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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir भूमिका। इस परब्रह्म परमात्माको अनेक धन्यवाद हैं के जिस्की कृपासे हम सब कोई अपने कार्यको निर्विघ्नपूर्वक समा। तकरने में समर्थ होतेहैं / इसके उपरांत हम अपने सहृदय पाठकोंको भी धन्यवाद दियेविना नहीरहेसक्ते कि जिनकी कृपाका अवलंबनही हमारे उत्साहको द्विगुणित करतारहा / तीसरे सर्वशक्तिमान् शिवजी महाराजको धन्यवाद देनाही योग्यहै क्योंके जिनकी कृपारूपी दृष्टिके कारण ही मंत्रशास्त्र रचागया / जिस मंत्रशास्त्रके प्रभावसेही प्राचीन / मनुष्योंने देवतोंसे भी जय पाई। और देवताको वशीभूत करके उन देवतोंसे अपने किंकरवत् कार्य कराया करतथ।इस मंत्रशास्त्रके द्वारा रावणादिक राक्षस श्रीरामचन्द्रादिकसे युद्धकरनमें समर्थ हुये / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा सपूर्णांकी। दृष्टीके आगसे अलोप होजाते थे। जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा दूसरेके शरीरमें आप प्रवेश होसक्तेथे / जिस मंत्रशास्त्रके। द्वारा नानाप्रकारके रूप धारण करलेतेथे। जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा जलके भीतरही भीतर सहस्रोंयोजनतक जानेकी सामर्थ्य रखतथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा आकाशमार्ग होकर देवलोकको जातेथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा भूत भविप्य वर्तमान तीनों कालकी वार्ताओंके जानने में समर्थ हातेथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा देवतोंकाभी आकर्षण करलेतेथे! जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा अजीत शत्रुसे भी जय पातेथे / जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा मनोवांछित पदार्थ अपने आपही मँगालेतेथे। जिस मंत्रशास्त्रके द्वारा अष्टसिद्धि नवनिधि सन्मुख हाथ बांधे खडीरहतीथीं। इस मंत्रशास्त्रके प्रभावकरकेही ब्राह्मणोंसे ती रघू इत्यादि राजा भैभित होतेथे। ऐसी अनेक सिद्धियां इच्छानुसार प्राप्तकरना यह For Private And Personal use only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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