________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं०म० // 26 // पू० खं० 1 तरं० 2 दणिक्षे भागे मुंडमुद्रेयमुच्यते // इति मुंडमुद्रा // 11 // तर्जनीमध्यमानामाः समाः कुर्यादधोमुखीः। अनामायां क्षिपेद्दामूद्ध कृत्वा कनिष्ठिकाम् / लेलिहा नाम मुद्रेयं जीवन्यासे प्रकीर्तिता // इति लेलिहा मुद्रा // 12 // तर्जन्यनामिकामध्ये कनिष्ठाक्रम योगतः / करयोर्योजयत्येव कनिष्ठामूलदेशतः // अंगुष्ठाये तु निःक्षिप्य महायोनिः प्रकीर्तिता // इति महायोनिमद्रा // 13 // परिवृत्तकरौ स्पृष्टावंगुष्ठौ कारयेत्समौ / अनामांतर्गते कृत्वा तर्जन्यौ कुटिलाकृती॥ कनिष्ठिके नियुजीत निजस्थाने महेश्वरि / त्रिखंडेयं / समाख्याता त्रिपुराध्यानकर्मणि // इति त्रिखंडमुद्रा // 14 // मध्यमा मध्यगे कृत्वा कनिष्ठंगुष्ठरोधिते / तर्जन्यौ दंडवत्कुऱ्या मध्यमोपर्यनामिके // एषा च प्रथमा मुद्रा सर्वसंक्षोभकारिणी // इति प्रथमा मुद्रा // 15 // एतस्या एव मुद्राया मध्यमे सरले तथा // क्रियेते परमेशानि सर्वविद्रावणी परा // इति सर्वविद्रावणी मुद्रा // 15 // मध्यमातर्जनीभ्यां च कनिष्ठानामिके समे / अंकुशाकार रूपान्यां मध्यमे परमेश्वार // अंगुष्ठं तु नियुंजीत कनिष्ठानामिकोपरि // इयमाकर्षणी मुद्रा त्रैलोक्याकर्षिणी मता // इत्याकर्षिणी मद्रा // 16 // पुटाकारौ करौ कत्वा तर्जन्यावंशुकारुती / परिवर्तक्रमणैव मध्यमे तदधोगते // क्रमेण देवि तेनैव कनिष्ठानामिकादयः / / संयोज्या निबिडाः सर्वा अंगुष्ठावग्रदेशतः॥ मुद्रेयं परमेशानि सर्ववश्यकरी मता // इति सर्ववश्यकरी मुद्रा // 17 // संमुखौ तु करौ कत्वा मध्यमामध्यगेंत्यजे / अनामिके तु सरले तदहिस्तर्जनीयम् // दंडाकारौ ततोंगुष्ठौ मध्यमानखदेशिकौ / मुद्रवोन्मादिनी नाना क्लेदिनी सर्वयोषिताम् // इत्युन्मादिनी मुद्रा // 18 // अस्यां त्वनामिकायुग्ममधः कृत्वांकुशारुति / तर्जन्यावपि तेनैव क्रमेण / For Private And Personal Use Only