________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नारसना 4 रस 5 विष्णु.६ प्रतिष्ठो 7 दानाः ध्येयाः // 2 // तेजोमंडले-वायु 1 विसर्ग 2 विसर्जनीय 3 चक्षू 4 रूप 5 शिव 6 विद्या 7 व्यानाः 8 ध्येयाः॥३॥ वायुमंडले-उपस्था 1 नन्द 2 वी 3 स्पर्शन 4 स्पर्श 5 ईशान 6 शांत्य 7 पानाः 8 ध्येयाः // 4 // आकाशमंडले-वाग 1 वक्तव्य 2 वदन 3 श्रोत्र 4 शब्द 5 सदाशिव 6 शांत्यतीताः 7 प्राणा 8 इत्यष्टौ चिंत्याः // 5 // एवं भूतानि संचिंत्य पूर्वपूर्वकार्यस्योत्तरोत्तरं कारणे विलापनं ब्रह्मपर्यंतं कार्य्यम् तथा च-ॐ लं फट् इत्यनेन पंचगुणां पृथ्वीमप्मु उप के संहरामीति जले भुवं विलापयेत् // 1 // ॐ व हुं फट् इति चतुर्गुणा अपोनौ उपसंहरामीति वह्नौ जलं विलापयेत् // 2 // ॐ हँ हुँ / फट् इति त्रिगुणं तेजो वायावुपसंहरामीति वह्नि वायौ विलापयेत् // 3 // ॐ य हु फट् इति द्विगुणं वायुमाकाश उपसंहरामीति वायुमाकाशे विलापयेत् // 4 // ॐ हँ हुँ फट् इत्येकगुणमाकाशमहंकार उपसंहरामीत्याकाशमहंकारे विलापयेत् // 5 // ॐ अहं कारं महत्तत्त्व उपसंहरामीत्यहंकारं महत्तत्वे विलापयेत् // 6 // ॐ महत्तत्त्वं प्रकृतावुपसंहरामीति महत्तत्त्वं प्रकृतौ विलापयेत् // 7 // ॐ प्रकृतिमात्मन्युपसंहारामीत्यनेन मायामात्मनि विलापयेत्॥८॥ एवं शुद्धसच्चिन्मयो भूत्वा पापपुरुषं चिंतयेत् / तथा च बासनामयं वाम कुक्षिस्थितं कृष्णमंगुष्टपरिमाणकं ब्रह्महत्याशिरोयुक्तं कनकस्तेयबाहुकं मदिरापानहृदयं गुरुतल्पकटियुतं तत्संसर्गिपदवंद्वमुपपातकमस्तकं खड्गचर्मधरं दुष्टमधोवकं मुदुःसहमेवं पापपुरुषं चिन्तयित्वा पूरकप्राणायाम (ॐ यँ ) इति वायुवीजन द्वात्रिंशद्वारं षोडशवारं वा आव तितेन पापपुरुषं शोषयेत् // 1 // ततः स्वशरीरयुतं पापं कुंभके (ॐ रं) इति वह्निबीजेन चतुःषष्टि 64 वारमावर्तितेन तदुत्थाना मिना दहेत् // 2 // ततो रेचकप्राणायाम (ॐ यँ ) इति वायुबीजं षोडशवारं द्वात्रिंशद्वारं वा जपित्वा दक्षिणनाड्या तद्भस्म स्वशरीरा For Private And Personal Use Only