________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kobatrm.org मं० म तिष्ठेति तत्र रोगभयं राजकुलभयं नास्ति तस्योच्चारणमात्रेण सर्व ज्वरा नश्यति ॐ ह्रां ह्रीं हूं घेघे स्वाहा॥"श्रीरामचन्द्र उवाच // हनुमान पू० ख०१ // 30 // पूर्वतः पातु दक्षिण पवनात्मजः॥ पातु प्रतीच्यां रक्षोनः पातु सागरपारगः // 1 // उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरीप्रियनन्दनः // अधस्तु मित. विष्णुभक्तश्च पातु मध्यं तु पावनिः // 2 // लंकाविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरंतरम् // मुग्रीवसचिवः पातु मस्तकं वायुनंदनः // 3 // तर भालं पातु महावीरो ध्रुवोर्मध्ये निरंतरम् // नेत्रे छायापहारी च पावनः पृवगेश्वरः // 4 // कपोले कर्णमूले च पातु श्रीरामकिंकरः॥ नासाग्रमंजनीसूनुः पातु वकं हरीश्वरः॥ 5 // वाचं रुद्रप्रियः पातु जिह्वां पिंगललोचनः // पातु देवः फाल्गुनष्टश्चुबुकं दैत्यदर्पहा // // 6 // पातु कंठं च दैत्यारिः स्कंधौ पातु सुरार्चितः // भुजौ पातु महातेजाः करौ च चरणायुधः // 7 // नखान्नखायुधः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः॥ वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्व भुजायुधः // 8 // लंकाविभंजनः पातु पृष्ठदेशे निरंतरम् // नानि च रामद तस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः // 9 // गुह्यं पातु महापाज्ञो लिगं पातु शिवप्रियः // ऊरू च जानुनी पातु लंकापासादभंजनः // 10 // जंघे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फो पातु महाबलः // अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः // 11 // अंगान्यमितसत्त्वाढयः पातु पादां| INIगुलीस्तथा // सर्वाङ्गानि महाशूरः पातु रोमाणि चात्मवित् // 12 // हनुमत्कवचं यस्तु पठेविद्वान्विचक्षणः // स एव पुरुषश्रेष्टो भुक्ति मुक्तिं च विंदति // 13 // त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं नरः // सर्वान् रिपून्क्षणाजित्वा स पुमान् श्रियमामुयात् // 14 // मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद्यदि // क्षयापस्मारकुष्ठादितापत्रयनिवारणः॥१५॥अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थित्वा पठति यः पुमान्॥अ चलां श्रियमामोति संग्रामे विजयं तथा॥१६॥बुद्धिर्बलं यशो धैर्य निर्भयत्वमरोगताम्॥सुदाढय वास्फुरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत् // 17 // For Private And Personal Use Only