________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir विनियोजयेत् // इत्यं महांकुशा मुद्रा सर्वकामार्थसाधनी // इति महांकुशमुद्रा // 19 // सव्यं दक्षिणदेशेषु सव्यदेशे तु दक्षिणम् / / बाहुं क वा महादेवि हस्ती सपरिवर्तयेत् // कनिष्ठानामिके देवि मुक्ते तेन क्रमेण च / तर्जनीभ्यां समाक्रांते सर्वोद्भुमपि मध्यमे // अंगुष्ठौ च महादेवि सरलावपि कारयेत् / इयं सा खेचरी मुद्रा पार्थिवस्थानयोजिता // इति खेचरी मुद्रा // 20 // परिवृत्य करौ स्पृष्टावईचन्द्रावती प्रिये / तर्जन्यंगुष्ठयुगलं युगपत्कारयेत्ततः // अधः कनिष्ठावष्टब्धे मध्यमे विनियोजयेत् / अथैव / / कुटिले योज्ये सर्वाधस्तदनामिके // बीजमुद्रेयमचिरात्सर्वसिद्धिप्रदायिनी // इति बीजमुद्रा // 21 // मध्यमे कुटिले कृत्वा / तर्जन्युपरि संस्थिते / अनामिकामध्यगते तथैव हि कनिष्ठिके // सर्वा एकत्र संयोज्य अंगुष्टपरिपीडिताः / एषा तु प्रथमा मद्रा / योनिमुद्रेति संज्ञिता // इति प्रथमा योनिमुद्रा // 22 // वामहस्तेन मुष्टिं तु बद्धा कर्णप्रदेशके / तर्जनी सरलां कृत्वा धामयेन्मनु / वित्तमः // सौभाग्यदंडिनी मुद्रा न्यासकालेपि मूचिता // इति सौभाग्यदंडिनी मुद्रा॥२३॥ अंतरंगुष्टमुष्टया तु निरुध्य तर्जनीमिमाम् // रिपुजिह्वाग्रहा मुद्दा न्यासकाले तु सूचिता // इति रिपुजिह्वाग्रहा मुद्रा // 24 // बद्धा तु योनिमुद्रां वै मध्यमे कुटिले कुरु // / अंगुष्ठेन तदने तु मुद्रयं भूतिनी मता // इति भूतिनी मुद्रा // 25 // वाममुष्टिं विधायाथ तर्जनीमध्यमे ततः // प्रसार्य तर्जनीमुद्रा निर्दिष्टा वज्रपाणिना // इति तर्जनी मुद्रा // 26 // मुष्टिं कृत्वा कनिष्ठाइयं वेष्ठयेत् तर्जनी प्रसार्याकंचयेत // इति क्रोधमुद्रा॥२७॥ व इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे मुद्राप्रकरणे द्वितीयस्तरंगः // 2 // For Private And Personal Use Only