________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 2 // मं०म०पातकानां भयं चैव पठेत्स्तोत्रमनुत्तमम्॥१७॥मारीभये राजभये तथा चोरामिजे भये // औत्पत्ति के महाघोरे तथा दुःस्वमदर्शने॥१८॥ पू० ख० / बंधने च तथा घोरे पठेत्स्तोत्रमनन्यधीः // सर्व प्रशमनं याति भयं भैरवकीर्तनात् // 19 // एकादशसहस्रं तु पुरश्चरणमुच्यते // य / / भै० तं. // 282 // विसंध्यं पठेद्देवि सम्वत्सरमतंद्रितः // 20 // स सिद्धि प्रामुयादिष्टां दुर्लभामपि मानवः // षण्मासं भूमिकामस्तु जपित्वा प्रामयान्महीम् जा ५॥२१॥राजशत्रुविनाशार्थं जपेन्मासाष्टकं पुनः॥रात्रौ वारत्रयं चैव नाशयत्येव शात्रवान्॥२२॥जपेन्मासत्रयं मयों राजानं वशमानयेत्॥ धनार्थी च सुतार्थी च दारार्थी यस्तु मानवः // 23 // जपेन्मासत्रयं देवि वारमेकं तथा निशि // धनं पुत्रं तथा दारान्प्रामुयान्नात्र संशयः / // 24 // रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बंधनात् // भीतो भयात्प्रमुच्येत देवि सत्यं न संशयः // 25 // निगडैश्चापि बद्धो यः कारागेहे निपातितः // शृंखलाबंधनं प्राप्तं पठेच्चैव दिवानिशि // 26 // ययं चिंतयते काम तंतं प्रामोति निश्चितम् // अप्रकाश्यं परं / -ग्रंथांतरे विशेष:---रात्री बारवयं यो वै तस्य वश्यं जगद्भवेत् // प्रातश्चैकादशावृति रात्री वा पुनरेव हि // 1 // पूर्ववच्च विधिं कृत्वा पठनीयः स्तवः शुभः। महानिशि विरावृत्तिं यः करोति सदा शुचिः॥२॥राजानो वशमायांति सभासोभास्करो भवेत् // शनौ च प्रातरुत्थाय दशावृति चोदिह // 3 // होमादिकं च संपाद्य षण्मासादतुलां श्रियम् // शनौ चैवाश्वत्थमूळे पूजयित्वा शिवं प्रिये // 4 // शतावृत्ति पठित्वा तु जगदल्लभतामियात् // रखी च नाभिमावे हि जले स्थित्वा पठेदिह // 5 // एकादश तथावृत्ति पठित्वा प्राप्नुयाठियम् // पठेच रोगांत्यर्थ नक्षत्रे पुष्यसंज्ञके // 6 // अष्टावृत्तिं पठेद्यो वै आरोग्यं लभते ध्रुवम् // रवीच |विप्रान्तपूज्य पाउपेच्छतवारकम् // 7 // वारे वारे च षण्मासं पठित्वा मुतमाप्नुयात् // सप्तजन्मभवा बंध्या जावरपुत्रा भवादह // 8 // कन्याकामी भवेद्यो ये|| विकाळ रविवासरे // षण्मासादप्तरातल्यां लभते खियमतमाम ॥९॥वैद्यानामप्यसाध्यो वै रोगी भवति यस्य च // तस्य रोगस्प शांत्यर्थं पठेत्स्तोवाच मनुत्तमम् // 10 // निष्फलश्च क्रतुस्तस्य भवतीह सदा प्रिये // सहस्त्रावर्तनं कृत्वा सफलश्च ऋतुभवत् // 11 // ग्रहणे च पठेद्यो वे विधिना चन्द्रसूर्ययोः // मना // 28 द्दिष्टां तदा सिद्धि प्राप्नुयान्नाव संशयः // तीर्थे चैव शुभे क्षेत्रे शिवस्य सन्निधौ प्रिये / पठित्वा पुत्रमंत्र च सद्यः सिद्धिं लभेदिह। विरावृत्ति दशावृत्ति विंशति या शतावधिः। सहस्त्रसंख्यया वाय चकादशसहस्रकम् // पुरश्चरणकं प्रोक्तं भैरवस्य महात्मनः।। पुरश्चरणकं कृत्वा पठते नित्यमेव च / सद्यः सिद्धि यथोक्ता हि प्राप्नु यानात्र संशयः॥ मानुषं जन्म मासाद्य दुःखभाजो भवंति वै॥ते भजंतु सदा देवं भैरवं सुखदायकम् // तददुःखं नैव विद्येत भैरवो नाशयेदिद्द // For Private And Personal Use Only