________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir वतारणस्य पारायणप्रणवविप्रपरायणस्य // 2 // प्रातर्भजामि भजतामभयङ्करं तं प्राक् सर्वजन्मकतपापभयापहत्यै // यो ग्राहवक्त्रपतितां [धिगजेन्द्रधोरशोकप्रणाशमकरोद्धृतशंखचक्रः // 3 // श्लोकत्रयमिदं पुण्यं प्रातः प्रातः पठेन्नरः॥ लोकत्रयगुरुस्तस्मै दद्यादात्मपदं हरिः R // 4 // इति प्रातःस्मरणं कृत्वा भूमिं प्रार्थयेत् // तत्र मंत्रः॥ ॐ समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमंडले // विष्णपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श | क्षमस्व मे // 1 // इति भूमि संप्रार्य श्वासानुसारेण भूमौ पादं दत्वा बहिर्बजेत // इति प्रातःकत्यम्॥ ततो ग्रामादहिनैर्ऋत्यकोणे जनव जितेदेशे उत्तराभिमुखः अनुपानत्कः वस्त्रेण शिरः प्रावृत्य मलमोचनं कृत्वा मृत्तिकया जलेन च यथासंख्यं शौचं कृत्वा हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गंडूषं च कृत्वा दंतधावनं कुर्यात् // तद्यथा / आम्रचंपकापामार्गाद्यन्यतमं द्वादशांगुलं दंतकाष्ठं गृहीत्वा प्रार्थयेत् // ॐ आयु बलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च // श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वन्नो देहि वनस्पते // 1 // इति संप्रार्थ्य // “ॐ ह्रीं तडित् स्वाहा" | इति मंत्रेण काष्ठं छित्त्वा ॐ क्रीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः' इत्यनेन दंतान संशोध्य 'ऐं' मंत्रेण जिह्वामुल्लिख्य दंतकाष्ठ क्षालयित्वा नैर्ऋत्यां शुद्धदेशे निःक्षिपेत् // ततो मूलेन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात् // तद्यथा / तत्कालिकोद्धृतोदकेन उष्णोदकेन वा स्नान कुर्यात् / न तु पर्युषितशीतोदकेन / तद्यथा। ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् // तत्र मंत्रः॥ ॐ गंगे च यमुने चैव व गोदावरि सरस्वति॥ नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन्सन्निधिं कुरु // 1 // आवाहयामि त्वां देवि नानार्थमिह सुंदरि॥ एहि गंगे नमस्तु / सर्वतीर्थसमन्विते // 2 // इति तीर्थान्यावाह्य " ॐ ऋतं च सत्यं० " इति मंत्रणाभिमंत्र्य वरुणमंत्रेण स्नात्वा शुष्कं शुलं कार्पासोत्पत्ति वश्वं परिधाय मूर्यायायं दद्यात् // तत्र मंत्रः // ॐ "एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते॥ अनुकंपय मां देव गृहाणायं नमोस्तु ते For Private And Personal Use Only