________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाशंख वामभुजा वृषभ शुलराज कख ग घ ङ च छ ज झज पद्मयोनि श ष सह हृदय अमृत वामकटि अआइईउऊ | ऋ ए ऐ . ओ औ अं अः दक्षि० कक्षपुटिप्रोक्तं कूर्मम् / क्षेत्रनामादिमो वर्णो यत्र कोष्ठे भवेत्ततः॥ उपविश्य जपं कुर्यान्नान्यास्मिन्दुःखदे // ईशान पूर्व अग्नि स्थले // 301 // ( कक्षपुटौ ) देवस्थाने सुनिश्चित्य कूर्मचक्र सुसिद्धिदम् // दक्षभुजा अष्टवर्ग लिखेदीमान्मध्यतो यावदुत्तरम् // 302 // लक्षमीशपदे क्षेत्रे वेद्यास्ते नवकोष्ठके // हृदास्यभुजकट्यंघिपुच्छे वर्गाः क्रमात्स्थिताः॥३०३॥ पादादि यदि // दक्षिणकटि संज्ञानि तेषु क्षेत्राधिपा नव // अमृतो वृषभश्चैव शूलराजश्च वासुकिः।। 304 // | वासुकि | ट ठ ड ढ ण अमरा अजरश्चैव पूज्य शक्तियुतस्तथा // पद्मयोनिमहाशंखो ज्ञेयास्तनदनुक्र दक्षांघ्रि पूज्य | पुच्छ अजर | वामांघ्रि पूज्य मात् // माध्यात्पूर्वादितः पूज्या मंत्रमत्रव चोच्यते // 305 // अथ मंत्रः | अमुकक्षेत्रपाल देवीपुत्रावतारावतर बलिं पिशितं गृह 2 खल 2 सर्वविघ्नान् हन| वायव्य पश्चिम नैऋत्यकोण 2 स्वाहा // वि० // अनेन मंत्रेण अमृतादयः सर्वे क्षेत्रपालाः पूज्याः स्वस्या स्थितभूम्यां यः क्षेत्रपालः तस्योद्देशन तन्नाम्ना बलियः॥ 306 // यत्रयत्र भवेद्वर्गे क्षेत्रनामाद्यमक्षरम् // तन्मुखं शेषवर्गेषु करकुक्ष्य घिकल्पना // 307 // मुखस्थः क्षोभयेन्मंत्री करस्थः स्वल्पभोगभाक् // कुक्षिस्थो हत्युदासीनः पादस्थो दुःखमाप्नुयात् // 308 // पुच्छस्थो वधबंधं च जपादामोति निश्चितम् // दीपस्थानं ततः क्षेत्रे ज्ञात्वा मंत्रान्शुचिर्जपेत् // 309 // ( दीपस्थाने कूर्मविशेषः) यरल व प फ ब भ म अमर त थ द धन For Private And Personal Use Only