________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म. म. पृ० ख०१ भ म०प्र० तरं० 3 मामाहत्या पश्चिमायां महारुद्रमष्टाविंशतिकोष्टकैः // लिंगपार्श्व तथा मूर्धन्यष्टौ कोष्ठाः सुपीतकाः॥३॥-लिंगमेकं तथा गौर्यस्तिस्रंश्चात्र तु मंडले॥ पूजयेन्मण्डलं चैव तस्य गौरी प्रसीदति // देवता पूर्वोक्ता एवं // इति // ल०॥ अथ लघुगौरीतिलकाख्यमेकलिंगतोभद्रमण्डलम् // अथ सूर्य्यभद्रम् // रेखाविंशतिसंयुक्त भीमरथ्यास्तु मंडलम॥ सूर्यव्रतेषुः सर्वेषु शस्यते मंडलं त्विदम् // जाणार - // 1 // खडेन्दुखिपदः कार्यः शृंखला षट्पदा मता // त्रयोदशपदैवल्ली भद्रं तु त्रिपदं मतम्॥२॥सू म यंत्रयं प्रकुर्वीत सप्तविंशतिभिः पदैः // सूर्यत्रयं चतुष्कोणे पदमसितं भवेत॥३॥ पदैस्तु नबभिः कन्या भवेत्सूर्यत्रयं ततः। सूर्योपरि भवेद्भद्रं पदं द्वादशसंमितम॥४॥ ऊर्ध्वमिदं प्रकुर्वीत चतुर्भिस्तु सितैः पदैः। परिधिः षोडशपदा पनं नवपदं ततः॥५॥ मत्त्वं रजस्तम इति रेखाः स्युमंडलाहिः // कृष्णा च श्रृंखः / KI ला जेया बल्ली नीला प्रकीर्तिता // 6 // भद्रान् पीतान प्रकुर्वीत रवीन रक्तान प्रकारयेत् // पीतश्च परिधि - प्रोक्तः पद्म रक्तं तथैव च // 7 // इति भद्रमार्तण्डे सूर्यभद्रम्॥ अथ गणपतिभद्रम् // अथातःसंप्रववक्ष्यामि मंडलं सर्वसिद्धिदम् // नाम्ना च विन्नमर्दाख्यं विनायकवते हितम् // 1 // तिर्यगय सप्तदश रेखाः कार्याः सुशाभनाः // खडेंदुविपदः कोणे शृंखला च चतुष्पदैः॥२॥कार्या नवपदा वल्ली भद्रं रक्तं चतुष्पदम्॥ततो वितिकोठेषु कार्यो गणपतिः शुभः // 3 // कोष्ठद्वयेन मुकुटं गणेशस्य च कारयेत् // पतिश्च परिधिः कायः पविशतिभिस्तथा // 4 // मध्ये षोडशकोप्टेन पनं कार्य सुशोभनम् // सर्वतोभद्रदेवान्दै विशेषेणात्र योजयेत् // इति गणपतिभद्रम् // इति श्रीमंत्रमहार्णवे पूर्वखण्डे अद्रमंडलप्रकरणे तृतीयस्तरंगः // 3 // ममममममम HORTHARAM For Private And Personal Use Only