________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जर्णतः // 321 // नबैकपंचमे सिद्धः साध्यः षड्दशयुग्मके // त्रिसप्तैकादशे मित्रं वेदाटद्वादशे रिपुः // 322 // (मंत्रमहोदधी) नाम्नो मंत्रस्य वर्गों चतुभिर्विभजेत् सुधीः // एकादिशेषे सिद्धादि क्रमाज्ज्ञेयं विचक्षणैः // 323 // सिद्धः सिध्यति कालेन साध्यस्तु जपहोमतः // सुमिदः प्राप्तिमात्रेण साधकं भक्षयदरिः॥ 324 // अथारिमंत्रचक्रम् // अथारिमित्रमंत्रविचारः // (समयाचारतंत्रे ) अथारिमंत्रचक्रम्. मंत्राक्षरेण मंत्रं च दीपनाम्नोवेद्यदि // साधकस्य च नाम्नाथ किं न सिध्यंति में। बरि अआ ऋक ल ल उ ऊ उफफाक त्रिगः // 325 // तस्माच्चक्रं विचार्येव मित्रं चेत्सर्वसिद्धिदम् // अरित्वमद्यस्ये वैरिग प र ख त घ र स ह गकारेण परस्परम् ॥३२६॥ऋदयस्य ठकारेण ठकारस्य च ऋद्वयम् // लुद्वयस्य / / पकारेण पकारस्य च लद्वयम् // 327 // उदयस्य पकारेण षकारस्योयुगेन तु // जकारस्य टकारेण लकारस्य खकारतः // 328 // डकारस्य तकारेण फकारस्य धकारतः॥ फकारस्य च रेफेण फकारस्य सकारतः // अरित्वमेषां वर्णानामन्येषां मित्रभावना // 329 // AS(अरिमंत्रदोषोद्धारो मालिनीविजये) अरिमंत्रो गृहीतश्चेदज्ञानवशतस्तदा // तस्य त्यागः प्रकर्तव्यस्तत्यकारोधुनोच्यते // 330 // मुदिने स्थापयेत्कुंभं सर्वतोभद्रमंडले // विलोमञ्च जपेन्मंत्रं पूरयेचन्तु पायसा // 333 // तत्र देवं समावाह्य जपेदावरणार्चितः // तदने स्थंडिलं कृत्वा प्रतिष्ठाप्यानलं ततः // 332 // जुहुयान्मूलमंत्रेण विलोमेन शतं वृतैः // दिक्पतिभ्यो बलिं दद्यात्पायसान्नघु तान्वितैः // 333 // पुनः संपूज्य देवेशं प्रार्थयेन्मनुनामुना // अनुकूटमनालोच्य मया तरलबुद्धिना // 334 // यदुपातं / पूजितं च प्रभो मंत्रस्य रूपकम् // तेन मे मनसः क्षोभमशेषविनिवर्तय // 335 // पूजनं प्रत्यहं वा तु भूयाच्छ्रेयः सनातनम् // For Private And Personal Use Only