________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir www.kobatrm.org पातु गुह्यं रामैकमानसः॥९॥राममित्रः पातु लिंगमूरू श्रीरामसेवकः // नंदियामस्थितः पातु जानुनी मम सर्वदा // 10 // श्रीराम | पादुकाधारी पातु जंघे सदा मम // गुल्फो श्रीरामबंधुश्च पादौ पातु मुरार्चितः॥११॥ रामाज्ञापालकः पातु ममांगान्यत्र सर्वदा // मम पादांगुलीः पातु रघुवंशसुभूषणः // 12 // रोमाणि पातु मे रम्यः पातु रात्री सुधीमेम // तूणीरधारी दिवसं दिक्पातु मम सर्वदा // 13 // सर्वकालेषु मां पातु पांचजन्यः सदा भुवि // एवं श्रीभरतस्येदं सुतीक्ष्णकवचं शुभम् // 14 // मया प्रोक्तं तवाग्रे हि महा| मंगलकारकम् // स्तोत्राणामुत्तमं स्तोत्रमिदं ज्ञेयं सुपुण्यदम् // 35 // पठनीयं सदा भक्त्या रामचंद्रस्य हर्षदम् // पठित्वा भरतस्येदं / कवचं रघुनंदनः // 16 // यथा याति परं तोषं तथा स्वकवचेन न // तस्मादेतत्सदा जप्यं कवचानामनुत्तमम् // 17 // अस्यात्र पठना न्मर्त्यः सर्वान्कामानवाप्नुयात् // विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रकामो लभेत्सुतम् // 18 // पत्नीकामो लभेत् पत्नी धनार्थी धनमाप्नुयात् // यद्यन्मनोभिलषितं तत्तत्कवचपाठतः॥१९॥लभ्यते मानवैरत्र सत्यंसत्यं वदाम्यहम् // तस्मात्सदा जपनीयं रामोपासकमानवैः॥२०॥ इति श्रीमदानंदरामायणे सुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीभरतकवचं समाप्तम् // 3 // अथ लक्ष्मणकवचप्रारंभः // अगस्त्य उवाच // सौमित्रि रघुनायकस्य चरणद्वेक्षणं श्यामलं बिनतं स्वकरेण रामशिरसि च्छत्र विचित्रांबरम् // विनंत रघुनायकस्य सुमहत्कोदंडबाणासनेतं वंदे कमलेक्षणं जनकजावाक्ये सदा तत्परम् // 3 // अस्य श्रीलक्ष्मणकवचमंत्रस्य अगस्त्य ऋषिः। अनुष्टुप् छंदः / श्रीलक्ष्मणो देवता / / शेष इति बीजम् / सुमित्रानन्दन इति शक्तिः। रामानुज इति कीलकम् / रामदास इत्यस्वमारघुवंशज इति कवचम् / सौमित्रिरिति मंत्रः श्रीलक्ष्मणप्रीत्यर्थ सकलमनोभिलषितसिद्धयर्थं जपे विनियोगः ॥ॐ लक्ष्मणाय अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ॐ शेषाय तर्जनीभ्यां नमः॥२॥ For Private And Personal Use Only