविश्वजैत्रधन्याकृतांतकत् // अद्वितीयतमोमूर्तिब्रह्मचयकद| क्षिणः // 10 // मनुश्रेष्ठः सतांसेतुर्महीयान्वृषभोविराट् // आदिराजः क्षितिपितासर्वरत्नैकदोहकत् // 30 // पृथुजन्मायेकद सो ह्रीः श्रीः कीर्तिः स्वयंधृतिः // जगत्तिप्रदश्चक्रवर्तिश्रेष्ठोदुरस्वधृक् // 102 // सनकादिमुनिप्रापद्भगवद्भक्तिवर्द्धनः // वर्णाश्रमादि धागांकःवक्ताप्रवर्तकः // 103 // सूर्यवंशध्वजोरामोराघवः सद्गुणार्गवः // ककुत्स्थवीरताधर्मोराजधर्मधुरंधरः।। 104 // नित्य स्वस्थाशयः सर्वभद्रग्राहीशुभकहा // नवरत्नरत्ननिधिः सर्वाध्यक्षोमहानिधिः // 105 // सर्वश्रेष्ठाश्रयः सर्वशवासयामवीर्यवान् // जगदशीदाशरथिः सर्वरत्नाश्रयोनृपः / / 106 // धर्मः नमस्तधर्मस्थोधर्मद्रष्टाखिलार्तिहृत् // अतीन्द्रोज्ञानविज्ञानपारदृश्वाक्षमाम्बु धिः।। 107 / / सर्वप्रकटः शिष्टेष्टोहर्षशोकायनाकुलः / / पित्राज्ञात्त्यक्तसाम्राज्यः सपत्नोदयनिर्भयः // 108 // गुहादेशापितैश्वर्यः शिवस्प जटाधरः // चित्रकूटाप्तरत्नाद्रिजगदीशोरणेचरः॥ 109 // यथेष्टमोघशस्त्रास्त्रोदेवेन्द्रतनयाशिहा // ब्रह्मन्दादिनतैषीकोमा थे। रचनोविराधहा // 110 // ब्रह्मशापहताशेषदण्डकारण्यपावनः // चतुर्दशसहस्राख्यरक्षोन्नैकशरैकभृत् // 33 // खरारित्रिशिरोd तादूषणनोजनाईनः // जटायुपोनिगतिदः कबंधस्वर्गदायकः // 112 // लीलाधनुः कोट्यपास्तदुन्दुभ्यस्थिमहाचयः // सप्तताल व्यथाकष्टध्वजपातालदानवः / / 113 // सुग्रीवराज्यदोधीमान्मनसैवाभयप्रदः // हनूमद्रद्रख्येशःसमस्तकपिदेहभृत् // 114 // अग्निदेवत्यबाणैकव्याकुलीकतसागरः // सम्लेच्छकोटिवाणकशुष्कनिर्दग्धसागरः॥१५॥ सनागदैत्यधामैकव्याकुलीकृतसागरः॥ समु द्वाद्भूतपूर्वेकबद्धसेतुर्य्यशोनिधिः॥११६॥ असाध्यसाधकोलंकासमूलोत्कर्षदक्षिणः // वरदृप्तजनस्थानपौलस्त्यकुलकंतनः // 17 // For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kabarth.org // 184 // रावणनःप्रहस्तच्छितकुम्भकर्णभिदुग्रहा // रावणैकमुखच्छे नानिश्शंकेन्द्रकराज्यदः // 118 // स्वर्गास्वर्गत्वविच्छेदीदेवेन्द्रादिन्द्रता पू० ख०१ वि.तं. हरः // रक्षोदेवत्वहृद्धाधर्महर्म्यःपुरुष्टुतः // 119 // नातिमात्रदशास्यारिदत्तराज्यविभीषणः // सुधासृष्टिमृताशेषस्वसैन्यजीव च नैककृत् // 120 // देवब्राह्मणनामकधातासामरार्चितः // ब्रह्मसूयेन्द्ररुद्रादियोऽर्चितः सतां प्रियः // 121 // अयोध्याखिला राज्याहःसर्वभूतमनोहरः // स्वाम्यतुल्यकपादत्तोहीनोत्कृष्टैकसत्प्रियः // 122 // स्वपक्षादिन्यायदर्शीहीनार्थोऽधिकमाधकः // व्याध व्याजानुचितकृत्तावलोऽखिलतुष्टिकत्॥१२३॥ पार्वत्यधिकयुक्तात्माप्रियात्यक्तसुरारिजित् // साक्षात्कुशलवत्सनीन्द्राग्निनातोपराजितः / // 124 // कौशलेन्द्रो वीरबाहुःसत्यार्थस्त्यक्तसोदरः॥यशोदानंदनोनन्दीधरणीमण्डलोदयः॥१२५॥ब्रह्मादिकाम्यसान्निध्यसनाथीकत देवतः // ब्रह्मलोकातचांडालाबशेषप्राणिसार्थपः // 126 // स्वर्णीतगर्दभावादिचिरायोध्याबलैककत् // रामोद्वितीयः सौमित्रि || लक्ष्मणप्रहतेन्द्रजित् // 127 विष्णुभक्ताशिवांहःक्षित्पादुकाराज्यनिर्वृतः // भरतोऽसह्यगन्धर्वकोटिनोलवणांतकः // 128 // शत्रुघ्नोवैद्यराडायर्वेदगर्भाषधीपतिः // नित्यानित्यकरोधन्वंतरिय॑ज्ञोजगद्धरः // 129 // सूर्यविघ्नःसुराजीवोदक्षिणेशोद्विजप्रियः // छिन्नमोपदेशार्कतनूजकतमौत्रिकः // 130 // शेषांगस्थापितनरः कपिलःकईत्मात्मजः // योगात्मकध्याननङ्गःसगरात्मजभस्मकत // 131 धोविश्वेन्द्रसुरभीपतिःशुद्धात्मभावितः॥ शंभुत्रिपुरदाहैकस्थैर्य्यविश्वरथोद्धतः॥ 132 // विश्वात्माशेषरुद्रार्थशिरश्छे चा॥१८४॥ दाक्षताकृतिः // वाजपेयादिनामानिर्वेदधर्मपरायणः // 133 // श्वेतदीपपतिःसांख्यप्रणेतासर्वसिद्धिराट् // विश्वप्रकाशितध्यान योगोमोहतमिस्रहा // 134 // भक्तशंभुजितोदैत्यामृतवापीसमस्तपः // महाप्रलयविश्वकोऽद्वितीयोखिलदैत्यराट् // 135 // शेषदेवः For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सहस्राक्षः सहस्रांघिशिरोभुजः // फणीफणिफणाकारयोजितात्यम्बुदक्षितिः // 136 // कालाग्निरुद्रजनकोमुमलावोहलायुधः // नीलांबरोवारुणीशोमनोवाकायदोषहा // 137 // स्वसंतोषतृतिमात्र पातितकदशाननः // बलिसँय्यमनोघोरो रौहिणेयःप्रलंबहा। // 138 // मुष्टिकनोद्विविदहाकालिन्दीभेदनोबलः // रेवतीरमणःपूर्वभक्तिरेवाच्युतायजः / / 139 // देवकीवासुदेवोत्थोदितिकश्यप नन्दनः // वार्ष्णेयःसात्वतांश्रेष्ठःशौरियंदुकुलोद्वहः // 140 // नराकृतिःपूर्णब्रह्मसव्यसाचीपरंतपः / ब्रह्मादिकामना नित्यजगत्पतशैशवः // 141 // पूतनान्नःशकटभिद्यमलार्जुनभंजनः // वत्सासुरारि केशिनोधेनुकारिर्गवीश्वरः // 142 // दामोदरोगोपदेवोयशोदानन्दकारकः // कालीयमईनःसर्वगोपगोपीजनप्रियः / / 143 // लीलागोवर्द्धनयरोगोविन्दोगोकुलोत्सवः // अरिष्टमथनःकामोन्मत्तगोपीविमुक्तिदः // 144 // सद्यःकुवलयापीडघातीचाणूरमर्दनः // कंसारिरुग्रसेनादिराज्यस्थाप्यरि हाऽमरः / / 145 // सुधर्माकितभूलोकोजरासंधबलातकः / / त्यक्तभक्तजरासंधतीमसेनयशःप्रदः / / 146 // सान्दीपनिमृताप त्यदाताकालांतकादिजित् // रुक्मिणीरमणोरुक्मिशासनोनरकांतकृत् / / 147 // समस्तनरकवातासर्वभूपतिकोटिजित् // समस्त मुंदरीकांतोसुरारिगर्लडध्वजः // 148 // एकाकीजितरुद्रार्कमरुदापोऽखिलेश्वरः // देवेन्द्रदर्पहाकल्पद्रुमालंकतभूतलः // 14 // बाणबाहुसहसच्छित्स्कंधादिगणकोटिजित् // लीलाजितमहादेवामहादेवपूजितः // 150 // इन्द्रार्थार्जुननिर्भर्त्सर्जयदःपाण्ड बैंकधृक् // काशीराजशिरश्छेत्तारुद्रशक्तयेकमर्दनः॥ 151 // विश्वेश्वरप्रसादाढ्यःकाशीराजसुताईनः // शंभुप्रतिज्ञापाता च स्वयंभू गणपूजकः // 152 // काशीशगणकोटिघ्नोलोकशिक्षाद्विजार्चकः // शिवतीव्रतपोवश्यःपुराशिववरप्रदः // 153 // गयामुरप्रति 47 For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 185 // 0 ख०, वि.तं. तरं०७ ज्ञाईकस्वांशशंकरपूजकः॥ शिवकन्याव्रतपतिःकृष्णरूपःशिवारिहा // 154 // महालक्ष्मीवपुर्गौरीत्राणो देवलवातहा // विनिद्रमच कुंदै कब्रह्मास्त्रयुवनाश्वहृत् // 155 / / अक्रूरोक्ररमुख्यैकाक्तस्वच्छंदमुक्तिदः / सबालस्त्रीजलक्रीडामृतवापीकतार्णवः // 156 // यमुनापतिरानीलपरिणीतद्विजात्मकः // श्रीदामशभक्तार्थभम्यानीतेन्द्र भैरवः // 157 // दुर्वृत्तशिशुपालैकमुक्तिकोद्धारके श्वरः / आचाण्डालादिकंप्राप्यद्वारकानिधिकोटिकत् // 158 // ब्रह्मास्त्रदग्धगर्भस्थपरीक्षिज्जीवनककत् // पारीणीतद्विजसुताने / तार्जुनमदापहः / 159 // गृढमुद्राकतिग्रस्तभीष्माद्यखिलगौरवः // पार्थार्थखण्डिताशेषदिव्यास्त्रःपाथमोहभत // 160 // ब्रह्मशापच्छलध्वस्तयादवोविभवावहः / / अनंगोजितगौरीशोरतिकांतःसदप्सितः // 161 // पुष्पेषुर्विश्वविजयीस्मरःकामेश्वरीपतिः // ऊपापतिर्विश्वहेतुर्विश्वतृप्ताऽधिपूरुषः।।१६२।। चतुरात्माचतुर्वर्णश्चतुर्वेदविधायकः // चतुर्विश्वैकविश्वात्मासर्वोत्कृष्टामुकोटिषु॥ 163 // आश्रयात्मापुराणर्षिासःशास्त्रसहरकत / महाभारतनिर्माताकवीन्द्रोबादरायणः / / 164 // कृष्णद्वैपायनःसर्वपुरुषार्थकबोधकः / / वेदांतकर्ताब्रह्मैकव्यंजकःपुरुवंशरुत् / / 165 / / बुद्धोध्यानजिताशेषदेवदेवोजगत्प्रियः / / निरायुधोजगजैत्रःश्रीधनोदुष्टमोहनः // 166 // दैत्यदेवबहिष्कर्तावेदार्थश्रुतिगोपकः / / शुद्धोदनिर्नष्टदिष्ठः मुखदः सदसत्पतिः // 167 // यथायोग्याखिलकपःसर्वशून्योऽखिले | ष्टदः / चतुष्कोटिपृथक्तत्त्वप्रज्ञापारमितेश्वरः // 168 // पाषण्डश्रुतिमार्गेण पाषण्डश्रुतिगोपकः / / कल्कीविष्णुयशःपुत्रःकलि कालविलोपकः / / 169 / / समस्तम्लेच्छहस्तघ्नः सर्वशिष्टद्विजातिकत / / सत्यप्रवर्तकोदेवद्विजदीर्घक्षधापहः // 170 // अश्वएवा दिदेवेनपृथ्वीदुर्गतिनाशनः // सद्यःक्ष्मानंतलक्ष्मीकन्नष्टनिःशेषधर्मकृत् / / 171 // अनंतस्वर्गयागैकहेमपूर्णाखिलद्विजः // असाध्यैक // 18511 For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir जगच्छास्ताविश्ववन्द्योजयध्वजः // 172 // आत्मातत्त्वाधिपःकर्तृश्रेष्ठोविधिरुमापतिः / / भर्तुःश्रेष्ठःप्रजेशाग्र्योमरीचिजनकाग्रणीः॥ // 173 // कश्यपोदेवराडिन्द्रः प्रह्लादोदैत्यराट्शशी // नक्षत्रेशोरविस्तेजः श्रेष्ठः शुक्रः कवीश्वरः // 174 // महर्षिराड्भृगुर्विष्णु रादित्यशोरलिः स्वराट् // वायुर्वह्निः शुचिः श्रेष्ठः शङ्करोरुद्रराङ्गुरुः // 175 // विद्वत्तमश्चित्ररथोगंधर्वाग्र्योवसूनमः // वर्णादिर ग्यास्त्रीगौरीशक्त्यग्र्याश्रीश्चनारदः // 176 // देवर्षिराटपाण्डवाग्योऽर्जुनोनारदवादराट् // पवनः पवनेशानोवरुणोयादसाम्पतिः // // 177 // गंगातीर्थोत्तमोत्तंछत्रकांग्यवरौषधम् // अन्नंसुदर्शनाखाग्र्योवज्रप्रहरणोत्तमम् // 178 // उच्चैःश्रवावाजिराजऐरावत इजेश्वरः / / अरुंधत्येकपत्नीशोह्यश्वत्थोऽशेपवृक्षराट् // 179 // अध्यात्मविद्याविद्यात्माप्रणवश्छन्दसांवरः // मेरुगिरिपतिर्मार्गोमासाग्र्यः कालसत्तमः // 180 // दिनाद्यात्मापूर्वसिद्धिः कपिलः सामवेदराट् // तायः खगेन्द्रऋत्वयोवसंतः कल्पपादपः // 181 // दातृश्रेष्ठः कामधेनुरार्तिनाग्र्यः सुरोत्तमः // चिंतामणिर्गुरुश्रेष्ठोमाताहिततमः पिता॥१८२॥ सिंहोमृगेन्द्रोनागेन्द्रोवासुकि धरोनृपः॥ वर्णेशोब्राह्मण श्वांतःकरणाग्र्यन्नमोनमः॥१८३॥इत्येतद्वासुदेवस्य विष्णोर्नामसहस्रकम् // सर्वापराधशमनं परं भक्तिविवर्धनम् // 184 // अक्षयत्र लोकादिसर्वार्थाप्त्यैकसाधनम् // विष्णुलोकैकसोपानं सर्वदुःखविनाशनम् // 185 // समस्तसुखदं सत्यं परं निर्वाणदायकम् // कामक्रोधादिनिःशेषमनोमलविशोधनम्॥१८६॥शांतिदं पावनन्नृणां महापातकिनामपि॥सर्वेषां प्राणिनामाशु सर्वाभीष्टफलप्रदम्॥१८७॥ सर्वविघ्नप्रशमनं सर्वारिष्टविनाशनम् // घोरदुःखप्रशमनं तीव्रदारियनाशनम् // 188 // तापत्रयापहं गुह्यं धनधान्ययशस्करम् // सर्वेश्वर्यप्रदं सर्वसिद्धिदं सर्वकालदम् // 189 // तीर्थयज्ञतपोदानव्रतकोटिफलप्रदम् // अप्रज्ञजाड्यशमनं सर्वविद्याप्रवर्तकम्॥ 190 // For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir में मचा राज्यदं राज्यकामानां रोगिणां सर्वरोगनुत् // बंध्यानां मुतदं चाशु सर्वश्रेष्टफलप्रदम् // 191 // अस्वग्रामविषध्वंसि ग्रहपीडाविना पू० खं० 1 1186 // शनम् // मांगल्यं पुण्यमायुष्यं श्रवणात्पठनाजपात // 192 // सदस्यखिलावेदाः सांगा मंत्राश्च कोटिशः // पुराणशास्त्रं स्मृतयः वि० सं० पठिताः पाठितास्तथा // 193 // जप्त्वास्य श्लोकं श्लोका पादं वा पठतः प्रिये // नित्यं सिद्ध्यति सर्वेषामचिरात्किमुतोऽखिलम्त रं० 7 // 194 // प्राणेन सदृशं सद्यः प्रत्यहं सर्वकर्मसु // इदं भद्रे त्वया गोप्यं पाठयं स्वार्थेकसिद्धये // 195 // नावैष्णवाय दातव्यं विकल्पोपहतात्मने // भक्तिश्रद्धाविहीनाय विष्णुसामान्यदर्शिने // 19.6 // देयं पुत्राय शिष्याय शुद्धाय हितकाम्यया // मत्प्रसादाहते नेदं यहीष्यंत्यल्पमेधसः // 397 // कलौ सद्यः फलं कल्पग्राममेष्यति नारद // लोकानां भाग्यहीनानां येन दुःखं विनश्यति॥१९८॥ क्षेत्रेषु वैष्णवेष्वेतदाऱ्यावर्ते भविष्यति // नास्ति विष्णोः परं सत्यं नास्ति विष्णोः परं पदम् // 199 // नास्ति विष्णोः परं ज्ञानं नास्ति मोक्षो ह्यवैष्णवः // नास्ति विष्णोः परो मंत्रो नास्ति विष्णोः परं तपः // 200 // नास्ति विष्णोः परं ध्यानं नास्ति मंत्रो वैष्णवः // किं तस्य बहुभिर्मनैः किं जपैदुबिस्तरैः॥२०१॥ वाजपेयसहस्रः किं भक्तिर्यस्य जनाईने // सर्वतीर्थमयो विष्णुः सर्वशास्त्रमयः प्रभुः // 202 // सर्वक्रतुमयो विष्णुः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् // आब्रह्मसारसर्वस्वं सर्वमेतन्मयोदितम् // 203 // श्रीपार्वत्युवाच // धन्यासम्यनुगृहीतास्मि कृतार्थास्मि जगद्गुरो // यन्मयेदं श्रुतं स्तोत्रं त्वद्रहस्यं सुदुर्लभम् // 204 // अहो बत महा त्कष्टं समस्तसुखदे हरौ // विद्यमानेऽपि सर्वेशे मूढाः क्लिश्यंति संसृतौ // 205 // यमुद्दिश्य सदा नाथो महेशोपि दिगंबरः॥ जटिलो।" भस्मलिप्ताङ्गस्तपस्वी वीक्षितो जनैः॥२०६॥ अतोऽधिको न देवोस्ति लक्ष्मीकांतान्मधुद्विषः // यत्नत्वं चिंत्यते नित्यं त्वया योगीश्वरेण For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir AIहि // 207 // अतः परं किमधिकं पदं श्रीपुरुषोत्तमात् // तमविज्ञाय तान् मूढा यजते ज्ञानमानिनः // 208 // मुषितास्मि त्वया नाथ चिरं यदयमीश्वरः // प्रकाशितो न मे तस्य दत्ताद्या दिव्यशक्तयः॥२०९।। अहो सर्वेश्वरो विष्णुः सर्वदेवोत्तमोत्तमः // अवदादि गुरुर्मूढैः सामान्य इव लक्ष्यते // 210 // महीयसां हि माहात्म्यं भजमानान्जंति चेत् // द्विषतोऽपि तथा पापानुपेक्ष्यते क्षमालयाः / // 213 // मयापि बाल्ये स्वपितुः प्रजा हृष्टा बुभुक्षिताः॥ दुःखादशक्ताः स्वंपोष्टुं श्रियानाध्यासिताः पुरा // 212 // त्वया धू संवर्द्धिताभिश्च प्रजाभिर्विबुधादयः // विशसद्भिः स्वशत्याद्याः ससुहृन्मित्रवान्धवाः / / 213 // त्वया विना व देवत्वं क्व धैर्य व परि यहः // सर्वे भवंति जीवंतो यातनाः शिरसि स्थिताः॥ 214 // तमृते नैव धर्मार्थी कामो मोक्षोऽपि दुर्लभः // शुधितानां दुर्गतानां कुतो योगसमाधयः।। 215 // सा च संसारसारका सर्वलोकैकपालिका // वश्या सा कमला यस्य त्यत्का त्वामपि शंकर // 216 / / श्रिया धर्मण शौर्यण रूपेणार्जवसंपदा / / सर्वातिशयवीर्यण संपूर्णस्य महात्मनः / / 207 // कस्तेन तुल्यतामेति देवदेवेन विष्णुना / / यस्यांशांशकभागेन विना सर्व विलीयते // 218 // जगदेतत्तथा प्राहुर्दापायैतद्विमोहिता // नास्य जन्म जरा मृत्यु प्राप्यं वार्थमेव वा // 219 // तथापि कुरुते धान्पालनाय सतां कृते // विज्ञापय महादेवं प्रणम्यैकमहेश्वरम् // 220 // अवधार्य तथा साहं कांत कामद शाश्वत // कामाद्यासक्तचित्तत्वात्किं तु सर्वेश्वर प्रभो // 221 / / त्वन्मयत्वात्प्रसादाद्वा शक्नोमि पठितुन्न चेत् / / विष्णोः सहस्रनामैतत्प्रत्यहं वृषभध्वज // 222 // नामैकेन तु येन स्यात्तत्फलं ब्रूहि मे प्रभो // श्रीमहादेव उवाच / / ॐ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे / / सहस्रनामभिस्तुल्यं रामनाम वरानने // 223 // अतः सर्वाणि तीर्थानि जलं चैव | For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० ख.१ // 187 // प्रयागजम् / / विष्णोर्नामसहस्रस्य कलां नाहन्ति पोडशीम् // 224 // इति नारदपंचशक्रोक्तश्रीविष्णोर्नामसहस्रं समाप्तम् / // अथ महापुरुषविद्यारम्भः॥जितं ते पुंडरीकाक्ष नमस्ते विश्वनावन // सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु महापुरुष पूर्वज // 1 // नमो हिरण्यगर्भाय प्रधानव्यक्तिरूपिणे // ॐ नमो वासुदेवाय शुद्धज्ञानस्वरूपिणे ॥२॥देवानां दानवानां च सामान्यमसि दैवतम् // सर्वदा चरणद्वंद्वं ब्रजामि। शरणं तव // 3 // एकस्त्वमसि लोकस्य स्रष्टा संहारकस्तथा // अध्यक्षश्चानुमंता च गुणमायासमावृतः // 4 // संमारमागरं घोरम नंतं क्लेशभाजनम् // त्वमेव शरणं प्राप्य निस्तरंति मनीषिणः // ५॥न ते रूपं न चाकारो नायुधानि न चास्पदम् // तथापि पुरुषा कारो भक्तानां त्वं प्रकाशसे // 6 // नैव किंचित्परोक्षं ते प्रत्यक्षोऽसि न कस्यचित् // नैव किंचिदसाध्यं ते न च साध्योऽसि कस्यचित् | // 7 // कार्याणां कारणं पूर्व वचसां वाच्यमुत्तमम् // योगिनां परमां सिद्धिं परमं ते पदं विदुः // 8 // अहं भीतोऽस्मि देवेश संसारे ऽस्मिन्महाभये // त्राहि मां पुंडरीकाक्ष न जाने शरणं परम् // 9 // कालेष्वपि च सर्वेषु दिक्षु सर्वामु चाच्युत // शरीरेऽपि गतौ चापि वर्तते मे महद्भयम् // 10 // त्वत्पादकमलादन्यन्न मे जन्मांतरेष्वपि // निमित्तं कुशलस्यास्ति येन गच्छामि सद्गतिम् // 11 // विज्ञा | नं यदिदं प्राप्तं यदिदं ज्ञानमूर्जितम् // जन्मांतरेपि मे देव माभूदस्य परिक्षयः॥ १२॥दुर्गतावपि जातायां त्वं गतिस्त्वं मतिर्मम // यदि नाथं च विज्ञेयं तावतास्मि कृती सदा // 13 // आकामकलुषं चित्तं मम ते पादयोः स्थितम् // कामये वैष्णवत्वं तु सर्वजन्मसु केवलम् के // 14 // इति महापुरुषविद्या समाप्ता // श्रीगणेशाय नमः // अथ नृसिंहकवचप्रारंभः // नारद उवाच // इन्द्रादिदवेबूंदेश ईडयेश्वर जगत्पते // महाविष्णोर्नृसिंहस्य कवचं ब्रूहि मे प्रभो // 1 // यस्य प्रपठनाद्विद्वांस्त्रैलोक्यविजयी भवेत् // ब्रह्मोवाच // शृणु नारद 187 // For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra mmm.kobatrm.org Acharya Shri Kailasagasun Gyanmandir वक्ष्यामि पुत्रश्रेष्ठ तपोधन // कवचं नरसिंहस्य त्रैलोक्यविजयी भवेत् // 2 // स्रष्टाहं जगतां वत्स पठनाद्धारणाद्यतः // लक्ष्मीर्जगत्रयं / / पांति संहर्ता च महेश्वरः // 3 // पठनाद्धारणाद्देवा बहवश्च दिगीश्वराः // ब्रह्ममंत्रमयं वक्ष्ये चांतादिविनिवारकम् // 4 // यस्य प्रसा दाद्दर्वासास्त्रैलोक्यविजयी भवेत् // पठनाद्धारणाद्यस्य शास्ता च क्रोधभैरवः // 5 // त्रैलोक्यविजयस्यापि कवचस्य प्रजापतिः // ऋषिश्छंदस्तु गायत्री नृसिंहो देवता विभुः // 6 // सौं बीजं मे शिरः पातु चन्द्रवर्णो महामनुः // 7 // "ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलंतं सर्वतोमुखम् // नृसिंह जीपणं नई मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् // 8 // द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो मंत्रराजः मुरटुमः // कंठं पातु ध्रुवं श्री हृद्भगवते चक्षुषी मम // 9 // नरसिंहाय च ज्वालामालिने पातु कर्णकम् // दीनदंष्ट्राय च तथा अभिनेत्राय नासिकाम् // 10 // सर्वरक्षो नाय च तथा सर्वभूताहिताय च // सर्वज्वरविनाशाय दहदह पदव्यम् // 11 // रक्षरक्ष वर्ममंत्रः स्वाहा पातु मुखं मम // तारादिरामचं दाय नमः पातु हृदं मम // 12 ॥क्लीं पायापार्श्वयुग्मं च तारो नमः पदं ततः // नारायणाय नाभिं च आं ह्रींकोंक्षांचहुं फट् // 13 // पडक्षरः कटिं पातु ॐ नमो भगवते पदम् // वासुदेवाय च पृष्ठं क्लीं कृष्णाय क्लीं ऊरुद्वयम् // 14 // क्लीं कृष्णाय सदा पातु जानुनी च मनूत्तमः / / क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः पायात्पदद्वयम् / / 15 // श्री नृसिंहाय श्रौं च सर्वांगे मे सदावतु / / इति ते कथितं वत्स सर्वमंत्रौघविग्रहम् // 16 // तव स्नेहान्मया ख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् / / गुरुपूजां विधायाथ गृहीयात्कवचं ततः // 17 // सर्व पुण्ययुतो भूत्वा सर्वसिद्धियुतो भवेत् / / शतमष्टोनरं चास्य पुरश्चर्याविधिः स्मृतः / / 18 / / हवनादीन्दशांशेन कृत्वा तत्साधकोत्तमः।।। ततस्तु सिद्धकवचो रूपेण मदनोपमः // 19 // स्पर्धामुद्दय भवने लक्ष्मीर्वाणी वसेन्मुखे // पुष्पांजल्यष्टकं दत्त्वा मूलेनैव पठेत्सकत For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म० // 188 // // 20 // अपि वर्षसहस्राणां पूजानां फलमानुयात् // भूजें बिलिख्य गुटिकां स्वर्णस्था धारयद्यदि // 23 // कंठ वा दक्षिण बाहौ पू० खं० 1 नरसिंहो भवेत्स्वयम् ॥योषिवामभुजे चैव पुरुषो दक्षिणे करे // 22 // विभूयात्कवचं पुण्यं सर्वसिद्धियुतो भवेत् // काकबन्ध्या वि.तं. |च या नारी मृतवत्सा च या भवेत् // 23 // जन्मवन्ध्या नष्टपुत्रा बहुपुत्रवती भवेत // कवचस्य प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः तरं०७ // 24 // त्रैलोक्यं शोभयत्येवं त्रैलोक्यविजयी भवेत् // भूतप्रेतपिशाचाश्च राक्षसा दानवाश्च ये // 25 // तं दृष्ट्वा प्रपलायते / देशाद्देशांतरं ध्रुवम् // यस्मिन्गृहे च कवचं ग्रामे वा यदि तिष्ठति // तद्देशं तु परित्यज्य प्रयांति पतिदूरतः॥ 26 // इति / ब्रह्मसंहितायां त्रैलोक्यमोहनं नाम नृसिंहकवचं समाप्तम् // इति श्रीमंत्रमहार्णये पूर्वखण्डे विष्णुतंत्रे सनमस्तरंगः // 7 // समाप्तमिदं विष्णुतंत्रम्। // 188n For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir For Private And Personal use only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 मं० म० श्रीगणेशाय नमः॥ अथ सूर्य्यतंत्रप्रारंभः // तत्रादौ पटलपारंभः॥ अथ सूर्यमंत्रप्रयोगः॥ मंत्रो यथा-(शारदातिलके)"ॐ ह्रीं घृणिः पू० ख०१ मूर्य आदित्य श्रीं” इति दशाक्षरो मंत्रः॥अस्य विधानम् // अस्य सूर्य्यमंत्रस्य भृगुक्रषिः। गायत्री छंदः / दिवाकरो देवता। ह्रीं बीजम् / श्री शक्तिः / दृष्टादृष्टफलसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ भृगुऋषये नमः शिरसि // // गायत्रीछंदसे नमः मुखे // 2 // दिवाकर देवतायै नमः हृदि // 3 // ह्रींवीजाय नमः गुह्ये // 4 // श्रीशक्तये नमः पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ सत्यतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा-अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ ब्रह्मतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा तर्जनी न्यां नमः // 2 // ॐ विष्णुतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ रुद्रतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा अनामि काभ्यां नमः // 4 // ॐ अग्नितेजो ज्यालामणे हुं फट् स्वाहा कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ सर्वतेजो ज्वालामणे हुं फट स्वाहा करतलकरपृष्ठात्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ सत्यतेजो ज्वालामणे हूं फट् स्वाहा हृदयाय नमः // 1 // ॐ ब्रह्मतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ विष्णुतेजो ज्वालामणे हूं फट् स्वाहा शिखायै वषट् // 3 // ॐ रुद्रतेजो। ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा कवचाय हुं // 4 // ॐ अमितेजो ज्वालामणे हूं फट स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ सर्वतेजो ज्वाल लामणे हुं फट् स्वाहास्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ ॐ आदित्याय नमः शिरसि // 3 // ॐ ए रवये नमः // मुखे // 2 // ॐ उं भानवे नमः हृदये // 3 // ॐ ई भास्कराय नमः गुह्ये // 4 // ॐ अं सूर्याय नमः पादयोः // 5 // इति // मूर्तिन्यासः॥ ॐ ॐ नमः शिरसि // 1 // ॐ नमः मुखे // 2 ॥ॐ णिं नमः कंठे // 3 // ॐ सूं नमः हृदि // 4 // ॐ For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shellssagaur yanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra > नमः कुक्षौ // 5 // ॐ आं नमः नाभौ // 6 // ॐ दि नमः लिंगे // 7 // ॐ त्यं नमः पादयोः॥८॥ इति मंत्रवर्णन्यासः॥ एवं न्यासविधि कृत्वा ध्यायेत्॥ अथ ध्यानम् // रक्ताजयुग्माभयदानहस्तं केयरहारांगदकुंडलाढ्यम्॥ माणिक्यमौलिं दिननाथमीडे बंधूक कांतिं विलसत्रिनेत्रम् // 1 // इति ध्यात्वा सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिसूर्यमंडलाय द्वादशकलात्मने इत्यंत पीठदेवतां संपूज्य पीठशक्ति पूजयेत् // तद्यथा-पूर्वादिक्रमेण // ॐ रां दीतायै नमः // 1 // ॐ >> सूक्ष्माय नमः // 2 // ॐ हं जयायै नमः॥३॥ ॐ रै भद्रायै नमः // 4 // ॐ 3 विभूत्यै नमः // 5 // ॐ बों विमलायै नमः // 6 // ॐ वा अघोरायै नमः // 7 // ॐ रं विद्युताय / KIनमः // 8 // मध्ये ॐ रः सर्वतोमुख्यै नमः // 9 // इति पीठशक्तीः मपूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रमग्न्युत्नारणपूर्वकं ब्रह्मवि प्णुशिवात्मकाय सौराय योगपीठाय नमः // इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्ठां च कृत्या पुनर्व्यात्वा “ॐ खं खखोल्कायनमः" इति मंत्रेण मूर्ति प्रकल्प्य आवाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात् // तत्र क्रमः // पुष्पांजलिमादाय "ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः / अनुज्ञां सूर्य मे देहि परिवारार्चनाय मे // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलि च दत्त्वा आवरणपूजामारभेत्॥ षट्कोणकेसरेषु अग्निकोणे / सत्यतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा हृदयाय नमः हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः इति सर्वत्र॥१॥ नितिकोणे / ॐ ब्रह्मतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा शिरसे स्वाहा शिरःश्रीपा०॥२॥वायव्ये ॐ वि बष्णुतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा शिखायै वषट् शिखाश्रीपा० // 3 // ऐशान्ये ॐ रुद्रतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा कवचाय कहुँ कवचश्रीपा० // 4 // पूज्यपूज्यकयोमध्ये / ॐ अनितेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट् नेत्रश्रीपा० // 5 // For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं• म देवतापश्चिमे / ॐ सर्वतेजो ज्वालामणे हुं फट् स्वाहा अस्वायफ्टै अस्वश्रीपा० // 6 // इति पडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय सं०१ // 19 // मलमुच्चार्य "ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा। पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोमध्ये प्राची प्रकल्प्य प्राच्यादिक्रमेण चतु दिक्षु ॐ ॐ आदित्याय नमः आदित्यश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 1 // ॐ यं खये नमः / रविश्रीपा० // 2 // ॐ 0 भानवे नमः भानुश्रीपा०॥३॥ ॐ ई भास्कराय नमः / भास्करश्रीपा० // 4 // इति संपूज्य आग्नेय्यादिविदिक्ष च ऊं ऊपायै नमः। ऊपाश्रीपा०॥ 5 // ॐ अं प्रज्ञायै नमः प्रज्ञाश्रीपा० // 6 // ॐ प्रभायै नमः प्रभाश्रीपा० // 7 // ॐ संध्यायै नमः संध्या श्रीपा०॥ 8 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / / इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽष्टदलायेषु पूर्वादिक्रमेण॥ ॐ बायै नमः। ब्राह्मीश्रीपा० // 1 // ॐ माहेश्वर्यै नमः / माहेश्वरीश्रीपा० // 2 // ॐ कौमार्य नमः / कौमारीश्रीपा० // 3 // ॐ वैष्णव्यै नमः / / वैष्णवीश्रीपा० // 4 // ॐ वारायै नमः / वाराहीश्रीपा० // 5 // ॐ इन्द्राण्यै नभैः / इन्द्राणीश्रीपा०॥ 6 // ॐ चामुंडाये। नमः / चामुंडाश्रीपा० // 7 // ॐ महालक्ष्म्यै नमः / महालक्ष्मीश्रीपा०॥ 8 // स्वपुरतः / ॐ अरुणाय नमः / अरुणश्रीपा०॥ on 9 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो भूपुरात्यंतरे पूर्वादिक्रमेण / ॐ चन्द्राया। ॐ नमः। चन्द्रश्रीपा० // 3 // ॐ मंगलाय नमः / मंगलश्रीपा० // 2 // ॐ बुधाय नमः / बुधश्रीपा० // 3 // ॐ बृहस्पतये // 190 // नमः / बृहस्पतिश्रीपा० // 4 // ॐ शुक्राय नमः शुक्रश्रीपा० // 5 // ॐ शनैश्चराय नमः / शनैश्चरश्रीपा० // 6 // ॐ राहये। For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सूर्यपूजनयन्त्रम्. CIAL नमः / राहुश्री मा० // 7 // ॐ केतवे नमः। केतुश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ ग्रहान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति चतुर्थावरणम् त॥ 4 // ततो भूपरे पूर्वादिक्रमेण // ॐ लं इन्द्राय नमः / इन्द्रश्रीपा० // ॐ रं अग्नये नमः / अग्निश्रीपा० // 2 // ॐ मं यमाय नमः यमश्रीपा० // 3 // ॐ शं नितये नमः / निर्कनिश्रीपा० // 4 // ॐ वं वरुणाय नमः / वरुणश्रीपा० // 5 // ॐ यं वायरे नमः। वाय श्रीपा० ॥६॥ॐ के कुबेराय नमः। कुबेरश्रीपा० // ७॥ॐ हं ईशानाय नमः / ईशानश्रीपा० // 8 // इन्द्रेशानयोर्मध्ये / ॐ आँबामणे नमः ब्रह्मश्रीपा०॥ 9 // ॐ ह्रीं अनंताय नमः। अनन्तश्रीपा०॥10 इति दिक्षालान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति पंचमावरणम // 5 // तदा।। ॐ वं बजाय नमः // 1 // ॐ शं शक्तये नमः // 2 // ॐ दं दंडाय नमः ॥३॥ॐ खं खड़ाय नमः // 4 // ॐ पंपाशाय नमः ॥५॥ॐ अं अंकुशाय नमः // 6 // ॐ गं गदायै नमः // 7 // ॐ त्रिं ल्कायन द? For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra Acharya Shei Katassagasul Gyanmandir मं०म०त्रिशूलाय नमः // 8 // ॐ पं पद्माय नमः // 9 // ॐ चं चक्राय नमः // 10 // इत्यवाणि पूजयेत् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिपू० ख०१ नीराजनांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / / अस्य पुरश्चरणं दशलक्षजपः // दशसहस्रहोमः // तनदशांशेन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च मू० तं० कुर्यात् // एवंकते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् / तथा च / “दशलक्षं जपेन्मंत्रं समिद्भिः क्षीरशा / तरं० 8 खिनाम् // तत्सहस्रं प्रजुहुयात्क्षीराक्ताभिजितेंद्रियः॥ 3 // एवं संपूज्य विधिवद्धास्करं भक्तवत्सलम् // दद्यादयं प्रतिदिनं वारे वा तस्य चोदिते // 2 // अथार्यविधानम् // प्रभात मंडलं कृत्वा पूर्ववत्पीठमर्चयेत् // पात्रं ताम्रमयं प्रस्थतोयग्राहि मनोरमम् // 3 // विधाय तत्र मनना पुरयेनच्छुभोदकैः // कुंकुम रोचनं राजीरक्तचंदनवैणवान् // 4 // करवीरजपाशालीकुशश्यामाकतंडुलान् // निक्षिपेत्सलिले तस्मिन्नैक्यं संकल्प्य भानुना // 5 // सांगमभ्यर्चयेत्तस्मिन्भास्करं प्रोक्तलक्षणम् / / गंधपुष्पादिनैवेद्यैर्यथाविधि विधानवित // 6 // तद्विधाय जपेन्मंत्रं सम्यगष्टोनरं शतम् / / पुनः भंपूज्य गंधाद्यैर्जानुन्यामवनीं गतः // 7 // आमस्तकं तदुद्धृत्य व्योनि साव करणे खौ / / दृष्टिं विधाय स्वैकेन मूलमंत्र धिया जपन् / // 8 // दद्यादयं दिनेशाय प्रसन्नेनांतरात्मना॥ कृत्या पुष्पांजलिं भूयो जपेदष्टो , नरं शतम् / / 9 / / यावदर्घामृतं भानुः समादने निजैः करैः / / तेन तृमो दिनमणिर्दद्यात्तस्मै मनोरथान् / / 10 / / अर्घदानमिदं पुंसा! मायुरारोग्यवर्द्धनम् // धनधान्यपशुक्षेत्रपुत्रमित्रकलत्रदम् // 11 // तेजोवीर्ययशःकांतिविद्याविभवभाग्यदम् / / गायत्र्युपासनाशक्तः संध्यावंदनतत्परः।। दशवर्ण जपन्विषो नैव दुःखमवानुयात् // 12 // इति सूर्यदशाक्षरमंत्रप्रयोगः // इति सूर्यपटलं समानम् || // अथ सूर्यपद्धतिप्रारंभः // पूर्वकत्यं कृत्वा पुरश्चरणदिवसे बाले मुहूर्त चोत्थाय प्रातःस्मरणं कुर्यात् / अथ सूर्यप्रातःस्मरणम् / ॐ // 191 / / For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं रूपं हि मंडलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि // सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमाचंत्य / रूपम् // 1 // प्रातर्नमामि तरणिं तनुवाङ्मेनाभिर्ब्रह्मेन्द्रपूर्वकसुरैर्नुतमचिंतं च // वृष्टिप्रमोचनविनिग्रहहेतुभूतं त्रैलोक्यपालनपरं त्रिगु, णात्मकं च // 2 // प्रातर्भजामि सवितारमनंतशक्ति पापोवशत्रुभयरोगहरं परं च // तं सर्वलोककलनात्मककालमूर्ति गोकण्ठबंधन विमोचनमादिदेवम् // 3 // श्लोकत्रयमिदं भानोः प्रातः प्रातः पठेनु यः // स सर्वव्याधिनिर्मुक्तः परं सुखमवानुयात् // 4 // इति प्रातःस्मरणं कृत्वा शौचादिकं विधाय स्नानं च कुर्यात् // ततः पूजागृहमागत्य नित्यनैमित्तिकं विधाय स्वासने प्राङ्मुख उपविश्य भूत शुद्धिप्राणप्रतिष्ठांतर्मातृकाबहिर्मातृकासृष्टिस्थितिसंहारमातृकान्यासं च कृत्वा प्रयोगोक्तन्यासादिकं च कुर्यात् // ततो वामभागे श्रीगुरुग्यो नमः // 1 // दक्षिण गणपतये नमः // 2 // मध्ये स्वेटदेवतायै नमः // 3 // इति नत्वा पीठपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले मूर्यमण्डले वा मध्यभागे ॐ में मंडूकाय नमः // 1 // ॐ कं कालानिरुद्राय नमः // 2 // ॐ अं आधारश तये नमः // 3 // ॐ कू कर्माय नमः // 4 // ॐ अं अनन्ताय नमः // 5 // ॐ पृ पृथिव्यै नमः // 6 // ॐ श्री क्षीरसाग चराय नमः // 7 // ॐ रं रत्नदीपाय नमः // 8 // ॐ रं रत्नमण्डपाय नमः // 9 // ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः // 10 // ॐ रं रत्नवेदिकायै नमः // 11 // ॐ रं रत्नसिंहासनाय नमः // 12 // आनेय्याम् / ॐ धं धर्माय नमः // 13 // नैर्ऋत्याम। ॐ ज्ञां ज्ञानाय नमः // 14 // वायव्ये / ॐ 0 वैराग्याय नमः // 15 // ऐशान्ये / ॐ ऐ ऐश्वर्याय नमः // 16 // पूर्वे / ॐ अं अधर्माय नमः // 17 // दक्षिणे / ॐ अं अज्ञानाय नमः // 18 // पश्चिमे / ॐ अं अवैराग्याय नमः // 11 // उत्तरे / For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० // 19 // ॐ अं अनैश्वर्याय नमः // 20 // पुनः पीठमध्ये / ॐ आ आनन्दकन्दाय नमः॥ १॥ॐ से सविनालाय नमः // 22 // प० ख०१ ॐ सं सर्वतत्त्वकमलासनाय नमः // 23 // ॐ प्रतिमयपत्रायो नमः // 24 // ॐ विं विकारमयकेसरेत्यो नमः // 25 // मूतं. ॐ पंचाशद्वर्णाट्यकर्णिकाल्यो नमः // 26 // ॐ अं अर्कमण्डलाय द्वादशकलात्मने नमः // 27 // इति "मंडूकादिसूर्यमंडलाय तरं०८ द्वादशकलात्मने” इत्यंत पीठदेवताः संपूज्य प्रयोगोक्तनवपीठशक्तीः पूजयेत् // ततः शंखस्थाने ताम्रपात्रं बंटां च सर्वदेवोपयोगिपद्धति / धीमार्गेण संस्थापनशातपुप्पादोश्च पूजोपकरणार्थ स्वदक्षिणपाच निधाय मलेन नमः इति जलेन संप्रोक्ष्य जलाथै बृहत्पात्र व्यजनं छत्रादर्शचामराणि च स्वयाने स्थापयेत् // ततः स्वर्गादिनिर्मित यंत्रं मूति वा ताम्रपाने निधाय यतेनात्यज्य नदुपरि दुम्बधारा जल धारां च दत्त्वा स्वच्छवण संशोप्य आसनमंत्रण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य देशकालो स्मृत्वा मम श्रीमूर्यनारायणनूतनयो / मूर्ती वा प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये / इति संकल्प्य प्रतिष्ठां कुर्यात् / / तथथा। ॐ अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः / / ऋग्यजुः तामानि च्छन्दांसि / क्रियामयःभाणाख्या देवता। आं बीजम् / ह्रीं शक्तिः। की कीलकम् / अस्य नूतनयंत्रे मूतौ वा प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः // इति जलं शिवा करेगाच्छाय। ॐ ओं ह्रीं को पॅरलॅवषसहहंसः सोहं अस्य सूर्यनारायणसपरिवारयंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः // 1 // पुनः ॐ आंहींकायरलँशषसहँ हंसः सोहं अस्य सूर्यनारायणसपरिवारयंत्रस्य जीव इह स्थितः // 2 // पुनः। ॐ आंहींकों यरलँचशषसहहंसः सोहं अस्य सूर्यनारायणसपरिवारयंत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि ॥३॥पुनः / ॐ आह्रीं कौं पॅरलॅबाँसहहंसःमोहं अस्य सूर्यनारायणसपरिवारयंत्रस्य वाङ्मनस्त्वक चक्षुःश्रोत्रजिह्वाशणपाणिपादपायपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kasagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org तिष्ठतु स्वाहा / / 4 // इति प्राणान् प्रतिष्ठाप्य यः प्राणतोनिमिषतोमहित्येविधेम इतिमन्निति त्रिवारं पठेत् // ॐ मनोजतिर्जुपतासुप्रतिष्ठान प्रतिया // इत्युत्वा संस्कारसिद्धये पंचदश प्रणवावृत्तीः कृत्वा अनेन मूर्यनारायणसपरिवारयंत्रस्य गर्भाधानादिपंचदशसंस्कारान्संपाद यामि / इति वदेत / ततः "ॐ यंत्रराजाय विद्महे महायंत्राय धीमहि // तन्नो यंत्रः प्रचोदयात्॥” इत्यष्टोनरशतमभिमंत्र्य मूलदेवतां ध्यात्वा मूलन मूर्ति प्रकल्प्याबाहयेत॥ तद्यथा / अक्षतानादाय / “ॐ देवेश भक्तिसुलभ परिवारसमन्वितायावत्त्वां पूजयिष्यामि तावद्देव इहावह" // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीमूर्यनारायणाय नमः / इहागच्छ इह तिष्ठ इत्याबाहनम् // 1 // "ॐ अज्ञानाडुमन / स्त्विाहा बैंकल्यान्साधनस्य च // यदि पूर्ण भवेत्कृत्यं तदाप्यभिमुखो भव" // 1 // ॐ मर्यनारायणाय नमः इह संमुखो भव // इति सम्मुखीकरणम् ॥२॥"ॐ यस्य दर्शनमिच्छंति देवाः स्वाभीष्टसिद्धये // तस्मै ते परमेशाय स्वागतं स्वागतं च ते"॥१॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीमूर्यनारायणाय नमः सुस्वागतं समर्पयामि // इति सर्वत्र // 3 // “ॐ देवदेव महाराज प्रियेश्वर प्रजापते // आसनं दिव्यमीशान दास्येहं परमेश्वर" // 1 // इत्यासनम् // 4 // इत्यामनं दत्त्वा करो बद्धा प्रार्थयेत् // “ॐ स्वागतं दवदेवश मद्भाग्यात्वमिहागतः // प्राकृतं त्वमदृष्ट्वा मां बालवत्परिपालय // 1 // इति प्रार्थयित्वा पाद्यादिपृजनं कुर्यात् // अथ पाद्यादि। पूजनम् // "ॐ यद्भक्तिलेशसंपर्कात्परमानन्दसंभवः // तस्मै ते चरणाजाय पाद्यं शुद्धाय कल्पये" 1 इत्यर्बोदकेन पाद्यं दद्यात॥ 1 // “ॐ देवानामपि देवाय देवानां देवतात्मने // आचामं कल्पयामीश शुद्धानां शुद्धिहेतवे"॥१॥इत्याचमनम् // 2 // ॐ तापत्रय हरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् // तापत्रयविमोक्षाय तवायं कल्पयाम्यहम् // 1 // इत्यघोंदकेनायं दद्यात् // 3 // ॐ सर्वा For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir // 193 // मं०म०कालष्यहीनाय परिपूर्णमुखात्मने // मधुपर्कमिदं देव कल्पयामि प्रसीद मे" // // इति मधुपर्कम् // 4 // “ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिबीपि पू० ख०१ यस्य स्मरणमात्रतः॥ शुद्धिमानोति तस्मै ते पनराचमनीयकम् // 3 // इत्याचनीयम॥५॥"ॐ स्नेहं गृहाण स्नेहेन लोकनाथ महाशय सूतं. सर्वलोकेषु शुद्धात्मन्ददामि स्नेहमुत्तमम्" // 3 // इति सुगंधर्तलम् // 6 // "ॐ गंगासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलैः // नापितोऽसि | तरं० 8 मया देव तथा शांतिं कुरुष्व में" // 1 // इति जलस्नानम् // 7 // ॐ पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करायुतम् // पंचामृतं मया नीत मानार्थ प्रतिगृह्यताम् // 1 // इति पंचामृतेन नापयित्वा पुनः जलनानं च कारये // 8 // "ॐ सर्वभूषादिके सौम्ये लोकलज्जानिबारणे // मग वापादिते तुत्यं बासमी प्रतिगृह्यताम् // 3 // इति रक्तवस्त्रम् // 5 // "ॐ नवभिस्तंतुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीत चोनरीयं गृहाण परमेश्वर" // 1 // इति यज्ञोपवीतम् // 10 // "स्वभावसुंदरांगाय सत्यासत्याश्रयाय ते // भूषणानि विचित्राणि कल्पयामि मुरार्चित // 1 // दक्षहस्तांगुटस्पृष्टानामिकात्मिकया मुद्रया भूषणानि दद्यात // 11 // "ॐ श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम् // विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्" / अंगुष्टकनिष्ठामूललग्ने गंधमुद्रा इति गंधम् / / 12|| "ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः / / मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर" ||1|| सर्वागुलीभिर्दद्यात् / / इत्यक्षतान // 13 // “ॐ माल्या दीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो॥मयाऽऽनीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर"|| तर्जन्यावंगुष्ठमूललग्ने पुष्पमुद्रा इति पुष्पम्॥१४॥ एवं पुष्पांतं पूजयित्वा देवाज्ञया प्रयोगोतावरणपूजां कृत्वा धुपादिपूजनं कुर्यात् / / अथ धूपादिपूजनम् ॥"ॐ वनस्पतिरसोडूतो गंधाढ्यो गंध उनमः // आधेयः सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम्" // 1 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भवः स्वः सांगाय सपरिवाराय सवाहनाय सायुधाया। 5 // For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीसूर्य्यनारायणाय नमः॥धूपं समर्पयामि / इति सर्वत्र॥तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगे धूपमुद्रया नाभिदेशतः तां धूपयित्वा देवस्य वामभागे धूपपात्रं निधाय शंखजलमुत्सृजेत् // इति धूपम् // 1 // ततः दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य मंत्राक्षरतंतुभिर्वर्ती निक्षिप्य प्रणवेन (ॐ)प्रज्वाल्य घंटा वादयन नेत्रादिपादपर्यंतं दीपं प्रदर्शयेत्॥"ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः॥स बाह्याध्यंतरज्योतिदीपायं प्रतिगृह्यताम्"॥ मूलं पठित्वा ॐ भू० स० दीपं समर्पयामि॥इति पठित्वा देवस्य दक्षिणभागे निधाय शंखजलमुत्सृज्य मध्यमांगुष्ठलग्ने दीपमुद्रां प्रदर्शयेत ॥२॥ततो देवस्याग्रे देवदक्षिणतो वा जलेन चतुरनं मंडलं कृत्वा स्वर्णादिनिर्मित भोजनपात्रं संस्थाप्य तन्मध्ये षड्ररमोपेतं विविधप्रकार नैवेद्यं निधाय " ॐ ह्रीं नमः " इत्यय॑जलेन प्रोक्ष्य मूलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिणहस्तोपरि तादृशं वामं निधाय नैवेद्यनाच्छाद्य (ॐ8 यँ ) इति वायुषीजेन षोडशधा संजप्य वायुना तद्गतदोषान संशोप्य ततो दक्षिणकरतले तत्पृष्ठलग्नं वामकरतलं कृत्वा नैवद्यं प्रदर्थ (ॐ रं) इति वह्निबीजेन षोडशवारं संज्यप्य तदुत्पन्नाग्निना तद्दोषं दग्ध्वा ततो वामकरतले (ॐ वं ) इति अमृतबीजं विचित्य तत्पृष्ठल| नं दक्षिणकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्श्य ( ॐ वं ) इति सुधाबीजं षोडशवारं संजप्य तदुत्थामृतधारया प्लावितं विज्ञाव्य मूलेन प्रोक्ष्य धेनु / मुद्रां प्रदर्श्य मूलेनाष्टधाभिमंत्र्य गंधपुष्पाभ्यां संपूज्य देवस्योगतं तेजः स्मृत्वा वामांगुष्टेन नैवेद्यपात्रं स्पृष्टा दक्षिणकरेण जलं गृहीत्वा "ॐ| सत्पात्रसिद्धं सुहविविविधानेकभक्षणम् // निवेदयामि देवेश सानुगाय गृहाण तत् // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भू० सां० नैवेद्यं समर्पयामि के है। इति भूतले देवदक्षिणे जलं क्षिप्त्वा वामहस्तेन अनामामूलयोरंगुष्ठयोगे ग्रासमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति नैवेद्यम् // 3 // "ॐ नमस्ते देव देवेश संवतृतिकरं परम् // परमानंदपूर्ण त्वं गृहाण जलमुत्तमम्"॥ 1 // इति जलम् // ४॥"ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरण For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 2 . . // 19 // मात्रतः // शुद्धिमामोति तम्मै ते पुनराचमनीयकम" // 2 // इत्याचमनं दत्त्वा मूलेन गंडूषार्थ जलं दद्यात // ५॥"ॐ पूगीफलं महार दिव्यं नागवल्लीदलैर्यतम् // एलाचूर्णादिकैर्युक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम्"॥ 3 // इति तांबूलम्॥ 6 // "ॐ इदं फलं मया देव स्थापित त्यापितमूतं. पुरतस्तव // तेन मे मफलावानिर्भवेजन्मनिजन्मनि" // 3 // इति फलम् // 7 ॥"ॐ कदलीगर्भसंभृतं कर्पूरं च प्रदीपितम् / आराति यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव"॥३॥इति कर्पूरार्तिक्यम्॥८॥"ॐ यानि कानि च पापानि जन्मांतरकतानि वै // तानि सर्वाणि नश्यंत दक्षिणपदेपदे॥१॥” इति सप्तप्रदाक्षिणाः कृत्वा “ॐ प्रपन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहार्णवात"॥इति वदन साष्टांगं प्रणमेत्॥१॥ "ॐ नानासुगंधपुप्पाणि यथाकालोद्भवानि च॥ पुष्पांजलिं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥१॥"इति पुष्पांजलिंः॥१०॥ इति पुष्पांजलि दत्त्वा ततः स्तुतिपाठेन स्तुत्वा बद्धांजलिः प्रार्थयेत् // तद्यथा // "ॐ ज्ञानतोज्ञानतो वाथ यन्मया क्रियते शिव // मम कृत्यमिदं सर्वमिति दे। व क्षमस्व मे"।। 1 // अपराधसहस्राणि क्रियतेहर्निशं मया // दामोध्यमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर // 2 // अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोपरः सहतां लोके केवलं स्वामिनं विना // 3 // भूमौ स्खलितपादाना भूमिरेवावलंबनम् / / त्वयि जातापराधानां त्वमेव शरणं शिव॥४॥इति बद्धांजलिः संप्राय ॐ यदुक्तं यदि भावेन पत्रं पुष्पं फलं जलम्॥निवेदितं च नैवेद्यं गृहाण मानुकंपय॥१॥"इति पठित्या. 5 देवस्य दक्षिणको पूजार्पणजलं दद्यात् // ततो मालामादाय सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण मालायाः संस्कारान् कृत्वा अशक्तश्चेत् “ॐ ही मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि // चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे मिद्धिदा भव // 1 // " इति मालां संप्रार्थ्य "ॐ अविनं // 19 // कुरु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा” इति मंत्रेण दक्षिणहस्ते मालामादाय हृदये धारयन स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि मंस्थाप्य For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ज्येष्ठायेण नामायित्वा एकाग्रचिनो मंत्रार्थ म्मरन यथाशक्तिः प्रातःकालमारय मध्यंदिनं यावत् मूलमंत्र जपेत् // नित्यमेव सनाना जपाः कार्याः / न तु न्यूनाधिकाः / ततो जपांते “ॐ वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा मम // शुभं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्य च सर्वदा / / तेन सत्येन शिद्धिं मे देहि मातर्नमोस्तु ते // 1 // " ॐ ह्रीं मिद्धयै नमः / इति मालां शिरमि निधाय गोमुखीरहस्ये स्थापन यत : नाशुचिः सर्शयेत् / नान्यस्मै दद्यात् / अशुचिस्थाने न निधापयेत् / स्वयोनिवद्भुनं कुर्यात् // ततः / कवचस्तोत्रसहस्रनामादिक पठित्वा पुनः मूलमंत्रोक्तऋप्यादिन्यामं हृदयादिषडंगल्यामं च कत्या पंचोपचारैः पूज्य पुष्पांजलिं च दत्त्वा जपापणं कुर्यात् / / तद्यथा / अर्योदकेन चुल कमादाय // "ॐ गुह्यातिगुह्यगोता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् // सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रमादाययि स्थितिः // 1 // इतः पूर्व प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो जायत्स्वममुषुपितुर्यावस्थामु बाचा मनसा कर्मणा हस्तान्यां पट्यामुदरेण शिश्ना यत् स्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तन्मयं ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा // मदीयं च सकलं श्रीसूर्यनारायणायार्पयामि // ॐ तत्सदिति ब्रह्मार्पण भवतु इति देवद क्षिणकरे जलसमर्पणं कृत्वा कृतांजलिपूर्वकक्षमापनं पठेत् // तथा च // ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् // पूजाभाग न जानामि त्वं गतिः परमेश्वर // 1 // मंत्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं मुरेश्वर // यत्यूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे // 2 // यदक्ष पदन्नटं मात्राहीनं च यद्भवेत् // तत्सर्व शम्यतां देव प्रमीद परमेश्वर // 3 // कर्मणा मनसा वाचा बनो नान्यो गतिर्मम // अंतश्चरेण भूतानि इष्टस्त्वं परमेश्वर // 4 // अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम // तस्मात्कारुण्यभावेन क्षमस्व परमेश्वर // 5 // पातयों निसहस्राणां महस्रेषु बजाम्यहम् // तेषुतप्वचला जानिरच्यतेस्तु मना न्वयि // 6 // गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्यमेव च // आगता For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं०म० तं. सुखसंपत्तिः पुण्या च तव दर्शनात् // 7 // देवो दाता च नोक्ता च देवरूपमिदं जगत् / / देवं जपति सर्वत्र यो देवः सोहमेवपूखं. 1 हि // 8 // क्षमस्व देवदेवेश क्षम्यते भुवनेश्वर / / तब पादाम्बुजे नित्यं निश्चला भक्तिरस्तु मे // 9 // " इति कृतांजलिः // प्रार्थयित्वा शशंखजलमृद्धत्य देवोपरि चामयित्वा " साधु वाऽसाधु वा कर्म यद्यदाचरितं मया / / तत्सर्व कृपया देव गृहाणाराधनमम // 3 // " इत्युच्चरन् तरं०८ देवस्य दक्षिणहस्ते किंचिजलं दत्त्वा प्राग्वदऱ्या देवशिरसि दत्वा शंखं यथास्थानं निवेशयेत् // ततो गतसारनैवेद्यं देवस्योच्छिष्टं किंचिदु) दृत्य ॐ चंडांशवे नमः इति चंडांशुं संपूज्य इत्युच्छिष्टाधिकरिणे ऐशान्यां दिशि दद्यात् / / तच्छेपनैवेद्यं शिरसि धृत्वा देवजक्तेषु विभज्य स्वयं भुक्त्वा विसर्जन कर्यात्॥तद्यथा॥ "ॐ गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वरा पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।३।। इत्यक्षतान निक्षिप्य विसर्जनं कृत्वा “ॐ तिष्ठतिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यत्र ब्रह्मादयो देवाः सर्व तिष्ठति में हृदि // 3 // " इति हृदयकमले हस्तं दत्वा स्वहृदये संस्थाप्य मानमोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन यथामुखं विहरेत् // एवमेव विधिना जपं समाप्य मर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गण तत्तद्दशांशहोमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / / इति सूर्यनारायणपूजापद्धतिः समाप्ता॥ अथ सूर्यकवचप्रारंभः॥ श्रीसूर्य उवाच / साम्बसाम्ब महाबाहो शृणु मे कवचं शुभम् // त्रैलोक्यमंगलं नाम कवचं परमाद्भुतम् // 3 // यज्ज्ञात्वा मंत्रविन्सम्यक् फलमामोति निश्चितम् // यद्धृत्वा च महादेवो गणानामधिपोऽभवत॥ 2 ॥पठनाद्धारणाद्विष्णुः सर्वेषां पालक: सदा // एवमिंद्रादयः सर्व सर्वश्चर्यमवानुयुः // 3 // कवचस्य ऋषिब्रह्मा छन्दोनुष्टुबुदाहृतम् // श्रीसूर्यदेवता चात्र सर्वदेवनमस्कृतः / / // 4 // आरोग्ययशोमोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः। प्रणवो मे शिरः पातु घृणिम पातु भालकम् // 5 // मूर्योव्यान्नयनद्वंद्वमादित्यः For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kabalrm.org कर्णयुग्मकम् // अष्टाक्षरो महामंत्रः सर्वाभीष्टफलप्रदः॥ 6 // ह्रीं बीजं मे शिखां पातु हृदये भुवनेश्वरः // चन्द्रबीजं विसर्गाडयं पातु मे गुह्यदेशकम् // 7 // त्र्यक्षरोसौ महामंत्रः सर्वतंत्रेषु गोपितः // शियो वह्निसमायुक्तो वामाक्षिबिंदुभूषितः // 8 // एकाक्षरो महा मंत्रः श्रीमूर्यस्य प्रकीर्तितम् // गुह्याद्रुपतरो मंत्रो बांछा चिंतामणिः स्मृतः॥९॥ शीपदिपादर्पयतं सदा पातु मनूनमः // इति ते कथितं / दिव्यं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् // 10 // श्रीपदं कांतिदं नित्यं धनारोग्यविवर्धनम् // कुष्ठादिरोगशमनं महाव्याधिविनाशनम् // 13 // त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यमरोगी बलवान्भवेत् // बहुना किनिहीतेने ययन्मनमि वर्तते॥ 12 // तनत्सर्व भवत्येव कवचस्य च धारणात् // भूतप्रेतपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसाः // 13 // जमराक्षनवेताला नैवद्रष्टुनपि क्षमाः // दृरादेव पलायंते तस्य संकीर्तनादपि // 14 // भूर्जपत्रे समालिग्ब्य रोचनागुरुकुंकुमैः // रविवारे च संक्रांत्यां नतम्यां च विशेषतः // 15 // धारयेत्माधक श्रेष्ठलैलोक्यविजयी भवेत // त्रिलोहमध्यगं कृत्वा धारयेद्दक्षिणे भुजे // 16 // शिखायामथ वा कंठे मोपि भूयों न संशयः // इति ते कथितं साम्ब त्रै लोक्ये मंगलाभिधम् // 17 // कवचं दुर्लभं लोके तब नेहायकाशितम् / / अज्ञात्वा कवच दिव्यं यो जपेत्सूर्यमुत्तमम् / / सिद्धिर्न जायते / तस्य कल्पकोटिशतैरपि // 18 // इति ब्रह्मयामले त्रैलोक्यमंगलं नाम श्रीमूर्यकवचं समानम् // // अथ सूर्यस्तवराजप्रारंभः // वसिष्ट थी व उवाच // स्तुबस्तत्र ततः माम्बः कशो धमनिसंततः // राजन्नामसहस्रण महस्रांशुं दिवाकरम् // 1 // खिद्यमानं तु तं दृष्ट्वा सूर्यः कृष्णा त्मजं तदा // स्वमे तु दर्शनं दत्त्वा पुनर्वचनमब्रवीत् // 2 // श्रीसूर्य उवाच।।साम्बसाम्ब महाबाहो शृणु जाम्बवतीसुत॥अलं नामसहस्रग पठ विमं स्तवं शुभम् // 3 // यानि नामानि गुह्यानि पवित्राणि शुभानि च // तानि ते कोर्तयिष्यामि श्रुत्वा वत्सावधारय // 4 // For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra waw.kabatm.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir मं० म० खं. 1 ते ई०८ // 196 // विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तंडो भास्करो रविः // // लोकप्रकाशकः श्रीमाँसोकचक्षुहेश्वरः / लोकमाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हता नमि हा // 6 // तपनस्तापनश्चैव शुचिः मताश्ववाहनः // गभस्तिहस्तो बृन्ना च सर्वदेवनमस्कृतः / / 7 / / एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा मम // देहारोग्यकरश्चैव धनवृद्धियशस्करः // 8 // स्तवराज इति ख्यातस्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः // य एतेत महा बाहो मध्ये ग्लवनोदये // 9 // तौति मां प्रणतो भूत्वा नवपापैः प्रमुच्यते / / कायिकं याचिकं चैव मानसं यह दुष्कृतम् / 10 // एताप्येन तन्मर्व प्रणश्यति न मशयः // एप जप्यञ्च होमश्च संध्योपामनमेव च // 13 // भलिमंत्रीमंत्रश्च / धूपत्रस्तथैव च // अन्नप्रदाने नाने च प्रणिपाते प्रदक्षिणे / / पृजितोयं महामंत्रः नर्वपापहरः शुभः / / 12 // एवमुक्त्वात भगवान भास्करो जगदीश्वरः // आमंत्र्य कृष्णतनयं नवांतरधीयत / / 13 / / मांगोपि स्तवराजेन सुवा सप्ताश्ववाहनम् / / पृतात्मा नीरजः श्रीमांस्तम्मादर्गाद्विमुक्तवान् // 4 // इति माम्बपुराणे सूर्यस्तवराजः ममामः / / शुभम् // अथ सूर्य त्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रप्रारंभ : // धौम्य उवाच / / ॐ मूार्यमा भगवटा पृषार्कः मविता रविः // गम्तिमानजः कालो मृत्युर्दाता प्रभाकरः।। 1 / / पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणम् ॥मोमो बृहस्पतिः शुक्रो बुधोङ्गारक एव च // 2 // इन्द्रो विवस्वान्दीतांशुः शुचिः शौरिः शनैश्चरः // ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्य कंदो वै वरुणो यमः॥ 3 // वैद्युतो जाठरश्चामिरेधनस्ते जसांपतिः॥ धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाङ्गो वेदवाहनः॥४॥ कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिः नवमलाश्रयः / / कला काष्ठा मुहूर्तश्च क्षपा, यामस्तथा क्षणः / / " // मंवत्मरकरोऽश्चन्थः कालचको विभावसुः // पुरुषः शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्तः मनाननः / / 6 / / काल For Private And Personal use only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ध्यक्षः प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुदः // वरुणः मागरांशश्च जर्जामृतो जीवनारिहा // 7 // भूताश्रयो भूतपतिः सर्वलोकनमस्कृतः // स्रष्टा संवर्तको वह्निः सर्वस्यादिरलोलुपः // 8 // अनंतः कपिलो भानुः कामदः सर्वतोमुखः ॥जयो विशालो वरदः सर्वधातुनि - पवितः // 9 // मनः मुपों भूतादिः शीघ्रगः प्राणधारणः // धन्वंतारधूमकेतुरादिदेवोदितेः मुतः // 10 // द्वादशात्माऽरविंदाक्षः पिता माता पितामहः // प्रजाद्वारं सर्गद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टरम् // 13 दाहकर्ता प्रशांतात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुखः // चराचरात्मा मुक्ष्मात्मा मैत्रेयः करुणान्वितः // 12 // एतद्वै कीर्तनीयस्य मूर्यस्यामिततेजमः॥ नामाष्टशतकं चेदं प्रोक्तमेतत्स्वयंभुवा // 13 // सुरगणपितृयक्षमेवितं ह्यसुरनिशाचरमिद्धबंदितम् // वरकनकहुताशनप्रभं प्रणिपतितोस्मि हिताय भास्करम् // 14 // मयोदये यः सुसमाहितः पठेत्म पुत्रदारान्धनरत्नमंचयम् / / लभेत जातिस्मरतांतरः सदा धृतिं च मेधां च म विंदते पुमान् // 15 // इमं स्तवं देव वरस्य यो नरः प्रकीर्तयेच्छुद्धमनाः समाहितः / / विमुच्यते शोकदवाग्निसागराल्लभेत कामान्मनसा यथेप्सितान // 16 // इति श्रीमहा Pal भारते वनपर्वणि धौम्ययुधिष्ठिरसंवादे श्रीसूर्यस्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् / / अथ आदित्यहृदयप्रारंभः / / ततो युद्धपरिश्रांतं समरे चिंतया स्थितम् / / रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् / / 1 // दैवतश्च ममागम्य द्रष्टुमन्यागतो रणम् / / उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवांस्तदा // 2 रामराम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् // येन सर्वानरीन्वत्म समरे विजयिष्यमे // 3 // आदित्यहृदयं पुण्यं मर्वशत्रु विनाशनम् // जयावहं जपेन्नित्यमक्षयं परमं शिवम् // 4 // सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् // चिंताशोकप्रशमनमायुर्वर्द्धनमुत्तमम् // 5 // रश्मिमंतं समुद्यतं देवासुरनमस्कृतम् ॥पूजयस्व विवस्वतं भास्करं भुवनेश्वरम् // 6 / / सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः॥ 50 For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.bath.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir म०म० तरं. 8 एष देवासुरगणाँल्लोकान्पाति गभस्तिभिः // 7 // एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कंदः प्रजापतिः / / महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपांपतिः॥८॥ पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुनो मनुः // वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः // 5 // आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् // सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः // 10 // हरिदश्वः सहस्राचिः सनसनिर्मरीचिमान // तिमि रोन्मथनः शंभुस्त्वष्टा मार्तण्डकोऽशुमान // 13 // हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहस्करो रविः / / अग्निगर्भोदितेः पुत्रः शंखः शिशि रनाशनः / / 12 // व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः // धनवृष्टिरपांमित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः / / 13 // आतपी मंडली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः // कविविश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः // 14 // नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः // तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तु ते // 15 // नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः // ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः // 16 // जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमोनमः // नमोनमः महस्रांशो आदित्याय नमोनमः / / 17 / / नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः // नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोस्तु ते / / 18 // ब्रह्मेशानाच्युतेशाय मूरायादित्यवर्चसे / / जास्वत सर्वतक्षाय रौद्राय वपुषे / नमः।। 19 / / तमोन्नाय हिमन्नाय शत्रुनायामितात्मने / / कृतघ्ननाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः / / 20 / / तपचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे / / नमस्तमोभिनिनाय कचये लोकसाक्षिणे // 21 // नाशयत्येष वै भृतं तमेव मृजति प्रभुः // पायत्येष तपत्येष है वर्षत्येष गतस्तिभिः // 22 // एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः / एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्रिहोत्रिणाम // 23 // देवाश्च कतवश्चैव ऋतूनां फलमेव च // यानि कत्यानि लोकेषु मवेंषु परमः प्रभुः // 24 // एनमापत्सु कच्छेषु कांतारेषु भयेषु च // 197 // For Private And Personal use only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kabarth.org Acharya Shelaassagar Oyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कीर्तयन्पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव // 25 // पूजयस्यैनमेकायो देवदेवं जगत्पतिम् // एतत्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसे // 26 // अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जयिष्यमि / / एवमुक्त्ता ततोऽगस्त्यो जगाम म यथागतम् // 27 // एतच्छृत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभव वनदा // धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान // 28 // आदित्यं वीक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्रवान // त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनु / रादाय वीर्यवान // 29 // रावणं प्रेक्ष्य हृष्टान्मा जयार्थ समुपागतम् // सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् / / 3. // अथ रविरवद निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः // निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचत्वरेति // 31 // इति वाल्मीकीये श्रीमद्रामायणे आदित्यहृदयस्तोत्रं समानम् // अथ सूर्यसहस्रनामस्तोत्रप्रारंभः ।।मुमंतुरुवाच // माघे मामि मिते पक्षे मतम्यां कुरुनन्दन॥ निराहारो रवि भत्त्या पूजयेद्विधिना नृप // 1 // पूर्वोक्तेन जपजाप्यं देवस्य पुरतः स्थितः॥ शुद्धैकाग्रमना राजञ्जितक्रोधो जितेन्द्रियः // शतानीक उवाच / / केन मंत्रेण जन दर्शनं भगवान ब्रजेत् // स्तोत्रेण वापि सविता तन्मे कथय मुव्रत // 3 // सुमंतुरुवाच // स्तृतो नामसहस्रेण यदा भक्तिमता मया // तदा मे दर्शनं यातः माक्षाद्देवो दिवाकरः॥४॥ शतानीक उवाच // नाम्नां सहस्रं सवितुः / श्रोतुमिच्छामि ते द्विज // येन ते दर्शनं यातः मासाद्देवो दिवाकरः // 5 // सुमंतुरुवाच // सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् // न चे दस्ति भयं किंचिद्यजनेन च शाम्यति // 6 // ज्वराद्विमुच्यते राजन्स्तोत्रेऽम्मिन्पठिते नरः // अन्ये च रोगाः शाम्यंति पठतः शृण्वत स्तथा // 7 // संपद्यते यथाकामास्सर्वभोगा यथेप्सिताः // य एतदादितः श्रुत्वा संग्राम प्रविशेन्नरः // 8 // स जित्वा समरे शत्रूनाम्येति / गृहमक्षतः॥ बंध्यानां पुत्रजननं भीतानां भयनाशनम् // 9 // भृतिकारि दरिद्राणां कुष्ठिनां परमौषधम् // बालानां चैव सर्वेषां ग्रहरझोन For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirian Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir www.kobalrm.org खं०१ निवारणम् // 10 // पठेदेतद्धि यो राजन स श्रेयः परमानुयात // म सिद्धसर्वमंकल्पः सुखमत्यंतमश्रुते // 11 // धर्माणिभिर्द्धर्म | लब्ध्यै सखाय च मुखार्थिभिः // राज्याय राज्यकामैश्च पठितव्यमिदं नरैः // 12 // विद्यावहं तु विप्राणां क्षत्रियाणां जयावहम् // पश्वावहं तु वैश्यानां शूद्राणां धर्मवर्द्धनम् // 13 // पठतां शृण्यतामेतद्भवतीति न संशयः॥ तच्छृणुष्व नृपश्रेष्ठ प्रयतात्मा ब्रवीमि ते // नाम्नां सहस्रं विख्यातं देवदेवस्य भास्वतः॥ 14 // ॐ अस्य श्रीमूर्यसहस्रनाम्नां भगवान पराशर ऋषिः / अनुष्टुप् छन्दः / श्रीमयों देवता / सकलाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः // ॐ विश्वविद्विश्वजित्कर्ताविश्वात्माविश्वतोमुखः // विश्वेश्वरोविश्वयोनिनियतात्माजिते न्द्रियः // 3 // कालाश्रयः कालकर्ताकालहाकालनाशनः // महायोगीमहाबुद्धिमहात्मासुमहाबलः // 2 // प्रभुविभु तनाथोभूतात्माभु वनेश्वरः // भूतभव्योभावितात्माभृतांतःकरणश्शिवः // 3 // शरण्यः कमलानन्दोनन्दनोनंदवर्द्धनः // वरेण्योवरदोयोगीसुसंयुक्तःप्रका शकः // 4 // प्रामाणःपरमःप्राणःप्रीतात्माप्रियतःप्रियः॥ नयःसहस्रपात्माधुर्दिव्यकुण्डलमण्डितः ॥५॥अव्यंगधारीधीरात्माप्रचेतावायु वाहनः // समाहितमतिद्धताविधाताकतमंगलः // 6 // कपर्दीकल्पद्रुद्रःमुमनाधर्मवत्मलः // समायुक्ताविमुक्तात्माकतात्माकतिनां वरः // 7 // अविचिंत्यवपुःश्रेष्ठोमहायोगीमहेश्वरः // कांतःकामादिरादित्योनियतात्मानिराकुलः // 8 // कामःकारुणिकःकर्ताकमला करबोधनः॥ सप्तसप्तिरचिंत्यात्मामहाकारुणिकोत्तमः॥ 9 // संजीवनोजीवनाथोजगज्जीवोजगत्पतिः॥ अजयोविश्वनिलयस्संविनागोवृष ध्वजः // 10 // वृषाकपिःकल्पकर्ताकल्पांतकरणोरविः॥ एकचक्ररथोमौनीमुरथोरथिनां वरः॥११॥ अक्रोधनोरश्मिमालीतेजोराशिर्वि भावमुः॥दिव्यकदिनकद्देवोदेवदेवोदिवस्पतिः॥ १२॥दीननाथोहविहातादिव्यबाहुर्दिवाकरः॥ यज्ञोयज्ञपतिःपृषास्वर्णरेताःपरावहः।।१३॥ // 198 // For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org परापरज्ञस्तरणिरंशुमालीमनोहरः // प्राज्ञः प्रजापतिस्मूर्यःमविताविष्णुरंशुमान् // 14 // मदागतिर्गधवाइविहितोविधिराशुगः // पतंगः पतगःस्थाणुर्विहङ्गोविहगोवरः // 15 // हर्यश्वोहारताश्वश्चहरिदश्वोजगत्प्रियः / / व्यंबकम्मर्वदमनोभावितात्माभिपग्वरः // 16 // आलोककलोकनाथोलोकालोकनमस्कृतः॥ कालःकल्पांतकोवहिस्तपनस्संप्रतापनः॥ 17 // विरोचनोविरूपाक्षस्महस्राक्षः पुरंदरः / / महनरश्मिमिहिरोविविधांवरभूषणः // 18 // खगः प्रतईनोधन्योहयगोवाग्विशारदः / श्रीमांश्चशिशिरोवाग्ग्मीश्रीपतिः श्रीनिकेतनः // 19 // श्रीकंठःश्रीधरःश्रीमानश्रीनिवासोवसुप्रदः / / कामचारीमहामायोमहेशोबिदिताशयः / / 20 / / तीर्थक्रियावान् मुनयोविभवोभक्तवत्सलः // कीर्तिःकार्तिकरोनित्यःकुंडलीकवचीरथी // 21 // हिरण्यरेताःमताश्वःप्रयतात्मापरंतपः // बुद्धिमानमर श्रेष्ठोरोचिष्णुः पाकशासनः // 22 // समुद्रोधनदोधातामान्धाताकश्मलापहः // नमोनोवांतहावह्निहोतांतःकरणोगुहः // 23 // पशुमान्प्रयतानंदोभूनेशःश्रीमतांवरः // नित्योदितोनित्यरथःमुरेशःमुरपूजितः // 24 // अजितोविजयोजेताजंगमस्थावरात्मकः // जीवानंदोनित्यगामीविजेताविजयप्रदः // 25 // पर्जन्योग्निम्थितिः स्थेयःस्थविरोणुनिरंजनः / / प्रयोतनोरथारूढःमर्वलोकप्रकाशकः 06 // ध्रुवोमेधीमहावीयोहंमःसंसारतारकः // सृष्टिकर्ताकियाहेतुर्मानण्डोमरुतांपतिः // 7 // ममत्वान्दहनस्त्वष्टानगो भाग्योऽर्यमापतिः॥ वरुणांशोजगन्नाथःकृतकृत्यःमुलोचनः // 28 // विवस्वानभानुमानकार्यकारणलेजमानिधिः // अमंगगामी तिग्मांशुद्धर्मादिदीदीधितिः॥ 29 // महसदीधितिन्नःसहस्रांशुर्दिवाकरः // गभस्तिमादीधितिमान्सग्विमानतुलद्युतिः // 30 // भास्करःमुरकार्य्यज्ञःमर्वज्ञस्तीक्ष्णदीधितिः // मुरज्येष्टःसृरपतिर्बहृज्ञोबचमांपतिः // 31 // नेजोनिधिहनेजाबृहत्कीर्तिहस्पतिः // For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 199 // अहिमानूजितोधीमानामुक्तःकीर्तिवर्द्धनः // 32 // महावयागणपतिगणेशोगणनायकः / / तीव्रप्रतापनस्तापातापनोविश्वतापनः // 33 // पू० खं. 1 कार्नस्वरोहृषीकेशःपद्मानंदोभिनंदितः // पद्मनानोमृताहारःस्थितिमान्केतुमान्नभः // 34 // अनाद्यतोच्युतोविश्वविश्वामित्रोघृणी का मू० तं० विराट् // आमुक्तःकवचीवाग्ग्मीकंचुकीविश्वभावनः // 35 // अनिमित्तगतिःश्रेष्ठःशरण्यःसर्वतोमुखः // विगाहीरेणुरमहाममायुक्त तरं० 8 समाहितः // 36 // धर्मकेतुर्धर्मरतिः संहर्तामयमोयमः // प्रगतातिहरोवादीसिद्धकार्याजनेश्वरः // 37 // ननोविगाहनस्मत्यस्ता ममःमुमनोहरः // हारीहरिर्हरोवायुक्रतुःकालानलद्युतिः // 38 // सुखमेव्योमहातेजाजगतामंतकारणम् // महेन्द्रोविष्टुतस्तोत्रंस्तुतिहेतुः प्रभाकरः // 39 // महस्रकरआयुष्मानगेषःसुखदम्मुखी / / व्याधिहामुखदःमौख्यंकल्याणःकल्पिनांवरः // 40 // आरोग्यकर्मणां मिद्धिवृद्धिऋद्धिरहस्पतिः हिरण्यरेताआरोग्यविद्वान्बंधुर्बधोमहान // 41 // प्रणवान्धृतिमान्धोधर्मकर्तारुचिप्रदः // मर्वत्रियःमर्वमहःसर्व शत्रुनिवारणः // 42 // प्रांशुविद्योतनोद्योतःमहस्रकिरणःकृतिः // केयूरभूषणोद्रामीभासितोभासनोनलः // 43 // शरण्यातिहरो होताखद्योतःखगमत्तमः // सर्वद्योतोभवद्योतःसर्वद्युतिकरोमलः // 14 // कल्याणःकल्याणकरःकल्पःकल्पकरःकविः // कल्याण कत्कल्पवपुःसर्वकल्याणभाजनः॥४५॥शांतिप्रियःप्रसन्नात्माप्रशांतः प्रशमप्रियः // उदारकर्मामुनयःमुवर्चावर्चसोज्ज्वलः // 46 // वर्चम्बी! वर्चमामीशस्वैलोक्येशोवशानुगः // तेजस्वीमुयशावर्णिवर्णाध्यक्षोवलिप्रियः // 47 // यशस्वीवेदनिलयस्तेजस्वीप्रकृतिस्थितः / / आकाशगःशीघ्रगतिराशुगःश्रुतिमानखगः // 48 / / गोपतिहदेवेशोगोमानेकःप्रभंजनः / / जनिताप्रजनंजाबोदीपःसर्वप्रकाशकः॥४९॥ कर्ममाक्षीयोगनित्योनभस्वानमुरांतकः / / रक्षोनोविन्नशमनःकिरीटीमुमनःप्रियः // 50 // मरीचिमालीसुमतिःकतातिथ्योविशेषतः // For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir शिष्टाचारःशभाचारःस्वाचाराचारतत्परः // 50 // मंदारोमाठरोरेणुःक्षोजणःपक्षिणांगूरु | स्वविशिष्टशविशिष्टात्माविषयोज्ञानशाजनः। / 52 // महाश्वेताप्रियोज्ञेयःसामगोमोददायकः // सर्ववेदप्रगीतात्मासर्ववेदालयोलयः / / 53 / / वेदमूर्तिश्चतुर्वेदीवेदवेदपारगः / / क्रियावानतिरोचिष्णुर्वरीयांश्चवरप्रदः / / 54 / / व्रतचारीव्रतधरोलोकबंधुरलंकतः / / अलंकाराशरोदिव्यविद्यावानविदिताशयः / / 55 // अकारोभूषणोभूष्योभूष्णुर्भवनपूजितः / / चक्रपाणिजधरःसुरेशोलोकवन्मलः // 56 / / गज्ञीपतिर्महाबाहःप्रकृतिविकतिर्गुणः / / अंधकारापहःश्रेष्ठोयुगावतायुगादिकत् / / 57 / / अप्रमेयःसदायोगीनिरहंकाईश्वरः / / शुभप्रदःशुनश्शोभाशुभकमाशुनास्पदः / / 58 // मन्यवान्धृतिमानाह्यकारोवृद्धिदोनलः / / बलभद्दलदोबंधुबलवानबलिनांवरः / / 59 // अनङ्गोनागराडिन्दःपमयोनिर्गणेश्वरः // संवत्सरऋतु ताकालचक्रपवर्तकः // 60 / / पनेरःपनयोनिःप्रायोनसरद्युतिः // भुमतिःमुमतिस्मोमोगोविंदोजगदादिजः // 6 // पीतवासाःकृष्णवासादिग्वासातीन्द्रियोहरिः / / अतीन्द्रोऽनेकरूपात्मारकंदःपरपुरंजयः / / 32 // शक्तिमानशूरचाभाम्बानमोक्षहेतुर| योनिजः // सर्वदऑजितोदर्शीदुःस्वमाशुभनाशनः / / 63 // मंगल्यकर्तातरणिवेगवान कश्मलापहः // स्पष्टाक्षरोमहामंत्रोविशाखो यजनप्रियः / / 64 // विश्वकर्मामहाशक्तिज्योतिरीशोविहंगमः / / विचक्षणोदक्षइन्द्रःप्रत्यूहःप्रियदर्शनः // 35 // अश्विनौवेदनिलयो / बदविद्विदिताशयः // प्रभाकरोजितरिपुःसुजनोरुणसारथिः / / 66 / / कुबेरमुरथःस्कंदोमहितोभिहितागुरुः / / बहराजोग्रहपतित्रहनक्षत्र | मंडनः / / 67 / / भास्करःसततानंदोनन्दनोनंदिवर्द्धनः / / मंगलोप्यथमंगलबानमांगल्योमंगलापहः / / 68 // भंगलाचारचरितःशीणः / सर्ववतोवती / / चतुर्मुखःपद्ममालीपूतात्माप्रणतातिहा / / 69 / / अकिंचनस्सत्यसंधोनिर्गुणोगुणवान्गुणी // संपूर्ण:पुंडरीकाक्षोविधे For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं०म० // 20 // योयोगतत्परः / / 70 // महस्रांशुःऋतुपतिःसर्वस्वंमुमतिःसुवाक् / / मुवाहनोमाल्यदामाताहारोहरिप्रियः / / 71 // ब्रह्मप्रचेता। प्रथितः प्रतीतात्मास्थिरात्मकः / / शतबिंदुःशतमखोगरीयाननलप्रभुः / / 72 / / धीरामहनरोधन्यः पुरुषः पुरुषोत्तमः / / विद्याधारा धिराजोहिविद्यावान्भूतिदः स्थितः // 73 / / अनिर्देश्यवपुः श्रीमान् विश्वात्मा बहुमंगलः // मुस्थितः मुरथः स्वर्णामो| साधारनिकेतनः / / 74 // निवोदहासर्गः मर्वगः संप्रकाशकः // दयालुम्मूक्ष्मधीः शांतिः शेमाक्षेमस्थितिप्रियः / / 75 // भूधरोभूपतिर्वक्तापवित्रात्मात्रिलोचनः // महावराहः प्रियकद्धाताभोक्ताभयप्रदः / / 76 / / चतुर्वेदधरोनित्योविनिद्रोविविधाशनः / / चक्रवर्तीधृतिकरः मंपूर्णोऽथमहेश्वरः // 77 // विचित्ररथएकाकीसप्तमतिः परात्परः // सांदधिस्थितिकरः स्थितिः / स्थेयः स्थितिप्रियः // 78 // निष्कलः पुष्करनिनोवमुमानवासवप्रियः // वमुमानवासबस्वामीवमुदातावमुप्रदः // 79 // बलवानज्ञानवांस्तत्त्वमोकारविषुसंस्थितः // संकल्पयोनिर्दिनरुद्भगवानकारणावहः // 80 // नीलकण्ठोधनाध्यक्षश्चतुर्वेदप्रियंवदः॥ विषट्कारोहुतहोतास्वाहाकारोहृताहुतिः॥८॥ जनार्दनोजनानंदोनरोनारायणोंबुदः॥ स्वर्णागक्षपणोवायुः सुरासुरनमस्कृतः / / 82 // विग्रहोविमलोबिंदुर्विशोकोविमलद्युतिः॥ द्योतितोद्योतनोविद्वान्विवित्त्वान्वरदोबली॥८॥धर्मयोनिमहामोहोविष्णुवातासनातनः।। सावित्री | भावितोराजाविमृतोविघृणीविराट् // 84 // ममार्चिः सततुरगः समलोकनमस्कृतः॥ संपन्नोथजगन्नाथः सुमनाश्शोभनप्रियः।।८५॥ मर्वा | त्मासर्वकत्सृष्टिः सप्तिमान्सप्तमीप्रियः॥ सुमेधामाधवोमेध्योमेधावीमधुसूदनः॥८६॥ अंगिरागतिकालज्ञोधूमकेतुस्मुकेतनः / / सुखीसुखप्रदः। सौख्यकामीकांतिप्रियोमुनिः।। 87 / / संतापनः मतपनआतपीतपसांपतिः // उग्रश्रवास्महस्रोतः प्रियंकारीप्रियंकरः / / 88 // प्रीतो // 20 // For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir विमन्युरंभोदोजीवनोजगतांपतिः // जगत्पिताप्रीतमनाः सर्वः शर्वोगुहाबलः // 8 // सर्वगोजगदानंदोजगन्नेतामुरारिहा // श्रेयः श्रेयस्क रोज्यायानुत्तमोत्तमउत्तमः // 90 // उत्तमोथपहामेरुर्धारणोधरणीधरः // धाराधरोधर्मराजोधर्माधर्मप्रवर्तकः // 91 // रथाध्यक्षोरथ पतिस्त्वरमाणोमितानलः // उत्तरोनुत्तरस्तापीतारापतिरपांपतिः / / 92 // पुण्यसंकीर्तनः पुण्योहेतुलोकत्रयाश्रयः // स्वर्भानुर्विहंगारि टोविशिष्टोत्कृष्टकर्मकत् // 13 // व्याधिप्रणाशनः क्षेमः शूरस्सर्वजितांवरः॥ एकनाथोरथाधीशः शनैश्चरपितासितः // 94 // वैव | स्वतगुरुर्मृत्युर्द्धर्मनित्योमहाव्रतः // प्रलंबहारः संचारीप्रद्योतोयोतितोनलः // 25 // संतानकृत्परोमंत्रोमंत्रमूतिर्ममहाबलः // श्रेष्ठात्मा सुप्रियः शंभुमहतामीश्वरेश्वरः // 96 // मंसारगतिविच्छेतासंसारार्णवतारकः // सतजिह्वः सहस्राचीरत्नग पराजितः // 97 // धर्मकेतुरमेयात्माधम्माधर्मवरप्रदः // लोकसाक्षीलोकगुरुलोंकेशछंदवाहनः // 98 // धर्मरूपः सूक्ष्मवायुद्धनुष्पाणिर्द्धनुर्द्धरः // पिना कधृङमहोत्साहनिकमायोमहाशनः // 99 // वीरः शक्तिमतांश्रेष्ठः सर्वशस्त्रभृतांवरः।। ज्ञानगम्योदुराराध्योलोहिताङ्गोरिमर्दनः॥१०॥ अनंतोधर्मदोनित्योधर्मकच्चत्रिविक्रमः॥ दैवतस्यक्षरोमद्योनीलाङ्गोनीललोहितः // 1.1 // एकोनेकस्त्रयीव्यासः सवितासमितिंजयः॥ शार्ङ्गधन्वानलोभीमः सर्वप्रहरणायुधः // 102 // परमेष्ठीपरंज्योति कपालीदिवस्पतिः // वदान्योवासुकिवैद्यआत्रेयोतिपराक्रमः // 103 // द्वापरः परमोदारः परमब्रह्मचर्य्यवान् // उद्दीप्तवेषोमुकुटीपग्रहस्तोहिमांशुभृत् // 104 // स्मितः प्रसन्नवदनः पद्मोदर निभाननः॥ सायंदिवादिव्यवपुरनिर्देश्योमहारथः // 105 // महारथोमहानीशः शेषः सत्त्वरजस्तमः // धृतातपत्रप्रतिमोविमर्षीनिर्णयः स्थितः // 106 // अहिंसकः शुद्धमतिरद्वितीयोऽरिमर्दनः // सर्वदोधनदोमोक्षोविहारीबहुदायकः // 107 // ग्रहनाथोग्रहपतिर्महे For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassag www.kobatm.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra y armandir शस्तिमिरापहः॥ मनोहरवपुः शुन्नः शोभनः सुप्रभाननः॥ 108 // सुप्रभः सुप्रभाकारः सुनेत्रोनिक्षुभापतिः // राज्ञीप्रियः शब्दकरो पू० सं०१ यहेशस्तिमिरापहः // 109 // सैहिकेयरिपुर्देवोवरदोवरनायकः // चतुर्भुजोमहायोगीयोगीश्वरपतिस्तथा // 110 // अनादिरूमू-तं. पोदितिजोरत्नकांतिः प्रभामयः // जगत्प्रदीपोविस्तीर्णोमहाविस्तीर्णमण्डलः // 111 // एकचक्ररथः स्वर्णरथः स्वर्णशरीरधृक् // तरं०८ निरालंबोगगनगोधर्मकर्मप्रभावकत // 110 // धर्मात्माकर्मणांसाक्षीप्रत्यक्षः परमेश्वरः // मेरुसेवीसुमेधावीमेरुरक्षाकरोमहान्॥