________________ www.kabarth.org Acharya Shelaassagar Oyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कीर्तयन्पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव // 25 // पूजयस्यैनमेकायो देवदेवं जगत्पतिम् // एतत्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसे // 26 // अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जयिष्यमि / / एवमुक्त्ता ततोऽगस्त्यो जगाम म यथागतम् // 27 // एतच्छृत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभव वनदा // धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान // 28 // आदित्यं वीक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्रवान // त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनु / रादाय वीर्यवान // 29 // रावणं प्रेक्ष्य हृष्टान्मा जयार्थ समुपागतम् // सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् / / 3. // अथ रविरवद निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः // निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचत्वरेति // 31 // इति वाल्मीकीये श्रीमद्रामायणे आदित्यहृदयस्तोत्रं समानम् // अथ सूर्यसहस्रनामस्तोत्रप्रारंभः ।।मुमंतुरुवाच // माघे मामि मिते पक्षे मतम्यां कुरुनन्दन॥ निराहारो रवि भत्त्या पूजयेद्विधिना नृप // 1 // पूर्वोक्तेन जपजाप्यं देवस्य पुरतः स्थितः॥ शुद्धैकाग्रमना राजञ्जितक्रोधो जितेन्द्रियः // शतानीक उवाच / / केन मंत्रेण जन दर्शनं भगवान ब्रजेत् // स्तोत्रेण वापि सविता तन्मे कथय मुव्रत // 3 // सुमंतुरुवाच // स्तृतो नामसहस्रेण यदा भक्तिमता मया // तदा मे दर्शनं यातः माक्षाद्देवो दिवाकरः॥४॥ शतानीक उवाच // नाम्नां सहस्रं सवितुः / श्रोतुमिच्छामि ते द्विज // येन ते दर्शनं यातः मासाद्देवो दिवाकरः // 5 // सुमंतुरुवाच // सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् // न चे दस्ति भयं किंचिद्यजनेन च शाम्यति // 6 // ज्वराद्विमुच्यते राजन्स्तोत्रेऽम्मिन्पठिते नरः // अन्ये च रोगाः शाम्यंति पठतः शृण्वत स्तथा // 7 // संपद्यते यथाकामास्सर्वभोगा यथेप्सिताः // य एतदादितः श्रुत्वा संग्राम प्रविशेन्नरः // 8 // स जित्वा समरे शत्रूनाम्येति / गृहमक्षतः॥ बंध्यानां पुत्रजननं भीतानां भयनाशनम् // 9 // भृतिकारि दरिद्राणां कुष्ठिनां परमौषधम् // बालानां चैव सर्वेषां ग्रहरझोन For Private And Personal Use Only