________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir निजषस्व // 2 // इति अंतःपटं दत्त्वाचमनं दद्यात् // तत्र मंत्रः // 31 // उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः // शुद्धिमामोति पतिस्मै ते पुनराचमनीयकम् // 3 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः आचमनं समर्पयामि // 32 // इत्याचमनं दत्त्वा मूलेन गंडूषार्थ जलं दद्यात् / पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् // एलाचूर्णादिसंयुक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम् // 1 // मूलं पठित्वा / ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः तांबूलं समर्पयामि / इति तांबूलम् / / 33 // इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव // तेन मे सफलावा निर्भवेजन्मनिजन्मनि // 3 // मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकदेवाय नमः फलं समर्पयामि // इति फलम् // 34 // बुद्धिः सवासना कुता दर्पणं मंगलानि च // मनोवृनिविचित्रा ते नृत्यरूपेण कल्पिता // 1 // ध्यानं संगीतरूपेण शब्दा वाद्यप्रभेदतः॥ छत्राणि नवपनानि कल्पितानि मया प्रभो // 2 // मुषुम्नाध्वजरूपेण प्राणाद्याश्चामरा मताः // अहंकारो गजत्वेन वेगः कुतो रथात्मना // 3 // इन्द्रि याणि च रूपाणि शब्दादिरथवर्मना // मनः प्रयहरूपेण बुद्धिः सारथिरूपतः // 4 // सर्वमन्यत्नथा कृतं तवोपकरणात्मना // एवं साईचतुः श्लोकान् पठित्वा छत्रादि समर्पयेत् / इति छत्रायर्पणम् // 35 // हिरण्यगर्भगर्भस्थहेमबीजं विभावसोः // अनंत पुण्यफलदमतः शांतिं प्रयच्छ मे // मूलं पठित्वा ॐ भभुवः स्वः अमुकदेवाय नमः दक्षिणां समर्पयामि / इति हिरण्यादिदक्षिणां थे। दद्यात् // 36 // शालिगोधूमपिष्टेन त्रिकोणाकारं प्रयोगोक्तं वा अमुकसंख्यापरिमितदीपं निर्माय सुवर्णादिस्थालीमध्ये संस्थाप्य घृतेनापूर्य कर्पूरादिवर्ती निक्षिप्य ( ह्रीं) इति मायाबीजेन प्रज्वाल्य मूलेनार्तिक्यं संपूज्य मलं पठित्वा देवोपरि नेत्रादिपादपर्यंत नववारं For Private And Personal Use Only