________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir H // 382 // वागादिजपनादेव बाक्सिद्धिर्जायतेचिरात् // शक्तिबीजादिको मंत्रो निर्दोषमचिरादिशेत् // 383 / / पुटनात्प्रणवान्यां थे तु मोक्षमामोति निश्चितम् // एवं मंत्रवरं जप्त्वा किं न सिध्यति मंत्रवित् // 384 // अथ कामनापरत्वेन मंत्रांते पल्लव निर्णयः ( हरगौरीतंत्रे ) मंत्राणां पल्लवो वासो मंत्राणां प्रणवः शिरः // शिरःपल्लवसंयुक्तो मंत्रः कामदुधो भवेत् // 385 // वश्याकर्षणहोमेषु स्वाहांतः सिद्धिदायकः // वौषट्पल्लवसंयुक्तो मंत्रः पुष्टयादिसाधकः // 386 // हुंकारपल्लवोपेतो मारणे ब्राह्मणं / / विना // यंत्रभंजनकार्येषु सुघोरभयनाशने // 387 // वपडतः प्रकल्प्यस्तु ग्रहबाधाविनाशकः // उच्चाटने तु संप्राक्तो मंत्रः | फट्पल्लवान्वितः // 388 // (मनुमते ) / वप वश्ये फडुच्चाटे हुँस्तंभे खे च मारणे // स्वाहा तुष्टयै ठः ठः पुष्टयै नमः सर्वार्थसाधने // 389 // मतांतरे // वषक वश्थे फडुच्चाटे हुंद्वषे खे च मारणे // टस्तम वौपडाक नमः संपत्तिहतवे / स्वाहा पुष्टिस्तथा तुष्टिरि थे त्येते मंत्रपल्लवाः / / 390 // अथ मंत्राणां छिन्नादिकदोपनिर्णयः // (शारदातिलके ) छिन्नादिदुष्टा मंत्रास्ते पालयति न साधकम् // छिन्नो रुद्धः शक्तिहीनः पराङ्मुख उदीरितः॥ 391 // बधिरो नेत्रहीनश्च कीलितस्तंभितस्तथा // दग्धस्वस्तश्च भीतश्च मलिनश्च तिरस्कृतः / / 392 // भेदितश्च सुसुप्तश्च मदोन्मत्तश्च मूर्छितः // हृतवीर्यश्च होनश्व प्रध्वस्तो बालकस्ततः // 393 // कुमारश्च युवा व प्रौढो बृद्धो निस्विंशकस्तथा // निर्बीजः सिद्धिहीनश्च मंदः कूटस्तथा पुनः // 394 // निरंशकः सत्त्वहीनः केकरो बीजही नकः // धूमिलालिंगितौ स्यातां मोहितस्तु क्षुधातकः // 395 // अतिहतोंगहीनः स्यादतिक्रुद्धः समीरितः॥ अतिक्रूरश्च सबीडः शांतमानस एव च // 396 // स्थानानटस्तु विकलः सोतिबद्धः प्रकीर्तितः॥ निःस्नेहः पीडितापि वक्ष्याम्येषांच लक्षणम् // For Private And Personal Use Only