________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म. // 245 // दीपो ह्यशुभे दक्षिणामुखः॥ 5 // (तत्र मुहूर्तनिर्णयः) वैशाखश्रावणाचीनकार्तिकेयादिपंचके // शुक्लपक्षे प्रकर्तव्या यावत्कृष्णा पू० ख०१ पंचमी // // सप्रमी पूर्णिमा चैव द्वितीया पंचमी तथा // त्रयोदशी च दशमी तृतीया प्रतिपत्नथा // 2 // द्वादशी च तथा पष्ठी ह्येताः स्युस्तिथयः शुभाः // वृद्धिवैधृतिपाताश्च ये ते योगाः शुलाः स्मृताः // 3 // बालब कौलवं चैव गरं चेति शुभानि वै // शमीम विना शुभाः पंच तवः परिकीर्तिताः // 4 // मासद्वयात्मकाः श्रेष्ठा दिनं दिनार्द्धमेव च // 5 // सूर्योदयं समारण्य याबदस्तं / गतो रविः // अहोरात्रप्रमाणेन ग्रीष्माद्याः परिकीर्तिताः // 6 // दिवा पूर्वाहकोः कालः रात्रौ निशीथ एव च // यदा सर्वत्र रात्री तु मर्यचन्द्रोपरागयोः // अझैदये महाष्टम्यां कालमोहौच रात्रिके // 7 // ( अथ कार्यपरत्वेन पात्रविस्तारे तैलमानम् ) विंशत्पल मिले पाने बुध्नोच्छाये पडंगुलम् // विस्तारे चांगुलान्येव पोदश परिकीर्तितम् // 1 // पंचाशत्पलगन्यं च बंश्य चौर्यादिकमणि // त्रिंशदशपले पात्रे मानं नद्वत्प्रकीर्तितम् // पटिपलमिते पात्रे बुधनोच्छाये नवांगुलम // अंगुलानि चतुर्विशदायामे परिकल्पयेत // 3 // पंचमपमिते तैले मर्वशत्रुविनाशनम् // द्विपंचाशत्पले पात्र बुध्नोच्छाये तु षटिमत // 4 // शतं पलमिते तैले दीपारिविनाशनम् // शतं / पलमिते पात्रे चौच्छ्रायो द्वादशांगुलः // 5 // द्वात्रिंशच ह्यायामे तन्मध्ये तु सहस्रकम् // सर्वकमणि सिद्धिः स्यादीपे पलमह - सके॥६॥ सपादशतपात्रे च पंचोनरशताधिक // पंचदशांगुलोच्छायं व्यायाम पट च त्रिंशके / / 7 // अयुतपलदीपश्च निगडावं | दिमुक्तये // सहस्रपलदीपे च बंदिमोक्षः प्रजायते // 8 // त्रिंशत्पलमिते पात्र मान्यं चैव तु पूर्ववत // त्रिंशत्पलमिते तैले दिनान्येकोनविं शतिः // 2 // कन्यानिकांक्षी तेलेन प्रत्यहं दीपमाचरेत् // इच्छितां लभते कन्यां भैरवस्य प्रमादतः // 10 // नृकपालमिते For Private And Personal Use Only