________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म.म. पू० खं० 1 // 17 // तरं०७ ॐ भू० श्रीविष्णवे नमः पाद्यं समर्पयामि इति सर्वत्र॥इत्यर्बोदकेन पायं दद्यात्॥इति पाद्यम् // 1 // ॐ देवानामपि देवाय देवानां देवता त्मने॥ आचामं कल्पयामीश शुद्धानां शुद्धिहेतवे॥१॥ इत्याचमनम् // 2 // ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानंदलक्षणम् // तापत्रयविमोक्षाय / तवाऱ्या कल्पयाम्यहम् // 1 // अयोदकेनायं दद्यात् // इत्यय॑म् // 3 // ॐ सर्वकालुष्यहीनाय परिपूर्णसुखात्मने // मधुपर्कमिदं देव कल्पयामि प्रसीद मे // 1 // इति मधुपर्कम् // 4 // ॐ उच्छिष्टोप्यशुचिर्वामि यस्य स्मरणमात्रतः // शुद्धिमानोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् // 1 // इति पुनराचमनीयम् // 5 // ॐ स्नेहं गृहाण स्नेहेन लोकनाथ महाशय // सर्वलोकेषु शुद्धात्मन्ददामि स्नेहमुत्तमम् // 1 // इति सुगंधतैलम् // 6 // ॐ गंगा सरस्वती रेवापयोष्णीनर्मदाजलैः // नापितोऽसि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे // 1 // इति जलस्नानम् // 7 // ॐ पयो दधि घतं चैव मधु च शर्करायुतम् // पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् // 1 // इति पंचामृतेन स्नापयित्वा पुनर्जलस्नानं च कारयेत् // 8 // ॐ सर्वभूषादिकैः सौम्ये लोकलज्जानिवारणे // मयैवापादिते तुम्त्य वाससी प्रतिगृह्यताम् / / 1 / / इति वस्त्रम् // 9 // ॐ नवनिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् // उपवीतं चोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर // 1 // इति यज्ञोपवीतम् // 10 // ॐ स्वभावसुंदरांगाय सत्यासत्याश्रयाय ते // भषणानि विचित्राणि कल्पयामि मुरार्चित // 1 // दक्षहस्तांगुष्ठस्पृष्टानामिकात्मिकया मुद्रया भूषणानि दद्यात् / / इत्याभषणम् // 11 // ॐ श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं मुमनोहरम् // विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम् // 1 // अंगुष्ठौ कनिष्ठामूललग्नौ गंधमुद्रा इति गंधम् // 12 // ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुंमाक्ताः सुशोभिताः॥ मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर // 1 // सर्वांगुलीभिर्दद्यात् // इत्यक्षतान् // 13 // माल्यादीनि सुगंधीनि // 1740 For Private And Personal Use Only