________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म० से बिल्याख्यमुद्रा // 10 // हस्तौ तु विमुखौ कृत्वा ग्रंथयित्वा कनिष्ठिक।मिथस्तजनके श्लिष्टे श्लिष्टावंगष्ठको तथा // मध्यमानामिका द्वेशपू०खं. 1 // 24 // तु द्वौ पक्षाविव चालयेत् // एषा गरुडमुद्राख्या विष्णोः संतोषवर्धिनी // इति गरुडमुद्रा // 11 // जानुमध्ये करौ दत्त्वा चिबुकोष्ठी समावृतौ // हस्तौ च भूमिसंलगी कंपमानः पुनःपुनः॥मुखं च विवृतं कुाल्लेलिहानां च जिबिकाम् // नारसिंही भवेदेषा मुद्रा तत्पीतिव छ। Nर्दिनी // इति नारसिंही मुद्रा ॥१२॥अंगुष्ठाभ्यां तु करयोरथाक्रम्य कनिष्ठिके // अधोमुखीभिः सर्वाभिः मुद्रेयं नृहरेर्मता॥इति द्वितीया नहरिमुद्रा // 13 // दक्षोपरि करं वामं कृत्वोत्तानमधः सुधीः // नामयेदिति संप्रोक्ता मुद्रा वाराहसंज्ञिका // इति वाराहमुद्रा॥ 13 // दक्षहस्तं चोर्द्धमुखं वामहस्तमधोमुखम् // अंगुल्ययं तु संयुक्तं मुद्रा वाराहसंज्ञिका / / इति वाराहमुद्रा द्वितीया // 13 // वामहस्ततले / / ना दक्षा अंगुलीस्ता अधोमुखीः // संरोप्य मध्यमा तासामुन्नाम्योधो विकुंचयेत् // हयग्रीवप्रिया मुद्रा तन्मूर्तेरनुकारिणी॥ इति हयग्रीवमुद्रा // 34 // वामस्य मध्यमायं तु तर्जन्यग्रेण योजयेत् // अनामिकां कनिष्ठां च तस्यांगुष्ठेन पीडयेत् // दर्शयेद्वामके स्कंधे धनुर्मुद्रेयमी रिता // इति धनुर्मुद्रा // 15 // दक्षमुष्टस्तु तर्जन्या दीर्घया बाणमुद्रिका // इति बाणमुद्रा / // 16 // तते तलं तु करयोस्तिर्यक् सं / योज्य चांगुलीम् // संहतां प्रसृतां कुन्मुिद्रेयं पशुसंज्ञिका // इति परशुमुद्रा // 17 // उर्द्धस्थांगुष्ठमुष्टी दे भुद्रा त्रैलोक्यमोहिनी // इति जगन्मोहिनी मुद्रा॥ 18 // हस्तौ तु संपुटौ कृत्वा प्रसृतांगुलिको तथा॥ तर्जन्यौ मध्यमा पृष्ठे चंगुष्ठौ मध्यमाश्रितौ॥काममुद्रेयमुदि। 1 ज्ञानार्णवे यथाहस्तगतं चापं तथाहस्तं कुरु पिये।चापमुद्रयमाख्याता वामहस्ते व्यवस्थिता // २-यथा हस्तगता बाणास्तथा हस्तं कुरु मिये / वाणमुद्रेयमाख्याता a रिपुवर्गनिकृतनी // // 24 // S For Private And Personal Use Only