________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ता सर्वदेवप्रियंकरी // इति काममुद्रा // 19 // इति विष्णमुद्राः // अथ शिवस्य दशमुद्रालक्षणम् // महादेवप्रियाणां च कथ्यते लक्ष है। णान्यथ / उच्छ्रितं दक्षिगांगुष्ठं वामांगुष्ठेन बंधयेत् // वामांगुलीदक्षिणाभिरंनुलीभिश्व बंधयेत् / लिंगभु यमाख्याता शिवसान्निध्यका रिणी // इति लिंगमद्रा // 1 // मिथः कनिष्ठिके बद्धा तर्जनीयामनामिके // अनामिकोर्द्धसंश्लिष्टे दीर्घमध्यमयोरथ // अंगुष्ठायद्वयं जन्यस्येद्योनिमुद्रेयमारिता // इति योनिमुद्रा॥२॥ अंगुष्ठेन कनिष्ठां तु बद्धा शिष्टांगुलित्रयम् // प्रसारयेत्रिशूलाख्या मुरैषा परिकीर्तिता। IPL इति त्रिशूलमद्रा॥३॥ अंगुष्टतर्जन्यग्रे तु ग्रंथयित्वांगुलित्रयम् // प्रसारयदक्षमाला मुद्रेयं परिकीर्तिता।।इत्यक्षमाला मुद्रा // 4 // अधः! स्थितो दक्षहस्तः प्रमृतो वरमुद्रिका // इति वरमुद्रा // 5 // ऊद्धींकतो वामहस्तः प्रसूतोभयमुद्रिका // इत्यभयमुद्रा // 6 // G मिलितानामिकांगष्ठं मध्यमाग्रे नियोजयेत् // शिष्टांगुल्युच्छ्रिते कुर्यान्मृगमुद्रेयमारिता // इति मृगमुद्रा // 7 // पंचांगुल्यो दक्षिणास्तु मिलिता यर्द्धमूर्द्धता // खट्वांगमुद्रा विख्याता शिवस्यातिप्रिया मता // इति खट्वांगमुद्रा // 8 // पात्रवद्वान IN महस्तं च कत्यांके वामके तथा // निधायोच्छ्रितयत्कुन्मुिद्रा कापालिकी मता // इति कपालाख्यमुद्रा // 9 // मुष्टिं च शिथिलां / बद्धा हीपत्कुंचितमध्यमाम्॥ दक्षिणान्तूर्द्धमुन्नम्य कर्णदेशे प्रचालयेत् // एषा मुद्रा डमरुका सर्वविघ्नविनाशिनी // इति डमरुमद्रा॥१०॥ * इति शिवस्य दश मुद्राः॥ अथ गणेशसप्तमुद्रालक्षणम्॥ ततो गणेशमुद्राणामुच्यते लक्षणानि तु // उत्तानोर्ध्वमुखी मध्या सरला बद्ध मुष्टिका // दंतमुद्रा समाख्याता सर्वागमविशारदैः॥ इति दंतमुद्रा // 1 // वाममुष्टेस्तु तर्जन्या दक्षमुष्टेस्तु तर्जनीम् // संयोज्यांगष्ठ कामाभ्यां तर्जन्यये समुत्क्षिपेत् // एषा पाशाह्वया मुद्रा विद्वद्भिः पारकीर्तिता॥ इति पाशमुद्रा // 2 // ऋज्वी च मध्यमां कृत्वा तर्जनी For Private And Personal Use Only