________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir मं०म० व चिनप्रसादो मनसश्च तुष्टिरल्याशिता स्वमपराङ्मुखत्वम॥ स्वने प्रपापक्वफलं भवन्ति सिद्धस्य चिह्नानि भवंति मद्यः // 610 // ( भैरवीत खं० १प्र०१ // 22 // hea ) ज्योतिः पश्यति सर्वत्र शरीरं वा प्रकाशयुक्॥निजं शरीरमथ वा देवतामयमेव हि // 611 // (नारदपंचरात्रे) नानाश्चर्यादिहृदय तरं० 1 मंत्रसिद्धिमयानि वै ॥अन्यानंदप्रदान्याशु प्रत्यक्षेण बहिस्तथा / / 612 // जडधीस्तु क्षणं विपक्षणमस्ति प्रहर्षितः॥क्षणं दुभिनि? शृणोत्यस्यांतरिक्षतः // 613 // अणं च मधुरं वाद्यं नानातिसमन्वितम् // आजिवति क्षणं गंधान कर्पूरमृगनाभिजान् // 614 // उत्पतंतं क्षणं वापि पश्यत्यात्मानमात्मनि॥ चन्द्रार्ककिरणाकीर्ण क्षणमालोकयेन्नभः // 15 // गजगोपनादांश्च शृणुयाच क्षणं द्विज॥ निर्भरांबुदसंक्षोभं अणमाकंपयन्त्यपि॥६१६॥ तारकाणि विचित्राणि योगिनो नभसि स्थितान्॥पश्यंति दाहयंतं च क्षणं मंत्रवती सदा॥ // 617 // क्षणं किलिकिलारावं हंसबहिवं तथा॥क्षणमेघोदयं पश्येत्क्षणं रात्रि दिने सति // 618 // रात्री दिवसवल्लोकं संपूर्य क्षण * मीक्षते॥बलेन परिपूर्णश्च तेजसा भास्करोपमः // 619 // पूर्णदुसदृशः कात्या गमने विहगोपमः॥ समेन युक्तः प्रौढेन गांभीर्यण मुखेन / च॥ 620 // स्वल्पासनेनासंवृत्तो बहुनापि न बध्यते // विण मूत्रयोरनल्पत्वं भवेनंद्राजयस्तथा // 621 // जपध्यानगतो मंत्री न Ko खेदमधिगच्छति // 622 // विना भोजनपानाच्यां पक्षमासादिकं मुने॥इत्येवमादिभिाश्चद्वैर्महाविस्मयकारिभिः // 623 // एवमादीनि / चिह्नानि यदा पश्यति मंत्रवित॥सिद्धि मंत्रस्य जानीयाद्देवतायाः प्रसन्नताम्॥ततो जपेऽधिकं यत्नं प्रकुर्याज्ज्ञानलब्धये // 624 // (तंत्रां तरे ) मंत्राराधनशक्तस्य प्रथमं वत्सरत्रयम् // जायंते बह्यो विघा नियतं तस्य नारद // 625 // नोवेगः साधके यावत् कर्मणा मनसा / / al यदि // तृतीयवत्सरादूर्ध्व स्वयं सिध्यति मंत्रराट् // 626 // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखंडे निर्णयप्रकरणे प्रथमस्तरंगः // 1 // // 22 // For Private And Personal Use Only