________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // तरं०२ श्रीगोपालार्चने वेणुनृहरे रसिंहिका // 18 // वराहस्य च पूजाया वराहाख्यां प्रदर्शयेत् // रामार्चने धनुर्बाणमुद्रे पशुस्तथार्चने // पृ० खं०१ // 19 // परशुरामस्य विज्ञेया तथा परशुमुद्रिका // वासुदेवाह्वया ध्याने कुंतमुद्रा तु रक्षणे // 20 // सर्वत्र प्रार्थने चैव प्रार्थनाख्या नि०प्र०१ नियोजयेत् // उद्देशानुक्रमादामामुच्यते लक्षणन्तथा // 21 // अथावाहनादिनवमुद्रालक्षणम् // हस्तान्यामंजलिं बद्धवानामिका मूलपर्वभिः // अंगुष्ठौ निःक्षिपेत्सेयं मुद्रा त्वावाहिनी मता // इत्यावाहनीमुद्राः // 3 // अधोमुखी त्वियं चेत्स्यात्स्थापनी मुद्रिका स्मृता // इति स्थापनीमुद्राः // 2 // उच्छ्रितांगुष्ठमुष्टयोस्तु संयोगात्सन्निधापनी॥इति संनिधापनी मुद्रा॥३॥अंतःप्रवेशितांगुष्ठा सैव संशोधनी मता // इति संशोधनी मुद्रा // 4 // उत्तानमुष्टियुगला सन्मुखीकरणी मता // इति संमुखीकरणमुद्रा // 5 // देवतांगे षडंगानां न्यासः स्यात् शकलीकतिः // इति शकलीकरणमुद्रा // 6 // सव्यहस्तकता मुष्टिदीर्घाधोमुखसर्जनी // अव / गुंठनमुद्रेयमभितो चामिता मता // इत्यवगुंठनी मुद्रा // 7 // अन्योन्याभिमुखा श्लिष्टा कनिष्ठानामिका पुनः // तथैव तर्जनी मध्या धनुमुद्रा समीरिता // अमृतीकरणं कुर्यात्तया साधक सत्तमः // इत्यमृतीकरणे धेनुमुद्रा // 8 // अन्योन्यग्रथितांगुष्ठा प्रसारितकरांगु ली // महामुद्रेयमुदिता परमीकरणे बुधैः // इति परमीकरणे महामुद्रा // प्रयोजयेदिमा मुद्रा देवताह्वानकर्मणि // 9 // इत्यावाह / नादयो नव मुद्राः॥अथ षडंगन्यासोपयोगिषड्मुद्रालक्षणम् // अंगन्यासस्य या मुद्रास्तासां लक्षणमुच्यते॥ ऋजवो हस्तशाखाश्च हृदये च // 23 // शिरस्यथ // तर्जनीमध्यमांगुष्ठमधोमुष्टिशिखां तथा // करद्वंद्वांगुलीः सर्वाः कवचे स्युः प्रमोदिकाः // नाराचमुद्रिकामध्ये तर्जनीध्वनिरी पारिता // विष्वक्सेने स्मृता मुद्रा नेत्रयोर्मध्यतर्जनी / / नेत्रत्रयं यत्र भवेदनामा मध्यतर्जनी // इति षडंगमुद्रा // अथैकोनविंशति For Private And Personal Use Only