________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir लिकी नित्यं जपस्तपणमेव च॥होमो ब्राह्मणभुक्तिश्च पुरश्चणमुच्यते // 506 // यद्यदंगं च विहितं तत्संख्याद्विगुणं अपम् // कुर्या द्धि त्रिचतुःपंचसंख्यं वा साधकः प्रिये // 507 // कुर्वीत सांगसिद्ध्यर्थं तदशक्तेन भक्तितः // सर्वदांगविहीनस्य मंत्री नेष्टमवार मुयात् // 508 // सम्यसिद्धैकमंत्रस्य पंचांगसेवनेन च // सर्वमंत्राश्च सिध्यंति तत्प्रभावात्कुलेश्वरि // 509 // उपदेशस्य छ। * सामर्थ्यागच्छ्रीगुरोश्च प्रभावतः ॥मंत्रप्रतापाद्भक्तेश्च मंत्रसिद्धिः प्रजायते // 510 // सिद्धमंत्रं गुरोर्लब्ध्वा मंत्रोयं शीघ्रसिद्धये // / पूर्वजन्मकता यासान्मंत्रोयं शीघ्रसिद्धिदः॥५१३॥दीक्षापूर्व कुलेशानि पारंपर्यक्रमागतम्॥न्यासलब्धं तु यन्मंत्रं तच्च सिद्धं न संशयः॥ // 512 // मासमात्रं जन्मंत्रं भूतलिप्यर्णसंपुटम् // क्रमोत्क्रमात्सहस्रं तु तस्य सिद्धो भवेन्मनुः // 513 // मण्डलं ke पूजयेन्मंत्र मातृकाक्षरसंपुटम्॥अनुलोमविलोमेन मंत्रसिद्धिः प्रजायते॥५१४॥विषद्वाक्षरसंयुक्तं मातृकाक्षरसंपुटम्॥कमोत्क्रमं तु तज्जप्त्वा / मासात्सिद्धो भवेन्मनुः // 515 // मातृकाजपमात्रेण मंत्राणां कोटिकोटयः / / जागृताः स्युन संदेहो यत्तत्सर्व तदुद्भवम् // 516 // अनेन / कोटिमंत्रेण चित्तव्याकुलकारकम्॥मंत्रगुरुकृपाव्यानमेकं स्यात्सर्वसिद्धिदम्॥५१७॥यदीच्छया श्रुतं मंत्रच्छद्मनापिच्छलेन वा॥यत्र स्थि तं च वाग्ध्वस्तं तज्जपेन ह्यनर्थकत् / / 518 // पुस्तके लिखितान्मंत्रानालोक्य प्रजपन्ति ये॥ब्रह्महत्यासमं तेषां पातकं परिकीर्तितम् // H॥५१९॥स्नानासनप्राणायामन्यासमालाजपक्षणम्॥मनसा यः स्मरेत्स्तोत्रं वचसा वा मनुं पठेत् // 520 // उभयोनिष्फलं देवि भिन्नभां डोदकं यथा॥शाणोल्लीढानि शस्त्राणि यथा स्युनिशितानि वै // 521 // मंत्राश्च मूर्तिमायांति संस्कारैर्दशभिस्तथा।।तेषां हविष्यं शाका दि हविष्याणि फलं पयः // 522 // मूलं सक्तुर्यवान्नं च ह्यष्टान्येतानि मंत्रिणाम् // यथान्नपानपूगस्य कुरुते धर्मसंचयम् // 523 // For Private And Personal Use Only