________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir च्याम् // बतारमाद्यं नियमादिकानां लोकैकवंद्यं प्रणमामि विनम् // 4 // आलिंगितं चारुरुचा मृगाक्ष्या संभोगलोलं भदविह लांगम् // विनौषविध्वंसनसक्तमेकं नमामि कांतं द्विरदाननं तम् // 15 // हेरंब उद्यद्रविकोटिकांतः पञ्चाननेनापि विचंताम्यः। मुनी न्सुरान्नक्तजनांश्च मर्वान्स पातु रथ्यासु सदा गजास्यः // 16 // वैपायनोक्तानि म निश्चयेन स्वदंतकोट्या निखिलं लिखित्वा // दंत पुराणं शुभमिडमालिस्तपोभिरुयं मनसा स्मरामि // 17 // क्रीडानटान्ते जलधाविभास्ये बेलांजले लंबपतिः प्रभीतः॥विचिंत्य कस्येति मु रास्तदातं विश्वेश्वरं वाग्भिरभिटुवंति // 18 // वाचां निमित्तं म निमित्नमाद्यं पदं त्रिलोक्यामददत्स्तुतीनाम। मर्वेश्च बंद्यं न च तस्य बंद्यः स्थाणोः परं रूपममा म पायात // 15 // इमां स्तुतिं यः पठतीह माया ममादितप्रीतिरतीब शुद्धः // संमेव्यत दिग्या निका तांतं दारिद्रयसंघ मविदारयेन्नः // 20 इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे हरगौरीसंवादे उच्छिष्टगणेशस्तोत्रं ममानम् // अथ हरिद्रागणेशकवच प्रारंभः // ईश्वर उवाच // शृण वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये // पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते मवसंकटात् // 3 // अज्ञात्वा कब चं देवि गणेशस्य मनं जपेत // सिद्धिर्न जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि // 2 // ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखापरि // से मोदो त्रियुगे पातु नमध्ये च गणाधिपः // 3 // गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः॥ गणक्रीडान्वितः पातु वदने मर्वमिद्धये / // 4 // जिह्वायां मुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः मदा // विवशो हृदये पातु विघ्नानाथश्च वक्षसि // 5 // गणानां नायकः पातु बाहुयु / म मदा मम // विश्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिंगके // 6 // गजवक्त्रः कटीदेशे एकदंतो नितंबकं / / लंबोदरः सदा पातु गुह्य देशे ममारुणः // 7 // ब्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे मदा // जापकः मर्वदा पातु जानुजंघे गणाधिपः // 8 // हरिद्रः / 48 For Private And Personal use only