११३॥ आधारभृतोरतिमांस्तथाचधनधान्यकृत् // पापसंतापसंहर्तामनोवांछितदायकः // 114 // रोगहाराज्यदायीरमणीयगुणोनृणी // कालत्रयानंतरूपोमनिवृंदनमस्कृतः॥ 15 // संध्यारागकरः सिद्धः संध्यावंदनवंदितः // साम्राज्यदाननिरतः समाराधनतोषवान // // 16 // भक्तदःखक्षयकोभवमागरतारकः // भयापहताभगवानप्रमेयपराक्रमः॥ मनुस्वामीमनृपतिर्मान्योमन्वंतराधिपः // 117 // एतने सर्वमाख्यातं यन्मां त्वं परिपृच्छसि // नाम्नां सहस्रं सवितुः पाराशयों यदाह मे // 118 // धन्यं यशस्यमायुष्यंदुष्टदुःस्वमना / शनम् // बंधमोनकरं चैवभानो मानुकीर्तनम् / / 115 // यस्त्विदंशृणुयान्नित्यंपठित्वाप्रयतोनरः / / अक्षयसुखमन्नायंभवेत्तस्यो पसाधितम् // 120 // नृपानितस्करभयंव्याधियोनभयंभवेत् // विजयीचभवेन्नित्यश्रेयश्चपरमामुयात // 121 / / कीर्ति मान सुभगोविद्वान्ससुखीप्रियदर्शनः // भवेद्वर्षशतायुश्चसर्वव्याधिविवर्जितः // 122 / / नाम्नां सहस्रमिदमंशुमतः पठेद्यः प्रातः शुचिनियमवान सुसमाधियुक्तः // द्वारेणतंपरिहरंतिमदेवरोगाभीतास्मुपर्णमिवसर्वमहोरगेन्दाः / / 123 // इति श्रीभविष्यपुराणे // 2 // मनमकल्पे अगवतः श्रीसूर्यस्य नान्मां सहस्रं समानम् / / इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे श्रीसूर्य्यतंत्रेऽष्टमस्तरंगः // 8 // इति मू० त०॥ For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairt.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir YAXSARA S VATAJ For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir .. . . 1202 // मं• म० // श्रीगणेशायनमः॥ अथ हनुमत्नन्त्रप्रारंभः / तत्रादौ पटलभारंभः।। अथ हनूमवादशाक्षरमंत्रप्रयोगः // ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा वहौं हें, स्कें ह्रीं कहों हनुमते नमः” इति द्वादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् / / अस्य हनुमन्मंत्रस्य रामचन्द्र ऋषिः / जगती / छन्दः / हनुमान देवता। हसों बीजम् / हूस्फे शक्तिः। सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः॥ ॐ रामचन्द्रऋषये नमः शिरसि // 1 // जगती छन्द से नमः मुखे // 2 // हनुमद्देवतायै नमः / हृदि // 3 // ह्रौं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // हस्फे शक्तये नमः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ हौं हृदयाय नमः // 1 // ॐ हस्फे शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ रुकें शिखायै वषट् / // 3 // ॐ इसी कवचाय हूं // 4 // हमख्य नेत्रत्रयाय वौषट् // ॐ हीं अस्त्राय फट् // इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवमेव कर | लान्यासं कृत्वा मनिं 1 भाले 2 नेत्रयोः 3 मुखे 4 कंठे५ बाह्वोः६ हृदि 7 कुक्षौ 8 नाभौ 9 लिंगे 10 जानुद्वये 11 पादयोः१२ ol इति द्वादशस्थानेषु द्वादशमंत्रवर्णान् प्रणवाद्यनमांतान न्यसेत्॥ इति न्यासं कृत्वा ध्यायेत्॥ ध्यानम्। बालार्कायुततेजसं त्रिभुवनप्रक्षोभकं / सुंदरं मुग्रीवादिसमस्तवानरगणैः संसेव्यपादांबुजम् // नादेनैव समस्तराक्षसगणान्संत्रासयंतं प्रभु श्रीमद्रामपदांबुजस्मृतिरतं ध्यायामि | वातात्मजम् // 1 // एवं ध्यात्वा सर्वतोभद्रमण्डले मंडूकादिपरतत्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् // पूर्वादिक्रमेण / ॐ विमलायै नमः // 1 // ॐ उत्कर्षिण्यै नमः // 2 // ॐ ज्ञानाय नमः // 3 // ॐ क्रियायै नमः // 4 // ॐ योगायै नमः // 20 // // 5 // ॐ प्रह्वयै नमः // 6 // ॐ सत्यायै नमः // 7 // ॐ ईशानायै नमः // 8 // मध्ये ॐ अनुग्रहायै नमः // 9 // इति पूजयेत्॥ ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवणाशोष्य For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir NIॐ नमो भगवते हनुमते सर्वभूतात्मने हनुमते सर्वात्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः // " इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य 2 प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पायादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा // पुष्पांज लिमादाय "संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः॥अनुज्ञां हनुमन्देहि परिवाराचनाय मे॥” इति पुष्पांजलिं दत्वा आज्ञां प्राप्य आवरण) पूजां कुर्यात् // तद्यथा। षट्कोणकेसरेषु आनेय्यादिचतसृषु दिक्षु मध्ये दिक्षु च / / ॐ हौं हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्प) यामि नमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ ह्स्फे शिरसे स्वाहाँ / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ स्कें शिखायै वषट् शिखाश्रीपा०॥ 3 // ॐ ह्रौं कवचार्य हुम् / कवचश्रीपा० // 4 // ॐ हमके नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ ह्रौं अस्त्राय फट / अबश्रीपा०y // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् / ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "अनीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या ममर्पये तुज्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दया पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम // ततोष्टदलेषु पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण दक्षिणावर्तन च ॐ ॐ रामभकायनमः / रामभक्तश्रीपा० // 3 // ॐ महातेजसे नमः / महातेजःश्रीपा० // 2 // ॐ कपिराजाय नमः / कपिराजश्रीपा० // 3 // ॐ महाबलाय नमः। महाबल श्रीपा० // 4 // ॐ द्रोणाद्रिहारकाय नमः / द्रोणाद्रिहारकश्रीपा०॥५॥ॐ मेरुपीठार्चकारकाय नमः। मेरुपीठाचकारकश्रीपा०॥६॥ | * रामभक्तो महातेजाः कपिराजी महाबलः // द्रोणाद्रेिहारको मेरुपीटिकाचनकारकः // 1 // दक्षिणाशाभास्करश्च सर्वविघ्ननिवारकः / एवं नामानि संपूज्य दळाग्रेषु च वानरान् // 2 // For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 203 // dॐ दक्षिणाशानास्कराय नमः / दक्षिणाशाभास्करश्रीपा० // 7 // ॐ मवविन्ननिवारकाय नमः / सर्वविन्ननिवारकश्रीपा० // 8 // MI इति नामभिः संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // तातोष्टदलायेषु प्राचीक्रमण // ॐ सुग्रीवाय नमः / सुग्री शवश्रीपा०॥1॥ ॐ अंगदाय नमः / अंगदश्रीपा० // 2 // ॐ नीलाय नमः / नीलश्रीपा० // 3 // ॐ जांबवते नमः। जांबवच्छी पा०॥४॥ ॐ गलाय नमः / नलश्रीपा० // 5 // ॐ मुषेणाय नमः। मुषणश्रीपा० // 6 // ॐ द्विविदाय नमः / द्विविद श्रीपाः // 7 // ॐ मयंदाय नमः / मयंदश्रीपा० // 8 // इत्यष्टी वानरान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततः भपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान् वज्राद्यायुधानि च संपृज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारां तं मंपूज्य जपं कर्यात // अस्य पुरश्चरणं द्वादशसहस्रजपाः।।तद्दशांशतो होमः एवंकते मंत्रः मिद्धो भवति॥ सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान माधयेत् // तथा च-"एवं ध्यात्वा जपेदकसहस्रं जितमानमः // दशांशं जुहुयाद्रीहीन्योदध्याज्यसंयुतान // 1 // एवंमिद्धे मनी मंत्री, स्वपरेष्टं प्रसाधयेत् // कदलीबीजपूराम्रफलैर्हत्यासहस्रकम् // 2 // द्वाविंशतिं ब्रह्मचारीन्विप्रान्सम्भोजयेदथ // एवंकते महाभूतविषचौरायु पद्रवाः // 3 // नश्यंनि क्षणमात्रेण विद्वेषियहदानवाः॥अष्टोत्तरशतं वारि मंत्रितं विषनाशनम् // 4 // रात्रौ नवशतं मंत्र जपेद्दशदिनावधि यो नरस्तस्य नश्यति राजशत्रूत्थाशीतयः॥५॥अभिचारोत्थभूतोत्थज्वरे तं मंत्रितैर्जलैः॥ भस्मभिःमलिलैर्वापि ताडयेज्ज्वरिणं क्रुधा॥६॥ दिनत्रयाज्ज्वरान्मुक्तः स सुखं लभते नरः // तन्मंत्रितौषधं जग्ध्वा नीरोगो जायते ध्रुवम् // 7 // तन्मंत्रितं पयः पीत्वा योद्धुं गच्छेन्मन | जपन // तज्जनभस्मलितांगः शस्त्रसंधैर्न बाध्यते // 8 // शवक्षतं वणः शोफो लूतास्फोटोपि भस्मना।।त्रिमंत्रितेन संस्पृष्टाःशुष्यंत्यचिरतो // 20 For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 21 09-09 कराच जंतवोऽनेन भवन मरः परिपूज्य च // 34 // गृहत्यानपावरेधते तद् गृहं चिरम् // 6000 नृणाम्॥९॥सूर्यास्तमयमाराय जपेत्सूर्योदयावधिः / / कीलकं भस्म चादाय मनाहावधिसंगुतः // 10 // निखनेद्भस्मकीलौ तौ विद्विषो) द्विार्यलक्षितः // विद्वेषं मिथ आपन्नाः पलायंतेऽरयोचिरात् / / 13 // अभिमंत्रितभस्मां देहचंदनसंयुतम्॥ खाद्यादियोजितं यस्मै दीयते | स तु दासवत् // 12 // ऋराश्च जंतवोऽनेन भवंति विधिना वशाः // ईशानंदिस्थमूलेन भृतांकुशनगेःशुभाम् // 13 // अंगुष्ठमात्रां प्रतिमां प्रविधाय हनूमतः // प्राणसंस्थापनं कृत्वा सिंदूरैः परिपूज्य च // 14 // गृहस्याभिग्यो द्वारे निखनेन्मंत्रमुच्चरन् / भूताभि|| चारचौराग्निविपरोगनृपोद्भवाः॥ 15 // संजायते गृहे तस्मिन्न कदाचिदुपदयाः॥ प्रत्यहं धनपुत्राधेरेधते तद् गृहं चिरम् // 16 // निशि श्मशानभूमिस्थो जस्मना मृत्स्नयापि वा // शवोः प्रतिकतिं कृत्वा हृदि नाम ममालिखेत // 17 // कृतप्राणप्रतिष्ठां तां मियाच्छवैमर्नु जपन // मंत्रांते प्रोचरेच्छत्रो म छिंधि च भिंधि च // 18 // मारयेति च तस्यांत दंतरोष्टं निपीड्य च // पाण्योस्तले | प्रपीड्याथ त्यक्त्वा तां सदनं व्रजेत्॥१९॥एवं मतदिनं कुर्वन्हन्याच्छनशिवादितम् // अर्धचन्द्राकतो कुंडे स्थंडिले वा हृतं चरेत् / / 20 // मुक्तकेशः श्मशानस्थो लवणैराजिकायुतैः / / उन्मनफलपुष्पैश्च नखरोमविरैरपि // 21 // काककौशिकगृध्राणां पक्षैः श्लेष्मां तकारंजैः // समिदुरैश्च त्रिशतं दक्षिणाशामुखो निशि // 22 // सनघस्रानिदं कुर्वन्मारयेद्रिपुमुद्धतम् // शतषट्कं जपेद्रात्रौ श्मशाने दिवसत्रयम् // 23 // ततो वेताल उत्थाय वदेभावि शुभाशुभम् / / उदितं कुरुते सर्व किंकरीभय मंत्रिणः // 24 // वश्ये युद्धे नृपदारे | 1 देहचंदनं देहे धृतं यच्चंदनं तेन युतं भस्मांबु च मंत्रितं यस्मै देयं स वयः स्यात् // 2 भूनांकुशतः करंजस्य अरिष्टस्य इंशानदिशि स्थितेन मूलेनां | गुष्टमिता हनुत्प्रतिमां कृत्वा प्राणान्तस्थाप्य सिंदूरैरभ्पर्य यद् गृहद्वारि निखन्यते तत्र सर्वोपद्रवनाशस्सम्पत्तिवृद्धिश्च // 3 शिवावितं शिवेनापि राक्ष शत्रुमेवं कुर्वन् हन्यात // 4 उन्मतो धत्तरः॥ ५ोमांतकश्चिकणफको वृक्षः॥ 6 अक्षो विभीतकम्तदुन्यसामद्भिश्च // For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० हनुमत्कूटद्वादशाक्षरीपूजनयन्त्रम्. 92 तर०९ than/// समरे चौरसंकटे // मंत्रोयं साधितो दद्यादिष्टतिदि ध्रुवं नृणाम् // 25 // बखे शिलायां फलके ताम्रपात्रेथ कुडयके / भर्जे वा तालपत्रे वा रोचनाना निकुंकुमैः॥२६॥ यंत्र a aauri मतत्समालेिख्य त्यक्त्वा सौ ब्रह्मचर्पवान् ॥कः प्राणान्प्रति याप्य पज येत्तं यथाविधेि॥२७॥ सर्वदुःखनिवृत्त्यैतयंत्रमा त्मनि धारयेत् ॥ज्वरमा देवदत्त. भिसारिनं सर्वोपद्रवशां तिरुत् // 28 // योषि तामपि बालानां धृतं जन मनोहरम्॥ इति हनुमद द्वादशाक्षरमंत्रप्रयोगः हल्दतायशीवित नधमटीकृतजगत्रित यबज्रह होहमें ॐनमोहनुमतप्रकटपराक्रमआक्रांतदिङमं. मलदयिमूर्यकोटिसमस्याह / // 204 // For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // अथ हनुपदष्टादशाक्षरमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा ( मंत्रमहोदधौ )-"ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा” इत्यष्टादशा शरो मंत्रः॥ अस्य विधानम् ॥अस्य मंत्रस्य ईश्वर ऋषिः। अनुष्टुप् छंदः। हनुमान् देवता / हुं बीजम् / स्वाहा शक्तिः। सर्वेष्टसिद्धये जपे। विनियोगः // ॐ ईश्वरऋषये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुपछंदसे नमः मुखे // 2 // हनुमद्देवतायै नमः हृदि / / 3 / / हुंबीजाय नमः गुह्ये // 4 // स्वाहाशक्तये नमः पादयोः॥५॥ विनियोगाय नमः सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ आंजनेयाय नमः हृदयाय नमः १॥ॐ रुद्रमूर्तये नमः शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ वायुपुत्राय नमः शिखायै वषट् // 3 // ॐ अग्निगर्भाय नमः कवचाय हूं॥४॥ ॥ॐ रामदूताय नमः नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारकाय नमः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं करन्यास कित्या ध्यायेत्।। अथ ध्यानम् / / "ॐ दहनतप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहितांजलिम् / श्रवणकुंडलशोभिमुखांबुजं नमत वानरराज मिहाद्भुतम् // 1 // " इति ध्यायेत् // ततः सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् // तद्यथापूर्वादि क्रमेण // ॐ विमलायै नमः // 1 // ॐ उत्कपिण्यै नमः॥२॥ ॐ ज्ञानाय नमः // 3 // ॐ क्रियायै नमः॥ 4 // ॐd योगायै नमः // 5 // ॐ प्रवचै नमः // 6 // ॐ सत्यायै नमः // 7 // ॐ ईशानायै नमः॥८॥ मध्ये ॐ अनग्रहायै नमः॥९॥ इति पूजयेत् // ततः स्वर्गादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रण संशोय "ॐ नमो भगवते हनुमते सर्वभूतात्मने हनुमंताय सर्वात्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः” // इति मंत्रेण पुष्पायासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा मृलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चा For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir द्वादशाक्षरीहनुमत्कल्पपूजनयन्त्रम्. पू० खं०१ वि मं. म. "ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः // अनुज्ञा हनुमन्देहि परि // 205 // बारार्चनाय मे॥” इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्वा पृजितास्तपिताः संतु IN | इति वेदत् // इत्याज्ञा गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत // षटकोणकेसरेषु |आनेग्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च ॐ आंजनेयाय हृदयाय नमः हृदयश्री थापादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट। शिखाश्रीपा० ॥३॥ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हम / कवचश्रीपा०॥४॥ ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ ब्रह्मास्त्र |निवारकाय अस्त्राय फट / अस्त्रश्रीपा० // 6 // इत्यंगानि पूजयेत // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धिं देहि शरणा NIगतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरणार्चनम् // १॥"इति पठित्वा * पुष्पांजलिं च दत्त्वा पृजितास्तपिताः संतु इति वदेत् / इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या *नमोभगवते For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir 30-REMI- दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण दक्षिणावर्तेन च ॐ रामभक्ताय नमः // / // ॐ महातेजसे नमः // 2 // ॐ कपिराजाय नमः // 3 // ॐ महाबलाय नमः॥४॥ॐ द्रोणादिहरकाय नमः॥ 5 // ॐ मेरुपीठाचनकारकाय नमः // 6 // ॐ दक्षिणाशाभास्कराय नमः // // 7 // ॐ सर्वविघ्ननिवारकाय नमः // 8 // इति संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽष्टकोणाग्रेषु प्राचीक्रमेण / ॐ सुग्रीवाय नमः // 1 // ॐ अंगदाय नमः // 2 // ॐ नालाय नमः // 3 // ॐ जाम्बवते नमः // 4 // ॐ नलाय नमः // 5 // ॐ मुपणाय नमः // 6 // ॐ द्विविदाय नमः // 7 // ॐ मयंदाय नमः // 8 // इति संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो भपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान बजाद्यायुधानि च मंपृज्य पुष्पांजलिं दद्यात्॥ इत्यावरणपूजां कत्या सादिनस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात // अस्य पुरश्चरणमयुतजपाः / तद्दशांशतो होमः / एवंकते मंत्रः सिद्धो / भवति। मिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् / तथा च / "अयतं प्रजपेन्मन्त्रं दशांश जहयातिलैः। जितेंद्रियो नक्तमोजी प्रत्यहं साष्टका शतम् // 3 // जपित्या क्षुद्ररोगत्यो मुच्यते दिवसत्रयात // // भूतप्रेतपिशाचादिनाशाय समाचरेत् // महारोगनिवृत्त्यै तु महलं प्रत्यहं जपेत // 2 // एकाशनोऽयुतं नित्यं जपन्ध्यायन्कपीश्वरम् // राक्षसौ विनिम्नतमचिराजयति द्विषम् // 3 // सुग्रीवेण / समं रामं संदधानं स्मरन्कपिम् / / प्रजप्यायुतमेतस्य संधि कुर्याविरुद्धयोः // 4 // लंका दहतं तं ध्यायनयुतं प्रजपेन्मनुम् // शत्रूणां प्रदहे यामानचिरादेव साधकः // 5 // प्रयाणसमये ध्यायन हनमंतं मर्नु जपन // यो याति मोचिरावष्टं माधयि वा गृहं भजेत् // 6 // यः कपीशं सदा गेहे पूजयेजपतत्परः // आयुर्लक्षम्यो प्रवर्द्धते तस्य नश्यत्युपद्रवाः // 7 // शार्दू लतस्करादियो रक्षेन्मनुस्यं स्मृतः // प्रस्थापकाले चोरेन्यो दुष्टस्वभादपि ध्रुवम् // 8 // इत्यष्टादशाक्षरहनुमन्मंत्रप्रयोगः // -- - For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir अथ द्वादशाक्षरमंत्ररूपहनुमत्कल्पः // ( गारुडीतंत्र ) देव्युवाच // शैवानि गाणपत्यानि शाक्तानि वैष्णवानि च // साधनानि च | पू० ख०२ मौराणि चान्यानि यानि तानि च // 1 // श्रुतानि देवदेवेश त्वक्रान्निःसृतानि च // किंचिदन्यत्नु देवानां साधनं यदि कथ्य बह° तं० ताम् // 2 // महादेव उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि सावधानाध्वधारय / / हनुमत्साधनं पुण्यं महापातकनाशनम् / / 3 // एतद्गुह्यतमं तरं० 9 लोके शीघ्रसिद्धिकरं परम् // जपी यस्य प्रसादेन लोकत्रयजितो भवेत् // 4 // तत्साधनमहं वक्ष्ये नृणां सिद्धिकरं द्रुतम् // 5 // वियत्सनरकंघोरंहनुमतेतदनंतरम् // रुद्रात्मकायकवचंफडितिद्वादशाक्षरम् // 6 // एतन्मंत्रं मयाख्यातं गोपनीयं प्रयत्नतः // तवस्नेह नं भक्त्या च दामोऽस्मि तव सुन्दरि / / 7 / / एतन्मंत्रमर्जुनाय प्रदत्तं हरिणा पुरा ! / जपेन साधनं कत्या जितं सर्व चराचरम् / / 8 // मंत्रो यथा-"हं हनुमतेरुद्रात्मकायहुँफट्" इति द्वादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // नदीकूले विष्णुगेहे निर्जनस्थाने पवते वने वा 1 अथ भाषानुवादः-देवीजी बोली हे ईश्वर ! शिवसाधन गणेशसाधन शक्तिसाधन विष्णुसाधन सूर्यसाधन आदि अनेकसाधनोंकी रीति मैंने तुम्हारे समीप श्रवण करी है। अब में अन्यान्य देवतोंका साधन सुनने की इच्छा करती हूं सो आप कहिये // 1 // 2 // महादेवजी बोले हे देवि ! मैं इस समय हनुमसाधन कहता हूं सो तुम सावधान होकर श्रवण करो। यह साधन बड़े पुण्यका देनेवाला और बड़े बड़े जो पातक हैं उनका नाश करनेवाला है // 3 // इसकी साधनविधि अतिगुप्त है और शीघ्र सिद्धिकी देने वाली है। इस साधनके वलसे साधक तीनों लोकोंकों जय करनेमें समर्थ होसकता है // 4 // तिसके साधन की विधि में कहता हूँ जो मनुष्यों को सिद्धिकी देनेवाली है // 5 // प्रथम हं दूसरे हनुमते पीछे रुद्रात्मकाय अन्तमें हुं फट् अर्थात् "हं हनुमतेरुद्रात्मकायईफट" // 6 // यह बारह अक्षरका मंत्र जो मैने कहा इसको यत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये / हे सुन्दार / मैं तुम्हारा दास हूं इस वास्ते मैंने तुम्हारे स्नेह और भक्तिके वशीभूत होकर यह मंत्र कहा है // 7 // इस मंत्रको प्रथम भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजीने अर्जुनसे कहा था / अर्जुनने इसी मंत्रको Ad206 // ओर अचर जगतको जीता // 8 // नदी के किनारे विष्णुभगवानके मंदिर निर्जनस्थानमें अथवा पर्वतमें एकाग्रचित्त होकर इस साधनको करै // // हनुमानजी बडे भारी पर्वतको उखाडकर रावणकी ओरको धावमान होरहे हैं और रावणसे घोर शब्द करके कहते हैं कि रे दृष्टात्मन ठहर ठहर भाग मत, हनुमानजीका वर्ण लाखके रंगके समान अरुण है, हनुमानजीका भयानक स्वरूप कालांतक यमकी समान है, इनके दोनों नेत्र अनिकी For Private And Personal use only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir जपस्थानभूमि पारग्रहणं कृत्या नदीतीरे सात्वा कुशासने उपविश्य आचम्य मूलेन प्राणानायम्य देशकालौ संकीर्याभकगोत्रोमुक शाहं श्रीहनुमत्त्रीतिकामोऽमुकमंत्रेण लक्षजपरूपपुरश्चरणमहं करिष्ये इति संकल्प्य भूतशृद्धयादिकं कुर्यात् // अस्य ऋया दिकादेरजावः // "हं हनुमतेरुद्रात्मकायहुंफट् स्वाहा” इत्यंगुष्टात्यां नमः // 3 // एवमेव विधिना करन्यास हृदयादिपडंगन्यामं च चकत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ॐ महाशलं समुत्पाटय धावन्तं रावगं प्रति / / तिष्ठतिष्ठ रणे दृष्ट घोररावं ममचरन // 1 लाक्षार सारुणं गात्रं कालांतकथमोपमम् // ज्वलदग्गिलमन्नेत्रं मूर्यकोटिसमप्रभम् // अंगदार्महावीरवेष्टितं रुद्ररूपिणम् / एवरुपं हनुमन्तं ध्यात्वा पूजां समारभेत् // इति ध्यायेत॥ ततः पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडलं कृत्वा ततः नकेमरं रक्तचंदनं धुष्टा तेन लेखनी च कृत्या ताम्रादिपत्रेष्टदलपमं विलिब्य मंडले संस्थाप्य प्रतिष्ठां चकत्वा मूलेन यूनिः प्रकल्प्यावाहनादिपुणतिरूपनारैः संपृज्य मूलेन पुष्पांज ल्यष्टकं दत्वा ततः "ॐ कुले रघणां ममवाप्य जन्म विधाय में जलधेर्जलांतः॥ लंकेश्वरं यः शमयांचकार नीतापति तं प्रणमामि भत्त्या |॥१॥"इति रामं ध्यात्वा पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ मंविन्मयः परो देवःपरामृतरसप्रियः। अनुना हनुमन्देहि परिवागर्चनाय मे" | | ॥१॥इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत॥इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत्। तथा च पूज्यपूजकयोरंत भाँति प्रकाशमान है और देह कोटिसर्यकी कांतिवाली है। रुद्ररूपी हनुमान जी अंगदजी आदि बड़े बड़े वीरोख युक्त हैं // 10 // इस प्रकार हनुमान जीका ध्यान करके मंत्रका जप करै / लक्ष जप पूर्ण होजाने पर हनुमानजी उस साधकपर प्रसन्न होजाते हैं। हे देवि ! तुम्हारे प्रति यह हनुमानजीका मंत्र मन सत्य कहा है // 11 // पुरुषांको ध्यानमात्र करनेसे ही सिद्धि होती है इसमें कोई सन्देह नहीं है किन्तु ध्यान भक्तिपूर्वक होना चाहिये / प्रातःकाल स्नान कर नदीके किनारे कुशाके आसनपर बैठ // 12 // प्राणायाम और षडंगन्यास सब मूलमंत्रसे करे पीछे मलमंत्रद्वारा आठ अंजलि पुष्पप्रदान कर सीता| सहित श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करै // 13 // इसके उपरांत हनुमान्जीका यंत्र अंकित करै / पहले केसरसहित घिसे रक्तचंदन और रक्तचंदनकी कलमसे ताम्रपत्रके उपर अष्टदल कमल दिखना चाहिये // 13 // तिसके बीच मूलमंत्र लिवकर उस महमंत्र को हनुमानजीका स्वरूप समझ कर आधाहनपूर्वक For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं० म. 1207 // राले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण ॐ मुग्रीवाय नमः / सुग्रीवश्री द्वादशाक्षरीहनुमन्मन्त्रयन्त्रम्. पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमस्करोमि // इति सर्वत्र // 1 // ॐ लक्ष्मणे नमः / लक्ष्मणश्री पा०॥२॥ ॐ अंगदाय नमः। अंगदश्रीपा० // 3 // ॐ नलाय नमः / नलश्रीपा० V // 4 // ॐ नीलाय नमः / नीलश्रीपा० // ५॥ॐ जाम्बवते नमः / जाम्बबच्छीपा० // 6 // ॐ कुमुदाय नमः / कुमुदश्रीपा० // 7 // ॐ केसरिणे नमः / केसरिश्रीपा० ह हनुमते Hin8 // देवदक्षिणतः / ॐ पवनाय नमः / पवनश्रीपा० // 9 // बामे / ॐ अंजन्यै नमः। रुद्रात्मकाय अंजनीश्रीपा * // 10 // इति पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य / “ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणगतवत्सल // भक्त्या समर्पये तस्यमिदं ह्यावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजल्यष्टकं दत्त्वा विशेषादिदं निक्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् ॥इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य पुनर्थ्यात्वा एकाग्रचिनो मंत्रार्थ स्मरन् जपं कुर्यात्॥अस्य पुरश्चरणं लक्षजपः / लक्षांते दिवसं प्राप्य तेन महत्पूजनं कृत्वा दिवारात्रि व्याप्य जपेत् // तावत्कालं जपेत् यावत्संदर्शन जबेत् // एवंकते हनुमाविभागशेषाम् निशास आगच्छति साधकाय बरं दत्त्वा पुनर्बजति पाद्यादि दे // 15 // फिर मलमंत्रस गंधपुपादि निवेदन कर सुग्रीव लक्ष्मण अंगद नल नीळ // 16 // जाम्बवंत कुमुद और केसरी इन्हीं को कमळके आठों दलोंमें लिख कर पूर्वादिक्रमस इन आठोंका पूजन करना चाहिये // 17 // हनुमान्जीके दक्षिण भागमं पवनका पूजन करे / और वामभागमें अंजनीका पूजन करै // दळके अग्रभागम " कपिभ्यो नमः / " इस मंत्र से आठ अंजलि पुध चढ़ावै // 18 // पीछे कपिराजका ध्यान करके मवका जप करै / इस मंत्रको एक लाख जपना चाहिये। जिस दिन लक्ष जप पूरा होजावे उस दिन महापूजा करनी चाहिये / / 19 // एकाग्रचित्तसे रात्रि दिन हनुमान्जीके मंत्रका जप करने पर हनुमानजीका दर्शन होता है। जब तक दर्शन न होवे जप करता रहे // 20 // ऐसा करनेसे हनुमानजी साधकको हड़ प्रतिज्ञ जान राविक समय For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra mmm.kobatrm.org Acharya Shri Kaliassaga suyanmandir तथा च / नदीकूले विष्णुगेहे निर्जने पर्वते वने / / एकाग्रचित्रमाशय साधयेत्साधनं महत्॥९॥ महाशैलं समुत्पाट्य धावंतं रावणं प्रति॥ तिष्ठतिष्ठरण दष्ट घोरं गवं समच्चरन् / लाक्षारसारुणं गात्रं कालान्तकयनोपमम् // मलदमिनने सूर्यकोटिसमप्रभम् // अंगदा। धर्महावीरवष्टितं रुद्ररूपिणम् // 10 // एवंरूपं हतृमंतं ध्यात्वा यः प्रजन्मनुम् // लक्षजपालातः स्यत्सत्यं ते कथितं मया॥ 11 // ध्यानकमात्रतः पुंसां मिद्धिरेव न संशयः॥ प्रातः सात्वा नदीतीरे उपविश्यकुशासन // 12 // प्राणायामं पडंगश्च मूलेन सकलं चरेत् / / पुष्पांजल्यष्टकं दत्त्वा ध्यात्वा रामं समीतकम् // 13 // ताम्रपात्रे ततः पद्ममपत्र मकेसरम // रक्तचन्दनघृष्टेन लिखेत्तस्य शलाकया // 14 // कर्णिकायां लिग्वेन्मंत्रं तत्राबाह्य कपिप्रभुम् // कर्णिकायां हनूमंतं ध्यात्वा पायादिकं ततः // 15 // गंधप्पादिकं चैव निवेद्य मूलमंत्रतः // सुग्रीवं लक्ष्मणं चैव चाङ्गन्दं नलनीलकम् // 16 // जाम्बवंतं च कुमुदं के परिणं बलेदले // पूर्वादिकमतो देवि पूजयेद्धचन्दनैः // 17 // पवनश्चांजनश्चैव पूजयेदावामतः।। दलायेषु कपियोपि पुजाअन्य कं ततः // १८॥ध्यात्वा तु मंत्रराज विलक्षं यावत्तु साधकः // लक्षात दिवसं प्राप्य कुर्याच पूजनं महत् // 19 // एकाग्रचित्तानसा तस्मिन्पवननंदने / दिवारात्री जपं कुर्य्याद्यावत्संदर्शनं भवेत् // 20 // सुदृढ़ साधकं मत्वा निशीथे पवनात्मजः // मुत्रसन्नस्ततो भूत्वा प्रयाति साधकाग्रतः // 21 // यथेप्सितं वरं दत्वा साधकाय कपिप्रभुः // वरं लम्चा साधकेन्द्रो विहरेदात्मनः सुखैः // 22 // एतद्धि साधनं पुण्यं देवानामपि दुर्लभम् // तव स्नेहान्मयाख्यातं भक्कासि मयि पार्वति // 23 // इति श्रीगारुडे तंत्रे देवीश्वरमंगादे द्वादशाक्षरहनुमत्कल्पं समाप्तम् // प्रसन्न हो साधकके समीप आते हैं // 21 // तहां हनुमानजी साधकको अभिलषित वर दते हैं / साधक वरकी प्राप्त हो सुखपूर्वक विहार करता हे // 22 // यह परम पुण्यका देनेवाला साधन देवताओं को भी दुर्लभ है / हे देवि तुम मेरी भक्ता हो इस कारण तुम्हारे स्नेहके वशीभूत हो प्रकाश करा है // 23 // पद्द गारुडी तंत्र में लिखा हुआ पार्वती महादेवका सम्बाद है // इति // For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पू०ख०१ 208 // तरं०९ // अथ हनुमद्दशाक्षरमन्त्रवीरसाधनयोगः // " हेनुमतोऽतिगुह्यं तु लिख्यते वीरसाधनम् // स्वबीजं पूर्वमुच्चार्य पयनं च ततो वदेत् alu // नन्दनं च ततो देयं डेऽवसानेऽनलप्रिया // दशार्णोऽयं मनुः प्रोक्तो नराणां मुरसादपः // 2 // " मंत्रो यथा // "हॅपवनन घान्दनाय स्वाहा” इति दशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // "बाह्म मुहूर्त चोत्थाय कतनित्यक्रियो द्विजः॥गत्वा नदी ततः सात्वा तीर्थ मावाह्य चाभसि // मूलमंत्र ततो जवा सिंचेदादित्यसंख्यया // 3 // " ततो वाससी परिधाय गंगातीरे पर्वते वा उपविश्य / हाँ अंगु 1 अथ भाषानुवादः-हनुमान जीका अत्यंत गुप्त वीर साधन कहा जाता है। "ई पवननंदनायस्वाहा" यह दशाक्षरका मंत्र मनुष्यों के लिये कल्पवृक्षके समान है। अब में इसके कमरे की विधि कहता है। साधक ब्राह्ममुहूर्तमें उठ संध्यावंदनादि नित्यक्रिया करने के उपरांत नदीके किनारे जाय स्नान करके तीर्थावाहनपूर्वक आठवार मूलमंत्रका जप करे फिर उस जल के द्वारा बारह बार अपने मस्तकपर अभिषेक करे / पछि वखपुगळ धारण कर गंगाके तीर बा पर्वत पर बैठ "हाँअंगुष्ठाभ्यांनमः / इस प्रकार करन्यास हृदयादिषडंगन्यास करै / तिसके पीछे अकारादि 6 स्वरवर्णीको उच्चारण करके वामनासापुट वायुको पूर्ण कर तथा ककारादिमकार पर्यंत 25 अक्षरांको उच्चारण करके दोनां नासापुटामें वायुको बन्द कर और पकारादिक्षकारांत वणीको उच्चारण क करके दक्षिणनासापुटसे वायुको रेवन करै अर्थात बाहर निकाल दे। इसी प्रकार दक्षिणनासापुटसे वायुको बैंचकर दोनों नासापुटामें कुंभक और वाम नासापुटसे रेचन करै / फिर वामनासापुटसे पूर्ण दोनों नासापुटासे धारण और दक्षिणसे रेचन करै / इस प्रकार तीनचार प्राणायाम कर मंबके अक्षरांसे अंगन्यास पूर्वक ध्यान करै / हनुमानजी संग्रामके बीच कोटि वानरीखे युनः हैं। हनुमानजी रावणको पराजय करने के निमित्त धावित होरहे है। हनुमान जीको देखकर रावण कंपायमान होरहा है। महाबीर लक्ष्मणजीको रणभूमिमें गिरे हुये देख हनुमानजी क्रांधके साथ महापर्वतको वा बभटके साथ हाहाकार ध्वनिसे तीनों लोकोंको कंपित कर रहे हैं। हनुमानजी ब्रह्माण्डव्यापी भीम कलेवरको धारण किये हुए स्थित हैं। इस प्रकार ध्यान करके छः हजार मूलमंत्रका जप करना चाहिये छः दिन इस प्रकार जप करके सातवें दिन दिनरात जप करना चाहिये / इस प्रकार जप करने पर रात्रिके चौथे पहरमें महाभय प्रदर्शनपूर्वक निश्चय हनुमानजी साधकके समीप आगमन करते हैं। यदि साधक मायाको अर्थात भयको परित्याग करने में समर्थ हो तो अभिलषित बर प्राप्त कर सकता है। विद्याको धनको राज्यको तथा शत्रु निग्रहको उसी समय प्राप्त होता है सत्य है सत्य है भले प्रकार निश्चय किया| हुआ है। इति // // 208 // For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir शान्यां नमः ॥1॥हाँ तर्जनीभ्यां नमः // 2 // इत्यादिना करन्यास हृदयादिपडंगन्यामं च कृत्या प्राणायाम कुर्यात् // तथा चअकारादिवर्णानुच्चार्य वामनामापुटेन वायं पूरयेत् // पंचवर्गानुच्चार्य वायु कुंभयेत // यकारादिवर्णानच्चार्य दक्षिणनासापुटेन वायुं। रेचयेत / / एवं वारत्रयं कृत्वा मंत्रवणैरंगन्यामं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ध्यायेद्रणे हनुमंतं कपिकोदिसमन्वितम् ॥धावंतं रावणं जतं दृष्ट्वा सत्वरमुत्थितम् // लक्ष्मणं च महावीरं पतितं रणभृतले // गुरुं च क्रोधमुत्पाद्य गृहीत्वा गुरुपर्वतम् // हाहाकारः सदश्च / कम्पयंतं जगत्रयम् // ब्रह्माण्डं स समावाप्य कृत्वा भीमं कलेवरम् // 3 // इति ध्यात्वा पट्महस्र जपेत् / मतमदिवमं प्राप्य तदा दिवाई रात्रि व्याप्य जोत् / ततो महाभयं दत्त्वा त्रिभागशेपासु निशासु नियतमागच्छति साधको यदि मायां तरति तदेप्सितं वरं प्रामोति // विद्यां चापि धनं वापि राज्यं वा शत्रुनिग्रहम् // तत्क्षणादेव चामोति सत्यं सत्यं मुनिश्चितम् // इति दशाक्षरवीरमंत्रसाधनम् // / / अथ अष्टादशाक्षरमन्त्रप्रयोगः।। मंत्रो यथा / / "ॐ नमो हनुमते आवेशय आवेशय म्बाहा" इत्यष्टाशाक्षरमंत्रः।। अम्य विधानम् / / रक्तचंदनकी हनुमान्जीकी प्रतिमा बनाकर प्राणप्रतिष्ठा कर और रक्तवस्त्र धारण करावै। पीछे आप रक्तवस्त्र धारण कर रक्तवर्णके आसनपर| पाभिमुख बैठकर रात्रिके समय हनुमानजीका पंचोपचार पूजन करै गुडके चूरमेका नैवेद्य लगाये, उस नैवेद्यको मृतिक सामने आठ पहर धरा रहने दे, जब वे दूसरे दिन नैवेद्य लगावै तब पहले दिनका नैवेद्य उठाकर किसी पात्र में इकट्ठा करता रहे / अनुदान समाप्त होने के पछि किसी दुर्बल ब्राह्मणको देदेवे या पृथ्वीमें गाड़ देवै। घृतका दीपक जलावै, रुद्राक्षकी मालासे 1100 मंत्र नित्य जपै, उसी स्थानमें रक्तवस पर सोजावे ऐसा करनेसे ११दिनके भीतर कदनुमानजी ब्रह्मचारी स्वरूप हो राषिके समय स्वप्न द्वारा दर्शन देकर साधकके प्रश्नका उत्तर अवश्य देते हैं। साधक जा पूँछता है बताते हैं औरभी जिस कामके वास्ते जपे उसका मनोरथ पूर्ण करते हैं। यह एक महात्माका उपदेश किया हुआ बड़ा चमत्कारी मंत्र है. मेरा अनुभव किया हुआ सिद्ध मंत्र है। इसको गुप्त रखना चाहिये // इत्यष्टादशाक्षरहनुमन्मंत्रमयोगः / / For Private And Personal use only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं•म• 0 खं० . // अथ चतुर्दशाभरहनुमन्मंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा “ॐ नमो हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा” इति चतुर्दशाक्षरो मंत्रः / / अस्य विधानम् // अथ हनुमत्पूजापद्धतिप्रारंभः / तत्रादौ मंत्रानुष्ठानप्रारम्भात्पूर्वकत्यम // चन्द्रतारादिबलान्विते सुमहूर्ते पुण्यतीर्थक्षेत्रे विष्णुगहे पर्वते व वने वा निर्जनस्थानादावनुष्ठानयोग्यभृमिपार्रग्रहणं कृत्वा तत्र मार्जनदहनखननमप्लावनादिभिः स्मृत्युक्तः शोधनोपायैः शुद्धिं संपाय जपस्थानस्य चतुर्दिक्षु कोशं क्रोशद्वयं वा क्षेत्रमाहारादिविहारार्थ परिकल्प्य जपस्थानभूमौ कर्मशोधनं कुर्यात् // ततः पुरश्चरणात प्राक् तृतीयदिवमे क्षौरादिकं विधाय ततः प्रायश्चितांगतार्थ विष्णुपुजातर्पणश्राद्धानि होमं चान्द्रायणादिव्रतं च कुर्यात // व्रताशक्तौ गोदानं द्रव्यदानं च कुर्यात् / / यदि मर्वकर्माशक्तिम्तदा प्रयाश्चितांगनार्थ पंचगव्यप्राशनं कुर्यात् / / नत्र मंत्रः / / "ॐ यत्त्वंगम्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके।। प्राशनापंचगव्यभ्य दहत्यनिरिबंधनम् 1" / मूलं पठित्वा प्रणवेन पंचगव्यं पिबेत / / तदिन उपवामं कुर्यात / अशक्त श्वेत पयःपानं हविष्यान्नैकभक्तवतं वा कर्यात / / ततः पुरश्चरणात पूर्वदिने स्वदेहशुद्धयर्थ पुरश्चरणाधिकारप्राप्त्यर्थ चायुतगायत्री) जपं कुर्यान // तथा च देशकालौ मंकीर्त्य ममामुकगोत्रम्यामुकशर्माणो ज्ञाताज्ञातपापक्षयार्थं करिष्यमाणश्रीहनुमन्मंत्रपुरश्चरणाधिकारार्थ / * इस मंत्र को आम्रक पनेपर गुलाल बिछाकर अनारकी कलमसे एक लाख मंत्र लिखे, तो मनोरथ सिद्ध हो राज्यका प्रयोजन सिद्ध हो अनेक कार्य मना वांछित सिद्ध हो, इसमें कुळ संदेह नहीं, अगर “ॐ नमो हरिमर्कटमकंटाय अमुकं हारमर्कटमकंटाय स्वाहा” इस प्रकार भोजपच या कागजपर सिंदृग्स लिखकर वीरमूति हनुमान के मस्तकपर चिपकाय देखें. पंचोपचार पूजन करके सरसाक तेल की इनमानजीके मस्तकपर इस मंत्रके द्वारा एक लाख धारा देव तो शत्रुका नाश होवे, शत्रुका धन नष्ट होवे, अत्यंत दुःखी होकर पैरो आन पड़े। यह विधि भी एक जटिल सिद्ध पुरुषकी कहाँ हुई हमारी अनुभूत विद्या है। इति चतुर्दशाक्षरहनु मंत्रप्रयोगः // इति हनुमपठलं समागम // 29 // For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir चायुतगायत्रीजपमहं करिष्ये / इति संकल्प्य व्याहृतित्रयपूर्वकगायव्ययुतं जपत / ततो गायच्या आचार्यऋषि विश्वामित्रं तर्पयामि d // 3 // गायत्रीछंदम्तर्पयामि // 2 // मवितारं देवतां तर्पयामि // 3 // इति तर्पणं कृत्वा ततस्तम्यां रात्री देवतोपास्तिशुभा शुभ स्वनं विचारयेत् // तथा च नानादिकं कृत्वा हरिपादाम्बुजं स्मृत्वा कुशामनादिशव्यायां यथासुखं स्थित्वा वृषभध्वजं प्रार्थ येत // तत्र मंत्रः। “ॐ भगवन्देवदेवेश शुलभूषवाहन / / इष्टानिष्टं समाचश्च मम सुतम्य शाश्वतः // ॥ॐ नमोजाय त्रिने त्राय पिंगलाय महात्मने / वामाय विश्वरूपाय म्बमाधिपतये नमः // // म्बमे कथय मे तथ्यं सर्वकार्यवशेषतः // क्रियासिद्धि विधास्यामि त्वत्प्रमादान्महेश्वर ॥३॥इति मंत्रणाष्टोनरशतवारं शिवं प्रार्थ्य निद्रां कुर्यात // ततः स्वनं दृष्टं निशि प्रार्तगुरुवे विनिवेदयेत् // अथवा स्वयं म्वमं विचारयेत् / / इति पूर्वकन्यम // अथ प्रातःकत्यम // पुरश्चरणदिवसे श्रीमत्माधकेन्द्रः प्रातःकालात्पूर्व दंडव्यात्म के बाह्म मुहूर्त चोत्थाय प्रातःस्मरणं कृत्वा भूमिं प्रार्थयत // तत्र मंत्रः // ॐ समुद्रमेखले देवि पर्वत स्तनमंडले // विष्णुपनि नमस्तुत्यं पादस्पर्श क्षमम्ब मे // 1 // " इति भूमि संप्रार्य श्वामानुसारेण भूमौ पादं दत्त्वा बहिब्रजेत् // ततो लिंगचन्द्रायोचित्र भारती जाहवी गुरुः / रक्ताधितरणं युद्धे जयोऽनलप्समचनम् // शिखिहंसरथांगाढाये रथे स्थान च मोहनम् // आरोहण | सारसस्त्र धरालाभश्च निम्नगा // प्रासादः स्पंदनः पद्मं छत्र कन्या हमः फलीः।। नागो द्वीपो हयः पुष्पं वृषभोवन पर्वतः।। मरावटा ग्रहास्तारा नारी सूर्योदयो सराः // इम्यशैल विमानानामारोहो गगने गमः // मद्यमांसादनं विष्ठालेपो रुधिरखेचनम् // दध्यादनादन राज्याभिषको गोवृषध्वजाः // सिंहः सिंहासनं शंखो| बदिव रोचनादिभिः।। चंदनं दपणश्चैषां स्वप्ने वै दर्शन शुभम तैलाभ्यक्तः कृष्णवों नग्नो नागवायसौ // शुष्क कंटकिवृक्षश्च चांडालो दीर्वकंधरः।। प्रासादस्त बद्दीनल नेते स्वप्ने शुभाबहाः इति स्वयं स्वप्नं विचारयेन / / For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . // 21 // यामावहिः नैऋत्य कोणे जनवर्जिते देशे उत्तराभिमुखः अनुपानत्कः वस्त्रेण शिरः प्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा मृतिकया जलेन यथासंख्यं पू० खं० 2 शौचं कृत्व हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूषं च कृत्या दंतधावनं कुर्यात॥ तथा च॥ आम्रचंपकापामागाद्यन्यतमं द्वादशांगुलं दंतकाष्ठं गृहीत्वा प्रार्थयेत् ॥"ॐ आयुबलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च // श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वंनो देहि वनस्पते // 1 // " इति संप्रार्थ / ॐ ह्रीं तडित्स्वाहा” इति मंत्रण काष्ठं छित्त्वा "ॐ क्लीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः" इत्यनेन दंतान मंशोध्य में बीजन जिह्वामु |ल्लिख्य दंतकाष्ठं बालयित्वा नैर्ऋत्यां शुद्धदेशे निःक्षिपेत // ततो मूलेन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात् / / तथा च तात्कालिकोद्धृतोद में किनोष्णोदकेन वा स्नानं कृत्वा न तु पर्युषितशीतोदकेन ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत // तत्र मंत्रः॥"ॐ गंगे च / यमुने चैव गोदावरि सरस्वति // नर्मद मिंधुकावरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कर // 3 // आवाहयामि त्वां देवि स्नानार्थमिह मुंदरि // एहि / गंगे नमस्तुत्यं सर्वतीर्थसमन्विते // 2 // " इति तीर्थान्यावाह्य // "ॐ ऋतं च सत्यं०" इति मंत्रेणाभिमंत्र्य वरुणमंत्रण स्नात्वा शुष्क शुभ कामोत्पन्नरक्तवस्त्रं परिधाय सूर्यायायं दद्यात् // तत्र मंत्रः। “ॐ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते // अनुकंपय मां देव गृहाणार्य नमोस्तु ते॥१॥" इत्ययं दत्त्वा नायिवस्वं परिपीड्य आचम्य नित्यनामीत्तकं समाप्य शैवं पंचत्रिपुडं वैष्णवं द्वादशापुड़ तिलकं कुर्यात् // ततः पूजागृहद्वारमागत्य मूलेन अस्वाय फडिति द्वारं संप्रोक्ष्य दक्षिणशाखायाम् / ॐ गं गणपतये नमः // 1 // ॐ हूँ दुर्गायै नमः // 2 // वामशाखायाम् ॐ वं वटुकाय नमः // 3 // ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः // 4 // द्वारोपरि ॐ में सरस्वत्यै नमः // 5 // देहल्याम् ॐ सुदर्शनायाबाय फट् // 6 // इति द्वारपूजां कत्वा जपस्थाने गत्वा "ॐ गृहीतस्यास्य मंत्रस्य पुरश्चरण // " For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir सिद्धये।।मयेयं गृह्यते भमिर्मत्रोयं सिद्धयतामिति।। 3 / / " इति मंत्रण भूमि संगृह्य अश्वत्थोदुंबरप्लक्षाणामन्यतमस्य वितस्तिमात्रान् दश की। लान् “ॐ नमः मृदर्शनायास्त्राय फट्" इति मंत्रणाष्टोनरशताभिमंत्रितान “ॐ ये चात्र विन्नकर्तारो भुवि दिव्यतरिक्षगाः / / विनभूताच ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धये // 1 // मयैतत्कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः // अपमर्पतु ते मय निर्विघ्नं सिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति *मंत्रव्येन दशदिक्ष दश कीलान निखनेत् // ततश्च "ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट्इति मंत्रेण प्रत्येककीलं मंपूज्य तत्रैव पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिलोकपालानाबाह्य पंचोपचारैः संपूज्य जपस्थानमध्ये गणेशकूर्मानंतवमुधाक्षेत्रपालांश्च मंपूज्य दिक्पालेभ्यः क्षेत्रपालगणपतिभ्यश्च बलिं दन्या तद्बाह्ये भूतबलिं दद्यात // तत्र मंत्रः // "ॐ ये रौद्रा गैद्रकर्माणो गैद्रस्थाननिवामिनः // मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च | ये // 1 // भूचराः खेचराश्चैव तथा चैवांतरिक्षगाः / ते सर्व प्रीतमनमः प्रतिगृहत्विमं बलिम // 2 // " इति मंत्रदयन दशदिक्ष बाह्ये मापभक्तबलिं दत्त्वा वामकरांगुलिभिरयंजलेनोत्सृज्य पुष्पांजलिं गृहीत्वा “ॐ भूतानि यानीह बसंनि भूतले बलिं गृहीत्वा विधिव प्रयुक्तम् // मंतोपमासाद्य वजंतु सर्व क्षमंतु नान्यत्र नमोस्तु तेभ्यः // 3 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं दत्वा प्रणम्य हस्ती पादौ प्रक्षा ल्याचमेत् // ततः “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा // यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः // 1 // " इति मंत्रण मंडपांतरं मंप्रोक्ष्य तत्र तावदासनभूमौ कर्मशोधनं कार्यम // यत्र जपकी एक एव तदा कर्मम वे उपविश्य नत्रैव जपं दीप स्थापनं च कुर्यात् / / यत्र बहवो जापकास्तत्र कर्ममुखोपरि दीपमेव स्थापयेत॥ इति कमशोधनं विधाय नत्रामनाथो जलादिना त्रिकोणं कृत्वा तत्र “ॐ कूर्माय नमः॥३॥ ॐ ह्रीं आधारशक्तिकमलामनाय नमः॥२॥ ॐ पृथिव्यै नमः // 3 // " इति गंधाक्षतपुष्पैः संपूज्य For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shellssagaur yanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं० म०dig तपरि कशासनं 1 नदुपरि मृगाजिनं 2 तदुपरि कम्बलायासनं 3 केवल कुशासनं या आस्तीर्य स्थापितानां त्रयाणामासनानामुपरिपू० ख.. क्रमेण "ॐ अनन्ताय नमः। ॐ विमलासनाय नमः२ ॐ पद्मामनाय नमः३" इति मंत्रत्रयण चीन दर्भान प्रत्येकं निदध्यात् // एवमा हतं. मनं संस्थाप्य तत्र प्राङ्मुख उदङ्मुखो वोपविश्यामनं शोधयेत् / तत्र मंत्रः / ॐ पृथ्वोति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः। कुमो देवता / तरं०९ मुलञ्छन्दः / आसने विनियोगः॥ “ॐ पृश्चि त्वया धृता लोका दवि त्वं विष्णुना वृता॥ त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम // 3 // " इति मंत्रणासनं प्रोक्ष्य मूलेन शिखां बद्धा “ॐ केशवाय नमः // 3 // ॐ नारायणाय नमः // 2 // ॐ माधवाय नमः॥३॥" इति त्रिराचम्य प्राणायाम कुर्यात // तथा च / दक्षिणहरूलांगुष्टेन दक्षनामापुटं निरुध्य वामनामापुटेन मूल पोडशवारं जपन शनैःशनैः प्राणाख्यवायुमाकृष्य शिरमि महस्रारे धाग्येदिति पुरकः / / 1 // नः दक्षहस्तानामिकानर्जन्यंगुष्टैनामापुटवयं निरुध्य मूलं चतुः) पष्टिवारं जपन कुंभयेत् // 2 // पुनर्दशनामापुटांगुटनिरोधनं न्यका मूलं झात्रिंशद्वार जपञ्छनैः शनैस्तद्वारेचयेत् // 3 // एवं मेव प्राणायामजपं कृत्वा देशकालौ मंकीत्यामुकगोत्रः श्रीअमुकदेवशर्मा श्रीहनुमद्देवताया अमकमंत्रमिद्धिप्रतिबंधकाशेषदुरितक्षयपूर्व कामुकमंत्रसिद्धिकामः इयतसंख्याजपतनदशांशहामतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनरूपपुरश्चरगं / केवल जपरुपपुरश्चरणं वा) अहं करिष्ये इति संकल्प्य "ॐ मुदर्शनायास्त्राय फट" इति तालत्रयेण दिग्बंधनं कृत्वा भूतशुद्धिप्राणप्रतिष्टांतमातृकाबहिर्मातृकासृष्टिस्थितिसंहारमा // 211 // तृकान्यासंश्च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गण कृत्वा प्रयोगोक्तन्यामादिकं कुर्यात / / अथ पाठपूजाप्रयोगः // पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमण्डले मंडकादिपरतन्यांतपीठदेवताः स्थापयेत // नथा च बामभागे श्रीगुरुवे नमः // // दक्षिणे गणपतये नमः॥२॥ मध्ये स्चेष्टदेवनाये नमः | For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 3 // इति नत्वा पुष्पाक्षतानादाय पीठमध्ये ॐ मं मंडकाय नमः // ॥ॐ कालाग्निरुद्राय नमः // 2 // ॐ अं आधार ) शक्तये नमः // 3 // ॐ कृ कमाय नमः // 4 // ॐ अं अनन्ताय नमः // 5 // ॐ पृ पृथिव्यै नमः // 6 // ॐ श्री श्रीरमागगया। नमः / / 7 // ॐ रं रत्नदीपाय नमः // 8 // ॐ रत्नमंडाय नमः // 9 // ॐ के कल्पवृक्षाय नमः ॥10॥ॐ रं रत्नबदिकाय नमः // 11 // ॐ रत्नसिंहासनाय नमः // 12 // आनेय्याम् ॐ यमाय नमः // 3 // त्याम ॐ जां जानाय नमः IN || 14 // वायव्ये ॐ व वैराग्याय नमः || 35 // ऐशान्ये ॐ ऐश्वर्याय नमः // 16 // पूर्व ॐ अ अवमाय नमः // 7 // दक्षिणे ॐ अं अज्ञानाय नमः // 18 // पश्चिमे ॐ अं अवगम्याय नमः // 19 // उनरे ॐ अं अनचर्याय नमः // 20 // पुनः पीठमध्ये / ॐ आं आनन्दकंदाय नमः // 20 // ॐ में मंचिन्नालाय नमः // 2 // ॐ म मर्वतन्वकमलामनाय नमः॥२३॥ ॐ प्रकृतिमयपत्रेयो नमः // 24 // ॐ विं विकारमय केमरेन्यो नमः / / 25 / / ॐ पं पंचाशद्वर्णाट्यकर्णिकायो नमः / / 26 // Kॐ अं अमंडलाय द्वादशकलात्मने नमः // 27 // ॐ मां मोममंडलाय पोडशकलात्मने नमः // 28 // ॐ वं वह्निमंडलाय दश कलात्मने नमः // 29 // ॐ मं सत्त्वाय नमः // 30 // ॐ रं रजमे नमः // 3, / / ॐ तं नममे नमः / / 30 // ॐ आंच आत्मने नमः // 33 // ॐ पं परमात्मने नमः // 34 // ॐ अं अंतरात्मने नमः // 35 // ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः // 36 // ॐ म मायातवाय नमः // 37 // ॐ कं कलातत्त्वाय नमः // 38 // ॐ विं विद्यातत्त्वाय नमः // 39 / / ॐ पं परतन्याय नमः॥ 40 // इति पीठदेवताः संस्थाप्य प्रयोगोक्तनवपीठशक्तीः पूजयेत् // अथ शंखस्थापनप्रयोगः॥ देववामतः त्रिकोणमंडलं For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं० म० RDC कत्वा जलेन प्रोक्ष्य त्रिकोणातर्मायां (ह्रीं) विलिख्य “ॐ ह्रीं आधारशक्त्यै नमः" इति संपूज्य मूलेन त्रिपदाधारं प्रक्षाल्य त्रिकोणमध्ये पू०ख०१ तासंस्थाप्य “ॐ में वह्निमंडलाय दशकलात्मने शंखपात्रामनाय नमः // " इत्याधारं मपूजयेत् // ततः . ॐ क्लीं महाजलचराय हूँ। फट् स्वाहा पांचजन्याय नमः॥” इति मंत्रण क्षालितं शंखमाधारोपरि संस्थाप्य "ॐ अं मूर्यमंडलाय द्वादशकलात्मने शंखपात्राय नमः” इति शंख पूजयेत॥ततो मूलेन 'नमः' इति शंखे जलमापूर्य "ॐ मों सोममंडलाय पोडशकलात्मने शंखपात्रामृताय नमः” इति गंधादिभिः समपूज्याभिमंत्रयेत // नत्र मंत्रः // “ॐ शंखादी चन्द्रदैवत्यं कुक्षी वरुणदेवता // पृष्ठे प्रजापतिश्चैवमये गंगा सरस्वती // 3 // त्रिलोक्ये यानि नीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया / शंखे तिष्टंति विप्रेन्द्र तम्माच्छंखं प्रपूजयेत् // 2 // " इत्यभिमंत्र्य प्रार्थयेत् / नत्र मंत्र "ॐ त्वं पुरा मागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे // निर्मितः सर्वदेवश्च पांचजन्य नमोस्तु ते॥"इति मंत्रार्थ // "ॐ पांचजन्याय विद्महे / पावमानाय धीमहि ॥तन्नः शंखः प्रचोदयात् // " इति शखगायत्रीमष्टया जपित्वा शंखमुद्रां प्रदर्शयेत॥ इति शंखस्थापनम् // अथ घंटा स्थापनप्रयोगः // देवदक्षिणतः घंटा संस्थाप्य नादं कृत्वा पूजयेत् // तथा च / “ॐ भूर्भुवः स्वः गरुडाय नमः" आवाहयामि सर्वोप.. पचारार्थ गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि // इत्यवाह्य "ॐ जगद्धने मंत्रमातः स्वाहा” इति मंत्रेण घंटास्थितगरुडं घटां च। संपूज्य गरुडमुद्रां प्रदर्शयेत् / / इति घंटा संस्थाप्य गंधाक्षतपुष्पादींश्च पूजोपकरणार्थ स्वदक्षिणपार्श्व निधाय मूलेन नमः इति जलेन / प्रोक्ष्य जलार्थ बृहत्पात्रं छत्रादर्शचामराणि च स्वबामे संस्थापयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताभ्रपात्रे निधाय धृतेनास्यज्य] तदुपरि दुग्धधारी जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संगोष्य आसनमंत्रण पृष्पाद्यासनं दत्त्वा पीटमध्ये संस्थाप्य देशकालौ संकीर्त्य मम ||212 // For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir श्रीहनुमद्देवतानूतनयंत्रे मूर्ती वा प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये / इति संकल्प्य प्रतिष्ठां च कुर्यात् // तथा च // अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः। ऋग्यजुःसामानि च्छंदांसि / क्रियामयवपुःप्राणाख्या देवता / आँ बीजम् / ह्रीं शक्तिः। कौं कीलम् / अस्य नूतनयंत्रे मूतौ वा प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः॥ इति जलं भूमौ शिवा करेणाच्छाद्य ॐ ओं ह्रीं क्रौं यरलँचशपमहसः सोहं अस्य हनुमद्दे | वतासपरिवारयंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः // 1 // पुनः ॐ आँ ह्रीं को यरलवैशषसँहंसः सोहं अस्य हनुमद्देवतासपग्विारयंत्रस्य जीव इह स्थितः // 2 // पुनः ॐ आँ ह्रीं क्रौं पॅरलॅब सहसः सोहं अस्य हनुमद्देवतासपरिवारयंत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि // 3 // पुनः ॐ आँ ह्री को पॅरलँचपसहंसः सोहं अस्य हनुमद्देवतासपरिवारयंत्रस्य वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःश्रोत्रजिह्वाघाणपाणिपादपायूपस्थानि इहै। वागत्य सुखं चिरंतिष्ठंतु स्वाहा॥४॥इति प्राणान प्रतिष्ठाप्य यःप्राणतो निमिषतोमहित्वविधम इति मन्" इति त्रिवारं पठेत्॥ततःॐ मनोज तिर्जुषता सुप्रतिष्ठा प्रतिष्ठा // इत्युक्त्वा संस्कारसिद्धये पंचदशप्रणवावृत्तीः कृत्वा अनेन श्रीहनुमद्देवतासपरिवारयंत्रस्य गर्भाधाना दिपंचद शसंस्कारान्संपादयामि नमः॥ इति वदेत् / ततः “यंत्रराजाय विद्महे महायंत्राय धीमहि // तन्नो यंत्रः प्रचोदयात्" इत्यष्टोत्तरशतवा रमभिमंत्र्य मूलदेवा ध्यात्वा आवाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः पूजयेत् // अथावाहनादिपूजनम् // अक्षतानादाय "ॐ देवेश भक्तिसुलभ परिवारसमन्वित॥ यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावद्देव इहावह / / 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीहनुमते नमः इहागच्छ इह तिष्ठ एवं सर्वत्र / / इत्यावाहनम् // 3 // "ॐ अज्ञानादुर्मनस्त्वादा वैकल्यात्साधनस्य च // यद्यपूर्ण भवेत्कृत्यं तदाप्यभिमुखो भव॥ 3 // " मू० ॐ भू० श्रीहनुमते नमः इह सम्मुखो भव इति सम्मुखीकरणम् // 2 // "ॐ यस्य दर्शनमिच्छन्ति देवाः स्वाभीष्टसिद्धये // तस्मै ते| For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ख.१ AL परमेशाय स्वागतस्वागतं च ते // 1 // " मू० ॐ भू० श्रीहनुमते नमः मुस्वागतं समपर्यामि // इति मुस्वागतम् // 1 // "ॐ देवदेव महाराज प्रियेश्वर प्रजापते // आसनं दिव्यमीशान दास्येहं परमेश्वर // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भू० श्रीहनुमते नमः आमनं समर्पयामि // इत्यासनम् // 4 // इत्यासनं दत्त्वा करौ बद्धा प्रार्थयेत् / / "ॐ स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यात्त्वमिहागतः॥प्राकृत त्वमदृष्ट्वा मां बालवत्परिपालय // 1 // " मू. ॐ भ० श्रीहनुमते नमः प्रार्थनां समर्पयामि नमस्करोमि // इति प्रार्थयित्वा पाद्यादि पूजनं कुर्यात् / / अथ पाद्यादिपूजनम् // "ॐ यद्भक्तिलेशसंपर्कात्परमानंदसंभवः // तस्मै ते चरणाजाय पाद्यं शुद्धाय कल्पये // 1 // "] पृ० ॐ भृ० श्रीहनुमते नमः पाद्यं समर्पयामि / इति पाद्यम् // 1 // "ॐ देवानामपि देवाय देवानां देवतात्मने // आचामं कल्पयामी शशुद्धानां शुद्धिहेतवे // 1 // " मू० ॐ भ० श्रीहनुमते नमः आचमनं समर्पयामि / इत्याचमनम् // 2 // "ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् // तापत्रयविमोक्षाय तवार्य कल्पयाम्यहम् // 1 // इत्योंदकेनाय दत्त्वा श्रीहनुमते नमः अर्य स० इति वदेत् / इत्यय॑म // 3 // "ॐ सर्वकालुप्यहीनाय परिपूर्णसुखात्मने // मधुपर्कमिदं देव कल्पयामि प्रसीद मे // 1 // " मू० ॐ भ० श्रीहनुमते नमः मधुपर्क नमर्पयामि // इति सर्वत्र / इति मधुपर्कः // 4 // "ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः / / शुद्धिमामोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् // 1 // " इति पुनराचमनीयम् // 5 // "ॐ गंगासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलैः॥ नापि तोऽसि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे // 1 // " इति स्नानम् // 6 // "ॐ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे // मयैवापादि ते तुल्यं वाससी प्रतिगृह्यताम् // 1 // इति रकवखे // 7 // "ॐ नवभिस्तंतुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीतं चोनरीयं गृहाण मानन्दलक्षणम् // तापत्रयविमलयहीनाय परिपूर्णसुखात्मने // मधुपका उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमा नापि // 213 // For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabath.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir परमेश्वर // 1 // " इति यज्ञोपदीतम् // 8 // "ॐ स्वभावमुंदरांगाय सत्यासत्याश्रयाय ते // भूपणानि विचित्राणि कल्पयामि सुरा र्चित // 1 // " दशहस्तांगुष्ठस्पृष्टानामिकात्मिकया मुद्द्या भषणानि दद्यात् // इत्याभूषणम् // 1 // "ॐ श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं च वगंधादयं मुमनोहरम् // विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दन प्रतिगृह्यताम् // 1 // " अंगुष्ठौ कनिष्ठामूललग्नौ गंधमुद्रा // 10 // ॐ अक्षताथ सुरश्रेष्ठ कुंकुमाताः सुशोभिताः // मया निवेदिता भत्त्या गृहाण परमेश्वर // 3 // " सर्वांगुलीभिर्दद्यात् / इत्यक्षताः // 13 // "ॐ माल्यादीनि मुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो // मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर // 1 // " तर्जन्यंगुष्ठमूललने पुष्पमुद्रा इति / पुष्पम् // 12 // इति पुप्पांतं पूजयित्वा प्रयोगोतावरणपूजां च कृत्वा भूपादिपूजनं कुर्यात् // अथ अपादिपूजनम् // 'फडिति'| धूपपात्रं संप्रोक्ष्य मूलेन नमः इति गंधपुष्पान्यां संपूज्य पुरतो निधाय ( Rs ) इति वह्निबीजेनानि संस्थाप्य तदुपरि मूलेन दशांगं दत्त्वा घंटा बादयन / “ॐ बनस्पतिरसोद्भूतो गंधाढयो गंध उत्तमः // आप्रेयः सर्वदेवानां धूपायं प्रतिगृह्यताम् // 1 // " मृ० ॐ भू० सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सवाहनाय श्रीहनुमते नमः धूपं समर्पयामि / इति पठित्वा नाभिदेशे धूपयित्वा देवस्य वामभागे धूपपात्रं - निधाय शंखजलं चोत्सृज्य तर्जनीमूलांगुष्ठयोगे धूपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् / इति धूपः // 1 // ततः दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य मंत्राक्षरतंतुभि वनि निक्षिप्य (ॐ) इति प्रणवेन प्रज्वाल्य घंटां वादयन् नेत्रादिपादपर्यंत दीपं प्रदर्शयेत्॥"ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः॥स वाह्यान्यंतरज्योतिदीपोयं प्रतिगृह्यताम्॥१॥"मृ० ॐ भू० सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सबाहनाय श्रीहनुमते नमः दीपं समर्पयामि / / व इति पठित्वा देवस्य दक्षिणभागे दीपपात्रं निधाय ततः शंखजलमुत्सृज्य मध्यमांगुष्टलग्ने दीपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् / इति दीपः // 2 // ततो | // ततः महादीप दीप समय तो For Private And Personal use only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org देवस्याये देवदक्षिणतो वा जलेन चतुरखं मंडलं कृत्वा स्वर्णादिभोजनपात्रं संस्थाप्य तन्मध्ये पडूसोपेतं विविधप्रकारं मोदकं वा निधाय पू० खं. 1 मलेन संप्रोक्ष्याधोमुखदक्षिणहस्तोपरि तादृशं वामहस्तं निधाय नैवेद्यनाच्छाद्य ( ॐ यँ ) इति वायुबीजेन पोडशथा संजप्य वायुनाह तं• तद्गतदोषान संशोप्य ततो दक्षिणकरतलं तत्पृष्ठलनवामकरतलं कृत्वा नवेद्यं प्रदर्य ( अर) इति वह्निबीजेन पोडशवारं संजप्य तदुत तरं०९ नामिना तद्दोषं दग्ध्वा ततो वामकरतले (ॐ) इति अमृतबीजं विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं दक्षिणकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदश्य (ॐ बँ) इति| मुधाबीजं पोडशवारं संजप्य तदुत्थामृतधारया प्लावितं विभाव्य मलेन प्रोक्ष्य धेनुमुद्रां प्रदर्श्य मूलेनाष्टधाभिमंत्र्य गंधपुष्पाभ्यां संपूज्य देव , स्योद्गतं तेजः स्मृत्वा वामांगुष्ठेन नैवेद्यपात्रं स्पृष्टा दक्षिणकरेण जलं गृहीत्वा "ॐ सत्पात्रसिद्धं मुहविविविधानेकभक्षणम् / निवेदया मि देवेश मानुगाय गृहाण तत् // 3 // " मू. ॐ भू० सांगाय सपरिवाराय सवाहनाय सायुधाय श्रीहनुमते नमः नैवेद्यं समर्पयामि इति भूतले देवदक्षिणे जलं क्षिप्त्वा वामहस्तेन अनामामूलयोरंगुष्ठयोगे ग्रासमुद्रातां प्रदर्श्य देवं भुक्तयन्तं बिभाव्य जलं दद्यात् / इति नैवेद्यम् // 3 // “ॐ नमस्ते देवदेवेश सर्वतृतिकरं वरम् // परमानंदपूर्ण त्वं गृहाण जलमुत्तमम् // " इति जलम ॥४॥ॐ "उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः // शुद्धिमानोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् // " इत्याचमनम् // 5 // इत्याचमनं दत्वा मूलेन गंडूषार्थ जलं च दद्यात् ॥६॥"ॐ पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैयुतम् // एलाचूर्णादिकैर्युक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम्॥” इति तांबूलम् // 7 // "ॐ इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव // तेन मे सफलावाप्तिर्भवेजन्मनिजन्मनि // " इति फलम् // 8 // "ॐ कदलीगर्भसंभूतं कर्पूरं च प्रदीपितम् // आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव // " इति कर्पूरम् // 9 // "ॐ यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि वै // 214 // For Private And Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir तानि सर्वाणि नश्यतु प्रदक्षिणपदेपदे // इति तिस्रः प्रदक्षिणाः कृत्वा " ॐ प्रपन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहार्णवात् // " इति बदन साष्टांग प्रणमेत् // 10 // "ॐ नानासुगंधिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च // पुष्पांजलिं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर // 1 // " इति पुष्पा जलिः।।११॥इति पुष्पांजलि दत्त्वा ततःस्तुतिपाठेन स्तुत्वा बद्धाजलिपूर्वकं प्रार्थयेत्॥तथा च।"ॐ ज्ञानतोऽज्ञानतो वाऽथ यन्मया क्रियते - विभो। मम कृत्य मिदं सर्वमिति देव क्षमस्व मे // 3 // अपराधसहस्राणि क्रियतेऽहनिशं मया / / दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर // 2 // अपराधो भवत्येव सेवकस्य पदेपदे // कोपरः सहतां लोके केवलं स्वामिनं विना॥३॥भूमी स्खलितपादानां भूमिरेवावलंबनम् // त्वयिजातापराधानां त्वमेव शरणं प्रभो // 4 // " इति बद्धांजलिपूर्वकं संप्रार्थ्य"ॐ यदुक्तं यदि भावेन पत्रं पुष्पं फलं जलम् // निवेदितं च नैवेद्यं गृहाण मानुकंपय // 1 // " इति पठित्वा देवस्य दक्षिणकरे पूजार्पणजलं दद्यात् / / ततो मालामादाय सर्वदेवोपयोगि पद्धतिमार्गण मालायाः संस्कारान् कृत्वा अशक्तश्चेत् “ॐ ह्रीं मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि / / चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव // 1 // " इति मालां संपार्छ / “ॐ अविनं कुरु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा” इति मंत्रण दक्षिणहस्ते मालामादाय ) हृदये धारयन् स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि संस्थाप्य ज्येष्ठाग्रेण नामयित्वा एकाग्रचिनो मंत्रार्थ स्मरन् यथाशक्ति मूलमंत्र जपेत् // नित्यशः समाना एवं जपाः कार्या न तु न्यूनाधिकाः। ततो जपति "ॐ वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा मम // शुभं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्यं च सर्वदा // तेन सत्येन सिद्धि मे देहि मातर्नमोस्तु ते // ३॥"ॐ ह्रीं सिद्धयै नमः” इति मालांच शिरसि निधाय गोमुखीरहस्ये स्थापयेत् // नाशुचिः स्पर्शयेत् / / नान्यं दद्यात् // अशुचिस्थाने न निधापयेत् // स्वयोनियत गुप्तां For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir मं०म० हतं. कुर्यात् // ततः कवचस्तोत्रसहस्रनामादिकं पठित्वा पुनर्मूलमंत्रोकन्यासादिकं च कृत्वा पंचोपचारैः संपूज्य पुष्पांजलिं च दत्त्वा . खं.. जपापणं कुर्यात / तथा च / शंखोदकेन चुलुकमादाय / “ॐ गुह्यातिगुह्यगोता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् // सिदिभवतु मे देव त्वत्प्रसादात्त्वयि स्थितिः // 1 // " ॐ इतः पूर्व प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो जायत्स्वमसुनितुर्यावस्थासु मनसा वाचा कर्मणा हस्तातरं०९ यां पयामुदरेण शिश्ना यत्स्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्वं ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा // मदीयं च सकलं श्रीहनुमदेवतायै समर्पयामि॥ "ॐ तत्सत् इति ब्रह्मार्पणं भवतु // इति देव दक्षिणकरे जलसमर्पणं कत्या कृतांजलिपूर्वकं क्षमापनं पठेत् // तथा च " ॐ. आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् // पूजाभागं न जानामि त्वं गतिः परमेश्वर // 1 // मंत्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर // यत्यूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे // 2 // यदक्षरपदानष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् // तत्सर्व शम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर // 3 // कर्मणा मनसा वाचा त्वत्तो नान्यो गतिर्मम // अंतश्चरेण भूतानि इष्टस्त्वं परमेश्वर // 4 // अन्यथा शरणं नास्ति त्यमेव शरणं मम / / तस्मात्कारुण्यभावेन क्षमस्व परमेश्वर॥५॥पातयांनिसहस्राणां सहस्रेषु जाम्यहम् / / तेषु नेच चला भक्तिरच्यतेस्तु सदा त्यपि // 6 // गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्यमेव च / / आगता सुखसंपत्तिः पुण्या च तब दर्शनात्॥७॥देवो दाता च भोक्ता च देवरूपमिदं जगत // देवं जपति सर्वत्र यो देवः सोहमेव हि // 8 // क्षमस्व देवदेवेश क्षम्यते भुवनेश्वर // तव पादांबुजे नित्यं निश्चलाभक्तिरस्तु मे // 9 // इति कृतांजलिः प्रार्थयित्वा शंखजलमुद्धत्य देवोपरिचामयित्वा "साधु वा साधु वा कम यद्यदाचरितं मया / / तत्सर्व कृपया देव / गृहणाराधनं मम // 3 // " इत्युच्चरन् देवस्य दक्षिणहस्ते किंचिजलं दत्त्वा प्राग्वदर्य देवशिरसि दत्त्वा शंखं यथास्थाने निवेश AU215 // For Private And Personal use only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir येत् // ततो गतसारनैवेद्यं देवस्योच्छिष्टं शिरसि धृत्वा नैवेद्यादिकं देवभक्तेषु विभज्य स्वयं भुक्त्या विसर्जनं कुर्यात् / / तथा च / "ॐ गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च ॥1॥इत्यक्षतान्निक्षिप्य विसर्जन कत्वा "ॐ तिष्ठतिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यत्र अमादयो देवाः सर्वे तिष्ठति मे हृदि // 1 // " इति हृदयकमले हस्तं दत्त्वा देवं वहृदये संस्थाप्य मानसोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन स्थानमुखं विहरेत् / एवमेवविधिना जपं / समाप्य सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गण ननदशांशहोमतर्पगमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् // इति हनुमत्पूजापद्धतिः समाना // अथ पंचमुखीहनुमत्कवचत्रारंभः // श्रीपार्वत्युवाच // सदाशिव वरस्वामिज्ञानद प्रियकारक // कवचादि मया सर्व देवानां संश्रुतं प्रिय // 3 // इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं करुणानिधे / बायुसूनोरं येन नान्यदन्वेषितं भवेत् // भाषकानां च सर्वस्वं हनुमत्प्रीति वर्द्धनम् // 2 // श्रीशिव उवाच // देवेशि दीर्घनयने दीक्षादीतकलेवरे // मां पृच्छसि बरारोहे न कस्यापि भयोदितम् // 3 // कथं वाच्यं हनुमतः कवचं कल्पपादपम् // स्त्रीरूपा त्वमिदं नानाकूटमंडितविग्रहम् // 4 / / गह्वरं गुरुगम्यं च यत्र कुत्र बदिप्यसि // तेन | प्रत्युत पापानि जायते गजगामिनि // 5 // अत एव महेशानि नो वाच्यं कवचं प्रिये // 6 // श्रीपार्वत्युवाच / वदान्यस्य वचो) थानेदं नादेयं जगतीतले // त्वं वदान्यावधिः प्राणनाथो मे प्रियकत्सदा // 7 // मह्यं च किंन दनं ते तदिदानी बदाम्यहम् // गणपं शात सारे च शैवं वैष्णवमुत्तमम् // 8 // मंत्रयंत्रादिजालं हि मह्यं सामान्यतस्त्वया // दत्तं विशेषतो यद्यत्तत्सर्व कथयामि ते // 9 // श्रीरा) मतारको मंत्रः कोदण्डस्यापि मे प्रियः॥ नृहरेः सामराजो हि कालिकायाः प्रियंवद // 30 // दशविद्याविशेषेण पोडशीमंत्रनायिकाः॥ For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं. म. // 216 // दक्षिणामूर्तिसंज्ञोऽन्यो मंत्रराजो धरापते // 11 // सहस्रार्जुनकस्यापि मंत्रा येऽन्ये हनूमतः // ये ने पदेया देवेश तेऽपि मा सम पू०ख०१ पिताः // 12 // किं बहूक्तेन गिरिश प्रेमयंत्रितचेतसा // अर्धाङ्गमपि मह्यं ते दत्तं किं ते वदाम्यहम् // स्त्रीरूपं मम जीवेश पूर्व तु न kal विचारितम् // 13 // श्रीशिव उवाच // सत्यंसत्यं वरारोहे सर्व दत्तं मया तव // परं तु गिरिजे तुज्यं कथ्यते शृणु सांप्रतम् // 14 // कलौ पाखण्डबहुला नानावेषधरा नराः // ज्ञानहीना लुब्धकाश्च वर्णाश्रमबहिष्कृताः // 15 // वैष्णवत्वेन विख्याताः शैवत्वेन बरा नने ॥शाक्तत्वेन च देवेशि सौरत्वेनेतरे जनाः // 16 // गाणपत्वेन गिरिजे शास्त्रज्ञानबहिष्कृताः // गुरुत्वेन समाख्याता विचारण्य पति भूतले // 17 // ते शिष्यसंग्रहं कर्तुमुद्युक्ता यत्र कुत्रचित् // मंत्रायुच्चारणे तेषां नास्ति सामर्थ्यमम्बिके // 18 // तच्छिष्याणां च गि रिजे तथापि जगतीतले // पठंति पाठयिष्यंति विप्रवेषपराः सदा // 19 // द्विजद्वेषपराणां हि नरके पतनं ध्रुवम् // प्रकृतं वच्मि गिरि जे यन्मया पूर्वमीरितम् // 20 // नानारूपमिदं नानाकुटमण्डितविग्रहम् // तत्रोनरं महेशानि शृणु यत्नेन साम्प्रतम् // 21 // तुल्यं मया यदा देवि वक्तव्यं कवचं शुभम् // नानाकूटमयं पश्चात्त्वयाऽपि प्रेमतः प्रिये // 22 // वक्तव्यं कुत्रचित्तनु भुवने विचार ष्यति // भुवनांतःपतितां भद्रे यदि पुण्यवतां सताम् // 23 // सत्सम्प्रदायशुद्धानां दीक्षामंत्रवतां प्रिये ॥बाह्मणाः क्षत्रिया वैश्या विशेषेण / वरानने // 24 // उच्चारणे समर्थानां शास्त्रनिष्ठावतां सदा // हस्तागतं भवेन्द्रे तदा ते पुण्यमुत्तमम् // 25 // अन्यथा शूद्रजातीनां पूर्वो२९॥ तानां महेश्वरि।मुखशुद्धिविहीनानां दांभिकानां सुरेश्वरि॥२६॥यदा हस्तगतं तत्स्यात्तदा पापं महत्तव // तस्मादिचार्य देवेशि ह्यधिका रिणमम्बिके / 27 / / वक्तव्यं नात्र सन्देहो नान्यथा निरयं व्रजेत् // किं कर्तव्यं मया तुल्यमुच्यते प्रेमतः प्रिये // त्वयापीदं विशेषेण , For Private And Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavirian Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir गोपनीयं स्वयोनियत् // 28 // पाठः // ॐ श्रीपञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः॥ ॐ अस्य श्रीपंचमुखहनुमन्मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। गायत्री छंदः: पंचमुखविराडूनुमान्देवता / ह्रीं बीजम्॥श्री शक्तिः। कौं कीलकम् / - कवचम् / के अबाय फट् / इति दिग्बंधः // श्रीगह उवाच // अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वाङ्गसुंदरि // यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् // 3 // अथ ध्यानम् // पंचवक्रं महा| भीमं त्रिपंचनयनैर्युतम् / / बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् // 1 // पूर्व तु वानरं वक्वं कोटिसूर्यसमप्रभम् // दंष्ट्राकरालवदनं / भृकुटीकुटिलेक्षणम् // 2 // अस्यैव दक्षिणं वकं नारसिंहं महाद्भुतम् / / अत्युग्रतेजोवपुर्ष भीषणं जयनाशनम् // 3 // पश्चिमं / ||गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् // सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकंतनम् // 4 // उत्तरं सौकरं वकं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् / / लापातालसिंहवेताल ज्वररोगादिकंतनम् // 5 // ऊर्च हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् // येन वक्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासरम // 6 // जघान शरणं तत्म्यात्सर्वशत्रुहरं परम // ध्यायेत्पंचमुखं रुद्रं हनुमंत दयानिधिम् // 7 // खड़े त्रिशूलं खटाई पाशमंकुशपर्वतम् // मुष्टिकौमोदकी वृक्षं धारयंतं कमण्डलुम् / / 8 // भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुंगव // एतान्यायुधजा लानि धारयतं भजाम्यहम् // 9 // प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् // दिव्यमालांबरधरं दिव्यगंधानुलेपनम् // 10 // सर्वाश्चर्यमयं देवं हनूमविश्वतोमुखम्॥११॥पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्ण वक्र शशांकशिखरं कपिराजवर्यम् // पीताम्बरादिमुकुटैरुपशो भिताङ्ग पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि // 12 // मर्कटेश महोत्साह सर्वशत्रुहरः परः // शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापद उद्धर // 13 // ॐ हरिमर्कटमर्कटमंत्रमिमं परिलिख्यतिलिख्यति वामतले // यदि नश्यतिनश्यति शत्रुकुलं यदि मुंचतिमुंचति वामलता For Private And Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० म० // 21 // हतं. तरं०९ // 14 // इति ध्यात्वा कवचं पठेत् // ॐ हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा // 1 // ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रु पू. खं० 1 संहारणाय स्वाहा // 2 // ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतमथनाय स्वाहा ॥३॥ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा // 4 // ॐ नमो भगवते पंचवदनायोत्तरमुखायादिव राहाय | सकलसम्पत्कराय स्वाहा ॥५॥ॐ नमो भगवते पंचवदनायोर्द्धमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशंकराय स्वाहा // 6 // ॐ अस्य श्रीपंच मुखहनुमन्मंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः / अनुष्टुप्छन्दः / पञ्चमुखबीरहनुमान्देवता / हनुमानिति बीजम् // वायुपुत्र इति शक्तिः / अंजनी सुत इति कीलकम् / श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः // ॐ रामचन्द्रऋषये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छन्दसे नमः | मुखे // 2 // पञ्चमुखबीरहनुमद्देवतायै नमः हृदि // 3 // हनुमानिति बीजाय नमः गुह्ये // 4 // वायुपुत्र इति शक्तये नमः पादयोः / ॥५॥अंजनीसुत इति कीलकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ अंजनीसुताय है अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीयां नमः // 2 // ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ अग्निगर्भाय अनामि कात्यां नमः // 4 // ॐ रामदृताय कनिष्ठिकान्यां नमः // 5 // ॐ पंचमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ ॐ अंजनीसुताय हृदयाय नमः // 1 // ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् // 3 // ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् // 4 // ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ पंचमुखहनुमतेऽस्त्राय फट् // 6 // ॐ पंचमुखहनुमते स्वाहा // // 217 // इति दिग्बंधः // इति षडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा पुनायेत् // अथ ध्यानम् // वन्दे वानरनारसिंहखगराटुक्रोडाश्ववका For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir न्वितं दिव्यालंकरणं त्रिपंचनयनं देदीप्यमानं रुचा // हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुम्भाकुशाद्रीन हलं खट्वांगं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वा रिवीरापहम् // 1 // ॐ रामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय सीतादुःखनिवारणाय लंकादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय फा ल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्ड विश्वरूपाय सनसमुद्रनीरालंघनाय पिङ्गलनयनायामितविक्रमाय सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिबर्हणाय दृष्टिनिरालंकताय सञ्जीविनीसीविताङ्गन्दलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय फाल्गुनमहासखाय सीतासहितरा मवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमन्मत्रजपे विनियोगः // ॐ हरिमर्कटमर्कटाय ववववववौषट् स्वाहा // 3 // ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फँफैफैफैफै फट् स्वाहा ॥२॥ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखेंमारणाय स्वाहा // 3 // ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुलुलुलुलु आकर्षितसक लसम्पत्कराय स्वाहा // 4 // ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धुंधशत्रुस्तंभनाय स्वाहा // 5 // हरिमर्कटमर्कटाय ठZZZZ कूर्ममूर्तये पञ्चमुख वीरहनुमते परयंत्रपरतंत्रोच्चाटनाय स्वाहा // 6 // ॐ कखगघुऊँचजॉबॅटॅटॅडॅTणत/दनैपबमयरलँबसहलँास्वाहा // इति दिग्बंधः // 7 // ॐ पूर्वकपिमुखाय पंचमुखहनुमते हॅटटटट सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा // 8 // ॐ दक्षिणमुखाय पंचमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्राँह्रीं ह्हह्रौंहः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा // 9 // ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पंचमुखहनुमते Hel ममममम सकलविषहराय स्वाहा // 10 // ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लँलँललल नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये पञ्चमुखहनुमते स्वाहा // 11 // ॐ ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुरुरुरुरु रुद्रमूर्तये सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा // 12 // ॐ अंजनीमुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय श्रीरामचन्द्रलपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय कामदाय पंचमुखवीरहनुमते स्वाहा // For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म // 218 // भूतप्रताप भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रहपरयंत्रपरतंत्रोच्चाटनाय स्वाहा // मकलप्रयोजननिर्वाहकाय पंचमुखबीरहनुमते पू० खं. 1 श्रीरामचन्द्रवरप्रदाय अँजजजज स्वाहा // 13 // इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः // एकबार जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रु निवारणम // 3 // शिवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् // त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् // 2 // चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्व तरं०९ रोगनिवारणम् // पंचवारं पठेन्नित्यं मर्वलोकवशंकरम् // 3 // पवारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशंकरम् // सनवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्य दायकम् // 4 // अश्वारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् // नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवामुयात // 5 // दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्य | ज्ञानदर्शनम् // रुद्रावृत्तीः पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेदध्रुवम् // 6 // कवचस्मरणेनैव महाबलमवानुयात् // 7 // इति श्रीसुदर्शनसंहिता यां श्रीरामचंद्रसीताप्रोक्तं श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम्॥ एकमुखहनुमत्कवचं पटकवचीप्रयोगे मिश्रतरंगे ज्ञेयम् / अथैकादशमुखहनुम| त्कवचम् // लोपामुद्रोवाच // कुम्भोद्भव दयासिंधो श्रुतं हनुमतः परम् // यंत्रमंत्रादिकं सर्व त्वन्मुखोदीरितं मया // 1 // दयां कुरु मयि प्राणनाथ वेदितमत्महे // कवचं वायुपुत्रस्य एकादशमुखात्मनः // 2 // इत्येवं वचनं श्रुत्वा प्रियायाः प्रश्रयान्वितम् // वक्तुं चक्रमे तत्र लोपामुद्राप्रतिः प्रभुः // 3 // अगस्त्य उवाच // नमस्कृत्वा रामदूतं हनुमंतं महामतिम् // ब्रह्मप्रोक्तं तु कवचं शृणु सुन्दरि सादरम ॥४॥सनन्दनाय सुमहच्चतुराननभाषितम् // कवचं कामदं दिव्यं सर्वरक्षोनिबर्हणम् // 5 // सर्वसम्पत्प्रदं पुण्यं पानां मधुरस्वरे // 6 // ॐ अस्य श्रीमदेकादशमुखहनुमत्कवचस्य सनन्दन ऋषिः / अनुष्टुप्छंदः। प्रसन्नात्मा हनुमान्देवता / वायुपुत्रेति बीजम् / मुख्यः el // 218 // पाण इति शक्तिः। सर्वकामार्थमिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः // ॐ स्फे बीजं शक्तिधृक् पातु शिरो मे पवनात्मजः // को बीजात्मा For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir नयनयोः पातु मां वानरेश्वरः॥ 1 // शंबीजरूपी को मे मीताशोकविनाशनः / / ग्लौंबीजवाच्यो नासां मे लक्ष्मणप्राणदायकः // 2 // वं बीजार्थश्च कण्ठं मे पातु चाशव्यकारकः॥ एंबीजवाच्यो हृदयं पातु मे कपिनायकः॥३॥ वंबीजकीर्तितः पातु बाहू मे चाञ्जनीसुतः॥ हां बीजो राक्षसेन्द्रस्य दर्पहा पातु चोदरम्॥४॥हींबीजमयो मध्यं पातु लंकाविदाहकः॥ ह्रींबीजधरो मां पातु गुह्य देवेन्द्रवंदितः // 5 // रंबीजात्मा सदा पातु चोरुवारिधिलंघनः // सुधीवसचिवः पातु जानुनी मे मनोजवः // 6 / / पादौ पादतले पातु द्रोणाचलधरोहरिः।। आपादमस्तकं पातु रामदतो महाबलः // 7 // पूर्वे वानरवको मामानेभ्यां क्षत्रियान्तकृत् // दक्षिणे नारसिंहस्तु नैर्ऋत्यां गणनायकः // 8 // वारुण्यां दिशि मामव्यात्खगवको हरीश्वरः // वायव्यां भैरवमुखः कौबेयो पातु मां मदा // 9 // क्रोडास्यः पातु मां नित्यमी , शान्यां रुद्ररूपवृक् // ऊर्ध्व हयाननः पातु न्वधः शेषमुखस्तथा // 30 // गमास्यः पातु मर्वत्र सौम्यरूपी महाभुजः // इत्येवं राम दूतस्य कवचं प्रपठेत्सदा // 11 // एकादशमुखस्यैतद् गोप्यं वै कीर्तितं मया / / रक्षोन्नं कामदं सौम्यं मर्वनम्पद्विधायकम् // 12 // पुत्रदं धनदं चोयशत्रुसंघविमर्दनम् / स्वर्गापवर्गदं दिव्यं चिंतितार्थप्रदं शुभम् // 13 // एतत्कवचमज्ञात्वा मंत्रमिद्धिर्न जायते // चत्वारिंशत्महस्राणि पठेच्छुद्धात्मना नरः॥१४॥ एकवारं पठेन्नित्यं कवचं सिद्धिदं पुमान् // द्विवारं वा त्रिवारं वा पठन्नायुष्यमानुयात्॥ // 15 // क्रमादेकादशादेवमावर्तनजपासुधीः / / वर्षान्ते दर्शन माशाल्लाते नात्र संशयः॥१६॥येयं चितयते चार्थ तंतं प्रामोति पूरुषः॥ ब्रह्मोदीरितमेतद्धि तवाये कथितं महत् // 17 // इत्येवमुक्त्वा वचनं महर्पिस्तूष्णीं बभूवेन्दुमुखी निरीक्ष्य / / संहृष्टचेताऽपि तदा तदीय पादौ ननामातिगुदा स्वभर्तुः // 18 // इति श्रीअगस्त्यमारमंहितायामेकादशमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम्॥ अथ श्रीरामप्रोनहनुमत्कवच For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shei Katassagasul Gyanmandir पू० ख०१ तं. मं० म०प्रारंभः // ॐ अस्य श्रीहनुमत्कवचस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः / अनुष्टुप्छंदः / श्रीहनुमान्देवता / मारुतात्मजति बीजम् / अंजनीसूनुरिति शक्तिः / आत्मनः इति कीलकम् / सकलकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः // ॐ श्रीरामचन्द्रऋपये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे| नमः मुखे // 2 // श्रीहनुमद्देवतायै नमः हृदि // 3 // मारुतात्मजेति बीजाय नमः गृह्ये // 4 // अंजनीसूनुरिति शक्तये नमः पादयोः // 5 // आत्मनः इति कीलकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः मागे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ पवनात्मजाय तर्जनीभ्यां नमः॥ 2 // अक्षपद्माय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // विष्णुभक्ताय| अनामिकाभ्यां नमः // 4 // लकाविदाहकाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // श्रीरामकिंकराय करतलकरपृष्ठायां नमः // 6 // इति करन्यासः / / ॐ हनुमते हृदयाय नमः // 1 // पवनात्मजाय शिरसे स्वाहा // 2 // अक्षपनाय शिखायै वषट् // 3 // विष्णुभक्ताय कवचाय हुम् / / 4 / / लंकाविदाहकाय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // श्रीरामकिंकराय अत्राय फट / / 6 / / इति हृदया दिषडंगन्यासः // ध्यायेदालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदोपहं देवेन्द्रप्रमुखैः प्रशंसियशसं देदीप्यमान रुचा // सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम् // 1 // वज्राङ्गं पिङ्गकेशाढ्यं स्वर्णकुंडलमंडितम् // नियुद्धमुपसंक्रम्य पारावारपराक्रमम् // 2 // वामहस्ते गदायुक्तं पाशहस्तं कमण्डलुम् // ऊर्ध्वदक्षिणदोर्दण्डं हनूमंतं विचिंतयेत् // 3 // स्फटिकाभं स्वर्ण कांतिं विभुजं च कृताञ्जलिम् / / कुंडलद्वयसंशोभिमुखाम्बुजहरिं भजेत् // 4 // हनुमान्पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः॥ पातु प्रतीच्याम क्षनः पातु सागरपारगः॥५॥ उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरीप्रियनन्दनः // अधस्ताद्विष्णुभक्तश्च पातु मध्ये च पावनिः॥६॥ // 219 // For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir अवांतरदिशः पातु सीताशोकविनाशनः।। लंकाविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरंतरम् // 7 // मुग्रीवसचिवः पातु मस्तकं वायुनंदनः॥ भालं पातु महावीरो भुवोर्मध्ये निरंतरम् / / 8 // नेत्रे छायापहारी च पातु नः पूवगेश्वरः // कपोलौ कर्णमूले च पातु श्रीरामकिं करः / / 9 / / नासाग्रमंजनीसूनुः पातु वक्रं कपीश्वरः / / पातु कंठं च दैत्यारिः स्कंधौ पातु सुरार्चितः / / 10 / / भुजौ पातु महाते जाः करौ तु चरणायुधः।। नखान्नखायुधः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः।।।३।। वक्षो मुद्रापहारी च पार्थं पातु भुजायुधः।। लंका विभंजकः पातु पृष्ठे देशे निरंतरम् / / 12 / नाभिं च रामदूतश्च कटिं पात्वनिलात्मजः / / गुह्यं पातु कपीशस्तु गुल्कौ पातु महाब लः // 13 // अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः // अङ्गान्यमितसच्वाट्यः पातु पादांगुलीः सदा // 14 // सर्वाङ्गानि महा शूरः पातु रोमाणि चात्मवान् / / हनुमत्कवचं यस्तु पठेद्विद्वान्विचक्षणः // 5 // स एव पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं मुक्तिं च विंदति // त्रिका लमेककालं वा पठेन्मासत्रयं पुनः // 16 // सर्वारिष्टं क्षणे जित्वा स पुमाश्रियमानुयात / / अर्धरात्रे जले स्थित्वा मतवारं पठे यदि // 17 // क्षयापस्मारकुष्ठादितापज्वरनिवारणम् // अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थित्वा पठति यः पुमान् // 18 // स एव जयमामोति संघामेष्वभयं तथा // यः करे धारयेन्नित्यं सर्वान्कामानवामुयात् // 19 // लिखित्वा पूजयेद्यस्तु तस्य ग्रहाय हरेत् / / कारागृहे प्र ) याणे च संग्रामे देशविप्लवे // 20 // यः पठेद्धनुमत्कवचं तस्य नास्ति भयं तथा // 21 // यो वारांनिधिमल्पपल्वलमिवोल्लंघ्य प्रता पान्वितो वैदेहीधनतापशोकहरणो वैकुण्ठभक्तप्रियः // अक्षार्जितराक्षसेश्वरमहादपिहारी रणे सोऽयं वानरपुङ्गवोऽवतु सदा चास्मान्स मीरात्मजः // 22 // इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे अगस्त्यनारदसंबादे श्रीरामचन्द्रप्रोक्तं हनुमत्कवचं सम्पूर्णम् // अथ हनुमत्सहस्रनामस्तो For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० // 220 // प्रारंभः // ऋषय ऊचुः // ऋषे लोहगिरिं प्राप्तः सीताविरहकातरः // भगवान् किं व्यधाद्रामस्तत्सर्व धूहि सत्वरम् // 3 // वाल्मीख. किरुवाच // मायामानुषदेहोयं ददर्शाये कपीश्वरम् // हनुमंतं जगत्स्वामी बालार्कसमतेजसम् // 2 // स सत्वरं ममागम्य माष्टाङ्गं प्रणि धापत्य च // कताअलिपुटो भूत्वा हनुमान गममब्रवीत् // 3 // श्रीहनुमानुवाच / / धन्यास्मि कृतकृत्योऽस्मि दृष्ट्वा त्वत्पादपंकजम् // योगि नामप्यगम्यं च संसारभयनाशनम् // 4 // पुरुषोनम देवेश कर्तव्यं तन्निवेद्यताम् // श्रीराम उवाच // जनस्थानं कपिश्रेष्ठ कोडा प्यागत्य विदेहजाम् // 5 // हृतवान्धिप्रसंवेपो मारीचानुगते मयि // गोप्यः साम्प्रतं वीर जानकीहरणे परः // 6 // त्वयागम्यो न / ||को देशस्त्वं च ज्ञानवतां वरः // मनकोटिमहामंत्रमंत्रितावयवः प्रभुः // 7 // ऋषय ऊचुः॥ को मंत्रः किं च तद्ध्यान तन्नो ब्रूहि यथार्थतः // तथा सुधारमं पीत्वा न तृप्यामः परंतपः // 8 // वाल्मीकिरुवाच // मंत्रं हनुमतो विद्धि भुक्तिम् / शक्तिप्रदायकम् // महारिष्टमहापापमहादुःखनिवारणम् // 9 // “ॐ ऐं ह्रीं हनुमते रामदृताय लंकाविध्वंसनायाअनीगर्भसंभूताय / शाकिनीडाकिनीध्वंसनाय किलिकिलियुचुकारेण विभीषणाय हनुमदेवाय ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा // " अन्यं हनुमतो मंत्रं सहस्रनामसंज्ञकम् // जानंति ऋषयः सर्वे महादरितनाशनम् // 10 // अस्य संस्मरणात्मीता लब्धा राज्यमकण्टकम् // विभीषणाय च ददावात्मनं लब्धवान्मया // 13 // ऋषय ऊचुः॥ सहस्रनामसन्मंचं दुःखाचौघनिवारणम् // बाल्मीके वहि नस्तूर्ण // 20 // शुश्रयामः कथां पराम् // 12 // वाल्मीकिरुवाच // शृण्वंतु ऋषयः सर्व सहस्रनामकं स्तवम् // स्तवानामुत्तमं दिव्यं सदर्थस्य प्रदा। यकम् / / 13 // अथ पाठः॥ॐ अस्य श्रीहनुमत्सहस्रनामस्तोत्रमंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः / अनुष्टुप्छन्दः / श्रीहनुमन्महारुद्रो देवता / / For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org हीश्रीहीहां बीजम् / श्रीं इति शक्तिः / किलिकिलि बुबुकारेणेति कीलकम् // लंकाविध्वंसनेति कवचम् // मम सर्वोपद्रवशांत्यर्थ ) सर्वकर्मसिद्धयर्थे पाठे विनियोगः // श्रीरामचन्द्रऋषये नमः / शिरशि // 1 // अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे // 2 // श्रीहनुमन्महारुद्र देवतायै नमः हृदि // 3 // ह्रीं श्रीह्रौं हां बीजाय नमः गुह्ये // 4 // श्रीं इति शक्तये नमः पादयोः // 5 // किलिकिलि बुबुकारेणेतियार कीलकाय नमः नाभौ // 6 // लंकाविध्वंसनेति कवचाय नमः वाहुद्दये // 7 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 8 // इति ऋष्यादि न्यामः / ॐ एहनमते अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ लंकाविध्वंसनाय तर्जनीभ्यां नमः ॥२॥ॐ अञ्जनीगर्भसम्भूताय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ शाकिनीडाकिनीविध्वंमनाय अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ ॐ किलिकिलि बुबुकारेण बिजीपणाय हनुमद्देवाय कनिष्ठिकाश्या नमः॥ 5 // ॐ ह्रींनीहाहां फट् स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः / / 6 / / इति करन्यासः ॥ॐ हनमते हृदयाय नमः। Mu // ॐ लंकाविध्वंसनाय शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ अंजनीगर्भसंभूताय शिखायै वषट् // 3 ॥ॐ शाकिनीडाकिनीविध्वंसनाय कवचाय हम // 4 // ॐ किलिकिलि बुबुकारेण विभीपणाय हनुमद्देवाय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रींश्रीह्रींहां फट् स्वाहा असा य फट // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // प्रतप्तस्वर्णवर्णाभं संरक्तारुणलोचनम् // सुग्रीवादियुतं ध्यायेत्पीताम्बरसमावृतम् // 14 // गोष्पदीकतवारीशं पुच्छमस्तकमीश्वरम् // ज्ञानमुद्रां च बिचाणं सर्वालंकारभूषितम् // 15 // श्रीरामचन्द्र उवाच // ॐ हनमाश्रीपदो। वायुपुत्रोरुद्रोअघोऽजरः // अमृत्यु:रवीरश्चग्रामवासोजनाश्रयः // 16 // धनदो निर्गुणः कायो वीरोनिधिपतिर्मनिः // पिंगाक्षोवरदो वाग्मीसीताशोकविनाशनः // 17 // शिवः सर्वः परोव्यक्तोव्यक्ताव्यक्तोरसाधरः / / पिंगरोमःपिंगकेशःश्रतिगम्यः सनातनः / / 18 // न For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं. म. तरं०९ अनादिर्भगवानदेवोविश्वहेतुनिरामयः।। आरोग्यकर्ताविश्वेशोविश्वनाथोहरीश्वरः / / 19 // भोरामोरामभक्तःकल्याणप्रकृतिःस्थिरः // पू० खं० 1 विश्वभरोविश्वमूर्तिविश्वाकारोऽथविश्वदः॥ २०॥विश्वात्माविश्वसेव्योऽथविश्वोविश्वहरोरविः।। विश्वचेष्टोविश्वगम्योविश्वध्येयः कलाधरः / // 21 // प्लवंगमःकपिश्रेष्ठोज्येष्ठोविद्यावनेचरः।। बालोबृद्धोयुवातत्त्वंतत्त्वगम्यउदाग्रजः // 22 // अंजनीसूनुरव्ययोगामख्यातोधराधरः॥ भूर्भुवःस्वमहर्लोकोजनलोकस्तपोऽव्ययः // 23 // सत्यमोंकारगम्यश्चप्रणवोव्यापकोऽमलः // शिवधर्मप्रतिष्ठातारामेष्टःफाल्गुनप्रियः // 24 // गोष्पदीकतवारीशःपूर्णकामोधरापतिः // रक्षोन्नः पुण्डरीकाक्षःशरणागतवत्सलः // 25 // जानकीप्राणदाताचरक्षःप्राणा पहारकः / / पूर्णःसत्यःपीतवासादिवाकरसमप्रभः // 26 // देवोद्यानविहारीचदेवताभयभंजनः // भक्तोदयोभक्तलब्धोजतपालनतत्परः // 27 // द्रोणहर्ताशक्तिनेताशक्तिराक्षममारकः // रोनारामदूतश्चशाकिनीजीवहारकः॥ 28 // बुबुकारहतारातिर्गर्यपर्वतमर्दनः // हेतुस्त्वहेतुःप्रांशुश्चविश्वभर्ताजगडः // 20 // जगन्नेताजगन्नाथोजगदीशोजनेश्वरः // जगद्धितोहरिःश्रीशोगरुडस्मयजनः // 30 // पार्थध्वजोवायुपुत्रोऽमितपुच्छोऽमितप्रभः // ब्रह्मपुच्छःपरंब्रह्मपुच्छोरामेष्ट एव च // 33 // सुग्रीवादियुतोज्ञानीवानरोवानरेश्वरः // कल्प स्थायीचिरंजीवीप्रसन्नश्चमदाशिवः // 32 // सन्नतः सद्गतिभक्तिमुक्तिदःकातिनायकः॥कीर्तिःकीर्तिप्रदश्चैवसमुद्रःश्रीपदःशिवः॥३३॥ भक्तोदयोभक्तगम्योभक्तनाग्यप्रदायकः // उदधिक्रमगोदेवः मंसारभयनाशकः॥३४॥ बलिबन्धनरुविश्वजेताविश्वप्रतिष्ठितः // लंकारिः कालपुरुषोलंकेशगृहभवनः // 35 // भूतावासोवासुदेवोवसुम्बिभुवनेश्वरः // श्रीरामरूपः कृष्णस्तुलंकाप्रासादभञ्जकः // 36 // कृष्ण कृष्णस्तुतः शांतः शांतिदोविश्वपावनः // विश्वभोक्ताऽथमारनोब्रह्मचारीजितेन्द्रियः // 37 // ऊर्द्धगोलांगुलीमालीलांगूलाइतराक्षसः।। वि For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir समीरतनुजावीराबीरमारोजयप्रदः // 38 // जगन्मंगलदः पुण्यः पुण्यश्रवणकर्तिनः // पुण्यकीर्तिः पुण्यगतिः जगत्पावनपावनः // 39 // देवेशोजितमारोऽथरामभक्ति विधायकः // ध्याताध्ययोभगः साक्षीचेताचैतन्यविग्रहः // 40 // ज्ञानदः प्राणदः प्राणोजग लागसमीरणः // विनीपणश्यिः शूरः पिप्पलायनसिद्धिदः // 4 // मिद्धिः सिद्धाश्रयः कालः कालजनकभजनः // लंकेशनि धनस्थायीलंकादाहकईश्वरः // 42 // चन्द्रसूर्याग्निनेत्रश्चकालाग्निः प्रलयांतकः // कपिलः कपिशः पुण्यराशिर्वादशराशिगः॥ 43 // सर्वाश्योऽप्रमेयात्मारेवत्यादिनिवारकः // लक्ष्मणप्राणदाताचसीताजीवनहेतुकः // 44 // रामध्येयोहपकिशोविष्णुभक्तोजटीबलिः // देवारिदर्पहाहोताधाताकर्ताजगत्लभुः // 15 // नगरप्रामपालश्चशुद्धोबुद्धोनिरंतरः // निरंजनोनिर्विकल्पोगुणातीतोभयंकरः॥ 46 // हनुमंतोदुराराध्यस्तपःसाध्यामहेश्वरः // जानकीवनशोकोत्थतापहापरात्परः // 17 // वाङ्मयः सदमडूपकारणं प्रकृतेः परः // भाग्यदोनिमलोनेतापुच्छलंकाविदाहकः // 48 // पुच्छबड्यातुधानोयातुधान रिपुप्रियः // छायापहारीभूतेशोलोकेशः सङ्गतिप्रदः / // 49 // पूवंगमेश्वरः क्रोधः कोषसंरक्तलोचनः // सौम्योगुरुः कान्यकर्ताभक्तानांचवरप्रदः // 50 // भक्तानुकम्पीविश्वेशः पुरुहूतः / पुरन्दरः / / क्रोधहर्तातापहर्ताभक्ताऽभयवरप्रदः // 51 // अग्निर्विभावमुर्भानुर्यमोनि+तिरेबच // बमणोवायुगतिमान वायुः कुबेरईश्वरः / / // 52 // रविश्चन्द्रः कुजः मौम्यागुरुः काव्यः शनैश्चरः।। राहुः केतुर्मरुद्धाताधर्ताहतांसमीरजः॥५३॥ मशकीकतदेवारिदैत्यारिमधुसूदनः कामः कपिः कामपालः कपिलोविश्वजीवनः // 54 // मागीरथीपदाम्भोजः सेतुबन्धविशारदः // स्वाहास्वधाहविःकव्यहव्यवाहप्रकाशकः / // 55 // स्वप्रकाशोमहावीरोलघुरमितविक्रमः // मंजनोदानगतिमानसद्गतिः पुरुषोत्तमः // 56 // जगदात्माजगद्योनिर्जगदंतोपनंतकः।। For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobalrm.org विपाप्मानिष्कलंकोऽयमहात्माहृदयंकृतिः // 57 // खंबायुः पृथिवीरामोवह्निर्दिक्पालएवच // क्षेत्रज्ञः क्षेत्रहताचपल्बलीकतसागरःपू० ख० 1 // 58 // हिरण्मयः पुराणश्चखेचरोभूचरोमनुः // हिरण्यगर्भः सूत्रात्माराजराजोनिशांपतिः // 59 // वेदांतवेद्यउद्दीथोवेदवेदांगपारगः॥ हतं. प्रतिग्रामस्थितिः सद्यः स्फूर्तिदातागुणाकरः // 60 // नक्षत्रमालीभूतात्मासुरभिः कल्पपादपः // चिंतामणिर्गुणनिधिः प्रजाधारोह्यनुत्तमः तरं०९ // 61 // पुण्यश्लोकः पुरारातिज्योतिष्मान्शर्वरीपतिः॥ किलिकिलिरावसंत्रस्तभूतप्रेतपिशाचकः // 62 // ऋणत्रयहरः सूक्ष्मः स्थूलः सर्व गतिः पुमान् // अपस्मारहरः स्मर्ताश्रुतिर्गाथास्मृतिमनुः // 63 // स्वर्गद्वारप्रजाहारमोक्षद्वारपतीश्वरः // नादरूपः परब्रह्मब्रह्मब्रह्मपुरातनः // 64 // एकोऽनेकोजनः शुक्रः स्वयंज्योतिरनाकुलः।ज्योतिज्योतिरनादिश्वसात्त्विकोराजसस्तमः // 65 // तमोहर्तानिलालम्बोनिराहा रोगुणाकरः।। गुणाश्रयोगुणमयोबृहत्कीबृहद्यशाः // 66 // बृहद्धनुर्वृहत्पादोबृहन्मूर्धाबृहत्स्वनः // बृहत्कायोबृहन्नासोबृहद्वाहुर्घहत्तनुः y // 67 // बृहद्यत्नोबृहत्कामाबृहत्पुच्छोबृहत्करः // बृहदतिव॒हत्सेव्योबृहल्लोकफलप्रदः॥६८॥ बृहच्छक्तिव॒हद्वाञ्छाफलदोबृहदीश्वरः। हल्लोकनुतोद्रष्टाविद्यादाताजगद्गुरुः // 69 // देवाचार्यः सत्यवादीब्रह्मवादीकलाधरः // समपातालगामीचमलयाचलसंश्रयः // 7 // उत्तराशास्थितः श्रीदोदिव्यौषधिवशः खगः॥शाखामृगः कपीन्द्रोऽथ पुराणः प्राणचंचुरः॥७१॥चतुरोबाह्मणोयोगीयोगगम्यःपरावर // अनादिनिधिदोव्यासोबैकुण्ठः पृथिवीपतिः // 72 // अपराजितोजितारातिः सदानन्दोगिरीशजः॥ गोपालीगोपतियोद्धाकलिकालपरात्परः // 73 // मनोवेगीसदायोगासंसारभयनाशनः // तत्त्वदाताऽथतत्त्वज्ञस्तत्त्वंतत्त्वप्रकाशकः॥७४॥शुद्धोबुद्धोनित्ययुक्तोभक्तराजोजगद्रथः।। // 222 // प्रलयोऽमितमायश्चमायातीतोविमत्सरः // 75 // मायाभर्जितरक्षाश्चमायनिर्मितविष्टपः // मायाश्रयश्चनिलेपोमायानिर्वर्तकः सुखम For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // 76 // सुखीसुखप्रदोनागोमहेशकतसंस्तवः // महेश्वरः सत्यसंधः शरभः कलिपावनः // 77 // रसोरमज्ञः संमानोरूपंचक्षुः श्रुतिः खः // घाणोगंधः स्पर्शनंचस्पर्शाऽहंकारमानगः // 78 // नेतिनेतीतिगम्यश्चबैकुण्ठभजनप्रियः // गिरीशोगिरिजाकांतोदुर्वासाः कविरंगिराः // 79 // भृगुर्वसिष्ठच्यवनोनारदस्तुम्बरुर्बलः // विश्वक्षेत्रोविश्वबीजोविश्वनेत्रश्चविश्वपः // 80 // याजकोयजमानश्चपावकः पितरस्तथा / / श्रद्धाबुद्धिः क्षमातंत्रीमंत्रोमंत्रपितासुरः / / 3 ॥राजेन्द्रोभूपतीरुण्डमालीसंसारसारथिः॥ नित्यसम्पूर्णकामश्वभक्त कामधुगुनमः // 82 // गणपः केशवोधातापितामाताऽथमारुतिः // सहस्रमु‘सहस्रास्यः सहस्राक्षः सहस्रपात् // 83 // कामजित्कामदहनः कामीकामफलप्रदः / / मुद्रापहारीरक्षोन्नः क्षितिधारहरोबलः // 84 // नखदंष्ट्रायुधोविष्णुक्ताभयवरप्रदः // दर्पहादर्पदोदंष्ट्राशतमूर्ति रमूर्तिमान // 85 // महानिधिर्महाभागोमहाभर्गामहर्द्धिदः॥ महाकारोमहायोगीमहातेजामहायुतिः // 86 // महाकमिहानादोमहामंत्रो महामतिः। महागमोमहोदारोमहादेवात्मकोविभुः।।८७।। रुद्रकाकतकर्मरत्ननाभः कृतागमः // अम्भोधिलंघनः सिंहः सत्यधर्मप्रमोदनः dlil88 // जितामित्रोजयः सोमोविजयो वायुवाहनः / / जीवोधातासहस्रांशुर्मुकुन्दोभूरिदक्षिणः // 89 // सिद्धार्थःसिद्धिदः सिद्धसंकल्पः) सिद्धिहेतुकः // समपातालचरणः सप्तर्षिगणवंदितः // 90 // सप्ताब्धिलंघनोवीरः सनद्वीपोरुमण्डलः / / सतांगराज्यसुखदः सप्तमातृनिषेवितः // 11 // सप्तस्वलाकमुकुटः समहोत्रस्वराश्रयः / / समच्छन्दोनिधिः समच्छंदः सप्तजनाश्रयः / / 92 // सतसामोपगीतश्चसप्तपातालसंश्रयः / / मेधादः कीर्तिदः शोकहारीदौर्भाग्यनाशनः // 93 / / सर्ववश्यकरोगर्भदोषहापुत्रपौत्रदः // प्रतिवादिमुखस्तंभोरुष्टचिनप्रमादनः / / 14 // पराभिचारशमनो दुःखहाबन्धमोक्षदः // नवद्वारपुराधागेनबद्वारनिकेतनः // 95 // For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir पू० खं. 1 मं०म० // 223 // नरनारायणस्तुल्योनवनाथमहेश्वरः // मेखलीकवचीखड्गीवाजिष्णुजिष्णसारथिः / / 96 // बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छःपुच्छहतासुरः॥ दुष्टयहनिहंताचपिशाचग्रहघातकः / / 97 / / बालग्रहविनाशीचधर्मनेताकपाकरः // उपकृत्यउपवेगउग्रनेत्रः शतक्तः // 18 // शतमन्यस्तुतः स्तुत्यः स्तुतिः स्तोतामहाबलः // समयगुणशालीचव्ययोरक्षोबिनाशनः / / 99 // रक्षोनिदाहोरलेशः श्रीधरो वक्तवत्सलः // मेघनादोमेघरूपोमेघवृष्टिनिवारकः।। 100 ॥मेवजीवनहेतुश्चमेघश्यामःपरात्मकः।। समीरतनयोयोद्धातन्यविद्याविशारदः // 101 // अमोघोमोघदृष्टिश्चदिष्टदोरिष्टनाशनः / / अर्थोऽनापहारीचसमर्थोरामसेवकः // 102 // अर्थिवन्योसुरारातिःपुण्डरी काक्षआत्मभूः // संकर्षणोविशुद्धात्माविद्याराशिःसुरेश्वरः // 103 // अचलोद्धारकोनित्यःसेतुकद्रामसारथिः / / आनन्दःपरमानन्दो मत्स्यःकूमोनिधीशयः // 104 // वाराहोनारसिंहश्चवामनोजमदग्निजः // रामःमःशिवोवृद्धःकल्कीरामश्चमोहनः / / 105 // नदशिंगीचचण्डीचगणेशोगणसेवितः / / कर्माध्यक्षःसुरारामोविश्रामोजगतीपतिः / / 106 // जगन्नाथःकपीशश्च सर्वावामःमदाश्रयः / / सुग्रीवादिस्तुतादांतःसर्वकर्माप्लवंगमः / / 107 / / नखदारितरक्षाश्चनखयुद्धविशारदः।। कुशल:सुधनःशेषोवामुकिस्तक्षकस्तथा।।१०८॥ स्वर्णवर्णोबलाढ्यश्चपुरजेतापनाशनः // कैवल्यदीपःकैवल्योगरुडःपन्नगोगुरुः // 109 // विकिराबहतारातिर्गर्वपर्वतभेदनः / / वज्रांगोबजबजश्चभक्तवजनिवारकः // 10 // नखायुधोमणिग्रोवोज्वालामालीचभास्करः // प्रौढप्रतापस्तपनोभकतापनि वारकः // 111 // शरणंजीवनभोक्तानानाचेष्टोऽथचंचलः // स्वस्थस्त्वस्वास्थ्यहादुःखशातनः पवनात्मजः // 12 // पावनःपवनःकांतोभक्तागःसहनोबली // मेघनादरिपुमंधनादसंहतराक्षमः // 113 // अरोडरोविनीतात्मावानरेशःमतांगतिः / / श्री // 223 For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कण्ठःशितिकण्ठश्चसहायोगहनायकः / / 112 / / अस्थूलस्वनशुभगादिव्यःसंमृतिनाशनः / / अध्यात्मविद्यामारवायच्यात्मकुशलः सुधीः // 15 // अकल्मषःमत्यहेतुःसत्यदःमत्यगोचरः॥ नत्यगर्भःमत्यरूपःसत्यःमत्यपराक्रमः / / 11 // जनमाणलिंगचवायु वंशोहहःश्रुतिः।। जद्ररूपोरुद्ररूपःसुरुपश्चित्ररूपधृक् / / 17 / भेनाकदितःमूक्ष्मदशनोविजयोऽजयः / / कांतदिइमण्डलोरुदःप्रकटी| कृत विक्रमः / / 318 / / कंचुकण्ठःप्रसन्नात्माह्रस्वनासोवृकोदरः।।लंयोधकुण्डलीचित्रमालीयोगविदांवरः / / 19 / / विपश्चित्कवि रानन्दविग्रहोऽनल्पशासनः / / फल्गुनीमूनुरव्ययोयोगात्मायोगतत्परः / / 120 // योगविद्योगकर्ताचयोगयोनिदिगम्बरः / / अकारा / दिक्षकारांतवर्णनिर्मितविग्रहः / / 12 / उलग्बलमुखःसिद्धसंस्तुतःप्रमश्वरः।। श्लिष्टजंघःश्लिजानु:श्लिष्पाणिःशिखाधरः।। 122 // मुशर्माऽमितशर्माचनारायणपरायणः / / जिष्णुभविष्णरोचिष्णुप्रमिष्णुःस्थाणुरेवच / / 123 // हरिरुद्रानुकदक्षकंपनोभूमिकंपनः / / गुण प्रवाहःमूत्रात्मावीतरागस्तुतिप्रियः // 124 नागकन्याभयध्वंसीऋतुपर्णःकपालभृत् / / अनुकूलोक्षयोऽपायो नपायोवेदपारगः / / 125 // अक्षरःपुरुषोलोकनाथऋक्षप्रभुईढः // अष्टांगयोगफलभःसत्यसंधःपुरुष्टुतः // 126 / / श्मशानस्थाननिलयःप्रेतविद्रावणश्रमः / / पंचाक्षरपरःपंचमातृकोरंजनध्वजः // 126 // योगिनीवृन्दवंद्यश्रीःशत्रुनोऽनंतविक्रमः // ब्रह्मचारीन्द्रियरिपुर्धतदण्डोदशात्मकः || 228 / / अप्रपंचःसदाकारःशूरसेनोविदारकः।। वृद्धःप्रमोदआनन्दःसमजिह्वपतिर्धरः // 129 // नवद्वारपुराधारःप्रत्ययःसामगाय कः // षट्चक्रधामास्वलोकभयहृन्मानदोमदः // 130 // सर्ववश्यकरःशक्तिरनंतोऽनंतमंगलः // अष्टमूर्ति यापेतोविरूपःमुरमुंदरः / / // 130 // धूमकेतुर्महाकेतः सत्यकेतुर्महारथः // नन्दिप्रियःस्वतंत्रश्चमेखलीडमरुप्रियः // 132 // लोहांगः सर्वविद्धन्धीखण्डलः For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kab Acharya Shri Kalassag Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra y armandir .org / // 22 // 12 शर्वईश्वरः // फलभुक्फलहस्तश्चसर्वकर्मफलप्रदः // 133 // धर्माध्यक्षोधर्मफलोधमाधर्मप्रदोऽर्थदः // पंचविंशतितत्त्वज्ञस्तारकोबलपू.. 1 तत्परः॥ 134 // त्रिमार्गवसति(मःसर्वदुष्टनिबर्हणः // ऊर्जस्वान्निष्कलःशूलीमौलिगर्जनिशाचरः / / 135 // रक्तांवरघरोरक्तो। भारतमालाविभूषणः // वनमालीशुभांगश्चश्वेतःश्वेतांबरोयुवा // 136 // जयोऽजयपरीवारःमहप्रवदनःकपिः / / शाकिनीडाकिनीयक्षतरं०९ रक्षोभूतप्रभंजकः॥ 137 // सद्योजातःकामगतिर्ज्ञानमूर्तियशस्करः // शंभुतेजाःसार्वभौमोविष्णुभक्तःप्लवंगमः // 138 // चतुर्नवति। मंत्रज्ञःपौलस्त्यबलदपहा // सर्वलक्ष्मीप्रदः श्रीमानंगदप्रिय ईतिनुत् / / 139 // स्मृतिबीजमुरेशानःसमारभयनाशनः // उनमःश्रीपरी बारःश्रितरुद्रश्चकामधुक् // 140 // बाल्मीकिरुवाच // इति नाम्नां सहस्रेण स्तुतो रामेण वायुभः / / उवाच ते प्रसन्नात्मा संधायात्मानमव्ययम्।। 141 // श्रीहनुमानुवाच ॥ध्यानास्पदमिदं वालमत्पुरःसमुपस्थितम् // स्वामिन्कपानिधेरामज्ञातोसिकपिनामया // 142 // त्वद्ध्याननिरतालोकाः किंमांजपसि सादरम् // तवागमनहेतुश्चज्ञातोपत्रमयाऽनय // 143 // कर्तव्यंममकिंरामतथा हिचराघव // इतिप्रचोदितोरामः प्रहृष्टा मदमत्र वीद // 144 // श्रीराम उवाच / / दुर्जयः खलुबैदेहीगृहीत्वाकोऽपिनिर्गतः // हत्वातं, निघणवीरमानयत्वंकपीश्वर // 145 // मम दास्यंकुरुसखेभवविश्वसुखंकरः // तथाकते त्वया वीर मम कार्य भविष्यति॥ 146 // ओमित्याज्ञां तु शिरसा गृहीत्वा स कपीश्वरः // विधेयं विधिवत्तत्र चकार शिरसा स्वयम् // 47 // इदं नानां सहस्रं तु योऽधीते / प्रत्यहं नरः // दुःखौघो नश्यते तस्य सम्पत्तिर्वर्धतेऽचिरम् // 148 // वश्यं चतुर्विधं तस्य भवत्येव न संशयः / / राजानो राजपुत्राश्च / राजकीयाश्च मंत्रिणः // 149 / / अश्वत्थमूले जपतां नास्ति बरिरुतं भयम्॥त्रिकालपठनानस्य सिद्धिः स्यात्करसंस्थिता / / 350 / / For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir वाले गुहूर्ते चोत्थाय प्रत्यहं यः पठेन्नरः // ऐहिकामुष्मिकं सोपि लभते नात्रसंशयः।।१५१॥ संग्रामे सन्निविष्टानां चौरविद्रावणं परम् // ज्वरापस्मारशमनं गुल्मादीनां निवारणम् / / 352 / / मानाज्यमुखसंपतिदायकं जायते नृणाम् // त्वर्ग मोक्षं समामोति रामचन्द्रप्रसादतः / // 153 / / य इदं पठते नित्यं श्रावयेद्वा समाहितः // सर्वान्कामानशमोति वायुपुत्रप्रसादतः।। 154 / / इति ब्रह्माण्डपुराणे उत्तरखंडे , श्रीरामकृतं हनुमत्सहस्रनामस्तोत्रं संपूर्णम्॥अथ हनुमत्स्तोत्रप्रारम्भः॥ हनुमानुवाच // तिरश्चामपियोराजागमवायसमीयुषाम् // तथामुग्री। वमुख्यानांयस्तंबंद्यनमाम्यहम् // 3 // सकदेवप्रमन्नाय विशिष्टायैवराज्यदः॥बिभीषणाययोदेवस्तंबीरंप्रणमाम्यहम्॥२॥योमहापुरुषोव्यापी महाब्धौकतमेतुकः॥स्तुतोयेनजटायुशमहाविष्णुनमाम्यहम्॥३॥तेजमान्यायितायस्यज्वलंतिज्वलनादयः॥प्रकाशतस्वतंत्रीयस्तज्वलंतनमा म्यहम्॥४॥सर्वतोमुखतायेन लीलयादर्शितारणे // राक्षमेश्वरयोधानांतवंदेसर्वतोमुखम् // 5 // नृभावतुप्रपन्नानां हिनस्तिचसदारुजम् // नृसिंहतनुप्रासौयस्तं नृसिंहनमाम्यहम् // 6 // यस्माद्विष्यनिवातार्कज्वलनेंद्राःसमृत्यवः // भयंतनोतिपापानांभपिणतनमाम्यहम् // 7 // 4 परस्ययोग्यतांवीक्ष्यहरतेपापसन्ततिम् / पुरस्ययोग्यतांवीक्ष्यतनप्रणमाम्यहम् // 8 // योमृत्युंनिजदासानांमारयत्यतिचेष्टदः // तत्रापिनि जदासार्थमृत्युमृत्युनमाम्यहम् // 1 // यत्पादपद्मप्रणतोजवत्युत्तमपूरुषः॥तमीशंसर्वदेवानांनमनीयंनमाम्यहम् // 10 // आत्मभावंसमुत्क्षि। प्यदास्यंचैवरघूनमम् / / भजेहंप्रत्यहंराससीसहलक्ष्मणम्॥ 13 // नित्यंश्रीरामभक्तस्यकिंकरायमकिंकराः // शिववत्योदिशस्तस्यसिद्ध यस्तस्यदासिकाः // 12 // इदहनुमताप्रोक्तंमंत्रराजात्मकंस्तवम् // पठेदनदिनयस्तुसरामेभक्तिमान्भवेत् // इति हनुमत्कल्पे श्री रामकद्धनुमन्मंत्रराजात्मकम्तवराजः समातः // अथ लांगूलावशत्रुजयस्तोत्रप्रारंभः // ॐ हनुमंतमहावीरंवायुतुल्यपराक्रमम् // मम 57 For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // 225 // NTS म. कार्यार्थमागच्छप्रणमामिमहुर्मुहुः // 1 // ॐ अस्यश्रीहनुमच्छत्रुजयस्तोत्रमालामंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः / नाना छन्दांसि / श्रीम महावीरो हनुमान्देवता / मारुतात्मज हसौ इति बीजम् / अंजनीसूनुहस्के इति शक्तिः। ॐ हाहाहां इति कीलकम् / श्रीरामभक्तहां इति / पाणः / श्रीरामलक्ष्मणानन्दकर हाहींहूँ इति जीवः / ममारातिपराजयनिमित्तशत्रुजस्तोत्रमालामंत्रजपे विनियोगः // ॐ ऐं श्रीहाँही तरं०९ स्फेफेसाँहफ्रेंड्सौं नमो हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः // 3 // इति बीजादौ सर्वत्र संयोज्य रामदूताय तर्जनीभ्यां नमः // 2 // लक्ष्मण पाणदात्रे मध्यमाभ्यां नमः // 3 // अंजनीसूनवे अनामिकाभ्यां नमः // 4 // सीताशोकविनाशाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // लंकापासादरंजनाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥ इति करन्यासः // ॐ हनुमते हृदयाय नमः // 1 // रामदूताय शिरसे स्वाहा॥२॥ लक्ष्मणप्राणदात्रे शिखायै वषट् // 3 // अंजनीसूनवे कवचाय हुम् // 4 // सीताशोकविनाशिने नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // लंका प्रासादभंजनाय अखाय फट् // 6 // इति हृदयादिपडंगन्यासः॥ अथ ध्यानम् // "ॐ ध्यायेद्वालदिवाकरयुतिनिभं देवारिदापहं देवे | न्द्रप्रमुखैः प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा // सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं रक्तारुणलोचनं पवनजं पीतांबरालंकृतम् // 1 // Hमनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्॥वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि॥२॥वजांगपिंगकेशाढ्यं स्वर्ण कुंडलमंडितम् // नियुद्ध उपसंगात्रं पारावारपराक्रमम् // 3 // वामहस्तगदायुक्तं पाशहस्त कमंडलुम् // उद्यद्दक्षिणदोर्दण्ड हनुमंतं विचिं तयेत्॥४॥” इति ध्यात्वा "अरेमल्लचटखेत्युच्चारणेऽथवातोडरमल्लचटखेत्यच्चारणेकपिमुद्रांप्रदर्शयेत्॥"अथ मंत्रः॥ "श्रीहहिहि स्क / " स्पेंड्सौहफ्रेंड्सौं नमोहनुमतेत्रैलोक्याक्रमणपराक्रमश्रीरामभक्कममपरस्यचसर्वशत्रुन्चतुवर्णसंभवानपुंस्त्रीनपुसकान्भूतभविष्यवर्तमानान् For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नानादूरस्थसमीपस्थान्नानानामधेयान्नानासंकरजातिजानकलत्रपुत्रमित्रभृत्यबंधुमुहृत्समेतान्पशुशक्तिसहितानधनधान्यादिसंपत्नियुताना ज्ञोराजपुत्रसेवकान्मंत्रीसचिवसखीनआत्यंतिकक्षणेनत्वरयाएतद्दिनावधिनानानोपायैमरियरशस्वैश्छेदय२अग्निनाज्यालय२दाहय 2 अक्षय कुमारवत्पादतलाक्रमणेनानेनशिलातलेनात्रोटयरघातयश्वधरभूतसंधैःसहभक्षय क्रुद्धचेतसानविदारय२ देशादस्मादुच्चाटयरपिशाच वतन्त्रंशयत्रामय२भयातुरानविसंज्ञानमयःकुरुरभस्मीभूतान् उद्दलयर भक्तजनवत्सलसीताशोकापहारकसर्वत्रमामेनंचरक्षरक्षहाहाहा हुँहुं घेघेघेहूंफट्स्याहा"॥१॥ "ॐनमोहनुमतेमहाबलपराक्रमायमहाविपत्तिनिवारकायभक्तजनमनःकामनाकल्पद्रुमायदुष्टजनमनोरथस्तंभनायम भंजनप्राणप्रियायस्वाहा // 2 // " “ॐ हांहीं हुंदैह्रौंहः ममशनशुलेनच्छेदय२ अग्निनाज्यालय२ दाय२ उच्चाटय२ हुँफटूस्वाहा३" इति |मंत्रं पठित्वा पुनायेत // ॐ हनुमते नमः / श्रीमंतं हनुमंतमातरिपुभिभूभृत्तवाजितं चाल्यद्वालधिबन्धवैरिनिचयं चाभीकरादिप्रभम् / / अष्टौ रक्तपिशंगनेत्रनलिनं भूभंगमंगस्फुरत्यायच्चण्डमयूखमण्डलमुखंदुःखापहंदुःखिनाम् // 1 // कौपीनं कटिसूत्रमाज्यजिनयुग्देहं विदे। हात्मजा प्राणाधीशपदारविंदनिरत स्वांतं कृतांतं द्विषाम् // ध्यात्वैवं समरांगणस्थितमथानीय स्वहृत्पंकजे संपूज्याखिलपूजनोक्तविधिना / संप्रार्थयेप्रार्थितम् // इति ध्यात्वा स्तोत्रं पठेत् // ॐ हनूमन्नंजनीसूनो महाबलपराक्रम // लोलल्लांगूलपातेन ममारातीन्निपातय // 1 // मर्कटाधिप मार्तण्डमण्डलयासकारक // लोलल्ला० // 2 // अक्षक्षपण पिंगाक्ष क्षितिजाशुक्क्षयंकर // लो० // 3 // रुद्रा वतारसंसारदुःखभारापहारक // लोल० // 4 // श्रीरामचरणांभोजमधुपायितमानस // लो० // 5 // यालिकालरदलां |तसुग्रीवोन्मोचन प्रभो // लोल० // 6 // सीताविरहवारीशमनसीतेशतारक // लोल. // 7 // रक्षोराजप्रतापग्निदह्यमान For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalrm.org Be hot जगवन // लो० // 8 // ग्रस्ताशेषजगत्स्वास्थ्य राक्षसांभोधिमन्दर // लो० // 1 // पुन्छगच्छस्फुरदमानलदग्धारिपनन // लो०॥१०॥जगन्मनोरुलंध्यपारावारविलंघन।लो०॥११॥ स्मृतमात्रसमस्तेष्ट पूरक प्रणतप्रिय॥लो०॥१२॥रात्रिंचरचमूराशिकर्त नकविकर्तन // लो० // 13 // जानकीजानकीजानिप्रेमपात्रपरंतप // लोल० // 11 // भीमादिकमहावीरवीरवेशावतारक // थुलो० // 15 // वैदेहीविरहकातरामरोङ्गकविग्रह // लो० // 16 // वांगनखदंष्ट्रेशवनिवजावकुण्ठन // लो० // 17 // अखर्व है। गर्वगंधर्वपर्वतोद्भेदनस्वर / / लो० / / 18 / / लक्ष्मणप्राणसंत्राणत्रातास्तीक्ष्णकरान्बय / / लो० // 19 ॥रामादिविप्रयोगातभरताद्या तिनाशन / / लो० // 20 // द्रोणाचलसमुत्क्षेपसमुक्षिमारिवजय / / लो० // 21 // सीताशीर्वादसम्पन्नसमस्तावयवाक्षत // लोल ल्लांगूलपातेन ममारातीन्निपातय // 22 // इत्येवमश्वत्थतलोपविष्टः शचंजयनाम पठेत्स्वयं यः // स शीघ्रमेवास्तसमस्तशत्रुः प्रमोदते मारुतजप्रसादात // 23 // इति श्रीलांगूलाखशत्रुक्षयहनुमत्स्तोत्रं सम्पूर्णम् // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे हनुमनत्रे नवमस्तरङ्गः॥१॥ समाप्तोयंहनुमत्तरङ्गः। 226 // For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir श्रीगणेशाय नमः।। अथ श्रीवटुकौरवतंत्रप्रारंभः // तत्रादौ पटलप्रारंभः / / दृष्वातंत्राण्यनेकानिमाधयाख्येनधीमता / / श्रीमटुकनाथस्य च * पटलंवक्ष्यतेधुना ॥३॥(रुद्रयामले ) एकदागिरिजाशं पप्रच्छोपासनाविधिम् // येनेदं सर्वलोकानामीप्मितं च फलंभवेत् // 2 // श्री पार्वत्युवाच // प्राणनाथजगन्नाथजगदादिजगन्मय / शंभोशंकरदेवेशवटुकाराधनंवद // 3 // एकादशसहस्रंतुभजनहित्वयोदितम् // विधिस्तस्यविशेषेणबृहित्वंशंकराधुना // 4 // येनकार्याणिसिध्यंतिसाधकानांनिरंतरम् // सुगोप्यमपिदेवेशविधिप्रबेहिशंकर // 5 // y ईश्वर उवाच / / सम्यक्पृष्टत्वयादेविलोकदुःखविमोचनम् // मयावटुकरूपंहितंसर्वसुखावहम् // 6 // अन्येदेवास्तुकालेनप्रसन्नाः संभव तिहि // वटुकः सेवितः सद्यः प्रसीदतिध्रुवंशिवे / / 7 / / दुःखेचसेवितः शीनंदुःखनाशयतेक्षणात // सुवेचसेवितोनित्यंसुखंवर्द्धयते बहु // 8 // शृणुदेविप्रवक्ष्यामिवटु कस्यमहात्मनः // विधानपरमंगोप्यंबलादीनांसुदुर्लभम् // 1 // मंगवसुसंक्षेपात्कथयिष्यामिवई ल्लभे // यनविज्ञानमात्रेणत्रैलोक्यसाधयेत्सुधीः // 10 // एकदादेवदेवेशितपसेमंदराचलम् // गतोहंपरमानंदान्मूलपतिमीवरीम्॥११॥ चक्रेपरमसंतुष्टांतपसाभावितात्मना // आकाशरूपिणीदेवीप्रोवाचवचनंमुदा // 12 // तुष्टाहंशंकरप्रीतावरवरयदुर्लभम् // वटु कस्यविधा निमेपरमभक्तितोवरम् ॥१३॥परमाशयान्मंत्रस्ययेनसिध्यतिमर्वथा // मनोरमाणिमंत्रस्यसर्वकार्याणिसांप्रतम् // 14 // इतिवाक्यंचमेव त्वामूलभूतासनातनी // उवाचयादृशंदेवीविधानं शृणुवल्लभे // 15 // वटुकाव्यस्यदेवस्यभैरवस्यमहात्मनः // बलाविष्णुमहेशायैवदित / स्यदयानिधेः // 16 ॥न्यासाएकादशमोक्ताबटुकाराधनेशिये / यान्विनानवसिद्धिः स्यादपणामयुतैरपि // 17 // प्रथमः प्रेतबीजेन / नृसिंहबीजेनचापरः / / काणबीजेनसत्यायाः श्रीबीजेनततः परः॥ 18 // प्राणवीजेनबैन्यासानुकुर्यानवविचक्षणः॥ वंटाबीजेनचन्यास For Private And Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तं. तरं०१० मं०म०विधायख्यातिबीजतः // 19 // मूलवीजनपश्चाच्चन्यासंकत्वामहामतिः // भामरीबीजतोन्यासंविदध्यात्त्रीतिसंयुतः॥ 20 // एवंन्या // 22 // साअपादौतुनकरोतिनरोयदा // बांछयेहंवरारोहेतावन्मंत्रोनसिध्यति // 21 // इतिन्यासान्समाधायपुरश्चरणकारकः / यथोक्तन्या सकारीचयदिनोवरमानुयात् / / 22 / / तदाकन्यादूषणोत्थंममपापंजायताम् / / न्यासरेतैर्वरारोहेब्रह्महत्याविनश्यति // 23 // काका थान्यस्यपापस्यसत्यंमत्यंवदामिते // ममन्यासानथोवक्ष्ये त्रीन्देवस्यमहात्मनः॥२४॥ यान्विधायनरोविंदेतसिद्धिलोकेषुदुर्लभाम् // आ कृतबीजविन्यस्येन्मस्तकेगंडयोर्मुखे // 25 // कालबीजंचक्षुपोश्चकर्णयोरपियिन्यसेत् // नाभौलिंगेगुदेवापिविद्याबीजकपोलयोः॥२६॥ ब्रह्मरंधेदंतपंक्तीविन्यसेत्साधकोत्तमः॥एतन्यासत्रयंप्रोक्तंसाधकाभीष्टसिद्धिदम्॥२७॥ यस्यप्रसादमासाद्यसाधकः शीघ्रसिद्धिदः // शृणुदे विप्रवक्ष्यामिशृंखलान्यासमुत्तमम् // 28 // यस्यप्रसादाचशिवेबटु कः सिद्धिदोभवेत् // महापराख्यबीजंचविन्यसेत्साधकोत्तमः // 29 // न्यासेनानेनसुश्रोणिसाक्षाच्छिवसमोभवेत् // बटुकस्याथवक्ष्यामिमातृकान्यासमुत्तमम् // 30 // कृतेनयेनबटुकः साधकस्यकरेभवेत् // बटुकस्यपरंपूज्यंमातृकान्यासमुत्तमम् // 31 // विज्ञायसाधयेत्याज्ञः समद्यः शिवतांवजेत् // विनवमातृकान्यासंयोन्येनन्यासमाचरे| त् / / 32 // वटु कस्तस्यकुपितः सद्यः शापंप्रयच्छति // तस्यन्यासः प्रकर्तव्यः साधकेनविपश्चिता // 33 // संघर्षमातृस्थानेषुवपुः / / पावनहेतवे // मातृकान्यासमेनहित्यक्त्वाऽन्यंन्यासमाचरेत् // 34 // वर्षकोटिप्रयत्नेनससिद्धिनैवविंदति // ॐ कारमादौसंयोज्यसर्व पूर्ववदाचरेत् // 35 // अयमंतर्मातृकाख्योन्यासः स्यात्पूर्वसिद्धिदः // ॐकारमादिमकत्वान्यासायंवरवणिनि // नाम्नाबहि मात्रिकाख्योन्यासचूडामणिवेत् / / 36 / / अथान्यन्यासमाख्यास्येशृणुष्ववरवर्णिनि / / सरस्वतीमातृकाख्यंसद्यःसिद्धिप्रदायकम् / / 37 // SO-90014--2 For Private And Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir anii.-e- 4- -00 न्यसेन्महामतेबीजमातृकास्थानकेषुच // महासरस्वतीदेवीसद्यःसिद्धिप्रदायिका / / 38 / / महासरस्वतीबीजंकथितंदेवदुर्लभम् / / इसे न्यासाःसमाख्यातावटुकाराधने शिवे / / 39 / / सद्यःसिद्धिकरादेविभाग्यलायानसंशयः // न्यूनन्यासस्यकर्तायःसयोहानिमवामुयात् | // 40 / / एतस्मादधिकान्यासान्यस्तंचपीठन्यासकम् // यंत्रावरणन्यासंचपीठपूजाविधिचरेत् / / 41 // एवंन्यामत देविध्यायबटुक के भैरवम् // शुद्धस्फटिकसंकाशंद्विनेत्रोत्पलशोभितम् // 42 / / कुटिलालकसंवीतंचारुस्मेरमुखांबुजम् // नानारत्नमयैःकल्पःकिंकिणी ) जालनपुरैः॥ 43 / / दीशुक्लांबरावीतंद्विभुजंदक्षिणेकरे // त्रिशिखमव्यहस्तेचदधानंदंडमद्भुतम् / / 44 // वटुवेशधरंशं सात्त्विकं साधकःस्मरेत् // एवंध्यात्वायजेद्देवंशवेगीठेमुरेश्वरि // 45 // पात्रासादनशंखंचघंटाकलशस्थापनम् // विशेषार्घस्थापनवायंत्रस्थापन / मेवच // 46 // सतधातुमयेपीठेताम्रजेवापटेशुने // संस्थाप्यतत्रतयंत्रध्यात्वातत्रवटुंप्रिये // 47 // यथाकामंतथाध्यानंकारयेत्साध |कोत्तमः // कूरकार्येषुसर्वेषुध्यानंवैतामसंस्मृतम् / / 48 // वश्येविद्वेषणेस्तंभेराजसंध्यानमीरितम् / / सात्त्विकंशुभकार्यपध्यानभेदःसमीरितः // 49 // अन्येवैध्यानभेदाश्चस्तवराजेप्रकीर्तिताः // मूर्तिमूलेनसंकल्प्यतस्यामाबाहयेत्प्रभुः॥५०॥सद्योजातेनमंत्रेणमूलायेनचसुव्रते // सन्निधाप्याथमूलेनकेवलेनस्वमुद्रया // 51 // अघोरांतेनमूलेनसन्निरोधनमाचरेत् // मूलेनसंमुखीकुर्यादवगुंठ्याथमूलतः // 52 // पडंगैःशकलीकत्यामृतीकत्यचमूलतः // परमीकरणचैवस्वस्वमुद्राभिरर्चयेत् // 53 // एतत्संविधातव्यंततोध्यायेत्समाहितः // कृत्वामु| स्थापनंतस्यमुद्राःसंदर्शयेदथ // 54 // लिंगाद्याःपूर्वमुद्दिष्टायोनिमुद्रातांतिमा // तांदर्शयेत्तत्पुरुषमूलान्यांचमहेश्वरि // 55 // आस नायैश्चपुष्पांतैरुपचारैस्ततोर्चयेत् // ततो देवाज्ञयासम्यग्यजेदावरणदेवताः॥ 56 // मंत्राक्षराणांसंख्याकैस्तंतुभिर्ब्रह्मसूत्रजैः॥ वर्ति करवा 8 -08 For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म. पू०.१ घृतेनैव दीपतत्रपदापयेत // 57 // नैलेनवाप्रकुर्वीतदीपदानविधानतः // बलिंन्यासविधिकत्वाध्यानकत्वायथोक्तयत् // 58 // श्रीपार्व // 228 // त्युवाच // भगवनकरुणासिंधोदीनबंधोजगद्गुरो // कृपांकत्वासमाख्याहित्ररेवपृथक्पृथक् // 59 / / साधकस्तुतथासिड्मिचिरेणैववि / वादति / / कालेनेहयथाल्पेनसाधकःसिद्धिमानुयात् // 60 // गोपनीयोनमंत्रोयंबटुकाख्योजगद्गुरो // तथानिरूपयविभोबालकोपियथा भित् // 61 // ईश्वर उवाच // शृणुदेविजगत्पूज्येन्यासबीजानिशोभने // प्रकटानियथाशश्वत्कथयामिहितायते / / 62 // // तत्रादावापदुद्धारकबटुकमंत्रयोगः।। (रुद्रयामले ) मंत्रो यथा-"ह्रौंबटुकायआपदुद्धारणायकुमकुरुवटुकायहीम्” इत्येकविंशत्यक्षा शिरो मंत्रः॥ अस्य विधानम् / आचम्य मूलेन प्राणानायम्य देशकालौ लंकीर्त्य श्रीमन्टुकभैरवदेवतापीतयेममाभुकमंत्रमियर्थ लक्षसंख्या पत्मकजप ( अथ वैकविंशतिलक्षात्मकजप) रूपपुरश्चरणमहंकरिष्ये // इति संकल्प्यभूतशुद्धिप्राणप्रतिष्ठांतर्भातृकाबहिमातृकासृधिस्थिति संहारमातृकान्यासं च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गण कृत्वा प्रेतबीजायश्रीकंठादिकलामातृकान्यासांत सर्वन्यासं च पद्धतिमार्गेण कृत्वा / प्रयोगोक्तन्यासादिकं कुर्यात्॥तद्यथा / अस्य श्रीवटुकभैरवमंत्रस्य बृहदारण्य ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः। श्रीबटुकभैरवो देवता। ह्रीबीजम् / हीशक्तिः / ॐ कीलकम् / श्रीबटुकभैरवप्रीतये जपे विनियोगः // ॐ बृहदारण्यक्रपये नमः शिरसि // 1 // अनुप्छन्दसे नमः मुखे // 2 // श्रीबटुकभैरवदेवतायै नमः हृदि // 3 // ह्रींबीजाय नमः गुह्ये // 4 // ह्रीशक्तये नमः पादयोः // 5 // ॐ की 5 लकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ह्रीं वौं ईशानाय नमः अंगुष्ठयोः // 1 // ॐ हैं वैतत्पुरुषाय नमः तर्जन्योः॥ 2 // अघोराय नमः मन्यमयोः // 3 // ॐ ह्रीं वीवामदेवाय नमः अनामिकयोः // 4 // // 228 // For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S a n Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ॐ ह्रां वां सद्योजाताय नमः कनिष्ठिकयोः // 5 // इति करन्यासः // ॐ ह्रौं वौं ईशानाय ऊर्ध्ववक्राय नमः शिरसि // 3 // ॐ हूँ मैं तत्पुरुषाय पूर्ववकाय नमः मुखे // // ॐ हूं व अघोराय दक्षिणवत्राय नमः दक्षिणकर्ण // 3 // ॐ ह्रीं वीं वामदेवाया उत्तरवक्राय नमः वामकर्णे // 4 // हां वां सद्योजाताय पश्चिमवक्राय नमः चुडाधः // 5 // इति मूर्तिन्यासः // ॐ ह्रौं वों ईशा नाय नमः शिरसि // 1 // ॐ हैं बैं तत्पुरुषाय नमः मुखे // 2 // ॐ हूं अघोराय नमः हृदये // 3 // ॐ ह्रीं वीं वामदेवाय / नमः गुह्ये // 4 // ॐ ह्रां वां सद्योजाताय नमः पादयोः // 5 // इति पंचब्रह्ममंत्रन्यासः / / ॐ हा या हृदयाय नमः।। 1 / / ॐ ही वी शिरसे स्वाहा / / 2 // ॐ हूं धूं शिखायै वषट् / / 3 / / ॐ ह वै कवचाय हुम् / / 4 / ॐ ह्रौं वा नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रः वः अस्त्राय फट / / 6 / / इति हृदयादिषडंगन्यासः / ततः ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट् इत्यस्त्रमंत्रेण तालैश्छोटिकाभिर्वा दशदि बंधनं कृत्वा ध्यायेत् / / अथ ध्यानम् / / ॐ शुद्धस्फटिकसंकाशं सहस्रादित्यवर्चसम् / / नीलजीमृतसंकाशं नीलांजनसमप्रजम् // 1 // अष्टबाहुं त्रिनयनं चतुर्बाहुं द्विवाहुकम् // दंष्ट्राकरालवदनं नूपुरारावसंकुलम्॥ २॥भुजंगमेखलं देवमग्निवर्ण शिरोरुहम् // दिगंबरं कु मारेशं बटुकाख्यं महाबलम् // 3 // खट्वांगमसिपाशं च शूलं दक्षिणभागतः // डमरूं च कपालं च वरदं भुजगं तथा // अग्निवर्णममो पतं सारमेयसमन्वितम् // 4 // इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूजयेत // ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमण्डले लिंगतोभद्रमंडले वा मंडूकादिपरत्वांतपीठदेवताः पद्धतिमार्गेण संस्थाप्य ॐ मं मंडकादिपरतत्वांतपीठदेवताभ्यो नमः // इति संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् // तद्यथा-पूर्वादिक्रमेण / ॐ वां वामायै नमः // 3 // ॐ ज्ये ज्येष्ठायै नमः // 2 // ॐ रौं रौयै नमः॥३॥ ॐ कां काल्यै नमः॥४॥ ॐ For Private And Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra म. तरं०१० कलविकरण्यै नमः // 5 // ॐ बं बलविकरण्यै नमः॥ 6 // ॐ वं बलप्रमथिन्यै नमः // 7 // ॐ सं सर्वभृतदमन्यै नमः // // el0 खं० 1 मध्ये / ॐ मं मनोन्मन्ट नमः // 1 // इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनास्यज्य तदुपरि दुग्ध भै० तं• धारा जलधारांच दत्वा स्वच्छवस्त्रेण मंशोप्य ततः शक्तिगंधाष्टकेन यंत्रं विलिग्व्यॐ नमो भगवने बटुकाय सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय अनंताय योगपीठात्मने नमः // " इति मंत्रेण पुष्पाद्यामनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य | आवाहनादिपप्पांनैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात् // तथा च॥ पुष्पांजलिमादाय / "ॐ सविन्मयः परो देवः पराध मृतग्सप्रियः / / अनुज्ञां देहि बटुक परिवारार्चनाय में // 1 // इत्युका पुष्पांजलिं भैरवोपरि दत्त्या आज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत् // अत्र सर्वत्र पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य आवरणदेवतां पूजयेत // ततो दक्षहस्ते तर्जन्यंगुष्ठायां गंधाक्षतपुष्पाणि गृहीत्वा देवस्यांगे आग्नेन्यादिचतुर्दिश्च मध्ये दिक्षु च ॐ ह्रां यां हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इनि सर्वत्रीच्चरेत // 3 // ॐ ह्रीं बी शिरमे स्वाहा शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ ह्र बं शिखायै वषट् शिखाश्रीपा०॥ 3 // ॐ ह्र व कवचाय हम कवचश्रीपा० // 4 // ॐ ह्रौं बौं नेत्रत्रयाय वौषट नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ ह्रः वः अस्त्राय फट् अखश्री लिंगस्यां पूजयेठेवीं पुस्तकस्था तथव च // मण्डलस्था महामायां यवस्था प्रतिमासु च // सौवर्ण राजते ताने पट्टे भूजय वा भुवि / विना यंत्रण चत्पूजा देवता न प्रसीदति // २-शनपटगंधी यथा-स्वयंभूरुजुर्म कुंडगोलात्वं रोचनागुरु // काश्मीरमृगनाभिं च साह्यं च मलयोद्भवम् // एष गंधः समारख्यातः सर्वदा चण्डिकाप्रियः / / For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir पा० // 6 // इति पडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुत्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषा_द्विदं निक्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततः कर्णिकादहिरष्टदले प्राच्यादिक्रमेण / ॐ ह्रीं आ असितांगभैरवाय नमः असितांगभैरवश्रीपा० // 3 // ॐ ह्रीं ई रुरुभैरवाय नमः रुरुभैरवश्रीपा० // 2 // ॐ ह्रीं ऊं चंडभैरवाय नमः / चंडभैरवश्रीपा० // 3 // ॐ ह्रीं के क्रोधभैरवाय उनमः / क्रोधभैरवश्रीपा० // 4 // ॐ ह्रीं दं, उन्मनभैरवाय नमः उन्मत्तभैरवश्रीपा० // 5 // ॐ ऐं ह्रीं कपालभैरवाय नमः। कपालभैरव श्रीपा० // 6 // ॐ ह्रीं औं भीषणभैरवाय नमः / भीषणभैरवश्रीपा० // 7 // ॐ ह्रीं अँ संहारभैरवाय नमः / संहारभैरवश्रीपा० // // 8 // इत्यष्टौ भैरवान्संपूज्य त्रिकोणे पूर्वादिकोणेषु / ॐ सत्त्वाय नमः // 1 // ॐ रजमे नमः॥ 2 // ॐ तमसे नमः // 3 // इति त्रिगुणान संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // त्रिकोणाबहिः षट्कोणे पूर्वादिक्रमेण / ॐ ह्रीं भूतनाथाय नमः / भूतनाथश्रीपा० // 1 // ॐ ह्रीं आदिनाथाय नमः / आदिनाथश्रीपा० // 2 // ॐ ह्रीं आनंदनाथाय नमः / आनंदनाथ श्रीपा० // 3 // ॐ ह्रीं सिद्धशायरनाथाय नमः / सिद्धशाबरनाथश्रीपा० // 4 // ॐ ह्रीं सहजानंदनाथाय नमः / सहजानंदनाथ श्रीपा० // 5 // ॐ ह्रीं निःसीमानंदनाथाय नमः। निःसीमानंदनाथश्रीपा० // 6 // इति संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो वर्तुले पूर्वादिक्रमेण / ॐ ह्रीं डाकिनीपुत्रन्यो नमः / डाकिनीपुत्रश्रीपा०॥3॥ ॐ ह्रीं राकिनीपुत्रेन्यो नमः राकिनीपुत्रश्रीपा० // 2 // ॐ ह्रीं लाकिनीपुत्रेन्यो नमः / लाकिनीपुत्रश्रीपा० // 3 // ॐ ह्रीं काकिनीपुत्रेन्यो नमः / काकिनीपु For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० श्रीपा०॥४॥ ॐ ह्रीं शाकिन पुत्रेयो नमः / शाकिनीपुत्रश्रीपा०॥ 5 // ॐ हीं हाकिनीपूरेग्यो नमः / हाकिनीत्रश्रीपा०॥ पू० खं०२ 6 // ॐ ह्रीं याकिनी पुत्रायो नमः याकिनीपुत्रश्रीपा० / / 7 / / ॐ ही देवीपुत्रेन्यो नमः / देवीपुत्रश्रीपा०॥ 8 // देवदक्षिण तः // ॐ ह्रीं उमा पुग्यो नमः / उमापुत्रश्रीपा० // 9 // ॐ ह्रीं रुद्रपुत्रन्यो नमः / रुद्रपुत्रश्रीपा० // 10 // ॐ ह्रीं मातपुत्रे तरं० 1. यो नमः / मातृपुत्रश्रीपा० // 11 // पश्चिमननयोर्मध्ये / ॐ ह्रीं ऊर्ध्वपुखीपुत्रायो नमः / ऊर्ध्वमुखीपुत्रश्रीपा० // 12 // पूर्वे शानयोर्मध्ये // ॐ ह्रीं अधोमुखीपुत्रायो नः। अधोमुखीपुत्रश्रीपा० // 13 // इति त्रयोदशपुत्रवर्गान पूजयेत् // ततः पुष्पांजलि ग हीत्वा मूलमुच्चार्य अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्सलभत्तया समर्पये तुम्यं चतुर्थावरणार्चनम्॥३॥इति पठित्वा पुष्पांजलि दत्त्वा / विशेषादिई भैरवोपरि निक्षिप्य पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत // इति चतुर्थावरणम् // 4 // वर्तुलादहिः पूर्वाद्यानेयांतं कमेण वामावर्तेन च पूर्वे ॐ ह्रीं ब्रह्माणीपुत्रबटुकाय नमः / ब्रह्माणीपुत्रवटुकश्रीपा०॥ 1 // ऐशान्ये / ॐ ह्रीं माहेश्वरीपुत्रवटुकाय नमः। माहेश्वरीपुत्रवटुकश्रीपा॥ 2 // उतरे ॐ ह्री वैष्णवीपुत्रवटुकाय नमः / वैष्णवीपुत्रबटुकश्रीपा० // 3 // वायव्ये / ॐ ह्रीं को मारीपुत्रवटुकाय नमः / कौमारीपुत्रवटुकीपा० // 4 // पाश्चमे इन्द्राणीपुत्रबटुकाय नमः / इन्द्राणीपुत्रबटुकश्रीपा० // 5 // नैर्ऋत्ये ॐ ह्रीं महालक्ष्मीपुत्रबटुकाय नमः / महालक्ष्मीपुत्रबटुकश्रीपा० // 6 // दाक्षणे / ॐ ह्रीं वाराहीपुत्रवटुकाय नमः / वाराहीपुत्रवटुक श्रीपा० // 7 // आग्नेये // ॐ ह्रीं चामुंडापुत्रबटुकाय नमः / चामुंडापुत्रवटुकीपा० // 8 // इत्यष्टौ मातृपुत्रवटुकान पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिं गृहीत्वा मूलमुच्चार्य "अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणागतवत्सल।भक्त्या समर्पये तुभ्यं पंचमावरणार्चनम्॥१॥"इति पठित्वा / For Private And Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषाद्विदं भैरवोपरि निक्षिप्य पृजितास्तर्पिताः भतु इति वदेत् / / इति पंचमावरणम् ॥५॥अष्टदलाबहिः चतुरस्रा त्यंतरे इंद्रादिक्रमेण प्राची प्रकल्प्य पूर्वादिदशदिक्षु च पूर्व ॐ ह्रीं हेतुकाय नमः / हेतुश्रीपादुकांपूज०॥1॥आग्नेये। ॐ ह्रीं त्रिपुरा तकाय नमः। त्रिपुरांतकश्रीपा०॥२॥ दक्षिणे। ॐ ह्रीं चैतालाय नमः। यतालश्रीपादुकां पूजयामि तर्प०॥निकते ॐ ह्रीं अग्निजिह्वाय नमः! अभिजिह्वश्रीपा०॥४॥पश्चिमे॥ॐ ह्रीं कालांतकाय नमः। कालांतकश्रीपा० ॥५॥वायव्ये / ॐ ह्रीं करालाय नमः। करालश्रीपा०1 धु ॥६॥उत्तरे ॐ ह्रीं एकपादाय नमः। एकपादश्रीपा०॥७॥ ऐशान्ये ॐ हीं भीमरूपाय नमः: भीमरूपश्रीया // 8 // इन्द्रेशानयोमध्ये / 5 ॐ ह्रीं अचलाय नमः / अचलश्रीपा०॥९॥ नक्तबरुणयोर्मध्ये / ॐ ह्रीं हाटकेशाय नमः / हाटकेशश्रीपा० // 10 // इति हेतुकादीन दशवटुकान पूजयेत्॥ ततः पुष्पांजलिं गृहीत्या मूल सुचार्य / “अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल भत्त्यानी त्यं पठमावरणा| वार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं दत्त्या विशेषादिदु भैखोपरि निक्षिप्य पृजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति पशावरणम॥६॥ तत्र त्रिरेखात्मकभपुरस्य प्रथमरेखायां दिग्विदिगंतरालेषु षोडशस्थानेषु श्रीकंठादिमहामनांतान्यजेत् // तत्र कमः // पूर्व / ॐ ह्रीं अंत श्रीकंठेशपूर्णादरीन्यां नमः / श्रीकंठेशपूर्णादरीश्रीपा०॥३॥ दक्षिणे॥ॐ ह्रीं आं अनंतेशविरजान्यां नमः / अनंतशविरजश्रीपा०॥२॥ पश्चिमे / ॐ ह्रीं ई मुश्मेशशाल्मलीन्यां नमः / सूक्ष्मेशशाल्मलीश्रीपा० 3 // उतरे / ॐ ह्रीं ई त्रिमूर्तीशलोलाक्षीभ्यां नमः। * त्रिमूर्तीशलोलाक्षीश्रीपा०॥४॥ आनेय्याम्॥ॐ ह्रीं उं अमरेशवतलाक्षीन्यां नमः / अमरेशवलाशीश्रीपा० // 1 // नैर्ऋते / ॐ ह्रीं ॐ अशिदीर्घघोणाश्यां नमः / अर्धशदीर्घघोणाश्रीपा०॥६॥ वायव्ये // ॐ ह्रीं कं भारभूतीशदीर्घमुखीच्यां नयः / भारभूतशिदीमुखी For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म. आपदुद्धारवटुकजनयन्त्रम्. पू०खं.१ भै. तं० तरं०१० MINS For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobal.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir BIAVIM For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म. // 232 // श्रीपादुकां पू० // 7 // ऐशान्ये // ॐ ह्रीं अतिथीशगोमखीत्यां नमः / अतिथीशगोमुखीश्रीपा० // 8 // पूर्याग्निमध्ये / ॐ ह्रीप०३०१ लं स्थाण्वीशदीर्घजिह्वान्यां नमः / स्थाण्वीशदीर्घजिह्वाश्रीपा० // 9 // दक्षिणतमध्ये।। ॐ ह्रींलं हरेगडोदरीभ्यां नमः। भतर हरेशकुंडोदरीश्रीपा०॥१०॥ पश्चिमवायुमध्ये / ॐ ह्रीं ऐझिंटीशोर्यकेशीयां नमः / झिंदीशा के शीश्रीपा०॥11॥ उत्तरेशानमध्ये। तरं० 10 ॐ ह्रीं ऐं भौतिकेशविकतमुखीभ्यां नमः / भौतिकेशविकतमुखीश्रीपा० // 12 // अग्निदक्षिणमध्ये / ॐ ह्रीं ओंकोजातेशज्वालामुखीयां नमः / सद्योजातेशज्यालाखीश्रीपा०॥१३॥नितिबरुणमध्ये / ॐ ह्रीं औं अनुग्रहशोल्कामुखीयां नमः / अनुपहेगोल्कामुखीश्रीपा०d // 14 // वायुसोममध्ये // ॐ ह्रीं अं अरेशश्रीमुखीच्यां नमः / अक्रूरेशश्रीमुखीश्रीपा० // 15 // ईशानपूर्वमध्ये // ॐ हीं अः। महासेनेशविद्यामुखीयां नमः / महासेनेशविद्यामुखीश्रीपा०१६॥ इति पूजयेत्॥ ततः पुष्पांजलिं गृहीत्वा मूलमुचाय। "अभीष्टसिद्धि मे देहि शरणगतवत्सल।भक्त्या समर्पये तुभ्यं सामावरणार्चनम्" / / इति पठित्वा पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषादिदं अयोपरि निक्षिप्य पृजिता है। स्तर्पिताः संतु इति वदेत्॥ इति मनमावरणम्॥७॥ततो भपुरस्य द्वितीयरेखायां दिग्विदिगंतरालेषु पोडशस्थानेषु कोधीश्वरायपोइशांतान॥ लापूजयेत्॥ तत्र क्रमः। पूर्व / ॐ ह्रीं के क्रोधीशमहाकालीन्यां नमः / क्रोधीशमहाकालीश्रीपा०॥३॥ दक्षिणे / ॐ हीं वं चंडीशसरस्य || तीच्यां नमः। चंडीशसरस्वतीश्रीपा॥२॥ पश्चिमे। ॐ ह्रीं गं पंचांतकेशममिद्धिगौरीभ्यां नमः। पंचांतकेशमधमिद्धिगौरीश्रीपा०॥३॥ // 232 // उत्तरे / ॐ ह्रीं धं शिवोनमेशत्रैलोक्यविजयान्यां नमः। शिवोत्तमेशत्रैलोक्यविजयाश्रीपा० // 4 // आनेय्याम् / ॐ ह्रीं डं एकरुद्रेशमंत्र शक्तियां नमः / एकरुद्रेशमंत्रशक्तिश्रीपा० // 5 // नैकत्ये // ॐ ह्रींचं कर्मशात्मकशक्तियां नमः / कर्मशात्मकशक्तिश्रीपा० // 6 // For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir वायव्ये / ॐ ह्रीं छ एकनेत्रेशभृतमातृकात्यां नमः / एकनेत्रेशभूतमातृकाश्रीपा० // 7 // ऐशान्ये / ॐ ह्रीं जं चतुराननेशलंबोदरीभ्यां नमः / चतुराननेशलंबोदरीश्रीपा० // 8 // पूर्वामिमध्ये / ॐ ह्रीं झं अजेशद्राविणीच्यां नमः / अजेशद्राविणीश्रीपा० // 9 // दक्षिण नतमध्ये / ॐ ह्रीं नं सर्वेशनागरीभ्यां नमः / सर्वेशनागरीश्रीपा० // 10 // पश्चिमवायुमध्ये / ॐ टं सोमेशखेचरीभ्यां नमः / / सोमेशखचरीश्रीपा० // 11 // उत्तरेशानमध्ये / ॐ ह्रीं ठं लांगलीशमंजरीभ्यां नमः / लांगलीशमंजरीश्रीपा०॥१२॥अग्नेययाम्यमध्ये। ॐ ह्रीं डं दारुकेशरूपित्यां नमः / दारुकेशरूपिणीश्रीपा० // 13 // नैर्ऋतपश्चिममध्ये / ॐ ह्रीं हुं अर्धनारीशवीरणीभ्यां नमः। अर्थ नारीशवीरणीश्रीपादुकांपृ० // 14 // वायुसोममध्ये / ॐ ह्रीं णं उमाकतिशकाकोदरीभ्यां नमः / उमाकांतेशकाकोदरीश्रीपा० // 15 // ईशानपूर्वमध्ये // ॐ ह्रीं तं आषाढेशपृतनाभ्यां नमः / आषाढेशपूतनाश्रीपा० // 16 // इति पूजयेत् // ततः पुष्पांजलि गृहीत्वा मूलमुच्चार्य // "अभीष्टमिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्मये तुल्यमष्टमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा / पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषायाबिंदु भैरवोपरि निक्षिप्य पृजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इत्यष्टमावरणम् // 8 // ततो भूपुरस्य तृतीयरेखा यां दिग्विदिगंतरालेषु षोडशस्थानेषु दंडीश्वरादिभृग्वीशांतान पूजयेत् // तत्र क्रमः / / पूर्व / ॐ ह्रीं थं दंडीशभद्रकालीभ्यां नमः / दंडीशभद्रकालीश्रीपादुकां पू० ॥१॥दक्षिणे | ॐ ह्रीं दं अत्रीशयोगिनीभ्यां नमः / अत्रीशयोगिनीश्रीपा०॥२॥पश्चिमे // ॐ ह्रीं कमीनेशशंखिनन्यां नमः / मीनेशशंखिनीश्रीपा० // 3 // उनरे / ॐ ह्रींनं मेषेशगर्जनीभ्यां नमः / मेषेशगर्जनीश्रीपा०॥४॥ आये। च्याम् // ॐ ह्रीं पं लोहितेशकालरात्रिन्यां नमः / लोहितेशकालरात्रिश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥ 5 // नत्ये / ॐ ह्रीं फं। For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir म.म. भै० 0 तरं०१० शिखीशकुब्जिकाभ्यां नमः / शिखीशकुब्जिकाश्रीपा० // 6 // वायव्ये / ॐ ह्रीं बं छागलेशकपर्दिनीभ्यां नमः / छागलेशकपर्दिनीपू० खं. 1 श्रीपा० // 7 // ऐशान्ये // ॐ ह्रीं भं द्विरंडेशवाजिणीच्यां नमः / द्विरंडेशवत्रिणीश्रीपा० // 8 // पूर्वामिमध्ये / ॐ ह्रीं मं महाकालेश जयाश्यां नमः / महाकालेशजयाश्रीपा० // 9 // दक्षिणनैऋर्तमध्ये / ॐ ह्रीं यं त्वगात्मन्यां बालेशसुमुखेश्वरीप्यां नमः / बालेशसुमु लाखेश्वरीश्रीपा०॥१०॥ पश्चिमवायव्यमध्ये / ॐ ह्रीं रं अमृगात्मन्यां भुजगेशरेवतीभ्यां नमः / भुशंगेशरेवतीश्रीपा० // 13 // उत्तरेशान योर्मध्ये / ॐ ह्रीं लं मांसात्माया पिनाकीशमाधवीभ्यां नमः / पिनाकीशमाधवीश्रीपा० // 12 // आग्नेयदक्षिणमध्ये / ॐ ह्रीं वं वेदा आत्मयां खड्गीशवारुणीयां नमः / खड्गीशवारुणीश्रीपा० // 13 // नैर्ऋतपश्चिममध्ये / ॐ ह्रीं शं अस्थ्यात्मात्यां बकेशवायवीच्यां नमः। बकेशवायवीश्रीपा० ॥१६॥वायुसोममध्ये। ॐ ह्रीं पं मज्जात्मान्यां नमः।श्वेतेशरक्षोवधारिणीभ्यां नमः श्वेतेशरओवधारिणीश्रीपा०॥१५॥ ईशानपूर्वमध्ये! ॐ ह्रीं सं शुक्रात्मायां भृग्वीशमहजाभ्यां नमः / भृग्वीशमहजाश्रीपा०॥३६॥इति पूजयेत॥ ततो भूपुरादहिः देवदक्षि Nणतः लकुलेशादि त्रयं पूजयेत् // तत्र क्रमः / ॐ ह्रीं हं प्राणात्मन्यां लकुलीशलक्ष्मीभ्यां नमः / लकुलीशलक्ष्मीश्रीपा० // 3 // ॐ | ही लं शक्त्यात्मन्यां शिवेशव्यापिनीन्यां नमः / शिवेशव्यापिनीश्रीपा०॥ 2 // ॐ ह्रीं क्षं क्रोधात्मायां संवर्तकेशमहामायान्यां नमः / / संवर्तकेशमहामायाश्रीपा० // 3 // इति पूजयेत् // ततः ऐशान्ये / ॐ ह्रीं योगिनीसहितन्यो दिव्ययोगीश्वरायो नमः / योगिनीसहित दिव्ययोगीश्वरश्रीपा० ॥१॥आग्नेये / ॐ ह्रीं योगिनीसहितेयोऽन्तरिक्षस्थयोगीश्वरेश्यो नमः। योगिनीसहितांतरिक्षस्थयोगीश्वरश्रीपा० | I // 2 // नैते / ॐ ह्रीं योगिनीसहितभृमिस्थयोगीश्वरेत्यो नमः / योगिनीसहितभुमिस्थयोगीश्वरश्रीपा० // 3 // पूर्व / गं गणपतये वा॥२३३ For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir नमः। गणपतिश्रीपा० // 4 // दक्षिणे मैं भैरवाय नमः / भैरवश्रीपा० // 5 // पश्चिमे / शं क्षेत्रपालाय नमः / क्षेत्रपालश्रीपा० // 6 // उत्तरे / दुं दुर्गायै नमः। दुर्गाश्रीपा०॥७॥इति पूजयेत॥ततः पुष्पांजलिं गृहीत्वा मूल मुच्चार्य। “अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सल॥ भक्त्या समर्पये तुल्यं नवमावरणार्चनम्।।इति पठित्वा पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषा_दिदं भैरवोपरि निक्षिप्य वृजितास्तार्पताः संतु इति वदेत॥ इति नवमावरणम् // 9 // ततो भूपुरावहिः पूर्वादिक्रमेण दशदिनु इन्द्रादीन दशदिक्पालान पूजयेत्॥तत्र क्रमः / ॐ ह्रीं लं इंद्राय नमः। इन्द्रश्रीपा० // 3 // ॐ ह्रीं रं अनये नमः / अग्निश्रीपा०॥२॥ ॐ ह्रीं मं यमाय नमः।यमश्रीपा० ॥३॥ॐ ह्रीं क्षं निर्कतये नमः। निति श्रीपा०॥४॥ह्रीं वं वरुणाय नमः। वरुणश्रीपा०॥५॥ॐ ह्रीं यं वायवे नमः। वायुश्रीपा०॥६॥ॐ ह्रीं सों सोमाय नमः / सोमश्रीपा०d // 7 // ॐ ह्रीं हं ईशानाय नमः / ईशानश्रीपा० // 8 // इन्द्रेशानयोर्मध्ये / ॐ ह्रीं आँ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्मश्रीपा०॥९॥वरुणनितयो| मध्ये / ॐ ह्रीं अनंताय नमः // 10 // इति दशदिक्पालान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति दशमावरणम् // 10 // ततः इन्द्रादि समीपे / ॐ वं वज्राय नमः॥१॥ ॐ शं शक्तये नमः // 2 // ॐ दं दंडाय नमः॥३॥ ॐ खं खड्गाय नमः॥४॥ ॐ पां पाशाय नमः // 5 // ॐ अं अंकशाय नमः // 6 // ॐ गं गदायै नमः // 7 // ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः / / 8 / / ॐ पं पनाय नमः ।।१॥ॐ चं चक्राय नमः // 10 // इत्यत्राणि पूजयित्वा रुद्राख्यपदं संयोज्य पुष्यांजलिं च दत्वा स्तंभन 1 चतुरासणि 2 मच्छ 3 गोक्षु 4 योनि | मुद्र इति पंच मुद्राः प्रदर्शयेत् // इत्येकादशावरणम् // 11 // इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिनमस्कारांत संपूज्य पंचबलिदानं दत्त्वा पशुब लिदानादिकं विधाय जपं कुर्यात्॥अस्य पुरश्चरणमेकविंशतिलक्षजपः // जपांततिलाज्येनमधुमिश्रितेन दशांशतो होमः / होमाते होमदशां For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० // 234 // शेन मंत्रांत "ॐ बटुकौरवं तर्पयामि" इत्युक्ता दुग्धमिश्रितजलेन तर्पणं कुर्यात् // ततस्तर्पणदशांशेन मंत्रांते "ॐ आत्मानमनिषिचामि० खं. 1 नमः॥” इति मयभिषेकः॥होमतर्पणाभिषेकाशक्तौ तत्तत्स्थाने तनद्विगुणो जाः कार्यः ततोऽभिषेकदशांशमख्याकमष्टोत्तरशतं वा ब्राह्म भै० त. वणान भोजयेत् // इति शारदातिलके ज्ञेयम् // रुद्रयामले पुरश्चरणलक्षजपः॥तनदशांशेन होमतपणब्राह्मणभोजनानि कारयेत्॥ एवंकते तरं०१० मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् // नथा च ( रुद्रयामले ) "लक्षमेकं जपेन्मंत्र हविष्याशी जितेन्द्रियः॥ तदशांशं च जुहुयानिलैर्मधुरसंयुतैः // 1 // अनेन मनुना देवी सिद्धेन जगतीतले // असाध्यं नास्ति लोकेषु सत्यंसत्यं मयोदितम्॥२॥ है एवं सिद्धे मनौ मंत्री प्रयोगान् कर्तुमर्हसि // यथाकामं तथा ध्यानं कारयेत्साधकोत्तमः॥३॥रकार्येषु सर्वेषु ध्यानं वै तामसं स्मृतम् // वश्ये विद्वेषणे स्तंभे राजमं ध्यानमीरितम् // 4 // सात्त्विकं शुभकार्येषु ध्यानभेदः समीरितः // बालमूर्य्याशुसंकाशं राजसं ध्यानमु च्यते // 5 // सात्विकं श्वेतवर्ण च कृष्णं तामसमुच्यते // सर्वकामार्थसिद्धयर्थे राजसं ध्यानमुच्यते // 6 // ' अथ तामसध्यानं यथा “ॐ त्रिनेत्रं रक्तवर्ण च वरदाभयहस्तकम॥सव्ये त्रिशूलमभयं कपालं वरमेव च॥७॥ रक्तवस्त्रपरीधानं रक्तमाल्यानुलेपनम् // नीलग्रीवं |च सौम्यं च सर्वाभरणभूषितम् ॥८॥अथ राजसध्यानम् // तुपारकर्णिकाभासं मायारूपमनंतकम् // मूर्ध्नि खंडेन्दुशकलं त्रिनेत्रं शांति लोचनम् // 9 // सर्वकारणकर्तारं द्विभुजं रत्नभूषितम् // कपालं वामहस्ते च सूक्ष्मदण्डं च दक्षिणे // 10 // पादनुपुरसंयुक्तं छिन्नशीर्षविभूषितम् // सर्पमालासमायुक्तं हस्तोरुस्थूलजानुषु // आंत्रमालासमायुक्तं सर्वाभरणभूषितम् // 11 // अथ सात्त्विक ध्यानम् // श्वेतवर्ण चतुर्बाहुं जटामुकुटधारिणम् // भुजंगपाशहस्तं च हस्ते दंडकमण्डलुम् // 12 // शुक्लयज्ञोपवीतं च शुक्लकौपीन For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir वाससम् // शुक्रवस्त्रपरीधानं श्वेतमालानुलेपनम् // 13 // त्रिनेत्रं नीलकंठं च मुक्ताभरणभूषितम् // अन्ये वै ध्यानभेदाश्च स्तवराजे प्रकीर्तिताः // 14 // अथ प्रयोगः (रुद्रयामले) शुक्लपक्षे द्वितीयायां शुक्रवारे समाहितः / / पूर्ववत्पूजयेद्देवं सिद्धान्नं च निवेदयेत् // 3 // पलाई च वचाचर्ण तन्मानघृतसंयुतम् // पद्मपत्रे विनिःक्षिप्य त्रिसहस्र जपेद्बुधः // 2 // प्राशयेन्नियतो भूत्वा पुनर्लक्षत्रयं जपेत् // तस्यैवं कुर्वतः प्रज्ञा निःसीमा भवति ध्रुवम् // 3 // गद्यपद्यमयी वाणी श्रुतस्याप्यवधारणम् // कृष्णपक्षे चतुर्दश्यां भूमिपुत्रस्य वासरे // 4 // आराध्य विधिवद्देवं तस्याये स्थापयेद्रुधः // रोचनां हेमजे पात्र मंपूज्य विधिनाथ नाम् // 5 // गंधपुष्पादिना स्पृष्ट्वा तां जपेदयुतत्रयम् // तद्गतवति प्रज्वाल्य कपिलावृतमेविताम् // 6 // मौवर्ण नुकपाले वा पात्रे मंगृह्य चांजनम् // मपूज्य च पुनर्जप्त्वा तत्पात्रं मंत्रसंग्रहम् // 7 // ध्यात्वा वादवदंशोरे तदा चांजनमाचरेत् // वश्या अवंति ते सर्व यान्यान्पश्यति साधकः // 8 // बंध्याचिंकिन्मां कुर्वाणो बालाका समर्चयेत् // हरिद्रार्थपलं चैव वचाचूर्ण च तत्समम् // 9 // षयित्वा तु गोमूत्रे गोलकं घृतसंयुतम् // पद्मपत्रे विनिःक्षिप्य स्थापयेदेवमन्निया // 10 // प्रणिपत्य नमस्कृत्य जपे दुच्चैः सहस्रकम् // एवमेव प्रकारेण प्राशयेनु महीषधम् // 11 // श्रीमंतमायुष्मं च बलवंतं सुदर्शनम् // विद्यावंतं पुत्रवतं सद्यः पुत्रमवामुयात् // 12 // वश्यार्थमयुतं जया रक्तपुष्पैर्दशांशतः // होमं कुर्यात्करवीरैः श्वविद्यामवामुयात् // 13 // लक्ष्म्यात्यै कम लैहोमो दीर्घायुया हुते // गुडेन रोगनाशः स्यादपमृत्यूनिवारणम् // 14 // वस्त्रेण वस्त्रप्रातिः स्याद्धान्यामिर्धान्यहोमतः॥ पुत्रजी 1 शारदातिलके विशतमिति पाठः // For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassag www.kobatm.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra y armandir मं• म०वीफलैहोमे सर्वसिद्धिमवामुयात् // 15 // अश्वत्थममिधाहोमे पुत्रामिः सर्वमिद्धयः // लवणघृतहोमेन शत्रून्मादकरं भवेत् // 16 // पू० ख.. २३५काकोलकमांसहोमाच्छन्मारयते ध्रुवम् // मनरात्रेण देवेशि श्मशाने च त्रिलक्षकम् // 17 // जपित्वा बलिदानेन वटुको दर्शने भै• तं० भवेत् // वटवृक्षतले मस्खिलक्षं प्रजोनिशि // 18 // रसायनं च गुटिकां चेटकासिद्धिमानुयात् / / विभीतकवृक्षतले यदि लक्षं जपेन ! तरं०१० रः // 19 // वेतालभूतप्रेताश्च वश्या भवंति निश्चयात॥ जुयादरुणाम्भोजयजोदोपैमधुप्रतैः // 20 // लक्षसंख्या तदर्ध वा प्रत्यहं भोजये। द्विजान / / वनितां युवती रम्यां प्रीणयद्देवताथिया // 21 // होमांते धनधान्यायेस्तोषयेद्गुरुमात्मनः // एवंकते जगदृश्यं रमाया भवन भवेत् // 22 // रक्तोत्पलैबिमध्वक्तैरमणैर्वा हरिद्रजैः // पुष्पैः पयोन्नैः मतेहीमादिश्वं वशं नयेत // 23 // वाकसिद्धिं लभते मंत्री पालाशकुसुमैर्तुते // कर्परागरुसंयुक्तं गुग्गुलु जुहुयात्सुधीः // 24 // ज्ञानं दिव्यमवामोति तनैव स भवेत्कविः / / श्रीराकैरमृताखंडै / होमः सर्वापमृत्युजित // 25 // दुर्वाभिरायुषे होमः श्रीराताभिर्दिनत्रयम् // गिरिकर्णिभवैः पुष्पैस्तवधूकर्णिकारजैः // 26 // मालतीकुसुमैर्तुत्वा तत्युत्रांश्च वशं नयेत् // कारंडकुसमवश्यान वृपलान पाटलोद्भवैः // 27 // आत्मानमविलेपांतस्थितसाध्याह्वयान्वि तम् // मंत्रमुच्चार्य जुहुयान्मंत्री मधुरलोडितैः // 28 // सर्पपेः पटुभित्रैर्वशयेत्पार्थिवान्क्षगात् // अनेनैव विधानेन सपत्नी तत्सुता नपि // 29 // जातिबिल्वफलैः पुष्पैर्मधुरत्रयसंयुतः // नरनारीनरपतीन्होमतो वशयेध्रुवम् // 30 // मालतीकुसुमो दूतैः पुष्पश्चंदनलो। डितैः // जुहुयात्कवितां मंत्री लभते वत्सरान्तरे // 33 // मधुरत्रयसंयुक्तैः फलेबिल्वममुद्भवैः // जुहुयावशयेल्लोकाञ्छूियं प्रामोति / वांछिताम् // 32 // पाटलैः कुसुमैः कंदैरुत्पलेन गचंपकैः॥ नद्यावतविकचितैः कृतमालैर्जुहोति यः॥३३॥जायते वत्सरादर्वाक श्रिया 30 SHORROR For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजितपार्थिवः // साज्येन्ने च हुते मंत्री भवेदनसमृद्धिमान् // 34 // कस्तूरीकुंकुमोपेतं करं जुहुयादशी // कंदर्पादधिकं सद्यः सौंदर्य मधिगच्छति // 35 // लाजान प्रजुहुयान्मंत्री दधिक्षीरघृतप्लुतान / विजित्य रोगानखिलाञ्जीवेश्च शरदां शतम् // 36 // पादद्वयं मलयजं पादं कुसुमकेशरम् // पादं गोरोचनायाश्च त्रीणि पिष्टा हिमांभसा // 37 // विदश्यानिलकं नाले यान्पश्चाद्यान्विलोकयेत् // यान्स्पृशेत् स्पर्शिता ये वै वश्याः स्युस्तस्य तेऽचिरात् // 38 // कपुरकपिचोराणि समभागानि कल्पयेत् // चर्तुभागो जटामांसी तावती रोचना मता // 30 // कुंकुम समभागं स्याद् द्विभागं चंदनं मतम् // अगरं नवभागं स्यादेवं भागक्रमेण च // 40 // हिमा द्विः कन्यकापिष्टमेतत्सर्व सुमाधितम् // यो भाले तिलकं धने कुर्याद्भुमिपतीन्नरान् // 42 // यासितान्मदगाट्यान्मदोन्मना|| मतंगजान // सिंहान्व्याघ्रान्महासन्भृितवेतालराक्षसान // 42 // दर्शनादेव वशयत्तिलकं धारयेन्नरः // (शारदातिलके है। विशेषः ) बिल्वप्रसूनै हुयान्महनीं विंदते श्रियम् // 43 // लवणमधुसंयुक्तवर्शयेदनिताजनान् // वृष्टिकामेन होतव्यं / वेतसानां समिद्वरैः // 44 // वश्याय जुहुयान्मंत्री मधुना दिवसत्रयम् // कृष्णाष्टमी समात्य यावत्स्यानु चतुर्दशी // 45 // तिलैस्तण्डुलसंमित्रैर्मधुरत्रयलोलितैः // त्रिसहस्रं प्रतिदिनं जुहूयात्संस्कृतेऽनले // 46 // बटुकेशं समायऱ्या भक्ष्यसोज्यफलान्वितः // नित्यं निवेद्य समये मध्यरात्रे बलिं हरेत् // 47 // एवं जपित्वा प्रयतः सहस्राण्येकविंशतिः // समातिदिवसे राबावजं हत्या बलि हरेत // 48 // ततः कारयिता राजा तोषयेत्साधकं धनैः॥ प्रयोगदिवसे नित्यं भक्ष्यभोज्यैः सदक्षिणैः // 49 // विप्रान्सप्त महादेवि | तोषयेद्वांछिताप्तये // ममामिदिवसे विप्रान्सममा समाहितः // 50 // भोजयेद्वश्वविनायस्तोषयेज्जगदीश्वरि / विधिनानेन संतुष्टो बटुकेशः For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir म० म० प्रयच्छति // 51 // तेजो बलं यशः पुत्रान्कान्ति लक्ष्मी मनोरमाम।। नश्यति शत्रवः सर्व वधने मित्रबांधवाः // 52 / / अवग्रहो न पू० खः / जायेत विषये तस्य भूपते // जुहुयात्केवललाणरयुतं स्तंभनेच्छया // 13 // माधयेद्विधिनानेन भम्म मथिमिद्धिदम् / रगीरं चंदनं / कुष्ठं घनसारं सकुंकुमम् ॥५४॥श्वताकमूलयाराहीलक्ष्मीक्षीरमहीमहाम् // त्वचो बिल्वतरोमूलं गोपयिन्वा सुचूर्णयेत् // 55 // चूर्ण व्योम्नि गृहीतेन गोमयेन विमिश्रितम्॥ कृत्वा पिंडाभिमंशोप्य संस्कृते हव्यवाहने॥५६॥मूलेन दग्ध्वा तद्धम्म शुद्ध पात्रे विनिःक्षिपेत्॥ केतकीमालतीपुष्पैर्वासयेद्भस्म शोधितम् // 17 // अयुतं प्रजपेन्मत्रं स्पृष्ट्वा भस्म सुपूजितम् // एतदादाय दिवसे प्रातः 9 करोति यः // 58 // ब्राह्मणो वेदविधिना त्रिपुडं धारयेत्सुधीः // शूद्रायैर्मूलमंत्रेण सर्व वा मूलमंत्रतः / / 59 // तस्य रोगाः प्रणश्यति / कत्याद्रोहमहामहाः // रिपुचोरमृगादियो जयमस्य न जायते // 6. // वर्द्धने संपदः सर्वाः पृज्यंते सकलजनः / / राजा वश्यो भवेत्तस्य सामात्यः सपरिच्छदः // 6 // अभिषेकं प्रकुर्वीत राज्ञो विजयकांक्षिणः // पूर्वोक्तमंडले कुन वितानध्वजशोभिते // 62 / / सर्वतोभद्रमालिख्य कर्णिकां तस्य पूजयेत् // अष्टद्रोणप्रमाणेन शालिभिः शोषितैः शुभः // 63 // तदर्धास्तण्डुलास्तस्मिन्यस्य दूर्वाक्षतान्वितम् // होमादिविहितं कुंभं नवरत्नसमन्वितम् // 64 // संस्थाप्य विमलैस्तोयेरापृयास्मिन्विनिःक्षिपेत् // क्षीरद्रुमप्रबालानि लक्ष्मीदुर्वासमायुतम् // 65 // कर्पूरं चंदन बिल्वमुशीरं कुंकुम पुनः // कंकोलमगुरुं जाति मल्लिकाचंपकोत्पलैः // 66 // गोमेददाडिमं // 23 // पश्चात्तट्टसूत्रेण वेष्टयेत् // तस्मिन्नावाह्य वटुकं राजसं संप्रपूजयेत् ॥६७॥बहिरष्टसु कुंभेषु भैरवानष्ट पूजयेत् // त्रयोदशः कुंभेपु त्रयोदश गणान्यजेत् // 68 // बाह्ये दशसु कुंभेषु लोकेशानर्चयेत्सुधीः // नहियष्टकुंभेषु श्रीकंठादीन्मुरेश्वरान् // 61 // पंचत्रिंशघटेष्वका For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobar.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir दिवणेश्वरान क्रमात // इति गंधादिभिः सम्यक् पंचावरणमर्चयेत् // 70 // अयुतं प्रजपेस्पृष्टा तान्घटान्देशिकोत्तमः // पायसैः सर्पिपा शुद्धैस्तिलैर्दशशतं पृथक् // 73 // जुहुयानान्घटान्स्पृष्ट्वा प्रत्यहं बलिमाहरेत् // राजमोक्तप्रकारेण रात्री देशिकसत्तमः॥ 72 // सुदिने शोभने लग्ने वाचयित्वा द्विजातिभिः // स्वस्तिमंगलवाक्यानि विशुद्धवंदपरागैः // 73 // नदत्सु पचवायेषु प्रणम्य बटुकेश्वरम् // जितेन्द्रियं शुद्ध कार्य राजानं ब्राह्मणप्रियम् // 74 // आस्तिकं शुद्धवचनमभिपिंचेत्प्रसन्नधीः // अभिषिक्तो नरपतिः प्रणिपत्य गुरु परम् // 75 // भृगमी दक्षिणां दद्यात्प्रसीदति यथा गुरुः॥ राजाभिषिक्तो भवति साक्षामिपुरंदरः // 76 // परान्विजयते भूपांस्तूयते | सकलेनरैः / / भक्ष्यभोज्यैर्धनान्यैः पूजयंति यशस्विनः॥ कृताभिषेकः षण्मासं प्रतिमासं महीपतिः / / 77 // इत्येकविंशत्यक्षरबटुक भै |रयमंत्रप्रयोगः // अथ स्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रप्रयोगः // अथातः संप्रवक्ष्यामि स्वर्णाकर्षणभैरवम् // यस्यानुष्ठानमात्रेण स्वर्णराशिमवामयात ॥१॥शांतिकं पौष्टिकं चैव वश्याकर्षणमोहनम्।।मारणोच्चाटनं द्वेषस्तंभनं च प्रशस्यते // 2 // मंत्रो यथा-" ऐह्रींशीऐश्रींआपदधारणायहां हूं अजामलबद्धायलोकेश्वरायस्वर्णाकर्षणभैरवायममदारियविद्वेषणायमहाभैरवायनमःश्रीं ह्रीं ऐं" इति सप्तपंचाशदशरो मंत्रः॥ अस्य विधानम् // ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रस्य श्रीब्रह्माऋषिः / पंक्तिश्छंदः। हरिहरब्रह्मात्मकस्वर्णाकर्षणभैरवो देवता / ह्रीं बीजम् / / ही शक्तिः / ॐ कीलकम् / स्वर्णाकर्षणभैरवप्रसादसिद्ध्यर्थ स्वर्णराशिप्राप्तये स्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रजो विनियोगः // ॐ ब्रह्मर्षये नमः शिरसि // 1 // पंक्तिच्छंदसे नमः मुखे // 2 // स्वर्णाकर्षणभैरवदेवतायै नमः हृदि // 3 // ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // ముని For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० खं० 1 भै० 0 तरं०१० तर म. शक्तये नमः पादयोः // 5 // ॐ कीलकाय नमः सर्वांगे॥६॥ इति ऋष्यादिन्यासः॥ ऐं ह्रीं श्रीं आपदुद्धारणाय अंगुष्ठाश्यां नमः॥१॥ // 237 // हां ह्रीं हूँ अजामलबद्धाय तर्जनीभ्यां नमः // 2 // लोकेश्वराय मध्यमाभ्यां नमः॥३॥ स्वर्णाकर्षणभैरवाय अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ / मम दारियविद्वेषणाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // महाभैरवाय नमः / श्रीं ह्रीं ऐं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // कहीं श्रीं ऐं श्री आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः // 1 // ह्रां ह्रीं हूँ अजामलबद्धाय शिरसे स्वाहा // 2 // लोकेश्वराय शिखायै वषट्॥३॥ स्वर्णाकर्षणभैरयाय कवचाय हुम् // 4 // मम दारियविदेणाय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // महाभैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं अखाय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासविधि कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // “पीतवर्ण चतुर्वाई त्रिनेत्रं पीतवाससम् // अक्षयस्वर्ण गाणिश्यं तडित्परितपात्रयम् // 1 // अभिलषितं महाशूलं तोमरं चामरद्वयम् // सर्वाभरणसंपन्नं मुक्ताहारोपशोभितम् // 2 // मदोन्मत्तं | सुखासीनं भक्तानां च वरप्रदम् // संततं चिंतयेदृश्यं भैरवं सर्वसिद्धिम् / / 3 // पारिजातद्रुमकांतारस्थिते मणिमंडपे / / सिहासनागतं ध्यायेरवं स्वर्णदायकम् // 4 // गांगेयपानं डमरु त्रिशलं बरं करः संदधतं त्रिनेत्रम् // देव्या युतं तनसुवर्णवर्ग स्वर्णाकति भैरवमा | श्रयामि / / 5 // " इति ध्यात्वा मानसोपचारः संपूजयेत / ततः पीठादा रचिते सर्वतोभद्रमंडले लिंगतोभद्रमंडले या मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठ देवताः पद्धतिमार्गेण संस्थाप्य ॐ मं मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः। इति संपूज्य नव पीठशनीः पूजयेत्।।तद्यथा-पूर्वादिक्रमेण / ॐ वामायै नमः // 2 // ॐ ज्येष्ठायै नमः / / 2 // ॐ रोये नमः // 3 // ॐ काल्यै नमः // 4 // ॐ कलविकरण्यै नमः / / 5 / / For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॐ बलविकरण्यै नमः।।६।। ॐ बलप्रमथिन्यै नमः॥७॥ ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः।।८॥ मध्ये / ॐ मनोन्मन्यै नमः।। 9 // इति पीठ शक्ती संपूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोध "ॐ नमो भगवते स्वर्णाकर्षगरवयोगपीठात्मने नमः // " इति मंत्रेण पुष्पायासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य | पुनध्यायेत् // ॐ गांगेयपानं उमर त्रिशूलं वरं करैः संदधतं त्रिनेत्रम् // देव्या युतं ततसुवर्णवर्ण स्वर्णाकति भैरवमाश्रयामि Nin 1 // ध्यानम् / मन्दारद्रुममूलभाजि महति माणिक्यसिंहासने संविष्टोदरभिन्नपंकजरुचा देव्या कृतालिंगनः // भक्तव्यः करां| रत्नपात्रभरितं स्वर्ण ददानोऽनिशं स्वाकर्षणभैरवो विजयते स्वर्गापवर्गकभः // // इति ध्यात्वा / मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादि पुष्पतिरुपचारः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा। पुष्पांजलिमादाय। "ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः।। अनुज्ञ दिहि पेटुक परिवारार्चनाय मे // 1 // इति पठित्या पुष्पांजलि दद्यात् / इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत्।। तथा च ततोऽष्टदले पूज्यजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राच्यादिक्रमेण ॐ आकाशाय नमः। मूर्ध्नि पजयामि // 1 // ॐ समी रणाय नमः / मुखे पूजयामि // 2 // ॐ दनाय नमः / बाह्वोः पूजयामि // 3 // ॐ वैवर्ताय नमः। हृदि पूजयामि॥ 4 // ॐ विश्वंभराय नमः / उदरे पूजयामि // 5 // ॐ ब्रह्मणे नमः / कटी पूजयामि // 6 // ॐ जनार्दनायनमः / जानुनोः पूजयामि // 7 // ॐ इन्द्राय नमः / पादयोः पूजयामि // 8 // इत्यष्टांगानि पूजयेत्॥ ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुचार्य "ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विशेषाद्विदं निःक्षिप्य समुद्राः सचक्रकाः सायुधाः For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // 238 // तरं० 10 मं०म० सवाहनाः मशक्तिकाः सपरिवाराः सर्वोपचारः स्वर्णाकर्षणभरवाः पृजितास्तर्पिताः मंतु इति वदेत // इति प्रथमावरणम्॥३॥ततस्त्रिको पू० ख०१ णमध्ये पूर्वकोणे ॐ बटुकभैरवाय नमः / बटुकभैरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमस्करोमि / / इति सर्वत्र // 1 // ईशानकोणे ॐ।। कालभैरवाय नमः। कालभैरवश्रीपा०॥२॥अग्निकोणे ॐ क्षेत्रपालभैरवाय नमः / क्षेत्रपालभैरवश्रीपा०॥३॥इति संपूजयेत् // ततः पुष्पां जलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भत्त्या समर्पये तुत्यं द्वितीयावरणार्चनम् // 1 // " इति पुष्पांजलि दत्त्वा विशेषादिदं भैरवोपरि दत्त्वा समुद्राः सचक्रकाः सायुधाः सवाहनाः सशक्तिकाः सपरिवाराः सर्वोपचारैः स्वर्णाकर्षणभैरवाः पूजिध *तान्तर्पिताः मंतु इति वदेत // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततः त्रिकोणाबहिः षट्कोणे आग्नेय्यादिक्रमेण अग्निकोणे ॐ आपदुद्धारणाय शानमः / आपदुद्धारणश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 1 // नैर्ऋत्यकोणे / ॐ अजामलबद्धाय नमः। अजामलबद्धपादुकां पू जयामि तर्पयामि नमः // 2 / / वायुकोणे ॐ लोकेश्वराय नमः / लोकेश्वरश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥३॥ ऐशान्ये / ॐ स्वर्णाक र्षणभैरवाय नः। स्वर्णाकर्षणभैरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥४॥प्राच्याम् / ॐ मम दारियविद्वेषणाय नमः / मम दारियविद्वेषण श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 5 // पश्चिमे / ॐ श्रीमहाभैरवाय नमः श्रीमहाभैरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 6 // इति पूजयेत॥ ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं तृतीयावरणार्चनम् @ // 238 // Hel // 1 // " इति पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषाघोविंदुं भैरवोपरि दत्त्वा समुद्राः सचक्रकाः सायुधाः सवाहनाः सशक्तिकाः सपारवाराः स्वर्णका For Private And Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पणोरवाः सर्वोपचारः पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो वृते पूर्वादिक्रमेण ॐ असितांगभैरवाय / बाह्मीशक्तिसहिताय नमः / ब्राह्मीशनिमहितासितांगभरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 1 // ॐ रुरुभैरवाय माहेश्वरीशक्ति ध सहिताय नमः / माहेश्वरीशक्तिसहितरुरुभैरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 2 // ॐ चंडभैरवाय कौमारीशक्तिसहिताय नमः। कौमारीशक्तिसहितचंडभैरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 3 // ॐ कोधभैरवाय वैष्णवीशक्तिमहिताय नमः। वैष्णवीशक्तिसहित क्रोधभरवश्रीपादकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 4 // ॐ उन्मनरवाय बाराहीशक्ति महिताय नमः / वाराहीशक्तिसहितोन्मनभैरवधी पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 5 // ॐ कपालिभैरवाय नारसिंहीशक्तिसहिताय नमः / नारसिंहीशक्तिसहितकपालिभैरवश्रीपाद AGhकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥ 6 // ॐ नीषणभैरवाय चामुंडाशक्तिसहिताय नमः। चामुण्डाशक्तिसहितभीषणभैरवश्रीपादुकां पूजयामि | तर्पयामि नमः // 7 // ॐ संहारभैरवाय चंडिकाशक्तिसहिताय नमः / चंडिकाशक्तिसहितसंहारभैरवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥ 8 // इत्यटौ भैरवान् पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य " अनीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या सम | पये तुम्यं चतुर्थावरणार्चनम् // 1 // " इति पुष्पांजलिं दत्त्या विशेषार्धाद्विदु भैरवोपरि दत्त्वा समुद्राः सचक्रकाः सायुधाः सबाहनाः सशक्तिकाः सपरिवाराः स्वर्णाकर्षणभैरवाः सर्वोपचारैः पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति चतुर्थावरणम् // 4 // ततो वर्तुलाद हिरष्टदले पूर्वादिक्रमेण ॐ आदित्याय स्वशक्तिसहिताय नमः / स्वशक्तिसहितादित्यश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 1 // For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं० म० अथ स्वर्णाकर्षणभैरवपूजनयन्त्रम्. 1239 // भै० तं. तरं० 10 For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir For Private And Personal use only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org अथ स्वर्णाकर्षणभैरवपूजनयन्त्रम्. Acharya, Shri Kalassagarsur Gyanmandir म. सं. तरं-१० V et श्रीभाव खारणाप. For Private And Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं० म. ॐ सोमाय स्वशक्तिसहिताय नमः / स्वशक्तिसहितसोमश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 2 // ॐ भीमाय स्वशक्तिसहिताय नमः / पू० ख० स्वशक्तिसहितभौमश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 3 // ॐ बुधाय स्वशक्तिमहिताय नमः / स्वशक्तिमहित बुधश्रीपादुकांत पूजयामि तर्पयामि नमः // 4 // ॐ जीवाय स्वशक्तिसहिताय नमः / स्वशक्तिमाहित जीवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 5 // ॐ शुक्राय स्वशक्तिसहिताय नमः / स्वशक्तिसहितशुक्रश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 6 // ॐ शनैश्वराय स्वशक्तिमहिताय नमः / स्वशक्तिसहित शनैश्चरश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 7 // ॐ राहवे केतवे च स्वस्वशक्तिसहिताय नमः / स्वस्वशक्ति र माहितराहुकेतुश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 8 // इति नवग्रहान पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलभुच्चार्य " ॐ अभीट। सिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समये तयं पंचमावरणार्चनम् // 5 // " इति पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषा_दिदं भैरवोपरि दत्त्वा समुद्राः सचक्रकाः सायुधाः सवाहनाः सशक्तिकाः सपरिवाराः स्वर्णाकर्षणभैरवाः सर्वोपचारैः पूजितास्तपिताः संतु की इति वदेत् // इति पंचमावरणम् // 5 // ततो भूपुरात्यंतरे देवदक्षिणतः ॐ पूजाविधिसिद्धय नमः। पूजाविधिसिद्धिश्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः // 1 // ॐ रससिद्धये नमः / रससिद्धिश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 2 // ॐ स्वर्णसिद्ध्यै नमः। कास्वर्णसिद्धिश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // 3 // इति पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिं गृहीत्वा मलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धि मे देहि // 240 // शरणागतवत्सल // अक्त्या समर्पये तुयं षष्ठमावरणार्चनम् // 3 // " इति पुष्पांजलिं दत्त्वा विशेषा_हिंदुं भैरवोपरि दत्त्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति पष्ठावरणम् // 6 // ततो भूपुरावहिः देवतावामभागे ॐ भूतप्रेतपिशाचवेतालासुरेन्यो नमः। For Private And Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www. Acharya Shri Kalassagar bath.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Gyanmandir भूतप्रेतपिशाचवेतालासुरश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि / इति पूजयेत् // इति सप्तमावरणम् // 7 // ततो भुपुरे इंद्रादिदशदिक्पालान् / तद्वा बजाद्यायुधानि च पूजयेत्॥८॥९॥ इत्यावरणपूजां कृत्वा धृपादिनमस्कारांत संपूज्य देवं ध्यात्वा जपं कुर्यात् ॥अस्य परश्चरणं लक्षजपः॥ तथा च / "लक्षं जपेद्दशांशेन पायसेर्जुहुयात्सुधीः॥दशांशं तर्पयेत्पश्चाद्धोमयेच्चदशांशकम् // 1 // ब्राह्मणान्भोजयेत्पश्चान्मंत्रा मिद्धिर्न संशयः // एवं सिद्ध कृते मंत्रे अयुतं प्रजपेन्मनुम् // 2 // दारिद्रयं दूरमुत्क्षिप्य जायते धनदोपमः // करवीरैर्जातिपुष्प जपादाडिमसंभवः // 3 // रक्तप्रसूनैर्जुहुयात्मौजाग्यं च समश्नुते // सिद्धद्रव्येण जुहुयाल्लायते चाटसिद्धयः // 4 // पायमेनापि जयाल्लायते सकलं फलम् // आज्यं च जुहुयादेवि ऐहिकामुष्मिकं फलम् // 5 // मंत्रसिद्धिं च लभते चंदनादींधनः क्रमात / / इति| स्वर्णाकर्षणभैरवसमपंचाशदक्षरमंत्रपुरश्चरणप्रयोगः // अथ बटुकभैरववीरसाधनप्रयोगः।। श्रीपार्वत्यवाच // भगवन्देवदेवेश रहस्य वटुकस्य मे॥हि येन वशीकुर्युः साधका भैरवं शिवम् // 1 // ईश्वर उवाच / / शृणु देवि परं गोप्यं कथयामि मुशोभने॥रहस्यं सिद्धिदं माक्षावटुकस्य महात्मनः॥२॥ सर्वे वटुकदेवस्य साधने ये निरूपिताः // उपाया निष्फला एव विनकं वीरसाधनम् // 3 // ये श्चान्यसाधनं हित्वा उपायं चान्यमाश्रयत् / / न च सिद्धिमवाभोति नरौ वर्षशतैरपि।।४॥तत्र प्रयोगो यथा // साधकेन्द्रः कतनित्यक्रियः पालाशंपत्रकृतषोडशपुटेषु जलेन प्रफुल्लितान् सुपक्कान् मापान मुगान् मसूरान् चणकान ओदनक्षीरापूपान मुहालीन् एकैकपदार्थ विद्विपात्रे एवं पोडशपात्रे संपूर्य अन्यपात्रे किंचिदधिकं च पूर्वोक्तं सर्वे कन्यया कर्तितं कर्पाससूत्र कंकुमेन रंजितान क्षीरवृक्षभवानष्टी कीलान स्तंभार्थमेकं कीलं तेश्यः स्थलान्नव कीलान गंधाक्षतपुष्पधृपदीपान अष्टौ तांबलानि च फलानि गृहीत्वा उत्तरसाधकसहितः For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं० म० तरं०१० श्मशाननिकटे गत्या पादौ प्रक्षाल्य आचम्य स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा बद्धाअलिरिदं वाक्यं वदेत् / “ॐ अत्र श्मशाने याः काश्चिदेवता निव० ख०१ संति हि // ताः प्रयच्छंतु मे सिद्धिं प्रसन्नाः संतु पातु माम् // 1 // " इति संप्रार्थ्य आत्मरक्षां कुर्यात् // तथा च / अक्षतानादाय पूर्व मां शंकरः पातु तथा ग्यां च शूलधृक् // कपाली दक्षिणे पातु नैऋत्ये जटिलोवतु // 1 // पश्चिमे पार्वतीनाथो वायव्ये प्रम थाधिपः // उत्तरे मुंडमालोव्यादेशान्ये वृषभध्वजः // 2 // ऊर्व पातु तथा शंभुरधस्तादृलिधृमरः // अमतो भैरवः पातु पृष्टतः पातु खेचरः // 3 // दक्षिणे भचरः पातु वामे च पिशिताशनः // केशान्पातु विशालाक्षो मूर्धानं च मरुत्मियः // 4 // मस्तकं पातु भृग्वीशो नेत्रे पातु महामनाः // कपोलौ पातु वीरेशो गंडौ गंडानिमर्दनः // 5 // उत्तरोष्ठे विरूपाक्षो ह्यधरे योगिनीप्रियः // अक्षेषु दक्षविध्वंसी चिबुके तु कपालधृक् ॥६॥कण्ठे रक्षतु मां देवो नीलकण्ठो जगद्गुरुः // दक्षस्कंधे गिरीन्द्रेशो वामस्कंधे वसुंजयः // 7 // दक्षिणे च भुजे सर्वमंत्रनाथः सदाऽवतु // वामे भुजे सार्वभौमो हृदये पातु पाण्डरः // 8 // दक्षहस्ते पशुपति मे पातु महेश्वरः॥ उदरे / सर्वकल्याणकारकोवतु मां सदा // 9 // नाभौ कामप्रविध्वंसी जंघे पातु दयामयः // जानुनी पातु जामित्रो गुल्फो गौरीपतिः सदा // 10 // पादपृष्ठे सामनिधिस्तथा पादांगुलीहरः // पादाधः पातु सततं व्योमकेशो जगत्प्रियः // 11 // " इति आत्मरक्षामंत्रान पठित्वा पूर्वादिदिक्षु रक्षाबीजमंत्रान् पठेत् // ॐ हाहींहूँहः नमः पूर्वे // 1 // ॐ हिं हूँ ह्रीं नमः आग्नेये॥ 2 // ॐ ह्रीश्रीं नमः दक्षिणे M // 3 // ग्लँ ब्लँ नगनग नमः नैनत्ये // 4 // ॐ पूँD | संसः नमः पश्चिमे // 5 // ॐ प्रां मां नमः वायव्ये // 6 // ॐ त्रांचा // 241 // भैरवाय नमः उनरे // 7 // ॐ बांबमफट नमः ऐशान्ये // 8 // ॐ ग्लौं ब्लँ नमः ऊर्चे // 9 // ॐ घाँघुवः नमः अधोदेशे। For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 10 // इति पठन् नमस्कुर्यात // ततः पूर्वाद्यष्टदिक्षु कीलाष्टकं मध्यश्मशाने च स्तंभनार्थ स्थलकालकं च निखाय पूजासाहित्य मध्यस्तंभसमीपे संस्थाप्य पूर्वाभिमुखो भैरवं प्रार्थयेत // ॐ भां भैरवाय नमः / भां भैरव भैरव भयंकर हर मां रक्षरक्ष हुँ फट् स्वाहा // इति प्रार्थयेत् // ततः मिद्धमाषादिभारतपलाशपुटकं गंधपुष्पधूपदीपादिपूजासामग्री गृहीत्वा पायसोदकपात्रहस्तो निर्भयः पूर्वकीलका समीपं गत्वा तत्र ॐ लं इन्द्र सांगमपरिवार इहागच्छागच्छ इतीन्द्रमाबाह्य ततः ऐरावतारुढं बजहस्तं पीतवर्ण सहस्राक्षं सुरगणपरि बारम् // इति ध्यात्वा ततः "ॐ लं इन्द्राय नमः / आसनाऱ्यापाद्याचमनम्नानगंधपुष्पाक्षतधपदीपोपचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुझं मंडलं जलेन कृत्वा तत्र माषपुटकं निधाय दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन् “ॐ हाह्रींहूँ भो इन्द्र सुरनायक शीघ्र मे प्रसन्नो भव सनातनी सिद्धिं में देहि रक्ष मामिमं माषबलिं गृहग्रह हूँ फट" इति मंत्रेण तस्मिन पात्रे जलं बलिंचोत्सृज्य तांबूलं च दत्त्वा प्रणमेत // 1 // तत आग्नेयकोणगतकीलसमीपं गत्वा तत्र “ॐ रं अग्ने सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इत्याग्निमावाह्य ततः मेषारूढं शक्तिहस्तं त्रिनेत्रं तेजोनिधिं ध्यात्वा ततो रं अग्नये नमः // इत्यासनाऱ्यापायाचमनम्नानगंधपुष्पाक्षतधूपदीपोपचारैः संपूज्य तत्पुरत चतुरस्र मंडलं जलेन कृत्वा तत्र मुद्भरितं पुटकं निधाय दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन "ॐ सूरुरुरिरीहिहुँहोंअग्ने तिजोनायक शीघं में प्रसन्नो भव सनातनी सिद्धि मे देहि इमं मुद्गबलिं गृह्णगृह हुँ फट्" इति मंत्रण तस्मिन्पात्रे जलं बाल चोत्सृज्य तांबूलं च दत्त्वा प्रणमेत् // 2 // ततः दक्षिणकीलसमीपं गत्वा तत्र ॐ में यम सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इति यममाबाह्य महि पारुढं कृष्णवर्ण दंडहस्तं प्रेतगणपरिवेष्टितं ध्यात्वा ॐ मं यमाय नमः। इत्यासनायुपचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुरस्र मंडलं जलेन कृत्वा तत्र For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagassun Gyanmandir www.kabalrm.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मसूरजरितं पुटकं निधाय दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन ॐ प्राँ भी पूँ भो यम प्रेताधिपते शीघ्रं मे प्रसन्नो भव इमं का पू० ख०३ ममूरबलि गृहगृह हुँ फट् इति मंत्रेण तस्मिन्पात्रे जलं वलिं चोत्सृज्य तांबलं च दत्त्वा प्रणमेत // 3 // ततः नैत्यकोणगतकालसमीपंतं . गत्वा तत्र ॐ शं निझते सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इति नैतिमाबाह्य प्रेतारुढं धूम्रवर्ण खङ्गहस्तं रक्षोभिः परिवृतं ध्यात्वा ॐ तरं० 10 निर्वतये नमः इत्यासनाद्युपचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुरस्र मंडलं जलेन कृत्वा तत्र चणकपूरितं पुटकं निधाय दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामह स्तन तत्पात्रं स्पृशन् “ॐ फ्रेंफ्रेंफ्रें९९ोग्नेहाँहौंभोनो रक्षनाथ शीघ्रं मे प्रसन्नो भव इदं चणकबलिं गृहगृह हुँ फट् // " इति मंत्रण तस्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य तांबलं च दत्त्वा प्रणमेत् // 4 // ततः पश्चिमदिग्गतकीलसमीपं गत्वा तत्र ॐ व वरुण सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इति वरुणमावाह्य मकरारूढं पाशहस्तं श्वेतवर्ण यादोगणपरिवारसहितं ध्यात्या ॐ वं वरुणाय जलनाथाय नमः इत्यासनायु पचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुरस्र मंडलं जलेन कृत्वा तत्रौदनपरितपात्रं निधाय दक्षहस्तेन जलं गृहीत्वा वामहस्ते तत्पात्रं स्पृशन"ॐ बांबीव्र भोभो वरुण जलनाथ शीघं मे प्रसन्नो भव सिद्धिं मे देहि इममोदनबलिं गृहगृह हुँ फट्" इति मंत्रेण तस्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य तांबूलं Nच दत्त्वा प्रणमेत् // 5 // ततो वायुकोणगतकीलससीपं गत्वा तत्र ॐ यं वायो सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इति वायुमावाह्य मृगारूढं वृक्षायुधधरं स्वमरुद्रण सहितं ध्यात्वा ॐ यं वायवे नमः / इत्यासनाद्यपचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुरस्रं मंडलं जलेन कृत्वा तत्र पायस के परितं पुटकं निधाय दक्ष हस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन “ॐ बांबीवू ॐ ब्रांवत्रि भोभो वायो भुवनपते शीघं मे प्रसन्नो // 242 // भव सिद्धिं मे देहि इमं पायसबलिं गृहग्रह हुं फट्” इति मंत्रेण तस्मिन्पात्रे जलं बलि चोत्सृज्य ताम्बूलं च दत्त्वा प्रणमेत॥६॥ततः For Private And Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir उत्तरदिग्गतकीलसमीपं गत्वा तत्र ॐ कुंकुबेर सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इति कुबेरमावाह्य नरवाहनं गदाहस्तं शुक्लवर्ण यक्षगण परिवेष्टितं ध्यात्वा ॐ कुं कुबेराय नमः इत्यासनायुपचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुरस्रं मंडलं जलेन कृत्वा तत्रापूपपरितं पुटकं निधाय दक्षहस्ते धू जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन् "ॐ कूकंळू ॐ क्रांकांक्रां नोभो यक्षनाथ शीघ्रं मे प्रसन्नो भव मिद्धिं मे देहि इममपूपबलि गृहगृह हूं फट् / " इति मंत्रेण तस्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य तांबूलं च दत्त्वा प्रणमेत // 7 // ततः ईशानकोणगतकीलसमीपं गत्वा| तत्र ॐ हं ईशान सांग सपरिवार इहागच्छागच्छ इतीशानमावाह्य वृषभारूढं शूलहस्तं श्वेतवर्ण विद्यागणमेवितमीशानं ध्यात्या ॐ ही ईशानाय नमः / इत्यासनाद्यपचारैः संपूज्य तत्पुरतश्चतुरनं मंडलं जलेन कृत्वा तत्र शकुलीपुरितपुटकं निधाय दशहस्ते जलं गृहीत्या वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन "ॐ श्रांश्रीभ्रू ॐ श्रांश्रांत्रां भोजो ईशान विद्याधिपते शीघ्रं मे प्रमन्नो भव सिद्धि में देहि इमं शकुलाबलिं| गहगृह हुं फट् / " इति मंत्रण तस्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य तांबूलं च दत्त्वा प्रणमेत् // 8 // इत्यष्टदिक्पालेन्यो बलिं दत्त्वा ततः मध्यस्तंभसमीपे गत्वा निर्भयः सन् ततः हांहींई स्तंभाय नमः। इत्यासनायुपचारैः संपूज्य मंत्रमयं कवचं पठेत् / / कवचं मत्रमयं यथा // ॐ हाह्रीह्रः क्षिीक्षक्षः ब्रांडोंग्āरवः घांघींबूंघः प्रांम्रीव्रम्रः म्रोम्रोम्रोम्रो क्लोक्कोक्कोंक्तों ओश्रीगोंओं जोजोजोजों हुँहुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं फट / सर्वतो रक्षरक्षरक्षरक्ष भैरवनाथनाथ हुं फट्।” इति मंत्ररूपंकवचद्वारा स्वशरीरे व्यापकरूपेणात्मरक्षां कत्वा स्तंभसमीपे स्वासने पूजिते / 1 अस्य प्रसादमासाय साधको निर्भयो भवेत् / सर्वरक्षाकरप्रोक्तः साधकाभीष्टदायकः // एवं विधाय मतिमांस्तनी रक्षां विशालधीः / वरिशांतिमधी कुर्यात्सर्वकार्यस्य सिद्धये // तया सिद्धचंति कापाणि साधकानां महेश्वरि / यावत्कुर्यात्र वीराणां शांतिसाधकसत्तमः // सावन जायते सिद्धिः साधकस्य कथंचन // For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अथ वीरसाधनपूजनयन्त्रम्. पूवं.. में म० 57 17 For Private And Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairt.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir erti VRE For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra waw.kobatm.org अथ वीरसाधनपूजनयन्त्रम्. a For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kasagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं० म. / / 244 // पूर्वाभिमुख उपविश्य स्वपुरतः स्तनात पश्चिमे भूतले यंत्रं लिखित्वा तन्मध्ये देवमाबाह्य आसनादिषोडशोपचारः मंपज्य अंगादि संपूज्य मपृश्य अगादि संपूज्यापू० ख०१ तत्राष्टदले पूज्यपूजकयोर्मध्ये प्राची तदनुसारेणान्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमण / ॐ असितांगभैरवाय नमः // 1 // ॐ रुरुभैरवाय नमः॥२॥ ॐ चण्डभैरवाय नमः॥३॥ॐ क्रोधभैरवाय नमः॥४॥ ॐ उन्मनभैरवाय नमः // 5 // ॐ कपालभैरवाय तरं.१० नमः // 6 // ॐ भीषणभैरवाय नमः // 7 // ॐ संहारभैरवाय नमः // 8 // इत्यही भैरवान पूजयेत् // ततः पोडशदले प्राच्यादिकमेण ॐ कुलिशाय नमः // 3 // ॐ सुकुलीशाय नमः // 2 // ॐ जामित्राय नमः // 3 // ॐ रामठाय नमः // 4 // ॐ अरिभाय नमः // 5 // ॐ प्रचंडाय नमः // 6 // ॐ चण्डकेशाय नमः // 7 // ॐ चण्डात्मने नमः // 8 // ॐ चामराय नमः // 9 // ॐ चरित्राय नमः ॥10॥ॐ चमत्काराय नमः॥ 11 // ॐ चंचलाय नमः॥ 12 // ॐ चारुभूषणाय नमः // 13 // ॐ चामाकराय नमः // 14 // ॐ चारुवाहाय नमः // 15 // ॐ चास्वाहांकिताय नमः // 16 // इति बटुके पोडशमित्रान् पूजयेत् // तद्वहिरष्टदलेषु प्राच्यादिक्रमेण ॐ ब्राय नमः // 1 // ॐ माहेश्वर्यै नमै // 2 // ॐ कौमाय नमः। // 3 // ॐ वैष्णव्यै नमः // 4 // ॐ वारायै नमः // 5 // ॐ नारसिंयै नमः // 6 // ॐ चामुंडायै नमः // 7 // ॐ चंडि कायै नमः // 8 // इत्यष्टौ मातृकाः पूजयेत् // ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्राँदिर्दशदिक्पालान् वजायायुधानि च संपूज्य पुनः मध्ये श्रीवटुकभैरवं धूपादिनमस्कारांतं पूजयित्वा पायसनैवेद्यं दत्त्वा अक्षतानादाय स्थापितयंत्रदेवतामंडले विकिरन वीरशांति पठेत् / तथा च / "ॐ श्मशानदेशे ये बीराः शिरस्यादाय शासनम् / मम स्थिता निरुतंति साधकानां मनोरथान / / अयूजिताः पृजिताम्ते सर्वकाम / // 24 // For Private And Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org फलपदाः // 1 // इति वीरशांति पठित्वा तत्रैव ॐ चंड आयाहि // 1 // ॐ प्रचंड आयाहि // 2 // ॐ ऊर्ध्वकेश आयाहि / // 3 // ॐ भीषण आयाहि // 4 // ॐ प्रभीषण आयाहि // 5 // ॐ व्योमकेश आयाहि // 6 // ॐ व्योमवाह आयाहि / H // 7 // ॐ व्योमव्यापक आयाहि // 8 // इति पृथक्पृथक् गंधादिभिरुपचारैः संपूज्य पायसनैवेद्यं च पृथक्पृथक् समये निर्भयः सन पश्चिमाभिमुखः प्राणायामऋप्यादिन्यासपूर्वकं प्रयोगोक्तान न्यासान कृत्वा प्राग्वन्मालां संपूज्य मूलमंत्रस्याष्टाक्षरपदोई चारणपूर्वकमुच्चैःस्तवराजं पठित्वा प्रसन्नचिनो मूलमंत्र जपेत // तदा देवतायामागतायांवामहस्तेन पायसपात्रमादाय दक्षिणह स्तन देवं भोजयेत् // ततस्तृमो देवो वरं वरयेति बेयानदा दंडवट्टमा प्रणम्य निजेप्सितबरं गृहीत्वा स्वयं गत्वा महोत्सवं कुर्यात् // तथा च (रुद्रयामले ) " भैरवाय समीपे तु वामहस्तेन पायसम् // भोजयेच्च जपं कुर्यान्निर्भयः प्रीतमानसः // 1 // ततो देवो . यदा बृयावरं वरय वाञ्छितम् // प्रणम्य दंडवडूमी वाञ्छितं वरमुच्चरन् // 2 // गृहेचागत्य प्रयत उत्सवं च ममाचरेत् / अनेन मनुना देवि सिद्धो भवति भृतले // 3 // असाध्यं नास्ति लोकेषु सत्यंसत्यं मयोदितम् // 4 // " इति बीरभाधनप्रयोगः // अथ बटुकभैरवदीपदानप्रयोगः // उक्त च ( शिवागमसारे ) पार्वत्युवाच // देवदेव जगन्नाथ जक्तानुग्रहकारक // दीपदानविधि हि / बटुकस्य महात्मनः // // महादेव उवाच // नोक्तः पूर्व महेशानि दीपो वै भैरवस्य च // आपत्काले महादेवि दीपयागं समाचरेत॥ // 2 // न तिथिर्न च नक्षत्रं न योगः करणं शशी // न राशिनं च सूर्यादिग्रहान्नैव विचिंतयेत् // 3 // यथाकामनया ध्यात्वा दीपदानं प्रयोजयेत् // दीपनाशे पुनदीपं कृत्वा शांतिं तु कारयेत् // 4 // त्रिपंचसप्तनवभिः पात्रं कृत्वा विचक्षणः // शुभे सौम्यमुखो For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म. // 245 // दीपो ह्यशुभे दक्षिणामुखः॥ 5 // (तत्र मुहूर्तनिर्णयः) वैशाखश्रावणाचीनकार्तिकेयादिपंचके // शुक्लपक्षे प्रकर्तव्या यावत्कृष्णा पू० ख०१ पंचमी // // सप्रमी पूर्णिमा चैव द्वितीया पंचमी तथा // त्रयोदशी च दशमी तृतीया प्रतिपत्नथा // 2 // द्वादशी च तथा पष्ठी ह्येताः स्युस्तिथयः शुभाः // वृद्धिवैधृतिपाताश्च ये ते योगाः शुलाः स्मृताः // 3 // बालब कौलवं चैव गरं चेति शुभानि वै // शमीम विना शुभाः पंच तवः परिकीर्तिताः // 4 // मासद्वयात्मकाः श्रेष्ठा दिनं दिनार्द्धमेव च // 5 // सूर्योदयं समारण्य याबदस्तं / गतो रविः // अहोरात्रप्रमाणेन ग्रीष्माद्याः परिकीर्तिताः // 6 // दिवा पूर्वाहकोः कालः रात्रौ निशीथ एव च // यदा सर्वत्र रात्री तु मर्यचन्द्रोपरागयोः // अझैदये महाष्टम्यां कालमोहौच रात्रिके // 7 // ( अथ कार्यपरत्वेन पात्रविस्तारे तैलमानम् ) विंशत्पल मिले पाने बुध्नोच्छाये पडंगुलम् // विस्तारे चांगुलान्येव पोदश परिकीर्तितम् // 1 // पंचाशत्पलगन्यं च बंश्य चौर्यादिकमणि // त्रिंशदशपले पात्रे मानं नद्वत्प्रकीर्तितम् // पटिपलमिते पात्रे बुधनोच्छाये नवांगुलम // अंगुलानि चतुर्विशदायामे परिकल्पयेत // 3 // पंचमपमिते तैले मर्वशत्रुविनाशनम् // द्विपंचाशत्पले पात्र बुध्नोच्छाये तु षटिमत // 4 // शतं पलमिते तैले दीपारिविनाशनम् // शतं / पलमिते पात्रे चौच्छ्रायो द्वादशांगुलः // 5 // द्वात्रिंशच ह्यायामे तन्मध्ये तु सहस्रकम् // सर्वकमणि सिद्धिः स्यादीपे पलमह - सके॥६॥ सपादशतपात्रे च पंचोनरशताधिक // पंचदशांगुलोच्छायं व्यायाम पट च त्रिंशके / / 7 // अयुतपलदीपश्च निगडावं | दिमुक्तये // सहस्रपलदीपे च बंदिमोक्षः प्रजायते // 8 // त्रिंशत्पलमिते पात्र मान्यं चैव तु पूर्ववत // त्रिंशत्पलमिते तैले दिनान्येकोनविं शतिः // 2 // कन्यानिकांक्षी तेलेन प्रत्यहं दीपमाचरेत् // इच्छितां लभते कन्यां भैरवस्य प्रमादतः // 10 // नृकपालमिते For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पात्रे चोच्छ्रायं तु रसागुलम् // विंशत्पलमिते दीप प्रत्यहं विंशतिदिने // 13 // सर्वरोगविनाशाय अयापस्मारदारुणे / दशपलमिते पात्रे बुनोच्छाये तु त्रिंशतम् // 12 // दशपलमिते तैलं प्रत्यहं सतवासरे // राजवश्यकरं क्षिप्रं यदि साक्षान्ज गत्पतिः // नित्यदीपप्रमाणे तु पात्रं पलत्रयं स्मृतम् // 13 // (तंत्रांतरेपि ) शतमष्टोत्तरं चाथ पलानि प्रथमे विधौ // अष्टाशीति| 1 द्वितीये च परेष्टाविंशतिः प्रिये // सर्वकार्यपु देवेशि संख्या प्रोक्ता त्रिधाऽत्र वै // 14 // (अथ कार्यपरत्वेन पात्रे धातुमानम् ) मावर्ण मिद्धिदं पात्रं वश्ये रौप्यं प्रकल्पयेत // विद्वेषणकरं लौहं मारणे मृण्मयं तथा / / 15 // उच्चाटनकर कांस्यं मोहे पिनल स्मृतम् / / अन्योक्कसर्वकार्येषु सर्वाभावे तु ताम्रजम् // 16 // ( तंत्रांतरेपि ) गोधूमाश्च तिला माषा मुद्राश्च तण्डुलाः कमात् // पंच धान्यमिदं प्रोक्तं सर्वदा दीपदापन // 17 // वश्ये तण्डुलपिष्टोत्थं मारणे माषपिष्टजम // तिलपिष्टममुट्टतमुच्चाटनविधी स्मृतम् // 18 // (प्रियस्यागमने प्रोक्तं गोधूमोत्थं सतण्डुलम् // मोहने मुद्गजं प्रोक्तं पात्रद्रव्यमनुक्रमात // 19 // (अथ कार्यपरत्वन तैलमानम् / गव्यमाकर्षणे कृत्ये कौस्तुभं स्तंभने स्मृतम्॥ तिलतैलं तथा नव्यं घृतं वश्ये प्रकल्पयेत्॥३॥कटुतैलं द्वेषणे च मारणे राजिकं स्मृतम् // आज्यं चौष्ट्र माहिषं च मैषमुच्चाटने मतम् // 2 // बंदिबंधनमोक्षे च तथा भूतपिशाचके // सार्षपं तेलमापूर्य दीपदानं विधीयते // 3 // अथवा तिलतलं तु सर्वकार्य प्रशस्यते // 4 // (अथ कार्यपरत्वेन पर्तिमानम् ) एका पंच तथा सत एकविंशतिसंख्यया // अयुग्माऽथ Lal 1 (तंत्रांतरेपि ) शुभकार्य माषमयं विपरीते तु लोहजम् // २(तंबात्तरेपि) गोवृतेन कृते दीपे देवतावशमानयेत // वयार्थमतसीतेलम् / मधुवृक्षजं तैलं धाविद्वेष / उचाटनेकरंजतैलम् ॥वादमाक्षे भूतपिशाचनिवारणे सर्वपतम्।। For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 246 // प्रकता यामां नैव तु कारयेत् // 1 // ( तंत्रांतरेऽपि) वर्तिरका प्रकता तिस्रो वा वर्तयस्तथा // शतेन त्रिशतेनाथ सहस्रेणाथJ०ख०१ वर्तिकाम् ॥२॥कारयित्वा शुभे पात्रे संस्थाप्य ज्यालयेत्तथा ॥श्वेतं शांती तथा पीतं स्तंभे वश्ये तु रक्तकम् ॥३॥मांजिष्ठं द्वेषणे प्रोक्तं मातं. करणे कृष्णसूत्रजम् // सर्वाभावे महादेवि श्वेतसूत्रं प्रशस्यते // 4 // (अथ दीपदानप्रयोगः॥) तत्रात्मनो यजमानस्यवा चंद्रतारानुक तरं०१० ले शुभेहि तिथिवारसुलनेषु त्वरितकार्य चेदमृतघटीषु शुभहोरायां वा दीपारंभं कुर्यात् // स च ग्रहणे संक्रांती कृष्णाष्टम्यां दुर्गोत्सर्वेऽ धादयादिमहापर्वमु कृतस्तात्कालिकफलप्रदो भवति // दीपदानसभारो यथा / कपिलागोमयम् 1 चिंचाद्याम्लद्रव्यम् 2 यथाकामनया दीपपात्र 3 यथोक्तमाज्यं तलं वा 4: यथोक्ता वर्तयः 5 शीप्रकायें पात्रपल 63 द्रव्यपल 108 तंतु 1000 द्वितीयपक्षे पात्रपल 32 द्रव्यपल 88 तंतु 300 मध्यमप्रकारे पात्रपल 16 द्रव्यपल 28 तंतु 100 कनिष्ठपक्षे पात्रपल 8 द्रव्यपल 8 तंतु 16 नित्यदीपे पात्रपल 3 द्रव्यपल 1 तंतु 21 शुभे दीपमुखमुत्तरे / साधकः पूर्वाभिमुखः। आधारयंत्रमुखमुत्तरे / अशुभ दीपयंत्रसाधकानां मुखं दक्षिणे / नित्ये पडंगुलान्यष्टखदिरकीलानि नैमित्तिके द्वादशांगुलानि कीलानि दीपाये प्रथमकीलपूजनं / दक्षिणावर्त दीवडी 8 कीलप्रत्येक 1 रक्तचंदनसिंदूरादिसुपक्कान मापान कमलाकारं रक्तचंदनकवीर कुसुमावतैर्युतं सदीपं बलि दानार्थमेकैके रात्रे एवाटपात्रे संपूर्य एवं च दीपदानात्पूर्वदिने सामग्री संपाद्य एकभक्तवतं कृत्वाऽपरदिने कृतोपवासो भूमौ / स्वपेत् / दीपदानदिने ब्राह्म मुहूर्ते चोत्थाय नित्यनैमित्तिकं समाप्य कंबलासन उपविश्य आदो गणपतिपूजनं कृत्वा अर्थ संस्थाप्य देशकालौ संकीर्त्य श्रीमद्बटुकभैरवप्रीतिकामो दीपदानं कर्तुं ममेप्सितफलावाप्त्यै आचार्य त्वामहं वृणे इत्याचार्य // 246 // For Private And Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir वृत्वा वस्त्रभृषणानि निवेद्य दक्षिणा दत्त्वा " ॐ भक्त्या ममागतोहं ते पादयोभक्तवत्सल / / दीपकार्य च भरता संपाचं वै नमो नमः // 1 // " इति मंत्रेण दंडवन्नमस्कृत्य अन्यान त्रीन पंच मत नवैकादश वा ब्राह्मणान वृणुयात् // नैलिणैः महाचार्यः पुण्याह वाचनादिनांदीश्राद्धांतानि कृत्वा भूतशुद्धिप्राणप्रतिष्टांतमातृकाबहिर्मातृकामृष्टिस्थितिमंहारमातृकान्यामं च कृत्या पद्धतिमार्गण पंशदश न्यासान् कुर्यात् // ततः सपादहस्तां समंततः चतुरस्रां चतुरंगुलोच्चां दीपवेदीशोधितस्थले निर्माय कपिलागोमयेनोपलिप्य तस्योपरि रक्तचंदनेन बटुकभैरवप्रयोगोतयंत्रं लिखेत॥ततो दीपवेदिकाये तंडुलैरष्टदलं कृत्या तस्योपरि कलशोतविधिना कलशं संस्थाप्य ततःस्वर्णा दिनिर्मितां वटुकप्रतिमामग्न्युनारणपूर्वकमासनमंत्रणासनं दत्त्वा कलशोपरि विराजयित्वा प्रणान्यनिष्ठाप्य पाद्यादिनमस्कारांनं पूज्य पुष्पांज लिं च दद्यात्॥ततो देशकालौ संकीर्त्य मम यजमानस्य वा मकलमनोग्थसिद्धये प्रयोगानुमारेण च बारिशदिनं वाष्टविंशनिदिनं धा एकविंशति दिनं वा पंचदशदिन वा समदिनपर्यतममुकमंग्यामितेन पात्रेण घृतेन तैलेन वा अमुकमंग्व्याकाभिर्वर्तिभिदीपदानमहं करिष्ये इति संकल्प येत् // ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवदीपदानमालामंत्रस्य मन्मथ ऋषिः / पंक्तिछंदः। आपदुद्धारकबटुकभैरवो देवता वं बीजम् / ह्रीं शक्तिः। मम सर्वमनोरथसिद्धये दीपदान विनियोगः // ॐ मन्मथ ऋषये नमः शिरसि // 1 // पंक्तिश्छदमे नमः मुखे // 2 // आप धारकवटुकभैरवदेवतायै नमः हृदि // 3 // वं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // ह्रीं शक्तये नमः पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः मांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासं कृत्वा प्रयोगोतन्यासादिकं विधाय यथाकामं ध्यायेत् / ततः पूर्वानदीपवेापार लिखितं यंत्रमशतैः पूर, जयित्वा तस्या वेद्या अष्टदिक्ष खदिरवृक्षोद्भवानष्टकीलान निखाय नेष कीलेषु पूर्वादिदिशमारायाभग्वेयो बलिं दद्यात // नाच For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० खं.१ तरं०१० में म0पूर्वकीलसमीपे जलेन चतुरस्रमंडलं कृत्वा तत्र मापपात्रं निधाय ॐ जयंतभैरवाय नमः / / इति गंवादिभिः जयंत संपूज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन ततः “ॐ ह्रीं जयंतभैरव एह्येहि इमं मदीपं माषान्नबलिं ग्रहगृह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरुकुरु स्वाहा। इति मंत्रेण तस्मिन पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य प्रणमत // 3 // ततः आमयकोणगतकीलसमीपे जलेन चतुरस्रमंडलं कृत्वा तत्र माषपात्रं निधाय ॐ अघोरभैरवाय नमः // इति गंधादिभिरघोरं संपूज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन ततः "ॐ ह्रीं अघोरभैरव एढेहि इमं मदीपं माषान्नवालि गृहगृह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरुकुरु स्वाहा” इति मंत्रणास्मिन्पात्रे जलं बलिं चात्मन्य प्रणमेत् ॥२॥ततः दक्षिणकीलसमीपे जलेन चतुरस्रमंडलं कृत्वा तत्र मापपात्रं निधाय ॐ चामीकराय नमः // इति चामीकर संपृज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन ततः "ॐ ह्रीं चामीकरभैरव एह्येहि इमं सदी भाषान्नबलिं गहगह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरुकुरु स्वाहा” इति मंत्रणास्मिन्पात्रे जलं बलिं चोन्मृज्य प्रगमेत // 3 // ततः नैत्यकोणगतकीलसमीपे जलेन चतुरस्रमंडलं कृत्वा तत्र माषपात्रं निधाय ॐ अमितांगरवाय नमः // इति अमितांगभैरवं संपूज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन नत्यानं स्पृशन “ॐ ह्रीं अमितांगभैरव एढेहि इमं सदीपं मापानबलिं गृहगृह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरु कुरु स्वाहा” इति मंत्रेणास्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य प्रणमेत // 4 // ततः पश्चिमकीलममीपे जलेन चतुरस्रमंडलं कृत्वा तत्र मापपात्रं निधाय ॐ भीषणभैरवाय नमः // इति भीषणभैरवं संपूज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्यानं स्पृशन। “ॐ ह्रीं भीषणनेरव एढेहि इमं मदीपं मापानबलिं गृहगह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरु कुरु स्वाहा” इति मंत्रगास्मिन्पात्रे जलं बलिं चो // 217 // For Private And Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir स्मृज्य प्रणमेत॥५॥ततो वायुकोणगतकीलममीपे जलेन चतुरस्त्रमग्लं कृत्वा तत्र माषपात्रं निशय ॐ प्रचंडभैरवाय नमः॥इति प्रचंडौरव संपृज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन "ॐ ह्रीं चंडभैरव एढेहि इमं सदीपं मापानबलिं गृहग्रह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरु कुरु स्वाहा” इति मंत्रेणास्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य प्रणमेत् // 6 // ततः उत्तरदिग्गतकीलसमीपे जलेन चतुरस्रमण्डलं कृत्वा तत्र मापपात्रं निधाय ॐ करालभैरवाय नमः / / इति करालं संपूज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्या वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन "ॐ ह्रीं कगलभैरव एहोहि इमं मदीयं माषान्नबाले गृहगृह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरु कुरु स्वाहा" इति मंत्रेणास्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य प्रणमेत॥७॥ततः ईशानकोणगतकीलसमीपे जलेन चतुस्रमंडलं कृत्वा तत्र मापात्रं निधाय ॐ कपालभैरवाय नमः।। इति कपालं भैरवं संपूज्य दक्षहस्ते जलं| गृहीत्वा वामहस्तेन तत्पात्रं स्पृशन "ॐ ह्रीं कपालभैरव एह्येहि इमं सदीपं माषानबलिं गृह मां रक्षरक्ष अभीष्टं कुरु कुरु स्वाहा इति मंत्रेणास्मिन्पात्रे जलं बलिं चोत्सृज्य प्रणमेत् // 8 // इत्यष्टदिक्षु बलिं दत्त्वा / ॐ गुहायो नमः // 3 // ॐ परमगुरुग्यो नमः // 2 // ॐ परात्परगुरुभ्यो नमः // 3 // ॐ परमेष्टिगुरुायो नमः॥४॥ ॐ ग्लौं गणपतये नमः॥५॥ ॐ शौं क्षेत्रपालाय नमः॥६॥ॐ वं बटु करवाय नमः // 7 // इति नत्वा ततो यथाकामं कृतं दीपं वेदीमध्ये तंडुलोपरि संस्थाप्य गायत्रीमंत्रेण यथाकामं घृतं नैलं वा Assपूर्य यथाकामं वर्ति निधाय यावत्संख्यकास्तन्तबस्तावतीनिर्मत्रावृतिभिरभिमंत्र्य मलेन दीपानुरूपां शलाका दीपे निधाय दक्षिणधारां छुरिकां निधाय “ॐ ह्रीं छी छरिके मम शत्रञ्छेदिनि रिपुन निर्दलयनिर्दलय मां पाहिपाहि स्वाहा” इति छुरिकां संपूज्य ततः ॐ हां ह्रीं सर्वांगसुंदये शलाकायै नमः // इति शलाकां पूजयेत / ततो मूलेन गायत्रीमंत्रेग वा दीप प्रज्याल्य पूर्ववत्पुनासादिकं कृत्वा For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० सं०१ मं० मा // 248 // हस्ते कुशजलगंधाक्षतपुष्पाणि गृहीत्या "ॐ ऐं श्रीं ह्रीं श्रीं सर्वज्ञाय प्रचंडपराक्रमाय बटुकभैरवाय इमं दीपं गृहाण सर्वकार्याणि माधा लामत यसाधय दुष्टान्नाशय२ त्रासय 2 सर्वतो मम रक्षां कुरुकुरु हुं फट् स्वाहा” इति दीपं मंकल्प्य जलं च दीपाये निक्षिप्य पनर्दशहस्ते जल तरं.१० मादाय "ॐ गृहाण दीपं देवेश बटुकेश महामनो॥ ममाभीष्टं कुरु क्षिप्रमापद्भ्यो मां ममुद्धर॥३॥” मूलं पठित्वा बटुकभैरवाय इमं दीपं / निवेदयामि नमः॥ इति जलं भूमा निक्षिप्य दीपं भैरवाय निवेदयित्वा दीपस्य प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात्। तथा च करेणाच्छाय ॐ आं ह्रीं को पॅरलॅबशपसहीं अमहंमः ह्रीं हंसः अस्य बटुकभैरवदीपस्य प्राणा इह प्राणाः। पुनः अस्य बटुकभैरवदीपस्य जीव दह स्थितः। पुनः| अस्य बटुकभैरवदीपस्य सर्वन्द्रियाणि इह स्थितानि। पुनः अस्य बटुकभैरवदीपस्य वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःश्रोत्रजिह्वाघाणपाणिपादपायपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठतु स्वाहा // 4 // इति प्राणान्प्रतिष्टाप्य तत्र दीपे बटुकमावाह्य यथाकामं ध्यात्वा पायादिपुष्पांतैरुषाः पद्ध तिमार्गण मंपूज्य प्रयोगोतावरणपूजां च कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य बलिं दद्यात् / तथा च दीपस्य वामभागे त्रिकोणवृत्तषद्को णमंडलं कृत्वा ॐ बलिमंडलाय नमः // इति मंडलं संपूज्य तत्राधारं संस्थाप्य तत्र शाल्योदनशर्करालाजाचूर्णगुटापूपशष्कुलीसूपणा यसान्नादिकं वृतप्लुतमनेकजातीयं बलिद्रव्यं (तंत्रांतरेपि) घृतमधुशर्करामोदकमाषान्नबटकं च विविधभक्ष्यद्रव्याणि यथासंभवं मापमुद्रा नप्रधानबलिद्रव्यं वा क्षत्रियादिभिः समांसबलिद्रव्यं कमलाकारं कृत्वा तस्योपरि गंधाक्षतपुष्पदीपादिकं निधाय आधारोपरि संस्थाप्य ) देशकालौ संकीर्त्य ममामुकफलावातये श्रीवटुकभैरवप्रीतये अमुकद्रव्यबलिदानमहं करिष्ये // इति संकल्प्य ॐ वं बटुकबलिद्रव्याय नमः इति संपूज्य दक्षहस्ते जलं गृहीत्वा वामकगंगुष्ठेन बलिपात्रं स्पृशन मूलं पठित्वा "ॐ गोहि विदुषि पुरं भंजय 2 नर्तय 2 // 2483 For Private And Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavn Aradhana Kendra www.kabalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir निग्रह 2 महाभैरवबटुक बलिं गृह्णगृह स्वाहा // 1 // एह्येहि देवीपुत्र वटुकनाथ कपिलजटाभारभासुर त्रिनेत्र ज्वाला मुख सर्वविघ्नान्नाशय 2 सर्वोपचारसहितं बलिं गृह्णगृह्ण स्वाहा // 2 // " इति मंत्रेण जलं बलिमुत्सृज्य प्रणमेत् // समांसब लिपक्षे “ॐ पशुपाशाय विद्महे शिरश्छेदाय धीमहि // तन्नः पशुः प्रचोदयात् // 1 // " ॐ अरिपिशितमांसान्नबलिं गृह्णगृहात "शत्रुपक्षस्य रुधिरं पिशितं च दिनेदिने // भक्षयेद्यो गणैः मार्द्ध मारमेयसमन्धितः // 1 // सर्वगणेभ्यो नमः / आमिपं गृह / भक्षय 2 मां रक्षरक्ष स्वाहा // " इति मंत्रेण दद्यात / इति बलिं दत्त्वा यथाकामं देवं ध्यात्वा ततः अष्टोनरसहस्रमष्टोत्तरशतं वा यथाशक्ति मूलं प्रजप्याष्टोत्तरशतनामस्तवराजं च एकविंशतिवारमेकादशवारं वा शतदारं वा महाप्रयोगश्चेत्सहस्रवारं वा ब्राह्मणैः / / सहावृत्य पुनः पूर्वोक्तसंख्यया मंत्र जपेत् ॥ततः "गुह्यातिगुह्य” इति मंत्रण जपं समर्प्य ततः स्तोत्रकवचमहलनामादिकं दीपसमामिपर्यत प्रत्यहं पठेत् / यावद्दीपं तावदशुभं न वदेत्॥कोधपरनिंदापरखीषु पराङ्मयो भवेत॥पाठांते बटुकान कुमारिकाः सुवामिनीश्च पायमान्नैट कर्मोदकैश्चणकैश्च नानाभक्ष्यभोज्यैश्च प्रत्यहं तर्पयित्वा ततः आचार्यः स्वयं वा शांतिस्तोत्रं पठेत् / शांतिस्तोत्रं यथा / यस्यार्चनेन विधिना / किमपीह लोके कर्मप्रसिद्ध इति नाम फलं प्रसूते // तं संततं सकलसाधकवांछितामिचिंतामणिं मुरगणाधिपतिं नमामि // 1 // रक्तां / बरं ज्वलनपिंगजटाकलापं ज्वालावलीकुटिलचन्द्रधरं त्रिनेत्रम् // बालार्कचाम्रफलकांचनतुल्यवर्ण देवीसुतं बटुकनाथमहं भजामि // 2 // हरतु कुलगणेशो विनसर्पानशेषान्नयतु कुलसपर्यापूर्णतां साधकानाम् // पिबतु वटुकनाथः शोणितं निंदकानां दिशतु सकलकामा साधकानां गणेशः // 3 // सततवितततेजाश्चक्रभासा विनम्रग्रसनममुदितो वै विश्वमंदोहनाभिः // प्रलयनयननाभिः किंतुरात्मोद्भवाभिर्भ For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मै० म०वत भवनगों भैरवो नः पुनातु // 4 // या काचिद्योगिनी रोद्रा सोम्या घोरतरापरा // गृह्यतां बलिपूजां सा मम व्याधि व्यपोहत्॥५॥ 0 ख०१ नंदतु साधकाः सर्वे विनश्यंतु प्रदूषकाः॥अवस्था शांभवी मेऽस्तु प्रसन्नोस्तु गुरुः सदा॥६॥” इति पठेत्॥ततो जपदशांशेन होमतर्पणमा भतं. पार्जनबाह्मणनोजनं च कृत्वा ब्राह्मणान जपानुसारेण दक्षिणादिभिः संतोष्य आचार्य कार्यानुसारेण दक्षिणायस्वालंकारादिभिः परितोष्यतरं०१० प्रणमेत // तथा च / " अयं दीपविधिः प्रोक्तो बटुकम्य तवानये // योजनीयः प्रयत्नेन सत्यंसत्यं वदाम्यहम् // 1 // परिवारसमा यक्ती मपुत्री सहपनिको // सर्वान्देवान्त्रपूज्याथावरणेन समन्वितान् // // मध्यं तु पूजयेदेवं वटुकं दीपमध्यतः // पंचोपचारैः संपू ज्य अपदीपादिभिः कमात // 3 // कवचं स्तवराजं च आपदुद्धारणं जपेत // मंत्र लक्षं जपेद्देवि कवचं चायुतं पठेत // 4 // सहस्रं स्तिवराजं च कार्यमद्विश्य मंत्रवित // कला चतुर्गणं प्रोक्तं दीपायप्रपठेत्मदा // 5 // सूर्यास्तकालमारण्य यावत्सूर्योदयो भदेत // ताव मंत्र जपेद्रात्री कार्यमृद्दिश्य मंत्रवित // 6 // अष्टमीदिनमारस्य यावत्कृष्णा चतुर्दशी // तावन्मंत्र जपेद्रात्री सर्वकार्यप्रसाधने // 7 // नदीतीरे शिवागारे विल्यमूले गिरी नथा।। गुहायां सिद्धपीठे च सन्निधौ भैरवस्य च // 8 // पुत्रप्राप्तिः महने स्याद्विगुण च धनागमः॥ त्रिगुणे बंधनान्मुक्तिश्चतुःमध्ये प्रियागमः।५॥बाणमव्य स्तंतनं स्याद्रममंग्ये भयो भवेत्॥मत्रमंग्व्ये जगदृश्यमष्टसंख्ये तु मोहनम्।१०॥ अंकसंग्व्य महोत्साह उच्चाटो दशमग्यके | एकादशेन देवेशि ह्यखिलाः सिद्धयः स्मृताः // 11 // लक्षणेकेन देवेशि चक्रवती भवेद्धवम् // कोटिमंग्व्ये महादेवि भवेटरवमन्निभः // 12 // नौकाया व्यवहारे च जपेत्सतशतं तथा // कृषिकर्मणि वाणिज्ये // 24 // रुद्रमंच्याशतानि च // 13 // दीपाये कलशाये च पठित्वा फलमानुयात // दीपाये च यथाशक्ति गायत्री वटुकस्य च // 14 // For Private And Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir जपेदीपं समाथ कवचं प्रजपेनतः // मंत्र जम्न्या पुनर्वम पठेन्मंत्रं ततः परम् // 15 // स्तवराज पठित्वा तु मंत्र जप्त्वा निवेदयेत् // पुरुषोत्तमपादाजद्वितयेपितमौलिना / कथितो रामचन्द्रेण दीपदानविधिः शुभः // 16 // इति वटुकौरवदीपदानविधानम // // श्रीगणेशाय नमः // अथ श्रीबटुकभैरवपूजापद्धतिप्रारंभः // “नमः कर्पूरगौराय कैलामाचलवासिने // गौरीकंठग्रहानंदनिष्प दायांधकद्विरी // 1 // उत्पनिस्थितिसंहारकारको जगदीश्वरः // देवाधिदेवा बटुकभैरवोऽवतु मां सदा // 2 // भैरवाराधनविधि प्रवक्ष्यामि | समासतः // साधकानां हितार्थाय मुमक्षणां विशेषतः // षटकर्मणां च समिद्धयै वक्ष्ये भैरवपद्धतिम // 3 // " पुरश्चरणात पाक तृतीय दिवझे सौरादिकं विधाय ततः प्रायश्चित्तार्थ विष्णपूजां विष्णुतर्पणं विष्णुश्राद्ध हामं चांद्रायणदिवतं च कुर्यात् // व्रताशक्ती गोदानं द्रव्यदानं च कर्यात // यदि सर्वकर्माशक्तस्तदा प्रायश्चिनार्थ पंचगव्यप्राशनं कुर्यात // तत्र मंत्रः ॥"ॐ यत्वगस्थिगतं पापं देहे। तिष्ठति मामके // प्राशनात्पंचगव्यं हि दहत्यनिरिबन्धनम् // १॥इति पठित्वा प्रणबेन पंचगव्य पिबत // तदिन उपवास करवा अशक्तश्चेत पयःपानं हविष्यान्नेन एकाक्तवतं वा कुर्यात् // ततः पुरश्चरणात पूर्वदिने स्वदेहशुद्धयर्थ पुरश्चरणाधिकारप्राप्त्यर्थ / चायुतगायत्रीज कुर्यात् // तत्र क्रमः // देशकाला संकर्त्यि ज्ञाताज्ञातपापक्षयार्थ करिष्यमाणश्रीमदटुकभैरवपुरश्चरणाधिकारार्थम मुकमंत्रेण सिद्धयर्थं च गायत्र्यायुतजपमहं करिष्ये // इति संकल्प्य गायत्र्या अयुतं जपत // ततो गायत्र्याचार्यऋषि विश्वामित्रं तर्पयामि // 1 // गायत्रीछंदस्तर्पयामि // 2 // सवितारं देवं तर्पयामि // 3 // इति तर्पणं कुर्यात // ततस्तस्यां रात्री देवता पास्तिं शुभाशुभं स्वमं विचारयेत् // तत्र कमः // नानादिकं कृत्वा हरिपादांबुजं स्मृत्वा कुशासनादिशय्यायां यथासुखं स्थित्वा | For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 25 // विषभध्वज प्रार्थयेत // तंत्र मंत्रः // ॐ भगवन्देवदेवेश शुलभूट्टपवाहन // इष्टानिष्टं समाचश्य मम सनस्य शाश्वत // 1 // ॐकावं. 2 वृषभध्वज प्राथ नमोजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने / वामाय विश्वरूपाय स्वभाधिपतये नमः // 2 // स्वमे कथय मे तथ्यं सर्वकार्येप्यशेषतः // तं. क्रियासिद्धिं विधास्यामि त्वत्प्रसादान्महेश्वर // 3 // " इति मंत्रणाष्टोत्तरशतवारं शिवं प्रार्य स्वान्यात // ततः स्वमं दृष्टं निशि प्रातर्मुखे तरं० 10 विनिवेदयेत् अथवा स्वयं स्वर्ण विचारयेत // ततः चंद्रतारादिबलान्यिते समुहूर्ते विधिने देशे जपस्थान प्रकल्प्य पुरश्चरणदिवसे। श्रीमान्साधकेंद्रः प्रातःकालात्पूर्व दंडद्वयात्मके ब्राह्म मुहूर्ते चोत्थाय निद्रास्थानावहिनिगन्य हस्तौ पादी प्रक्षाल्याचम्य रात्रिका परित्यज्यान्यवन परिधाय शुद्धासने चोपविश्य स्वशिरसिसहस्रदलपंकजे कोटींदुप्रकाशपीठे श्रीगुरु ध्यायेत्।। गुरुम्मरणम् / आनंदमा नंदकर प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपम् // योगीन्द्रमीड्यं भवरोगवैयं श्रीमद् नित्यमहं भजामि // 1 // " इति ध्यात्या मानसोपचारः संपूज्य “प्रातः प्रभृतिसायांतं मायादिप्रातरंततः // यत्करोमि जगन्नाथ तदस्तु तब पूजनन // 1 // " इत्यनेन मंत्रण सर्व गुरुवे निवेद्य तदाज्ञां गृहीत्वा श्रीबटुकप्रातःस्मरणं कुर्यात // अथ श्रीबटुकप्रातःस्मरणम् // "प्रातः स्मरामि बटुकं सुकुमारमूर्ति श्रीस्फाटिकासमदृशं लिंग चंद्रायोविवं भारती जाह्नवीं गुरुम् // रक्ताधितरण युद्धे जयोनलसमंचनम् // शिखिइसरयांगाढये रथे स्थानं मोहनमआरोहणं सारसस्य धरा लाभश्चनिम्नागा // प्रासादः स्पंदन पन छवं कन्या द्रुमः फली नागो दीपो हयः पुष्पं वृषभोश्वश्च पर्वतः ॥सुराषटो ग्रहास्तारा नारी सूर्यादयोप्सराः॥ हम्यशैलवि मानानामारोहो गगनेगमः / मद्यमांसादनं विष्ठालेपो रुधिरसेचनम्॥ दध्यादनादन राज्याभिषेका गोवृषध्वजाः // सिंह सिंहासनं शंखो वादि रोचना दधि // 25 // चंदनं दर्पणश्चैषां स्वप्ने संदर्शनं शुभम् / तैलाभ्यक्तः कृष्णवी नग्नो नागर्तवायसौ // शुष्कं कंटकिवृक्षश्च चांडालो दीर्घकंधरः // प्रासादस्तकहीना नेते स्वप्ने शुभावहाः॥ इति विचारयेत् / / For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कुटिलालकाट्यम् // वक्त्रं दधानमणिमादिगुणैर्हि युक्तं हस्तद्वयं मणिमयैः पद पणैश्च // 3 // प्रातर्नमामि बटुकं तरुणं त्रिनेत्रं कामास्पदं / *वरकपालत्रिशुलदंडान // भक्कार्तिनाशकरणे दधते करेषु त कौस्तुभाभरणभूषितदिव्यदेहम् // 2 // प्रातःकालेसदाऽहंभगणारिधरं / भालदेशे महेशं नागं पाशं कपालं डमरुमथ भूणि खगघंटाभयानि // दिग्वस्वं पिंगकेशं त्रिनयनमहितं मुंडमालं करेषु यो धत्ते भीमदं मम विजयकर भैरवं तं नमामि॥३॥देवदेव कृपासिंधो सर्वनाशिन्महाऽव्यय॥संसारासतचिनं मां मोक्षमार्ग निवेशय॥ 4 // एतच्छोकचतुष्कं / व जैरवस्य तु यः पठेत् // सर्वबाधाविनिर्मुक्तो जायते निर्भयः पुमान॥५॥"एवं ध्यात्वा गुरुमंत्रदेवतात्मनामैक्यं विभाव्य अजपाजपं गु समर्पयेत् // अथाजपाजपसंकल्पः संक्षेपतः // "आधारे लिंगनानी हृदयसरसिजे तालुमले ललाटे वे पत्रे पोडशारे दिवशदशदले द्वाद। शार्द्ध चतुष्कावासांते बालमध्ये डफकठसहिते आदियुक्त स्वराणां हंशेतत्वार्थयुक्त सकलदलगतं वर्णरुपं नमामि॥ ३॥शतं तु गणेशस्य / / पटसहस्र प्रजापतेः // पद्महस्रं गदापाणेः पट्महस्रं पिनाकिनः // 2 // आत्मनस्तत्महतं च महरं परमात्मनः॥ बहन श्रीगुरुत्यश्च व तानि विनियोजयेत // 3 // हंसो गणेशो विधिरेव हंसो हंमो हरिहनमयश्च शंभुः / / हेमोपि जीवो परमात्महंसो हंसो गुरु सहभमयश्च शंभुः // 4 // " इति पठित्वा // अहोरात्रोचारितं पशताधिकमेकविंशतिलहनमुच्छामनिःश्वासात्मकमजपागायत्री मंत्रजपं श्रीगणेशब्रह्मविष्णुरुद्रजीवात्मपरमात्मश्रीगुमायो यथासंख्यं समर्पयामि // इत्युक्त्वाष्टोत्तरशतावृनिं हंसगायत्री जपेत / / अथ हंमगायत्रीमंत्रः // हरिः ॐ " हंसोहंसस्य विद्महे हमोहंसस्यधीमहि मोहमः प्रचोदयात // " इति जपित्वा // " त्रैलोक्यचैतन्यमयि त्रिशने श्रीविश्वमातर्भवदाजयैव // प्रातः समुत्थाय तब प्रियार्थ ममारयात्रामनुवर्तयामि // // " इति मंधार्य भूमिं प्रार्थयेत् / / n 55074-9-o For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अथ भूमिप्रार्थनामंत्रः // " समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमंडले // विष्णुपनि नमस्तुत्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे // 1 // " इति भूमि संप्रार्थ्यपू० खं.. श्वासानुसारेण भूमौ पादं दत्त्वा बहिबजेत् // इति प्रातःकृत्यम् // अथ शौचक्रिया // ततो यामादहिः नैऋत्यकोणे जनवर्जिते उत्तराभतं. निमुखः अनुपानकः वस्त्रेण शिरः प्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा / / मृत्तिकया जलेन यथासंख्यं शौचं कृत्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूपांतं दंत तरं० 10 धावनं कुर्यात् // अथ देंतधावनम् // आम्रचंपकापामार्गाद्यन्यतमं द्वादशांगुलं दंतकाष्ठं गृहीत्वा प्रार्थयेत्॥ "आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजा पशुधनानि च // श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वं नो देहि वनस्पते // 3 // " इति पार्य “ॐ ह्रीं तडित्स्वाहा // " इति मंत्रेण काष्ठं छित्त्वा / "ॐ क्लीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः // " इत्यनेन दंतान संशोध्य " मंत्रण जिह्वामुल्लिख्य दंतकाष्ठं क्षालयित्वा नैऋत्ये शुद्धदेशे निःक्षिपेत् / / मलेन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात् // अथ स्नानम् // ततः तीर्थस्नानं मंगलनानं च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा | अशक्तोट् गृहस्नानं कुर्यात् // तत्र कमः // तात्कालिकोद्धृतोदकेनोष्णोदकेन वा स्नानं कृत्वा न तु पर्युषितशीतोदकेन तद्यथा // ता. वादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् // तत्र मंत्रः // " ब्रह्मांडोदरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते रखे // तेन सत्येन मे देव तीर्थ | देहि दिवाकर // 1 // ॐ पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः मरितस्तथा // आगच्छन्तु पवित्राणि स्नानकाले सदा मम // 2 // " इति तीर्थान्यावाह्य // " गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति // नर्मदे सिंधुकावेरि जलेस्मिन्सन्निधिं कुरु // 3 // " इति पठित्वा "ऋतं च सत्यं०" इति मंत्रेणाभिमंत्र्य स्नायातं // एवं स्नानं कृत्वा शुष्क शुलं कर्पासोत्पन्नं वयं परिधाय सूर्यायायं दद्यात् // तत्र मंत्रः // "एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते // अनुकंपय मां देव गृहाणार्य नमोस्तु ते // " इत्ययं दत्त्वा नायिवस्त्रं पारिपीड्य यज्ञोत्थ For Private And Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobatrm.org भस्मना पंचत्रिपुंडूं कृत्वा रुद्राक्षमालां धारयन् वैदिकीसंध्या विधाय तांत्रिकी कुर्यात् // अथ तांत्रिकीसंध्याप्रयोगः // देशकालो संकीर्त्य श्रीवटुकभैरवाराधनयोग्यताजननार्थ तंत्रसंध्यामहं करिष्ये इति संकल्प्य // " ॐ ह्रीं आत्मतत्त्वाय साहा // 1 // ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वाय स्वाहा // 2 // ॐ हूँ शिवतत्त्वाय स्वाहा // 3 // " इति त्रिराचम्य मूलेन प्राणानायम्य ऋष्यादिकरांगन्यासान कृत्वा मूलेन जलं संवीक्ष्य // “अस्त्राय फट् // " इति संप्रोक्ष्य / अनेनेव दर्भेण संताड्य "कवचाय हुम् // " इत्यायुक्ष्य तज्जलेन कुंभमुद्या मूर्ध्नि सिंचेत् // ततो बामपाणी दक्षेण तीर्थजलमादाय ॥ॐ ह्रां बां। हृदयाय नमः // " इति मंत्रेण मावारमभिमंत्र्य तदलितोदकबिंदुतिदक्षहस्तेन शिरसि मार्जयेत् // तत्र मंत्राः // हां वा हृदयाय नमः वौषट् // 1 // ह्रीं वी शिरसे स्वाहा वौषट् ॥२॥हूं धूं शिखायै वौषट् // 3 // हैं बैंकवचाय हूं वौषट् ॥४॥हीं वौं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ह्वः वः अस्त्राय फट् // 6 // ॐ आं हां व्योमव्यापिने नमः // 7 // ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः। भवे| भवेनातिभवेभवस्वमां भवोद्भवाय नमः // 8 // ॐ वामदेवाय नमोज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नम :कलविकरणाय न मोबलायनमोबलविकरणायनमोबलप्रमथनायनमःसर्वभूतदमनायनमोमनोन्मनायनमः // 9 // ॐ अघोरण्याथधोरेन्योघोरघोरतरत्यः॥ सर्वेन्यःसर्वशर्वेयोनमस्तेअस्तुरुद्ररूपेत्यः // 10 // ॐ तत्पुरुषायविद्महेमहादेवायधीमहि / / तन्नोरुद्रःप्रचोदयात् // 11 // ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरःसर्वभूतानांब्रह्माधिपतिब्रह्मणोधिपतिर्ब्रह्माशिवोमेस्तुसदाशिवोम् // 12 // ह्रां ह्रीं हूं मूलमंत्रश्च / एतैमंत्रैर्मार्जयित्वा / वामहस्तस्थं जलं वामनासासमीपमानीय इडया देहांतरादाक्रप्य पापौघं प्रक्षाल्य कृष्णवर्ण तदुदकं दक्षिणया विरेच्य वामहस्तस्थमुदकं For Private And Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobatrm.org मं० मा // 25 // दक्षिणेनादाय पुरःकल्पितवजशिलायामस्वमंत्रेण क्रोधादास्फालयेत् // ततः पूर्ववदाचम्य करांगन्यासौ रुत्वा अपात्रे जलं कृत्वा तमा, पू० खं० 1 दाय मूलमुच्चार्य “शिवरूपाय मूर्यायेदमयं स्वाहा // " इति त्रिरय दत्त्वा मूलेनोपस्थाय गायत्री मूलमंत्र जोत् // गायत्रीमंत्रो यथा // भित "ॐ तत्पुरुषायविद्महेमहादेवायधीमहि // तन्नोरुद्रः प्रचोदयात् // " इति गायत्रीमष्टविंशतिवारमष्टोनरशतवारं मूलं च संजप्य जप तर.१० निवेद्य नमस्कारं कुर्यात् // इति तांत्रिकीसंध्याप्रयोगः // अथ द्वारपूजा // ततः पूजागृहद्वारमागत्य द्वारपूजां कुर्यात् // तत्र क्रमः // "अवाय फट" इति द्वारं संप्रोक्ष्य दक्षिणशाखायाम् // गं गणपतये नमः॥ 3 // दुं दुर्गायै नमः॥२॥ वामशाखायाम् वं वटु काय नमः॥३॥ क्ष क्षेत्रपालाय नमः॥४॥ द्वारोपरि / सं सरस्वत्यै नमः।।५॥देहल्याम् / अत्राय फट् // 6 // इति पूजयेत् // अथ प्रयोगः।। ततः जपस्थान गत्वा // अश्वत्थोदुंबरप्लक्षाणामन्यतमस्य वितस्तिमात्रान् दश कीलान् "ॐ नमः सुदर्शनायास्त्राय फट् // " इति मंत्रणा टोत्तशताभिमंत्रितान् “ॐ ये चात्र विन्नकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः // विघ्नभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धिषु // 1 // मर्यंत कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः // अपसर्पतु ते सर्वे निर्विघ्नं मिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति मंत्रव्येन दशदिक्षु दश कीलान निखनेत्॥ ततस्तेषु "ॐ सुदर्शनायाखाय फट" इति मंत्रण प्रत्येककीलान् संपूज्य तबाह्ये भूतबलिं दद्यात् // तत्र मंत्रः।। "ये रौद्रा रौद्रकर्माणो रौद्रस्थाननिवासिनः // मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च मे // 3 // विन्नभूताश्च ये चान्ये दिग्विदिक्षु समाश्रिताः // ते सर्वे प्रीत // 252 // मनसः प्रतिगृह्णविमं बलिम् // 2 // " इति मंत्रद्वयेन दशदिक्षु बाह्ये माषभक्तबलिं दद्यात् // ततो वामकरांगुलिभिरय॑जलेनोत्सृज्य पुष्पांजलिमादाय "ॐ भूतानि यानीह वसंति भूतले बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम् / / संतोपमासाद्य व्रजंतु सर्वे शमंतु नान्यत्र नमोस्तु For Private And Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तत्यः॥” इति पुष्पांजलि दत्त्वा प्रणमेत् // इति भूतेभ्यो बलिं दत्त्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्याचमेत्॥ ततः "ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सवा / वस्था गतोपि वा // यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः // 1 // " इति मंत्रण मंडपांतरं प्रोक्ष्य // तत्र तावदासनभूमौ I कर्मशोधनं कार्यम् // यत्र जपकर्ता एक एव तदा कूर्ममुखे उपविश्य तत्रैव जपं दीपस्थापनं च कुर्यात् // यत्र बहवः जापकास्तत्र कर्ममुखोपरि दीपमेव स्थापयेत् // एवं कूर्मशोधन विधाय तर आमनाधो जलादिना त्रिकोणं कृत्वा तत्र “ॐ कूर्माय नमः // 1 // ॐ ह्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः॥ 2 // ॐ पृथिव्यै नमः // 3 // " इति गंधाक्षतपुष्पैः संपूज्य तदुपरि कुशासनं तदुपरि मृगा जिनं तदुपरि कम्बलाद्यासनमास्तीर्य स्थापितानां त्रयाणामासनानामुपरि क्रमेण "ॐ अनन्तासनाय नमः // 1 // ॐ विमलासनाय नमः // 2 // ॐ पद्मासनाय नमः // 3 // " इति मंत्रत्रयेण त्रीन दर्भान प्रत्येकं निदध्यात् // एवमासनं मस्थाप्य तत्र प्राङ्मख उद ङ्मुखो वा उपविश्यामनं शोधयेत् ॥नत्र मंत्रः // ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः / कूर्मोदेवता / सुतलञ्छन्दः / आसने विनियोगः // “ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता // त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् // 1 // " इति मंत्रणासनं प्रोक्ष्य ततो। मूलेन शिखां बद्धा आचम्य प्राणानायम्य देशकालो संकीर्त्य मम श्रीमद्भटुकभैरवदेवताप्रीतये अमुकमंत्रसिद्ध्यर्थ लक्षसंख्यात्मकं (अथा। वा एकविंशतिलक्षसंख्यात्मकं ) जपं तत्तद्दशांशहोमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनरूपपुरश्चरणमहं करिष्ये इत्युच्चार्य जलं भूमौ क्षिपेत् // नतो भूतशुद्धिप्राणप्रतिष्ठांतर्मातृकाबहिर्मातृकासृष्टिस्थितिसंहारमातृकान्यासान्सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा प्रेतबीजाद्यसरस्वतीबीजांत पंच दश न्यासान कुर्यात // तद्यथा // ॐ हसहाँहृदयाय नमः // 1 // ॐ हमही शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ हमही शिखायै वषट् // 3 // ॐ For Private And Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir पू० मं० म हगहों कवचाय हुम् // 4 // ॐ हमही नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ हस ही अस्त्राय फट् // 6 // इति प्रेतबीजन्यासः प्रथमः 1253 // 17 // 1 // ॐ हम नमः शिरसि // 1 // ॐ हम नमः बाह्वोः // 2 // ॐ हम नमः लिंगे // 3 // ॐ हमझे नमः नाभौ // 4 // ॐ हम नमः हस्तांगुलीषु // 5 // ॐ हमर्ने नमः पादांगुलीषु // 6 // इति सिंहबीजन्यानो द्वितीयः // 2 // ॐ झौं नरः ब्रह्मरंटे 3 // ॐ झौं नमः मुखे॥२॥ ॐ झौं नमः नेत्रद्वये // 3 // ॐ झौं नमः श्रीवायाम् // 4 // ॐ झा नमः नासापुटगोः॥५॥ ॐ झौं नमः कपोलयोः॥६॥ ॐ श्री नमः चिचुके // 7 // ॐ श्रीं नमः ब्रह्मरंधे // 8 // इति काणीजन्यासस्तृतीयः // 3 // ॐ मलहों नमः 5 / पादयोः // 1 // ॐ मलहों नमः हस्तयोः॥२॥ ॐ मलहों नमः करयोः // 3 // ॐ मलहों नमः नेत्रयोः॥४॥ॐ मलहों नमः कर्णयोः // 5 // ॐ मलहों नमः मुचे // 6 // ॐ मलहों नमः कुशिद्धये ॥७॥ॐ मलहों नमः लिंगे // 8 // इति सत्यातीजन्यास "चतुर्थः // 4 // ॐ नमः चिबुझे // 1 // ॐ श्रृं नमः पादयोः // 2 // ॐ श्रृं नमः कर्मयोः // 3 // ॐ शुं नमः हृदये // 4 // 2|ॐ नमः मुखे // 5 // ॐ अं नमः पादयोः // 6 // ॐ नमः नानौ // 7 // ॐ नमः पादयोः // 8 // इति महायजन्यासः पंचमः // 5 // ॐ श्रृं नमः हृदये।॥ 1 // ॐ पूँ नभः सव्यकुक्षी // 2 // ॐ श्रृं नमः हृदये // 3 // ॐ ग्रं नमः वामकुक्षी ॥४॥ॐ नमः दो // 5 // ॐ नमः दक्षपादतले // 6 // ॐ ग्रं नमः हृदये // 7 // ॐ अं नमः वामपादतले॥८॥ ॐ नमः हृदये // 9 // इति / प्राणवीजान्यासः परः // 6 // ॐ नमः गलघंटिकाया // 3 // ॐ नमः नाभौ // 2 // ॐ बुं नमः बंटिकायाम् // 3 // ॐ नमः हृदणे // 4 // इति घंटानीजन्यासः सप्तमः॥७॥ॐ रघु नमः मस्तके॥३।। ॐ न्यूं नमः पादयोः।।२।। ॐ न्यूं नमः श्रीवायाम् // 253 // For Private And Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // 3 // ॐ ह्यूं नमः / नाभिमडले // 4 // ॐ नमः गले // 5 // ॐ ख्यं नमः हृदये // 6 // ॐग्यू नमः जंघयोः / / 7 / ॐ ज्यूं नमः नेत्रयोः // 8 // ॐ न्यूँ नमः कर्णयोः // 9 // ॐ यं नमः बाह्वोः॥ 10 // ॐ नमः स्तनयोः // 13 इति ख्यातिनीजन्यामोष्टमः // 8 // ॐ ॐ नमः हृदये || ||ॐ ॐ नमः मुखे // 2 // ॐ ॐ नमः पादयोः ॥३॥ॐॐ नमः हस्तयोः॥ 4 // ॐ ॐ नमः कर्णयोः॥ 5 // ॐ ॐ नमः नामापुटयोः // 6 // इति मूलबीजन्यामो नवम : // 9 // ॐ भरलमहीं नमः मुखे ॥१॥ॐ सरलसहीं नमः नेत्रदये // 2 // ॐ भरललहीं नमः कर्णद्रये // 3 // ॐ भरलसहीं नमः कपोलयोः // 4 // ॐ भरलमही नमः डयोः॥॥ ॐ भरलमहीं नमः कंठदेशे॥६॥ॐ भरलमहीं नमः स्तनयोः॥७॥ ॐ भरलमही नमः हृदये ॥८॥ॐ भरलसहीं नमः पादयोः!! 9 // ॐ भरलमहीं नमः चिबुके // 10 // ॐ भरलमही नमः मस्तके // 3 // ॐ भरलमही नमः बाहोः॥ 12 // ॐ भरलसहीं नमः स्कंधयोः // 13 // ॐ भरलसहीं नमः दंतपत्त्योः // 14 // ॐ भरलमही नमः ब्रह्मरंटे 15 // // ॐ भरलसहीं नमः आधारे // 16 // ॐ भग्लसहीं नमः भ्रमध्ये // 17 // इति भामरीबीजन्यामो दशमः / / 100 ॐ नमरलमरक्षरशरहसीं नमः शिरसि ।।1॥ॐ नमरलमरक्षरशरहसीं नमः गंडयोः।। 2 / / ॐ नमरलमरक्षरशरहमीं नमः दवे // 3 // इति आकृतीबीजन्याम एकादशः // 11 // ॐ करलमरमरीं नमः नेत्रयोः ।।१।।ॐ करलमरमरी नमः कर्णयोः / / 2 / / ॐ करलसरमरी नमः नाभौ // 3 // ॐ करलसरमरीं नमः लिंगे।।४॥ ॐ करलसरमरी नमः गुदे॥५॥ इति कालबीजन्यासो द्वादशः 11 12 // ॐ क्षरशरहीं नमः कपोलयोः।।१॥ ॐ क्षरशरहसीं नमः ब्रह्मरंधे // 2 // ॐ क्षरशरहसीं नमः दंतपत्त्योः // 3 // - For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० J0 खं० 2 // 254|| तरं० 10 इति विद्याबीजन्यासम्बय दाः // 13 // ॐ सहसहलकलइशरवरवलव ऊई नमः मस्तके // 1 // ॐ सहसहलकलइशरवरवलबऊई| नमः दक्षनेत्रे // 2 // एवं सर्वत्र / ॐ 11. वासनेत्रे // 3 // ॐ 19. दक्षकणे / / 4 / / ॐ 19 वामकर्ण // 5 // ॐ१९दक्षिणकपो ताले // 6 // ॐ 19 बामकपोले / / 7 / / ॐ 19 दक्षगंडके / / 8 / / ॐ 11 वामगंडके / / 9 / ॐ 19 चिबुके / / 10 / / ॐ 19. गले // 11 // ॐ 11. दक्षस्कंधे / / 12 // ॐ 11. वामस्कंधे // 13 // ॐ 19. दक्षस्तने / / 14 // ॐ 19 वामस्तने / / 15 // ॐ 11 हृदये // 16 // ॐ१९. दक्षकुक्षौ / / 17 / / ॐ११. वामकुक्षी।।1८॥ ॐ 11. नाभी / / 19 / ॐ 19 वक्षमि ॥२०॥ॐ 19. दक्षजंघायाम्।।२१॥ ॐ११. वामजंघायाम्।।२२॥ॐलिंगे।।२३॥ॐ१९दक्षमे२।।२४॥ ॐ 19 वाममेढ़े / / 25 / / ॐ१९ मूलाधारे॥२६॥ ॐ 10. दक्षगुल्फे // 27 // ॐ१९ वामगुल्फे॥२८॥ ॐ १९दक्षपादे॥२९॥ ॐ १९वामपादे॥३०॥ॐ१९दक्षपादांगुलीषु॥३१॥ॐ 19. वामपादांगुलीषु॥३२॥ॐ१९ब्रह्मरंधे।।३३॥ॐ१९मूलाधारे।।३४।। ॐ 19 ब्रह्मरंधे / / 35 / / इति शृंखलामहापराव्यवीजन्यासश्चतुर्दशः // 14 // ॐ कलडरसहरहक्षशरई ललाटे॥१॥इति सर्वत्र / / ॐ 12 मुखवृत्ते // 2 // ॐ 12 दक्षनेत्रे // 3 // ॐ 12 वामनेत्रे // 4 // ॐ 12 दक्षकर्णे ॥५॥ॐ 12 वामकर्णे॥६॥ ॐ 12 दक्षनासापुटे // 7 // ॐ 12 वामनासापुटे ॥८॥ॐ 12 दक्षगंडे ॥९॥ॐ 12 वामगंडे // 10 // ॐ 12 ऊोष्ट।।१३॥ ॐ 12 अधरोष्टे // 12 // ॐ 12 ऊदंतपंक्तौ // 13 // ॐ 12 अधोदंतपंक्ती॥१४॥ ॐ १२शिरसि // 15 // ॐ 12 मुखान्य तरे॥१६॥ॐ 12 दक्षबाहुमूले ॥१७॥ॐ 12 दक्षकपरे // 18 // ॐ१२दक्षिणमणिबंधे।।१९।।ॐ१२दक्षकरांगुलिमूले॥२०॥ For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir Nॐ१२दक्षकरांगुल्यये॥२३॥ॐ१२वामबाहुमूले॥२२॥ २वामकूपरे॥२३॥ॐ१२वाममणिबंधे॥२४||ॐ१२वामकरांगुलिमले ॥२५॥ॐ१२वामकरांगुल्यो॥२६॥ॐ१२दक्षपादमूले॥२७॥ ॐ 12 दक्षजानुनि॥२८॥ॐ२दक्षगुल्फे // 29 // ॐ१२ दक्ष पादांगुलिमूले।॥३०॥ॐ१२दक्षपादांगुल्यो।।३३॥ॐवामपादमूले॥३॥ॐ१२वामजानुनि।।३३॥ॐ२वामगुल्फे।।३४॥ ॐ १२वामपादांगुलिमूले॥३५॥ॐ१२वामपादांगुल्यो।।३६॥ॐ२दशा।।३७॥१२वामपाया।३८॥ॐ१२पृष्ठवंश।।३९॥ ॐ २नाभी॥४०॥ॐ१२जठरे॥४॥ॐ१२ हृदि।।४२॥ॐ२दक्षांस।।४३॥ॐ१२वामान।।४४॥ॐ१२ककुदि ॥४५॥ॐ२ हृदादिदक्षकरांगुल्यापर्यंतम् / / 46 / / ॐ 10 हृदयादियामकरांगल्यापर्यंतम्॥४७॥ॐ 12 हृदयादिदक्षपादांगुल्ययपर्यनम् // 18 // Mॐ१२हृदयादिवामपादांगुल्ययपर्यंतम् / / 41. // ॐ१२ नात्यादिहृदयपर्यतम्।।५०।। ॐ१२ हृदादिमुखार्यतं न्यसेत् // 51 // इति महासरस्वतीबीजमातृकान्यामः पंचदशः // 15 // इति पंचदशन्यासान् कृत्वा पीठदेवता न्यमेत / / अथ पीठदेवतान्यामः // ॐ में मंडूकाय नमः मूलाधारे।।३॥ ॐ का कालाग्निरुद्राय नमः स्वाधिष्ठाने॥२॥ ॐ कू कर्माय नमः नाचौ॥३॥ॐ अं अनंताय नमः। ॐ आं आधारशक्तये नमः॥ ॐ श्री क्षीरसागराय नमः॥ ॐ रं रत्नदीपाय नमः॥ ॐ सुं सुधांबुधये नमः॥ ॐ मं मणिमंडपाय नमः॥ ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः॥ॐ रं रनवेदिकायै नमः॥ इति हृदये॥ 4 // ॐ ध धर्माय नमः दशाम।।५।।ॐ ज्ञा ज्ञानाय नमः वामांमे॥६॥ ॐ वं वैराग्याय नमः वामोरी // 7 // ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः दोगे // 8 // ॐ अं अधर्माय नमः वदने ॥१॥ॐ अं अज्ञानाय नमः बामपाचे // 10 // ॐ अं अवैराग्याय नमः नाभौ // 13 // ॐ अं अनैश्वर्याय नमः दक्षय // 12 // ॐ आं आनंदकंदाय नमः // For Private And Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. 158 // सं सविनालाय नमः // ॐ सं सर्वतत्त्वपमाय नमः॥ ॐ अं प्रकृतिमयात्रायो नमः॥ ॐ वि विकारमयकमरेन्यो नमः॥ पं पंचाशपू० ख०१ वर्णपीजादयकार्णिकायै नमः / ॐ अंजमंडलाय द्वादशकलात्मने नमः / ॐ चन्द्रमंडलाय पोडशकलात्मने नमः ॥ॐशाम तं. अभिमंडलाय द्वादशकलात्मने नमः॥ ॐ नायबोधात्मने नमः।। ॐ रजःप्रयात्मने नमः॥ॐ तमोमोहात्मने नमः।।ॐआं आमने तरं० 10 नमः। ॐ परमात्मने नमः। ॐ अं अंतरात्मने नमः॥ ॐ ज्ञा ज्ञानात्मने नमः। ॐ मां मायातत्वात्मने नमः॥ॐ के कलातत्यात्मने | नमः॥ ॐ विं विद्यातत्त्वात्मने नमः। ॐ परतत्वात्मने नमः। ॐशिं शिवतत्त्वात्मने नमः॥इति हृदये॥१३॥ततः हृयेव पूर्वायष्टदिक्षु नव पाठशकीयसेत् / / ॐ वां वामायै नमः पूर्वभागे // ॐ ज्येष्ठाय नमः आभय // ॐ श्रेष्ठाय नमः दक्षिणे // ॐ रौं रौद्रायै नमः निते॥ ॐ का काल्यै नमः पश्चिमे॥ ॐ कंकलविकरण्यै नमः वायव्ये॥ ॐ वं बलविकरण्यै नमः उतरे // ॐ संबटप्रमथिन्यै नमः ऐशान्ये // ॐ सं सर्वभूतदमन्यै नमः ऊर्यभाग / / ॐ में मनोन्मन्यै नमः हृदयमध्ये ॥१४॥"ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशकि बुलायानंताय योगीठात्मने नमः" इति मंत्रेण सहृदये पीठ देवनायै आननं दत्वा ततः आवरणदेवतान्यासं कुर्यात् / / 15 / / अथा प्रावर गदेवतान्यासः // तत्र शिरमि। ॐ ह्रां वां हृदये देवाय भूतनाथाय नमः। 10 वी शिरसि देवाय आदिनाथाय नमः।।२॥ॐ है - शिखायां देवावानंदनाथाय नमः॥३॥ ॐ हैं व करचदेवाय सिद्धशाबरनाथाय नमः ॥४॥ॐही वो नेत्रदेवाय सहजान दनाथाय नमः // 5 // ॐवः अनदेवाय निःसीमानंदनाथाय नमः॥६॥ इति प्रथमावरणदेवन्यासः।।३। ललाटे डाकिनी पत्रयो नमः // 3 // ॐ शां शाकिनीपुत्रेभ्यो नमः // 2 // ॐ लांलाकिनीपुत्रेयो नमः // 3 // ॐ का काकिनीपुत्रेयो नमः For Private And Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // 4 // ॐ सां साकिनीपुत्रेभ्यो नमः // 5 // हा हाकिनीपुत्रायो नमः // 6 // ॐ मा मालिनीपुत्रेन्यो नमः // 7 // ॐ दें देवीपुत्रेत्यो नमः // 8 // ॐ मां मातृपुत्रेन्यो नमः // 9 // ॐ 5 रुदत्रयो नमः // 10 // ॐ ॐ ऊर्ध्वमुखपुत्रे / यो नमः // 11 // ॐ अं अधोमुखपुत्रेभ्यो नमः // 12 // इति द्वितीयावरणदेवतान्यासः / / 2 // कंठस्थाने ॐ | ब्रह्माणीपुत्रवटुकाय नमः // 3 // ॐ मां माहेश्वरीपुत्रबटुकाय नमः // 2 // ॐ की कौमारीपुत्रवटुकाय नमः // 3 // ॐ 3 वैष्णवीपुत्रवटुकाय नमः // 4 // ॐई इन्द्राणीपुत्रवटुकाय नमः // 5 // ॐ में महालक्ष्मीपुत्रवटुकाय नमः // 6 // ॐ वां वाराहीपुत्रवटुकाय नमः // 7 // ॐ चां चामुण्डापुत्रवटुकाय नमः // 8 // इति तृतीयावरणदेवतान्यासः // 3 // हृदये ॐ हे हेतुकाय नमः // 1 // ॐ त्रिं त्रिपुरांतकाय नमः // 2 // ॐ वें वेतालाय नमः // 3 // ॐ अंअभिजिताय नमः॥४॥ ॐ कां कालांतकाय नमः॥ 5 // ॐ के करालाय नमः // 6 // ॐ ए एयालाय नमः // 7 // ॐ श्रीं श्रीमाय नमः // 8 // ॐ अं अचलाय नमः // 9 // ॐ हां हाटकेशाय नमः // 10 // इति चतुर्थावरणदेवतान्यासः // 4 // नाभी ॐ श्री श्रीकंठाय नमः Mu // ॐ अं अनंतेशाय नमः // 2 // ॐ सूं सूक्ष्मेशाय नमः // 3 // ॐ अं अमीशाय नमः॥४॥ ॐ भारभूतीशाय नमः। su5 // ॐ अं अतिथीशाय नमः // 6 // ॐ स्थां स्थाण्वीशाय नमः // 7 // ॐ हं हरेशाय नमः // 8 // ॐ झिं झिंटीशाय नमः 9 // 9 // ॐ भौं भौतिकेशाय नमः // 10 // ॐ सं सयोजातेशाय नमः // 11 // ॐ अं अनुग्रहेशाय नमः // 12 // ॐ | रेशाय नमः // 13 // ॐ में महासेनेशाय नमः // 14 // इति पंचमहावरणदेवतान्यासः // 5 // स्वाधिष्ठाने ॐ को क्रोधीशाय PERM For Private And Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 1०म० // 256 // नमः॥१॥ॐ चं चंडीशाय नमः // 2 // ॐ पं पंचांतकेशाय नमः // 3 // ॐ शिं शिवोनमेशाय नमः ॥४॥ॐ ए एकरुदे | शाय नमः // 5 // ॐ * कूर्मेशाय नमः॥६॥ ॐ ए एकनेत्रेशाय नमः // 7 // ॐ चं चतुराननेशाय नमः // 8 // ॐ अंडा अजेशाय नमः // 9 // ॐ सं सर्वेशाय नमः // 10 // ॐ सों सोमेशाय नमः // 11 // ॐ लां लांगलीशाय नमः // 12 // ॐ दां दारुकेशाय नमः // 13 // ॐ अं अर्धनारीशाय नमः // 14 // ॐ उं उमाकांतेशाय नमः // 15 // ॐ आं आषाढीशाय नमः // 16 // इति षष्ठावरणदेवतान्यासः // 6 // मूलाधारे ॐ दं दंडीशाय नमः // 1 // ॐ अं अत्रीशाय नमः // 2 // ॐ मं| मीनेशाय नमः // 3 // ॐ में मेघेशाय नमः॥४॥ ॐ लों लोहितेशाय नमः // 5 // ॐ शिं शिखीशाय नमः // 6 // ॐ छं छगलंडेशाय नमः // 7 // ॐ विं द्विरंडेशाय नमः // 8 // ॐ मं महाकालीशाय नमः // 9 // ॐ वां वालीशाय नमः // 10 // ॐ भुं भुजंगेशाय नमः // 11 // ॐ पि पिनाकीशाय नमः / / 12 // ॐ खं खड़ीशाय नमः / / 13 / / ॐ वं वकीशाय नमः // 14 // ॐ श्वे श्वेतेशाय नमः / / 15 // ॐ भग्वीशाय नमः / / 16 // ॐ नं नकुलीशाय नमः / / 17 / / ॐ शिं शिवे शाय नमः // 18 // ॐ सं संवर्तकेशाय नमः / / 19 // ॐ दिं दिव्ययोगिन्यै नमः / / 20 // ॐ अं अंतरिक्षयोगिन्यै नमः। 21 // ॐ भू भूमिष्ठयोगिन्यै नमः // 22 // ॐ सं संवर्तयोगिन्यै नमः // 23 / / इति सप्तमावरणदेवतान्यासः // 7 // पादयोः ॐई इंद्राय वज्रहस्ताय नमः // 1 ॥ॐ अं अनये शक्तिहस्ताय नमः॥ 2 // ॐ यं यमाय दंडहस्ताय नमः // 3 // ॐ क्षनिरीतये खड्गहस्ताय नमः // 4 // ॐ वं वरुणाय पाशहस्ताय नमः // ५॥ॐ वा वायवे अंकुराहस्ताय नमः / / 6 // ॐ सं M // 2566 For Private And Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir सोमाय गदाहस्ताय नमः।। 7 // ॐ ई इशानाय त्रिशूलहस्ताय नमः / / 8 // ॐ ब्रह्मणे कमलहस्ताय नमः॥ 5 ॥ॐ अं अनं ताय चक्रहस्ताय नमः / / 10 / / इत्यष्टमावरणदेवतान्यासः // 8 // इति न्यासं कृत्वा श्रीकण्ठादिकलामातृकान्यासं कर्यात् // तथा च / ॐ अस्य श्रीकण्ठादिन्यासस्य दक्षिणामूर्तिषिः। गायत्री छन्दः ! अर्धनारीश्वरो देवता / हलो बीजानि / स्वराः शक्तयः चतुर्विध पुरुषार्थमिद्ध्यर्थं न्यामे विनियोगः // ॐ दक्षिणामूर्तिऋषये नमः शिरसि / / 1 / / गायत्रीछन्दसे नमः मुखे // 2 // अर्धनारी श्वरदेवताय नमः हृदि / / 3 // हल्बीजेन्यो नमः गुह्ये // 4 // स्वरशक्तिभ्यो नमः पादयोः॥५।। विनियोगाय नमः सर्वांगे / / 6 / / इति श्रीकंठादिना कलामातृकांतर्गतकप्यादिन्यामः / / ॐ ह्वा अगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ कहूँ मध्यमान्यां नमः // 3 // ॐ अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ ह्रीं कनिष्ठिकाश्यां नमः // 5 // ॐ ह्रः करतलकरपृष्टा। न्यां नमः॥ 6 // इति श्रीकंठादिना कलामातृकांतर्गतकरन्यासः॥ ॐ ह्वाँ हृदयाय नमः // 3 // ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ काह शिखायै वषट् ॥३॥ॐ कवचाय हुम // 4 // ॐ ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रः अस्त्राय फट् // 6 // इति श्रीकंठा दिना कलामातृकांतर्गतहृदयादिषडंगन्यामः // अथ ध्यानन // "पाशांकुशवराक्षत्रपाणिशीतांशुशेखरम् // व्यक्षं रक्तसुवर्णाभमर्धनारी विश्वरं बजे॥३॥ बन्धककांचननिभं रुचिराक्षमालां पाशांकुशौ च वरदं निजबाहृदंडैः।।बित्राणमिन्दुशकलाभरणं त्रिनेत्रमर्धाम्बिकेशमनिशंद वपुराश्रयामः॥२॥” इति ध्यात्वा श्रीकण्ठाद्यान न्यसेत् // तद्यथा-ॐ ह्रीं अं श्रीकंठेशपूर्णोदरीयां नमः मस्तके // 1 // ॐ हौं आं अनंतशशिवराजाभ्यां नमः आननवृने // 2 // ॐ ह्रौं इं सूक्ष्मेशशाल्मलीन्यां नमः दक्षिणनेत्रे // 3 // ॐ ह्रौं ई त्रिमूर्तिलोला For Private And Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं० म. क्षीयां नमो वामनेत्रे // 4 // ॐ ह्रौं उं अमरेशवर्तुलाशीभ्यां नमो दक्षकणे॥५॥ॐ ह्रौं ऊं अर्थीशदीर्घघोणात्यां नमो वामकणे॥६॥ // 25 // ॐ ह्रौं भारभृतीशदीर्घमुखीच्यां नमः दक्षनासापुटे / / 7 // ॐ ह्रौं के अतिथीशगोमुखीन्यां नमः वामनासापुटे // 8 // ॐ ह्रौं लं भ तं• स्थाण्वीशदीर्घजिह्वाभ्यां नमो दक्षगंडे॥९॥हाँ लं हरेशकुंडोदरीभ्यां नमः वामगंडे॥१०॥ॐ ह्रीं एं झिण्टीशोर्ध्वकेशान्यां नमः ऊवा। टे॥ 13 // ॐ ह्रीं ऐं भौतिकेशविकतमुखीभ्यां नमः अधरोठे // 12 // ॐ ह्रौं ओं सद्योजातेशज्वालामुखीच्यां नमः ऊर्ध्वदन्तपंको Film13 // ॐ ह्रौं आँ अनुग्रहेशोल्कामुखीभ्यां नमः अधोदन्तपंक्ती॥१४॥ ॐ ह्रीं अं अकरेशश्रीमुखीच्यां नमः शिरसि // 15 // ॐ वहीं अः महामनशविद्यामुखीस्यां नमः मुखमध्ये // 16 // ॐ ह्रीं के क्रोधीशमहाकालीभ्यां नमः दक्षस्कंधे // 17 // ॐ ही खं चंडेशसरस्वतीभ्यां नमः दक्षकपरे // 18 // ॐ ह्रौं गं पञ्चांतकेशोरीयां नमः दक्षिणमणिबंधे // 11 // ॐ ह्रीं शिवोत्नमेशत्र लोक्यविजयात्यां नमः दक्षहरू गुलिमले // 20 // ॐ ह्रौं ई एकरुद्रेशमंत्रशक्तिभ्यां नमः दक्षहस्तांगल्यः // 21 // ॐ हा चं कर्मशात्मशक्तियां नमः वामम्कंधे // 20 // ॐ हा छ एकाननेशभृतमातृकाभ्यां नमः वामपरे // 23 // ॐ ह्रीजं चतुराननेश लम्बोदरीभ्यां नमः वाममणिबंधे // 24 // ॐ हीं झं अंजेशद्रविणीच्यां नमः वामहस्तांगुलिमूले // 5 // ॐ ह्रीं सर्वेशनागरी न्यां नमः वामहस्तांगुल्यये // 26 // ॐ ह्रीं टं सोमेशखेचरीभ्यां नमः दक्षपादमूले // 27 // ॐ ह्रीं ठं लंगलीशमंजरीभ्यां नमः // 25 // दक्षजानुनि / / 28 // ॐ ह्रौं डं दारुकेशभागिनीभ्यां नमः दक्षगुल्फे // 21 // ॐ हाँ अर्धनारीश्वरेशवारणीच्यां नमः दक्ष | पादांगुलिमूले // 30 // ॐ ह्रौं णं उमाकांतेशवृकोदरीभ्यां नमः दक्षपादांगुल्यग्रे // 31 // ॐ ह्रीं तं आषाढीशपृतनाश्यां नमः For Private And Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassag www.kobatm.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra y armandir वामपादमूले // 32 // ॐ हौं थंदंडीशभद्रकालीभ्यां नमः वामजानुनि // 33 // ॐ ह्रौं दं अत्रीशयोगिनीयां नमः वामगुल्फे // 34 // ॐ ह्रौं , मीनेशशंखिनीभ्यां नमः वामपादांगुलिमूले // 35 // ॐ ह्रीं नं मेषेशतर्जनीभ्यां नमः वामपादांगुल्यो // 36 // ॐ ह्रौं पं लोहितेशकालरात्रिीयां नमः दशकुक्षौ // 37 // ॐ ह्रीं फं शिखीशकुण्डलिनीन्यां नमः वामकुक्षी // 38 // ॐ ह्रौं बं छागलण्डशकपर्दिनीभ्यां नमः पृष्ठे // 39 // ॐ ह्रां में विरण्डेशवज्रान्यां नमः नाभौ // १०॥ॐ ह्रौं मं महाकाले शजयान्यां नमः उदरे // 41 // ॐ ह्रीं यं त्वगात्मान्यां वालीशसमवेश्वरीभ्यां नमः हृदये // 42 // ॐ ह्रारं असगात्मान्यां भुजंगेशरेवतीभ्यां नमः दक्षांसे // 43 // ॐ ह्रौं लं मांसात्मन्यां पिनाकीशमाधवीन्यां नमः ककुदि // 44 // ॐ ह्रां व भेदआ। मायां खड्गीशवारुणीन्यां नमः वामांसे // 45 // ॐ ह्रीं शं अस्थ्यात्मन्यां केशवायवीच्यां नमः हृदयादिदक्षकरागांतम् // 46 // ॐ हौं पं मजामायां श्वेतेशरक्षोवधारिणीयां नमः हृदयादिवामकरायांतम् // 47 // ॐ ह्रां में शुक्रात्मन्यां भृग्वीशसहजान्यां नमः हृदयादिवामपादांतम् // 18 // ॐ ह्रौं हं प्राणात्मयां लकुलीशलक्ष्मीच्यां नमः हृदयादिदक्षपादांतम् // 49 // ॐ ह्रीं लं शक्त्यात्मान्यां शिवेशव्यापिनीच्यां नमः हृदयादिनात्यंतम् // 50 // ॐ ह्रौं शं परमात्मान्यां संवर्तकेशमायान्या नमः हृदया दिशिरोंतम् // 51 // इति विन्यस्य ध्यायेत् // अत्र रुद्राः स्मृता रक्ता धृतशूलकपालकाः॥शक्तयो रुद्रपीठस्थाः सिंदूरारुणविग्रहाः॥ करतोत्पलकपालात्यामलंकतकरांबुजाः // 1 // " इति श्रीकण्ठादिकलामातृकान्यासं कृत्वा प्रयोगोक्तन्यासादिकं कुर्यात् // ततः। पीठादौ रचिते लिंगतोभद्रमंडले सर्वतोभद्रमंडले वा तन्मध्ये मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः स्थापयेत // तत्र क्रमः / पुष्पाक्षतानादाय For Private And Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं०म० 3258 // o स्ववामभागे श्रीगुमायो नमः / / 1 // दक्षिणे गणपतये नमः // 2 // मध्ये स्वेष्टदेवतायै नमः // 3 // इति संपूज्य ततः पीठमध्ये ॐ पू० ख० : म मंडकाय नमः // 3 // ॐ कं कालाग्निरुद्राय नमः // 2 // ॐ आं आधारशक्तये नमः // 3 // ॐ कं काय नमः॥ 4 ॥ॐ अंज अनंताय नमः // 5 // ॐ पृथिव्यै नमः॥६॥ ॐ श्री क्षीरसागराय नमः // 7 // ॐ रं रत्नदीपाय नमः।॥ 8 // ॐ रं रत्नमंडपाय नमः॥९॥ ॐ के कल्पवृक्षाय नमः॥१०॥ ॐ रं रत्नवोदिकायै नमः॥११॥ ॐ रं रत्नसिंहासनाय नमः // 12 // इति पूजयेत् / आग्नेय्याम ॐ धं धर्माय नमः // 13 // नैर्ऋत्याम ॐ ज्ञा ज्ञानाय नमः ॥१४॥वायव्याम ॐ 0 वैराग्याय नमः॥१५॥ ऐशान्याम् // ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः // 16 // पूर्वे ॐ अं अधर्माय नमः // 37 // दक्षिणे ॐ अं अज्ञानाय नमः / / 18 / पश्चिमे ॐ अं अवैराग्याय नमः // 19 // उत्तरे ॐ अं अनैश्वर्याय नमः // 20 // इति पूजयेत् / / पुनः पीठमध्ये / ॐ आं आनंदकंदाय नमः // 21 // ॐ से | संविन्नालाय नमः // 22 // ॐ सं सर्वतत्त्वकमलासनाय नमः / / 23 // ॐ अंतिमयपत्रेन्यो नमः // 24 // ॐ विं विकारमयकेसरेन्यो। नमः // 25 // ॐ पं पञ्चाशद्वर्णाढ्यकर्णिकाभ्यो नमः॥२६॥ ॐ अं अर्कमंडलाय द्वादशकलात्मने नमः॥२७॥ ॐ सो सोममंडलायी / षोडशकलात्मने नमः // 28 // ॐ वं वह्निमंडलाय दशकलात्मने नमः // 21 // ॐ सं सत्त्वाय नमः // 30 // ॐ रं रजसे / नमः // 31 // ॐ तं तमसे नमः॥३२॥ ॐ आं आत्मने नमः॥३३॥ ॐ पं परमात्मने नमः // 34 // ॐ अं अंतरात्मने नमः // 35 // ॐ ह्रींज्ञानात्मने नमः॥३६॥ ॐ मं मायातत्त्वाय नमः॥३७॥ॐ कं कलातत्त्वाय नमः // 38 // ॐ विं विद्यातत्त्वाय नमः॥३९॥ ॐ पं परतत्त्वाय नमः // 40 // एवं पीठदेवताः संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत्॥पूर्व ॐ वां वामायै नमः॥१॥ आग्नेय्याम् ॐ ज्ये ज्येष्ठाये / For Private And Personal use only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir नमः // 2 // दक्षिणे। ॐ रौं रोयै नमः // 3 // नेत्ये ॐ का काल्यै नमः // 4 // पश्चिमे। ॐ कं कलविकरण्यै नमः // 5 // वायव्ये / / ॐ बं बलविकरण्यै नमः // 6 // उत्तरे / ॐ बं बलप्रमथिन्यै नमः // 7 // ऐशान्ये / ॐ मसर्वभूतदमन्यै नमः ॥८॥पीठमध्ये॥ ॐ प्रम मनोन्मन्यै नमः॥९॥इति पीठशक्तीः पूजयेत्॥ ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं ताम्रपाने निधाय धृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारांजलधारां |च दद्यात्। स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य // शक्तिगंधाष्टकेन यंत्रं विलिख्य "ॐ नमो भगवते बटुकाय मकलगुणात्मशक्तियुक्ताया नंताय योगपीठात्मने नमः॥” इति मंत्रेण पुष्पायासनं दत्वा वक्ष्यमाणं देवयंत्र पूजनं विनैव केवलं पीठमध्ये संस्थाप्य पात्रासादनं कुर्यात् तत्रादी साम्बकलशस्थापनम्॥देवदक्षिणे यर्शकर्दममिश्रितजलेन भूमि विलिप्य त्रिकोणं च कृत्वा जलेन प्रोक्ष्य ततत्रिकोणांतर्मायां ह्री'विलिब्य त्रि कोणेषु कटंत्रयेण संपूजयेत्॥तद्यथा / मलस्यखंड त्रयं कृत्वा अग्निकोणे प्रथमकटं दक्षिणकोणे द्वितीयकूटं वामकोणे तृतीयकूटं च संपूज्य त्रिकोणमध्ये ह्रीं कारदेशे ॐ ह्रीं आधार शक्तिीयो नमः / इति आधारशक्तीः पूजयेत् // ततः मूलेन नमः इति त्रिपदा आधारं प्रक्षाल्य त्रिकोणमध्ये संस्थाप्य ततः प्रथमकूटमुच्चार्य धर्मप्रददशकलाव्यातात्मने वह्निमंडलाय नमः इत्याधारं संपूज्य पूर्वादिक्रमेण दश वह्निकला लिंगस्थां पूजयेद्देवी पुस्तकस्था तथैव च॥ मंडलास्था महागायां यंत्रस्यां प्रतिमासु च // सौवर्ण राजते ताने पट्टे मतांचवा भुवि // बिना यंत्रण चेत्पूजा | देवतानप्रसीदति॥२ स्वयं टमोलोरयंरोचनागुरु॥कामीरमृगनाभिं चसायच मल पोद्भवम एष गंध: समाख्यातासर्वदा चंडिकाप्रियः ॥३'कुळावस्वर्णरुप्यशिलाकम कपाळानापु मुम्भपम। नारिकेलं च शंख च मुनाः शुक्तिसमुद्भवम्।।पुण्यवृक्षसमुहतं पात्रसंलोलितं शुभम् साध्यसाधकयोमध्ये पट विशद गुलं भवेत्॥ द्वादशांगुटमद्रच हाधोभागे तथांगुलम् द्वादशांगुलमध्यं तु तत्र संस्थापयेद्बुधः। स्वार्थ च द्वादश त्यक्त्वादिया च द्वादशं त्यजेताद्वादशांगुलम ध्यस्थं तब चाचनिधापयेत // 4 यक्षकर्दममाह धन्वतरि:-कारागरूकस्तूरीकुंकुम चंदन तथा // महासुगंधिमित्युको नामतो यक्षकदमः // 5 मुन्नवंदत्रयंकृत्वा फिटसंशोभवति। For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मै० म० यजेत् // तद्यथा / यं धूम्रार्चिषे नमः // 3 // रं ऊष्माय नमः // 2 // लं ज्वलिन्यै नमः // 3 // वं ज्वालिन्यै नमः // 4 // शं पं०खं०१ विस्फुलिंगिन्यै नमः // 5 // सुश्रियै नमः ॥६॥सं सुरूपायै नमः ॥७॥हं कपिलारे नमः // 8 // लं हव्यवाहायै नमः // 9 // शं कव्यवाहायै नमः॥१०॥इति पूजयेत् // ततो मूलेनास्त्राय फट / / इति कलशं प्रक्षाल्य आधारोपरि हस्तव्येन संस्थाप्य रक्तवस्वमाल्या दिभिभूषयित्वा ततो द्वितीयकूटमञ्चार्य "ॐ अर्थप्रदवादशकलाव्यामात्मने मूर्यमंडलाय नमः" इति कलशं संपूज्य नद्राह्ये पूर्वादिषु मूर्यस्य द्वादश कलाः पूजयेत्। तद्यथा / ॐ कं भं तपिन्यै नमः॥1॥ ॐ खं बं तापिन्यै नमः॥२॥ ॐ गं फं धूम्राय नमः॥३॥ ॐ घं पं मरीच्यै नमः॥४॥ ॐ डं नं ज्वालिन्यै नमः ॥१॥ॐ चं धं रुच्यै नमः // 6 // छं दं सुषुम्णायै नमः॥७॥ॐ जं थं भोगदायै नमः। // 8 // ॐ झंत विश्वाय नमः // 9 // ॐ जेणं बोधिन्यै नमः // 10 // ॐ टं टुं धारिण्यै नमः // 11 // ॐ ठंडं क्षमायै नमः N // 12 // इति पूजयेत् // ततः शुद्धोदकेन मुखपर्यंत घटमापूर्य " ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावार मरस्वति // नर्मदे मिंधु कावेरि जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु" इति तीर्थान्यावाह्य ततस्तृतीयकूटमुच्चार्य "ॐ कामप्रदषोडशकलाव्यामात्मने सोममंडलाय नमः" इति जले / पूजयित्वा पूर्वादिषु पोडश सोमकला यजेत् / तद्यथा-ॐ अं अमृतायै नमः // 1 // ॐ आं मानदायै नमः // 2 // ॐ इं पृषार्थ नमः // 3 // ॐ ई तुष्टयै नमः // 4 // ॐ उं पुष्टयै नमः // 5 // ॐ ॐ रत्यै नमः // 6 // ॐ ॐ धृत्यै नमः // 7 // ॐ | शशिन्यै नमः // ८॥ॐलं चन्द्रिकायै नमः // 1 // ॐलं कात्यै नमः // 10 // ॐएं ज्योत्स्नायै नमः // 11 // ॐ श्रियै नमः // 12 // ॐ ओं प्रीत्यै नमः / / 13 // ॐ औं अंगदायै नमः // 14 // ॐ अं पूर्गायै नमः // 15 // ॐ अः। 8 // 259 // For Private And Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पूर्णामृतायै नमः // 16 // इति पूजयित्वा देवं ध्यायेत् // इति साम्बकलशस्थापनम् // 1 // अथ सुधाकुंभस्थापनम् // स्वाम त्रिकोणं षट्कोणं वृत्तं चतुरस्र मंडलं कृत्वा शंखमुद्रया मंडलं स्पर्शयेत्। नतस्त्रिकोणांतरमयं बिलिख्य त्रिकोणेषु कूदत्रयं पूजयेत्। तद्यथा-- अग्निकोणे प्रथमकूटं दक्षिणकोणे द्वितीयकूटं वामकोणे तृतीयकूटं च पूजयेत॥ततः पदकोणेषु अग्निकोणे हृदयशक्तियां नमः। ऐशान्ये ॐ शिरःशक्तियां नमः।वायव्ये-शिखाशक्तियां नमःनिऋते-कवचशक्तियां नमःपूर्व-नेत्रशक्तियानमः।पश्चिमे-अश्वशक्तियां नमः इति| षडंगानि गंधपुष्पास्यां संपूज्य षट्कोणादहिवतुले अकारादिक्षकारांतं मातृकां संपूजयत॥ततो बर्तुलादहिश्चतरने पूर्वद्वारे उद्यानपीठाय नमः। दक्षिणद्वारे। जालंधरपाठाय नमः / पश्चिमद्वारे। पूर्णगिरिपीठाय नमः / उत्तरद्वारे / कामगिरिपीठाय नमः।। इति चतुःपीठानि गंधपुष्पान्या संपूज्य त्रिकोणमध्ये 'ॐ ह्रीं आधारशक्तिभ्यो नमः' इत्याधारशक्तीः पूजयेत्॥ततो 'मूलेन नमः' इति मंत्रणाधारद्रव्यं प्रक्षाल्य मंडलोपरि संस्थाप्य ततः प्रथमकूटमुच्चार्य ॐ धर्मप्रददशकलाव्यानात्मने वह्निमंडलाय नमः इति संपूज्य पूर्वादिषु दश वह्निकला यजेत् / तथा च ॐ यं धूम्रार्चिषे नमः // 1 // ॐ रं ऊष्माय नमः // 2 // ॐ लं ज्वलिन्यै नमः // 3 // ॐ वं ग्वालिन्यै नमः॥ 4 // ॐ विस्फुलिंग्यै नमः // 5 // ॐ पं सुश्रियै नमः // 6 // ॐ सं सुरूपायै नमः // 7 // ॐ हं कपिलायै नमः // 8 // ॐ लं हन्यवा हायै नमः // 1 // ॐ शं कव्यवाहायै नमः // 10 // इति पूजयेत् // ततः मूलेनास्त्राय फट् इति मंत्रण कलशं प्रक्षाल्य रक्तवस्त्र माल्यादिभिभूषयित्वा रत्नखचितं तत्पात्रं त्रिपदाधारोपरि हस्तव्येन संस्थाप्य द्वितीयकूटमुच्चार्य ॐ अर्थप्रदद्वादशकलाव्यातात्मने For Private And Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // म. म A सूर्यमंडलाय नमः / / इति मंत्रेण कलशं स्पृष्ट्रा पूर्वादिषु द्वादश मूर्यकला यजेत / तथा च / ॐ के भै नपिन्यै नमः ॥1॥ॐ सं पू खं० 1 तापिन्यै नमः // 2 // ॐ गं फंधम्राय नमः // 3 // ॐघ पं मरीच्यै नमः॥४॥ ॐ हुंनं ज्यालिन्यै नमः॥ ॥ॐ शाम त रुच्यै नमः // 6 // ॐ छ दं मपम्णायै नमः॥ 7 // ॐ जथं भोगदायै नमः // 8 // ॐझं तं विविश्वाय नमः / / 2. ॐ तर. 10 Jeणं बोधिन्यै नमः // 10 // ॐ टं टं धारिण्यै नमः // 11 // ॐ ठंडं क्षमाय नमः // 12 // इति पूजयेत् / / नतः मुवामित वश्वगालिततीर्थामृतेन घटमापूर्य्य तृतीयकटमुच्चार्य कामप्रदपोडशकलाव्यातात्मने सोममंडलाय नमः // इति मंत्रोक्ष्य तदमृते पोडशच न्त्रकला यजेत् // तथा च-ॐ अं अमृताय नमः // 3 // ॐ आं मानदायै नमः // 2 // ॐ हं पूपाय नमः // 3 // ॐई तुष्टय नमः // 4 // ॐ उं पुष्टय नमः // 5 // ॐ ॐ रत्यै नमः // 6 // ॐ धृत्यै नमः // 7 // ॐ शशिन्यै नमः // 8 // ॐ लं चन्द्रिकायै नमः // 1 // ॐ लं, कात्यै नमः // 30 // ॐएं ज्योत्स्नाय नमः // 13 // ॐ ए श्रियै नमः // 12 // ॐ ओंत्री त्यै नमः // 13 // ॐ औं अंगदायै नमः // 14 // ॐ अं पूर्गायै नमः / / 15 // ॐ अः पूणामृताय नमः / / 16 // इति मंपूज्य द्रव्यशुद्धिं कुर्यात् / / तथा च--"ॐ मुधादेवी विद्महे कामेश्वर्य च धीमहि / / तन्नो रक्तानि प्रचोदयात" इति मुधागायत्रीमंत्रण दश धाभिमंत्र्य मूलमंत्र दशधा जपेत् / / इति शुद्धिं संपाद्य शापमोचनं कुर्यात् / तथा च / ॐ एवमेव परं ब्रह्म स्थूलसूक्ष्ममयं ध्रुवम् // कचोद्भवां ब्रह्महत्यां तेन ते नाशयाम्यहम् // 1 // मूर्यमंडलसंभूते वरुणालयसम्भवे // आस्यबीजमये देवि शुकशापाद्विमुच्य। ताम् // 2 // वेदाना प्रणवो बीजं ब्रह्मानन्दमयं यदि // तेन सत्येन ते देवि ब्रह्महत्या व्यपोहतु // 3 // इति मंत्रण सुधायामाच्छाय For Private And Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मंत्रं पठेत् / / तत्र मंत्रः // ॐ सा सी मूं मैं सौं सः शुकशापविमोचिकायै मुधादेव्यै नमः॥ 1 // इति द्वादशधा जपेत् / / ॐ वां बी - _ बौं वः ब्रह्मशापविमोनिकायै सुरादेव्यै नमः' इति दशधा जपेत् / / 2 // ॐ ह्रीं श्रीं क्रां की * मैं क्रौं कः सुधाकृष्णशाप विमोचय 2 अमृतं स्रावय 2 स्वाहा' इति दशधा जपेत् // 3 // ॐ रां री रूं रै रौं रः रुद्रशापविमोचिकाय मुरा देव्यै नमः' इति दशधा जपेत् // 4 // इति शुक्रब्रह्मकृष्णरुद्रशापोद्धारणं कृत्वा दशदोषनिवारणं कुर्यात् // तथा च / / ॐ ह्रीं की परमस्वामिनि परमाकाशशून्यवाहिनि चन्द्रसूर्यामिभक्षिणि पात्रं विशविश स्वाहा' इति मंत्रं पात्रोपरि दशधा जपेत्॥१॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महेश्वराय विद्महे सुधादेव्यै च धीमहि // तन्नोर्द्धनारीश्वरः प्रचोदयात्' इति मंत्रं पात्रोपरि दशधा जपेत // 2 // इति मंत्र द्वयं पठित्वा ततो दशदोषनिवारणार्थ दशमंत्रद्वारा पात्रोपरि अक्षतान्निःक्षिपेत / तद्यथा-'ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पथिकदेवताभ्यो ह फट् स्वाहा' // 1 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं यरल आस्फालिनी ग्रामचांडालिनी हुं फट् स्वाहा // 2 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रौं हां संगमस्पर्शचांडालिनी हुँ / फट स्वाहा ॥३॥ॐ ऐं ह्रीं श्रीं फें घ ङ लं क्षं दृष्टिचांडालिनी हुं फट् स्वाहा ॥४॥'ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ग्लौं ग्लां क्रोधचांडालिनी हुँ। फट् स्वाहा // 5 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अं सृष्टिचांडालिनी हुं फट् स्वाहा // 6 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आं को घटचांडालिनी हुं फट् स्वाहा // 7 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चं छं तपनीयवधचांडालिनी हूं फट् स्वाहा / / 8 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्षं आं कों की निर्दयचांडालिनी हुं फट् स्वाहा // 9 // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं छ सों स्रौं खेदयखेदय सर्वजनसृष्टिस्पर्शदोषाय हुं फट् स्वाहा // 10 // ' इत्युक्त्वा कुंशोपरि अक्षता निःक्षिपेत / / ततः 'ॐ हंसः शुचिषद्वसुरंतरिक्षसद्धोतावेदिषदतिथिदुरोणसत् / / नृपदरसहतसव्योमसदजागोजाऋतजा अद्रिजातं 66 For Private And Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मै० म० बृहत।।१।।' इत्यनेन त्रिवारं द्रव्योपरि पठित्वा गधपुष्पाणि निःक्षिप्य द्रव्यंशुद्धमिति भावयन् दोषरहितद्रव्यमध्ये आनंदभैरवमानं पू० खं० 1 1261 // [दभैरवीं च ध्यायेत॥ अथानंदभैरवध्यानम् / / 'सूर्यकोटिप्रतीकाशं चंद्रकोटिसुशीतलम् ॥अष्टादशभुज देव पंचवक्त्रं त्रिलोचनम्।।३॥शाम तं• अमृतार्णवमध्यस्थं ब्रह्मपद्मोपरि स्थितम् // वृषारूढं नीलकंठं सर्वाभरणभूषितम् // 2 // कपालखट्वांगधरं बंटाडमरुवादिनम् // पाशांकु तरं०१० शधरं देवं गदामुसलधारिणम् / / 3 / / खड्गखेटकपट्टीशमुद्गरं शूलकुंतलम् // विधृतं खेटकं मुंडं वरदाभयपाणिकम् // 4 // लोहितं देवदेवेशं भावयेत्साधकोनमः // 5 // ' इति ध्यात्वा // ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वं हसक्षमलवरयूं आनंदभैरवाय वौषट' इति मंत्रेणानंद और त्रिः संपूज्य आनंदभैरवीं ध्यायेत् // तद्यथा-"भावयेच्च सुरां देवीं चन्द्रकोटियुतप्रभाम् // हेमकुंदेंदुधवलां पंचवक्लां त्रिलोचनाम् // 3 // अष्टादशभुर्युक्तां सर्वानंदकरोद्यताम्॥प्रहसंती विशालाक्षी देवदेवस्य संमुखीम्॥२॥"इति ध्यात्वा ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हसक्षमलवरयीं सुधादे व्य वापट / ' इत्यानंदभैरवीं संपूजयेत / ततः स्थालीमध्ये किंचिद्रव्यं गृहीत्वा द्रव्यमध्ये शक्तिचक्रं विलिख्य तदभावे त्रिकोणदक्षावर्तन विलिस्य ऊर्ध्वरेखायाम-अआइईउऊंटुलऐंओंआँअंअः दक्षिणरेखायाम-कखंगंधचंछंजझंत्रंटठंडंढणतं उत्तररेखायाम-थंदधनपफ। भमयरलवंशपमहं दक्षिणपार्श्व-ॐ लं नमः वामपाच-ॐ शं नमः त्रिकोणमध्ये-कामकला 'ई' इति विलिख्य दव्यमध्ये अमृतत्वं विचिंत येतातत्र मंत्र:-"ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं अमृते अमृतोद्भव अमृतवर्षिणि अमृतस्वरूपिणि अमृतं स्रावयस्रावय शुक्रादिशापात सुरां मोचयमोचय मोचिकायै नमः” इति विचिंतयेत् / ततः ह्रीं ॐ जूं मः” इति मृत्युंजयमंत्रं द्वाविंशतिवारं जपित्वा तेनैव मंत्रेण द्रव्यं कलशे शिवा 9 // 26 // For Private And Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मूलेनाष्टधाभिमंत्र्य मुधामंत्रेणाभिमंत्रयेत् // तत्र मंत्रः / “पावमानः परानंदः पावमानः परो रसः।। पाबमानं परं ज्ञानं तेन ते पावयाम्य हम्" इति अभिमंत्रयेत-पश्चाद्धेनुमुद्रयामृतीकृत्य मत्स्यमुद्रयाच्छाद्य कवचेनावगुंख्य चक्रेण संरक्ष्य अस्त्रेण च्छोटिकाभिर्दशदिग्बंधनं कृत्वा / कलशं ध्यायेत / / अथ कलशध्यानम् / / “देवदानवसंवादे मध्यमाने महोदधौ / उत्पन्नोसि महाकुंभ विष्णुना विधृतः करे।।३।।त्वत्तोये सर्वदेवाः म्यः न वेदाः समाश्रिताः॥ त्वयि तिष्ठति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः॥२॥शिवस्त्वं च घटोमि त्वं विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः आदित्याद्या ग्रहाः सर्वे विश्वेदेवाः सपैतृकाः॥३॥ त्वयि तिष्ठति कलशे यतः कामफलप्रदाः॥ त्वत्प्रसाददिमं यज्ञं कर्तुमीहे जलोद्भव // ॥४ावदालोकनमात्रेण भुक्तिमुक्तिफलं महत् // सान्निध्यं कुरु जो कुंन प्रसन्नो भव सर्वदा॥५॥"इति ध्यात्वा घटसक्तं पठेत् // अथ घटसक्तम् “समुद्रे मथ्याने तु क्षीरोदे सागरोनमे॥ तत्रोत्पन्नां सुरां ध्यायेत्कन्यकारूपधारिणीम्॥३॥ अष्टादशभुजां देवीं रक्तांतायतलो चनाम् // आपीनवर्णा स्वर्णाभां बहुरूपां परां सुराम्॥२॥ तां सर्वा तु मुरां सर्वदेवानामभयंकरीम् ॥या सुरा मा रमा देवी यो गंधः सा जनाईनः // 3 // यो वर्णः स भवेला यो मदः स महेश्वरः ।।स्वादे तु संस्थितः सोमः शब्दसंस्थो हुताशनः॥४॥ इच्छायां मन्मथो देवः पाताले तु च भैरवः // घटो बना रमो विष्णुषिदवो रुद्र एव च // 5 // हुंकार ईश्वरः प्रोक्तो हन्मोदस्तु सदाशिवः॥ घटमुले स्थिती ब्रह्मा घटमध्ये तु माधवः // 6 // घटकंठे नीलकंठो घटाये सर्वदेवताः // लब्धी हि वारुणी देवी महामांसचरुप्रिया // 7 // सर्वविद्या त या देवी सुरादेवि नमोस्तु ते // अनेन घटसूक्तेन द्रव्यशुद्धिः प्रजायते॥८॥” एवं घटमूक्तं पठित्वा कलशे प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात् // अथ स्यामारहस्ये अमृतं चिंतयेद्व्यमष्टधा त्वमृतं जपेत् // अष्टधा मूलमंत्रं च जपेत्या घटं ततः।। For Private And Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabat.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म. म प० सं०२ कराना // 262 // तरं० 10 कलशप्राणप्रतिष्टाप्रयोगः // करेणाच्छाय ॐ आं ह्रीं को य र लं वं शं षं से हंसः सोहं श्रीमटुकोरवस्याधारसहितस्य कलशेस्मिन् अग्निसूर्यमोमकलानां प्राणा इह प्राणाः / पुनः ॐ आं ह्रीं को यरं लं वं शं पं सं हंसः सोहं श्रीमदृटुकभैरवस्यास्मिन्कलशे जीव इह स्थितः।पुनः ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वंशं पं सं हमः सोहं श्रीमदृटुकभैरवस्यास्मिन्कलशे सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वकचक्षुर्जिह्वाश्रोत्र घाणपाणिपादपायूपस्थानि इहवागत्य सुखं चिरं तिष्ठतु स्वाहा॥३॥इति प्राणान्प्रतिष्ठाप्य गंधादिभिः संपूज्य तत्र कलशे चतुर्दिक्षु पंच रत्नानि पूजयेत् / तद्यथा-पूर्व ॐ ग्लू गगनरत्नाय नमः। दक्षिणे-ॐ स्लं स्वर्गरत्नाय नमः / पश्चिमे-ॐ प्लं पातालरत्नाय नमः। उत्तरे-ॐ| नाम्लं मर्त्यरत्नाय नमः। मध्ये-ॐ लूं नागरत्नाय नमः // एवं पंचरत्नानि संपूज्य पंचमुद्रया नमस्कृत्य कलशे बलिं दद्यात् // तद्यथा कुंभसमीपे रक्तचंदनसिंदूरकुंकुममेकत्र मेलयित्वा तेन त्रिकोणवृत्तचतुरस्रमंडलं कृत्वा तत्र सर्वपथिकदेवेन्यो नमः' इति गंधपुष्पाभ्यां संपूज्य तदुपरि द्रव्यशुद्धिमीनमुद्रान्वितं बाल निधाय तत्वमुद्रया बालमुत्सृज्यतं बलिं वामपाणिना कलशोपरि त्रिधा धामयित्वा मूलमच्चरन पूजाबाह्ये निःक्षिपेत् // इति सुधाकलशस्थापनविधिः ॥अथ शुद्धिस्थापनवि० // कुंभेस्य वामतः शुद्धिं संस्थाप्य पात्रासादनं कुर्यात॥ तद्यथा-कुंभस्य वामतः सांबकलशस्थापनोक्तविधिना शुद्धिं संस्थाप्य धेनुमुद्रां प्रदर्य "ॐ उद्रुध्यस्व पशो त्वं हि न पशुस्त्वं शिवोसि भो॥ शिवाकत्यमिदं पिंडं यतस्त्वं शिवतां बज ॥१॥ॐ पशुपाशाय विद्महे शिरश्छेदाय धीमहि / तन्नश्छागः प्रचोदयात् // 2 // " इति त्रिवार पठेत् // इति शुद्धिस्थापनम् // इति शुद्धिं संस्थाप्य पात्रासादनं कुर्यात् / / अथ पात्रासादनप्रयोगः॥ तत्रादौ शंखस्थापनप्रयोगः।। // 262 // For Private And Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shiv a Aradhana Kendra www.kabatin.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir देववामतः सांबकलशस्थापनोक्तविधिना शंख संस्थाप्य गंधादिभिः संपूज्यानिमंत्रयेत् / नत्र मंत्रः // " ॐ शंखादी चन्द्रदेवत्यं कक्षो / वरुणदेवता // पृष्ठे प्रजापतिश्चैवमये गंगा सरस्वती // 1 // त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाजया // शंखे तिष्टंति विप्रेन्द्र त स्माच्छंखं प्रपूजयेत // 2 // " इत्यभिमंत्र्य प्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः॥ ॐ वं पुरा मागरोलन्नो विष्णुना विधृतः करे // निर्मितः सर्वदेवश्च / / पांचजन्य नमोस्तु ते // 1 // " इति संपार्थ्य / " ॐ पांचजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि // तन्नः शंखः प्रचोदयात // " इत्यष्टया| जपित्वा शंखमद्रां प्रदर्शयेत् // इति शंखस्थापनम् // अथ विशेषाघस्थापनम् // आत्मश्रीचक्रयोर्मध्ये स्वपुरतः मांबकलशोतविधिना। विशेषार्घपदमचरन विशेषार्घ संस्थाप्याभिमंत्रयेत // तत्र मंत्रः // "ॐ की सी ब्रह्माण्डपण्डसंभतमशेषरममंभवम् // आपरित। महापात्रं पीयपरसमावह // 1 // अखंडेकरमानंदकलेवरसुधात्मनि // स्वच्छंदस्फुरणान्मंत्रान्निधेह्यकुलरुपिणी // 2 // की अकुलस्था। मृताकारे सिद्धज्ञानकलेवरे // अमृतत्वं निधेह्यस्मिन्वस्तुनि किन्नरूपिणी // 3 // सौः तद्रूपेणेकरस्यं च कृत्वास्यैतत्स्वरुपिणी // भ त्वा पराभूताकारं मयि विस्फुरणं कुरु // 4 // अनेन मंत्रेणार्यमतिमंध्य पूर्ववत पंचरत्नानि पूजयेत।। इति विशेषर्घस्थापनम्॥इति वि | शेषाय स्थापयित्वा देवदक्षिणतः प्रोक्षणीपात्रमेवमेवविधिना स्थापयेत्॥ इति त्रिरयस्थापनम् ॥३॥ततो विशेषार्धाद्वामतः श्रीपात्रं 1 गुरुपात्रं 2 भरवपात्रं शक्तिपात्रं 4 योगिनीपात्रं 5 भोगपात्रं 6 वीरपात्रं 7 आत्मपात्रं 8 बलिपात्र 9 एतानि नव पात्राणि दक्षिणे 1 वामे शंख प्रतिष्ठाप्य मध्ये चाय प्रकल्पयेत्॥ दक्षिणे प्रोक्षणीपात्रम त्रयविकसने // दृष्ट्वा पात्रं देवेशि ब्रह्माया देवताः सदा / / नृत्यति सर्वयोगिन्यः प्रीताः। तसिदि ददत्यपि // आदौ कुंभ तथा शंख श्रीपावं शक्तिपात्रकम् // गुरुपात्रं वीरपात्र बलिपात्र तथैव च। -09-3050 For Private And Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.bath.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir CW पाया-चमनीयमधुपर्का इति चत्वारि पात्राणि सायकलशोतविधिना स्थापयेत् // अशक्तश्चेद्गुरुवीरात्मबलिभोगेति पंचपात्राणि पाद्या ध पचारार्थमेकं वा पात्रं स्थापयेत् // तत्राप्यशक्तश्चेना एकमेव शंख संस्थापयेत् / / अथ घंटास्थापनप्रयोगः // देवदक्षिणतः घंटांत संस्थाप्य नोंद कत्या पूजयेत // तथा च ॐ भर्भवः सः गरुडाय नमः / आवाहयापि सर्वोपचारार्थ गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नम तरं०१० स्करोमि " इत्याबाह्य / “ॐ जगद्धने मंत्रमातः स्वाहा " इति मंत्रण घंटास्थितगरुडं घंटा च संपूज्य गरुडमुद्रां प्रदर्शयेत / / इति / प्राचंटास्थापनम्॥अथ अखण्डदीपस्थापनप्रयोगः॥देवस्य दक्षिणभागे घृतदीपं वामे तैलदीपं स्थापयेत॥तथा च / दीपपात्रं गोघृतेन तैलेन / वाऽऽपर्य एकविंशनितंतुभिवति निःक्षिप्य प्रणयेन (ॐ) प्रचाल्य सुदर्शनमंत्रेण धृतदीपं पूजयेत् / / सुदर्शनमंत्रो यथा-ॐ राँग्रूर र सुदर्शनायात्राय फट् स्वाहा" इति मंत्रेण गंधपुष्पाग्यां पूजयेत् // तैलदीपं पाशुपतासमंत्रण पूजयेत॥पाशुपतास्त्रमंत्रो यथा-"ॐ श्ली पशु हूं फट् स्वाहा " इति मंत्रेण पूजयेत् // इति संपुज्य हस्तद्वयेन दीपशिखां स्पृष्ट्वा मंत्रं पठेत // तत्र मंत्रः // ॐ अधोराय घोरत माय महारौद्राय वीरभद्राय ज्वालामालिने नर्वदुष्टप्राणोपसंहात्र हुं फट् स्वाहा” इति पठित्वा तेजमात्मानं समर्प्य चिनं शोधयेत् // तथा च- हुं फट् स्वाहा इति मुखे // 3 // ॐ रक्षरक्ष हुं फट् स्वाहेति हृदये॥२॥हस्तं दत्वात्मरक्षा निधाय "ॐ" इति मंत्रेण चंदनपुष्पाणि करायां मर्दयित्वा पुष्पाक्षतानादाय "ॐ ते सर्व विलयं यांत ये मां हिंसंति हिंसकाः। मृत्युरोगभयक्लेशाः पतंतु रिपुमस्तके // 1 // " इति मंत्रेणैशान्यां दिशिदूरतः पुष्पं क्षिप्त्वा हस्तौ प्रक्षाल्याचमेत् // इत्यखण्डदीपस्थापनम् // इति दीपं संस्थाप्य गंधाक्षतादिपूजोपकर आगमार्थ तु देवानां गमनाथ तु रक्षसाम् // घंटानादं प्रकुर्वीत पाश्रादचंदा प्रपूजयेत् // दी धृतयुतं दक्षे तेलयुकं च वामतः / दक्षिणेच सितां वर्ति बामतो रक्तवर्तिकाम् // 2 // For Private And Personal use only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir णानि स्वदक्षिणे संस्थाप्य मूलेन 'नमः' इति भक्ष्य जलार्थ बृहत्वाव्यजनच्छतादर्शचामराणि च वामपार्थ निधापयेत् // अथ मांस शोधनम् // " ॐ पशुपाशाय विद्महे शिरच्छेदाय धीमहि / / तन्नो मांसः प्रचोदयात्” इति दशथा जो मांमः शुद्धो भवति // अथ / मीनशोधनम् // "ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् // उर्वारुकमिवबंधनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्” इति मंत्रण शोधयेत् // 4 // थ मुद्राशोधनम् // "ॐ गर्भ धेहि सिनीवालि गर्भ धेहि सरस्वति।।गर्भ ते आश्विनी धनां वर्धतां पुष्करबजौ ॥३॥"ॐ प्लं ग्लं ग्लं / स्वाहा” इति मंत्रेण मांसमीनमुद्राः शोधयेत् / / इति शोधयित्वा यंत्रस्य प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात् // अथ प्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः // देशकाली से कीर्त्य मम बटुकभैरवदेवतानूतनयंत्रे प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये इति संकल्पयेत॥अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य नमविष्णु महेश्वरा ऋषयः / ऋग्यजः सामानि च्छंदांसि / क्रियामयवपुःप्राणाख्या देवता / आं बीजम् ।हीं शक्तिः। कां कीलकम् / अस्य नृतनयंत्रे प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः॥ इति जलं क्षिपेत् // ततो यंत्रं करणाच्छाद्य ॐ आं ह्रीं को यं रं लं वं शं ष स हंसः सोहं अस्प बटुकभैरवमपरिवारयंत्रस्य प्राणा इह। प्राणाः॥१॥ पुनः ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं पं सं हंसः सोहं अस्य बटुकभैरयसपरिवारयंत्रस्य जीव इह स्थितः // 2 // पुनः Mॐ आं ह्रीं क्रौं यं रंलं वं शं से हंसः सोहं अस्य बटुकभैरवसपरिवारयंत्रस्य सन्द्रियाणि इह स्थितानि ॥३॥पुनः ॐआं ह्रीं की यँ र लँ व य स हँसः मोहं अस्य बटुकभरवमपरिवारयंत्रस्य वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःोत्रजिह्वायाणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं / / चिरं तिष्ठंतु स्वाहा // 4 // इति प्रतिष्ठाप्य “यःप्राणतोनिमिषतोमहित्वेवियेमइति मन्निति" त्रिवारं पठेत् // “मनोजूतिर्जुपतासुप्रतिष्ठाप्रतिष्ठान इत्युक्त्वा संस्कारसिद्धये पंचदशप्रणवावृत्तीः कृत्वा अनेन बटुकभैरवमपारंवारयंत्रस्य गर्भाधानादिपंचदशमस्कारान्मंपादयामीति वदेत् // For Private And Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० मन इति प्राणान् प्रतिष्ठाप्य ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // शुद्धस्फटिकसंकाशंसहस्रादित्यवर्चसम् // नीलजीमूतसंकाशंनीलांजनसमप्रभम् // 1 0 खं० 1 अष्टबाहुं त्रिनयनं चतुर्बाहुं द्विबाहुकम् // दंष्ट्राकरालवदनं नूपुरारावसंकुलम् // 2 // भुजंगमेखलं देवमनिवर्णशिरोरुहम् // दिगंबरं // 264|| कुमारेशं वटुकारख्यं महाबलम् // 3 // खटागमसिपाशं च शूलं दक्षिणभागतः / / डमरूं च कपालं च वरदं भुजगं तथा // 4 // अग्निवर्णस तर०१० मोपेतं सारमेयसमन्वितम् / एवं ध्यात्वा हि बटुकं ततो यजनमारभेत् // 5 // तत्र मंत्रः // अक्षतानादाय "देवेश भक्तिमुलन परिवारसम जान्वित // यावत्या पूजयिष्यामि तावदेव इहावह // 1 // आगच्छ देव बटुक स्थाने चात्र स्थितो भव // यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वं / | सन्निधौ भव // 2 // " मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः श्रीवटुकभैरवदेवते इहागच्छ इह तिष्ट ' इत्यक्षतान्निःक्षिप्य आवाहनीमुद्रा प्रदर्शयेत् // इत्यावाहनम् // 3 // "तवेयं महिमा मूर्तिस्तस्यां त्वां सर्वगः प्रभो // भक्तिस्नेहसमाकष्टंदीपवस्थापयाम्यहम् // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवदेव इहतिष्ठ // इत्यक्षतान्निःक्षिप्य स्थापिनीमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति स्थापनम् // 2 // "अनन्या तव देवेश मूर्तिशक्तिरियं प्रभो / सान्निध्यं कुरु तस्यां वं भक्तानुग्रहतत्परः // 1 // " मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवदेवते इह सन्नि धेहि ' इत्यक्षतान्निःक्षिप्य सन्निधापनीमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति संनिधापनम् // 3 // "आज्ञया तब देवेश कृपांनोधे गुणांबुधे // आत्मानं देकतृतं त्वां निरुणधिम पितर्गुरो // 3 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवदेवते इह सन्निरुध्य // इत्यक्षतान्निःक्षिप्य सन्नि रोधनमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति सन्निरोधनम् // 4 // "अज्ञानाडुमनस्त्वादा वैकल्यात्साधनस्य च // यदपूर्ण भवेत्कृत्यं तदप्यभिमुखो भव // // " मूलमंत्रं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीबटुकभैरवदेव इह संमुखो भव' इत्यक्षतान्निःक्षिप्य मम्मुखीकरणमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति // 264 For Private And Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir H सम्मुखीकरणम् // ५॥"आभक्तवाङ्मनश्चक्षुःश्रोत्रदृरातिगद्युते // स्वतेजःपञ्जरणाशु वेष्टितो भव सर्वतः // 1 // " मूलमंत्रं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवदेव अवगुठितो भव' इत्यक्षतान्निःक्षिप्य अवगुंठनीमुद्रां प्रदर्शयेत्॥इत्यवगुंठनं कृत्वा सुस्वागतं कुर्यात // 6 // तत्र मंत्रः॥ “यस्य दर्शनमिच्छंति देवाःस्वाभीष्टसिद्धये।तस्मै ते परमेशाय स्वागतं स्वागतं च ते॥१॥" मूलमंत्रं पठित्वा 'ॐ श्रीवटुकौर वाय नमः' सुस्वागतं समर्पयामि // इति सुस्वागतम् // 7 // "देवदेव महाराज प्रियेश्वर प्रजापते / / आसनं दिव्यमीशान दास्येहं परमे श्वर / / 1 // " मूलमंत्रं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः बटुकभैरवाय नमः' आसनं समर्पयामि // इत्यासनं दत्त्वा करौ बद्धा प्रार्थयते 8 // तत्र मंत्रः // "स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यात्त्वमिहागतः // प्राकृतं त्वमदृष्ट्वा मां बालवत्परिपालय / / 1 // " मूलमंत्रं पठित्वा ॐ भ भुवः स्वः श्रीबटुकभैरवाय नमः' प्रार्थनां समर्पयामि नमस्करोमि // इति प्रार्थयित्वा पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूजयेत् // 9 // अथ पाद्यादिपूजनम् // "ॐ यद्भक्तिलेशसंपर्कात्परमानंदविग्रहः॥ तस्मै ते चरणाजाय पायं शुद्धाय कल्पयेत् // 1 // " मूलमंत्रं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवाय नमः' पाद्यं समर्पयामि // इति सामान्यापर्धोदकेने पाद्यं दद्यात ॥३॥"ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानंदलक्ष णम् // तापत्रयविनिमुक्त तवाय कल्पयाम्यहम् // 1 // " मूलमंत्रं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीबटुकभैरवाय नमः' अर्य समर्पयामि // इत्यर्थः॥२॥"ॐ सर्वकालुष्यहीनाय परिपूर्णसुखात्मने।मधुपर्कमिदं देव कल्पयामि प्रसीद मे॥१॥"मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीव टुकभैरवाय नमः' मधुपर्क समर्पयामि // इति मधुपर्कम्॥३॥"ॐ वेदानामपि वेदाय देवानां देवतात्मने॥आचामं कल्पयामीश शुद्धानां 1 अथवा शंखोदकेन। El For Private And Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वा मं० म० शुद्धिहेतवे // 3 // " मूलमंत्रं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः आचमनं समर्पयामि // इत्याचमनम् // 4 // ॐ इत्याचमनं दत्त्वा पञ्चामृतस्नानादि पू० खं० 1 कं च सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा जलम्नानं कुर्यात // तद्यथा-"ॐ गंगासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलैः॥ नापितोऽसि मया देव भै० तं. तथा शांतिं कुरुष्व मे // 3 // " मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवाय नमः' शंखोदकरनानं समर्पयामि // इति स्नानम् // 5 // Kalॐ सर्वभूषादिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे // मयवापादिते तुज्यं वाससी प्रतिगृह्यताम् // 1 // " मूलमंत्रं पठित्वा 'ॐ श्रीवटुकभैरवाय ॐ नमः' वस्त्रं समर्पयामि // इति वस्त्रम् // 6 // "ॐ नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीतं चोनरीयं गृहाण परमेश्वर // 1 // "| मूलमंत्रं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवाय नमः' यज्ञोपवीतं समर्पयामि॥इति यज्ञोपवीतम्॥७॥"ॐ श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं गंधाव्यं सुमनोहरम्॥विलेपनं सुरश्रेष्ट चंदनं प्रतिगृह्यताम्॥१॥" मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवाय नमः' गधं समर्पयामि // अंगुष्ठी कनिष्ठाकुललग्ना गंधमुद्रा / इति गंधम्॥८॥ ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाताः सुशोभिताः॥ मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर Vira॥"मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवाय नमः' अक्षतान्समर्पयामि॥इत्यक्षतान ॥९॥"ॐ माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्या कदीनि बै प्रभो // मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भवः स्वः श्रीबटु करवाय नमः' पुष्पं समर्पयामि॥2 तर्जन्यावंगुष्टमूललग्ने पुष्पमुद्रा // 10 // एवं पृष्पांतं पूजयित्वा ततो देवाज्ञयावरणपूजां कुर्यात् // अथावरणपूजा // तत्र क्रमः // " श्रीपदं पूर्वमुच्चार्य पादुकापदमुद्धरेत् // पूजयामि नमः पश्चात्पूजयेदंगदेवताः॥१॥” इत्युच्चरन् आवरणदेवताः पूजयेत् // ततः // पुष्पांजलिमादाय " ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरमप्रियः // अनुज्ञां देहि वटुक परिवारार्चनाय मे // 2 // " इत्युक्त्वा पुष्पांजलिं ! For Private And Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir www.kobalrm.org भैरवोपरि दत्त्वा आजां गृहीत्वा अत्र सर्वत्र पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्रयोगोतावरणपूजां कत्या धूपादिभिः पूजनं कुर्यात् // अथ धृपादिपूजाप्रयोगः // फडिति धृपात्रं संप्रोक्ष्य मूलेन नमः इति गधपुष्पान्यां संपूज्य पुरतो निधाय (ॐ रं ) इति वह्निबीजेनोपरि अग्निं संस्थाप्य तदुपरि मूलेन दशांगं दत्त्वा घंटा वादयन् “ॐ बनस्पतिरसोद्धृतो गंधाढ्यो गंध उत्तमः। आप्रेयः सर्वदेवानां धूपोय प्रतिगृह्यताम् // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः सांगाय सपरिवाराय सायुधाय मवाहनाय श्रीवटुकभैरवाय नमः'धूपं समर्पयामि॥इति नाभिदेशतः धूपयित्वा देववामतः धृपपात्रं निधाय तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगे धूपमुद्रांप्रदर्शयेत्॥ इति धूपम्॥३॥ ततो दीपपात्रे गोघृतमापूर्य एकविंशतितंतुभिर्वति निक्षिप्य प्रणवेन (ॐ) प्रचाल्य घंटां वादयन् नेत्रादिपादपर्यतं दीप प्रदर्शयेत् 'ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः // स बाह्यान्यतरं ज्योतिदीपोयं प्रतिगृह्यताम्॥३॥"मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः सांगाय सप | रिवाराय सायुधाय सवाहनाय श्रीवटुकभैरवाय नमः' दीपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य दक्षिणनागे निधापयेत् // ततः शंखजल मुत्सृज्य मध्यमांगुष्ठयोगे दीपमुद्रां प्रदर्शयेत् // इति दीपम् // 2 // देवस्याये जलेन चतुरस्र मंडलं कृत्वा स्वर्णादिनिर्मितं भोजनपा है। वित्र संस्थाप्य तन्मध्ये पसोपेतं माषपिष्टं तैलपक्कं बटकं च विविधप्रकारं वा नैवेद्य संस्थाप्य 'ॐ ह्रीं नमः' इति मंत्रेणाऱ्या जलेन संप्रोक्ष्य मूलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिणहस्तोपरि तादृशं वामं निधाय नैवेद्यनाच्छाद्य (ॐ यं) इति वायुबीजं षोडशधा संजप्य वायुना त तदोषान् संशोग्य ततो दक्षिणकरतले तत्पृष्ठलग्नं वामकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्य (ॐ 2) इति वह्निवीज पोडशवारं संजप्य तदुत्पन्ना मिना तद्दोषं दग्ध्वा ततो वामकरतले अमृतबीजं विचिंत्य तत्पृष्ठलग्नं दक्षिणकरतलं कृत्वा नैवेद्यं प्रदर्य (ॐ वं) इति सुधाबीज पोड For Private And Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० // 266 // शवारं संजप्य तदु थामृतधारयाप्लावितं विभाव्य मूलेन प्रोक्ष्य धेनुमुद्रां प्रदर्श्य मूलेनाष्टधाभिमंत्र्य गधापुष्पान्यां संपूज्य वामांगुष्ठेन नेवे पू० ख०१ द्यपात्रं स्पृष्ट्वा दक्षिणकरेण जलं गृहत्विा " ॐ सत्पात्रसिद्धं सुहविविविधानेकभक्षणम् // निवेदयामि देवेश सानुगाय भै० तं. गृहाण तत् // 1 // मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः सांगाय सपारंवाराय सायुधाय सवाहनाय श्रीमद्वटुकभैरवाय नमः' नैवेद्यंतरं० 10 समर्पयामि // इति जलमुत्सृज्य 'ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा' इति देवस्य दक्षहस्ते जलं दत्त्वा देवेन तज्जलं पाशितमिति भावयन् // ततो वामहस्तेनानामामूलांगुष्ठयोगे ग्रासमुद्रां प्रदर्शयेत् // दक्षिणहस्तेन प्राणादिपंचमुद्राः प्रदर्शयेत् // एवं पंच मुद्राः प्रदर्श्य देवं भुक्तवतं विभाव्य जलं दद्यात्॥ इति नैवेद्यम् // 3 // "ॐ नमस्ते देवदेवेश सर्वतृप्तिकरो वरः॥ परमानन्दपूर्णस्त्वं गृहाण जलमुत्तमम् // 1 // " मूलं पठित्वा "ॐ भूर्भुवःस्वः सांगाय सपरिवाराय श्रीमइटुकभैरवाय जलं समर्पयामि॥” इति मंत्रेण स्वर्णादिपात्र स्थं कर्पूरादिसुवासित जलं निवेद्य अंतःपटं दद्यात् // 4 // तद्यथा-"ब्रह्मेशाद्यैः सरसमभितः सोपविष्टः समंतात्सिंजद्वालव्यजननिकरैवीं ज्यमानो वयस्यैः // नर्मक्रीडाप्रहसनपरान्हासयन्पंक्तिभोक्तन भुंक्ते पात्रे कनकघटिते षड्रमान भैरवेशः॥॥ शालीभक्तं सुपक्कं शिशि रकरसितं पायसापूपसूपं लेह्य पेयं च चोष्यं सितममृतफलं घारकाद्यं सुखाद्यम् // आज्यं प्राज्यं सभोज्यं नयनरुचिकरं राजिकैलामरीच स्वादीयःशाकराजीपरिकरममृताहारजोषं जुषस्व // 2 // " इति अंतःपटं दत्त्वाचमनं दद्यात् // 5 // तद्यथा--" ॐ वेदानामपि वेदाय 1 अंगुष्ठतर्जनीमध्यमानामाभिः प्राणाय नमः इति प्राणमुद्रा प्रथमा+अंगुष्टतर्जनीमध्यमाभिःॐअपानाय स्वाहा इत्यपानमुद्रा द्वितीया+अंगुष्ठमध्यमानामाभि // 26 *व्यानाय स्वाहा इति व्यानमुद्रा तृतीया+अंगुष्टतर्जनीमध्यमानामाभिः ॐ उदानाय स्वाहा इति उदानमुद्रा चतुर्थी // सर्वांगुलीभिः ॐसमानायस्वाहा इति समान द्रा पंचमीः॥ For Private And Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir देवानां देवतात्मने / / आचामं कल्पयामीश शुद्धानां शुद्धिहेतवे // 1 // " मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः मांगाय सपरिवाराय श्रीमदटुक भैरवाय नमः' आचमनं समर्पयामि // इत्याचमनं दत्त्वा गंडूषार्थ मूलमंत्रेण जलं दद्यात // इत्याचमनम् // 6 // ततो गतसारं नैवेद्यं / किंचिदुद्धत्य “ॐ चंडेश्वराय नमः // " इति देवस्योच्छिष्टं चंडेश्वरायैशान्यां दिशि दद्यात् // अथ पंचबलिदानविधिः // ततो यंत्रस्य पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरेषु त्रिकोणवृत्तचतुरस्र मंडलं कृत्वा / / ॐ ह्रीं मंडलाय नमः॥” इति मंडलं संपूज्य // पूर्व- ॐवं वटुकाय नमः" है इति पाद्यादिभिः संपूज्य ततः पक्कांन्नपूर्णसलिलमीनमांस कमलाकार दीपचतुष्टययुक्तं वा बलिपात्रषु पूरयित्वा मीनमुद्रां प्रदर्श्य वामांगुष्ठाना मान्यां गृहीत्वा // “ॐ एह्येहि देवीपुत्र बटुकनाथ कपिलजटाभारभासुर त्रिनेत्र ज्वालामुख सर्वविन्नान्नाशय 2 सर्वोपचारसहित बलिं गृह 2 स्वाहा एष बलिबटुकाय नमः॥” इति मंत्रेण पूर्वदल उत्सृजेत् // 3 // ततो दक्षिणे-पूर्ववन्मंडलं मंपूज्य तन्मध्ये 'यां योगिनायो नमः॥' इति योगिनीत्यर्च्य पूर्ववत्पात्रे द्रव्यं पूरयित्वा योनिमुद्रां प्रदर्य दशांगुष्टनामाभ्यां बलिपात्रं गृहीत्वा // "ॐ ऊर्च ब्रह्मांडतो वा दिवि गगनतले भूतले निष्कले वा पाताले वा तले वा सलिलपवनयोर्यत्र कुत्र स्थिता वा // क्षेत्रे पीठोपपीठादिषु च कृतपद धूपदीपादिकेन प्रीत्या देव्यः सदा नः शुभबलिविधिना पांतु वीरेन्द्रवंद्याः // 1 // " "ॐ योगिनीयः स्वाहा सर्वयोगिनी हुं फट् स्वाहा 1 शारदातिलके-शाल्यन्नंपललंसपिर्लाजाचर्णानिशर्करा // गुडमिश्नरसापूपैर्मध्वक्तःपरिमिश्रितः // कृत्वा ग्रासं समाराध्य देवप्रागुक्तवर्मनः // रक्त चंदनपुष्पाद्यौनिशि तस्मै बळि हरेत् // तंत्रांतरेपि-राजसो मांसरक्तादयःपलत्रयसमन्वितः॥ आदावतेप्रयोगाश्च बटुकायबळिहरेत॥ विश्वसारतंत्रे-मेषकुक्कुटयोमा संशाल्पन्नंतसंप्लुतम् // लाजाचूर्णमपंचगुडामिक्षुसमन्वितम् / मरीचैजीरकैश्चैवगुडखंडैस्तशैवच // शालितंडुलभक्तंदगोक्षीरेणसमन्वितम् // अन्यत्रापिपलचर्यमाषचूर्णदधिक्षारघृतंतथा // गुडोदकेनसंयुक्तमिश्रीकृत्यविचक्षणः // इति चालें दद्यात // For Private And Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir म 7 एप बलियोगिनीभ्यो नमः" इति मंत्रेण बलिपात्रं दक्षिणमण्डल उत्सृजेत् // 2 // ततः पश्चिमे पूर्ववन्मंडलं संपूज्य तन्मध्ये-शं क्षेत्रपा लाय नमः' इति क्षेत्रपालमत्यर्च्य // पूक्तिपात्रे द्रव्यं पूरयित्वा अंकुशमुद्रां प्रदर्य दक्षांगुष्ठमध्यमानामान्यां बलिपात्रं गृहीत्वा “ॐ क्षांक्षी शं नो क्षः क्षेत्रपाल धूपादिसहितं बलिं गृहगृह स्वाहा पप बलिः क्षेत्रपालाय नमः” इति मंत्रेण बलिपात्रं पश्चिम मण्डल उत्सृजेत् // 3 ॥ततः उत्तरे-पूर्ववन्मंडलं संपूज्य तन्मध्ये 'गं गणेशाय नमः' इति गणेशमान्यर्च्य पूर्वोक्तपात्रे द्रव्यं पूरयित्वा दक्षा गुष्ठतर्जनीनामात्यां बलिपात्रं गृहीत्वा--"ॐ गां गी गूं ग गौं गः गणपतये वरवरद मर्वजनं मे वशमानय बलिं गृह्णयह एप बलिगं| गणपतये नमः” इति मंत्रेग बलिपात्रमुनरमण्डल उत्मृजेत् // 4 // ततो गणपतिसमीपे पूर्ववन्मण्डलं कृत्वा--ॐ ह्रीं व्यापकमण्ड लाय नमः" इति संपूज्य साधारणबलिं भाषभक्तं वा संस्थाप्य मृलेनाभिमंत्र्य तत्र धूपदीपादिभिः सर्वभूतानि संपूज्य तत्वमुद्रां प्रदर्य ॐ ह्रीं सर्वविन्नकद्भयः सर्वभूतेत्याहं स्वाहा एप बलिः सर्वभूतेत्यो नमः // इति मंत्रेण बलिपात्रं गणपतिसमीप उत्सृजेत् // इति पंच बलीन शक्तश्चेदेकमेव बलिं भैरवाय दद्यात् // इति पंचबलिदानम् // अथ पशुबलिदानप्रयोगः // अर्द्धरात्रे देवं संपूज्य पंचाब्दं सर्वलक्षणापेतं * छागायं पशुमानीय "ॐ वाराही यमुना गंगा करतोया सरस्वती // कावेरी चन्द्रभागा च सिंधुभैरवमागराः // // अजम्नाने ममे शानि सान्निध्यमिहकल्पय // पशुपाशविनाशाय हेमकूटस्थिताय च // पराय परमेष्टिने हूंकाराय च मूर्तये // 2 // " इति जलमभि मंत्र्य मूलेन नापयित्वा सिंदूरमाल्यादिभिरलंकृत्य देवस्याये संस्थाप्य मूलं पठित्वा गन्धमिश्रितार्योदकेन त्रिः संप्रोक्ष्य अत्रेण संरक्ष्य , कवचेनावगुंख्य धेनुमद्रयामृतीकृत्य कृतांजलिः प्रार्थयेत् // “ॐ डाग त्वं बलिरुपेण महानाग्यादुपस्थितः // प्रणमामि सदा भक्त्या / For Private And Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shei Katassagasul Gyanmandir रूपिणं बलिरूपिणम् // 1 // भैरवप्रीतिकामस्य दातुरापविनाशिने // भैरवबलिरुपाय बले तुल्यं नमोनमः // 2 // यज्ञार्थे पशवः मृष्टाः स्वयमेव स्वयंभुवा // अतस्त्वां घातयिष्यामि तस्माद्यज्ञे वधोऽवधः // 3 // " इति संपार्य प्रत्यंगं पूजयेत् // तथा च / “ॐ रुधिरवदनायै नमः / इति शिरसि // १॥ॐ चण्डिकायै नमः इति कपोले // 2 // ॐ चन्द्राकाम्यां नमः / इति चक्षुषोः॥३॥ ॐ बृहस्पतये नमः / इति कर्णयोः॥ 4 // ॐ सरस्व यै नमः / इति नासायाम् // 5 // ॐ उग्रदंतिकाय नमः / इति जिह्वायाम् / // 6 // ॐ महादतिकाय नमः / इति ग्रीवायाम् // 7 // ॐ पृथिव्यै नमः / इति उदरे // 8 // ॐ धर्माय नमः / इति जंघाचतु ठये // 9 // इति संपूज्य जलं गृहीत्वा "ॐ ह्रीं वरुणमंडलाधिष्ठितविग्रहाय पशुरूपभैरवाय इमं पशुं पोक्षामि स्वाहा” इति संप्रोक्ष्या ततस्तिलकुशजलं गृहीत्वा देशकालो संकीयांमुकगोत्रः श्रीमदमुकशाहं छागसमसंख्याकपंचवर्षावच्छिन्नश्रीमदबटुकौरवप्रीतिकामोऽ हमेताञ्छागान्यह्निदैवतान् श्रीमदटुकभैरवाय तुल्यं घातयिष्ये इति संपूज्य खड्गपूजां कुर्यात्॥तथा च / खगं पुरतो निधाय ॐ नीलं हयं समधिरुह्य पुरः प्रयांती नीलांशुकाभरणमाल्यविलेपनाढ्या // निद्रापुटेन भुवनानि तिरोदधाना खड्गायुधा भगवती परिपातु भक्तान् // M // 1 // " इति खड्गं ध्यात्वा "ॐ ह्रीं श्रीं नमो भगवति माहेश्वरि सर्वपशुजनमनश्चक्षुस्तिरस्करिणी कुरुकुरु स्वाहा // ॐ ह्रीं क्लीं ऐं। बाग्लौं तिरस्करिणी सकलजनवाग्वादिनी सकलपशुजनमनश्चक्षुःश्रोत्रजिह्वाधाणतिरस्करणी कुरुकुरु ठः ठः ठः स्वाहा इति मंत्रद्वयेन नमस्कृत्य 'ॐ ह्रीं ह्रीं खड्ग आं कालिकालि बजेश्वरि लोहदंडाना नमः' इति गंधादिभित्रिः संपूज्य खड्गोपरि सिंदूरादिना ह्रींकार विलिख्य “ॐ खड्गाय नमः" इति संपूज्य बलिकर्ण पशुगायत्रीं श्रावयेत् // तत्र मंत्रः॥"ॐ हीं बलिरूपाय विद्महे वटुकप्रियाय धी For Private And Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shellssagaur yanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra म. म. तरं० 10 महि // तन्नः पशुः प्रचोदयात्" इति बलिकणे श्रावयित्वा खड्गं हस्ते चादाय प्रार्थयेत॥ "ॐ असिर्विशमनः खड्गस्तीक्ष्णधारो दुरा सदः // श्रीगो विजयश्चैव धर्मपाल नमोस्तु ते // 3 // इत्यष्टौ तब नामानि स्वयमुक्तानि वेधमा॥ नक्षत्रं कनिका ने तु गुरुर्देवो महेश्व रः॥२॥ रोहिणी च शरीरं ते धाता देवो जनाईनः // पिता पितामहो देवस्त्वं मां पालय सर्वदा // 3 // नीलजीमूतसंकाश स्तीक्ष्णदंष्ट्रः कृशोदरः॥ भावशुद्धो मर्षणश्च अतितेजास्तथैव च // 4 // इयं येन धृता क्षोणी हतश्च महिषासुरः। तीक्ष्णधाराय शुद्धाय तस्मै खड्गाय ते नमः // 5 // भैरवीरमनाबुद्ध्या एकघाते तु घातयेत् // 6 // " इति खड्गं संप्रार्थ्य "ॐ रे वज्रामुरनाशाय देव कार्यार्थतत्परः // पशुश्छेद्यः स्वयं शीघ्र खड्गनाथ नमोस्तु ते॥१॥” इति पठित्वा “पशुपाशाय विद्महे विप्रकर्णाय धीमहि // तन्न। छागः प्रचोदयात्" इति मूलं पठित्वा श्रीबटुकभैरवाय इमं छागबलिं तुल्यमहं प्रददे // इति बलिस्कंधे खड्गं दत्त्वा सकलं रुधिरं मुण्ड च देवाग्रे कत्वा ॐ अद्य पंचवर्षावच्छिन्नश्रीवटुकभैरवप्रीतिकाम इमं छागरुधिरं समुण्डं श्रीवटुकभैरव तुत्यमहं प्रददे / / इति समर्प्य ततः "ॐ बलिं गृहंत्विमं देवा आदित्या वसवस्तथा // मरुतो येऽश्विनौ रुद्राः सुपर्णाः पन्नगा ग्रहाः॥३॥ असुरा यातुधानाश्च पिशाचोरग राक्षसाः // डाकिन्यो यक्षवेताला योगिन्यः पूतना शिवाः // 2 // जूंभिकासिद्धगन्धर्वा मल्ला विद्याधरा नगाः // दिक्पाला लोक / पालाश्च ये च विघ्नविनाशकाः॥ 3 // जगतां शांतिकर्तारो ब्रह्माद्याश्च महर्षयः॥ मा विघ्नं मा च मे पापं मा संतु परिपंथिनः॥४॥ सौम्या भवन्तु तृप्राश्च भूतप्रेतसुखावहाः // 5 // " इति निवेदयेत् / ततो हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य स्नात्वा तिलकं धृत्वा देवं संप्रार्थ्य पुष्पांजलिं च दत्त्वा बान्धवैः सह भुंजीत // एवमेव गजतुरङ्गादिना बलिं दद्यात् // “अनेन बलिदानेन सन्तुष्टो भैरवः स्वयम् // // 268 // For Private And Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobar.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir शत्रुसैन्यं विभज्याथ स्वगणेभ्यः प्रयच्छति // क्रुद्धः स जयेच्छीघ्रं नात्र कार्या विचारणा // 1 // " इति पशुबलिदानप्रयोगः // अथ तांतूलम् // "ॐ पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलान्वितम् // कर्पूरादिसमायुक्तं तांबुलं प्रतिगृह्यताम् // " मूलं पठित्वा 'ॐ भूर्भुवः स्वः बटुकभैरवाय नमः' तांबूलं समर्पयामि // इति तायलम्॥६॥ इति तांबूलं दत्त्वा छत्रचामरादीन सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण दद्यात अशक्तश्चेदारार्तिकं कुर्यात् // अथ आरार्तिकम् // शालिगोधमपिष्टेन सगुडजीरकेण च त्रिकोणाकारं मंडूकरूपं वा नव दीपान / स्वर्गादिस्थालीमध्ये संस्थाप्य घृतेनापूर्य कर्पूरादिवर्तानिःक्षिप्य मायाबीजेन (ही) प्रज्याल्य चक्रमुद्रां प्रदर्थ मूलेनारार्तिक्यं संपज्य मल पठित्वा देवोपरि नेत्रादिपादपर्यंत नववारं त्रिवारं वा भामयित्वा धंदा नादयेत। तत्र मंत्रः // "अंतस्तेजा बहिस्तेजा एकीकत्य निरंतरम् // त्रिधा देवोपरिनाम्य कुलदीपं निवेदयेत् // 3 // चंद्रादित्यो च धरणी विद्युदमिस्तथैव च // त्वमेव सर्वज्योतींषि आतित्यं प्रतिगृह्यताम्॥२॥"नृलं पठित्वा ॐ भूर्भुवःस्वः बटुकभैरवाय नमः' नीराजनं समर्पयामि॥ततो देवदक्षिणतः निशय शंखजलमुत्मजेता इति आरार्तिक्यम्॥ अथ प्रदक्षिणा // “यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि वै॥ तानि सर्वाणि नश्यतु प्रदक्षिणपदेपदे॥१॥"इति मंत्रेण तिम्रः प्रदक्षिणाः कृत्वा मूलमुच्चार्य "ॐ भूर्भुवः स्वःश्रीवटुकभैरवायनमः” प्रदक्षिणां समर्पयामि॥इतिप्रदाक्षिणां कृत्वा प्रपन्नं पाहि मामशिभीतं मृत्युग्रहार्णवात्॥” इति बदन् साष्टांग प्रणमेत्॥ अथ पुष्पांजलिः॥"नानासुगंधपुष्पाणि यथाकालोझ्यानि च। पुष्पांजलि मया दत्तं गृहाण भैरवेश्वर॥३॥मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीवटुकभैरवाय नमः" पुष्पांजलिं समर्पयामि॥ इति पुष्पांजलिं दत्त्वा ततस्तुति।। पाठेन देवं स्तुत्वा बद्धाजलिपूर्वकं प्रार्थयेत् // अथ प्रार्थना // "ज्ञानतोऽज्ञानतो बाथ यन्मया क्रियते शिव // मम त्यमिदं सर्वमिति For Private And Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www. bath.org Acharya Shei Katassagasul Gyanmandir मं० म० 1269 // तदेव क्षमस्व मे // 1 // अपराधसहस्राणि क्रियतेऽहनिशं मया॥दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर॥२॥अपराधो भवत्येव सेवकस्य / पू० ख०३ पदेपदे // कोऽपरः सहा लोके केवलं स्वामिनं विना // 3 // भूमौ स्खलितपादानां भूमिरेवावलंबनम् // त्वयि जातापराधानां त्वमेव / शरणं शिव // 4 // " इति बद्धांजलिपूर्वकं संप्रार्थ // ततः “यदुक्तं यदि भावेन पत्रं पुष्पं फलं जलम् // निवेदितं च नैवेद्यं गृहाण चानुकंपय // 1 // इति पठित्वा दवेस्य दक्षिणकरे पूजार्पणजलं दत्त्वा सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण मालायाः संस्कारान्संपाद्याशक्त * श्चेत्साधारणसंस्कारान् कुर्यात् // अथ साधारणमालासंस्काराः // जपार्थे रुद्राक्षमालामानीय क्वचित्पात्रे वामहस्तेनाच्छाद्य मूले। ना_दकेनायुक्ष्य वस्त्रेणाशोप्य "ॐ मालेमाले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी।।चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मात्त्वं सिद्धिदा भव // 1 // " इत्य नेन गंधपुष्पान्यां संपूज्य पुनः "ॐअविघ्नं कुरु माले त्वं सर्वकार्येषु सर्वदा॥"इति मंत्रेण दक्षिणहस्ते मालामादाय हृदये धारयन् स्वेष्टदेवतां ध्यात्वा मध्यमांगुलिमध्यपर्वणि संस्थाप्य ज्येष्ठाग्रेण नामयित्वा एकाग्रचित्तो मंत्रार्थं स्मरन् यथाशक्ति मूलमंत्र जपेत्॥ नित्यमेव समाना जपाः कार्या न तु न्यूनाधिकाः।। मूलमंत्रो यथा-"ॐ ह्रीं वटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं" इत्येकविंशत्यक्षरं मंत्र जपेत् // ततो जपांते "त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा मम॥ शुभं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्य च देहि मे ॥१॥""ॐ ह्रीं सिद्धयै नमः" इति मालां शिरसि निधाय गोमुखी रहसि स्थापयेत् // नाशुचिः स्पर्शयेत् नान्यस्मै दद्यात् // अशुचिस्थाने न निधापयेत् // स्वयो वानिवद् गुप्तां कुर्यात् // ततः कवचस्तोत्रसहस्रनामादिकं पठित्वा पुनः मूलमंत्रस्य ऋष्यादिन्यासं हृदयादिषडंगन्यासं च कृत्वा भा॥२६॥ 1 जपस्थानार्चनस्थानं मालापुस्तकदर्शनम् // स्वभक्तंषु महेशानि दर्शनं नैव कारयेत् // इति वचनात् // For Private And Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पंचोपचारैः संपूज्य पुष्पांजलिं च दत्वा जपं देवापणं कुर्यात् // तद्यथा-अर्घोदकेन चुलुकमादाय "ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् // सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादात्त्वयि स्थितिः // 1 // " ॐ इतः पूर्व प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो जाग्रत्स्वमसुषुप्तितुर्यावस्थासु मनसा वाचा कर्मणा हस्तान्यां पदल्यामुदरेण शिश्ना यत्स्मृतं यदुक्तं यत्कृतं तत्सर्व ब्रह्मार्पणं भवतु स्वाहा // मदीयं च सकलं श्रीमद्बटुकभैरवदेवतायै समर्पयामि नमः // “ॐ तत्सदिति ब्रह्मार्पणं भवतु // इति देवदक्षिणकरे जपसमर्पणजलं दत्त्वा कृतांजलिपूर्वकं क्षमापनं पठेत् // अथ क्षमापनम्॥"आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् // पजानागं न जानामि त्वं गतिः परमेश्वर // 1 // मंत्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर // यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे // 2 // पायदक्षरपदावष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् // तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर // 3 // कर्मणा मनसा वाचा त्वनो नान्या गतिर्मम // अन्तश्चरेण भूतानि इष्टस्त्वं परमेश्वर // 4 // अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम // तस्मात्कारुण्यभावेन रक्षस्व परमेश्वर // 5 // प्रातयोंनिसहस्राणां सहस्रेषु व्रजाम्यहम् // तेषु तेष्वचला भक्तिरच्युतेस्तु सदा त्वयि // 6 // गतं पापं गतं दुःखं गतं दारियमेव च // आगता मुखसंपनिः पुण्या च तव दर्शनात् // 7 // देवो दाता च भोक्ता च देवरूपमिदं जगत् // देवो जयति सर्वत्र यो देवः सोहमेव हि // 8 // क्षमस्व देवदेवेश क्षम्यते भुवनेश्वर॥ तव पादांबुजे नित्यं निश्चला भक्तिरस्तु मे // 9 // " इति कतांजलिः प्रार्थयित्वा ततः शंखमुद्धत्य देवोपरि चामयित्वा “साधु वासाधु वा कर्म यद्यदाचरितं मया // तत्सर्व रुपया देव गृहाणारा For Private And Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मं०म० खे. धनं मम // 1 // " इत्युच्चरन् देवस्य दक्षिणहस्ते किंचिजलं दत्त्वा प्राग्वयं देवशिरसि दत्त्वा शंखं यथास्थाने निवेश्य देवस्योच्छिष्ट / नवेद्यं शिरमि धृत्वा नैवेद्यादिकं देवभक्तेषु विभज्य स्वयं भुक्त्वा विसर्जनं कुर्यात॥ अथ विसर्जनम्॥ ॐ गच्छगच्छ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यद्धि ब्रह्मादयो देवा न विदुः परमं पदम् // 1 // ' इत्यक्षतान्निःक्षिप्य विसर्जनं कृत्वा देवं स्वहृदयमध्ये स्थापयेत॥तद्यथातिछतिष्ठ परस्थाने स्वस्थाने परमेश्वर // यत्र ब्रह्मादयो देवाः सर्वे तिष्ठति मे हृदि // ३॥"इति हृदयकमले हस्तं दत्त्वा देवं संस्थाप्य मानसोपचारैः संपूज्य स्वात्मानं देवरूपं भावयन् यथासुखं विहरेत् / ततोऽर्धरात्रे प्रामावहिश्चतुष्पथे नित्यं देवतिथ्यां वा रविशनि के भौमवारेप वा पूर्वोक्तविधिना बलिं दद्यात // तथा च / पूर्ववन्मण्डलं कृत्वा मण्डलं संपूज्य तन्मध्ये वटुकं पंचोपचारैः संपूजयेत्॥ ततः “गदात्रिशूलडमरुपात्रहस्तं त्रिलोचनम् // कृष्णाभं भैरवं ध्यायेत्सर्वविघ्ननिवारणम् // 1 // " एवं ध्यात्वा ॐ श्रीबटुकभैरव एह्येहि बलिं| गहगह हूं फट् स्वाहा” इति बलिं दत्त्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य शांतिस्तोत्रं पठेत् // अथ शांतिस्तोत्रम् // "नश्यतु प्रेतकूष्माण्डा नश्यतु दृषका नराः // साधकानां शिवाः संतु स्वाम्नायपरिपालनम् // 1 // जयंतु मातरः सर्वा जयंतु योगिनीगणाः // जयंतु सिद्धा डाकिन्यो जयंतु गुरुशक्तयः // 2 // नन्दन्तु पणिमाद्याश्च नन्दंतु भैरवादयः // नन्दन्तु भैरवाः सर्वे सिद्धविद्याधरादयः // 3 // ये चाम्नायविशुद्धाश्च मंत्रिणः शुद्धबुद्धयः // सर्वदा नन्दयानन्दं नन्दन्तु कुलपालकाः // 4 // इन्द्राद्यास्तपिताः सन्तु तृप्यतु वास्तु नैवेद्यलक्षणम्-अर्वाक् विसर्जनाइव्यं नैवेद्यं सचमुच्यते // विसर्जिते जगवाये निर्माल्यं भवति लक्षणात् // 2 नैवेद्यत्याज्यनिषेधः (आहिकतत्वे) तृषार्ताः पशवो रुद्धाः कन्यका च रजस्वला / देवता च सनिर्माल्या हंति पुण्य पुराकृतम्।। (रुद्रयामळे विशेषः) निवेदितं च यद द्रव्यं भोक्तव्यं तद्विधानतः // तन्न चेहयते मोहाद्रोपायान्ति देवताः // For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir देवताः॥ चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यतु गुरुभक्तितः // नक्षत्राणि महा योगाः करणाद्यास्तथापरे // ते मर्वे सुखिनो यान्तु मामाच तिथ| यस्तथा // 6 // तृप्यन्तु पितरः सर्वे ऋतबो बत्सरादयः // खेचरा भूचराश्चैव तृप्यन्तु मम भक्तितः // 7 // अंतरिक्षचरा घोरा ये चान्ये देवयोनयः / स तु सुखिनो यांतु सर्वा नद्यश्च पक्षिणः॥ 8 // पर्वताःसुखिनः संत तथा तत्कन्दरा गुहाः॥ पयो ब्राह्मणाः सर्वे शांतिं कुर्वतु मे सदा // 9 // तीर्थानि पशवो गावो ये चान्याः पुण्यभूमयः // वृद्धाः पतिवता नार्यः शिवं कुर्वतु मे सदा // 10 // शिव मर्वत्र मे चास्तु पुत्रदारधनादिपु // राजानः मुखिनः सन्तु क्षेममार्ग तु मे सदा // 11 // शुभा मे दिवमा यान्तु शिवास्तिष्ठतु मेध शिवाः // देष्टारः माधकानां च सदैवाम्नायदूपकाः // 12 // डाकिनीनां मुखे यान्तु मातृमाश्या तेषु ताः // शवयो नाशमायां तु मम निंदाकराः सदा // 13 // ये निंदकास्ते विपदं प्रयान्तु ये साधकास्ते प्रभवन्तु मिद्धाः ॥ये सर्ववीराः करुणाचलोकाः पुनः परेश मम सन्निधत्स्व // 14 // " इति शांतिपाठं पठित्वा जलमुत्सृज्य स्थगृहे गत्वा पृष्टदेशे नावलोकयेत् // गृहद्वारमागत्य हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गृहप्रवेशं कृत्वा कुशासने शय्यायां यथासुखं स्वप्यात् // इति श्रीवटुकभैरवपूजापद्धतिः समाता // श्रीगणेशाय नमः // अथ श्रीबटुकभैरवब्रह्मकवचम्॥ उक्तं च रुद्रयामले॥ श्रीदेव्युवाच ॥"भगवन्मर्ववेना त्वं देवानां प्रीतिदायकम् // भरवं कवचं ब्रूहि यदि चास्ति रूपा मयि // 3 // प्राणत्यागं करिष्यामि यदि नो कथयिष्यमि॥ सत्यंसत्यं पुनः सत्यं सत्यमेव न संश यः॥२॥ इत्थं देव्या वचः श्रुत्वा प्रहस्याति स्वयं प्रभुः / / उवाच वचनं तत्र देवदेवो महेश्वरः // 3 // ईश्वर उवाच // वाटुकं कव पचं दिव्यं शृणु मत्प्राणवल्लभे // चंडिकातंत्रमर्वस्वं वटुकस्य विशेषतः // 4 // नत्र मंत्राद्यक्षरंतु वासुदेवस्वरूपकम् // शंखवर्णद्वयो ब्रह्मा For Private And Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म० पू.वं.। भै. तं० तरं० 10 वटुकश्चन्द्रशेखरः॥५॥ आपदुद्धारणो देवः भैरवः परिकीर्तितः // प्रवक्ष्यामि समासेन चतुर्वर्गप्रसिद्धये // 6 // प्रणवं कामदं विद्याल्ल जाबीजं च सिद्धिदम् // वटुकायेति विज्ञेयं महापातकनाशनम् // 7 // आपदुद्धारणायेति त्वापदुद्धारणं नृणाम् // कुरु द्वयं महेशानि मोहने परिकीर्तितम् // 8 // वटुकाय महेशानि स्तंभने परिकीर्तितम् // लज्जाबीजं तथा विद्यान्मुक्निदं परिकीर्तितम् // 9 // द्वाविंश त्यक्षरो मंत्रः क्रमेण जगदीश्वरि // " पाठः // ॐ अस्य श्रीवटुकभैरवब्रह्मकवचस्य भैरव ऋषिः / अनुष्टुप्छंदः / श्रीवटुकभैरवो देवता। मम बटुकभैरवप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥ ॐ पातु नित्यं शिरशि पातु ह्रीं कंठदेशके ॥१०॥वटुकाय पातु नाभौ चापदुद्धारणाय च॥ कुरु द्वयं लिंगमूले त्वाधारे बटुकाय च // 11 // सर्वदा पातु ह्रीं बीज बाह्वोर्युगलमेव च॥ पडंगसहितो देवो नित्यं रक्षतु भैरवः॥ // 12 // ॐ ह्रीं वटुकाय सततं सर्वांगं मम सर्वदा // ॐ ह्रीं पादौ महाकालः पातु वीरासनो हृदि // 13 // ॐ ह्रीं कालः शिरः पातु कंठदेशे तु भैरवः // गणराट् पातु जिह्वायामष्टभिः शक्तिभिः मह // 14 // ॐ ह्रीं दंडपागिर्गुह्यमूले भैग्वीसहितस्तथा // ॐ ह्रीं विश्व नाथः सदा पातु सर्वांगं मम सर्वदः // 15 // ॐ ह्रीं अन्नपूर्णा सदा पातु चांसौ रक्षतु चंडिका // असितांगः शिरः पातु ललाटं| रुरुभैरवः // 16 // ॐ ह्रीं चंडरवः पातु वक्त्रं कंठं श्रीक्रोधभैरवः।। उन्मत्तौरवः पातु हृदयं मम सर्वदा // 17 // ॐ ह्रीं नाभिदेश कपाली च लिंगे भीषणभैरवः // संहारभैरवः पातु मूलाधारं च सर्वदा // 18 // ॐ ह्रीं बाहुयुग्मं सदा पातु जैरवो मम केवलम् // हंसबीजं पातु हृदि सोहं रक्षतु पादयोः॥१९॥ॐ ह्रीं प्राणापानौ समानं च उदानं व्यानमेव च / / रक्षतु द्वारमूले च दशदिक्षु समंततः। // 20 // ॐ ह्री प्रणवं पातु सर्वांगं लज्जाबीजं महानये // इति श्रीब्रह्मकवचं भैरवस्य प्रकीर्तितम् // 21 // चतुवर्गप्रदं नित्यं स्वयंदेव For Private And Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailasagasun Gyanmandir प्रकाशितम् // यः पठेच्छृणुयान्नित्यं धारयेत्कवचोनमम् // 22 // सदानंदमयो भूत्वा लभते परमं पदम् // य इदं कवचं देवि चिन्त येन्मन्मुखोदतम् // 23 // कोटिजन्मार्जितं पापं विनश्यति च तत्क्षणात् // जलमध्येऽमिमध्ये वा दुर्घहे शत्रुसंकटे // 24 // कव चस्मरणाद्देवि सर्वत्र विजयी भवेत् // भक्तियुक्तेन मनसा कवचं पूजयेद्यदि // 25 // कामतुल्यस्तु नारीणां रिपूणां च यमोपमः // तस्य पादांबुजवं राज्ञां मुकूटभूषणम् // 26 // तस्य भूतिं विलोक्यैव कुबेरोपि तिरस्कृतः॥ यस्य विज्ञानमात्रैण मंत्रसिद्धिर्न संशयः // 27 // इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेवटुकं नरः // न चामोति फलं तस्य परं नरकमानुयात् // 28 // मन्वंतरत्रयं स्थित्वा / | तिर्यग्योनिषु जायते // इह लोके महारोगी दारिद्रयेणातिपीडितः // 22 // शत्रूणां वशगो भूत्वा करपात्री भवेजडः // देयं पुत्राय शिष्याय शांताय प्रियवादिने // 30 // कार्पण्यरहितायालं वटुभक्तिरताय च।। योपरागे प्रदाता वै तस्यस्याति सत्वरम् // 31 आयुर्विया / यशो धर्म बलं चैव न संशयः // इति ते कथितं देवि गोपनीय स्वयोनिवत्॥३२॥ इति श्रीरुद्रयामलोक्तं श्रीबटुकभैरवब्रह्मकवचं संपूर्णम्॥ श्रीगणेशाय नमः // अथ श्रीवटुकभैरवसहस्रनामस्तोत्रं (रुद्रयामले) / / ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवसहस्रनामात्मकस्तोत्रस्य दुर्वासा ऋषिः / / / अनुष्टुप् छंदः // भैरवो बटुकनाथो देवता // मम सर्वकार्यसिद्ध्यर्थं सर्वशत्रुनिवारणार्थ बटुकसहस्त्रनामपाठे विनियोगः // ॐ 1 महाकालोस्य ऋषिरिति रुद्रजापे / 1 दत्तात्रेय ऋषिरिति ब्रह्मजापे / 1 गौतमऋषिरिति गौतमी तंत्रे / 1 रावणास्य ऋषिरिति भैरवीतंत्रे / 1 हनुमान पिरिति भैरवतंत्रे / 1 निर्गुणो बटुकः सनकादय ऋषर इति मोक्षपटले / 1 महाविष्णुः श्रीकृष्ण ऋषिरिति विष्णुयामले / पर्व कार्यपरत्वे यथारुचि पाठे ऋषिस्मरणं कृत्वा स्तोत्रं पठेत् / For Private And Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म पू० ख०१ त० // 27 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमो भद्रस्वरूपाय जयदाय नमोनमः // 1 // नमः कल्पस्वरूपाय विकल्पाय नमो नमः // नमः शुद्धस्वरूपाय सुप्रकाशाय ते नमः // 2 // नमः कंकालरूपाय कालरूप नमोस्तु ते // नमख्यंबकरूपाय महाकालाय ते नमः // 3 // नमः संसारसाराय सारदाय नमोनमः // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 4 // नमः क्षेत्रनिवासाय क्षेत्रपालाय ते नमः // क्षेत्राक्षेत्रस्वरूपाय क्षेत्रकत्रे नमोनमः // 5 // नमो नागविनाशाय भैरवाय नमोनमः // नमो मातंगरूपाय भाररूप नमोस्तु ते // 6 // नमः सिद्धस्वरूपाय सिद्धिदाय नमोनमः // नमो बिंदुस्वरूपाय बिदुर्मिधुप्रकाशिने ॥७॥नमो मंगलरूपाय मङ्गलाय नमोनमः // नमः संकष्टनाशाय शंकराय नमोनमः // 8 // नमो धर्मस्वरूपाय धर्मदाय नमोनमः // नमोऽनतस्वरूपाय एकरूप नमोस्तु ते // 9 // नमो वृद्धिस्वरूपाय वृद्धिकाकान्नमोस्तु ते // नमो मोहनरूपाय मोक्षरूपाय ते नमः // 10 // नमो जलदरूपाय सामरूप नमोस्तु ते // नमः स्थूलस्वरूपाय शुद्धरूपाय ते नमः // 33 // नमो नीलस्वरूपाय रंगरूपाय ते नमः // नमो मंडलरूपाय मंडलाय नमोनमः // 12 // नमो रुद्रस्वरूपाय रुद्रनाथाय ते नमः // नमो ब्रह्मस्वरूपाय ब्रह्मवक्त्रे नमोनमः // 13 // नमस्त्रिशूलधाराय धाराधारिन्नमोस्तुते // नमः संसारबीजाय विरूपाय नमोनमः // 14 // नमो विमलरूपाय भैरवाय नमो नमः / / नमो जंगमरूपाय जलजाय नमोनमः // 15 // नमः कालस्वरूपाय कालरुदाय ते नमः॥ नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः॥ 16 // नमः शत्रुविनाशाय भीषणाय नमोनमः // नमः शांताय दांताय नमरूपिनमोस्तु ते // 17 // न्याय गम्याय शुद्धाय योगिध्येयाय ते नमः // नमः कमलकांताय कालवृद्धाय ते नमः॥१८॥ नमो ज्योतिःस्वरूपाय सुप्रकाशाय ते नमः॥ // 27 // For Private And Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमः कल्पस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 19 // नमो जयस्वरूपाय जगजाड्यनिवारिणे // महाभूताय भूताय भूतानां पतये नमः // VAT // 20 // नमो नंदाय वृंदाय वादिने ब्रह्मवादिने // नमो वादस्वरूपाय न्यायगम्याय ते नमः // 21 // नमो अवस्वरूपाय मायानि पाणिरूपिणे // विश्ववंद्याय बंद्याय नमो विस्वंभराय ते // 22 // नमो नेत्रस्वरूपाय नेत्ररूपिनमोस्तु ते // नमो वरुणरूपाय भैरवाय नमोनमः // 23 // नमो यमस्वरूपाय वृद्धरूपाय ते नमः // नमः कुबेररूपाय कालनाथाय ते नमः // 24 // नमो ईशानरूपाय अग्निरूपाय ते नमः // नमो वायुस्वरूपाय विश्वरूपाय ते नमः // 25 // नमः प्राणस्वरूपाय प्राणाधिपतये नमः // नमः संहाररूपाय पालकाय नमोनमः // 26 // नमश्चंद्रस्वरूपाय चंडरूपाय ते नमः // नमो मंदारवासाय वासिने सर्वयोगिनाम् // 27 // योगिग। म्याय योग्याय योगिनां पतये नमः // नमो जंगमवासाय वामदेवाय ते नमः // 28 // नमः शत्रुविनाशाय नीलकंठाय ते नमः // नमो भक्तिविनोदाय दुर्भागाय नमोनमः // 29 // नमो मान्यस्वरूपाय मानदाय नमोनमः // नमो भूतिविभूषाय भूषिताय नमोनमः॥ N // 30 // नमो रजःस्वरूपाय माविकाय नमोनमः // नमस्तामसरूपाय तारणाय नमोनमः // 31 // नमो गंगाविनोदाय जटासंधा परिणे नमः // नमो भैरवरूपाय भाषणाय नमोनमः // 32 // नमः संग्रामरूपाय संग्रामजयदायिने // संग्रामसाररूपाय यौवनाय नमो नमः // 33 // नमो वृद्धिस्वरूपाय बृद्धिदाय नमोनमः // नमस्त्रिशूलहस्ताय शूलसंहारिणे नमः // 34 // नमो दद्वस्वरूपाय रूपदाय नमोनमः // नमः शत्रुविनाशाय शत्रुबुद्धिविनाशिने // 35 // महाकालाय कालाय कालनाथाय ते नमः // नमो भैरवरूपाय भैरवाया। नमोनमः // 36 // नमः शंभुस्वरूपाय शंभुस्वरूपिनमोस्तु ते // नमः कमलहस्ताय डमरुहस्ताय ते नमः // 37 // नमः कुक्कुरवा For Private And Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं. म. // 273 // तरं०१० हाय वहनाय नमोनमः // नमो विमलनेत्राय त्रिनेत्राय नमोनमः // 38 // नमः संसाररूपाय सारमेयाय वाहिने // संसारज्ञानरूपाया पू० ख०१ ज्ञाननाथाय ते नमः // 32 // नमो मंगलरूपाय मंगलाय नमोनमः // नमो न्यायविशालाय मंत्ररूपाय ते नमः॥४०॥ नमो यंत्र भै० तं. स्वरूपाय यंत्रधारिन्नमोस्तु ते // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 41 // नमः कलंकरूपाय कलंकाय नमोनमः // नमः संसार पाराय भैरवाय नमोनमः // 42 // रुंडमालाविभूषाय भीषणाय नमोनमः // नमो दुःखनिवाराय विहाराय नमोनमः // 43 // नमो दंडस्वरूपाय क्षणरूपाय ते नमः // नमो मुहूर्तरूपाय सर्वरूपाय ते नमः // 44 // नमो मोदस्वरूपाय श्रोणरूपाय ते नमः // नमो नक्षत्ररूपाय क्षेत्ररूपाय ते नमः॥४५॥ नमो विष्णुस्वरूपाय बिंदुरूपाय ते नमः // नमो ब्रह्मस्वरूपाय ब्रह्मचारिन्नमोस्तु ते // // 46 // नमः कंथानिवासाय पटवासाय ते नमः // नमो ज्वलनरूपाय ज्वलनाय नमोनमः // 47 // नमो वटुकरूपाय धूर्तरूपाय ते नमः // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 48 // नमो वैद्यस्वरूपाय वैद्यरूपिन्नमोस्तु ते // नम औषधरूपाय औषधाय नमोनमः // 49 // y नमो व्याधिनिवाराय व्याधिरूपिन्नमोनमः // नमो ज्वरनिवाराय ज्वररूपाय ते नमः॥५०॥नमो रुद्रस्वरूपाय रुद्राणां पतये नमः // विरु पाक्षाय देवाय भैरवाय नमोनमः // 50 // नमो ग्रहस्वरूपाय ग्रहाणां पतये नमः // नमः पवित्रधाराय परशुधाराय ते नमः // 52 // यज्ञोपवीतिदेवाय देवदेव नमोस्तु ते // नमो यज्ञस्वरूपाय यज्ञानां फलदायिने // 53 // नमोरगप्रतापाय तापनाय नमोनमः // नमो गणे शरूपाय गणरूपाय ते नमः // 54 // नमो रस्मिस्वरूपाय रश्मिरूपाय ते नमः // नमो मलयरूपाय रश्मिरूपाय ते नमः॥५५॥ नमो विभक्तिरूपाय विमलाय नमोनमः // नमो मधुररूपाय माधिपूर्णकलापिने // 56 // कालेश्वराय कालाय कालनाथाय ते नमः // For Private And Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नमो विश्वप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 57 // नमो योनिस्वरूपाय भ्रातृरूपाय ते नमः // नमो भगिनिरूपाय भैरवाय नमोनमः / // 58 // नमो वृषस्वरूपाय कर्मरूपाय ते नमः॥ नमो वेदांतवेद्याय वेदसिद्धांतसारिणे // 59 // नमः शाखाप्रकाशाय पुरुषाय नमो / नमः॥ नमः प्रकृतिरूपाय भैरवाय नमोनमः // 60 // नमो विश्वस्वरूपाय शिवरूपाय ते नमः // नमो ज्योतिःस्वरूपाय निगुणाय नमो नमः॥६१ // निरंजनाय शांताय निर्विकाराय ते नमः // निर्मायाय विमोहाय विश्वनाथाय ते नमः // 62 // नमः कण्ठप्रकाशाय शत्रुनाशाय ते नमः // नम आशाप्रकाशाय आशापूरकते नमः // 63 // नमो मत्स्यस्वरूपाय योगरूपाय ते नमः // नमो वाराहा। रूपाय वामनाय नमोनमः // 64 // नम आनन्दरूपाय आनन्दाय नमोनमः // नमोस्त्वनय॑केशाय ज्वलत्केशाय ते नमः // 65 // नमः पापविमोक्षाय मोक्षदाय नमोनमः // नमः कैलासनाथाय कालनाथाय ते नमः // 66 // नमो विन्ददविन्दाय विन्दुभाय नमोनमः॥ नमः प्रणवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 67 // नमो मेरुनिवासाय भक्तवासाय ते नमः // नमो मेरुस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 68 // नमो भद्रस्वरूपाय भद्ररूपाय ते नमः // नमो योगिस्वरूपाय योगिनां पतये नमः // 69 // नमो मैत्रस्वरूपाय मित्ररूपाय ते नमः // नमो ब्रह्म निवासाय काशीनाथाय ते नमः // 70 // नमो ब्रह्मांडवासाय ब्रह्मवासाय ते नमः // नमो मातंगवासाय सूक्ष्मवासाय ते नमः // 71 // नमो मातृनिवासाय भातृवासाय ते नमः // नमो जगन्निवासाय जलावासाय ते नमः / / 72 // नमः कौलनिवासाय नेत्रवासाय ते नमः // नमो भैरववासाय भैरवाय नमोनमः // 73 // नमः समुद्रवासाय वहिवासाय ते नमः // नमश्चन्द्रनिवासाय चन्द्रा वासाय ते नमः // 74 / नमः कलिंगवासाय कलिंगाय नमोनमः // नम उत्कलवासाय महेंद्रवासाय ते नमः // 75 // नमः For Private And Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं.म. // 27 // पू० खं०१ भै० त० तरं०१० कर्पूरवासाय सिद्धिवासाय ते नमः // नमः सुन्दरवासाय नैरवाय नमोनमः // 76 // नम आकाशवासाय वासिने सर्वयोगिनाम् // नमो ब्राह्मणवासाय शूद्रवासाय ते नमः // 77 // नमः क्षत्रियवासाय वैश्यवासाय ते नमः // नमः पक्षिनिवासाय भैरवाय नमोनमः // 70 // नमः पातालमूलाय मूलावासाय ते नमः // नमो रसातलवासाय सर्वपातालवासिने // 79 // नमः कंकालवासाय कंक वासाय ते नमः // नमो मंत्रनिवासाय भैरवाय नमोनमः // 80 // नमोऽहंकाररूपाय रजोरूपाय ते नमः // नमः सत्त्वनिवासाय भरवाय नमोनमः // 81 // नमो नलिनरुपाय नलिनांगप्रकाशिने // नमः सूर्यस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 82 // नमो दुष्ट निवासाय साधूपायनरूपिणे // नमो नम्रस्वरूपाय स्तंभनाय नमोनमः // 83 // पंचयोनिप्रकाशाय चतुर्योंनिप्रकाशिने // नवयोनि प्रकाशाय भैरवाय नमोनमः / / 84 // नमः षोडशरूपाय नमः षोडशधारिणे // चतुःषष्टिप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 85 // नमो बिंदुप्रकाशाय सुप्रकाशाय ते नमः // नमो गणस्वरूपाय मुखरूप नमोस्तु ते // 86 // नमश्चाम्बररूपाय भैरवाय नमोनमः ॥नमो नाना स्वरूपाय मुखरूप नमोस्तु ते // 87 // नमो दुर्गस्वरूपाय दुःखहर्त्रे नमोस्तु ते // नमो विशुद्धदेहाय दिव्यदेहाय ते नमः // 88 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमः प्रेतनिवासाय पिशाचाय नमोनमः / / 89 // नमो निशाप्रकाशाय निशारूप नमोस्तु ते // नमः सोमारामाय धराधीशाय ते नमः॥ 90 // नमः संसारभाराय भारकाय नमोनमः // नमो देहस्वरूपाय अदेहाय नमोनमः हाय नमोनमः // 91 // देवदेहाय देवाय भैरवाय नमोनमः // विश्वेश्वराय विश्वाय विश्वधारिन्नमोस्तु ते // 92 // स्वप्रकाशप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // स्थितिरूपाय स्थित्याय स्थितीनां पतये नमः // 93 // सुस्थिराय सुकेशाय केशवाय नमोनमः ॥स्थविष्टाय गिरिष्ठाय प्रेष्ठाय // 24 // For Private And Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मने // 94 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः॥नमःपारदरूपाय पवित्राय नमोनमः॥९५॥नमो वेधकरूपाय अनिंदाय नमोनमः // नमः शब्दस्वरूपाय शब्दातीताय ते नमः॥ 96 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमो निंदस्वरूपाय अनिंदाय नमोनमः // // 97 // नमो विशदरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमः शरण्यशरणाय शरण्यानां सुखाय ते // 98 // नमः शरण्यरक्षाय भैरवाय नमोनमः // नमः स्वाहास्वरूपाय स्वधारूपाय ते नमः // 99 // नमो वौषट्स्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // अक्षराय नमस्तुभ्यं विधामा त्रास्वरूपिणे // 10 // नमोक्षराय शुद्धाय भैरवाय नमोनमः // अर्धमात्राय पूर्णाय पूर्णाय ते नमोनमः // 101 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमोऽष्टचक्ररूपाय ब्रह्मरूपाय ते नमः // 102 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमः मृणिस्वरूपाय सृष्टिकर्ने महात्मने // 103 // नमः पाल्यस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // सनातनाय नित्याय निर्गुणाय गुणाय ते // 104 // नमः सिद्धाय शांताय भैरवाय नमोनमः // नमो धारास्वरूपाय खड्गहस्ताय ते नमः // 105 // नमस्त्रिशूलहस्ताय भैरवाय नमोनमः // नमः कुंडलवर्णाय शवमुंडविभूषिणे // 106 // महाक्रुद्धाय चंडाय भैरवाय नमोनमः // नमो वासुकिभूषाय सर्वभूषाय ते नमः // [ // 107 // नमः कपालहस्ताय भैरवाय नमोनमः // पानपात्रप्रमत्ताय मत्तरूपाय ते नमः // 108 // नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // माध्याकारसुपर्णाय माधवाय नमोनमः // 109 // नमो मांगल्यरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमः कुमाररूपाय स्वीभू र्याय नमोनमः // 110 // नमो गंधस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः नमो दुर्गधरूपाय सुगंधाय नमोनमः // 111 // नमः पुष्पस्वरू पाय पुष्पभूषण ते नमः // नमः पुष्पप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 112 // नमः पुष्पविनोदाय पुष्पपूजाय ते नमः // नमो भक्ति For Private And Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प .1 निवासाय भक्तदुःखनिवारिणे // 113 // भक्तप्रियाय शांताय भैरवाय नमोनमः // नमो भक्तिस्वरूपाय रूपदाय नमोनमः॥११४॥ नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमो वासाय भद्राय वीरभदाय ते नमः // 115 // नमः संग्रामसाराय भैरवाय नमोनमः // नमः खट्वांगहस्ताय कालहस्ताय ते नमः // 116 // नमो घोराय घोराय घोराघोरस्वरूपिणे // घोरधर्माय घोराय भैरवाय नमोनमः // // 117 // घोरत्रिशूलहस्ताय घोरपानाय ते नमः // घोररूपाय नीलाय भैरवाय नमोनमः // 118 // घोरवाहनगम्याय अगम्याय नमोनमः // घोरब्रह्मस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 119 // घोरशब्दाय घोराय घोरदेहाय ते नमः // घोरद्रव्याय घोराय नैरवाय नमोनमः // 120 // घोरसंगाय सिंहाय सिद्धिसिंहाय ते नमः // नमः प्रचंडसिंहाय सिंहरूपाय ते नमः॥ 121 // नमः सिंहप्रकाशाय सुप्रकाशाय ते नमः // नमो विजयरूपाय जयदाय नमोनमः // 122 // नमो भार्गवरूपाय गर्भरूपाय ते नमः॥ नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 123 // नमोमेध्याय शुद्धाय मायाधीशाय ते नमः // नमो मेघप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः॥१२४॥ दुर्जेयाय दुरंताय दुर्लभाय दुरात्मने // भक्तिलायाय भव्याय भाविताय नमोनमः // 125 // नमो गौरवरूपाय गौरवाय नमोनमः॥ नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 126 // नमो विननिवाराय विघ्ननाशिन्नमोस्तु ते // विघ्नविद्रावणायैव भैरवाय नमोनमः // // 127 // नमः किंशुकरूपाय रजोरूपाय ते नमः // नमो नीलस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 128 // नमो गणस्वरूपाय गणना थाय ते नमः // नमो विश्वविकासाय भैरवाय नमोनमः // 129 // नमो योगिप्रकाशाय योगिगम्याय ते नमः // नमो हेरंबरूपाय भरवाय नमोनमः // 13 // नमस्त्रिधास्वरूपाय रूपदाय नमोनमः // नमः स्वरस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 131 // नमः सर For Private And Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavian Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir स्वतिरूपाय बुद्धिरूपाय ते नमः // नमो वंद्यस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 132 // नमस्त्रिविक्रमरूपाय त्रिरूपाय ते नमः॥ नमः शशांकरूढाय भैरवाय नमोनमः // 133 // नमो व्यापकरूपाय व्याप्यरूपाय ते नमः॥ नमो भैरवरूपाय भैरवाय नमोनमः // 134 // नमो विशदरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमः सत्त्वस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 135 // नमः सूक्तस्वरूपाय शिवदाय नमोनमः॥ नमो गंगास्वरूपाय यमुनारूपिणे नमः // 136 // नमो गौरीस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमो दुःखविनाशाय दुःखमोक्षणरूपिणे / // 137 // महाचलाय बंद्याय भैरवाय नमोनमः // नमो नंदस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः / 138 // नमो नंदिस्वरूपाय स्थावर रूपाय ते नमः // नमः केलिस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 139 // नमः क्षेत्रनिवासाय वासिने ब्रह्मवादिने // नमः शांताय शुद्धाय भैरवाय नमोनमः // 140 // नमो नर्मदरूपाय जलरूपाय ते नमः // नमो विश्वविनोदाय जयदाय नमोनमः // 141 // नमो महेन्द्ररूपाय महनीयाय ते नमः // नमः संमृतिरूपाय शरणीयाय ते नमः॥ 142 // नम स्विबंधुवासाय बालकाय नमोनमः // नमः संसारसाराय सरसां पतये नमः // 143 // नमस्तेजःस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // नमः कारुण्यरूपाय भैरवाय नमोनमः // 144 // नमो गोकर्णरूपाय ब्रह्मवर्णाय ते नमः // नमः शंकरवर्गाय हस्तिकाय ते नमः // 145 // नमो विष्टरकर्णाय यज्ञ कर्णाय ते नमः॥ नमः शंबुककर्णाय भैरवाय नमोनमः // 46 // नमो दिव्यसुकर्णाय कालकर्णाय ते नमः // नमो भयदकर्णाय भैरवाय नमोनमः // 147 // नम आकाशवर्णाय कालकर्णाय ते नमः॥ नमो दियूपकर्णाय भैरवाय नमोनमः // 148 // नमो विशुदकर्णाय विमलाय नमोनमः // नमः सहस्रकर्णाय भैरवाय नमोनमः // 149 // नमो नेत्रप्रकाशाय सुनेत्राय नमोनमः // नमो ) For Private And Personal use only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobalrm.org // 276 // / वरदनेत्राय जयनेत्राय ते नमः // 150 // नमो विमलनेत्राय योगिनेत्राय ते नमः // नमः सहस्रनेत्राय भैरवाय नमोनमः // 151 // पू० खं. 1 नमः कलिंदरूपाय कलिंदाय नमोनमः // नमो ज्योतिःस्वरूपाय ज्योतिषाय नमोनमः // 152 // नमस्तारप्रकाशाय ताररूपिन्नमोभतं. स्तु ते // नमो नक्षत्रनेत्राय भैरवाय नमोनमः // 153 // नमश्चंद्रप्रकाशाय चन्द्ररूप नमोस्तु ते // नमो रश्मिस्वरूपाय भैरवाय / तर० 10 नमोनमः // 354 // नम आनन्दरूपाय जगदानन्दरूपिणे // नमो द्रविडरूपाय भैरवाय नमोनमः // 155 // नमः शंखनिवासाय शंकराय नमोनमः // नमो मुद्राप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 156 // नमो न्यासस्वरूपाय न्यासरूप नमोस्तु ते // नमो बिंदुस्वरूपाय भैरवाय नमोनमः // 157 // नमो विसर्गरूपाय प्रणवरूपाय ते नमः // नमो मन्त्रप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 158 // नमो जंबु करूपाय जंगमाय नमोनमः॥ नमो गरुडरूपाय भैरवाय नमोनमः।। 159 // नमो लंबुकरूपाय लंबिकाय नमोनमः // नमो लक्ष्मीस्वरूपाय | भैरवाय नमोनमः॥१६॥नमो वीरस्वनिराय विरणाय नमोनमः // नमः प्रचंडरूपाय भैरवाय नमोनमः॥१६१॥ नमो डवस्वरूपाय डम रुधारिन्नमोस्तु ते // नमः कलंकनाशाय कालनाथाय ते नमः // 162 // नम ऋद्धिप्रकाशाय सिद्धिदाय नमोनमः // नमः सिद्धस्व रूपाय भैरवाय नमोनमः॥१६३॥नमो धर्मप्रकाशाय धर्मनाथाय ते नमः॥धर्माय धर्मराजाय भैरवाय नमोनमः॥१६४॥नमो धर्माधिपतये धर्मध्येयाय ते नमः / / नमो धर्मार्थसिद्धाय भैरवाय नमोनमः // 165 // नमो विरजरूपाय रूपारूपप्रकाशिने // नमो राजप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 166 // नमः प्रतापसिंहाय प्रतापाय नमोनमः // नमः कोटिप्रतापाय भैरवाय नमोनमः / / 167 // नमः है! सहस्ररूपाय कोटिरूपाय ते नमः / / नम आनन्दरूपाय भैरवाय नमोनमः / / 168 // नमः संहारबंधाय बंधकाय नमोनमः // नमो / // 276 // For Private And Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir विमोक्षरूपाय मोक्षदाय नमोनमः॥१६९॥नमो विष्णुस्वरूपाय व्यापकाय नमोनमः॥नमो मांगल्यनाथाय शिवनाथाय ते नमः।।१७०॥ नमो व्यालाय व्याघ्राय व्याघरूपिन्नमोस्तु ते // नमो व्यालविभूषाय भैरवाय नमोनमः // 171 / / नमो विद्याप्रकाशाय विद्यानां पतये नमः नमो योगिस्वरूपाय कररूपाय ते नमः // 172 // नमः संहाररूपाय शत्रुनाशाय ते नमः॥ नमः पालकरूपाय भैरवाय नमोनमः॥ H // 173 // नमः कारुण्यदेवाय देवदेवाय ते नमः // नमो विश्वविलाशाय भैरवाय नमोनमः // 174 // नमोनमः प्रकाशाय का शीवासिन्नमोस्तु ते // नमो भैरवक्षेत्राय क्षेत्रपालाय ते नमः // 175 // नमो भद्रस्वरूपाय भद्रकाय नमोनमः // नमो भदाधिपतये / भयतर्नमोस्तु ते // 176 // नमो मायाविनोदाय मायिने मदरूपिणे // नमो मत्ताय शांताय भैरवाय नमोनमः // 177 // नमो मलयगवासाय कैलासाय नमोनमः // नमः कैलासवासाय कालिकातनयाय ते // 178 // नमः संसारपाराय भैरवाय नमोनमः // नमो मातृविनोदाय विमलायनमो नमः // 179 // नमो यमप्रकाशाय नियमाय नमोनमः // नमः प्राणप्रकाशाय ध्यानाधिपतये नमः // // 180 // नमः समाधिरूपाय निर्गुणाय नमोनमः // नमो मंत्रप्रकाशाय मंत्ररूपाय ते नमः // 181 // नमो वृंदविनोदाय बंद काय नमोनमः // नमो बृहितरूपाय भैरवाय नमोनमः // 182 // नमो मान्यस्वरूपाय मानदाय नमोनमः // नमो विश्वप्रकाशाय भैरवाय नमोनमः // 183 // नमो नैस्थिरपीठाय सिद्धपीठाय ते नमः॥ नमो मंडलपीठाय उक्तपीठाय ते नमः // 184 // नमो | यशोदानाथाय कामनाथाय ते नमः॥ नमो विनोदनाथाय सिद्धिनाथाय ते नमः // 185 // नमोनाथाय नाथाय ज्ञाननाथाय ते नमः // नमः शंकरनाथाय जयनाथाय ते नमः // 186 // नमो मुट्ठलनाथाय नीलनाथाय ते नमः॥ नमो बालकना 70 For Private And Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir खं०१ मं० माथाय धर्मनाथाय ते नमः॥१८७॥ विश्वनाथाय नाथाय कार्यनाथाय ते नमः // नमो भैरवनाथाय महानाथाय ते नमः // 188 // नमो 277 // ब्रह्मसनाथाय योगनाथाय ते नमः // नमो विश्वविहाराय विश्वभाराय ते नमः॥ 189 // नमो रंगसनाथाय रंगनाथाय ते नमः // भै० तं. नमो मोक्षसनाथाय भैरवाय नमोनमः // 190 // नमो गोरक्षनाथाय गोरक्षाय नमोनमः // नमो मंदारनाथाय नन्दनाथाय ते नमःतरं०१० on 191 // नमो मंगलनाथाय चंपानाथाय ते नमः // नमः सन्तोषनाथाय भैरवाय नमोनमः // 192 // नमोंगरगिना थाय सुखनाथाय ते नमः // नमः कारुण्यनाथाय भैरवाय नमोनमः // 193 // नमो द्रविडनाथाय दरिनाथाय ते नमः // नमः संसारनाथाय जगन्नाथाय ते नमः // 194 // नमो माध्वीकनाथाय मंत्रनाथाय ते नमः // नमो न्याससनाथाय ध्याननाथाय ते नमः // 195 // नमो गोकर्णनाथाय महानाथाय ते नमः॥ नमः शुनसनाथाय भैरवाय नमोनमः ॥१९६॥नमो विमल नाथाय मंडलनाथाय ते नमः // नमः सरोजनाथाय मत्स्यनाथाय ते नमः // 197 // नमो भक्तसनाथाय भक्तिनाथाय ते नमः // aliनमो मोहननाथाय वत्सनाथाय ते नमः // 198 // नमो मातृसनाथाय विश्वनाथाय ते नमः // नमो बिंदुसनाथाय जयनाथाय ते / नमः॥ 199 // नमो मंगलनाथाय धर्मनाथाय ते नमः // नमो गंगासनाथाय भूमिनाथाय ते नमः॥२०॥ नमो धीरसनाथाय बिंदु नाथाय ते नमः // नमः कंचुकिनाथाय शृंगिनाथाय ते नमः॥२०१॥ नमः समुद्रनाथाय गिरिनाथाय ते नमः // नमो मांगल्यनाथाय - कुट्टनाथाय ते नमः // 202 // नमो वेदांतनाथाय श्रीनाथाय नमोनमः // नमो ब्रह्मांडनाथाय भैरवाय नमोनमः // 203 // नमो // 27 // गिरिशनाथाय वामनाथाय ते नमः // नमो बीजसनाथाय भैरवाय नमोनमः // 204 // नमो मंदरनाथाय मंदनाथाय ते नमः॥ For Private And Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नमो भैरवीनाथाय भैरवाय नमोनमः // 205 // अंबानाथाय नाथाय जंतुनाथाय ते नमः॥ नमः कालिसनाथाय भैरवाय नमोनमः // है॥२०६॥ नमो मुकुंदनाथाय कुंदनाथाय ते नमः॥ नमः कुंडलनाथाय भैरवाय नमोनमः॥२०७॥ नमोष्टचक्रनाथाय चक्रनाथाय ते नमः॥ नमो विभूतिनाथाय शूलनाथाय ते नमः॥२०८ // नमो न्यायसनाथाय न्यायनाथाय ते नमः॥ नमो दयासनाथाय जंगमेशा SIय ते नमः॥२०९॥ नमो विशदनाथाय जगन्नाथाय ते नमः // नमः कामिकनाथाय भैरवाय नमोनमः // 210 // नमः क्षेत्रसनाथाय जीवनाथाय ते नमः // नमो केवलनाथाय चैलनाथाय ते नमः॥२१३॥ नमो मात्रासनाथाय आमत्राय नमोनमः // नमो द्वंद्वसनाथाय भैरवाय नमोनमः // 212 // नमः शूरसनाथाय शूरनाथाय ते नमः // नमः सौजन्यनाथाय सौजन्याय नमोनमः // 213 // नमो दष्टसनाथाय भैरवाय नमोनमः // नमो भयसनाथाय बिंवनाथाय ते नमः // 214 // नमो मायासनाथाय भैरवाय नमोनमः // नमो विटंकनाथाय टंकनाथाय ते नमः // 215 // नमश्चर्मसनाथाय खड्गनाथाय ते नमः // नमः शक्तिसनाथाय धनुर्नाथाय ते नमः // N // 216 // नमो मानसनाथाय शापनाथाय ते नमः // नमो यंत्रसनाथाय भैरवाय नमोनमः // 217 // नमो गंडूषनाथाय गंडूषाय नमोनमः।। नमो डाकिनिनाथाय भैरवाय नमोनमः // 218 // नमो डामरनाथाय डारकाय नमोनमः।। नमो डंकसनाथाय डंकनाथाय | चते नमः // 219 / / नमो मांडव्यनाथाय यज्ञनाथाय ते नमः / / नमो यजुःमनाथाय कीडनाथाय ते नमः॥२२०॥ नमः सामसनाथा याथर्वनाथाय ते नमः॥नमः शून्याय नाथाय स्वर्गनाथाय ते नमः।।२२३॥इदं नामसहस्रं मे रुद्रेण परिकीर्तितम् // यः पठेत्साठयेदापि स एव मम सेवकः // 222 // ययं चिंतयते काम कारंकारं पियाकतिम् // यः शृणोति दुरायंतं तंतं प्रामोति मामकः॥२२३। राजद्वारे For Private And Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं.म. 1278 // श्मशाने तु पृथिव्यां जलसन्निधौ।। यः पठेन्मानवो नित्यं स शूरः स्यान्न संशयः // 224 // एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा पठेन्नरः।।स |पू० ख०१ भावेबुद्धिमान्लोके सत्यमेव न संशयः॥२२५॥ यः शृणोति नरो भक्त्या स एव गुणसागरः / / यः श्रद्धया रात्रिकाले शृणोति पठयते च भैतं. वा // 226 / / स एव साधकः प्रोक्तः सर्वदुष्टविनाशकः।। अर्धरात्रे पठेद्यस्तु स एव पुरुषोत्तमः // 227 / / त्रिसंध्यायां देवगृहे श्मशाने च तरं० 10 dविशेषतः / / वने च मार्गगमने बले दुर्जनसन्निधौ // 228 // यः पठेत्प्रयतो नित्यं स सुखी स्यान्न संशयः॥ विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी | लभते धनम्।।२२९॥शौर्यार्थी लभते शौर्य पुत्रार्थी पुत्रमामुयात् / / एवंविंशतिमंत्रेण अक्षरेण सहैव मे // 230 // यः पठेत्प्रातरुत्थाय सर्व काममवामुयात् // रसार्थी पाठमात्रेण रसं पामोति नित्यशः॥२३१॥ अन्नार्थी लभते चान्नं सुखार्थी सुखमामुयात् // रोगी प्रमुच्यते रोगा दो मुच्येत बंधनात् // २३२॥शापार्थी लभते शापं सर्वशत्रुविनाशनम् // स्थावरं जंगमं वापि विषं सर्व प्रणश्यति // 233 // सर्वलो कप्रियः शांतो मातृपितृप्रियंकरः // संग्राम विजयस्तस्य यः पठेद्भक्तिसंयुतः // 234 // सर्वत्र जयदं देवि स्तोत्रमेतत्प्रकीर्तितम् // इदं / स्तोत्रं महत्पुण्यं निंदकाय न दर्शयेत् // 235 // असाधकाय दुष्टाय मातृपितृविकारिणे // अधार्मिकायाकुलीनाय नैतत्स्तोत्रं प्रकाशयेत् // // 236 // साधकाय च भक्ताय योगिने धार्मिकाय च // गुरुभक्ताय शांताय दर्शयेत्साधकोत्तमः // 237 // अन्यथा पापलिप्तः स्यात्क्रोधाय भैरवोत्तमे // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गोपनीयं प्रयत्नतः // 238 // इदं स्तोत्रं च रुद्रेण रामस्यापि मुखेर्पितम् // तन्मुखान्निः / मृतं लोके दरिद्रायापि साधवे // 239 // रामेण कथितं भाने लक्ष्मणाय महात्मने // ततो दुर्वाससा प्राप्तं तैनेवोक्तं तु पांडवे // 28 // // 240 // पांडवोप्य ववीत्कृष्णं कृष्णेनेह प्रकीर्तितम् // अस्य स्तोत्रस्य माहात्म्यं रामो जानाति तत्त्वतः // 241 // रामोपि राज्य For Private And Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir www.kabalrm.org संप्राप्तो ह्यस्य स्तोत्रस्य पाठतः॥ पांडवोपि तथा राज्यं संप्राप्तो भैरवस्य च // 242 // अनेन स्तोत्रपाठेन किमलभ्यं भवेदिति // सर्व लोकस्य पूज्यस्तु जायते नात्र संशयः // 243 // इति श्रीरुद्रयामलोक्तश्रीवटुकभैरवसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् // श्रीगणेशाय नमः॥ अथ श्रीबटुकभैरवस्तवराजप्रारंभः // ( उक्तं च रुद्रयामले ) // मेरुपृष्ठे सुखासीनं देवदेवं त्रिलोचनम् // शंकरं परिपप्रच्छ पार्वती परमे श्वरम् ॥१॥पार्वत्युवाच // य एष भैरवो नाम आपदुद्धारको मतः // त्वया च कथितो देव भैरवः कल्प उत्तमः // तस्य नामसहस्रा णि प्रयुतान्यर्बुदानि च // 2 // सारमुद्धत्य तेषां वै नामाष्टशतकं वद // यानि संकीर्तयन्मर्त्यः सर्वदुःखविवर्जितः // 3 // सर्वान्का मानवामोति साधकः सिद्धिमेव च // ईश्वर उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि भैरवस्य महात्मनः // आपदुद्धारणस्येह नामाष्टशतमुत्तमम् // 4 // सर्वपापहरं पुण्यं सर्वापद्विनिवारणम् / / सर्वकामार्थदं देवि साधकानां सुखावहम् // 5 // सर्वमंगलमांगल्यं सर्वोपद्रवनाश नम् // आयुःकरं पुष्टिकरं श्रीकरं च यशस्करम् // 6 // आद्यन्ते स्तोत्रपाठस्य मूलमंत्र जपेन्नरः // अष्टोत्तरशतं धीमान् यथासंख्य मथापि वा // जपतिप्युत्तरन्यासाः कर्तव्या जपसिद्धये // 7 // आयुरारोग्यमैश्वर्य सिद्धार्थ विनियोजयेत् // साधकः सर्वलोकेषु सत्यंसत्यं न संशयः // 8 // ॐ अस्य श्रीवटुकभैरवस्तोत्रमंत्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः / अनुष्टुप्छन्दः / श्रीवटुकभैरवो / देवता / अष्टबाहुमिति बीजम् // त्रिनयनमिति शक्तिः। प्रणवः कीलकम् / ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥ ॐ बृहदारण्यकक्ष ये नमः शिरसि 1 अनुप्छंदसे नमः मुखे 2 श्रीवटुकभैरवदेवतायै नमः हृदये 3 अष्टबाहुमिति बीजाय नमः गुह्ये 4 त्रिनयनेति शक्तये / नमः पादयोः 5 ॐ कीलकाय नमः नाभौ 6 विनियोगाय नमः सर्वांगे 7 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ॐ ह्रां वाँ ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः For Private And Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir में // 279 // पू० ख. * तं. तरं.१० सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोधिपतिब्रह्माशियो गे अस्तु सदाशिवोम् // अंगुष्ठात्यां नमः // 3 // ॐ ह्रीं वीं तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि // तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ॐ हूँ, अघोरेत्योऽथ घोरेत्यो घोरघोरतरेत्यः॥ सत्यः सर्वशर्वायो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेत्यः॥ मध्यमाश्यां नमः॥३॥ॐ हैं वै बामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बल विकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः // अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ॐ ह्रौं वौं सयोजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः॥भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः॥कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥५॥ॐ ह्रः वः पंचवाय महादे वाय नमः // करतलकरपृष्ठायां नमः॥६॥इति करन्यासः॥ॐ हाँ वाँ ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिब्रह्मणोधिपतिब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम् // हृदयाय यमः॥१॥ॐ ह्रीं वा तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि // तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ हूँ यूँ अघोरेश्योऽथ घोरेश्यो घोरघोरतरेश्यः॥ सर्वेयः सर्वशयो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेत्यः॥शिखायै वषट् // 3 // ॐ हैं बैं वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मयाय नमः // कवचाय हुम् ॥४॥ॐ ह्रींवों सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः // भवेभवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः // नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रः वः पंचवक्राय महादेवाय नमः अवाय फट् // 6 // इति हृदयादि षडङ्गन्यासः // ॐ ह्रीं भैरवाय नमः मूनि॥१॥ॐ ह्रीं भीमदर्शनाय नमः ललाटे॥२॥ॐ ह्रीं भूताश्रयाय नमः नेत्रयोः॥३॥ॐ ह्रीं भूत / 1 एवं न्यासमभावणभक्तोपरि भैरवा प्रसन्नो भवति / For Private And Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नायकाय नमः कर्णनोः॥४॥ॐ ह्रीं त्रिशूलाय नमः नासिकायाम् // 5 // ॐ ह्रीं रनपाय नमः जिवायाम् ॥६॥ॐ ह्रीं नागहा रनागयज्ञोपवीतिकाय नमः कंठे॥७॥ ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नमःकरयोः॥८॥ ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नमः हृदये // 9 // ॐ ह्रीं क्षेत्रदाय नमः नाभौ // 10 // ॐ ह्रीं सबोधनाशानाय नमः कट्याम् // 1 // ॐ ह्रीं त्रिनेत्राय नमः ऊोंः॥१२॥ ॐ ह्रीं रक्तपायिने नमः जंघयोः // 13 // ॐ ह्रीं देवदेवेशाय नमः सर्वांगे॥१४॥इति देहन्यासः॥ॐ ह्रीं भैरवाय नमः अंगुष्ठान्यां नमः॥३॥ॐ ह्रीं भीमदर्शनाय नमः तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ ह्रीं भूतश्रेष्ठाय नमः मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ हीं भूतनायकाय नमः अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ ह्रीं क्षत्रियाय नमः कनिष्ठिकात्यां नमः॥५॥ ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥ ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय दिग्दिशायाम् // 7 // ॐ भैरवाय नमः सर्वांगे // 8 // इति करन्यासो द्वितीयः॥ ॐ ह्रीं भैरवाय नमः शिरसि // 3 // ॐ ह्रीं भीमदर्शनाय नमः ललाटे // 2 // ॐ ह्रीं भूतहननाय नमः नेत्रयोः॥३॥ॐ ह्रीं सारमेयानुगाय नमः त्रिवोः॥४॥ॐ ह्रीं भूतनाथाय नमः कर्णयोः॥५॥ॐ ह्रीं प्रेतवाहनाथाय / नमः कपोलयोः॥६॥ॐ ह्रीं भस्मांगाय नमः नासापुटे॥७॥ॐ ह्रीं सर्पभूषणाय नमः ओष्ठयोः॥८॥ॐ ह्रीं आदिनाथाय नमः मुखे // 9 // ॐ ह्रीं शक्तिहस्ताय नमः गले॥१०॥ॐ ह्रीं दैत्यशमनाय नमः स्कंधयोः॥३३॥ॐ ह्रींअतुलतेजसे नमः बाह्वोः॥१२॥ॐ ह्रीं कपालिने / नमः करयोः॥१२॥ ॐ ह्रीं मुण्डमालिने नमः हृदये ॥१३॥ॐ ह्रीं शांताय नमः वक्षःस्थले // 14 // ॐ ह्रीं कामचारिणे नमः स्तनयोः ॥१५॥ॐ ह्रीं सदातुष्टाय नमः उदरे॥१६॥ॐ ह्रीं क्षेत्रेशाय नमः पार्थयोः॥१७॥ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नमः पृष्ठे // १८॥ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नमः नाभौ // 19 // ॐ ह्रीं पपौधनाशाय नमः कटयाम्॥२०॥ॐ ह्रीं वटुकाय नमः लिंगे॥२१॥ॐ ह्रीं रक्षाकराय नमः। For Private And Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya She Kalassarsu Oyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं०मा खं०१ म गुदे // 22 // ॐ ह्रौं रक्तलोचनाय नमः ऊोंः // 23 // ॐ ह्रीं घुघुराय नमः जानुनि // 24 // ॐ ह्रीं रक्तपायिने नमःपू० // 28 // जंघयोः // 25 // ॐ ह्रीं सिद्धपादुकाय नमः गुल्फयोः // 26 // ॐ ह्रीं सुरेश्वराय नमः पादपृष्ठे // 27 // ॐ ह्रीं आपदुद्धारकाय नमः आपादतलमस्तकपर्यंतं न्यसेत् // 28 // ॐ ह्रीं क्ष्नौं ब्लौं ह्रीं ॐ स्वाहा आपदुद्धारणभैरवाय नमः // ' अनेन सर्वाङ्गे व्यापकं| कुर्यात् // 29 // इति व्यापकन्यासः // ॐ ह्रीं डमरुहस्ताय नमः पूर्वे // 1 // ॐ ह्रीं दंडधारिणे नमः दक्षिणे // 2 // ॐ ह्रीं खड्गहस्ताय नमः पश्चिमे // 3 // ॐ ह्रीं घंटावादिने नमः उत्तरे // 4 // ॐ ह्रीं अग्निवर्णाय नमः अग्रये // 5 // ॐ ह्रीं दिगम्ब राय नमः नैर्ऋते // 6 // ॐ ह्रीं सर्वभूतस्थाय नमः वायव्ये // 7 // ॐ ह्रीं अष्टसिद्धिदाय नमः ऐशान्याम् // 8 // ॐ ह्रीं खेचा रिणे नमः ऊर्ध्वम् // 9 // ॐ ह्रीं रौद्ररूपिणे नमः पाताले // 10 // इति दिग्न्यासः // ॐ ह्रीं रुद्राय नमः अंगुष्ठयोः // 1 // ॐ ह्रीं शिखिसखाय नमः तर्जन्याम् // 2 // ॐ ह्रीं शिवाय नमः मध्यमायाम् // 3 // ॐ ह्रीं त्रिशूलिने नमः अनामिकायाम् / Pu4 // ॐ ह्रीं ब्रह्मणे नमः कनिष्ठिकायाम् // 5 // ॐ ह्रीं त्रिपुरांतकाय नमः करतलयोः॥ 6 // ॐ ह्रीं मांसाशिने नमः करा ग्रेषु // 7 // ॐ ह्रीं दिगंबराय नमः करपृष्ठयोः॥८॥ इति विलोमरूपेण करन्यासः // ॐ ह्रीं भूतनाथाय नमः हृदयाय नमः॥ // 1 // ॐ ह्रीं आदिनाथाय नमः शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ ह्रीं आनन्दनाथाय नमः शिखायै वषट् // 3 // ॐ ह्रीं सिद्धशावर // 28 // नाथाय नमः कवचाय हुम् // 4 // ॐ ह्रीं सहजानन्दनाथाय नमः नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रीं श्रीआनन्दनाथाय नमः 1 एवं न्यासविधि कृत्वा साक्षाद्भरवो भवेत् // For Private And Personal use only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www. Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kasagar Gyanmandir bath.org अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादि पडङ्गन्यासः // एवं न्यासविधि समाप्य कामनापरत्वेनोपयोगिरूपं ध्यायेत्।।अथ सात्त्विकं ध्यानम् Lal वंदे बालं स्फटिकसदृशं कुंडलोद्भासितांगं दिव्याकल्पैनवमणिमयैः किंकिणीनूपुराव्यैः // दीनाकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं हस्ता। याभ्यां वटुकसदृशं शूलदंडी दधानम् // 1 / / अथ राजमं ध्यानम् // उद्यद्भास्करसभिन्नं त्रिनयनं रक्तांगरागस्रज स्मेरास्यं वरदं कपालमभयं शूलं दधानं करैः॥ नीलग्रीवमुदारभूषणयुतं शीतांशुखंडोज्ज्वलं बंधूकारुणवाससं भयहरं देवं सदा भावये ॥२॥अथ तामसं ध्यानम्।। ध्यायेन्नीलादिकांतं शशिशकलधरं मुंडमालं महेशं दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ मुणिं खड्गपाशाभयानि // नागं घंटां कपालं करमरमिरुहै। बिश्चतं भीमदंष्ट्रं दिव्याकल्लं त्रिनेत्रं मणिमयविलसत्किंकिणीनपुराट्यम् / / 3 // अथ सकलमनोरथप्राप्त्यर्थमिदं त्रिगुणात्मक ध्या नम् // शुद्धःस्फटिकसंकाशं सहस्रादित्यवर्चसम् // नीलजीमूतसंकाशं नीलांजनसमप्रभम् // 3 // अष्टबाहुं त्रिनयनं चतुर्बाहूं दिया / हुकम् // दंष्ट्राकरालवदनं नपुरारावसंकुलम् // 2 // भुजंगमेखलं देवमग्निवर्ण शिरोरुहम् // दिगंबरं कुमारेशं बटुकाख्यं महाबलम्॥३॥ खटांगमामिपाशं च शूलं दक्षिणभागतः // डमरूं च कपालं च वरदं भुजगं तथा // आत्मवर्णसमोपेतं सारमेयसमन्वितम् // 4 // अथ साधारणं ध्यानम् // करकलितकपालः कुंडली दंडपाणिस्तरुणतीमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती / / ऋतुसमयसपर्या विनविच्छेदहेतुर्जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् // 1 // आनीलकुंतलमलक्करक्तवर्ण मौनीकतं कृत मनोज्ञमुखारविंदम् // कल्याणकीर्तिकमनीयकपालपाणिं बंदे महावटुकनाथमभीष्टसिद्धयै // 2 // आनम्रसर्वगीर्वाणशिरोमँगांगसंगि। ऋरकार्येषु सर्वेषु ध्यानं थे तामसं स्मृतम् / / वश्ये विद्धषणे स्तंभे राजसं ध्यानमीरितम् // सात्विक शुभकार्येषु ध्यानभेदः समीरितः // सर्वकामार्थसिद्धयर्थ राजसं ध्यानमुच्यते // 71 For Private And Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maa Jain Aradhana Kendra mmm.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir म. म. 281 // नम् // भैरवस्य पदांभोज भूयोऽस्या नौमि भूतये // 3 // एवं यथारुचि ध्यात्वा भैरवं प्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः॥ "ॐ ह्रीं भैरवभैरवन - खं० / यकरहरमांरक्षरक्षहुंफट्स्वाहा” इति मंत्रेण प्रार्थयित्वा पटलस्थयंत्रपीठे आवाहनादिप्राण प्रतिष्ठाप्य षोडशोपचारैरन्यय॑ पुनः कामनापरत्वे भ० तं. न यथारुचि ध्यात्वा प्रार्थनामंत्रण प्रार्थयित्वा दीपदानं कुर्यात् // अथ दीपदानप्रयोगः॥मंत्राक्षराणां संख्याकैस्तंतुभिर्ब्रह्मसूत्रजैवर्ति दत्त्वा तरं०१० घृते नैव दीपं तत्र प्रदापयेत्॥अथ दीपदानमंत्रः॥“ॐ ह्रींश्रीक्लींहीश्रीवं सर्वज्ञाय महाबलपराक्रमाय वटुकाय नमः।। इमं दीपं गृहाण सर्व कार्यार्थ साधक दुष्टान्नाशयनाशय त्रासयत्रासय सर्वतो मम रक्षां कुरुकुरु फट् स्वाहा // " अनेन मंत्रेण दीपं दत्त्वा मूलमंत्रण त्रिराचम्य / हस्तौ प्रक्षालयेत्॥एवं दीपदानं समाप्य बलिदानं कुर्यात्॥अथ बलिदानप्रयोगः ॐ ह्रां नमः॥१॥ॐ ह्रीं नमः // 2 // ॐ कुं नमः॥३॥ एभिबीजेत्रिनिराचम्य मूलेन प्राणायामं कृत्वा देशकालौ संकीर्त्य ममामुकफलावाप्तये श्रीवटुकपीतये बलिदानमहं करिष्ये // इति || / संकल्प्य गणपतिं दुर्गी रक्तैश्चन्दनाक्षतपुष्पैरत्यर्च्य देवस्याग्रे त्रिकोणं चतुरस्र मण्डलं कृत्वा तत्र गंधाद्यैरत्यर्च्य पात्रस्थं कवलाकारं संपादितं बलिं निधाय गंधपुष्पाभ्यां मूलांते 'बलिरूपाय नमः' इति बलिं संपूज्य देवं तत्र संचित्य संपूज्य हस्ते बलिमादाय "ॐ एह्येहि देववटुकनाथ कपिलजटाभारभामुर त्रिनेत्र ज्वालामुख सर्वविघ्नान्नाशयनाशय सर्वोपचारसहितं बलिं गृहगृह स्वाहा एषबालर्बटुका शाय नमः" इति मंत्रेण बलिं दद्यात् // ततो देशकालौ संकीर्त्य मम सकलकामनासिद्ध्यर्थे श्रीबटुकभैरवस्तोत्रस्यैकादशसहस्रपुरश्चरणां गत्वेन प्रतिस्तोत्रंमूलमंत्रस्योत्तरशतसंख्याजपसंपुटितामुकसंख्यपाठमहं करिष्ये // इति संकल्प्य // मूलमंत्राष्टोत्तरशतवारं जपेत् // // 281 // 1 द्विविधो बलिराण्यातोराजसः सात्विको बुधैः।।राजसो मांसरक्ताड्यः पलवयसमन्वितः // मुद्रपायससंयुक्तो मधुरवयसंयुत ॥सात्विको मांसरहितः शेष जामन्यापुरोक्तस्त् // ब्राह्मणो नियतः शुद्धः सात्त्विकं बलिमाहरेत् // For Private And Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www. Acharya Shri Kasagar Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra bath.org अथ मूलमंत्रः ॥"ॐ ह्रीं वटुकायापदुद्धारणाय कुरुकुरु बटुकाय ह्रीं ॐ" // एवमष्टोत्तरशतमूलमंत्रस्यजपेन श्रीवटुकभैरवः प्रीयताम् // ततो वटुकाय नमस्कृत्य पंचोपचारैः संपूज्य पुस्तकं पूजयित्वा स्तोत्रं पठेत् // अथ स्तोत्रम् // ॐ ह्रीं भैरवोभूतनाथश्च भूतात्माभूतभा वनः // क्षेत्रदः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रज्ञः क्षत्रियो विराट् // 1 // श्मशानवासीमांसाशीखर्पराशिःस्मरांतकत् // रक्तपःपानपःसिद्धःसिद्धिदः / सिद्धसेवितः॥२॥कंकालःकालशमनःकलाकाष्ठातनुः कविः // त्रिनेत्रोबहुनेत्रश्चतथापिंगललोचनः // 3 // शूलपाणिःखड्गपाणिः कंकालीधूम्रलोचनः॥ अभीरुभैरवोनाथोभूतपोयोगिनीपतिः // 4 // धनदोधनहारीचधनवान्प्रीतिभावनः // नागहारोनागपाशो व्योमकेशः कपालभृत् / / 5 // कालः कपालमालीचकमनीयःकलानिधिः॥ त्रिलोचनोज्ज्वलन्नेत्रस्खिशिखीचत्रिलोकपः // 6 // त्रिने त्रतनयोडिंभःशांतःशांतजनप्रियः // वटुकोवटुवेषश्चखट्वांगवरधारकः // 7 // भूताध्यक्षःपशुपतिःभिक्षुकःपरिचारकः // धूर्तोदिगंबरः शूरोहरिणःपांडुलोचनः॥८॥प्रशांतःशांतिदःसिद्धः शंकरःप्रियबांधवः // अष्टमूर्तिनिधीशश्वज्ञानचक्षुस्तपोमयः // 9 // अष्टाधारःषडाधारः सर्पयुक्तशिखामखः / भूधरोभूधराधीशोभूपतिर्भूधरात्मजः॥ 10 // कंकालधारीमुंडीचनागयज्ञोपवीतवान् // Mभणोमोहनःस्तंभीमार / णः क्षोभणस्तथा // 11 // शुद्धनीलांजनप्रख्यो दैत्यहा मुंडभूषितः // बलिभम्बलिभुनाथो बालोबालपराक्रमः // 12 // सर्वापत्ता रणो दुर्गों दुष्टभूतनिषेवितः // कामी कलानिधिः कांतः कामिनीवशकदशी // 13 // सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यो प्रभुर्विष्णुरितीवहिः // अष्टो तरशतं नाम्नां भैरवस्य महात्मनः // 14 // मया ते कथितं देवि रहस्यं सर्वकामदम्॥य इदं पठति स्तोत्रं नामाष्टशतमुत्तमम्॥१५॥न तस्य दुरितं किंचिन्नच. भूतभयं तथा // न च मारीभयं तस्य ग्रहराजभयं तथा // 16 // न शत्रुत्यो भयं वापि प्रामुयान्मानवः क्वचित् // For Private And Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 2 // मं०म०पातकानां भयं चैव पठेत्स्तोत्रमनुत्तमम्॥१७॥मारीभये राजभये तथा चोरामिजे भये // औत्पत्ति के महाघोरे तथा दुःस्वमदर्शने॥१८॥ पू० ख० / बंधने च तथा घोरे पठेत्स्तोत्रमनन्यधीः // सर्व प्रशमनं याति भयं भैरवकीर्तनात् // 19 // एकादशसहस्रं तु पुरश्चरणमुच्यते // य / / भै० तं. // 282 // विसंध्यं पठेद्देवि सम्वत्सरमतंद्रितः // 20 // स सिद्धि प्रामुयादिष्टां दुर्लभामपि मानवः // षण्मासं भूमिकामस्तु जपित्वा प्रामयान्महीम् जा ५॥२१॥राजशत्रुविनाशार्थं जपेन्मासाष्टकं पुनः॥रात्रौ वारत्रयं चैव नाशयत्येव शात्रवान्॥२२॥जपेन्मासत्रयं मयों राजानं वशमानयेत्॥ धनार्थी च सुतार्थी च दारार्थी यस्तु मानवः // 23 // जपेन्मासत्रयं देवि वारमेकं तथा निशि // धनं पुत्रं तथा दारान्प्रामुयान्नात्र संशयः / // 24 // रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बंधनात् // भीतो भयात्प्रमुच्येत देवि सत्यं न संशयः // 25 // निगडैश्चापि बद्धो यः कारागेहे निपातितः // शृंखलाबंधनं प्राप्तं पठेच्चैव दिवानिशि // 26 // ययं चिंतयते काम तंतं प्रामोति निश्चितम् // अप्रकाश्यं परं / -ग्रंथांतरे विशेष:---रात्री बारवयं यो वै तस्य वश्यं जगद्भवेत् // प्रातश्चैकादशावृति रात्री वा पुनरेव हि // 1 // पूर्ववच्च विधिं कृत्वा पठनीयः स्तवः शुभः। महानिशि विरावृत्तिं यः करोति सदा शुचिः॥२॥राजानो वशमायांति सभासोभास्करो भवेत् // शनौ च प्रातरुत्थाय दशावृति चोदिह // 3 // होमादिकं च संपाद्य षण्मासादतुलां श्रियम् // शनौ चैवाश्वत्थमूळे पूजयित्वा शिवं प्रिये // 4 // शतावृत्ति पठित्वा तु जगदल्लभतामियात् // रखी च नाभिमावे हि जले स्थित्वा पठेदिह // 5 // एकादश तथावृत्ति पठित्वा प्राप्नुयाठियम् // पठेच रोगांत्यर्थ नक्षत्रे पुष्यसंज्ञके // 6 // अष्टावृत्तिं पठेद्यो वै आरोग्यं लभते ध्रुवम् // रवीच |विप्रान्तपूज्य पाउपेच्छतवारकम् // 7 // वारे वारे च षण्मासं पठित्वा मुतमाप्नुयात् // सप्तजन्मभवा बंध्या जावरपुत्रा भवादह // 8 // कन्याकामी भवेद्यो ये|| विकाळ रविवासरे // षण्मासादप्तरातल्यां लभते खियमतमाम ॥९॥वैद्यानामप्यसाध्यो वै रोगी भवति यस्य च // तस्य रोगस्प शांत्यर्थं पठेत्स्तोवाच मनुत्तमम् // 10 // निष्फलश्च क्रतुस्तस्य भवतीह सदा प्रिये // सहस्त्रावर्तनं कृत्वा सफलश्च ऋतुभवत् // 11 // ग्रहणे च पठेद्यो वे विधिना चन्द्रसूर्ययोः // मना // 28 द्दिष्टां तदा सिद्धि प्राप्नुयान्नाव संशयः // तीर्थे चैव शुभे क्षेत्रे शिवस्य सन्निधौ प्रिये / पठित्वा पुत्रमंत्र च सद्यः सिद्धिं लभेदिह। विरावृत्ति दशावृत्ति विंशति या शतावधिः। सहस्त्रसंख्यया वाय चकादशसहस्रकम् // पुरश्चरणकं प्रोक्तं भैरवस्य महात्मनः।। पुरश्चरणकं कृत्वा पठते नित्यमेव च / सद्यः सिद्धि यथोक्ता हि प्राप्नु यानात्र संशयः॥ मानुषं जन्म मासाद्य दुःखभाजो भवंति वै॥ते भजंतु सदा देवं भैरवं सुखदायकम् // तददुःखं नैव विद्येत भैरवो नाशयेदिद्द // For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir गुह्यं न देयं यस्य कस्य चित् // 27 // सुकुलीनाय शांताय कजवे दंभवर्जिते // दद्यात्स्तोत्रमिमं पुण्यं सर्वकामफलप्रदम् // 28 // इतिश्रुत्वाततोदेवीनामाष्टशतमुत्तमम् // जजापपरयाभक्त्यासदासर्वेश्वरेश्वरी // 29 // भैरवोपिप्रहृष्टोभूत्सर्वलोकमहेश्वरः // वरंददाति ) भक्तेभ्यःपठेत्स्तोत्रमनन्यधीः // संतोषपरमंप्राप्यभैरवस्यमहात्मनः // 30 // वारंवारंभुवनजननीप्रोच्यतेसाधुवादः सत्यंसत्यंजगति। सकलेरखोदेवएकः // यांयांसिद्धिभुवनजठरेकामयेन्मानवोयस्तांस्तां सिद्धिवितरतिमदाभैरवःसुप्रसन्नः // 31 // पाणियांपरितः प्रपीड्यसुदृढनिश्चोत्यनिश्चोत्यच ब्रह्माण्डंसकलंप्रचालितरसालोचैःफलाभमुहुः // पायंपायमपाययत्रिजगतियुन्मुत्तवत्तैरसैत्यस्तांडव मंबरेणशिरसापायान्महाभैरवः // 32 // विश्वाणःशुचवर्णद्विगुणनवभुजांचवक्रत्रिनेत्रं ज्ञानेमुनेंद्रशास्वंसविषममृतकशंखभैषज्यचा पम् // शूलंखटांगवाणान्डमरुमसिगदावह्निमारोग्यमालामिष्टानीतिंचदोर्जियतिखलुमहाभैरवःसर्वसिद्धये // 33 // क्वाकाशःक्समीरणः / क्वदहनःक्कापश्चविश्वंभरा क्वब्रह्माकजनार्दनःक्वतरणिःकेंदुश्चदेवासुराः॥ कल्पांतभदिगीशवत्प्रमुदितःश्रीसिद्धयोगीश्वरः क्रीडानाटकनायको विजयतेदेवोमहाभैरवः // 34 // लिखित्वापरयाभक्त्याभैरवस्तोत्रमुत्तमम् // अष्टानांबाह्मणानांचदेयंपुस्तकमादरात् // 35 // यान / यान्समीहतेकामांस्तांस्तान्प्रामोत्यसंशयम् // इहलोकेसुखप्राप्यपुस्तकस्यप्रसादतः // 36 // शिवलोकमनुप्राप्यशिवेनसहमोदते // लिखि, त्याभूर्जपत्रेतुत्रिलोहपरिवेष्ठितम् // 37 // सौम्येचवस्तुवसनेकर्पटेचमुशोजने // करेबाहोगलेकटयांमूनिंत्रिलोहगोपितम् // यस्तुधारयतेस्तोत्रं सर्वत्रजयमामुयात् // 38 // इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे देवीश्वरसम्बादे आपदुद्धारकरीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समानम् // अथ बटुकभैरवाष्टोनरशतनामस्तोत्रम् (कालसंकर्षणतंत्रे) ॐ अस्य श्रीवटुकभैरवस्तोत्रमंत्रस्य कालाग्निरुद्र ऋषिः / अनुष्टुपछंदः। आप For Private And Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म 2 नां०१० दुद्धारकबटुकभैरवो देवता / ह्रीं बीजम् / भैरवीवल्लभः शक्तिः। नीलवर्णो दंडपणिरिति कीलकम् / समस्तशत्रुदमने समस्तापन्निवारणेस र्वाभीष्टप्रदाने च विनियोगः // ॐ कालानिरुद्रऋषये नमः / शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // आपदुद्धारकवटुको खदेवतायै नमः / हृदये // 3 // ह्रीं बीजाय नमः / गुह्ये // 4 // भैरवीवल्लभशक्तये नमः / पादयोः // 5 // नीलवर्णो दंडपाणे रिति कीलकाय नमः नाभौ // 6 // विनियोगाय नमः सर्वांगे // 7 // इति ऋष्यादिन्यासः // अथ मूलमंत्रः // "ॐ ह्रीं वां वटु काय झौं क्षौं आपदुद्धारणाय कुरुकुरु बटुकाय हां बटुकाय स्वाहा // " इति मूलमंत्रः // अथ ध्यानम् // नीलजीमूतसंकाशो जटिलो रक्तलोचनः // दंष्ट्राकरालवदनः सर्वयज्ञोपवीतिवान् // 1 // दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपालस्रग्विभूषितः // हस्तन्यस्तकिरीटीको भस्मभूषितविग्रहः // 2 // नागराजकटीसूत्रो बालमूर्तिदिगंबरः॥ मंजुसिंजानमंजीरपादकंपितभूतलः // 3 // भूतप्रेतपिशाचैश्च सर्व | तः परिवारितः॥ योगिनीचकमध्यस्थो मातृमंडलवेष्टितः॥ 4 // अट्टहासस्फुरद्वको भृकुटीभीषणाननः // भक्तसंरक्षणार्थाय दिक्षु / भ्रमणतत्परः // एवंभूतस्तु वटुको ध्यातव्यो भैरवीश्वरः॥५॥एवं ध्यात्वा स्तोत्रं पठेत् // ॐ ह्रीं-बटुको वरदः शूरो भैरवः कालभैरवः॥ भैरवीवल्लभो भव्यो दंडपाणिर्दयानिधिः // 6 // बेतालवाहनो रौद्रो रुद्रभ्रुकुटिसंभवः॥ कपाललोचनः कांतः कामिनीवशकदशी // 7 // आपदुद्धारणो धीरो हरिणांकशिरोमणिः // दंष्ट्राकरालो दष्टोष्ठो धृष्टो दुष्टनिबर्हणः // 8 // सर्पहारः सर्वशिरः सर्पकुंडलमंडितः / / क पाली करुणापूर्णः कपालैकशिरोमणिः // 9 // श्मशानवासी मांसाशी मधुमत्तोट्टहासवान् // वाग्मीवामवतोवाग्मीवामदेवप्रियंकरः // |॥१०॥बनेचरोरात्रिचरो वसुदो वायुवेगवान् // योगी योगवतधरो योगिनीवल्लभो युवा॥११॥वीरभद्रो विश्वनाथो विजेता वीरवंदितः॥ For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sha ran Aradhana Kendra me.kobarmarg Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir भूताध्यक्षो भूतिधरो भूतभीतिनिवारणः॥ 12 // कलंकहीनः कंकाली क्रूरः कुक्कुरखाहनः // गाढो गहनगंभीरो गणनाथसहोदरः॥ // 13 // देवीपुत्रो दिव्यमूर्तिीतिमान् दीतिलोचनः // महासेनप्रियकरो मान्यो माधवमातुलः // 14 // भद्रकालीपतिद्रो भद्रदो। भद्रवाहनः॥ पशूपहाररसिकः पाशी पशुपतिः पतिः // 15 // चंडः प्रचंडचंडेशश्चंडीहृदयनंदनः // दक्षो दक्षाध्वरहरो दिग्वासा दीर्घ लोचनः॥ 16 // निरातको निर्विकल्पः कल्पः कल्पांतभैरवः // मदतांडवकन्मत्तो महादेवप्रियो महान् // 17 // खटांगपाणिः खातीतः खरशूलः खरांतकृत् // ब्रह्मांडभेदनो ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मणपालकः॥ 18 // दिक्चरो भूचरो भूष्णुः खचरो खेलनप्रियः / सर्व दुष्टप्रहर्ता च सर्वरोगनिषूदनः / / 19 // सर्वकामप्रदः सर्वः सर्वपापनि रतनः // इत्थमष्टोत्तरशतं नाम्नां सर्वसमृद्धिदम् // 20 // आप द्धारजनक बटुकस्य प्रकीर्तितम् // एतच्च शृणुयान्नित्य लिखेवा स्थापयगृहे // 21 // धारयेद्वा गले बाहौ तस्य सर्वाः समृद्धयः॥ न तस्य दुरितं किंचिन्न चोरनृपजं भयम् // 22 // न चापस्मृतिरोगेन्यो डाकिनीन्यो भयं नहि // न कूष्मांडग्रहादियो नापमृत्योर्न च ज्वरात् // 23 // मासमेकं त्रिसंध्यं च शुचिर्भूत्वा पठेन्नरः // सर्वदारियनिर्मुक्तो निधि पश्यति भूतले // 24 // मासयमधीयानः पादुकासिद्धिमान् भवेत् // अंजनं गुटिकाखड्गं धातुवादरसायनम् // 25 // सारस्वतं च वेतालवाहनं बिलसाधनम् // कार्यसिद्धिं / महासिद्धि मंत्रं चैव समीहितम् // 26 // वर्षमात्रमधीयानः प्राप्नुयात्साधकोत्तमः // एतने कथितं देवि गुरागृह्यतरं परम्॥२७॥ कालसंकर्षणीतंत्रे कल्मीकल्मषनाशनम् // नरनारीनृपाणां च वशीकरणमंबिके // 28 // इति कालसंकर्षणतंत्रो वक्तवटु काष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे वटुकभैरवतंत्रे दशमस्तरंगः // 10 // // 7 // For Private And Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० ख०१ मि तं० तर० 11 मं० म० // अथ मिश्रस्तरंगप्रारंभः॥ तत्रादौ क्षेत्रपालमंत्रप्रयोगः॥मंत्रो यथा-"ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः” इति नवाक्षरो मंत्रः॥अस्य विधानम्॥ // 28 // अस्य क्षेत्रपालमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। गायत्री छंदः / क्षेत्रपालो देवता। क्षं बीजम् / लः शक्तिः / सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः॥ ॐ ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि // 3 // ॐ गायत्रीछंदसे नमः मुखे // 2 // ॐ क्षेत्रपालदेवतायै नमः हृदि // 3 // ॐ शंबीजाय नमः गुह्ये॥४॥ ॐलः शक्तये नमः / पादयोः ॥५॥ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ क्षां अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ||ॐ क्षीं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐझं मध्यमाश्यां नमः // 3 // ॐ अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ क्षौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ क्षः करतलकरपृष्ठात्यां नमः॥ 6 // इति करन्यासः॥ ॐ शां हृदयाय नमः // 3 // ॐ क्षी शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ शं शिखायै वषट् // 3 // ॐ ई कवचाय हुम् // 4 // ॐ क्षौं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ क्षः अस्त्राय फट् // 6 // इति| हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ॐ नीलांजनादिनिभमूर्द्धपिशंगकेशं वृत्तोग्रलोचनमुदांतगदा कपालम् // आशांबरं भुजगभूषणमुग्रदष्ट्र क्षेत्रेशमद्भुततनुं प्रणमामि देवम् // 1 // इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूजयेत् // ततः पीठादो रचिते सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य "ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः // " इति संपूजयेत् // अस्य | पाठशक्त्यादेरभावः // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण| संशोष्य पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनन्विा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्यावरणपूजां कुर्यात्॥ तद्यथाषट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च "ॐ क्षां हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। इति सर्वत्र॥1॥ // 28 // For Private And Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra me.kobatm.org Acharya Shet Kailasagasun yanmandir क्षी शिरसे स्वाहा / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ शं शिखायै वषट् / अथ क्षेत्रपालपूजनयन्त्रम्. शिखाश्रीपा०॥ 3 // ॐ झै कवचार्यहुम् // कवचश्रीपा० // 4 // ॐ क्षौं नेत्रत्रयाय वौषटै / नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ क्षः अस्वाय फट् / 3. अस्त्रश्रीपा०॥६॥ इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "ॐ अभीष्टसिद्धिं में देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततो , *क्षक्षेत्र अष्टदले पूज्यपूजकयोरतराले प्राची तदनुसारेणान्यादिशः प्रकल्प्य " प्राचीक्रमेण ॐ अग्निलाख्याय नमः / अग्निलाख्यश्रीपा० // 1 // ॐ अग्निकेशाय नमः / अग्निकेशश्रीपा० // 2 // ॐ करालाय नमः करालश्रीपा० // 3 // ॐ घंटारवाय नमः / घंटारवश्रीपा० // 4 // ॐ महाकोपाय नमः / महाकोपश्रीपा० // 5 // ॐ पिशिताशनाय नमः पिशिताशनश्रीपा० // 6 // ॐ पिंगलाक्षाय नमः / पिंगलाक्षश्रीपा० 1 अग्निलाख्यमग्निकेशं कराळं तदनंतरम् // घंटारवमहाकोप पिशिताशनसंज्ञकम् // पिंगलाक्षमईकेशं पत्रेषु पारतो यजेत् // For Private And Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 7 // ॐ ऊर्द्धकेशाय नमः / ऊर्द्धकेशश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // ततः भुपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रा पुख // 28 // दीन दशदिक्पालान वजाद्यायुधानि च संपूज्य बलिं च दद्यात् // ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः' इति मंत्रण माषाक्तबलिं दत्त्वार्धरात्रे मि० तं. पुनर्बलिं दद्यात्॥अस्य पुरश्चरणं लक्षजपः।तत्तदशांशन होमतर्पणमार्जनब्राह्मभोजनं कुर्यात्॥एवं कृते क्षेत्रपालः प्रसन्नो भवति। तथा च / "लक्षमेकं जपेन्मत्रं जुहुयात्तदशांशतः॥चरुणा वृतसिक्तेन ततः क्षेत्रे समर्चयेत॥१॥बलिनानेन संतुष्ठः क्षेत्रपालः प्रयच्छति॥ कांतिमेधाब लारोग्यतेजःपुष्टियशःश्रियः" इति क्षेत्रपालनवाक्षरमंत्रप्रयोगः॥१॥अथ वरुणमंत्रप्रयोगः।। मंत्रो यथा-ॐ ध्रुवासुत्वासक्षितिषु क्षियंतोव्य स्मत्याशु वरुणो मुमोच॥अबोवन्वाना अदितेरुपस्थायूयंपातस्वस्तिभिःसदानःस्वैः॥इति त्रिचत्वारिंशदक्षरो वरुणमंत्रः॥अस्यविधानम् // अस्य वरुणमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः। त्रिष्टुप्छंदः।वरुणो देवता। सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः।।ॐ वशिष्ठऋषये नमः शिरसि॥३॥त्रिष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // वरुणदेवतायै नमःहृदि // 3 // विनियोगाय नमः सर्वांगे॥४॥इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ध्रुवासुत्वासक्षितिषु इत्यंगुष्ठान्यां नमः॥१॥क्षियंतोव्य स्मत्याशु इति तर्जनीन्यां नमः॥२॥ वरुणो मुमोच इति मध्यमाभ्यां नमः // 3 // अबोवन्वाना अदिते इति अनामिका नयां नमः ॥४॥रुपस्थायूयंपात इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः / / 5 / / स्वस्तिभिः सदानःस्वः इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥ इति कर न्यासः / / ॐ ध्रुवामुत्वासक्षितिषु हृदयाय नमः // 1 // क्षियंतो व्यस्मत्याशु शिरसे स्वाहा // 2 // वरुणो मुमोच शिखायै वषट्॥३॥ अबोवन्वाना अदितेः कवचायहुम् // 4 // रुपस्थायूयंपात नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // स्वस्तिभिः सदानः स्वः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ धुं नमः दक्षपादांगुल्यये / / / / ॐ वां नमः दक्षपादांगुलिमूले // 2 // ॐ सुं नमः / दक्षगुल्फे॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॐ त्वां नमः / दक्षजानुनि // 4 ॥ॐ सं नमः दक्षपादमूले // 5 // ॐ शिं नमः। वामपादांगुल्यमे // 6 // ॐ तिं नमः वाम पादांगुलिमूले // 7 // ॐ पुं नमः / वामगुल्फे // 8 // ॐ शिं नमः। वामजानुनि // 9 // ॐ यं नमः। वामपादमूले // 10 // ॐ तो नमः गुदे // 11 // ॐ व्यं नमः लिंगे // 12 // ॐ स्मं नमः / आधारे // 13 // ॐ त्यां नमः। नाभौ // 14 ॥ॐ शुं ॐनमः / दक्षिणकुक्षौ // 15 // ॐ वं नमः / वामकुक्षौ // 16 // ॐ नमः। पृष्ठे // 17 // ॐ णों नमः / हदि // 18 // ॐ| मुं नमः / दक्षिणस्तने // 19 // ॐ मों नमः / वामस्तने // 20 // ॐ चं नमः / गले // 21 // ॐ अं नमः। दक्षिणहस्तांगु ल्यग्रे // 22 // ॐ वो नमः / दक्षिणहस्तांगुलिमूले // 23 // ॐ वं नमः / दक्षिणमणिबंधे // 24 // ॐ न्वां नमः / दक्षिण कूपरे // 25 // ॐ नां नमः। दक्षबाहुमूले // 26 // ॐ अं नमः / बामहस्तांगुल्यो // 27 // ॐ दि नमः / वामहस्तांगुलिमूले // 28 // ॐ तें नमः / दाममणिबंधे // 29 // ॐ रुं नमः / वामकूपरे // 30 // ॐ पं नमः / वामबाहुमूले // 31 // ॐ स्थान नमः / बक्के // 32 // ॐ यूं नमः / दक्षकपोले // 33 // ॐ यं नमः / वामकपोले // 34 // ॐ पां नमः। दक्षिणनासापुटे // 35 // ॐ तं नमः / वामनासापुटे // 36 // ॐ स्वं नमः / दक्षिणनेत्रे // 37 // ॐ स्ति नमः / वामनेत्रे // 38 // ॐ मि नमः / दक्षिणकर्णे॥ 39 // ॐ सं नमः / वामकर्णे // 40 // ॐ दां नमः भ्रूमध्ये // 41 // ॐ नं नमः / मस्तके॥४२॥ ॐ खं नमः / शिरसि // 43 // इति मंत्रवर्णन्यासः // इति न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ॐ चन्द्रप्रभं पंकजसन्निषण्णं पाशांकुशाभीतिवरं दधानम् // मुक्ताविभूषांचितसर्वगात्रं ध्यायेत्प्रसन्नं वरुणं विभूत्यै // 1 // इति ध्यात्वा मानसोपचारैः पूजयेत् / / For Private And Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म.म. अथ वरुणपूजनयन्त्रम्. पू० ख०३ |मितं. तरं०११ m ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले मंड्रकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य ॐ मं मंडूकादिपरतत्वांतपीठदेवताभ्यो नमः। इति संपूज येत् / अस्य पीठशनयादरभावः // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्र निधाय घतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-षट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु ... |मध्ये दिक्षु चॐ हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। इति सर्वत्र // 1 // ॐ शिरसे स्वाहा शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ शिखा यै वषट् / शिखाश्रीपा० // 3 // ॐ कवचाय हुम् / कवचश्रीपा. // 4 // ॐ नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ अस्त्राय फट्। अस्वश्रीपा०॥ 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमा दाय मूलमुच्चार्य "ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या // 286 For Private And Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kobalrm.org समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम्॥१॥इति पठित्वा पुष्पाजलिं च दत्त्वा पूजितास्तपिताः संतु इति प्रथमावरणम्॥१॥ततोष्टदलेषु पूज्यपूजक योरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण ॐ शेषाय नमः शेषश्रीपा० ॥१॥ॐ वासुकये नमः / वासुकिश्रीपा०| // 2 // ॐ तक्षकाय नमः / तक्षकश्रीपा० // 3 // ॐ कर्कोटकाय नमः कर्कोटकश्रीपा०॥४॥ॐ पद्माय नमः / पद्मश्रीपा० // 5 // ॐ महापौय नमः / महापद्मश्रीपा०॥६॥ॐ शंखपालाय नमः।शंखपालश्रीपा० // 7 // ॐ कुलिकाय नमः / कुलिकश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान् वज्राद्यायुधानि च संपूज्य पुष्पा जलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् / अस्य पुरश्चरणमेकलक्षजपः / तत्तदशांशेन होमतर्पण मार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति // सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् // तथा च-"लक्षमेकं जपेन्मंत्रं पा यसेन दशांशतः // सर्पिःसिक्तेन जुहुयान्मत्री मंत्रस्य सिद्धये // 1 // ऋणमुक्त्यै जपेन्मंत्र प्रत्यहं साष्टकं शतम् // जपेनानेन लगते / * महामव्ययां श्रियम् // 2 // सितेक्षुशकलमंत्री जहुयाघृतसंप्लुतैः // चतुर्दिनं दशशतमृणमुक्त्यै महाश्रिये // 3 // समिद्भिवेतसोत्था / भिः क्षीराताभिर्दिनत्रयम् // जुहुयादृष्टिमंसिद्धय मंत्रविद्विजितेन्द्रियः॥४॥ अनेन विधिना मंत्री सूर्ये शतभिषं गते // चतुःशतं घृत यतं पायसं जहुयाद्वशी // 5 // ऋणनाशाय संपत्त्यै वश्यारोग्याभिवृद्धये // भृगुवारे कृतो होमः पायसेन ससर्पिषा // 6 // महती संपदं कुर्यान्नाशयेत्सकलापदः // शालिभिर्धतसंसिनः सरिदंतारतः सुधीः // 7 // व्यहं चतुःशतं हुत्वा स्तंभयेत्परमैन्यकम् // सायं प्र For Private And Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobatrm.org // 28 // पू० ख.. मि. तं० तरं० 11 त्यङ्मुखो वह्निमाराध्य प्रजपेमन्मनुम् // 8 // चतुःशतं विमुच्येत मंत्री सरुपद्रवैः // मंत्री प्रत्यङ्मुखो भूत्वा तर्पयेदिमलैर्जलेः // 9 // सर्वोपद्रवनाशाय समस्तायुदयातये // बहुना किमिहोक्तेन मंत्रणानेन साधकः // साधयेत्सकलान्कामाअपहोमादितत्परः॥ 10 // इति वरुणत्रिचत्वारिंशदक्षरमंत्रप्रयोगः // अथ कामदेवबीजमंत्रप्रयोगः॥ बीजं यथा-क्लीं इत्येकाक्षरो बीजमंत्रः॥ अस्य विधानम् // ॐ कामबीजमंत्रस्य संमोहन ऋषिः। गायत्री छंदः / सर्वसम्मोहनमकरध्वजो देवता / सर्वसंमोहने विनियोगः // ॐ संमोहनऋषये नमः। शिरसि // 1 // गायत्रीछंदसे नमः / मुखे // 2 // सर्वसंमोहनमकरध्वजदेवतायै नमः / हृदि // 3 // विनियोगाय नमः / सर्वाङ्गे // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ क्लीं तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ ॐ क्लू मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ कें अनामिकाम्यां नमः // 4 // ॐ क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ क्लः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ ॐ क्लां हृदयाय नमः॥ 1 // ॐ क्लीं शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ क्लू शिखायै वषट् // 3 // ॐ के कवचाय हुम् // 4 // ॐ कौं नेत्र त्रयाय वौषट् // 5 // ॐ कृः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडङ्गन्यासः // एवं न्यास कृत्वा ध्यायेत् / अथ ध्यानम् // जपारुणं रक्तविभूषणाढ्यं मानध्वजं चारुकतांगरागम् // करांबुजैरंकुशमिक्षुचापपुष्पास्वपाशी दधतं भजामि॥१॥ इति ध्यायेत् / ततः / पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य "ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः" इति संपूज्य नव पीठ शक्तीः पूजयेत् // पूर्वादिक्रमण ॐ मोहिन्यै नमः // 1 // ॐ क्षोभिण्यै नमः॥२॥ ॐ त्रास्यै नमः॥३॥ ॐ स्तंभिन्यै नमः // | अन्यस्वरूपो यथा-'क्लीं कामदेवाय नमः' इत्यष्टाक्षरी मंत्रः / अन्यत्सर्व पूर्ववत् // // 2 // For Private And Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 4 // ॐ कपिण्यै नमः // 5 // ॐ द्राविण्यै नमः // 6 // ॐ आह्वादिन्यै नमः // 7 // ॐ क्लिन्नाय नमः // 8 // मध्ये ॐ लेदिन्यै नमः // 9 // इति पूजयेत् / ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्र ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा / स्वच्छ्यस्त्रेण संशोष्य"ॐ क्लीं मकरध्वजाय सर्वसंमोहनशक्ताय पद्मासनाय नमः" इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां चकत्वा पुनावावाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात्॥तद्यथा-पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "ॐ सविन्मयः / परो देवः परामृतरसप्रियः॥अनुज्ञां देहि मे काम परिवारार्चनाय मे॥३॥"इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्याज्ञां गृहीत्वावरणपूजामार भेत् // षट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्येदिक्षु च ॐ क्लां हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥ इति सर्वत्र ॥१॥ॐ क्लीं शिरसे स्वाहा / शिरःश्रीपा०॥२॥ॐ क्रीं शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा०॥३॥ॐ क् कवचाय हुम् / कवचश्रीफा०॥४॥ ॐ क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ क्लः अवाय फट् / अस्वश्रीपा० // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलि मादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल / भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पां जलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // तदषु // ॐ द्रां शोषणाय नमः / शोषणश्रीपा Onan ॐ ह्रीं मोहनाय नमः / मोहनश्रीपा० // 2 // ॐ संदीपनाख्यकीडाय नमः / संदीपनाख्यकीडश्रीपा० // 3 // ॐ ब्लू तापूनाय नमः / तापनश्रीपा 0 // 4 // ॐ मादनाय नमः / मादनश्रीपा० // 5 // इति पंच बाणान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // For Private And Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandr Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra // 28 // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोष्टदले पूज्यपूजक्योरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्प प्राचीकमेण // ॐ कामाय नमः। पू० ख०१ कामश्रीपा० // 1 // ॐ भस्मशरीराय नमः / भस्मशरीरश्रीपा० // 2 // ॐ अनंगाय नमः / अनंगश्रीपा० // 3 // ॐ मन्मथाय मि. तं. नमः / मन्मथश्रीपा० // 4 // ॐ वसंतसखाय नमः / वसन्तसखश्रीपा० // 5 // ॐ स्मराय नमः / स्मरश्रीपा० // 6 // ॐ इक्षुधनुर्ध तरं० 11 राय नमः / इक्षुधनुर्धरश्रीपा० // 7 // ॐ पुष्पबाणाय नमः / पुष्पवाणश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ नामभिः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च / दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततोष्टदलायेषु वामावर्तेन ॐ अनंगरूपायै नमः / अनंगरूपाश्रीपा० // 1 // ॐ अनंगमदनायै नमः / अनंगमदनाश्रीपा० // 2 // ॐ अनंगमन्मथायै नमः / अनंगमन्मथाश्रीपा० // 3 // ॐ अनंगकुसुमायै नमः / अनंगकुसु / माश्रीपा० // 4 // ॐ अनंगकुसुमातुरायै नमः / अनंगकुसुमातुराश्रीपा० // 5 // ॐ अनंगशिशिरायै नमः / अनंगशिशिराश्रीपा. // 6 // ॐ अनंगमेखलायै नमः / अनंगमेखलाश्रीपा० // 7 // ॐ अनंगदीपकायै नमः / अनंगदीपकाश्रीपा० // 8 // इत्यष्टो शक्तीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति चतुर्थावरणम् // 4 // ततः षोडशदले प्राचीक्रमण वामावर्तेन च ॐ युवत्यै नमः / युवतीश्रीपा० // 1 // ॐ विप्रलंभाये नमः / विप्रलंभाश्रीपा० // 2 // ॐ ज्योत्स्नाय नमः / ज्योत्स्नाश्रीपा० // 3 // ॐ मुचवे नमः / मुश्रीपा० // 4 // ॐ मदद्रवायै नमः / मद्रवाश्रीपा० // 5 // ॐ सुरतायै नमः / सुरताश्रीपा० // 6 // ॐ वारुण्य नमः वारुणीश्रीपा० // 7 // ॐ लोलायै नमः लोलाश्रीपा० // 8 // ॐ कात्यै नमः / कांतिश्रीपा० ॥९॥ॐ सौदामिन्यै नमः // 28 // For Private And Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org सौदामिनीश्रीपा० // 10 // ॐ कामच्छत्रायै नमः / कामच्छत्राश्रीपा० // 11 // ॐ चन्द्रलेखायै नमः / चन्द्रलेखाश्रीपा० // 12 // ॐ शुक्त्यै नमः / शुक्तिश्रीपा० // 13 // ॐ मदनायै नमः। मदनाश्रीपा० // 14 // ॐ योन्यै नमः / योनिश्रीपा० // 15 // ॐ मायावत्यै नमः। मायावतीश्रीपा० // 16 // इति संपूज्य पुष्पांजलि च दद्यात् // इति पंचमावरणम् // 5 // ततः षोडशदशा दलायेषु ॐ शोकाय नमः। शोकश्रीपा० // 1 // ॐ मोहाय नमः / मोहश्रीपा० // 2 // ॐ विलासाय नमः। बिलासश्रीपाला // 3 // ॐ विनमाय नमः वित्रमश्रीपा० // 4 // ॐ मदनातुराय नमः / मदनातुरश्रीपा०॥५॥ ॐ अपजयाय नमः / अपजय श्रीपा० // 6 // ॐ युवाकामाय नमः / युवाकामश्रीपा० // 7 // ॐ चूतपुष्पाय नमः / चूतपुष्पश्रीपा० // 8 // ॐ रतिप्रियाय नमः / रतिप्रियश्रीपा० // 9 // ॐ ग्रीष्मांतकराय नमः / ग्रीष्मांतकरश्रीपा० // 10 // ॐ ऊज्योन्याय नमः / ऊज्योन्यश्रीपाषा // 11 // ॐ हेमंते शिशिरोन्मदाय नमः / हेमंते शिशिरोन्मदश्रीपा० // 12 // ॐ इक्षुचापधराय नमः। इक्षुचापधरश्रीपा०॥१३॥ ॐ पुष्पबाणहस्ताय नमः / पुष्पबाणहस्तश्रीपा० // 14 // ॐ रक्तभूषाय नमः / रक्तभूषश्रीपा० // 15 // ॐ वनितासक्तमानसाय / नमः / वनितासक्तमानसश्रीपा० // 16 // इति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति षष्ठावरणम् // 6 // ततोष्टदले प्राच्यादि / चतुर्दिक्षु ॐ हावाय नमः / हावश्रीपा० // 1 // ॐ भावाय नमः / भावश्रीपा० // 2 // ॐ कटाक्षाय नमः / कटाक्षश्रीपा०॥३॥ ॐ विलासाय नमः / भूविलासश्रीपा०॥४॥ आनेय्यादिचतुष्कोणेषु ॐ माधव्यै नमः / माधवीश्रीपा० // 5 // ॐ मालत्यै For Private And Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobalrm.org मं० म० अथ कामदेवपूजनयन्त्रम्. // 289 // 55 For Private And Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobar.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobalrm.org मं०म० नमः / मालतीश्रीपा०॥६॥ ॐ धरिणाख्यै नमः / धरिणाखीश्रीपा०॥ 7 // ॐ मदोत्कटायै नमः / मदोत्कटाश्रीपा०॥ 8 // पू० ख०१ २९.ालाइति पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति सामावरणम् // 7 // ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान बजायायुधानि च मि तं० संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य पुष्पांजल्यष्टकं दद्यात् ॥तत्र मंत्रः--"ॐ नमोस्तु पुष्पबाणा तरं० 11 काय जगदानंदकारिणे // मन्मथाय जगन्नेत्ररतिप्रीतिप्रदायिने // 3 // " इति पुष्पांजल्यष्टकं दत्त्वा करी बद्धाप्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः-"ॐ देवदेव जगन्नाथ वांछितार्थप्रदायक // कनान्पूरय मे त्वर्थान्कामान्कामेश्वरीप्रिय // 1 // " इति संप्रार्थ्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्च रणं त्रिलक्षजपः॥ तत्तदशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् // एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् // तथा च--"लक्षत्रयं जपेन्मत्रं मधुरत्रयसंयुतैः // पुष्पैः किंशुकजैः फुल्लर्तुत्वा तत्तद्दशांशतः // 1 // इत्थं यो भजते देव / / मुगंधिकुसुमादिभिः // स भवेल्लब्धसौभाग्यो लक्ष्म्या जितधनेश्वरः॥२॥ अशोकपुष्पैर्दध्यक्तैर्जुहुयादिवसत्रयम् // अष्टोत्तरसहस्रं यः स / भवेजगतां प्रियः // 3 // गव्येनाज्येन जुहयान्मंत्रेणाष्टोत्तरं शतम् // साधकेन्द्रससंपातमर्चिते हव्यवाहने // 4 // संपाताज्येन बनि Hता भोजयेदात्मनः पतिम् // अनया यद्यदादिष्टं तत्तत्स कुरुते सदा // 5 // कन्यार्थी जुहुयाल्लाजैर्दध्यक्तैर्मडलांतरे // कन्यामिष्टामवा मोति सापि तत्पतिमामुयात् // 6 // कथितं पुष्पबाणस्य सांगोपांगसमर्चनम् // सौभाग्यकांतिविभवदारापुत्रसमृद्धिदम् ) // 7 // " अथ कामगायत्रीमंत्रो यथा “ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि // तन्नोनंगः प्रचोदयात् // "अष्टो। तरशतं कामगायच्या मंत्रविनमः // गायव्येषा बुधैरुक्ता जवा जनविमोहिनी // 8 // इति कामदेवबीजमंत्रप्रयोगः // // 29 // For Private And Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatrm.org Acharya Sh Kalassagarsun Gyanmandr Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra अथ कुबेरमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ / ) मंत्रो यथा--"ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा” इति पंचत्रिंशदक्षरो मंत्रः॥ अस्य विधानम् // अस्य कुबेरमंत्रस्य विश्रवा ऋषिः।बृहतीछंदः। शिवमित्रधनेश्वरो देवता।। ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः // ॐ विश्रवऋषये नमः / शिरमि // 3 // बृहतीछंदसे नमः / मुखे // 2 // शिवमित्रधनेश्वरदेव तायै नमः। हृदि॥३॥विनियोगाय नमः / सर्वांगे // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ यक्षाय हृदयाय नमः॥१॥ ॐ कुबेराय शिरसे स्वाहा ॥२॥ॐ वैश्रवणाय शिखायै वषट् // 3 // ॐ धनधान्याधिपतये कवचाय हुम् // 4 // ॐ धनधान्यसमृद्धिं मे नेत्रत्र याय वौषट् // 5 // ॐ देहि दापय स्वाहा अवाय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ यक्षायांगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ कुबेराय तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ वैश्रवणाय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ धनधान्याधिपतये अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ धनधान्यसमृद्धिं मे कनिष्ठिकाायां नमः // 5 // ॐ देहि दापय स्वाहा करतलकरपृष्ठान्यां नमः॥ 6 // इति करन्यासः // इति न्या घसं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // " मनुजबाह्यविमानवरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम् // शिवसखं मुकुटादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुंदिलम् // 1 // इति ध्यात्वा मानमोपचारैः पूजयेत् // ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमंडले धर्मादिपरतत्त्वांत | पीठदेवताः संस्थाप्य "ॐ धर्मादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः” इति पीठदेवताः संपूज्यास्य पीठशक्त्यादेरभावः // ततः स्वर्णादिनि मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छक्वेण संशोष्य पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठ मध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्व्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादिपुष्पांतरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञयावरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा For Private And Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथ कुबेरपूजनयन्त्रम्। मित तरं. 11 म० म०पांजलिमादाय “ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः / अनुज्ञा ॥२९॥षादेहि धनद परिवारार्चनाय मे // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्वा पजितास्तार्पताः संतु इति वदेत् // इत्याज्ञां गृहीत्वावरणपूजामारभेत् // तद्यथा--षट्कोणकेमरेषु आगेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च ॐ यक्षाय हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति सर्वत्र // 1 // ॐ कुबेराय शिरसे स्वाहा / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ वैश्रवणाय शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० // 3 // ॐ धनधान्याधिपतये कवचार्यहुम् / कवचश्रीपा० // 4 // ॐ धनधान्यसमृद्धिं मे नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रश्रीपा० // 5 // ॐ देहि दापय स्वाहा अस्वाय फट / अस्वश्रीपा० // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्य प्रथमावरणार्चनम्॥१॥इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत्॥इति प्रथमावरणम॥३॥ततो भपरे इन्द्रादिदशदिक्पालान पक्षायक 39 For Private And Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shei Katassagasul Gyanmandir बजायायुधानि च संपूज्य पुष्पाजलिं च दद्यात // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारातं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं / लक्षजपः / तिलाज्येन दशांशतो होमः / एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् // तथा च / लक्षमेकं जपेन्मत्रं दशांशं जुहुयात्निलेः // सिद्ध मनौ प्रकुर्वीत प्रयोगानिष्ठ सिद्धये // 1 // शिवालये जपेन्मंत्रमयुतं धनवृद्धये // बिल्वमूलोपविष्टेन जप्तो लक्षं धनर्द्धिदः // 2 // इति पंचत्रिंशदारकुबेरमंत्रप्रयोगः // अथ पोडशाक्षरकुबेरमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा--"ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं विनेश्वराय नमः // " इति षोडशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // ॐ श्री हृदयाय नमः // // ह्रीं श्रओं शिरसे स्वाहा // 2 // ह्रीं क्लीं शिखायै वषट् // 3 // श्रीं क्रीं कवचाय हुम् // 4 // वित्नेश्वराय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // नमः अस्त्राय फट् // 6 // इति षडंगन्यासं कुर्यात् // ऋष्यादिकं ध्यानपूजादिकं च सर्व पूर्ववत् // तथा च-शोडषाक्षरमंत्रोयं सर्वदारियनाशनः // ध्यानार्चनादिकं सर्वमस्य पूर्ववदाचरेत् // १॥इति षोडशाक्षरकुबेरमंत्रप्रयोगः // // श्रीगणेशाय नमः // अथ चन्द्रमोमंत्रप्रयोगः // अथ वक्ष्ये चन्द्रमसो मनुः सर्वसमृद्धिदः // अथ षडक्षरचन्द्रमोमंत्रप्रयोगः // मंत्रो यथा-(शारदातिलके ) 'सौं सोमाय नमः' इति षडक्षरमंत्रः // अस्य सोममंत्रस्य भूगर्कषिः / पंक्तिश्छंदः / सोमो देवता। सौ बीजम् // नमः शक्तिः। मम सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ भृगुऋषये नमः शिरसि // 1 // पंक्तिश्छंदसे नमः / मुखे // 2 // सोमदेवतायै नमः। हृदि // 3 // सौं बीजाय नमः। गुह्ये // 4 // नमः शक्तये नमः / पादयोः॥५॥ विनियोगाय नमः / सर्वांगे // 6 // इति| ऋष्यादिन्यासः॥ ॐ सां अंगुष्ठाभ्यां नमः // 3 // ॐ सी तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ सूं मध्यमाभ्यां नमः ॥३॥ॐ मैं अनामिकाया For Private And Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsus Gyarmande म०म० // 292 // कि नमः॥४॥ॐ सौं कनिष्ठिकात्यां नमः // 5 // ॐ मः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ सां हृदयाय च पू० स०१ नमः॥१॥ ॐ सी शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ ह् शिखायै वषट् // 3 // ॐ मैं कवचाय हुम् // 4 // सौं नेत्रत्रयाय वौषट्॥ 5 // मित ॐ सः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासविधि कत्वा ध्यायेत् // कर्पूरस्फटिकावदातमनिशं पूर्णेन्दुबिंबाननं तरं० 11 मुक्तादामविभूषितेन वपुपा निर्मूलयंतं तमः // हस्तान्यां कुमुदं वरं च दधतं नीलालकोद्भासितं स्वस्यांकस्थभृगदिताश्रयगुणं सोमं सुधाब्धिं भजे // 1 // इति ध्यात्वा सर्वतोभद्रसोमतोभद्रमंडले वा में मंडूकादिसोमांतपीठदेवताः संस्थाप्य 'ॐ में मंडूका है। दिसोमांतपीठदेवताभ्यो नमः // ' इति पीठदेवताः संपूज्य तन्मध्ये "ॐ सों सोमाय रोहिणीपतये नमः " इति संपूज्य , रोप्यादिनिर्मितं यंत्रमग्युत्तारणपूर्वकं “सौं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः” इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणप्रतिष्ठां कृत्वा पुनर्व्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञां गृहीत्वावरणपूजां कुर्यात् // तत्र क्रमः // षट्कोणकेसरेषु अग्निकोणे / ॐ सां हृदयाय नमः // 1 // नितिकोणे / ॐ सी शिरसे स्वाहा // 2 // वायव्ये / ॐ सू शिखायै वर्षट् // 3 // ऐशान्ये / ॐ मैं कवचायहुम् // 4 // पूज्यपूजकयोर्मध्ये ॐ सौं नेत्रत्रयाय / वाषट् // 5 // देवतापश्चिमे / ॐ मः अस्त्राय फर्स्ट // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य " ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 3 // ततोऽष्टदले पूज्यपूजकयोर्मध्ये प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण है। 600060 For Private And Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir अथ चंद्रपूजनयन्त्रम्. | वामावर्तेन च / ॐ रोहिण्यै नमः / रोहिणीश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि Mनमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ कृत्तिकायै नमः। कत्तिकाश्रीपा०॥२॥ alॐ रेवत्यै नमः / रेवतीश्रीपा० // 3 // ॐ भरण्यै नमः। भरणीश्रीपा० // 4 // ॐ रात्र्यै नमः। रात्रिश्रीपा० // 5 // ॐ आर्द्रायै नमः / आश्रिीपा० // 6 // ॐ ज्योत्स्नायै नमः / ज्योत्स्नाश्रीपा० // 7 // ॐ कलायै नमः। कलाश्रीपा० // 8 // इति पूजयित्वा पूष्पांजलिं च IN||दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽष्टदलायेषु ॐ आं आदित्याय नमः / आदित्यश्रीपा० ॥१॥ॐ भौं भौमाय नमः / भौमश्रीपा० // 2 // ॐ बुं बुधाय नमः / बुधश्रीपा० // 3 // ॐ शं शनैश्चराय नमः / शनै श्वरश्रीपा०॥४॥ ॐ बृं बृहस्पतये नमः / बृहस्पतिश्रीपा०॥ 5 // ॐ रां राहवे नमः / राहुश्रीपा० // 6 // ॐ शुं शुक्राय नमः / शुक्रश्री पा० // 7 // ॐ के केतवे नमः / केतुश्रीपा०॥८॥ इत्यष्टौ ग्रहान् पूज M||यित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात॥इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो भपुरे पूर्वादिक 74 For Private And Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shellssagaur yanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं०म०लामेण / ॐ लं इन्द्राय नमः।इन्द्रश्रीपा०॥१॥ॐ रं अनये नमः।अग्निश्रीपा०॥२॥ॐ म यमाय नभैः।यमश्रीपा०॥३॥ॐ क्ष निर्वतये नमःख // 393 // नितिश्रीपा०॥४॥ॐ वं वरुणाय नमःवरुणश्रीपा०॥५॥ॐ यं वायवे नमः।वायुश्रीपा०॥६॥ॐ कुबेराय नमः।कुबेरश्रीपा०॥७॥ ॐ हं ईशानाय नमः / ईशानश्रीपा० // 8 // इन्द्रेशानयोर्मध्ये ॐ आंब्रह्मणे नमः / ब्रह्मश्रीपा० // 9 // वरुणनित्योर्मध्ये ॐ ह्रीं अनंताय नमः / अनंतश्रीपा० // 10 // इति दिक्पालान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति चतुर्थावरणम् // 4 // तद्वारा ॐ वं वज्राय नमः॥१॥ ॐ शं शक्तये नमः // 2 // ॐ दं दंडाय नमः // 3 // ॐ खं खड्गाय नमः॥४॥ ॐ पंपाशाय नमः॥५॥ ॐ अं अंकुशाय नमः // 6 // ॐ गं गदायै नमः // 7 // ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः // 8 // ॐ में पद्माय नमः // 9 // ॐ चं चक्राय नमः // 10 // इत्यत्राणि पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनीराजनांत संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्च धरणं षड्लक्षजपः / षट्सहस्रहोमः / तत्तदशांशेन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कर्यात् // एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् // तथा च // “रसलक्षं जपेन्मंत्र साधको विजितेन्द्रियः॥ तत्सहस्रं प्रजुहुयात्पायमेन ससर्पिषा // 3 // सोमांत पूजिते / पीठे पूजयेद्रोहिणीपतिम् // एवं सिद्धमनुमंत्री संपदा वसतिर्भवेत् // 2 // हृत्पुंडरीकमध्यस्थं ताराहारविभूषणम् // तारापति स्मरन्मंत्री त्रिसहस्रं मनुं जपेत् // 3 // राज्यश्वर्य दारद्रोपि प्राप्नुयावत्सरांतरे // पूर्वोक्तसंख्यं प्रजपेच्छशिनं मूर्ध्नि चिंतयेत् // 4 // रोगापमृत्यु दुःखानि जित्वा वर्षशतं वसेत् // ब्रह्मचर्यरतः शुद्धश्चतुर्लक्षमिदं जपन् // 5 // निधानं भूगतं सद्यः प्राप्नुयाद्यत्नवर्जितम् // जितेंद्रियो / जपेन्मंत्र पूर्णिमायां विशेषतः // 6 // भवेत्सौभाग्यनिलयः संपदामपरो निधिः // घोराज्वरान् शिरोरोगानभिचारानुपद्रवान // 7 // For Private And Personal Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra mame.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir विद्विषामपि संघातं नाशयेन्मनुनाऽमुना // पौर्णमास्यां निराहारो दद्यादयं विधूदये॥८॥ प्रायत्यगायतं कर्याद्रतले मंडलत्रयम् // निष पणः पश्चिमे मंत्री मंडले विहितासने // 9 // मध्यस्थे स्थापयेत्पश्चात्पूजाद्रव्याण्यशेषतः // अस्मिन्हि मंडले सोममर्चयित्वांबुजान्विते / // 10 // राजतं चषकं भद्रं स्थापयेत्पुरतः सुधीः // गोदुग्धेन समापूर्य स्पृष्ट्वा तं प्रजपेन्मनुम् // 11 // अष्टोत्तरशतं पश्याद्विद्यामंत्रणा देशिकः // दद्यादय॑ शशांकाय सर्वकामार्थसिद्धये // 12 // अनेन विधिना कर्वन्प्रतिमासमतंद्रितः // षण्मासाध्यंतरे सिद्धि साधकेंद्रः समनते // 13 // श्रियमत्यूजितांपुत्रान्सौभाग्यं विपुलं यशः // कन्यामिष्टामवामोति कन्यापि वरमीप्सितम् // 14 // बहुना किमि होक्तेन सर्व दयान्निशापतिः // " इति षडक्षरचन्द्रमोमंत्रप्रयोगः॥ अथ चन्द्रमस्स्तोत्रम् // "ॐ श्वेताम्बरः श्वेतवपुः किरीटी श्वेतद्युति दंडधरो द्विबाहुः // चन्द्रोमृतात्मा वरदः शुशांकः श्रेयांसि मह्यं प्रददातु देवः // 1 // दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदर्णवसंभवम् // नमामि / शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम् // 2 // क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणीसहितः प्रभुः॥ हरस्य मुकुटावास बालचन्द्र नमोस्तु ते // 3 // सुधामया यत्किरणाः पोषयंत्योषधीवनम् // सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिंधुनन्दनम् // 4 // राकेशं तारकेशं च रोहिणी प्रियसुन्दरम् // ध्यायतां सर्वदोपन्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुहुः // 5 // इति चन्द्रमस्स्तोत्रं संपूर्णम् // अथ धनपुत्रादिप्रदमंगलमंत्र विधानम् // ( मंत्रमहोदधौ ) // मंत्री यथा--"ॐ हाँ हंसः खं खः" इति षडक्षरो मन्त्रः / अस्य विधानम् // मार्गशीर्ष वैशाखे जवा शुक्रपक्षे चंद्रतारादिबलान्विते भौमवासरे व्रतं प्रगृह्य वक्ष्यमाणविधिना संवत्सरपर्यतं कार्यम् // तद्यथा--मंगलवारे अरुणोदयवेला | १-घियविद्यामालिनिचंद्रिणिचंद्र मुखिस्वाहेति विद्यामंत्रः // For Private And Personal Use Only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म.म. // 294 // यामुत्थाय शौचविधि विधाय अपामार्गकाष्ठेन मौनधारणपूर्वकं दंतधावनं कृत्वा नद्यादौ गृहे वा यथाविधि स्नात्वा रक्तवाससी परिधाय नित्य पू० ख०१ कर्म समाप्य शिवालये स्वगृहे वा रक्तगोमयलिप्तमंडले स्वासने प्राङ्मुख उदङ्मुखो वा उपविश्य दक्षिणपार्थे रक्तचंदनरक्तपुष्पादीनि सं मि . तं० पाद्य सपवित्रकर आचम्य मुलेन प्राणानायम्य देशकालौ स्मृत्वा मम जन्मराशेः सकाशान्नामराशेः सकाशाजन्मलमावर्षलग्राहा गोचरा तरं० 11 चतुर्थाष्टमादित्याद्यनिष्टस्थानस्थितभौमसर्वानिष्टफलनिवृत्तिपूर्वकतृतीयैकादशशुभस्थानस्थितवदुत्तमफलावाप्त्यर्थ आयुरारोग्यवृद्ध्यर्थमृण / च्छेदार्थममुकरोगविनाशार्थ वा पुत्रप्राप्तर्थ श्रीमंगलदेवताप्रसन्नतार्थ नौमव्रतं करिष्ये॥तदंगत्वेन न्यासध्यानपूजार्यदानादि च करिष्ये।इति संकल्प्य कर्ता स्वदेहे न्यासान् कुर्यात्॥तद्यथा-अस्य मंत्रस्य विरूपाक्ष ऋषिः / गायत्री छंदः धरात्मजो भौमो देवता। हां बीजम्॥हंसः / शक्तिः / सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः // ॐ विरूपाक्षऋषये नमः सिरशि 1 गायत्रछिंदसे नमः मुखे 2 धरात्मजनौमदेवतायै नमः हृदि 3 हां बीजाय नमः गुह्ये 4 हंसः शक्तये नमः पादयोः 5 विनियोगाय नमः सर्वांगे 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐॐ भौमाय अंगुष्ठाभ्यां नमः 1 ॐ हां भौमाय तर्जनीभ्यां नमः 2 ॐ हं भौमाय मध्यमाभ्यां नमः 3 ॐ सः भौमाय अनामिकाभ्यां नमः 4 ॐ खं भौमाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः 5 ॐ खः भौमाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 // इति करन्यासः // ॐॐ भौमाय हृदयाय नमः 1 ॐ हां भौमाय शिरसे स्वाहा 2 ॐ हं भौमाय शिखायै वषट् 3 ॐ सः भौमाय कवचाय हुम् 4 ॐ खं भौमाय नेत्रत्रयाय वौषट् 5 ॐ खः भौमाय अस्त्राय फट 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ मंगलाय नमः अंध्योः 1 ॐ भूमिपुत्राय नमः // 29 // जानुनोः 2 ॐ ऋणहर्त्रे नमः ऊर्वोः 3 ॐ धनप्रदाय नमः कटयाम 4 ॐ स्थिरासनाय नमः गुह्ये 5 ॐ महाकायाय नमः उर For Private And Personal Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सि 6 ॐ सर्वकर्मावराधकाय नमः वामबाहौ 7 ॐ लोहिताय नमः दक्षिणबाही 8 ॐ लोहिताक्षाय नमः गले 9 ॐ सामगानां कपाकराय नमः वदने 10 ॐ धरात्मजाय नमः अंसयोः 11 ॐ कुजाय नमः नेत्रयोः 12 ॐ भौमाय नमः ललाटे 13 ॐ भूतिदाय नमः भुवोः 14 ॐ भूमिनंदनाय नमः मस्तके 15 ॐ अंगारकाय नमः शिखायाम् 16 ॐ यमाय नमः सर्वांगे 17 ॐ सर्वरोगप्रहारिणे नमः मूर्धादिहस्तांतम् 18 ॐ वृष्टिकर्वे नमः मूर्धादिपादांतम् 19 ॐ वृष्टिहत्रे नमः पादादिमीतम् / 20 ॐ सर्वरोगापहारकाय नमः दशदिक्षु च 21 ॐ अंगारकाय नमः नानौ 22 ॐ वक्राय नमः वक्षसि 23 ॐ भूमिन / दनाय नमः मूर्ध्नि२४इति न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् ॥"जपाभं शिवस्वेदजं हस्तपद्मगंदा शूलशक्ती करे धारयंतम् // अवंतीसम | त्थं सुमेषासनस्थं धरानंदनं रक्तवस्त्रं समीडे // 1 // " इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य ताम्रार्घ्य पद्धतिमार्गेण संस्थाप्य पीठपूजादि| कं कुर्यात् // तद्यथा--पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले लिंगतोभद्रमंडले वा मंडूकादिपरतत्त्वांदपीठदेवताः संस्थाप्य " ॐ में| मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः” इति संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् // तद्यथा-पूर्वादिक्रमेण ॐ वामायै नमः // 1 // ॐ ज्येष्ठाय नमः // 2 // ॐ रौयै नमः // 3 // ॐ काल्यै नमः॥ 4 // ॐ कलविकरण्यै नमः // 5 // ॐ बलविकरण्यै नमः // N // 6 // ॐ बलप्रमथिन्यै नमः // 7 // ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः // 8 // मध्ये / ॐ मनोन्मन्यै नमः // 9 // इति पूजयेत् // ततः स्वर्णपत्रे ताम्रपत्रे वा एकविंशतित्रिकोणात्मकं यंत्रं रक्तचंदननिर्मिती प्रतिमां वा ताम्रपात्र निधाय घृतेनास्यज्य तदुपारी दुग्धधारांजलधारां पाच दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य “ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय भूमिपुत्राय योगपीठात्मने नमः।'इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा For Private And Personal Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मि. तं० पीठमध्ये संस्थाप्य प्राणस्थापनं कृत्वा पुनर्थ्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य ॐ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि॥तन्नो भौमः प्रचोदापू० ख.. दयात्" इति भौमगायच्या आवाहनादिरक्तगंधाक्षतरक्तपुष्पांतैरुपचारैः संपूजा आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा--यंत्रे अग्न्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च ॐ ॐ भौमाय हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ हाँ भौमाय शिरसे तरं स्वाहा / शिरः श्रीपा० // 2 // ॐ हं भौमाय शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा०॥३॥ ॐ सः भौमाय कवचाय हुम् / कवचश्रीपा०॥४॥ ॐ खं भौमाय नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रत्रय श्रीपा० // 5 // ॐ खः भौमाय अस्त्राय फट् / अस्वश्रीपा० // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अष्टिासाई मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुत्यं प्रथमावरणाचनम्" // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततो यंत्रे पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनु सारेणान्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण दक्षिणावर्तेन च ॐ मंगलाय नमः / मंगलश्रीपा० // 1 // ॐ भूमिपुत्राय नमः / भूमिपुत्र श्रीपा० // 2 // ॐ ऋणहर्त्रे नमः / ऋणहर्तृश्रीपा० // 3 // ॐ धनप्रदाय नमः / धनप्रदश्रीपा० // 4 // ॐ स्थिरासनाय नमः। स्थिरासनश्रीपा० // 5 // ॐ महाकायाय नमः / महाकायश्रीपा० // 6 // ॐ सर्वकर्मावरोधकाय नमः / सर्वकर्मावरोधकश्रीपा० // // 7 // ॐ लोहिताय नमः / लोहितश्रीपा०॥ 8 // ॐ लोहिताक्षाय नमः / लोहिताक्षश्रीपा० // 9 // ॐ सामगानां कपाकरा काय नमः / सामगानां कृपाकरश्रीपा० // 10 // ॐ धरात्मजाय नमः / धरात्मजश्रीपा० // 11 // ॐ कुजाय नमः / कुजश्रीपा०॥ // 12 // ॐ भौमाय नमः / भौमश्रीपा० // 13 // ॐ भूतिदाय नमः / भूतिदश्रीपा० // 14 // ॐ भूमिनंदनाय नमः / / For Private And Personal Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भामपूजनयन्त्रम्. भूमिनंदनश्रीपा० // 15 // ॐ अंगारकाय नमः ! अंगारकश्रीपा० // 16 // ॐ यमाय नमः / यमश्रीपा० // 17 // ॐ सर्वरोगप्रहारिणे नमः / सर्वरोगप्रहारिश्रीपा०॥ 18 // ॐ सर्ववृष्टिकत्रे नमः / सर्ववृष्टि कर्तृश्रीपा० // 19 // ॐ वृष्टिहर्वे नमः / वृष्टिहर्तृश्रीपा० // 20 // ॐ सर्वरोगापहारकाय नमः / सर्वरोगापहारकश्रीपा० // 21 // थे इत्येकविंशतिनामभिः प्रत्येककोष्ठे पूजायित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / / इति द्वितीयावरणम् // ततो यंत्र पूर्वाद्यष्टसु दिक्षु ॐ ब्रायै नमः / बाह्मीश्रीपा० // 1 // ॐ माहेश्वये नमः / माहेश्वरीश्रीपा० // 2 // INIॐ कौमार्ये नमः / कौमारीश्रीपादुकां // 3 // ॐ वैष्णव्यै नमः। वैष्णवीश्रीपा० // 4 // ॐ वारायै नमः / वाराहीश्रीपा० // 5 // ॐ इन्द्राण्यै नमः / इन्द्राणीश्रीपा० // 6 // ॐ चामुंडाय नमः / KIचामुंडाश्रीपा० // 7 // ॐ महालक्ष्म्यै नमः / महालक्ष्मीश्रीपा० Man 8 // इत्यष्टौ मातृकाः संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति For Private And Personal Use Only Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shiv a Aradhana Kendra mame.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir तरं०११ तृतीयावरणम् // 3 // ततो यंत्रे पूर्वादिक्रमेण ॐ लं इंद्राय नमः // 1 // ॐ रं अग्नये नमः॥ 2 // ॐ म यमाय नमः पू० ख०१ // 3 // ॐ शं निर्ऋतये नमः // 4 // ॐ वं वरुणाय नमः // 5 // ॐ यं वायवे नमः // 6 // ॐ कुं कुबेराय नमः॥७॥ मिळतं. Hॐ हं ईशानाय नमः // 8 // पूर्वेशानयोमध्ये ॐ आं ब्रह्मणे नमः // 9 // वरुणनिर्ऋत्योर्मध्ये ॐ ह्रीं अनंताय नमः ॥१०॥इति दशदिक्पालान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति चतुर्थावरणम् // 4 // ततः पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिसमीपे ॐ वं वजाय नमः // 1 // ॐ शं शक्तये नमः // 2 // ॐ दं दंडाय नमः // 3 // ॐ खं खड्गाय नमः // 4 // ॐ पं पाशाय नमः // 5 // ॐ अंअंकुशाय नमः // 6 // ॐ गं गदायै नमः // 7 // ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः // 8 // ॐ पं पद्माय नमः // 9 // ॐ चं चकाय नमः॥ 10 इत्यस्त्राणि संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति पंचमावरणम् // 5 // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपदीपगोधूमाननेवेद्यतांबू लदक्षिणानीराजनादिभिः संपूज्य अर्घ्य दद्यात् // तद्यथा--जलपूर्णे ताम्रपत्रे गंधपुष्पाक्षतफलानि च निःक्षिप्प जानुभ्यामवनीं गत्वा / "ॐ भूमिपुत्र महातेजः स्वेदोद्भव पिनाकिनः // सुतार्थिनी प्रपन्ना त्वां गृहाणायं नमोस्तु ते // 1 // रक्तप्रवालसंकाश जपाकुसुमस निभ // महीसुत महाबाहो गृहाणायं नमोस्तु ते // 2 // " इति मंत्रव्येनार्य दत्त्वा पूर्वोक्तैरेकविंशतिनामभिस्तावत्यः प्रदक्षिणाः कृत्वा साष्टांगं प्रणम्य यथासंख्यं मूलमंत्र जप्त्वा रेखामार्जनं कुर्यात् // तद्यथा-खदिरांगारकेण रेखात्रयं समं कृत्वा ततः “दुःखदौर्भाग्य // 296 // नाशाय पुत्रसंतानहेतवे // कृतरेखात्रयं वामपादेनैतत्प्रमार्म्यहम् // 3 // ऋणदुःखविनाशाय मनोऽभीष्टार्थसिद्धये ॥मार्जयाम्यसिता रेखास्तिस्रो जन्मत्रयोद्भवाः // 2 // “इति मंत्रद्वयेन वामपादेन मार्जयेत्॥” इति रेखामार्जनं कृत्वा पुष्पांजलिमादाय “ॐ धरणीगर्न। For Private And Personal Use Only Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org गर्भसंभूतं विद्युत्तेजःसमप्रभम् // कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम् // 3 // ऋणहत्रे नमस्तुल्यं दुःखदारियनाशिने // नमामि द्योत मानाय सर्वकल्याणकारिणे // 2 // देवदानवगंधर्वयक्षराक्षसपन्नगाः॥ सुखं यांति यतस्तस्मै नमो धरणिमूनवे // 3 // यो वक्रगतिमा पन्नो नृणां विघ्नं प्रयच्छति // पूजितः मुखसौभाग्यं तस्मै क्षमासूनवे नमः॥४॥ प्रसादं कुरु मे नाथ मंगलपद मंगल // मेषवाहन रुद्रात्म। न्पुत्रान्देहि धनं यशः॥५॥"इति संप्रार्थ्य पुष्पांजलिं दद्यात् // ततो ब्राह्मणान्संपूज्य गुरवे दक्षिणां दत्त्वा पूजायां निवेदितान्नं भक्षयेत् // अस्य पुरश्चरणं षड्लक्षजपः॥ समाप्ने व्रते सर्वतोभद्रमण्डलमध्ये ताम्रकलशं यथाविधि संस्थाप्य तत्र स्वर्णमयीं भौमप्रतिमां संपूज्य तदी शान्यां स्थंडिले आग्निं प्रतिष्ठाप्य आधारावाज्यहोमं कृत्वा मूलमंत्रेणाज्यमिश्रितखदिरसमिद्भिर्दशांशतो जुहुयात् // ततः पूर्णपात्रदानांक तं होमशेष समाप्य स्वर्णमूत्यादिकमाचार्याय दत्त्वा पंचाशद्वाह्मणान् गोधमान्नेन भोजयेत्॥एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति। सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयो गान साधयेत् // तथा च / “रसलक्षजपैर्होमः समिद्भिः खदिरस्य च॥इत्थं जपादिभिः सिद्धं स्वेष्टसिद्धौ प्रयोजयेत्॥१॥नारी पुत्रमनीप्सती / भोमाहे तद्रतं चरेत् // मार्गशीर्षेऽथ वैशाखे तस्यारम्भः प्रशस्यते॥२॥प्रतिनौमदिनं कुर्यादेवं संवत्सरावधिः // तिलैविधापयेद्धोमं शताई। भोजयेद्विजान् // 3 // एवं व्रतपरा नारी प्रामुयात्सुभगान्सुतान् // धनात्यै ऋणनाशाय व्रतं कुर्यात्पुमानपि // 4 // " इति भौमषडक्ष रमंत्रप्रयोगः // अथ मंगलस्तोत्रम् // ॐ अस्य श्रीभौमस्तोत्रस्य गर्गऋषिः। मंगलो देवता / त्रिष्टुप्छन्दः। ऋणापहरणे जपे विनियोगः॥ अथ ध्यानम् // “रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्मुखो मेघगदो गदाधृक् // धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा मम स्याद्वरदः प्रशांतः / // 1 // ॐ मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः // स्थिरात्मजो महाकायः सर्वकामार्थसाधकः // 2 // लोहितो लोहितांगश्च TO-TE For Private And Personal Use Only Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir mm.kabalrm.org म. म. // 29 // सामगानां कपाकरः // धरात्मजः कुजो भोमो भूतिदो भूमिनन्दनः // 3 // अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः // वृष्टिकर्तापहर्ता च पू. खं० सर्व कामफलप्रदः // 4 // एतानि कुजनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् // ऋणं न जायते तस्य धनं प्रामोत्यसंशयः॥५॥ अंगारको मि• तं. तिबलवानपि यो ग्रहाणां स्वेदोद्भवखिनयनस्य पिनाकपाणेः // आरक्तचन्दनसुशीतलवारिणा योप्यायर्चितोऽथ विपुलां प्रददाति सिद्धि म्॥६॥भोजो धरात्मज इति प्रथितः पृथिव्यां दुःखापहो दुरितशोकसमस्तहर्ता // नृणामृणं हरति तान्धनिनः प्रकुर्याद्यः पूजितः सकलम, गलवासरेषु // 7 // एकेन हस्तेन गदां बिभर्ति त्रिशूलमन्येन ऋजुक्रमेण // शक्तिं सदान्येन वरं ददाति चतुर्भुजो मंगलमादधातु // 8 // यो मंगलो मंगलमादधाति मध्यग्रहो यच्छति वांछितार्थम् // धर्मार्थकामादिसुखं प्रभुत्वं कलत्रपुत्रैर्न कदा वियोगः // 9 // कनकमयश रीरतेजसा दुर्निरीक्ष्यो हुतवहसमकांतिौलवे लब्धजन्मा॥अवनिजतनयेषु श्रूयते यः पुराणो दिशतु मम विभूति भूमिजः सप्रभावः // 10 // इति वशिष्ठसंहितायां भौमस्तोत्रं समाप्तम् // अथ बुधस्तोत्रप्रारम्भः // पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो देवदुःखापहर्ता // धर्मस्य / धृक् सोमसुतः सदा मे सिंहाधिरूढो वरदो बुधश्च // 1 // प्रियंगुकनकश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् // सौम्यं सौम्यगुणोपेतं नमामि शशिनन्दन नम् // 2 // सोमसूनुर्बुधश्चैव सौम्यः सौम्यगुणान्वितः // सदाशांतः सदा क्षेमो नमामिशशिनन्दनम् // 3 // उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युतिः॥ सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुधः // 4 // शिरीषपुष्पसंकाशः कपिशीलो युवा पुनः // सोमपुत्रो बुधश्चैव सदा : शांतिं प्रयच्छ तु // 5 // श्यामः शिरालश्च कलाविधिज्ञः कौतूहली कोमलवाग्विलासी // रजोधिको मध्यमरूपधृक् स्यादाताम्रनेत्रो द्विज // राजपुत्रः // 6 // अहो चन्द्रसुत श्रीमन मागधर्मासमुद्भवः // अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहुः खनखेटकधारकः // 7 // गदाधरो नृसिंहस्थः ति वशिष्साहा सिंहाचा सौम्यगुणा // 4 // For Private And Personal Use Only Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir स्वर्णनाभसमन्वितः // केतकीद्रुमपत्राभ इन्द्रविष्णुप्रपूजितः // 8 // ज्ञेयो बुधः पंडितश्च रौहिणेयश्च सोमजः // कुमारो राजपुत्रश्च / शैशेवः शशिनन्दनः // 9 // गुरुपुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा // सौम्यः सौम्यगुणोपेतो रत्नदानफलपदः // 10 // एतानि बुध। नामानि प्रातःकाले पठेन्नरः॥ बुद्धिर्विवृद्धितां याति बुधपीडा न जायते // 11 // इति बुधस्तोत्रं समाप्तम् // अथ बृहस्पतिमंत्र प्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ) मंत्रो यथा-"ॐ बृं बृहस्पतये नमः / " इत्यष्टाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य बृहस्पतिमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः / अनुष्टुप्छन्दः / सुराचार्यों देवता / बृं बीजम् / नमः शक्तिः। ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥ ॐ ब्रह्मऋषये नमः। शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छन्दसे नमः / मुखे // 2 // मुराचार्यदेवतायै नमः / हृदि // 3 // बृं बीजाय नमः / गुह्ये // 4 // नमः | शक्तये नमः / पादयोः॥ 5 // विनियोयाय नमः। सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ब्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः // 3 // ॐ बी तर्जनीयां नमः॥२॥ ॐ बूं मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ . अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ ॐ बौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥५॥ ॐ ब्रः करतलकरपृष्ठात्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ बां हृदयाय नमः // 1 // ॐ बी शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ ब्रू शिखायै वषट् // 3 // ॐ 3 कवचाय हुम् // 4 // ॐ बौं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ बः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादि षडंगन्यासः // इति न्यास कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // "रत्नाष्टापदबस्वराशिममलं दक्षाकिरतं करादासीनं विपणौ करं निदधतं रत्नादिराशौ परम् // पीतालेपनपुष्पवस्त्रमखिलालंकारसंभूषितं विद्यासागरपारगं सुरगुरुं वंदे मुवर्णप्रभम् // 1 // " इति / ध्यात्वा सर्वतोभद्रमंडले धर्माधर्मादिपीठांतं पीठदेवताः संस्थापयेत् // अत्र पीठशक्तयो न संति // ततः स्वर्णादिनिर्मित For Private And Personal Use Only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 298 // अथ बृहस्पतिपूजनयन्त्रम्. पू० ख०१ मितं. तरं० 11 यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय धृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारांच दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्थ्यात्वा पायादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च ॐ वाँ हृदयाय नमः हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ वीं शिरसे स्वाहाँ / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ बं शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० // 3 // ॐ 3 कवचाय हुम् / कवचश्री पा०॥४॥ ॐ वौं नेत्रत्रयाय वौषट् नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ वः - अस्त्राय फटू अवश्रीपा० // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल॥ भक्त्या समर्पये तुयं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततो भपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदश दिक्पालान् बजायायुधानि च ॐवृहस्पतय For Private And Personal Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir संपूज्य पुष्पाजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणमशीतिसहस्रजपः॥ तद्दशांशतो घृतहोमः। एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत्॥तथा च / “जपित्वाशीतिसाहस्र हुत्वा तेन घृतेन वा // धर्माधर्मादिपीठे तं पूजयेदंगदिग्भवैः // 1 // सिद्धे मनौ प्रकुर्वीत प्रयोगानिष्टसिद्धये // हरिद्राकुसुमेर्तुत्वा घृताक्तैर्दिवसत्रयम् // 2 // सविंशतिशतं मंत्री वासांसि लभते मणीन् // शत्रुरोगादिपीडासु स्वजने कलहोद्भवे // 3 // जुहुयापिप्पलोत्थाभिः समिद्भिस्त / निवृत्तये // 4 // " इत्यष्टाक्षरबृहस्पतिमंत्रप्रयोगः // अथ बृहस्पतिस्तोत्रप्रारंभः॥"क्रौं-शकादिदेवैः परिपूजितोसि त्वं जीवभूतो जगतो हिताय // ददाति यो निर्मलशास्त्रबुद्धिं स वाक्पतिम वितनोतु लक्ष्मीम् // 3 // पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशां है। तः // दधाति दण्डं च कमण्डलुं च तथाक्षसूत्रं वरदोस्तु मह्यम् // 2 // बृहस्पतिः सुराचार्यो दयावाञ्छु मलक्षणः // लोकत्रयगुरुः श्रीमान्सर्वज्ञः सर्वतो विभुः // 3 // सर्वेशः सर्वदा तुष्टः श्रेयस्कत्सर्वपूजितः // अक्रोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता महाबलः॥ 4 // वि श्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः // भूर्भुवो धनदाता च भी जीवो जगत्पतिः // 5 // पंचविंशतिनामानि पुण्यानि शुभदानि च // नंदगोपालपुत्राय भगवत्कीर्तितानि च // 6 // प्रातरुत्थाय यो नित्यं कीर्तयेत्तु समाहितः // दिप्रस्तस्यापि भगवान् प्रीतः स च न संशयः॥७॥" (तंत्रांतरेपि ) देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम् // बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् // 3 // अमराणां बुद्धिदाता वाग्मी यः करुणाकरः // यावंतो ये च मुनयः पुरुषाकारपीतभाः // 2 // बृहस्पतिः सुराचार्यों गीष्पतिर्धिषणो| 1 सविंशतिशतं 120 // For Private And Personal Use Only Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir गुरुः॥ जीव आंगिरसो वाचस्पतिश्चित्रशिखण्डिजः // 3 ॥सकलसुरविनेता ब्रह्मतुल्यप्रभावविदशपतिकरैर्यो घृष्टपादारविंदः // विमल / पू. खं. " // 299 // मतिविकासी सर्वमांगल्यहेतुईदतु मम विभूति वाक्पतिः सुप्रभावः॥४॥ बृहस्पतिमहं नौमि गुरुं देवेन्द्रयूजितम् // सर्वशास्त्रप्रवक्तारं सर्व कामफलप्रदम् // 5 // सर्वसंशयच्छेत्तारं वेनारं सर्वकर्मणाम् // परब्रह्ममयं नित्यं परमानंदरूपिणम् // 6 // सर्वसिद्धिप्रदं देवं शरण्य भक्तवत्सलम् // वरेण्यं वरदं शांतं त्रिदशातिहरं परम् // 7 // लंबकूर्च सुवर्णाभं स्वर्णयज्ञोपवीतिनम् // पीतवस्त्रपरीधानं मार्तण्डतिल कान्वितम् // 8 // चन्दनागुरुकपूरैः सुगंधैः शतपत्रकैः // संपूज्य ध्यायते यस्तु भक्त्या सुदृढया नरैः // // धनं धान्यं जयं सौख्यं सौभाग्यं नृपमान्यता // भवंति सर्वदा तेषां त्वत्प्रसादात्सुरेश्वर // 10 // रोगाग्निसपचौराद्यास्तेषां न प्रभवति हि // सुस्थानस्थोधिदे शे च ध्यानात्सर्वार्थसाधकः // 11 // (तंत्रांतरेपि ) नमः सुरेन्द्रवंद्याय देवाचार्याय ते नमः // नमस्त्वनंतसामर्थ्य वेदसिद्धांतपारग // Nu // सदानंद नमस्तेस्तु नमः पीडाहराय च // नमो वाचस्पते तुज्यं नमस्ते पीतवाससे // 2 // नमोऽद्वितीयरूपाय लंबकूर्चाय ते नमः // नमः प्रहृष्टनेत्राय विषाणां पतये नमः // 3 // नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक // नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहे | तवे // 4 // विषमस्थस्तथा नृणां सर्वकष्टप्रणाशनम् // प्रत्यहं तु पठेद्यो वै तस्य कामफलप्रदम् // 5 // "बृहस्पतिमंत्रो" यथा ॐ नमो स्तु बृहस्पतये पीतवस्त्राभरणाय यज्ञोपवीतमालाधराय ममार्चनं गृहाण कुरुकुरु स्वाहा” इति चत्वारिंशदक्षरमंत्रः॥ इति बृहस्पतिस्तोत्रं समाप्तम् // अथ शुक्रमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ) मंत्रो यथा-"ॐ वस्त्रं मे देहि शुक्राय स्वाहा"इत्येकादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधान म् // अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। विराट्छन्दः। दैत्यपूज्यः शुक्रो देवता / ॐ बीजम् / स्वाहाशक्तिः। ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। O // 291 For Private And Personal Use Only Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir ब्रह्मऋषये नमः / शिरसि // 1 // विराट्छंदसे नमः / मुखे // 2 // देत्यपूज्यशुक्रदेवतायै नमः। हृदि // 3 // ॐ बीजाय नमः। गुह्ये // 4 // स्वाहा शक्तये नमः / पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः / सर्वाङ्गे॥६॥इति ऋष्यादिन्यासः / ॐ हृदयाय नमः // 3 // वस्त्रं शिरसे स्वाहा / 2 मे शिखायै वषट् / 3 / देहि कवचाय हुम् / 4 / शुक्राय नेत्रत्रयाय वौषट् / 5 / स्वाहा अस्त्राय फट / / 6 / इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवमेव करांगन्यासं कुर्यात् / एवं न्यासविधिं कृत्वा ध्यायेत् / अथ ध्यानम् // श्वेतांभोजनिषण्ण मापणतटे श्वतांबरालेपनं नित्यं भक्तजनाय संप्रददतं वासो मणीन हाटकम् // वामेनैव करेण दक्षिणकरे व्याख्यानमुद्रांकितं शुक्र देत्यवरार्चि तं स्मितमुखं वंदे सितांग प्रभुम् // 1 ॥इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य सर्वतोभद्रमंडले धर्मादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पूजयेत् // | ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनाभ्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य पुष्पाद्यास दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पायांदिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य आवरणपूजां कुर्यात् // षट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये च दिक्षु पूर्वोक्तषडंगन्यासमंत्रेण षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणातवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरण जाम् // 1 // ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान् बजायायुधानि च संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणमयुतजपः / तद्दशांशतो घृतहोमः / एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् / तथा च / “अयुतं प्रजपेन्मंत्रं दशांशं जुहुयाघृतैः॥ सिद्ध मंत्री प्रकुर्वीत प्रयोगानिष्टसिद्धये॥३॥मुगंधैः श्वेतकुसुमैर्जुहुयाच्छुभवासरे // एकविंशतिवारं यो लभते सोंशुकं मणीन्"। इत्येकाद ततः स्वागत वैदे सितांग मामलजलाय संमददत वास कुर्यात् / एवं न्या For Private And Personal Use Only Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अथ शुक्रपूजनयन्त्रम्. पू० ख०१ मित Vतर. 11 40 0 शाक्षरशुक्रमंत्रप्रयोगः // अथ शुक्रस्तोत्रप्रारंभः // नमस्ते भार्गवश्रेष्ठ देव दानवपूजित॥वृष्टिराधप्रकर्ड च वृष्टिकर्त्रे नमोनमः॥१॥ देवयानीपितस्तायं वेदवेदांगपारग // परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकरम् // 2 // प्राप्तो विद्या जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नमः // नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय बधसे // 3 // तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भासिताम्बर // यस्योदये जगत्सर्व मंगलाह भवेदिह // 4 // अस्तं याते परिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपि // त्रिपुरावासिनो दैत्यान् शिवबाणप्रपीडितान् // 5 // विद्यया जीवय |च्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन // ययातिगुरवे तुल्यं नमस्ते कविनंदन // 6 // बलिराज्यपदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नमः // भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्व गी वणवंदित॥७॥जीवपुत्राय यो विद्या प्रादात्तस्मै नमोनमः ॥नमः शुक्राय काव्याय भुगपुत्राय धीमहि॥८॥नमः कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने। स्तवराजमिदं पुण्यं भार्गवस्य महात्मनः॥९॥ यः पठेच्छ्रणयाद्वापि लभते वांछित फलम्॥पुत्रकामो लोत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम्॥१०॥राज्य Vॐवलंमद // 30 // For Private And Personal Use Only Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कामो लोद्राज्यं स्त्रीकामः स्त्रियमुत्तमाम् // भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं समाहितः // 11 // अन्यवारे तु होरायां पूजये। गुनन्दनम् // // रोगातों मुच्यते रोगादयातों मुच्यते भयात् // 12 // ययत्यार्थयते वस्तु तत्तत्मामोति सर्वदा // प्रातःकाले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नतः॥१३॥सर्वपापविनिर्मुक्तः प्राप्नयाच्छिवसन्निधौ॥१४॥इति स्कंदपुराणे शुक्रस्तोत्रं समाप्तम् // d // अथ व्यासमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा-"व्यां वेदव्यासाय नमः // " इत्यष्टाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य। जामंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः। सत्यवतीसुतो देवता। व्यां बीजम् / नमः शक्तिः / ममानीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः // ॐ ब्रह्म ऋषये नमः। शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छन्दसे नमः / मुखे // 2 // सत्यवतीसुतदेवताय नमः / हृदि // 3 // व्यांबीजाय नमः / IN|गो // 4 // नमःशक्तये नमः / पादयोः॥ 5 // विनियोगाय नमः / सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ॐ व्या हृदयाय नमः // 1 // ॐ व्यी शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ व्यूं शिखायै वषट् // 3 // ॐ व्य कवचाय हुम् // 4 // ॐ व्यौं नेत्रत्रयाय वौषट् / // 5 // ॐ व्यः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः॥ एवं करांगन्यासं कर्यात् // इति न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // "व्याख्यामुद्रिकया लसत्करतलं सद्योगपीठस्थितं वामे जानुतले दधानमपरं हस्तेषु विद्यानिधिम् // विप्रवातवृतं प्रसन्नमनस) पाथारुहांगद्युतिं पाराशय॑मतीव पुण्यचरितं व्यासं स्मरेत्सिद्धये // 1 // " इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूजयेत् // ततः सर्वतोभद्रमंडले / धर्मादिपीठदेवताः संस्थाप्य "ॐ धर्मादिपीठदेवताभ्यो नमः॥” इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृते / 1 समूह / -03 2 For Private And Personal Use Only Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं• म. अथ वेदव्यासपजनयन्त्रम्. // 30 // नात्यज्य तदुपारी दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य All पुष्पायासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादिपुष्पान्तरुपचारैः संपूज्य आवरणपूजां कुर्यात् / / बाषट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च / ॐ व्या हृदयाय नमः elu // ॐ व्यी शिरसे स्वाहाँ // 2 // ॐ व्यूं शिखायै वपटू Vi // 3 // ॐ व्य कवचाय हुम् ॥४॥ॐ व्यौं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ व्यः अस्त्राय फट् // 6 // इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांज लिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्ठसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // Niभक्त्या समर्पये तुत्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राच्यादिचतु दिक्षु दक्षिणावर्तेन च / ॐ शल्याय नमः शल्यश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इति सर्वत्र॥१॥ॐ वैशंपायनाय नमः / वैशंपायनश्रीपा० // 2 // व्यदिव्या सापनमः // 30 // For Private And Personal Use Only Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ॐ जैमिनये नमः। जैमिनिश्रीपा०॥ 3 ॥ॐ मुमन्ताय नमः सुमन्तश्रीपा० // 4 // आग्नेयादिचतुष्कोणेषु ॐ श्रीशुकाय नमः / श्रीशुकश्रीपा० // 5 // ॐ उग्रश्रवसे नमः / उग्रश्रवःश्रीपा०॥६॥ ॐ समन्याय नमः / समन्यश्रीपा० // 7 // ॐ| चिमनाय नमः / चिमनश्रीपा०॥८॥ इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् ॥२॥ततो भूपरे इन्द्रादिदश दिक्पालान् वज्राद्यायुधानि च पूजयित्वा पुष्पांजालं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणमयतजपाः॥ पायसान्नेन दशांशतो होमः // एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत् // तथा च / "जपदष्ठसहस्राणि पायसोममाचरेत् // एवं सिद्धमनुमंत्री कवित्वं शोभनाः प्रजाः // 1 // व्याख्यानशक्तिं कीति च लभते संपदां च / यः॥ मृत्युंजयेन पुटितं यो व्यासस्य मनुं जपेत् // 2 // सर्वोपद्रवसंत्यक्तो लभते वांछितं फलम् // मृत्युंजयस्य मंत्री त्रिवर्णो मुत्यु नाशनः // 3 // जप्तोयं केवलो नृणामिष्टसिद्धिं प्रयच्छति // किं पुनस्तेन पुटितो वेदव्यासमनूत्तमः॥४॥इति वेदव्यासाष्टाक्षरमंत्रप्रयोगः॥ // अथ धर्मराजमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा-"ॐ को ही आँ 0 वैवस्वताय धर्मराजाय भक्तानुग्रहकते नमः” इति लाचतुर्विशत्यक्षरो मंत्रः॥ अस्य विधानम् // ॐ क्रों ह्रीं हृदयाय नमः // 1 // आँ शिरसे स्वाहा // 2 // वैवस्वताय शिखायै वषट // 3 // धर्मराजाय कवचाय हुम् // 4 // भक्तानुग्रहकते नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // नमः अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंग न्यासः॥ ॐ क्रों ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः ॥१॥आँ बैं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // वैवस्वताय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // धर्मराजाय अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ भक्तानग्रहकते कनिष्ठिकाश्यां नमः॥५॥ नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ १ॐ जूं सः व्या वेदव्यासाय नमः सः इति जपेत् // For Private And Personal Use Only Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maa Jain Aradhana Kendra mmm.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं.. 1302 // एवं न्यास क्रत्वा सावधानमना देवं ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // "पाथःसंयुतमेघसन्निभतनुः प्रद्योतनस्यात्वजो नृणां पुण्यशुभावहः पू. खं. स्ववपुषा पापीयसा दुःखरुत् // श्रीमदक्षिणदिक्पतिमहिषगो भूषाभरालंकतो ध्येयः संयमिनीपतिः पितृगणस्वामी यमो दंडभृत्॥१॥"मितं. ति ध्यायेत् // सिद्धमंत्रत्वादृष्यादिपूजाभावः // "आयस्तोयं सदा मंत्रः सकलापविनाशनः // नरकमाप्तिरोद्धा स्याद्रिपुभीतिनिवर्तकः ।तरं० 11 // 2 // " इति धर्मराजमंत्रप्रयोगः॥ अथ चित्रगुप्तमंत्रप्रयोगः॥ ( मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा--"ॐ नमो विचित्राय धर्मलेखकाय यम वाहिकाधिकारिणे म्ल्यू जन्मसंपत्पलयं कथयकथय स्वाहा" इत्यष्ट त्रिंशदक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // ॐ नमो विचित्राय अंगु॥ पठाभ्यां नमः॥१॥ धर्मलेखकाय तर्जनीभ्यां नमः // 2 // यमवाहिकाधिकारिणे मध्यमाभ्यां नमः // 3 // म्ल्व्यूँ जन्मसंप्रत्प्रलयं अनामिकाभ्यां नमः // 4 // कथयकथय कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥ 5 // स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ MIॐ नमो विचित्राय हृदयाय नमः // 1 // धर्मलेखकाय शिरसे स्वाहा // 2 // यमवाहिकाधिकारिणे शिखायै वषट् // 3 // म्ल्यूँ जन्मसंपत्पलयं कवचाय हुम् // 4 // कथयकथय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // स्वाहा अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंग न्यासः॥ एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // “किरीटोज्ज्वलं वस्त्रभूषाभिरामं विचित्रासनासीनर्मिदुप्रभास्यम् // नृणां पापपुण्यानि पत्रे लिखतं भजे चित्रगुप्तं सखायं यमस्य // 1 // " इति ध्यात्वा मंत्र जपेत् // तथा च / “मंत्रोयं चित्रगुप्तस्य सर्वदुःखो / घनाशनः // सिद्धोमनुरयं पुसा जपतां चित्रगुप्तकः // प्रसन्नो गणयेत्पुण्यं नैव पापं कदाचन // 1 // " इति चित्रगुप्तमंत्रप्रयोगः // अथ C an घंटाकर्णमंत्रप्रयोगः // (प्राकृतथे)मंत्रो यथा-"ॐ घंटाकर्णोमहावीरो देवदत्त सर्वोपद्रवनाशनं कुरुकुरु स्वाहा” इत्येकोनत्रिंशदक्षरो मंत्रः॥अस्य विधानम्।।स्वासने पूर्वाभिमुखः स्थित्वा गंधाक्षतपुष्पधूपदीपकपूरेण संपूज्य पंचत्रिशच्छतं प्रत्यहं जपेत॥जपति पश्चिमाभिमुखो For Private And Personal Use Only Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kabarth.org भूत्वा गुग्गुलेन सहस्र हुनेत्॥एवं कतेन त्रिदिनांतरे सर्वोपद्रवा नश्यति राजभयादिकं नश्यति निर्भयो भवति // इति घंटाकर्णमंत्रप्रयोगः॥ अथ कार्तवीर्यार्जुनमंत्रप्रयोगः॥ (मंत्रमहोदधौ) अथेष्टदान्मनून वक्ष्ये कार्तवीर्यस्य गोपितान् // यः सुदर्शनचक्रस्यावतारः क्षितिमंडले | // 1 // मंत्रो यथा-"ॐ फों त्री की जूं आँ ह्रीं को श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय नमः" इति विंशत्यक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // अस्य कार्यार्जनमंत्रस्य दत्तात्रेय ऋषिः / अनुष्टुप्छंदः / कार्तवीर्यार्जुनो देवता / ॐ बीजम् // नमः शक्तिः।ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः॥ ॐ दत्तात्रेयऋषये नमः / शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे नमः / मुखे // 2 // कार्तवीर्यार्जुनदेवतायै नमः / हृदि // 3 // ॐ बीजाय नमः / गुह्ये // 4 // नमः शक्तये नमः। पादयोः // 5 // विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 6 // इति ऋष्या दिन्यासः॥ ॐ फ्रां वां अंगुष्ठाभ्यां नमः॥ 1 // ॐ क्लीं श्रीं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ हूं मध्यमाभ्यां नमः // 3 // * 3 अनामिकाभ्यां नमः॥४॥ हुं फट् कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥५॥ कार्तवीर्यार्जुनाय नमः॥ करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // ॐ फ्रां भां हृदयाय नमः // 1 // ॐ क्लीं भी शिरसे स्वाहा ॥२॥ओं हूं शिखायै वषट् // 3 // ॐ मैं में कव चाय हुम् // 4 // ॐ हुं फट् अस्वाय फट् // 5 // ॐ कार्तवीर्यार्जुनाय नमः / सर्वांगे // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // ॐ कों ॐ हृदये // 1 // ॐ त्रीं ॐ जठरे // 2 // ॐ क्लीं ॐ नाभौ // 3 // ॐ ॐ पुनः जठरे // 4 // ॐ आं ॐ गुह्ये // १मंत्री दशविधः-फ्रों कार्तवीयांजुनाय नमः ही कार्तवीया नाय नमः: फ्रॉ श्री कार्तवीर्यार्जुनाय नमः कार्तवीर्यार्जुनाय नमः,'फ्रों वा कार्तवीया जुनाय धुनमः; फों को कार्तवीर्यार्जुनाय नमः, हुं कार्तवीर्यार्जुनाय नमः; फटू कों में कार्तवीर्यार्जुनाय नमः; काबूं कार्तवीर्यार्जुनाय नमः आं फ्रों कातंबीयांर्जुनाय नमः इति दशमंशणां त्रिष्टुप् छंदः / अन्यत् सर्वं पूर्ववज्ज्ञेयम् / For Private And Personal Use Only Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobar.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . *r . पू..१ मि.तं. | तरं. 11 // 5 // ॐ ह्रीं ॐ दक्षपादे॥६॥ ॐ को ॐ वामपादे // 7 // ॐ श्री ॐ सक्थिनि // 8 // ॐ हुँ ॐ जानुनि // ९॥ॐ ॐ जंघयोः // 30 // ॐ कांॐ मस्तके // 11 // ॐ तं ॐ ललाटे // 12 // ॐ वी ॐ वोः // 13 // ॐ यां ॐ श्रुत्योः // 14 // ॐ जूं ॐ नेत्रयोः // 15 // ॐ नांॐ नासिकायाम् // 16 // ॐ यं ॐ वक्रे॥१७॥ ॐ नं ॐ गले // 18 // ॐ मंॐ अंसयोः // 19 // ॐ क्रों त्रीं क्लीं नं आं ह्रीं क्रों श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय नमः॥इति सर्वांगे पादादिमूर्धातं व्यापकं कुर्यात् // इति मंत्रवर्णव्यापकन्यासः॥ एवं न्यासविधि कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // उद्यत्सूर्यसहस्रकांतिरखिलक्षोणीधर्वदितो हस्तानां शतपंचकेन च दधच्चापानिपंस्ता वतः // कंठे हाटकमालया परिवृतश्चक्रावतारो हरेः पायात्स्यंदनगोऽरुणाभवसनः श्रीकार्तवीर्यो नृपः // 1 // इति ध्यात्वा मानसो पचारैः संपजयेत् // ततः पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य “ॐ मं मंडकादिपरतत्त्वांतपीठदेवता यो नमः" इति संपूज्य नव पीठशक्तीः पूजयेत् // तद्यथा-पूर्वादिक्रमेण ॐ विमलायै नमः // 1 // ॐ उत्कर्षिण्यै नमः // 2 // ॐ ज्ञानाय नमः // 3 // ॐ कियाय नमः // 4 // ॐ योगाय नमः // 5 // ॐ प्रहयै नमः // 6 // ॐ सत्यायै नमः // 7 // ॐ ईशानाय नमः // 8 // मध्ये ॐ अनुग्रहायै नमः॥९॥ इति पूजयेत् // ततः स्वर्गादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोध्य "ॐ नमो भगवते कार्तवीर्यार्जनाय पद्मपीठात्मने नमः” इति मंत्रण पुष्पाद्यासन दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्व्यात्वा पायादिपुष्पतिरुपचारैः संपूज्य आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पटकोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च / ॐ क्रां वां हृदयाय नमः। हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥इति स वत्र // 1 // क्लीं भी शिरसे स्वाहा / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ हूं शिखायै वष / शिखाश्रीपा०॥३॥ मैं मैं कवचाय हुम् / कवचश्री For Private And Personal Use Only Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ कार्तवीर्यार्जुनपूजनयन्त्रम्. 40 पा० // 4 // ॐ हुं फट् अस्त्राय फट / अस्वश्रीपा० // 5 // ॐ कार्तवीर्यार्जुनाय नमः सर्वांगे // सर्वांगश्रीपा० // 6 // इति षडं गानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभीष्टसिद्धि पामे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्च Kलानम् // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राच्यादिचतुर्दिक्ष ॐ चोरमद विभंजनाय नमः // 1 // ॐ मारीमदविभंजनाय नमः // 2 // ॐ परिमदविभंजनाय नमः // 3 // ॐ दैत्यमदविभंजनाय नमः M // 4 // आनेष्यादिकोणेषु / ॐ दुःखनाशाय नमः // 5 // ॐ al दुष्टनाशाय नमः // 6 // ॐ दुरितनाशाय नमः // 7 // ॐ रोगनाशकाय नमः // 8 // इत्यटौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च जदयात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽष्टदलायेषु प्राची की० For Private And Personal Use Only Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं० मन मेणें // ॐ क्षेमकराये नमः // 1 // ॐ वश्यकरायै नमः // 2 // ॐ श्रीकरायै नमः // 3 // ॐ यशस्कराय नमः / पू० सं० 1 20 4 // ॐ आयुष्करायै नमः // 5 // ॐ प्रज्ञाकरायै नमः // 6 // ॐ विद्याकरायै नमः // 7 // ॐ धनकरायै नमः // ८॥मितं. इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति तृतीयावरणम् // 3 // ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान् वज्रायायुधानि पच संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणमेकलक्षजपाः // तिलतंडुलपायसेन दशांशतो होमः।एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत्॥तथा च / “लक्षमेकं जपेन्मंत्र दशा शाशं जुहुयातिलैः॥सतंडलेः पायसेन विष्णुपीठे यजेत्तु तम्॥१॥एवं संसाधितो मंत्रः प्रयोगार्हः प्रजायते॥शुद्धभूमावष्टगंधैलिखित्वा यंत्रमाद दारात् // तत्र कुंभ प्रतिष्ठाप्य तत्रावाह्यार्चयेन्त्रपम् // 2 // स्पृष्ट्वा कुंभ जपेन्मंत्रं सहस्रं विजितेन्द्रियः // अभिषिचेचदंभोभिः प्रियं सर्वे सिद्धये // 3 // पुत्रान् यशो रोगनाशमायुःस्वजनरंजनम् / वासिद्धिं सुदृशः कुंभाभिषिक्तो लभते नरः // 4 // शत्रूपदवमा पन्ने यामे वा पुटभेदने // संस्थापयदिदं यंत्रमरिभीतिनिवृत्तये // 5 // सर्षपारिष्टलशुनकासार्यते रिपुः // धत्तरैः स्तंभते निवैषते |वश्यतेंबुजैः // 6 // उच्चाटयते बिभीतस्य समिद्भिः खदिरस्य च // कटुतैलमहिष्याज्यहोमद्रव्यांजनं स्मृतम् // 7 // यवैहुतैः श्रियः प्राप्तिस्तिलैराज्यरघक्षयः // तिलतंडुलसिद्धार्थलाजैश्यो नृपो भवेत् // 8 // अपामार्गार्कदूर्वाणां होमो लक्ष्मीप्रदोऽधनुत् // स्त्रीवश्य कप्रियंगूनों पुराणां भूतशांतिदः॥ 9 // अश्वत्योदूंबरप्लक्षवटबिल्वसमुद्भवाः // समिधो लभते हुत्वा पुत्रानायुर्धनं सुखम् // 10 // // 30 // |निोंकहेमसिद्धार्थलवणचोरनाशनम् // रोचनागोमयैः स्तंभो भूप्राप्तिः शालिभिहुतेः // 11 // होमसंख्या तु सर्वत्र सहस्रादयुतावधिः॥ १मालकांगुनी / 2 गूगळ।३सोवा / 4 धतूरा / CAPER For Private And Personal Use Only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकल्पनीया मंत्रज्ञैः कार्यगौरवलाघवात् // 12 // इति विंशत्यक्षरोकार्तवीर्यार्जुनमंत्रप्रयोगः // अन्यो मंत्रो यथा-"ॐ नमो भगवते श्रीकार्तवीर्यार्जुनाय सर्वदुष्टांतकाय तपोबलपराक्रमपरिपालितसप्तद्वीपाय सर्वराजन्यचूडामणये महाशक्तिमते सहस्रबाहवे हुं फट्" इति मला त्रिषष्टिवर्णों मंत्रः // अस्य विधानम् // राजन्यचक्रवर्तिने हृदयाय नमः॥ 1 // वीराय शिरसे स्वाहा // 2 // शूराय शिखायै वषट् / // 3 // माहिष्मतीपतये कवचाय हुम् // 4 // रेवांबुपरितृप्ताय नेत्रत्रयाय वौषट् ॥५॥कारागेहपबाधितदशास्याय अस्त्राय फट्॥६॥इति / पडंगन्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // “सिच्यमानं युवतिभिः क्रीडतं नर्मदाजले // हस्तै लोघं रुंधतं ध्यायेन्मत्तं नृपोत्तमम् // 1 // " इति ध्यायेत् // अस्य पुरश्चरणमयुतजपः // पूजादिकं सर्व पूर्ववत् // तथा च / “एवं ध्यात्वायुतं मंत्र जपेदन्यत्तु पूर्ववत् // पूर्व वत्सर्वमेतस्य समाराधनमीरितम् // 1 // इति / अन्यो मंत्रो यथा-"ॐ कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहुसहस्रवान् // तस्य संस्मरणादेव हृतं नष्टं च लायने ॥इत्यनुष्टुब्रूपो मंत्रः // ॐ कार्तवीर्यार्जुनो नाम हृदयाय नमः // 1 // राजा बाहुसहस्रवान् शिरसे स्वाहा // 2 // || तस्य संस्मरणादेव शिखायै वषट् // 3 // हृतं नष्टं च लायते कवचाय हुम् // 1 // ॐ कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहुसहस्रवान्ना तस्य संस्मरणादेव हृतं नष्टं च लभ्यते अस्त्राय फट् // 5 // इति पंचांगन्यासं कर्यात् // अन्यत् सर्व पूर्ववत् // अन्यः // "ॐ कार्तवीर्यः खलद्वेषी कृतवीर्यसुतो बली // सहस्रबाहुः शत्रुनो रक्तवासा धनुर्धरः // रक्तगंधो रक्तमाल्यो राजा स्मर्तुरभीष्टदः॥” इति मत्रः॥ अस्य विधानम् // "द्वादशैतानि नामानि कार्तवीर्यस्य यः पठेत् // अनष्टद्रव्यता तस्य नष्टस्य पुनरागमः" इति // गायत्रीमंत्रो यथा॥"ॐ कार्तवीर्याय विद्महे महावीर्याय धीमहि // तन्नोर्जुनः प्रचोदयात् // गायव्येषार्जुनस्योक्ता प्रयोगादौ जपेत्तु ताम् // अनुष्टुनं मनुं रात्री जपतां चौरसंचयाः // पलायंते गृहादूरं तर्पणाद्वचनादपि // 1 // इति कार्तवीर्याजुनमंत्रप्रयोगः // For Private And Personal Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं० म. श्रीमद्भागवतानुष्ठानचक्रम् / एकाहपारायणम्। यहपारायणम्। व्यहपारायणम्। चतुरहपारायणम् / पंचाहपारायणम् / दिन ध्याय स्कंध ऽध्याय | दिन ध्याय स्कंध ध्याय || दिन ध्याय स्कंध याय दिन ध्याय स्कंध ध्याय || दिन ध्याय स्कंध ध्याय प० ख०१ मितं. तरं०११ // 30 // 8 / 4 8 / 15 3145 का एकाहपारायणं शुक्राचार्य मतात् श्रावणकृष्णपक्षे कु-त्रय्यारुणिमतात् यहपारायधूयात् // 1 // ण श्रावणशुपक्षे कुर्यात् // 2 // यहपारायणं हारीतमतात मुक्तिकाम आश्विन शुरूपक्षे कु. चतुरहपारायणं सर्व कामयति // 3 // नाप्राप्ती शानकमतात भादा पंचाहपारायणं अकृतव्रण पदशुकृपक्षे कुर्यात् // 4 // मतात् सर्वकामनाप्राप्त्यर्थ भाद्रपदशकपक्षे कुर्यात् // 5 // पडहपारायणम्। सप्ताहपारायणम्। सप्ताहपारायणम्। सप्ताहपारायणम् / |दिन ध्याय स्कंध | अध्याय दिन ऽध्याय स्कंध ध्याय | दिन ध्या. स्कंध | sध्याय दिन ध्याय स्कंध | sध्याय For Private And Personal use only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 10 73 90 / 51 10 10 - 40 13 | 5 39 / 10 | 55 6 | 17 | 7 44 12 / 13 44 | पडद्दपारायणं शांशपायन सप्ताहपारायणं शांशपाय | सप्ताहपारायणं वशिष्ठमता- सप्ताहपारायणं सूतमता मतात् धनप्राप्तिकामो भाद्रपद नमताद्धनप्राप्तिकामो भाद्रपद पुत्रप्राप्तिकामो वैशाखे कु-निष्कामः कार्तिकशकपक्षेककृष्णपक्षे कुर्यात् // 6 // / कृष्णपक्ष कुर्यात् // 7 // यत् // 7 // / ति // 7 // सप्ताहपारायणम्। सप्ताहपारायणम्। सप्ताहपारायणम्। सप्ताहपारायणम् / सप्ताहपारायणम् / दिन ध्याय स्कंध ध्याय दिन ध्याय स्कंध घ्याय |दिन पाय| स्वाध्याय दिन घ्या. स्कंध ऽध्याय | दिन sध्याय स्कंधऽध्याय ".. -10 NM509 86.0. 4.0M.. C0M.. 865GS // 305 // 6.msc 9010 90 3211 198235 6. mew 13 6. 0 13 / 13 / 13 G. सप्ताहपारायणं विश्वामित्र मतात् संकटमोचनार्थ मार्गशीर्ष कुर्यात् // 7 // सप्ताहपारायणं जमदग्निम- सप्ताहपारायणं भारद्धाजम- सप्ताहपारायणं गौतममतात् सताहपाराय गं भविमतादोताद्विषनाशनकामः पौषे कु- तात् बंधमोक्षकामो मावे शत्रुपराजयकामः फाल्गुने कु गमुक्तिकामश्चैत्र फुयात् // 7 // यांत् // 7 // कुर्यात् // 7 // यात् // 7 // For Private And Personal Use Only Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पु- खं०१ मि० तंतरं-११ श्रीमद्भागवतानुष्ठानचक्रम् / एकादपारायणम। व्यहपारायणम् / न्यहपारायणम् / चतुरहपारायणम् / पंचाहपारायणम्। IMIII दिन भ्याय रकंध प.पादिन पाय स्कंध अध्याय दिन ध्याय स्कोर sध्याय दिन ध्याय स्कंध ऽध्याय दिन भ्याय स्कंध अध्याय 1 1190 2 13 I एकापारायणे शकाचाच्य मताव आवणफरणपी कु त्रस्यारुणिमतात् ग्रहपाराय आपणाकक्षफर्यात // 2 // व्यापारायणं हारीतमतात मक्तिकामाविनामपदो कु चतुरपारायणं सर्व काम(पौत // 3 // नामानी शानकमतात भाद्र पंचादपारायणं भकृतवण पदशुरूपा कुयात् // 4 // मतात सर्वकामनामाप्त्यर्थी भाइपवधापनकपति॥५॥ पडहपारायणम्। सप्ताहपारायणम्। सप्ताहृपारायणम्। सप्ताहपारायणम्। विनश्याय कंध अध्याय दिनध्याय स्कंधश्याय दिनया. एकंवपाप निनध्याय ऽध्याय पंधश्याय चटपारायण शांशपायन मतात धनपानिकामी भाइपदा फरणपत फुपात॥६॥ समादपारायण वशिष्ठमाता वैशायले समादपारायणसूतमता त्रिकामा कार्तिकशरूपक्ष कु नमतानमाप्तिकामी पक्ष यात॥ सलादपारायण समाहपारायणम। सप्ताहपारायणम्। दिन ध्याय स्कंध न्याय सप्ताहपारायणम् दिन या. स्कंध सताद्दपारायणम् / दिन याच पाया पाया सफष चाव दिन 'पाय सवाय -बाबरचारापन विन्यामिन Saharaniमर बमापारापर्ण गमवशिम-पानापारापर्ण भारद्वाजम- बारापारायणं मौतममतात्. चलाडपाराय- भविमतातोगाविपनानालको सांतवचनीयाकानीमाबापासम्बयाम कात्याने मनिषकामधील For Private And Personal Use Only Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |पू० खं.. मित तरं० 11 // 306 // दशाहपारायणम्। पंचदशाहपारायणम् / दिन ध्याय स्कंध ऽध्याय दिन ध्याय स्कंध | अध्याय दशाहपारायणं कश्यमताद्राज्यप्राप्तिकाम भाषाढ शुक्लपक्षे फुर्यात् // 10 // www.kobalrm.org बृहस्सातमत स्तबकामाप्तकाना घेउशुकुरक्षे प्राषाढे वा कुर्यात् 15 मासपारायणम्। __शुक्लपक्षे दिन ध्या. स्कंध घ्या. || दिन sध्या. कंध घ्या. For Private And Personal Use Only 06.0.5cccman". 12 | 13 |8 1 मालपारायणं यदा कृग्गादि तदा शुक्ला / यदा शुक्रति तदा कृष्णांतम् / एवं प्रजापालनाादसकामनाप्राप्ति एकं बृहस्पतिम तमिदम् / एवं दिमाकाण्मासिक सांवत्सरिकादिकमपि पारायण ज्ञेयम्॥बृहस्पतिमतस्येष्टिः समाप्ता मतांतरे वैशाख शुक्लपंचमीमारभ्य श्येष्ठ शुक्ल पंचमी यावत् // 30 // ONOUR- OWi Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // अथ हनुमदादिषट्कवचप्रयोगः॥ (श्रीमदानंदरामायणे मनोहरकांडे )आदौ नरैारुतेश्च पठित्वा कवचं शुभम् // ततः शत्रुघ्नकवचं पठनीयमिदं शुभम् // 1 // पठनीयं भरतस्य कवचं परमं ततः॥ ततः सौमित्रिकवचं पठनीयं सदा नरैः // 2 // पठनीयं ततः सीताकवचं भाग्यवर्द्धनम् // ततः श्रीरामचंद्रस्य कवचं सर्वदोत्तमम् // 3 // पठनीयं नरैक्त्या सर्वांछितदायकम् // एवं षट् कवचान्यत्र पठनीयानि सर्वदा // 4 // पठनं षट्कवचानां श्रेष्ठं मोक्षकसाधनम् // ज्ञात्वात्र मानवैर्नरत्या कार्य च पठनं सदा // 5 // अशक्तेनात्र चत्वारि पठनीयानि सादरम् // हनूमतश्च सौमित्रः सीताया राघवस्य च // 6 // इमानि पठनीयानि चत्वारि / कवचानि हि // चतुर्णा कवचानां च पठने मानवाय च // 7 // न यद्यत्रावकाशश्चेत्तदा त्रीणि पठेन्नरः // मारुतेश्चात्र सीताया / स्तथा श्रीराघवस्य च // 8 // त्रयाणां कवचानां च न पाठावसरो यदा // पठनार्थ मानवाय तदा द्वे कवचे स्मृते // 9 // मारुतेश्चाथ रामस्य सीताया राघवस्य वा // नैकमेव पठेच्चात्र श्रीरामकवचं शुभम् // 10 // अवकाशे कवचानां षट्कमेव सदा नरैः॥ पठनीयं क्रमेणेव कर्तव्यो नालसः कदा // 11 // यदावकाशो नास्त्येव तदा तेषां सुखाप्तये // मया विशेषः प्रोक्तोऽयं न सर्वेषां मये जरितः॥ 12 // तत्रादौ एकमुखिहनुमत्कवचपारम्भः // एकदा सुखमासीनं शंकरं लोकशंकरम् // प्रपच्छ गिरिजा कांतं कर्पूरधवल। शिवम् // 1 // श्रीपार्वत्युवाच // भगवन्देवदेवेश लोकनाथ जगत्त्रभो // शोकाकुलानां लोकानां केन रक्षा भवेध्रुवम् ॥२॥संग्रामे संकटे / घोरे भूतप्रेतादिके भये // दुःखदावाग्निसंतप्तचेतसां दुःखभागिनाम् // 3 // श्रीमहादेव उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि लोकानां है हितकाम्यया // विभीषणाय रामेण प्रेम्णा दत्तं च यत्पुरा // 4 // कवचं कपिनाथस्य वायुपुत्रस्य धीमतः // गुह्यं तत्ते प्रवक्ष्यामि For Private And Personal Use Only Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 11307 // विशेषाच्छृणु सुंदरि // 5 // उद्यदादित्यसंकाशमुदारभुजविक्रमम् // कंदर्पकोटिलावण्यं सर्वविद्याविशारदम् // 6 // श्रीरामहृदया नन्दं भक्तकल्पमहीरुहम् // अभयं वरदं दोर्यो कलये मारुतात्मजम् // 7 // हनूमानंजनीसुनुर्वायुपुत्रो महाबलः // रामेष्टः फाल्गुन सखः पिंगाक्षोऽमितविक्रमः // 8 // उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः // लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा // 9 // एवं द्वादश नामानि कपींद्रस्य महात्मनः // स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत् // 10 // तस्य सर्व भयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्॥ राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन // 11 // उल्लंघ्य सिंधोः सलिलं सलीलं यः शोकवह्नि जनकात्मजायाः॥ आदाय तेनैव ददाह लंकां नमामि तं प्रांजलिरांजनेयम् // 12 // "ॐ नमो हनुमते सर्वसर्वग्रहान भूतभविष्यद्वर्तमानान् समीपस्थान सर्वकालदुष्टबुद्धीनुच्चाटयो | चाटय परबलान क्षोभयक्षोभय मम सर्वकार्याणि साधयसाध्य ॐ ह्रां ह्रीं हूं फट् घेघेघे ॐ शिवसिद्धिं ॐ ह्रां ॐ ह्रीं ॐ हूं ॐ हैं ॐ ह्रौं ॐ ह्रः स्वाहा परकत्ययंत्रमंत्रपराहकारभूतप्रेतपिशाचदृष्टिसर्वविघ्नदुर्जनचेष्टाकुविद्यासर्वोयभयानि निवारय २बंध 2 लुंठ 2 विलुंच 20 किलि 3 सर्वकुयंत्राणि दुष्टवाचं ॐ फट् स्वाहा” ॐ अस्य श्रीहनुमत्कवचस्तोत्रमंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः / श्रीहनुमान् परमात्मा देवता / अनुष्टुप्छंदः / मारुतात्मज इति बीजम् / अंजनीसूनुरिति शक्तिः। लक्ष्मणप्राणदातेति कीलकम् / रामदूतायेत्यस्खम् / हनुमान देवता इति कवचम् / पिंगाक्षोऽमितविक्रम इति मंत्रः / श्रीरामचन्द्रप्रेरणया रामचन्द्रप्रीत्यर्थ मम सकलकामनासिद्धयर्थ जो विनियोगः // ॐ ह्रीं अंजनीसुताय अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ हूं रामदूताय मध्यमाभ्यां नमः॥ 3 // ॐ हैं वायुपुत्राय अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय कनिष्ठिकाायां नमः // 5 // ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्रनिवारणाय करतलकर थ। // 307 // For Private And Personal Use Only Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobalrm.org पृष्ठाभ्यां नमः॥ 6 // इति करन्यासः // ॐ ह्रां अंजनीसुताय हृदयाय नमः // 1 // ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ। हूं रामदूताय शिखायै वषट् // 3 // ॐ हैं वायुपुत्राय कवचाय हुम् // 4 // ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्रनिवारणाय अखाय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // अथ ध्यानम् // "ध्यायेद्वालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदपपिहं / देवेंद्रप्रमुखं प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा // सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीतांबरालंकतम् // 1 // उयन्मार्तडकोटिप्रकटरुचियुतं चारुवीरासनस्थं मौंजीयज्ञोपवीताभरणरुचिशिखं शोभित कुण्डलांकम् // भक्तानामिष्टदं तं प्रगतमुनिजनं| वेदनादप्रमोदं ध्यायेद्देवं विधेयं प्लवगकुलपति गोष्पदीभूतवार्षिम्॥२॥वज्रांग पिंगकेशाढ्यं स्वर्गकुंडलमंडितम्॥ निगूढमुपसंगम्य पारावारप राकमम्॥३॥स्फटिकाभं स्वर्णकांतिं द्विभुजं च कृतांजलिम् // कुंडलव्यसंशोभिमुखांभोजं हरिं भजे॥४॥सव्यहस्ते गदायुक्तं वामहस्त कमंडलुम्॥उद्यद्दक्षिणदोडं हनूमंतं विचिंतयेत्॥५॥"अथ मंत्रः॥"ॐ नमो हनुमते शोभिताननाय यशोलंकृताय अंजनीगर्भसंभूताय राम लक्ष्मणानन्दकाय कपिसैन्यप्रकाशनपर्वतोत्पाटनाय सुग्रीवसाह्यकरणपरोच्चाटनकुमारब्रह्मचर्यगंभीरशब्दोदय ॐ ह्रीं सर्वदुष्टग्रहनिवारणाय , स्वाहा ॥"ॐ नमो हनुमते एहिएहिएहि सर्वग्रहभूतानां शाकिनीडाकिनीनां विषमष्टानां सर्वेषामाकर्षयाकर्षय मर्दयमर्दय छेदयच्छेदय मान्मारयमारय शोषय २प्रज्वल २भूतमण्डलपिशाचमण्डलनिरसनाय भूतज्वरप्रेतज्वरचातुर्थिकज्वरब्रह्मराक्षसपिशाचच्छेदनक्रियाविष्णु ज्वरमहेशज्वरान् छिंधिच्छिधि भिंधिभिंधि अक्षिशूले शिरोत्यंतरे ह्यक्षिशूले गुल्मशूले पित्नशूले ब्रह्मराक्षसकुलप्रबलनागकुलविनिविषझटिति / / २ॐ ह्रीं फट घेघे स्वाहा॥""ॐ नमो हनुमते पवनपुत्रवैश्वानरमुखपापदृष्टिपोटादृष्टिहनुमते का आज्ञा फुरे स्वाहा" स्वगृहे द्वारे पट्टके तिष्ठ, For Private And Personal Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kobatrm.org मं० म तिष्ठेति तत्र रोगभयं राजकुलभयं नास्ति तस्योच्चारणमात्रेण सर्व ज्वरा नश्यति ॐ ह्रां ह्रीं हूं घेघे स्वाहा॥"श्रीरामचन्द्र उवाच // हनुमान पू० ख०१ // 30 // पूर्वतः पातु दक्षिण पवनात्मजः॥ पातु प्रतीच्यां रक्षोनः पातु सागरपारगः // 1 // उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरीप्रियनन्दनः // अधस्तु मित. विष्णुभक्तश्च पातु मध्यं तु पावनिः // 2 // लंकाविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरंतरम् // मुग्रीवसचिवः पातु मस्तकं वायुनंदनः // 3 // तर भालं पातु महावीरो ध्रुवोर्मध्ये निरंतरम् // नेत्रे छायापहारी च पावनः पृवगेश्वरः // 4 // कपोले कर्णमूले च पातु श्रीरामकिंकरः॥ नासाग्रमंजनीसूनुः पातु वकं हरीश्वरः॥ 5 // वाचं रुद्रप्रियः पातु जिह्वां पिंगललोचनः // पातु देवः फाल्गुनष्टश्चुबुकं दैत्यदर्पहा // // 6 // पातु कंठं च दैत्यारिः स्कंधौ पातु सुरार्चितः // भुजौ पातु महातेजाः करौ च चरणायुधः // 7 // नखान्नखायुधः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः॥ वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्व भुजायुधः // 8 // लंकाविभंजनः पातु पृष्ठदेशे निरंतरम् // नानि च रामद तस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः // 9 // गुह्यं पातु महापाज्ञो लिगं पातु शिवप्रियः // ऊरू च जानुनी पातु लंकापासादभंजनः // 10 // जंघे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फो पातु महाबलः // अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः // 11 // अंगान्यमितसत्त्वाढयः पातु पादां| INIगुलीस्तथा // सर्वाङ्गानि महाशूरः पातु रोमाणि चात्मवित् // 12 // हनुमत्कवचं यस्तु पठेविद्वान्विचक्षणः // स एव पुरुषश्रेष्टो भुक्ति मुक्तिं च विंदति // 13 // त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं नरः // सर्वान् रिपून्क्षणाजित्वा स पुमान् श्रियमामुयात् // 14 // मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद्यदि // क्षयापस्मारकुष्ठादितापत्रयनिवारणः॥१५॥अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थित्वा पठति यः पुमान्॥अ चलां श्रियमामोति संग्रामे विजयं तथा॥१६॥बुद्धिर्बलं यशो धैर्य निर्भयत्वमरोगताम्॥