________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir // अथ उच्छिष्टगणेशकवचपारंजः // देव्युवाच // " देवदेव जगन्नाथ सृष्टिस्थितिलयात्मक // विना ध्यानं विना मंत्रं विना होम विना जपम् // 1 // येन स्मरणमात्रेण लभ्यते चाशु चिंतितम् // तदेव ओतुमिच्छामि कथयस्व जगत्प्रभो // 2 // ईश्वर उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि गुह्याद्गृह्यतरं महत // उच्छिष्टगणनाथस्य कवचं सर्वसिद्धिदम् // 3 // अल्पायामबिना कष्टपमात्रेण सिद्धिदम् // एकांते निर्जनेऽरण्ये गह्वरे च रणांगणे // 4 // सिंधुतीरे च गांगीये कले वृक्षतले जले / / सर्वदेवालये तीर्थ लब्ध्वा मम्यक् जपं चरेत ॥५नानशौचादिकं नास्ति नास्ति निर्बधनं प्रिये // दारियांतकरं शीघ्रं मर्वतत्त्वं जनप्रिये // 6 // महस्रशपथं / कृत्वा यदि स्नेहोस्ति मां प्रति / / निंदकाय कुशिष्याय खलाय कुटिलाय च // 7 // दुष्टाय परशिष्याय यातकाय शठाय च / / बंचकाय वरनाय ब्राह्मणीगमनाय च // 8 // अशक्ताय च ऋराय गुरुद्रोहरताय च // न दातव्यं न दातव्यं न दातन्यं कदाचन मुझनकाय दातव्यं मच्छिप्याय विशेषतः // तेषां मिध्यंति शीघेण ह्यन्यथा न च मिध्यति // 10 // गुरुसंतुष्टिमा त्रण कलो प्रत्यक्षमिद्धिदम् // देहोच्छिष्टः प्रजतव्यं तथोच्छिष्टमहामनुः // 11 // आकाशे च फलं पानं नान्यथा बचना मम / एपा राजवती विद्या विना पुण्यं न लन्यते // 12 // अथ वक्ष्यामि देवेशि कवचं मंत्रपूर्वकम् // येन विज्ञानमात्रेण / राजभोगफलप्रदाय // 13 // ऋषिर्म गणकः पात शिरमि च निरंतरम // त्राहि मां देवि गायत्रीछन्दो ऋषिः सदा मुखे / // 14 // हृदये पातु मां नित्यमुच्छिष्टगणदेवता / / गुह्ये रक्षतु तद्वीजं स्वाहा शक्तिश्च पादयोः // 15 // कामकीलकसोंगे विनियोगश्च मर्वदा / / पाद्वये मदा पातु स्वशक्ति गणनायकः // 16 // शिवायां पातु तद्वीजं भ्रमध्ये तारबीजकम् // For Private And Personal Use Only