________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir गुरुः॥ जीव आंगिरसो वाचस्पतिश्चित्रशिखण्डिजः // 3 ॥सकलसुरविनेता ब्रह्मतुल्यप्रभावविदशपतिकरैर्यो घृष्टपादारविंदः // विमल / पू. खं. " // 299 // मतिविकासी सर्वमांगल्यहेतुईदतु मम विभूति वाक्पतिः सुप्रभावः॥४॥ बृहस्पतिमहं नौमि गुरुं देवेन्द्रयूजितम् // सर्वशास्त्रप्रवक्तारं सर्व कामफलप्रदम् // 5 // सर्वसंशयच्छेत्तारं वेनारं सर्वकर्मणाम् // परब्रह्ममयं नित्यं परमानंदरूपिणम् // 6 // सर्वसिद्धिप्रदं देवं शरण्य भक्तवत्सलम् // वरेण्यं वरदं शांतं त्रिदशातिहरं परम् // 7 // लंबकूर्च सुवर्णाभं स्वर्णयज्ञोपवीतिनम् // पीतवस्त्रपरीधानं मार्तण्डतिल कान्वितम् // 8 // चन्दनागुरुकपूरैः सुगंधैः शतपत्रकैः // संपूज्य ध्यायते यस्तु भक्त्या सुदृढया नरैः // // धनं धान्यं जयं सौख्यं सौभाग्यं नृपमान्यता // भवंति सर्वदा तेषां त्वत्प्रसादात्सुरेश्वर // 10 // रोगाग्निसपचौराद्यास्तेषां न प्रभवति हि // सुस्थानस्थोधिदे शे च ध्यानात्सर्वार्थसाधकः // 11 // (तंत्रांतरेपि ) नमः सुरेन्द्रवंद्याय देवाचार्याय ते नमः // नमस्त्वनंतसामर्थ्य वेदसिद्धांतपारग // Nu // सदानंद नमस्तेस्तु नमः पीडाहराय च // नमो वाचस्पते तुज्यं नमस्ते पीतवाससे // 2 // नमोऽद्वितीयरूपाय लंबकूर्चाय ते नमः // नमः प्रहृष्टनेत्राय विषाणां पतये नमः // 3 // नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक // नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहे | तवे // 4 // विषमस्थस्तथा नृणां सर्वकष्टप्रणाशनम् // प्रत्यहं तु पठेद्यो वै तस्य कामफलप्रदम् // 5 // "बृहस्पतिमंत्रो" यथा ॐ नमो स्तु बृहस्पतये पीतवस्त्राभरणाय यज्ञोपवीतमालाधराय ममार्चनं गृहाण कुरुकुरु स्वाहा” इति चत्वारिंशदक्षरमंत्रः॥ इति बृहस्पतिस्तोत्रं समाप्तम् // अथ शुक्रमंत्रप्रयोगः // (मंत्रमहोदधौ) मंत्रो यथा-"ॐ वस्त्रं मे देहि शुक्राय स्वाहा"इत्येकादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधान म् // अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। विराट्छन्दः। दैत्यपूज्यः शुक्रो देवता / ॐ बीजम् / स्वाहाशक्तिः। ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। O // 291 For Private And Personal Use Only