________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir देवताः॥ चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यतु गुरुभक्तितः // नक्षत्राणि महा योगाः करणाद्यास्तथापरे // ते मर्वे सुखिनो यान्तु मामाच तिथ| यस्तथा // 6 // तृप्यन्तु पितरः सर्वे ऋतबो बत्सरादयः // खेचरा भूचराश्चैव तृप्यन्तु मम भक्तितः // 7 // अंतरिक्षचरा घोरा ये चान्ये देवयोनयः / स तु सुखिनो यांतु सर्वा नद्यश्च पक्षिणः॥ 8 // पर्वताःसुखिनः संत तथा तत्कन्दरा गुहाः॥ पयो ब्राह्मणाः सर्वे शांतिं कुर्वतु मे सदा // 9 // तीर्थानि पशवो गावो ये चान्याः पुण्यभूमयः // वृद्धाः पतिवता नार्यः शिवं कुर्वतु मे सदा // 10 // शिव मर्वत्र मे चास्तु पुत्रदारधनादिपु // राजानः मुखिनः सन्तु क्षेममार्ग तु मे सदा // 11 // शुभा मे दिवमा यान्तु शिवास्तिष्ठतु मेध शिवाः // देष्टारः माधकानां च सदैवाम्नायदूपकाः // 12 // डाकिनीनां मुखे यान्तु मातृमाश्या तेषु ताः // शवयो नाशमायां तु मम निंदाकराः सदा // 13 // ये निंदकास्ते विपदं प्रयान्तु ये साधकास्ते प्रभवन्तु मिद्धाः ॥ये सर्ववीराः करुणाचलोकाः पुनः परेश मम सन्निधत्स्व // 14 // " इति शांतिपाठं पठित्वा जलमुत्सृज्य स्थगृहे गत्वा पृष्टदेशे नावलोकयेत् // गृहद्वारमागत्य हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य गृहप्रवेशं कृत्वा कुशासने शय्यायां यथासुखं स्वप्यात् // इति श्रीवटुकभैरवपूजापद्धतिः समाता // श्रीगणेशाय नमः // अथ श्रीबटुकभैरवब्रह्मकवचम्॥ उक्तं च रुद्रयामले॥ श्रीदेव्युवाच ॥"भगवन्मर्ववेना त्वं देवानां प्रीतिदायकम् // भरवं कवचं ब्रूहि यदि चास्ति रूपा मयि // 3 // प्राणत्यागं करिष्यामि यदि नो कथयिष्यमि॥ सत्यंसत्यं पुनः सत्यं सत्यमेव न संश यः॥२॥ इत्थं देव्या वचः श्रुत्वा प्रहस्याति स्वयं प्रभुः / / उवाच वचनं तत्र देवदेवो महेश्वरः // 3 // ईश्वर उवाच // वाटुकं कव पचं दिव्यं शृणु मत्प्राणवल्लभे // चंडिकातंत्रमर्वस्वं वटुकस्य विशेषतः // 4 // नत्र मंत्राद्यक्षरंतु वासुदेवस्वरूपकम् // शंखवर्णद्वयो ब्रह्मा For Private And Personal Use Only