________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सर्वसिद्धिरुदीरिता // 143 // जप्वाक्षमालां सकलां भ्रामयेदाशिखामणेः // प्रदक्षिणा पुनर्वकमारत्यैवं समाचरेत् // 144 // स्वयं वामेन हस्तेन जपमालां न संस्पृशेत् // अदीक्षितो द्विजो वापि स्पृशेच्चेच्छुद्धिमाचरेत् // 145 // न धारयेत्करे मूर्ध्नि कंठे च जपमालिकाम् // जपकाले जपं कृत्वा सदा शुद्धस्थले क्षिपेत् // 146 // गुरुं प्रकाशयेद्धीमान्मत्रं नैव प्रकाशयेत् // अक्षमालां च मुद्रां च गुरोरपि न दर्शयेत् // 147 // कम्पनासिद्धिहानिस्स्यादननं बहुदुःखकत् // शब्दे जाते भवेद्रोगी / करनष्टा विनाशकत् // 148 // छिन्ने सूत्रे भवेन्मृत्युस्तस्माद्यस्नपरो भवेत् // जपावे कर्णदेशे वा उच्चस्थानेथवा न्यसेत् // 149 // इति ॥(अथ रुद्राक्षमाहात्म्यं पद्मपुराणे) शिखायां हस्तयोः कंठे कर्णयोश्चापि यो नरः // रुद्राक्षं धारयेद्भक्त्या शैवं लोकमवा मुयात् // 150 // रुद्राक्षे देहसंस्थे तु कुकुरो म्रियते यदि // सोपि रुद्रपदं याति किं पुनर्मानवा गुह // 11 // यो ददाति / द्विजातिभ्यो रुद्राक्षं भुवि षण्मुखम् // तस्य प्रीतो भवेद्रुद्रः प्रयच्छति निजं पदम् // 152 / / नववक्त्रं तु रुद्राक्षं धारयेद्वामबाहुना // चतुर्दशमुखं चैव शिखायां धारयेद्बुधः // 153 // सप्तविंशतिरुद्राक्षमालया देहसंस्थया ।यत्करोति नरः पुण्यं सर्वे कोटिगुणं भवेत् // 154 // (स्कंदपुराणे विशेषः) रुद्राक्षान्कण्ठदेशे दशनपरिमितान्मस्तके विंशती दे षट्पट् कर्णप्रदेशे करयुगलगवा द्वादशी द्वादशैव // बाह्वोरिन्दोः कलाभिः पृथकगिरिशिखासूत्रयोरेकमेकं वक्षस्यष्टाधिकं स्यात्कलयति सततं स स्वयं नीलकंठः // 155 // Ma( मुखभेदेन रुद्राक्षमाहात्म्यं स्कंदपुराणे) कार्तिकेय उवाच // एकद्वित्रिश्चतुःपंचषट्सप्तवसवो नव // दशैकादश द्वादश त्रयोदशी 6 चतुर्दश // 156 // एतेषां तु मुखानां तु देवता कोत्र शंकर // गुणं च कीदृशं तेषां कथयस्व यथार्थतः // 157 // शंकर For Private And Personal Use Only