________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पात्रे चोच्छ्रायं तु रसागुलम् // विंशत्पलमिते दीप प्रत्यहं विंशतिदिने // 13 // सर्वरोगविनाशाय अयापस्मारदारुणे / दशपलमिते पात्रे बुनोच्छाये तु त्रिंशतम् // 12 // दशपलमिते तैलं प्रत्यहं सतवासरे // राजवश्यकरं क्षिप्रं यदि साक्षान्ज गत्पतिः // नित्यदीपप्रमाणे तु पात्रं पलत्रयं स्मृतम् // 13 // (तंत्रांतरेपि ) शतमष्टोत्तरं चाथ पलानि प्रथमे विधौ // अष्टाशीति| 1 द्वितीये च परेष्टाविंशतिः प्रिये // सर्वकार्यपु देवेशि संख्या प्रोक्ता त्रिधाऽत्र वै // 14 // (अथ कार्यपरत्वेन पात्रे धातुमानम् ) मावर्ण मिद्धिदं पात्रं वश्ये रौप्यं प्रकल्पयेत // विद्वेषणकरं लौहं मारणे मृण्मयं तथा / / 15 // उच्चाटनकर कांस्यं मोहे पिनल स्मृतम् / / अन्योक्कसर्वकार्येषु सर्वाभावे तु ताम्रजम् // 16 // ( तंत्रांतरेपि ) गोधूमाश्च तिला माषा मुद्राश्च तण्डुलाः कमात् // पंच धान्यमिदं प्रोक्तं सर्वदा दीपदापन // 17 // वश्ये तण्डुलपिष्टोत्थं मारणे माषपिष्टजम // तिलपिष्टममुट्टतमुच्चाटनविधी स्मृतम् // 18 // (प्रियस्यागमने प्रोक्तं गोधूमोत्थं सतण्डुलम् // मोहने मुद्गजं प्रोक्तं पात्रद्रव्यमनुक्रमात // 19 // (अथ कार्यपरत्वन तैलमानम् / गव्यमाकर्षणे कृत्ये कौस्तुभं स्तंभने स्मृतम्॥ तिलतैलं तथा नव्यं घृतं वश्ये प्रकल्पयेत्॥३॥कटुतैलं द्वेषणे च मारणे राजिकं स्मृतम् // आज्यं चौष्ट्र माहिषं च मैषमुच्चाटने मतम् // 2 // बंदिबंधनमोक्षे च तथा भूतपिशाचके // सार्षपं तेलमापूर्य दीपदानं विधीयते // 3 // अथवा तिलतलं तु सर्वकार्य प्रशस्यते // 4 // (अथ कार्यपरत्वेन पर्तिमानम् ) एका पंच तथा सत एकविंशतिसंख्यया // अयुग्माऽथ Lal 1 (तंत्रांतरेपि ) शुभकार्य माषमयं विपरीते तु लोहजम् // २(तंबात्तरेपि) गोवृतेन कृते दीपे देवतावशमानयेत // वयार्थमतसीतेलम् / मधुवृक्षजं तैलं धाविद्वेष / उचाटनेकरंजतैलम् ॥वादमाक्षे भूतपिशाचनिवारणे सर्वपतम्।। For Private And Personal Use Only