________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobatrm.org मं० मा // 25 // दक्षिणेनादाय पुरःकल्पितवजशिलायामस्वमंत्रेण क्रोधादास्फालयेत् // ततः पूर्ववदाचम्य करांगन्यासौ रुत्वा अपात्रे जलं कृत्वा तमा, पू० खं० 1 दाय मूलमुच्चार्य “शिवरूपाय मूर्यायेदमयं स्वाहा // " इति त्रिरय दत्त्वा मूलेनोपस्थाय गायत्री मूलमंत्र जोत् // गायत्रीमंत्रो यथा // भित "ॐ तत्पुरुषायविद्महेमहादेवायधीमहि // तन्नोरुद्रः प्रचोदयात् // " इति गायत्रीमष्टविंशतिवारमष्टोनरशतवारं मूलं च संजप्य जप तर.१० निवेद्य नमस्कारं कुर्यात् // इति तांत्रिकीसंध्याप्रयोगः // अथ द्वारपूजा // ततः पूजागृहद्वारमागत्य द्वारपूजां कुर्यात् // तत्र क्रमः // "अवाय फट" इति द्वारं संप्रोक्ष्य दक्षिणशाखायाम् // गं गणपतये नमः॥ 3 // दुं दुर्गायै नमः॥२॥ वामशाखायाम् वं वटु काय नमः॥३॥ क्ष क्षेत्रपालाय नमः॥४॥ द्वारोपरि / सं सरस्वत्यै नमः।।५॥देहल्याम् / अत्राय फट् // 6 // इति पूजयेत् // अथ प्रयोगः।। ततः जपस्थान गत्वा // अश्वत्थोदुंबरप्लक्षाणामन्यतमस्य वितस्तिमात्रान् दश कीलान् "ॐ नमः सुदर्शनायास्त्राय फट् // " इति मंत्रणा टोत्तशताभिमंत्रितान् “ॐ ये चात्र विन्नकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः // विघ्नभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धिषु // 1 // मर्यंत कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः // अपसर्पतु ते सर्वे निर्विघ्नं मिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति मंत्रव्येन दशदिक्षु दश कीलान निखनेत्॥ ततस्तेषु "ॐ सुदर्शनायाखाय फट" इति मंत्रण प्रत्येककीलान् संपूज्य तबाह्ये भूतबलिं दद्यात् // तत्र मंत्रः।। "ये रौद्रा रौद्रकर्माणो रौद्रस्थाननिवासिनः // मातरोप्युग्ररूपाश्च गणाधिपतयश्च मे // 3 // विन्नभूताश्च ये चान्ये दिग्विदिक्षु समाश्रिताः // ते सर्वे प्रीत // 252 // मनसः प्रतिगृह्णविमं बलिम् // 2 // " इति मंत्रद्वयेन दशदिक्षु बाह्ये माषभक्तबलिं दद्यात् // ततो वामकरांगुलिभिरय॑जलेनोत्सृज्य पुष्पांजलिमादाय "ॐ भूतानि यानीह वसंति भूतले बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम् / / संतोपमासाद्य व्रजंतु सर्वे शमंतु नान्यत्र नमोस्तु For Private And Personal Use Only