________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kaliassagarsun Gyanmandir . 6 पू० ख०१ गतं. तरं०५ वापि तेनतेन बाल हरेत् // (रुद्रयामलतंत्र प्रयोगविशेषः) कृष्णां चतुर्थीमारण्य यावच्छुक्का चतुर्थिका // सहस्रं प्रजपेन्नित्यं योषिन्नियमपूर्वकम् // स्नापयेन्मधुना नित्यं नैवेद्यं गुडपायसम् // भुक्तोच्छिष्टो जपेन्नित्यं गणेशोयं सदा प्रियः // 12 // श्वेतार्केनारुतिं कृत्वा रक्तचंदनकेन वा // अंगुष्ठमात्रां प्रतिष्ठाप्य द्विजाग्निगुरुसन्निधौ / / 13 // जप्त्या षोडशसाहस्रं सिद्धमं डात्रो भवेढुवम् // सदोच्छिष्टो गणेशानो यक्षराजेन धीमता // 14 // // आराधितः सोपहारैः सम्यगिष्टफलप्रदः // एवं कृत्वा व्यव स्थातुं तद्धनश्वरतां गतः // 15 // अपामार्गसमिद्धोमैः सौभाग्यं लभते ध्रुवम् // अष्टोत्तरशतमंत्री एतान्मंत्राभिमंत्रितान् // 16 // की शाश्वास्थिसमद्धतं कील मंत्राभिमंत्रितम् / / निखनेन्मंदिरे यस्य भवेदच्चाटनं परम् // 17 // मनुष्यास्थिसमद्भुतं कील मंत्राभिमंत्रितम् // निखनेन्मंदिरे यस्य मरणं तस्य निश्चितम् // 18 // उद्धृते तु भवेत्स्वस्थमिति सर्वस्य निश्चितम् // यद्यन्नाम्ना जपेन्मंत्रं सहस्रं स वशी भवेत् // 19 // पंचसाहस्रहोमेन उद्धरेच्च वरां स्त्रियम् // सहस्रदशहोमेन राजा सद्यो वशी भवेत् // 20 // लक्षजाप्येन राजानी द्विलक्षं राजपंक्तयः // दशलक्षेण तद्दिष्टं वश्यं तस्य च सर्वथा // 21 // अणिमादिमहासिद्धिः कोटिजाप्यान्न संशयः॥ खेचरत्वं भवेन्नित्यं सर्वज्ञत्वं च जायते // 22 // मंत्रं लिखित्वा शिरसि कंठे वा धारयेद्धदि // सौभाग्यं सर्वरक्षा च भवेत्तत्र सुनिश्चितम् // 23 // |सारभूतमिदं मंत्रं न देयं यस्य कस्यचित् // गुह्यं सर्वागमेष्वेवं हितबुद्ध्याप्रकाशितम् // 24 // न तिथिर्न च नक्षत्रं नोपवासो विधीयते॥ यथेष्टं चिंतयेन्मत्रं सर्वकामफलप्रदम् / / 25 / / इत्युच्छिष्टगणपतिनवार्णमंत्रप्रयोगः // 3 // अथ द्वादशाक्षरोच्छिष्टगणेशमंत्रप्रयोगः (मंत्रम महोदधौ ) मंत्रो यथा / / ॐ ह्रीं गं हस्तिपिशाचिलिखेस्वाहा // ॐ अस्य श्रीद्वादशाक्षरोच्छिष्टगणशंमत्रस्य मनुर्कषिः बिराट् छंदः / // 77 // For Private And Personal Use Only