________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं. म. // 216 // दक्षिणामूर्तिसंज्ञोऽन्यो मंत्रराजो धरापते // 11 // सहस्रार्जुनकस्यापि मंत्रा येऽन्ये हनूमतः // ये ने पदेया देवेश तेऽपि मा सम पू०ख०१ पिताः // 12 // किं बहूक्तेन गिरिश प्रेमयंत्रितचेतसा // अर्धाङ्गमपि मह्यं ते दत्तं किं ते वदाम्यहम् // स्त्रीरूपं मम जीवेश पूर्व तु न kal विचारितम् // 13 // श्रीशिव उवाच // सत्यंसत्यं वरारोहे सर्व दत्तं मया तव // परं तु गिरिजे तुज्यं कथ्यते शृणु सांप्रतम् // 14 // कलौ पाखण्डबहुला नानावेषधरा नराः // ज्ञानहीना लुब्धकाश्च वर्णाश्रमबहिष्कृताः // 15 // वैष्णवत्वेन विख्याताः शैवत्वेन बरा नने ॥शाक्तत्वेन च देवेशि सौरत्वेनेतरे जनाः // 16 // गाणपत्वेन गिरिजे शास्त्रज्ञानबहिष्कृताः // गुरुत्वेन समाख्याता विचारण्य पति भूतले // 17 // ते शिष्यसंग्रहं कर्तुमुद्युक्ता यत्र कुत्रचित् // मंत्रायुच्चारणे तेषां नास्ति सामर्थ्यमम्बिके // 18 // तच्छिष्याणां च गि रिजे तथापि जगतीतले // पठंति पाठयिष्यंति विप्रवेषपराः सदा // 19 // द्विजद्वेषपराणां हि नरके पतनं ध्रुवम् // प्रकृतं वच्मि गिरि जे यन्मया पूर्वमीरितम् // 20 // नानारूपमिदं नानाकुटमण्डितविग्रहम् // तत्रोनरं महेशानि शृणु यत्नेन साम्प्रतम् // 21 // तुल्यं मया यदा देवि वक्तव्यं कवचं शुभम् // नानाकूटमयं पश्चात्त्वयाऽपि प्रेमतः प्रिये // 22 // वक्तव्यं कुत्रचित्तनु भुवने विचार ष्यति // भुवनांतःपतितां भद्रे यदि पुण्यवतां सताम् // 23 // सत्सम्प्रदायशुद्धानां दीक्षामंत्रवतां प्रिये ॥बाह्मणाः क्षत्रिया वैश्या विशेषेण / वरानने // 24 // उच्चारणे समर्थानां शास्त्रनिष्ठावतां सदा // हस्तागतं भवेन्द्रे तदा ते पुण्यमुत्तमम् // 25 // अन्यथा शूद्रजातीनां पूर्वो२९॥ तानां महेश्वरि।मुखशुद्धिविहीनानां दांभिकानां सुरेश्वरि॥२६॥यदा हस्तगतं तत्स्यात्तदा पापं महत्तव // तस्मादिचार्य देवेशि ह्यधिका रिणमम्बिके / 27 / / वक्तव्यं नात्र सन्देहो नान्यथा निरयं व्रजेत् // किं कर्तव्यं मया तुल्यमुच्यते प्रेमतः प्रिये // त्वयापीदं विशेषेण , For Private And Personal Use Only