________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir म.म // 5 // सं.१ प्र०१ तरं०१ वश्यादिकं भवेत् // धवले शांतिकं मोक्षः सर्वार्थश्चित्रकम्बल // सर्वाभावे त्वासनार्थं कुशविष्टरमिष्यते // 129 // (हंसमाहेश्वरे) लोम्नि चैव यदासीनस्तदा सर्व विनश्यति // लोमस्पर्शनमात्रेण सिचिहानिः प्रजायते // कुशासने मंत्रसिद्धिर्नात्र कार्या विचारणा ST 130 // जानूोरंतरे ठत्वा सम्यक्पादतले उभे // ऋजुकायो विशेद्योगी स्वस्तिकं तत्पचक्षते // ऊवारुपार| विन्यस्य सम्यक्पादतले उभे // अंगुष्ठौ च निबधीयाचस्ताभ्यां व्युत्क्रमात्ततः // 131 // पद्मासनमिति प्रोक्तं योगिनां हृदयंगमम् // एक पादमधः कृत्वा विन्यस्योरौ तथोत्तरम् // ऋजुकायो विशेयोगी वीरासनामितीरितम् // 132 // ( अथ मालानिर्णयः) अरिष्टपुत्रजीवेश्च शंखपनैर्मणिस्तथा // कुशग्रंथिश्च रुद्राक्षा उत्तमं चोत्तरोत्तरम् // 133 // ( मंत्रखंडे ) स्फाटिकी मौक्तिको वापि प्रोतव्या सितसूत्रकैः // सर्वकर्मसमृद्ध्यर्थे जपेरुद्राक्षमालया // 134 :: वैष्णवे तुलसीमाला गजदंतेर्गणेश्वरे // त्रिपुराया जपे थे शस्ता रुद्राक्ष रक्तचन्दनः // 135 // (मंत्रखंडे ) रेखयाष्टगुणं विद्यात पुत्रजीवैर्दश स्मृतम् // शतं चन्दनशंखैश्च प्रवालैस्तु सहस्रकम // 136 // स्फाटिकेर्लक्षसाहस्रं मौक्तिकेर्लक्षमेव च // दशलक्षं राजताक्षैः सौवर्णैः कोटिरच्यते ॥१३७॥कुशयन्ध्या च रुद्राक्षैरनतगुणितं भवेत् // अष्टोत्तरशतैर्माला पञ्चाशचतुराधिकैः॥१३८॥सनविंशतिभिः कार्या एकग्रीवा समेरुका। मुखं मुखेन संयोज्य पुच्छ पुच्छेन योजयेत् // 139 // प्रोतव्या सितसूत्रेण सत्कर्मफलसिद्धये // पट्टसूत्रकता माला देव्याः प्रीतिकरा मता ॥१४०॥कार्या नईष्णवी माला पद्मसूत्रैरथापि वा // ऊर्णाभिर्वल्कलेर्वापि शैवी माला प्रकीर्तिता // 141 // कासिसूत्ररन्येषां विदध्याजपमा लिकाम् // त्रिंशद्भिः स्यादनं पुष्टिः सप्तविंशतिभिर्भवेत् // 142 // पंचविंशतिभिमोक्षःपंच स्यादभिचारणे // पंचाशद्भिः कुलेशानि / For Private And Personal Use Only