________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir संपूज्य पुष्पाजलिं च दद्यात् // इत्यावरणपूजां कृत्वा धूपादिनमस्कारांत संपूज्य जपं कुर्यात् // अस्य पुरश्चरणमशीतिसहस्रजपः॥ तद्दशांशतो घृतहोमः। एवं कृते मंत्रः सिद्धो भवति / सिद्ध मंत्र मंत्री प्रयोगान साधयेत्॥तथा च / “जपित्वाशीतिसाहस्र हुत्वा तेन घृतेन वा // धर्माधर्मादिपीठे तं पूजयेदंगदिग्भवैः // 1 // सिद्धे मनौ प्रकुर्वीत प्रयोगानिष्टसिद्धये // हरिद्राकुसुमेर्तुत्वा घृताक्तैर्दिवसत्रयम् // 2 // सविंशतिशतं मंत्री वासांसि लभते मणीन् // शत्रुरोगादिपीडासु स्वजने कलहोद्भवे // 3 // जुहुयापिप्पलोत्थाभिः समिद्भिस्त / निवृत्तये // 4 // " इत्यष्टाक्षरबृहस्पतिमंत्रप्रयोगः // अथ बृहस्पतिस्तोत्रप्रारंभः॥"क्रौं-शकादिदेवैः परिपूजितोसि त्वं जीवभूतो जगतो हिताय // ददाति यो निर्मलशास्त्रबुद्धिं स वाक्पतिम वितनोतु लक्ष्मीम् // 3 // पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशां है। तः // दधाति दण्डं च कमण्डलुं च तथाक्षसूत्रं वरदोस्तु मह्यम् // 2 // बृहस्पतिः सुराचार्यो दयावाञ्छु मलक्षणः // लोकत्रयगुरुः श्रीमान्सर्वज्ञः सर्वतो विभुः // 3 // सर्वेशः सर्वदा तुष्टः श्रेयस्कत्सर्वपूजितः // अक्रोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता महाबलः॥ 4 // वि श्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः // भूर्भुवो धनदाता च भी जीवो जगत्पतिः // 5 // पंचविंशतिनामानि पुण्यानि शुभदानि च // नंदगोपालपुत्राय भगवत्कीर्तितानि च // 6 // प्रातरुत्थाय यो नित्यं कीर्तयेत्तु समाहितः // दिप्रस्तस्यापि भगवान् प्रीतः स च न संशयः॥७॥" (तंत्रांतरेपि ) देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम् // बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् // 3 // अमराणां बुद्धिदाता वाग्मी यः करुणाकरः // यावंतो ये च मुनयः पुरुषाकारपीतभाः // 2 // बृहस्पतिः सुराचार्यों गीष्पतिर्धिषणो| 1 सविंशतिशतं 120 // For Private And Personal Use Only