________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 106 // णा " . / म०म०चतुर्थ्या दिवसे रात्री पूजने मानदायकम् // 5 // सर्वमौभाग्यदं शीनं दारिद्यार्णवघातकम // मुदारसुप्रजासौख्यं सर्वमिद्धिकरवं. 1 नृणाम् / / 14 // जलेथवानलेरण्ये सिंधुतीर लरिनटे // श्मशाने दृरदेशे च रणे पर्वतगहरे // 55 // राजद्वारे भये घोरे निर्भयो| जायते ध्रुवम् // मागरे च महाशीते दुर्भिक्षे दुष्टसंकटे // 16 // भूतप्रेतपिशाचादियभराक्षसजे भये // राक्षमीयक्षिणीऋराशाकिनी डाकिनीगणाः॥ 55 // राजमृत्युहरं देवि कवचं कामधेनुवत् // अनंतफलदं देवि मति मोक्षं च पार्वति // 58 // कवचेन विना मंत्र यो जपेड़णनायकम् // इह जन्मनि पापिठो जन्मांते मुषको भवेत् // 59 // इति परमरहस्यं देवदेवार्चनं च कवचपरमदिव्यं पार्वती पत्ररूपम् // पठति परमभोगैश्वर्यमोक्षप्रदं च लभति सकलमौख्यं शक्तिपुत्रप्रसादात // 60 // " इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे उमामहेश्वर संवादे उच्छिष्टगणेशकवचं समानम् // शुभमस्तु // अथोच्छिष्टगणेशसहस्रनामस्तोत्रं लिख्यते // उक्तं च रुद्रयामलतंत्रे // श्रीभैरव उवाच // शृणु देवि रहस्यं मे यत्पुरा सृचितं मया।तब भक्त्या गणेशस्य वक्ष्ये नामसनहकम् ॥१॥देव्युवाच॥ "ॐ भगवन्गणनाथस्य उच्छिष्टस्य महात्मनः // ओतुं नामसहस्र मे हृदयञ्चोत्सुकायते // 2 // भैरव उवाच // प्राङ्मुखे त्रिपुरानाथे जातविनाकुलेशिवे / / मोहने मुच्यते चेतस्ते सर्वे बलदर्पिताः॥ 3 // तदा प्रभुं गणाध्यक्षं स्तुत्वा नामसहस्रम्॥ विघ्ना दुरात्पलायंते कालरुद्रादिव प्रजाः॥४॥ तस्यानुग्रहतो देवि जातोहं त्रिपुरांतकः // तमद्यापि गणेशानं स्तोत्रं नामसहस्रकैः 5 तमेव तब भक्त्याहं साधकानां हिताय च // महान गणपतेर्वक्ष्ये दिव्यं नामसहस्रकम् // 6 // ॐ अस्य श्रीउच्छिष्टगणेशसहस्रनामस्तोत्रमंत्रस्य श्रीभैरव ऋषिः / गायत्री छंदः / श्रीमहा गणपतिर्देवता / गं बीजमाहीं शक्तिः।कुरुकुम कीलकम् / मम धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः॥ॐ ह्रीं श्रीं श्रीगणाध्यक्षो ग्लौं गं चा॥१०६॥ For Private And Personal Use Only