________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir म.म. 144 सदाशिवः / षडक्षरस्वरूपो मे वदनं तु महेश्वरः // 3 // पंचाक्षरात्मा भगवान्भुजौ मे परिरक्षतु // मृत्युंजयस्विबीजात्मा आस्य पू० खं. 1 रक्षतु मे सदा // 4 // वटमूलं समासीनो दक्षिणामूर्तिरव्ययः // सदा मां सर्वदः पातु षट्त्रिंशाणस्वरूपधृक् // 5 // द्वाविंशात्मको रुद्रो दक्षिणः परिरक्षतु // त्रिवर्णात्मा नीलकंठः कंठं रक्षतु सर्वदा // 6 // चिंतामणिबीजरूपो ह्यर्द्धनारीश्वरो हरः // सदा रक्षतु मे गुह्ये सर्वसम्पत्प्रदायकः // 7 // एकाक्षरस्वरूपात्मा कूटव्यापी महेश्वरः // मार्तडभैरवो नित्यं पादौ मे परिरक्षतु // 8 // तुंबुराख्यो महाबीजस्वरूपत्रिपुरांतकः // सदा मां रणभूमौ च रक्षतु त्रिदशाधिपः // 9 // ऊर्ध्वमूर्द्धनमीशानो मम रक्षतु सर्वदा // दक्षिणास्यं तु तत्पुरुषोऽव्यान्मे गिरिनायकः // 10 // अघोराख्यो महादेवः पूर्वास्य परिरक्षतु // वामदेवः पश्चिमास्यं सदा मे परिरक्षतु // 11 // उत्तरास्यं सदा पातु सद्योजातस्वरूपधृक् // इत्थं रक्षाकरं देवि कवचं देवदुर्लभम् // 12 // प्रातःकाले पठेद्यस्तु सोभीष्टं फलमामुयात् // पूजाकाले पठेद्यस्तु कवचं साधकोत्तमः // 13 // कीर्तिश्रीकांतिमेधायःसहितो भवति ध्रुवम् // कंठे यो धारयेदेतत्कवचं मत्स्वरूपकम् // 14 // युद्धे च जयमामोति द्यूते वादे च साधकः // कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे // 15 // देवा मनुष्यगंधर्वा वश्यास्तस्य न संशयः // कवचं शिरसा यस्तु धारयेद्यतमानसः // 16 // करस्थास्तस्य देवेशि अणिमाद्यष्टसिद्धयः // भूर्जपत्रे त्विमा विद्यां शुक्लपट्टेन वेष्टिताम् // 17 // रजतोदरसंविष्टां कृत्वा वा धारयेत्सुधीः // संप्राप्यो l महतीं लक्ष्मीमो मद्देहरूपभाक् // 18 // यस्मै कस्मै न दातव्यं न प्रकाश्यं कदाचन // शिष्याय भक्तियुक्ताय साधकाय प्रकाश येत् // 19 // अन्यथा सिद्धिहानिः स्यात्सत्यमेतन्मनारमे // तव स्नेहान्महादेवि कथितं कवचं शुभम् // 20 // न दयं कस्यचिना // 14 // For Private And Personal Use Only