________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं.म. 1278 // श्मशाने तु पृथिव्यां जलसन्निधौ।। यः पठेन्मानवो नित्यं स शूरः स्यान्न संशयः // 224 // एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा पठेन्नरः।।स |पू० ख०१ भावेबुद्धिमान्लोके सत्यमेव न संशयः॥२२५॥ यः शृणोति नरो भक्त्या स एव गुणसागरः / / यः श्रद्धया रात्रिकाले शृणोति पठयते च भैतं. वा // 226 / / स एव साधकः प्रोक्तः सर्वदुष्टविनाशकः।। अर्धरात्रे पठेद्यस्तु स एव पुरुषोत्तमः // 227 / / त्रिसंध्यायां देवगृहे श्मशाने च तरं० 10 dविशेषतः / / वने च मार्गगमने बले दुर्जनसन्निधौ // 228 // यः पठेत्प्रयतो नित्यं स सुखी स्यान्न संशयः॥ विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी | लभते धनम्।।२२९॥शौर्यार्थी लभते शौर्य पुत्रार्थी पुत्रमामुयात् / / एवंविंशतिमंत्रेण अक्षरेण सहैव मे // 230 // यः पठेत्प्रातरुत्थाय सर्व काममवामुयात् // रसार्थी पाठमात्रेण रसं पामोति नित्यशः॥२३१॥ अन्नार्थी लभते चान्नं सुखार्थी सुखमामुयात् // रोगी प्रमुच्यते रोगा दो मुच्येत बंधनात् // २३२॥शापार्थी लभते शापं सर्वशत्रुविनाशनम् // स्थावरं जंगमं वापि विषं सर्व प्रणश्यति // 233 // सर्वलो कप्रियः शांतो मातृपितृप्रियंकरः // संग्राम विजयस्तस्य यः पठेद्भक्तिसंयुतः // 234 // सर्वत्र जयदं देवि स्तोत्रमेतत्प्रकीर्तितम् // इदं / स्तोत्रं महत्पुण्यं निंदकाय न दर्शयेत् // 235 // असाधकाय दुष्टाय मातृपितृविकारिणे // अधार्मिकायाकुलीनाय नैतत्स्तोत्रं प्रकाशयेत् // // 236 // साधकाय च भक्ताय योगिने धार्मिकाय च // गुरुभक्ताय शांताय दर्शयेत्साधकोत्तमः // 237 // अन्यथा पापलिप्तः स्यात्क्रोधाय भैरवोत्तमे // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गोपनीयं प्रयत्नतः // 238 // इदं स्तोत्रं च रुद्रेण रामस्यापि मुखेर्पितम् // तन्मुखान्निः / मृतं लोके दरिद्रायापि साधवे // 239 // रामेण कथितं भाने लक्ष्मणाय महात्मने // ततो दुर्वाससा प्राप्तं तैनेवोक्तं तु पांडवे // 28 // // 240 // पांडवोप्य ववीत्कृष्णं कृष्णेनेह प्रकीर्तितम् // अस्य स्तोत्रस्य माहात्म्यं रामो जानाति तत्त्वतः // 241 // रामोपि राज्य For Private And Personal Use Only