________________ She avrain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir तरं०२ मं० म०मध्यपर्वाणि // संयोज्याकुंचयेत्किचिन्मुद्रषांकुशसंज्ञिका // इत्यंकुशमुद्रा // 3 // तर्जनी मध्यमानामा कनिष्ठांगुष्ठमुच्छ्रिता // // 25 // अधोमुखी दीर्घरूपा मध्यमा विन्ननामिका // इति विनमुद्रा // 4 // पशुमुद्रा निगदिता प्रसिद्धा लड्डुमुद्रिका // बीजपूराह्वया मुद्रा में म०प्र० प्रसिद्धत्वादुपेक्षिता // इति पशुलड्डुकबीजपूरादिमुद्राः॥ 5 // 6 // 7 // इति गणेशसप्तमुद्राः॥ अथ शक्तिदशमुद्राः // शाक्तेयीनां च मुद्राणां कथ्यते लक्षणानि तु॥ पाशांकुशवराभीतिधनुर्बाणाः समीरिताः॥ (इति षड् मुद्राः पूर्ववत ज्ञेयाः ) कनिष्ठानामिकां बद्धा खां / | गुप्ठेनैव दक्षतः॥ मितांगुली च प्रमृते संस्पृष्टे खड्गमुद्रिका // 7 // वामहस्तं तथा तिर्यक् कृत्वा चैव प्रसार्य च // आकुंचितांगुलिं / कुर्याच्चममुद्रेयमारिता // इति चर्ममुद्रा // 8 // मुष्टिं कृत्वा तु हस्ताभ्यां वामस्योपरि दक्षिणम्॥ कुर्यान्मुसलमुद्रेयं सर्वविघ्नविनाशिनी॥ || इति मुसलमुद्रा॥९॥मुष्टिं कृत्वा कराभ्यां च वामस्योपरि दक्षिणम् // कृत्वा शिरसि संयोगाद्दुर्गामुद्रेयमीरिता॥इति दौर्गी मुद्रा // 10 // अथ लक्ष्मीमुद्रा-एका // चक्रमुद्रां तथा बद्धवा मध्यमे हे प्रसार्य च।। कनिष्ठिके तथानीय तदने मुष्टिके क्षिपेत् / लक्ष्मीमुद्रा परा ह्येषा सर्वसम्पत्यदायिनी // इति लक्ष्मीमुद्रा // 1 // अथ सरस्वत्याः पंचमुद्रालक्षणम् // वीणावादनबद्धस्तौ कृत्वा संचालयेच्छिरः॥ वीणामुद्रेयमाख्याता सरस्वत्याः प्रियंकरी // इति बीणामुद्रा ॥३॥वामुमष्टिं स्वाभिमुखी कृत्वा पुस्तकमुद्रिका // इति पुस्तकमुद्रा // 2 // है। दक्षिणांगुष्ठतर्जन्यावग्रलग्ने पराङ्मुखे // प्रसार्य संहितोनाना ह्येषा व्याख्यानमुद्रिका॥श्रीरामस्य सरस्वत्या अत्यंतप्रेयसी मता // 3 // (अक्षमालादिमुद्रिका पूर्वोक्ता ज्ञेया ) इति सरस्वतीपंचमुद्राः // अथ वह्निमुद्रा-एका // मणिबंधस्थितौ कृत्वा प्रसृतांगुलिको करौ // कनिष्ठांगुष्ठयुगले मिलितां तां प्रसारयेत् // सप्तजिह्वाख्यमुद्रेयं वैश्वानरप्रियंकरी // इति सप्तजिह्वाख्याग्निमुद्रा // 1 // अथानेकमुद्रा For Private And Personal Use Only