सुदाढय वास्फुरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत् // 17 // For Private And Personal Use Only Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मारणं वैरिणां सद्यः शरणं सर्वसंपदाम् // शोकस्य हरणे दक्षं वंदे तं रणदारुणम् // 18 // लिखित्वा पूजयेद्यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत् // यः करे धारयेन्नित्यं स पुमाञ्छ्यिमामुयात् // 19 // स्थित्वा तु बंधने यस्तु जपं कारयति विजैः॥ तत्क्षणान्मुक्तिमामोति | निगडातु तथैव च // 20 // य इदं प्रातरुत्थाय पठेच्च कवचं सदा // आयुरारोग्यसंतानेस्तस्य स्तव्यः स्तवो भवेत् // 21 // इदं पूर्व पठि त्वा तु रामस्य कवचं ततः // पठनीयं नरैक्त्या नैकमेव पठेत्कदा // 22 // हनुमत्कवचं चात्र श्रीरामकवचं विना // ये पठति नरा श्चात्र पठनं तथा भवेत् // 23 // तस्मात्सर्वेः पठनीयं सर्वदा कवचद्वयम् // रामस्य वायुपुत्रस्य सद्भक्तैश्च विशेषतः // 24 // इति श्रीमदानन्दरामायणे श्रीरामकतैकमुखिहनुमत्कवचं समाप्तम् // 1 // अथ शत्रुघ्नकबचप्रारंभः // शत्रुघ्नं धृतकार्मुकं धृतमहातूणीरवाणो त्तम पार्श्वे श्रीरघुनंदनस्य विनयाद्वामे स्थित सुंदरम् // रामं स्वीयकरेण तालदलजं धृत्वाऽतिचित्रं वरं सूर्याभं व्यजनं सभास्थितमहा त वीजयंतं भजे // 1 // अस्य श्रीशत्रुघ्नकवचमंत्रस्य अगास्तपिः / श्रीशत्रुघ्नो देवता / अनुष्टुप् छंदः / सुदर्शन इति बीजम् // कैकेयीनन्दन इति शक्तिः / श्रीभरतानुज इति कीलकम् / भरतमंत्रीत्यस्वम् / श्रीरामदास इति कवचम् / / लक्ष्मणांशज इति मंत्रः॥ श्रीशत्रुघ्नप्रीत्यर्थं सकलमनःकामनासिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः // ॐ शत्रुघ्नाय अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ सुदर्शनाय तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ ॐ कैकेयीनन्दनाय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ भरतानुजाय अनामिकाभ्यां नमः // 4 // भरतमंत्रिणे कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥ 5 // ॐ रामदासाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥ 6 // इति करन्यासः // ॐ शत्रुघ्नाय हृदयाय नमः // 1 // ॐ मुदर्शनाय शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ कैकेयीनन्दनाय शिखायै वषट् // 3 // ॐ भरतानुजाय कवचाय हुम् // 4 // 78 For Private And Personal Use Only Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir म. म. // 309 // ॐ भरतमंत्रिणे नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ रामदासाय अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // अथ ध्यानम् // रामस्य पू० ख०१ संस्थितं वामे पार्श्वे विनयपूर्वकम्॥कैकेयीनन्दनं सौम्यं मुकुटेनातिरंजितम् // 1 // रत्नकंकणकेयूरवनमालाविराजितम् // रशनाकुंडलधरं / मि. तं. रत्नहारसनूपुरम् // 2 // व्यजनेन वीजयंतं जानकीकांतमादरात् // रामन्यस्तेक्षणं वीरं कैकेयीतोषवर्द्धनम् // 3 // द्विभुजं कंजतरं०११ नयनं दिव्यपीतांबरान्वितम् // सुभुजं सुन्दरं मेघश्यामलं सुन्दराननम् // 4 // रामवाक्ये दत्तकण रक्षोध्नं खड्गधारिणम् // धनुर्बा णधरं श्रेष्ठं धृततूणीरमुत्तमम् // 5 // सभायां संस्थितं रम्यं कस्तरीतिलकांकितम् // मुकुटस्थावतंसेन शोभितं च स्मिताननम् // 6 // रविवंशोद्भवं दिव्यरूपं दशरथात्मजम् // मथुरावासिनं देवं लवणासुरमर्दनम् // 7 // इति ध्यात्वा तु शत्रुघ्नं रामपादेक्षणं हृदि // पठनीयं वरं चेदं कवचं तस्य पावनम् // 8 // पूर्वे त्ववतु शत्रुघ्नः पातु याम्ये सुदर्शनः // कैकेयीनन्दनः पातु प्रतीच्या सर्वदा मम॥९॥ पातूदीच्यां रामबन्धुः पात्वधो भरतानुजः॥ रविवंशोद्भवश्चोर्ध्व मध्ये दशरथात्मजः // 10 // सर्वतः पातु मामत्र कैकेयीतोषवर्द्धनः॥ श्यामलांगः शिरः पातु भालं श्रीलक्ष्मणांशजः // 11 // ध्रुवोर्मध्ये सदा पातु मुमुखोऽत्रावनीतले // श्रुतकीर्तिपतिनेंकपोले पातुन राघवः॥ 12 // कर्णो कुण्डलकर्णोऽव्यान्नासायं नृपवंशजः // मुखं मम युवा पातु पातु वाणी स्फुटाक्षरः // 13 // जिह्वां मुबा हुतातोऽव्यायुपकेतुपिता द्विजान् // चबुकं रम्यचुबुकः कंठं पातु सुभाषणः // 14 // स्कंधौ पातु महातेजा भुजौ राघववाश्यकत् // // 309 // करौ मे कंकणधरः पातु खड्गी नखान्मम // 15 // कुक्षी रामप्रियः पातु पातु वक्षो रघूत्तमः // पार्श्वे मुरार्चितः पातु पातु पृष्टिं / वराननः // 16 // जठरं पातु रक्षोघ्नः पातु नाभिं सुलोचनः // कटी भरतमंत्री मे गुह्यं श्रीरामसेवकः // 17 // रामार्पितमनाः For Private And Personal Use Only Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पातु लिंगमूरू स्मिताननः // कोदंडधारी पात्वत्र जानुनी मम सर्वदा // 18 // राममित्रः पातु जंधे गुल्फौ पातु मुनूपुरः // पादौ नृपतिपूज्योऽव्याच्छीमापादांगुलीमम // 19 // पात्वंगानि समस्तानि ह्युदारांगः सदा मम // रोमाणि रमणीयोऽव्याद्रात्रौ पातु मुधा कार्मिकः // 20 // दिवा मे सत्यसंधोऽव्यादोजने शरसत्करः // गमने कलकंठोऽव्यात्सर्वदा लवणांतकः // 21 // एवं शत्रुघ्नकवचं मया / त समुदीरितम् // ये पठति नरास्त्वेतत्ते नराः सौख्यभागिनः॥ 22 // शत्रुघ्नस्य वरं चेदं कवचं मंगलप्रदम् // पठनीयं नरैर्भक्त्या पुत्र पौत्रप्रवर्द्धनम् // 23 // अस्य स्तोत्रस्य पाठेन ययं काम नरोऽर्थयेत् // तंतं लभेन्निश्चयेन सत्यमेतद्वचो मम // 24 // पुत्रार्थी प्रामु यात्पुत्रं धनार्थी धनमामुयात् // इच्छाकामं तु कामार्थी प्रामुयात्पठनादिना // 25 // कवचस्यास्य भूम्यां हि शत्रुन्नस्य विनिश्चयात् // तस्मादेतत्सदा भक्त्या पठनीयं नरैः शुभम् // 26 // इति श्रीमदानंदरामायणे मुतीक्ष्णागत्स्यसंवादे शत्रुघ्नकवचं समाप्तम् // 2 // अथ भरतकवचप्रारंभः // अतः परं भरतस्य कवचं ते वदाम्यहम् / / सर्वपापहरं पुण्यं सदा श्रीरामभक्तिदम् // 1 // कैकयीतनयं सदा रघु वरन्यस्तेक्षणं श्यामलं सनद्वीपपतेविदेहतनयाकांतस्य वाक्ये रतम् // श्रीसीताधवसव्यपार्थनिकटे स्थित्वा वरं चामरं धृत्वा दक्षिणसत्क रण भरतं तं वीजयंत भजे // 2 // अस्य श्रीभरतकवचमंत्रस्यागस्त्य ऋषिः // श्रीभरतो देवता / अनुष्टुप् छंदः / शंख इति बीजम् / कैकेयीनंदन इति शक्तिः। भरतखण्डेश्वर इति कीलकम् / रामानुज इत्यस्त्रम् / सप्तद्वीपेश्वरदास इति कवचम् / रामांशज इति मंत्रः। श्रीभरतप्रीत्यर्थ सकलमनोरथसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥ॐ भरताय अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ शंखाय तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ॐ कैकयीनंदनाय मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ भरतखंडेश्वराय अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ रामानुजाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः // For Private And Personal Use Only Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.koba .org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं.म. // 31 // तरं०११ d // 5 // ॐ सप्तद्वीपेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥ इति करन्यासः // ॐ भरताय हृदयाय नमः॥१॥ॐ शंखाय शिरसे स्वाहा // 2 // 7 कैकेयीनंदनाय शिखायै वषट् // 3 // ॐ भरतखंडेश्वराय कवचाय हुम् // 4 // ॐ रामानुजाय नेत्रत्रयाय वौमि तं. लाषट् // 5 // ॐ सप्तद्वीपेश्वराय अस्त्राय फट् // 6 // ॐ रामांशजाय चेति दिग्बंधः // 7 // इति हृदयादिषडंगन्यासः॥ अथ ध्यानम् // d ॐ रामचन्द्रसव्यपार्वे स्थितं केकयजासुतम् // रामाय चामरेणैव वीजयंतं मनोरमम् // 1 // रत्नकुंडलकेयूरकंकणादिसुभूषितम् // पीतांबरपरीधानं वनमालाविराजितम् // 2 // मांडवीधौतचरणं रशनानूपुरान्वितम् // नीलोत्पलदलश्यामं द्विजराजसमाननम् // 3 // आजानुबाहुं भरतखंडस्य प्रतिपालकम् // रामानुजं स्मितास्यं च शत्रुघ्नपरिवंदितम् // 4 // रामन्यस्तेक्षणं सौम्यं विद्युत्पुंजसमप्रभम् // रामभक्तं महावीरं वंदे तं भरतं शुभम्॥५॥एवं ध्यात्वा तु भरतं रामपादेक्षणं हृदि // कवचं पठनीयं हि भरतस्येदमुत्तमम् ॥६॥ॐ पूर्वतो भरतः पातु दक्षिणे कैकयीमुतः // नृपात्मजः प्रतीच्यां हि पातूदीच्यां रघूत्तमः // 1 // अधः पातु श्यामलागयोर्ध्व दशरथात्मजः // मध्ये भरतवर्षेशः सर्वतः सूर्यवशंजः॥२॥ शिरस्तक्षपिता पातु भालं पातु हरिप्रियः // भ्रुवामध्यं जनकजावाक्यैकतत्परोऽवतु // 3 // पातु जनकजामाता मम नेत्रे सदाऽत्र हि // कपोलौ मांडवीकांतः कर्णमूले स्मिताननः // 4 // नासा मे सदा पातु कैकेयीतोष वर्द्धनः // उदारांगो मुखे पातु वाणीं पातु जटाधरः॥५॥ पातु पुष्करतातो मे जिह्वां दंतान प्रभामयः // चुबुकं वल्कलधरः कंठं पातु // 31 // राननः // 6 // स्कंधो पातु जितारातिर्भुजौ शत्रुघ्नवंदितः॥ करौ कवचधारी च नखान् खनपरोऽवतु // 7 // कुक्षी रामानुजः पातु वक्षः श्रीरामवल्लभः // पार्थे राघवपार्श्वस्थः पातु पृष्ठं सुभाषणः // 8 // जठरं च धनुर्धारी नाभिं शरकरोऽवतु // कटिं पनेक्षणः For Private And Personal use only Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobatrm.org पातु गुह्यं रामैकमानसः॥९॥राममित्रः पातु लिंगमूरू श्रीरामसेवकः // नंदियामस्थितः पातु जानुनी मम सर्वदा // 10 // श्रीराम | पादुकाधारी पातु जंघे सदा मम // गुल्फो श्रीरामबंधुश्च पादौ पातु मुरार्चितः॥११॥ रामाज्ञापालकः पातु ममांगान्यत्र सर्वदा // मम पादांगुलीः पातु रघुवंशसुभूषणः // 12 // रोमाणि पातु मे रम्यः पातु रात्री सुधीमेम // तूणीरधारी दिवसं दिक्पातु मम सर्वदा // 13 // सर्वकालेषु मां पातु पांचजन्यः सदा भुवि // एवं श्रीभरतस्येदं सुतीक्ष्णकवचं शुभम् // 14 // मया प्रोक्तं तवाग्रे हि महा| मंगलकारकम् // स्तोत्राणामुत्तमं स्तोत्रमिदं ज्ञेयं सुपुण्यदम् // 35 // पठनीयं सदा भक्त्या रामचंद्रस्य हर्षदम् // पठित्वा भरतस्येदं / कवचं रघुनंदनः // 16 // यथा याति परं तोषं तथा स्वकवचेन न // तस्मादेतत्सदा जप्यं कवचानामनुत्तमम् // 17 // अस्यात्र पठना न्मर्त्यः सर्वान्कामानवाप्नुयात् // विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रकामो लभेत्सुतम् // 18 // पत्नीकामो लभेत् पत्नी धनार्थी धनमाप्नुयात् // यद्यन्मनोभिलषितं तत्तत्कवचपाठतः॥१९॥लभ्यते मानवैरत्र सत्यंसत्यं वदाम्यहम् // तस्मात्सदा जपनीयं रामोपासकमानवैः॥२०॥ इति श्रीमदानंदरामायणे सुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीभरतकवचं समाप्तम् // 3 // अथ लक्ष्मणकवचप्रारंभः // अगस्त्य उवाच // सौमित्रि रघुनायकस्य चरणद्वेक्षणं श्यामलं बिनतं स्वकरेण रामशिरसि च्छत्र विचित्रांबरम् // विनंत रघुनायकस्य सुमहत्कोदंडबाणासनेतं वंदे कमलेक्षणं जनकजावाक्ये सदा तत्परम् // 3 // अस्य श्रीलक्ष्मणकवचमंत्रस्य अगस्त्य ऋषिः। अनुष्टुप् छंदः / श्रीलक्ष्मणो देवता / / शेष इति बीजम् / सुमित्रानन्दन इति शक्तिः। रामानुज इति कीलकम् / रामदास इत्यस्वमारघुवंशज इति कवचम् / सौमित्रिरिति मंत्रः श्रीलक्ष्मणप्रीत्यर्थ सकलमनोभिलषितसिद्धयर्थं जपे विनियोगः ॥ॐ लक्ष्मणाय अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ॐ शेषाय तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir पू.खं.. तरं. मं० मा ॐ सुमित्रानंदनाय मध्यमाभ्यां नमः॥ 3 // ॐ रामानुजाय अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ रामदासाय कनिष्ठिकाश्यां नमः॥५॥ // 31 // ॐ रघुवंशजाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः // 6 // इति करन्यासः॥ ॐ लक्ष्मणाय हृदयाय नमः॥१॥ ॐ शेषाय शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ समित्रानन्दनाय शिखायै वषट् // 3 // ॐ रामानुजाय कवचाय हुम् // 4 // ॐ रामदासाय नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // रघुवंशजाय अस्वाय फट् // 6 // ॐ सौमित्रये इति दिग्बंधः // 7 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // अथ ध्यानम् // रामपृष्ठस्थितं रम्यं रत्नकुंडलधा. कारिणम् // नीलोत्पलदलश्यामं रत्नकंकणमंडितम् // 1 // रामस्य मस्तके दिव्यं वित्रतं छत्रमुत्तमम् // वरपीतांबरधरं सुकुटेनातिशोभि / कतम् // 2 // तूणीरं कार्मुकं चापि वित्रतं च स्मिताननम् // रत्नमालाधरं दिव्यं पुष्पमालाविराजितम् // 3 // एवं ध्यात्वा लक्ष्मणं| च राघवन्यस्तलोचनम् // कवचं जपनीयं हि ततो भक्त्यात्र मानवैः // 4 // लक्ष्मणः पातु मे पूर्वे दक्षिणे राघवानुजः // प्रतीच्यां / पातु सौमित्रिः पातूदीच्या रघूत्तमः॥५॥ अधः पातु महावीरश्चोर्ध्व पातु नृपात्मजः // मध्ये पातु रामदासः सर्वतः सत्यपालकः / // 6 // स्मिताननः शिरः पातु भालं पार्मिलाधवः // वोर्मध्ये धनुर्धारी सुमित्रानंदनोऽक्षिणी // 7 // कपोले राममंत्री च सर्वदा, पातु वै मम // कर्णमूले सदा पातु कबंधभुजखण्डनः॥८॥ नासायं मे सदा पातु सुमित्रानंदवर्धनः // रामन्यस्तेक्षणः पातु सदा मेत्र / मुखं भुवि // 9 // सीतावाक्यकरः पातु मम वाणी सदाऽत्र हि // सौम्यरूपः पातु जिह्वामनंतः पातु मे द्विजान an 10 // चिबुकं पातु रक्षोन्नः कंठं पात्वसुरार्दनः // स्कंधौ पातु जितारातिर्भुजौ पंकजलोचनः // 11 // करौ कंकणधारी च नखान् रक्तनखोऽवतु // कुक्षिं पातु विनिद्रो मे वक्षः पातु जितेन्द्रियः // 12 // पार्थे / For Private And Personal Use Only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir राघवपृष्ठस्थः पृष्ठदेशं मनोरमः // नाभिं गंभीरनाभिस्तु कटिं च रुक्ममेखलः // 13 // गुह्यं पातु सहस्रास्यः पातु लिंग हरि प्रियः॥ ऊरू पातु विष्णुतुल्यः सुमुखोऽवतु जानुनी // 14 // नागेन्द्रः पातु मे जंघे गुल्कौ नूपुरवान्मम // पादावंगदतातोऽव्यात्पात्वं गानि सुलोचनः // 15 // चित्रकेतुपिता पातु मम पादांगुलीः सदा // रोमाणि मे सदा पातु रविवंशसमुद्भवः // 16 // दशरथसुतः / पातु निशायां मम सादरम् // भूगोलधारी मां पातु दिवसेदिवसे सदा // 17 // सर्वकालेषु मामिंद्रजिद्धंताऽवतु सर्वदा // एवं सौमित्रि कवचं सुतीक्ष्ण कथितं मया // 18 // इदं प्रातः समुत्थाय ये पठंत्यत्र मानवाः // ते धन्या मानवा लोके तेषां च सफलो भवः // 19 // सौमित्रेः कवचस्यास्य पठनान्निश्चयेन हि // पुत्रार्थी लभते पुत्रान्धनार्थी धनमानुयात् // 20 // पत्नीकामो लभेत्पत्नी गोधनार्थी ता। व गोधनम् // धान्यार्थी प्रामुयाद्धान्यं राज्यार्थी राज्यमामुयात् // 21 // पठितं रामकवचं सौमित्रिकवचं विना // घूतेन हीनो नैवेद्य | जास्तेन दत्तो न संशयः॥ 22 // केवलं रामकवचं पठितं मानवैयदि // तत्पाठेन तु संतुष्टो न भवेद्रघुनन्दनः // 23 // अतः प्रयत्न तश्चेदं सौमित्रिकवचं नरैः॥ पठनीयं सर्वदैव सर्ववांछितदायकम् // 24 // इति श्रीमदानन्दरामायणे सुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीलक्ष्मणकवचं समाप्तम् // 4 // अथ साताकवचप्रारम्भः // या सीताऽवनिसंभवाऽथ मिथिलापालेन संवर्द्धिता पद्माक्षावनिभुक्सुताऽनलगता या मातु लिंगोद्भवा // या रत्ने लयमागता जलनिधी या वेदवारं गता लंकां सा मृगलोचना शशिमुखी मां पातु रामप्रिया // 1 // अस्य श्रीसी। ताकवचस्तोत्रमंत्रस्य अगस्तिर्कषिः / श्रीसीता देवता / अनुष्टुप् छन्दः / रमेति बीजम् / जनकजेति शक्तिः / अवनिजेति कीलकम् / / पद्माक्षसुतेत्यस्वम् / मातुलिंगीति कवचम् / मूलकासुरघातिनीति मंत्रः॥श्रीसीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थ सकलकामनासिद्धयर्थं च जपे विनियोगः॥ For Private And Personal Use Only Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म. // 312 // तरंगा ॐ ह्रां सीतायै अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ ह्रीं रमाये तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ॐ हूं जनकजायै मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ हैं। पू० खं०१ अवनिजाये अनामिकाायां नमः॥४॥ ॐ ह्रौं पद्माक्षसुताय कनिष्ठिकान्यां नमः // 5 // ॐ ह्रः मातुलिंग्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां मि० 0 नमः॥६॥ इति करन्यासः // ॐ ह्रां सीतायै हृदयाय नमः // 1 // ॐ ह्रीं रमायै शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ हूं जनकजायै शिखायै वषट् // 3 // ॐ हैं अवनिजाये कवचाय हुम् // 4 // ॐ ह्रौं पद्माक्षसुतायै नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ ह्रः मातुलिंग्य। अस्वाय फट् // 6 // इति हृदयादिषडंगन्यासः // अथ ध्यानम् // "ॐ सीतां कमलपत्राक्षी विद्युत्जसमप्रभाम् // द्विभुजां सुकुमा रांगी पीतकौशेयवासिनीम् // 1 // सिंहासने रामचन्द्रवामभागस्थितां वराम् / / नानालंकारसंयुक्तां कुंडलव्यधारिणीम् | d // 2 // चूडाकंकणकेयूररशनानपुरान्विताम् // सीमन्ते रविचन्द्राायां निटिले तिलकेन च // 3 // नूपुराभरणेनापि घाणेऽतिशोभितां शुभाम् // हरिद्रां कजलं दिव्यं कुंकुमं कुसुमानि च // 4 // विनती सुरभिद्रव्यं सुगंधस्नेहमुत्तमम् // स्मितान नां गौरवर्णी मंदारकुसुमं करे // 5 // विनतीमपरे हस्ते मातुलिंगमनुत्तमम् // रम्यहासां च बिंबोष्ठी चन्द्रवाहनलोचनाम् ॥६॥क लानाथसमानास्यां कलकंठमनोरमाम् // मातुलिंगोद्भवां देवीं पद्माक्षदुहितां शुभाम् // 7 // मैथिली रामदयितां दासीभिः पार्रवीजिता म् // एवं ध्यात्वा जनकजां हेमकुंभपयोधराम् // 8 // श्रीसीता पूर्वतः पातु दक्षिणेऽवतु जानकी // प्रतीच्यां पातु वैदेही पातूदीच्या च मैथिली // 9 // अधः पातु मातुलिंगी ऊर्ध्व पद्माक्षजाऽवतु // मध्येऽवनिमुता पातु सर्वतः पातु मां रमा // 10 // स्मितानना शिरः पातु पातु भालं नृपात्मजा // पद्माऽवतु वोर्मध्ये मृगाक्षी नयनेऽवतु // 11 // कपोले कर्णमूले च पातु श्रीरामवल्लभा // नासायं // 312 For Private And Personal Use Only Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir सात्त्विकी पातु पातु वक्रं तु राजसी // 12 // तामसी पातु मदाणी पातु जिह्वां पतिव्रता // दंतान् पातु महामाया चिबुकं कनकप्रभा // 13 // पातु कंठं सौम्यरूपा स्कंधौ पातु सुरार्चिता // भुजौ पातु वरारोहा करौ कंकणमंडिता // 14 // नखान रक्तनखा पात कुक्षौ पातु लघुदरा // वक्षः पातु रामपत्नी पार्वे रावणमोहिनी // 15 // पृष्ठदेशे वह्निगुप्ताऽवतु मां सर्वदेव हि // दिव्यप्रदा पातु नानिं कर्टि राक्षसमोहिनी // 16 // गुह्यं पातु रत्नगुप्ता लिंगं पातु हरिप्रिया // ऊरू रक्षतु रंजोरूर्जानुनी प्रियभाषिणी // 17 // जंघे पात सदा सञ्चगुल्फो चामरवीजिता // पादौ लवमुता पातु पात्वंगानि कुशांबिका // 18 // पादांगुलीः सदा पातु मम नपुरनिःस्वना॥ रोमाण्यवत मे नित्यं पीतकोशेयवासिनी॥१९॥रात्रौ पातु कालरूपा दिने दानकतत्परा॥सर्वकालेषु मां पातु मूलकामुरघातिनी॥२०॥ एवं सुतीक्ष्ण सीतायाः कवचं ते मयेरितम् // इदं प्रातः समुत्थाय स्नात्वा नित्यं पठेत्पुनः // 21 // जानकी पूजयित्वा स सर्वान्कामा नवामयात् // धनार्थी प्राप्नुयाद्रव्यं पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् // 22 // स्त्रीकामार्थी शुभां नारी सुखार्थी सौख्यमाप्नुयात् // अष्टवारं जापनीयं सीतायाः कवचं सदा // 23 // अष्टभूसुरसीतायै नरैः पीत्यार्पयेत्सदा // फलपुष्पादिकादीनि यानि तानि पृथक्पृथक् // 24 // सीतायाः कवचं चेदं पुण्यं पातकनाशनम् // ये पठंति नरा भक्त्या ते धन्या मानवा भुवि // 25 // पठंति रामकवचं सीतायाः कवचं विना // तथा विना लक्ष्मणस्य कवचेन वृथा स्मृतम् // 26 // इति श्रीमदानंदरामायणे मनोहर कांडे सुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीसीतायाः कवचं समाप्तम् // 5 // अथ श्रीरामकवचप्रारंभः // "आजानुबाहुमरविंदद लायताक्षमाजन्मशुद्धरसहासमुखप्रसादम् // श्यामं गृहीतशरचापमुदाररूपं रामं सराममभिराममनुस्मरामि ॥१॥"अस्य श्रीराम . 5 For Private And Personal Use Only Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar Jain Aradhana Kendra www.kobatm.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir मं• म // 313 // कवचस्य अगस्त्य ऋषिः / अनुष्टुप्छंदः / सीतालक्ष्मणोपेतः श्रीरामचन्द्रो देवता / श्रीरामचन्द्रप्रसादसिद्धयर्थ जपे विनियोगः // 0 ख०१ अथ ध्यानम् // “नीलजीमूतसंकाशं विद्युद्वर्णीबरावृतम् // कोमलांगं विशालाक्षं युवानमतिसुंदरम् // 1 // सीतासौमित्रिसहितं जटामि . तं• मुकुटधारिणम् // सासितूणधनुर्बाणपाणि दानवमर्दनम् // 2 // यदा चोरभये राजभये शत्रुभये तथा ॥ध्यात्वा रघुपति क्रुद्धं काला नलसमप्रभम् // 3 // चीरकृष्णाजिनधरं भस्मोद्धूलितविग्रहम् // आकर्षणाकष्टशरकोदंडभुजमंडितम् // 4 // रणे रिपून रावणा : दीस्तीक्ष्णमार्गणवृष्टिभिः // संहरंतं महावीरमुग्रमैंद्ररथस्थितम् // 5 // लक्ष्मणाधैर्महावीरैर्वृतं हनुमदादिभिः // मुग्रीवाद्यैर्महावीरैः शैल। || वृक्षकरोद्यतेः // 6 // वेगात्करालहुंकारै भुक्कारमहारवैः // नदद्भिः परिवादद्भिः समरे रावणं प्रति // 7 // श्रीराम शत्रुसंघान्मे हन। मर्दय खादय // भूतप्रेतपिशाचादीन् श्रीरामाशुविनाशय // 8 // एवं ध्यात्वा जपेद्रामकवचं सिद्धिदायकम् // मुतीक्ष्णदज्रकवचं शृणु वक्ष्याम्यनुत्तमम् // 9 // श्रीरामः पातु मे मूर्षि पूर्वे च रघुवंशजः // दक्षिणे मे रघुवरः पश्चिमे पातु पावनः // 1 // उत्तरे मे रघुपति लं दशरथात्मजः // भुवोर्दूर्वादलश्यामस्तयोर्मध्ये जनार्दनः // 2 // श्रोत्रं मे पातु राजेन्द्रो दृशौ राजीवलोचनः // वाणं मे पातु | राजर्षिर्गडौ मे जानकीपतिः // 3 // कर्णमूले खरध्वंसी भालं मे रघुवल्लभः॥ जिह्वां मे वाक्पतिः पातु दंतावली रघूत्तमः॥४॥ ओष्ठौ - श्रीरामचंद्रो मे मुखं पातु परात्परः // कंठं पातु जगद्वंद्यः स्कंधौ मे रावणांतकः॥५॥ धनुर्बाणधरः पातु भुजी मे वालिमर्दनः // सर्वा | // 313 // ण्यंगुलिपाणि हस्तौ मे राक्षसांतकः // 6 // वक्षो मे पात काकुत्स्थः पातु मे हृदयं हरिः // स्तनी सीतापतिः पातु पार्श्व मे जग दीश्वरः // 7 // मध्यं मे पातु लक्ष्मीशो नाभि मे रघुनायकः // कौसल्येयः कटिं पातु पृष्ठं दुर्गतिनाशनः // 8 // गुह्यं पातु हृषीके For Private And Personal Use Only Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir धा शः सक्थिनी सत्यविक्रमः॥ ऊरू शार्ङ्गधरः पातु जानुनी हनुमाप्रियः॥२॥ जंध पातु जगद्व्यापी पादौ मे ताडिकांतकः // सर्वांगं पातु मे विष्णुः सर्वसंधाननामयः॥ 10 // ज्ञानेन्द्रियाणि प्राणादीन् पातु मे मधुसूदनः / / पातु श्रीरामभद्रो मे शब्दादीन्विष / यानपि // 11 // द्विपदादीनि भूतानि मत्संबंधीनि यानि च // जामदग्न्यमहादर्पदलनः पातु तानि मे // 12 // सौमित्रिपूर्वजः पातु वागादीनीन्द्रियाणि च // रोमांकुराण्यशेषाणि पातु सुग्रीवराज्यदः / / 13 // वाङ्मनोबुद्धयहंकारर्ज्ञानाज्ञानकतानि च // जन्मांतरकर तानीह पापानि विविधानि च // 14 तानि सर्वाणि दग्ध्वाशु हरकोदण्डखण्डनः // पातु मां सर्वतो रामः शान्बिाणधरः सदा // 15 // इति श्रीरामचंद्रस्य कवचं वज्रसंमितम् // गुह्याद्गुह्यतमं दिव्यं सुतीक्ष्ण मुनिसत्तम / / 16 // यः पठेच्छृणुयाद्वापि श्रावयेद्वा समाहितः॥ Mस याति परमं स्थानं रामचन्द्रप्रसादतः / / 17 / / महापातकयुत्तो वा गोनो वा भ्रूणहा तथा / / श्रीरामचन्द्रकवचपठनाच्छुद्धिमाप्नु यात् / / 18 // ब्रह्महत्यादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः // भोसुतीक्ष्ण यथा पृष्टं त्वया मम पुरा शुभम् // तथा श्रीरामकवचं - मया ते विनिवेदितम् // 19 // इति श्रीमदानन्दरामायणे मनोहरकांडे मुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीरामकवचं समानम् // एवं षट् कवचान्यत्र पठनीयानि सर्वदा // पठनं षट्कवचानां श्रेष्ठं मोक्षैकसाधनम् // इति श्रीहनुमदादिषट्कवचप्रयोगः समाप्तः // 6 // अथ हरिवाहनगरुडमंत्रप्रयोगः॥ (मंत्रमहोदधौ )मंत्रो यथा-"क्षिप ॐ स्वाहा” इति पंचाक्षरो मंत्रः ॥अस्य मंत्रस्य अनंत ऋषिः। पंक्तिच्छंदः / पक्षीन्द्रो देवता / ॐ बीजम् / स्वाहा शक्तिः। ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥ॐ अनंतऋषये नमः / शिरसि // 1 // पंक्तिच्छंदसे नमः / मुखे // 2 // पक्षींद्रदेवतायै नमः / हृदि // 3 // ॐ बीजाय नमः / गुह्ये // 4 // स्वाहाशनाये नमः / पादयोः॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० ख०१ // 31 // मं• म. विनियोगाय नमः / सोङ्गे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ज्वलज्वल महामते स्वाहा हृदये // 1 // ॐ गरुडचूडान | न स्वाहा शिरसि // 2 // ॐ गरुडशिखे स्वाहा शिखायै वषट् // 3 // ॐ गरुड प्रभंजयप्रभंजय प्रोदयप्रोदय त्रासयत्रासय विमर्द यविमर्दय स्वाहा कवचाय हुम् // 4 // ॐ उग्ररूपधर सर्वविषहर भीषयभीषय सर्व दहदह भस्मीकुरु कुरु स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट् // // 5 // ॐ अप्रतिहतबलाप्रतिहतशासन हुँ फट् स्वाहा अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडगन्यासः॥ ॐ ज्वल 2 महामते स्वाहा अंगु पष्ठयोः॥१॥ ॐ गरुडचूडानने स्वाहा तर्जन्योः // 2 // ॐ गरुडशिखे स्वाहा मध्यमयोः // 3 // ॐ गरुडप्रजय 2 प्रभेदय 2] विमर्दय 2 स्वाहा अनामिकयोः॥४॥ॐ उग्ररूपधर सर्वविषहर भीषय 2 सर्वे दह 2 जस्मी कुरु कुरु स्वाहा कनिष्ठयोः॥५॥ ॐ अप्रति हतबलाप्रतिहतशासन हुं फट् / करतलकरपृष्ठयोः // 6 // इति करन्यासः // ॐ शिं नमः पादयोः // 1 // ॐ पं नमः कट्योः // 2 // ॐ ॐ नमः हृदि // 3 // ॐ स्वां नमः बक्के // 4 // ॐ हां नमः मूर्ध्नि // 5 // इति मंत्रवर्णन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्या येत् // अथ ध्यानम् // तप्तस्वर्णनिभं फणीन्द्रनिकरैः कृतांगभूपं प्रभुं स्मर्तृणां शमयंतमुग्रमखिलं नृणां विषं तत्क्षणात् // चंच्चयपच | लद्भुजंगमभयं पायबोर्वरं वित्रतं पक्षोच्चारितसामगीतममलं श्रीपक्षिराजं भजे // 1 // इति ध्यात्वा स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारांजलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोप्य बाह्यरेफद्वयहुंकारमध्यस्थक्षकारविंद्वततार्थ्यबीजमुक्तकर्णि के स्वरद्वंद्वात्मकं केसरेषु कचटतपयशलाष्टवर्गयुक्ताष्टदले मातृकापद्मपीठे ॐ पक्षिराजाय स्वाहा इति मंत्रणासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पायादिपुष्पान्तरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पुष्पांजलिमादाय संविन्मयः परो // 31 // For Private And Personal Use Only Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अथ गरुडपृजनयन्त्रम्. देवः परामृतरसप्रियः॥ अनुज्ञां देहि गरुड परिवारार्चनाय मे॥१॥” इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारभेत् / / ततः षट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च // ॐ ज्वल ज्वल महामते स्वाहा // हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः // इति सर्वत्र // 1 // ॐ गरुडचूडानने स्वाही शिरः श्रीपा० // 2 // ॐ गरुडशिखे स्वाहा / शिखाश्रीपा० // 3 // ॐ गरुड प्रभंजय 2 प्रो Hदय 2 त्रासय 2 विमर्दय 2 स्वाही / वर्मश्री० // 4 // ॐ उग्ररूपधर सर्वविषहर भीषय 2 सर्व दहरभस्मीकुरु 2 स्वाहा / नेत्रश्रीपा०॥५॥ ॐ अप्रतिहतबलाप्रतिहतशासन हुं फट् स्वाहा / अस्वश्रीपा० // 6 // इति पडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल // भक्त्या समर्पये तुज्यं प्रथमा वरणार्चनम् // 3 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तपिताः संतु इति वदेत् // इति प्रथमावरणम् // 1 // क्षिप ॐस्वाहा। For Private And Personal Use Only Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मि. तं० तरं०११ ततोऽष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण दक्षिणावर्तेन च / ॐ अनंताय नमः / अनंत श्रीपा० // 1 // ॐ वासुकये नमः / वासुकिश्रीपा० // 2 // ॐ तक्षकाय नमः / तक्षकश्रीपा० // 3 // ॐ कर्कोटकाय नमः। कर्कोटकश्रीपा०॥४॥ ॐ पद्माय नमः / पद्मश्रीपा०॥५॥ ॐ महापद्माय नमः / महापद्मश्रीपा० // 6 // ॐ शंखपालाय नमः / शंखपालश्रीपा० // 7 // ॐ कुलिकाय नमः / कुलिकश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ नागान् पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततो भूपुरे इन्द्रादिदशदिक्पालान् वजाद्यायुधानि च संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात् // इत्या वरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांतं संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं पंचलक्षजपः // तद्दशांशतस्तिलाज्यहोमः॥ एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत् // तथा च / "पंचलक्षं जपेन्मंत्रं दशांशं जुहुयात्तिलैः // पूजयेन्मातृकापग्ने गरुडं वेदविग्रहम् // 1 // एवं सिद्धे मनौ मंत्री नाशयेद्गरलद्वयम् / / विष्णुभक्तिपरो नित्यं यो भजेत्पक्षिनायकम् // 2 // शत्रून्सर्वान्पराभूय तमुखी भोगसमन्वितः॥ जीवेदनेकवर्षाणि सेवितो धरणीधवैः / / कलेवरांते श्रीनाथसायुज्यं लभते तु सः // 3 // इति श्रीगरुडपंचाक्षर मंत्रप्रयोगः॥ 1 // अथ गरुडमालामंत्रः // (तंत्रसारे )"ॐ नमो भगवते गरुडाय कालाग्निवर्णाय एोहि कालानललोलजिह्वाय पातय 2 मोहय 2 विशावय 2 चम चम भामय 2 हन 2 दह 2 पत 2 हुं फट् स्वाहा”॥ अस्य विधानम् // अस्य पुरश्चरणमयुत जपाः। घतातैः कृष्णपुष्पैर्दशांशतो होमः / एवं ध्यानमात्रेण दृष्टो निर्विषो भवेत् / चिरं जीवेत्॥तथा च ।“विषमालोकनेनैव हन्यानाग कुलोद्भवम् // " इति मालामंत्रप्रयोगः // // अन्यत् // “ॐ नमो भगवते गरुडाय महेन्द्रपर्वतशिखराकाररूपाय संहार 2 मोचय 2 For Private And Personal Use Only Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir निर्विष 2 विषमप्यमृतं चाहारसदृशरूपमिदं ज्ञापयामि स्वाहा” इति मालामंत्रः // अस्य विधानम् // अनेन गरुडमंत्रप्रसादेन मंत्री गरुडो भूत्वाभिमंत्रितं स्थावरविषं भक्षितमप्यमृतं भवति किममृतान्नापादिकमिति // " अथ गरुडस्तवः // (तंत्रसारे ) / सुपर्ण वैनतेयं / च नागारिं नागभीषणम् // जेतात्रकविषारिं च अजितं विश्वरूपिणम् // 1 // गरुत्मतं खगश्रेष्ठं ताय कश्यपनंदनम् // द्वादशैतानि / नामानि गरुडस्य महात्मनः // 2 // यः पठेत्प्रातरुत्थाय स्थाने वा शयनेपि वा // विषं नाक्रमते तस्य न च हिंसति हिंसकाः // 3 // संग्रामे व्यवहारे च विजयस्तस्य जायते // बंधनान्मुक्तिमामोति यात्रायां सिद्धिरेव च // 4 // इति गरुडस्तवः / (हारीतः ) HI" नर्मदायै नमः प्रातर्नर्मदायै नमो निशि // नमोस्तु नर्मदे तुज्यं त्राहि मां विषसर्पतः // 1 // सपिसर्प भद्रं ते दूरं गच्छ महाविष // le जन्मेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर॥२॥आस्तीकवचनं श्रुत्वा यः सर्पो न निवर्तते // शतधा भिद्यते मूर्ध्नि शिंशवृक्षफलं यथा // 3 // Toll एतान्गरुडमंत्रांस्तु निशायां पठते यदि // मुच्यते सर्वबाधात्यो नात्र कार्या विचरणा // 4 // " (गोभिलः) " अग स्तिधिवश्चैव मुचुकुन्दो महाबलः // कपिलो मुनिरास्तीकः पंचैते सुखशायिनः // 1 // " इति गरुडमंत्रप्रयोगः // MIn अथ चरणायुधमंत्रप्रयोगः॥( मंत्रमहोदधौ ) चरणायुधमंत्रस्य विधानमभिधीयते // मंत्री यविधिना कृत्वा साधयेत्स्वमनोरथान्॥ मंत्रो यथा “आं यूं कोलियूं कोलि ह्रीं वां ह्रीं यू कोलियूकोलि चुवाकों” इत्यष्टादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // प्रातः कृत्यक्रिया तारादिबलान्विते सुमुहूर्ते शैलाये सरितस्तटे वा वृषशून्ये शंकरमंदिरे वा स्वासने पश्चिमाभिमुखः स्थिलाचन्य प्राणानायन्य देशकालौ संकीर्त्य मम चरणायुधामुकमंत्रसिद्धयर्थ चरणायुधप्रसन्नार्थ लक्षजपस्तत्तदशांशहोमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनरूपपुरश्चरणमहं करिष्ये / For Private And Personal Use Only Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobalrm.org पू० ख०१ . मं० म० // 316 // शामित त०११ इति संकल्प्य भूतशुद्धयादिमातृकान्यासातं कृत्वा प्रयोगोक्तन्यासादिकं कुर्यात् // तद्यथा अस्य चरणायुधमंत्रस्य महारुद्र ऋषिः। अतिजगती छन्दः / ह्रीं जिम् / को शक्तिः। चरणायुधो देवता / ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥ ॐ महारुऋषये नमः शिरसि // // अति जगतीछन्दसे नमः / मुखे // 2 // ह्रीं बीजाय नमः / गुह्ये // 3 ॥कों शक्तये नमः / पादयोः // 4 // चरणायुध देवतायै नमः / हृदि // 5 // विनियोगाय नमः / सर्वांगे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः॥ आं यू कोलि अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ यूं कोलि तर्जनीभ्यां नमः // 2 // वां ह्रीं मध्यमाभ्यां नमः॥ 3 // कोलि अनामिकाभ्यां नमः // 4 // यू कोलि कनिष्टिकाभ्यां | नमः ॥५॥चुवाकों करतलकरपृष्ठात्यां नमः // 6 // इति करन्यासः // आं यूं कोलि हृदयाय नमः // 1 // यू कोलि शिरसे स्वाहा // 2 // वां ह्रीं शिखायै वषट् // 3 // यूं कोलि कवचाय हुम् // 4 // यूं कोल नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // चुवाकों अस्वाय फट्॥६॥ इति हृदयादिपडंगन्यासः // ॐ आं नमः / मूनि // 1 // ॐ यूं नमः / भाले // 2 // ॐ को नमः। दक्षिणमुवि // 3 // ॐ लिं नमः / वामभुवि // 4 // ॐ यूं नमः / दक्षनेत्रे // 5 // ॐ कों नमः। वामनेत्रे // 6 // ॐ लिं नमः दक्षकणे // 7 // ॐ वां। नमः / वामकर्ण॥ 8 // ॐ ह्रीं नमः / दक्षनासापुटे // 9 // ॐ यूं नमः / वामनासापुटे // १०॥ॐ को नमः / वक्के // 11 // ॐ लिं नमः / कंठे // 12 // ॐ यूं नमः / कुक्षिये // 13 // ॐ को नमः / नानौ // 14 // ॐ लिं नमः / लिंगे // 15 // ॐ चुं नमः / गुदे // 16 // ॐ वां नमः / जानुद्वये // 17 // ॐ को नमः / पादद्वये // 18 // इति मंत्रवर्णन्यासः // इति न्यासं कृत्वा ध्यायत् // अथ ध्यानम् // ॐ सर्वालंकृतिदीप्तकंठचरणो हेमाभदेहयुतिः पक्षदंविधूननेतिकुशलः सर्वामराम्यर्चितः // // 316 For Private And Personal Use Only Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PLI गौरीहस्तसरोजगोरुणशिखः सर्वार्थसिद्धिप्रदो रक्तं चंचपुटं दधच्चलपदः पायान्निजान्कुक्कुटान् // 1 // " इति ध्यात्वा मानसोपचारैः। // संपूजयेत् // ततः पीठादौ रचिते सर्वतोभद्रमण्डले लिंगतोभद्रमंडले वा मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताःसंस्थाप्य "ॐ मं मंडूकादिपरतत्त्वांना तपीठदेवताभ्यो नमः॥” इति पीठदेवताः संपूज्य नवपीठशक्तीः पूजयेत् // तद्यथा / पूर्वादिक्रमेण-ॐ वामायै नमः // 1 ॥ॐ॥ ज्येष्ठायै नमः॥२॥ ॐ रौद्यै नमः॥ 3 // ॐ काल्यै नमः॥४॥ ॐ कलविकरिण्यै नमः // 5 // ॐ बलविकरिण्यै नमः // 6 // ॐ बलप्रमथिन्यै नमः // 7 // ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः // 8 // मध्ये ॐ मनोन्मन्यै नमः // 9 // इति पूजयेत् // ततः जास्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनास्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य "ॐ नमो भग वते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय चरणायुधाय योगपीठात्मने नमः // " इति मंत्रेण पुष्पाद्यासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा / पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य कुक्कुटाज्ञां गृहीत्वाऽऽवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पुष्पांजलि मादाय मूलमुच्चार्य “ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः // अनुज्ञां कुक्कुट देहि परिवारार्चनाय मे // 1 // " इति / पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदत् / इत्याज्ञां गृहीत्वाऽऽवरणपूजामारभेत् / तद्यथा-पट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च / “ॐ आं यूं कोलि हृदयाय नमः। हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः / इति सर्वत्र // 1 // ॐ यूं कोलि शिरसे स्वाहाँ / शिरःश्रीपा० // 2 // ॐ वां ह्रीं शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० // 3 // ॐ यूं कोलि कवचाय हुम्। कवचश्रीपा० // 4 // ॐ यूकोलि नेत्रत्रयाय वौषट् / नेत्रत्रयश्रीपा० // 5 // ॐ चुवा कों अस्त्राय फट् / अस्त्रश्रीपा०॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म. R पू: खं. मित. तरं०११ इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य “ॐ अभी अथ चरणायुधपूजनयन्त्रम्. ष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल / भक्त्या समर्पये तुल्यं प्रथमावरांचनम् // // 1 // " इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पूजितास्तर्पिताः संतु इति वदेत्॥ इति प्रथमावरणम् // 1 // ततोष्टदले पूज्यपूजकयोरंतराले प्राची तदनुसारेण आन्या दिशः प्रकल्प्य प्राचीक्रमेण / ॐ शंकराय नमः // शंकरश्रीपा० // 1 // ॐ गौये नमः / गौरीश्रीपा० // 2 // ॐ गणपतये नमः / आयूकोलि. गणपतिश्रीपा० // 3 // ॐ कार्तिकेयाय नमः // कार्तिकेयश्रीपा० // 4 // ॐ मंदाराय नमः / मंदारश्रीपा० // 5 // ॐ पारिजाताय नमः / पारि जातश्रीपा // 6 // ॐ मयूराय नमः / मयूरश्रीपा० // 7 // ॐ बहिणे नमः / बहिश्रीपा० // 8 // इत्यष्टौ पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // दलायेषु इन्द्रायटलोकपालान बजायायुधानि च संपूज्य पूष्पांजलिं च दद्यात्॥इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांत संपूज्य बलिं दद्यात्॥ तद्यथा-दाधिदुग्धमधुकर्पूरसितातांबूलामश्रित 1 महाकालमिति पाठः // d // 317 // For Private And Personal Use Only Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She avrain Aradhana Kendra www.bat.org Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir पायसेन पिंडं कृत्वा गंधाक्षतपुष्पैः संपूज्य दीपं निधाय “ॐ यूं शहीं कुक्कुट कुक्कुट एोहि इमं बलिं गृह 2 गृहापय सर्वकामान्देहि यहींयूं नमः कुक्कुटाय” इति मंत्रण निवेदयेत् // इति बलि दत्त्वा हस्तो पादौ प्रक्षाल्य पुनर्ध्यात्वा जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणं / लक्षं जपः / तिलाज्येन दशांशतो होमः / तत्तदशांशन तर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं च कुर्यात् / एवं कते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्धे च मंत्र मंत्री प्रयोगान् साधयेत्॥तथा च-"एवं ध्यात्वा समासीनः शैलाये सरितस्तटे // वृषशून्ये पश्चिमास्थे यदा शंकरसद्मनि // 1 // शैवे पीठे यजेताम्रचूडं गौरीकरस्थितम् // लक्षं क्षपेद्दशांशेन तिलैहवनमाचरेत् // 2 // एवं कृते प्रयोगाहों जायते मंत्रनायकः / / प्रयोगादौ जप्योसावयुतं द्विशताधिकम् // 3 // दना क्षीरेण मधुना चंद्रेण सितयान्वितैः // दद्याद्वलि सतांबलेः पायसैबलिमंत्रतः // 4 // भोजनादी भोजनांते लक्ष्मीसंप्राप्तये सुधीः // बलिमेतत्प्रदायाथ कुर्वे रोधननाथताम् // शांती पुष्टावपि बलिमेतमेव प्रदापयेत् // 5 // MR अन्न राजैस्विमधुरोपेतैर्द यद् बलिं निशि // वशयेदखिलं विश्वं त्रिदिनं चोदनैपः // 6 // " अन्यत् // "दुग्धमिश्रितगोधूमपिटैः कुर्यादपूपकम् // आज्यकर्पूरयुक्तेन तेन दद्याद्वलिं निशि // व्यहमेवं बलौ दत्ते सुखी स्याशयेज्जगत्॥७॥" अन्यत् // "करवीरैपिल्व पत्रः पीतपुष्पैः सुगंधिभिः // सहस्रसंख्यः प्रत्येकं पूजयित्वा जपेन्मनुम् // 8 // सहस्रं निशि सप्ताह यमुद्दिश्य जनं सुधीः // स याति दासतां तस्य मनोवचनमकर्मभिः // 9 // " अन्यत् ॥"छागलावकयोर्मासैः समाहं वितरेदलिम् // सहस्रं प्रत्यहं जप्त्वा बशयेदखिलं जगत् // 10 // नृपोत्थिते सपत्नोत्थे भये जाते च संकटे|आपद्यपि तथान्यस्यां बलिं दद्यात् सुखाप्तये // गोपनीयो विधिरयं बलेः 1 ओदनखिदिनं बलिं दत्त्वा नृपं वशयेत् / For Private And Personal Use Only Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म.म. मि.तं. कथ्यो न दुर्मतौ // 11 // " अन्यत् // "मुक्तकेश उदावको जपेद्धानुसहस्रकम् // प्रत्यहं वसुघस्रांतं यमुद्दिश्याधियामिनि // 40 ख०१ तमाकर्षति दूरस्थमपि किं निकटस्थितम् // 12 // " अन्यत् // “जातीफलैलाः संचूर्ण्य कर्पूरं मध्यतः क्षिपेत् // अभिमंत्र्यासाह सिंदूररजसा युतम् // 13 // उष्णीकत्याग्नितापेन क्लेदयेदाङ्गपाथसा // स्थापयेदायसे पात्रे तत्पृष्ठं स्तंभितो भवेत् // 14 // " अन्यत् // तरं० 11 कर्मारसदनादह्निमानीयायसभाजने // स्थापयित्वेंधयेत्काष्ठैः करवीरसमुद्भवः // 15 // जुहुयानत्र धत्तूरबीजानि शतसंख्यया // सिद्धार्थ / तैललिप्तानि विषकर्णयुतानि च // 16 // सप्ताह एवं रुत्वारिं स्थानादुच्चाटयेध्रुवम् // पक्षं देशांतरगतं मासं संप्रापयेन्मृतिम्॥१७॥" अन्यत् ॥"तालपत्रं नराकारं कृत्वात्र स्थापयेदसून् // जपेदष्टसहस्र तत्तीक्ष्णतेलविलेपितम् // 18 // तस्य खंडानि पंचाशत् कृत्वा पि छातृवनोत्थिते // उन्मत्ततरुसंदीते जुहुयाज्जातवेदसि॥१९॥एवं प्रकर्वखिदिनं मारयेन्मोहयेदरिम् ॥"अन्यत् // “साध्यक्षतरुकाष्ठेन कृत्वा पुत्तलिकांशुभाम् // तस्यामसून्प्रतिष्ठाप्य सहस्रं प्रजपेन्मनुम् // 20 // चिताकाष्ठस्य कीलेन तां स्पृष्टा पितृकानने // छिंद्यायदंगं शस्त्रेण S 1 वसुघलांतमष्टदिनपर्यंतम् // 2 अधियामिनि रात्रौ // 3 गांगयाथः गंगाजळम् // 4 आयसे पाने लोहपात्रे // 5 कारेति लोहकारगृहादहिमा नीय लोहपाचे संस्थाप्य करवीरकाष्ठः संदीप्य तत्र सर्षपतलाक्तानि विषचूर्णयुतानि धत्तूरवीजानि शतं शतं सप्ताई हुत्वा शत्रुमुच्चाटयेत् / एवं पक्ष कृत्वा देशांतरं नयेत् / मासं कृत्वा मारयेत् // 6 तालेति नराकारं तालपत्रं कृत्वा रात्रौ शत्रोः प्राणान् संस्थाप्प भल्लातकतैलेन विलिप्य अष्टाधिकं सहस्रमभिमंत्र्य तस्य पंचाशत्खंडानि कृत्वा धत्तरकाष्ठदीप्ते श्मशानाग्नी त्रिदिन हुत्वारिं मारयेन्मोहयेच्च // 7 साध्येति नक्षत्रवृक्षा उक्ताः तेन शनुपुत्तलिकां कृत्वा रात्रौ शवोः प्राणा| संस्थाप्प सहस्रमभिमंत्र्य चिताकाष्ठकीलेन तां पुतली स्पृष्ट्वा सहस्र जपेत् / तस्याः प्रतिमायाः श्मशाने यदंग शस्त्रेण छिंद्यात्तदंगं तस्य शत्रोनश्यति // 318 // For Private And Personal Use Only Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir तदंगं तस्य नश्यति ॥२३॥अन्यत् // "वैरिमंत्रयुतां मृत्स्नां तत्पादरजमा सह॥कुलालमृद्युतां कृत्वा पुत्तली रचयेत्तया॥२२ // तस्या हदि पदे मूनि नामकान्वितं मनुम्॥लिखेच्छ्मशानजांगारैरसून्संस्थापयेत्ततः॥२३॥जप्त्वा सहस्रं मंत्रेण तीक्ष्णतैलविलेपिताम्॥ शस्त्रेण शतधा कृत्वा जुहुयात्पितभूवसौ // 24 // विभीतकाष्ठसंदीप्ते यमाशावदनो निशि // शत्रोनिधनतारायां कत्वैवं मारयेदारम्॥२५॥" अन्यत् / / "निधाय गोमयं भूमौ प्रकुर्यात्प्रतिमां रिपोः // तालपत्रे समालिख्य मर्नु नाम्ना विदर्भितम् // 26 // तत्पत्रं निक्षिपेत्तस्या। हृदि तत्प्रतिमोपरि // मजं वा दारुजं कुंभं गोमयोदकपूरितम् // 27 // मनूनामयुतं ताडपत्रेणाद्यं निधापयेत् // तदसून्स्थापयेत्कुंभ त्रिसंध्यं प्रजपेन्मनुम् // 28 // प्रत्यहं शतसंख्याकं छाया यावद्भवद्रिपोः गोमयांभसि दृष्टायां तच्छायायां तु माधकः // 29 // अधd स्थायाः प्रतिकतेश्छिद्यादंगमभीप्सितम् // शस्त्रेण तस्य नाशाय मृतये हृदयं गलम् // 30 // प्रविद्धे कंटकैर्मुनि शिरोरोगो भवेदिपोः॥ १बैरिमूवमृदं तस्य पादरजसान्वितामेकीक़त्य कुळालमृत्तिकायां निःक्षिप्य वैरिपुत्तळिकां कृत्वा तां श्मशानांगार"अमुकस्यामुककर्म कुरुकुरु" इति मंत्रांतेसंयो। ग्य हदि पदे मन्नि मंत्र लिखेत् / / तब शत्रोः प्राणान्संस्थाप्य भल्लातकतळेन विलिप्य सहस्रमभिमश्य शतखंडं कृत्वा विभीतककाष्ठदीप्ते श्मशानाग्नौ दक्षिणा भिमुखः निधनताराजन्मनक्षत्रात्सप्तमनक्षत्रं षोडशं पंचविशं च रात्रौ हुत्वारिं मारयन् // 2 गोमयेन शवोः प्रतिमां कृत्वा नामविदर्भितमंवताळपत्रे विळिव्याण तत्ताळपत्रं गोमयप्रतिमाहदि निःक्षिप्य प्रतिमोपरि रूप्यताम्रमृदादारुजान्यतमनिर्मितं घटं संस्थाप्य गोमयोदकाभ्यामापूर्य तत्रापि नामविदर्भितमंत्रलेखयुत तालपत्रं निःक्षिप्य तत्र कळशे शत्रोः प्राणस्थापनं कृत्वा प्रत्यहं त्रिसंध्यं शतं मंत्र कुंभ स्पृष्ट्वा जपेत् // यावत् शत्रोः प्रतिबिंब घटे दृश्पते तावत्काळ जपेत ! घटो दके शत्रुप्रतिक्वेि दृष्ट घटाधास्था या गोमयप्रतिमा तस्याः यदंग छिद्यते तद्रिपोनश्यति / हदि गळे च छिन्ने तन्मृतिः / प्रतिमामनिं कंटकर्विद्ध शिरोरोगः हदि विद्धे मनः पीडा / पादयुग्मे कंटकावढे पादरोग इत्यादि। For Private And Personal Use Only Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir .ख.१ मि०० तर• 11 आधयो हृदये विद्दे पदोः पादव्यथा भवेत् // 31 // " अन्यत् / / “दारुणा कुक्कुटं कृत्वा तत्रास्य स्थापयेदमून् // तं स्पृष्ट्वा पूर्व १३१९वद्ध्यात्या जपेद्रविसहस्रकम् // 32 // उपचारैः समायर्य छादयेइक्तवाससा // रथे संस्थाप्य तं देवं दिक्षु योधान्निधापयेत्॥३३॥ चतुरो वर्मसंवीतानश्वारूढानुदायुधान् / / तत्संयुतो रणे गच्छेन्जेतुं बलवतो रिपून् // 34 // वीराख्यं कुक्कुटं दृष्ट्रा पलायंते रणेऽरयः॥ भीता दश दिशः सर्व हर्यक्षं करिणो यथा // 35 // " अन्यत् // “ताम्रचूडस्य मंत्रेण मोदकायभिमंत्रितम् // यस्मै ददीन नक्षाय स वशो मंत्रिणो भवेत् // 36 // " अन्यत् // "अष्टोत्तरशतं जप्त्वा रोचनाचन्दनादिभिः // विदधनि लकं भाले दर्शनाशयेजनान् // 37 // इति श्रीचरणायुधस्य ताम्रचूडकुक्कुटस्य वा मंत्रप्रयोगः // अथ पक्षि राजबूकतंत्रप्रारंभः // चतुर्दश्याममायां वा रविवारो भवेद्यदि // गृहीत्वा पक्षिराजं चोदरं तस्य विदार्य च // 1 // विष्ठा त स्य बहिष्कृत्य नमो भूत्वा श्मशान के // प्रज्वाल्य नृकपाले तु तत्पात्रोतकज्जलम् // 2 // गुग्गुलं धूपयेत्तस्य मंत्रेण चाभिमंत्रयेत् // अष्टोनरशतं वारं तदा मिद्धो भवेटुवम् // 3 // कज्जलं तेन संग्राह्य तात्रयंत्रण वेष्टिता॥गुटिका मुखमध्यस्था ख्याताऽदृश्यत्वकारिणी॥ // 4 // कजलेनाअयने। तदा पश्यति देवताम् // भूतप्रेतपिशाचादियज्ञैश्च योगिनीः सह // 5 // नेत्रे प्रक्षाल्य गोमूत्रर्मानुषी दृक् प्रजायते // योगद्दयेन कथिता मंत्रस्यैकं वदामि ते // 6 // तत्र मंत्रः॥ "ॐ कुरुकुरु स्वाहा मेहमरीअनेनधनेयः पाठेश्वरीनमः॥" उक्तयोगानामयं मंत्रः // "उलूकमजातैलेन कजलं पारयेन्नरः / तेनांजनेन वै कृत्वा अदृश्यं भवति ध्रुवम् // 7 // कनेत्रं गृहीत्वा तु ? चन्दनादिभिरित्यादिशब्दाकुंकुमकस्तूरीकर्पूरगजमदा प्रामाः / / // 3 For Private And Personal use only Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir ॐ तैलेन सह घर्षयेत् // श्मशाने कज्जलं पार्य नेत्रे तेनजियेत्ततः॥ 8 // अदृश्यो भवति क्षिप्रं देवैरपि न दृश्यते // काकोलूकस्य पिच्छानि आत्मकेशास्तथैव च // 9 // अंतधूमगतान् दग्ध्वा सूक्ष्मजूर्ग तु कारयेत् // अंकोलतेलगुटिकां कृत्वा शिरसि धारयेत // 10 // दृश्यो जायते क्षिप्रं देवानामपि दुर्लभम् // काकोलूकस्य नीलस्य ग्राह्ये एतेषु च लोचने // 11 // तल्लोहेनांजयेच्चक्षुरहस्यो भवति / ध्रुवम् // नेत्रे प्रक्षाल्य गोमूत्रर्मानुषी दृक् प्रजायते // 12 // उलकस्य शृगालस्य सूकरस्याक्षिरक्तकम् // नीलांजनयुतं पिष्ट्वा दग्ध्वा श्रा वपुटे दहेत् // 13 // तेनांजितो नरोऽदृश्यो जायते नात्र संशयः // सर्वयोगेन वै मंत्रं कथयामि शृणु प्रिये॥१४॥तत्र मंत्रः // ॐ नमो भगवते उड्डामरेश्वराय नमो रुद्राय हिलि 2 चिलि 2 व्यायचर्मपरिधानाय मरुल 2 कुरु 2 चंडप्रचंड किलिकिलि स्वाहा” उक्तयो / गानामयं मंत्रः॥ अन्यत् // रविदिने घूकमांस रक्तचंदनकुंकुमैः // मह षिष्ट्वा वटीं कृत्वा टंकमानं तदा बुधैः // 15 // धूपो देयो गुग्गुलो श्व मंत्रात्समभिमंत्रयेत् // नाबूले दीयते यस्मै सा वश्या भवति ध्रुवम् // 16 // चूकतालुं च तांबूले धृत्वा नारी प्रदापयेत् // वश्या / भवति सा नारी प्राणरपि नैरपि // 17 // कटं गृहीत्वा तु नागकेसरकेसरैः॥ गोरी चनेन संयुक्त मंत्रात्समभिमंत्रयेत् // 18 // अष्टोत्तरशतं वारं तिलक क्रियते नरैः // तस्य दर्शनमात्रेण वश्या भवति निश्चितम् // 39 // चूकजिह्वां निवपत्रैः एकीकत्य प्रपेषयेत॥ नत्रांजनेन वै पश्येत्सर्वे वश्या भवंति हि॥२०॥घूकनेत्रं गृहीत्वा तु विडालोनेत्रसंयुतम् // वत्सनागसमायुक्तं नागकेशरकेशकैः // 21 // रससर्षपयोगेन समभागेन पेषयेत् // श्मशाने गर्तकुंडे तु स्थापयदिनमतकम् // 22 // ततो निष्कास्य यस्या वै शिरसि प्रक्षिपे For Private And Personal Use Only Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabat.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir मं० म० बुधः // विनाह्वानप्रसंगेन साऽयाति निश्चितं प्रिया // 23 // पूर्वोक्तसर्वव्यश्च नांदनवनकपासकैः / / वति कृत्या प्रयत्नेन एकवणि नापू० खं० 1 // 320 // गोघृतम् // 24 // मृत्पात्रे तद्विनिःक्षिप्य मघायां रविवासरे // अर्द्धरात्रे भवेन्नमः श्मशाने विजितेन्द्रियः॥२५॥श्लाटुखर्परपा / मि० त० त्रेण ह्यथ वा नरकपालके // कज्जलं पारयेद्यत्नान्मंत्रेण चाभिमंत्रयेत् // 26 // अष्टोत्तरशतं वारं गुग्गुलुं धूपयेत्ततः // सिद्धो भवति सर्वत्र काम्यकर्मणि योजयेत् // 27 // योपिद्वस्खे कजलेन रेखामेकां तु कारयेत् // वश्याऽध्याति तथा नारी यथाब्धौ सरिदागमः॥२८॥ घूकविष्ठां गृहीत्वा तु काकविष्ठासमायताम्॥यस्या मूर्ध्नि क्षिपेच्चूर्ण वश्या भवति निश्चितम्॥२९॥उलूकहृदयं मांस गोरोचनसमन्वितम् / / अष्टाविंशतिवारं च मंत्रेणैवानिमंत्रयेत् // 30 // अंजनं चांजयेन्नेत्रे दृष्टिमात्रेण वश्यताम् // योगसिद्धिकरं मंत्र कथयामि शृणु प्रिये // 33 // तत्र मंत्रः // “ॐ नमो महापंखेश अमुकंमे घशे कुरुकुरु स्वाहा // " उक्तयोगानामयं मंत्रः // अन्यत् ॥"एकहस्ते काकपक्षे चूकपक्षे परे करे // मंत्रयित्वा मेलयित्वा कुशसूत्रेण बंधयेत् // 32 // अंजलिभिजलेनैव तर्पयेद्धस्तपक्षके // एवं सतदिनं कुर्याद कायोत्तरशतं जपेत् // 33 // विद्वेषं कुरुते यस्य भवेत्तस्य हि नान्यथा // उक्तयोगमय मंत्रं शृणु यत्नेन वै पुनः॥३४॥ तत्र मंत्रः॥ॐ नमो महापंखेश अमुकस्य अमुकेन सह विद्वेषं कुरुकुरु स्वाहा॥"उक्तयोगानामयं मंत्रः।। अष्टोत्तरशतजपात्सिद्धिः॥३५॥अन्यत्॥धूकपक्षे कुजे बारे यगृहे निखनेन्नरः॥ उच्चाटनं भवेत्तस्य विना मंत्रेण सिध्यति // 36 // उल्लूविष्ठां गृहीत्वा तु सिद्धार्थः सह मानवः // M // 32 // यस्यांगे निक्षिपेच्चूर्ण सद्य उच्चाटनं भवेत् // 37 // काकोलूकस्य पक्षं तु हुत्वा चाष्टाधिकं शतम् // यन्नाम्ना मंत्रयोगेन ह्यवश्योच्चा __१विना बुलाये // 2 काचा टीकरा // -10 For Private And Personal Use Only Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir www.kabatirth.org टनं भवेत् // 38 // पक्षिराजशिरश्चूर्ण रिपोश्च मस्तके क्षिपेत् // मंत्रयोगेन वे तं स शीघ्रमुच्चाटयेडुबम् // 39 // उल्लूदंष्ट्रां निंबकाष्ठ बिडालीनखचर्मणी // धत्तूराम्बु श्मशानास्थि अरिंगेहे विनिःक्षिपेत् // 10 // उच्चाटनं भवेत्तस्य सिद्धियोग उदाहृतः // उक्तयोग मयं मंत्र शृणु यत्नेन वै पुनः // 41 // तत्र मंत्रः // "ॐ नमो महापंखेश अमुकं सपुत्रबांधवैः सह हनहन दहदह पचपच शीघम चाटयोच्चाटय हुं फट् स्वाहा ठःठः॥” उक्तयोगानामयं मंत्रः॥अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥अन्यत् // "उल्लूविष्ठां गृहीत्वा तु विषचर्णसम न्वितम् // यस्यांगे निःक्षिपच्चूर्ण सद्यो याति यमालयम् // 42 // तत्र मंत्रः॥ “ॐ नमो महापंखेश कालरूपाय अमुकं भस्मीकुरुकुरु स्वाहा / / " उक्तयोगानामयं मंत्रः॥ अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः // अन्यत् // "उलूकस्य कपेर्वापि तांबूले यस्य दापयेत् // विष्ठां प्रयत्नत स्तस्य बुद्धिस्तंभः प्रजायते // 43 // “ॐ नमो महापंखेश बुद्धिस्तंभनं कुरुकुरु स्वाहा // " उक्तयोगानामयं मंत्रः // अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥ अन्यत् // "उल्लूविष्ठां गृहीत्वा त्वरंडतेलेन पेषयेत् // यस्यांगे निःक्षिपेदि विक्षिप्तो जायते नरः॥४४॥ तत्र मंत्रः॥"ॐ नमो महापंखेश विक्षिप्तं कुरुकुरु स्वाहा॥” उक्तयोगानामयं मंत्रः॥ अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥अन्यत् // "उलकहृदयं मांसं मंत्रेण चाई भिमंत्रयेत् // गुग्गुलुं धूपयेत्तस्य शयानस्य हृदि क्षिपेत् ॥४५॥मान संवक्ति वृत्तान्तं यत्किंचिद्वर्तते हृदि // यस्मै कस्मै न दातव्यं सिद्धि। योग उदाहृतः // 46 // तत्र मंत्रः // "ॐ नमो महापंखेश स्वभावस्थायां मनोभिलषितं कथय स्वाहा” उक्तयोगानामयं मंत्रः // अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः // अन्यत् // आषाढे कृष्णपक्षे च चतुर्दश्यां शुभे दिने // उलूकस्य कपाले तु धतूरं च मृदा सह // 47 // बीजयेपं दत्त्वा च निखनभूमिमंडले // भैरवं च पुनात्वा जलोच्छिष्टेन सिंचयेत् // 48 // दीप प्रज्वालयेन्नित्यं घृतेन सह साधकः॥ 82 For Private And Personal Use Only Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir * म. यावत्संभवति वृक्षस्तावत्कालं यथाविधि // 49 // फलपुष्पत्वचामूलं पिष्ट्वा तु तिलकं यदि // इन्द्ररूपं भवेत्तस्य सहस्रनयनैयुतम् पू० खं• // 32 // / // 50 // तत्र मंत्रः // “ॐ नमो महापंखेश सहस्राक्षिरूपं कुरुकुरु स्वाहा॥” उक्तयोगानामयं मंत्रः // अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः मि. तं. अन्यत् // पक्षिराजशिखायुक्तं हरितालं मनःशिला // वटीं कृत्वा प्रयत्नेन मंत्रेण चाभिमंत्रयेत् // 51 // अष्टोत्तरशतवारं सिद्धो भवति / तां वटीम् // अंजयेन्नेत्रयुगुले रात्रौ पठति पुस्तकम् // 52 // उलूकस्य कपालेन वृतेन सह कज्जलम् // तेन नेत्रांजनं कृत्वा रात्रौ। पठति पुस्तकम् // 53 // तत्र मंत्रः // "ॐ नमो महापंखेश रात्रौरात्रौ दर्शय स्वाहा // " उक्तयोगानामयं मंत्रः / / अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः // अन्यत् // “उलूकचक्षुरादाय कुंकुम रोचनं शशी / / समांसं मधुना पिष्वा अंजनं भूनिधि दिशेत् // 54 // तत्र मंत्रः // "ॐ| नमो महापंखेश भूनिधिं दर्शय 2 ठाठः स्वाहा॥” उक्तयोगानामयं मंत्रः॥अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥अन्यत् // “उलूकदक्षिणं पक्षं सित सूत्रेण वेष्टयेत् // बन्धयेद्वामकर्णे तु हरत्येकाहिक ज्वरम् // 55 // उल्लूपक्षं गुग्गुलुं च कृष्णवस्त्रेण वेष्टयेत् / / वर्ति कृत्वा प्रयत्नेन घृतेन सह कजलम् // 56 // चातुर्थिकज्वरशांतिरंजनेन कतेन वै // महाश्चर्यमिदं ज्ञेयं नान्यथा शंकरोदितम् // 57 // उल्लू विष्ठां गृहीत्वा तु गुंजामात्रेण वै नरः॥ ताम्बूले भक्षिता सा तु सर्वज्वरविनाशकत // 58 // तत्र मंत्रः // “ॐ नमो महापंखेश ज्वरं नाशयनाशय स्वाहा // " उक्तयोगानामयं मंत्रः // अष्टोत्तरशतजपैःसिद्धिः // अन्यत् // "उल्लूमांसं गृहीत्वा d // 32 // तु च्छाया शुष्कं तु कारयेत् // धूपं दत्त्वा प्रयत्नेन भूतबाधा विनश्यति // 59 // तत्र मंत्रः // “ॐ नमो महापं / खश भूतबाधां नाशयनाशय स्वाहा // " उक्त योगस्यायमंत्रः // अष्टोत्तरशतजपरस्य सिद्धिः // इति भूतबाधामंत्रप्रयोगः // For Private And Personal Use Only Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथ संतानोपायः // अरुण उवाच // वृथा धनं गृहं धान्यमपुत्रजन्म निष्फलम् // ममोपरि दयां कृत्वा प्रायश्चित्तं तबदस्व मे // 1 // श्रीसूर्य उवाच // विरक्तापहारी च सोनपत्यः प्रजायते // तेन कार्य विशुद्ध्यर्थ महारुद्रजपादिकम् // 2 // ती र्थयात्रा प्रकर्तव्या रेवातापीसमुद्भवा // एकेनापि हि वस्त्रेण दंपतीस्नानमुत्तमम् // 3 // श्रवणं हरिवंशस्य ब्राह्मणोद्वाहनं खग // अष्टोन शतान विप्रान् मिष्टान्नेन तु तर्पयेत् // 4 // ईशान इति मंत्रेण जपं कुयात्सहस्रकम् // दशांशहोमसंयुक्तं कुर्याच्च विधिवत्ततः॥५॥ लापनेस्तु लक्षसंख्याकैः शिवं संपूज्य यत्नतः // स्वर्णधेनुः प्रदातव्या सवत्सा सुरभिस्तथा // 6 // घृतकुंभ वैनतेय ब्राह्मणाय निवेदयेत् // एवं कृतेन वै तस्य ह्यपत्यं जायते सुता // 7 // ( गारुडेपि ) हरिवंशकथां श्रुत्वा शतचण्डीविधानतः // भक्त्या श्रीशिवमाराध्य पुत्रम सादयेत्सुधीः॥८॥ (महार्णवेपि ) सौवर्ण बालकं कृत्वा दद्यादोलासमन्वितम् // अथवा वृष दद्याविप्रोद्वाहनमेव वा // महारुद्र जपो वापि लक्षाः शिवार्चनम् // 9 // अथ मृतपुत्रत्वहरोपायः // बालघाती च पुरुषो मृतवत्सः प्रजायते // ब्राह्मणाद्वाहनं चैव कर्तव्यं तेन शुद्धयति // 10 // श्रवणं हरिवंशस्य कर्तव्यं च यथाविधि // महारुद्रजपं चैव कारयेच्च यथाविधि // 11 // जुहुयाच्च शतांशेन दूर्वा आज्यपरिप्लुताः // एकादश स्वर्णनिष्काः प्रदातव्या च दक्षिणा // 12 // एकादश पशूश्चैव दद्याद्वित्तानुसारतः // अन्ये योपि यथाशक्ति द्विजेन्यो दक्षिणां दिशेत्॥१३॥नापयेद्दम्पती पश्चान्मंत्रैवरुणदेवतैः॥आचार्याय प्रदेयानि वस्त्रालंकरणानि च॥१४॥ तत्रादौ हारिवंशश्रवणविधानम् // ( कौस्तुभे ) दंपत्योरनुकूले सुदिने कतनित्यक्रियः देवालयादिपुण्यस्थले स्वगृहे वा स्वासने प्राङ्मुख उपविश्य आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ स्मृत्वा अनेकजन्मार्जितानपत्यत्वमृतापत्यत्वादिनिदानभूतबालघातनिक्षेपहरण विप्ररत्नापहरणा For Private And Personal Use Only Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं०म०दिदुरितसमूलनाशद्वारा दीर्घायुर्बहुपुत्रादिसंततिपातिकामो हरिवंशं श्रोष्यामि / तदंगत्वेन गणपतिपूजनं पुण्याहवाचनं मातृकापूजनं नांदी पू० ख०१ श्राद्धं च करिष्ये इति संकल्प्य गणपतिपूजनादिनांदीश्राद्धांतं सर्व कुर्यात् // ततो विभवानुसारेण श्रुताध्ययनसंपन्नं ब्राह्मणमासने मि• तं. उदङ्मुखमुपवेश्य स्वयं प्राङ्मुख उपविश्य पादप्रक्षालनं कृत्वा गंधादिभिः संपूजयेत् // ततो वरणद्रव्याणि गृहीत्वा देशकालौ संकी तरं० 11 वर्त्य दीर्घायुष्टात्पुत्रकामनयाऽमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणमेभिर्गधपुष्पस्वर्णमुद्रिकासनकमंडलुतांबूलवासोभिहरिवंशश्रवणार्थ श्रावयितारं त्वामहं वृणे // इति वृत्वा ॐ वृतास्मि' इति प्रतिवचनानंतरं वस्त्रालंकारैः संपूज्य पुस्तकं दद्यात् // ततः आचार्यः प्रतिदिनं पुस्तक संपूज्य ॐ नारायणं नमस्कृत्यानंतरं स्वगुरून्प्रणम्य स्पष्टपदाक्षरं वाचयेत् // दंपती प्रतिदिनं "ॐ देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्प ते // देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः॥१॥” इति मंत्रजपपूर्वकमेकचित्तौ श्रवणं कुर्याताम् // तैलतांबूलक्षौरमैथुनखट्वाशयनानि यावत्समाप्ति वर्जयंती हविष्यं भुंजीयाताम् वाचकमपि प्रत्यहं पायसादिना भोजयेत् // ग्रंथसमाप्तो वाचकाय स्वलंकतां पयस्विनी सब त्सां स्वर्णशृंगी रौप्यखुरां ताम्रपृष्ठीं कांस्यपित्तलदोहिनी वस्त्रयुतां स्वर्णाभूषणादिदक्षिणां च दत्त्वा परितोष्य न्यून संपूर्ण वाचयित्वा शतं विप्रान् चतुर्विशतिमिथुनानि च पायसान्नेन भोजयेत् // एवं कते पुत्रो भवति न संदेहः // इति हारवंशश्रवणविधानम् // 1 // अथ संतानगोपालमंत्रप्रयोगः॥ (मंत्रमहोदधौ ) मंत्रो यथा-"ॐ देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते / देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः // 3 // इत्यनुष्टुभो मंत्रः। अस्य विधानम् / / अस्य गोपालमंत्रस्य नारद ऋषिः / अनुष्टुप् छंदः / कृष्णो देवता / मम पुत्रका // 322 // मनार्थ जपे विनियोगः / ॐ नारदऋषये नमः शिरसि 1 अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे 2 कृष्णदेवतायै नमः हृदि 3 विनियोगाय / For Private And Personal Use Only Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नमः सर्वाङ्गे 4 इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ देवकीसुत हृदयाय नमः 1 गोविंद तर्जनीभ्यां नमः 2 वासुदेव मध्यमाभ्यां नमः 3 जगत्पते अनामिकाभ्यां नमः 4 देहि मे तनयं कृष्ण कनिष्ठिकाश्यां नमः 5 त्वामहं शरणंगतः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 6 इति कर न्यासः // ॐ देवकीसुत हृदयाय नमः 1 गोविंद शिरसे स्वाहा 2 वासुदेव शिखायै वषट् 3 जगत्पते कवचाय हुम् 4 देहि मे तनयं कृष्ण नेत्रत्रयाय वौषट् 5 त्वामहं शरणं गतः अस्त्राय फट 6 इति हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् / ॐ विजयेन युतो रथस्थितः प्रसमानीय समुद्रमध्यतः // प्रददत्तनयान द्विजन्मने स्मरणीयो वसुदेवनंदनः // 1 // इति / सध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य बहिःपूजां कुर्यात् / तथाच-पीठादी रचिते सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः पद्धतिमार्गेण | संस्थाप्य ॐ मं मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नम इति संपूज्य नवपीठशक्तीः पूजयेत् / तथा च-पूर्वादिक्रमेण ॐ विमलायै नमः। ॐ उत्कार्षण्यै नमः 2 / ॐ ज्ञानायै नमः 3 / ॐ क्रियायै नमः / ॐ योगायै नमः 5 / ॐ प्रह्वयै नमः६। सत्यायै नमः 7 / ॐ ईशानायै नमः 8 / मध्ये ॐ अनुग्रहायै नमः 9 / इति पूजयेत् // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेना| यज्य तदुपरि दुग्धधारांजलधारांच दत्त्वा स्वच्छवस्रेण संशोज्य"ॐ नमोभगवते श्रीगोपालाय सर्वभूतात्मने वासुदेवाय सर्वात्मसंयोगपद्मपी ठात्मने नमः"इति मंत्रेण पुष्पायासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य आवाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात / तथाच-पुष्पांजलिमादाय मूलमुच्चार्य "ॐ मंचिन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः // अनुज्ञां देहि | 1 इति न्यासो मंत्रमहोदधेयः / - - For Private And Personal Use Only Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सन्तानगोपालपूजनयन्त्रम्. पूं.वं.१ तरं०११ गोपाल परिवारार्चनाय मे॥१॥ इति" पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा विरो // 32 // तपादिदं निःक्षिप्य पृजितास्तर्पिताः मंतु इति वदेत् / इत्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजामारोत् // तथाच-षट्कोणकेमरेषुआग्नेय्यादिचतुर्पु दिक्ष मध्ये दिक्षु च ॐ देवकीमुत हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि PIनमः 1 // इति सर्वत्र / ॐ गोविंद शिरमे स्वाहा शिरः श्रीपा० 2 // ॐ वासुदेव शिखायै वषट् / शिखाश्रीपा० 3 // ॐ जगत्पते कवचार्यहम् / कवचश्रीपा०॥४॥ देहि मे तनयं कृष्ण नेत्रत्रयाय वौषट् / / नेत्रत्रयश्रीपा०॥५॥ॐ त्वामहं शरणं गत अस्त्राय फट / अस्वश्रीपा०६॥ इति षडंगानि पूजयेत् // ततः पुष्पाजलिमादाय मूलमुच्चार्य " अभीष्ट नासिद्धि मे देहि शरणागतवत्सल // त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् // 1 // इति पठित्वा पुष्पांजलिं च दत्त्वा पृजितास्तपिताः संतु इति धावदेताइति प्रथमावरणम्॥१॥ततः पृज्यपूजक्योरंतराले प्राची तदनुसारेण अन्या दिशः प्रकल्प्याष्टदले प्राच्यादिक्रमेण ॐ कालिंयै नमः / देवकी सुत. // 323 // For Private And Personal Use Only Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कालिंदीश्रीपा० 1 // ॐ नागजित्यै नमः / नागजितीश्रीपा० 2 // ॐ मित्रविदायै नमः / मित्रविंदाश्रीपा० 3 // ॐ॥ चारुहासिन्यै नमः। चारुहासिनीश्रीपा० 4 // ॐ रोहिण्ये नमः / रोहिणीपा० 5 // ॐ जांबवत्यै नमः / जांबवतीश्रीपा० 6 // ॐ रुक्मिण्यै नमः / रुमिणीश्रीपा० 7 // ॐ सत्यभामाय नमः / सत्यभामाश्रीपा. 8 // इत्यष्टी पट्टराज्ञीः पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् // इति द्वितीयावरणम् // 2 // ततोऽष्टदलायेषु प्राचीक्रमेण ॐ ऐरावताय नमः॥ ॐ पुंडरीकाय नमः२॥ ॐ वामनाय नमः३॥ॐ कुमुदाय नमः४॥ॐ अंजनाय नमः५॥ॐ पुष्पदंताय नमः३॥ॐ सार्वभौमाय नमः७॥ॐ सुप्रतीकाय नमः८॥ इत्यष्टौ दिग्गजान पूजयित्वा पुष्पांजलिं च दद्यात् / इति तृतीयावरणम्॥३॥ततो भूपुरे पूर्वादिक्रमेण इन्द्रादिदशदिक्पालान् वजाद्यायुधानि / Hच संपूज्य पुष्पांजलिं च दद्यात / इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कुर्यात / अस्य पुरश्चरणं लक्षजपे पुत्रप्रानिर्भवति / तथाच लक्षं जपोऽयुतं होमस्तिलैर्मधुरमंयुतैः॥अर्चा पूर्वोदिता चैव मंत्रः पुत्रप्रदो नृणाम्॥३॥इति संतानगोपालमंत्रपुरश्चरणप्रयोगः॥२॥ अथ पुत्रप्रदाभिलाषाष्टकम् // विश्वानर उवाच // एकं ब्रह्मवाद्वितीयं समस्तं सत्यंमत्यं नेह नानास्ति किंचित् // एको रुद्रो न ) द्वितीयोऽवतस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशम् // 1 // एकः कर्ता त्वं हि विश्वस्य शंभो नानारूपेष्वेकरूपोस्यरूपः // यद्वत्तपत्यर्क ल एकोप्यनेकस्तस्मान्नान्यं त्वां विनेशं प्रपद्ये // 2 // रज्जो सर्पः शुक्तिकायां च रोप्यं वारां पूरस्तन्मृगाख्ये मरीची // यत्तददि | भावगेव प्रपंचो यस्मिझाते तं प्रपद्ये महेशम् // 3 // तोये शैत्यं दाहकत्वं च वह्नो तापो भानौ शीतभानी प्रसादः // पुष्पे गंधो दुग्ध मध्ये च सर्पिर्यवच्छंभो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये // 4 // शब्दं गृहास्यवास्त्वं हि जिधरघाणरत्वं व्यंधिरायासि दूरात् // व्यक्षः पश्येस्त्वं For Private And Personal Use Only Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsu Gyarmande मं० मा रसज्ञोप्यजिद्धः कस्त्वां सम्यग्वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये // 5 // नो वेदस्त्वामीश साक्षाद्धि वेद नो वा विष्णुनों विधाताऽखिलस्य // नो योगीन्द्रा / पू. खं०१ ॥३२४ानेन्द्रमुख्याश्च देवा जक्तो वेद त्वामतस्त्वां प्रपद्ये // 6 // नो ते गात्रं नाऽपि जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शीलं न देशः॥ इत्थं मि.तं. भूतोपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्याः सर्वान् कामान् पूरयेस्तद्भजे त्वाम् // 7 // त्वत्तः सर्व त्वं हि सर्व स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोतिशांतः॥ तरं० 11 त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्कि यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोस्मि // 8 // स्तुत्वेति भूमौ निपपात विप्रः स दंडवद्यावदतीव हृष्टः॥ / तावत्स बालोखिलवृद्धवृद्धः प्रोवाच भूदेववरं वृणीहि // 9 // तत उत्थाय हृष्टात्मा मुनिर्विश्वानरः कृती // प्रत्यब्रवीकिमज्ञातं सर्व ज्ञस्य तव प्रभो // 10 // सर्वांतरात्मा भगवाञ्छवः सर्वप्रदो भवान् ॥याच्चां प्रति नियुक्तं मां किमीशो दैन्यकारिणी // 11 // इति श्रुत्वा वचस्तस्य देवो विश्वानरस्य ह // शुचेः शुचिव्रतस्याथ शुचि स्मित्वाबवीच्छिशुः // 12 // बाल उवाच // त्वया शुचे शुचिष्मत्यां योभिलाषः कृतो हृदि // अचिरेणैव कालेन स भविष्यत्यसंशयः // 13 // तव पुत्रत्वमेष्यामि शुचिष्मत्यां महामते // ख्यातो गृहपतिर्नाम्ना शुचिः सर्वामरप्रियः॥ 14 // अभिलाषाष्टकं पुण्यं स्तोत्रमेतत्त्वयरितम् // अब्दं त्रिकालपठनात्कामदं शिव सन्निधौ // 15 // एतत्स्तोत्रस्य पठनं पुत्रपौत्रधनप्रदम् // सर्वशांतिकरं वापि सर्वापत्परिणाशनम् // 16 // स्वर्गापवर्गसंपत्तिकारक नात्र संशयः // प्रातरुत्थाय सुनातो लिंगमायर्च्य शांभवम् // 17 // वर्ष जपन्निदं स्तोत्रमपुत्रः पुत्रवान्भवेत् // वैशाखे कार्तिके| माघे विशेषनियमैर्युतः // 18 // यः पठेत्स्नानसमये लभते सकलं फलम् // कार्तिकस्य तु मासस्य प्रसादादहमव्ययः॥१९॥ तव पुत्रत्व / मेष्यामि यस्त्वन्यस्तत्पठिप्यति // अभिलाषाष्टकमिदं न देयं यस्य कस्यचित् // 20 // गोपनीयं प्रयत्नेन महाबंध्याप्रसूतिरुत् / धा॥२शा *** For Private And Personal Use Only Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 40 करेवरनलक्ष्मीपति शंकराचारोंदीप स्त्रिाय वा पुरुषेणापि नियमाल्लिंगसन्निधो // 21 // अन्दं जप्तमिदं स्तोत्रं पुत्रदं नात्र संशयः / शंकरमातुशंकरवि इत्युक्त्वांतर्दधे बालः सोपि विप्रो गृहं गतः // 22 // इति श्रीस्कंदपुराणे काशीखंड विश्वेश्वरस्तोत्रं संपूर्णम् // अन्यः पुत्रप्राप्तिप्रयोगः॥मंत्रो यथा-"ॐ ह्रां ह्रीं हूँ पुत्रं कुरुकुरु स्वाहा"इति द्वादशाक्षरो मंत्रः / अस्य विधानम् // चूतवृक्षसमारूढो जपेदेकायमानसः॥ अपुत्रो लभते पुत्र नान्यथा शंकरो दितम् // 1 // इति द्वादशाक्षरमंत्रप्रयोगः // पुत्रोत्पत्तिकारकयत्रम् // इस यंत्रको अच्छे नक्षत्र और शुभ दिनमें गोरोचनसे भोजपत्रपर लिख गूगलकी धूप देकर सोना या चांदी में मढायकर ध्यास्त्रीके कंठमें बांधे तो जिसस्त्रीके लडका न होता होवै अथवा होकर मरजाता होवै BIPI तो उस्के निश्चय पूर्वक पुत्र उत्पन्न होकर जीवता है इसमें संदेह नहीं इस यंत्रका वडा प्रभावजानना // 1 // मृतव सालक्षणं यत्नं च-(दत्तात्रेयतन्त्रे) // गर्भः संजातमात्रो हि पक्षे मासे च वत्सरे // म्रियते द्वित्रिवर्षेषु यस्याः सा मृतवत्सका // 1 // तस्योपायः॥अत्र योगः प्रकर्तव्यः यथाशंकरभाषितम् // मार्गशीर्षथ वा ज्येष्ठे पूर्णायां लेपिते गृहे // 2 // नूतनं कलशं पूर्ण गन्धतोयेन कारयेत् // शाखाफलसमायुक्तं नवरत्नसमन्वितम् // 3 // सुवर्णमुद्रिकायुक्तं षट्कोणमण्डलस्थितम् // तन्मध्ये पूजयेद्देवीमेकांती नाम विश्रुताम् // 4 // गन्धपुष्पाक्षधूपदीपनवेद्यसंयुतैः॥ अर्चयेद्भक्तिभावेन मधुना दुग्धमापकैः॥ 5 // वाराही च तथा चान्द्री बाही माहेश्वरी तथा // कौमारी वैष्णवी देवी षट्सु पत्रेषु मातरः॥६॥ पूजयेन्मंत्रभावेन दधिपिंडानि कारयेत् // सप्तसंख्याप्रमाणा For Private And Personal Use Only Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir DI मं• म निषसंख्याषट्मात्रतः॥ 7 // सप्तमं तु पृथग्धृत्वा शुचिस्थाने विशेषतः // तद्भुक्त्वा गृहमागच्छेत् कन्या वा बटुकस्त्रियः॥ 8 // भोजयेद्दक्षिणां दत्त्वा प्रणामं कारयेत्ततः // विसृज्य देवतां चाथ नद्यां तत्कलशोदकम् // 9 // सुकुलं वीक्षयेद्धीमाशुभेन शुभमादिमि० तं. शेत् // विपरीतं पुनः कुर्याद्यागं तावत्सुसिद्धिदम् // 10 // प्रतिवर्षमिदं कुर्याद्दीर्घजीवी मुतो भवेत् // सिद्धियोगमिदं ज्ञानं नान्यथा शंकरोदितम् // 11 // अस्य मंत्रः “ॐ नमः परब्रह्मपरमात्मने अमुके गृहे गर्भजीवितं सुतान कुरुकुरु स्वाहा॥” इति मंत्रमयुतं जपेत् / सिद्धिः॥१॥ अथ काकवन्ध्यालक्षणं यत्तं च // पूर्व पुत्रवती या सा क्वचिद्वन्ध्या भवेयदि // काकवन्ध्या तु सा ज्ञेया चिकित्सा तत्र कथ्यते // 1 // विष्णुकांतां समूलां तु पिष्ट्वा महिषीदुग्धके॥महिषीनवनीतेन ऋतुकाले तु भोजयेत् // 2 // एवं सप्तदिनं कुर्यात् पुनर्गर्ने च लभ्यते // तत्र मंत्रः “ॐ नमो शक्तिरूपाय अमुकगृहे पुत्रं कुरुकुरु स्वाहा”। अष्टोत्तरशतं जपेत् सिद्धिः // 1 // औषधीप्रयोगो यथा // तत्रादौ बन्ध्याशुद्धिप्रयोगः (तंत्रसारे) एकविंशद्दिनं यावदुग्धेन सह मेथिकाम् // मेथी तोलकमेवं च खंडकं तोलकद्वयम् // 1 // घृतं / तोलकमेकं च पिबेदुग्धेन मिश्रितम् // मृतवत्सा मृतगर्भा काकबंध्या तथैव च // 2 // पुत्रहीना च बन्ध्या च पंच चैवं प्रकीर्तिताः // संह। रत्सर्वदोषांश्च मेथीभक्षणमुत्तमम् // 3 // नाडीशुद्धायां स्त्रियामुपरिऋतुकालमिदमौषधं देयम् // पलाशपत्रयोगः // (दत्तात्रेयतंत्रे)॥ पत्रमेकं पलाशस्य गर्भिणीपयसान्वितम् // ऋत्वंते तानि पीतानि बंध्या भवति गर्भिणी // 1 // तत्र मंत्रः-"ॐ नमः सिद्धिरुपाय अमुकी पुत्रं कुरुकुरु स्वाहा" / अष्टोत्तरशतं जपेत् / सिद्धिः॥१॥अथानेकयोगाः (चिकित्साशास्त्रे ) // समूलपत्रां साक्षी रविवारे समुद्धरेत् // 21 // 1 सांक्षी लक्ष्मणा इतिबोध्यम् / For Private And Personal Use Only Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatm.org Acharya Shellssagaur yanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra एकवर्णा गवा क्षीरैः कन्याहस्तेन पेषयेत् // 1 // ऋतुकाले पिबेदध्या पलार्द्ध तदिनेदिने॥क्षीरशाल्यन्नमुद्रांश्च लघ्वाहार प्रदापयेत् // एवं सप्तदिनं कुर्याध्यापि लभते सुतम् ॥२॥श्वेतायाः कंटकार्याश्च मूलं तद्वच्च गर्भकत्॥न कर्म कारयेत् किंचिदर्ज 15TION येच्छीतमातपम् // 3 // शिफौबहिशिखायास्तु क्षीरेण परितोषितम् ॥पिबेहतुमती नारी गर्भधारणहेतवे // 4 // 199 919 अश्वगंधाकषायेण सिद्धं दुग्धं घृतान्वितम्॥ऋतुस्नातांगना प्रातः पीत्वा गर्ने दधाति हि // 5 // अथ गर्भप्राप्ति यंत्रम्॥मेहतरजबाईलका कौल है कि यह दुवा हज़रतअहमद मुजतवी महम्मद मुस्तफेसे वास्ते पैदाइश फरज 888 8 नन्दके पहुंची है जिस्के लडका पैदा न होताहो इस यंत्रको स्त्री अपनी दाहिनी रान अर्थात जंघामें बांधै तो इन्शाल्लाफरजन्द अर्थात् लडका नेक जमाल अर्थात् सुन्दर रूपवाला पैदा होगा अगर शक लावे तो काफर है॥ इति सन्तानोपायः // अथ प्रथमरजस्वलायाः। शुभाशुभम् // प्रथमो ज्ञायते कालो रजोदर्शनकारकः // शुभाशुनं प्रयत्नेन लक्षणज्ञा रजस्वला // 1 ॥खो वैधव्यमिन्दौ तु सुपुत्र जननी भवेत्॥ स्वात्महा मंगले सौम्ये बहुकन्या न संशयः॥ 2 // गुरौ सुपुत्रतां याति शनो कुत्सितसंततिः // एवं ज्ञात्वा नरो धीमान् प्रायश्चिनं तु कारयेत // 3 // इति श्रीमन्त्रमहार्णवे पूर्वखण्डे मिश्रतन्त्रे एकादशस्तरंगः // 11 // समाप्तोऽयं पूर्वखण्डः // 2 बर्दिशिखा मोरशिखा // For Private And Personal Use Only Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir www.kabalrm.org अयं मंत्रमहार्णवपूर्वखण्डः मुम्बय्यां खेमराजश्रीकृष्णदास इत्यनेन स्वकीये "श्रीवेङ्कटेश्वर” स्टीम्-मुद्रणयंत्रालये मुद्रापयित्वा प्रकाशितः। For Private And Personal Use Only