________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म० म०] यत्स्वरूपं तुरीयं त्रैगुण्यातीतलीलं कलयति मनमातेजमोदारवृनिः / / योगीन्द्रा ब्रह्मरन्धे महजाणमयं श्रीहरेन्द्र बसंतं गगगगगणेशं गजप० ख० 1 // 10 // मुखमनिशं व्यापकं चिंतयंति॥१॥वववविन्नराजं भजति निजभुजे दक्षिणे पाणिशुई काकाँकॉक्रोधमुद्रादलितारपुकुलं कल्पवृक्षस्य मृले गत• धाइँदंतमेकं दधतमभिमुखं कामधेन्वादिसेव्यं धारयतं दधतमतिशयं मिद्धिबुद्धीर्ददंतम् // 2 // तुतुतगरूपं गगनमुपगतं व्यामुवन्तं तरं०५ दिगतं की की की कामनाथं गलितमददलं लोलमनालिमालम् // ह्रीं ह्रीं ह्रीं काररूपं मकलमुनिजनध्ययमुदिक्षुदंडं श्रीँ श्राश्री मंश्रयं नं निखिलनिधिकलं नौमि हेरंबलंबम // 3 // ग्लॉग्लॉग्लाँकारमायं प्रणवमयमहामंत्रमुकावलीनां मिद्धं विघ्नेशबीज गशिकरम दशं योगिनां ध्यानगभ्यम् // डाँडाँडाँडामरूपं दलितभवायं मूर्यकोटिप्रकाशं ययययक्षराजं जपनि मुनिजनो गृह्यामार्थनां च // 4 // हुँहुँहुँहेमवर्ण श्रुतिगणितगुणं शूर्पकर्ण कपालुं ध्येयं यः मूर्यबिंबे उरमि च विलममर्पयज्ञोपवीतम् // म्वाहाहै फटममतः उठठठमाहतः पल्लवैः सेव्यमानमत्राणां मनकोटिप्रगणितमहिमध्यानमीशं प्रपद्ये // 1 // पूर्व पीठं त्रिकोणं तद्परिकचिर पटदलं मपपत्रं तस्याद्ध बद्ध खरखावसुदलकमलं बाह्यनोधश्च तम्य // मध्ये हुंकारबीजं नदन भगवतो बीजपटक पुगंष्टिी शुक्लेशमिधी बहुलगणपतविष्टर वाष्टकं च // 6 // धर्मायटौ प्रसिद्धा दिशि विदिशि गणा बाह्यनो लोकपालान मध्ये क्षेत्राधिनाथं मुनिजनतिलकं मंत्रमुद्रापदेशम॥एवं यो भक्ति का युक्तो जपति गणपतिं पुष्पधुपाक्षताद्यनवेद्यैमादकानां स्तुतिनटविलमगीतबादित्रनादैः // 7 // गजानम्तस्य भृत्या इव युवतिकुलं दामवत्सर्वदास्ते लक्ष्मीःसर्वाङ्गयुक्ता त्यजति न मदनं किंकराः मर्वलोकाः // पुत्राः पौत्राः प्रपौत्रा रणभुवि विजयो द्यूतवादे प्रवीणो // 104 // यस्येशो विघ्नराजो नियमति हृदये भक्तिभाजां म देवः // 8 // इति श्रीशंकराचार्यविरचितं वक्रतुंडस्तोत्रं ममातम / For Private And Personal Use Only