________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsunl Gyanmandir मं० म. पू० खं. 1 मह्यं परं स्नेहाद्वदामि ते // अति गुह्यतरं तत्त्वं ब्रह्ममंत्रौघविग्रहम् // 3 // यद्धृत्वा पठनाद्ब्रह्मा सृष्टिं बितनुते ध्रुवम् // यद्धृत्वा पठना पाति महालक्ष्मीर्जगत्रयम् // 4 // पठनाद्धारणाच्छम्भुः संहर्ता सर्वमंत्रवित् // त्रैलोक्यजननी दुर्गा महिषादिमहासुरान् // 5 // वरहप्ता अघानैव पठनाद्धारणाद्यतः // एवमिन्द्रादयस्सर्वे सर्वैश्वर्य्यमवामुयुः // 6 // इदं कवचमत्यंत गुनं कुत्रापि नो वदेत् // शिष्याय भक्ति युक्ताय माधकाय प्रकाशयेत् // 7 // शठाय परशिष्याय दत्त्वा मृत्युमवानुयात् // त्रैलोक्यमंगलस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः॥८॥ ऋषि श्छन्दश्च गायत्री देवो नारायणः स्वयम्॥धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः॥९॥ॐ प्रणवो मे शिरः पातु नमो नारायणाय च॥ भालं मे नेत्रयुगलमष्टार्णो भक्तिमुक्तिदः // 10 // क्लीं पायाच्छ्रोत्रयुग्मं चैकाक्षरस्सर्वमोहनः।। क्लीं कृष्णाय सदा घाणं गोविंदायेति जिति काम् // 11 // गोपीजनपदं वल्लभाय स्वाहाननं मम // अष्टादशाक्षरो मंत्रः कंठं पातु दशाक्षरः // 12 // गोपीजनपदं वल्लभाय स्वाहा भुजद्वयम् // क्लीं ग्लौं की श्यामलांगाय नमः स्कंधौ दशाक्षरः॥ 13 // क्लीं कृष्णः क्लीं करौ पायात क्लीं कृष्णायांगतो वतु // हृदयं भुवनेशानी की कृष्णाय की स्तनौ मम // 14 // गोपालायामिजायांतं कुक्षियुग्मं सदावतु // क्लीं कृष्णाय सदा पातु पार्श्वयुग्ममनुत्तमः // 15 कृष्णगेबिंदकी कटयां स्मरायौ डेन्युतो मनुः // अष्टाक्षरः पातु नाभिं कृष्णेति द्वयक्षरोऽवतु॥ 16 // पृष्ठं की कृष्णकंकालं क्लीं कृष्णाय विठांतकः // सक्थिनी सततं पातु श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णठद्वयम् // 17 // ऊरू सप्ताक्षरः पायात्रयोद शाक्षरोऽवतु // श्रीं ह्रीं क्लीं पदतो गोपीजनवल्लभदं ततः // 18 // भाय स्वाहेति पायुं वै क्लीं ह्रीं श्रीं सदशार्णकः // जानुनी च सदा र पातु ह्रीं श्रीं क्लीं च दशाक्षरः // 19 // त्रयोदशाक्षरः पातु जंघे चक्रायुदायुधः // अष्टादशाक्षरो ह्रीं श्रीं पूर्वको विशदर्णकः // 20 // For Private And Personal Use Only