________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir भै० म० अन्नदातुः फलस्याई कर्तुश्चाई न संशयः // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन परान्नं वर्जयेत्सुधीः // 524 // पुरश्चरणकर्तुश्च करो दग्धः प्रतिग्रहैः // 01 051 // 19 // मनो दग्धं परस्त्रीभिः कार्यसिद्धिः कथं भवेत् ॥५२५॥मनोन्यत्र शिवोन्यत्र शक्तिरन्यत्र मारुतः॥ न सिध्यति वरारोहे लक्षकोटिजपाद तरं. 1 पि // 526 // वादार्थ पठ्यते विद्या परार्थः क्रियते जपः // ख्यत्यर्थ दीयते दानं कथं सिद्धिर्वरानने // 527 // धनार्थ गम्यते तीर्थे / पदभार्थ क्रियते तमः // काम्यार्थ देवतायात्रा कथं सिद्धिर्वरानने // 528 // अनित्येन तु देहेन न्यासं देवार्चनं जपम् // होमं कुर्व / / ति ये मुढा सर्व भवति निष्फलम् // 529 // तपोर्चनादिकं सर्वमपवित्रं भवेत् प्रिये॥मलिनांगपरा केशा मुखं दुर्गधसंयुतम् // यो जपेत् / तदा हन्याद्देवता सुजुगुप्सितम् // 530 // (मंत्रमहोदधौ ) भूशय्यां ब्रह्मचर्य च त्रिकालं देवतार्चनम्॥नैमित्तिकार्चनं देवस्तुति वि श्वासमाश्रयेत् // 533 // प्रत्यहंप्रत्यहं तावन्नैव न्यूनाधिक कचित॥एवं जां समप्यान्ते दशांशं होममाचरेत् // 532 // तत्नत्कल्पोदि थे। तैव्यैस्तदाधान दीर्यते॥प्राणायाम षडंगं च कृत्वा मूलेन मंत्रवित् // 533 // हविष्यं निशि भुंजीत त्रिःनाय्यायंगवर्जितः // व्यग्रता लस्यनिष्ठीवक्रोधं पादप्रसारणम् // 534 // अन्यभाषां त्यजेच्चैव जपकाले सदा सुधीः // स्त्रीशूद्रभाषणं निद्रां तांबूलं शयनं दिवा // प्रतिग्रहं नृत्यगीते कौटिल्यं वर्जयेत्सदा // 535 // (तंत्रांतरेपि ) लवणं पललं चैव क्षारं क्षौद्रं रसांतरम् // मापमुद्गमसूरांश्च कोइवांची कानपि // 536 // असद्भाषणमन्याय्यं वर्जयेदन्यपूजनम्॥विना अमोचितं नित्यमथ नैमित्तिकञ्चरेत् // 537 // तांबुलं गंधलेपं च / पुष्पधारणमेव च।मैथुनं तत्कथालापं तगोष्ठी परिवर्जयेत्॥५३८॥असंकल्पितकत्यश्च हानिवेदितभोजनम्॥न छिद्यान्नखरोमाणि न स्पृ। शिद्यदमंगलम् // 539 // नावस्खो जपं कुर्यारोमं दानं प्रतिग्रहम्॥सर्व तद्राक्षसं विधादहिर्जानु च यत्कृतम् // 540 // न पदा पादमा For Private And Personal Use Only