________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a एकोच्चारेण देवेशि भवंति दश कोटयः // 570 // असंख्यः स जयो देवि ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः॥ तत्कथं परमेशानि क्रियते जपसंख्यक म्॥ 571 // अत एव वरारोहे होमो नास्ति शुचिस्मिते।अभिषेकश्च देवेशि तथा च तर्पणादिकम् // 572 // भोजनं च महशानि नास्ति वै कमलानने॥चन्द्रसूर्यग्रहे देवि पंचांगं नास्ति कामिनि // पंचांगेन बिना देवि सिद्धो भवति नान्यथा // 573 // प्रथमे प्रहरे दे। वि चन्द्रग्रामो यदा भवेत्॥चन्द्रग्रहणकाले तु जपयज्ञादिकं चरेत् // 574 / / दिवसे च यदा भद्रे भास्करग्रहणं भवेत्॥ रात्रौ भत्कार 2 च पीत्वा च जपयज्ञादिकं चरेत् // 575 // सर्वेषु विष्णुमंत्रेषु शिवगाणपयोस्तथा।।शक्तिमंत्रो महशानि प्रशस्तः सततं जपे।। 576 // संकल्पो यस्तु देवेशि मानसे समुपस्थितः // तं संकल्प विजानीयादहणे चन्द्रमूर्ययोः // 577 / / तस्मानु चंचलापांगि संकल्पं नैव o कारयेत् // इति बीजाणवे तंत्रे शिवेनैव प्रकाशितम् // 578 // ( पुरश्चरणचन्द्रिकायाम ) ग्रहणेकस्य चेन्दो शुचिः पूर्वमुखोषितः // नशं समुद्रगामिन्यां नाभिमात्रोदके स्थितः // 579 // ग्रहणान्मोक्षपर्यंतं जपेन्मन्त्रं समाहितः // अनंतरं दशांशेन क्रमादोमादिकं चरेत // 580 // तदंते महती पूजां कुर्याद्वाह्मणतर्पणम् // ततो मंत्रप्रसिद्धयर्थ गुरु संपूज्य तोषयेत् // एवं च मंत्रसिद्धिः स्यादेवता च प्रसीदति // 581 // ( रुद्रयामले ) अथ वान्यप्रकारेण पुरश्चरण मिष्यते // अपि शुद्धोदकैः स्नात्वा श्चौ देशे समाहितः // 582 // ग्रहणान्मुक्ति पर्यंतं जपेन्मंत्रमनन्यधीः // इति कृत्वा न संदेहो जपस्य फलभाग्भवेत्॥५८३॥( तंत्रांतरेपि ) यस्तु श्रद्धानुरोधेन ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः॥ न करोति पुरश्चर्या नरके स विपच्यते // 584 // अथ सूर्योदयमारण्य द्वितीयसूर्योदयपर्यंत पुरश्चरणं (देवीरहस्ये ) अथ वान्यप्रकोरण पुरश्चरणमिप्यते // सूर्योदयात्ममाराय याव For Private And Personal Use Only