________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobar.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir दिवणेश्वरान क्रमात // इति गंधादिभिः सम्यक् पंचावरणमर्चयेत् // 70 // अयुतं प्रजपेस्पृष्टा तान्घटान्देशिकोत्तमः // पायसैः सर्पिपा शुद्धैस्तिलैर्दशशतं पृथक् // 73 // जुहुयानान्घटान्स्पृष्ट्वा प्रत्यहं बलिमाहरेत् // राजमोक्तप्रकारेण रात्री देशिकसत्तमः॥ 72 // सुदिने शोभने लग्ने वाचयित्वा द्विजातिभिः // स्वस्तिमंगलवाक्यानि विशुद्धवंदपरागैः // 73 // नदत्सु पचवायेषु प्रणम्य बटुकेश्वरम् // जितेन्द्रियं शुद्ध कार्य राजानं ब्राह्मणप्रियम् // 74 // आस्तिकं शुद्धवचनमभिपिंचेत्प्रसन्नधीः // अभिषिक्तो नरपतिः प्रणिपत्य गुरु परम् // 75 // भृगमी दक्षिणां दद्यात्प्रसीदति यथा गुरुः॥ राजाभिषिक्तो भवति साक्षामिपुरंदरः // 76 // परान्विजयते भूपांस्तूयते | सकलेनरैः / / भक्ष्यभोज्यैर्धनान्यैः पूजयंति यशस्विनः॥ कृताभिषेकः षण्मासं प्रतिमासं महीपतिः / / 77 // इत्येकविंशत्यक्षरबटुक भै |रयमंत्रप्रयोगः // अथ स्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रप्रयोगः // अथातः संप्रवक्ष्यामि स्वर्णाकर्षणभैरवम् // यस्यानुष्ठानमात्रेण स्वर्णराशिमवामयात ॥१॥शांतिकं पौष्टिकं चैव वश्याकर्षणमोहनम्।।मारणोच्चाटनं द्वेषस्तंभनं च प्रशस्यते // 2 // मंत्रो यथा-" ऐह्रींशीऐश्रींआपदधारणायहां हूं अजामलबद्धायलोकेश्वरायस्वर्णाकर्षणभैरवायममदारियविद्वेषणायमहाभैरवायनमःश्रीं ह्रीं ऐं" इति सप्तपंचाशदशरो मंत्रः॥ अस्य विधानम् // ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रस्य श्रीब्रह्माऋषिः / पंक्तिश्छंदः। हरिहरब्रह्मात्मकस्वर्णाकर्षणभैरवो देवता / ह्रीं बीजम् / / ही शक्तिः / ॐ कीलकम् / स्वर्णाकर्षणभैरवप्रसादसिद्ध्यर्थ स्वर्णराशिप्राप्तये स्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रजो विनियोगः // ॐ ब्रह्मर्षये नमः शिरसि // 1 // पंक्तिच्छंदसे नमः मुखे // 2 // स्वर्णाकर्षणभैरवदेवतायै नमः हृदि // 3 // ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये // 4 // ముని For Private And Personal Use Only